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Erotica मोहे रंग दे

komaalrani

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कोमलजी ,
आपकी कहानी में हम सभी इतने गहराई में डूब जाते हैं कि आपने कितने शब्द लिखें या कितने पेज भर दिए यह सब दिखाई नहीं देता है. हमें तो झटका तब लगा जब आपने लिखा कि *समाप्त*.
छुटकी ननदिया के लिए आपने इतने सारे CC केमेरे लगवाए है, तो वह तो आप फर्स्ट पर्सन में भी लिख सकती है, रही बात बनारस में अनुज एवं उन माँ बेटियों की तो वह आप अनुज की जुबानी भी लिख सकती हो।
रीत जहाँ होगी वहाँ टेक्नोलॉजी की बातें जरूर होगी, उसमें भी हमें कुछ नया पढ़ने को ही मिलता है
आप इस कहानी को भाग 2 के नाम से भी प्रेषित कर सकते है, या कोई नया नाम भी दे सकते हैं।
धन्यवाद
आपकी तीनो बातें एकदम सही है, ...

१. अनुज का बनारस का प्रसंग अनुज की ही जुबानी आएगा,

२. कहानी का दूसरा भाग, एक डिस्टोपियन रूप की ओर मैंने सोचा है जिसका विस्तृत वर्णन एक अन्य उत्तर मैंने पोस्ट संख्या,
पिछले पन्ने पर मेरी पोस्ट २५४० .में किया है, आशा है आप वहां उसे पढ़कर मेरे अभिमत से सहमत होंगे,

३. कम्मो और गुड्डी की कहानी- या तो कम्मो की जुबानी होगी या थर्ड परसन में , थर्ड परसन में मैंने आज तक बहुत ही कम कहानियां लिखी हैं या शायद नहीं लिखीं , ... और कैमरे की बातें आपने एकदम सही की, बीच बीच में हो सकता है मैं भी कभी कभी,... लेकिन घटनाएं इतनी जगह पर होंगी की सब बातों को कैमरे से देखना मुश्किल है जैसे अगर कुछ खुली छत पर हो या कम्मो के कमरे में हो या कहीं और,... तो वह घटनाओं के वर्णन को सिमित कर देगा, ... पर सबसे बड़ी बात यह है की हर कहानी का एक करेक्टर होता है जिसे हम एक दो शब्दों में कह सकते हैं और वह कहानी के रूप रंग को परिभाषित करती है, जैसे फागुन के दिन चार एक एरोटिक थ्रिलर थी, जोरू का गुलाम एक लाइट फेमडाम या एस एम् टी आर ( शी मेक्स द रूल ), सोलहवां सावन , एक सेलेब्रेशन ऑफ़ सावन एंड कमिंग आफ एज है , एक ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में, होली के रंग एक शहरी माहौल में एक टीनेजर की कमिंग ऑफ़ एज स्टोरी है, इसी तरह यह कहानी बहुत ही सॉफ्ट और सेंसुअस तरीके से मैंने लिखने की कोशिश की थी, एकदम शुरू में ही पहली रात की जो हेडिंग्स थीं हर पोस्ट की,

रात पिया के संग जागी रे सखी ( पेज ३ पोस्ट २२ )

चैन पड़ा जो अंग लागी रे सखी ( पेज ४ पोस्ट ३५ )

गजरा सुहाना टूटा , ( पेज ४ पोस्ट ३६ )

आज सुहाग की रात , सुरज जिन उगिहौं ( पेज ६ पोस्ट ६४ )

बीती विभावरी जाग रे ( पेज ६ पोस्ट ६६ )

तो मुझे लगा की इस विधा की अपनी सम्भावनाये तो हैं लेकिन सीमाएं भी है, तो अगर अनुज की बनारस की कहानी या कम्मो की गुड्डी वाली कहानी में अगर वर्जनाओं को तोड़ना चाहूँ ( जैसा काफी कुछ मजा पहली होली का ससुराल में है) या कुछ नए प्रयोग करना चाहूँ, कोई ऐसा बॅकग्राइंड या संबंध जिसे मैंने आज तक एक्सप्लोर नहीं किया है तो यह दोनों नए सिरे से ही शुरू करना ठीक रहेगा,

लेकिन एक सुझाव की आवश्यकता अभी भी है,

क्या अनुज और बनारस तथा कम्मो और गुड्डी की कहानी मैं इसी कहानी में आगे बढ़ाऊं जैसा मैंने सोचा है की पहले अनुज और बनारस के कुछ प्रसंग और फिर कम्मो वाली कहानी के कुछ प्रसंग , जैसा कई बार उपन्यासों में होता है आलटरनेट या फिर दोनों कहानियों को नयी कहानी की तरह,...


