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घर आया मेरा परदेशी
उस दिन गुड्डी भी दिन में आगयी थी वही उनकी ममेरी बहन , एलवल वाली , .
मुंडेर पर कोई कौवा मुआ पता नहीं कहाँ से , कांव कांव
और वो पीछे पड़ गयी ,
" भाभी , इस कौवे को दूध भात खिलाइये , कोई मेसेज ले आया है , लगता है कोई आने वाला है "
आने वाला तो हजार किलोमीटर दूर , ...
मैं बस मुस्करा के रह गयी। कोई और दिन होता तो उसे दस सुनाती , लेकिन मन तो मेरा भी यही कर रहा था ,
पर
पर
और आज उनका कोई फोन भी दोपहर के बाद नहीं आया था ,
शाम को गुड्डी अपने घर गयी ,
रोज की तरह नौ बजे मैं ऊपर ,...और आज जेठानी सास भी जल्दी सो गयीं घण्टी बजी मेरे फोन की।
दस सवा दस बज रहा होगा की उनका फोन आया ,
वैसे तो हर घंटे दो घण्टे में उनका फोन व्हाट्सऐप आता था पर उस दिन दोपहर के बाद से नहीं आया था ,
घर में सब लोग सो रहे थे ,
उन्ही का फोन था , मैं उठ कर बैठ गयी।
आवाज एकदम हलकी सी , दबी दबी ,
" कहाँ हो , कैसे हो , फोन नहीं किया ,... "
मैंने आधे दर्जन सवाल कर डाले।
उधर से धीमे से बहुत हलकी आवाज आयी ,
" दरवाजा तो खोलो , दरवाजे पर खड़ा हूँ "
मेरी कुछ समझ में नहीं आया , ...
वो , दरवाजे पर , कैसे ,
सपना तो नहीं देख रही हूँ।
" दरवाजे पर , कहाँ ,... "
और उनके जवाब ने बात साफ़ कर दी ,
" नीचे , सब लोग जग जायेंगे , इस लिए बेल नहीं बजा रहा हूँ , तुझे काल किया है , आ कर दरवाजा खोल दो न "
फिर तो मैं नंगे पैर , सीधे नीचे ,
और इस बात का ख्याल भी नहीं किया की मेरी देह पर बस एक छोटी सी नाइटी टंगी है , अंदर भी कुछ नहीं।
दरवाजा खुलते ही ,
चुम्मियों की बौछार , ...
लेकिन गनीमत थी उन्हें होश आ गया ,
कोई जग जाएगा ,
जिस लिए उन्होंने घण्टी नहीं बजायी थी ,
और बस हम दोनों को जैसे पंख लग गए , ...
अगले पल हम दोनों अपने कमरे में ,
और , और कहाँ , सीधे बिस्तर पर एक दूसरे की बाँहों में
बिना बोले बस एक दूसरे को भींचे रहे , दबोचे रहे ,
ठीक सात दिन हुए थे उन्हें गए , लग रहा था सात युग बीत गए।
पता
नहीं कितने देर तक हम दोनों बिना बोले , बस एक दूसरे को पकडे दबोचे , भींचे ऐसे ही पड़े रहे ,
पहली चुम्मी मैंने ही ली।
फिर तो वो लड़का कपड़ों का दुश्मन ,...
और मैं भी तो उनके रंग में रंग गयी थी अब तक बस शर्ट बनियाइन पैंट उनके सब फर्श पर बिखरे ,
वो सिर्फ चड्ढी में ,
न मैंने पूछा वो कैसे आधी रात को बंगलुरु से यहां आये , न उन्होंने बताया।
बातचीत सिर्फ चुम्मी में हो रही थी , ...
