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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Kala Nag

Mr. X
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भाई - आपके पढ़ने के लिए बहुत है।
वैसे भी कहानी का अंत सभी को बहुत पहले से ही पता था। :)
मौका निकाल कर "श्राप" भी पढ़ें! उस पर अपडेट आएँगे अब।
भाई कहानी आपकी है हम ना पढ़ें ऐसा तो हो नहीं सकता l मैं अपनी कहानी को जल्द ही निपटाने की कोशिश में हूँ l
जैसे ही खत्म हो जाएगा तब इत्मीनान से कुछ दिन पढ़ने में ही बिता दूँगा
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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भाई कहानी आपकी है हम ना पढ़ें ऐसा तो हो नहीं सकता l मैं अपनी कहानी को जल्द ही निपटाने की कोशिश में हूँ l
जैसे ही खत्म हो जाएगा तब इत्मीनान से कुछ दिन पढ़ने में ही बिता दूँगा
भाई आप अपनी कहानी खत्म करिए तो उसे हम शुरू करें पढ़ना। इतनी आगे बढ़ गई है की अगर जो कॉमेंट किया तो फोर वापस से उस पेज पर पहुंचना मुश्किल हो जायेगा।
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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कथानक के २०० वें पृष्ठ/ पायदान पर पहुंचने कि कथाकार एवं सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बहुमान...
 
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avsji

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भाई कहानी आपकी है हम ना पढ़ें ऐसा तो हो नहीं सकता l मैं अपनी कहानी को जल्द ही निपटाने की कोशिश में हूँ l
जैसे ही खत्म हो जाएगा तब इत्मीनान से कुछ दिन पढ़ने में ही बिता दूँगा

अच्छा है! शीत-कालीन अवकाश में समय बिताने के लिए आपके लिए मेरी कहानी है न! :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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कथानक के २०० वें पृष्ठ/ पायदान पर पहुंचने कि कथाकार एवं सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बहुमान...

भाई जी, कहानी ख़तम हो गई है।
अब बस पाठकों से बात-चीत चल रही है।
 

DesiPriyaRai

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नींव - पहली लड़की - Update 2

एक दिन रचना मेरे घर आई, और हमने अपना अध्ययन सत्र शुरू किया। हमने अपना होमवर्क किया, और अगले दिन के लिए लेसन पढ़ लिया। आज यह सब बहुत जल्दी ही हो गया था, और अचानक ही, हमारे पास करने के लिए कुछ नहीं था। रचना अपने घर जाने के बजाय टालमटोल करने लगी।

ऐसा नहीं है कि मुझे उसका साथ पसंद नहीं था। मैं भी चाहता था कि वो जितना संभव है, मेरे साथ रहे।

“क्या तुम कुछ खेलना चाहती हो?” मैंने कुछ देर बाद पूछा।

“जैसे क्या?”

“लूडो?” मैंने सुझाव दिया।

उसने सर हिलाया, “ठीक है।”

हम कुछ देर तक लूडो खेले, लेकिन यह चार लोगों के साथ बैठ कर खेलने जैसा मजेदार नहीं था। बस एक काम चलाऊ खेल था। हम लगभग आधे घंटे तक खेले, और फिर जल्दी से ऊबने लगे। अगर उसको रोकना का कोई बहाना नहीं है, तो जाहिर सी बात है कि उसे अपने घर के लिए निकल जाना चाहिए। मैंने आह भरी।

“क्या हुआ?” उसने पूछा।

“ऊब गया यार! मेरा मतलब है, लूडो खेलना मजेदार है, लेकिन एक दो बार ही!”

“हाँ... और तुम्हारे पास टीवी भी नहीं है।” उसने कहा।

मेरे माँ और डैड ने टीवी नहीं खरीदने का फैसला किया - हमारे पास मनोरंजन के लिए केवल एक रेडियो और एक कैसेट प्लेयर था, और हम बस कभी कभार ही फिल्मों के लिए बाहर जाते थे, शायद साल में दो तीन बार।

“हाँ।” मैंने कुछ देर सोचा, “ठीक है, कुछ और है, जो तुम खेलना चाहती हो?”

“क्यों?” उसने इठलाते हुए पूछा।

“तुम्हारे साथ मुझे अच्छा लगता है!” में पूरी संजीदगी से कहा।

वो मुस्कुराई। उसने एक पल के लिए कुछ सोचा और फिर कहा, “अगर तुम चाहो तो हम कुछ नया खेल खेल सकते हैं।”

“क्या?” मुझे उत्सुकता हुई।

“तुम्हें वो दिन याद है जब तुम क्लास में लण्ड - लण्ड चिल्ला रहे थे?”

“मैं चिल्ला नहीं रहा था।” उस दिन को याद करके मुझे शर्म आ रही थी। मासूमियत एक अनमोल वस्तु है। जितना अधिक आप जानने लगते हैं, आप उतने ही अधिक जागरूक होते जाते हैं, और उतनी ही मासूमियत आप खोने लगते हैं।

“ठीक है ठीक है! अच्छा बाबा, तुम चिल्ला नहीं रहे थे।” उसने दाँत निपोरते हुए कहा।

“लेकिन तुम खेलने के बारे में क्या कह रही थी?”

“सोच रही थी कि क्या तुम मुझे अपनी छुन्नी से खेलने दे सकते हो?”

“क्या! क्या तुम पागल हो गई हो? माँ देखेगी, तो मुझे और तुम्हें मार डालेगी।”

“अमर, तुम डरते क्यों हो? तुम्हारी माँ अपनी पड़ोसी से बात कर रही हैं, और उनके लौटने में कुछ समय लगेगा।”

रचना की इच्छा! ऐसे कैसे मैं उसके सामने नंगा हो जाऊँ? मैं अनिश्चय से घबराया हुआ था और सबसे बड़ी बात, शर्मिंदा था। माँ और डैड के सामने नंगा होना एक बात है, लेकिन अपनी सहपाठिन के सामने कैसे?

“अच्छा,” उसने अपना मास्टरस्ट्रोक मारा, “अगर मैं तुम्हें अपना दूध (स्तन) देखने दूँ तो? क्या कहते हो?”

‘क्या सच में?’ मैंने सोचा! यह एक बड़ी साहसी बात थी। ऐसी बात आज तक किसी भी लड़की ने मुझसे नहीं कही थी।

“क्या!” मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि वो मुझे अपने स्तन दिखाने की बात कह रही थी।

रचना ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, “तुम मुझे नंगा देखना चाहती हो?”

“नहीं …” मैंने झूठ बोल दिया।

रचना ने मुँह बनाते हुए कहा, “तू झूठ बोल रहा है अमर।”

“नहीं!” मैंने विरोध किया। लेकिन आवाज़ में दम नहीं था।

“मैं साफ़ देख रही हूँ कि तुम झूठ बोल रहे हो ... तुम्हारी छुन्नी देखो - उसका आकार बढ़ रहा है!” उसने मेरी दशा का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।

“क्या …!” मैंने नीचे देखा; मेरे निक्कर के अंदर मेरा छुन्नू एक छोटा सा तम्बू बना रहा था। कोई भी देख कर समझ सकता था।

“बोलो फिर? तुम मुझे नंगी देखना चाहते हो, या नहीं?”

बात तो उसकी सोलह आने सही थी, “ठीक है, हाँ, ठीक है!” मैं बुदबुदाया।

“क्या ठीक है?” रचना ने खिंचाई करने है मधुरता से पूछा।

“देखना चाहता हूँ,” मैंने कहा, “तुमको नंगा!”

