नव-जीवन - Update #4
हमारा कमरा ऊपरी मंज़िल पर था। नीचे की गहन चहल-पहल के विपरीत वहाँ एकांत था। सोलर के कारण बिजली आ रही थी - लेकिन शायद गाँव में बिजली कट गई थी फिलहाल! यह अत्याचार देश के अमूमन हर भाग में हमेशा ही होता है। कड़क की गर्मी में जब बिजली की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, तब वो चली जाती है! मैंने ही आगे बढ़ कर दरवाज़ा खोला, और जैसे ही लतिका अंदर जाने को हुई, मैंने कहा,
“लतिका, रुको ज़रा...” और तत्क्षण ही उसको अपनी गोदी में उठा कर कमरे में ले जाने लगा।
“बहुत रोमांटिक हो रहे हैं ठाकुर साहब!”
“अभी आपको क्या मालूम कि हम कितने रोमांटिक हो रहे हैं! ... आप हमारी बाहों में हैं, और आज हमारी शादी हुई है... आज रोमांटिक होने का तो लाइसेंस है हमारे पास!”
“हा हा!”
हमारा कमरा बड़े ही सुन्दर तरीके से सजाया गया था। सुन्दर, झीने परदे, विभिन्न फूलों की मालाओं से सजाया गया कमरा! कमरे में एक मिट्टी के प्याले में सुलगते हुए कण्डे पर घी और चन्दन की लकड़ी की छीलन सुलग रही थी... उसके कारण कमरे में धुआँ तो हो रहा था, लेकिन वो ऐसा नहीं था कि आँखों में आँसू आ जाएँ या दम घुट जाए। कमरे में मीठी मीठी महक भर गई थी। नए तरीके का पलंग था, जिस पर रूई का मोटा गद्दा बिछा हुआ था, और उस पर सुनहरी चादर और उसी रंग के लिहाफ़ चढ़े आराम दायक तकिए! उसी रंग की चादर भी थी ओढ़ने के लिए, लेकिन इस गर्मी में उसका इस्तेमाल कितना होना था, पता नहीं। पलंग के एक तरफ़ एक गोल टेबल थी, जिस पर देसी आम के फल थे।
‘यार ये क्यों रखा गया!’ मैंने सोचा!
देसी आम खाना झंझट और बेतरतीबी वाला काम था। वो इतना रसीला होता है कि अगर सावधान न रहें, तो पल भर में ही उसका रस हाथों में लग जाए। खैर!
कुल मिला कर हमारे सुख का पूरा इंतजाम था वहाँ!
मैंने लतिका को बिस्तर पर बैठाया, और वापस जा कर कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। कमरे की खिड़कियाँ खोल दीं, लेकिन पर्दे चढ़ा दिए। अंदर पंखा चल ही रहा था। कुल मिला कर आराम था। बाहर गर्मी अवश्य थी, लेकिन कमरे के अंदर पाँच डिग्री ठण्डा था - जो कि बहुत ही आराम वाली बात थी।
मैं वापस बिस्तर पर आया, और लतिका को अपने आलिंगन में ले कर उसका माथा चूम लिया।
“तुम बहुत सुन्दर हो लतिका...” मैंने फुसफुसाते हुए उसके कान में कहा, “आई लव यू!”
न जाने ऐसा क्यों लग रहा था कि जैसे मेरे जीवन में कुछ अलग सा हो गया था अचानक ही! एक गज़ब का हल्कापन था शरीर में... मन में!
“जब... जब मेरा मन पूरी तरह से निराश हो गया, तब तुमने मुझको थाम लिया... जिस बात की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की, आज वो बात हो गई... आज दुनिया की सबसे सुन्दर, सबसे प्यारी लड़की... मेरी पत्नी है! मेरी जीवनसाथी... अब मेरे पास भगवान से मांगने के लिए कुछ भी नहीं बचा... आज सब कुछ मिल गया है मुझे! मुझे अब और कुछ नहीं चाहिए...”
लतिका शरारत से मुस्कुराई, “... लेकिन मुझे तो चाहिए...”
“बोलो... अगर मैं कर सका, तो तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूँगा...”
“आपके अलावा और कोई कर भी नहीं सकता!”
लतिका की बात एक पल को समझ नहीं आई, लेकिन फिर दिमाग में एक बिजली सी कौंधी! हाँ - वो इच्छा तो केवल मैं ही पूरी कर सकता हूँ। मैं मुस्कुराया।
“क्या मैं सही सोच रहा हूँ?”
“अमर,” उसने बड़े प्यार से कहा, “मैं तुमको बहुत प्यार करती हूँ... और तुम्हारे बच्चों की माँ बनना चाहती हूँ... लेकिन... लेकिन... विल इट बी ओके... इफ... इफ...”
