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Erotica मोहे रंग दे

komaalrani

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पैकिंग


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और मुझे दूसरा काम याद आ गया,



पैकिंग , वो मैंने बीते हुए कल के लिए छोड़ी थी पर कल का दिन तो मेरी ननदिया ने,... और अब कल सुबह ही तो निकलना था , मुश्किल से १६ -१७ घंटे बचे थे और पैकिंग मैं उनके सामने करती नहीं थी, कितना टोकते थे, काम एक नहीं करते थे बढ़ाते अलग से थे,...



सास और जेठानी अभी भी सो रही थीं ,



थोड़ी देर में मैं और कम्मो , हम दोनों अपने ऊपर वाले कमरे में , कम्मो भौजी मेरी पैकिंग में हेल्प करा रहीं थीं।



पैकिंग में बहुत सी मुसीबतें थीं ,

एक तो मैं रोज कल के लिए टालती जाती थी,

कमरे में जब इनकी कांफ्रेंस चलती रहती थी तो कोई खटर पटर नहीं हो सकती थी, और जब ये काम से फ्री हों और मैं कमरे में पहुँच के पैकिंग की कोशिश भी करूँ, तो दूसरा ' काम' शुरू हो जाता था, सटासट, गपागप वाला,

तो मैं समझ गयी थी की पैकिंग तभी हो पाएगी जब ये कमरे में न हों, कल ये दोपहर तक नहीं थे , पर मेरी ननद रानी आ गयी थीं और उनके साथ क्या क्या हुआ, ये तो बता ही चुकी हूँ।



हाँ पैकिंग के बारे में कुछ नीतिगत निर्णय मैं पहले ही ले चुकी थी, और इसमें इनसे पूछने की कोई जरूरत नहीं थी. पहला फैसला ये था की जो इनकी पोस्टिंग पर जाने वाला सामान था, मेरे इनके कपड़ें और बाकी सब घर के काम वाले, वो सब अलग से पैक होंगे और इनकी ससुराल में नहीं खुलेंगे। उसके लिए दो बड़े सूटकेस और एक बैग मैंने पहले से नामित कर के रखा था. इनका लैपटॉप, गेमिंग वाली और बाकी सब अल्लमगल्लम एक सेफ बॉक्स में, और वो भी मेरे मायके में नहीं खुलना था, मेरा बस चलता तो इनका मोबाइल भी उसी में डाल देती लेकिन वो ऐसे ही इनके ससुराल पहुँचते ही इनकी साली सलहज जब्त करने वाली थी.



और अब बचा मामला, कुछ सामान था जो ये अपनी सास, सलहज , सालियों के लिए ले जा रहे थे और जिसमें आज की शॉपिंग लिस्ट का भी सामान जुटना था , उसके लिए एक अटैची मैंने सोचा था अलग से , पहुँचते ही ये उसे खोल देंगे,... और दस दिन होली में, रंग पंचमी और उस के बाद इनकी ससुराल में पहनने के लिए वो सब कहाँ पैक करें, क्या पैक करें,



कम्मो बिन बोले बात समझने में एक्सपर्ट थी, उसने पूछा मैंने बता दिया , मायके में इस्तेमाल वाले कपड़ें कौन कौन ले जाएँ , किसमें पैक करें, ...



कम्मो बड़ी जोर से मुस्करायी और हँसते हुए उसने कोने में पड़ी एक बहुत छोटी अटैची की ओर इशारा किया।

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मैं भी खिलखिलाने लगी और उस के हाथ पर हाथ मार् के बोली, चल यार मान लिया मैं तो अपने शादी के पहले के कपडे पहन लुंगी, कुछ शलवार सूट होंगे , एकाध कुर्ती लेगिंग , जो मंझली के हड़पने से बचा होगा,

नहीं तो होली में हर साल मैं स्कूल का यूनिफार्म पहन लेती थी.


