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Erotica मोहे रंग दे

komaalrani

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malikarman

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कहानी से जुड़े दो पात्रों की बातें आगे बढ़ेंगी,मेरी ननद गुड्डी रानी और देवर अनुज की और कैसे बढ़ेंगी कहानी में क्या ट्विस्ट होगा, ये सब अभी से बता के कहानी का रस भंग मैं नहीं करना चाहती, लेकिन ट्विस्ट होगा और जबरदस्त होगा, इसलिए मैं यानी फर्स्ट परसन में कहानी का जो रूप था उससे विदा लेती हूँ, पर


मेरी इत्ती प्लानिंग के बाद भी मेरी ननद का पिछवाड़ा कोरा रह जाए,

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तीन तीन पठान तैयार हैं उनकी बातें न हों , और कम्मो फिर उसके सहयोग में तो वो सारी बातें होंगी अब कम्मो कहेगी या थर्ड परसन में होंगीं ये तो तभी पता चलेगा, लेकिन ट्विस्ट जबरदस्त होगा,


और आप में से कुछ हो सकता है मेरी इस ननद के भाई को बिसर गए होंगे जो गुड्डो के पास, गुड्डो और उसकी मम्मी,... तो माँ बेटी साथ साथ

Teej-Actress-dharsha-gupta-new-glam-Stills-in-a-sexy-saree.jpg



Kavya-c720909acc391ee0486a6b36d981f658.jpg



सब कुछ होगा,... बस थोड़ा सा इन्तजार होगा, शायद होली तक , फिर दोनों इसी थ्रेड में या जैसे आप सब का आदेश हो अलग नए थ्रेड में ,... तो बस जुड़े रहिये साथ बनाये रखिये इस थ्रेड पर और मेरे बाकी थ्रेड्स पर भी,...


और रिस्पांड जरूर करियेगा, प्लीज प्लीज प्लीज ,


२५० से ऊपर पन्ने

दस लाख से ज्यादा व्यूज ,... पिछला फोरम बंद होने के बाद ये मेरी पहली कहानी थी ,


तो इन्तजार करुँगी , आपके कमेंट्स का सुझावों का।
Okk...aage ka intezar rahega
 
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Meena1995

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Intejar rhe ga aapka ki phir se kahani suru kare aap bahut hi shandaar lekhika hai pure badan me aag laga deti hai aapki kahani or kuch hone se pahle Jo bhumik banati hai wo shandaar rhti hai
 
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chodumahan

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Jo kahaniya 2 3 sal tak aise hi ragad ragad k chalti hai unka aisa hi end hota hai... aur komal ki kahaniya har baar wahi se shuru hoti hai... joru ka ka ghulaam xossip pe aati thi wo band ho gaya fir Xforum pe dobara shuru ki jabki net pe purani story ab bhi mil jaayegi ...agar shuru hi karni hai to wahi se karo jaha se xossip pe band huyi hi aur jaldi likho
कोमल रानी की कहानियों का कैनवस बहुत बड़ा होता है.. मानवीय भावनाओं जैसे मिलना, बिछोह, छेड़-छाड़ इत्यादि और साथ में कुछ दिमागी उठा पटक भी (जैसे इस कहानी में रीत के प्रसंग)... स्टोरी लाइन के साथ
फागुन के दिन चार में terrorism और
जोरू का गुलाम में share market etc..
इन सब चीजों के साथ न्याय करने के लिए कहानी बहुत बड़ी हों जाती क्योंकि कोमल इन सब को काफी डिटेल में बताती है.. साथ में दृश्यों के साथ मैचिंग GIF इन सब के साथ कहानी को पोस्ट करने में टाइम तो लग हीं सकता है..
वरना तो इनकी कहानी भी बाकी सारी कहानियों की तरह एक ढर्रे पर रह जाती .. जिनका न कोई सिर होता है और न कोई पैर..