आपने इतनी अच्छी अच्छी बातें मेरे बारे में लिख दीं, की क्या कहूं, बस यही कह सकती हूँ आपने कुछ कहने लायक छोड़ा नहीं, बस शीश नवा के ,आदर पूर्वक नत नयन से आभार ही व्यक्त कर सकती हूँ और ये अनरोध कर सकती हूँ की बस इसी तरह अपने सुझावों से मार्ग दर्शन करें , साथ बनाये रखें।
 
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komaalrani

Well-Known Member
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Yahi hota h aisi kahaniyo ka ...jaha writer 4-4 stories ek saath chalata h ...khud confuse hi jata h kaha p kya update du....itna lamba kheech diya ise jo main character h uska kuch b scene nahi diya ...bas kammo aur nanad m uljha diya ..phir ek dum se story band ....mere m toh patience hai nahi itna k aapki aur stories padu ...pata na kb kaunsi band kar do beech m ....sorry ..
Thanks so much , i have two humble requests,

one-- kindly read, posts 2534, 2540 on the previous page and 2541 on this page and may be they will answer many of your doubts and if some are still left i am not closing the thread please do reply with the issues and i will try to answer with my views.

second please do read first 100 pages of this story and it will remove your complaint, jo main character h uska kuch b scene nahi diya

more than the scene, comments of readers on those scene are also a record that how those scenes were appreciated,

i am quoting only a few comments from page 2 and 3 only so that by not reading that part you will realize what you missed,...


1. WOW. ITS SO HOT UPDATE THANKS FOR UPDATEING - Post 24 page 2

2. Wah ek dum majedar update. post 25 page 2

3. Mast updates dear Jabrdast pic h Waiting for next Post 28 page 2

4. Kafi erotic updates the Post 29 page 2

5. Sach kahu to aap jesa koi likh hi nahi sakta ek ek line jesa sab sach me ho raha ho ek dam realastik mind blowing updatekomal ji Post 30 page 2

6 Readers hamesha aapke saath bane rahenge aur kahani ko support bhi zarur karenge Post 33 page 3

7. Komal Ji Confratulations =====================================Post 37 and Page 3

8. Kya batau kya update tha tan badan me ek jurjuri si aa gai mast update tha Post 38 page 3

9. tann badan mai mag laga deti h apke update====-------------------------Post 39 page 3

So my humble request and suggestion is at least read first 10 pages if not 100 and then relook at your opinion - jo main character h uska kuch b scene nahi diya


will be waiting for your response, but do read early part of story and post 2534, 2540 on the previous page and 2541 on this page
 

chodumahan

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आपने एकदम सही कहा, और रीत की बात तो अलग ही है, इसलिए इस कहानी के आखिरी भाग में रीत की मौजदगी भी है, और रीत की चुनौती भी, लगता है कुछ लोगों से वह बात या तो मिस हो गयी या मैंने उसे ठीक से प्रजेंट नहीं किया, आज की स्थिति की बातों से जुडी है ये बात,

थोड़ा सा पन्ना पलटें, पेज २५२ पर जाएँ और पोस्ट २५१६ की हेडिंग देखें,

दोज हू कंट्रोल द पास्ट , कैन कंट्रोल द फ्यूचर,... एंड दोज हू कंट्रोल द प्रजेंट , कंट्रोल द पास्ट,..

मुझे लग रहा था की मेरे सुविज्ञ पाठक, सुधि पाठिकाएं, इस संदर्भ को और उसके संकेतों को समझ जाएंगे,... लेकिन बात शायद मैंने ठीक से रखी नहीं

जार्ज ऑरवेल की मशहूर पुस्तक १९८४ में एक महत्वपूर्ण उक्ति ही, और भाषांतरण के साथ थोड़ा कॉपी पेस्ट के जरिये मैं अपनी बात रख रही हूँ,...

