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बहुत ही बढ़िया अपडेट था।
सुरु में जो गर्मी के दिनो का वर्णन बताया। बचपन की याद दिला गया। उस टाईम पर हमारे यहां में भी ऐसे ही दिन भर बिजली चली जाती। तो हम भी ऐसे ही घर में उगाए गए मीठे नीम के पैड की नीच खाट बिछा कर सो जाते।
अमर की मां का दोनो को नग्न देखना और दोनो को साथ में स्तनपान कराना। अमर की मां को बड़े ही सहजता से वयस्क बाते सीखना। संभोग के टाइम पर अमर और रचना के भविष्य की बाते करना।
avsji
बहुत ही अच्छे तरीक़े से अमर के पापा ने उसे ज्ञान दिया। ये है किसी के लिए संभव नहीं है, पर इससे बच्चो में पैदा होती गैरसमज को पहले से दूर किया जा सकता है।नींव - पहली लड़की - Update 8
मैं अगली सुबह जल्दी उठा और देखा कि बाकी दिनों के जैसे माँ और डैड मुझसे पहले जाग चुके थे। डैड जैसा वो अक्सर ऑफिस जाने की जल्दी में होते थे, वैसी जल्दी में नहीं थे। उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने आज एक दिन की छुट्टी ली हुई है, और आज का दिन वो घर में ही बिताएँगे। यह उनके लिए एक असामान्य बात थी, लेकिन मुझे सुन कर अच्छा लगा। डैड के साथ समय बिताने में बहुत मज़ा आता था। हम तीनो ने एक साथ नाश्ता किया। डैड कोई न कोई चुटकुला, या कोई पुरानी बात सुनाते रहे; मुझे बहुत मज़ा आया। हमने टेबल साफ की और डैड आकर मेरे बगल में बैठ गए। उन्होंने अपने हाथ से मुझे कन्धों से पकड़ कर अपने में समेट लिया, और बोले,
“और बेटा, पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?”
“सब ठीक है डैड! बोर्ड के रिजल्ट आने ही वाले हैं। मुझे लगता है कि काफी अच्छे नंबर आएँगे!”
“बहुत बढ़िया! अस्सी के ऊपर?”
“जी डैड! अस्सी क्या, पचासी के ऊपर आना चाहिए!”
“वैरी गुड! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू!” वो मुस्कुराए, “बेटा, एक और बात है। मैं तुमको शर्मिंदा करने की गरज से नहीं कह रहा हूँ, लेकिन तुम्हारी माँ ने मुझे बताया कि तुम उनके दूध पी रहे थे, और तुम्हारा छुन्नू अकड़ने लगा?”
“जी …” अब इस बात पर मैं और क्या कहता?
“ठीक है, अच्छी बात है! मैं तुम्हें कुछ बातें समझाता हूँ… कुछ ज़रूरी बातें!”
अगले आधे-पौन घंटे तक डैड मुझे लिंग, अंडकोष, लिंग की सेहत, स्तम्भन, शुक्राणु, और यौन क्रिया के उद्देश्य के बारे में समझाते बताते रहे। उन्होंने मुझे बताया कि जब एक स्त्री और पुरुष प्यार करते हैं, तो उनका लक्ष्य एक-दूसरे को संभोग का सुख दिलाना होता है; अक्सर पति और पत्नी बच्चे पैदा करने के लिए भी ऐसा करते हैं। डैड ने मुझे अपने सेक्सुअल पार्टनर को उत्तेजित करने का महत्व बताया... उन्होंने बताया कि यौन उत्तेजना महिला को मज़ा देती है; उसके कारण स्त्री की योनि चिकनी हो जाती है, और पुरुष को उसके अंदर घर्षण करने में आसानी होती है।
“तो क्या आप दोनों कल रात यही कर रहे थे?” मैंने पूछ लिया।
डैड थोड़ा हैरान तो हुए, लेकिन उन्होंने इस बात से इंकार नहीं किया।
“हाँ! आम, बोलचाल की भाषा में हम इसे सेक्स करना कहते हैं, लेकिन तुम्हारी माँ और मैं एक दूसरे को प्यार करते हैं - हमारे सेक्स में एक अलग तरह की इंटिमेसी है। इसको वर्ड्स में एक्सप्लेन करना थोड़ा मुश्किल है। सेक्स करने के लिए छुन्नू को औरत के अंदर डाल कर अंदर बाहर करना काफ़ी है। लेकिन हम एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए मेरा उद्देश्य तुम्हारी माँ को आनंद देने का भी होता है। इसलिए हमारे प्यार करने का तरीका, एक-दूसरे के लिए अपने प्यार का इजहार करने का तरीका भी है।”
लण्ड शब्द को लेकर भी मेरे मन में कई सवाल थे, और डैड ने मेरे सभी सवालों के जवाब देने की कोशिश की। माँ भी बीच बीच में हमारे वार्तालाप में शामिल हुईं। इस दौरान माँ ने मेरा निक्कर नीचे खिसका कर डैड को मेरा छुन्नू दिखाया।
“बेटा तुम्हारा छुन्नू बहुत सुन्दर है! तुमको खुद पर बहुत गर्व होना चाहिए, जैसे मुझे तुम पर है।” उन्होंने मेरे पौरुष की सराहना खुले दिल से की। हमें और अधिक ‘मर्दाना’ बातें करने के लिए माँ कमरे से बाहर निकल गईं।
“लेकिन यह अभी तक लण्ड नहीं बना है!” माँ के जाने के बाद मैंने डैड को अपनी निराशा बताई।
“बन जायेगा बेटा! बहुत जल्द ही! सभी लड़के अपने अपने समय पर वयस्क होते हैं। तुम भी हो जाओगे! नेचर पर भरोसा रखो - नेचर किसी को निराश नहीं करती। बहुत जल्दी ही तुम्हारे पास एक मज़बूत सा सुंदर लिंग होगा।”
“डैड, मैं क्या आपका देख सकता हूँ?”
डैड ने संकोच नहीं किया। मेरी शिक्षा का यह भी एक भाग था। डैड उठा बैठे, और उन्होंने अपना पजामा उतार दिया। उसका लिंग मुझे बहुत बड़ा लग रहा था - मेरे मुकाबले बहुत बड़ा! उनके अंडकोष भी बहुत भारी लग रहे थे, क्योंकि वे नीचे लटके हुए थे और हिल-डुल रहे थे। उनके लिंग के इर्द गिर्द और अंडकोषों पर काले, घुँघराले बाल भरे हुए थे। मैंने स्वतःप्रेरणा से उनका लिंग अपने हाथ में ले लिया - वो बहुत कड़ा था और गर्म भी! उसके सुराख़ पर साफ़ तरल की एक बूंद बन रही थी। मैंने इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह उनका वीर्य है, एक्साइट होने पर वीर्य निकलने लगता है।
मैंने अपने लिंग के आकार के बारे में फिर से पूछा, तो उन्होंने कहा,
“बेटा, आई प्रॉमिस यू, एक दिन तुम्हारा छुन्नू भी मेरे लिंग जैसा ही, या उससे भी बड़ा हो जाएगा! बस धैर्य रखो।”
“ओके डैड! थैंक यू!” मैंने कहा, “क्या अब आप माँ के साथ प्यार करने वाले हैं?”
डैड मुस्कुराए, “तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो?”
“आपने लिंग सख्त हो गया है न, इसलिए!”
“ओह! अब समझा। बेटा, हमने कल रात ही सेक्स किया है। लेकिन अगर तुम्हारी माँ का मन होगा, तो हम शायद फिर से करेंगे।”
मैं इसके बारे में कुछ और सवाल पूछने लगा, तो डैड ने मुझे रुकने के लिए कहा, “मेरे पास एक बेटर आईडिया है। चल, हम तुम्हारी माँ के पास चलते हैं।”
डैड नंगे ही माँ के कमरे की ओर चल दिए - चलने पर उनका लिंग किसी शराबी की मानिंद इधर-उधर हिल डुल रहा था। कमरे में देखा कि माँ बिस्तर पर मैक्सी पहने बैठी थीं, और कोई मैगज़ीन पढ़ रही थीं। आहट सुन कर उन्होंने मैगज़ीन से अपनी नज़र हटाई और डैडी को नग्न अवस्था में देखकर खुश हो गई।
“जान, अमर के पास और भी कई सारे सवाल हैं। मैं उसे एडल्ट लोगों के संबंधों के बारे में बता रहा था। लेकिन कई सारी बातें ऐसी हैं जो तुमको भी बतानी पड़ेगी।”
डैड माँ के साथ हो लेते हैं, और उनकी गर्दन पर चूम लेते हैं।
“शायद हम मिल कर उसके कुछ सवालों के जवाब दे सकें?” उन्होंने कहा।
माँ समझ गईं थीं कि ‘मिल कर’ जवाब देने का से डैड का क्या अभिप्राय है। डैड मुझे सिखाने के बहाने, बहती नदी में हाथ धो लेना चाहते थे! माँ को मालूम था कि स्त्री शरीर के बारे में मेरा ज्ञान सिफ़र नहीं था - रचना को पूर्ण नग्न तो देखा ही हुआ था मैंने। लेकिन चूँकि डैड भी साथ थे, इसलिए उनकी जो भी झिझक थी, अब कम हो गई थी। डैड ने बड़ी लापरवाही से माँ की जाँघ पर हाथ रखा और उनकी मैक्सी को ऊपर खींचने लगे। माँ ने विरोध नहीं किया। वह जानती थी कि इस सारे घटनाक्रम की सूत्रधार वो स्वयं ही रही हैं - और अब जब मेरे ज्ञानवर्द्धन की गति बन ही गई है, तो उसको रोकने का कोई उचित कारण नहीं था। अब माँ की कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से खुल गया था। बहुत अलग सा लगा - रचना और माँ की बनावट में कई सारी समानताएँ भी थीं, और असमानताएँ भी!