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मेरी ट्रिक थी वो, वरना अगले साल भी स्कूल में यूनिफार्म तो बदलती नहीं थी, घर वाले वही परमानेंट रिमार्क, ' अरे ठीक तो है, अभी चलाओ बाद में देखेंगे।"

मार्च में होली पड़ती थी और अप्रेल में नया सेशन शुरू होता था, बस मैं जान बूझ के स्कूल यूनिफार्म , और बहाना बना देती, अरे मैं तो बदलने ही वाली की भाभी ने रंग डाल दिया, और गाँव की होली ,..


ननद भाभी की होली, सिर्फ होली के दिन थोड़े होती थी , बस फागुन लगने के बाद जब मौक़ा मिल जाए भौजी को,... फिर सिर्फ रंग थोड़ी, कपडा फाड़ , कीचड़ में घिसटने से लेकर,... कुछ भी बचता नहीं था , जब मैं नहीं बचती थी तो यूनिफार्म कैसे बचती ,

और फिर वो यूनिफार्म स्कूल जाने लायक थोड़ी बचती , तो अप्रेल में नयी यूनिफार्म, व्हाइट टॉप, नेवी ब्ल्यू स्कर्ट।
 

komaalrani

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होली- रीतू भाभी

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लेकिन जिस साल रीतू भाभी शादी के बाद उतरीं , उस साल वाली होली, मैं भूल नहीं सकती थी, उस के पहले भी होली में भाभियाँ मुझे पकड़तीं, दो चार मिल के , लेकिन मैं स्कूल की कब्बडी टीम की कैप्टेन थी, चार पांच लड़कियां मुझसे उम्र में बड़ी तगड़ी पकड़ लेती तो भी मैं फिसल के बच निकल लेती, ....

और जब भाभियाँ किसी तरह पटक भी देतीं होली में, तो मैं अपनी टाँगे ऐसी कस के एक दूसरी टांग पर चढाती, पेट के बल लेट जाती और बोलती, भाभी कपडे मत फाड़िये ,... प्रेजिडेंट गाइड थी , नॉट बांधने में एक्सपर्ट, ...

तो एक तो पेट के बल, फिर डबल ट्रिपल गांठे ,बड़ी मुश्किल से कोई भाभी हाथ 'अंदर तक' घुसा पातीं,



लेकिन जिस साल रीतू भाभी आयीं मुझसे बड़ी उम्र वाली कई लड़कियों ने , औरतों ने पहले ही आगाह कर दिया था और होली में उस बार मैंने पहली बार शलवार पहनी, कस के वही डबल ट्रिपल नॉट और उस के अंदर गाँव में जैसे चड्ढी पहनी जाती है नाड़े वाली , वो भी कस के गाँठ बांध के,...



और होली में गाँव की बड़ी औरतें बजाय हम लोगों का साथ देने के नयी आयी बहुओं का साथ देती थीं और उनमे मेरी मंम्मी सबसे आगे थीं,



और उस बार भी सब से पहले उन्होंने ललकारा, नयी बहू को , रीतू भाभी को,


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आज पहली होली में देखाय दो ननदों को अपनी ताकत, जब तक ननद निसूती न कर दो तब तक क्या भौजाई की होली,



बाकी लड़कियां पहले दबोच ली गयीं लेकिन मैं किसी तरह बची रही, कन्नी काट के, फिसल के पर रीतू भाभी भी सब को छोड़ के मेरे ही पीछे पड़ी थीं.

और जब हम दोनों आमने सामने हुए तो जो बात होली में मैं बोलती थी, वो उन्होंने खुद बोली,
" घबड़ा मत कपडे नहीं फाड़ूंगी, और फाड़ना भी होगा तो तेरी शलवार के अंदर वाला, वो मैं नहीं फाड़ूंगी अपने देवरों से फड़वाउंगी, आज तो तेरी चुनमुनिया को होली में हवा खिलाऊंगी। "

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मैं भी श्योर थी, अपनी कब्बडी की चालों से, मैंने भी हंस के उनका चैलेन्ज कबूल कर लिया


पर मुझे पहली बार पता चला रीतू भाभी, रीतू भाभी थीं. वो मुझे बातों में उलझाए रहीं और पीछे से दो भाभियों ने,