और अब तक इतिहास बताता है कि कोमल अपनी कहानियां पूरी भी करती है.
और जहाँ संभव हो उनके सीक्वल भी आती है...
मुझे उम्मीद है कि इस कहानी का सीक्वल कोमल रानी के दिमाग में होगा और वो इन पन्नों पर दिखाई देगा और वो भी बड़े पैमाने पर..(पिछले पेज पर आपके लास्ट में कमेन्ट पर मेरा निवेदन)

और जहाँ तक जोरू का गुलाम वहीं से शुरू करने की बात है... इस पर मैं कहना चाहूंगा कि पिछली कहानी से इसमें काफी प्रसंग जुड़े और काफी प्रसंगों को परिष्कृत भी किया है...
हरेक लेखक/लेखिका अपने निजी जीवन में भी काफी व्यस्त होते हैं...कोमल को भी जब समय मिलता होगा अपने अपडेट यहाँ पोस्ट करती हैं.. इसलिए भी कहानी लंबे समय के लिए खिंच जाती होगी...
 
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chodumahan

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और अब यह कहानी यहीं ख़तम होती है , पढ़ने वालों , सुनने वालों, और कहने सुनने वालों से बस अब यहीं अलविदा

………………………………………

हो सकता है इस कहानी के अब तक बचे, कुछ गिने चुने पाठकों में से दो चार को अच्छा न लगे, एक दो शायद सोचें भी यहाँ क्यों रुक गयी ये कहानी , तो बस उनके लिए,



पहली बात, इस कहानी का नाम ही है , था, मोहे रंग दे , एक दुसरे के रंग में रंगने की कहानी, साजन के सजनी के और सजनी की साजन के रंग में डूबने सराबोर हो जाने की कहानी, जब बिना कहे बोले , एक की बात दूसरा समझ ले , इशारे की भी जरूरत न पड़े, .. जो अंग्रेजी में कहते हैं , व्हेयर इच इज बोथ,... तो बस ये कहानी वही कहना चाहती थी , और मेरे नेते वो कहानी, कहानी नहीं जो कुछ कहे नहीं। पति पत्नी का रिश्ता, बनने और आगे बढ़ने की कहानी, और शादी के पहले की भी थोड़ी ताकाझांकी जो कहते हैं न लव कम अरेंज्ड तो उसमें भी तो लव पहले आता है,... गाँव जो आलमोस्ट क़स्बा बन चुका है , और शहर जो अपने दिल में अभी भी गाँव है , ... उन के बीच के रिश्तों की कहानी , रिश्तों की गर्माहट और मीठी मीठी छेड़छाड़ की कहानी,... तो बस जब दोनों रंग चुके हैं , तो बस मुझे लगा एक यही मुकाम है , ठहरने का,...



दूसरी बात, ... मैंने पहले ही तय कर लिया था की १,००० पेज ( एम् एस वर्ड्स में ) से ज्यादा नहीं,... जोरू का गुलाम को लम्बा करने की सज़ा मैं अभी तक भुगत रही हूँ, फोरम पहले बंद हो गया , कहानी पूरी हो नहीं पायी, खैर उस बात को अभी यहीं छोड़ती हूँ , तो १,००० पेज जब पूरे हुए तो मेरे एक मित्र ने जिन्होंने मेरी ढेर सारी कहानियों को पी डी ऍफ़ किया,... बताया की उनके हिसाब से तो १००० कभी के पूरे हो गए, और होली आगयी तो मैंने पिछले साल कुछ होली के सीन डाल दिए बस उसके बाद , अब होली में कोई लिमिट तो होती नहीं, अपने यहाँ तो होली का लिमिट और शराफत दोनों से कोई नाता नहीं, ... इसलिए और फिर ननद भाभी वाला मामला , तो थोड़ी फंतासी नुमा,... लेकिन अब इस कहानी के मेरी लैपी पर १,१५४ पन्ने और ३,१८, ७२४ शब्द हो चुके हैं। तो फिर ,...

