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Erotica मोहे रंग दे

Black horse

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उडी आया दुपट्टा बनारस से , उडी आया ,





शादी के तीसरे चौथे दिन, जब छत पर खूब खुल के गाना बजाना हुआ , अपनी सास की फरमाइस पर मैंने वो वो गालियां सुनाई की जो सुन के मैं खुद कान में ऊँगली डाल लेती थी, और गाली बिना ननद का नाम लिए और ननद पर ननद के भाई को चढ़ाये पूरी नहीं होती, और जैसे मैंने गारी शुरू की ,



उडी आया दुपट्टा बनारस से , उडी आया ,


हमारे सैंया गुड्डी रानी को बुलावें , अपनी बहिनी के बुलावें , एलवल वाली को बुलावें,

आँख मार के बुलावें , अरहरिया बुलावें , गन्ने के खेत में बुलावें ,


चुम्मा लेव के बुलावैं , जोबना मीजै के बुलावें,...



वो एकदम अलफ़, गुस्से में लाल,...



बस उसी समय मैंने तय कर लिया , चाहे जो कुछ भी जो जाय तेरे ऊपर तेरे इसी भैया को चढ़ाउंगी जरूर , वो भी अपने सामने, ...



तो खूंटा लगाने का काम मैंने किया , शाम को फटने के पहले जहाँ हलकी सी सिर्फ दरार दिखती थी , वाहन अब एक बहुत छोटा सा छेद दिख रहा था , छोटा सा , लेकिन मेरे काम के लिए काफी था ,



बस फैलाया, सटायाऔर धँसाने का काम उस के सीधे साधे भैया का था,



और उसके भैया का था भी कितना मोटा, मेरी कलाई से कम मोटा नहीं था , पूरे कोल्ड ड्रिंक के कैन इतना मोटा,



शाम को तो कम्मो भौजी ने शुद्ध उनके गाँव का कोल्हू का पेरा कच्ची घानी वाला असली कडुआ तेल लगाया था , चुपड़ चुपड़ कर अपने देवर के मोटे सुपाड़े पर ,



पर अबकी तो एकदम सूखा, असल में एकदम सूखा भी नहीं उनकी बहिनिया ने चूस चाट के जितना गीला किया था बस उतना,



गप्पाक, गजब का जोर था इनकी कमर में , एक बार में पूरी ताकत से पेल दिया इन्होने,



उईईई ओह्ह्ह नाहीई , ओह्ह उईईईईई ,



फीट भर तो वो उछली होगी ही, ऐसा दर्द तो जब झिल्ली फटी थी तब भी नहीं हुआ था मेरी ननदिया को,
आँखों में आंसू नाच रहे थे , दोनों हाथों उसने कस के बिस्तर की चादर को दबोच रखा था ,


सिर्फ मेरी ननद के थूक से गीला लंड , उस कसी चूत में दरेरता, रगड़ता, फाड़ता घुस रहा था , पक्का चूत की चमड़ी थोड़ी बहुत तो जरूर छिली होगी,

वो ठेल रहे थे , पेल रहे थे पूरी ताकत से उस फैली हुयी जांघों के बीच पूरी ताकत से धकेल रहे थे,



वो बार बार चीख रही थी , उईईई उईईई , ओह्ह्ह्हह्ह नहीं


तड़प रही थी , और अगर किसी को मेरी ननद के इस होने वाले दर्द का अंदाज था तो वो था , कम्मो भौजी को और उन्होंने सुपाड़ा घुसने के साथ ही मोर्चा संभाल लिया था , ननद रानी के सर की ओर , और सर अब ननद की भौजी के गोद में था , अपने दोनों सँड़सी जैसी मजबूत पकड़ वाली कलाइयों से कम्मो भौजी ने गुड्डी रानी के दोनों कंधो को दबा रखा था पूरी ताकत से और अब ननद रानी चिल्ला सकती थीं , रो सकती थीं , तड़प सकती थीं , लेकिन छिटक नहीं सकती थी ,



दो खारे आंसू टपक कर ननद के नमकीन गालों पर आ गए और कम्मो ने झुक के उन्हें चाट लिया और हलके से गाल भी काट लिया।



लेकिन ये ठेलते जा रहे थे , धकेलते जा रहे थे करीब चार साढ़े चार इंच धंस गया तब वो रुके आधा करीब अभी भी बाहर था।



