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और जब नींद खुली तो शाम होगयी थी , बल्कि रात , जेठानी जी मुझे चाय ले कर जगा रही थीं , सासु जी अपने कमरे में चली गयी थी।
' दी , मुझे जगा दी होतीं , मैं बना देती न "
उलाहने के साथ मैं बोली।
पर मेरी जेठानी न , एकदम , ... मेरा गाल सहलाते बोलीं ,
" यार सो ले कुछ दिन , ... अभी तो तेरा सोने का ओवरटाइम चलना चाहिए , कुछ दिन बाद मेरा देवर आएगा न , फिर न वो तुझे रात में सोने देगा न दिन में। "
जेठानी को कौन समझाये , उनके न रहने पर भी तो नींद नहीं आती।
मेरी और जेठानी की चाय के साथ गप्प चालू हो गयी , सीरयल , फ़िल्में और हम दोनों की कॉमन और मोस्ट इंट्रेस्टिंग टॉपिक ,
ननदें ,...
जाड़े की शाम , ...
बस जेठानी जी ने पकौड़ियों का प्रस्ताव रख दिया , और हम दोनों किचेन में , मैं बेसन घोल रही थी , वो आलू प्याज काट रही थीं ,
मुझे मालूम था , उनका फोन आज नहीं आएगा , ... पर निगाह बार बार फोन पर पड़ रही थी , .. एक दो बार मैंने चेक भी किया कहीं साइलेंट मोड में तो नहीं है , फिर काम में लग गयी।
कुछ देर बाद जेठानी ने चिढ़ाया भी , ...
क्या हुआ आज घण्टी नहीं बज रही है , कहीं डिस्चार्ज तो नहीं हो गया , ... एक बार चेक कर लो ,...
मैं मूढ़ , मैंने चेक भी किया , ... फोन पूरा चार्ज था।
लेकिन उसी समय फोन की घंटी बज उठी , मैं जानती थी उनका फोन नहीं होगा ,
अनमने मन से फोन उठाया , और नंबर देखकर स्पीकर फोन ऑन कर दिया ,
मेरा देवर , अनुज , गुड्डी का भाई
" क्या हो रहा है भाभी , ... " उधर से अनुज की आवाज आयी।
" पकौड़ियाँ बन रही हैं , खानी है " मैंने हँसते हुए उसे चिढ़ाया।
" एकदम नेकी और पूछ पूछ , ... अभी उड़ कर पहुँच रहा हूँ " वो बोला।
" लालची , ... भाभी से मिलने के लिए नहीं पकौड़ी खाने के लिए , ... आ रहे हो " जेठानी ने उसे और रगड़ा।
" शनिवार को तो आया था , ... " धीमे से वो बोला , और अबकी उसे मेरी डांट पड़ गयी।
" शनिवार ,... आज सोमवार है हुज़ूर , पूरे दो दिन हो गए थे , और उस दिन भी मेरी ननद , गुड्डी रानी को लाने आये थे , ... "
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया , अपने माल को ,...
माल तो है ही वो , और जबरदस्त माल है , लेकिन मेरे उनकी ,...
और आज तो सास जी ने भी मोहर लगा दी
" बस भाभी अभी पहुंचता हूँ , ... "
बेचारे से कोई बहाना नहीं बनाया गया। बात तो ठीक ही थी , जब तक गुड्डो थी , रोज बिना नागा चक्कर लगता था।
" जल्दी आओ , पहले तो तेरे कान का पान बनाउंगी , नाक रगड़वाउंगी , तब पकौड़ी मिलेगी। "
लगता था बाहर ही खड़ा था , पांच को कौन कहे दो मिनट में पहुँच गया।
" बस भाभी अभी पहुंचता हूँ , ... " बेचारे से कोई बहाना नहीं बनाया गया। बात तो ठीक ही थी , जब तक गुड्डो थी , रोज बिना नागा चक्कर लगता था।
" जल्दी आओ , पहले तो तेरे कान का पान बनाउंगी , नाक रगड़वाउंगी , तब पकौड़ी मिलेगी। "
लगता था बाहर ही खड़ा था , पांच को कौन कहे दो मिनट में पहुँच गया।
दो दो भौजाइयों के बीच में एक देवर , जम के रगड़ाई की मैंने और जेठानी जी ने ,
गरम गरम पकौड़ियों के साथ गरम गरम बातें , ...