तीसरी बात, शायद आप में से अभी नहीं लेकिन बाद में कोई कभी, मरा पुराना पाठक भटकता हुआ और रवायतन पूछ बैठे, इसके आखिर में डाटा की और भी ढेर सारी कन्सर्न्स हैं तो क्या इस कहानी का दूसरा भाग भी आएगा , नहीं और हाँ,



और सही बात है की मैं नहीं जानती,



जब पिछला फोरम बंद हुआ था तो मैंने सोचा था, बस और नहीं, फिर कुछ पुरानी कहानियां लेकिन उनमे भी इतनी चीजें जुड़ गयी की वो एकदम नया वर्ज़न ( नमूने के तौर पर सोलहवां सावन, कितने नए हिस्से उसमें जुड़ गए ) और फिर ये कहानी शुरू हुयी तो , बढ़ती गयी, और जब उसमें एक बार रीत घुस गयी, और जिसने पुराने फोरम में रीत से भेंट मुलाकात की होगी, या मेरी कहानी फागुन के दिन चार पढ़ी होगी, वो जानते हैं की अगर रीत कहीं घुस गयी तो उसके बाद जो होता है वो रीत करती है,... लेकिन अगर अगला भाग आया तो , एक तो वो इरोटिक नहीं होगा , शायद बहुत हुआ तो एरोटिक थ्रिलर हो, हो सकता है एक डिस्टोपियन दुनिया का किस्स्सा हो , ... लेकिन कहानी सुनाने के साथ अक्सर हम सुनाने वाले सुनने वाले की पसंद नापसन्द भूल जाते हैं और फिर सर धुनते है, कोई सुनता नहीं , सुनता है तो हुँकारी नहीं भरता,.. और डिस्टोपियन किस्सों के अपने,... और फोरम के भी कानून कायदे, तो आप जिसके मेहमान है , जब आप ने जहाँ बरसों से अड्डा जमा रखा था, और वो नशेमन उजड़ गया, किसी ने अपने यहाँ सर छुपाने की जगह दी , पर उसके यहाँ अगर कायदा है की चप्पल घर के बाहर उतार दें, रात में दस के बाद गाना न बजाएं तो उसे मानना ही होगा,...



तो मैं नहीं जानती और अगर कुछ हुआ भी तो अगले छह महीने साल भर, जिस तरह की बातें मैं सोच रही हूँ , उसके लिए बहुत इंटेंसिटी चाहिए,



चौथी बात , शायद कोई ये भी पूछे अब क्या होगा मेरी छुटकी ननदिया का जो इत्ती सारी प्लानिंग थी मेरी और कम्मो की, और वो अनुज जो बनारस में है,



छुटकी ननदिया के साथ वही होगा है जो होना होना है , लेकिन शुरू से अबतक यह कहानी फर्स्ट परसन में हैं और फिर जिस जगह कहानी सुनाने वाली ही नहीं होगी तो वहां की बातें कैसे होंगी , फिर मैंने पहले भी कहा था न यह कहानी थी मोहे रंग दे , साजन सजनी के एक दूसरे के रंग में रंगने रंगाने की,...




तो यह कहानी तो यही ख़तम हो रही है लेकिन थ्रेड मैं नहीं बंद कर रही,



हाँ पर देवर ननद की बातें कुछ उनके ऊपर कुछ आपकी कल्पनाओं पर छोड़ती हूँ , ... लेकिन कोई यह कहे की ऐसा थोड़े ही होता है,... तो घबड़ाइये मत, , दोनों के मेरी ननद के और देवर के, देवर की बातें देवर की अनुज की जुबान से , और ननद की बातें , कम्मो की ओर से , ... लेकिन अभी नहीं , पर जल्द ही , कुछ बातें ,... कम्मो और अनुज की ओर से,...



तो इतने दिनों तक धैर्य तक साथ देने के लिए धन्यवाद, और अगर किसी के कमेंट आएंगे तो मैं सर झुका के धन्यवाद देने जरूर आउंगी।
हरेक लेखक/लेखिका जो कहानी का ताना-बाना बुनता है.. वो शुरुआत, अंत और बीच का काफी कुछ खाका बना चुका होता है..
और उसी के अनुसार कहानी को मूर्त रूप देता है...