“ध्यान दो बेटा, यह स्त्री की योनि है…”
पिताजी ने माँ के चीरे और भगांकुर की ओर इशारा किया। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि माँ की योनि पूरी तरह से बाल रहित थी, जबकि रचना की योनि पर मुलायम मुलायम बाल थे। बहुत बाद मुझे मालूम हुआ कि बाल हटाने वाली क्रीम या वैक्सिंग कर के वहां से अवाँछित बाल हटाए जा सकते हैं! माँ के होंठ थोड़े मोटे थे, बल्कि रचना के पतले थे। रचना की योनि का रंग माँ मुकाबले काफ़ी हल्का था। माँ की योनि में गुलाब की पंखुड़ियों के समान संरचनाएँ भी थीं, लेकिन वैसा कुछ रचना की योनि में नहीं दिखा। खैर, मैंने सोचना बंद कर, अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। डैड ने मुझसे कहा कि भगांकुर को सहलाने पर स्त्री को उसी तरह का सुख मिलता है जब पुरुष अपने लिंग से संभोग करता है! न जाने क्यों, यह सब देख कर मुझे भी इरेक्शन होने लगा!
“आप लोग कैसे करते हो?” मैंने पूछ लिया।
“तुम्हारा मतलब कि हम दोनों प्यार कैसे करते हैं?” माँ ने पूछा।
“जी!”
माँ ने अनिश्चय से डैड को देखा।
“क्या हम उसे कर के दिखा दें?” डैड ने माँ से पूछा।
“ठीक है,” माँ ने हथियार डालते हुए कहा, “हम बताएँगे तो कोई नुकसान नहीं है। यह न हो कि अंत शंट किताबो के चक्कर में गलत नॉलेज लेने लगे। उसे मालूम होना चाहिए कि सेक्स में प्यार का होना बहुत ज़रूरी है!”
बच्चो के सामने संभोग करना थोड़ा अजीब लगा, पर जिस तरह अमर ने अपने बेटे को ज्ञान दिया वो बहुत ही खूब अलग।नींव - पहली लड़की - Update 9
डैड मुस्कुराए और माँ को पकड़ कर चूमने लगे। मुझे यह देख कर बहुत अजीब सा लगा - अलग सा। मैं हमेशा सोचता था कि माँ मेरी हैं; लेकिन स्पष्ट बात थी कि मेरी माँ सिर्फ मेरी नहीं थीं। वो मुझसे पहले मेरे डैड की थीं, और जीवन पर्यन्त उनकी रहेंगीं। थोड़ा और सोचने पर लगा कि माँ मेरी कम और डैड की ज्यादा हैं! खैर, डैड ने माँ की मैक्सी उतार दी, और इस समय वो बहुत प्यार से उनके स्तनों को चूमने में व्यस्त थे। फिर वो माँ के भगांकुर के साथ कुछ देर तक खिलवाड़ करते रहे। फिर उन्होंने उनकी योनि में दो उँगलियाँ डाल कर बाहर निकालीं,
“देखो बेटा, जब मैं तुम्हारी माँ की योनि के अंदर से अपनी उँगलियाँ निकालता हूँ, तो देख सकते हो कि वो अब पूरी तरह से गीली हो गई है। इसका मतलब है कि माँ अब कामुक हो गई है, और सेक्स के लिए रेडी हैं। अब मैं तुमको बेसिक मूव्स दिखाता हूँ।”
कह कर डैडी ने अपना लिंग माँ की योनि में डाल दिया और उनके अंदर बाहर होने लगे। वो दोनों कुछ ही देर में भूल गए कि मैं भी वहीं था, और उन दोनों की रंगरेलियाँ देख रहा था। अपनी कमर को माँ की योनि में ठोंकते हुए वो उनके स्तनों को भी चूस रहे थे। और जब वो चूस नहीं रहे होते, तो उँगलियों से माँ के चूचक मसल रहे होते। फिर वो एक दुसरे आसन में माँ से सम्भोग करने लगे - माँ अपने करवट में लेटी हुई थीं, और डैड भी करवट में ही लेट कर धक्के लगा रहे थे। यह करते हुए अचानक डैड ने मुझे देखा और फिर मुझे आँख मारी, जैसे यह कोई मज़ाकिया किस्सा हो। ख़ैर, करीब पाँच मिनट बाद माँ जोर-जोर से कराह उठी। इसी समय डैड भी आहें भरने लगे, और अजीब तरह से दो तीन और धक्के मारने के बाद माँ पर ही ढेर हो गए। जब दोनों थोड़ा संयत हुए तो साथ में हँसने लगे। और मैं सोच रहा था कि उन्हें क्या हो गया है!
“तो समझे बेटा कि सेक्स कैसे करते हैं?” डैड ने पूछा।
“यह तो बहुत उबाऊ लग रहा है!” मैंने ईमानदारी से कहा।
सच में - माँ और डैड के सेक्स करने का तरीका मुझे बिलकुल भी प्रभावशाली नहीं लगा। लेकिन इतना तो तय है कि दोनों को मज़ा आता है यह कर के! मेरी बात पर दोनों ज़ोर से हँसने लगे, और हँसते हँसते बिस्तर पर से लुढ़क गए।
“बोर नहीं लगेगा बेटा, जब तुम करोगे!” माँ ने मुझे आश्वासन दिया।
मैं माँ की इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं कर पा रहा था। लेकिन मुझे यह बात ज़रूर मालूम थी कि मुझे अपनी माँ के स्तनों को चूसना बहुत अच्छा लगता है। मैं मुस्कुराते हुए माँ के पास गया, और उनके एक चूचक को चोरी से पीने लगा। माँ उस समय पसीने से तर हो कर, सम्भोग के आनंद सागर में, आँखे बंद किये हुए गोते लगा रही थीं। मुझे अचानक ही इस तरह स्तनपान करते देख कर वो हँस पड़ीं।
“तुम बाप, बेटे, और रचना, तुम तीनों मिल कर मेरी जान निकाल दोगे!”
यह सुनकर डैड भी मेरे साथ हो लिए और दूसरे स्तन को पीने लगे। और माँ बड़े प्यार और लाड़ से हमको पिलाने लगीं। मैं उस समय बहुत खुश था। न जाने कब आँख लग गई, याद ही नहीं! जब मैंने अपनी आँखें खोली तो देखा, कि माँ और डैड एक दूसरे की बाहों में लिपटे सो गए थे। मैं मुस्कुराया और दबे पाँव कमरे से बाहर निकल आया। बाहर आते आते मैंने उनके कमरे की किवाड़ लगा दी कि उनको कोई डिस्टर्बेंस न हो।
रोज़ की भांति रचना ने दरवाज़े पर दस्तक दी। वैसे तो रोज़ माँ ही दरवाज़ा खोलतीं, लेकिन आज मुझे देख कर वो बोली,
“माँ कहाँ हैं?”
“अरे, माँ की बेटी! कभी मुझसे भी मिल लिया कर!”
“हा हा हा! अरे मैं तो तुझसे भी तो मिलती हूँ! उनसे मेरा रिश्ता तुझसे ही तो है!”
मुझे रचना की बात समझ नहीं आई। लेकिन भोंदू होने के कारण मैंने कुछ पूछा नहीं।
“माँ डैड सो रहे हैं!”
“अच्छा! तो अंकल जी भी हैं?”
“हाँ! आज उन्होंने छुट्टी ली हुई है।”
“तबियत तो ठीक है न उनकी?”
“हाँ! बिलकुल ठीक है। उन्होंने मेरे कारण छुट्टी ली है।”
“तुम्हारे कारण? क्यों? क्या हो गया?!”
मैंने रचना को आज की मेरी यौन शिक्षा के बारे में बताया। वो मेरी बात सुन कर घोर आश्चर्यचकित थी। यह एक बहुत ही अलग सी बात थी, जिस पर भरोसा करना नामुमकिन था। लेकिन फिर मैंने उसको दबे पाँव माँ डैड के कमरे की तरफ़ आने को बोला, और उनके कमरे के दरवाज़े को थोड़ा सा खोल कर उसको अंदर देखने को कहा। अंदर का नज़ारा देख कर वो दंग रह गई। वो दोनों अभी भी एक दूसरे के आलिंगन में बंधे, पूर्ण नग्न सो रहे थे।
“बाप रे यार!” जब हम मेरे कमरे में आ गए तो रचना बोली, “माँ और डैड तो कितने कूल हैं!”
“हाँ! है न?”
“काश मैं इनकी बेटी होती। मेरे मम्मी डैडी तो मेरी खाल खींच कर उसमे भूसा भर देते अगर मैं उनसे ऐसा कुछ भी कह देती!”
“कोई बात नहीं! मेरी माँ और डैड तो हैं न! उनसे तुम कुछ भी कह सकती हो!”
कह कर मैं उसकी स्कर्ट का हुक खोलने लगा। रचना ने मुझे रोका नहीं, लेकिन हँसते हुए बोली,
“अगर तेरी माँ, मेरी भी माँ हैं, तो उस हिसाब से हम दोनों भाई बहन हुए न! समझ में आ रही है बात?”
“तुम मेरी बीवी भी तो हो सकती हो न?” मैं उसकी स्कर्ट नीच गिराते हुए बोला, “पति की माँ, पत्नी की भी तो माँ ही होती है!”
“अच्छा जी! तो आप मुझे अपनी बीवी बनाना चाहते हैं?”
“हाँ! क्यों नहीं! क्या कमी है तुममें?” मैंने रचना को छेड़ा, और साथ ही साथ उसकी ब्लाउज/टी-शर्ट भी उतार दी। उसने आज अंदर शमीज़ भी नहीं पहनी थी। गर्मी में क्या करे!
