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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अदभुत, हमेशा की तरह।

हालांकि जैसा SANJU ( V. R. ) भाई ने कहा की मां को देख अमर का उत्तेजित ना होना, और बहन को देख सुनील का, उनको अनपेक्सटेड लगा, लेकिन शायद वो भूल गए की अमर ने पहली बार नही देखा, मां और डैड को भी वो देख चुका है पहले, जब वो छोटा ही था, अभी तो खैर कंट्रोल करने की क्षमता बढ़ गई है।

खैर आपने बताया नही कि कौन सा पार्ट आपने लिखा और कौन सा भाभी जी ने avsji भाई
 
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अदभुत, हमेशा की तरह।

हालांकि जैसा SANJU ( V. R. ) भाई ने कहा की मां को देख अमर का उत्तेजित ना होना, और बहन को देख सुनील का, उनको अनपेक्सटेड लगा, लेकिन शायद वो भूल गए की अमर ने पहली बार नही देखा, मां और डैड को भी वो देख चुका है पहले, जब वो छोटा ही था, अभी तो खैर कंट्रोल करने की क्षमता बढ़ गई है।

खैर आपने बताया नही कि कौन सा पार्ट आपने लिखा और कौन सा भाभी जी ने avsji भाई
बचपन और जवानी मे बहुत बड़ा फर्क होता है । अमर ने अपने मां-बाप को सेक्स करते हुए बचपन मे देखा था जो आम बात है। लेकिन भरी जवानी मे , अपने सेक्सुअली पिक पीरियड मे , एक शादी-शुदा और विधुर अवस्था मे अगर ऐसा घटनाक्रम उसके आंखो के सामने हो जाए तो स्थिति वैसी नही रहती जो बचपन के दिनो मे हुआ करता था।
avsji भाई ने अपनी साफ सुथरी छवि को ध्यान मे रखकर एक ऐसा कामुक प्रकरण लिखा कि किसी के लिए भी इसका समीक्षा करना कठीन होता।
बहुत ही तेज तर्रार है Avsji भाई । सबकुछ लिख देंगे पर आप यही समझेंगे कि यह सब कुछ बिल्कुल ही स्वभाविक है । इसमे कुछ गलत है ही नही।
ये जो लिखते हैं वो बिहारी के दोहे के समान है - देखन मे छोटन लगे घाव करे गम्भीर । :D
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बचपन और जवानी मे बहुत बड़ा फर्क होता है । अमर ने अपने मां-बाप को सेक्स करते हुए बचपन मे देखा था जो आम बात है। लेकिन भरी जवानी मे , अपने सेक्सुअली पिक पीरियड मे , एक शादी-शुदा और विधुर अवस्था मे अगर ऐसा घटनाक्रम उसके आंखो के सामने हो जाए तो स्थिति वैसी नही रहती जो बचपन के दिनो मे हुआ करता था।
avsji भाई ने अपनी साफ सुथरी छवि को ध्यान मे रखकर एक ऐसा कामुक प्रकरण लिखा कि किसी के लिए भी इसका समीक्षा करना कठीन होता।
बहुत ही तेज तर्रार है Avsji भाई । सबकुछ लिख देंगे पर आप यही समझेंगे कि यह सब कुछ बिल्कुल ही स्वभाविक है । इसमे कुछ गलत है ही नही।
ये जो लिखते हैं वो बिहारी के दोहे के समान है - देखन मे छोटन लगे घाव करे गम्भीर । :D
इस कहानी में सब साधु हैं 😜
 

KinkyGeneral

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बचपन और जवानी मे बहुत बड़ा फर्क होता है । अमर ने अपने मां-बाप को सेक्स करते हुए बचपन मे देखा था जो आम बात है। लेकिन भरी जवानी मे , अपने सेक्सुअली पिक पीरियड मे , एक शादी-शुदा और विधुर अवस्था मे अगर ऐसा घटनाक्रम उसके आंखो के सामने हो जाए तो स्थिति वैसी नही रहती जो बचपन के दिनो मे हुआ करता था।
avsji भाई ने अपनी साफ सुथरी छवि को ध्यान मे रखकर एक ऐसा कामुक प्रकरण लिखा कि किसी के लिए भी इसका समीक्षा करना कठीन होता।
बहुत ही तेज तर्रार है Avsji भाई । सबकुछ लिख देंगे पर आप यही समझेंगे कि यह सब कुछ बिल्कुल ही स्वभाविक है । इसमे कुछ गलत है ही नही।
ये जो लिखते हैं वो बिहारी के दोहे के समान है - देखन मे छोटन लगे घाव करे गम्भीर । :D
SANJU ( V. R. ) भाई, जैसा अमर भाई का आचरण हैं, मेरी समझ के मुताबिक़ उनके मन में कोई ऐसा वैसा विचार नहीं आया होगा। मुझे नहीं लगता कि वह छिन भर भी विचलित हुए होंगे।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अदभुत, हमेशा की तरह।

हालांकि जैसा SANJU ( V. R. ) भाई ने कहा की मां को देख अमर का उत्तेजित ना होना, और बहन को देख सुनील का, उनको अनपेक्सटेड लगा, लेकिन शायद वो भूल गए की अमर ने पहली बार नही देखा, मां और डैड को भी वो देख चुका है पहले, जब वो छोटा ही था, अभी तो खैर कंट्रोल करने की क्षमता बढ़ गई है।

खैर आपने बताया नही कि कौन सा पार्ट आपने लिखा और कौन सा भाभी जी ने avsji भाई

बचपन और जवानी मे बहुत बड़ा फर्क होता है । अमर ने अपने मां-बाप को सेक्स करते हुए बचपन मे देखा था जो आम बात है। लेकिन भरी जवानी मे , अपने सेक्सुअली पिक पीरियड मे , एक शादी-शुदा और विधुर अवस्था मे अगर ऐसा घटनाक्रम उसके आंखो के सामने हो जाए तो स्थिति वैसी नही रहती जो बचपन के दिनो मे हुआ करता था।
avsji भाई ने अपनी साफ सुथरी छवि को ध्यान मे रखकर एक ऐसा कामुक प्रकरण लिखा कि किसी के लिए भी इसका समीक्षा करना कठीन होता।
बहुत ही तेज तर्रार है Avsji भाई । सबकुछ लिख देंगे पर आप यही समझेंगे कि यह सब कुछ बिल्कुल ही स्वभाविक है । इसमे कुछ गलत है ही नही।
ये जो लिखते हैं वो बिहारी के दोहे के समान है - देखन मे छोटन लगे घाव करे गम्भीर । :D

इस कहानी में सब साधु हैं 😜

आप लोग न जाने क्या सोचें, लेकिन सच में, मुझे एक बात समझ नहीं आती कि ऐसा आचरण इतना कठिन भी कैसे है?
अब जैसे आप इस कहानी के अमर को ही ले लें - उसकी माँ ने उसको पाल पोस कर बड़ा किया, उसको ममता वाला प्रेम दिया, उसको सेया, और अभी भी उसको वैसा ही प्रेम मिल रहा है। वो सुमन की दृष्टि में पुरुष हो ही नहीं सकता - सदैव बालक ही रहेगा। अब ऐसी माँ को अनावृत या आवृत किसी भी अवस्था में देख कर उसको उत्तेजना कैसे आ सकती है।
ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि यह संभव नहीं - मेरी कहानी मंगलसूत्र में भांजे और मौसी के बीच का रोमांस दिखाया गया है और उसकी परिणति भी। लेकिन उसमें परिस्थितियाँ भी तो भिन्न थीं :) ठीक यही बात सुनील और लतिका के बीच भी है - छोटी बहन है वो, और पुत्री समान। और भी एक बात है - दोनों युगल अपनी अपनी सहचरियों से अगाध प्रेम करते हैं।
संजू भाई ठीक कह रहे हैं - यह स्थिति स्वाभाविक नहीं है। लेकिन परिवार भी तो लगभग न्यूडिस्ट है। अगर परिवार एक दूसरे की नग्नता से कम्फर्टेबल नहीं हैं, तो वो जीवन शैली उनके लिए सामान्य हो ही नहीं सकती। :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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SANJU ( V. R. ) भाई, जैसा अमर भाई का आचरण हैं, मेरी समझ के मुताबिक़ उनके मन में कोई ऐसा वैसा विचार नहीं आया होगा। मुझे नहीं लगता कि वह छिन भर भी विचलित हुए होंगे।

अरे भाई, मेरा आचरण ऐसा नहीं है कि आप मुझे इतना चने के झाड़ पर चढ़ाएँ! हा हा।
लेकिन हाँ, यह अवश्य है कि माँ बहन इत्यादि संबंधों को सोच कर मुझे उत्तेजना नहीं चढ़ती।
इसीलिए मुझे इन्सेस्ट कहानियों से परहेज़ है। हाँ, यदि कोई कहानी बढ़िया लिखी गई हो, तो उसको पढ़ने में मुझे कोई परहेज़ नहीं।
(उदाहरण - मंगलसूत्र [मेरी ही कहानी], और मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना))
 