और आधे घंटे बाद जब वो लौटा तो मैं दरवाजे तक छोड़ने गयी ,
पर वो चिपकू , दरवाजे पर खड़े खड़े आधे घंटे मुझसे बातें की , ...
किचेन में खाना बनाने में भी जेठानी जी का मैंने साथ दिया , आज जेठानी जी को जल्दी थी , जेठ जी आने वाले थे। वो थे सेल्स में इसलिए पन्दरह बीस दिन बाहर ही रहते थे , ... पर आज आ रहे थे और मैं जेठानी जी को खूब छेड़ रही थी।
पर आज , पता नहीं क्यों ,.... जब वो इस कमरे में रहते थे , तो मैं दौड़ती हुयी सीढियाँ चढ़ती थी , ...
एक एक बार में दो दो सीढ़ी , आलमोस्ट छलांगे लगाते ,...
बाद में तो मुझे इस बात की भी परवाह भी नहीं रहती थी कि सासू जी और जेठानी इस तरह मुझे सीढिया लांघते चढ़ते देख रही हैं , ...
जहाँ दो तीन मिनट लगते थे , ... आज पूरे दस मिनट लगे मुझे कमरे में पहुँचने में,
... और कमरे में पहुंचकर तो मेरा माथा घूम गया , वो रहते थे तो ,
बस मैं झट से घूम के दरवाजे में सिटकनी अच्छी तरह लगा देती थी , और फिर घूम कर , ...
वहीँ दरवाजे पर खड़ी ,खड़ी उन्हें ललचाते, दिखाते , उकसाते ,
अपनी साड़ी दरवाजे के पास ही खड़ी खड़ी उतार कर उनकी ओर फेंक देती ,
वो नदीदा , बेसबरा , लालची , ...
जैसे बच्चे दुकान के बाहर से खड़े होकर शीशे की बॉटल में रखे कैंडी देखते हैं ,
ललचाते , लार टपकाते , बस उसी तरह ,
और मैं कभी झुक कर , कभी उचका कर , कभी और उभार कर , अपने जुबना का जादू , उस जादूगर पर चलाती थी ,
कभी मुझे इतना टाइम मिल जाता था की बाथरूम में जा के नाइटी चेंज कर लूँ ,
लेकिन कभी वहीँ ,
सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट में वो मुझे गपुच लेता था , और वो कपड़ों का दुश्मन ,
पल भर में हम दोनों रजाई में होते , ... और कपडे फर्श पर।
सच में हम दोनों के बीच किसी और का क्या काम , चाहे वो कपडे ही क्यों न हो ,
पर आज , ...
किसे चिढाऊँ , छेड़ूँ , ...
सामने सूनी सेज पड़ी थी , ...
न मैंने सिटकनी बंद की , न साड़ी बदली , बस धम्म से पलंग पर जा गिरी।
वही पलंग जिस पर पहुँचने के लिए मैं दिन भर सपनों के ताने बाने बुनती रहती थी , मन करता था की कितनी जल्दी पहुंची , शुरू में कुछ दिन तो जेठानी ने दिन में भी हाँक कर मुझे ऊपर इनके पास भेज दिया, पर जब मेहमान चले गए , तो न इन्हे बहाने की जरूरत थी न मुझे ,
बस पहला मौका पाते ही सीधे इसी पलंग पर ,
पर आज , ये पलंग काटे खा रही थी , ... बस एक आशा थी , पलंग पर पड़ा फोन , वो आई फोन , जो ये लाये थे , ...
पर ,.... मैं सूनी आँखों से फोन को देख रही थी , ...
पहले लगता था जाड़े की रात इतनी छोटी क्यों होती है ,
और अब लग रहा था रात इतनी लम्बी क्यों होती है ,
उनके रहने पर रोज मैं नौ बजते बजते कमरे में पहुँच जाती थी ,
और अगले दिन आठ नौ बजे के पहले नहीं निकलती थी , दिन में भी दो चार घंटे तो मौका निकाल कर एक दो बार ,...