पर कम्मो ने गारियों की बारिश शुरू कर दी ,


" स्साले ये बाकी किस भोंसड़ी वाले के लिए , स्साले ससुराल में तेरी ये कोरी कुँवारी गाँड़ तेरी सास और सलहज होली में मार मार कर, लेकिन उसके पहले मैं ही कोहनी तक पेलकर, ... "


लजवाब लेखन,
एक दम कोमल जैसा,
पर कठोर अहसास की याद कराता हुआ
 
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komaalrani

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कहानी लिखने का शिल्प आसान नही होता पर आपकी तो मास्टरी है। मुग्ध करने वाली। एक लेखक या लेखिका के स्तर से बहुत ऊपर ।आपको कहानियों मे रुपक और उपमाओं का प्रयोग इतना सुंदर होता है कि जब सोचा हूं कि कमेंट्री करें तो लालच कहता है अगले अपडेट मे। आपकी तरह मै शब्दों का जादूगर नहीं। इतना ही कहूंगा अप्रतिम। लिखते लिये। प्रतीक्षा तो आपकी और आपके प्रत्युत्तर की हमेशा रहती है।
बहुत जल्द, इतने स्नेह में पगे मीठे शब्दों का उत्तर देने की सामर्थ्य मुझमे नहीं हैं , बस यही कर सकती हूँ की अगली पोस्ट , पोस्ट कर दूँ।
 

komaalrani

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उडी आया दुपट्टा बनारस से , उडी आया ,

हमारे सैंया गुड्डी रानी को बुलावें , अपनी बहिनी के बुलावें , एलवल वाली को बुलावें,

आँख मार के बुलावें , अरहरिया बुलावें , गन्ने के खेत में बुलावें ,
चुम्मा लेव के बुलावैं , जोबना मीजै के बुलावें।



🔥🔥🔥ऐसी गारी सुन के लंड खड़ा हो जाता है।

सच में कोमल रानी का कोई जवाब नहीं।


मीठी रसीली गारियों का मजा वही समझ सकता है जिसने ये गारियां गायीं हों या सुनी हों,
 

komaalrani

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लजवाब लेखन,
एक दम कोमल जैसा,
पर कठोर अहसास की याद कराता हुआ


Thanks so much next part soon
 
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komaalrani

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ननद,



ननद के भैया






दो खारे आंसू टपक कर ननद के नमकीन गालों पर आ गए और कम्मो ने झुक के उन्हें चाट लिया और हलके से गाल भी काट लिया।



लेकिन ये ठेलते जा रहे थे , धकेलते जा रहे थे करीब चार साढ़े चार इंच धंस गया तब वो रुके आधा करीब अभी भी बाहर था।



पर कम्मो ने गारियों की बारिश शुरू कर दी ,

" स्साले ये बाकी किस भोंसड़ी वाले के लिए , स्साले ससुराल में तेरी ये कोरी कुँवारी गाँड़ तेरी सास और सलहज होली में मार मार कर, लेकिन उसके पहले मैं ही कोहनी तक पेलकर, ... "



गुड्डी की सिसकियाँ तो पहले ही रुक गयी थीं , अब वो कम्मो भौजी की रसीली गारियाँ सुन के हलके हलके मुस्कराने लगी थी, ... और इन्होने भी हलके हलके अपना खूंटा थोड़ा सा बाहर बहुत धीरे धीरे खींचने लगे ,



कभी स्टिल कभी वीडियो खींचते मैं समझ रही थी क्या होने वाला है , असली भरतपुर पर तो हमला अब होगा,



और वही हुआ , आलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाल के एक बार फिर उन्होंने कस के अपनी छुटकी बहिनिया की कटीली पतली कमरिया कस के पकड़ी और पूरी ताकत से ,



और अबकी धक्के पर धक्के , एक के बाद ,

ननद रानी चीखते चीखते थक गयी थीं बस अब रुक रुक कर सुबक रही थीं ,





लेकिन अब कम्मो ने अपना रोल बदला और उसके दोनों हाथ दोनों छोटे छोटे जोबन पर , जिस जोबना पर सारे मोहल्ले के लौंडे दीवाने थे

भौजी का एक हाथ जोबन को सहला रहा था , दबा मसल रहा था और दूसरा हल्का हल्का निप्स को कभी पुल करता कभी पिंच, ...


