• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

Well-Known Member
22,256
57,913
259


भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






Teej-Anveshi-Jain-1619783350-anveshi-jain-2.jpg





तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

Well-Known Member
22,256
57,913
259
कालिया का निपटारा

बनारस और बड़ोदा के बाद लगता है कालिया को मेरा काल बनने का काम सौंपा गया था, और अगर गुड्डी न होती तो,

....मैं जैसे संज्ञा शून्य हो गया था, बस पथरायी निगाहों से गुड्डी को देख रहा था। घाव से खून रिसना अब बंद हो गया था। चेहरे की रंगत भी वापस आ रही थी। वह गहरी नींद में थी। मेरे हाथ हल्के-हल्के उसके माथे पे फिर रहे थे। फिर अचानक मुझे होश आया, बाहर छत पे कालिया, मरणासन्न स्थिति में मैं उसे छोड़ आया था,... और फेलू दा और कार्लोस भी।

हल्के से, बहुत धीमे-धीमे गुड्डी का सिर मैंने तकिये से टिकाया और दबे पाँव, गुड्डी की ओर देखते हुये बाहर आ गया। उसका चेहरा अब एकदम शांत लग रहा था, हमेशा की तरह एक हल्की सी मुश्कान।

और अबकी छत पर मैं बिना किसी भय के तेजी से पहुँचा, फेलू दा और कार्लोस अपना काम खत्म कर चुके थे। कालिया को उन्होंने अच्छी तरह एक रस्सी में छान बाँध दिया था।उसकी आँखें थोड़ी देर पहले ही बंद हो चुकी थी।

उन्होंने अच्छी तरह उसकी तलाशी कर ली थी, और जैसे की आशंका थी, कुछ भी नहीं मिला। न कोई फोन, न कोई पेपर, जो उसकी आइडेंटिटी कन्फर्म कर सके या कुछ सुराग दे सके। सिवाय उस बेल्ट के जिसपर छप्पन छुरियां बंधी थी और सब एक दूसरे से अलग, सिवाय एक बात के कि सब पर ‘के’ खुदा हुआ था। फेलू दा आम के पेड़ की मोटी टहनी पर रस्सी का दूसरा सिरा लटका रहे थे जिसमें कालिया का निष्प्राण शरीर बंधा था। और कार्लोस ने सार संक्षेप टाइप में हाल बता दिया।


कालिया अपने कांट्रेक्ट फिक्स करने के लिए फोन, सेट फोन, इ-मेल ऐसे किसी भी एलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इश्तेमाल नहीं करता था, ये बात खुफिया एजेंसीज ने अब तक पता कर ली थी, इसलिए उसे ट्रेस करना लगभग असंभव था। फिर वो किसी से कोई हेल्प नहीं लेता था, न ही उसका कोई एसोशिएट था। लेकिन उसके सात-आठ अकाउंट थे, और कार्लोस अपनी पुरानी जान पहचान से इसे ट्रेस करवा रहे थे। और परसों देर रात उन्हें पता चला की उसके केमैन आइलैंड के अकाउंट में एक बड़ी मोटी रकम ट्रांसफर हुई थी। और केमैन आइलैंड से 6-7 अकाउंट्स से होते हुए कई टुकड़ों में वह पैसा 45 मिनट में गायब हो गया।

लेकिन उसी पीरियड में इंटरपोल की एक मनी लांड्रिंग यूनिट ने उसे आब्जर्व कर लिया और यह सूचना कार्लोस तक पहुँच गई। जितने इलेक्ट्रानिक फूटप्रिंट मिले उससे 80% यह तय हो गया की ट्रांजैक्शन पड़ोस के एक देश से ट्रिगर हुआ है।

बस इतना अलार्म बेल के लिए काफी था। और जब आज बहुत सुबह उन्हें पता चला की कालिया ने नेपाल सीमा, सोनाली के पास पार की है तो बस उन्हें ये समझ में आ गया की टारगेट कौन है? और मेरी समझ में आ गया की देर रात फेलू दा क्यों बार-बार मेसेज करके हाल चाल पूछ रहे थे। क्यों उन्हें इतनी चिंता हो रही थी।

कार्लोस ने बोला की वो और फेलू दा करीब दो घंटे पहले यहाँ पहुँचे। लेकिन पेड़ के नीचे की दबी घासों से उन्हें अहसास हो गया था की, कालिया पेड़ के ऊपर घनी टहनियों के बीच छिपा है। छत पर पहुँचने का यही एक रास्ता था। और करीब आधे घंटे पहले तक उन्होंने इन्तजार किया, और जब कालिया उस पेड़ से उत्तर कर छत पर उतरा उसके बाद वो दोनों लोग पेड़ पर चढ़ गए। जैसे ही कालिया ने चाकू निकाला था, उसके दो मिनट पहले ही वो छत पर पहुँचे थे।
मैं- “आप लोग यहाँ आये कैसे?”

बिना बोले कार्लोस और फेलू दा ने एक साथ सड़क की ओर इशारा किया, डगडग, एक दूसरी जंगे अजीम के जमाने की ट्रक और कार्लोस की फेवरिट।

“चलें…” मुझसे फेलू दा बोले और कार्लोस से उन्होंने हल्के से कहा- “चंदवक…”
और कार्लोस ने सिर हिला के हामी भर दी। और आम के पेड़ की मोटी टहनी से टंगी रस्सी से पहले उन्होंने कालिया के शरीर को नीचे उतारा और फिर खुद। उसकी चाकू वाली बेल्ट मेरे पास रह गई थी। कुछ ही देर में सड़क पर से डगडग के स्टार्ट होने की हल्की आवाज सुनाई दी।