KinkyGeneral

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आप लोग न जाने क्या सोचें, लेकिन सच में, मुझे एक बात समझ नहीं आती कि ऐसा आचरण इतना कठिन भी कैसे है?
अब जैसे आप इस कहानी के अमर को ही ले लें - उसकी माँ ने उसको पाल पोस कर बड़ा किया, उसको ममता वाला प्रेम दिया, उसको सेया, और अभी भी उसको वैसा ही प्रेम मिल रहा है। वो सुमन की दृष्टि में पुरुष हो ही नहीं सकता - सदैव बालक ही रहेगा। अब ऐसी माँ को अनावृत या आवृत किसी भी अवस्था में देख कर उसको उत्तेजना कैसे आ सकती है।
ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि यह संभव नहीं - मेरी कहानी मंगलसूत्र में भांजे और मौसी के बीच का रोमांस दिखाया गया है और उसकी परिणति भी। लेकिन उसमें परिस्थितियाँ भी तो भिन्न थीं :) ठीक यही बात सुनील और लतिका के बीच भी है - छोटी बहन है वो, और पुत्री समान। और भी एक बात है - दोनों युगल अपनी अपनी सहचरियों से अगाध प्रेम करते हैं।
संजू भाई ठीक कह रहे हैं - यह स्थिति स्वाभाविक नहीं है। लेकिन परिवार भी तो लगभग न्यूडिस्ट है। अगर परिवार एक दूसरे की नग्नता से कम्फर्टेबल नहीं हैं, तो वो जीवन शैली उनके लिए सामान्य हो ही नहीं सकती। :)
अरे भाई, मेरा आचरण ऐसा नहीं है कि आप मुझे इतना चने के झाड़ पर चढ़ाएँ! हा हा।
लेकिन हाँ, यह अवश्य है कि माँ बहन इत्यादि संबंधों को सोच कर मुझे उत्तेजना नहीं चढ़ती।
इसीलिए मुझे इन्सेस्ट कहानियों से परहेज़ है। हाँ, यदि कोई कहानी बढ़िया लिखी गई हो, तो उसको पढ़ने में मुझे कोई परहेज़ नहीं।
(उदाहरण - मंगलसूत्र [मेरी ही कहानी], और मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना))
भैया, मैं भी कहानी वाले अमर भाई की ही बात कर रहा था। जैसा उनका कहानी में सफ़र रहा है और जिस तरह का उनका किरदार है, मुझे तो कुछ भी out of ordinary नहीं लगा।
इंसान चाहे तो मन को कैसा भी साध सकता है, और यहाँ तो सिर्फ़ प्रेम की ही बात है और जब इतना प्रगाढ़ प्रेम हो तो कोई और विचार आता ही नहीं।
(इतना कौटुम्बिक व्यभिचार पढ़ने के बाद भी मेरा मन तो यही कहता है।)
 

SKYESH

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दीपक की रौशनी, पटाखों की आवाज

सूरज की किरणे, खुशियों की बोछार

चन्दन की खुशबु, अपनों का प्यार

मुबारक हो आपको दिवाली का त्योहार !
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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नव-जीवन - Update #1


लतिका के साथ एकाकार होना एक अद्भुत अनुभूति थी!

अचानक से ही जीवन में पूर्णता महसूस होने लगी। लतिका अब मेरे साथ है, यह सोच कर एक नई तरंग सी महसूस होने लगी। हाँ, मेरा परिवार पहले भी मेरे साथ था, लेकिन लतिका, जो अर्धांगिनी बनने वाली है, वो भी साथ हो ली थी। पति-पत्नी होना एक अलग ही अनुभूति होती है... कैसा अधिकार सा लगता है... कैसा सुख सा लगता है! हमारे पहले सम्भोग के अगले दिन जब हम उठे, तो सुबह से ले कर पूरे दिन भर एक दूसरे से दो बोल बात भी नहीं कर सके। लेकिन जब भी हमारी आँखें मिलतीं, अनायास ही हमारे होंठों पर मुस्कान आ जाती। लतिका के मन का तो नहीं पता - लेकिन उसके होंठों पर वो स्निग्ध, कोमल, और शर्मीली सी मुस्कान देख कर मेरे दिल पर क्या गुजरती थी, बयान करना कठिन है। कितना कुछ बदल गया था हमारे बीच! अब बस, विधि के हिसाब से एक होने का इंतज़ार था।

अगले सप्ताहांत, लतिका के एक्साम्स के कारण अम्मा और गार्गी भी आ गई थीं, कि बहू और बाबू जी की देखभाल की जा सके। अकेली लतिका के भरोसे यह छोड़ा नहीं जा सकता था - हाँलाकि उस पर ज़िम्मेदारियाँ कम थीं, लेकिन फिर भी, एक्साम्स के कारण उस पर काम का बोझ अधिक हो रहा था। अम्मा के आते ही अचानक से सब कुछ हल्का हो गया। माँ के पिछली बार के गर्भावस्था की ही तरह इस बार भी उनका मन था कि माँ की गोदभराई की रस्म मनाई जाय। पहला विचार तो गाँव में ही जा कर सबसे मिलने का था, लेकिन चूँकि इस बार माँ की डॉक्टर ने बेहद सख़्त मनाही की हुई थी, इसलिए माँ को इस बार कोई यात्रा नहीं करने दिया गया। अगर मनाही न भी होती, तो भी पापा उनको यात्रा न करने देते। अब चूँकि हमारे वृहत ‘परिवार’ के नाम पर हमारे गाँव के पड़ोस वाले चाचा जी, चाची जी और उनका परिवार ही थे, इसलिए उन्ही से मिलने का बहाना था यह सब प्रयोजन। सोचा गया कि क्यों न उनको ही यहाँ दिल्ली बुला लिया जाय? लिहाज़ा, उनको फ़ोन कर के सब बताया गया।

जब चाचा जी, चाची जी को माँ के पुनः गर्भवती होने की खबर लगी, तो पहले की ही तरह वो दोनों बहुत ही प्रसन्न हुए। माँ की पिछली गोदभराई की रस्म से ले कर अब तक माँ के प्रति उनका व्यवहार पूरी तरह से परिवर्तित हो कर, उनके माता-पिता वाला हो गया था। ठीक वैसे ही, जैसे ससुर जी का उनके प्रति हो गया था। वो दोनों गाँव के सम्बन्ध से माँ के जेठ-जेठानी होते, लेकिन चूँकि माँ उनसे उम्र में इतनी कम थीं, इसलिए वो अब माता-पिता वाली भूमिका में ही उचित थे। बात चीत हुई, तो उनको हमने दिल्ली आने का न्योता दिया। वो थोड़े संकोच में थे - संभव था कि सोच रहे हों कि कहाँ रहेंगे, कैसे आएँगे। उन लोगों के लिए उनका गाँव ही उनका संसार था। हमने उनको कहा कि हमारे साथ आ कर रहें। उस दिन तो वो मान लिए, लेकिन फिर अगले दिन फ़ोन पर बोले कि उनके बेटे, बेटियाँ, बहुएँ और बच्चे नहीं आ सकेंगे, क्योंकि उन सभी की यात्रा के लिए बड़ी व्यवस्था करनी पड़ेगी। ऊपर से अपने पीछे घर को खाली, और खेती को राम भरोसे छोड़ना सही नहीं था! इसलिए वो ऐसा जोखिम नहीं लेंगे। मैंने जान बूझ कर उनको मेरी शादी पक्की होने की बात नहीं बताई - सोचा उनके घर आने पर ही यह सब बताऊँगा।

माँ की गोदभराई की रस्म, लतिका के एग्जाम ख़तम होने के दो दिन बाद आयोजित थी। और चाचा जी और चाची जी अगले दिन पधारे। दोनों लोग अब साठ वर्ष पार कर चुके थे - चाचा जी कोई पैंसठ साल के थे और चाची जी बासठ या तिरसठ साल की! हाँलाकि बूढ़े दोनों ही लगते थे - निरंतर प्राकृतिक शक्तियों का प्रभाव त्वचा पर पड़ता ही है। लेकिन शुद्ध भोजन और अच्छी जीवन शैली के कारण अपनी आयु के विपरीत स्वस्थ और बलवान लगते थे। जब वो दोनों घर आए तो उनका स्वागत करने हम सभी उनके स्वागत हेतु उपस्थित थे। अम्मा सबसे आगे थीं उनके स्वागत के लिए, और जब वो चाचा जी और चाची जी के चरण छूने लगीं, तो चाचा जी हाथ जोड़ कर बोले,

“बहिनी... तू तौ हमार समधिन हौ... हमार बिटिया कै सास... तू हमार गोड़ न छुवौ! ... हमका पाप लागे...”

लेकिन अम्मा ने उनकी एक न सुनी, और उनके चरण स्पर्श कर के बोलीं, “आप तो हमारे बड़े भैया हैं... आपका आशीर्वाद कैसे छोड़ दूँ?”

उसी तरह अम्मा ने चाची जी के भी चरण छुए। फिर उनके बाद हम सभी ने बारी बारी यथोचित तरीके से उनका सम्मान किया। ससुर जी से भेंट हुई तो दोनों ही लोगों ने उनके चरण छुए। सबसे अंत में माँ आईं। माँ को देख कर चाची जी आनंद से रोने लगीं। वो उनके पैर छूने को हुईं, लेकिन चाची जी ने उनको बीच ही में रोक लिया, और अपने आलिंगन में भर लिया। दोनों को मिले हुए कोई चार साल हो गए थे, इसलिए दोनों और भी अधिक भावुक थीं।

“अरे बस... बस बस शोनचिरैया मेरी,” अम्मा ने ही अंत में कहा, “ऐसे रोयेगी, तो दीदी सोचेंगी कि तेरी सास तुझे बहुत तंग करती है!”

“नाही नाही... ई तौ हम सोचे नाही सकित बहिनी...” चाची जी ने तुरंत कहा, “तू तौ खुदै अन्नपूरना हौ... तोहरे कारन हमार बिटिया यस खुसहाल रहत हय... इतरै दिना बाद देख्यन एका ना, यही मारे आंसू आय गए...”

“हाँ दीदी... आप तो इसको इतने सालों बाद देखी हैं! ... मैं तो इसको कुछ ही दिन न देखूँ तो बेचैनी होने लगती है!” उनकी भी आँखों में पानी आ ही गया था वो भावनात्मक दृश्य देख कर।

“अरे, आप लोग अंदर आईये पहले,” मैंने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “दरवाज़े पर ऐसा रोना धोना देख कर लोग सोचेंगे कि कुछ हो गया...”

“धत्त, कुछ भी बोलता है,” अम्मा ने मुझे प्यार से डाँटा, और फिर चाची जी से बोलीं, “आईये दीदी, अंदर आ कर खूब बातें करते हैं!”

अचानक से घर और भी भरा पूरा हो गया। चाचा जी और चाची जी - समझिए वो हमारी ज़मीन से हमारा आख़िरी कनेक्शन थे। मैं कहाँ से आया था, वो उस बात की पहचान थे। थोड़ी ही देर में पुरानी कई सारी बातें और यादें ताज़ा हो आईं। भोजन इत्यादि कर के सभी महिलाएँ माँ की गोदभराई की रस्म का प्रोग्राम करने लगीं। निश्चित किया गया कि क्योंकि बहुत समय नहीं है - बमुश्किल चार और हफ़्ते - इसलिए अगले दो तीन दिनों में ही रस्म कर लेते हैं। माँ मारे संकोच के कुछ कह ही नहीं पा रही थीं - उनको दूसरी बात करने की उत्सुकता और व्याकुलता हो रही थी, लेकिन अम्मा ने इशारे से उनको कुछ और देर शांत रहने को कहा।

एक बार जब सारा प्रोग्राम तय हो गया, तब अम्मा ने चाची जी को बताया,

“दीदी, एक और अच्छी खबर है!”