कुछ देर में ही ननद का कहरना मस्ती भरी सिसकियों में बदल गया ,



कम्मो अब झुक के कभी ननद के होंठों को चूम लेती तो कभी उसकी चूँची चूस लेती , ननद भी भौजाई के चुम्मे का जवाब दे रही थी



उसकी पूरी देह से लग रहा था उसे मजा आ रहा है , पर कुछ देर के बाद उन्होंने एक बार अपने खूंटे को हल्का सा पीछे कर के , इतनी कस के



मैं होती तो मेरी भी चीख निकल जाती , इतना जोरदार धक्का था

गुड्डी जोर से चीख पड़ी ,

पर ये रुके नहीं ,

वो चीखती रही ये चोदते रहे , और मुझे आँख पर विश्वास नहीं हुआ कैसे उसकी चीख सिसकियों में बदली, उसकी देह हलके हलके काँप रही थी , वो कगार पर थी ,

और इन्होने एक जोरदार धक्का , पक्का अबकी सीधे बच्चेदानी पर लगा होगा ,





और गुड्डी एक बार फिर बिस्तर से उछल रही थी , मचल रही थी , दर्द से नहीं मजे से , वो तो कम्मो ने उसे कस के पकड़ रखा था

एक बार झड़ना बंद होता तो बस पल भर रुक के दूसरी बार, तीसरी बार, चौथी बार,



उन्होंने पूरी ताकत से ८ इंच का खूंटा अपनी छोटी बहिनिया के अंदर जड़ तक ठेल रखा था, मोटा सुपाड़ा उस किशोरी के बच्चेदानी से चिपका

झड़ झड़ के मेरी ननद थेथर हो गयी, और थक कर एकदम रुक गयी , कुछ देर भाई बहिन दोनों ऐसे पड़े रहे , लेकिन कम्मो कहाँ मानने वाली,



भौजी ने अपने देवर को इशारा किया,

खूंटा अभी भी भौजी की ननद की चूत में जड़ तक धंसा था , जिस चूत में एक दिन पहले तक तर्जनी ऊँगली घुसाना मुश्किल लग रहा था वो अब आठ इंच लम्बा ढाई इंच मोटा मूसल जड़ तक घोंटे पड़ी थी,



बिना एक सूत भी बाहर निकाले ही उन्होने लंड के बेस से अपनी छोटी बहिनिया की क्लिट पर रगड़ना शुरू किया, पहले थोड़ी देर बहुत धीमे धीमे, फिर तेजी से ,



लगता था कोई बड़ा बाँध टूट पड़ा , मेरी ननद एक बार फिर से कांपने लगी , सिसकने लगी , उसकी पूरी देह मुड़ तुड़ रही थी ,


जैसे तेज तूफ़ान, तेज बारिश रुकने के बाद बहुत देर तक पत्तों से , घरों की छत से पानी की बूँदें धीरे टपकती रहती हैं , हवा हलकी हलकी चलती है बस उसी तरह



अबकी जब ननद रुकी तो ये भी , फिर इनके खूंटे के अलावा हर इनके अंग,



उँगलियाँ होंठ जीभ



गाल हलके हलके सहलाते हुए चूम कर पहले उन्होंने दर्द से डूबी आँखों को बंद किया अपने होंठों से , और होंठ कभी मेरी ननद के रसीले होंठों पर



कभी नए नए आ रहे थे जोबन पर , थोड़ी देर में एक उभार इनके हाथों के बीच और दूसरा इनके होंठों के बीच



मुझसे कोई पूछे इनकी उँगलियों और होंठों का जादू ,



थोड़ी देर में मेरी ननद पिघल रही थी मचल रही थी चुम्मे का जवाब चुम्मे से दे रही थी खुद अपने छोटे छोटे उभार इनकी छाती से रगड़ रही थी

और जब वो अपने छोटे छोटे चूतड़ खुद उछालने लगी तो ये समझ गए , धक्के फिर शुरू हो गए लेकिन हलके हलके



दो चार धक्के ये मारते तो एक दो बार वो नीचे से अपने चूतड़ उछालती और ये मस्ती में उसके मटर के नए आये दाने के बराबर निप्स चूसने लगते और वो खुद इन्हे खींच कर इशारे करती और धक्कों का जोर बढ़ जाता,