लेकिन पाठकों का भी अपना लालच होता है.. और ... और ज्यादा की इच्छा करता है....

यहाँ कहानी का शीर्षक "मोहे रंग दे" शायद कहानी के फर्स्ट पर्सन में होने के कारण सिर्फ वक्ता तक सीमित हो गया
लेकिन कई अन्य पात्र जैसे देवर, ननद और साथ में आपके साजन भी अपने को "मोहे रंग दे" के कारण रंगों से सराबोर होने की बेसब्री से प्रतीक्षा में होंगे

आपकी दूसरी बात पर मैं इतना हीं कहना चाहूंगा कि आपकी इच्छा सर्वोपरि है... और हाँ बड़ी कहानियों का कुछ नफा है तो नुकसान भी है (जैसे की जोरू का गुलाम )

तीसरी बात पर :- रीत तो mastermind और हर कहानी की जान है.. और जहाँ रीत हो वहाँ stake भी काफी बढ़ जाते है.. साथ हीं कहानी पढ़ने का मजा भी कई गुना बढ़ जाता है...
सिर्फ mindless fuck हीं नहीं दिमागी कसरत भी हों जाती है और बहुत कुछ नया जानने को मिलता है... ये बातें हीं पत्थरों के ढेर में इस कहानी को एक अलग चमक देती है ...
आपकी हर genre पर बहुत मजबूत पकड़ है और dystopian दुनिया के नजराने भी किसी भी हालत में कम नहीं होंगे...
और मेरा तो कहना है कि अभी इसमें बहुत कुछ बाकी है और सीक्वल का जब आपके दिमाग में कुछ plot बन जाए तो पन्ने पर उतारने से गुरेज न करें यह मेरा आपसे आग्रह रहेगा..

चौथी बात पर- कई scene पाठक अपनी कल्पनाओं में सोच कर गुदगुदाते रहते है... और सबके गुदगुदाने का नजरिया भी अलग-अलग होगा..
लेकिन इतनी planning व्यर्थ ना जाए और उन सबको देवर भाभी के वार्तालाप या ननद भाभी के संवाद के जरिये इन पन्नों पर उतारा जा सकता है - ऐसा मेरा मत(राय) है...
(आपकी फर्स्ट पर्सन के उत्तर में)
 

chodumahan

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कहानी से जुड़े दो पात्रों की बातें आगे बढ़ेंगी,मेरी ननद गुड्डी रानी और देवर अनुज की और कैसे बढ़ेंगी कहानी में क्या ट्विस्ट होगा, ये सब अभी से बता के कहानी का रस भंग मैं नहीं करना चाहती, लेकिन ट्विस्ट होगा और जबरदस्त होगा, इसलिए मैं यानी फर्स्ट परसन में कहानी का जो रूप था उससे विदा लेती हूँ, पर


मेरी इत्ती प्लानिंग के बाद भी मेरी ननद का पिछवाड़ा कोरा रह जाए,

rear-end-18905679.jpg


तीन तीन पठान तैयार हैं उनकी बातें न हों , और कम्मो फिर उसके सहयोग में तो वो सारी बातें होंगी अब कम्मो कहेगी या थर्ड परसन में होंगीं ये तो तभी पता चलेगा, लेकिन ट्विस्ट जबरदस्त होगा,


और आप में से कुछ हो सकता है मेरी इस ननद के भाई को बिसर गए होंगे जो गुड्डो के पास, गुड्डो और उसकी मम्मी,... तो माँ बेटी साथ साथ

Teej-Actress-dharsha-gupta-new-glam-Stills-in-a-sexy-saree.jpg



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सब कुछ होगा,... बस थोड़ा सा इन्तजार होगा, शायद होली तक , फिर दोनों इसी थ्रेड में या जैसे आप सब का आदेश हो अलग नए थ्रेड में ,... तो बस जुड़े रहिये साथ बनाये रखिये इस थ्रेड पर और मेरे बाकी थ्रेड्स पर भी,...