“हाँ बहिनी, बतावो?”

“मेरी बिटिया की शादी हो रही है...”

“अरे वाह वाह... ई तौ बहुतै नीक खबर दिह्यु बहिनी...” उन्होंने आनंदित होते हुए कहा, “बहुत बहुत बधाई हो! बड़ी सुन्दर बिटिया हय तोहार...”

अवश्य ही लतिका से उनका ‘उस तरह’ का जुड़ाव नहीं हो पाया था - उसको बहुत छोटेपन में ही देखा था, और उसके बाद भी वो उनके लिए बस अम्मा की लड़की की पहचान में ही थी। लेकिन फिर भी, लतिका का व्यक्तित्व किसी से छुप नहीं सकता था।

“जानत हौ बहिनी? ओका देखित हय न... अच्छा हम जोन कहे जाय रहे हन ना, ओका सुन कै बुरा ना मान्यौ...”

“अरे नहीं दीदी, बुरा क्यों मानना? आपकी भी तो बेटी है न! आप कहिए...”

“हाँ... जब तोहार बिटिया देखित हय ना, तौ हमका ई बिटवा [चाची जी मेरी बात कर रही थीं] कय मेहरारू याद आवत हय... हय की नाही सुमन?” चाची जी ने माँ से अपनी बात का समर्थन माँगा।

“कौन दीदी?” माँ समझ तो गई थीं, लेकिन वो चाची ही से मज़े ले रही थीं।

“अरे ऊ पहली वाली बिटिया... ओके नउनै नाही याद आवत... अरे ऊ बिदेसी मेम...”

चाची जी गैबी की बात कर रही थीं। यह बात सही भी थी - हम लोग चूँकि रोज़ साथ में रहते थे, इसलिए हमको समानताएं और अंतर नहीं महसूस होता था, लेकिन सच में, देहयष्टि के अनेकों परिमाणों में लतिका और गैबी समान ही लगती थीं।

“गैबी... गैबी नाम है उसका!”

“हाँ... बड़ी सुन्दर रही ऊ बिटिया... अउर बड़ी सयान! बेचारी... बहुत दुःख भवा रहा सुन कय...”

चाची जी हठात ही दुःखी हो गईं।

“दीदी,” अम्मा ने कहा, “गैबी दीदी तो मुझे भी बहुत पसंद थीं...”

“ई ल्यो... ओका दीदी कहत हौ अउर बिटवा का आपन पोता! तोहरौ लीला...” चाची जी ने हँसते हुए कहा।

“हा हा... अरे दीदी, तब बात कुछ और थी, और अभी कुछ और... तब मुझे अपनी बहू थोड़े न मिली थी!” अम्मा ने लाड़ से माँ के माथा चूमते हुए कहा, “कहाँ सोचा था मैंने कि ऐसी प्यारी सी बहू मिलेगी मुझे!”

“सही कहत हौ बहिनी... एक बात तौ हय... ई घरे सब पतोहुवैं बड़ी सुन्दर सुन्दर आई हँय... सब के सब!” चाची जी बोलीं, “इनहिं का देख लिहौ... अब यस गुड़िया जस सुन्दर अउर गुनी बहुरिया मिलै, तौ महतारी तौ महतारी, ओके ससुरियौ कै छाती मा दूध उतर आवै...”

चाची जी की बात सुन कर अम्मा और माँ की आँखें तुरंत मिलीं, और फिर माँ ने मुस्कुरा कर अपनी आँखें नीची कर लीं।

“उतरता है दीदी,” अम्मा ने बड़ी ममता से कहा, “दूध उतरता है...”

“सहियै?”

माँ मारे शर्म के मुस्कुरा दीं।

“बहुत अच्छा बहिनी... अउर हम सोचत रहिन की केवल हमैं इनका आपन दूध पियायेन हन...” चाची जी ने कहा, “हमहूँ अपनी बहुरियन का दूध पियायेन हन... बिटवन कै महतारी होई तौ आपन बहुरियनौं कै महतारी होई...”

“हाँ दीदी...” माँ बोलीं, “आपको देख कर ऐसा ही लगता था कि काश मेरी सासू माँ भी आपके ही जैसी होतीं...”

“मिल तौ गईं हमरे जस सास...” चाची जी ने हँसते हुए कहा, फिर बात पर वापस आते हुए बोलीं, “हाँ बहिनी, अब बिस्तार से बतावो... बिटिया कै बियाह कहाँ करति हौ?”

“दीदी,” अम्मा ने कहा, “इस घर से अच्छा घर कहाँ मिलता? ... इसलिए अपनी बेटी इसी घर में ब्याह रही हूँ!”

“का?” चाची जी ने चौंकते हुए कहा, “मतलब... हमरे बिटवा से? ... तोहार बिटिया, यानी सुमन कै पतोहू?”

“जी दीदी...”

“हा हा... ई तौ कमाल बाय... बहुत नीक... बहुतै नीक!”

“आपको कोई आपत्ति तो नहीं है दीदी?” अम्मा ने पूछा।

“अरे नाही बहिनी! ... बड़ी सुन्दर सी बिटिया हय तोहार! हमरे बिटवा कय जिन्दगी आबाद होय जाय... अउर का चाही?”

“... बस आपका और भैया का आशीर्वाद...” माँ ने कहा।

“तू सबही हमार गदहरै (बच्चे) हौ... भगवान करैं की हमार सब पुन्य तुंहका मिल जांय...”

चाचा जी ने भी जब यह खबर सुनी तो बड़े आनंदित हुए। मैंने और लतिका ने उन दोनों से आशीर्वाद लिया। दोनों ने हमको, ख़ास कर के लतिका को अपने गले से लगा कर ढेरों आशीर्वाद दिए। बेटे से अधिक प्रेम बहू को मिलता है... ख़ास तौर पर तब, जब बेटा पूरे परिवार में सबका प्यारा हो।


*


मारे उत्साह और मारे ख़ुशी के, चाची जी ने सबको रसोई से भगा कर रात का भोजन स्वयं पकाया। माँ या अम्मा - उन दोनों के हाथ का भोजन बड़ा स्वादिष्ट होता है। लेकिन चाची जी के हाथ के भोजन में स्वाद भी था, और एक परिचित सा देसीपन भी। भोजन में एक अनोखा ही आनंद आ गया। बड़े दिनों बाद वो स्वाद मिला था। आवश्यकता से अधिक भोजन किया उस रात। वैसे भी आज से सोने का इंतजाम बहुत बदल गया था, इसलिए मैं और लतिका साथ ही मेरे कमरे में चले आए।

लेकिन अम्मा, माँ और चाची जी की मंडली जमी रही।

“बहिनी, कब हय बियाह?” बातचीत के दौरान चाची जी ने पूछा।

“अभी कुछ पक्का नहीं है दीदी... लेकिन बहू के बच्चा होने के बाद...” अम्मा ने बताया, “सोच रहे हैं कि एक महीना बाद...”

“बहुतै नीक! सुभ साईत मा जल्दीहै कै लिह्यो... आसाढ़ लागै के पहले... जेठ कै महीना ठीक बाय...”

“हा हा... हाँ दीदी! जल्दी से जल्दी करने का मन है!”

“हाँ बहिनी, सुभ कामे मा देर नाही करै का चाही...”

आज दिन भर आराम न करने के कारण, माँ को थोड़ी थकावट हो रही थी। इस समय भी वो कसमसा रही थीं। दिन भर आरामदायक कपड़े पहनने की आदत हो गई थी, लिहाज़ा, इस समय वो थोड़ा तकलीफ़ में थीं। चाची जी ने यह देखा, तो बोलीं,

“लेटबो बहू?”

“हाँ दीदी, थोड़ा थक गई।”

“हाँ... थका तौ लगतै हय...” चाची जी ने माँ को दुलारते हुए कहा, “लेट लियौ... रात होय गय!”

जब माँ बिस्तर पर लेट गईं तो वो वापस अम्मा की तरफ़ मुखातिब होते हुए बोलीं, “हाँ... हम कहत रहिन की जेठ कै महीने मा दूनौ कै बियाह कै दिह्यो... नाही तो पितरपख लाग जाये। सुभ नाही रहत ऊ महीना...”

“जी दीदी!” अम्मा ने कहा, “... बहू को बच्चा हो जाय, फिर दो तीन हफ़्ते बाद उन दोनों का ब्याह कर देने का मन है।”

“मैं तो कह रही थी कि इस बात का इंतज़ार न करिए और दोनों की शादी करवा दीजिए... लेकिन आप लोगों को कुछ सुनना ही नहीं है...” माँ ने शिकायत करी।

“अरे बेटा, उनकी शादी तेरे बिना थोड़े ही हो सकती है... तू और मैं साथ में मिल कर डांस करेंगे, तभी तो मज़ा आएगा! ... मैं भी तो चाहती हूँ कि जल्दी हो जाय शादी...” अम्मा ने हँसते हुए कहा, “जल्दी से दोनों की शादी कर दूँ, तो नानी बनने का भी सुख मिल जाए दीदी,”

“हाँ बहिनी... हमार नातिनिया पेट से बाय... दुई बच्चे हँय ओकरे... बड़ा परिवार रहत हय तौ नीक लागत हय बहुत...”

“अरे वाह दीदी, बधाई हो!” अम्मा ने कहा, फिर माँ की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “बहू... सो जाओ… वैसे भी सवेरे उठ कर पूरे प्रयोजन में बैठना ही है।”

“हाँ अम्मा...”