“इफ व्ही वेट फॉर अ फ्यू इयर्स?” मैंने उसकी बात पूरी करते हुए कहा, “अब्सोल्यूटली! मैं भी चाहता हूँ कि तुम जितना एन्जॉय कर सको, करो!”
लतिका ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा, “तुम्हारे साथ पूरी लाइफ ही एन्जॉयमेंट है अमर... बात उसकी नहीं है! एक्चुअल्ली, मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ...”
“बिल्कुल पढ़ो! मैं भी यही चाहता हूँ!”
मैंने कहा और भविष्य की कई सारी कल्पनाएँ आँखों के सामने चित्रित हो गईं। मैं भी नहीं चाहता था कि वो अभी माँ बने! अट्ठारह उन्नीस कोई उम्र नहीं होती माँ बनने की। मैं चाहता था कि वो अपने तरीके से अपने जीवन की राह निकाले; समझे कि उसके लिए क्या ठीक है! और उन सभी कामों को करने में उसका साथ देने के लिए - मैं हूँ न!
“थैंक यू...” वो बोली और मेरे होंठों को चूमने लगी।
कुछ देर हमने एक दूसरे को चूमा, फिर मैंने ही कहा, “गर्मी लग रही है अब तो...”
“हम्म...” वो मुस्कुराई।
वाकई गर्मी लग रही थी - और हाँ, अब मैं लतिका के साथ नग्न भी होना चाहता था। इतना सुनहरा अवसर मिला था... शाम तक कोई हमको परेशान करने वाला नहीं था। और सही कहूँ, अब रुका भी नहीं जा रहा था। अपनी नई नवेली दुल्हन को उसके दिव्य रूप में देखने का बहुत मन हो रहा था।
“मुझे अपनी बीवी को नंगी देखना है...”
“आपकी बीवी आपको रोक ही कहाँ रही है...”
मुझे किसी हरी झंडी की कोई आवश्यकता नहीं थी - न अब, न पहले।
मैंने लतिका के होंठों पर एक चुम्बन लिया और उसको अपनी बाहों में थामे हुए, उसके शरीर से सभी वस्त्र एक एक कर के, धीरे धीरे उतार कर ज़मीन पर इधर उधर बिछा दिया। कमरे में नज़र डाली, तो देखा कि न तो मेरा और न ही लतिका का सूटकेस वहाँ था। लेकिन उससे फ़र्क़ ही क्या पड़ता था। घर में सभी ने हमको नग्न देखा ही हुआ था और आज तो हमारे पास नग्न होने और सम्भोग करने के सभी कारण और कारक उपस्थित थे।
एक बार हमारा मिलन हो गया था, लेकिन शादी के बाद मिलन में जो आनंद आता है, उसका व्याख्यान नहीं किया जा सकता। विवाहोपरांत सम्भोग में एक ठहराव होता है, जो आनंद देता है। ऐसा नहीं है कि हम पहले कुछ चोरी छिपे कर रहे थे - हमारा पहला मिलन भी माँ पापा के सामने ही हुआ था। उसमें हमको निस्सीम आनंद भी आया था। लेकिन अब एक अलग बात थी!
कुछ ही देर में हम दोनों पूरी तरह से नग्न हो कर बिस्तर पर बैठे थे। हमारे शरीर पर पसीने की पतली सी परत चढ़ गई थी, जो पंखे की हवा के कारण अपेक्षाकृत थोड़ी सी ठंडी लग रही थी। ऐसे में एक दूसरे को छूने पर अलग ही प्रकार का अनुभव होता है... थोड़ा सेक्सी अनुभव!
और लतिका लग भी बहुत सेक्सी रही थी।
मैं उसको चूमने लगा - उसके होंठों को अपने होंठों से लगा कर कोमल और लम्बे चुम्बन! मेरी बाहों में लतिका का होना ऐसा सुकून भरा अनुभव था कि उसको चूमते हुए मेरी आँखें बंद हो गईं। आनंद आ गया।
कुछ देर बाद मैं बोला, “तुम आज राजकुमारी जैसी लग रही हो, पुचुकी!”
“हा हा... तुम जब मुझे इस नाम से पुकारते हो, तो लगता है कि छोटी बच्ची हूँ!”
“तो किस नाम से बुलाऊँ?”
“मैं तुम्हारे बच्चों की माँ बनूँगी... इसलिए लतिका ही ठीक है! ... अनलेस, यू फाइंड मी अ बेटर, सेक्सी नेम!”
“ओके! फिर तो लतिका ही सेक्सी नाम है!”
“हा हा!” वो हँसी और बोली, “और मैं आपकी रानी हूँ... राजकुमारी तो हमारी मिष्टी है!”
“राइट...” मुझे बहुत पसंद आया जब उसने मिष्टी को ‘हमारी मिष्टी’ कहा, “सो माय सेक्सी क्वीन, आज तुम पूरा क़हर ढा रही थी सभी पर!”