और रिस्पांड जरूर करियेगा, प्लीज प्लीज प्लीज ,


२५० से ऊपर पन्ने

दस लाख से ज्यादा व्यूज ,... पिछला फोरम बंद होने के बाद ये मेरी पहली कहानी थी ,


तो इन्तजार करुँगी , आपके कमेंट्स का सुझावों का।
ये तो आपने हमारे मन की बात कह दी..
और भला अनुज और गुड्डो को कोई कैसे भूल सकता है और साथ में गुड्डो की मम्मी भी और जो उनका प्रयास रहा अनुज को एक्जाम clear करने के लिए (आखिर उसके भविष्य का सवाल था) वो तो बहुत हीं सराहनीय रहा ...
और कम्मो तो सबकी दुलारी है ... सबका ध्यान रखती है और सब उसका ध्यान रखते है... वो काफी अनुभवी और माहिर भी है जो उसके हाजिरजवाबी में झलकता है....
और गुड्डी की सहेलियां .. सब एक से बढ़ कर एक ... सब एक दूसरे पर भारी और मजे लेने-देने में सबसे बीस.. नहीं-नहीं बाईस ..
और जब इन सबका समावेश होगा तो कहानी में चार चाँद लग जाएंगे...
इंतजार में.....
 
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Jannat1972

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Yahi hota h aisi kahaniyo ka ...jaha writer 4-4 stories ek saath chalata h ...khud confuse hi jata h kaha p kya update du....itna lamba kheech diya ise jo main character h uska kuch b scene nahi diya ...bas kammo aur nanad m uljha diya ..phir ek dum se story band ....mere m toh patience hai nahi itna k aapki aur stories padu ...pata na kb kaunsi band kar do beech m ....sorry ..
 
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Rajabhai

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कोमलजी ,
आपकी कहानी में हम सभी इतने गहराई में डूब जाते हैं कि आपने कितने शब्द लिखें या कितने पेज भर दिए यह सब दिखाई नहीं देता है. हमें तो झटका तब लगा जब आपने लिखा कि *समाप्त*.
छुटकी ननदिया के लिए आपने इतने सारे CC केमेरे लगवाए है, तो वह तो आप फर्स्ट पर्सन में भी लिख सकती है, रही बात बनारस में अनुज एवं उन माँ बेटियों की तो वह आप अनुज की जुबानी भी लिख सकती हो।
रीत जहाँ होगी वहाँ टेक्नोलॉजी की बातें जरूर होगी, उसमें भी हमें कुछ नया पढ़ने को ही मिलता है
आप इस कहानी को भाग 2 के नाम से भी प्रेषित कर सकते है, या कोई नया नाम भी दे सकते हैं।
धन्यवाद
 

komaalrani

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हरेक लेखक/लेखिका जो कहानी का ताना-बाना बुनता है.. वो शुरुआत, अंत और बीच का काफी कुछ खाका बना चुका होता है..
और उसी के अनुसार कहानी को मूर्त रूप देता है...

लेकिन पाठकों का भी अपना लालच होता है.. और ... और ज्यादा की इच्छा करता है....

यहाँ कहानी का शीर्षक "मोहे रंग दे" शायद कहानी के फर्स्ट पर्सन में होने के कारण सिर्फ वक्ता तक सीमित हो गया
लेकिन कई अन्य पात्र जैसे देवर, ननद और साथ में आपके साजन भी अपने को "मोहे रंग दे" के कारण रंगों से सराबोर होने की बेसब्री से प्रतीक्षा में होंगे

आपकी दूसरी बात पर मैं इतना हीं कहना चाहूंगा कि आपकी इच्छा सर्वोपरि है... और हाँ बड़ी कहानियों का कुछ नफा है तो नुकसान भी है (जैसे की जोरू का गुलाम )

तीसरी बात पर :- रीत तो mastermind और हर कहानी की जान है.. और जहाँ रीत हो वहाँ stake भी काफी बढ़ जाते है.. साथ हीं कहानी पढ़ने का मजा भी कई गुना बढ़ जाता है...
सिर्फ mindless fuck हीं नहीं दिमागी कसरत भी हों जाती है और बहुत कुछ नया जानने को मिलता है... ये बातें हीं पत्थरों के ढेर में इस कहानी को एक अलग चमक देती है ...
आपकी हर genre पर बहुत मजबूत पकड़ है और dystopian दुनिया के नजराने भी किसी भी हालत में कम नहीं होंगे...
और मेरा तो कहना है कि अभी इसमें बहुत कुछ बाकी है और सीक्वल का जब आपके दिमाग में कुछ plot बन जाए तो पन्ने पर उतारने से गुरेज न करें यह मेरा आपसे आग्रह रहेगा..