‘चंदवक’ यानी सुबह होने तक कालिया गोमती नदी के सुपुर्द होगा।

और मैं कमरे में वापस पहुँचा तो अभी पांच भी नहीं बजा था। रंजी और गुड्डी दोनों सो रही थी। रात की कालिमा कम होने का नाम नहीं ले रही थी। मैंने हल्के से गुड्डी का सिर उठाकर अपनी गोद में ले लिया और हल्के-हल्के सहलाने लगा।
 

paarth milf lover

I m a big big milf and shayari lover💕♥️
2,063
1,884
144
कालिया का निपटारा

बनारस और बड़ोदा के बाद लगता है कालिया को मेरा काल बनने का काम सौंपा गया था, और अगर गुड्डी न होती तो,

....मैं जैसे संज्ञा शून्य हो गया था, बस पथरायी निगाहों से गुड्डी को देख रहा था। घाव से खून रिसना अब बंद हो गया था। चेहरे की रंगत भी वापस आ रही थी। वह गहरी नींद में थी। मेरे हाथ हल्के-हल्के उसके माथे पे फिर रहे थे। फिर अचानक मुझे होश आया, बाहर छत पे कालिया, मरणासन्न स्थिति में मैं उसे छोड़ आया था,... और फेलू दा और कार्लोस भी।

हल्के से, बहुत धीमे-धीमे गुड्डी का सिर मैंने तकिये से टिकाया और दबे पाँव, गुड्डी की ओर देखते हुये बाहर आ गया। उसका चेहरा अब एकदम शांत लग रहा था, हमेशा की तरह एक हल्की सी मुश्कान।

और अबकी छत पर मैं बिना किसी भय के तेजी से पहुँचा, फेलू दा और कार्लोस अपना काम खत्म कर चुके थे। कालिया को उन्होंने अच्छी तरह एक रस्सी में छान बाँध दिया था।उसकी आँखें थोड़ी देर पहले ही बंद हो चुकी थी।

उन्होंने अच्छी तरह उसकी तलाशी कर ली थी, और जैसे की आशंका थी, कुछ भी नहीं मिला। न कोई फोन, न कोई पेपर, जो उसकी आइडेंटिटी कन्फर्म कर सके या कुछ सुराग दे सके। सिवाय उस बेल्ट के जिसपर छप्पन छुरियां बंधी थी और सब एक दूसरे से अलग, सिवाय एक बात के कि सब पर ‘के’ खुदा हुआ था। फेलू दा आम के पेड़ की मोटी टहनी पर रस्सी का दूसरा सिरा लटका रहे थे जिसमें कालिया का निष्प्राण शरीर बंधा था। और कार्लोस ने सार संक्षेप टाइप में हाल बता दिया।


कालिया अपने कांट्रेक्ट फिक्स करने के लिए फोन, सेट फोन, इ-मेल ऐसे किसी भी एलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इश्तेमाल नहीं करता था, ये बात खुफिया एजेंसीज ने अब तक पता कर ली थी, इसलिए उसे ट्रेस करना लगभग असंभव था। फिर वो किसी से कोई हेल्प नहीं लेता था, न ही उसका कोई एसोशिएट था। लेकिन उसके सात-आठ अकाउंट थे, और कार्लोस अपनी पुरानी जान पहचान से इसे ट्रेस करवा रहे थे। और परसों देर रात उन्हें पता चला की उसके केमैन आइलैंड के अकाउंट में एक बड़ी मोटी रकम ट्रांसफर हुई थी। और केमैन आइलैंड से 6-7 अकाउंट्स से होते हुए कई टुकड़ों में वह पैसा 45 मिनट में गायब हो गया।

लेकिन उसी पीरियड में इंटरपोल की एक मनी लांड्रिंग यूनिट ने उसे आब्जर्व कर लिया और यह सूचना कार्लोस तक पहुँच गई। जितने इलेक्ट्रानिक फूटप्रिंट मिले उससे 80% यह तय हो गया की ट्रांजैक्शन पड़ोस के एक देश से ट्रिगर हुआ है।

बस इतना अलार्म बेल के लिए काफी था। और जब आज बहुत सुबह उन्हें पता चला की कालिया ने नेपाल सीमा, सोनाली के पास पार की है तो बस उन्हें ये समझ में आ गया की टारगेट कौन है? और मेरी समझ में आ गया की देर रात फेलू दा क्यों बार-बार मेसेज करके हाल चाल पूछ रहे थे। क्यों उन्हें इतनी चिंता हो रही थी।

कार्लोस ने बोला की वो और फेलू दा करीब दो घंटे पहले यहाँ पहुँचे। लेकिन पेड़ के नीचे की दबी घासों से उन्हें अहसास हो गया था की, कालिया पेड़ के ऊपर घनी टहनियों के बीच छिपा है। छत पर पहुँचने का यही एक रास्ता था। और करीब आधे घंटे पहले तक उन्होंने इन्तजार किया, और जब कालिया उस पेड़ से उत्तर कर छत पर उतरा उसके बाद वो दोनों लोग पेड़ पर चढ़ गए। जैसे ही कालिया ने चाकू निकाला था, उसके दो मिनट पहले ही वो छत पर पहुँचे थे।
मैं- “आप लोग यहाँ आये कैसे?”