मेरी बात सुन कर वो खिलखिला कर हँसने लगी। उसके हँसने से उसके स्तन बड़ी अदा से हिलने लगे।
“कमी मुझमे नहीं है उल्लूराम! अपनी शकल देखी है कभी? बन्दर जैसी शकल है तुम्हारी!” रचना उलाहना तो दे रही थी, लेकिन साथ ही साथ अपनी चड्ढी उतरवाने में मेरी मदद भी कर रही थी।
“अच्छा है न! तू बनेगी, इस बन्दर की बंदरिया!”
रचना मुस्कुराते हुए बोली, “तेरी माँ की बेटी बनने के लिए मुझे बंदरिया भी बनना पड़े, तो मंज़ूर है!” फिर उसको जैसे कुछ याद आ जाता है, और अचानक ही बोल पड़ती है, “हाय राम! आज तो अंकल जी भी घर पर हैं?”
“हाँ!” मैं अपने कपड़े उतार रहा था, “तो?”
“अरे बन्दर - उनके सामने मैं ऐसे रहूंगी क्या?”
“अरे तो क्या हो गया?” सच में व्यवहारिकता मुझसे अभी भी दूर थी। पता नहीं, कभी मेरे पास वो आएगी भी या नहीं! क्या मैं उस समय भोला था, या बेवक़ूफ़! नहीं, वक़ूफ़ (ज्ञान, बुद्धि, समझ) तो कूट कूट कर भरा हुआ था। तो मतलब भोलापन ही होगा - युवा शरीर, लेकिन बाल-मन! ठीक है, अपने समय पर जो भी कुछ होगा, बढ़िया है।
“मुझे बहुत शर्म आएगी। और वो भी न जाने क्या सोचेंगे!”
“क्या सोचेंगे? तुम भी तो उनकी बेटी ही हो न? डैड बहुत अच्छे हैं। माँ जैसे ही!”
“सच में?” रचना ने उम्मीद और आश्चर्य में मेरी तरफ देखा।
“और क्या! ही इस दी बेस्ट डैड! तुम इतना मत सोचा करो!”
जब माँ और डैड कमरे से बाहर निकले, तो दोनों ही कपड़े पहने हुए थे। रचना को ऐसे नग्न देख कर डैड अचकचा से गए। माँ के अलावा शायद ही कभी उन्होंने कोई और लड़की पूर्णतया नग्न देखी हो! वो तो अच्छा हुआ कि माँ उनको सारी बातें बताती थीं, नहीं तो वो न जाने क्या सोचते!
“अरे, रचना बेटा?” उन्होंने सम्हलते हुए कहा, “कब आई?”
“नमस्ते अंकल जी! बस अभी आई।” रचना भी घबराई हुई थी।
मेरे या माँ के सामने नग्न होना एक अलग बात थी, लेकिन डैड के सामने बिलकुल अलग बात थी। खास तौर पर तब, जब उसको पुरुषों की कामुक दृष्टि का अच्छा खासा अनुभव था। लेकिन मेरे डैड सौ प्रतिशत, शुद्ध, शिष्ट पुरुष थे! वो जब तक हमारे साथ रहे, उनकी नज़र हमेशा रचना के चेहरे पर ही रही - उसके स्तनों, या योनि पर कभी नहीं!
“अच्छा बेटा!” कह कर उन्होंने थोड़ी देर तक उससे इधर उधर की बातें करीं, फिर किसी काम से घर के बाहर चले गए।
अमर की मां ने बहुत ही अच्छे से अपने बेटे को स्त्री का सम्मान करना सिखाया है।नींव - पहली लड़की - Update 10
मैं उस समय लोगों के हाव भाव नहीं पढ़ पाता था, लेकिन माँ के चेहरे के भाव मुझे अच्छी तरह से पता थे। अपने पति का ऐसा शिष्ट व्यवहार देख कर वो न केवल प्रसन्न थीं, बल्कि गौरवान्वित भी थीं! माँ दोपहर का खाना पकाने रसोई में चली गईं, उसके साथ रचना भी। मैं अकेला बैठा क्या करता, तो स्नान करने चला गया। वापस आया, तो उन्होंने मुझे और रचना को खाना परोसा। वो खुद डैड के साथ खातीं। खाने के बाद रचना ने हमसे विदा ली, और मैं सोने चला गया। दो घंटे सो कर उठा, तो पाया कि डैड वापस आ गए थे, और खा पीकर वो भी सो रहे थे। करने को कुछ भी बेहतर नहीं था, तो मैं माँ डैड के कमरे में चला गया, जहाँ डैड तो सो रहे थे, और माँ एक मैगज़ीन पढ़ रही थीं। मैं बिस्तर पर गया और उसके बगल में लेट गया।
“क्या हुए बेटा? खेलने नहीं जा रहे हो आज कल?”
“जी माँ! कल से डैड और आपके साथ ही उठूँगा। कम से कम सवेरे जॉगिंग तो हो जाएगी!”
“हाँ! ठीक है। बहुत देर तक सोना नहीं चाहिए। सेहत खराब होती है इस से!”
माँ के बगल लेटे लेटे मेरे हाथ उनकी ब्लाउज पर आ गए। माँ खिलखिला कर हँसने लगीं,
“मन नहीं भरता क्या तेरा, बेटू?”
“नहीं माँ! ये मेरे लिए अमृत कलश हैं! काश अभी भी इनसे अमृत निकलता!”
माँ प्रेम से मुस्कुराईं, “बेटा, अब तुझे अमृत नहीं पिला सकती तो क्या, अपना आशीर्वाद तो दे ही सकती हूँ न!”
“माँ, आप और डैड मेरे भगवान् हैं! मैं और कोई भगवान् में नहीं मानता। जो भी हैं, बस आप दोनों ही हैं!”
“अरे मेरा राजा बेटा! अरे मेरा प्यारा बेटा!” माँ ने लाड़ और दुलार से मुझे खुद में समेट लिया, “भगवान् हैं बेटा! तभी तो हमको तुझ जैसा बेटा मिला है!” कह कर माँ न मुझे चूम लिया।
मैंने अपना सर माँ की छातियों में घुसेड़ दिया। माँ फिर से हँसने लगीं,
“तेरा मन है, तो बहाने क्यों बनाता है। चल, पी ले!”
मैंने खुश हो कर उनके ब्लाउज के बटन खोल दिए और एक एक कर के उनके स्तन चूसने लगा और दूसरे के साथ खेलने लगा। मुझे तो नहीं लगता कि माँ कभी मुझको स्तनपान करने से मना कर पाएँगी! मैंने उसके स्तनों को चूसना जारी रखा - दोनों चूचक कई बार चूसे और चुभलाए! माँ को लगा कि मेरे मन में कोई बात तो है,
“सब ठीक है?” माँ ने पूछा!
“जी माँ! क्यों?”
“अच्छा ये बता, तुझे रचना कैसी लगती है?”
“अच्छी लगती है माँ! बहुत अच्छी!”
“मुझे भी बहुत अच्छी लगती है!” फिर थोड़ा सोच कर वो आगे बोलीं, “तुम दोनों पढ़ लिख लो ... फिर एक दूसरे के साथ हो लो!”
“एक दूसरे के साथ?”
“मतलब, शादी कर लो।”
“ओह!”
रचना और मेरे बीच जो नोक झोंक होती रहती है, वो हमारे बालक मन के कारण है। लेकिन माँ ने जो अभी अभी कहा, सुन कर लगा कि वो हमको ले कर वाकई गंभीर हैं।
“माँ, शादी करना कैसा होता है?”
मेरे भोलेपन (या बुद्धूपन) पर माँ मुस्कुराए बिना नहीं रह सकीं, “जैसे मैं और तुम्हारे डैड रहते हैं, वैसे ही!”
“तो हम दोनों को प्यार भी करना होगा?”
“हा हा हा हा! हाँ मेरे भोलू बाबू! प्यार करोगे, तभी तो तुमको भी बच्चे होंगे! है न?”
“मुझे तुम्हारा बच्चा बन के रहना है माँ!” जब मुझे बहुत प्यार आता है तो मैं माँ को आप के बजाय तुम कहता हूँ।
“मेरे बच्चे तो तुम हमेशा रहोगे! चाहे कितने भी बच्चों के पापा, दादा, या परदादा बन जाओ!”
देखा आपने, कितनी सरलता से, कितनी सहजता से माँ ने बात ही बात में मुझे दीर्घायु होने का आशीर्वाद भी दे दिया? मैं खुश हो गया।
“थैंक यू माँ! लेकिन मुझे प्यार करना बहुत मेहनत वाला, उबाऊ काम लग रहा है।”
“अभी लग रहा है। बाद में तुमको बहुत पसंद आने लगेगा और तुम इसे रोज़ करोगे।” माँ ने मेरे बालों को प्यार से सहलाया।
“हम्म…”
“इसलिए इन सब बातों से मत घबराओ। रचना या कोई भी लड़की, जिससे तुम शादी करोगे, उसको खूब प्यार करना - जैसा प्यार मैं और डैड तुमसे करते हैं वैसा भी, और जैसा प्यार मैं और डैड आपस में करते हैं, वैसा भी। प्यार और आदर! प्यार का भूखा हर कोई है। अधिकतर लोग बस प्यार देना भूल जाते हैं, और उसी के कारण न तो वो खुश रह पाते हैं और उनके झगड़े भी होते रहते हैं।”
“हाँ माँ! आपने या डैड ने न तो मुझे कभी मारा और न ही कभी मुझे डाँटा! यहाँ तक कि आप दोनों ने मुझसे ऊँची आवाज़ में भी कभी बात नहीं करी!”
