Black horse
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एक दम कोमल जैसा,
पर कठोर अहसास की याद कराता हुआ
लजवाब लेखन,उडी आया दुपट्टा बनारस से , उडी आया ,
शादी के तीसरे चौथे दिन, जब छत पर खूब खुल के गाना बजाना हुआ , अपनी सास की फरमाइस पर मैंने वो वो गालियां सुनाई की जो सुन के मैं खुद कान में ऊँगली डाल लेती थी, और गाली बिना ननद का नाम लिए और ननद पर ननद के भाई को चढ़ाये पूरी नहीं होती, और जैसे मैंने गारी शुरू की ,
उडी आया दुपट्टा बनारस से , उडी आया ,
हमारे सैंया गुड्डी रानी को बुलावें , अपनी बहिनी के बुलावें , एलवल वाली को बुलावें,
आँख मार के बुलावें , अरहरिया बुलावें , गन्ने के खेत में बुलावें ,
चुम्मा लेव के बुलावैं , जोबना मीजै के बुलावें,...
वो एकदम अलफ़, गुस्से में लाल,...
बस उसी समय मैंने तय कर लिया , चाहे जो कुछ भी जो जाय तेरे ऊपर तेरे इसी भैया को चढ़ाउंगी जरूर , वो भी अपने सामने, ...
तो खूंटा लगाने का काम मैंने किया , शाम को फटने के पहले जहाँ हलकी सी सिर्फ दरार दिखती थी , वाहन अब एक बहुत छोटा सा छेद दिख रहा था , छोटा सा , लेकिन मेरे काम के लिए काफी था ,
बस फैलाया, सटायाऔर धँसाने का काम उस के सीधे साधे भैया का था,
और उसके भैया का था भी कितना मोटा, मेरी कलाई से कम मोटा नहीं था , पूरे कोल्ड ड्रिंक के कैन इतना मोटा,
शाम को तो कम्मो भौजी ने शुद्ध उनके गाँव का कोल्हू का पेरा कच्ची घानी वाला असली कडुआ तेल लगाया था , चुपड़ चुपड़ कर अपने देवर के मोटे सुपाड़े पर ,
पर अबकी तो एकदम सूखा, असल में एकदम सूखा भी नहीं उनकी बहिनिया ने चूस चाट के जितना गीला किया था बस उतना,
गप्पाक, गजब का जोर था इनकी कमर में , एक बार में पूरी ताकत से पेल दिया इन्होने,
उईईई ओह्ह्ह नाहीई , ओह्ह उईईईईई ,
फीट भर तो वो उछली होगी ही, ऐसा दर्द तो जब झिल्ली फटी थी तब भी नहीं हुआ था मेरी ननदिया को,
आँखों में आंसू नाच रहे थे , दोनों हाथों उसने कस के बिस्तर की चादर को दबोच रखा था ,
सिर्फ मेरी ननद के थूक से गीला लंड , उस कसी चूत में दरेरता, रगड़ता, फाड़ता घुस रहा था , पक्का चूत की चमड़ी थोड़ी बहुत तो जरूर छिली होगी,
वो ठेल रहे थे , पेल रहे थे पूरी ताकत से उस फैली हुयी जांघों के बीच पूरी ताकत से धकेल रहे थे,
वो बार बार चीख रही थी , उईईई उईईई , ओह्ह्ह्हह्ह नहीं
तड़प रही थी , और अगर किसी को मेरी ननद के इस होने वाले दर्द का अंदाज था तो वो था , कम्मो भौजी को और उन्होंने सुपाड़ा घुसने के साथ ही मोर्चा संभाल लिया था , ननद रानी के सर की ओर , और सर अब ननद की भौजी के गोद में था , अपने दोनों सँड़सी जैसी मजबूत पकड़ वाली कलाइयों से कम्मो भौजी ने गुड्डी रानी के दोनों कंधो को दबा रखा था पूरी ताकत से और अब ननद रानी चिल्ला सकती थीं , रो सकती थीं , तड़प सकती थीं , लेकिन छिटक नहीं सकती थी ,
दो खारे आंसू टपक कर ननद के नमकीन गालों पर आ गए और कम्मो ने झुक के उन्हें चाट लिया और हलके से गाल भी काट लिया।
लेकिन ये ठेलते जा रहे थे , धकेलते जा रहे थे करीब चार साढ़े चार इंच धंस गया तब वो रुके आधा करीब अभी भी बाहर था।
पर कम्मो ने गारियों की बारिश शुरू कर दी ,
" स्साले ये बाकी किस भोंसड़ी वाले के लिए , स्साले ससुराल में तेरी ये कोरी कुँवारी गाँड़ तेरी सास और सलहज होली में मार मार कर, लेकिन उसके पहले मैं ही कोहनी तक पेलकर, ... "
एक दम कोमल जैसा,
पर कठोर अहसास की याद कराता हुआ