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और वो दोनों भाभियाँ भी पक्की उस्ताद थीं, चार चार बच्चो की माँ, ननदें भी उनसे पनाह मांगती थीं. रीतू भाभी ने जासूसी पक्की कर ली थीं, मुझे जबरदस्त गुदगुदी लगती है , और किस जगह छूने पर ही मैं बेकाबू हो जाती हूँ. बस दोनों भाभियों ने, जब तक रीतू भाभी ने मुझे बातों में उलझा रखा था, दोनों ने एक साथ मेरी कांख में गुदगुदी लगाई , मैं बेहाल और दोनों ने न सिर्फ मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए बल्कि पीछे कर के मेरी दोनों कलाइयों को क्रास कर के दोनों ने मिल के इतनी कस के जकड़ लिया की मैं हिल भी नहीं सकती थी.



उधर रीतू भाभी मेरे दोनों पैरों के पास बैठ के. अपनी उँगलियों से शलवार के ऊपर से मेरी जाँघों को हलके हलके सहला रही थीं, और जब तक मैं उनकी चाल समझूं, अपने दोनों घुटने मेरी टांगों के बीच में फंसा लिया, और मेरी सारी भौजाइयों को, मम्मी और गाँव की अपनी सब सासो को दिखाते मुझसे बोलीं,



" ननद रानी कउनो ख़ास चीज छुपा के रखले हउ का, इतना कस के बाँध के "



और उनका हाथ मेरे नाड़े पर, इत्ती मुश्किल से डबल ट्रिब्ल गाँठ पलक झपकते ही उन्होंने खोल दी,



" कहौ ननदो, तू सोचत हो, नाड़ा खोलने में खाली तेरे भैया उस्ताद हैं, "


भौजी ने मुझे कस के चिढ़ाया, और न सिर्फ नाड़ा खोला बल्कि शलवार से नाड़ा निकाल के एक सेकेण्ड में बाहर कर दिया। और वो नाड़ा पीछे खड़ी मेरी दोनों भौजाइयों के हाथ में, और उन दोनों भौजाइयों ने उस नाड़े से मेरी कलाई कस के बाँध दी, अब उन दोनों के हाथ भी खाली, और आगे रीतू भौजी, अब खड़ी मेरी शलवार पकडे, सब को दिखाते,


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komaalrani

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शलवार-नाड़ा



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" कहौ ननदो, तू सोचत हो, नाड़ा खोलने में खाली तेरे भैया उस्ताद हैं, " भौजी ने मुझे कस के चिढ़ाया, और न सिर्फ नाड़ा खोला बल्कि शलवार से नाड़ा निकाल के एक सेकेण्ड में बाहर कर दिया। और वो नाड़ा पीछे खड़ी मेरी दोनों भौजाइयों के हाथ में, और उन दोनों भौजाइयों ने उस नाड़े से मेरी कलाई कस के बाँध दी, अब उन दोनों के हाथ भी खाली, और आगे रीतू भौजी, अब खड़ी मेरी शलवार पकडे, सब को दिखाते,



" देखिये शलवार न मैंने फाड़ी न मैं उतारूंगी। मेरी ये ननद इत्ती अच्छी हैं खुद ही अपनी भौजाइयों के सामने, भौजाइयों के देवरों के सामने के शलवार उतारने के लिए तैयार हैं, ननद रानी खोलोगी न शलवार मेरे सब देवरों के सामने,... "



नाड़ा न सिर्फ खुल गया था बल्कि शलवार से निकल के मेरी कलाइयों में कस के बंधा था, शलवार टिकता कैसे, जैसे ही भौजी ने छोड़ा सरसर करते मेरे पैरों में





भौजाइयों ने खूब जोर जोर से हो हो किया,



पर अभी भी, मेरी दोनों जाँघों के बीच अभी भी, एक जांघिये नुमा चड्ढी एलास्टिक वाली नहीं नाड़े वाली, जिसके नाड़े को भी मैंने कस कस के बांधा था, ...



मुझे लग रहा था रीतू भाभी अब इस पर नंबर लगाएंगी, लेकिन वो मेरे पीछे और मैं उसी तरह सिर्फ चड्ढी में खड़ी,

और जैसे इशारा पा कर के दोनों भौजाइयों ने एक साथ ही मेरी कुर्ती खींची , पर वो मेरे बंधे हाथों में अटक गयी.