“हा हा हा! उसके लिए, माई डीयर फ्रेंड, तुम्हे पहले मुझको अपनी छुन्नी दिखानी होगी।”

मैंने कुछ कहा नहीं। क्या कहता? रचना ने अपना हाथ बढ़ाया। मेरे दोनों टाँगों पर निक्कर का निचला सिरा पकड़ कर उसने नीचे की तरफ खींच लिया। निक्कर के नीचे मैं कुछ भी नहीं पहनता था। मुझे लगता है कि रचना भी यह बात जान गई थी। अचानक ही मेरी साँसें तेज़ तेज़ चले लगीं - जैसे कि मैं कोई लंबी दूरी की दौड़ दौड़ कर आया था। मेरी दिल की धड़कन बहुत बढ़ गई थी। मुझे पक्का यकीन है कि वह मेरे दिल की धड़कन सुन सकती थी। निक्कर का बैण्ड मेरे पुट्ठों से होते हुए नीचे सरक आया और उसी के साथ मेरा लिंग भी उसको ‘सल्यूट’ करते हुए बाहर निकल आया। उसका रंग भी मेरे शरीर के रंग के जैसा ही था - गेहुँआ, चिकना और बिना बालों वाला! मेरा लिंग उसके सामने हिल रहा था, और मेरे दिल की हर धड़कन के साथ साथ स्पंदन कर रहा था। उस समय यह लगभग तीन इंच लंबा था, और यथासंभव स्तंभित था। ऐसा लग रहा था कि यह अपनी ही चमड़ी पर जोर दे रहा हो। नीचे, मेरे अंडकोष ऊपर की तरफ खिंचे हुए लग रहे थे। रचना ने मेरे अंडकोषों को अपने हाथ में लिया।

मैंने साँस छोड़ी और एक पल के लिए अपनी सांस रोक ली। जो भी कुछ हो रहा था, वो मेरे लिए बिलकुल अनोखा अनुभव था। रचना ने मेरे चेहरे की तरफ देखा, और अपने दूसरे हाथ से मेरा निक्कर पूरी तरह उतार दिया। अब मैं केवल शर्ट पहने बैठा था। मेरा लिंग मेरे पैरों के बीच खड़ा हुआ, लगभग काँप रहा था। मेरा लिंग ही क्या, मेरा पूरा शरीर ही काँप रहा था। और मेरी सांसें लगभग धौंकनी के जैसे चल रही थीं। उसने मुझे और मेरी नंगेपन को बड़ी दिलचस्पी से देखा। लगभग दो-तीन मिनट के मूल्यांकन के बाद, उसने अपना फैसला सुनाया,

“कितना सुंदर है।”

‘सुन्दर है!’

सुन्दर ऐसा शब्द है जो किसी भी पुरुष की मर्दानगी को चुनौती दे सकता है। और वैसे भी लिंग जैसे अंग के लिए ‘सुन्दर’ एक अनुचित शब्द लगता है। लेकिन जब यह शब्द कोई सुन्दर सी लड़की बोलती है, तो अच्छा लगता है। अपने लिंग की बधाई सुन कर जाहिर सी बात है, कि मुझे अच्छा लगा।

“यह अभी तक यह एक लण्ड (परिपक्व लिंग) नहीं बना है, लेकिन है बहुत सुंदर!”

“तुमको कैसे मालूम कि ये लण्ड नहीं बना?” मैं रचना की बात से आहत हो गया था, इसलिए मैंने विरोध करना शुरू कर दिया।

लेकिन उसने बीच में मुझे टोकते हुए कहा, “अमर, मैंने अपने डैडी को... कई बार देखा है। जब वो रात में मेरी मम्मी को चोदते हैं - मेरा मतलब, मम्मी से प्यार करते है, तो कभी-कभी पानी पीने के लिए रसोई में नंगे ही आ जाते हैं। उनको नहीं मालूम, लेकिन मैंने उनको नंगा देखा है। मैंने उन्हें मम्मी की चुदाई करते देखा है। इसलिए मैं मुझे लगता है कि मैं दोनों को कम्पेयर कर सकती हूँ। तुम्हारा साइज़ डैडी के साइज़ का लगभग आधा है। लम्बाई में भी, और मोटाई में भी। डैडी का लण्ड बड़ा और ... बदसूरत भी! तुम्हारा छुन्नू छोटा और सुंदर है!”

रचना ने पूरी ईमानदारी से अपनी बात रखी। बात तो ठीक थी - मेरा शरीर अभी भी लड़कों जैसा ही था। पुरुषों का शरीर बढ़ जाता है और भर जाता है। तो ठीक है - मेरा भी वैसे ही हो जायेगा।

“थैंक यू!” मैंने कहा।

“मैं ... मैं इसको छू लूँ?”

“क्या?” मुझे समझा नहीं कि रचना क्या छूना चाहती है।

“तुम्हारी छुन्नी”

“ओके! लेकिन, यह साफ नहीं है।”

माँ ने मुझे अपनी छुन्नी की अच्छी देखभाल करना सिखाया था। उन्होंने मुझे पेशाब करने का ‘सही तरीका’ सिखाया था और मुझे यह भी समझाया था कि उसके बाद इसे साफ करना चाहिए। लेकिन जब मैं स्कूल में होता हूँ, तब इस सलाह पर अमल करना संभव नहीं है। और चूँकि लड़के तो लड़के होते हैं - वे हमेशा वह नहीं करते जो उनकी माँ उन्हें करने के लिए कहती हैं।

“कोई बात नहीं!”

रचना ने कहा और फिर उसने मेरे लिंग को पकड़ लिया। उसने इस बार पूरी तरह से उसकी जाँच की - उसने मेरे अंडकोष को भी पकड़ रखा था, और लिंग के साथ साथ उसकी भी नाप तौल कर रही थी। मैंने उसे सावधान रहने के लिए कहा, क्योंकि अधिक दबाने से वो मुझे चोट पहुँचा सकती थी। उसने बहुत सावधानी से, बड़ी कोमलता से मेरे नाज़ुक अंगों की पड़ताल करी। मुझे खुद भी उसकी उँगलियों की छुवन बहुत अच्छी लग रही थी! उसने मेरे लिंग की पुष्टता और दृढ़ता का परीक्षण करने के लिए हल्के से दबाया, और फिर जैसे संतुष्ट हो कर, उसने मेरे लिंग के सिरे को पकड़ कर हल्का सा हिलाया और कहा,

“बहुत सुन्दर है! और मुझे पसंद भी है।”

“हम्म?”

“ये, लल्लूराम!” इस बार उसने मेरे लिंग के सिरे को को अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लिया, और उसे थोड़ा सा हिलाया, और कहा, “मुझे तुम्हारी छुन्नी पसंद है।”

“मुझे तंग मत करो।” मैंने विरोध किया।

“अरे! कहाँ तंग कर रही हूँ! सच में अमर, तुम नंगे हो कर इतने सुंदर लगते हो, मुझे तो पता ही नहीं था।”

मैं इस पूरे घटनाक्रम के दौरान आश्चर्यजनक तरीके से उत्साहित हो रहा था। मुझे मालूम नहीं है कि वह यौन उत्तेजना थी या केवल रचना के सामने नग्न होने का रोमांच। लेकिन उस वक्त मेरे लिंग में काफी खून प्रवाहित हो रहा था। परिणामस्वरुप, मेरा लिंग झटके खाने लगा। रचना ने यह देखा,

“अरे देखो तो!” वह मुस्कुराई, “ये भी खुश है अपनी बढ़ाई सुन कर!”
नींव - पहली लड़की - Update 3

रचना ने फिर से मेरे लिंग को फिर से अपने हाथ में पूरी तरह से पकड़ लिया और अपने हाथ को पीछे की तरफ थोड़ा सा खिसकाया। ऐसा करने से मेरा शिश्नमुण्ड थोड़ा दिखने लगा। मेरे लिंग का स्तम्भन बहुत मजबूत नहीं था; बच्चों में होने वाले स्तम्भनों से थोड़ा अधिक ही होगा - बस। उसको एक ‘क्यूट इरेक्शन’ कहा जा सकता है। उधर रचना पूरे उत्साह के साथ आज हाथ आए हुए लिंग का पूरा मुआयना कर लेना चाहती थी। उसने एक बार फिर से अपने हाथ को पीछे की तरफ धक्का दिया। इस बार लिंग मुण्ड पूरी तरह से उजागर हो गया। उसने हो सकता है कि पहली बार किसी लिंग को इतने करीब से देखा हो, लेकिन यहां तक कि मैंने ख़ुद भी पहली बार अपने इस अंग की बनावट पर इतने करीब से ध्यान दिया - उसका रंग वैसा था जैसे किसी गोरी चमड़ी पर बैंगनी-गुलाबी रंग मिला दिया गया हो! एक दिलचस्प रंग! और भी एक नई बात महसूस हुई - इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मुझे पहली बार नितांत नग्नता महसूस हुई। यह पूरा अनुभव ही अलग था - बिलकुल अनूठा। लिंग मुण्ड के पीछे कुछ मैल जैसा जमा हुआ था। रचना ने मुझे वो दिखाया और कहा कि नहाते समय मैं स्किन को ऐसे ही पीछे कर के उसको साफ़ कर लिया करूँ। उसकी बात का कोई जवाब देते बन नहीं रहा था। रचना एक दोस्त थी, एक सहपाठी थी, और संभव है कि वो मुझे स्कूल में सभी की हँसी का पात्र भी बना सकती थी। लेकिन फिर भी, न जाने क्यों, मुझे उसके साथ सुरक्षित महसूस हो रहा था करती थी।

“मम्म…” रचना प्यार से मुस्कुराई, “यह बहुत प्यारा है! समझे बुद्धूराम?”