आज भी मैं नौ बजे आ गयी , ... आज जेठानी जी को जल्दी थी , ... जेठ जी हफ्ते भर बाद आये थे , अपने दौरे से ,...
पर अब करूँ क्या ,...
फोन हाथ में लेकर उसे देखती रही , ...साढ़े नौ बज गए थे। उन्हें फोन लगाना शुरू किया पर पांच नंबर डायल करते करते रुक गयी ,
उन्होंने बोला था न साढ़े आठ बजे से प्रेजेंटेशन शुरू होगा , और उनका नंबर थोड़ा बाद में आएगा , और वहां फोन बंद होगा ,
साइलेंट मोड में भी नहीं , एकदम बंद , ...
मैंने सोचा एक वायस मेसेज ही भेज दूँ , बेस्ट विशेज वाला ,... रिकार्ड भी करना शुरू किया पर रुक गयी , ....
उस हाल में उन्हें मिलेगा कैसे , फिर कहीं उस लालची ने मेरे फोन की लालच में फोन बंद न किया हो तो ,
भूल भी सकते हैं , भुलक्कड़ तो नंबरी , ... सिवाय एक चीज़ के , ... और हाल में अगर गलती से भी फ़ोन बज गया तो सब लोगों की निगाहें उनकी ओर ,
ये मैं नहीं चाहती थी।
मैंने फोन वापस रख दिया , ...
और निहारती रही , फोन के ऊपर , वाल पेपर या क्या कहते हैं उसे , ...
उनकी फोटो , कुछ नहीं हो सका तो बस उसी को उठा के चूम लिया धमकाया ,
" अच्छे से प्रजेंटेशन करना , बाबू। अगर अच्छी पोजीशन आयी न तो तुझे तेरी एलवल वाली गौरेया दिलवाऊंगी। एकदम पक्का। "
पास के बैंक में कोई चौकीदार घंटा बजाता था , रात में एकदम साफ सुनाई देता था।
ग्यारह का घंटा बजा , ... अभी तक मैं करवट बदल रही थी , लेकिन घंटे की आवाज सुन कर मैं मुस्करायी।
जब वो रहते थे तो अब तक उन का राउंड पूरा हो चूका होता था ,
टाइम एकदम तय था उस दुष्ट का
९. ०० बजे मैं आती थी ,
९. १० तक मैं बिस्तर पर , कपडे जमींन पर , और वो चालू ,
९. ४५ तक वो मेरे अंदर , ...
फिर तो वो मुझे कुचल डालता था , एकदम रगड़ रगड़ के , ...
और मैं भी जैसे कोई धीमी होती आग में घी डाल दे, मैं उस एलवल वाली का नाम लेकर छेड़ देती थी ,
फिर तो मेरी मुसीबत , ... नान स्टॉप ,... कभी भी ४० -४५ मिनट से कम नहीं रगड़ाई होती थी मेरी ,
१०-३० -१०-४० वो ,... खूब देर तक ,.... मैं उसे अपने अंदर बूँद बूँद महसूस करती रहती , रोपती रहती ,...
लेकिन उसके बाद भी हम दोनों एक दूसरे को भींचे ,
इसीलिए उस ग्यारह के घंटे की मुझे ख़ास याद थी , ... ये नहीं की हम लोग सिर्फ लव मेकिंग ही करते रहते थे ,
बोलते बतियाते भी थे , बहुत
लेकिन अक्सर बिना बोले ,
सिर्फ हमारी अंगुलियां , होंठ , देह एक दूसरे से बात करती रहती थीं ,
एक बात उसे बहुत अच्छी लगती थी , मेरे ऊपर लेट कर सीधे मेरी आँखों में झांकना , ...
बिना बोले ,...
मैं लजा कर आँख कभी बंद कर लेती तो वो चिकोटी काट कर , गुदगुदी लगा कर , अपनी कसम धराकर आँख खुलवा ही लेता ,
यही सब सोचते सोचते आँख लग गयी पता ही नहीं चला ,
आज वो सपने में भी नहीं आया ,... और थोड़ी देर बाद जब आँख खुली तो मुझे लगा बहुत देर तक सो चुकी हूँ
जब अपनी कलाई घडी पर निगाह डाली , ...साढ़े ग्यारह बज गए थे ,... आधे घंटे , ...