थोड़ी देर बाद वो फिर झड़ने लगी ,
 

komaalrani

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मेरा सांड़







और जब वो अपने छोटे छोटे चूतड़ खुद उछालने लगी तो ये समझ गए , धक्के फिर शुरू हो गए लेकिन हलके हलके



दो चार धक्के ये मारते तो एक दो बार वो नीचे से अपने चूतड़ उछालती और ये मस्ती में उसके मटर के नए आये दाने के बराबर निप्स चूसने लगते





और वो खुद इन्हे खींच कर इशारे करती और धक्कों का जोर बढ़ जाता,
थोड़ी देर बाद वो फिर झड़ने लगी ,

लेकिन मेरा सांड़ इतनी जल्दी पानी छोड़ने वाला नहीं था ,

तीसरी बार जब मेरी ननदिया झड़ी दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद तो ये भी साथ साथ , लेकिन लंड पूरी तरह अंदर धंसा , ये पूरी तरह उसके ऊपर लेटे



और चार पांच मिनट तक भैया और छुटकी बहिनिया , एक दूसरे से चिपके,

और जब ये अलग हुए तो मैंने घडी की ओर देखा आधे घंटे से भी ज्यादा,

ननद रानी की जांघों के बीच गाढ़ी थक्केदार मलाई भरी पड़ी थी, बहकर, रिसकर जाँघों पर भी आ रही थी।



और रात की अभी ये शुरुआत थी।



…..

आधे घण्टे की तूफानी चुदाई के बाद वो थोड़े थके पड़े थे, पर चुपके चुपके अपने माल को, छुटकी बहिनिया को टुकुर टुकुर देख रहे थे. ननद रानी ने अपने भैया को चोरी चोरी ललचाते देखा तो एक पल के लिए वो भी लाल गुलाल हो गयी,पर अगले ही पल बढ़ के उसने अपने भैया को चूम लिया और उनके सीने में अपना सर छुपा लिया।



वो भले आराम करें, पर हम दोनों भौजाइयां अपनी ननद को आराम नहीं करने देने वाले थे.

पहला हाथ कम्मो ने मारा ननद रानी की बिल से अभी भी बूँद बूँद रिसती गाढ़ी मलाई पर और अपनी हथेली से दरेररते चिढ़ाया,



" हे ननद रानी, इतना बढ़िया गाढ़ी मलाई कहाँ से मिलल?"



ननद रानी एक मिनट के लिए हिचकीं, अपने भैया को देख के शरमाई पर कम्मो ऐसी भौजाई के रहते कौन ननद शरमा के बच सकती थी।



कम्मो ने तुरंत वार्निंग दे दी ,

" अरे अब तो मलाई घोंट के बिलिया गील हो गईल है, बोला नहीं तो आपन मुट्ठी डार देब पूरी "

शरमाते लजाते गुड्डी रानी ने कबूला, " मेरे भैया की है। "

पर कम्मो ने कस के उस शोख कमसिन कच्ची कली के निपल उमेठने शुरू किये,




और उस एलवल वाली ने जब तक जोर जोर से अपने भैया को सुनाते हुए बोल न दिया, मेरे भैया के लंड की मलाई है , तब तक नहीं छोड़ा।



मैं भी अपनी ननद के बगल में बैठी थी. मैंने दो उँगलियों से उसकी गोरी गोरी मांसल जांघों पर जम रही थक्केदार रबड़ी मलाई को समेटा, फिर उसके प्रेमद्वार पर लगी मलाई को भी दोनों उँगलियों में लपेटा, दूसरे हाथ से ननद रानी के गाल दबाकर मुंह खुलवाया और सीधे वो नीचे वाले मुंह की रबड़ी मलाई, ऊपर वाले मुंह में,



" अरे नीचे वाले मुंह ने स्वाद ले लिया तो ज़रा ऊपर वाले मुंह से भी स्वाद ले के बता न कैसी है तेरी भैया की रबड़ी मलाई। "



वो नदीदी, शैतान, मेरी उँगलियों को चूस चूस के खूब रस ले ले के, और एक बूँद जो उसके होंठों पर लिथड़ गयी थी, जीभ निकाल के उसे भी चाट लिया, जैसे कह रही हो , भाभी मेरे प्यारे प्यारे भैया की है, मैं क्यों एक भी बूँद बर्बाद होने दूँ,



मेरी उँगलियाँ ऊपर वाले मुंह में तो तो दूसरी भौजी, कम्मो भौजी की दो उँगलियाँ नीचे वाले मुंह में और करोच करोच के वो सारी मलाई निकाल रही थीं ,