बिना बोले कार्लोस और फेलू दा ने एक साथ सड़क की ओर इशारा किया, डगडग, एक दूसरी जंगे अजीम के जमाने की ट्रक और कार्लोस की फेवरिट।

“चलें…” मुझसे फेलू दा बोले और कार्लोस से उन्होंने हल्के से कहा- “चंदवक…”
और कार्लोस ने सिर हिला के हामी भर दी। और आम के पेड़ की मोटी टहनी से टंगी रस्सी से पहले उन्होंने कालिया के शरीर को नीचे उतारा और फिर खुद। उसकी चाकू वाली बेल्ट मेरे पास रह गई थी। कुछ ही देर में सड़क पर से डगडग के स्टार्ट होने की हल्की आवाज सुनाई दी।

‘चंदवक’ यानी सुबह होने तक कालिया गोमती नदी के सुपुर्द होगा।

और मैं कमरे में वापस पहुँचा तो अभी पांच भी नहीं बजा था। रंजी और गुड्डी दोनों सो रही थी। रात की कालिमा कम होने का नाम नहीं ले रही थी। मैंने हल्के से गुड्डी का सिर उठाकर अपनी गोद में ले लिया और हल्के-हल्के सहलाने लगा।

बहुत ही लाज़वाब
 

komaalrani

Well-Known Member
22,256
57,913
259

तन मोरा मन प्रीतम का, दोनों एक ही रंग।

आज रंग है मां, रंग है री।


Girl-Bela-nanad-desktop-wallpaper-22-ketika-sharma-ketika-sharma.jpg



और मैं कमरे में वापस पहुँचा तो अभी पांच भी नहीं बजा था। रंजी और गुड्डी दोनों सो रही थी। रात की कालिमा कम होने का नाम नहीं ले रही थी। मैंने हल्के से गुड्डी का सिर उठाकर अपनी गोद में ले लिया और हल्के-हल्के सहलाने लगा।

आज अगर गुड्डी नहीं होती तो क्या होता, और मैं अचानक मुश्कुरा पड़ा। अगर गुड्डी जग रही होती तो घूर के देखती, डांट पड़ती और शायद एक आध हाथ भी लग जाता।

“नहीं होती का क्या मतलब? हूँ, तेरे साथ हूँ, रहूंगी और जिंदगी भर तेरे छाती पे मूंग दलूँगी…” और बात उसकी सही थी, अभी क्या शुरू से, हर बार उसने पहल की, मेरा खुद बढ़कर कर हाथ पकड़ा।


जब मेरे मन में पहली बार प्यार की बेल अंकुरित हुई, मन करता था कि उससे कुछ कहूँ, हाथ पकड़कर कम से कम हल्के से दबाऊँ, लेकिन वही झिझक, एक अच्छे सीधे पढ़नेवाले बच्चे की इमेज में कैद मन का पंछी, और गुड्डी, बिना कुछ सोचे उसने उस पिंजरे को खोल दिया और पंछी को पकड़ लिया। पिक्चर हाल में पहल उसी ने की और मेरे हाथ ने उसके सीने की गरमाहट महसूस की, दिल की धड़कने महसूस की। फिर तो।

ओ आज रंग है मां, रंग है, ओ जब देखूं तब संग है। मैं तो ऐसो रंग नहीं देखूं कहीं।

बस मैं उसके रंग में रंग गया।

भरे भवन में होत हैं नयनन सो ही बात से लेकर मेरे लालची होंठों को चोर डाकू बनाने तक, हर जगह मेरी उंगली पकड़कर उस प्रेम की सांकरी गली में वही आगे-आगे चली।

और इस बार भी, छुट्टी में बनारस से मेरे साथ यहां आने के फैसले से लेकर, शीला भाभी को चाभी बनाकर, भाभी से खुलकर दिल की बात पहुँचाने तक और मुझे उकसाकर अपनी मम्मी की सारी शर्ते मनवाने, हर बार पहल उसने की।

लेकिन आज मैंने कितने बड़े खतरे में उसे डाल दिया, दिमाग कहता कि चोट सुपरफिसियल है लेकिन जब कोई अपना चोट खाता है तो दिमाग चलता है क्या?



मैं बस उसका चेहरा एकटक देख रहा था। एक नटखट लट उसके गाल पे आ गई थी और मैंने झट से हटा दिया। बाहर चन्द्रमा अपना काम धाम खत्म करके पश्चिम में दरवाजे की ओट चला गया था। लेकिन उसके पहले ही प्रत्युषा, दबे पाँव चुपके से पूरब से खिड़की खोलकर आ गई। एक हल्की सी शर्माई सी लालिमा कुछ धुली धुली सी, तारों ने भी अपनी पलकें मूँद ली और फिर. बनारस में सुबह-सुबह झाड़ू लगाने वाले जैसे भोर होते ही घाटों पर झाड़ू चलाने लगते हैं, बस उसी तरह ऊषाने एक पुचारा लिया और रात की सारी कालिख रगड़-रगड़कर साफ कर दिया और आसमान का आँगन सफेद चमचम करने लगा। रात का सारा कूड़ा करकट, उठाकर उसने बाहर फेंक दिया।

कालिया का चाकू जिसने गुड्डी को घायल किया, रात का सब लड़ाई झगड़ा, दर्द, सारा कचरा।

और एक बार फिर से उसने आसमान के आँगन को देखा और खुश होकर अपनी चंगेरी से ढेर सारे फूल आँगन में फेंक दिए। खिड़की के बाहर, अमलताश, गुलमोहर, जूही, चंपा सब एक साथ खिल उठे। भोर की ठंडी हवा में आम के बौरों की कच्चे टिकोरों की महक एक बार फिर से आने लगी। जाते-जाते वो मुड़ी और जिधर से आई थी, आसमान के माथे पे एक बड़ी सी लाल बिंदी लगा दी।

और झपाक से बड़े सुनहले थाल सा सूरज टौंस नदी के उस पार निकल आया।



morning-6.jpg



और तभी गुड्डी का फोन गनगनाया।

भाभी का मेसेज था, वह लोग बस चलने वाले हैं आधे घंटे में, आठ बजे तक पहुँच जाएंगे।
 

komaalrani

Well-Known Member
22,256
57,913
259
एक नया दिन


morning-large.jpg




और झपाक से बड़े सुनहले थाल सा सूरज टौंस नदी के उस पार निकल आया। और तभी गुड्डी का फोन गनगनाया।