मेरी तन्द्रा टूटी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ! रचना ने जितना मन चाहा, मेरे लिंग की अच्छी तरह से छानबीन करी और फिर अंत में उसको छोड़ दिया। वह यह देख कर थोड़ी निराश तो ज़रूर थी कि उसका आकार अभी उतना नहीं बढ़ पा रहा था, जितना कि उसके पिता का होता था, वो इस बात को ले कर बहुत खुश भी थी कि आज उसने वो काम किया है, जिसको समाज द्वारा निषिद्ध माना जाता था। मैं अभी तक कुछ भी करने, कुछ भी कहने की अवस्था में नहीं आ पाया था - माँ या डैड के सामने नंगा होना, और रचना के सामने नंगा होना मेरे लिए बिलकुल अलग बात थी।

रचना ने मुझे मुस्कुराते हुए, अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। मेरे दिल की धमक और साँसों की धौंकनी अभी तक चल रही थी। उसको समझ आ गया कि मुझ बुद्धू से कुछ नहीं होने वाला है, और जो भी करना है उसको ही करना है। रचना ने आगे जो, किया वह मेरे लिए बिलकुल अविश्वसनीय था। अपने वादे के मुताबिक उसने अपनी फ्रॉक का हेम पकड़ा, और उसको उठाते हुए, अपने सर से हो कर अपने शरीर से उतार लिया। अगर माँ इस समय मेरे कमरे में आ जातीं, तो हमारे साथ न जाने क्या करतीं। खैर, मैंने देखा कि उसने अपने फ्रॉक के नीचे एक सफेद रंग की शमीज़ और एक होज़री वाली चड्ढी पहन रखी थी। उसने अपना फ्रॉक कुर्सी पर टांग दिया, और हंसती हुई उसने अपनी फ़्रॉक की ही तरह अपनी शमीज़ को भी उतार दिया। अब रचना मेरे सामने लगभग नंगी खड़ी थी। मेरे सामने जो नज़ारा था, उसका ठीक से बयान करना मुश्किल है। आज पहली बार मैंने माँ के अलावा किसी और के स्तन देखे थे! साहित्य में सुन्दर स्त्रियों के स्तनों को अक्सर ही ‘चक्रवाक पक्षियों’ के जोड़े की उपमा दी जाती है। माँ के स्तनों को ‘चक्रवाक पक्षियों’ का जोड़ा कहा जा सकता है, लेकिन रचना के स्तन उनके जैसे नहीं थे। सबसे पहली बात, मेरे आंकलन के विपरीत, रचना के स्तन, माँ के स्तनों से छोटे थे। माँ के स्तन गोलाकार थे, लेकिन रचना के स्तन शंक्वाकार थे। उसकी त्वचा बिलकुल साफ़ थी, बिना किसी दाग़ के। उसके चूचक मटर के दाने जितने बड़े थे और उनके गिर्द एरिओला का आकार एक रुपये के नए सिक्के से अधिक नहीं था। रचना गोरी तो थी ही, लिहाज़ा, उसके चूचक और एरिओला की रंगत गहरे नारंगी रंग लिए हुए थी - लगभग ‘एम्बर’ रंग जैसी। रचना मेरे सामने नंगी खड़ी हुई थी और मुझे अपने स्तनों को बहुत करीब से देखने दे रही थी। मुझे यह सोच कर बहुत आश्चर्य हुआ कि इतने सुंदर अंग उसके लिए इतने असुविधाजनक कैसे हो सकते हैं! यह लगभग अविश्वसनीय बात थी! सच कहूँ तो अपनी नग्नता में रचना बिलकुल परी जैसी लग रही थी... बेहद खूबसूरत!

उसकी दिव्य सुंदरता को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया! मैंने नर्वस हो कर अपने होंठ चाट लिए। मैंने महसूस किया कि मैं अपने खुद के नंगेपन की वजह से नहीं, बल्कि रचना के नंगेपन के कारण घबराया हुआ था। आत्मविश्वास से लबरेज़ सुंदरता का किसी मेरे जैसे निरीह मनुष्य पर ऐसा प्रभाव पड़ सकता है। वह बहुत खूबसूरत लग रही थी! मैं उठा और उसके करीब आ गया : इतना करीब कि वह मेरी सांसों को अपने चूचक पर महसूस कर सकती थी। मेरे हाथ काँप रहे थे, और मेरी साँसें हांफती हुई सी आ रही थी। रचना अपना ‘अंग प्रदर्शन’ बंद कर दे, उसके पहले मैं उसके चूचक को मुँह में ले लेने के लिए ललचा गया था। मैंने अपना सिर थोड़ा नीचे किया और अपने होंठों को उसके चूचक पर धीरे से फिराया।

“पी लो,” उसने फुसफुसाते हुए मुझसे कहा।

‘हम्म्म’ तो रचना को कहीं जाने की कोई जल्दी नहीं थी। अब मैं थोड़ा आश्वस्त हो गया। रचना भी चाहती थी कि मैं उसके चूचकों को चूसूँ और पी लूँ। मैंने अपना मुंह खोला और उस एक चूचक को अपने होंठों में ले कर अपनी जीभ को उसके एरिओला के चारों ओर घुमाया। रचना को यह नहीं मालूम था कि मुझे स्तनों को चूसना और पीना अच्छी तरह से आता है। मैंने रचना के चूचक को अपने मुँह में भर कर चूसा, और जितना ही मैं उसको चूसता, वह उतना ही कड़ा होता जाता। वैसे मुझे मालूम था कि उसका चूचक ठीक इसी तरह से व्यवहार करेगा। माँ के चूचक भी ठीक इसी तरह व्यवहार करते थे। मैंने उसका स्तन पीते हुए उसके चेहरे की ओर देखा और पाया कि उसने अपनी आँखें बंद कर ली हैं। रचना ने कहा था कि लड़कियों में छुन्नी नहीं होता। मुझे उत्सुकता हुई और मैंने अपना हाथ उसके पेट के नीचे उसकी जाँघों के बीच फिराया। जैसे ही मैंने अपनी उँगलियाँ उसके जाँघों के जोड़ पर फिराया, मुझे उसकी कही हुई बात पर यकीन हो गया। वाकई, रचना के पास पास लिंग नहीं था!

मेरे छूने का रचना पर एक नया प्रभाव पड़ा - वो मेरे कान में हलके से कराह उठी, तो मैंने अपना हाथ वहां से हटा लिया। वह मुस्कुराई और उसने जल्दी से अपनी चड्ढी भी नीचे सरका दी। मेरे सामने पूरी तरह से नंगी होने वाली पहली लड़की! उस क्षण से पहले मैं यही सोचता रहा था कि लड़के और लड़कियों में केवल स्तनों का ही फर्क होता है, लेकिन जो मैं देख रहा था, वो मेरे लिए बिलकुल नया था। हमारे शरीरों में इतनी समानता थी, लेकिन फिर भी बहुत सारी असमानता भी थी। हमारे बीच इतना अंतर देखकर मैं चकित रह गया था। उसकी कमर क्षेत्र की बनावट मेरे जैसी ही थी, लेकिन अलग भी थी।

“तुम इससे सूसू कैसे करती हो?” छुन्नी की जगह एक चीरे को देखते हुए मैंने अविश्वसनीय रूप से पूछा।

“बैठ कर... ऐसे।” उसने बैठ कर मुझे दिखाया।

मैंने दिलचस्पी से यह देखा। बात तो समझ में आ गई, लेकिन फिर भी, मुझे ऐसा लगा जैसे उसे एक महान अनुभव से वंचित कर दिया गया हो। मेरा मतलब, हम लड़कों को देखो - कहीं भी अपनी गन निकाल कर गोली चला देते हैं! उस सुख का मुकाबला इस चीरे से तो मिलने से रहा! और तो और, आप अपने छुन्नू से सूसू करते हुए दीवार पर चित्र भी बना सकते हैं। काश, लड़कियों को इस तरह का मजा मिल पाता - मैंने सोचा। लेकिन एक बात तो थी - रचना की योनि का दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। उसके स्तनों की ही भाँति उसकी योनि को देखने के लिए मैं उसके पास आ गया। रचना बैठी हुई थी, और मैं उसकी योनि के सामने आ कर लेट गया। उसकी योनि पर हल्के हल्के, कोमल, रोएँदार बाल थे। मैं उसके इतना करीब था कि मैं व्यावहारिक रूप से उसके बाल गिन सकता था। मुझे बड़ी नाइंसाफी लगी - रचना के बाल थे और मेरे नहीं! उसकी योनि की होंठनुमा संरचना इतनी आकर्षक लग रही थी कि मेरा मन हुआ कि उसको चूम लूँ। लेकिन सूसू करने वाली जगह को चूमा थोड़े ही जाता है!