चौथी बात पर- कई scene पाठक अपनी कल्पनाओं में सोच कर गुदगुदाते रहते है... और सबके गुदगुदाने का नजरिया भी अलग-अलग होगा..
लेकिन इतनी planning व्यर्थ ना जाए और उन सबको देवर भाभी के वार्तालाप या ननद भाभी के संवाद के जरिये इन पन्नों पर उतारा जा सकता है - ऐसा मेरा मत(राय) है...
(आपकी फर्स्ट पर्सन के उत्तर में)
आपने एकदम सही कहा, और रीत की बात तो अलग ही है, इसलिए इस कहानी के आखिरी भाग में रीत की मौजदगी भी है, और रीत की चुनौती भी, लगता है कुछ लोगों से वह बात या तो मिस हो गयी या मैंने उसे ठीक से प्रजेंट नहीं किया, आज की स्थिति की बातों से जुडी है ये बात,

थोड़ा सा पन्ना पलटें, पेज २५२ पर जाएँ और पोस्ट २५१६ की हेडिंग देखें,

दोज हू कंट्रोल द पास्ट , कैन कंट्रोल द फ्यूचर,... एंड दोज हू कंट्रोल द प्रजेंट , कंट्रोल द पास्ट,..

मुझे लग रहा था की मेरे सुविज्ञ पाठक, सुधि पाठिकाएं, इस संदर्भ को और उसके संकेतों को समझ जाएंगे,... लेकिन बात शायद मैंने ठीक से रखी नहीं

जार्ज ऑरवेल की मशहूर पुस्तक १९८४ में एक महत्वपूर्ण उक्ति ही, और भाषांतरण के साथ थोड़ा कॉपी पेस्ट के जरिये मैं अपनी बात रख रही हूँ,...

" .Winston is an editor in the Records Department at the governmental office Ministry of Truth, where he actively revises historical records to make the past conform to whatever Ingsoc wants it to be. One day he wakes up and thinks,

Who controls the past, controls the future: who controls the present, controls the past… The mutability of the past is the central tenet of Ingsoc. Past events, it is argued, have no objective existence, but survive only in written records and in human memories. The past is whatever the records and the memories agree upon. And since the Party is in full control of all records, and in equally full control of the minds of its members, it follows that the past is whatever the Party chooses to make it."


इस कहानी के अंतिम भाग में इस पसंग के में मैंने अतीत को हम किस तरह देखते हैं , क्या वह दृष्टि बदली जा सकती है , उसका पूरे नजरिये पर क्या असर पडेगा,... इस सिलसिले में इसी पुस्तक १९८४ का इसी उक्ति के बारे में एक और प्रसंग मैं उद्धृत करती हूँ,...

O'Brien was looking down at him speculatively. More than ever he had the air of a teacher taking pains with a wayward but promising child.


'There is a Party slogan dealing with the control of the past,' he said. 'Repeat it, if you please.'

"Who controls the past controls the future: who controls the present controls the past," repeated Winston obediently.

"Who controls the present controls the past," said O'Brien, nodding his head with slow approval. 'Is it your opinion, Winston, that the past has real existence?'

Again the feeling of helplessness descended upon Winston. His eyes flitted towards the dial. He not only did not know whether 'yes' or 'no' was the answer that would save him from pain; he did not even know which answer he believed to be the true one.

O'Brien smiled faintly. 'You are no metaphysician, Winston,' he said. 'Until this moment you had never considered what is meant by existence. I will put it more precisely. Does the past exist concretely, in space? Is there somewhere or other a place, a world of solid objects, where the past is still happening?'

