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आपकी तीनो बातें एकदम सही है, ...कोमलजी ,
आपकी कहानी में हम सभी इतने गहराई में डूब जाते हैं कि आपने कितने शब्द लिखें या कितने पेज भर दिए यह सब दिखाई नहीं देता है. हमें तो झटका तब लगा जब आपने लिखा कि *समाप्त*.
छुटकी ननदिया के लिए आपने इतने सारे CC केमेरे लगवाए है, तो वह तो आप फर्स्ट पर्सन में भी लिख सकती है, रही बात बनारस में अनुज एवं उन माँ बेटियों की तो वह आप अनुज की जुबानी भी लिख सकती हो।
रीत जहाँ होगी वहाँ टेक्नोलॉजी की बातें जरूर होगी, उसमें भी हमें कुछ नया पढ़ने को ही मिलता है
आप इस कहानी को भाग 2 के नाम से भी प्रेषित कर सकते है, या कोई नया नाम भी दे सकते हैं।
धन्यवाद
१. अनुज का बनारस का प्रसंग अनुज की ही जुबानी आएगा,
२. कहानी का दूसरा भाग, एक डिस्टोपियन रूप की ओर मैंने सोचा है जिसका विस्तृत वर्णन एक अन्य उत्तर मैंने पोस्ट संख्या,
पिछले पन्ने पर मेरी पोस्ट २५४० .में किया है, आशा है आप वहां उसे पढ़कर मेरे अभिमत से सहमत होंगे,
३. कम्मो और गुड्डी की कहानी- या तो कम्मो की जुबानी होगी या थर्ड परसन में , थर्ड परसन में मैंने आज तक बहुत ही कम कहानियां लिखी हैं या शायद नहीं लिखीं , ... और कैमरे की बातें आपने एकदम सही की, बीच बीच में हो सकता है मैं भी कभी कभी,... लेकिन घटनाएं इतनी जगह पर होंगी की सब बातों को कैमरे से देखना मुश्किल है जैसे अगर कुछ खुली छत पर हो या कम्मो के कमरे में हो या कहीं और,... तो वह घटनाओं के वर्णन को सिमित कर देगा, ... पर सबसे बड़ी बात यह है की हर कहानी का एक करेक्टर होता है जिसे हम एक दो शब्दों में कह सकते हैं और वह कहानी के रूप रंग को परिभाषित करती है, जैसे फागुन के दिन चार एक एरोटिक थ्रिलर थी, जोरू का गुलाम एक लाइट फेमडाम या एस एम् टी आर ( शी मेक्स द रूल ), सोलहवां सावन , एक सेलेब्रेशन ऑफ़ सावन एंड कमिंग आफ एज है , एक ग्रामीण परिप्रेक्ष्य में, होली के रंग एक शहरी माहौल में एक टीनेजर की कमिंग ऑफ़ एज स्टोरी है, इसी तरह यह कहानी बहुत ही सॉफ्ट और सेंसुअस तरीके से मैंने लिखने की कोशिश की थी, एकदम शुरू में ही पहली रात की जो हेडिंग्स थीं हर पोस्ट की,
रात पिया के संग जागी रे सखी ( पेज ३ पोस्ट २२ )
चैन पड़ा जो अंग लागी रे सखी ( पेज ४ पोस्ट ३५ )
गजरा सुहाना टूटा , ( पेज ४ पोस्ट ३६ )
आज सुहाग की रात , सुरज जिन उगिहौं ( पेज ६ पोस्ट ६४ )
बीती विभावरी जाग रे ( पेज ६ पोस्ट ६६ )
तो मुझे लगा की इस विधा की अपनी सम्भावनाये तो हैं लेकिन सीमाएं भी है, तो अगर अनुज की बनारस की कहानी या कम्मो की गुड्डी वाली कहानी में अगर वर्जनाओं को तोड़ना चाहूँ ( जैसा काफी कुछ मजा पहली होली का ससुराल में है) या कुछ नए प्रयोग करना चाहूँ, कोई ऐसा बॅकग्राइंड या संबंध जिसे मैंने आज तक एक्सप्लोर नहीं किया है तो यह दोनों नए सिरे से ही शुरू करना ठीक रहेगा,
लेकिन एक सुझाव की आवश्यकता अभी भी है,
क्या अनुज और बनारस तथा कम्मो और गुड्डी की कहानी मैं इसी कहानी में आगे बढ़ाऊं जैसा मैंने सोचा है की पहले अनुज और बनारस के कुछ प्रसंग और फिर कम्मो वाली कहानी के कुछ प्रसंग , जैसा कई बार उपन्यासों में होता है आलटरनेट या फिर दोनों कहानियों को नयी कहानी की तरह,...
आपने इतनी अच्छी अच्छी बातें मेरे बारे में लिख दीं, की क्या कहूं, बस यही कह सकती हूँ आपने कुछ कहने लायक छोड़ा नहीं, बस शीश नवा के ,आदर पूर्वक नत नयन से आभार ही व्यक्त कर सकती हूँ और ये अनरोध कर सकती हूँ की बस इसी तरह अपने सुझावों से मार्ग दर्शन करें , साथ बनाये रखें।
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