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Erotica यकीन होना मुश्किल है

aamirhydkhan

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यकीन होना मुश्किल है


मेरा नाम आरा है. मैं उस वक़्त 21 साल की थी और उस वक़्त मैने बी.ए. पास कर लिया था. मेरे घर मे शुरू से ही लड़कियो को अकेले बाहर जाने की इजाज़त नही है. मैं एक लोवर मिड्ल क्लास की लड़की हूँ और बड़े ही साधारण से परिवार से हूँ. हम वही लोग हैं जो एक छोटे से कस्बे मे अपनी सारी उमर बिता देते हैं. हम मोटर साइकल ही अफोर्ड कर सकते है.

मैं भी एक आम लड़की जिसकी आम सी सहेलिया और आम सी ज़िंदगी थी. मैने बी.ए प्राइवेट किया है और मैं इंग्लीश मे अच्छी नही हूँ.

मेरी ज़िंदगी मे मैं अपने शौहर,देवर, ससुर और भाई से संबंध बना चुकी हूँ. इस बात पर यकीन करना बड़ा मुश्किल है लेकिन यही मेरी ज़िंदगी है. मैं तो सिर्फ़ अपने शौहर को ही अपना जिस्म देना चाहती थी लेकिन कुदरत के खेल मे फँस कर हार कर रह गयी.

आज जब मैं पीछे देखती हूँ तो सिर्फ़ तकलीफ़ के कुछ और नही पाती. रोना मेरी किस्मत और लुटना मेरी किस्मत की लकीर बन गयी है.

आज भी याद है मुझे सब मेरे ससुराल वाले मुझे देखने आए थे.
लालची लोग लेकिन बातो से शरीफ.
मैं अपने मा बाप की एकलौती लड़की हूँ और अपने बड़े भाई से छोटी हूँ.


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अन्य साइट से ली गयी कहानी
 
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aamirhydkhan

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यकीन होना मुश्किल है

UPDATE 15


ये कहकर ताबू ने खुद को इनायत के ऊपर आकर उसके लंड को अड्जस्ट किया

ताबू:"उफ़फ्फ़, इनायत मेरी जान तुम्हारा लंड तो मेरी चूत को फाड़ देगा, हाआआआआआ आआयययय ययययययययययईई उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ मेरी मा, आआरआआ तुमने कैसे इसे अपनी चूत मे लिया है अब तक" और ये कहकर वो ऊपर नीचे उछलने लगी और उसके मूह से सीईईईईईईईईईईईई अहह उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ मर गयी हाआआआआयययययययययययईईईई. इनायत अब ताबू की चूचिया दबा रहा था और नीचे से धक्के लगा रहा था.

मैं भी अब शौकत की ऊपर बैठ चुकी थी और मेरी गीली चूत मे एक बार फिर शौकत का लंड आ चुका था और मैं भी उछलने लगी थी.

मैं:"उफफफफफफफफफफफ्फ़ शौकत कितने अरसे बाद मेरी चूत मे तुम्हारा लंड आया है, अब तो खुश हो ना मेरी जान अब जब तुम्हारे मन करे मुझे चोद लेना"

शौकत:" ये तो ताबू की वजह से मुमकिन हुआ है अगर वो ना मानती तो शायद ये कभी ना होता"

मैं:"ताबू और इनायत दोनो की वजह से, ताबू सच मे बड़ी अच्छी लड़की है, उसकी खूबसूरती आज मेरे शौहर को मज़ा दे रही है"

ताबू:"ओये इतना सेंटी होने की ज़रूरत नही है, ये तो एक हाथ से ले और एक हाथ से दे का रूल है, मुझे इनायत का लंड चाहिए था और शौकत को तुम्हारी चूत तो फ़ैसला हो गया"

मैं हैरान हो गयी, कहीं ये ताबू का प्रिप्लॅन्न्ड खेल तो नही था.

ताबू मुझे देख कर हंस रही थी.

ताबू:"ये मेरा और इनायत का प्लान था मेरी जान और ये प्लान तो शादी के पहले से "

इस बार तो मैं और शौकत दोनो ही शॉक्ड हो गये थे.

ताबू:"मैं इनायत की गर्ल फ्रेंड थी और उसकी जब ज़बरदस्ती आरा से शादी हुई तो हम ने प्लान किया था कि हम एक दूसरे को दोबारा पाने की कोशिश करेंगे, लेकिन थोड़े दिन बाद इनायत का मूड चेंज हो गया था, वो अब आरा से मोहब्बत करने लगा था और आरा उससे, मैं अपने आप को धोके मे समझने लगी और मेरी फ्रस्टेशन बढ़ने लगी थी, तब मुझे ये रिलाइज हुआ कि मैं शायद इनायत की तरफ फिज़िकली अट्रॅक्टेड थी और कुछ दिनो मे मेरा मूड सही हो गया, फिर मैने फ़ैसला किया कि मैं कैसे भी कर के इनायत के घर मे जाउन्गि और देखूँगी कि वो कौन सी औरत है जिसमे इतना दम है कि मुझसे इनायत को छीन ले,तभी मुझे शौकत की शादी करने के प्लान का पता लगा और मैने हां कर दी लेकिन फिर जब मैने शौकत के साथ कुछ दिन बिताए तो मुझे लगा कि मैं ये क्या कर रही हूँ

और मुझे शौकत से मोहब्बत हो गयी. मुझे मालूम पड़ा कि लुस्ट और लव में ज़मीन आसमान का फ़र्क है. तब मैने ये सोचा क्यूँ ना हम एक बार फिर लुस्ट का मज़ा लें और ऐसे मैने ये प्लान बनाया"


शौकत:"कसम से तुम लोगो ने हम को क्रोस किया और हम को ये लग रहा था कि हम तुम लोगो को क्रॉस कर रहें हैं"

ताबू:"ये सब सच है लेकिन मैं आज भी दिल की गहराई से तुमसे ही मोहब्बत करती हूँ"

शौकत:"मैं तुमसे झूट नही कहूँगा मैं तुमसे और आरा दोनो से प्यार करता हूँ लेकिन तुमसे वादा करता हूँ कि तुम्हारी मर्ज़ी के बिना मैं कभी भी कुछ नही करूँगा"

मैं जो अब चुप चाप बैठी थी, मुझे लगा कि कहीं इन लोगो का मूड ऑफ ना हो जाए इस लिए मैने इनका ध्यान पलटा

मैं:"उफ़फ्फ़ यार ये सब बाद मे कर लेना अब जो कर रहे हो वो करो और मेरा पानी निकालो"

अब रूम मे हम सब की सिसकारििया गूँज रही थी थोड़ी ही देर में मैं फिर झाड़ गयी और मैने फ़ैसला किया कि मैं शौकत को अपने पानी का स्वाद चखाउन्गि इसलिए मैने अपनी चूत शौकत के मूह पर रगड़ दी और मुझे देख कर ताबू ने भी यही किया.

हम लोग इसी तरहा ना जाने कितनी देर तक सेक्स करते रहे और जब और ताक़त ना रही तो हम थोड़ी देर एक दूसरे पर लेटे रहे और फिर फ्रेश हो कर डिन्नर के लिए चल दिए.


हम लोग आख़िर कार वापस अपने ससुराल आ गये थे. सब बहोत खुश थे लेकिन मैं ना जाने क्यूँ खुश नही थी. मुझे अचानक ही इनायत से नफ़रत सी होने लगी थी, मैने उससे बात करना भी बंद सा कर दिया था. वो भी शायद ये नोटीस कर चुका था. घर पर आकर मेरी सास और मेरी ननद ने हमारा शानदार वेलकम किया. अब मेरी सास पहले की तरहा मुझसे खफा नही दिखती थी लेकिन फिर भी वो थोड़ा रिज़र्व रहती थी. मैने सर दर्द और थकावट का बहाना कर के इनायत से थोड़ी दूरी बनाई थी. दो दिन बाद ही मैने इनायत से अपने घर जाने के लिए इजाज़त माँगी , उसने बिना किसी हिचक के मुझे इजाज़त दे दी.

घर पर आकर मुझे करार आया. घर पर मैने अपनी उलझन और परेशानी किसी को नही दिखाई. घर पर सब खुश थे और अब मेरे भाई आरिफ़ के लिए रिश्ते देखे जा रहे थे लेकिन इस बार मेरी खाला को इन सब मामलो से दूर रखा था. शायद अब उनपर हमारे घर मे किसी को भरोसा ही ना था.

मेरी मा ने फ़ुर्सत निकाल कर मुझसे बात करनी चाही, वो शायद इस बात से ज़्यादा परेशान थी कि शौकत भी अपनी बीवी के साथ मेरे संग घूमने गया था. सुबह जब भाई और बाबा काम पर चले गये तो वो मुझसे मेरे हाल चाल पूछने लगी.

अम्मा: "बेटी कैसा रहा तुम्हारा सफ़र, तुम्हारे साथ वो खबीस भी गया था ना, उसने तुम्हे परेशान तो नही किया?"

मैं:"नही अम्मा बिल्कुल परेशान नही किया, वो तो अब मुझसे काफ़ी अच्छे से पेश आया था, मुझे वहाँ घूम कर बड़ा मज़ा आया"

अम्मा: "अच्छा हुआ बेटी, मैं तो बड़ी फ़िकरमंद थी, लेकिन उससे तुम अभी थोड़ा होशियार ही रहना कहीं उसके भोलेपन में कोई साज़िश ना छुपी हो."

मैं:"आप फिकर ना करो अम्मा, ऐसा कुछ नही होगा, वो ऐसा इंसान नही है , खैर ये सब आप छोड़ो ये बताओ कि भाई की शादी के क्या हाल हैं, उन्हे कोई लड़की पसंद आई कि नही?"

अम्मा:"इसी बात का तो रोना है बेटा हम तो कई लड़किया देख चुके हैं लेकिन ये तो सब को ही नापसंद कर देता है, ना जाने क्या चल रहा है इसके दिमाग़ में?"

मैं:"कहीं किसी लड़की के साथ दिल को नही लगा रखा जनाब ने?"

अम्मा:"अर्रे मैं तो ये भी पूंछ चुकी हूँ लेकिन साहब कुछ कहते ही नही, तुम्हारे बाबा भी साफ साफ पूंछ चुके हैं कि कोई लड़की पहले से पसंद है तो बता दो, हम उसके यहाँ तुम्हारा रिश्ता लेकर चले जाएँगे"

मैं:"तो क्या कहा भाई ने?"

अम्मा:"कहा क्या, कुछ भी नही, ना जाने ये ऐसा क्यूँ कर रहा है, कहता है कि थोड़ा रुक जाओ, अभी मैं शादी नही करना चाहता"

मैं:"तो हर्ज ही क्या है, रुक जाओ ना, लड़को की कोई उमर थोड़े ही ना देखी जाती है"

अम्मा:"वो तो ठीक है बेटा लेकिन हम मिया बीवी भी अरमान रखते हैं, कौन नही चाहता कि वो अपने नाती पोते देखे, और हम भी तो अपनी ज़िम्मेदारियो से फारिघ् होना चाह रहे हैं, ये कोई क्यूँ नही देखता, क्या भरोसा हम बुड्ढे लोगो की ज़िंदगी का, क्या पता कब हमारी शाम ढल जाए"

मैं:"अम्मा ऐसा क्यूँ कहती हो,आप लोगो से सिवा हमारा है ही कौन,किस के सहारे हम जी सकते हैं आप दोनो के सिवा"

अम्मा:"बेटा, कोई ज़िंदगी भर तो साथ नही रह सकता ना, ये कुदरत का उसूल है कि जब चिड़िया के बच्चे अपना खाना ढूँढना और उड़ना सीख लेते है तो उन्हे अपने मा बाप का घर छोड़ना ही होता है, अपनी नयी दुनिया बसाने के लिए, समझी"

मैं:"अम्मा ये सब बातें ना किया करो, मेरा दिल डूबने लगता है"

अम्मा:"अच्छा नही कहूँगी बाबा, लेकिन तू ही बता कि क्या मैं कुछ ग़लत कहती हूँ"

मैं:"ठीक है अम्मा, मैं भी भाई को एक बार समझा कर देख लेती हूँ शायद मेरी बात का कोई असर हो"

अम्मा:"ठीक है बेटी, तुम भी कोशिश कर के देख लो"

इस बात चीत के बाद हम मा बेटी दोपहर का खाना बनाने की तैयारी मे जुट गये. शाम को इनायत का फोन आया लेकिन मैं जितना ज़रूरी था उतनी ही बात की.