भाभी का मेसेज था, वह लोग बस चलने वाले हैं आधे घंटे में, आठ बजे तक पहुँच जाएंगे।

रंजी आँख मिचमिचाती हुई उठी और सीधे बाथरूम में दाखिल हो गई। एक नया दिन शुरू हो गया था। सड़क पर साइकिल से दूध लेकर जाने वालों की साइकिल की घण्टियां बजनी शुरू हो गई थी। बाथरूम से निकलकर रंजी ने इधर-उधर छितराये अपने कपड़े पहने, भाभी का मेसेज देखा और मुझसे बोली- “सुन मैं चलती हूँ, अपना सामान लेकर दस साढ़े बजे तक आ जाऊँगी। ग्यारह बजे तक निकल चलेंगे तो जल्दी पहुँच जायंगे…”

एक पल उसने गुड्डी की ओर देखा, उसका बैंडेज चोट उसकी निगाह से छुपी नहीं होगी। लेकिन जानबूझ के वो कुछ बोली नहीं।

“हे जरा सा…” मैंने धीमे से बोला।

और बिना कहे रंजी ने उसका बायां हाथ पकड़कर उठाया, और चूँकि दायें हाथ में ही चोट लगी थी उसकी कांख में हाथ लगाकर सपोर्ट देकर हम दोनों नीचे ले आये।

हम लोग आखिरी सीढ़ी पर रहे होंगे की गुड्डी बोली-

“कितने मजे की बात है, इत्ते आराम से तुम दोनों रोज मुझे ले चलो…”

लेकिन तंज टोन में रंजी बोली- “कमीनी, बहुत देर नहीं है, 27 मई को जब रात भर रोड रोलर चलेगा न तेरे ऊपर, तो हम ननदों को ऐसे ही उठाकर लाना पड़ेगा। बस उसी की प्रैक्टिस कर रहे थे हम दोनों…”

सच में एक नया दिन शुरू हो गया था। बरामदे में बहुत सम्हालकर हम दोनों ने उसे बैठाया। और जब मैं रंजी को बाहर छोड़ने गया तो अब उसकी आँखों की गंगा जमुना रुक नहीं पायी। बस धीमे से अपना सिर मेरे कंधे पे रखकर बोली-

“ठीक है न वो?”
दिल से मैंने झूठ बोला और किसी तरह कह दिया- “हाँ एकदम। जब तुम आओगी न दस साढ़े दस बजे तक…”

बिना मेरे जवाब का इन्तजार किये, बिना मेरे चेहरे को देखे, वो झट से अपनी धन्नो पर चढ़ी और उसकी एक्टिवा दौड़ पड़ी। अंदर गुड्डी अपने बाएं हाथ के सहारे अधलेटी बैठी थी। मैंने अपनी उंगली से उसे ब्रश कराया। मुझे बनारस में जब उसने उंगली से मंजन कराया था और मेरा मुँह बन्दर छाप दंतमंजन में मिले लाल रंग से लाल हो गया था, याद आ रहा था।

बेड-टी भी मैं बनाकर ले आया। और अब वह थोड़ा नार्मल महसूस कर रही थी। घडी ने बताया की भाभी के आने में अब सिर्फ 40 मिनट बचे हैं।

मैंने पूछा- “बाथरूम जाओगी? भाभी थोड़ी देर में आती होंगी…”

वो बाएं हाथ का सहारा लेकर उठी, और जब मैंने पेशकश की कि मैं भी आ जाऊँ उसकी हेल्प के लिए, तो उसके चेहरे पे फिर वही शरारत। आँख नचाकर बोली-

“तुझे पीटने के लिए मेरा एक हाथ काफी है…”

फिर बाथरूम के दरवाजे पर से रुक के उस परीजाद, सुर्खरू, शोख ने मुड़कर मुझे देखा और बोली-

“चलो तेरी वो भी ख्वाहिश पूरी कर दूंगी। तुम भी क्या याद करोगे, बनारस वाली हूँ कोई मजाक नहीं। बस 27 मई का इन्तजार करो…”

कोई और वक्त होता तो मैं उसकी बात पे मुश्कुराता, लेकिन आज बा-मशक्कत मैंने आँखें नम होने से रोकी। और वो बाथरूम में घुस गई। दरवाजा खोलने के लिए उसने अनजाने में दायां हाथ इश्तेमाल किया और जो चिलक उठी तो बड़ी मुश्किल से उसने चेहरे पर आये दर्द के अहसास को तुरंत पोंछ के साफ किया। कुछ देर बाद ही हुक्मनामा आया, बाथरूम के बंद दरवाजे के पीछे से-

“चाय मिलेगी क्या?”

tea-8.jpg


“एकदम, गरमागरम कड़क, ....गढ़ स्पेशल…” मैंने जवाब दिया और किचेन में लग लिया। भाभी का मेसेज आया था की वो लोग बस 15-20 मिनट में पहुँच रहे हैं और मैं गुड्डी से कह दूँ चाय बनाने के लिए। वो लोग बहुत चयासी हो रही हैं। और मैंने पानी चढ़ा दिया।

कुछ देर में गुड्डी बाथरूम से निकली, अपने कमरे में गई और जब तक बाहर निकली तो टेबल पर टीकोजी से ढंकी केटली में चाय हाजिर थी, और साथ में मैं, खड़ा, कंधे पर छोटी टावेल, एकदम रामू काका की तरह। और गुड्डी ने बैठकर जैसे ही मुझे देखा, बस बेसाख़्ता मुश्कुरा पड़ी।
Guddi-cute-4b077095439e3eea17c44a08558baf12.jpg