" .Winston is an editor in the Records Department at the governmental office Ministry of Truth, where he actively revises historical records to make the past conform to whatever Ingsoc wants it to be. One day he wakes up and thinks,

Who controls the past, controls the future: who controls the present, controls the past… The mutability of the past is the central tenet of Ingsoc. Past events, it is argued, have no objective existence, but survive only in written records and in human memories. The past is whatever the records and the memories agree upon. And since the Party is in full control of all records, and in equally full control of the minds of its members, it follows that the past is whatever the Party chooses to make it."


इस कहानी के अंतिम भाग में इस पसंग के में मैंने अतीत को हम किस तरह देखते हैं , क्या वह दृष्टि बदली जा सकती है , उसका पूरे नजरिये पर क्या असर पडेगा,... इस सिलसिले में इसी पुस्तक १९८४ का इसी उक्ति के बारे में एक और प्रसंग मैं उद्धृत करती हूँ,...

O'Brien was looking down at him speculatively. More than ever he had the air of a teacher taking pains with a wayward but promising child.


'There is a Party slogan dealing with the control of the past,' he said. 'Repeat it, if you please.'

"Who controls the past controls the future: who controls the present controls the past," repeated Winston obediently.

"Who controls the present controls the past," said O'Brien, nodding his head with slow approval. 'Is it your opinion, Winston, that the past has real existence?'

Again the feeling of helplessness descended upon Winston. His eyes flitted towards the dial. He not only did not know whether 'yes' or 'no' was the answer that would save him from pain; he did not even know which answer he believed to be the true one.

O'Brien smiled faintly. 'You are no metaphysician, Winston,' he said. 'Until this moment you had never considered what is meant by existence. I will put it more precisely. Does the past exist concretely, in space? Is there somewhere or other a place, a world of solid objects, where the past is still happening?'

'No.'

'Then where does the past exist, if at all?'


'In records. It is written down.'

'In records. And- ?'

'In the mind. In human memories.

'In memory. Very well, then. We, the Party, control all records, and we control all memories. Then we control the past, do we not?'


तो इस पोस्ट की हेडिंग इन सभी मुद्दों की ओर ध्यान इंगित कराने की कोशिश कर रही थी, मैं उसके पहले वाली २५१५ ( कन्वर्जेंस ) से मेरी और रीत की कुछ बातों को जस का तस रेखांकित करना चाहती हूँ,...

' रीत का कंसर्न प्रायवेसी था लेकिन उससे ज्यादा , मिसयूज ,

वो कह रही थी, पोलिटिकल सरवायलेंस के लिए कहीं इसका इस्तेमाल न किया जाय , लेकिन दूसरी सबसे बड़ी चिंता थी , एक नए कॉम्बिनेशन , बिजनेस और पोलिटिकल कॉम्बिनेशन , क्या कहते हैं आजकल क्रोनी,... और उसी के साथ बड़ी बड़ी बिग डाटा कंपनियों का कोल्युजन,...

लेकिन रीत बड़ी टफ जज थी,

तो मेरे मन जो एक झिलमिलाती सी इमेज इस कहानी के दूसरे भाग की है , वो मेरी पहले की कहानियों से इतर, इरोटिका होगी भी तो इन्सिडेंटल, ... उस कहानी में एक 'डिस्टोपियन विश्व ' का मंडराता खतरा और विज्ञान तकनीक के क्रोनी कैपिटलिज्म या सिर्फ फायदा उठानेवाली प्रवृत्ति से संबध,... फागुन के दिन चार का जो आतंकवाद था उसी का एक और लेकिन सूक्ष्म रूप, ... और अंतिम भाग में मैंने अपनी अपनी उन सभी कंसंर्न को उठाने की कोशिश की है , जैसे फागुन के दिन चार के अंत में एक मुक्तिबोध की कविता थी, पूर्वांचल का दर्द था,...


लेकिन मैं यह नहीं कह रही हूँ की मैं ये भाग लिख पाउंगी भी की नहीं, ... क्योंकि मैंने टारगेट बहुत ऊँचा और बहुत कठिन तय कर रखा है,... फिर कहानी का ताना बाना बुनने के पहले उन मुद्दों को समझना उसके बारे में पढ़ना,...

और कहानी का वह रूप इसके वर्तमान रूप से एकदम मेल नहीं खाता था,...