“और देखो - मेरा बेटा कितना समझदार, बुद्धिमान, और सुशील है!” माँ ने मुस्कुराते हुए मुझे चूम लिया, “हमेशा शांत, सरल और धैर्यवान रहो। याद रखना बेटा, जीवन की आधी समस्याओं का निदान यही है।”
“जी माँ! मैं आपकी बात हमेशा याद रखूँगा!”
“और भी एक बात याद रखना, जब तुमको किसी लड़की से प्यार करने का अवसर मिले, तो हमेशा यह सोच कर चलना कि उसकी योनि वास्तव में एक मंदिर जैसी है।”
“एक मंदिर जैसी, माँ?”
“हाँ बेटा! मंदिर जैसी। योनि एक पवित्र स्थान है। सोचो ज़रा - यहाँ से ही एक नया जीवन शुरू होता है! माँ यहीं से ही अपने बच्चे को जन्म देती है। इसलिए, प्यार करना एक बहुत ही पवित्र कार्य है। इस कार्य में स्त्री और पुरुष पुजारी की भूमिका में होते हैं, और योनि मंदिर होती है। तो जैसे मंदिर में प्रेम और आदर के साथ जाते हैं, वैसे ही योनि में भी प्रेम और आदर के साथ जाया जाता है! हमेशा यह बात याद रखना, और स्त्रियों और लड़कियों का सम्मान करना।”
“जी माँ! मैं आपकी बात समझ गया!”
“जल्दी तुमको सेक्स करने का मन होने लगेगा। उस समय तुम यह मत भूलना कि अगर तुम किसी लड़की के साथ सेक्स करना चाहते हो, तो उसको भी तुम्हारे साथ करने का मन होना चाहिए। नहीं तो ये ज़ोर ज़बरदस्ती वाली बात हो जाएगी। लड़की का शरीर उसका अपना है। वो उसकी मालिक खुद है, कोई और नहीं। इसलिए कभी ज़ोर ज़बरदस्ती मत करना। समझे?”
“जी माँ!”
“गुड बॉय! अच्छा, अब यह बताओ, कि तुम मेरा दूध पीना कब बंद करोगे?”
माँ का प्रश्न मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभ गया! मैं सोच में पड़ गया। कुछ देर सोच कर मैं बोला,
“मैं नहीं जानता माँ, ... मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं शायद ही छोड़ पाऊँ!”
“बेटा - मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा है। लेकिन कभी न कभी तो यह सब बंद करना ही पड़ेगा न बेटा?”
“क्या आप भी यही चाहती हैं, माँ?” माँ के प्रेम से बिछड़ने के दुःख से मेरी आँखें लगभग भर आईं।
मुझे यकीन है कि माँ के पास मुझे इस तरह दुखी देखने का दिल नहीं था। मैंने अपने माँ और डैड से कभी कुछ भी अनुचित नहीं मांगा... और फ़िर स्तनपान करना तो कितना सुखदाई काम था! फिर क्यूँ बंद करना? माँ ने भावातिरेक में आ कर मेरे सर को अपने स्तनों के बीच खींच लिया और कहा,
“नहीं बेटा! मैं नहीं... मैं नहीं चाहती!”
उनकी आँखों से आँसू की बूँदें मेरे सर पर गिरने लगीं।
बहुत ही अच्छे तरीक़े से अमर के पापा ने उसे ज्ञान दिया। ये है किसी के लिए संभव नहीं है, पर इससे बच्चो में पैदा होती गैरसमज को पहले से दूर किया जा सकता है।
बच्चो के सामने संभोग करना थोड़ा अजीब लगा, पर जिस तरह अमर ने अपने बेटे को ज्ञान दिया वो बहुत ही खूब अलग।
और तो और अमर के पप्पा भी बहुत ही अच्छे इंसान हे, जो रचना पे बुरी नजर भी नही डले, इससे पता चलता है की वो अपने बेटे को लिए ही नहीं पर समाज की नजर से भी अच्छे है।
अमर की मां ने बहुत ही अच्छे से अपने बेटे को स्त्री का सम्मान करना सिखाया है।
Avsji Bhai.... Ye kahani padhiye aur aisi hi ek aur likhiye ye aapase request hai....
Lekin aapake anusar aur lambi ho..
नींव - पहली लड़की - Update 11
मेरी छुट्टियाँ ख़तम होने वाली थीं। इसलिए डैड का मन था कि हम सभी उसके पहले गाँव का एक चक्कर लगा कर आ जाएँ। वहाँ पर कई सारे छोटे बड़े काम कुछ समय से लंबित पड़े हुए थे, और बिना उनकी उपस्थिति के संभव नहीं थे। मुझे भी गाँव गए हुए कुछ वर्ष बीत गए थे, इसलिए मैं भी वहाँ जाना चाहता था। मुझे गाँव से कोई बहुत लगाव नहीं है, लेकिन वहाँ का वातावरण, सरल रहन सहन, और लोगों का सहज व्यवहार मुझे अच्छा लगता है। मेरे गाँव के लोगों को तब तक भी शहरों की हवा नहीं लगी थी, और लोग अपने सरल जीवन से संतुष्ट थे। मेरी खास दिक्कत वहाँ शौचालय की ठीक व्यवस्था न होने के कारण थी। मुझे खेतों में जा कर शौच करना ठीक नहीं लगता था। बस यही एक दिक्कत थी। डैड इसके लिए भी कोई बंदोबस्त करना चाहते थे। खैर, गाँव जाने के लिए बहुत अधिक प्लानिंग की ज़रुरत नहीं थी; डैड ने एक जीप किराए पर मंगाई (उस समय जीप का उपयोग बहुत होता था; कारों का चलन कम था), और घर से गाँव तक जाते जाते चार पाँच और काम (जैसे मोरंग और सीमेंट की कुछ बोरियाँ लदवाना; गाँव के कुछ संभ्रांत लोगों के लिए उपहार और बच्चों के लिए मिठाईयाँ इत्यादि खरीदना) निबटाते हुए हम शाम को गाँव पहुँचे। जीप हमको छोड़ कर वापस लौट गई, लेकिन जाने से पहले डैड ने उसको एक सप्ताह बाद दिन में आने को कह दिया। मतलब हम एक सप्ताह के लिए यहीं रहने वाले थे।
रात का खाना हमारा एक पड़ोसी के घर पर हुआ। हमारा घर बंद तो खैर नहीं रहता - कोई न कोई उसकी देखभाल के लिए वहाँ रहता ही था, लेकिन खाने पीने की व्यवस्था अच्छी नहीं थी। दादाजी और दादीजी के जाने के बाद अब उस घर का पुरसाहाल लेने वाला कोई नहीं था। लेकिन डैड और माँ को उस घर से, उस गाँव से भावनात्मक लगाव बहुत था। इसलिए जब तक संभव था, वो इस घर को सम्हाल कर रखना चाहते थे। डैड ने कहा कि वो यहाँ, घर के अहाते में एक शौचालय का निर्माण करवाना चाहते हैं, जिससे घर / गाँव की स्त्रियाँ एकांत में शौच कर सकें, और स्नान कर सकें। पड़ोसी को यह विचार अति उत्तम लगा - वैसे भी शौचालय के निर्माण के बाद वो ही उसका सबसे अधिक इस्तेमाल करते। इसलिए उनको और भी प्रसन्नता हुई। उन्होंने डैड से कहा कि चूँकि उन्होंने पहले से कहला नहीं भेजा था, इसलिए हमारे घर में सोने की व्यवस्था भी ठीक से नहीं है। और शाम को अँधेरा होने पर वो सब करने का औचित्य नहीं था, इसलिए हम रात में उन्ही के घर ठहर जाएँ। उनके आग्रह पर डैड सहर्ष राज़ी हो गए। गर्मी और उमस तो थी ही; वर्षा भी कभी भी पड़ सकती थी। उनका घर भी गाँव के अन्य घरों जैसा ही था। कमरे कम थे, लेकिन बड़े बड़े थे। तय हुआ कि बच्चे छत पर सो जाएँ, पुरुष एक कमरे में या आँगन में, और स्त्रियाँ दूसरे कमरे में। यह इंतज़ाम ठीक था : उनके दो लड़के थे, लगभग मेरी ही उम्र के - बस एक दो साल का अंतर था; और एक लड़की थी, जिसकी शादी हो चुकी थी। उनको लगा होगा कि मैं अपने मित्रों के साथ गप्पें लड़ाना पसंद करूँगा, लेकिन मैं माँ को छोड़ कर कहीं जाने वाला नहीं था - एक नई जगह पर तुरंत ही सहज होना मेरे लिए आसान काम नहीं था। पड़ोसी चाची ने हँसते हुए कहा,
“ठीक बाय लल्ला, तू अपनी अम्मा के लगैहैं सोय जाव!”
मैं खुश हो गया और सोने के लिए अपने कपड़े उतारने लगा। यह कोई बड़ी बात नहीं थी - गर्मी और उमस के कारण सभी यथासंभव कम से कम कपड़े ही पहनते थे। माँ और पड़ोसी चाची आपस में बातें कर रही थीं। अब इसको माँ की शरारत कह लें, या कुछ और, लेकिन जब मैं अपनी शर्ट और पैंट को एक दीवार के खूँटे पर टाँग कर, केवल चड्ढी पहने हुए अपनी माँ के पास आया, तो वो पड़ोस वाली चाची से बातें करते हुए ही मेरी चड्ढी भी उतारने लगीं! उनका व्यवहार ऐसा था कि जैसे यह बड़ी सामान्य सी बात हो! मुझे थोड़ा अलग तो ज़रूर लगा - कुछ वर्षों पहले ही माँ मुझे अन्य किसी के सामने नग्न न होने की सलाह दे रही थीं, और यहाँ वो खुद ही मुझे नंगा कर रही थीं।
“माँ?” मैंने असहज होते हुए कहा।
“गर्मी है न बेटा!” माँ ने बड़े सामान्य से लहज़े में कहा, और फिर जैसे उनको कुछ याद आ गया हो, “सू सू किया?”