मुझे ये बात हर्ट कर गयी थी कि इनायत ने ताबू के बारे मे मुझसे सब छुपा कर रखा, मुझे ऐसा लग रहा था कि उसने मेरा और शौकत का यूज़ किया ताबू को पाने के लिए. मेरे दिल मे जो इज़्ज़त थी इनायत के लिए वो अब जाती रही. मुझे ताबू के वो क़हक़हे अभी भी याद थे कि जब वो मेरा मज़ाक उड़ा रही थी. मुझे अपने आप से घिन सी हो रही थी. मैने फ़ैसला कर लिया था कि जब तब इनायत और ताबू को उनकी इस बेशर्म चालबाज़ी के लिए गिला नही होता मैं उस वक़्त तक उनसे इसी तरहा फॉरमॅलिटी के साथ बात करती रहूंगी.

शाम वो आरिफ़ घर आया. वो अब एक एलेक्ट्रिकल स्टोर चलाता था, हमारे कस्बे मे ये एक ही दुकान थी इसलिए बहुत चलती थी, आरिफ़ ने दुकान को काफ़ी बढ़ा लिया था. वो काफ़ी मसरूफ़ रहता था लेकिन आज कल थोड़ा परेशान सा रहता था. हमारा घर ज़्यादा बड़ा नही था लेकिन ये काफ़ी आरामदेह था. छत पर इन दिनो शाम को बैठना सुकून देता था. हमारी छत आस पास के घरो से जुड़ी थी लेकिन पॅरपेट से घिरी थी. शाम वो जब पंछी झुन्दो मे अपने घरो को लौट रहे होते तो ये नज़ारा बड़ा हसीन लगता. शाम का ढलता सूरज और ठंडी हवा बड़ा सुकून देती थी. आस पास बड़े बड़े पेड़ और चारो तरफ फैली हरियाली एक दिलकश नज़ारा पेश करते थे. छत पर एक चारपाई पड़ी थी जिसपर हम कभी कभी जाकर बैठ जाया करते था. आज कल आरिफ़ छत पर ज़्यादा बैठ_ता था.

मैं भी शाम को छत पर आरिफ़ के लिए चाइ लेकर चली गयी. हम भाई बहेन आपास मे खुल कर बात नही करते थे. आरिफ़ शुरू से ही अलग खामोश रहने वाला लड़का था और मैं भी कुछ ऐसी ही थी.
मुझे छत पर आरिफ़ ने देख कर ऐसा महसूस किया जैसे वो अलग खामोसी से छत पर बैठना चाहता था.
मैं जानना चाहती थी कि क्या वजह है उसके शादी से इनकार करने की.

मैं:"आरिफ़ ये लो चाय पियो"

आरिफ़:"नही मेरा मंन नही है"

मैं:"मंन क्यूँ नही है, क्या बात है"

आरिफ़:"अच्छा यहाँ रख दो, मंन होगा तो पी लूँगा"

मैं:"क्या बात है, आज कल बड़े रूखे से रहते हो, पता है अम्मा और बाबा कितने परेशान हैं इस बात को लेकर"

आरिफ़:"यार तुम भी अब मेरा दिमाग़ मत चाट उनकी तरहा"

मैं:"ठीक है अगर तुमको ऐसे ही रहना है तो रहो, किसी को क्या पड़ी है तुमसे इसरार करने की"

और ये कहकर मैं नीचे जाने लगी. मुझे नीचे जाता देखकर उसने मुझे आवाज़ दी, मैं पीछे मूडी तो उसने मुझे बुला लिया. मैं भी ना चाहते हुए वापस वही आकर बैठ गयी, फिर उसने मुझसे मेरे शौहर और ससुराल वालो के बारे मे पूछना चाहा

आरिफ़:"तुम अपने ससुराल वालो के बारे मे बताओ"

मैं:"देखो आरिफ़ बात मत बदलो"

आरिफ़:"नही मैं सच मे जानना चाहता हूँ"

मैं:"मैं अपनी नयी ज़िंदगी मे काफ़ी खुश हूँ, मेरी फिकर मत करो, अब मैं फिर से अच्छा महसूस करती हूँ, लगता है कि तकलीफ़ भरे दिन दूर हो गये, इनायत काफ़ी अच्छा इंसान है"

आरिफ़:"सुन कर बड़ा सुकून हुआ, अच्छा लग रहा है ये सब जान कर"

मैं:"हां, ये तो अच्छा हुआ लेकिन अब हम सब तुम्हे खुश देखना चाहते हैं"

आरिफ़:"मैं भी बहोत खुश हूँ"

मैं:"और बाबा और अम्मा, वो तो खुश नही हैं, उनके सर पर ज़िम्मेदारी का बोझ है और वो भी अपने पोते और पोतियो के साथ खेलना चाहते हैं, उनकी ख़ुसी के बारे मे तो सोचो"


कहानी जारी रहेगी



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Real don

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ये कहकर ताबू ने खुद को इनायत के ऊपर आकर उसके लंड को अड्जस्ट किया

ताबू:"उफ़फ्फ़, इनायत मेरी जान तुम्हारा लंड तो मेरी चूत को फाड़ देगा, हाआआआआआ आआयययय ययययययययययईई उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ मेरी मा, आआरआआ तुमने कैसे इसे अपनी चूत मे लिया है अब तक" और ये कहकर वो ऊपर नीचे उछलने लगी और उसके मूह से सीईईईईईईईईईईईई अहह उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ मर गयी हाआआआआयययययययययययईईईई. इनायत अब ताबू की चूचिया दबा रहा था और नीचे से धक्के लगा रहा था.

मैं भी अब शौकत की ऊपर बैठ चुकी थी और मेरी गीली चूत मे एक बार फिर शौकत का लंड आ चुका था और मैं भी उछलने लगी थी.

मैं:"उफफफफफफफफफफफ्फ़ शौकत कितने अरसे बाद मेरी चूत मे तुम्हारा लंड आया है, अब तो खुश हो ना मेरी जान अब जब तुम्हारे मन करे मुझे चोद लेना"

शौकत:" ये तो ताबू की वजह से मुमकिन हुआ है अगर वो ना मानती तो शायद ये कभी ना होता"

मैं:"ताबू और इनायत दोनो की वजह से, ताबू सच मे बड़ी अच्छी लड़की है, उसकी खूबसूरती आज मेरे शौहर को मज़ा दे रही है"

ताबू:"ओये इतना सेंटी होने की ज़रूरत नही है, ये तो एक हाथ से ले और एक हाथ से दे का रूल है, मुझे इनायत का लंड चाहिए था और शौकत को तुम्हारी चूत तो फ़ैसला हो गया"

मैं हैरान हो गयी, कहीं ये ताबू का प्रिप्लॅन्न्ड खेल तो नही था.

ताबू मुझे देख कर हंस रही थी.

ताबू:"ये मेरा और इनायत का प्लान था मेरी जान और ये प्लान तो शादी के पहले से "

इस बार तो मैं और शौकत दोनो ही शॉक्ड हो गये थे.

ताबू:"मैं इनायत की गर्ल फ्रेंड थी और उसकी जब ज़बरदस्ती आरा से शादी हुई तो हम ने प्लान किया था कि हम एक दूसरे को दोबारा पाने की कोशिश करेंगे, लेकिन थोड़े दिन बाद इनायत का मूड चेंज हो गया था, वो अब आरा से मोहब्बत करने लगा था और आरा उससे, मैं अपने आप को धोके मे समझने लगी और मेरी फ्रस्टेशन बढ़ने लगी थी, तब मुझे ये रिलाइज हुआ कि मैं शायद इनायत की तरफ फिज़िकली अट्रॅक्टेड थी और कुछ दिनो मे मेरा मूड सही हो गया, फिर मैने फ़ैसला किया कि मैं कैसे भी कर के इनायत के घर मे जाउन्गि और देखूँगी कि वो कौन सी औरत है जिसमे इतना दम है कि मुझसे इनायत को छीन ले,तभी मुझे शौकत की शादी करने के प्लान का पता लगा और मैने हां कर दी लेकिन फिर जब मैने शौकत के साथ कुछ दिन बिताए तो मुझे लगा कि मैं ये क्या कर रही हूँ

और मुझे शौकत से मोहब्बत हो गयी. मुझे मालूम पड़ा कि लुस्ट और लव में ज़मीन आसमान का फ़र्क है. तब मैने ये सोचा क्यूँ ना हम एक बार फिर लुस्ट का मज़ा लें और ऐसे मैने ये प्लान बनाया"


शौकत:"कसम से तुम लोगो ने हम को क्रोस किया और हम को ये लग रहा था कि हम तुम लोगो को क्रॉस कर रहें हैं"

ताबू:"ये सब सच है लेकिन मैं आज भी दिल की गहराई से तुमसे ही मोहब्बत करती हूँ"

शौकत:"मैं तुमसे झूट नही कहूँगा मैं तुमसे और आरा दोनो से प्यार करता हूँ लेकिन तुमसे वादा करता हूँ कि तुम्हारी मर्ज़ी के बिना मैं कभी भी कुछ नही करूँगा"

मैं जो अब चुप चाप बैठी थी, मुझे लगा कि कहीं इन लोगो का मूड ऑफ ना हो जाए इस लिए मैने इनका ध्यान पलटा

मैं:"उफ़फ्फ़ यार ये सब बाद मे कर लेना अब जो कर रहे हो वो करो और मेरा पानी निकालो"

अब रूम मे हम सब की सिसकारििया गूँज रही थी थोड़ी ही देर में मैं फिर झाड़ गयी और मैने फ़ैसला किया कि मैं शौकत को अपने पानी का स्वाद चखाउन्गि इसलिए मैने अपनी चूत शौकत के मूह पर रगड़ दी और मुझे देख कर ताबू ने भी यही किया.

हम लोग इसी तरहा ना जाने कितनी देर तक सेक्स करते रहे और जब और ताक़त ना रही तो हम थोड़ी देर एक दूसरे पर लेटे रहे और फिर फ्रेश हो कर डिन्नर के लिए चल दिए.


हम लोग आख़िर कार वापस अपने ससुराल आ गये थे. सब बहोत खुश थे लेकिन मैं ना जाने क्यूँ खुश नही थी. मुझे अचानक ही इनायत से नफ़रत सी होने लगी थी, मैने उससे बात करना भी बंद सा कर दिया था. वो भी शायद ये नोटीस कर चुका था. घर पर आकर मेरी सास और मेरी ननद ने हमारा शानदार वेलकम किया. अब मेरी सास पहले की तरहा मुझसे खफा नही दिखती थी लेकिन फिर भी वो थोड़ा रिज़र्व रहती थी. मैने सर दर्द और थकावट का बहाना कर के इनायत से थोड़ी दूरी बनाई थी. दो दिन बाद ही मैने इनायत से अपने घर जाने के लिए इजाज़त माँगी , उसने बिना किसी हिचक के मुझे इजाज़त दे दी.

घर पर आकर मुझे करार आया. घर पर मैने अपनी उलझन और परेशानी किसी को नही दिखाई. घर पर सब खुश थे और अब मेरे भाई आरिफ़ के लिए रिश्ते देखे जा रहे थे लेकिन इस बार मेरी खाला को इन सब मामलो से दूर रखा था. शायद अब उनपर हमारे घर मे किसी को भरोसा ही ना था.

मेरी मा ने फ़ुर्सत निकाल कर मुझसे बात करनी चाही, वो शायद इस बात से ज़्यादा परेशान थी कि शौकत भी अपनी बीवी के साथ मेरे संग घूमने गया था. सुबह जब भाई और बाबा काम पर चले गये तो वो मुझसे मेरे हाल चाल पूछने लगी.