दूसरी बात कहानी जिस रूप में शुरू हुयी थी और काफी देर चली, लव कम अरेंज्ड मैरिज वाला, एक किशोरी , पढ़ कर कालेज के कैम्पस से निकला एक तरुण , उनका विवाह और शुरू के दिन, यही पृष्ठभूमि और उसी के आधार पर कहानी के चरित्र भी थे, और कहानी की नायिका का रूप एक सॉफ्ट सेंसुअस था , बाद के हिस्से में थोड़ा सा रूप बदला लेकिन उसमें भी मुख भूमिका कम्मो ने ही निबाही। इस लिए भी मैंने सोचा की अब इसे फर्स्ट परसन से बदल कर ,... और ये दोनों कहानियां अनुज, गुड्डो और उसकी मम्मी की और कम्मो और गुड्डी की संदर्भ के लिए, पूर्वाभास के लिए इस कहानी से जुडी जरूर रहेंगी लेकिन उन कहानियों का रूप, नेचर इस कहानी से बाधित नहीं होगा, जो सॉफ्ट और सेंसुअस है.

डायलॉग की बात आपने एकदम सही कही , मेरे तरकश के वही असली तीर हैं , ननद भाभी का रिश्ता भी और बाकी रिश्ते भी,...


तो चलिए पहले एक भाग उसका , अनुज और बनारस वाला शुरू दें फिर जैसे जनता की इच्छा ,
मैं एक बार फिर से इस कहानी को शुरू से अंत तक पढ़ना चाहूंगा...क्योंकि हो सकता है कि कुछ प्रसंग को जल्दबाजी में पढ़ते हुए कुछ मिस हों गया हों...
और हाँ एक बात और मैं आपके अथाह ज्ञान के नतमस्तक हूँ...
आपके कमेंट्स पढ़ कर कई नई बातों का पता चलता है...
धन्यवाद
 
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klauacami

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कहानी से जुड़े दो पात्रों की बातें आगे बढ़ेंगी,मेरी ननद गुड्डी रानी और देवर अनुज की और कैसे बढ़ेंगी कहानी में क्या ट्विस्ट होगा, ये सब अभी से बता के कहानी का रस भंग मैं नहीं करना चाहती, लेकिन ट्विस्ट होगा और जबरदस्त होगा, इसलिए मैं यानी फर्स्ट परसन में कहानी का जो रूप था उससे विदा लेती हूँ, पर


मेरी इत्ती प्लानिंग के बाद भी मेरी ननद का पिछवाड़ा कोरा रह जाए,

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तीन तीन पठान तैयार हैं उनकी बातें न हों , और कम्मो फिर उसके सहयोग में तो वो सारी बातें होंगी अब कम्मो कहेगी या थर्ड परसन में होंगीं ये तो तभी पता चलेगा, लेकिन ट्विस्ट जबरदस्त होगा,


और आप में से कुछ हो सकता है मेरी इस ननद के भाई को बिसर गए होंगे जो गुड्डो के पास, गुड्डो और उसकी मम्मी,... तो माँ बेटी साथ साथ

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सब कुछ होगा,... बस थोड़ा सा इन्तजार होगा, शायद होली तक , फिर दोनों इसी थ्रेड में या जैसे आप सब का आदेश हो अलग नए थ्रेड में ,... तो बस जुड़े रहिये साथ बनाये रखिये इस थ्रेड पर और मेरे बाकी थ्रेड्स पर भी,...


और रिस्पांड जरूर करियेगा, प्लीज प्लीज प्लीज ,


२५० से ऊपर पन्ने

दस लाख से ज्यादा व्यूज ,... पिछला फोरम बंद होने के बाद ये मेरी पहली कहानी थी ,


तो इन्तजार करुँगी , आपके कमेंट्स का सुझावों का।
we will wait for you and always love you and your writing skill. we will miss you till then
 
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klauacami

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haan nanad ki aur dever ki alag alag thread pe start karna woh aasan hoga padhna...sath hi thoda shok lga tha phle par ab sab clear ho gya h
 
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Real@Reyansh

हसीनो का फेवरेट
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Jiju kI रगड़ाई तो आयई ही नहीं Didi .. .
 