“आप पर क़हर ढहा, मुझे बस उतना ही चाहिए था!”
“यू हैव नो आईडिया...”
लतिका ने कँटीली मुस्कान देते हुए कहा, “क्या सुन्दर लगा?”
कुछ कहने से पहले मैंने लतिका को दिल भर के निहारा। अभी भी मुझे खुद के भाग्य पर यकीन नहीं होता। क्या यह सब सच में हो रहा था, या कोई सपना था! अगर यह कोई सपना था, तो भगवान करे, मेरे जीते जी ये यूँ ही चलता रहे!
“मुझे तुम पूरी की पूरी सुन्दर लगती हो, लतिका!”
“ऐसे नहीं मेरी जान... आई नो यू आर एक्साइटेड... एंड वांट टू मेक लव टू मी... और मैं भी तो यही चाहती हूँ न! ... इसलिए तुम खुल कर, एक सेक्सी लवर की तरह मुझे बताओ कि तुमको मुझमें क्या अच्छा लगता है?”
मुझे लतिका पूरी की पूरी ही अच्छी लगती है। लेकिन हाँ, सच भी है कि उसके शरीर के कुछ अंग बाकी अंगों से अधिक सुन्दर हैं, और अन्य स्त्रियों से भी!
“तुम्हारे होंठ मुझे बहुत पसंद हैं... इनकी मुस्कान बहुत सुन्दर लगती है! जैसे दुनिया में कोई दुःख न बचा हो! वैरी किसेबल... एंड जूसी... जैसे जैसे लीची हों! मुलायम... जूसी... मीठे!”
यह सुनते ही लतिका के होंठों पर मुस्कान आ जाती है।
मैं आगे कहना जारी रखता हूँ, “तुम्हारी आँखें... बड़ी बड़ी! एक्सप्रेसिव! चंचल! लगता है कि मन में कोई शरारत चल रही है, लेकिन तुम खुद कितनी सौम्य हो!”
कह कर मैंने बारी बारी से उसकी दोनों आँखों को चूमा।
“और तुम्हारा चेहरा... कैसी इनोसेंट ब्यूटी! इनोसेंट, लेकिन सेक्सी!”
कह कर मैंने बारी बारी से उसके दोनों गालों, माथे, नाक, और ठुड्डी को चूमा। फिर गार्डन को चूमते हुए मैं उसके स्तनों को चूमने लगा। उसके दोनों चूचक कठोर हो कर बाहर उभर आए थे।
मैंने एक स्तन और उसके चूचक को छेड़ते हुए कहा, “और ये... मेरे होने वाले बच्चों की डेयरी! इनको देखता हूँ तो कुछ पलों के लिए पागल हो जाता हूँ! मन करता है कि इनको खा जाऊँ! यूथफुल एंड पर्की! ऐसे सुडौल ब्रेस्ट्स किसको पसंद नहीं आएँगे?”
मैंने बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को चूमा, और फिर उनको हाथों में भर कर दबाने लगा।
“किसके सबसे अच्छे हैं?”
“अरे! किसके का क्या मतलब लतिका?”
“तुमने तो इतने सारे ब्रेस्ट्स देखे हैं... सबसे अच्छे किसके हैं? यू कैन बी ऑनेस्ट विद मी! अगर मेरे से अधिक सुन्दर किसी के लगे हों, तो कह सकते हो!”
यार ये तो यक्ष-प्रश्न है! इसमें केवल पॉलिटिकली करेक्ट उत्तर हो सकते हैं। सही उत्तर क्या है?
“लतिका,” मैंने कुछ देर सोचा फिर बोला, “सच बताऊँ? मैंने जितने भी देखे हैं, उनमें से सभी के ब्रेस्ट्स अच्छे लगते हैं! ... माँ और अम्मा के इसलिए क्योंकि उनसे हमको अमृत मिलता है...”
“चलो उनको निकाल दो लिस्ट से... बताओ, गैबी, डेवी, मेरे और रचना में से किसके सबसे सुन्दर हैं?”
“सबसे सुन्दर देवयानी के थे...” मैंने कुछ देर सोच कर कहा।
मेरे उत्तर से वो बहुत संतुष्ट हुई और उसके होंठों पर गर्व भरी मुस्कान आ गई।
“... लेकिन तुम्हारे ब्रेस्ट्स उससे भी सुन्दर हो जायेंगे, क्योंकि तुम अभी भी बढ़ रही हो!”
मैंने कहा और तसल्ली से उसके स्तनों को पीने लगा।
“हम्म्मम...” उसके गले से संतुष्टि भरी आवाज़ आई, “थैंक यू फॉर बीइंग ऑनेस्ट... आई लव यू अ बिट मोर नाउ!”
