यकीन होना मुश्किल है
UPDATE 18
मैं:"उफ्फ आरिफ़ ये क्या है, इसको लंड कैसे कहा जा सकता है, ये तो किसी गधे के लंड जैसा है, इसको पा कर तो तुम्हारी बीवी की किस्मत ही बदल जाएगी"
आरिफ़:"तुम कितनी हसीन हो, क्या मैं तुमको छू सकता हूँ"
मैं:"छू क्या तुम चाहो तो मुझे चोद भी सकते हो"
आरिफ़:"किसने सिखाए तुमको ये सब लफ्ज़"
मैं:"ये सब जाने दो, पहले मेरे निपल्स चूसो"
आरिफ़ ने पहले मेरे बूब्स को खूब दबाया और फिर मेरे निपल्स को चूसने लगा ,मुझे ऐसा लगा कि मुझे जन्नत मिल गयी.
मैं:"उफफफ्फ़ हाआआआआआआआअ, सोइईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई, आरिफ़ और चूसो, ना जाने कब से मैं तुम्हारे लिए बैठी हूँ हााआययययययययययी उफफफफफफफफफ्फ़ मर गयी मैं उफफफफफ्फ़"
वो पागलो की तरहा मेरे बूब्स चूस रहा था और मैं उसका लंबा लंड हिला रही थी वो मेरे हाथ लगते ही झाड़ गया.
आरिफ़:"देखा मैं इतना जल्दी झाड़ गया"
मैं:"घबराओ नही यार, तुम्हारे सामने पहली बार कोई नंगी लड़की थी इसलिए तुम झाड़ गये, ज़रा चेर पर बैठो, अभी तुमको फिर सख़्त करती हूँ"
जैसे ही वो चेर पर बैठा मैने उसका लंड मूह मे ले लिया और कुछ देर में उसका लंड फिर सख़्त हो गया, अब मैं लगातार उसका चूसे जा रही थी और वो अहह उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ की आवाज़ निकाल रहा था, वो मेरे बाल सहला रहा था, इस बार काफ़ी देरी मे वो झाड़ा, मैने उसके पानी की आखरी बूँद भी निगल ली. अब मैं और वो खड़े होकर एक दूसरे को किस कर रहे थे. अब मैं सोफे पर बैठ गयी और उसको अपनी चूत चाटने का इशारा किया वो बिना देर के मेरी टाँगो के बीच मे आ गया. मैने अपने पैर उसके खंधे पर रख दिए. वो एक भूके शेर की तरहा मेरी चूत चाट रहा था. अपने ही घर मे अपनी सगे भाई के आगे मैं अपनी टांगे फैला कर उससे अपनी चूत चटवा रही थी. मैं अब मज़े की सारी हद पार कर चुकी थी. आज काफ़ी दिनो बाद मुझे बेन्तेहा मज़ा आया. मैने झड़ने के बाद उसके सर को कस कर काफ़ी देर तक पकड़े रखा.
अब वो मेरे बगल मे बैठ कर मुझे अपनी बाहो मे जकड़े था.
कुछ देर इसी तरहा बैठने के बाद मैने उसको कहा कि वो मुझे चोदे.उसने पूछा कि कहीं मैं प्रेग्नेंट ना हो जाउ, लेकिन मैने उसको कहा कि मैं पिल्स पर हूँ.
मैं उसको बरामदे से अंदर कमरे मे ले आई थी.
मैं:"आरिफ़ आज तुम मेरी चूत मार कर अपनी सुहागरात की प्रेक्टिस करो"
आरिफ़:"मुझे यकीन नही होता कि मैं आज तुम्हारी चूत मार सकता हूँ"
मैं:"मेरे भाई,चोदो मुझे आज जी भर के"
मैं अब बिस्तर पर पीठ के बल लेटी थी और अपनी टाँगें फैला कर मैने उसको वेलकम किया. आरिफ़ का ये फर्स्ट टाइम था लेकिन जैसी ही उसने अपना लंड मेरी चूत से टच किया तो जैसे मेरे पूरे बदन मे आग लग गयी, उसके लंड की विड्त से ही मुझे अंदाज़ा हो गया कि मैं आज हो सकता है बर्दाश्त ना कर पाऊ.