रीतू भाभी इसीलिए थीं न उन्होंने नाड़े से बंधी कलाई खोली , कुर्ती बाहर निकाली और एक बार फिर कलाई मेरी ही शलवार के नाड़े में बंधी।

मैं लाख मचल रही थी पर दोनों भौजाइयों ने कस के कमर से पकड़ रखा और रीतू भाभी ने इतनी झटपट मेरी कलाई बाँधी , जो दर्जन भर गांठे मुझे आती थीं वो सब , और आधी दर्जन जो मुझे नहीं आती थीं , वो भी।


मान गयी मैं भी आज आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे, मैं सिर्फ ब्रा और जांघिया नुमा नाड़े में,




मेरी दोनों कलाइयां मेरी ही शलवार के नाड़े से बंधी, लेकिन रीतू भाभी की हालत भी कुछ अच्छी नहीं थीं, मेरे घर में घुसते ही सब ननदों ने मिल के नयकी भौजी का चीर हरण कर लिया था, ब्लाउज पेटीकोट दोनों रंग से सराबोर देह से चिपका, ब्लाउज के भी ऊपर की दो तीन बटने टूटीं, सिर्फ एक बटन के सहारे दोनों भारी भारी उरोज किसी तरह टिके, ब्लाउज, ब्रा में बस फंसे,...



मैंने एक बार फिर से वही शरारत करने की कोशिश की, दोनों टांगों को कस के भींचने की, चिपकाने की, पर अबकी मेरे पीछे मेरी नयकी भौजी थीं और उन्हें उनकी सारी जेठानियों ने मेरी ( और बाकी ननदों की भी ) सब चालों से बता समझा दिया था,



एक जोर का चांटा मेरी चड्ढी में छिपे चूतड़ के ऊपर पड़ा और एक कस के चिकोटी भी, जब तक मैं सम्ह्लू, पीछे मुझसे चिपकी खड़ी, मेरी रीतू भाभी ने अपनी तगड़ी लम्बी टाँगे मेरी दोनों टांगों के बीच में डाल कर फैला दी, ... इत्ती ताकत थी उनके अंदर, बाकी भौजाइयों तो दो चार इंच भी नहीं खोल पाती थीं पर उन्होंने ऐसे जोर लगाया, जैसे कोई पंजा लड़ा रहा हो , मेरी दोनों टांगों के बीच डेढ़ दो फीट का फासला हो गया था और मैं चाह कर भी पैर जरा भी सिकोड़ नहीं सकती थी।



अब उनकी बदमाशियां शुरू हुयी, मेरी चड्ढी के ऊपर हाथ से सहलाते हुए उन्होंने सारी भौजाइयों से पूछा,



" खोल दूँ खजाना, दिखा दूँ प्यार की गली ,... "

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एकदम, सब उनकी जेठानियाँ चिल्लाईं।



फिर उन्होंने जैसे मेरे कान में कुछ कहा , फिर अपना कान मेरे मुंह के और सबके सामने अनाउंस कर दिया,

" मेरी ननद नहीं खोलेगी , उसकी एक शर्त है , पहले सब लोग हाँ बोलो। "

" हाँ हाँ मंजूर, " चारों और से आवाज आयी.


और एक झटके में चड्ढी का नाड़ा खुल गया चड्ढी सरक के शलवार के ऊपर मेरे पैरों पर, सर सर,...
लेकिन चुनमुनिया नहीं दिखी , भौजी ने अपनी हथेली से ढँक लिया , एकदम अच्छी तरह से और सबसे बोली,
मेरी प्यारी ननद बहुत नाराज है, और मैं भी उसकी बात में हामी भरती हूँ , आप सब लोग उस की बात मानो तो झलक दिखलायेगी वो. "

" बोल दिया न मंजूर है अब बोलो भी , कई भाभियाँ चिल्लाई " लेकिन रीतू भौजी ने सबसे हामी भरवाई और तब बोलीं,