“मेरे होंठों के जैसे रसीले नहीं हैं न?” लतिका की आवाज़ लड़खड़ाने लगी।
“नहीं, लेकिन अब ये मेरे हैं!” यह कह कर मैं फिर से कुछ देर तक उसके स्तनों को पीने लगा। कितना रुचिकर होता है अपनी पत्नी के स्तनों को पीना! जब तक मन करे, तब तक पिया जा सकता है! अपार सुख हो जाता है।
जब स्तनपान से मन भर गया, तब मैंने लतिका को अपने आलिंगन में भरे हुए ही कहा, “लतिका, तुम्हारा हर अंग बहुत सुन्दर है... मुझे तुम्हारा हर अंग अच्छा लगता है!”
लतिका मुस्कुराई।
“इसको देखो,” मैंने उसकी योनि के होंठों को सहलाया, “चिकनी चिकनी पुसी... कोमल सी सीप... और उसके अंदर छुपा ये मोती,” मैंने उसके भगनासे को सहलाया - ऐसा करते ही जैसे लतिका के शरीर में करंट दौड़ गया हो! वो ज़ोर से चिहुँक गई - लेकिन मेरा सहलाना कम नहीं हुआ।
मुझे कुछ देर से समझ में आ रहा था कि लतिका उत्तेजना के बारूद पर बैठी हुई थी। थोड़ी से छेड़खानी से उसको ओर्गास्म हो जाना था। शायद वो मुझे ‘खुल कर’ अपने अंगों की बढ़ाई करने के लिए इसीलिए बोल रही थी।
“आअह्ह्ह... अमर... आई ऍम... आई ऍम...”
मतलब उसको इस बात की समझ थी! बढ़िया! संभव है कि उसको माँ और अम्मा ने सेक्स के बारे में सब बताया हो। और यह भी संभव है कि वो मॉस्चरबेट करती हो। दोनों ही बातें अच्छी थीं। मुझे हमेशा वो लड़कियाँ ही पसंद आई हैं, जिनको अपनी सेक्सुअलिटी का ज्ञान था।
“आई नो...” मैंने उसके भगनासे को सहलाना जारी रखा, “जस्ट एन्जॉय!”
कुछ ही देर में लतिका को हमारी ‘सुहागरात’ का पहला ओर्गास्म हो आया। यह एक तीव्र ओर्गास्म था। उत्तेजना से उसका शरीर पसीने से नहा गया। और साथ ही साथ कामुक वासना की एक लालिमा भी उसके रंग में घुल गई! वाकई अब वो और भी सेक्सी लगने लगी।
मैंने उसके दोनों स्तनों के बीच अपनी जीभ को दबा कर नीचे से ऊपर की तरफ़ चाटा। उसकी आहें निकल गईं।
“अब जा कर बना है तुम्हारा हुस्न नमकीन!” मैंने कहा।
“ओह अमर! यू आर नॉटी!”
“अभी कहाँ नॉटी-गिरी करी है मैंने,”
कह कर मैं लतिका के स्तनों और पेट का चुम्बन लेते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर उसके नाज़ुक यौनांगों की तरफ़ जाने लगा। लतिका ने न जाने किस प्रेरणा से अपनी दोनों जाँघें आपस में जोड़ी हुई थीं। उनको अलग करते हुए मैंने कहा, “अपनी सीप का स्वाद लेने दो, मेरी रानी!”
लतिका का प्रतिरोध ढल गया। मैंने बिना कोई ज़ोर दिए, धीरे से उसकी जाँघों को अलग किया। लेकिन उसकी आँखें शायद अपने ओर्गास्म के चरम पर पहुँच कर अभी भी बंद थीं। उसकी योनि से कामरस रिस रहा था। मैंने लतिका की योनि से अपने मुँह को यथासंभव चिपकाया, और उसका कामरस पीने लगा। कुछ देर पहले ओर्गास्म हो जाने के कारण उसकी उत्तेजना, जो अपने ढलान पर थी, अब फिर से वापस ऊपर की तरफ़ जाने लगी।
कुछ ही देर में मैंने उसका सारा अमृत पी लिया...
“मुझे तुम्हारे अंदर जाना है लतिका,” मैंने कहा।
लतिका ने आँखें खोलीं।
मैं अपने घुटनों को उसके दोनों तरफ़ कर के, उसके ऊपर बैठा हुआ था। लिहाज़ा, मेरा लिंग उसके सामने अपनी पूर्ण उत्तेजना के परचम फैला रहा था और रह रह कर झटके खा रहा था। थोड़ी ही देर में वो इस लिंग के द्वारा भोगे जाने वाली थी - एक पत्नी के तौर पर।
उसने हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया।
“आई लव दिस...” उसने कहा और उठ कर उसको एक बार चूमा, “... आज से यह बस मेरा है!”