मैं कोई बिस्तर गीला करने वाला लड़का थोड़े ही था, जो माँ मुझसे यह सब पूछ रही थीं। मुझे बुरा लगा कि माँ ने चाची के सामने मेरी बेइज़्ज़ती कर दी। लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि माँ मेरे लिए, हमारे गाँव में रहने के दौरान स्तनपान जारी रखने का मार्ग प्रशस्त कर रही थीं। अगर इतने बड़े लड़के को कोई अपनी माँ के दूध पीते देख लेता, तो सौ बातें बनाता। लेकिन यह सब स्वाँग करने से कोई कैसा भी प्रश्न नहीं पूछेगा। वैसे भी नग्नता को ले कर उस समय गाँव / देहात में काफी खुला हुआ रवैया था।
मैंने बुरा सा मुँह बनाया, “कहाँ करूँ!”
“चलो, मैं करवा लाती हूँ, बाहर!”
“अब यहि बेर कहाँ जइहो?” चाची बोल पड़ीं, “यहीं अंगनवै मा कै लियौ! तू लेटो बहू! चलौ लल्ला, हम करवाय लाई!”
मैंने हैरान होते हुए माँ की तरफ देखा, तो उन्होंने सहजता से इशारा कर के मुझे चाची के साथ जाने को कहा। आँगन में नाली की तरफ बैठ कर मैंने टॉयलेट किया। जब मैं उठ कर जाने लगा, तो वो बोलीं,
“लल्ला, आपन छुन्निया तो धोय लियौ!”
तो मैंने अपने छुन्नू को पानी दे धो लिया, और वापस जाने लगा।
“अरे ऐसे नाही, लल्ला! हियाँ आवो!”
चाची ने कहा, और मेरे छुन्नू को पकड़ कर उन्होंने उसकी चमड़ी को पीछे खिसका दिया, और पानी डाल कर अच्छी तरह से उसको धोया। और साथ ही साथ मुझे हर बार ऐसे ही धोने की हिदायद भी दी। लेकिन इन सब के कारण मेरे लिंग में तनाव भी आ गया। चाची यह देख कर मुस्कुरा दीं। मुझे उनका ऐसा करना थोड़ा असहज तो लगा, लेकिन मुझे कोई ‘गन्दी’ अनुभूति नहीं हुई। फिर हम कमरे में आ गए।
माँ ने मुझे देखा और कहा, “हो गया बेटू? आ जा!”
“हाँ माँ!” मैंने प्रसन्न होते हुए कहा।
जब मैं माँ के बगल बिस्तर में लेट गया, तो माँ ने बड़े प्रेम से अपनी ब्लाउज के बटन खोल दिए, और मुझको अपना एक स्तन पीने को दे दिया! चाची को यह आश्चर्यचकित करने वाला काम लगा,
“लल्ला अबहुँ तोहार दूध पियत हैं?” उन्होंने पूछा, “अब तौ बड़ा होय गये हैं!”
“हाँ दीदी, बिना पिये सोवतै नाहीं!”
“हा हा! हमार ननकऊओ लल्ला के जस रहिन। उनहूँ बिना दूध पिए सोवतै नाही रहै!”
“बदमास है ई!” माँ ने कहा तो, लेकिन केवल कहने के लिए; केवल दिखावे के लिए।
“अरे रहय दिओ, बहू! पियावा करौ। अबहीं बच्चा है! बड़ा होवै पै खुदहिं छोड़ दैहैं!”
मैं आनंद से माँ का स्तनपान करता रहा। इस बार मैंने उनके ऊपर अपना पैर भी रख लिया।
“दुधवा आवत है?” चाची ने पूछा।
“नहीं दीदी! लेकिन ई बदमास का ओसे कौनौ मतलब नाही! बस पियै से मतलब बाय!”
“फिर वही बात करत हौ बहू! पियावा करौ। कौनौ बुराई नाही न! दूध पियै वाला लल्ला तौ बंसीधर होवत है अपनी महतारी कै ताईं! ऐसे बड़ा कउनो सुख है का? बड़ा होवै पै खुदहिं छोड़ दैहैं! लेकिन हम सोचत रहीं, की लल्ला का दूध पियै क इतना सौक है, तो एक दुई लरिका और काहे नाही कै लेतिऊ? अबहीं तो छोटै हौ तू!”
चाची की बात तो सही थी। उनकी बात पर माँ थोड़ी सी उदास हो गईं।
“बहुत खर्चा है, दीदी! बस इसी को ठीक से पाल लें। बहुत है!”
“हाँ, बात तो साहियै है। हियाँ गाँव देहात मा तो बच्चे पल जात हीं। हुआँ अकेले कैसे करिहौ सब!” चाची ने विचार करते हुए कहा। बात गंभीर थी, लेकिन मैं बिना परवाह किए स्तनपान का आनंद ले रहा था।
“बहू, लल्ला कै मालिस करत हौ?”
“नहीं दीदी! हा हा हा!” माँ ने हँसते हुए कहा, “इतने बड़े लड़के की मालिश, हमसे न हो पहियै!” और बड़े प्यार से मेरे नितम्ब पर चपत लगाई।
“अरे तौ हम कै देबै। जब तक हियाँ हौ, हम तोहार देखभाल कै लेबै। तोहार लरिका, और तोहार, दूनौ जनै कै मालिस कै देबै।”
“हा हा हा हा! क्या दीदी!”
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विशेष उल्लेख : कहानी का यह अद्यतन kailash1982 जी के सुझावों से प्रेरित है।
नींव - पहली लड़की - Update 12
सवेरे मुझे थोड़ा जल्दी ही उठा दिया गया जिससे मैं नित्य कर्म कर सकूँ। मैंने साथ ही साथ मंजन इत्यादि कर लिया, और खाने की राह देखने लगा। गाँव में ‘नाश्ता’ जैसा कम ही होता है। या तो रात का खाना, या फिर लइया चना गुड़, इस प्रकार की ही व्यवस्था होती है। इसलिए माँ हमारे घर में मेरे लिए पराठे बना रही थीं, जिसको दही और अचार के साथ परोसा जाना था। बगल वाली चाची भी आ गईं थीं, घर को ठीक कराने में माँ की मदद करने। आज उनसे मिलने गाँव के कई लोग आने वाले थे, मतलब दिन भर चहल पहल रहेगी। नाश्ता करने के बाद मैं सवेरे इधर उधर ही रहा। चाची के लड़के मुझे खेत देखने और अमरुद खिलाने ले गए। वापस आते आते ग्यारह बज गए। वापस आया तो देखा कि घर में सात आठ महिलाएँ पहले से ही उपस्थित थीं। माँ से मिले हुए सभी को समय हो गया था, इसलिए सभी उनका कुशल क्षेम जानना चाहती थीं। मुझको देखते ही चाची बोलीं,
“आई गयो लल्ला? आवो, तोहार मालिस कै देई!”
मैंने घबरा कर माँ की तरफ देखा, लेकिन माँ ने मुस्कुरा कर कर रात जैसा ही इशारा किया कि सब ठीक है और मुझे घबराना नहीं चाहिए। चाची ने मुझे माँ की तरफ़ देखते हुए देखा, तो बोलीं,
“अरे, तोहार अम्मैं कहिन हैं। घबड़ाओ नाही। कपड़ा उतार कै आई जावो!”
तो मैं पैंट और शर्ट उतार दी, और उनके पास आ गया। मुझे लगा कि शायद कमरे के एकांत में मेरी मालिश होगी, लेकिन चाची तो वहीं आँगन ही में पीढ़ा डाल कर बैठ गईं। मेरे लेटने के लिए कोई चटाई भी नहीं थी - मतलब उस ईंटे वाली फ़र्श पर ही लेटना था। मैं उनके पास आया तो वो बोलीं,
“ई काहे पहिने हौ?” और मेरी चड्ढी भी उतारने लगीं।
मैं कुछ कहता या करता, उसके पहले ही मैं सबके सामने नंगा हो गया। मेरा शरीर अच्छा था; देखने में सुदर्शन, और स्वस्थ! बस, एक जो ‘ग्रोथ ऑपर्च्युनिटी’ थी, वो अब तक सभी पाठकों को मालूम ही है। सभी स्त्रियों की दृष्टि मुझ पर ही पड़ गई - उनमे से दो-एक की मेरी हमजोली लड़कियाँ भी थीं, और वो माँ से इसलिए भी प्यार मोहब्बत से रहती थीं कि शायद कभी उनकी लड़कियों के हमारे घर की बहू बनने का चांस लग जाए! जाहिर सी बात है, उनको मेरे शरीर में रूचि तो आई ही होगी। होने वाला दामाद स्वस्थ है या नहीं! हा हा हा!
“चाची!” कह कर मैंने अपने लिंग को अपने हाथों से ढँक लिया।
“अरे! अबहीं बड़ा सरमात हौ! और कल राती जब हम तोहार छुन्नी धोवत रहिन, तब तौ नाही सरमात रहयो!”