मैं रुकती तो वो शुरू हो जाते , और वो सांस लेते तो मैं चालू ,
और वो बदमाश , उसे तो सिर्फ ,... कुछ ही देर में उसके होंठ , मेरे होंठों से सरक कर गालों पर , और गालों से सरक कर जुबना पर ,
मैंने न मना किया न पूछा ,
मुझे मालूम था वो पूछने पर हर बार की तरह वही बहाना बनाता
" मेरे होंठों की कोई गलती नहीं , अपने गालों को दोष दो , इतने चिकने हैं , मेरे होंठ सरक कर नीचे आ ही जाते है ,"
कुछ देर तो नाइटी के ऊपर से ही उन गोलाइयों को वो चूमते चूसते रहे फिर सरका कर सीधे निप्स पर ,
लेकिन कुछ देर बाद मैंने उन्हें धक्का मार कर पलंग पे लिटा दिया , पीठ के बल और उन की आँखों में आँखे डाल के बोली
" दुष्ट , बदमाश , तूने एक हफ्ते तक रोज तड़पाया है , आज मेरी बारी है ,
अब तुम कुछ नहीं करोगे , लेटे रह चुपचाप , अगर ज़रा भी हिले डुले न तो कुछ भी नहीं मिलेगा। "
और वो लेटे लेटे मुस्कराते रहे ,
न उन्हें ध्यान था न मुझे , कमरे की लाइट जल रही है
की दरवाजा अंदर से बंद नहीं है
बदमाश तो वो पूरे थे , सर से पैर तक
लेकिन सबसे शैतान थीं उनकी आँखे , ...
चोर ,
पहली बार मेरी सहेली की शादी में जब उन्होंने मुंहे देखा , तभी मुझसे , मुझी को चुरा के ले गयीं ,
ऐसी चोरी जिसकी न रपट हो सकती है न थाना कचहरी ,
चोर नहीं बल्कि डाकू ,
इसलिए मैं पहले मैंने उस चोर की ही मुश्के कसीं ,
वो जिस तरह से मुझे देखते थे , मैं एकदम पानी पानी हो जाती थी , लाख सोच के जाऊं , ना कह ही नहीं पाती थी।
इसलिए पहले मेरे होंठों ने उन होंठों के कपाट बंद किये और एक मीठे से चुम्बन से तगड़ी सी सांकल भी लगा दी।
और चैन की साँस ली , एक बड़ा ख़तरा टला , फिर उनके दोनों हाथ , उनके सर के नीचे ,
लड़के के अंदर हजार बुराइयां हो , लेकिन एक अच्छाई भी थी , मेरी सब बात मानता था , और वो भी मन से।
और फिर ,... मेरे भीगे रसीले होंठ ,... पलकों के दरवाजे पर बड़ा सा ताला लगाने के बाद , सीधे मेरे होंठ , गाल पर नहीं कान पर , बल्कि इयर लोब्स पर , एक लकी सी चुम्मी छोटी सी बाइट
मेरे होंठों ने बिना बोले आगे आने वाले पलों के बारे में सब कुछ कह दिया था ,
मेरे होंठ पर उनके होंठ पहला मौक़ा पाते ही हमला बोल देते थे , और आज मेरा मौका था तो मेरे होंठ क्यों चूकते ,
पहले एक छोटी सी , बहुत छोटी सी किस्सी लेकिन मेरे होंठ कौन कम लालची थे ,
उनके निचले होंठो को अपने होंठो के बीच में लेकर उन्होंने कस कस के चूसना शुरू कर दिया ,
फिर मेरी जीभ क्यों पीछे रहती ,
स्वाद लेने का काम तो उसी का था ना ,
बस जीभ उनके मुंह में घुस गयी और अब तो मैं भी डीप फ्रेंच किस सीख लिया था , तो बस कभी मेरी जीभ उनके मुंह में घुस के स्वाद लेती तोकभी मेरे होंठ उनकी जीभ को पकड़ कर गन्ने की पोर की तरह चूसते
वो बिचारे तो हिल भी नहीं सकते थे ,
मैं बेईमान थी लेकिन इतनी नहीं , ... मैंने मना कर दिया था , अपने हाथों को बाकी अंगों को , एक बार में सिर्फ एक अंग ,...
होंठ तो होंठ ,
बड़ी मुश्किल से मना जुना कर मैं अपने होंठों को उनके होंठों से अलग कर पायी और उसके बाद तो जैसे चुम्बन की बारिश उनकी चौड़ी छाती पर
उस दिन गुड्डी भी दिन में आगयी थी वही उनकी ममेरी बहन , एलवल वाली , .
