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भाई बहन वाली गारीयां और रसीली होती हैं।
एकदम सही कहा अपने लड़को को उनकी बहनों का नाम लगा लगा के, और ननदों को उनके भाइयों का नाम लगा के गारी देने में जो मजा आता है, और सुनने वालों/वालियों को भी खूब रस आता है,... गारियाँ पहले तो थोड़ी 'शराफत वाली' लेकिन जहाँ कुछ काम वालियां या कभी कभी जब सिर्फ औरतें लड़कियां होती हैं तो , 'मिर्च' बढ़ जाती है,... और उसके लिए कोई शादी बियाह के मौके की भी जरूरत नहीं , बस रिश्ता , देवर नन्दोई हों , जीजा हों , ननद हो,
इसी बात पर मेरी एक फेवरिट याद आ गयी देवरों को चिढ़ाने के लिए मैं,...
देवर हमारे आंगन में आये,
आने को आदर, बैठन को कुर्सी ,
खाने को खाना , पीने को पानी,
अरे संग सोवन को ( अब देवर को भी अंदाज लग जाता था की असली हमला होने वाला है )
अरे संग सोवन को , मजा लेवन को ननदी हमारी ( नाम लेकर, अक्सर जो उनसे थोड़ी छोटी या समौरिया होती थीं उन्ही का नाम ले ले के चिढ़ाया जाता था )
अरे संग सोवन को ननदी हमारी राजी रे
( और अगर कहीं मूड ज्यादा 'गरम' हुआ , सिर्फ औरतें लड़कियां हुयी ,... ये आखिरी लाइन और 'विस्तार ' से गए दी जाती थी, अरे संग सोवन को , अरे टांग उठावन को , .... और 'सब कुछ ' )
सच में रिश्तों की मिठास और मजा बहुत कुछ गानों में था और है।