" मेरी ननद कह रही है मेरी भौजाई लोग अपने मरद के साथ , देवर के साथ मजा लेती हैं और ये बेचारी कोरी पड़ी है, तो अगली होली तक जितने मरद हैं, देवर हैं , भौजाइयों के भाई हैं सब मेरी इस ननद पर चढ़ जाने चाहिए, इस भूखी बुलबुल को चारा चाहिए, "



" अरे इत्ती सी बात , अभी आज ही अपने देवरों को चढाती हूँ इसके ऊपर, नाउन की बड़की बहू बोलीं,... और भौजी ने हथेली हटा दी , फिर तो बीसो बाल्टी रंग सीधे मेरी चूत पे , सब भाभियों ने ऊँगली भी की , अगवाड़े भी पिछवाड़े , और ब्रा दो भाभियों ने मिल के उतारा नहीं फाड़ दिया,



और उस होली के बाद से मेरी और रीतू भाभी की पक्की दोस्ती, पक्की जोड़ी हो गयी,

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komaalrani

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छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग




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मुझे चुप देख के कम्मो ने टोंका, क्या सोच रही हो मेरे देवर के कपड़ों के बारे में , अरे दो चार बनियान नेकर ( टी शर्ट को वो बनयान और लोवर को नेकर कहती थी ) दो तीन पुराने सफ़ेद कुर्ते पाजामे रख दो,... आखिर होली में तो कपडे फटेंगे, ससुराल की होली है।



मैंने हामी भरी और कम्मो से वो छोटा सुटकेस उठाने को बोली , लेकिन तब तक कम्मो हंसते बोली ,



" अरे बनारस की वो भी गाँव की होली हैं, क्या पता , सलहज सब साडी पेटीकोट, उनकी सास सलहज की साडी पेटीकोट, ब्लाउज , ब्लाउज तुम्हारा तो होगा नहीं हाँ क्या पता उनकी सास का हो जाए, होली में तो ये सब न हो तो , गाँव की होली का,... "



और तब तक मेरी चमकी, रीतू भाभी ने लेडीज टेलर से जो बात की थी, और उस लेडीज टेलर ने जो इनकी जबरदस्त नाप जोख की थी, और रीतू भाभी ने दिलाया था , उस टेलर के यहाँ से सारे कपडे लाने के लिए,... मैं बड़ी जोर मुस्करायी ,



छोटी अटैची में ही हम दोनों के कपडे आ गए, और बल्कि जो लेडीज टेलर के यहाँ से लाने वाले थे उसके लिए भी जगह बच गयी।



और अब बाकी की पैकिंग शुरू हुयी , कम्मो के साथ काम जल्दी हो रहा था।



लेकिन मैं हूँ , कम्मो हो और अच्छी वाली बातें न हों और किसके बारे में , एक ही तो थी हम दोनों की प्यारी दुलारी ननदिया जो होली की शाम से इसी कमरे में अड्डा ज़माने वाली थी।





मुझे कुछ याद आया और मैं हलके हलके मुस्कराने लगी, और कम्मो भौजी पूछ बैठीं,



" अरे कौन उनका माल, और हम दोनों की ननदिया, जिस दिन मैं आयी थी उसके दो तीन बाद, अरे जिस रात यहीं छत पे जम के मैंने सब नंदों को गारी गायी थी, तौर से उस मस्त माल को, उसी रात, " मैंने कम्मो को बताया और जोड़ा, " बस उसी रात, तोहरे देवर को भी कविता का बहुत शौक है तो बस मैंने एक दोहा सुनाया,



छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग।

दीपति देह दुहूनु मिलि दिपति ताफता रंग.





( अभी बचपन की झलक छूटी ही नहीं, और शरीर में जवानी झलकने लगी। यों दोनों (अवस्थाओं) के मिलने से (नायिका के) अंगों की छटा धूपछाँह के समान (दुरंगी) चमकती है),



लेकिन भौजी तोहरे देवर भी कम उस्ताद नहीं है, मुस्कराते हुए उन्होंने अगला दोहा सुना दिया, ....