अम्मा: "बेटी कैसा रहा तुम्हारा सफ़र, तुम्हारे साथ वो खबीस भी गया था ना, उसने तुम्हे परेशान तो नही किया?"

मैं:"नही अम्मा बिल्कुल परेशान नही किया, वो तो अब मुझसे काफ़ी अच्छे से पेश आया था, मुझे वहाँ घूम कर बड़ा मज़ा आया"

अम्मा: "अच्छा हुआ बेटी, मैं तो बड़ी फ़िकरमंद थी, लेकिन उससे तुम अभी थोड़ा होशियार ही रहना कहीं उसके भोलेपन में कोई साज़िश ना छुपी हो."

मैं:"आप फिकर ना करो अम्मा, ऐसा कुछ नही होगा, वो ऐसा इंसान नही है , खैर ये सब आप छोड़ो ये बताओ कि भाई की शादी के क्या हाल हैं, उन्हे कोई लड़की पसंद आई कि नही?"

अम्मा:"इसी बात का तो रोना है बेटा हम तो कई लड़किया देख चुके हैं लेकिन ये तो सब को ही नापसंद कर देता है, ना जाने क्या चल रहा है इसके दिमाग़ में?"

मैं:"कहीं किसी लड़की के साथ दिल को नही लगा रखा जनाब ने?"

अम्मा:"अर्रे मैं तो ये भी पूंछ चुकी हूँ लेकिन साहब कुछ कहते ही नही, तुम्हारे बाबा भी साफ साफ पूंछ चुके हैं कि कोई लड़की पहले से पसंद है तो बता दो, हम उसके यहाँ तुम्हारा रिश्ता लेकर चले जाएँगे"

मैं:"तो क्या कहा भाई ने?"

अम्मा:"कहा क्या, कुछ भी नही, ना जाने ये ऐसा क्यूँ कर रहा है, कहता है कि थोड़ा रुक जाओ, अभी मैं शादी नही करना चाहता"

मैं:"तो हर्ज ही क्या है, रुक जाओ ना, लड़को की कोई उमर थोड़े ही ना देखी जाती है"

अम्मा:"वो तो ठीक है बेटा लेकिन हम मिया बीवी भी अरमान रखते हैं, कौन नही चाहता कि वो अपने नाती पोते देखे, और हम भी तो अपनी ज़िम्मेदारियो से फारिघ् होना चाह रहे हैं, ये कोई क्यूँ नही देखता, क्या भरोसा हम बुड्ढे लोगो की ज़िंदगी का, क्या पता कब हमारी शाम ढल जाए"

मैं:"अम्मा ऐसा क्यूँ कहती हो,आप लोगो से सिवा हमारा है ही कौन,किस के सहारे हम जी सकते हैं आप दोनो के सिवा"

अम्मा:"बेटा, कोई ज़िंदगी भर तो साथ नही रह सकता ना, ये कुदरत का उसूल है कि जब चिड़िया के बच्चे अपना खाना ढूँढना और उड़ना सीख लेते है तो उन्हे अपने मा बाप का घर छोड़ना ही होता है, अपनी नयी दुनिया बसाने के लिए, समझी"

मैं:"अम्मा ये सब बातें ना किया करो, मेरा दिल डूबने लगता है"

अम्मा:"अच्छा नही कहूँगी बाबा, लेकिन तू ही बता कि क्या मैं कुछ ग़लत कहती हूँ"

मैं:"ठीक है अम्मा, मैं भी भाई को एक बार समझा कर देख लेती हूँ शायद मेरी बात का कोई असर हो"

अम्मा:"ठीक है बेटी, तुम भी कोशिश कर के देख लो"

इस बात चीत के बाद हम मा बेटी दोपहर का खाना बनाने की तैयारी मे जुट गये. शाम को इनायत का फोन आया लेकिन मैं जितना ज़रूरी था उतनी ही बात की.

मुझे ये बात हर्ट कर गयी थी कि इनायत ने ताबू के बारे मे मुझसे सब छुपा कर रखा, मुझे ऐसा लग रहा था कि उसने मेरा और शौकत का यूज़ किया ताबू को पाने के लिए. मेरे दिल मे जो इज़्ज़त थी इनायत के लिए वो अब जाती रही. मुझे ताबू के वो क़हक़हे अभी भी याद थे कि जब वो मेरा मज़ाक उड़ा रही थी. मुझे अपने आप से घिन सी हो रही थी. मैने फ़ैसला कर लिया था कि जब तब इनायत और ताबू को उनकी इस बेशर्म चालबाज़ी के लिए गिला नही होता मैं उस वक़्त तक उनसे इसी तरहा फॉरमॅलिटी के साथ बात करती रहूंगी.

शाम वो आरिफ़ घर आया. वो अब एक एलेक्ट्रिकल स्टोर चलाता था, हमारे कस्बे मे ये एक ही दुकान थी इसलिए बहुत चलती थी, आरिफ़ ने दुकान को काफ़ी बढ़ा लिया था. वो काफ़ी मसरूफ़ रहता था लेकिन आज कल थोड़ा परेशान सा रहता था. हमारा घर ज़्यादा बड़ा नही था लेकिन ये काफ़ी आरामदेह था. छत पर इन दिनो शाम को बैठना सुकून देता था. हमारी छत आस पास के घरो से जुड़ी थी लेकिन पॅरपेट से घिरी थी. शाम वो जब पंछी झुन्दो मे अपने घरो को लौट रहे होते तो ये नज़ारा बड़ा हसीन लगता. शाम का ढलता सूरज और ठंडी हवा बड़ा सुकून देती थी. आस पास बड़े बड़े पेड़ और चारो तरफ फैली हरियाली एक दिलकश नज़ारा पेश करते थे. छत पर एक चारपाई पड़ी थी जिसपर हम कभी कभी जाकर बैठ जाया करते था. आज कल आरिफ़ छत पर ज़्यादा बैठ_ता था.

मैं भी शाम को छत पर आरिफ़ के लिए चाइ लेकर चली गयी. हम भाई बहेन आपास मे खुल कर बात नही करते थे. आरिफ़ शुरू से ही अलग खामोश रहने वाला लड़का था और मैं भी कुछ ऐसी ही थी.
मुझे छत पर आरिफ़ ने देख कर ऐसा महसूस किया जैसे वो अलग खामोसी से छत पर बैठना चाहता था.
मैं जानना चाहती थी कि क्या वजह है उसके शादी से इनकार करने की.

मैं:"आरिफ़ ये लो चाय पियो"

आरिफ़:"नही मेरा मंन नही है"

मैं:"मंन क्यूँ नही है, क्या बात है"

आरिफ़:"अच्छा यहाँ रख दो, मंन होगा तो पी लूँगा"

मैं:"क्या बात है, आज कल बड़े रूखे से रहते हो, पता है अम्मा और बाबा कितने परेशान हैं इस बात को लेकर"

आरिफ़:"यार तुम भी अब मेरा दिमाग़ मत चाट उनकी तरहा"

मैं:"ठीक है अगर तुमको ऐसे ही रहना है तो रहो, किसी को क्या पड़ी है तुमसे इसरार करने की"

और ये कहकर मैं नीचे जाने लगी. मुझे नीचे जाता देखकर उसने मुझे आवाज़ दी, मैं पीछे मूडी तो उसने मुझे बुला लिया. मैं भी ना चाहते हुए वापस वही आकर बैठ गयी, फिर उसने मुझसे मेरे शौहर और ससुराल वालो के बारे मे पूछना चाहा

आरिफ़:"तुम अपने ससुराल वालो के बारे मे बताओ"

मैं:"देखो आरिफ़ बात मत बदलो"

आरिफ़:"नही मैं सच मे जानना चाहता हूँ"

मैं:"मैं अपनी नयी ज़िंदगी मे काफ़ी खुश हूँ, मेरी फिकर मत करो, अब मैं फिर से अच्छा महसूस करती हूँ, लगता है कि तकलीफ़ भरे दिन दूर हो गये, इनायत काफ़ी अच्छा इंसान है"

आरिफ़:"सुन कर बड़ा सुकून हुआ, अच्छा लग रहा है ये सब जान कर"

मैं:"हां, ये तो अच्छा हुआ लेकिन अब हम सब तुम्हे खुश देखना चाहते हैं"

आरिफ़:"मैं भी बहोत खुश हूँ"

मैं:"और बाबा और अम्मा, वो तो खुश नही हैं, उनके सर पर ज़िम्मेदारी का बोझ है और वो भी अपने पोते और पोतियो के साथ खेलना चाहते हैं, उनकी ख़ुसी के बारे मे तो सोचो"


कहानी जारी रहेगी



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Shak k anjam Ka bhi update dede bhai
 

aamirhydkhan

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यकीन होना मुश्किल है

UPDATE 16

मेरी बात सुन कर आरिफ़ के चेहरे का रंग स्याह सा हो गया, ऐसा लगा कि शायद मैने उसकी कोई दुखती रग छेड़ दी हो. वो खामोश सा हो गया

मैं:"क्या हुआ, क्या मेरी बात तुम्हे बुरी लगी"

आरिफ़:"नहीं"

मैं:"तो फिर खामोश क्यूँ हो गये"

आरिफ़:"कुछ नही"

मैं:"देखो आरिफ़ मुझे बताओ, इस तरहा तो तुम हम सबको दुखी कर रहे हो"

आरिफ़ ना जाने क्यूँ एक दम से झल्ला उठा, उसकी आवाज़ भी जैसे गूँज सी गयी, उसके चेहरे के रंग सुर्ख हो गया

आरिफ़:" क्या बताऊ, क्यूँ तुम लोग मुझे जीने नही देते, नहीं करनी मुझे कोई शादी"

मैं उसका ये रूप देखकर बड़ी हैरान थी, मैं एकदम से चुप सी हो गयी, कुछ देर मैं उसकी तरफ देखती रही फिर मैं उठ कर नीचे जाने लगी, आरिफ़ को एहसास हुआ कि उसने ओवर रिएक्ट किया है इसलिए उसने मेरा हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन अब मैं वाकई नीचे जाना चाहती थी.

आरिफ़:"सॉरी यार, मुझे ऐसे रिएक्ट नही करना चाहिए था"

मुझे अभी भी उसपर बहुत गुस्सा आ रहा था तो मैं भी थोड़ा ओवर रिएक्ट कर गयी

मैं:"मैं अब तुमसे इस बारे मे बात नही करूँगी, ये तुम्हारी ज़िंदगी है जैसे चाहे जिओ. क्या फ़र्क पड़ता है चाहे कोई कुछ भी उम्मीद करे तुमसे, आख़िर तुम एक मर्द ही तो हो, तुमसे कौन सवाल कर सकता है"

आरिफ़:"मैं सच में शर्मिंदा हूँ अपनी इस हरकत पर, सॉरी यार अब बैठो यार"

मैं:"क्या करूँ तुम्हारे साथ बैठ कर"

आरिफ़:"चलो और कुछ बात करते हैं"

मैं:"मुझे रात का खाना बनाना है, मुझे जाने दो"

आरिफ़:"बैठो तो सही, खाना बन जाएगा, इतने दिन बाद आई हो, अपने किस्से बताओ"

मैं:"देखो आरिफ़ मुझे अभी कोई बात नही करनी, तुमसे जो पूंछ रही हो उसके बारे में कुछ क्यूँ नही कहता, आख़िर तुम वजह तो बताओ क्या है, हर चीज़ का हल होता है, इस तरहा खामोश रहने से किसी परेशानी का हल नही निकल सकता"

अब मैं थोड़ा ठंडे लहजे मे बात कर रही थी. आरिफ़ ने अब मेरा हाथ छोड़ दिया था लेकिन अब वो बड़ी तकलीफ़ मे नज़र आ रहा था, कुछ देर वो खामोश बैठा फिर धीरे से बोला

आरिफ़:"कुछ परेशानियो के कुछ हल नही होते आरा और हर परेशानी बाँटी भी नही जा सकती"

मैं:"तुम कहो तो सही शायद इसका हल हो"

आआरिफ:"ये मैं तुमसे नही कह सकता, ये मुनासिब नही"