कह कर चाची ने मेरी मालिश शुरू कर दी। सबसे पहले उन्होंने मेरे हाथों की मालिश की और फिर पैरों की। उसके बाद जाँघों की, और फिर नंबर आया मेरे लिंग की मालिश की। सरसों के तेल से उन्होंने तसल्ली से मेरे लिंग की चमड़ी को पीछे कर के अच्छी तरह से उसकी मालिश करी।
“हमरे बड़के लरिके कै तो लागत है कि भगवान ओका गढ़ते बानी पूरा गारा उधरैं गिराय दिहिन!” एक महिला ने टिप्पणी दी।
उसकी बात सुन कर माँ मुस्कुरा दीं।
“तोहरे लरिका मा ओकरे नूनी के अलावा कुछु हईयै नाही! सुखान मिर्ची बाय तोहार लरिका!” चाची ने कहा, तो कमरे में सभी औरतों की हँसी छूट गई।
“लेकिन भइया के नूनी तनी छोट बाय, दीदी!” किसी अन्य महिला ने अपनी चिंता व्यक्त की।
माँ के कुछ कहने से पहले ही चाची मेरे बचाव में कूद पड़ीं, “ई देखति हौ,” उन्होंने मेरे वृषणों और लिंग के ऊपर की त्वचा को दिखाते हुए कहा, “चिक्कन बाय। अबहीं लल्ला का जवान होवै मा थोरी बेर बाय!”
“हुआँ सहर मा सब सब्जिया सुई लगाय लगाय कै बढ़ावत हैं, सुने हन!” एक महिला ने अपने विशेष ज्ञान का प्रदर्शन किया, “कहाँ से लागै सरीर मा! हियाँ होते भइया, तौ सुद्ध खाना, खूब दूध, दही, घी खवाइत इनका।”
सभी को मालूम था कि वो महिला ऐसा क्यों करतीं। उनकी बेटी मुझसे बस दो साल छोटी थी, और उनकी मंशा थी कि जल्दी ही वो हमारे घर की बहू बन जाए। माँ केवल मुस्कुरा रही थीं।
“अरे, दुधवा तो लल्ला कै महतारी अबहुँ पियावत हैं लल्ला के!”
“का सच्ची दीदी?” वो महिला आश्चर्य से बोलीं, “हमार लौंडवै तौ तीनै साल मा दूध से ऐसे भागत रहै जैसे हम उनका जहर पियावत होइ!” उनकी बात पर सभी हँसने लगे।
“दूध नहीं आता अब, दीदी! लेकिन अब इसकी आदत हो गई है!” माँ ने सफाई दी।
“सुरसतिया, तोहरे दूनो लरिकै अब एक एक बचवन के बाप हैं! उनका तोहार दूध न चाही। दूनो आपन आपन मेहरारू के दुधवा पियत होइहैं अबहीं!”
उनकी इस बात पर सभा में ठहाके लगने लगे।
“सहियै कह्यौ दीदी, हमार छोटकवा पियत रहा वहि दिना! बहुरिया कान्हा का दूध पियाय कै लेटावत रही, और ई वहीं बइठा टपटपावत रहा। कान्हवा का लिटाय कै जैसे ऊ आपन ब्लउजिया बंद करै लाग, ई दहिजरा ओकै दूध पियै लाग!”
“सच्ची दीदी?” माँ ने हँसते हुए कहा।
“अउर का! और पूरा पी लिहिस। कान्हा के ताईं कुछु छोड़बै नाही किहिस दहिजार! कितना बोले हन की अपने बाप भाई कै मदद किया करौ खेते मा! लेकिन जब देखो अपनी मेहरारू के लगे रहत है!”
“कितनी उम्र है उन दोनों की?” माँ ने विनोदपूर्ण तरीके से पूछा।
“छोटकवा तो भइया से दुइ तीन सालै बड़ा होइ, और बहुरिया तो हमार बिटियै जितनी बड़ी बाय!”
मतलब, गाँवों में तब तक भी बहुत अधिक बदलाव नहीं हुआ था। और ऐसी छोटी उम्र की लड़की से और क्या उम्मीद की जाए? वो बच्चा जन पाई, उतना ही बहुत हो गया। कितना ही दूध बना पाएगी वो, कितना ही स्वस्थ होगा उसका बच्चा!
“फिर तो बहुत छोटे हैं दोनों, दीदी!” माँ ने कहा।
“तोहरै जितनी तो बाय बहुरिया हमार... जब तू बियाह कै आई रहियु!”
कहने की आवश्यकता नहीं कि कुछ ही देर की मालिश से मेरे लिंग में समुचित तनाव आ गया। चाची के मालिश करने का तरीका कुछ ऐसा था कि मेरे लिंग में आमतौर से अधिक स्तम्भन हो गया था। जब उसने मेरे लिंग के बढ़े हुए आकार को देखा, तब जा कर उस महिला तो तसल्ली हुई। माँ भी बड़ी रूचि ले कर मेरे लिंग को देख रही थीं।
“बहू, एका सरसों कै तेल लगाय कै अच्छे से रगरा करौ। एमा जब खून जाये तो ई ठीक से बाढ़ै!” चाची बोली।
उधर उन महिला को लगा कि उनके होने वाले दामाद को बाकी औरतें नज़र लगा देंगी, इसलिए उनसे रहा न गया, और वो उठ कर मेरे पास आ गईं, और अपने आँख के काजल का कतरा पोंछ कर मेरे माथे के कोने पर लगा दीं,
“तू सब जनी ऐसे का देखति हौ? हमरे भइया का नजर लगावति हौ!”
“अरे, सुरसतिया, हियाँ सबसे बुरी नजर तोहरै बाय!” चाची ने उनको उलाहना दी।
सभी महिलाएँ हँसने लगीं। माँ भी। एक तो वो उन सभी से उम्र में काफ़ी छोटी थीं, और ऊपर से उनका व्यवहार भी इतना कोमल और मृदुल था, कि उनको सभी का स्नेह भी खूब मिलता था। लोग बाकी लोगों से छल कपट कर लेते थे, लेकिन माँ से नहीं। इसलिए उनको मालूम था कि वहाँ उपस्थित सभी लोग उनके शुभचिंतक ही हैं।
“एक ठो डिठौनवा भइया के छुन्नियवा पै लगाय दियौ!”
यदि किसी को लग रहा था कि वो महिला यह काम नहीं करेंगी, तो उनको गलत लग रहा था। उन्होंने फिर से अपने आँख के काजल का एक और कतरा पोंछा, और मेरे लिंग पर एक टीका लगा दिया। और फिर लिंग को अपनी उँगलियों से नोंच कर उसका चुम्बन भी ले लीं!
“लेट न जायौ!” किसी ने फुसफुसाते हुए कहा।
“मुँहझौंसी! हमार बिटवा आय!” उन्होंने नाराज़ होते हुए कहा।
“दीदी,” एक अन्य अभिलाषी महिला बोली, “लल्ला का करधनिया पहरावा करौ - हम तौ सबका पहिरावा है - हमार बेटवा, बिटिया, बहुरिया, पोता - सबका! सही मा, ऐसे तो लल्ला का नजर लागिन जइहै!”
और बिना किसी उत्तर के इंतज़ार के वो उठीं, बाहर गईं, और दरवाज़े पर खड़ी होकर अपनी बेटी को आवाज़ लगाने लगीं,
“गायत्री... ओ गायत्री।”
“हाँ अम्मा!” बहुत धीमी सी आवाज़ आई।
“अरे ऊ एक ठो करधनिया लिहे आवो हियाँ। जल्दी से।” कह कर वो वापस आ गईं।
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विशेष उल्लेख : कहानी का यह अद्यतन kailash1982 जी के सुझावों से प्रेरित है।
नींव - पहली लड़की - Update 13
चाची ने मुझे लेट जाने को कहा, और मेरी पीठ की मालिश करने लगीं। मेरे शरीर को नीचे ज़मीन से ठण्ड लग रही थी, और ऊपर से मालिश की गर्मी! गर्मी और उमस वाले मौसम में इस मालिश का एक अलग ही आनंद था। फिर मुझे पीठ के बल लिटा कर मेरे सीने और पेट की मालिश हुई। ज़मीन की ठंडक पा कर मेरा लिंग थोड़ा सा आराम पाया, और फिर से छोटा हो गया। किसी ने कहा,
“दीदी, तनी ठीक से मालिस करा। देखौ न, भैया कै नूनी छोट होइ गय!”
“मालिस करति हन, मुठ नाही मारित!” चाची ने कहा, और मुझे फिर से खड़ा कर के लिंग की मालिश करने लगीं। एक मिनट में फिर से लिंग स्तंभित हो गया। आँगन में दस महिलाओं के सामने, खड़े हुए लिंग के साथ, खड़े रह कर अपनी मालिश करवाना थोड़ा अजीब सा तो था।
तब तक दूसरी अभिलाषी महिला की लड़की मेरे लिए करधनी ले कर वहाँ आ गई। मुझे आँगन में नंगा खड़ा हो कर मालिश करवाते देख कर वो थोड़ा हिचकिचाई, लेकिन रुकी नहीं।
“अम्मा,” उसने अपनी माँ से कहा, “ई लियो!”
“तोहार अम्मा का करिहैं करधनी कै?” चाची आज सबकी लेने के मूड में थीं, “पहिनाय दियौ अपने भतार का!”
उनकी बात सुन कर सभी फिर से हँसने लग गए। सभी जान रहे थे कि वो दोनों महिलाएँ किस होड़ में लगी हुई थीं। बस, इस बात कहा था तो केवल चाची ने! लेकिन मुझे उस समय समझ में नहीं आया वो सभी क्यों हँसे! गाँव की भाषा का मुझे अधिक ज्ञान नहीं था।
“क्या दीदी! क्यों बच्चे को ऐसे छेड़ रही हो!” माँ ने चाची से कहा, और फिर उस लड़की से बोला, “पहना दो बेटा! कोई बात नहीं।”
करधनी काले रंग की डोरियों की बनी होती है, और अक्सर एक लूप जैसी होती है। एक सिरे को खींचने से वो ढीली होती या कसती है। मैं उस लड़की की तरफ मुड़ा। वो शायद मेरी उम्र की रही होगी। उसके सीने पर उसके स्तनों के स्पष्ट उभार थे, जो उसके पतले से कुर्ते से दिख रहे थे। लड़की सुन्दर तो थी - गाँव की शुद्ध सुंदरी! करधनी पहनाने का एक आसान तरीका है ऊपर से नीचे पहनना - मतलब सर की तरफ से डाल कर कमर पर कस लिया जाए - और एक कठिन तरीका - नीचे से ऊपर पहनने का - मतलब पैरों की तरफ से डाल कर कमर पर कस लिया जाए। लड़की ने कठिन तरीका चुना। वो करधनी के लूप को फैला कर मेरे सामने बैठ गई और बोली,
“एमा आपन पैर डार दियौ!”