*


अगले दिन माँ की गोदभराई का समारोह अपने नियत समय पर आरम्भ हुआ। सुबह सुबह माँ और पापा संछिप्त सी पूजा पर बैठे। पूजा पाठ करवाने के लिए उन्ही पंडित जी को बुलाया गया था, जिन्होंने हमारे घर के गृह-प्रवेश की पूजा हवन कराई थी। हम सब पूजा में बैठे थे कि अचानक ही अम्मा ने पंडित जी से मेरे और लतिका के लिए भी पूजा करने को कहा। घर में अन्य सभी व्यक्तियों को यह आयोजन पहले से ही पता था, लेकिन मुझसे और लतिका से यह बात छुपा कर रखी गई थी। अम्मा के हाथ में हीरा जड़ी हुई सोने की अंगूठी थी, और पापा के हाथ में भी उसी से मैचिंग सेट की लड़कियों की अंगूठी थी। बहुत आश्चर्य हुआ और आनंद भी! मेरे घर के लोग बड़े गज़ब के हैं - उनके कारण प्रतिपल आनंद मिलता है मुझे।

उनके कहने पर मैंने और लतिका ने एक दूसरे को वो अंगूठियाँ पहनाईं। पापा ने हम दोनों की तस्वीरें उतारीं। अब हम दोनों की ऑफिशियल, सभी के सामने, मँगनी हो गई थी। बहुत मज़ा आया! और मज़ा इसलिए भी आया क्योंकि हमारे कई निकट के मित्र आज के आयोजन में आमंत्रित थे! उनके संग अपने जीवन के इस अहम पल को जीने में और भी आनंद आया। सभी ने माँ और उनकी होने वाली संतान को आशीर्वाद दिया, और हमको भी! संगीत भी आयोजित था, और भोजन भी - सवेरे ही अम्मा और चाची जी ने जुट कर सब इंतज़ाम कर दिया था। बाप रे - दोनों की दोनों मशीन की तरह काम करतीं थीं। ऐसी माताओं का जीवन में होना बहुत बड़ा सौभाग्य होता है। काश कि मैं उनके लिए कुछ भी कर सकूँ! दोपहर होने तक प्रोग्राम समाप्त हो गया और इस तरह से माँ की गोद भराई की रस्म और लतिका और मेरी इंगेजमेंट पूरी हुई।


*


चाचा जी और चाची जी एक सप्ताह हमारे साथ रहे। जाते समय उन्होंने इच्छा जाहिर करी कि क्यों न इस बार भी लतिका और मेरी शादी गाँव से ही हो? समय परिवर्तित हो रहा है, तो भाग्य भी परिवर्तित होगा। मेरा मन तो उतना नहीं था, लेकिन घर में बाकी सभी इस सुझाव से बहुत प्रसन्न थे, और उत्साहित भी। मैंने लतिका से इस बारे में पूछा, तो उसने बताया कि वो भी चाहती है कि हमारी शादी हमारे गाँव में ही हो। अच्छी बात है - मैंने अकेला ही सभी का मन खराब नहीं करना चाहता था। वैसे भी, मई जून में दिल्ली की गर्मी झेलने से बेहतर था कि गाँव ही चलें। इसलिए हमने गाँव में ही शादी करने का निर्णय लिया।


*


लतिका के फाइनल एक्साम्स का रिजल्ट आ गया था। रिजल्ट को आश्चर्यजनक तो नहीं कह सकते, क्योंकि बारम्बार लतिका का वैसा ही रिजल्ट आया हुआ था - लेकिन सुखद आश्चर्य इस बात का हुआ कि वो अपनी यूनिवर्सिटी में टॉप तीन स्टूडेंट्स में से एक रही! उसको ‘आइडियल स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर’ का अवार्ड भी मिला, क्योंकि लतिका ने राष्ट्रीय खेलों में भी शिरकत करी थी और मेडल्स भी जीते थे। ऐसे भी इतने अंक अर्जित करना कोई बच्चों का खेल नहीं था! कमाल हो गया सच में! अपनी होने वाली बीवी को ऐसे परचम फहराते हुए देखना बड़ा सेक्सी होता है!

उसका रिजल्ट देख कर बड़ेगांव वाले महंत जी की भविष्यवाणी याद हो आई। उन्होंने लतिका के लिए कहा था कि वो स्वयं ‘श्री’ का रूप है, और पापा की ही तरह वो अम्मा का नाम रोशन करेगी। वो भविष्यवाणी तो सौ फ़ीसदी सच हो रही है। उन्होंने यह भी कहा था कि वो हम सभी की सोच से कहीं अधिक गुणी है... और यह कि वो अपने जीवन में बहुत तरक्की करेगी, और उसकी तरक्की से हम सभी आश्चर्यचकित रह जाएँगे और उस पर गर्व भी करेंगे! गर्व तो मुझे सच में उस पर बहुत था - आज से नहीं, पहले से भी। उन्होंने यह भी बताया था कि वो अपने पसंद के लड़के से प्रेम विवाह करेगी! अब मैं और लतिका जल्दी ही विवाह बंधन में बँधने वाले थे। उन्होंने यह भी कहा था कि हमारे तीन बच्चे होंगे।

‘तीन बच्चे,’ मैंने सोचा, ‘... मतलब मिष्टी को मिला कर चार! बढ़िया है यार!’

मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं एक या दो से अधिक बच्चे चाहता हूँ। लेकिन अब चार बच्चों की सम्भावना बन रही थी। शायद पापा का प्रभाव था। माँ और उनकी सँगत, उनका प्रेम देख कर एक बड़ा सा परिवार बनाने की इच्छा होने ही लगती है। अम्मा के भी तो चार बच्चे हुए! लतिका को अपने सामने बच्चे से बड़ा होते देखा था - और अब वो मेरे बच्चों की माँ बनेगी, यह सोच कर गज़ब का रोमाँच हो आता।


*


मई के आखिरी सप्ताह में माँ ने एक और पुत्री को जन्म दिया - स्वस्थ और बहुत ही सुन्दर बच्ची! उसका नाम हमने आरोही रखा। इस बार भी नेचुरल डिलीवरी थी - हाँलाकि माँ की डॉक्टर बहुत सतर्क थी और सीज़ेरियन कर के बच्चे को निकालना चाहती थी, लेकिन माँ ने ही ऐसा करने से मना कर दिया। और अच्छा किया कि उन्होंने वैसा किया - नहीं तो रिकवरी में अनावश्यक समय लगता। आरोही के जन्म के साथ ही पापा का माँ के साथ एक बड़ा सा परिवार बनाने का सपना पूरा हो गया था। वो पूरी तरह से संतुष्ट हो गए थे। माँ भी। पिछले लगभग दस वर्षों में उन्होंने वो सब कुछ पा लिया था, जिसकी वो बस कल्पना ही कर सकती थीं। माँ खुश थीं, और हम सभी भी। अब हमारे जीवन का अगला अध्याय शुरू ही होने वाला था।


*


जब परिवार में ढेर सारे लोग होते हैं, और अगर वो खुश रहते हैं, तो परिवार की खुशियाँ कई कई गुणा बढ़ जाती हैं। मेरे और लतिका के लिए यह बड़ा ही मज़ेदार समय था। हम दोनों एक ही घर में रह रहे थे, लेकिन उस रात के बाद से अंतरंग होने का अवसर नहीं मिला। ऐसा नहीं था कि किसी ने मना किया था हमको - बस, कुछ सोच कर हम दोनों शांत रह गए। सोचा कि अपनी सुहागरात से शुरू कर के हनीमून की हर रोज़ जम कर धमाचौकड़ी मचाएँगे। गैबी के साथ गाँव का हनीमून याद हो आया - हम दोनों ने न केवल थका देने वाला सम्भोग किया था, बल्कि हर सम्भोग के बाद एक अलग ही स्फूर्ति आ जाती थी शरीर और मन में... अगले सम्भोग के लिए!

शादी के लिए खरीदारी करना मजेदार था! शॉपिंग - यह एक काम था जो मुझको कभी पसंद नहीं आया। लेकिन फिलहाल मुझे शॉपिंग करने में बड़ा मज़ा आ रहा था। माँ स्वयं कहीं नहीं जा पा रही थीं, इसलिए उन्होंने सख़्त हिदायद दी हुई थी मुझको कि जो लतिका चाहे, वो उसको मिलना चाहिए। इसलिए मैं माँ का हुकुम बजा रहा था, बिना किसी हील हुज्जत के! एक तरीके से ऑफिस से कुछ समय के लिए ‘छुट्टी’ मिलना अपने आप में सुकून वाली बात थी। इसलिए मैं खुश था, और पहली बार जीवन में, बिना किसी चिंता के मज़े कर रहा था।

अम्मा का मन था कि लतिका की शादी में वो जितना पारम्परिक तरीके से सज धज सके, उतना अच्छा! लेकिन जब उनको पता चला कि लतिका ने माँ की दी हुई लहँगा चोली पहनने का सोचा हुआ है, तब उन्होंने अपना हठ छोड़ दिया। लेकिन अम्मा चाहती थीं, कि जितनी भी पूजा प्रार्थना हो सके, वो सब करी जाय। गाँव के चाचा जी और चाची जी को वो अपनी तरफ़ से समझा दे रही थीं, और वो दोनों उसी के अनुसार बंदोबस्त भी कर रहे थे। मैंने शादी के दौरान पहनने के लिए लखनवी चिकन कुर्ता और चूड़ीदार पायजामा लिया था। गर्मी के मौसम में शादी होनी थी, इसलिए बहुत लाद फाद नहीं करी जा सकती थी।

माँ का स्वास्थ्य भी तेजी से ठीक हो रहा था। शरीर पर से प्रेग्नेंसी की चर्बी तो नहीं हटी थी, लेकिन वो आराम से चल फिर पा रही थीं, और कमज़ोरी नहीं महसूस कर रही थीं। इस कारण से उनकी डॉक्टर ने भी उनको यात्रा करने की हरी झण्डी दे दी थी। वो भी चाहती थीं कि ये सबसे नन्ही बच्ची भी अपनी जड़ों को जाने, समझे। कितना कुछ बदल गया था न पिछली बार से! पिछली बार के मुकाबले हमारी संख्या दो-गुणा हो गई थी। समृद्धि भी बहुत बढ़ गई थी। बहुत आनंद!