मैं:"मुझसे नही कह सकते, आख़िर क्यूँ? और अगर मुझसे नही कह सकता तो बाबा से या अम्मा से ही कह दो"

आरिफ़:"मैं उनसे भी कुछ नही कह सकता"

मैं:"तो किससे कह सकता है आरिफ़"

आरिफ़:"किसी से भी नही"

मैं:"उफ्फ आरिफ़ तुम मुझे बताओ तो सही, एक दोस्त की तरहा बताओ मैं वादा करती हूँ कि अगर मेरे पास इसका हल ना हुआ तो मैं किसी से इसका ज़िक्र नही करूँगी"

आरिफ़:"तुम दोस्त नही हो तुम मेरी बहेन हो और भाई बहेन मे ऐसी बात नही हुआ करती"

मैं:"उफ्फ फिर वही रट, देखो हम सब पढ़े लिखे लोग हैं,तुम कहो तो सही"

आरिफ़:"किस मूह से कहूँ और वो भी तुमसे"

मैं:"देखो आरिफ़ मैं जिस दौर से गुज़री हूँ तुम नही जानते हो,ये एक अज़ीयत थी जिसका अंदाज़ा कोई नही लगा सकता, अब मुझमे ताक़त है कि हर मुसीबत का हल निकल सकूँ"

आरिफ़:"मैं जानता हूँ लेकिन तुम इसरार ना करो, तुम्हारे पास मेरी परेशानी का हल नही है"

मैं:"एक बार कह के तो देखो"

आरिफ़:"कैसे कहु,वो ... वो ऐसा है कि मुझे लगता है,,,कि मैं ,,,,वो, उम्म्म "

मैं:"आरिफ़ घबराओ मत, डरो मत मैं तुम्हारे साथ हूँ भरोसा रखो"

आरिफ़:"मुझे लगता है कि मैं बाप नही बन सकता"

आरिफ़ ने एक बॉम्ब फोड़ दिया था, मुझे शॉक सा लगा, मुझे उम्मीद नही थी कि ये वजह होगी, मैं आरिफ़ की तरफ देख रही थी, समझ मे नही आ रहा था कि क्या कहा जाए, मुझे लगा कि मुझे ये सब नही पूछना चाहिए था, आरिफ़ की हालत मे होगा ये कहकर और वो भी अपनी सग़ी बहेन से. वो बहुत शर्मिंदा सा लग रहा था. लेकिन फिर मैने सोचा कि जब बात सामने आ ही गयी है तो उसका हौसना बढ़ाया जाए, मैने उसके कंधे पर हाथ रखा , अब वो मेरी तरफ नही देख रहा था.

मैं:"आरिफ़ शायद तुम ठीक कहते हो, मुझे इसरार नही करना चाहिए था, लेकिन क्या मैं जान सकती हूँ कि तुम्हे ऐसा क्यूँ लगता है"

आरिफ़:"अब तुम जान ही चुकी हो तो ये भी जान लो कि मैं किसी औरत को देख कर एग्ज़ाइटेड तो होता हूँ लेकिन इस एक्साइटेशन को कायम नही रख पाता"
मैं:"खुल कर बताओ, आरिफ़, शरमाने की ज़रूरत नही है"

आरिफ़:"मैं ज़्यादा देर तक अपने आप को रोक नही पाता और जल्दी फारिघ् हो जाता हूँ"

ना जाने क्यूँ मुझे अब इस बात मे इंटेरेस्ट आ रहा था, मेरे निपल्स सख़्त हो चुके थे और मेरी टाँगो के दरमियाँ सनसनाहट शुरू हो गयी थी.

मैं:"क्या तुम किसी लड़की के साथ सेक्स कर चुके हो"

आरिफ़ मेरे मूह से ये बात सुनकर दंग रह गया लेकिन मैने ऐसा ज़ाहिर किया कि जैसे मैने कोई नॉर्मल सी बात पूछी हो

आरिफ़:"हरगिज़ नही"

मैं:"तो तुम इतना यकीन से कैसे कह सकते हो कि तुम जल्दी फारिघ् हो जाते हो"

आरिफ़:""वो वो मैं,,,मुझे

मैं:"क्या तुम मास्टरबेट करते हो और इसी से अंदाज़ा लगा रहे हो"

आरिफ़:"हां, ना ना नही,, ये वो मेरा ,,, मैं"

मैं:"आरिफ़ रिलॅक्स, तुम घबराओ तो नही, इसमे शर्मिंदा होने की बात नही है, ये नॉर्मल है, अडल्ट्स ऐसा करते हैं, मैं भी शादी से पहले ऐसा करती थी"

मेरी ज़ुबान हमेशा ज़्यादा ही बोल जाती है, मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ लेकिन आरिफ़ को इस बात से थोड़ा शॉक सा लगा और वो थोड़ा सा और शर्मिंदा सा हो गया, उसको समझ मे नही आ रहा था कि क्या कहा जाए और वो मुझसे कोई आइ कॉंटॅक्ट भी नही कर रहा था.

मैने अब सोच लिया था कि आरिफ़ को थोड़ा कॉन्फिडेन्स दूँगी ताकि वो शर्मिंदा ना महसूस करे

मैं:"हां आरिफ़, मास्टरबेशन से ये अंदाज़ा लगाना ग़लत है, तुमको उल्टी सीधी बुक्स नही पढ़नी चाहिए, अपने बारे मे ऐसी ग़लत सोच मत रखो, तुम हेल्ती हो और ड्रग्स अल्कोहल वगेरा से दूर हो, तुममे कोई कमी नही है, अच्छा मैं तुमसे कुछ सवाल पूछना चाहती हूँ ,बिना डरे और शरमाये इसका जवाब देना"

आरिफ़:"त ..तह ठीक है"

मैं:"क्या तुमको एरेक्षन होता है"

आरिफ़:"हां"

मैं:"मास्टरबेशन के बाद तुम जब एजॅक्यूलेट करते हो तो पानी आता है"

आरिफ़:"हां"

मैं:"तुम मास्टरबेशन कब करते हो, मेरा मतलब कितनी दफ़ा"

आरिफ़:"कभी कभी एक वीक में, कभी एक महीने में"

मैं:"देखो ऐसा होता है कि जब आदमी ज़्यादा एग्ज़ाइटेड होता है और वो काफ़ी वीक्स के बाद मास्टरबेट करता है तो जो जल्दी एजॅक्यूलेट कर जाते है लेकिन इससे ये अंदाज़ा लगाना कि उसमे कोई कमी है ये बिल्कुल ग़लत है, तुम टेन्षन मत लो और अगर तुमको अभी भी टेन्षन है तो किसी अच्छे सेक्शोलोजिस्ट को दिखा लो"

आरिफ़:"लेकिन अगर मैं इतनी जल्दी फारिघ् हो जाउन्गा तो अपनी बीवी को कैसे सॅटिस्फाइ करूँगा"

मैं:"शुरआत मे लगभग सभी मर्द जो पहली बार सेक्स करते हैं वो जल्दी एजॅक्यूलेट हो जाते हैं, लेकिन फिर धीरे धीरे सब ठीक हो जाता है,तुम्हारी बातो से ऐसा लगता है कि तुमने सिर्फ़ कही सुनी बातो से सब अंदाज़ा लगाया है"

आरिफ़:"हो सकता है"

मैं:"आरिफ़ सेक्स का मतलब सिर्फ़ बीवी की वेजाइना को पेंट्रेट करना नही होता, तुमको कुछ अच्छी एजुकेशनल बुक्स पढ़नी चाहिए.अगर तुम कहो तो मैं तुमको दे दूं"

आरिफ़:"तुम्हारे पास हैं ऐसी बुक्स"

मैं:"हां क्यूँ नही, इनायत ने मुझे दी थीं, ये वो परवरटेड टाइप की पॉर्न मॅगज़ीन्स नही हैं, अच्छा रूको मैं अभी आती हूँ"

ये कह कर मैं नीचे चली आई और अपनी सूटकेस से एक बुक ले आई, ये एक कामसूत्र बेस्ड मॅगज़ीन थी, जिसमे सेक्स पेशंस और सेक्स से रिलेटेड कयि आर्टिकल्स थे, इसमे कई कोलोरेड पिक्चर्स भी थे, मैं ना जाने क्यूँ ये बुक उठा कर छत पर पहुँच गयी, मैने ये बुक उसके हाथ मे दी, कवर पेज पर ही एक टॉपलेस मॉडेल एक आदमी के ऊपर बैठी थी चेर पर. बुक को देख कर आरिफ़ के हाथ काँपने लगे

मैं:"डरो नही, तुम एक अडल्ट हो, इसमे कई आर्टिकल्स हैं, सेक्स से रिलेटेड. इसको पढ़ो समझे और फालतू के टेन्षन्स से दूर रहो,मुझे में भी कई ग़लत सोच थी लेकिन अब नही है, मैं अपने हज़्बेंड के साथ सेक्स एंजाय करती हूँ, तुम इसको पढ़ो अच्छे से और कोई सवाल हो तो मुझसे बिना हिचक पूंछ सकते हो"

ये कह कर मैं नीचे आ गयी.




कहानी जारी रहेगी


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यकीन होना मुश्किल है

UPDATE 17


रात को जब मैं बिस्तर पर लेटी तो मुझे कोई अफ़सोस नही था, इनायत के साथ मैने कई बार आरिफ़ का रोल प्ले वाला सेक्स किया था. मैं मन ही मन सोच रही थी कि शायद मैं आरिफ़ को सिड्यूस कर सकती हूँ.

अगली सुबह आरिफ़ मुझसे नज़र नही मिला रहा था. मेरी अम्मा ने मुझसे आरिफ़ के बारे मे पूछा तो मैने कहा कि आरिफ़ को मैं समझ रही हूँ, मेरी अम्मा और बाबा मेरी खाला के ससुराल जाना चाहते थे किसी शादी की अटेंड करने के लिए. उन्होने मुझसे भी आने को कहा लेकिन मैने इनकार कर दिया. फिर उन्होने आरिफ़ से कहा कि वो आज काम पर ना जाए और मेरे साथ मे रहे. मुझे लगा कि शायद इस दिन का मुझे अच्छा यूज़ करना चाहिए. मैं अम्मा और बाबा के जाने के बाद नहाने चली गयी और एक नाइटी पहेन कर बाहर आई. ये नाइटी थोड़ी ट्रॅन्स्परेंट थी, इसमे मेरा ब्रा और पैंटी सॉफ नज़र आती थी. आरिफ़ नाश्ता कर रहा था. मैं भी किचन से अपने लिए ब्रेक फास्ट ले आई.

मैं:"अफ ये आज इतनी गर्मी है वो भी सुबह सुबह इसलिए मैने थोड़ा रिलेक्स होने के लिए ये नाइटी पहेन ली"

आरिफ़ ने एक नज़र मेरी नाइटी पर डाली और वो फिर बिना कुछ कहे ब्रेकफास्ट करने लगा. जब वो ब्रेक फास्ट कर चुका तो मैं भी खा चुकी थी और फिर मैं सब बर्तन धोने किचन मे चली गयी. मैने जान बूझ कर अपनी नाइटी भिगो ली थी ताकि मेरी ब्रा सॉफ सॉफ नज़र आ सके, मुझे थोड़े परवरटेड सा महसूस हो रहा था लेकिन ना जाने क्यूँ मैं कंट्रोल खो बैठी थी. जब मैं किचिन से आई तो आरिफ़ टीवी देख रहा था, मैं उसके सामने ही सोफे पर बैठ गयी और उसको सिड्यूस करने का प्लान बनाने लगी.