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komaalrani

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we will wait for you and always love you and your writing skill. we will miss you till then
Thanks so much, and dont miss me , meri baaki ki tin kahanniyan.... Joru ka Gullam, Solahvan Saavn, Holi ke rang ke saath saath maine .... ek HOLI aayi re lounge men bhi shuru kiya hai vahan aap jarror aa kar mera utsaah badhayen
 

komaalrani

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मैं एक बार फिर से इस कहानी को शुरू से अंत तक पढ़ना चाहूंगा...क्योंकि हो सकता है कि कुछ प्रसंग को जल्दबाजी में पढ़ते हुए कुछ मिस हों गया हों...
और हाँ एक बात और मैं आपके अथाह ज्ञान के नतमस्तक हूँ...
आपके कमेंट्स पढ़ कर कई नई बातों का पता चलता है...
 

Rajabhai

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आपकी तीनो बातें एकदम सही है, ...

१. अनुज का बनारस का प्रसंग अनुज की ही जुबानी आएगा,

२. कहानी का दूसरा भाग, एक डिस्टोपियन रूप की ओर मैंने सोचा है जिसका विस्तृत वर्णन एक अन्य उत्तर मैंने पोस्ट संख्या,
पिछले पन्ने पर मेरी पोस्ट २५४० .में किया है, आशा है आप वहां उसे पढ़कर मेरे अभिमत से सहमत होंगे,

३. कम्मो और गुड्डी की कहानी- या तो कम्मो की जुबानी होगी या थर्ड परसन में , थर्ड परसन में मैंने आज तक बहुत ही कम कहानियां लिखी हैं या शायद नहीं लिखीं , ... और कैमरे की बातें आपने एकदम सही की, बीच बीच में हो सकता है मैं भी कभी कभी,... लेकिन घटनाएं इतनी जगह पर होंगी की सब बातों को कैमरे से देखना मुश्किल है जैसे अगर कुछ खुली छत पर हो या कम्मो के कमरे में हो या कहीं और,... तो वह घटनाओं के वर्णन को सिमित कर देगा, ... पर सबसे बड़ी बात यह है की हर कहानी का एक करेक्टर होता है जिसे हम एक दो शब्दों में कह सकते हैं और वह कहानी के रूप रंग को परिभाषित करती है, जैसे फागुन के दिन चार एक एरोटिक थ्रिलर थी, जोरू का गुलाम एक लाइट फेमडाम या एस एम् टी आर ( शी मेक्स द रूल ), सोलहवां सावन , एक सेलेब्रेशन ऑफ़ सावन एंड कमिंग आफ एज है , एक ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में, होली के रंग एक शहरी माहौल में एक टीनेजर की कमिंग ऑफ़ एज स्टोरी है, इसी तरह यह कहानी बहुत ही सॉफ्ट और सेंसुअस तरीके से मैंने लिखने की कोशिश की थी, एकदम शुरू में ही पहली रात की जो हेडिंग्स थीं हर पोस्ट की,

रात पिया के संग जागी रे सखी ( पेज ३ पोस्ट २२ )

चैन पड़ा जो अंग लागी रे सखी ( पेज ४ पोस्ट ३५ )

गजरा सुहाना टूटा , ( पेज ४ पोस्ट ३६ )

आज सुहाग की रात , सुरज जिन उगिहौं ( पेज ६ पोस्ट ६४ )

बीती विभावरी जाग रे ( पेज ६ पोस्ट ६६ )

तो मुझे लगा की इस विधा की अपनी सम्भावनाये तो हैं लेकिन सीमाएं भी है, तो अगर अनुज की बनारस की कहानी या कम्मो की गुड्डी वाली कहानी में अगर वर्जनाओं को तोड़ना चाहूँ ( जैसा काफी कुछ मजा पहली होली का ससुराल में है) या कुछ नए प्रयोग करना चाहूँ, कोई ऐसा बॅकग्राइंड या संबंध जिसे मैंने आज तक एक्सप्लोर नहीं किया है तो यह दोनों नए सिरे से ही शुरू करना ठीक रहेगा,

लेकिन एक सुझाव की आवश्यकता अभी भी है,

क्या अनुज और बनारस तथा कम्मो और गुड्डी की कहानी मैं इसी कहानी में आगे बढ़ाऊं जैसा मैंने सोचा है की पहले अनुज और बनारस के कुछ प्रसंग और फिर कम्मो वाली कहानी के कुछ प्रसंग , जैसा कई बार उपन्यासों में होता है आलटरनेट या फिर दोनों कहानियों को नयी कहानी की तरह,...