उसने अपनी मुट्ठी को चार पाँच बार मेरे लिंग की लम्बाई पर चलाया और फिर जैसे मंत्रमुग्ध हो कर बोली, “कितना बड़ा है ये... पहले लग रहा था कि अंदर जाएगा ही नहीं!”
“तुमको पसंद है?”
लतिका ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “ऑब्वियस्ली...” फिर उसने लिंग के सर को चूम कर कहा, “किसका बड़ा है? दादा का या तुम्हारा?”
“मेरा लम्बा अधिक है, और पापा का मोटा अधिक है...”
“हम्म्म... मतलब सेम!”
मैं मुस्कुराया।
“बदमाश हो तुम दोनों!”
“अरे! क्यों?”
“क्या क्या डिसकस करते रहते हो बाप बेटा मिल कर?”
“अपनी अपनी बीवियों को प्यार करने के तरीके डिसकस करने में क्या प्रॉब्लम है?”
“... माँ और अम्मा ने आप दोनों को बिगाड़ दिया है!”
“अरे, वो क्यों भला?”
“एक समय बाद बच्चों का दूध छुड़ा देना चाहिए... और यहाँ तो रुकने का कोई नामोनिशान नहीं है...” वो बोली।
“कब तक छुड़ा देना चाहिए?”
“एक प्रॉपर टाइम पर...”
“उम्म... बीवी न मिलने तक न?”
“फिर क्या बचा रह गया?” लतिका ने हँसते हुए, लेकिन धीमी आवाज़ में कहा, “... और बोल तो ऐसे रहे हो जैसे कल से माँ का दूध पीना बंद कर दोगे!”
“तुम चाहती हो कि मैं माँ का दूध पीना बंद कर दूँ?”
लतिका मुस्कुराई - हो ही नहीं सकता!
“कभी नहीं...” वो लिंग को प्यार से सहलाती हुई बोली, “आज न, हम दोनों पीते हैं... साथ में!”
“हा हा! ज़रूर!”
उसने लिंग को हल्के से चूम कर कहा, “बदमाश हो तुम पूरे... लाइक फादर, लाइक सन...”
“अरे!”
“और क्या! ... एक तरफ तो दादा माँ को परेशान करते रहते हैं... और अब तुम मुझे करने लगोगे...”
“न करूँ?”
उसने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।
“अभी इसको मेरी रानी की प्यारी सी चिकनी चूत में न डालूँ?”
उसने फिर से मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया, “धत्त... गंदे!”
वो फुसफुसाई और फिर उसने लिंग को फिर से चूमा... थोड़ी अधिक देर!
“आई लव यू...” वो बोली।
“आई नो...”
“कितना हार्ड है... लेकिन फिर भी कितना सॉफ्ट! एंड हॉट आल्सो...”
मैंने आँखों से इशारा किया, और बोला, “करूँ?”
और उसकी बात निकलने से पहले मैंने लिंग को पकड़ा, और उसकी त्वचा को पीछे की तरफ सरका कर शिश्नाग्र को उघाड़ दिया, और उसको लतिका के योनि पर पर छेड़ने लगा। अब तक लतिका की कामुक उत्तेजना वापस आ गई थी। वो सम्भोग के लिए फिर से तैयार थी।
लतिका को लगा होगा कि मैं अब उसके अंदर चला जाऊँगा। लेकिन चूँकि उसने कुछ कहा नहीं था, इसलिए मैंने पूर्ववत उसको छेड़ना जारी रखा। वहाँ से उठने वाले कामुक उत्तेजन ने उसको पागल सा कर दिया।
वो बोली, “ओह्ह्ह... स्टॉप टीसिंग मी...”
“देन?”
“फ़क मी प्लीज...”
“विद प्लेशर...” मैं तो कब से उसकी हरी झंडी की राह देख रहा था! मैंने तुरंत ही अपने लिंग को लतिका की इच्छुक योनि की राह दिखा दी। उसकी योनि की कोमल पंखुड़ियों ने तुरंत ही उसको अपनी पकड़ में ले लिया।
पहला धक्का।
उसके चेहरे पर पीड़ित होने वाले भाव!
“योर चूत इस सो हॉट...”
“ओफ़्फ़्फ़...” लतिका अपनी आँखे बंद किए हुए, और अपने होंठों को भींच कर बोली।
अपनी सुहागरात में मैं अपनी पत्नी को जी भर कर भोगना चाहता हूँ! मैं उसको वो सुख देना चाहता था, जिसका उसको अधिकार था। मैंने लतिका के नितम्बों को पकड़ा, और प्राकृतिक सम्भोग की प्राचीनकाल से चली आ रही लयबद्ध गति पकड़ ली। जोश तो इस समय बहुत था, क्योंकि लतिका को हमारे विवाह का परम सुख देने की इच्छा बड़ी थी मन में। कुछ ही देर में प्रबल धक्कों के साथ मेरा लिंग लतिका की योनि में तेजी से अंदर बाहर होने लगा।
“ओह लतिका! आई लव यू... यू आर माइन...! आई विल फिल यू... ओह्ह्ह्ह! आह्ह्ह्ह!”