मैं:"आआरिफ तुमने वो बुक पढ़ी"

आरिफ़:"हां"

मैं:"तो तुम्हारी कुछ ग़लत फहमी दूर हुई"

आरिफ़:"हां, थॅंक्स"

मैं:"अर्रे थॅंक्स किस बात का, तुम जब चाहो मुझसे हेल्प ले सकते हो"

ये कह कर मैने अपनी टाँगो को थोड़ा सा खोला ताकि वो मेरी थाइस को देख सके, उसकी नज़ारे मेरी थाइस पर ही थीं. वो छुप छुप कर देख रहा था और मैं भी उससे आइ कॉंटॅक्ट नही कर रही थी ताकि उसको मौका मिले मुझे देखने का

आरिफ़:"मैं कुछ पूछना चाहता था"

मैं:"हां पूछो बेजीझक"

आरिफ़:"ये ओरल सेक्स क्या होता है"

मैं:"ओरल सेक्स का मल्तब है कि औरत आदमी का पेनिस मूह मे लेकर उसको एजॅक्यूलेट करवाए या मर्द औरत की वेजाइना को चाट कर उसको फारिघ् करे, इनायत और मैं अक्सर ऐसा करते हैं"

आरिफ़:"अच्छा, तो तुम लोगो को ये गंदा नही लगता"

मैं:"तुमने किसी लड़की से साथ सेक्स नही किया ना इसलिए तुम्हे अंदाज़ा नही है कि सेक्स के टाइम पर कुछ गंदा नही लगता, और वैसे भी हम लोग अपने प्राइवेट पार्ट्स सॉफ रखते हैं, मेरी वेजाइना पर एक भी बाल नही रहता और मैं इसको हमेशा सॉफ रखती हूँ"

आरिफ़:"अच्छा"

मैं:"और कोई सवाल"

आरिफ़:"मैने पढ़ा है कि औरत को एजॅक्यूलेट होने मे टाइम लगता है और आदमी जल्दी एजॅक्यूलेट कर देता है"

मैं:"हां, इसलिए औरत को धीरे धीरे सिड्यूस करना चाहिए "

आरिफ़:"मतलब"

मैं:"पहले उसका मूड ठीक किया जाए, माहौल को रोमॅंटिक बनाया जाए, उसका किस किया जाए, फिर धीरे धीरे उसके बूब्स को या क्लाइटॉरिस को टिकल किया जाए या उसकी नेवेल पर किस किया जाए"

आरीरफ़:"ये कैसे पता लगेगा कि औरत को क्या अच्छा लगता है"

मैं:"ये तो हर औरत का अलग अलग मूड होता है, जैसे मुझे ये अच्छा लगता है कि पहले मेरी क्लाइटॉरिस को टिकल किया जाए"

आरिफ़:"क्लाइटॉरिस"

मैं:"उफ्फ यार, वेजाइना के टॉप पर एक बीन शेप्ड सी होती है, यहाँ पर ज़्यादा तर औरतो को मॅक्सिमॅम सेन्सेशन होती है"

ये बात मैने अपनी नाइटी को हटा कर, अपनी पैंटी के ऊपर से इशारा कर के उसको दिखाई, अब मैं उसकी आँखो मे नशा सा देख सकती थी, वो सिड्यूस हो चुका था उसकी आवाज़ जैसे उसके गले मे अटक रही थी.

आरिफ़:"मुझे कैसे मालूम हो, मैने किसी की देखी थोड़े ही है"

मैं:"अच्छा बाबा लेकिन साइन्स मे तो पढ़ा ही होगा ना"

आरिफ़:"कौन ध्यान देता है इतना"

मैं:"अच्छा जो मैने मॅगज़ीन दी थी उसमे तो हैं ना काफ़ी पिक्चर्स"

आरिफ:"लेकिन उसमे लेबल कहाँ किया है"

मैं:"अच्छा तुम लेकर तो आओ मैं दिखाती हूँ तुमको"

वो झट से वही मॅगिज़्न्स ले आया. मैने इसमे हर पिक्चर को देखा लेकिन कहीं पर भी वेजाइना का क्लोज़ अप नही था. एक पिक्चर मे पूरी न्यूड मॉडेल थी लेकिन इसमे इतना क्लियर दिखता नही था फिर भी मैने उसको पास बुला कर दिखाया

मैं:"ये देखो, ये जो इसकी वेजाइना है ना, इसके टॉप पर ध्यान से देखो तुमको नज़र आएगी"

आरिफ़:"हां थोड़ी सी नज़र आती है, इन अँग्रेज़ लड़कियो की वेजाइना इतनी लाल होती है, इंडियन्स लड़कियो की भी ऐसी ही होती है क्या"

मैं:"सबकी तो मैं नही कह सकती लेकिन मेरी लो पिंक है"

आरिफ़:"अच्छा"

मैं:"क्या तुमने आज तक किसी लड़की को न्यूड नही देखा?"

आरिफ:" हां ,किसी को नही देखा"

मैं:"कोई बात नही, शादी के बाद देख लेना"

आरिफ़:"एक और बात पूछनी है"

मैं:"हां पूछो"

आरिफ़:"क्या अभी भी तुम मास्टरबेट करती हो"

मैं:"हां क्यूँ नही, आज सुबह ही किया मैने, क्यूँ"

आरिफ़:"नही वो आज बाथरूम से आवाज़ आ रही थी"

मैं:"तो तुम बाथरूम से कान लगाए थे, क्यूँ नॉटी बॉय"

आरिफ़:"नही ऐसा नही है, मैं बाहर ब्रश कर रहा था तो मुझे तुम्हारी आवाज़ आई"

मैं:"क्या करूँ अब कंट्रोल नही हुआ था, इसलिए कर लिया, क्यूँ तुम नही करते क्या"

आरिफ़:"कभी कभी"

मैं:"कल रात को तो पक्का किया होगा, इतनी न्यूड मॉडेल्स को देख कर"

आरिफ़:"हां कल तो कयि बार किया"

मैं:"अच्छा तो तुमको एक औरत मे क्या अच्छा लगता है"

आआरिफ:"सभी कुछ लेकिन बड़ी बड़े बूब्स और बटक्स ज़्यादा अच्छे लगते हैं"

मैं:"हां इनायत को भी यही अच्छा लगता है"

आरिफ़:"तुम्हारे हैं भी काफ़ी बड़े"

मैं:"ह्म्‍म्म........ मेरे बूब्स और बटक्स कब देखे?"

आरिफ़:"नही देखे नही लेकिन अंदाज़ा लगाया"

मैं:"अंदाज़ा ग़लत भी तो हो सकता है"

आरिफ़:"हां हो सकता है"

मैंने आरिफ़ की टाँगो के बीच मे देखा तो उसका खड़ा हुआ लंड नज़र आ रहा था, मैने उसकी तरफ पॉइंट किया तो वो शर्मा गया और छुपाने लगा, मुझे हसी आ गयी और मैं कहकहा लगा कर हंस पड़ी.

मैं:"उफ्फ अब तुम्हे फिर मास्टरबेट करना पड़ेगा"

आरिफ़:"ये बुरा है हम मर्दो के साथ में कि हमारा एग्ज़ाइट्मेंट नज़र आ ही जाता है"

मैं:"क्यूँ औरतो का नज़र नही आता क्या"

आरिफ़:"औरतो का कैसे नज़र आता है"

मैं:"उनकी वेजाइना गीली हो जाती है और उनके निपल कड़क हो जाते हैं"

आरिफ़:"लेकिन ये सब तो कपड़ो के नीचे होते हैं ना, लेकिन तुम्हारे निपल्स भी कड़क नज़र आ रहे हैं"

मैं अपने ब्रा की तरफ देखा तो सच मे मेरे निपल्स नज़र आ रहे थे

मैं:"क्या नज़र है तुम्हारी, लगता है कि मुझे भी अब मास्टरबेट करना पड़ेगा, तुम्हारी तरहा"

आरिफ़:"तुमको कितना टाइम लगता है मास्टरबेट करने मे"

मैं:"डिपेंड करता है, इमॅजिन करके मास्टरबेट करने मे टाइम लगता है लेकिन कोई पॉर्न मॅगज़ीन पढ़ कर या वीडियो देख कर करने मे कम टाइम लगता है"

आरिफ़:"तो ये लो पहले तुम ये मॅगज़ीन देख कर लो बाद में मैं भी कर लूँगा"

मैं:"क्यूँ कोई पॉर्न वीडियो नही है तुम्हारे पास, तुम्हारे मोबाइल में"

आरिफ़:"नही "

मैं:"अच्छा लाइव देखना चाहोगे क्या"

आरिफ़:"वो कैसे"

मैं:"तुम मुझे लाइव दिखाओ और मैं तुम्हे"

आरिफ़:"क्या कह रही हो, ये कैसे हो सकता है"

मैं:"आरे भाई हम दोनो अडल्ट्स हैं क्यूँ नही हो सकता"

आरिफ़:"लेकिन भाई बहेन भी तो हैं"

मैं:"अच्छा ठीक है अगर तुम कंफर्टबल नही हो तो जाने दो"

आरिफ़:"क्या तुम कंफर्टबल हो मेरे सामने"

मैं:"तुम कब से मुझे देख ही तो रहे हो"

आरिफ़:"वो तो कंट्रोल नही हुआ"

मैं:"तो ठीक है देख लो मुझे"

ये कह कर मैने अपनी नाइटी उतार दी और उसकी तरफ देखने लगी. वो एकदम से भौचक्का रह गया और मुझे घूर कर देखने लगा. मैने उसको चिडाने के लिए आँख मार दी तो वो जैसे होश मे आया. उसकी सूरत देख कर मुझे काफ़ी मज़ा आया. मैं खिल खिला कर हंस पड़ी.

मैं:"अभी कुछ देखा नही हो ये हाल है, जब देख लोगे तो पता नही क्या करोगे, अच्छा तुम भी तो कुछ दिखाओ, चलो सीधे सीधे मुझे अपने पेनिस दिखाओ.

आरिफ़:"नही मुझे शरम आती है"

मैं:"ये ठीक है, मुझे देखने में नही आती लेकिन अपना दिखाने मे शर्म आ रही है"

आरिफ़ ने अब अपनी टी शर्ट और पाजामा उतार दिया था अब वो सिर्फ़ अंडरवेर पहने था.

मैं:"गुड अच्छा एरेक्षन है"

ये कहकर मैने अपनी ब्रा उतार दी, मेरे नंगे बूब्स को देख कर जैसे वो पागल ही हो गया, उसका मूह सूख गया था जैसे और वो मेरे गोरे गोरे बड़े बड़े बूब्स को देख कर एकदम से पत्थर की मूरत सा बन गया था. मैं जब आवाज़ दी तो वो होश मे आया. मैं उसके एकदम पास मे खड़ी हो गयी.

मैं:"होश उड़ गये क्या हाहहहाहाहा"

आरिफ़:"तुम कितनी खूबसूरत हो,उफ्फ ये कितने हसीन हैं"

मैं:"अच्छा हसीन नज़ारा तुमने देखा ही कहाँ है"

ये कहकर मैने झट से अपनी पैंटी भी उतार दी, अब मैं बिल्कुल नंगी खड़ी थी वो भी अपने सगे भाई के सामने. उसकी नज़रे अब मेरी चूत पर थी, वो एक दम सन्न सा पड़ गया था और उसकी साँसें उपर नीचे हो रही थी. मैने अपने हाथो से उसका अंडरवेर नीचे खिसका दिया. उसके लंड का साइज़ देख कर मैं दंग रह गयी, ये शौकत से लंबा और इनायत से भी चौड़ा था.


कहानी जारी रहेगी


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aamirhydkhan

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UPDATE 18


मैं:"उफ्फ आरिफ़ ये क्या है, इसको लंड कैसे कहा जा सकता है, ये तो किसी गधे के लंड जैसा है, इसको पा कर तो तुम्हारी बीवी की किस्मत ही बदल जाएगी"

आरिफ़:"तुम कितनी हसीन हो, क्या मैं तुमको छू सकता हूँ"

मैं:"छू क्या तुम चाहो तो मुझे चोद भी सकते हो"

आरिफ़:"किसने सिखाए तुमको ये सब लफ्ज़"

मैं:"ये सब जाने दो, पहले मेरे निपल्स चूसो"

आरिफ़ ने पहले मेरे बूब्स को खूब दबाया और फिर मेरे निपल्स को चूसने लगा ,मुझे ऐसा लगा कि मुझे जन्नत मिल गयी.
मैं:"उफफफ्फ़ हाआआआआआआआअ, सोइईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई, आरिफ़ और चूसो, ना जाने कब से मैं तुम्हारे लिए बैठी हूँ हााआययययययययययी उफफफफफफफफफ्फ़ मर गयी मैं उफफफफफ्फ़"

वो पागलो की तरहा मेरे बूब्स चूस रहा था और मैं उसका लंबा लंड हिला रही थी वो मेरे हाथ लगते ही झाड़ गया.