“इसको क्या कहते हैं?”

“उम्म्म, योनि?”

“हम्म! लण्ड जैसा कोई वर्ड नहीं है इसके लिए?”

“है। लेकिन सुन कर बहुत ख़राब लगता है।”

“क्या है? मुझे बताओ न, प्लीज!”

“चूत कहते हैं!”

“ओह!”

“लेकिन तुम अच्छे लड़के हो। तुम यह वर्ड मत यूज़ करना।”

“ठीक है!”

मैंने देखा कि रचना की योनि के ऊपर वाले हिस्से पर ही बाल थे, उसकी चूत के दोनों होंठों पर कोई बाल नहीं थे। मैं और करीब आ गया। एक गहरी साँस भरने पर मुझे उसके साबुन की महक आने लगी। मन तो बहुत था, लेकिन मैंने उसके गुप्तांगों को छुआ नहीं, क्योंकि मेरे पास ऐसा करने की हिम्मत नहीं हुई। खैर - यह एक बड़ा दिन था मेरे लिए। आज स्त्री और पुरुष के लिंगों के बीच के अंतर का मेरा पहला परिचय था!

“क्या तुमको मालूम है कि छुन्नी किस काम आती है?” उसने पूछा।

“सूसू करने के लिए! और क्या?”

“नहीं, तुम बेवक़ूफ़ हो! केवल सूसू करना ही इसका काम नहीं है!” कह कर वो ठठाकर हँसने लगी।

उसकी हँसी सुन कर अगर माँ आ जातीं, तो न जाने क्या क्या हो जाता! मैं उस उम्र में खुद को सर्वज्ञाता समझता था। इसलिए कोई मुझे ‘बेवक़ूफ़’ कहे, तो मुझे गुस्सा आना तो लाज़मी है!

“अच्छा! तो बुद्धिमान जी, आप ही मुझे बताएं कि इसका क्या काम है?”

“ज़रूर! तुम्हारी छुन्नी यहाँ जाती है…” उसने अपनी योनि के चीरे की तरफ़ इशारा किया।

“क्या? क्या सच में? क्यों?”

“हाँ। बिलकुल! जब ये यहाँ जाता है, तो बच्चे पैदा होते हैं।”

“क्या? बच्चे इस तरह से पैदा होते हैं?”

“हाँ! आदमी अपना बीज अपनी छुन्नी के रास्ते से औरत की योनि में बो देता है। औरत उस बीज को नौ महीने अपनी कोख में सम्हाल कर रखती है। और नौ महीने बाद बच्चा पैदा करती है। तुमको क्या लगा कि और किस तरह से पैदा होते हैं?”

मुझे क्या लगता? मुझको तो इस बारे में कोई भी ज्ञान नहीं था। लेकिन रचना से अपनी हार कैसे मान लूँ?

“तुम को कैसे मालूम?”

“मैंने मम्मी डैडी को ऐसा करते हुए देखा है।”

“वे दोनों ऐसा करते हैं?”

“हाँ!”

“मतलब तुम्हारे डैडी तुम्हारी मम्मी की कोख में अपना बीज बोते हैं?”

“हाँ!”

“लेकिन फिर तुम उनकी इकलौती संतान कैसे हो? अभी तक उनको कोई और बच्चे क्यों नहीं हुए?”

बात तो मेरी सही थी। मेरे तार्किक बयान ने रचना को पूरी तरह से निहत्था कर दिया। यह सच था - रचना अपने घर में इकलौती संतान थी। और अगर उसने जो कहा वह सही था, तो उसके और भाई-बहन होने चाहिए। इसलिए, मेरे हिसाब से बच्चे रचना के बताए तरीके से तो नहीं पैदा होने वाले! मुझे यह असंभव लग रहा था। वैसे भी उसकी योनि के चीरे में कोई जगह ही नहीं दिख रही थी, और न ही कुछ अंदर जाने की जगह! मुझे कोई ऐसा रास्ता नहीं दिख रहा था कि जिसमें से उसकी छोटी उंगली भी अंदर जा सके। छुन्नी तो बहुत दूर की बात है।

मुझ अनाड़ी को यह नहीं मालूम था कि योनि भेदन के लिए लिंग का स्तंभित होना आवश्यक है। बेशक, रचना को मुझसे कहीं अधिक ज्ञान था, लेकिन उसके खुद के ज्ञान और समझ की सीमा थी। इसलिए, जैसा कि अक्सर होता है, अच्छी तरह से जानने के बावजूद, रचना मेरे तर्कों का विरोध नहीं कर सकी। मैं मूर्ख था - मुझे चाहिए था कि मैं रचना से कहूँ कि मैं उसकी योनि में प्रवेश करना चाहता हूँ। लेकिन अपनी खुद की मूर्खता में मैंने इतना बढ़िया मौका गँवा दिया। फिर भी, रचना के यौवन की मासूमियत की अपनी ही खूबी और अपनी ही मस्ती थी, और उसके दर्शन कर के मुझे बहुत ख़ुशी मिली।

बहरहाल, हमारी छोटी सी बहस ने हम दोनों को फिर से होश के धरातल पर ला खड़ा किया, और हमने झट से अपने अपने कपड़े पहन लिए। फिर उसने अपनी किताबें उठाईं और अपने घर चली गई। रास्ते में उसकी मुलाकात मेरी माँ से हुई।

“आंटी, मैंने अमर को दूध पिला दिया है।” उसने जाते जाते माँ से कहा।

मैंने जब उसको यह कहते सुना, तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ! क्या उसने सच में ऐसा कहा! रचना की हिम्मत का कोई अंत नहीं था!

“ठीक है बेटा, बाय!” मेरी माँ ने कहा और उसे विदा किया।
नींव - पहली लड़की - Update 4


“माँ…” रचना के जाते ही मैंने माँ को पुकारा। उनको मालूम था कि मुझे क्या चाहिए था।

“बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो …” मेरी माँ ने अपनी ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा, “और अब तो मुझे दूध भी नहीं आता है!”

“मैं क्या करूँ माँ,” माँ की गोदी में एडजस्ट होते हुए मैंने कहा, “आपका दूध पीना मुझे इतना अच्छा लगता है कि छोड़ना तो दूर, कभी छोड़ने की सोच भी नहीं पाता!”