जोश का एक शेर याद आया-




यह बात, यह तबस्सुम, यह नाज, यह निगाहें,

आखीरकार, तुम्हीं बताओ क्यों कर न तुमको चाहे।
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,256
57,913
259
भाभी आ गयीं

Teej-IMG-20230708-193840.jpg



कुछ देर में गुड्डी बाथरूम से निकली, अपने कमरे में गई और जब तक बाहर निकली तो टेबल पर टीकोजी से ढंकी केटली में चाय हाजिर थी, और साथ में मैं, खड़ा, कंधे पर छोटी टावेल, एकदम रामू काका की तरह। और गुड्डी ने बैठकर जैसे ही मुझे देखा, बस बेसाख़्ता मुश्कुरा पड़ी। जोश का एक शेर याद आया-

यह बात, यह तबस्सुम, यह नाज, यह निगाहें,

आखीरकार, तुम्हीं बताओ क्यों कर न तुमको चाहे।

लेकिन फिर याद आया, रामू काका शेर थोड़े ही पढ़ते हैं। और गुड्डी ने हुक्म दिया, अब चलो तुम भी पी ही लो। बस मैं बैठ गया, और चाय ढालने के लिए जो केतली पकड़ी तो उसकी आँखों ने मना कर दिया और, और फिर बाएं हाथ से। बाएं हाथ के इश्तेमाल में वो एकदम सौरभ गांगुली हो रही थी। चाय की पहली चुस्की के बाद ही उसने मुँह बनाया और बोली- चीनी कम।
इस जुमले ने क्या-क्या न याद दिलाया, ये बात रोज मैं बोलता था जब गुड्डी बेड-टी लेकर आती थी और ये बहाना होता था गुलाब की ताजी पंखुड़ियों से एक चुम्बन चुराने का। वह चीनी का डिब्बा बढ़ा देती थी, अपने सुर्खरू लब। और आज मैंने अपने होंठ।


होंठों का वो आलिंगन कब तक चलता पता नहीं, लेकिन बाहर दरवाजे पर घंटी बज गई। भाभी आ गई थी। मैं उठकर दरवाजा खोलने गया,
भाभी आज एकदम अलग ही लग रही थी। खूब चुलबुली, एक अलग सी मस्ती आँखों से, पूरे चेहरे से टपक रही थी। हाँ बस थोड़ी-थोड़ी थकी लग रही थी। भैया, हरदम की तरह, सीधे अपने कमरे में चले गए, ये कहकर कि उन्हें नींद आ रही है, भाभी थोड़ी देर में आ जाएं, ऊपर। और भाभी की नजर सीधे टेबल पे बैठी गुड्डी और सामने रखी गरम केतली पर पड़ी, और वो धम्म से हम दोनों के बीच बैठ गईं।



गुड्डी ने अपनी चुस्की ली प्याली मेरी ओर सरका दी और मेरी अनपियी प्याली, भाभी के लिए सरका दी।

मैंने ‘एक्स्ट्रा मीठी’ प्याली अपने होंठों से लगाई, गुड्डी की शैतान लेकिन मीठी-मीठी निगाहों को देखता रहा और उसके लिए चाय निकाल दी।

“वाह। क्या मस्त चाय है, सारी थकान गायब, एकदम गुड्डी ने बनायीं होगी। तेरे हाथ में तो जादू है…” भाभी ने चाय की दो चुस्की के बाद ही फैसला सुना दिया।

और गुड्डी भी, सीधे मेरी आँख में देखती बोली- “एकदम आपके देवर को तो कुछ आता है नहीं, एकदम नौसिखिये हैं। न किचेन का काम न कुछ…”

भाभी भी गुड्डी की मुश्कुराहटकर साथ मुश्कुराकर हामी भर रही थी, लेकिन उन्होंने एक इम्पोर्टेंट सवाल दाग दिया- “कब तक निकलना है तुम लोगों को?”

और भाभी का सवाल निकलने के पहले ही मैंने लपक लिया। अगर कहीं गुड्डी ने उलटा सीधा जवाब दे दिया तो गड़बड़ हो जाता-

“वैसे तो टैक्सी 11:00 बजे बुलाया है, लेकिन वो थोड़ा शायद पहले ही आ जाय। और रंजी तो एकदम सुबह ही निकल गई थी वो भी साढ़े-नौ, पौने-दस बजे तक आ ही जाएगी। गुड्डी ने सब पैक वैक कर लिया है तो बस जैसे टैक्सी आएगी साढ़े दस के आसपास…”

मैंने एक साँस में पूरा जवाब दे दिया और भाभी के कप में दुबारा चाय भी ढाल दी।

उन्होंने चाय पीनी शुरू की ही थी की ऊपर से बुलावा आ गया।

लेकिन भाभी भी, चाय पीते-पीते गुड्डी को समझा रही थी- “सुन। क्या बनाएगी खाने में? अब ज्यादा टाइम भी तो नहीं रह गया…”

कल रात की बात याद करके मैं बोला- “बिरयानी बना लो…” कल उसने और रंजी ने ‘रेडी टू ईट’ के पैकेट से बनायी थी।

लेकिन जैसे होता है, भाभी और गुड्डी दोनों एक साथ चढ़ पड़ीं मेरे ऊपर। गुड्डी ने आँख नचाकर बोला- “रसोइये के खानदान से हो क्या?”

