chodumahan
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आपके उपरोक्त कथन के बाद मैंने फिर से उस भाग को पढ़ा..आपने एकदम सही कहा, और रीत की बात तो अलग ही है, इसलिए इस कहानी के आखिरी भाग में रीत की मौजदगी भी है, और रीत की चुनौती भी, लगता है कुछ लोगों से वह बात या तो मिस हो गयी या मैंने उसे ठीक से प्रजेंट नहीं किया, आज की स्थिति की बातों से जुडी है ये बात,
थोड़ा सा पन्ना पलटें, पेज २५२ पर जाएँ और पोस्ट २५१६ की हेडिंग देखें,
दोज हू कंट्रोल द पास्ट , कैन कंट्रोल द फ्यूचर,... एंड दोज हू कंट्रोल द प्रजेंट , कंट्रोल द पास्ट,..
मुझे लग रहा था की मेरे सुविज्ञ पाठक, सुधि पाठिकाएं, इस संदर्भ को और उसके संकेतों को समझ जाएंगे,... लेकिन बात शायद मैंने ठीक से रखी नहीं
जार्ज ऑरवेल की मशहूर पुस्तक १९८४ में एक महत्वपूर्ण उक्ति ही, और भाषांतरण के साथ थोड़ा कॉपी पेस्ट के जरिये मैं अपनी बात रख रही हूँ,...
" .Winston is an editor in the Records Department at the governmental office Ministry of Truth, where he actively revises historical records to make the past conform to whatever Ingsoc wants it to be. One day he wakes up and thinks,
Who controls the past, controls the future: who controls the present, controls the past… The mutability of the past is the central tenet of Ingsoc. Past events, it is argued, have no objective existence, but survive only in written records and in human memories. The past is whatever the records and the memories agree upon. And since the Party is in full control of all records, and in equally full control of the minds of its members, it follows that the past is whatever the Party chooses to make it."
इस कहानी के अंतिम भाग में इस पसंग के में मैंने अतीत को हम किस तरह देखते हैं , क्या वह दृष्टि बदली जा सकती है , उसका पूरे नजरिये पर क्या असर पडेगा,... इस सिलसिले में इसी पुस्तक १९८४ का इसी उक्ति के बारे में एक और प्रसंग मैं उद्धृत करती हूँ,...
O'Brien was looking down at him speculatively. More than ever he had the air of a teacher taking pains with a wayward but promising child.
'There is a Party slogan dealing with the control of the past,' he said. 'Repeat it, if you please.'
"Who controls the past controls the future: who controls the present controls the past," repeated Winston obediently.
"Who controls the present controls the past," said O'Brien, nodding his head with slow approval. 'Is it your opinion, Winston, that the past has real existence?'
Again the feeling of helplessness descended upon Winston. His eyes flitted towards the dial. He not only did not know whether 'yes' or 'no' was the answer that would save him from pain; he did not even know which answer he believed to be the true one.
O'Brien smiled faintly. 'You are no metaphysician, Winston,' he said. 'Until this moment you had never considered what is meant by existence. I will put it more precisely. Does the past exist concretely, in space? Is there somewhere or other a place, a world of solid objects, where the past is still happening?'
'No.'
'Then where does the past exist, if at all?'
'In records. It is written down.'
'In records. And- ?'
'In the mind. In human memories.
'In memory. Very well, then. We, the Party, control all records, and we control all memories. Then we control the past, do we not?'
तो इस पोस्ट की हेडिंग इन सभी मुद्दों की ओर ध्यान इंगित कराने की कोशिश कर रही थी, मैं उसके पहले वाली २५१५ ( कन्वर्जेंस ) से मेरी और रीत की कुछ बातों को जस का तस रेखांकित करना चाहती हूँ,...