आरिफ़:"देखा मैं इतना जल्दी झाड़ गया"

मैं:"घबराओ नही यार, तुम्हारे सामने पहली बार कोई नंगी लड़की थी इसलिए तुम झाड़ गये, ज़रा चेर पर बैठो, अभी तुमको फिर सख़्त करती हूँ"

जैसे ही वो चेर पर बैठा मैने उसका लंड मूह मे ले लिया और कुछ देर में उसका लंड फिर सख़्त हो गया, अब मैं लगातार उसका चूसे जा रही थी और वो अहह उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ की आवाज़ निकाल रहा था, वो मेरे बाल सहला रहा था, इस बार काफ़ी देरी मे वो झाड़ा, मैने उसके पानी की आखरी बूँद भी निगल ली. अब मैं और वो खड़े होकर एक दूसरे को किस कर रहे थे. अब मैं सोफे पर बैठ गयी और उसको अपनी चूत चाटने का इशारा किया वो बिना देर के मेरी टाँगो के बीच मे आ गया. मैने अपने पैर उसके खंधे पर रख दिए. वो एक भूके शेर की तरहा मेरी चूत चाट रहा था. अपने ही घर मे अपनी सगे भाई के आगे मैं अपनी टांगे फैला कर उससे अपनी चूत चटवा रही थी. मैं अब मज़े की सारी हद पार कर चुकी थी. आज काफ़ी दिनो बाद मुझे बेन्तेहा मज़ा आया. मैने झड़ने के बाद उसके सर को कस कर काफ़ी देर तक पकड़े रखा.
अब वो मेरे बगल मे बैठ कर मुझे अपनी बाहो मे जकड़े था.

कुछ देर इसी तरहा बैठने के बाद मैने उसको कहा कि वो मुझे चोदे.उसने पूछा कि कहीं मैं प्रेग्नेंट ना हो जाउ, लेकिन मैने उसको कहा कि मैं पिल्स पर हूँ.

मैं उसको बरामदे से अंदर कमरे मे ले आई थी.

मैं:"आरिफ़ आज तुम मेरी चूत मार कर अपनी सुहागरात की प्रेक्टिस करो"

आरिफ़:"मुझे यकीन नही होता कि मैं आज तुम्हारी चूत मार सकता हूँ"

मैं:"मेरे भाई,चोदो मुझे आज जी भर के"

मैं अब बिस्तर पर पीठ के बल लेटी थी और अपनी टाँगें फैला कर मैने उसको वेलकम किया. आरिफ़ का ये फर्स्ट टाइम था लेकिन जैसी ही उसने अपना लंड मेरी चूत से टच किया तो जैसे मेरे पूरे बदन मे आग लग गयी, उसके लंड की विड्त से ही मुझे अंदाज़ा हो गया कि मैं आज हो सकता है बर्दाश्त ना कर पाऊ.

आरिफ़ ने मेरी नज़रो मे देखा और इशारा पाकर एक झटके मे अंदर डाल दिया मेरी मूह से चीख निकल पड़ी.

मैं:"हाअयययययययययययययी मैं मर गाइिईईई उईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई अहह"

मेरी चीख सुनते ही आरिफ़ मे अपना लंड निकाल लिया और मेरी तरफ देखने लगा.

मैं:"निकाला क्यूना उफ़फ्फ़ धीरे से डालो धीरे धीरे तुम तो जान ही ले लोगे, वो तो मैं दो आदमियो का लंड अपनी चूत मे ले चुकी हूँ इसलिए मैं बर्दाश्त कर गयी"

आरिफ़:"दो आदमियो का लंड"

मैं:"अर्रे मेरा मतलब है, एक एक करके, पहले शौकत ने चोदा और फिर इनायत ने. लेकिन तुम्हारा लंड तो सबसे चौड़ा और लंबा है, इसलिए मेरे भाई धीरे धीरे चोदो अपनी बहना को"

आरिफ़:"ठीक है दर्द हो तो कह देना"

मैं:"साले चूतिए, इसी दर्द के लिए तो औरत तरसती है और तू कहता है कि बता देना, बहेन्चोद साला हहाहहाहा"

मेरे मूह से गालिया सुन कर आरिफ़ को थोड़ा बुरा लगा लेकिन मैने सिचुटेशन संभाल ली.

मैं:"यार तू बात ही ऐसी कहता है, अब तू भी ये शराफ़त ले लिबास उतार दे और मुझे मेरे ही अंदाज़ मे बात का जवाब दे, समझा"

आरिफ़:"हां साली कुतिया ये ले मेरा लॉडा अपनी चूत मे"

मैं:"हाअ, उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ सीईईईईईईईईईईईईईईईईईई अहह ऐसे ही कर धीरे धीरे"

आरिफ़:"देख तुझे चोद चोद कर कैसे मैं तेरी चूत फाड़ देता हूँ"

मैं:"हां चोद ले बेटा, इसी बहाने कम से कम तुझमे कॉन्फिडेन्स तो आ गया, वरना साला शादी के नाम से भाग रहा था, मदर्चोद"

आरिफ़:"और तू भी तो साली बाथरूम में उंगली कर के मुझे उकसा रही थी, कुतिया आज अपने भाई के भी केला खा ले साली रंडी"


मैं:"ह्म्‍म्म साले चोद आज जी भर के और बना ले मुझे अपनी रखैल, साला मायके मे भी तो लंड की फेसिलिटी मिलनी चाहिए हाहाहाहहहः"

कुछ देर बाद आरिफ़ झाड़ गया था और हान्फते हुए मुझ पर गिर गया मैने भी उसको अपनी बाहों मे लपेट लिया.

मैं:"क्यूँ बेटा आरिफ़, अब तो काफ़ी देर मे झड़े, क्यूँ आ गया ना कॉन्फिडेन्स शादी का"

आरिफ़:"हां थॅंक्स, अगर तुम्हारी चूत ना मिलती तो कॉन्फिडेन्स कभी ना आता"

मैं:"तो कर लो शादी अब किस चीज़ की टेन्षन है"

आरिफ़:"लेकिन तुम्हारे जैसे बीवी कहाँ मिलेगी"

मैं:"मेरी जेठानी है ना तबस्सुम, उसकी सग़ी बहेन है, एक दम पटाखा है वो, तुमने देखा नही है उसको"

आरिफ़:"तुमको कैसे पता"

मैं:"तबस्सुम को नहाते हुए देखा है और उसकी सग़ी बहेन हू बहू उसकी फोटो कॉपी है"

आरिफ़:"तो बात चलाओ ना मेरी भी"

मैं:"ठीक है, अच्छा अब एक काम करो, मुझे डॉगी स्टाइल मे चोदो"

आरिफ़:"ठीक है तो पलट जाओ ज़रा"

हम शाम तक कई बार यही खेल खेलते रहे अब फिर जब अम्मा और बाबा लौट कर आए तो शाम को मैने अम्मा से कह दिया कि आरिफ़ शादी के लिए राज़ी है. घर मे ख़ुसी की लहेर दौड़ गयी लेकिन किसी को ये मालूम ना था कि इसके लिए मैने अपनी टाँगें अपने सगे भाई के आगे खोली हैं.


अगली सुबह इनायत का फोन आया. उस वक़्त मैं ब्रेकफास्ट कर रही थी. मैने सोचा कि यहाँ अम्मा के सामने ये सब बातें करना ठीक नही होगा इसलिए मैं छत पर चली आई.

इनायत:"कैसी हो मेरी जान"

मैं:"जान तो तुम्हारी वो ताबू है, मैं तो बस तुम्हारा मकसद पूरा करने के लिए एक ज़रिया थी इनायत"

इनायत:"अच्छा, तो ये बात है, इसलिए मेडम इतने दिनो से नाराज़ सी लग रही थीं"

मैं:"इनायत ये कोई छोटी बात नही है, तुम मुझे क्या बेवकूफ़ समझते हो, तुमसे अच्छा तो तुम्हारा भाई शौकत है जो कुछ है वो सामने है, लेकिन तुमने तो मेरी पीठ मे छुरा भोंका है"

इनायत:"मैं जानता हूँ कि मेरा तुमसे ये बात छिपाना बहोत ग़लत था लेकिन क्या करूँ मेरी जान ये बात मेरे दिमाग़ से बिल्कुल ही निकल गयी थी"

मैं:"झूट एकदम झूट"

इनायत:"मैं सच कहता हूँ, तुम्हारे प्यार ने मुझे ये बिल्कुल भुला दिया था कि मैं किसी और लड़की से कभी क़ुरबत रखता था"

मैं:"तुम सब मर्द एक से हो, तुमको सिर्फ़ औरत की टाँगो के दरमियाँ वाली चीज़ से मोहब्बत होती है बस"

इनायत:"मेरी मोहब्बत को गाली ना दो"

मैं:"गाली तो तुमने दी है मेरे भरोसे और उम्मीदो को"

इनायत:"तुम घर पर आ जाओ, मिलकर बात करेंगे, फोन पर इस तरहा बात करना ठीक ना होगा"

मैं:"मेरा जी नही है घर आने को"

इनायत:"तो ठीक है जब जी चाहे आ जाओ, मैं इंतेज़ार कर रहा हूँ"

मैं:"ठीक है, चलो बाइ"

ये कहकर मैने फोन काट दिया. अभी मैं नीचे ही जा रही थी कि फिर फोन आया लेकिन इस बार शौकत का था. मैने फोन रिसीव किया.

शौकत:"हेलो आरा"

मैं:"हां बोलिए"

शौकत:"देखो बुरा मत मांन_ना, मैं अभी इनायत के साथ मे ही हूँ और मैने तुम दोनो की सारी बात सुन ली है"

मैं:"अच्छा तो मिया बीवी की बात को सबके सामने ज़ाहिर करने मे इनायत साहब की शर्म नही आई"

शौकत:"आरा अब हम लोगो में शर्म कैसी, तुम और हमसब दोस्त हैं और दोस्तो में क्या छिपता है"

मैं:"देखो शौकत मुझे अभी भी इनायत से ही मोहब्बत है और अभी भी मुझसे थोड़ी प्राइवसी चाहिए, तुम सब लोगो को हमारी प्रोवसी की रेस्पेक्ट करनी ही होगी वरना इन सब चीज़ो को

मैं खुद ही ख़तम कर दूँगी"

शौकत:"देखो मैं जानता हूँ, लेकिन इनायत बिल्कुल बेक़ुसूर है, वो तो चाहता था कि ताबू कभी इस घर की बहू ही ना बने लेकिन बार बार ताबू के इसरार करने पर वो खामोश हो गया"

मैं:"बात इतनी सीधी नहीं है, बात है भरोसे की और इनायत ने मेरा भरोसा तोड़ दिया है"

शौकत:"देखो आरा बात को समझो, ये बात मुझे भी तकलीफ़ दे रही थी कि मुझे अंजान रखा गया लेकिन सच तो ये है कि ताबू एंजाय्मेंट के लिए चाहे इनायत से साथ कुछ पल बिता रही हो लेकिन अभी भी वो सिर्फ़ मुझसे ही प्यार करती है और तुम भी इनायत से ही प्यार करती हो"

मैं:"मैं फिलहाल इस टॉपिक पर कोई बात नही करना चाहती , मैं बाद मे बात करूँगी अच्छा बाइ"

ये कहकर मैं नीचे आ गयी. दो पहर को आरिफ़ का फोन आया उसने मुझसे कहा कि वो आज लंच पर घर नही आ पाएगा तो मैं उसका लंच ले कर शॉप पा आ जाउ. मैने अम्मा से कहा तो अम्मा ने वापिस आरिफ़ को फोन किया और उससे घर आने को कहा. अम्मा ने कहा कि वो खाला के यहाँ जा रही है इसलिए घर पर कोई होना चाहिए. आरिफ़ कुछ देर बाद घर पर आ चुका था. अम्मा खाला के यहाँ निकल गयी. मैं आरिफ़ के लिए खाना निकालने किचन में गयी ही थी कि आरिफ़ किचन मे आ गया और उसने पीछे से मेरे चुतडो पर अपना खड़ा हुआ लंड टिका दिया, मैने चौंक कर पीछे देखा तो वो मुस्कुरा रहा था.