“सही कह रही है तू, सासु जी आएंगी न तो उनसे पूछना पड़ेगा कि कहीं, किसी बावर्ची के साथ। कोई ठिकाना नहीं?” और दोनों खिलखिलाने लगी।

मैंने पूरी तरह अनसुना कर दिया। मेरी आँखें और ध्यान पूरी तरह गुड्डी की चोट लगे दायें हाथ पर लगा था। गनीमत थी की उसने कुहनी तक बांह वाला एक अनारकली सूट पहन रखा था। किचेन का काम। इस हालत में।

“टाइम कम है। सुन, तू झटपट तहरी बना ले, आलू, टमाटर, गोभी, गाजर सब डालकर। और हाथ खाओगी किससे, तो बस फ्रेश टमाटर की चटनी बना लेना…” भाभी ने फैसला सुना दिया।

तब तक हेडक्वारटर्स से काल आ गई, और भाभी ने एक घूँट में बाकी चाय खत्म कर दी और उठने वाली थी की गुड्डी धीरे से बोल उठी।

“वो तो ऊपर सोने गए थे तो आप क्या लोरी सुनाने…”

क्या जोर से भाभी शर्माईं किया और एक हाथ सीधे गुड्डी की पीठ पे- “बस दो ढाई महीने की बात है, आएगी इसी घर में फिर पूछूंगी, दिन दहाड़े जब जुम्हाई आएगी…”
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
22,256
57,913
259
किचेन

tehri-recipe.jpg


और अगले पल भाभी ऊपर और हम दोनों किचेन में। बहुत मुश्किल से गुड्डी मानी, और फिर उसकी हिदायतें और मेरा काम। उस दिन पहली बार अजवायन, सौंफ धनिया और जीरा में अंतर पहचाना।

बोल सब वही रही थी, बीच में झुंझला भी रही थी। पानी में चावल भिगोओ। तेल गरम करके कटे प्याज डालो। फिर गार्लिक और जिंजर पेस्ट खड़े मसाले सारे। बीच में उसने कुकर उठाने की कोशिश की तो फिर चिलक उठी, और मैंने उसे फिर एकदम मना कर दिया।

लेकिन तब भी मिक्सी का काम, सास बनाने का। और आधे घंटे में हम दोनों ने मिलकर तहरी चढ़ा दी। और मैं उसे खींचता हुआ, अपने कमरे में ले गया। और उसकी बैंडेज खोली। मैंने एक डाक्टर से सुबह ही बात की थी, लेकिन उन्होंने बोला था की बिना देखे कुछ बताना मुश्किल है। बस इसलिए, उसके दो-चार फोटो लिए और उन्हें तुरंत व्हाट्सऐप किया।


और उनका जवाब भी आ गया- चिंता की बात नहीं है, घाव भरना होना शुरू हो गया है, अब ज्यादा पट्टी की जरूरत नहीं है, मैं सिर्फ एक इलेस्टोप्लास्ट लगा दूँ। हाँ। इस हाथ से अगले सात-आठ घंटे तक कुछ भी उठाना मना है, जितना इस हाथ को आराम मिलेगा उतनी जल्दी ठीक हो जाएगा…” और उन्होंने दो इंजेक्शन भी लिखवाये, जो मुझे बनारस जाते समय कहीं लगवा लेने थे। चोट लगने के 7-8 घंटे के अंदर पेन किलर एक बार और देने के के लिए बोला उन्होंने।

बस मैंने उसेदर्द की गोली खिलायी, बैंडेज जैसा उन्होंने कहा था वो लगाया। लेकिन गुड्डी की बस एक रट तहरी खराब हो जायेगी। तहरी का तो कुछ नहीं लेकिन अगर हम दस मिनट लेट आते तो पकड़े जाते।

किचेन में पहुँचकर कुकर से मैंने तहरी निकालकर सर्विंग वाले बर्तन में रख दिया था और गुड्डी दही रख रही थी।

भाभी तभी आ पहुँची और पहुँचते ही मुझे डांट पड़ी और गुड्डी की तारीफ- “किचेन में क्या कर रहे हो? डिस्टर्ब कर रहे होगे उसको, तुम भी न…” उन्होंने उंगली से ही थोड़ी सी तहरी चखी और फिर गुड्डी की तारीफ पे तारीफ।



फिर वो काम की बात पे आई। हम लोग खाना खा लें और जब जाने वाले हों तो उन्हें आवाज देकर बुला ले। वो और भैया दोपहर को ही खायंगे। मैं गुड्डी को घूर के देख रहां था और वो मुश्कुरा रही थी। भाभी ऊपर गईं और रंजी अंदर आई।
 

komaalrani

Well-Known Member
22,256
57,913
259
गुड्डी


Girl-desktop-wallpaper-latest-dp-for-girls-pics-cute-girl-dp-thumbnail.jpg


फिर वो काम की बात पे आई। हम लोग खाना खा लें और जब जाने वाले हों तो उन्हें आवाज देकर बुला ले। वो और भैया दोपहर को ही खायंगे। मैं गुड्डी को घूर के देख रहां था और वो मुश्कुरा रही थी। भाभी ऊपर गईं और रंजी अंदर आई।



“आज चलो तुम महारानी की तरह बैठो, हम दोनों लोग तुम्हें सर्व करेंगे…” और पकड़कर जबरदस्ती गुड्डी को डाइनिंग टेबल पे बिठा दिया।



किचेन में घुसते ही रंजी ने परेशान होकर, फुसफुसा के पूछा- “कैसी है, कुछ दवा?”