मैंने अपने मानकों के हिसाब से ही देर तक सम्भोग करना जारी रखा। लतिका के मुँह से आनंद की आवाजें निकल रही थीं। कुछ ही देर में उसको फिर से ओर्गास्म पर पहुँचने की अनुभूति होने लगी। आँखें बंद किए हुए, और खुले हुए मुख से वो फिर से अपने चरम सुख का आनंद लेने लगी। मैंने उसके शरीर की कँपकँपी को महसूस किया... अच्छा लगा कि उसको मज़ा आ रहा था। लतिका के चेहरे पर आनंद के भाव थे... कुछ ही समय में दो दो ओर्गास्म का मज़ा! उधर मेरा धक्के लगाने का सिलसिला कायम रहा। मेरे हर धक्के के साथ लतिका का पूरा शरीर ताल मिला कर हिल रहा था। मेरा खुद का भी चरम पहुँचने वाला था और लतिका का ओर्गास्म समाप्त होते होते मेरा खुद का भी शुरू हो गया। पहला स्खलन बहुत ही तीव्रता से आया - न जाने क्या कह्सूस किया लतिका ने, कि उसने मुझे कस कर आलिंगनबद्ध कर लिया! फिर एक के बाद एक, कर के कई पिचकारियों में मेरा वीर्य लतिका की कोख के अंदर तक भर गया।
स्खलन तो हो गया, लेकिन उसकी योनि के अंदर इतनी बढ़िया... इतनी मीठी अनुभूति थी कि स्खलन होने के बाद भी उसके अंदर से निकलने का मन नहीं हुआ! इसलिए मैं ढेर हो कर उसके ऊपर ही गिर गया और सुस्ताने लगा। उधर लतिका मेरे शरीर के नीचे दबी हुई, अपने हर अंग में एक मीठा सा दर्द महसूस कर रही थी।
मैंने यूँ ही बदमाशी कर के उसके एक चूचक को हल्का सा दबाया, तो उसको लगा कि जैसे वहाँ से एक ज्वालामुखी फट पड़ा हो... ऐसी आनंददायक पीड़ा! उसके गले से एक मीठी लेकिन छोटी सी कराह निकल गई। लतिका ने खुद को थोड़ा व्यवस्थित किया और अपने एक चूचक, मेरे मुँह से स्पर्श कराने लगी। मुझे किसी अन्य संकेत की आवश्यकता नहीं थी। मैंने सहर्ष उस चूचक को अपने मुँह में लिया और उसको चूसने और चुभलाने लगा।
“जानू मेरे,” वो बड़े प्रेम से बोली, “ये सॉफ्ट हो कर भी अच्छा महसूस होता है!”
मैंने कुछ कहा नहीं, बस उसके स्तन को पीते हुए थोड़ा मुस्कुराया।
“बीइंग मैरिड इस लवली...!” वो बोली।
मैंने उसके स्तन को मुँह में लिए हुए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“... स्पेशियलि टू अ पर्सन यू लव...” उसने आगे जोड़ा।
मैंने कुछ नहीं कहा। बस लतिका के ऊपर चढ़ कर उसके स्तनों को पीता रहा। यह करते हुए मुझे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
हमारी सुहागरात के प्रथम संसर्ग की समाप्ति के आफ्टर-ग्लो में लतिका कुछ देर तक अपने शरीर में होने वाली मीठी मीठी पीड़ा का आनंद लेती रही, और मेरे सर के बालों से खेलती रही। उसको एक अभूतपूर्व अनुभूति हो रही थी - उसका शरीर थक गया था, लेकिन मन पूरी तरह से तरोताज़ा था। मैं भी थका नहीं था, लेकिन लतिका की पनाह में ऐसा सुख मिला था कि मैं सो गया था। जब उसने मुझे पूरी तरह से बेसुध हो कर सोते हुए देखा, तो वो बिस्तर से उठ खड़ी हुई। उसको नींद नहीं आ रही थी। वो अपने इस नए अनुभव का पूरा आनंद लेना चाहती थी, और उसके अनूठे आनंद को निद्रा की बेसुधी में गँवाना नहीं चाहती थी। उसने अंगड़ाई ली और अपने आस पास देखा। आस पास चुप्पी सधी हुई थी; बस नीचे से लोगों की बातचीत और चहल पहल की आवाज़ आ रही थी।
सब सामान्य लग रहा था, लेकिन यूँ बैठी बैठी वो बोर हो रही थी।
“अमर,” उसने मुझको बहुत हल्के से हिला कर जगाया, “उठो न!”
“उम्?” मैं चौंक कर उठा, “सो गया था क्या?”