और वो सब ननद रानी के छोटे छोटे जोबन पर और साथ में भौजी का आशीर्वाद,

" अरे भैया क मलाई लगने से दिन दूना रात चौगुना ये जोबन बढ़ेंगे। "



मेरी ननद के जोबना सच में एकदम मस्त थे , टेनिस बॉल की साइज के, गोल गोल और खूब कड़े, अकड़े,... पहली बार तो कोई दबाने वाला मिला था,



जो कहते हैं न चूँचिया उठान, एकदम वही, उभरते हुए जोबन,

और उस पर जिस तरह से दूध फेन की तरह कम्मो भौजी ने मेरे मरद की मलाई मेरी टीनेजर ननदी के आ रहे जोबन पर लपेटी थी,... एकदम मस्त लग रही थी,


निपल पर लगी मलाई को मैंने एक ऊँगली में लपेटा और सीधे एक बार फिर से ननद के मुंह में और छेड़ा,



" हे अभी टेस्ट कर ले, बाद में जब मेरे भाइयों की चखोगी तो पूछूँगी, किसका ज्यादा स्वादिष्ट था "



बड़े मजे से मेरी ऊँगली से अपने भइया की मलाई चाटती चूसती वो शोख बोली,



" अरे भाभी, मेरे भैया से ज्यादा स्वादिष्ट किसी का हो सकता है क्या?"



तब तक कम्मो ने एक बार फिर से गुड्डी रानी की गुलाबो की ओर, एक साथ दो उँगलियाँ, वैसे तो जा नहीं सकती थीं, पर एक के ऊपर एक रखकर उन्होंने साथ साथ कस के कलाई की पूरी ताकत लगा के ठेल दी, और अंदर जाकर कैंची की फाल तरह दोनों उंगलिया फैला दी, गुड्डी जोर से चीख पड़ी.



मैं भी कम्मो का साथ देने पहुँच गयी, मैं पहले अपनी ननद की गोरी चिकनी खुली मांसल जाँघों को सहलाती रही, फिर कम्मो ने जोर से आँख मार के इशारा किया,



" भौजाई दो -दो और मजा सिर्फ एक ही ले, बड़ी नाइंसाफी है "

 

komaalrani

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ननद,



ननद के भैया






दो खारे आंसू टपक कर ननद के नमकीन गालों पर आ गए और कम्मो ने झुक के उन्हें चाट लिया और हलके से गाल भी काट लिया।



लेकिन ये ठेलते जा रहे थे , धकेलते जा रहे थे करीब चार साढ़े चार इंच धंस गया तब वो रुके आधा करीब अभी भी बाहर था।



पर कम्मो ने गारियों की बारिश शुरू कर दी ,

" स्साले ये बाकी किस भोंसड़ी वाले के लिए , स्साले ससुराल में तेरी ये कोरी कुँवारी गाँड़ तेरी सास और सलहज होली में मार मार कर, लेकिन उसके पहले मैं ही कोहनी तक पेलकर, ... "



गुड्डी की सिसकियाँ तो पहले ही रुक गयी थीं , अब वो कम्मो भौजी की रसीली गारियाँ सुन के हलके हलके मुस्कराने लगी थी, ... और इन्होने भी हलके हलके अपना खूंटा थोड़ा सा बाहर बहुत धीरे धीरे खींचने लगे ,



कभी स्टिल कभी वीडियो खींचते मैं समझ रही थी क्या होने वाला है , असली भरतपुर पर तो हमला अब होगा,



और वही हुआ , आलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाल के एक बार फिर उन्होंने कस के अपनी छुटकी बहिनिया की कटीली पतली कमरिया कस के पकड़ी और पूरी ताकत से ,



और अबकी धक्के पर धक्के , एक के बाद ,

ननद रानी चीखते चीखते थक गयी थीं बस अब रुक रुक कर सुबक रही थीं ,





लेकिन अब कम्मो ने अपना रोल बदला और उसके दोनों हाथ दोनों छोटे छोटे जोबन पर , जिस जोबना पर सारे मोहल्ले के लौंडे दीवाने थे

भौजी का एक हाथ जोबन को सहला रहा था , दबा मसल रहा था और दूसरा हल्का हल्का निप्स को कभी पुल करता कभी पिंच, ...