'No.'

'Then where does the past exist, if at all?'


'In records. It is written down.'

'In records. And- ?'

'In the mind. In human memories.

'In memory. Very well, then. We, the Party, control all records, and we control all memories. Then we control the past, do we not?'


तो इस पोस्ट की हेडिंग इन सभी मुद्दों की ओर ध्यान इंगित कराने की कोशिश कर रही थी, मैं उसके पहले वाली २५१५ ( कन्वर्जेंस ) से मेरी और रीत की कुछ बातों को जस का तस रेखांकित करना चाहती हूँ,...

' रीत का कंसर्न प्रायवेसी था लेकिन उससे ज्यादा , मिसयूज ,

वो कह रही थी, पोलिटिकल सरवायलेंस के लिए कहीं इसका इस्तेमाल न किया जाय , लेकिन दूसरी सबसे बड़ी चिंता थी , एक नए कॉम्बिनेशन , बिजनेस और पोलिटिकल कॉम्बिनेशन , क्या कहते हैं आजकल क्रोनी,... और उसी के साथ बड़ी बड़ी बिग डाटा कंपनियों का कोल्युजन,...

लेकिन रीत बड़ी टफ जज थी,

तो मेरे मन जो एक झिलमिलाती सी इमेज इस कहानी के दूसरे भाग की है , वो मेरी पहले की कहानियों से इतर, इरोटिका होगी भी तो इन्सिडेंटल, ... उस कहानी में एक 'डिस्टोपियन विश्व ' का मंडराता खतरा और विज्ञान तकनीक के क्रोनी कैपिटलिज्म या सिर्फ फायदा उठानेवाली प्रवृत्ति से संबध,... फागुन के दिन चार का जो आतंकवाद था उसी का एक और लेकिन सूक्ष्म रूप, ... और अंतिम भाग में मैंने अपनी अपनी उन सभी कंसंर्न को उठाने की कोशिश की है , जैसे फागुन के दिन चार के अंत में एक मुक्तिबोध की कविता थी, पूर्वांचल का दर्द था,...


लेकिन मैं यह नहीं कह रही हूँ की मैं ये भाग लिख पाउंगी भी की नहीं, ... क्योंकि मैंने टारगेट बहुत ऊँचा और बहुत कठिन तय कर रखा है,... फिर कहानी का ताना बाना बुनने के पहले उन मुद्दों को समझना उसके बारे में पढ़ना,...

और कहानी का वह रूप इसके वर्तमान रूप से एकदम मेल नहीं खाता था,...

दूसरी बात कहानी जिस रूप में शुरू हुयी थी और काफी देर चली, लव कम अरेंज्ड मैरिज वाला, एक किशोरी , पढ़ कर कालेज के कैम्पस से निकला एक तरुण , उनका विवाह और शुरू के दिन, यही पृष्ठभूमि और उसी के आधार पर कहानी के चरित्र भी थे, और कहानी की नायिका का रूप एक सॉफ्ट सेंसुअस था , बाद के हिस्से में थोड़ा सा रूप बदला लेकिन उसमें भी मुख भूमिका कम्मो ने ही निबाही। इस लिए भी मैंने सोचा की अब इसे फर्स्ट परसन से बदल कर ,... और ये दोनों कहानियां अनुज, गुड्डो और उसकी मम्मी की और कम्मो और गुड्डी की संदर्भ के लिए, पूर्वाभास के लिए इस कहानी से जुडी जरूर रहेंगी लेकिन उन कहानियों का रूप, नेचर इस कहानी से बाधित नहीं होगा, जो सॉफ्ट और सेंसुअस है.

डायलॉग की बात आपने एकदम सही कही , मेरे तरकश के वही असली तीर हैं , ननद भाभी का रिश्ता भी और बाकी रिश्ते भी,...


तो चलिए पहले एक भाग उसका , अनुज और बनारस वाला शुरू दें फिर जैसे जनता की इच्छा ,
 
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