आपने इतनी अच्छी अच्छी बातें मेरे बारे में लिख दीं, की क्या कहूं, बस यही कह सकती हूँ आपने कुछ कहने लायक छोड़ा नहीं, बस शीश नवा के ,आदर पूर्वक नत नयन से आभार ही व्यक्त कर सकती हूँ और ये अनरोध कर सकती हूँ की बस इसी तरह अपने सुझावों से मार्ग दर्शन करें , साथ बनाये रखें।
कोमलजी, प्रणाम,
आपने जो शीश नवा कर आभार व्यक्त किया है, उससे हम आपसे नाराज हैं। कहानी लिखने की जो कला/ महारत आपको हासिल है उसमें आपका कोई सानी नहीं है। हमने कुछ उटपटांग सुझाव आपको दे दिए उसमे आपने हमें इतना महत्व दे दिया, जिसके लायक हम नहीं है। आपकी रचनायें हम पिछले कई वर्षों से पढ़ते आये है लेकिन हम आज तक एक नन्ही सी कहानी भी नहीं लिख पाये है।
आप सदैव इस तरह की सुंदर भावनात्मक एवं कलात्मक रचनाऐं लिखती रहें, यही हमारी शुभकामनाएं।
धन्यवाद
 

komaalrani

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मैं एक बार फिर से इस कहानी को शुरू से अंत तक पढ़ना चाहूंगा...क्योंकि हो सकता है कि कुछ प्रसंग को जल्दबाजी में पढ़ते हुए कुछ मिस हों गया हों...
और हाँ एक बात और मैं आपके अथाह ज्ञान के नतमस्तक हूँ...
आपके कमेंट्स पढ़ कर कई नई बातों का पता चलता है...
धन्यवाद


कन्वर्जेंस,... रीत की बातें तो वैसे कई बार आयीं लेकिन मैंने लास्ट पोस्ट में जो कुछ लिखा है उसकी पृष्टभूमि के तौर पे,... कुछ लिंक्स दे रही हूँ,

कन्वर्जेंस के लिए ज्यादा नहीं बस पेज १६६ पर लौट जाएँ और पोस्ट १६५४ और उसकी बाद की पोस्ट,

कोमल तुम्हारा नाम क्या है (१६५८ ) ,... उसमें भाषा के बारे में चर्चा है page 166


वो जोर से हँसे , हँसते ही रहे , उनकी इसी हंसी पर तो सिर्फ मैं नहीं उनकी सारी ससुराल वालियां निहाल थीं , पर जो बात बतायीं उन्होनी , सच बताऊँ , किसी से बताइयेगा नहीं , कोमल के दिमाग में भी कभी नहीं आयी थी , ...




जीभ, तालू , होंठ के संयोग से जो हवा मुंह से निकलती है , वो एक आवाज होती है , लेकिन हर आवाज अक्षर , या शब्द नहीं होती। उसी तरह हम लाइने , कुछ ज्यामितीय आकृतियां उकेरते हैं , लेकिन हर बार उस का भी अर्थ नहीं होता , लेकिन जब दोनों को मिलाकर, जैसे हमने एक लाइन , गोला , पूँछ ( ाजिसे स्कूल में मास्टर जी सिखाते हैं क लिखने के लिए ) और उसको एक ख़ास अंदाज में बोलते हैं , तो ये दोनों का कन्वर्जेंस अक्षर होता है , और उसी के साथ जुड़ा होता है एक सोशल सैंक्शन , सभी लोग एक इलाके के , जो साथ साथ रहते हैं यह मान लेते हैं की इस ज्यामितीय आकृति के लिए यह जो आवाज निकल रही है वह क होता है ,

मैं चुपचाप सुनती रही , ये बात कभी मैंने सोची भी नहीं थी , कितनी बार क ख ग लिखा पर , पर मेरी आदत चुप रहने की नहीं थी तो मैं बोल पड़ी ,

" और उसी को जोड़ कर शब्द बनते हैं ,... "
.....

