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पैकिंग
और मुझे दूसरा काम याद आ गया,
पैकिंग , वो मैंने बीते हुए कल के लिए छोड़ी थी पर कल का दिन तो मेरी ननदिया ने,... और अब कल सुबह ही तो निकलना था , मुश्किल से १६ -१७ घंटे बचे थे और पैकिंग मैं उनके सामने करती नहीं थी, कितना टोकते थे, काम एक नहीं करते थे बढ़ाते अलग से थे,...
सास और जेठानी अभी भी सो रही थीं ,
थोड़ी देर में मैं और कम्मो , हम दोनों अपने ऊपर वाले कमरे में , कम्मो भौजी मेरी पैकिंग में हेल्प करा रहीं थीं।
पैकिंग में बहुत सी मुसीबतें थीं ,
एक तो मैं रोज कल के लिए टालती जाती थी,
कमरे में जब इनकी कांफ्रेंस चलती रहती थी तो कोई खटर पटर नहीं हो सकती थी, और जब ये काम से फ्री हों और मैं कमरे में पहुँच के पैकिंग की कोशिश भी करूँ, तो दूसरा ' काम' शुरू हो जाता था, सटासट, गपागप वाला,
तो मैं समझ गयी थी की पैकिंग तभी हो पाएगी जब ये कमरे में न हों, कल ये दोपहर तक नहीं थे , पर मेरी ननद रानी आ गयी थीं और उनके साथ क्या क्या हुआ, ये तो बता ही चुकी हूँ।
हाँ पैकिंग के बारे में कुछ नीतिगत निर्णय मैं पहले ही ले चुकी थी, और इसमें इनसे पूछने की कोई जरूरत नहीं थी. पहला फैसला ये था की जो इनकी पोस्टिंग पर जाने वाला सामान था, मेरे इनके कपड़ें और बाकी सब घर के काम वाले, वो सब अलग से पैक होंगे और इनकी ससुराल में नहीं खुलेंगे। उसके लिए दो बड़े सूटकेस और एक बैग मैंने पहले से नामित कर के रखा था. इनका लैपटॉप, गेमिंग वाली और बाकी सब अल्लमगल्लम एक सेफ बॉक्स में, और वो भी मेरे मायके में नहीं खुलना था, मेरा बस चलता तो इनका मोबाइल भी उसी में डाल देती लेकिन वो ऐसे ही इनके ससुराल पहुँचते ही इनकी साली सलहज जब्त करने वाली थी.
और अब बचा मामला, कुछ सामान था जो ये अपनी सास, सलहज , सालियों के लिए ले जा रहे थे और जिसमें आज की शॉपिंग लिस्ट का भी सामान जुटना था , उसके लिए एक अटैची मैंने सोचा था अलग से , पहुँचते ही ये उसे खोल देंगे,... और दस दिन होली में, रंग पंचमी और उस के बाद इनकी ससुराल में पहनने के लिए वो सब कहाँ पैक करें, क्या पैक करें,
कम्मो बिन बोले बात समझने में एक्सपर्ट थी, उसने पूछा मैंने बता दिया , मायके में इस्तेमाल वाले कपड़ें कौन कौन ले जाएँ , किसमें पैक करें, ...
कम्मो बड़ी जोर से मुस्करायी और हँसते हुए उसने कोने में पड़ी एक बहुत छोटी अटैची की ओर इशारा किया।
मैं भी खिलखिलाने लगी और उस के हाथ पर हाथ मार् के बोली, चल यार मान लिया मैं तो अपने शादी के पहले के कपडे पहन लुंगी, कुछ शलवार सूट होंगे , एकाध कुर्ती लेगिंग , जो मंझली के हड़पने से बचा होगा,
नहीं तो होली में हर साल मैं स्कूल का यूनिफार्म पहन लेती थी.
मेरी ट्रिक थी वो, वरना अगले साल भी स्कूल में यूनिफार्म तो बदलती नहीं थी, घर वाले वही परमानेंट रिमार्क, ' अरे ठीक तो है, अभी चलाओ बाद में देखेंगे।"
मार्च में होली पड़ती थी और अप्रेल में नया सेशन शुरू होता था, बस मैं जान बूझ के स्कूल यूनिफार्म , और बहाना बना देती, अरे मैं तो बदलने ही वाली की भाभी ने रंग डाल दिया, और गाँव की होली ,..
ननद भाभी की होली, सिर्फ होली के दिन थोड़े होती थी , बस फागुन लगने के बाद जब मौक़ा मिल जाए भौजी को,... फिर सिर्फ रंग थोड़ी, कपडा फाड़ , कीचड़ में घिसटने से लेकर,... कुछ भी बचता नहीं था , जब मैं नहीं बचती थी तो यूनिफार्म कैसे बचती ,
और फिर वो यूनिफार्म स्कूल जाने लायक थोड़ी बचती , तो अप्रेल में नयी यूनिफार्म, व्हाइट टॉप, नेवी ब्ल्यू स्कर्ट।
और मुझे दूसरा काम याद आ गया,
पैकिंग , वो मैंने बीते हुए कल के लिए छोड़ी थी पर कल का दिन तो मेरी ननदिया ने,... और अब कल सुबह ही तो निकलना था , मुश्किल से १६ -१७ घंटे बचे थे और पैकिंग मैं उनके सामने करती नहीं थी, कितना टोकते थे, काम एक नहीं करते थे बढ़ाते अलग से थे,...