लाल अलौकिक लरिकई लखि लखि सखी सिहाति।

आज कान्हि मैं देखियत उर उकसौंहीं भाँति



( ऐ लाल! इसका विचित्र लड़कपन देख-देखकर सखियाँ ललचती हैं। आज-कल में ही (इसकी) छाती (कुछ) उभरी-सी दीख पड़ने लगी है।)



बस मुझे चिढ़ाने का मौका मिल गया, हँसते हुए मैं बोली, इसका मतलब तुम भी उसकी उभरती हुयी छातियां निहारते हो, हैं न साली मस्त माल, अरे बारात में गयी तो तेरे सारे सालों का मन ललचा रहा था, कबड्डी खेलने का।



बुरा नहीं माना उन्होंने पर मुस्करा के बोले ,जैसे मुझसे पुष्टि कर रहा हों,



" अभी छोटी नहीं है ? "



मुंह चढ़ा के मैं बोली, ... " अरे पूरे पौने पांच साल से नीचे से खून उगल रही है, हर महीने, बिना किसी महीने नागा किये। " फिर खिलखिला के मैंने जोड़ा,



" हाँ छोटी तो नहीं है, पर छोटा है, लेकिन एक बार गोदी में बैठा के थोड़ा तू मीजना मसलना रगड़ना उसका शुरू कर दोगे तो वो भी दोनों बढ़ जाएंगे। " लेकिन ननद तो थी नहीं तो उन्होंने उसकी भाभी का ही दबाना मसलना शुरू कर दिया,



मैं और कम्मो दोनों खिलखिलाते रहे और मेरे मन में अपनी उस प्यारी दुलारी ननद की सुरतिया घूमती रही, एकदम वय संधि पर खड़ी,



गुलाबी चम्पई चेहरा देखो तो लगता है जैसे अभी दूध के दांत नहीं टूटे हों, खिलखिलाती है तो लगता है खील फूट रही है, पर नज़र थोड़ी जैसे नीचे आती है उभरते उभारों पर ( अपनी क्लास वालियों से २१ ही थे ) तो बस लगता है एकदम लेने लायक हो गयी है.



कम्मो तो आँखों में झलकती छलकती मन की भाषा पढ़ लेती थी, बोली,... " अरे ऐसी उमर में ही तो लौंडे ललचाना शुरू कर देते हैं, भौंरों की भीड़ लगने लगती है. "



बात कम्मो की एकदम सही थी, और कम्मो फिर अपने रंग में आ गयी, ...



" और जानत हो, एहि चूँचिया उठान वाली जउन उमरिया हो, ओहि में कउनो लौंडिया क जबरदस्त चुदाई होय जाए न , थोड़ा जबरदस्ती, थोड़ा मनाय पटाय के , बस देखा कुछै दिन में खुदे लौंड़ा खोजे लागी। जउने दिन लंड न खायी, नींद न आयी,...छिनार तो छोड़ा रण्डियन क कान कटाय देई , और चूँची तो हमरे तोहरे ई ननदिया क देखा कुछै दिन में ३० बी से ३२ सी हो जायेगी। "
 

NEHAVERMA

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छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग




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मुझे चुप देख के कम्मो ने टोंका, क्या सोच रही हो मेरे देवर के कपड़ों के बारे में , अरे दो चार बनियान नेकर ( टी शर्ट को वो बनयान और लोवर को नेकर कहती थी ) दो तीन पुराने सफ़ेद कुर्ते पाजामे रख दो,... आखिर होली में तो कपडे फटेंगे, ससुराल की होली है।



मैंने हामी भरी और कम्मो से वो छोटा सुटकेस उठाने को बोली , लेकिन तब तक कम्मो हंसते बोली ,



" अरे बनारस की वो भी गाँव की होली हैं, क्या पता , सलहज सब साडी पेटीकोट, उनकी सास सलहज की साडी पेटीकोट, ब्लाउज , ब्लाउज तुम्हारा तो होगा नहीं हाँ क्या पता उनकी सास का हो जाए, होली में तो ये सब न हो तो , गाँव की होली का,... "