ज्यादातर इनकी हिम्मत नहीं होती थी मेरी बात काटने की , माँ बहन सब की ऐसी की तैसी कर देती मैं , और उपवास का डर अलग, लेकिन आज बात काटी तो नहीं लेकिन थोड़ी कैंची जरूर चलायी।



" हाँ और नहीं , कई ट्राइबल सोसायटी में रिटेन लैंग्वेज अभी भी नहीं है , पर शब्द हैं गीत हैं कहानियां है , तो एकदम नैरो सेन्स में हम उन्हें लिटरेट नहीं मानते , लेकिन उनका अपना लिटरेचर अलग तरीके का है , लेकिन लिखने का फायदा है की सम्प्रेषण आसान हो जाता है , समय और स्थान के बंधन से हट कर , जो अशोक ने शिलालेख पर लिखा, वो हजारों साल बाद भी पढ़ कर उस समय के बारे में , पता चल जाता है , ... फिर जो यहाँ लिखा है उसे हजारो किलोमीटर दूर भी भेजा जा सकता है , तो कोई भी जीव, समाज , सभ्यता, संस्कृति अपने को प्रिजर्व करना चाहती है , तो लिखित भाषा उसमें सहायक होती है , ... "

मेरा भी दिमाग अब काम करने लगा था , मैंने जोड़ा और साहित्य

" एकदम लेकिन उसके पहले व्याकरण , और फिर वही बात सामाजिक स्वीकृत की , मान्यता की और बदलाव की भी , संस्कृत ऐसी भाषा भी , व्याकरण के नियम , शब्दों के अर्थ सब बदलते हैं , लेकिन हर अक्षर जिसमें अर्थ छिपा रहता है एक डाटा है , अच्छा चलो ये बताओ ढेर सारा डाटा एक साथ कब पहली बार संग्रहित किया गया होगा ,



मैंने झट से जवाब दिया और जल्दी के चक्कर में गलत जवाब दिया , कंप्यूटर पर उन्होंने तुरतं बड़ी हिम्मत बात काटी ,

नहीं किताब ,

और समझाया भी , जब शिलालेख पर , गुफाओं में कुछ उकेरते थे तो समय और स्थान की सीमा रहती थी पर किताब के एक पन्ने पर कितनी लाइनें , कितने शब्द , फिर जो एक के बाद एक पन्ने को जोड़ कर रखने की तरकीब निकली तो कितनी बातें एक साथ एक जगह और भाषा के साहित्य में बदलने में किताबों का बड़ा रोल था , ,

वो फिर हंसने लगे , और मैं उनसे एकदम सट कर बैठ गयी ,

कंप्यूटर बड़ी , ... वो हर भाषा , चित्र , संख्या , आवाज को ० और १ में बदल देता है तो एक यूनिवर्सिलिटी ,... लेकिन ये पहली बार नहीं हो रहा है , टेलीफोन और उससे पहले टेलीग्राफ , मोर्स कोड , इलेक्ट्रिक करेंट को , फिर ग्रामोफोन रिकार्ड , ... सौ साल बाद भी गौहर जान को सुन सकते हैं ,... चलो एक और सवाल पूछता हूँ कन्वर्जेन्स का , दो एकदम शुरू की सबसे बड़ी खोजें , मिल कर क्या बनीं ,

और अबकी मैं सही थी ,

इंजन जोर से बोली मैं ,

एकदम सही , आग और पहिया , ... एनर्जी और मोशन ,और सिर्फ ट्रेन के इंजिन में नहीं , टरबाइन , और पहली औद्योगिक क्रांति जिसने यूरोप को इतना आगे कर दिया ,

.... और इसी के ठीक आगे वाली दो पोस्टें,

१६५९ मेरा आधार मेरी पहचान -अच्छा बता , आधार से भी यूनिक क्या हो सकता है ,


मैं सोच में पड़ गयी , फिंगर प्रिंट्स आँख की पुतली , वो सब तो आधार में हैं , फिर क्या हो सकता है , मैं सोचती रही , सोचती रही , लेकिन मैं घटिया मर्डर मिस्ट्री बहुत पढ़ती थी , इसलिए मेरे मुंह से निकल गया ,

१६६० " डी एन ए "

कन्वर्जेंस से जुडी कुछ और पोस्टें पेज १७५ पर भी है,

और रीत से जुडी काफी पोस्टें पेज १९७, १९८ और २०० पर हैं , और कन्वर्जेंस और रीत से जुडी ये पोस्ट्स, मेरी आखिरी पोस्ट से जुडी हैं


लेकिन कहानी अगर एक बार फिर पढ़ के आप कुछ सुझाव देंगे तो वो तो सोने में सुहागा होगा।
 
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