मैंने गेल और मरी को हमारी शादी के लिए आमंत्रित किया हुआ था। उन्होंने सबसे पहले मुझे और लतिका को शादी की बधाइयाँ दीं और कहा कि वो अवश्य ही हमारी शादी पर उपस्थित होंगे - रॉबिन के साथ! क्या बढ़िया बात थी! मिष्टी और रॉबिन पहली बार एक दूसरे से मिल सकेंगे, यह जान कर अच्छा लगा। क्या उन दोनों को पता चलेगा कि वो भाई-बहन हैं, यह सोच कर मुझे अंदर ही अंदर रोमांच हो आया। मैंने गैबी के परिवार को भी आमंत्रित किया। उन्होंने भी मुझसे और लतिका से बात कर के हमको होने वाली शादी की बधाइयाँ दीं। गैबी का भाई तो नहीं, लेकिन उसके माँ बाप आने को तैयार हो गए। उनसे पहली बाद मिलने का अवसर था यह! जयंती दी का पूरा परिवार भी आने वाला था। यह बड़ा अच्छा था - मेरा पूरा वृहद् परिवार इस बार के प्रयोजन में सम्मिलित होने वाला था। गाँव के घर में उन सभी के रुकने ठहरने की व्यवस्था तो नहीं थी, लेकिन पिछले कुछ समय में जो आर्थिक परिवर्तन हुए थे, उसके कारण गाँव के आस पास कुछ धर्मशालाएँ खुल गई थीं। नई इमारतें थीं, इसलिए चिंता नहीं थी। मैंने सभी विदेशी और ख़ास मेहमानों के रहने की व्यवस्था सबसे बेहतर धर्मशाला में कर दिया। और तो और, उनको नए गद्दे, तकिए, और चादरें ख़रीदवाईं कि मेहमानों को बहुत अधिक तकलीफ़ न हो।

सबसे पहले दिल्ली आने वालों में मिस्टर और मिसेज़ सूसा (गैबी के माँ बाप) थे। वो शादी से एक सप्ताह पहले ही उपस्थित हो गए थे। उन्होंने कहा था कि शादी में आने से पहले वो दिल्ली का स्वाद लेना चाहते हैं, और वो सब कुछ महसूस करना चाहते हैं, जो उनकी बेटी ने किया था। तो मैंने उनके घूमने के लिए पूरा प्लान कर दिया और उनके लिए एक कार और ड्राइवर कर दिया। उनको लेने मैं, लतिका, और मिष्टी एयरपोर्ट गए थे। जब हम उनसे मिले, तो मैंने और लतिका दोनों ने उन दोनों के पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया। हमको इस तरह से आदर देते हुए देख कर वो दोनों ही रोने लगे। कोई सत्रह साल पहले उनकी बेटी और मेरा नाता जुड़ा था, और हमने भौगोलिक दूरी होने के बावज़ूद अपना संपर्क बनाए रखा था। दोनों ही हमसे लिपट कर बहुत देर तक रोते रहे। सासू माँ ने लतिका को देख कर कहा भी कि वो उनको गैबी की याद दिलाती है। तो लतिका ने कहा कि वो उसको अपनी गैबी ही मानें! यह सुन कर उनका मन भर आया - ऐसा लगा ही नहीं कि कभी मिसेस सूसा में इतनी कड़वाहट भी थी। रही सही कसर मिष्टी ने पूरी कर दी उनको ‘ग्रैंडपा’ और ‘ग्रैंडमाँ’ बोल कर! वो बहुत बूढ़े न हो गए होते, और मिष्टी इतनी ऊँची न हो गई होती, तो वो उसको अपनी गोद में ही उठा लेते। इतने भावुक हो गए थे दोनों! लेकिन फिलहाल उन्होंने केवल उसको अपने से लिपटा कर अपनी ममता को शांत कर लिया। उनको उनके होटल में छोड़ कर उनसे मिलते रहने का वायदा किया।

गेल, मरी और रॉबिन शादी से पाँच दिन पहले पहुँचे। उनको लेने मैं, लतिका और मिष्टी एयरपोर्ट पहुँचे थे। जब वो हमको बाहर आते दिखे, तो मरी लगभग दौड़ती हुई हमारी तरफ़ आई, और आ कर मुझसे लिपट गई। एक लम्बे अर्से से वो हमारे पारिवारिक मित्र रहे थे, इसलिए उनसे यूँ मिलना भावुक कर देने वाला अवसर था। मरी ने मुझे गालों पर चूमा और मेरा कुशलक्षेम पूछा। फिर उसने बड़े ही प्यार से लतिका को अपने आलिंगन में भर के उसके गालों को चूमा और उसका कुशलक्षेम पूछा।

मैंने लतिका को पहले से ही गेल मरी और डेवी के बारे में बताया हुआ था, और यह भी कि रॉबिन मेरा बेटा है। लतिका ने मुस्कुराते हुए सर हिलाया, और हँसते हुए पूछा कि मेरे ‘हरम’ में और कौन कौन हैं। मैंने उसको समझाया कि मेरा कोई हरम वरम नहीं है - हाँ, लेकिन गेल और मरी मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं - दोस्त ही नहीं, परिवार भी! गेल भी हमसे मरी के तरीके से ही मिला - जब उसने मेरे गालों को चूमा तो मिष्टी हँसने लगी। उसको हँसता देख कर गेल ने उसको अपनी गोदी में उठा लिया और उसको खूब चूमा। मिष्टी से उसकी जान पहचान थी - ईमेल और वीडियो कॉल्स के ज़रिए हम सालों से साथ बने हुए थे। गेल ने भी लतिका को चूम कर उसका कुशलक्षेम पूछा। अंत में रॉबिन आया - बड़ा लड़का हो गया था वो! उसके अंदर भारतीय जींस नहीं दिख रहे थे - हाँ, उसके बाल और आँखें मेरी जैसी ज़रूर थीं। सुदर्शन बालक! वो आया और बड़े ही सौम्य तरीके से उसने पहले मेरे और फिर लतिका के पैर छुए। मेरी आँखें आश्चर्य से फटी रह गईं! फिर उसने मिष्टी को चूम कर आलिंगनबद्ध कर लिया। वो दोनों एक दूसरे को भाई बहन के रूप में ही जानते थे, लेकिन उनको कम से कम मैंने तो कभी असलियत नहीं बताई थी। उसी में सभी की भलाई थी शायद। एयरपोर्ट से हम गेल परिवार को उनके होटल ले गए, और देर तक बातें करते रहे। रात का भोजन करने से पहले मैंने उनको बताया कि परसों हम गाँव के लिए रवाना होंगे, और उनके साथ एक कार और ड्राइवर रहेगा। इसलिए वो चिंता न करें। बस, पानी इत्यादि का ध्यान रखें।

*
 

parkas

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नव-जीवन - Update #1


लतिका के साथ एकाकार होना एक अद्भुत अनुभूति थी!

अचानक से ही जीवन में पूर्णता महसूस होने लगी। लतिका अब मेरे साथ है, यह सोच कर एक नई तरंग सी महसूस होने लगी। हाँ, मेरा परिवार पहले भी मेरे साथ था, लेकिन लतिका, जो अर्धांगिनी बनने वाली है, वो भी साथ हो ली थी। पति-पत्नी होना एक अलग ही अनुभूति होती है... कैसा अधिकार सा लगता है... कैसा सुख सा लगता है! हमारे पहले सम्भोग के अगले दिन जब हम उठे, तो सुबह से ले कर पूरे दिन भर एक दूसरे से दो बोल बात भी नहीं कर सके। लेकिन जब भी हमारी आँखें मिलतीं, अनायास ही हमारे होंठों पर मुस्कान आ जाती। लतिका के मन का तो नहीं पता - लेकिन उसके होंठों पर वो स्निग्ध, कोमल, और शर्मीली सी मुस्कान देख कर मेरे दिल पर क्या गुजरती थी, बयान करना कठिन है। कितना कुछ बदल गया था हमारे बीच! अब बस, विधि के हिसाब से एक होने का इंतज़ार था।

अगले सप्ताहांत, लतिका के एक्साम्स के कारण अम्मा और गार्गी भी आ गई थीं, कि बहू और बाबू जी की देखभाल की जा सके। अकेली लतिका के भरोसे यह छोड़ा नहीं जा सकता था - हाँलाकि उस पर ज़िम्मेदारियाँ कम थीं, लेकिन फिर भी, एक्साम्स के कारण उस पर काम का बोझ अधिक हो रहा था। अम्मा के आते ही अचानक से सब कुछ हल्का हो गया। माँ के पिछली बार के गर्भावस्था की ही तरह इस बार भी उनका मन था कि माँ की गोदभराई की रस्म मनाई जाय। पहला विचार तो गाँव में ही जा कर सबसे मिलने का था, लेकिन चूँकि इस बार माँ की डॉक्टर ने बेहद सख़्त मनाही की हुई थी, इसलिए माँ को इस बार कोई यात्रा नहीं करने दिया गया। अगर मनाही न भी होती, तो भी पापा उनको यात्रा न करने देते। अब चूँकि हमारे वृहत ‘परिवार’ के नाम पर हमारे गाँव के पड़ोस वाले चाचा जी, चाची जी और उनका परिवार ही थे, इसलिए उन्ही से मिलने का बहाना था यह सब प्रयोजन। सोचा गया कि क्यों न उनको ही यहाँ दिल्ली बुला लिया जाय? लिहाज़ा, उनको फ़ोन कर के सब बताया गया।

जब चाचा जी, चाची जी को माँ के पुनः गर्भवती होने की खबर लगी, तो पहले की ही तरह वो दोनों बहुत ही प्रसन्न हुए। माँ की पिछली गोदभराई की रस्म से ले कर अब तक माँ के प्रति उनका व्यवहार पूरी तरह से परिवर्तित हो कर, उनके माता-पिता वाला हो गया था। ठीक वैसे ही, जैसे ससुर जी का उनके प्रति हो गया था। वो दोनों गाँव के सम्बन्ध से माँ के जेठ-जेठानी होते, लेकिन चूँकि माँ उनसे उम्र में इतनी कम थीं, इसलिए वो अब माता-पिता वाली भूमिका में ही उचित थे। बात चीत हुई, तो उनको हमने दिल्ली आने का न्योता दिया। वो थोड़े संकोच में थे - संभव था कि सोच रहे हों कि कहाँ रहेंगे, कैसे आएँगे। उन लोगों के लिए उनका गाँव ही उनका संसार था। हमने उनको कहा कि हमारे साथ आ कर रहें। उस दिन तो वो मान लिए, लेकिन फिर अगले दिन फ़ोन पर बोले कि उनके बेटे, बेटियाँ, बहुएँ और बच्चे नहीं आ सकेंगे, क्योंकि उन सभी की यात्रा के लिए बड़ी व्यवस्था करनी पड़ेगी। ऊपर से अपने पीछे घर को खाली, और खेती को राम भरोसे छोड़ना सही नहीं था! इसलिए वो ऐसा जोखिम नहीं लेंगे। मैंने जान बूझ कर उनको मेरी शादी पक्की होने की बात नहीं बताई - सोचा उनके घर आने पर ही यह सब बताऊँगा।

माँ की गोदभराई की रस्म, लतिका के एग्जाम ख़तम होने के दो दिन बाद आयोजित थी। और चाचा जी और चाची जी अगले दिन पधारे। दोनों लोग अब साठ वर्ष पार कर चुके थे - चाचा जी कोई पैंसठ साल के थे और चाची जी बासठ या तिरसठ साल की! हाँलाकि बूढ़े दोनों ही लगते थे - निरंतर प्राकृतिक शक्तियों का प्रभाव त्वचा पर पड़ता ही है। लेकिन शुद्ध भोजन और अच्छी जीवन शैली के कारण अपनी आयु के विपरीत स्वस्थ और बलवान लगते थे। जब वो दोनों घर आए तो उनका स्वागत करने हम सभी उनके स्वागत हेतु उपस्थित थे। अम्मा सबसे आगे थीं उनके स्वागत के लिए, और जब वो चाचा जी और चाची जी के चरण छूने लगीं, तो चाचा जी हाथ जोड़ कर बोले,

“बहिनी... तू तौ हमार समधिन हौ... हमार बिटिया कै सास... तू हमार गोड़ न छुवौ! ... हमका पाप लागे...”