“हाँ,” वो हँसती हुई बोली, “हनीमून में कोई सोता है क्या?”
“हनीमून नहीं मेरी रानी, सुहागरात!”
“हाँ... वोही!”
“क्या करता? तुमने इतना सुख दिया कि मैं सो गया...”
वो बिस्तर पर वापस आती हुई बोली, “तो फिर?”
मैं कुछ कहता कि मेरी नज़र टेबल पर पड़े देसी आम पर पड़ी! तुरंत ही मन में एक शैतानी प्लान दौड़ गया।
“आओ मेरी जान... आम खिलाता हूँ!”
लतिका ने थोड़ा अलग समझा, “खिलाता हूँ, या खाता हूँ?”
उसको लगा कि मैं उसके स्तनों को ‘आम’ कह कर बुला रहा हूँ।
“तुम्हारे वाले बाद में खाऊँगा... लेकिन, पहले ये वाले [मैंने आमों की तरफ इशारा करते हुए कहा] खिलाऊँगा!”
“ओह! हा हा! ओके! यह भी सही!”
अगर किसी ने देसी आम खाये हों, तो उनको पता होगा कि भले ही आम एक ही पेड़ से आये हों, हर आम की सीरत दुसरे से पूरी तरह भिन्न होती है। कोई खट्टा होता है, तो कोई मीठा-खट्टा, या फिर कोई मीठा। सभी रस से भरे होतें हैं, और सभी की त्वचा पतली होती है कि अगर आवश्यकता से अधिक दबाव लगाओ, तो तुरंत फ़ट जाता है। यह सब बातें मुझे पता थीं लेकिन लतिका को नहीं।
मैंने लतिका को मेरी गोद में सर रख कर लेट जाने को कहा और उसको देसी पके हुए आमों का रस पिलाने लगा। पहले आम की ढेंपी (डंठल) तोड़ कर उसकी चोपी (आम रस से पहले निकलने वाला चिपचिपा, पारदर्शी रस) निकालनी होती है। अगर ऐसा न करें, तो गले में अंदर खुजली होने लगती है; कई लोगों को एलर्जी रिएक्शन हो जाता है और चेहरे पर फ़फ़ोले निकल आते हैं। कुछ भी हो, कम से कम हनीमून तक लतिका को ऐसा कुछ भी नहीं होने देना चाहता था। जब यह दोनों काम हो गए, तब मैं एक आम को दबा कर लतिका को आम का रस पिलाने लगा। लतिका ने पहली बार देसी आम का आनंद उठाया था - उसका स्वाद मिलते ही उसकी आँखें आश्चर्यजनक आनंद में चौड़ी हो गईं।
“कैसा है?” मैंने पूछा।
उत्तर देने से पहले लतिका ने कई बार अपने होंठों को चाटा - उसकी अदा इतनी क्यूट थी कि मैं उसका मुँह चूम लेता। वो बाद में! फिलहाल मैंने स्वयं को ज़ब्त किया।
“वाओ! वंडरफुल!”
“गुड,” मैंने कहा और उसको आमरस पिलाता रहा।
एक आम समाप्त होने पर मैंने पूछा, “एक और?”
उसने पूरे उत्साह से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
तो पहले की ही तरह दूसरे आम का भी रस उसको पिलाने लगा।
देसी आम छोटे छोटे होते हैं। उनकी गुठली और फल का अनुपात सत्तर प्रतिशत के आस पास रहता है। लेकिन अच्छी बात है कि गुठली भी देर तक चूसी जा सकती है। खैर, दूसरा होने के बाद तीसरा आम भी पिलाना शुरू किया। इस बार मेरा शैतानी दिमाग चलने लगा। मैंने थोड़ा ज़ोर से दबाया और बस!
आम का छिलका कई जगहों से फ़ट गया और रसीला आमरस विस्फोट की तरह निकल कर उसके शरीर पर विभिन्न स्थानों पर जा गिरा। मैंने नाटक करते हुए उसके सीने, स्तनों, पेट जैसे स्थानों पर भी रस गिरा दिया। रस पीते हुए उसके होठों के इर्द-गिर्द वैसे भी मीठा खट्टा आमरस लगा हुआ था। अब तसल्ली से अपनी योजना को गति दी जा सकती थी।
“अरे अरे!” अपने शरीर आमरस गिरते हुए महसूस कर के लतिका बोली, “व्हाट अ मेस...”
“मेस नहीं, रानी! रस... रस!”
“आपका प्लान था न ये?” उसने हँसते हुए कहा।
“नहीं,” मैंने कहा और उसकी योनि को भी रस से सराबोर कर दिया।
“हा हा... अब आप ही ये सब साफ़ कीजिए,” वो बोली, “पूरी बॉडी चिपचिपी हो जाएगी अभी! और नहाने के लिए नीचे जाना पड़ेगा!”