और तब तक मेरी चमकी, रीतू भाभी ने लेडीज टेलर से जो बात की थी, और उस लेडीज टेलर ने जो इनकी जबरदस्त नाप जोख की थी, और रीतू भाभी ने दिलाया था , उस टेलर के यहाँ से सारे कपडे लाने के लिए,... मैं बड़ी जोर मुस्करायी ,



छोटी अटैची में ही हम दोनों के कपडे आ गए, और बल्कि जो लेडीज टेलर के यहाँ से लाने वाले थे उसके लिए भी जगह बच गयी।



और अब बाकी की पैकिंग शुरू हुयी , कम्मो के साथ काम जल्दी हो रहा था।



लेकिन मैं हूँ , कम्मो हो और अच्छी वाली बातें न हों और किसके बारे में , एक ही तो थी हम दोनों की प्यारी दुलारी ननदिया जो होली की शाम से इसी कमरे में अड्डा ज़माने वाली थी।





मुझे कुछ याद आया और मैं हलके हलके मुस्कराने लगी, और कम्मो भौजी पूछ बैठीं,



" अरे कौन उनका माल, और हम दोनों की ननदिया, जिस दिन मैं आयी थी उसके दो तीन बाद, अरे जिस रात यहीं छत पे जम के मैंने सब नंदों को गारी गायी थी, तौर से उस मस्त माल को, उसी रात, " मैंने कम्मो को बताया और जोड़ा, " बस उसी रात, तोहरे देवर को भी कविता का बहुत शौक है तो बस मैंने एक दोहा सुनाया,



छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग।

दीपति देह दुहूनु मिलि दिपति ताफता रंग.





( अभी बचपन की झलक छूटी ही नहीं, और शरीर में जवानी झलकने लगी। यों दोनों (अवस्थाओं) के मिलने से (नायिका के) अंगों की छटा धूपछाँह के समान (दुरंगी) चमकती है),



लेकिन भौजी तोहरे देवर भी कम उस्ताद नहीं है, मुस्कराते हुए उन्होंने अगला दोहा सुना दिया, ....



लाल अलौकिक लरिकई लखि लखि सखी सिहाति।

आज कान्हि मैं देखियत उर उकसौंहीं भाँति



( ऐ लाल! इसका विचित्र लड़कपन देख-देखकर सखियाँ ललचती हैं। आज-कल में ही (इसकी) छाती (कुछ) उभरी-सी दीख पड़ने लगी है।)



बस मुझे चिढ़ाने का मौका मिल गया, हँसते हुए मैं बोली, इसका मतलब तुम भी उसकी उभरती हुयी छातियां निहारते हो, हैं न साली मस्त माल, अरे बारात में गयी तो तेरे सारे सालों का मन ललचा रहा था, कबड्डी खेलने का।



बुरा नहीं माना उन्होंने पर मुस्करा के बोले ,जैसे मुझसे पुष्टि कर रहा हों,



" अभी छोटी नहीं है ? "



मुंह चढ़ा के मैं बोली, ... " अरे पूरे पौने पांच साल से नीचे से खून उगल रही है, हर महीने, बिना किसी महीने नागा किये। " फिर खिलखिला के मैंने जोड़ा,



" हाँ छोटी तो नहीं है, पर छोटा है, लेकिन एक बार गोदी में बैठा के थोड़ा तू मीजना मसलना रगड़ना उसका शुरू कर दोगे तो वो भी दोनों बढ़ जाएंगे। " लेकिन ननद तो थी नहीं तो उन्होंने उसकी भाभी का ही दबाना मसलना शुरू कर दिया,



मैं और कम्मो दोनों खिलखिलाते रहे और मेरे मन में अपनी उस प्यारी दुलारी ननद की सुरतिया घूमती रही, एकदम वय संधि पर खड़ी,



गुलाबी चम्पई चेहरा देखो तो लगता है जैसे अभी दूध के दांत नहीं टूटे हों, खिलखिलाती है तो लगता है खील फूट रही है, पर नज़र थोड़ी जैसे नीचे आती है उभरते उभारों पर ( अपनी क्लास वालियों से २१ ही थे ) तो बस लगता है एकदम लेने लायक हो गयी है.