आरिफ़ ने मेरी नज़रो मे देखा और इशारा पाकर एक झटके मे अंदर डाल दिया मेरी मूह से चीख निकल पड़ी.
मैं:"हाअयययययययययययययी मैं मर गाइिईईई उईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई अहह"
मेरी चीख सुनते ही आरिफ़ मे अपना लंड निकाल लिया और मेरी तरफ देखने लगा.
मैं:"निकाला क्यूना उफ़फ्फ़ धीरे से डालो धीरे धीरे तुम तो जान ही ले लोगे, वो तो मैं दो आदमियो का लंड अपनी चूत मे ले चुकी हूँ इसलिए मैं बर्दाश्त कर गयी"
आरिफ़:"दो आदमियो का लंड"
मैं:"अर्रे मेरा मतलब है, एक एक करके, पहले शौकत ने चोदा और फिर इनायत ने. लेकिन तुम्हारा लंड तो सबसे चौड़ा और लंबा है, इसलिए मेरे भाई धीरे धीरे चोदो अपनी बहना को"
आरिफ़:"ठीक है दर्द हो तो कह देना"
मैं:"साले चूतिए, इसी दर्द के लिए तो औरत तरसती है और तू कहता है कि बता देना, बहेन्चोद साला हहाहहाहा"
मेरे मूह से गालिया सुन कर आरिफ़ को थोड़ा बुरा लगा लेकिन मैने सिचुटेशन संभाल ली.
मैं:"यार तू बात ही ऐसी कहता है, अब तू भी ये शराफ़त ले लिबास उतार दे और मुझे मेरे ही अंदाज़ मे बात का जवाब दे, समझा"
आरिफ़:"हां साली कुतिया ये ले मेरा लॉडा अपनी चूत मे"
मैं:"हाअ, उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ सीईईईईईईईईईईईईईईईईईई अहह ऐसे ही कर धीरे धीरे"
आरिफ़:"देख तुझे चोद चोद कर कैसे मैं तेरी चूत फाड़ देता हूँ"
मैं:"हां चोद ले बेटा, इसी बहाने कम से कम तुझमे कॉन्फिडेन्स तो आ गया, वरना साला शादी के नाम से भाग रहा था, मदर्चोद"
आरिफ़:"और तू भी तो साली बाथरूम में उंगली कर के मुझे उकसा रही थी, कुतिया आज अपने भाई के भी केला खा ले साली रंडी"
मैं:"ह्म्म्म साले चोद आज जी भर के और बना ले मुझे अपनी रखैल, साला मायके मे भी तो लंड की फेसिलिटी मिलनी चाहिए हाहाहाहहहः"
कुछ देर बाद आरिफ़ झाड़ गया था और हान्फते हुए मुझ पर गिर गया मैने भी उसको अपनी बाहों मे लपेट लिया.
मैं:"क्यूँ बेटा आरिफ़, अब तो काफ़ी देर मे झड़े, क्यूँ आ गया ना कॉन्फिडेन्स शादी का"
आरिफ़:"हां थॅंक्स, अगर तुम्हारी चूत ना मिलती तो कॉन्फिडेन्स कभी ना आता"
मैं:"तो कर लो शादी अब किस चीज़ की टेन्षन है"
आरिफ़:"लेकिन तुम्हारे जैसे बीवी कहाँ मिलेगी"
मैं:"मेरी जेठानी है ना तबस्सुम, उसकी सग़ी बहेन है, एक दम पटाखा है वो, तुमने देखा नही है उसको"
आरिफ़:"तुमको कैसे पता"
मैं:"तबस्सुम को नहाते हुए देखा है और उसकी सग़ी बहेन हू बहू उसकी फोटो कॉपी है"
आरिफ़:"तो बात चलाओ ना मेरी भी"
मैं:"ठीक है, अच्छा अब एक काम करो, मुझे डॉगी स्टाइल मे चोदो"
आरिफ़:"ठीक है तो पलट जाओ ज़रा"
हम शाम तक कई बार यही खेल खेलते रहे अब फिर जब अम्मा और बाबा लौट कर आए तो शाम को मैने अम्मा से कह दिया कि आरिफ़ शादी के लिए राज़ी है. घर मे ख़ुसी की लहेर दौड़ गयी लेकिन किसी को ये मालूम ना था कि इसके लिए मैने अपनी टाँगें अपने सगे भाई के आगे खोली हैं.