माँ हँसने लगीं।

लेकिन आज का स्तनपान रोज़ के जैसा नहीं होने वाला था। मेरे मन में एक चोर बैठा हुआ था। आज से पहले मेरी माँ के स्तन मेरे लिए अमृत कलश के समान थे और मुझे सिर्फ उनमे भरे अमृत से ही सरोकार था, लेकिन आज मैं उन कलशों के बारे में भी जानना चाहता था। मेरा दिल अग्रिम प्रत्याशा से धड़क रहा था। माँ सोफे पर बैठ गई और मुझे दूध पिलाने के लिए उन्होंने मुझे अपना एक स्तन दे दिया - मैंने उत्सुकता से उनका चूचक लिया और उसको कुछ देर तक चूसता रहा। मेरे मुँह में रहते हुए माँ के चूचकों का बड़ा मन-भावन कायाकल्प होता - शुरू शुरू में उनका स्तम्भन होता, और वो थोड़े कड़े हो जाते, लेकिन धीरे धीरे उनका कड़ापन ख़तम हो जाता और वो मुलायम हो जाते। जब उनमे से दूध निकलता था, तो यह सब और भी आश्चर्यजनक होता। ख़ैर, स्तनपान करते हुए मैंने आगे जो किया वह कुछ ऐसा था जो मैंने पहले कभी नहीं किया। माँ आमतौर पर एक समय में केवल एक ही स्तन (जिससे वह मुझे दूध पिलाती थी) खुला रखती थीं, और दूसरा हमेशा अपने ब्लाउज या अपने पल्लू से ढका हुआ रखती थीं। आज मैंने ब्लाउज के उस हिस्से को हटा दिया जिसने माँ के दूसरे स्तन को ढक कर रखा हुआ था। फिर, मैं उस स्तन को अपने हाथ में लेकर सहलाने, दबाने लगा।

थोड़ी देर तक यह कार्यक्रम चलता रहा, फिर माँ ने मुझे अपने करीब, गले लगाते हुए कहा, “तुम्हें मेरे दूध पसंद हैं?”

“हाँ माँ!” चाहे कुछ हो, मैं माँ और डैड से झूठ नहीं बोल पाता था।

माँ हँसने लगीं। मैंने उनके दोनों स्तनों को एक-एक करके प्यार से चूमा, और सहलाया। माँ के दोनों चूचक कड़े हो गए थे। उन्होंने मुझे कुछ समय तक ऐसा करने दिया और फिर अपनी ब्लाउज के बटन वापस लगा दिए। फिर उन्होंने पूछा,

“क्या बात है बेटा? क्या हो गया?”

आश्चर्यजनक बात है न? बच्चों के व्यवहार में थोड़ा भी परिवर्तन आता है, तो माँ को ज़रूर मालूम पड़ जाता है।

“माँ, आई लव यू।”

“आई लव यू टू, बेटा। लेकिन बात क्या है?”

ऐसा लगता है कि माँ को मेरे मन के आर पार देखने की अद्भुत और सहज क्षमता है। यही वजह है कि मैं उनसे और डैडी से कभी भी कुछ भी नहीं छुपाता। सबसे बड़ी बात यह है कि मुझे उन दोनों पर सौ फीसदी से भी ज्यादा भरोसा है। मैंने हमेशा ही माँ को सब कुछ बताया था, और उस दिन भी उनसे कुछ भी छिपाने का कोई कारण नहीं था। मैंने माँ को बताया कि आज रचना और मेरे बीच में क्या क्या हुआ था। माँ ने सब कुछ सुना और फिर थोड़ी देर तक शांत बैठ कर हर बात के पहलू पर विचार किया, और अंततः उन्होंने कहा,

“दिखाओ।”

यह माँ का आदेश था। मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ। इस बार माँ ने मेरे कपड़े उतारे। पिछली बार कोई दो साल हो गए होंगे, जब मैं उनके सामने ऐसे आया था। जब मैं पूरी तरह बिना कपड़ों के उनके सामने खड़ा हुआ, तो उन्होंने मुझे मन भर कर देखा - उनके चेहरे पर प्रशंसा और गर्व के भाव थे। मेरा लिंग आंशिक रूप से खड़ा था। माँ ने उसे प्यार से सहलाया। इतने लम्बे अर्से के बाद फिर से मेरे शरीर को देखने के कारण, उन्होंने बड़ी फुरसत से मेरे पूरे उपकरण का निरीक्षण किया। जब मेरा लिंग यथासंभव खड़ा हो गया, तब माँ ने जैसे प्रोत्साहन देते हुए उसको चूम लिया।

“मेरा सुन्दर बेटा!” माँ ने पूरे लाड़ से मेरी बलैयाँ लीं, “मेरी मेहनत रंग लाई! मेरा जवान बेटा!”

“माँ,” मैंने शर्माते हुए कहा, “तुम भी न!”

“अरे! मैं तुम्हें शर्मिंदा नहीं कर रही हूँ, बेटा! तुम सचमुच बहुत हैंडसम हो। रचना भी तुम्हें पसंद करती है, और इसलिए उसने जो कुछ किया, उसने किया।” माँ ने कहा, थोड़ी देर रुकीं, और फिर कहा, “क्या तुम उससे शादी करना चाहोगे?”

“क्या!”

शादी? इन सब बातों के बारे में कहाँ सोचता है कोई? लेकिन अब बात निकल ही आई है तो मैंने कुछ समय के लिए इसके बारे में सोचा। रचना से शादी? यह एक काफ़ी दिलचस्प विचार था, क्योंकि मुझे यह तो पता था कि लोग उससे शादी करते हैं जिसे वे ‘पसंद’ करते हैं। मैंने कुछ देर सोचा, और फिर काफ़ी सोच कर कहा,

“मुझे नहीं पता, माँ! शादी करने से पहले बहुत सारे काम करने हैं। और अभी मैं तो बहुत छोटा हूँ। ये सब मैं नहीं सोचता!”

“कितनी अच्छी, कितनी बुद्धिमानी वाली बात कहीं है बेटा तुमने! आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू! सही कहा तुमने - शादी ब्याह में तो समय है... अच्छी पढ़ाई लिखाई कर लो, फिर उसके बाद कर लेना। लेकिन अगर तुम रचना से शादी करना चाहते हो तो मेरा आशीर्वाद है। वो मुझे अच्छी लगती है।” माँ ने बड़ी सरलता से कहा और कमरे से निकल गई।

वह मेरी ज़िन्दगी के सबसे यादगार दिनों में से एक था, और आज तक भी है। उस दिन मैंने बहुत कुछ सीखा। बहुत कुछ जाना। उस दिन के बाद से मैं और बुद्धिमान, और जिज्ञासु बन गया।

उस दिन के बाद से रचना और मेरे बीच की क़रीबियाँ और बढ़ गई। ऐसा बिलकुल भी नहीं था कि हम दोनों यौन रूप से करीब आ गए हों। ऐसा कुछ भी नहीं था। हम दोनों बस व्यक्तिगत और अंतरंग स्तर पर करीब आ गए। रचना कभी-कभी खेल खेल में मेरे लिंग से खेलती थी, लेकिन हमने जो कुछ उस दिन किया था, उसे हमने दोहराया नहीं। कुछ महीनों बाद मैंने नोटिस किया कि माँ भी उससे बहुत प्यार करने लगीं, और अक्सर मज़ाक मज़ाक रचना की मम्मी से उनकी बेटी को इस घर में भेजने के लिए कहती थीं। जानकार लोगों को पता होगा कि यह एक अप्रत्यक्ष तरीका है यह कहने का कि ‘मेरे बेटे की शादी अपनी बेटी से कर दो’। उन दोनों के बीच में नजदीकियाँ कुछ ऐसी थीं कि मेरे साथ पढ़ाई खत्म करने के बाद वो घर पर रुक जाती थी, और मेरी माँ से गप्पें मारती थीं।
बहुत ही खूबसूरत लिखा हैं। रचना और अमर का पहला शारीरिक चुवन। और अमर का अपनी मां से कुछ भी नही छुपाना।

बहुत ही खूबसूरत
 
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बहुत ही खूबसूरत लिखा हैं। रचना और अमर का पहला शारीरिक चुवन। और अमर का अपनी मां से कुछ भी नही छुपाना।

बहुत ही खूबसूरत

छोटेपन का प्यार और आकर्षण!
एक अलग ही भोलापन होता है उसमें...
बहुत बहुत धन्यवाद :)
 
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भैया, बहुत बहुत बधाई कहानी पूरी करने पे।
बड़ा ही सुंदर सफ़र रहा, कभी किसी किरदार से ईर्ष्या हुई तो किसी पे बेहद प्यार आया, अनेकों भावनाएँ उमड़ी।
शुक्रिया इस हसीन सफ़र को हम सब के साथ साझा करने के लिए। 💕
 
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नींव - पहली लड़की - Update 6


“क्या? रचना ने ऐसा कहा?” माँ ने सोचते हुए अपनी आँखें नीची कर लीं... वो रचना के ज्ञान पर चकित थीं!

“जी आंटी जी, मैंने कई बार मम्मी-डैडी को ऐसा करते देखा है।”

“रचना बेटा, तुम बहुत कुछ जानती हो।”

“माँ, क्या रचना सही कह रही है?” मैं हार नहीं मानना चाहता था।

“हाँ बेटा! रचना सही है!”