सास और जेठानी अभी भी सो रही थीं ,
थोड़ी देर में मैं और कम्मो , हम दोनों अपने ऊपर वाले कमरे में , कम्मो भौजी मेरी पैकिंग में हेल्प करा रहीं थीं।
पैकिंग में बहुत सी मुसीबतें थीं ,
एक तो मैं रोज कल के लिए टालती जाती थी,
कमरे में जब इनकी कांफ्रेंस चलती रहती थी तो कोई खटर पटर नहीं हो सकती थी, और जब ये काम से फ्री हों और मैं कमरे में पहुँच के पैकिंग की कोशिश भी करूँ, तो दूसरा ' काम' शुरू हो जाता था, सटासट, गपागप वाला,
तो मैं समझ गयी थी की पैकिंग तभी हो पाएगी जब ये कमरे में न हों, कल ये दोपहर तक नहीं थे , पर मेरी ननद रानी आ गयी थीं और उनके साथ क्या क्या हुआ, ये तो बता ही चुकी हूँ।
हाँ पैकिंग के बारे में कुछ नीतिगत निर्णय मैं पहले ही ले चुकी थी, और इसमें इनसे पूछने की कोई जरूरत नहीं थी. पहला फैसला ये था की जो इनकी पोस्टिंग पर जाने वाला सामान था, मेरे इनके कपड़ें और बाकी सब घर के काम वाले, वो सब अलग से पैक होंगे और इनकी ससुराल में नहीं खुलेंगे। उसके लिए दो बड़े सूटकेस और एक बैग मैंने पहले से नामित कर के रखा था. इनका लैपटॉप, गेमिंग वाली और बाकी सब अल्लमगल्लम एक सेफ बॉक्स में, और वो भी मेरे मायके में नहीं खुलना था, मेरा बस चलता तो इनका मोबाइल भी उसी में डाल देती लेकिन वो ऐसे ही इनके ससुराल पहुँचते ही इनकी साली सलहज जब्त करने वाली थी.
और अब बचा मामला, कुछ सामान था जो ये अपनी सास, सलहज , सालियों के लिए ले जा रहे थे और जिसमें आज की शॉपिंग लिस्ट का भी सामान जुटना था , उसके लिए एक अटैची मैंने सोचा था अलग से , पहुँचते ही ये उसे खोल देंगे,... और दस दिन होली में, रंग पंचमी और उस के बाद इनकी ससुराल में पहनने के लिए वो सब कहाँ पैक करें, क्या पैक करें,
कम्मो बिन बोले बात समझने में एक्सपर्ट थी, उसने पूछा मैंने बता दिया , मायके में इस्तेमाल वाले कपड़ें कौन कौन ले जाएँ , किसमें पैक करें, ...
कम्मो बड़ी जोर से मुस्करायी और हँसते हुए उसने कोने में पड़ी एक बहुत छोटी अटैची की ओर इशारा किया।
मैं भी खिलखिलाने लगी और उस के हाथ पर हाथ मार् के बोली, चल यार मान लिया मैं तो अपने शादी के पहले के कपडे पहन लुंगी, कुछ शलवार सूट होंगे , एकाध कुर्ती लेगिंग , जो मंझली के हड़पने से बचा होगा,
नहीं तो होली में हर साल मैं स्कूल का यूनिफार्म पहन लेती थी.
मेरी ट्रिक थी वो, वरना अगले साल भी स्कूल में यूनिफार्म तो बदलती नहीं थी, घर वाले वही परमानेंट रिमार्क, ' अरे ठीक तो है, अभी चलाओ बाद में देखेंगे।"
मार्च में होली पड़ती थी और अप्रेल में नया सेशन शुरू होता था, बस मैं जान बूझ के स्कूल यूनिफार्म , और बहाना बना देती, अरे मैं तो बदलने ही वाली की भाभी ने रंग डाल दिया, और गाँव की होली ,..
ननद भाभी की होली, सिर्फ होली के दिन थोड़े होती थी , बस फागुन लगने के बाद जब मौक़ा मिल जाए भौजी को,... फिर सिर्फ रंग थोड़ी, कपडा फाड़ , कीचड़ में घिसटने से लेकर,... कुछ भी बचता नहीं था , जब मैं नहीं बचती थी तो यूनिफार्म कैसे बचती ,
और फिर वो यूनिफार्म स्कूल जाने लायक थोड़ी बचती , तो अप्रेल में नयी यूनिफार्म, व्हाइट टॉप, नेवी ब्ल्यू स्कर्ट।