अगली सुबह इनायत का फोन आया. उस वक़्त मैं ब्रेकफास्ट कर रही थी. मैने सोचा कि यहाँ अम्मा के सामने ये सब बातें करना ठीक नही होगा इसलिए मैं छत पर चली आई.
इनायत:"कैसी हो मेरी जान"
मैं:"जान तो तुम्हारी वो ताबू है, मैं तो बस तुम्हारा मकसद पूरा करने के लिए एक ज़रिया थी इनायत"
इनायत:"अच्छा, तो ये बात है, इसलिए मेडम इतने दिनो से नाराज़ सी लग रही थीं"
मैं:"इनायत ये कोई छोटी बात नही है, तुम मुझे क्या बेवकूफ़ समझते हो, तुमसे अच्छा तो तुम्हारा भाई शौकत है जो कुछ है वो सामने है, लेकिन तुमने तो मेरी पीठ मे छुरा भोंका है"
इनायत:"मैं जानता हूँ कि मेरा तुमसे ये बात छिपाना बहोत ग़लत था लेकिन क्या करूँ मेरी जान ये बात मेरे दिमाग़ से बिल्कुल ही निकल गयी थी"
मैं:"झूट एकदम झूट"
इनायत:"मैं सच कहता हूँ, तुम्हारे प्यार ने मुझे ये बिल्कुल भुला दिया था कि मैं किसी और लड़की से कभी क़ुरबत रखता था"
मैं:"तुम सब मर्द एक से हो, तुमको सिर्फ़ औरत की टाँगो के दरमियाँ वाली चीज़ से मोहब्बत होती है बस"
इनायत:"मेरी मोहब्बत को गाली ना दो"
मैं:"गाली तो तुमने दी है मेरे भरोसे और उम्मीदो को"
इनायत:"तुम घर पर आ जाओ, मिलकर बात करेंगे, फोन पर इस तरहा बात करना ठीक ना होगा"
मैं:"मेरा जी नही है घर आने को"
इनायत:"तो ठीक है जब जी चाहे आ जाओ, मैं इंतेज़ार कर रहा हूँ"
मैं:"ठीक है, चलो बाइ"
ये कहकर मैने फोन काट दिया. अभी मैं नीचे ही जा रही थी कि फिर फोन आया लेकिन इस बार शौकत का था. मैने फोन रिसीव किया.
शौकत:"हेलो आरा"
मैं:"हां बोलिए"
शौकत:"देखो बुरा मत मांन_ना, मैं अभी इनायत के साथ मे ही हूँ और मैने तुम दोनो की सारी बात सुन ली है"
मैं:"अच्छा तो मिया बीवी की बात को सबके सामने ज़ाहिर करने मे इनायत साहब की शर्म नही आई"
शौकत:"आरा अब हम लोगो में शर्म कैसी, तुम और हमसब दोस्त हैं और दोस्तो में क्या छिपता है"
मैं:"देखो शौकत मुझे अभी भी इनायत से ही मोहब्बत है और अभी भी मुझसे थोड़ी प्राइवसी चाहिए, तुम सब लोगो को हमारी प्रोवसी की रेस्पेक्ट करनी ही होगी वरना इन सब चीज़ो को
मैं खुद ही ख़तम कर दूँगी"
शौकत:"देखो मैं जानता हूँ, लेकिन इनायत बिल्कुल बेक़ुसूर है, वो तो चाहता था कि ताबू कभी इस घर की बहू ही ना बने लेकिन बार बार ताबू के इसरार करने पर वो खामोश हो गया"
मैं:"बात इतनी सीधी नहीं है, बात है भरोसे की और इनायत ने मेरा भरोसा तोड़ दिया है"
शौकत:"देखो आरा बात को समझो, ये बात मुझे भी तकलीफ़ दे रही थी कि मुझे अंजान रखा गया लेकिन सच तो ये है कि ताबू एंजाय्मेंट के लिए चाहे इनायत से साथ कुछ पल बिता रही हो लेकिन अभी भी वो सिर्फ़ मुझसे ही प्यार करती है और तुम भी इनायत से ही प्यार करती हो"
मैं:"मैं फिलहाल इस टॉपिक पर कोई बात नही करना चाहती , मैं बाद मे बात करूँगी अच्छा बाइ"
ये कहकर मैं नीचे आ गयी. दो पहर को आरिफ़ का फोन आया उसने मुझसे कहा कि वो आज लंच पर घर नही आ पाएगा तो मैं उसका लंच ले कर शॉप पा आ जाउ. मैने अम्मा से कहा तो अम्मा ने वापिस आरिफ़ को फोन किया और उससे घर आने को कहा. अम्मा ने कहा कि वो खाला के यहाँ जा रही है इसलिए घर पर कोई होना चाहिए. आरिफ़ कुछ देर बाद घर पर आ चुका था. अम्मा खाला के यहाँ निकल गयी. मैं आरिफ़ के लिए खाना निकालने किचन में गयी ही थी कि आरिफ़ किचन मे आ गया और उसने पीछे से मेरे चुतडो पर अपना खड़ा हुआ लंड टिका दिया, मैने चौंक कर पीछे देखा तो वो मुस्कुरा रहा था.