और बिना बोले मैंने स्मार्ट फोन से खींची उसकी फोटो रंजी के सामने रख दी। रंजी चेहरा राख हो गया।

“डाक्टर को दिखाया था, उसने चेक भी किया। बैंडेज टाइम पे लग गई थी इसलिए, लेकिन अभी भी, चलते हुए किसी हास्पिटल में दो इंजेक्शन लगवाने होंगे। दर्द उसको है। डाक्टर ने दायें हाथ से शाम तक कुछ भी करने से मना किया है। शायद हल्का सा स्कार रह जाए, लेकिन उसकी भी क्रीम लगाने से 10-15 दिन में चला जाएगा। हिम्मत है उसमें…”

रंजी ने बिना बोले सिर हिलाया, जैसे कह रही हो मुझसे कह रहे हो, तुमसे कम मैं नहीं जानती उसको।

बिना बोले हम दोनों ने टेबल लगाई। और जैसे ही गुड्डी ने खाने के लिए हाथ बढ़ाया, रंजी ने झपट के उसे रोक दिया- “ये 6 फिट का मर्द तुझे दिया है तो क्या इसीलिए?” और मुझे डाँट पड़ गई- “चल अपने हाथ से खिला इसे…”


और मैंने जैसे ही चम्मच उठायी, गुड्डी ने जिद्दी बच्चों की तरह दायें बाएं जोर-जोर से सिर हिलाया, नहीं-नहीं की मुद्रा में और बोला उसके वकील रंजी ने– “तुझे इतना मालूम नहीं कि तहरी चम्मच से नहीं हाथ से खायी जाती है, चल हाथ से खिला…”


“गरम बहुत हैं…” मैंने कहने की कोशिश की लेकिन उसके साथ ही रंजी ने हल भी बता दिया, अरे चल बनारस में बर्नाल लगवा दूंगीं।

फिर मैंने हाथ से जैसे खिलाया, गुड्डी रंजी दोनों ही मुश्कुराने लगी, आज गुड्डी की ओर से सारे तीर रंजी चला रही थी- “कोहबर में क्या चम्मच से खिलाओगे उसको, वहां तो आगे बढ़के, सास, साली, सलहज होंगी न यहाँ बिचारी अकेली है न। ये कत्तई अकेली नहीं है मैं हूँ न इसके साथ…”

रंजी और मैं दोनों माहौल को नार्मल बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन तूफान हम दोनों के मन से गुजर रहा था। और कितना खतरा उठाया था गुड्डी ने, ये सिर्फ मैं जानता था। अगर वह चाकू सिर्फ दो ढाई इंच और। तो सीधे छाती में पैबस्त होता और फिर। सोचना भी असंभव था।


किश्मत थी की ग्लाक के रिक्वॉयल ने गुड्डी को तेजी से झटक दिया, फिर अँधेरा भी इतना ज्यादा था। असली बात थी, काशी के कोतवाल उसकी रक्षा कर रहे थे। और उसके बाद। कोई नर्व्स डैमेज्ड नहीं हुई थी। लेकिन जो चोट थी दर्द भयानक हुआ होगा।
 

komaalrani

Well-Known Member
22,256
57,913
259
***** ***** चल खुसरो घर आपने


Teej-B-W-a3088ff665d4c98e90d5cdd088e2cc69.jpg


गुड्डी ने इशारा किया और जल्दी-जल्दी खिलाऊँ।

मेरी उंगलियां उसके मुँह में थी की भाभी नीचे आ गईं और उन्होंने देख लिया, मुश्कुराहट आँचल में छिपाते गुड्डी से पूछा- “काटा की नहीं?”

और जैसे अपनी होनेवाली जेठानी की आज्ञा मानना उसका परम धर्म हो, कचकचा के उसने मेरी उंगलियां काट लिया। मैं चीखा।

भाभी और रंजी जोर से हँस पड़े। भाभी पूजा वाले कमरे में गईं और वहीं से मुझे और गुड्डी को बुला लिया। सारे देवी देवताओं के सामने, वो खड़ी होकर पूजा कर रही थी और मुझे और गुड्डी को अपने बगल में ठीक ऐसे खड़ा कर दिया, जैसे गाँठ जोड़ के खड़े हों।


हम लोगों से सिर झुकवाया, साथ-साथ। और पूजा की अलमारी से ही एक डिब्बा निकाला, एक बड़ी पुरानी मटरमाला, खूब भारी। उसे अपने हाथ से उन्होंने गुड्डी को पहना दिया और सिर पे सहलाते हुए बोला-

“ये इनकी दादी की निशानी है, जब मैं इस घर में आई थी तो मुझे मुँह दिखाई में दिया था। खूब खुश रहो…”

बाहर निकलकर उन्होंने रंजी से पूछा- “गाड़ी आई की नहीं?”

गुड्डी बोली- “कब की आ गई और मैंने सारे सामान भी रख दिए…”



चलने के पहले रंजी एक मेसज खोलकर बार-बार देख रही थी, मैंने और गुड्डी ने भी झाँक कर देखा। वह गुड्डी के साथ ज्यादा देर नहीं रह पाएगी। एजेंसी का मेसज था, बनारस में दो दिन बाद ही उसे होटल ताज में रिपोर्ट करना था, जहाँ उसका बूट कैम्प था।

गुड्डी के पूछने के पहले ही वो बोल पड़ी- “लेकिन घबड़ाओ मत दो दिन तो अभी रहूंगी तुम्हारे साथ और उसके अलावा रंगपंचमी में भी, एक रात पहले ही आ जाऊँगी। फिर रंगपंचमी का दिन रात, तेरे हवाले…”


तब तक भाभी किचेन से निकलकर आई और हम लोग बाहर बरामदे में आ गए। गुड्डी भाभी का पैर छूने के लिए झुकी लेकिन भाभी ने पकड़कर उठा लिया और अंकवार में भेंट लिया, खूब जोर से और उसके कान में बोली-


“बच्ची की तरह जा रही हो, दुल्हन बनकर लौटोगी, और तब परछन करके उतारूंगी…” फिर पांच फूल लौंग भाभी ने गुड्डी के चारों ओर उतार करके पीछे फेंक दिए।



मैंने गुड्डी का बायां हाथ पकड़कर सम्हालकर कार में बैठाया, और दूसरी ओर से रंजी। वो बीच में। भाभी अशीष रही थी-