मुंडेर पर कोई कौवा मुआ पता नहीं कहाँ से , कांव कांव
और वो पीछे पड़ गयी ,
" भाभी , इस कौवे को दूध भात खिलाइये , कोई मेसेज ले आया है , लगता है कोई आने वाला है "
आने वाला तो हजार किलोमीटर दूर , ...
मैं बस मुस्करा के रह गयी। कोई और दिन होता तो उसे दस सुनाती , लेकिन मन तो मेरा भी यही कर रहा था ,
पर
पर
और आज उनका कोई फोन भी दोपहर के बाद नहीं आया था ,
शाम को गुड्डी अपने घर गयी ,
रोज की तरह नौ बजे मैं ऊपर ,...और आज जेठानी सास भी जल्दी सो गयीं घण्टी बजी मेरे फोन की।
दस सवा दस बज रहा होगा की उनका फोन आया ,
वैसे तो हर घंटे दो घण्टे में उनका फोन व्हाट्सऐप आता था पर उस दिन दोपहर के बाद से नहीं आया था ,
घर में सब लोग सो रहे थे ,
उन्ही का फोन था , मैं उठ कर बैठ गयी।
आवाज एकदम हलकी सी , दबी दबी ,
" कहाँ हो , कैसे हो , फोन नहीं किया ,... "
मैंने आधे दर्जन सवाल कर डाले।
उधर से धीमे से बहुत हलकी आवाज आयी ,
" दरवाजा तो खोलो , दरवाजे पर खड़ा हूँ "
मेरी कुछ समझ में नहीं आया , ...
वो , दरवाजे पर , कैसे ,
सपना तो नहीं देख रही हूँ।
" दरवाजे पर , कहाँ ,... "
और उनके जवाब ने बात साफ़ कर दी ,
" नीचे , सब लोग जग जायेंगे , इस लिए बेल नहीं बजा रहा हूँ , तुझे काल किया है , आ कर दरवाजा खोल दो न "
फिर तो मैं नंगे पैर , सीधे नीचे ,
और इस बात का ख्याल भी नहीं किया की मेरी देह पर बस एक छोटी सी नाइटी टंगी है , अंदर भी कुछ नहीं।
दरवाजा खुलते ही ,
चुम्मियों की बौछार , ...
लेकिन गनीमत थी उन्हें होश आ गया ,
कोई जग जाएगा ,
जिस लिए उन्होंने घण्टी नहीं बजायी थी ,
और बस हम दोनों को जैसे पंख लग गए , ...
अगले पल हम दोनों अपने कमरे में ,
और , और कहाँ , सीधे बिस्तर पर एक दूसरे की बाँहों में
बिना बोले बस एक दूसरे को भींचे रहे , दबोचे रहे ,
ठीक सात दिन हुए थे उन्हें गए , लग रहा था सात युग बीत गए।
पता
नहीं कितने देर तक हम दोनों बिना बोले , बस एक दूसरे को पकडे दबोचे , भींचे ऐसे ही पड़े रहे ,
पहली चुम्मी मैंने ही ली।
फिर तो वो लड़का कपड़ों का दुश्मन ,...
और मैं भी तो उनके रंग में रंग गयी थी अब तक बस शर्ट बनियाइन पैंट उनके सब फर्श पर बिखरे ,
वो सिर्फ चड्ढी में ,
न मैंने पूछा वो कैसे आधी रात को बंगलुरु से यहां आये , न उन्होंने बताया।
बातचीत सिर्फ चुम्मी में हो रही थी , ...