मैं:"अच्छा जनाब को इतना कॉन्फिडेन्स आ गया है कि अब उनका खड़ा ही रहता है"
आरिफ़:"हां मेरी प्यारी बहना आपकी चूत ने इसको ऐसा जाम पिलाया है कि ये अब खड़ा ही रहता है"
मैं:"तो तुम आज लंच के लिए घर क्यूँ नही आ रहे थे?"
आआरिफ:"यहाँ मैं तुम्हे कैसे चोद सकता हूँ"
अब मैं आरिफ़ के लिए खाना निकाल चुकी थी और मैने उससे कहा कि वो खाना खा ले लेकिन उसने कहा कि वो एक बार मुझे चोदना चाहता है.
मैं:"उफ्फ आरिफ़ अभी नही, मुझे बहोत ज़ोर से पेसाब लगी है, खाना भी ठंडा हो जाएगा"
इतना सुनते ही आरिफ़ ने मेरी सलवार का नारा पकड़ कर खींच दिया और मेरी सलवार झट से नीचे गिर गयी. मैं हैरान थी उसकी ये हरकत देख कर, फिर उसने मुझे गोद मे उठाया और एक हाथ से मेरी सलवार उतार दी. अब मैं सिर्फ़ झम्पर मे थी. वो मुझे आँगन मे ले आया है, हॅंड पंप के पास लाकर मुझे बिठा दिया और मुझे वहीं पेशाब करने को कहा. वो अब मेरी चूत को ध्यान से देख रहा था, मैने जैसे ही मूतना शुरू किया उसने अपने चेहरा मेरी चूत के सामने रख दिया जिससे पेशाब की बूँदें उसके चेहरे से टकरा कर वापस मेरी ओर आने लगी. मुझे इस बात का बिकुल अंदाज़ा ना था लेकिन मुझे उसके चेहरे पर पेशाब करना बड़ा अच्छा लग रहा था. बीच बीच में वो अपना मूह खोल कर मेरे पेशाब के कतरे पी भी रहा था. जब मैं पेशाब कर चुकी तो वो मुझे फिर बरामदे मे पड़ी चारपाई पर बिठा दिया और मेरे लिप्स को किस करना लगा. मैं अब अपने पेशाब के कतरो का ज़ायक़ा ले रही थी.इसमे बड़ा मज़ा आ रहा था. आरिफ़ ने मेरा टॉप भी उतार दिया था. मैने ब्रा नही पहनी थी जिसकी वजह से मेरा सीना अब सामने आ गया था, वो कुछ देर तक मेरे सीने को ही चूस्ता रहा, अब मैं भी जोश में आ गयी थी.