कुछ देर में ही ननद का कहरना मस्ती भरी सिसकियों में बदल गया ,



कम्मो अब झुक के कभी ननद के होंठों को चूम लेती तो कभी उसकी चूँची चूस लेती , ननद भी भौजाई के चुम्मे का जवाब दे रही थी



उसकी पूरी देह से लग रहा था उसे मजा आ रहा है , पर कुछ देर के बाद उन्होंने एक बार अपने खूंटे को हल्का सा पीछे कर के , इतनी कस के



मैं होती तो मेरी भी चीख निकल जाती , इतना जोरदार धक्का था

गुड्डी जोर से चीख पड़ी ,

पर ये रुके नहीं ,

वो चीखती रही ये चोदते रहे , और मुझे आँख पर विश्वास नहीं हुआ कैसे उसकी चीख सिसकियों में बदली, उसकी देह हलके हलके काँप रही थी , वो कगार पर थी ,

और इन्होने एक जोरदार धक्का , पक्का अबकी सीधे बच्चेदानी पर लगा होगा ,





और गुड्डी एक बार फिर बिस्तर से उछल रही थी , मचल रही थी , दर्द से नहीं मजे से , वो तो कम्मो ने उसे कस के पकड़ रखा था

एक बार झड़ना बंद होता तो बस पल भर रुक के दूसरी बार, तीसरी बार, चौथी बार,



उन्होंने पूरी ताकत से ८ इंच का खूंटा अपनी छोटी बहिनिया के अंदर जड़ तक ठेल रखा था, मोटा सुपाड़ा उस किशोरी के बच्चेदानी से चिपका

झड़ झड़ के मेरी ननद थेथर हो गयी, और थक कर एकदम रुक गयी , कुछ देर भाई बहिन दोनों ऐसे पड़े रहे , लेकिन कम्मो कहाँ मानने वाली,



भौजी ने अपने देवर को इशारा किया,

खूंटा अभी भी भौजी की ननद की चूत में जड़ तक धंसा था , जिस चूत में एक दिन पहले तक तर्जनी ऊँगली घुसाना मुश्किल लग रहा था वो अब आठ इंच लम्बा ढाई इंच मोटा मूसल जड़ तक घोंटे पड़ी थी,



बिना एक सूत भी बाहर निकाले ही उन्होने लंड के बेस से अपनी छोटी बहिनिया की क्लिट पर रगड़ना शुरू किया, पहले थोड़ी देर बहुत धीमे धीमे, फिर तेजी से ,



लगता था कोई बड़ा बाँध टूट पड़ा , मेरी ननद एक बार फिर से कांपने लगी , सिसकने लगी , उसकी पूरी देह मुड़ तुड़ रही थी ,


जैसे तेज तूफ़ान, तेज बारिश रुकने के बाद बहुत देर तक पत्तों से , घरों की छत से पानी की बूँदें धीरे टपकती रहती हैं , हवा हलकी हलकी चलती है बस उसी तरह



अबकी जब ननद रुकी तो ये भी , फिर इनके खूंटे के अलावा हर इनके अंग,



उँगलियाँ होंठ जीभ



गाल हलके हलके सहलाते हुए चूम कर पहले उन्होंने दर्द से डूबी आँखों को बंद किया अपने होंठों से , और होंठ कभी मेरी ननद के रसीले होंठों पर



कभी नए नए आ रहे थे जोबन पर , थोड़ी देर में एक उभार इनके हाथों के बीच और दूसरा इनके होंठों के बीच



मुझसे कोई पूछे इनकी उँगलियों और होंठों का जादू ,



थोड़ी देर में मेरी ननद पिघल रही थी मचल रही थी चुम्मे का जवाब चुम्मे से दे रही थी खुद अपने छोटे छोटे उभार इनकी छाती से रगड़ रही थी

और जब वो अपने छोटे छोटे चूतड़ खुद उछालने लगी तो ये समझ गए , धक्के फिर शुरू हो गए लेकिन हलके हलके



दो चार धक्के ये मारते तो एक दो बार वो नीचे से अपने चूतड़ उछालती और ये मस्ती में उसके मटर के नए आये दाने के बराबर निप्स चूसने लगते और वो खुद इन्हे खींच कर इशारे करती और धक्कों का जोर बढ़ जाता,



थोड़ी देर बाद वो फिर झड़ने लगी ,
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