“तो इसका मतलब है कि डैडी भी अपनी छुन्नी आपके चीरे में डालते हैं, माँ?”

“बेटे, उस काम को प्यार करना या अंग्रेजी में ‘लव मेकिंग’ कहा जाता है। और हाँ, तुम्हारे डैडी और मैं लगभग रोज़ प्यार करते हैं, और... इसी तरह हमने तुमको पैदा किया।”

“रोज़ प्यार करते हैं?”

“हाँ। रोज़!”

“तो फिर आपको और बच्चे क्यों नहीं हुए?”

“ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हारे डैडी और मैं, और बच्चे नहीं करना चाहते। हम सावधानी बरतते हैं, और गर्भधारण को रोकने के लिए गर्भ निरोध के तरीकों का उपयोग करते हैं। और रचना बेटे, तुमको अपने मम्मी डैडी को ऐसे छुप छुप कर प्यार करते हुए नहीं देखना चाहिए। ये गलत बात है। वो जो करते हैं, वो पति और पत्नी के बीच का बहुत निजी काम हैं। ऐसे मत करना अब। ठीक है?”

माँ ने रचना को इतने मीठे और प्यार भरे अंदाज में समझाया कि वह बात को समझ भी गई, और उसको बुरा भी नहीं लगा।

“जी आंटी। अब से नहीं करूँगी!”

“प्यारी बच्ची!” माँ ने स्नेह से उसका गाल छुआ।

“माँ, क्या मैं भी आप से प्यार कर सकता हूँ?” मेरी जिज्ञासा फिलहाल एक अलग ही स्तर पर थी।

“नहीं बेटा! जैसे मैंने समझाया, ये पति-पत्नी के बीच का अंतरंग मामला है। तुम वो सब मेरे साथ नहीं कर सकते। केवल मेरे पति ही मुझसे प्यार कर सकते हैं। समझे?”

“ओह, आपका मतलब है डैडी?”

“हाँ, मेरा मतलब है डैडी!”

“तो क्या मैं रचना से प्यार कर सकता हूँ?”

“शायद कर सकते हो ... या शायद नहीं भी। अगर रचना तुमको अलाऊ करती है, तो तुम शायद उससे प्यार कर सकते हो। लेकिन उससे पहले तुम दोनों थोड़े और बड़े हो जाओ। उसके बाद तुम दोनों शादी कर सकते हो और जितना चाहे, उतना प्यार कर सकते हो।” माँ ने मुस्कुराते हुए मुझे समझाया।

मुझे अब समझ आता है कि कितने आसान तरीके से माँ और डैड ने मुझमे इतने बढ़िया संस्कार भर दिए!

“ओह!” मैंने समझते हुए कहा, “क्या तुम मुझसे शादी करोगी?” मैंने रचना से पूछा।

“पता नहीं।” उसने दो टूक उत्तर दिया, “यदि तुम ठीक से बेहव करोगे, तो शायद!”

मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं उस दिन किसी भी तरह के तर्क को जीतने में समर्थ नहीं हो सकता था। फिर मुझे अपनी श्रेष्ठता दिखाने का एक मौका याद आ ही गया,

“मैं माँ का दूध पीता हूँ।” मैंने अचानक ही कहा।

“क्या!” रचना को भरोसा ही नहीं हुआ।

“हां!” मैं विजयीभाव से बोला।

“अमर! बेटा, तुमको ऐसी बातें सबके सामने नहीं बोलनी चाहिए।” माँ ने कहा।

“आंटी, क्या अमर सच कह रहा है?” रचना को मेरी बात पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं हो रहा था।

“हा हा हा हा!” माँ हँसने लगीं, “हाँ। कभी-कभी पीता है! मेरे प्यार ने इसको बिगड़ैल बना दिया है न!”

बाज़ी मेरे पाले में आने लगी थी, इसलिए मैं अब रचना को पूरी तरह परास्त कर देना चाहता था। मुझे समझ आ गया था कि मुझे मेरी माँ से जो विशेषाधिकार प्राप्त था, वो रचना को अपनी मम्मी से प्राप्त नहीं था।

“कभी कभी नहीं, मैं हर रोज़ पीता हूँ! रुको, मैं तुम्हें दिखाता हूँ।”

मैंने कहा और माँ की तरफ़ हो कर मैं उनके ब्लाउज के बटन खोलने लगा। माँ को अंदेशा हो गया था कि बात का प्रवाह इसी दिशा में होने वाला है।

“अमर, रचना भी यहीं है।” माँ ने थोड़ा परेशान होते हुए कहा।

उनको नहीं मालूम था कि वो हमारी निकटता को देख कर कैसी प्रतिक्रिया देगी। रचना बड़ी हो गई थी, लेकिन उसका अल्हड़पन गया नहीं था। कहीं उसने अपने घर में या किसी और से इस बारे में कुछ कह दिया तो उसका हमारे जीवन में बुरा प्रभाव पड़ सकता था। लेकिन मुझ मूरख को इन सब बातों की सूझ भी नहीं थी। मैंने माँ के स्तन अनावृत किये और एक चूचक को मुँह में लेकर उसको पीने लगा। रचना यह सब देख कर भौंचक थी। ठीक है - कभी कभी बच्चे चार पाँच साल का होने तक अपनी माँ का दूध पीते हैं, लेकिन इतने बड़े होने पर भी पीते हैं, उसको इस बात का अनुमान भी नहीं था। वो आश्चर्य से, मुँह खोले, आँख फाड़े, माँ बेटे के इस स्नेह भरे घटनाक्रम को देख रही थी। मैं रचना को चिढ़ाने के लिए, माँ का स्तनपान करते करते, आँखें नचा नचा कर चिढ़ा रहा था। मेरी माँ जैसी सरल, भोली और स्नेही स्त्री मैंने बहुत कम ही देखी हैं। मेरा यह सारा नाटक बस एक ही डाँट, एक ही थप्पड़ से ख़तम हो जाना था, लेकिन माँ को तो जैसे स्नेह करने के अतिरिक्त कुछ आता ही नहीं था। लेकिन, मुझे रचना के सामने ही अपना दूध पीते देख कर उनको थोड़ा सा असहज महसूस हुआ। ऐसे किसी और के सामने मुझे स्तनपान कराए हुए कई वर्ष हो गए थे।

“बस करो! रचना बिटिया क्या सोचेगी?”

‘क्या सोचेगी?’ मैंने मन ही मन सोचा, ‘खुद तो वो मेरी माँ के सामने पूरी नंगी बैठी है! वो क्या सोचेगी? और सोचना हो तो सोचे! पी तो मैं अपनी ही माँ का दूध न! तो फिर किसी को क्या परेशानी?’

“मैं कुछ नहीं सोच रही हूँ, आंटी,” रचना ने झूठ कहा, “आप पिला दीजिए अपने बेटे को दूध!”

वो कुछ पल रुकी और बोली, “... आंटी, ये दूसरा वाला मैं ...?” उसने बात अधूरी छोड़ दी, लेकिन माँ समझ गईं, “प्लीज?” उसने माँ से अनुनय किया।

माँ बहुत आश्वस्त नहीं थी कि उन्हें एक सयानी लड़की को अपना दूध पिलाना चाहिए, लेकिन उन्होंने यह सोच कर रचना की विनती को मान लिया कि है तो अपने अमर जैसी ही।

“हे भगवान! तू भी!? तुम दोनों बच्चे बहुत नटखट हो! बहुत शरारती। अच्छा, ठीक है। आओ, तुम भी पी लो... आओ, मेरी गोदी में आ जाओ, और ये दूसरा वाला निप्पल ले लो!”