लेकिन अम्मा ने उनकी एक न सुनी, और उनके चरण स्पर्श कर के बोलीं, “आप तो हमारे बड़े भैया हैं... आपका आशीर्वाद कैसे छोड़ दूँ?”

उसी तरह अम्मा ने चाची जी के भी चरण छुए। फिर उनके बाद हम सभी ने बारी बारी यथोचित तरीके से उनका सम्मान किया। ससुर जी से भेंट हुई तो दोनों ही लोगों ने उनके चरण छुए। सबसे अंत में माँ आईं। माँ को देख कर चाची जी आनंद से रोने लगीं। वो उनके पैर छूने को हुईं, लेकिन चाची जी ने उनको बीच ही में रोक लिया, और अपने आलिंगन में भर लिया। दोनों को मिले हुए कोई चार साल हो गए थे, इसलिए दोनों और भी अधिक भावुक थीं।

“अरे बस... बस बस शोनचिरैया मेरी,” अम्मा ने ही अंत में कहा, “ऐसे रोयेगी, तो दीदी सोचेंगी कि तेरी सास तुझे बहुत तंग करती है!”

“नाही नाही... ई तौ हम सोचे नाही सकित बहिनी...” चाची जी ने तुरंत कहा, “तू तौ खुदै अन्नपूरना हौ... तोहरे कारन हमार बिटिया यस खुसहाल रहत हय... इतरै दिना बाद देख्यन एका ना, यही मारे आंसू आय गए...”

“हाँ दीदी... आप तो इसको इतने सालों बाद देखी हैं! ... मैं तो इसको कुछ ही दिन न देखूँ तो बेचैनी होने लगती है!” उनकी भी आँखों में पानी आ ही गया था वो भावनात्मक दृश्य देख कर।

“अरे, आप लोग अंदर आईये पहले,” मैंने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “दरवाज़े पर ऐसा रोना धोना देख कर लोग सोचेंगे कि कुछ हो गया...”

“धत्त, कुछ भी बोलता है,” अम्मा ने मुझे प्यार से डाँटा, और फिर चाची जी से बोलीं, “आईये दीदी, अंदर आ कर खूब बातें करते हैं!”

अचानक से घर और भी भरा पूरा हो गया। चाचा जी और चाची जी - समझिए वो हमारी ज़मीन से हमारा आख़िरी कनेक्शन थे। मैं कहाँ से आया था, वो उस बात की पहचान थे। थोड़ी ही देर में पुरानी कई सारी बातें और यादें ताज़ा हो आईं। भोजन इत्यादि कर के सभी महिलाएँ माँ की गोदभराई की रस्म का प्रोग्राम करने लगीं। निश्चित किया गया कि क्योंकि बहुत समय नहीं है - बमुश्किल चार और हफ़्ते - इसलिए अगले दो तीन दिनों में ही रस्म कर लेते हैं। माँ मारे संकोच के कुछ कह ही नहीं पा रही थीं - उनको दूसरी बात करने की उत्सुकता और व्याकुलता हो रही थी, लेकिन अम्मा ने इशारे से उनको कुछ और देर शांत रहने को कहा।

एक बार जब सारा प्रोग्राम तय हो गया, तब अम्मा ने चाची जी को बताया,

“दीदी, एक और अच्छी खबर है!”

“हाँ बहिनी, बतावो?”

“मेरी बिटिया की शादी हो रही है...”

“अरे वाह वाह... ई तौ बहुतै नीक खबर दिह्यु बहिनी...” उन्होंने आनंदित होते हुए कहा, “बहुत बहुत बधाई हो! बड़ी सुन्दर बिटिया हय तोहार...”

अवश्य ही लतिका से उनका ‘उस तरह’ का जुड़ाव नहीं हो पाया था - उसको बहुत छोटेपन में ही देखा था, और उसके बाद भी वो उनके लिए बस अम्मा की लड़की की पहचान में ही थी। लेकिन फिर भी, लतिका का व्यक्तित्व किसी से छुप नहीं सकता था।

“जानत हौ बहिनी? ओका देखित हय न... अच्छा हम जोन कहे जाय रहे हन ना, ओका सुन कै बुरा ना मान्यौ...”

“अरे नहीं दीदी, बुरा क्यों मानना? आपकी भी तो बेटी है न! आप कहिए...”

“हाँ... जब तोहार बिटिया देखित हय ना, तौ हमका ई बिटवा [चाची जी मेरी बात कर रही थीं] कय मेहरारू याद आवत हय... हय की नाही सुमन?” चाची जी ने माँ से अपनी बात का समर्थन माँगा।

“कौन दीदी?” माँ समझ तो गई थीं, लेकिन वो चाची ही से मज़े ले रही थीं।

“अरे ऊ पहली वाली बिटिया... ओके नउनै नाही याद आवत... अरे ऊ बिदेसी मेम...”

चाची जी गैबी की बात कर रही थीं। यह बात सही भी थी - हम लोग चूँकि रोज़ साथ में रहते थे, इसलिए हमको समानताएं और अंतर नहीं महसूस होता था, लेकिन सच में, देहयष्टि के अनेकों परिमाणों में लतिका और गैबी समान ही लगती थीं।

“गैबी... गैबी नाम है उसका!”

“हाँ... बड़ी सुन्दर रही ऊ बिटिया... अउर बड़ी सयान! बेचारी... बहुत दुःख भवा रहा सुन कय...”

चाची जी हठात ही दुःखी हो गईं।

“दीदी,” अम्मा ने कहा, “गैबी दीदी तो मुझे भी बहुत पसंद थीं...”

“ई ल्यो... ओका दीदी कहत हौ अउर बिटवा का आपन पोता! तोहरौ लीला...” चाची जी ने हँसते हुए कहा।

“हा हा... अरे दीदी, तब बात कुछ और थी, और अभी कुछ और... तब मुझे अपनी बहू थोड़े न मिली थी!” अम्मा ने लाड़ से माँ के माथा चूमते हुए कहा, “कहाँ सोचा था मैंने कि ऐसी प्यारी सी बहू मिलेगी मुझे!”

“सही कहत हौ बहिनी... एक बात तौ हय... ई घरे सब पतोहुवैं बड़ी सुन्दर सुन्दर आई हँय... सब के सब!” चाची जी बोलीं, “इनहिं का देख लिहौ... अब यस गुड़िया जस सुन्दर अउर गुनी बहुरिया मिलै, तौ महतारी तौ महतारी, ओके ससुरियौ कै छाती मा दूध उतर आवै...”

चाची जी की बात सुन कर अम्मा और माँ की आँखें तुरंत मिलीं, और फिर माँ ने मुस्कुरा कर अपनी आँखें नीची कर लीं।

“उतरता है दीदी,” अम्मा ने बड़ी ममता से कहा, “दूध उतरता है...”

“सहियै?”

माँ मारे शर्म के मुस्कुरा दीं।

“बहुत अच्छा बहिनी... अउर हम सोचत रहिन की केवल हमैं इनका आपन दूध पियायेन हन...” चाची जी ने कहा, “हमहूँ अपनी बहुरियन का दूध पियायेन हन... बिटवन कै महतारी होई तौ आपन बहुरियनौं कै महतारी होई...”

“हाँ दीदी...” माँ बोलीं, “आपको देख कर ऐसा ही लगता था कि काश मेरी सासू माँ भी आपके ही जैसी होतीं...”

“मिल तौ गईं हमरे जस सास...” चाची जी ने हँसते हुए कहा, फिर बात पर वापस आते हुए बोलीं, “हाँ बहिनी, अब बिस्तार से बतावो... बिटिया कै बियाह कहाँ करति हौ?”

“दीदी,” अम्मा ने कहा, “इस घर से अच्छा घर कहाँ मिलता? ... इसलिए अपनी बेटी इसी घर में ब्याह रही हूँ!”

“का?” चाची जी ने चौंकते हुए कहा, “मतलब... हमरे बिटवा से? ... तोहार बिटिया, यानी सुमन कै पतोहू?”

“जी दीदी...”

“हा हा... ई तौ कमाल बाय... बहुत नीक... बहुतै नीक!”

“आपको कोई आपत्ति तो नहीं है दीदी?” अम्मा ने पूछा।

“अरे नाही बहिनी! ... बड़ी सुन्दर सी बिटिया हय तोहार! हमरे बिटवा कय जिन्दगी आबाद होय जाय... अउर का चाही?”

“... बस आपका और भैया का आशीर्वाद...” माँ ने कहा।

“तू सबही हमार गदहरै (बच्चे) हौ... भगवान करैं की हमार सब पुन्य तुंहका मिल जांय...”