मैं रुकती तो वो शुरू हो जाते , और वो सांस लेते तो मैं चालू ,
और वो बदमाश , उसे तो सिर्फ ,... कुछ ही देर में उसके होंठ , मेरे होंठों से सरक कर गालों पर , और गालों से सरक कर जुबना पर ,
मैंने न मना किया न पूछा ,
मुझे मालूम था वो पूछने पर हर बार की तरह वही बहाना बनाता
" मेरे होंठों की कोई गलती नहीं , अपने गालों को दोष दो , इतने चिकने हैं , मेरे होंठ सरक कर नीचे आ ही जाते है ,"
कुछ देर तो नाइटी के ऊपर से ही उन गोलाइयों को वो चूमते चूसते रहे फिर सरका कर सीधे निप्स पर ,
लेकिन कुछ देर बाद मैंने उन्हें धक्का मार कर पलंग पे लिटा दिया , पीठ के बल और उन की आँखों में आँखे डाल के बोली
" दुष्ट , बदमाश , तूने एक हफ्ते तक रोज तड़पाया है , आज मेरी बारी है ,
अब तुम कुछ नहीं करोगे , लेटे रह चुपचाप , अगर ज़रा भी हिले डुले न तो कुछ भी नहीं मिलेगा। "
और वो लेटे लेटे मुस्कराते रहे ,
न उन्हें ध्यान था न मुझे , कमरे की लाइट जल रही है
की दरवाजा अंदर से बंद नहीं है
बदमाश तो वो पूरे थे , सर से पैर तक
लेकिन सबसे शैतान थीं उनकी आँखे , ...
चोर ,
पहली बार मेरी सहेली की शादी में जब उन्होंने मुंहे देखा , तभी मुझसे , मुझी को चुरा के ले गयीं ,
ऐसी चोरी जिसकी न रपट हो सकती है न थाना कचहरी ,
चोर नहीं बल्कि डाकू ,
इसलिए मैं पहले मैंने उस चोर की ही मुश्के कसीं ,
वो जिस तरह से मुझे देखते थे , मैं एकदम पानी पानी हो जाती थी , लाख सोच के जाऊं , ना कह ही नहीं पाती थी।
इसलिए पहले मेरे होंठों ने उन होंठों के कपाट बंद किये और एक मीठे से चुम्बन से तगड़ी सी सांकल भी लगा दी।
और चैन की साँस ली , एक बड़ा ख़तरा टला , फिर उनके दोनों हाथ , उनके सर के नीचे ,
लड़के के अंदर हजार बुराइयां हो , लेकिन एक अच्छाई भी थी , मेरी सब बात मानता था , और वो भी मन से।
और फिर ,... मेरे भीगे रसीले होंठ ,... पलकों के दरवाजे पर बड़ा सा ताला लगाने के बाद , सीधे मेरे होंठ , गाल पर नहीं कान पर , बल्कि इयर लोब्स पर , एक लकी सी चुम्मी छोटी सी बाइट
मेरे होंठों ने बिना बोले आगे आने वाले पलों के बारे में सब कुछ कह दिया था ,
मेरे होंठ पर उनके होंठ पहला मौक़ा पाते ही हमला बोल देते थे , और आज मेरा मौका था तो मेरे होंठ क्यों चूकते ,
पहले एक छोटी सी , बहुत छोटी सी किस्सी लेकिन मेरे होंठ कौन कम लालची थे ,
उनके निचले होंठो को अपने होंठो के बीच में लेकर उन्होंने कस कस के चूसना शुरू कर दिया ,
फिर मेरी जीभ क्यों पीछे रहती ,
स्वाद लेने का काम तो उसी का था ना ,
बस जीभ उनके मुंह में घुस गयी और अब तो मैं भी डीप फ्रेंच किस सीख लिया था , तो बस कभी मेरी जीभ उनके मुंह में घुस के स्वाद लेती तोकभी मेरे होंठ उनकी जीभ को पकड़ कर गन्ने की पोर की तरह चूसते
वो बिचारे तो हिल भी नहीं सकते थे ,
मैं बेईमान थी लेकिन इतनी नहीं , ... मैंने मना कर दिया था , अपने हाथों को बाकी अंगों को , एक बार में सिर्फ एक अंग ,...
होंठ तो होंठ ,
बड़ी मुश्किल से मना जुना कर मैं अपने होंठों को उनके होंठों से अलग कर पायी और उसके बाद तो जैसे चुम्बन की बारिश उनकी चौड़ी छाती पर