रचना का चेहरा एकदम से खुशी से चमक उठा। वो अपने घुटनों पर चलते चलते माँ के बगल में आ गई, और उनका दूसरा चूचक अपने मुँह में लेकर उसे चूसने लगी। मैं तो अपने सामान्य तरीके से पी रहा था, लेकिन रचना पीने का तरीका अलग दिख रहा था। रचना की आँखें बंद थीं, और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके मुँह में वाकई माँ का दूध बाह रहा था, और वो उसका स्वाद वास्तव में अनुभव कर पा रही थी।

दोनों स्तनों के एक साथ चूसे जाने से माँ थोड़ा हाँफने सी लगीं। उस समय मुझे नहीं मालूम था कि उन पर ऐसा प्रभाव क्यों हो रहा था। वैसे भी मुझे इस बात की समझ ही नहीं थी। मैंने यह भी देखा कि रचना के मुंह में माँ का स्तन जरूरत से कुछ ज्यादा ही था। यहाँ तक कि वो बीच बीच में, एक दो बार चूचक छोड़ छोड़ कर उनके स्तन के अन्य हिस्सों को चूम और चूस रही थी। उसने यह काम एक दो बार ही किया होगा, लेकिन मुझे दिख गया। फिर वह वापस उनका चूचक मुँह में लेकर, आराम से स्तनपान करने लगी। माँ की सांस फूल गई; मुझे समझ नहीं आया कि उनके साथ क्या हुआ... माँ ने तो पहले कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया! लेकिन मुझे अब पता है कि वह अपने दोनों स्तनों के एक साथ चूसे जाने से उत्तेजित हो गई होंगी। करीब पाँच से सात मिनट बाद, माँ ने ही इस खेल को खत्म करने का फैसला किया।

“ब.ब.बस, अभी के लिए बस इतना ही। तुम दोनों बच्चे शर्बत पी लो और खेलो। मेरे पास और भी काम हैं।” माँ ने कहा।

मैंने बड़ी अनिच्छा से माँ का चूचक छोड़ दिया। रचना ने भी उतनी ही अनिच्छा दिखाई। जब मैं माँ से अलग हो कर खड़ा हुआ, तो मैंने देखा कि मेरा लिंग पूरी तरह से सख्त हो गया था। माँ और रचना को मेरे स्तम्भन के पीछे का कारण समझ में आ गया होगा। लेकिन उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। हम तीनों में शायद मैं ही एकलौता था, जिसे पता नहीं था कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ, और मुझे इसके लिए क्या करना चाहिए। लेकिन माँ ने सामान्य रूप से, शांति से अपने ब्लाउज का बटन लगाया और कमरे से बाहर चली गईं।

“हे भगवान! दैट वास सो अमेज़िंग!!” रचना बोली।

“है न?”

“ओह गॉड! अमर! यू आर सो लकी!”

“रचना, तुम इसके बारे में किसी को कहना मत!” मैंने उसको आगाह किया।

“इस बात पर विश्वास भी कौन करेगा?”


उस दिन के बाद, रचना और माँ, पहले से भी और करीब आने लगे। माँ अब रचना को प्यार से ‘बेटी’ या ‘बिटिया’ ही कह कर बुलाती थीं। रचना भी मेरी ही तरह माँ को ‘माँ’ कह कर बुलाती थी। मैंने देखा कि रचना अब ‘नमस्ते’ के बजाय, उनके पैर छूने लगी थी। उसको ऐसा करते देख कर मुझे लगता कि रचना कुछ ऐसा कर रही थी जो कि मुझे करना चाहिए था - इसलिए, मैंने भी अभिवादन के रूप में अब माँ और डैड के पैर छूने शुरू कर दिए। उन दोनों की निकटता इतनी बढ़ गई कि माँ अब रचना के लिए भी कम से कम एक समय का खाना बनाने लगीं। व्यावहारिक रूप से रचना अब मेरी माँ की बेटी बन गई थी। माँ भी इस बात को स्वीकार कर चुकी थी। माँ के लिए रचना में उनको अपनी दूसरी संतान मिल गई थी, और रचना भी उनको एक बेटी की ही तरह प्यार करती थी।
नींव - पहली लड़की - Update 7


कुछ दिनों बाद, डैड हमें एक फिल्म देखने ले गए। क्योंकि हम लोग फ़िल्में देखने बहुत कम ही जाते थे, इसलिए फ़िल्म वाले दिन कुछ अलग होते थे। आज के मल्टीप्लेक्स जैसा मामला नहीं था तब। एक ही थिएटर था हमारे कस्बे में - सवेरे उनमे एडल्ट फ़िल्में लगती थीं। नहीं, बहुत एक्साइटमेन्ट की ज़रुरत नहीं। एडल्ट फ़िल्में मतलब बिलकुल छिछोरी, दोयम दर्जे की, दोअर्थी संवाद वाली फ़िल्में। तब ठरकी लोगों को उतने में ही मज़ा आ जाता था। गन्दा संदा सा रहता था अंदर - पान की पीक इधर उधर साफ़ देखी जा सकती थी। बीड़ी की गंध जैसे वहाँ समां ही गई थी। शायद इसीलिए डैड वहाँ जाना नहीं चाहते थे। लेकिन मुझे इन सब बातों से फ़र्क़ नहीं पड़ता था - हम बस बाहर जा रहे हैं, वही बहुत बड़ी बात थी मेरे लिए। फिल्म के बाद हम अक्सर बाज़ार में पैदल चलते, गैरज़रूरी खरीदारी करते, और बाहर खाना या चाट आदि खाते थे। मैं जितना माँ से प्यार करता था, उतना ही डैड से भी करता था। डैड बिलकुल भी सख्त नहीं थे, बल्कि वो भी माँ के सामान ही शांत और स्नेही स्वभाव के थे। डैड मेरी पढ़ाई में मेरी मदद भी करते थे, और एक दो साल पहले तक मेरे साथ खेला भी करते थे। फिल्म के अगले दिन रविवार था, इसलिए हमने अगला दिन हर तरह की मस्ती करते हुए बिताया। रचना आज नहीं आई थी। वो भी रविवार को अपने ही घर पर रहती थी। रात होते-होते मैं इतना थक गया था कि खाना खाते ही सो गया।

रात में मेरी नींद तब टूटी, जब मैंने उनके कमरे से आती हुई अजीब सी आवाजें सुनीं। मैं बिस्तर से उठा और उनके बेडरूम के दरवाजे तक गया, और दरवाज़े पर दस्तख़त देने ही वाला था कि मैंने उन दोनों की आहें सुनीं। मैं रुक गया, और बस दरवाज़े के बिलकुल बगल आ कर खड़ा हो गया कि उनकी बातें सुन सकूँ। माँ ने रचना को जो शिक्षा दी थी, यह उसके बिलकुल उलट थी, लेकिन जिज्ञासा का क्या करें?

“आह मेरी जान! मज़ा आ गया! जवानी के दिन याद आ गए!” वह मेरे डैड थे।

“हा हा हा! हम अभी भी जवान हैं, मिस्टर!”

“हा हा हा - हाँ, मेरा मतलब यह था कि आज बहुत दिनों बाद इतनी जबरदस्त तरीके से तेरे साथ सेक्स किया! मैं भूल गया था कि इतनी सारी एनर्जी से सेक्स करने में कितना मज़ा आता है!”

तो मेरे माँ और डैड ‘प्यार’ कर रहे थे!

मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और सुनने की कोशिश की। वे जोर से बात नहीं कर रहे थे, इसलिए मैं केवल बस दबी हुई आवाज़ें और उनके बिस्तर की लयबद्ध तरीके से आगे पीछे खिसकने की आवाज़ सुन सकता था।

“सुनो जी, आपको और बच्चे चाहिए क्या?”

“आएँ! यह तुमको क्या सूझी?”

“नहीं, मैं बस पूछ रही हूँ। यदि आप और बच्चे चाहते हैं, तो अभी कर लेते हैं।”

“नहीं जान! मैं एक बच्चे से ही बहुत खुश हूँ। खर्च बढ़ रहा है। जल्द ही अमर ग्रेजुएशन शुरू करेगा, और इसके लिए बहुत सारे रुपयों की ज़रुरत पड़ेगी। एक और बच्चा पालने जितना वेतन नहीं मिलता। मुझे लगता है कि हम एक अमर को ही ठीक से पाल लें, बस बहुत है!”

उन्होंने कुछ मिनटों तक कुछ नहीं कहा ... कमरे से केवल बिस्तर की लयबद्ध आवाज़ें ही आ रही थीं।

“लेकिन सच में! हमारा बेटा तेजी से बड़ा हो रहा है। अच्छा लगता है! हा हा हा! अभी मानों कल तक ही घर भर में नंगा हो कर दौड़ता और खेलता था! और अब देखो!”