' रीत का कंसर्न प्रायवेसी था लेकिन उससे ज्यादा , मिसयूज ,
वो कह रही थी, पोलिटिकल सरवायलेंस के लिए कहीं इसका इस्तेमाल न किया जाय , लेकिन दूसरी सबसे बड़ी चिंता थी , एक नए कॉम्बिनेशन , बिजनेस और पोलिटिकल कॉम्बिनेशन , क्या कहते हैं आजकल क्रोनी,... और उसी के साथ बड़ी बड़ी बिग डाटा कंपनियों का कोल्युजन,...
लेकिन रीत बड़ी टफ जज थी,
तो मेरे मन जो एक झिलमिलाती सी इमेज इस कहानी के दूसरे भाग की है , वो मेरी पहले की कहानियों से इतर, इरोटिका होगी भी तो इन्सिडेंटल, ... उस कहानी में एक 'डिस्टोपियन विश्व ' का मंडराता खतरा और विज्ञान तकनीक के क्रोनी कैपिटलिज्म या सिर्फ फायदा उठानेवाली प्रवृत्ति से संबध,... फागुन के दिन चार का जो आतंकवाद था उसी का एक और लेकिन सूक्ष्म रूप, ... और अंतिम भाग में मैंने अपनी अपनी उन सभी कंसंर्न को उठाने की कोशिश की है , जैसे फागुन के दिन चार के अंत में एक मुक्तिबोध की कविता थी, पूर्वांचल का दर्द था,...
लेकिन मैं यह नहीं कह रही हूँ की मैं ये भाग लिख पाउंगी भी की नहीं, ... क्योंकि मैंने टारगेट बहुत ऊँचा और बहुत कठिन तय कर रखा है,... फिर कहानी का ताना बाना बुनने के पहले उन मुद्दों को समझना उसके बारे में पढ़ना,...
और कहानी का वह रूप इसके वर्तमान रूप से एकदम मेल नहीं खाता था,...
दूसरी बात कहानी जिस रूप में शुरू हुयी थी और काफी देर चली, लव कम अरेंज्ड मैरिज वाला, एक किशोरी , पढ़ कर कालेज के कैम्पस से निकला एक तरुण , उनका विवाह और शुरू के दिन, यही पृष्ठभूमि और उसी के आधार पर कहानी के चरित्र भी थे, और कहानी की नायिका का रूप एक सॉफ्ट सेंसुअस था , बाद के हिस्से में थोड़ा सा रूप बदला लेकिन उसमें भी मुख भूमिका कम्मो ने ही निबाही। इस लिए भी मैंने सोचा की अब इसे फर्स्ट परसन से बदल कर ,... और ये दोनों कहानियां अनुज, गुड्डो और उसकी मम्मी की और कम्मो और गुड्डी की संदर्भ के लिए, पूर्वाभास के लिए इस कहानी से जुडी जरूर रहेंगी लेकिन उन कहानियों का रूप, नेचर इस कहानी से बाधित नहीं होगा, जो सॉफ्ट और सेंसुअस है.
डायलॉग की बात आपने एकदम सही कही , मेरे तरकश के वही असली तीर हैं , ननद भाभी का रिश्ता भी और बाकी रिश्ते भी,...
तो चलिए पहले एक भाग उसका , अनुज और बनारस वाला शुरू दें फिर जैसे जनता की इच्छा ,
और मनन किया
तो पाया कि आपने कितनी गर्हित बात की है..
जो पहली बार में स्किप कर गई..
जासूसी सॉफ्टवेयर और प्राइवेसी..
हरेक गवर्नमेंट का अपना-अपना narrative इतिहास और वर्तमान को present करने का..
आपने कम शब्दों में बहुत गहरी बात कह दी है..
आपका ये स्टाइल काबिलेतारीफ है..
और एक बात और अनुज और गुड्डी के चक्कर में अपने साजन.. उनकी सालियों सलहज और सास को तो भूल हीं गई... आगे के कथानक में उनका भी समावेश हो कहानी कंप्लीट लगेगी..
पूरी कहानी फिर से एक बार पढ़ रहा हूँ.
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