मैं अब दीवार की तरफ मूह करके झुक गयी और आरिफ़ को पीछे से आकर मुझे चोदने का इशारा किया लेकिन आरिफ़ के कुछ और ही प्लान थे. वो सोफे पर बैठ गया और मुझसे इशारा किया कि मैं उसकी गोद मे उसकी तरफ पीठ करके बैठू ताकि वो मुझे चोद सके. मैने ऐसा ही किया अब मैं उसकी गोद मे बैठी ही थी और एक दो बार ही उपर नीचे गयी थी कि फोन की रिंग बजी जिससे आरिफ़ घबरा सा गया मैने उसको फोन उठाने को कहा. वो फोन लेकर आया ये इनायत का फोन था. मैने आँखो से आरिफ़ को इशारा किया कि वो सोफे पर बैठ जाए. वो बैठ गया और मैं फिर से उसके लंड पर बैठ गयी. वो हिल नही रहा था तो मैने फिर उसको इशारा किया कि वो मुझे चोदना शुरू करे. वो कन्फ्यूज़ लग रहा था लेकिन उसने मुझे नीचे से चोदना शुरू कर दिया. जैसे ही मैने फोन रिसीव किया तो आरिफ़ एक बार फिर रुक गया, इस बार मैं बोल ही पड़ी.
मैं:"आरिफ़ तुम रुक क्यूँ गये, करते रहो" ये कहकर मैने फोन को स्पीकर पर डाल दिया
इनायत:"हेलो ठीक हो, क्या कर रही हो"
मैं:"कुछ नही, आरिफ़ के साथ काम कर रही थी और कुछ नही, अच्छा सुनो तुम्हे मालूम है ना वो ताबू की छोटी बहेन शबनम"
इनायत:"हां क्यूँ"
मैं:"वो उम्म्म्म मैं चा ,,आहह रही,.... थी कि उसकी शादी उफफफफफफफफफफफफ्फ़ मेरे भा भा भाई से हो जाए"
इनायत:"तो ठीक हैं मैं कह दूँगा ताबू से कि तुम्हारे घर वाले आरिफ़ का रिश्ता ले कर आना चाहते हैं उसके घर"
मैं:"उम्म्म्मम हां अयाया...."
इनायत:"बड़ी हाँफ रही हो सच बताओ क्या हो रहा है वहाँ पर"
मैं:"आरिफ़ के लंड पर बैठी हूँ, इसलिए ऐसी आवाज़ आ रही है"
मैने जैसे ही ऐसा कहा तो आरिफ़ की गांद फॅट गयी और इनायत ज़ोर से बोल पड़ा.
इनायत:"क्या, क्या कह रही हो तुम"
मैं:"हां मेरी जान हाहहहा, तुम्हारे साथ मैने कितनी बार आरिफ़ को सोचकर चुदवाया था, तो मैने सोचा क्यूँ ना सच मे चुदवा लूँ, वो शादी करना नही चाहता था, उसको लगता था कि वो नामार्द है लेकिन मैने उसको थोड़ी ट्रैनिंग देने के लिए उससे चुदवा लिया, समझे"
इनायत:"क्या तुम सच कर रही हो,?"
मैं:"यकीन नही आता तो तुम्हारे सामने उसका लंड अपनी चूत मे ले लूँगी"
इनायत:"मुझे अब भी यकीन नही है"
मैं कुछ और कहना चाहती थी कि आरिफ़ ने फोन मुझसे छीन कर कट कर दिया और मुझपर उबल पड़ा.
आरिफ़:"क्या तुम्हारा दिमाग़ खराब है"
मैं:"आरिफ़ , इनायत और मैं इस बारे मे कई बार डिसकस कर चुके हैं, मैने उससे कई बार कहा है कि मैं अपने भाई से सेक्स करना चाहती हूँ और उसको इस बात से कोई एतराज़ नही है"
आरिफ़:"क्या, ऐसा कैसे हो सकता है"
मैं:"इनायत मुझसे प्यार करता है, सिर्फ़ मेरे जिस्म से नही, उसने मुझे पूरी आज़ादी दे रखी है "
आरिफ़:"मुझे यकीन नही होता"
मैं:"अच्छा जो काम बीच मे छोड़ा है उसको पूरा करो , अम्मा आती ही होंगी"
उस दोपहर को मैं झाड़ ही पाई थी कि डोर बेल बज गयी. मैने झट से कपड़े पहने और आरिफ़ को दरवाज़ा खोलने को कहा.
कहानी जारी रहेगी
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