चाचा जी ने भी जब यह खबर सुनी तो बड़े आनंदित हुए। मैंने और लतिका ने उन दोनों से आशीर्वाद लिया। दोनों ने हमको, ख़ास कर के लतिका को अपने गले से लगा कर ढेरों आशीर्वाद दिए। बेटे से अधिक प्रेम बहू को मिलता है... ख़ास तौर पर तब, जब बेटा पूरे परिवार में सबका प्यारा हो।


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मारे उत्साह और मारे ख़ुशी के, चाची जी ने सबको रसोई से भगा कर रात का भोजन स्वयं पकाया। माँ या अम्मा - उन दोनों के हाथ का भोजन बड़ा स्वादिष्ट होता है। लेकिन चाची जी के हाथ के भोजन में स्वाद भी था, और एक परिचित सा देसीपन भी। भोजन में एक अनोखा ही आनंद आ गया। बड़े दिनों बाद वो स्वाद मिला था। आवश्यकता से अधिक भोजन किया उस रात। वैसे भी आज से सोने का इंतजाम बहुत बदल गया था, इसलिए मैं और लतिका साथ ही मेरे कमरे में चले आए।

लेकिन अम्मा, माँ और चाची जी की मंडली जमी रही।

“बहिनी, कब हय बियाह?” बातचीत के दौरान चाची जी ने पूछा।

“अभी कुछ पक्का नहीं है दीदी... लेकिन बहू के बच्चा होने के बाद...” अम्मा ने बताया, “सोच रहे हैं कि एक महीना बाद...”

“बहुतै नीक! सुभ साईत मा जल्दीहै कै लिह्यो... आसाढ़ लागै के पहले... जेठ कै महीना ठीक बाय...”

“हा हा... हाँ दीदी! जल्दी से जल्दी करने का मन है!”

“हाँ बहिनी, सुभ कामे मा देर नाही करै का चाही...”

आज दिन भर आराम न करने के कारण, माँ को थोड़ी थकावट हो रही थी। इस समय भी वो कसमसा रही थीं। दिन भर आरामदायक कपड़े पहनने की आदत हो गई थी, लिहाज़ा, इस समय वो थोड़ा तकलीफ़ में थीं। चाची जी ने यह देखा, तो बोलीं,

“लेटबो बहू?”

“हाँ दीदी, थोड़ा थक गई।”

“हाँ... थका तौ लगतै हय...” चाची जी ने माँ को दुलारते हुए कहा, “लेट लियौ... रात होय गय!”

जब माँ बिस्तर पर लेट गईं तो वो वापस अम्मा की तरफ़ मुखातिब होते हुए बोलीं, “हाँ... हम कहत रहिन की जेठ कै महीने मा दूनौ कै बियाह कै दिह्यो... नाही तो पितरपख लाग जाये। सुभ नाही रहत ऊ महीना...”

“जी दीदी!” अम्मा ने कहा, “... बहू को बच्चा हो जाय, फिर दो तीन हफ़्ते बाद उन दोनों का ब्याह कर देने का मन है।”

“मैं तो कह रही थी कि इस बात का इंतज़ार न करिए और दोनों की शादी करवा दीजिए... लेकिन आप लोगों को कुछ सुनना ही नहीं है...” माँ ने शिकायत करी।

“अरे बेटा, उनकी शादी तेरे बिना थोड़े ही हो सकती है... तू और मैं साथ में मिल कर डांस करेंगे, तभी तो मज़ा आएगा! ... मैं भी तो चाहती हूँ कि जल्दी हो जाय शादी...” अम्मा ने हँसते हुए कहा, “जल्दी से दोनों की शादी कर दूँ, तो नानी बनने का भी सुख मिल जाए दीदी,”

“हाँ बहिनी... हमार नातिनिया पेट से बाय... दुई बच्चे हँय ओकरे... बड़ा परिवार रहत हय तौ नीक लागत हय बहुत...”

“अरे वाह दीदी, बधाई हो!” अम्मा ने कहा, फिर माँ की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “बहू... सो जाओ… वैसे भी सवेरे उठ कर पूरे प्रयोजन में बैठना ही है।”

“हाँ अम्मा...”


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अगले दिन माँ की गोदभराई का समारोह अपने नियत समय पर आरम्भ हुआ। सुबह सुबह माँ और पापा संछिप्त सी पूजा पर बैठे। पूजा पाठ करवाने के लिए उन्ही पंडित जी को बुलाया गया था, जिन्होंने हमारे घर के गृह-प्रवेश की पूजा हवन कराई थी। हम सब पूजा में बैठे थे कि अचानक ही अम्मा ने पंडित जी से मेरे और लतिका के लिए भी पूजा करने को कहा। घर में अन्य सभी व्यक्तियों को यह आयोजन पहले से ही पता था, लेकिन मुझसे और लतिका से यह बात छुपा कर रखी गई थी। अम्मा के हाथ में हीरा जड़ी हुई सोने की अंगूठी थी, और पापा के हाथ में भी उसी से मैचिंग सेट की लड़कियों की अंगूठी थी। बहुत आश्चर्य हुआ और आनंद भी! मेरे घर के लोग बड़े गज़ब के हैं - उनके कारण प्रतिपल आनंद मिलता है मुझे।

उनके कहने पर मैंने और लतिका ने एक दूसरे को वो अंगूठियाँ पहनाईं। पापा ने हम दोनों की तस्वीरें उतारीं। अब हम दोनों की ऑफिशियल, सभी के सामने, मँगनी हो गई थी। बहुत मज़ा आया! और मज़ा इसलिए भी आया क्योंकि हमारे कई निकट के मित्र आज के आयोजन में आमंत्रित थे! उनके संग अपने जीवन के इस अहम पल को जीने में और भी आनंद आया। सभी ने माँ और उनकी होने वाली संतान को आशीर्वाद दिया, और हमको भी! संगीत भी आयोजित था, और भोजन भी - सवेरे ही अम्मा और चाची जी ने जुट कर सब इंतज़ाम कर दिया था। बाप रे - दोनों की दोनों मशीन की तरह काम करतीं थीं। ऐसी माताओं का जीवन में होना बहुत बड़ा सौभाग्य होता है। काश कि मैं उनके लिए कुछ भी कर सकूँ! दोपहर होने तक प्रोग्राम समाप्त हो गया और इस तरह से माँ की गोद भराई की रस्म और लतिका और मेरी इंगेजमेंट पूरी हुई।


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चाचा जी और चाची जी एक सप्ताह हमारे साथ रहे। जाते समय उन्होंने इच्छा जाहिर करी कि क्यों न इस बार भी लतिका और मेरी शादी गाँव से ही हो? समय परिवर्तित हो रहा है, तो भाग्य भी परिवर्तित होगा। मेरा मन तो उतना नहीं था, लेकिन घर में बाकी सभी इस सुझाव से बहुत प्रसन्न थे, और उत्साहित भी। मैंने लतिका से इस बारे में पूछा, तो उसने बताया कि वो भी चाहती है कि हमारी शादी हमारे गाँव में ही हो। अच्छी बात है - मैंने अकेला ही सभी का मन खराब नहीं करना चाहता था। वैसे भी, मई जून में दिल्ली की गर्मी झेलने से बेहतर था कि गाँव ही चलें। इसलिए हमने गाँव में ही शादी करने का निर्णय लिया।


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लतिका के फाइनल एक्साम्स का रिजल्ट आ गया था। रिजल्ट को आश्चर्यजनक तो नहीं कह सकते, क्योंकि बारम्बार लतिका का वैसा ही रिजल्ट आया हुआ था - लेकिन सुखद आश्चर्य इस बात का हुआ कि वो अपनी यूनिवर्सिटी में टॉप तीन स्टूडेंट्स में से एक रही! उसको ‘आइडियल स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर’ का अवार्ड भी मिला, क्योंकि लतिका ने राष्ट्रीय खेलों में भी शिरकत करी थी और मेडल्स भी जीते थे। ऐसे भी इतने अंक अर्जित करना कोई बच्चों का खेल नहीं था! कमाल हो गया सच में! अपनी होने वाली बीवी को ऐसे परचम फहराते हुए देखना बड़ा सेक्सी होता है!

उसका रिजल्ट देख कर बड़ेगांव वाले महंत जी की भविष्यवाणी याद हो आई। उन्होंने लतिका के लिए कहा था कि वो स्वयं ‘श्री’ का रूप है, और पापा की ही तरह वो अम्मा का नाम रोशन करेगी। वो भविष्यवाणी तो सौ फ़ीसदी सच हो रही है। उन्होंने यह भी कहा था कि वो हम सभी की सोच से कहीं अधिक गुणी है... और यह कि वो अपने जीवन में बहुत तरक्की करेगी, और उसकी तरक्की से हम सभी आश्चर्यचकित रह जाएँगे और उस पर गर्व भी करेंगे! गर्व तो मुझे सच में उस पर बहुत था - आज से नहीं, पहले से भी। उन्होंने यह भी बताया था कि वो अपने पसंद के लड़के से प्रेम विवाह करेगी! अब मैं और लतिका जल्दी ही विवाह बंधन में बँधने वाले थे। उन्होंने यह भी कहा था कि हमारे तीन बच्चे होंगे।

‘तीन बच्चे,’ मैंने सोचा, ‘... मतलब मिष्टी को मिला कर चार! बढ़िया है यार!’

मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं एक या दो से अधिक बच्चे चाहता हूँ। लेकिन अब चार बच्चों की सम्भावना बन रही थी। शायद पापा का प्रभाव था। माँ और उनकी सँगत, उनका प्रेम देख कर एक बड़ा सा परिवार बनाने की इच्छा होने ही लगती है। अम्मा के भी तो चार बच्चे हुए! लतिका को अपने सामने बच्चे से बड़ा होते देखा था - और अब वो मेरे बच्चों की माँ बनेगी, यह सोच कर गज़ब का रोमाँच हो आता।


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मई के आखिरी सप्ताह में माँ ने एक और पुत्री को जन्म दिया - स्वस्थ और बहुत ही सुन्दर बच्ची! उसका नाम हमने आरोही रखा। इस बार भी नेचुरल डिलीवरी थी - हाँलाकि माँ की डॉक्टर बहुत सतर्क थी और सीज़ेरियन कर के बच्चे को निकालना चाहती थी, लेकिन माँ ने ही ऐसा करने से मना कर दिया। और अच्छा किया कि उन्होंने वैसा किया - नहीं तो रिकवरी में अनावश्यक समय लगता। आरोही के जन्म के साथ ही पापा का माँ के साथ एक बड़ा सा परिवार बनाने का सपना पूरा हो गया था। वो पूरी तरह से संतुष्ट हो गए थे। माँ भी। पिछले लगभग दस वर्षों में उन्होंने वो सब कुछ पा लिया था, जिसकी वो बस कल्पना ही कर सकती थीं। माँ खुश थीं, और हम सभी भी। अब हमारे जीवन का अगला अध्याय शुरू ही होने वाला था।


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जब परिवार में ढेर सारे लोग होते हैं, और अगर वो खुश रहते हैं, तो परिवार की खुशियाँ कई कई गुणा बढ़ जाती हैं। मेरे और लतिका के लिए यह बड़ा ही मज़ेदार समय था। हम दोनों एक ही घर में रह रहे थे, लेकिन उस रात के बाद से अंतरंग होने का अवसर नहीं मिला। ऐसा नहीं था कि किसी ने मना किया था हमको - बस, कुछ सोच कर हम दोनों शांत रह गए। सोचा कि अपनी सुहागरात से शुरू कर के हनीमून की हर रोज़ जम कर धमाचौकड़ी मचाएँगे। गैबी के साथ गाँव का हनीमून याद हो आया - हम दोनों ने न केवल थका देने वाला सम्भोग किया था, बल्कि हर सम्भोग के बाद एक अलग ही स्फूर्ति आ जाती थी शरीर और मन में... अगले सम्भोग के लिए!