उसका कुरता ढीला था, चौड़े गले वाला था, और लड़की झुकी भी हुई थी। मैंने कोई कोशिश नहीं की, फिर भी लड़की के दोनों, शंक्वाकार स्तन मुझे दिख गए। माँ ने भी देखा कि मैं क्या देख रहा हूँ, और मेरी चेष्टा पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सकीं। मुझको लड़कियों में रूचि आ रही थी, और उनको यह देख कर अच्छा लग रहा था। मैंने बारी बारी से अपना पैर करधनी के लूप में डाला और खड़ा हो गया। लड़की करधन को पकड़े पकड़े खड़ी हो गई। कोई और समय होता तो वो आराम से फिट हो जाती; लेकिन वो करधन छोटी थी। शायद लड़की की अपनी ही नाप की। इसलिए मेरे स्तंभित लिंग पर आ कर अटक गई। उस लड़की ने बेफ़िक्र हो कर अपनी उँगली से मेरे लिंग को मेरे पेट की तरफ दबाया, और मुझे करधन पहना दी। साधारण सी बात! लेकिन रचना के बाद मेरे लिंग को छूने वाली वो दूसरी लड़की बन गई।
“तोहरौ तेल मालिस कै देई, गायत्री?” चाची ने कहा।
उनकी बात पर वो लड़की शरमा कर लाल हो गई। उसकी माँ ने आँखें तरेर कर उसकी तरफ़ देखा, तो वो सकपका कर वहाँ से भागने को हुई। लेकिन माँ ने उसको भागने से पहले ही रोक लिया,
“अरे क्यों नहीं! इसमें शरमाने वाली क्या बात है? इधर आओ! क्या नाम है तुम्हारा बेटा?” उन्होंने बड़े स्नेह से कहा।
“गायत्री” लड़की ने कहा, फिर कुछ सोच कर बोला, “मेरा नाम गायत्री है, माँ जी!”
“जितनी सुन्दर तुम हो न बिटिया रानी, उतना ही सुन्दर तुम्हारा नाम है!”
माँ की बात सुन कर गायत्री बहुत प्रसन्न हो गई। उसकी माँ उससे दो-गुनी प्रसन्न हो गई।
“आवो, तोहरे बाद तोहार सास कै मालिस कै देबै!”
“हाँ, ठीक है दीदी!” माँ ने भी बड़ी सहजता से कह दिया, “अमर बेटा, जाओ, जा कर दरवाज़ा बंद कर दो। कोई अंदर न आ जाए! सब औरतें ही औरतें हैं यहाँ!”
सभी औरतें ही नहीं थीं वहाँ - मैं भी था। शायद मेरा वहाँ, उन सभी के बीच रहना स्वीकार्य था। यह तो बड़ी अच्छी बात थी! मैं गया, और जा कर घर का दरवाज़ा अंदर से बंद कर के वापस आ गया। वापस आया तो देखा कि गायत्री ने अपनी शलवार उतार दी थी, और अपना कुरता उतारने में हिचक रही थी।
“अरे, उतार दियो।” किसी अन्य महिला ने कहा, “का पता, भइया के सामनवैं उतारै का परै कबहिं!”
“मत छेड़ो बच्ची को दीदी,” माँ ने अपनी वही जानी पहचानी कोमलता और ममता से कहा, “बेटा, गायत्री, तुमको कोई जबर्दस्ती नहीं है। अगर ठीक नहीं लग रहा है तो कोई बात नहीं! मैं अपनी मालिश करवा लेती हूँ!”
जब गायत्री दो और पल अनिश्चित सी खड़ी रही, तो माँ अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगीं। उनको देख कर गायत्री भी प्रेरित हो गई और बोली,
“ठीक है, माँ जी!”
“ठीक है? मतलब?” तब तक माँ ने ब्लाउज के चार बटन खोल दिए थे, और अब बस एक ही बाकी था।
“मैं करवा लूँगी!” कह कर उसने भी अपना कुरता उतार दिया।
गायत्री के निर्वस्त्र होते ही उसकी माँ की दृष्टि मेरी माँ पर, और मुझ पर बारी बारी से आ जा रही थी। जैसे वो देखना चाहती हो कि हमने उनकी लड़की को पसंद तो किया है, या नहीं! मानना तो पड़ेगा कि गायत्री की सुंदरता, शुद्ध देसी सुंदरता थी। बड़ा अच्छा, छरहरा शरीर - सुन्दर और मज़बूत गठन! छोटे, शंक्वाकार स्तन, और उनकी चोटियों पर सुशोभित गहरे भूरे रंग के चूचक! पतली, लेकिन एक कारगर इंसान जैसी बाहें - जहाँ कुर्ते की बाहें उसको धूप से ढँके रहती थीं, उसके अतिरिक्त वाला किस्सा साँवला पड़ गया था, लेकिन उसका शरीर अपेक्षाकृत गेहुँए रंग का था। ज़ेवर के नाम पर गायत्री की कमर में एक करधनी बंधी हुई थी, और गले में एक काले रंग का धागा। बस! उसके जघन क्षेत्र पर बाल थे - जैसे रचना के थे। इसलिए उसकी योनि के पतले पतले होंठ भी दिख रहे थे। शायद वहाँ उपस्थित लोगों में मैं ही था जिसके वहाँ पर बाल नहीं थे। ओह, केवल मैं ही नहीं, मेरी माँ भी! गायत्री थोड़ी बेचैन और घबराई हुई अवश्य थी, लेकिन यह उसके लिए कोई पहला मौका नहीं था जब वो अन्य स्त्रियों के सामने नग्न हुई हो। गाँव के लगभग हर कुँए के कुण्ड पर स्त्रियाँ और लड़कियाँ अक्सर निर्वस्त्र हो कर ही नहाती थीं।
तब तक माँ के भी स्तन उजागर हो गए थे। मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूँ कि माँ का शरीर जैसा उनके पच्चीस के होने पर था, लगभग वैसा ही उनके पचास के होने तक रहा। प्रकृति की बड़ी अनूठी अनुकम्पा उन पर रही! एक अभिनेत्री देखी थी - मेग रायन - उनको देख कर कोई उनकी उम्र का अंदाज़ा नहीं लगा सकता था। वैसा ही हाल माँ का था। उनके स्तन सुडौल, ठोस, और गुरुत्व के किसी भी प्रभाव से निस्पृह!
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विशेष उल्लेख : कहानी का यह अद्यतन kailash1982 जी के सुझावों से प्रेरित है।
बहुत ही मजेदार अपडेट थे। फोरम के लिए आपने गांव का रहन सहन थोड़ा बहुत कामुक रखा है। वरना गांव के लोग इतने खुले विचार के नही होते।नींव - पहली लड़की - Update 14
“अरे, दीदीयौ उतारति हैं।” पहले वाली महिला बोली, “हम कै देई तोहार मालिस?”
माँ ने एक पल सोचा, और कहा, “ठीक है दीदी!” और खड़ी हो गईं अपने बाकी के कपड़े उतारने के लिए। एक दो महिलाएँ उनके पास आ गईं उनकी मदद करने के लिए। और शीघ्र ही माँ भी मेरे और गायत्री के समान ही पूर्ण नग्न हो गईं।
“सास पतोहू मा कउनौ अंतरै नाही!” चाची ने माँ को देख कर कहा, और उनकी बात पर सभी ठहाके मार कर हँसने लगे। सच में, अपनी निर्वस्त्र अवस्था में माँ गायत्री से बस कुछ वर्ष ही बड़ी लग रही थीं।
“सही मा! दीदी, तुहौ करधनिया पहिरा करौ!” उनके लिए हर बुरी बात का इलाज़ करधन पहनना ही था।
माँ हँसते हुए गायत्री के बगल आ कर बैठ गईं और उसको प्यार से अपने गले लगा कर बोलीं, “बेटा, इन सबकी बात मत सुनो! तुम बहुत ही प्यारी, बहुत ही सुन्दर लड़की हो!”
उसकी माँ बहुत प्रसन्न हो गई और बोली, “ऊ तौ घामे मा काम करै का परत है, नाही तो हमार बिटिया गोर है खूब!”
“तौ के कहिस की आपन लौंडिया से घामे मा काम कराओ!” किसी ने कहा, “खेलै कूदै दियौ!”
“का खेलै कूदै देई! लउकी जस बाढ़ी जाति हय! कहूँ, अच्छे घरै बियाह होइ जाय तौ सांती हुवै! अउर काम ना करिहैं तो कईसे चले!”
सच में गाँव में उस समय बहुत गरीबी थी। हम भी वैत्तिक रूप से कोई संपन्न नहीं थे - महीने के अंत में बस थोड़े से ही रुपए बचते थे। लेकिन उतने में ही हम गाँव वासियों के लिए धन्ना सेठ जैसे थे। यह सब बातें मुझे थोड़ा और बड़े होने पर समझ आई। माँ का सारा भोलापन लगता है कि मुझे ही मिल गया था। या यह कह लीजिए कि उनके ममतामय पालन पोषण के कारण मेरे मन में छल कपट बिलकुल भी नहीं आया (बहुत बाद में आया)! माँ लेकिन हमेशा प्रेम, ममता, मृदुलता, मृदुभषिता, और भोलेपन की प्रतिमूर्ति रहीं! सच में, उस अभाव में भी अगर हमारे घर में प्रसन्नता और सुख था, तो उसका सबसे बड़ा कारण माँ ही रहीं।
“भगवान् ने चाहा, तो सब ठीक हो जाएगा, दीदी!” माँ ने कहा, “आप चिंता न करें!”