कम्मो तो आँखों में झलकती छलकती मन की भाषा पढ़ लेती थी, बोली,... " अरे ऐसी उमर में ही तो लौंडे ललचाना शुरू कर देते हैं, भौंरों की भीड़ लगने लगती है. "



बात कम्मो की एकदम सही थी, और कम्मो फिर अपने रंग में आ गयी, ...



" और जानत हो, एहि चूँचिया उठान वाली जउन उमरिया हो, ओहि में कउनो लौंडिया क जबरदस्त चुदाई होय जाए न , थोड़ा जबरदस्ती, थोड़ा मनाय पटाय के , बस देखा कुछै दिन में खुदे लौंड़ा खोजे लागी। जउने दिन लंड न खायी, नींद न आयी,...छिनार तो छोड़ा रण्डियन क कान कटाय देई , और चूँची तो हमरे तोहरे ई ननदिया क देखा कुछै दिन में ३० बी से ३२ सी हो जायेगी। "
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komaalrani

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क्या स्योर भाभी जी। समझा नहीं मैं। :pepelmao:
वैसे तो भाभी जी रतजगा :injail:तो बहुतो का किया आपने🙃, अब हमारी दीवाली भी जग:attack:जाती तो......:liplock:,
जीवन सफल हो जाता। :drunk:, सुना है दीवाली जग जाए तो पूरा साल अच्छा गुजरता है।:happy:
तब तो पूरा साल जगाते हम, कोई डर नहीं रहता फिर।:dance2::toohappy:
क्या है न , बात तो आपकी एकदम सही है, लेकिन क्या है की वो कहते हैं न सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है , तो बस वही बात कुछ मेरे साथ भी है , लेकिन उससे बड़ी बात ये भी है की मेरे एक वरिष्ठ साथी लेखक हैं , अशोक जी अशोकफन के नाम से लिखते थे, उनकी कुछ कहानियां इस फोरम में भी अति चर्चित हैं, और लिखते भी है जबरदस्त, मैं भी उनकी एक पंखी हूँ ,

तो काम कुछ बांटा हुआ था, अशोक जी हर साल दिवाली पर दिवाली का जुआ नाम से एक कहानी लिखते थे, पांच छह कहानी तो लिखी ही होगी,

और होली, मेरे हिस्से क्योंकि कुछ लोगों पर साल भर फगुनाहट चढ़ी रहती है , मैं उनमे से एक हूँ,

और यहाँ पर होली का बस एक नन्हा सा मुन्ना सा जिक्र यूँ ही. उछलते कूदते फ्लैश बैक में आ गया बात तो हो रही थी , पैकिंग की और कौन सी अटैची गाँव में खुलेगी,

तो दिवाली की अग्रिम शुभकामनाये
 

NEHAVERMA

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क्या है न , बात तो आपकी एकदम सही है, लेकिन क्या है की वो कहते हैं न सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है , तो बस वही बात कुछ मेरे साथ भी है , लेकिन उससे बड़ी बात ये भी है की मेरे एक वरिष्ठ साथी लेखक हैं , अशोक जी अशोकफन के नाम से लिखते थे, उनकी कुछ कहानियां इस फोरम में भी अति चर्चित हैं, और लिखते भी है जबरदस्त, मैं भी उनकी एक पंखी हूँ ,

तो काम कुछ बांटा हुआ था, अशोक जी हर साल दिवाली पर दिवाली का जुआ नाम से एक कहानी लिखते थे, पांच छह कहानी तो लिखी ही होगी,

और होली, मेरे हिस्से क्योंकि कुछ लोगों पर साल भर फगुनाहट चढ़ी रहती है , मैं उनमे से एक हूँ,

और यहाँ पर होली का बस एक नन्हा सा मुन्ना सा जिक्र यूँ ही. उछलते कूदते फ्लैश बैक में आ गया बात तो हो रही थी , पैकिंग की और कौन सी अटैची गाँव में खुलेगी,

तो दिवाली की अग्रिम शुभकामनाये
Yaha holi ka chhota sa chitra h par m aapki holi wali kahaniya padh rahi hu. Waha to unka wo sajiv chitran h ki mujhe aapse hoti khelte hue pratit hota h.
 
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