मैं:"अच्छा जनाब को इतना कॉन्फिडेन्स आ गया है कि अब उनका खड़ा ही रहता है"

आरिफ़:"हां मेरी प्यारी बहना आपकी चूत ने इसको ऐसा जाम पिलाया है कि ये अब खड़ा ही रहता है"

मैं:"तो तुम आज लंच के लिए घर क्यूँ नही आ रहे थे?"

आआरिफ:"यहाँ मैं तुम्हे कैसे चोद सकता हूँ"

अब मैं आरिफ़ के लिए खाना निकाल चुकी थी और मैने उससे कहा कि वो खाना खा ले लेकिन उसने कहा कि वो एक बार मुझे चोदना चाहता है.

मैं:"उफ्फ आरिफ़ अभी नही, मुझे बहोत ज़ोर से पेसाब लगी है, खाना भी ठंडा हो जाएगा"

इतना सुनते ही आरिफ़ ने मेरी सलवार का नारा पकड़ कर खींच दिया और मेरी सलवार झट से नीचे गिर गयी. मैं हैरान थी उसकी ये हरकत देख कर, फिर उसने मुझे गोद मे उठाया और एक हाथ से मेरी सलवार उतार दी. अब मैं सिर्फ़ झम्पर मे थी. वो मुझे आँगन मे ले आया है, हॅंड पंप के पास लाकर मुझे बिठा दिया और मुझे वहीं पेशाब करने को कहा. वो अब मेरी चूत को ध्यान से देख रहा था, मैने जैसे ही मूतना शुरू किया उसने अपने चेहरा मेरी चूत के सामने रख दिया जिससे पेशाब की बूँदें उसके चेहरे से टकरा कर वापस मेरी ओर आने लगी. मुझे इस बात का बिकुल अंदाज़ा ना था लेकिन मुझे उसके चेहरे पर पेशाब करना बड़ा अच्छा लग रहा था. बीच बीच में वो अपना मूह खोल कर मेरे पेशाब के कतरे पी भी रहा था. जब मैं पेशाब कर चुकी तो वो मुझे फिर बरामदे मे पड़ी चारपाई पर बिठा दिया और मेरे लिप्स को किस करना लगा. मैं अब अपने पेशाब के कतरो का ज़ायक़ा ले रही थी.इसमे बड़ा मज़ा आ रहा था. आरिफ़ ने मेरा टॉप भी उतार दिया था. मैने ब्रा नही पहनी थी जिसकी वजह से मेरा सीना अब सामने आ गया था, वो कुछ देर तक मेरे सीने को ही चूस्ता रहा, अब मैं भी जोश में आ गयी थी.

मैं अब दीवार की तरफ मूह करके झुक गयी और आरिफ़ को पीछे से आकर मुझे चोदने का इशारा किया लेकिन आरिफ़ के कुछ और ही प्लान थे. वो सोफे पर बैठ गया और मुझसे इशारा किया कि मैं उसकी गोद मे उसकी तरफ पीठ करके बैठू ताकि वो मुझे चोद सके. मैने ऐसा ही किया अब मैं उसकी गोद मे बैठी ही थी और एक दो बार ही उपर नीचे गयी थी कि फोन की रिंग बजी जिससे आरिफ़ घबरा सा गया मैने उसको फोन उठाने को कहा. वो फोन लेकर आया ये इनायत का फोन था. मैने आँखो से आरिफ़ को इशारा किया कि वो सोफे पर बैठ जाए. वो बैठ गया और मैं फिर से उसके लंड पर बैठ गयी. वो हिल नही रहा था तो मैने फिर उसको इशारा किया कि वो मुझे चोदना शुरू करे. वो कन्फ्यूज़ लग रहा था लेकिन उसने मुझे नीचे से चोदना शुरू कर दिया. जैसे ही मैने फोन रिसीव किया तो आरिफ़ एक बार फिर रुक गया, इस बार मैं बोल ही पड़ी.

मैं:"आरिफ़ तुम रुक क्यूँ गये, करते रहो" ये कहकर मैने फोन को स्पीकर पर डाल दिया


इनायत:"हेलो ठीक हो, क्या कर रही हो"

मैं:"कुछ नही, आरिफ़ के साथ काम कर रही थी और कुछ नही, अच्छा सुनो तुम्हे मालूम है ना वो ताबू की छोटी बहेन शबनम"

इनायत:"हां क्यूँ"

मैं:"वो उम्म्म्म मैं चा ,,आहह रही,.... थी कि उसकी शादी उफफफफफफफफफफफफ्फ़ मेरे भा भा भाई से हो जाए"

इनायत:"तो ठीक हैं मैं कह दूँगा ताबू से कि तुम्हारे घर वाले आरिफ़ का रिश्ता ले कर आना चाहते हैं उसके घर"

मैं:"उम्म्म्मम हां अयाया...."

इनायत:"बड़ी हाँफ रही हो सच बताओ क्या हो रहा है वहाँ पर"

मैं:"आरिफ़ के लंड पर बैठी हूँ, इसलिए ऐसी आवाज़ आ रही है"

मैने जैसे ही ऐसा कहा तो आरिफ़ की गांद फॅट गयी और इनायत ज़ोर से बोल पड़ा.

इनायत:"क्या, क्या कह रही हो तुम"

मैं:"हां मेरी जान हाहहहा, तुम्हारे साथ मैने कितनी बार आरिफ़ को सोचकर चुदवाया था, तो मैने सोचा क्यूँ ना सच मे चुदवा लूँ, वो शादी करना नही चाहता था, उसको लगता था कि वो नामार्द है लेकिन मैने उसको थोड़ी ट्रैनिंग देने के लिए उससे चुदवा लिया, समझे"

इनायत:"क्या तुम सच कर रही हो,?"

मैं:"यकीन नही आता तो तुम्हारे सामने उसका लंड अपनी चूत मे ले लूँगी"

इनायत:"मुझे अब भी यकीन नही है"

मैं कुछ और कहना चाहती थी कि आरिफ़ ने फोन मुझसे छीन कर कट कर दिया और मुझपर उबल पड़ा.

आरिफ़:"क्या तुम्हारा दिमाग़ खराब है"

मैं:"आरिफ़ , इनायत और मैं इस बारे मे कई बार डिसकस कर चुके हैं, मैने उससे कई बार कहा है कि मैं अपने भाई से सेक्स करना चाहती हूँ और उसको इस बात से कोई एतराज़ नही है"

आरिफ़:"क्या, ऐसा कैसे हो सकता है"

मैं:"इनायत मुझसे प्यार करता है, सिर्फ़ मेरे जिस्म से नही, उसने मुझे पूरी आज़ादी दे रखी है "

आरिफ़:"मुझे यकीन नही होता"

मैं:"अच्छा जो काम बीच मे छोड़ा है उसको पूरा करो , अम्मा आती ही होंगी"

उस दोपहर को मैं झाड़ ही पाई थी कि डोर बेल बज गयी. मैने झट से कपड़े पहने और आरिफ़ को दरवाज़ा खोलने को कहा.


कहानी जारी रहेगी


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aamirhydkhan

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यकीन होना मुश्किल है

UPDATE 19

आरिफ़ के साथ मेरा ये सिलसिला लगातार चलता रहा और आख़िर कार एक दिन अचानक इनायत मुझे लेने मेरे घर आ धमका. आरिफ़ ने उससे आँख चुराई और इसकी वजह शायद आप जानते हैं. मैं आख़िर कार वापस अपने ससुराल आ चुकी थी. आए हुए अभी मुझे दो ही दिन ही थे कि रात के खाने के बाद मेरी सास ने मुझे अपने पास बुलाया. इस वक़्त मेरी ननद साना भी वहाँ पर मौजूद थी.

मेरी सास अब पहले की तरहा तल्ख़ नही बल्कि काफ़ी नर्म पड़ चुकी थी शायद इस की वजह शौकत का खुश रहना था. कोई मा भला कैसे खुश रह सकती है अगर उसकी औलाद दुखी हो और ये सुख दुख हर मा और औलाद के बीच मे होता है चाहे इंसान हो या जानवर. मैं चुप चाप आकर उनके तख्त पर बैठ गयी. वो हमेशा इस बरामदे मे पड़े हुए तख्त पर बैठा करती थीं. ये घर पुराने तौर से बना हुया था इसमे कोई कमरा डाइनिंग के लिए नहीं था बल्कि किचन के नज़दीक पड़े बरामदे में ही एक बड़ा सा पुराना टेबल था जिसमे करीब 20 कुर्सिया आ सकती थीं और इस टेबल के पास ही उनका ये तख्त था. वो अक्सर खाना खाने के बाद पान खाया करती और कभी कभी वो बिना तंबाखू का पान मुझे भी दे दिया करती. ये शायद उनका मोहब्बत जतलाने का तरीका था. साना तो बिना पूछे ही पान लगा लिया करती थी खैर वो उनकी बेटी थी, बेटियो के लिए मा और बाप के क़ानून अलग होते हैं और बहू के लिए अलग. उन्होने इस मर्तबे भी मेरे लिए पान लगा कर दे दिया और मुझसे कहने लगी.

सास:"आरा अब मैं सोचती हूँ कि साना के हाथ भी पीले कर दूं, उसके लिए कई रिश्ते आते रहे हैं लेकिन ये कम्बख़्त अपनी पढ़ाई का बहाना कर दिया करती थी, अब इसकी पढ़ी पूरी हुई है और मैं चाहती हूँ कि उसके लिए कोई अच्छा सा घर तलाश करूँ"

साना:"अम्मी, ये क्या कह रही हो? मैने आप से कहा था ना कि मुझे आगे भी पढ़ना है, आप भी ना हमेशा भूल जाती हैं"

सास:"बस बस रहने दे, कितना पढ़ेगी और क्या करेगी तू आगे पढ़ कर, यही रोटी और चूल्हा तो देखना है ना आगे जाकर, बहुत हुई तेरी पढ़ाई, और मा बाप क्या तेरे सर पर सवार रहेंगे हमेशा, तेरे भाइयो का क्या भरोसा कल को हमारे मरने के बाद तुझे इस घर की नौकरानी बना ले तो?"

मुझे ये बात बड़ी बुरी लगी लेकिन मैने खामोशी ही बेहतर समझी

साना:"उफ्फ अम्मी आप ऐसी बातें क्यूँ करती हैं?"

सास:"तेरी मा हूँ इसलिए कह रही हूँ, तू नहीं जानती कि मा बाप के अलावा अपने बच्चो के बारे मे कोई इतना नहीं सोचता"

मैं:"जी सही कहा आपने"

सास:"आरा, तुम्हारी नज़र में है कोई इज़्ज़त दार घर, लड़का शरीफ, पढ़ा लिखा और खुद मुख़्तार होना चाहिए"

मैं:"जी अभी तो ज़हन में नही आ रहा लेकिन सोच कर बताउन्गि"

सास:"तुम्हारा भाई भी सुना है शादी करना चाहता है, क्यूँ?"

मैं:"मेरा भाई, जी हां वो ,,,पर, वो "

सास:"क्यूँ कोई और लड़की पसंद कर ली है तुम्हारे मा बाप ने?"