माँ और गायत्री की मालिश शुरू हो गई। सच में, चाची ने मेरी जो मालिश की थी, उससे आनंद तो आया ही आया, और साथ ही शरीर में स्फूर्ति भी खूब आई। मुझे उम्मीद थी कि माँ को भी ऐसा ही आनंद मिले। जितनी तसल्ली से चाची ने मेरी मालिश की थी, वैसी तसल्ली उन्होंने गायत्री की करते हुए नहीं दिखाई।
“चाची,” मैंने भोलेपन की एक्टिंग करते हुए कहा, “गायत्री के छुन्नी क्यों नहीं है?”
“बिटवा, छुन्नी जोन है न, लरिकन कै होवत है। ई तोहार जस खरा बाय, ई हियाँ जात है,” उन्होंने गायत्री की योनि के होंठों को थोड़ा खोल कर मुझे दिखाया।
“अमर,” माँ ने भी बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “बदमाशी नहीं!”
“औरतन अउर लड़कियन के लगे चूत होवत है, और लरिकन के लगे छुन्नू!”
“दीदी, उसको ये सब मत सिखाओ!” माँ ने चाची से कहा। वो भी मेरे भोलेपन की एक्टिंग में मेरा साथ दे रही थीं। एक महिला उनके स्तनों की मालिश कर रही थी, और दूसरी उनकी जाँघों की। उनकी आँखें बंद थीं।
“अरे बहू, ई सब न जाने हमार लल्ला, तो कइसे चले?” उन्होंने माँ को समझाते हुए कहा, “तू ओका कुछु सिखौतै नाही न! यही सब तौ सबसे जरूरी बाय जिंदगी मा जानै
“बिगड़ के जाएगा मेरा लड़का यहाँ से!”
गायत्री अब मुझे बड़ी रूचि ले कर देख रही थी।
“तू... तुम्हारा नाम क्या है?” उसने पूछा।
“अमर!”
“अपने भतार कै नाव नाही लिया जात, समझियु!” चाची ने उसको छेड़ा। आँगन में फिर से ठहाके गूँज उठे। बेचारी गायत्री मन मसोस के रह गई।
“हियाँ आवो लल्ला,” चाची ने मुझे अपने बगल बैठने को बुलाया, और फुसफुसाते हुए पुछा, “एका छुई कै देखबो?” वो पूछ रही थीं कि क्या मैं गायत्री के स्तन छूना चाहता हूँ! अरे बिलकुल! लेकिन माँ?
मैंने शंका से माँ की तरफ देखा, उनकी आँखें बंद थीं, और उनकी मालिश करने वाली महिला, उनकी योनि के होंठों को थोड़ा सा मसल रही थी, और उनसे कह रही थी, “दीदी, तुमहुँ बिटियै जस हौ! एक लरिका कै महतारी बन गयु, लेकिन हौ पूरी बिटियै!”
गायत्री मेरी ही तरफ देख रही थी। मैं ‘हाँ’ में सर हिलाया, और अपना हाथ उसके एक स्तन पर रख दिया। ठोस स्तन! माँ जैसे! छोटे, लेकिन ठोस! उसकी माँ भी मुझे अपनी बेटी के साथ ऐसे छेड़-छाड़ करते हुए देख रही थी। लेकिन कह कुछ नहीं रही थी। उसने अपनी माँ की तरफ़ देखा, और उनके चेहरे पर इस कृत्य के लिए मूक सहमति देख कर वो भी थोड़ी सहज हो गई। मैंने फिलहाल उसके दोनों स्तन पकड़ लिए, और मज़ाकिया ढंग से उनको अपनी हथेली से दबा दिया। उसके चूचक उठ आए। वो हलके से मुस्कुरा दी,
“कैसा लगा?” उसने पूछ लिया।
“बहुत सुन्दर!” मैंने कहा।
“हाँ! अब बाकी सब बियाहे के बाद किह्यौ!” चाची ने कहा, तो मैंने गायत्री को छोड़ दिया।
कुछ देर बाद माँ की मालिश भी समाप्त हो गई। उनका शरीर दमकने लगा था और बढ़े हुए रक्त प्रवाह से पूरे शरीर पर एक लाल रंगत फ़ैल गई थी। सच में, माँ और उनका भोला सौंदर्य! उनसे सुन्दर स्त्री मैंने जीवन में कोई नहीं देखी!
“नहाने का क्या करें?” उन्होंने पूछा।
“अरे बहू, अबहीं न नहाओ! संझा का नहाय लिह्यौ!”
“ठीक है दीदी! लेकिन तेल तेल महकेगा!” माँ ने हँसते हुए कहा।
“महकै दियौ! आज राते हमरे घरै लेट जायौ। काल हियाँ सब ब्यवस्था होई जायै! ठीक है?”
“ठीक है दीदी!”
माँ, मैंने और गायत्री ने फिर से अपने कपड़े पहन लिए। माँ ने गायत्री को अपने पास बुलाया, और फिर अपने पैरों की पायल उतार कर गायत्री के हाथों में दे दी। माँ के पास बस दो ही जोड़ी पायल थीं, और यहाँ आने के लिए उन्होंने भारी वाली पायल पहनी थी। इसलिए मुझे आश्चर्य हुआ कि उन्होंने वो पायल गायत्री को दे दी।
“गायत्री बेटा,” माँ ने कहा, “अपनी माँ की बात पर चिंता न किया कर! वो माँ है न! उनका काम ही चिंता करना है।” और गायत्री के माथे को चूम लिया। वो इतनी भावुक हो गई कि कुछ बोल ही न सकी। बस माँ के पैरों को छू कर, अपने आँसू पोंछते हुए घर से बाहर निकल गई।
बाद में जब मैंने माँ से पूछा कि उन्होंने अपनी भारी वाली पायल गायत्री को क्यों दे दी, तो उन्होंने कहा कि उनसे अधिक, गायत्री को उसकी आवश्यकता थी। इसी बहाने से उसके पास अपने विवाह के लिए एक आभूषण हो गया। कैसी हैं मेरी माँ! दूसरों को अधिक दे कर, अपने पास कम रखना - ऐसी हैं मेरी माँ! मालिश के बाद हम सभी दिन के बाकी कामों में व्यस्त हो गए। दोपहर का भोजन भी चाची के यहाँ ही था, जिसको सभी महिलाओं ने मिल कर पकाया। भोजन के बाद मैं माँ के साथ आँगन में ही ज़मीन पर एक चद्दर डाल कर सो गया। गर्मी बहुत थी, इसलिए मैं नंगा हो गया, और माँ भी। ऐसा बहुत कम ही हुआ है। उधर डैड खाना खा कर कल से शुरू होने वाले काम के लिए मिस्त्री और मजदूरों से बात करने में लग गए।
शाम होने पर जब मेरी नींद खुली, तो मैंने पाया कि माँ नहा कर, तरोताज़ा हो कर, तैयार बैठी हैं। चाची भी थीं, चाचा भी, और डैड भी। चाची का छोटा बेटा, जो मेरी उम्र का था, वो भी वहाँ बैठा था।
“ननकऊ,” चाची ने कहा, “लल्ला का नहुवाय कै लै आवो!”
“हाँ बेटा,” माँ ने भी कहा, “जाओ और नहा कर आ जाओ!”
“ऐसे?”
“हाँ, तुम्हारे कपड़े धुल गए हैं, और नए कपड़े नहाने के बाद मिलेंगे!”
नहा कर वापस आने पर मैं भी तैयार हुआ। गाँव के मंदिर में संध्या वंदन बड़ा सुन्दर होता है और माँ और डैड उसको देखना चाहते थे। हम मंदिर में ठीक समय पर पहुँचे। आरती का आनंद उठाया और ख़ुशी ख़ुशी घर वापस आ गए।
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विशेष उल्लेख : कहानी का यह अद्यतन kailash1982 जी के सुझावों से प्रेरित है।
बहुत ही मजेदार अपडेट थे। फोरम के लिए आपने गांव का रहन सहन थोड़ा बहुत कामुक रखा है। वरना गांव के लोग इतने खुले विचार के नही होते।
आपने बीच बीच में थोड़ी थोड़ी सायद भोजपुरी भाषा का भी उपयोग किया है। थोड़ा समझने में मुश्केली हुवी, पर काम चल गया।
और आखिर में अमर की मां ने जो गायत्री को अपनी पायल दिया ये सोच कर की उसके ब्याह में काम आ जाएगा। दिल छू लिया avsji ।
मेने फिल्मों के नजर से नहीं, मेरे पिता जी के गांव के नजर से ये कहा था।गाँवों के किस्से अगर मैं आपको सुनाने बैठूँ, तो आप चक्कर में पड़ जाएँगे कि क्या ऐसा भी होता है!
दरअसल, फिल्मों ने गाँवों का चरित्र-चित्रण कुछ ऐसा कर दिया है कि लगता है कि देश के संस्कार वहीं सुरक्षित हैं। लेकिन, ऐसा है नहीं।
बहुत कम रहा हूँ गाँवों में - लेकिन दुश्चरित्रता, बदमाशी, दूसरों के काम में दखल, और साथ ही साथ, सेक्सुअल खुलापन - यह सब देखा है मैंने।
उनके सामने शहर का चरित्र बहुत भोला लगेगा। ख़ैर, ये बहस कभी और के लिए!
Link ko copy paste karoये क्या है मित्र? लिंक तो काम ही नहीं कर रही।