“हाँ, और हमारे चेंज कपड़े भी यहाँ नहीं हैं!”
“लवली!” वो मुस्कुराई, और मेरी गोदी में उछल कर मेरे आलिंगन में लिपट गई।
अब मेरे शरीर पर भी आमरस लिपट गया था।
अगले आधे घंटे तक हम दोनों एक दूसरे के शरीर से आमरस चाट चाट कर छुड़ाते रहे, और जब हम दोनों के ही शरीर एक संतोषजनक अवस्था साफ़ हो गए, तब हम वापस एक तगड़े सम्भोग में लिप्त हो गए। इस बार हम दोनों ही देर तक मुकाबले में रहे। जब मेरा स्खलन हुआ तब तक आराम से दस बारह मिनट बीत गए थे।
ओर्गास्म का आनंद पा कर मैंने लतिका को अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “नाऊ, दीस मैंगोज़...”
“हा हा हा!” वो हँसते हुए बोली, “लाइक फ़ादर, लाइक सन...”
*
हमारे दूसरे सम्भोग के कोई पौने घंटे बाद दरवाज़े पर खटखटाहट हुई।
तब तक हम दोनों एक और राउंड सेक्स करने के लिए तैयार हो चुके थे।
“माँ?” मैंने पूछा।
“हाँ,” अम्मा की आवाज़ आई।
मैंने बिस्तर से उठ कर कमरे का दरवाज़ा खोला।
“अम्मा,” कह कर मैं उनसे लिपट गया, “आई लव यू!”
“लव यू टू बेटे,” उन्होंने हँसते हुए कहा, “मैंने डिस्टर्ब किया क्या?”
“नहीं अम्मा,” मैंने कहा, “आप जब चाहें हमारे कमरे में आ सकती हैं!”
“नहीं बाबा! मुझे नहीं बनना कबाब में हड्डी...” अम्मा हँसते हुए बोलीं, “तुम दोनों को खाने के लिए बुलाने आई थी... जल्दी से तैयार हो कर आ जाओ!”
“अम्मा,” लतिका बोली, “लेकिन हमारे स्पेयर कपड़े ही नहीं हैं यहाँ! चेंज कैसे करें?”
“ओह... अच्छा रुको कुछ देर! ले कर आती हूँ!”
“माँ?” मैंने कहा।
“हाँ बेटे?”
“वो बाद में... अभी कुछ देर हमारे पास बैठिए न!”
अम्मा बिस्तर पर बैठती हुई बोलीं, “बोल बेटे? क्या हो गया?”
“हमको दूधू पीना है!” मैंने कहा और उनकी ब्लाउज के बटन खोलने लगा।
“क्या? हा हा... बिलकुल बच्चों जैसी हरकतें करता है अभी भी!”
“हमको मतलब हम दोनों को...” उनके स्तन पर होंठ जमाते हुए मैंने कहा।
“आ जा तू भी पुचुकी... मेरा दूध पीने से क्या शर्मा रही है?”
लतिका भी मुस्कुराती हुई अपनी माँ के स्तन से जा लगी। कुछ देर शांति से हम दोनों स्तनपान करते रहे।
“जल्दी ही मेरी पुचुकी का दूधू पीने वाले नन्ने मुन्ने आ जाएँगे...” अम्मा ने जैसे भविष्य का कोई सपना देखते हुए कहा।
“इतनी जल्दी नहीं अम्मा,” मैंने स्तनपान रोक कर कहा, “तीन साल तक नहीं!”
“क्यों?”
“अभी मेरी बीवी छोटी है माँ... और पढ़ना चाहती है!”
“ओह, फिर ठीक है!”
कुछ और देर स्तनपान के बाद अम्मा बोलीं, “बस, अब खम्म हो गया।”
“इतनी जल्दी माँ?” मैंने निराश होते हुए कहा।
“ये शिकायत अपनी माँ और अपने पापा से करना,” अम्मा ने हँसते हुए कहा, “बढ़िया समधी मिले हैं! अपनी ही समधन का दूध पीते हैं दोनों!”
“हाँ! शिकायत तो करनी पड़ेगी! मेरे हक़ का दूधू पी गए दोनों!”
मैं खुद मेरी बात पर हँसने लगा और अम्मा भी; लतिका अम्मा से लिपट कर हँसने लगी।
फिर वो बिस्तर से उठती हुई बोलीं, “तुम्हारे कपड़े लाती हूँ... चेंज कर के नीचे आ जाओ! ठीक आछे?”
“माँ,” मैंने अम्मा से अनुनय करते हुए कहा, “माँ को भी भेज दीजिएगा...”
“बहू का भी दूधू पीना है?”
मैंने और लतिका ने उत्साह में ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“दोनों बिलकुल ही बच्चे हैं,” अम्मा ने हँसते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गईं।
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