मैं:"नहीं ऐसा तो नहीं है लेकिन मुझे उनसे पूछना पड़ेगा"

सास:"तो ठीक है फोन मिला लो अभी, मैं खुद जी पूंछ लेती हूँ उन लोगो से"

मैं:"अभी तो सब सो गये होंगे, सुबह मैं ही फोन लगा दूँगी आप के लिए"

सास:"देखो मुझे तो ऐसा घर चाहिए जहाँ एक लौता लड़का हो, अच्छा इज़्ज़त वाला खानदान हो और लड़का सेहत मंद और अच्छा कमाता हो और तुम्हारे अब्बा की तो माशा अल्लाह 20
एकड़ ज़मीन भी तो है"

मैं:"हां वो तो है"

सास:"वैसे तो साना के लिए काफ़ी अच्छी जगह से रिश्ते आए लेकिन मुझे अपनी बेटी को दूर नहीं भेजना, और वो लोग मुझे कुछ लालची भी लगे, मेरी बेटी बहुत खूबसूरत है और बाकी तो तुम जानती ही हो"

मैं:"हां साना हर लिहाज़ से अच्छी है"

मेरी तरफ से अपनी तारीफ सुनकर साना के चेहरे पर ख़ुसी सी आ गयी और वो थोड़ी शरमा भी गयी. आरिफ़ मेरी तरहा लंबा और बहुत खूबसूरत था, उसकी बड़ी बड़ी आँखें और नीची नज़र अक्सर कई लड़कियो को भा जाती, लेकिन वो किसी लड़की के चक्कर मे कभी नही पड़ा. जहाँ तक मुझे मालूम है उसने किसी भी लड़की से कोई ताल्लुक नही कायम किया था.साना और उसकी जोड़ी के बारे में मैने जब सोचा तो मुझे अच्छा लगा लेकिन मुश्किल ये थी कि आरिफ़ को शबनम के बारे मे कह चुकी थी. मैने सोचा कि इनायत से इस बारे में ज़रा पूंछ लूँ इसलिए मैं सास के पास से उठकर अपने कमरे मे चली आई, इनायत अभी कोई बुक पढ़ रहा था और मुझे देखकर उसने अपनी बुक नीचे रख दी और मुझसे देखने लगा.मैं बिस्तर पर आ गयी और उससे बात करने लगी.

मैं:"सुनो, क्या हुआ तबस्सुम की बहेन के बारे में, तुमने बात की क्या?"

इनायत:"हां मेरी जान लेकिन उस की बात तय हो गयी है"

मैं:"अच्छी लड़कियो के रिश्ते तो रुकते ही नहीं हैं बिल्कुल, चलो किस्सा ख़तम"

इनायत:"क्यूँ क्या हुआ?"

मैं:"तुम्हारी मा साना के लिए आरिफ़ के बारे में बात करना चाहती थीं"

इनायत:"आरिफ़ के बारे में"

मैं:"क्यूँ, शॉक लगा क्या?"

इनायत:"नहीं वो तो सब ठीक है लेकिन मैं, वो ,,,"

मैं:"सॉफ सॉफ कहो क्या बात है"

इनायत:"सॉफ सॉफ बात शायद तुमको अच्छी ना लगे"

मैं:"कह कर तो देखो"

इनायत:"साना एक वर्जिन लड़की है और मैं चाहता हूँ कि उसका शौहर भी वर्जिन हो"

मैं:"ओह ओह सो माइ हॅज़्बेंड हॅज़ बिकम आ प्रूड हां"

इनायत:"देखो आरा हर लड़की का यही सपना होता है कि वो किसी एक से ही प्यार करे"

मैं:"तो इसका मतलब है कि सेक्स और वफ़ा एक दूसरे से रिलेटेड है और मैं किसी और की हूँ"

इनायत:"देखो मेरा मतलब ये नहीं है, मेरा सिर्फ़ इतने कहना है कि साना खुद अपना डिसिशन ले और हम किसी पर अपनी थिंकिंग को फोर्स नही कर सकते, क्या साना ये क़ुबूल कर लेगी कि उसका हज़्बेंड अपनी ही बहेन से सेक्षुयली आक्टिव है? ज़रा सोचो इस बारे में"

मैं:"और अगर वो ये सब जान कर भी आरिफ़ से राज़ी हो जाए तो"

इनायत:"तुम अब उसको मनिपुलेट मत करना वो अभी भी बच्ची है"

मैं:"इनायत मैं तुम्हारे खलयालात से कभी कभी शॉक हो जाती हूँ, तुम मेरे बारे में क्या सोचने लगे हो और साना कोई बच्ची नहीं है, मैने उससे अपने सेक्षुयल लाइफ के बारे मे डिसकस करती रहती हूँ"

इनायत:"देखो इतनी हाइपर मत हो, ज़रा आराम से सोचो कि क्या हम किसी पर अपने ख़यालात फोर्स कर सकते हैं, क्या किसी को ब्रेन वॉश करना वो भी अपने मफाद के लिए सही होगा"

मैं:"अच्छा तो जब तुमने मुझे अपने मफाद के लिए ब्रेन वॉश किया था तो वो ठीक था और आज जब तुम्हारी खुद की बहेन की बात आई तो जनाब तो राइटनेस के बारे में याद आ रहा है, थू है तुमपर इनायत, तुम भी एक मीन मर्द ही निकले आख़िर कार"

इनायत:"तुम मुझसे पहले से ही खफा हो और इस बात को उसी से जोड़ कर देख रही हो जो बिल्कुल ठीक नहीं है"

मैं:"अच्छा यार, आइ आम डन, मुझे इस बात पर और कोई डिस्कशन नहीं चाहिए, तुम्हारी बहेन इस प्लॅनेट पर कोई आख़िरी लड़की नहीं है"

ये कह कर मैं सोने के लिए लेट गयी, काफ़ी देर तक मैं अपने पास्ट के बारे मे सोचती रही, उन पलो के बारे में जब मैं शौकत की बीवी थी, कितनी अच्छी लाइफ थी, ये सेक्षुयल आड्वेंचर्स तो मैने कर लिए थे लेकिन कभी कभी मैं ये भी सोचती कि काश ये सब हुआ ही ना होता, कभी कभी मैं खुद को एक डर्टी चीप रोड साइड प्रॉस्टिट्यूट की तरहा फील करती. मुझे खुद पर ही गुस्सा आता और मैं सोचती कि शायद मैने काफ़ी ग़लत किया, मैने पहली बार ही इन सब के लिए मना कर सकती थी आख़िर किसी ने मुझपर ये जबरन फोर्स तो नही किया.

मैं एक ऐसी मछली की तरहा महसूस कर रही थी जो एक बहती रिवर से खूद कर एक तालाब मे आ गयी थी और जिसने उस वक़्त के थोड़े से फ़ायदे के लिए रिवर के लोंग टर्म बेनिफिट्स को छोड़ दिया था. नदी मे ख़तरा तो दिख रहा था लेकिन उसमे रवानगी थी, फ्रेशनेस थी, प्योर्टि थी लेकिन इस तालाब मे अब सिर्फ़ घुटन, सदन और डलनेस आ चुकी थी. यही सोचते सोचते सुबह हो गयी. मैने वॉल क्लॉक मे देखा तो सुबह से साथ बज चुके थे और सूरज सर चढ़ आया था. इनायत हमेशा की तरहा अपने ट्यूशन क्लासस के लिए निकल गया था. मैं उठी और बाहर फ्रेश होने चली गयी. जब फ्रेश होकर बैठी तो सास ने मुझे अपने साथ नाश्ता करने के लिए बिता लिया. हम ने ब्रेक फास्ट किया और फिर हम सास के तख्त पर आकर बैठ गये. बातो का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया.

सास:"बहू कल रात तुम्हारा इनायत से कोई झगड़ा हुआ क्या"

मैं:"नहीं क्यूँ?"

सास:"वो इनायत आज नाश्ता किए बगैर चला गया"

मैं:"पता नहीं, ऐसा तो वो कभी नहीं करते?"

सास:"अच्छा छोड़ो हो सकता है कि वो बाहर नाश्ता करना चाहता हो, तुम ये बताओ कि तुम बात करने वाली थी ना अपने घर पर?"

मैं:"हां वो, जी वो ,मैं ये कह रही थी कि अगर वो...."

सास:"क्या बात है आरा सॉफ सॉफ कहो मुझे अगर मगर वाली बात से नफ़रत होती है"

मैं:"जी वो ये शायद इस रिश्ते के लिए राज़ी नहीं है"

मेरा इतना कहना था कि मेरी सास के अपना माथा सिकोड लिया और पास बैठी साना का भी चेहरा मुरझा सा गया

सास:"भला क्यूँ?"

मैं:"पता नहीं शायद उन्हे आरिफ़ पसंद नहीं"

सास:"हो सकता है कि वो उस वक़्त के आरिफ़ के रवैय्ये को भूला ना हो, लेकिन तुम ये बताओ कि तुम्हारी तरफ से तो कोई वजह नहीं है ना?"

मैं:"जी बिल्कुल नहीं"

सास:"तो ठीक है, तुम अपनी अम्मा को फोन लगाओ मैं बात करना चाहती हूँ अभी"

मैने अपना फोन उठाया और अम्मा को डाइयल कर दिया. अम्मा ने फोन रिसीव कर लिया.

अम्मा:"अस्सलाम बेटी कैसी हो, इतनी सुबह सुबह फोन, सब खारीयत से तो है"

मैं:"वलेकुम सलाम अम्मा सब ठीक है, वो मेरी सास आपसे बात करने को कह रही थीं कल रात तो मैने सोचा कि रात को क्या बात करें,इसलिए सुबह ही फोन लगा दिया"

अम्मा:"अच्छा, लेकिन ऐसी क्या बात है, सब ठीक है ना?"

मैं:"हां अम्मा सब सही है, आप खुद ही बात कर लो"

अम्मा:"अच्छा लाओ बात करवाओ"

मैं:"लीजिए बात कीजिए"

सास:"अस्सलाम कैसी हैं आप, बहुत दिन हुए आप से बात किए हुए सोचा बात ही कर लूँ"

अम्मा:"वेलेकम सलाम, सब ठीक है, अच्छा किया आप ने फोन किया और बताइए घर मे सब कैसा चल रहा है"

सास:"सब ठीक है, बढ़िया है, मैं आप से मिलना चाहती हूँ, कहिए कब आउ मैं आप के घर"

अम्मा:"आप का ही घर है जब चाहे आ जायें"

सास:"अच्छा तो कल शाम को मैं और शौकत के अब्बा कल आपके घर आ जायेंगे"

अम्मा:"ठीक है, कोई ज़रूरी बात है, आरा से कोई ग़लती तो नहीं हुई"

सास:"नहीं कैसी बात कर रही हैं, वो दर असल ऐसा है कि मैं अपनी बच्ची के लिए आरिफ़ के बारे में सोच रही हूँ"

अम्मा:"ये तो बड़ी अच्छी बात है लेकिन इन सब मामलो में तो ये ही सब तय करते हैं, आप घर आ जायें, सब बैठ कर सुकून से बात करेंगे"

सास:"ठीक है, चलो फिर खुदा हाफ़िज़"

अम्मा:"अच्छा खुदा हाफ़िज़"

हम लोग फिर ऐसे ही बात करते रहे और शाम को मेरी सास मे अपना फ़ैसला इनायत को सुना दिया, वो मेरी तरफ घूर कर देखने लगा तो सास ने उसे टोकते हुए ताकीद कर दी कि ये उनकी ही ज़िद थी वरना आरा तो खुद ही मना कर रही थी. अगली शाम को मेरे घर जाने की तैयारी होने लगी. साना काफ़ी खुश थी लेकिन इनायत नही. शौकत को मैने खुद सारे हाल के बारे में बता दिया था. शुरू में तो उसको मेरे और आरिफ़ के बारे में सुनकर झटका लगा लेकिन मैने उसे ये कह कर ठंडा किया कि आरिफ़ की प्राब्लम को दूर करने के चक्कर में मैने ये कदम उठाया. खैर उसने भी फ़ैसला सास और बाकी बडो पर छोड़ दिया लेकिन उसने भी यही कहा कि पता नहीं साना कैसे रिएक्ट करेगी जब उसे मेरे और आरिफ़ के बारे में पता चेलगा. मैं भी थोड़ा नर्वस थी कि कैसे सब कुछ ठीक होगा लेकिन काफ़ी सोचने के बाद मैने ये फ़ैसला किया कि अगर ये रिश्ता तय होता है तो मैं कैसे भी करके साना को पहले ही इनायत के नीचे बिछ्वा दूँगी ताकि मामला बॅलेन्स मे आ जाए और मेरा आरिफ़ के साथ सेक्स अड्वेंचर चलता रहे.

कहानी जारी रहेगी-



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