एक बार फिर सोचा फोन करूं , पर ,... पता नहीं वो प्रजेंटेशन में होंगे ये सोच कर ,...
बड़ी मुश्किल से आँख लगी ,... पूरी रात सात आठ बार इसी तरह सोते जागते , एक बार तो दो बजे के करीब मुझसे नहीं रहा गया , मैंने फोन कर ही दिया , लेकिन घंटी बजते ही काट दिया और और अपने को खूब गाली दी , ... दिन भर क्लास में रहा होगा वो , फिर पता नहीं कब प्रेजेंटेशन से आया होगा , सुबह उठाना पड़ता है साढ़े छह बजे , आठ बजे से क्लास , ... थोड़ी देर तो सो लेने दो ,... मैं भी न सिर्फ अपना सोचती हूँ , ...
चार बजे , पौने पांच बजे , साढ़े पांच ,.... मैं उठती थी , देर तक फोन लिए रहती थी , और रख देती थी . साढ़े पांच बजे जाकर थोड़ी नींद लगी और
साढ़े छह बजे फोन घनघनाया , ... इन्ही का फोन था , मुझे बस रुलाई आ गयी।
घंटी घनघनाती रही , मैं फोन देखती रही , फिर मैं हड़बड़ाकर , ... कैसी पागल हूँ मैं , रात भर ,... इसी फोन के लिए
और उनकी आवाज , बस मैं सुनती रही , सुनती रही , ... बड़ी मुश्किल से आवाज मेरी निकली ,
" प्रेजेंटेशन कैसा हुआ , ... "
" बहुत अच्छा , खूब ताली बजी , पैनल ने भी खूब अप्रीशिएट किया , मेरा नंबर साढ़े ग्यारह बजे के करीब आया , ऑलमोस्ट एन्ड में , एक सवा एक बजे मैं कमरे में लौटा , ... "
" और ,... " मैं समझ नहीं पा रही थी क्या बोलूं।
" सोचा तुम्हे फोन करूँ , ... पर लगा तुम सो रही होगी , बहुत मन कर रहा था तुझे बताने को , ... एक बार दो बजे भी ,.... लेकिन बस मैं सोच रहा था सो लेने दो बेचारी को , ... रोज तो तुमसे बात होती है , ... आज नहीं हुयी तो नींद भी नहीं आयी रात भर , ... "
वो बोल रहे थे।
मेरी आँख डबडबा रही थी , मैं उन्हें रोक कर बोली ,
"एक बात कहनी थी , ... "
" बोल न ,... "
कहना तो बहुत कुछ था , पर मन से जबान की यात्रा कई बार बहुत लम्बी हो जाती है। बस मुँह से यही निकला ,
" अपना ख्याल रखना , ... "'
लेकिन तब तक शायद इनका रूम पार्टनर जग गया था , बाहर से भी किसी के नॉक करने की आवाज आ रही थी ,
" हे उठ , योगा के लिए देर हो जाएगी , ... "
और फोन कट गया।
लेकिन मैं भी न , चुपचाप फोन देखती रही , मुस्कराती रही , सोचती रही ,
ये भी न एकदम बेवकूफ , असली वाले , सिर्फ पढ़ने लिखने टॉप करने से थोड़े ही बुद्धि आ जाती है , ... सच्च में ऐसा बेवकूफ लड़का , ...
तभी तो इनसे आज तक एक लड़की नहीं पटी , मैंने ही आकर नथ उतारी ,...
बुद्धू , एकदम असली वाला , रात भर जागते रहे और एक फोन नहीं हुआ , ...
सिर्फ मेरा ख्याल कर के ,...
बेवक़ूफ़ , पक्का , पैदायशी , ...
मैं फोन में उनकी फोटो देख कर मुस्कराती रही , फिर झुक कर चूम लिया और उठ कर बाथरूम की ओर चल दी , फ्रेश होने।
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