शादी के लिए खरीदारी करना मजेदार था! शॉपिंग - यह एक काम था जो मुझको कभी पसंद नहीं आया। लेकिन फिलहाल मुझे शॉपिंग करने में बड़ा मज़ा आ रहा था। माँ स्वयं कहीं नहीं जा पा रही थीं, इसलिए उन्होंने सख़्त हिदायद दी हुई थी मुझको कि जो लतिका चाहे, वो उसको मिलना चाहिए। इसलिए मैं माँ का हुकुम बजा रहा था, बिना किसी हील हुज्जत के! एक तरीके से ऑफिस से कुछ समय के लिए ‘छुट्टी’ मिलना अपने आप में सुकून वाली बात थी। इसलिए मैं खुश था, और पहली बार जीवन में, बिना किसी चिंता के मज़े कर रहा था।

अम्मा का मन था कि लतिका की शादी में वो जितना पारम्परिक तरीके से सज धज सके, उतना अच्छा! लेकिन जब उनको पता चला कि लतिका ने माँ की दी हुई लहँगा चोली पहनने का सोचा हुआ है, तब उन्होंने अपना हठ छोड़ दिया। लेकिन अम्मा चाहती थीं, कि जितनी भी पूजा प्रार्थना हो सके, वो सब करी जाय। गाँव के चाचा जी और चाची जी को वो अपनी तरफ़ से समझा दे रही थीं, और वो दोनों उसी के अनुसार बंदोबस्त भी कर रहे थे। मैंने शादी के दौरान पहनने के लिए लखनवी चिकन कुर्ता और चूड़ीदार पायजामा लिया था। गर्मी के मौसम में शादी होनी थी, इसलिए बहुत लाद फाद नहीं करी जा सकती थी।

माँ का स्वास्थ्य भी तेजी से ठीक हो रहा था। शरीर पर से प्रेग्नेंसी की चर्बी तो नहीं हटी थी, लेकिन वो आराम से चल फिर पा रही थीं, और कमज़ोरी नहीं महसूस कर रही थीं। इस कारण से उनकी डॉक्टर ने भी उनको यात्रा करने की हरी झण्डी दे दी थी। वो भी चाहती थीं कि ये सबसे नन्ही बच्ची भी अपनी जड़ों को जाने, समझे। कितना कुछ बदल गया था न पिछली बार से! पिछली बार के मुकाबले हमारी संख्या दो-गुणा हो गई थी। समृद्धि भी बहुत बढ़ गई थी। बहुत आनंद!

मैंने गेल और मरी को हमारी शादी के लिए आमंत्रित किया हुआ था। उन्होंने सबसे पहले मुझे और लतिका को शादी की बधाइयाँ दीं और कहा कि वो अवश्य ही हमारी शादी पर उपस्थित होंगे - रॉबिन के साथ! क्या बढ़िया बात थी! मिष्टी और रॉबिन पहली बार एक दूसरे से मिल सकेंगे, यह जान कर अच्छा लगा। क्या उन दोनों को पता चलेगा कि वो भाई-बहन हैं, यह सोच कर मुझे अंदर ही अंदर रोमांच हो आया। मैंने गैबी के परिवार को भी आमंत्रित किया। उन्होंने भी मुझसे और लतिका से बात कर के हमको होने वाली शादी की बधाइयाँ दीं। गैबी का भाई तो नहीं, लेकिन उसके माँ बाप आने को तैयार हो गए। उनसे पहली बाद मिलने का अवसर था यह! जयंती दी का पूरा परिवार भी आने वाला था। यह बड़ा अच्छा था - मेरा पूरा वृहद् परिवार इस बार के प्रयोजन में सम्मिलित होने वाला था। गाँव के घर में उन सभी के रुकने ठहरने की व्यवस्था तो नहीं थी, लेकिन पिछले कुछ समय में जो आर्थिक परिवर्तन हुए थे, उसके कारण गाँव के आस पास कुछ धर्मशालाएँ खुल गई थीं। नई इमारतें थीं, इसलिए चिंता नहीं थी। मैंने सभी विदेशी और ख़ास मेहमानों के रहने की व्यवस्था सबसे बेहतर धर्मशाला में कर दिया। और तो और, उनको नए गद्दे, तकिए, और चादरें ख़रीदवाईं कि मेहमानों को बहुत अधिक तकलीफ़ न हो।

सबसे पहले दिल्ली आने वालों में मिस्टर और मिसेज़ सूसा (गैबी के माँ बाप) थे। वो शादी से एक सप्ताह पहले ही उपस्थित हो गए थे। उन्होंने कहा था कि शादी में आने से पहले वो दिल्ली का स्वाद लेना चाहते हैं, और वो सब कुछ महसूस करना चाहते हैं, जो उनकी बेटी ने किया था। तो मैंने उनके घूमने के लिए पूरा प्लान कर दिया और उनके लिए एक कार और ड्राइवर कर दिया। उनको लेने मैं, लतिका, और मिष्टी एयरपोर्ट गए थे। जब हम उनसे मिले, तो मैंने और लतिका दोनों ने उन दोनों के पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया। हमको इस तरह से आदर देते हुए देख कर वो दोनों ही रोने लगे। कोई सत्रह साल पहले उनकी बेटी और मेरा नाता जुड़ा था, और हमने भौगोलिक दूरी होने के बावज़ूद अपना संपर्क बनाए रखा था। दोनों ही हमसे लिपट कर बहुत देर तक रोते रहे। सासू माँ ने लतिका को देख कर कहा भी कि वो उनको गैबी की याद दिलाती है। तो लतिका ने कहा कि वो उसको अपनी गैबी ही मानें! यह सुन कर उनका मन भर आया - ऐसा लगा ही नहीं कि कभी मिसेस सूसा में इतनी कड़वाहट भी थी। रही सही कसर मिष्टी ने पूरी कर दी उनको ‘ग्रैंडपा’ और ‘ग्रैंडमाँ’ बोल कर! वो बहुत बूढ़े न हो गए होते, और मिष्टी इतनी ऊँची न हो गई होती, तो वो उसको अपनी गोद में ही उठा लेते। इतने भावुक हो गए थे दोनों! लेकिन फिलहाल उन्होंने केवल उसको अपने से लिपटा कर अपनी ममता को शांत कर लिया। उनको उनके होटल में छोड़ कर उनसे मिलते रहने का वायदा किया।

गेल, मरी और रॉबिन शादी से पाँच दिन पहले पहुँचे। उनको लेने मैं, लतिका और मिष्टी एयरपोर्ट पहुँचे थे। जब वो हमको बाहर आते दिखे, तो मरी लगभग दौड़ती हुई हमारी तरफ़ आई, और आ कर मुझसे लिपट गई। एक लम्बे अर्से से वो हमारे पारिवारिक मित्र रहे थे, इसलिए उनसे यूँ मिलना भावुक कर देने वाला अवसर था। मरी ने मुझे गालों पर चूमा और मेरा कुशलक्षेम पूछा। फिर उसने बड़े ही प्यार से लतिका को अपने आलिंगन में भर के उसके गालों को चूमा और उसका कुशलक्षेम पूछा।

मैंने लतिका को पहले से ही गेल मरी और डेवी के बारे में बताया हुआ था, और यह भी कि रॉबिन मेरा बेटा है। लतिका ने मुस्कुराते हुए सर हिलाया, और हँसते हुए पूछा कि मेरे ‘हरम’ में और कौन कौन हैं। मैंने उसको समझाया कि मेरा कोई हरम वरम नहीं है - हाँ, लेकिन गेल और मरी मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं - दोस्त ही नहीं, परिवार भी! गेल भी हमसे मरी के तरीके से ही मिला - जब उसने मेरे गालों को चूमा तो मिष्टी हँसने लगी। उसको हँसता देख कर गेल ने उसको अपनी गोदी में उठा लिया और उसको खूब चूमा। मिष्टी से उसकी जान पहचान थी - ईमेल और वीडियो कॉल्स के ज़रिए हम सालों से साथ बने हुए थे। गेल ने भी लतिका को चूम कर उसका कुशलक्षेम पूछा। अंत में रॉबिन आया - बड़ा लड़का हो गया था वो! उसके अंदर भारतीय जींस नहीं दिख रहे थे - हाँ, उसके बाल और आँखें मेरी जैसी ज़रूर थीं। सुदर्शन बालक! वो आया और बड़े ही सौम्य तरीके से उसने पहले मेरे और फिर लतिका के पैर छुए। मेरी आँखें आश्चर्य से फटी रह गईं! फिर उसने मिष्टी को चूम कर आलिंगनबद्ध कर लिया। वो दोनों एक दूसरे को भाई बहन के रूप में ही जानते थे, लेकिन उनको कम से कम मैंने तो कभी असलियत नहीं बताई थी। उसी में सभी की भलाई थी शायद। एयरपोर्ट से हम गेल परिवार को उनके होटल ले गए, और देर तक बातें करते रहे। रात का भोजन करने से पहले मैंने उनको बताया कि परसों हम गाँव के लिए रवाना होंगे, और उनके साथ एक कार और ड्राइवर रहेगा। इसलिए वो चिंता न करें। बस, पानी इत्यादि का ध्यान रखें।

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Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai.....
Nice and lovely update.....
 
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