“हा हा हा! आपको ही ऐसा लगता है, क्योंकि आप दिन भर तो ऑफिस में रहते हैं न! आपका बेटा अभी भी घर में नंगा ही रहता है!”

“क्या? हा हा हा! बदमाश है! इतने बड़े लड़के को क्या अभी भी नंगा रहना चाहिए? ... और क्या उसे अभी भी तुम्हारा दूध पीना चाहिए? मेरा मतलब है कि अब तो उसे अपनी उम्र की लड़कियों के दूध देखने में इंटरेस्ट होना चाहिए! है न?” डैड ने कहा; उनकी आवाज़ में गुस्से वाला भाव नहीं था। वो बस चिंतित थे।

“हाँ, आपकी बात ठीक है। वैसे उसको अब लड़कियों में इंटरेस्ट आने लग गया है। मुझे रचना बहुत पसंद है। वह बहुत सुंदर और अच्छी लड़की है। अमर के लिए वो ठीक रहेगी!”

“अरे मेरी जान! तुम तो कितना आगे का सोचने लगी! हाँ, रचना एक अच्छी लड़की है... लेकिन उसको अपना दूध पिला कर तुमने उसे अपनी बेटी बना लिया है! हा हा हा!”

“अच्छा जी! इस हिसाब से तो आप भी मेरे बेटे हो गए!”

“हाँ माँ!” पापा ने माँ को चिढ़ाया।

‘क्या! पिताजी माँ के स्तन पीते हैं ?!’ एक और नई बात!

माँ ने हँसते हुए कहा, “सच कहूँ तो, मुझे उन दोनों को साथ में दूध पिलाना अच्छा लगा! दोनों के पीने का तरीका बहुत अलग है! ... पहली बार तो उसने इसके लिए रिक्वेस्ट करी थी, लेकिन अब वो इसकी डिमांड करती है ... जैसे कि वो सचमुच में मेरी अपनी बेटी है ... हा हा।”

“हा हा हा हा! अरे यार, मैं तुमको अमर को ब्रेस्टफीड बंद करने के लिए कह रहा हूँ, और यहाँ तुम एक और बच्चे को लिस्ट में जोड़ने की बात कर रही हो!” डैड ने विनोदपूर्वक कहा।

“हा हा! हाँ ... नहीं ... नहीं ... आप सही कह रहे हैं। मुझे अब यह सब बंद कर देना चाहिए …”

मुझे अचानक ही माँ की चिहुँकने और आहें भरने की आवाज़ आई; बिस्तर की चरमराहट थोड़ी तेज़ हो गई। जब थोड़ी शांति हुई तो माँ बोलीं,

“लेकिन मैं किसी और बात से चिंतित नहीं हूँ। मैं बस चाहती हूँ कि दोनों बच्चे अपने तरीक़े से सब कुछ डिस्कवर करें, और सुरक्षित रहें!”

“हम्म्म! क्या रचना... यहाँ खुश रहती है?”

“हाँ, मुझे तो ऐसा लगता है। अमर और रचना दोनों एक-दूसरे की संगत में रहते हैं! और खुश रहते हैं!”

“अच्छी बात है!”

“वो तो अब रचना के भी निप्पल चूसता है?”

“क्या! शैतान लड़का! हा हा हा ... लेकिन यह सुनकर मुझे बहुत राहत मिली है। उसे अपनी उम्र की लड़कियों पर ध्यान देना चाहिए ... अपनी मां पर नहीं।”

बिस्तर की कुछ और चरमराती हुई आवाज़ें आईं।

“क्या मैं ‘शर्मा’ से बात करूँ, इस बारे में?” डैड रचना के डैडी की बात कर रहे थे।

“नहीं, अभी नहीं! मुझे डर लगता है कि कहीं वो लोग कुछ उल्टा पुल्टा न कर दें! वो काफ़ी दकियानूसी लोग हैं और शायद वो यह सब बातें न समझ पाएँ। मुझे रचना बहुत पसंद है ... पसंद क्या, मैं उसको अपनी ही बेटी समान प्यार करती हूँ, और मैं नहीं चाहती कि उसको किसी तरह की हानि हो।”

फिर वे कुछ देर चुप रहे; बस बिस्तर की चरमराहट की आवाज़ें आती रहीं।

माँ ने कहा, “लेकिन मुझे इस बात का अफ़सोस होता है कि जल्दी ही मेरे बच्चे मेरा दूध पीना छोड़ देंगे!”

“अरे क्यों? इसमें अफ़सोस वाली क्या बात है? यह तो नेचुरल है। जहाँ तक मुझे मालूम है, अमर की उम्र का कोई लड़का अपनी माँ का दूध नहीं पीता!”

“आपने जो सोलह साल तक तक पिया था, उसका क्या?” मेरी माँ ने डैड को चिढ़ाया।

“अरे मेरी बात अलग है जानेमन! और माँ के लगभग तुरंत बाद ही तुम मुझे मिल गई! तुम अमर के लिए परेशान मत होवो! अच्छा लड़का है! मेहनती है, इंटेलीजेंट है। व्यवहारिकता समय के साथ साथ आती है। अभी उसका फोकस पढ़ाई लिखाई पर है। वहीं फोकस रहे, तो अच्छा है। वो लड़की कहीं भागी नहीं जा रही है!”

“सबसे पहले तो आप उसे ‘वो लड़की’ कहना बंद कीजिए ... उसे उसके नाम से बुलाइये या बेटी कहिए…” माँ ने प्रसन्नतापूर्वक विरोध किया।

उसी समय डैड ने एक लंबी, संतुष्ट ‘आह्ह्ह्ह’ वाली आवाज़ निकाली। उसके बाद सब कुछ शांत हो गया। कुछ पलों तक मैंने इंतजार किया, लेकिन और कोई आवाज़ नहीं आई। मैं बस जाने ही वाला था कि माँ की आवाज आई,

“लेकिन मुझे लगता है कि आपको उससे बात करनी चाहिए [माँ हँसने लगीं]। मैं उसे बहुत कुछ बता सकती हूँ, लेकिन आपको भी कुछ सिखाना चाहिए! उसे बहुत कम मालूम है। पता नहीं, अभी तक उसने हाथ से करना शुरू किया या नहीं!”

माँ की इस बात पर दोनों एक साथ हँसने लगे। मुझे समझ ही नहीं आया कि क्यों!

“तो, मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है! हा हा हा!”
बहुत ही बढ़िया अपडेट था।
सुरु में जो गर्मी के दिनो का वर्णन बताया। बचपन की याद दिला गया। उस टाईम पर हमारे यहां में भी ऐसे ही दिन भर बिजली चली जाती। तो हम भी ऐसे ही घर में उगाए गए मीठे नीम के पैड की नीच खाट बिछा कर सो जाते।

अमर की मां का दोनो को नग्न देखना और दोनो को साथ में स्तनपान कराना। अमर की मां को बड़े ही सहजता से वयस्क बाते सीखना। संभोग के टाइम पर अमर और रचना के भविष्य की बाते करना।
avsji
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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भैया, बहुत बहुत बधाई कहानी पूरी करने पे।
बड़ा ही सुंदर सफ़र रहा, कभी किसी किरदार से ईर्ष्या हुई तो किसी पे बेहद प्यार आया, अनेकों भावनाएँ उमड़ी।
शुक्रिया इस हसीन सफ़र को हम सब के साथ साझा करने के लिए। 💕

कोई पचास साल की कहानी कहने में दो साल लगे मुझको! इससे बड़ी कहानी अब कभी नहीं लिखूँगा (ऐसा लगता है मुझे)
कोशिश कर के मैंने जीवन के कई रंग दिखाए... संबंधों के कई रंग दिखाए!
आपको कहानी पसंद आई, जान कर बहुत अच्छा लगा भाई... बहुत कम लोग रहे, जो इस कहानी के साथ पूरे समय तक बने रहे। आप भी उन्ही गिने-चुने लोगों में से हैं।
मत-भेद अवश्य हुआ आपसे, लेकिन मति-भेद नहीं हुआ। यह अच्छा लगा! नहीं तो, कुछ पाठक तो मखा के इस कहानी से कन्नी काट लिए।
अब "श्राप" भी पढिये - हाँ आपने बताया कि आप किरदारों से जुड़ नहीं पा रहे हैं, लेकिन पढ़ने में क्या है! :)
 
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