“कासी के कोतवाल, लहुराबीर वाले बीर बाबा, बड़ादेव के बड़देव बाबा, काली माई के चौरा के माई, रास्ते के देवता पित्तर, रच्छा करिहा इन लोगन का…”

जब हम लोगों की टैक्सी मुड़ी, भाभी तब भी बरामदे में खड़ी अशीष रही थी।
 
Last edited:

paarth milf lover

I m a big big milf and shayari lover💕♥️
2,063
1,884
144
भाभी आ गयीं

Teej-IMG-20230708-193840.jpg



कुछ देर में गुड्डी बाथरूम से निकली, अपने कमरे में गई और जब तक बाहर निकली तो टेबल पर टीकोजी से ढंकी केटली में चाय हाजिर थी, और साथ में मैं, खड़ा, कंधे पर छोटी टावेल, एकदम रामू काका की तरह। और गुड्डी ने बैठकर जैसे ही मुझे देखा, बस बेसाख़्ता मुश्कुरा पड़ी। जोश का एक शेर याद आया-

यह बात, यह तबस्सुम, यह नाज, यह निगाहें,

आखीरकार, तुम्हीं बताओ क्यों कर न तुमको चाहे।

लेकिन फिर याद आया, रामू काका शेर थोड़े ही पढ़ते हैं। और गुड्डी ने हुक्म दिया, अब चलो तुम भी पी ही लो। बस मैं बैठ गया, और चाय ढालने के लिए जो केतली पकड़ी तो उसकी आँखों ने मना कर दिया और, और फिर बाएं हाथ से। बाएं हाथ के इश्तेमाल में वो एकदम सौरभ गांगुली हो रही थी। चाय की पहली चुस्की के बाद ही उसने मुँह बनाया और बोली- चीनी कम।
इस जुमले ने क्या-क्या न याद दिलाया, ये बात रोज मैं बोलता था जब गुड्डी बेड-टी लेकर आती थी और ये बहाना होता था गुलाब की ताजी पंखुड़ियों से एक चुम्बन चुराने का। वह चीनी का डिब्बा बढ़ा देती थी, अपने सुर्खरू लब। और आज मैंने अपने होंठ।


होंठों का वो आलिंगन कब तक चलता पता नहीं, लेकिन बाहर दरवाजे पर घंटी बज गई। भाभी आ गई थी। मैं उठकर दरवाजा खोलने गया,
भाभी आज एकदम अलग ही लग रही थी। खूब चुलबुली, एक अलग सी मस्ती आँखों से, पूरे चेहरे से टपक रही थी। हाँ बस थोड़ी-थोड़ी थकी लग रही थी। भैया, हरदम की तरह, सीधे अपने कमरे में चले गए, ये कहकर कि उन्हें नींद आ रही है, भाभी थोड़ी देर में आ जाएं, ऊपर। और भाभी की नजर सीधे टेबल पे बैठी गुड्डी और सामने रखी गरम केतली पर पड़ी, और वो धम्म से हम दोनों के बीच बैठ गईं।



गुड्डी ने अपनी चुस्की ली प्याली मेरी ओर सरका दी और मेरी अनपियी प्याली, भाभी के लिए सरका दी।

मैंने ‘एक्स्ट्रा मीठी’ प्याली अपने होंठों से लगाई, गुड्डी की शैतान लेकिन मीठी-मीठी निगाहों को देखता रहा और उसके लिए चाय निकाल दी।

“वाह। क्या मस्त चाय है, सारी थकान गायब, एकदम गुड्डी ने बनायीं होगी। तेरे हाथ में तो जादू है…” भाभी ने चाय की दो चुस्की के बाद ही फैसला सुना दिया।

और गुड्डी भी, सीधे मेरी आँख में देखती बोली- “एकदम आपके देवर को तो कुछ आता है नहीं, एकदम नौसिखिये हैं। न किचेन का काम न कुछ…”

भाभी भी गुड्डी की मुश्कुराहटकर साथ मुश्कुराकर हामी भर रही थी, लेकिन उन्होंने एक इम्पोर्टेंट सवाल दाग दिया- “कब तक निकलना है तुम लोगों को?”

और भाभी का सवाल निकलने के पहले ही मैंने लपक लिया। अगर कहीं गुड्डी ने उलटा सीधा जवाब दे दिया तो गड़बड़ हो जाता-

“वैसे तो टैक्सी 11:00 बजे बुलाया है, लेकिन वो थोड़ा शायद पहले ही आ जाय। और रंजी तो एकदम सुबह ही निकल गई थी वो भी साढ़े-नौ, पौने-दस बजे तक आ ही जाएगी। गुड्डी ने सब पैक वैक कर लिया है तो बस जैसे टैक्सी आएगी साढ़े दस के आसपास…”

मैंने एक साँस में पूरा जवाब दे दिया और भाभी के कप में दुबारा चाय भी ढाल दी।

उन्होंने चाय पीनी शुरू की ही थी की ऊपर से बुलावा आ गया।

लेकिन भाभी भी, चाय पीते-पीते गुड्डी को समझा रही थी- “सुन। क्या बनाएगी खाने में? अब ज्यादा टाइम भी तो नहीं रह गया…”

कल रात की बात याद करके मैं बोला- “बिरयानी बना लो…” कल उसने और रंजी ने ‘रेडी टू ईट’ के पैकेट से बनायी थी।

लेकिन जैसे होता है, भाभी और गुड्डी दोनों एक साथ चढ़ पड़ीं मेरे ऊपर। गुड्डी ने आँख नचाकर बोला- “रसोइये के खानदान से हो क्या?”

“सही कह रही है तू, सासु जी आएंगी न तो उनसे पूछना पड़ेगा कि कहीं, किसी बावर्ची के साथ। कोई ठिकाना नहीं?” और दोनों खिलखिलाने लगी।

मैंने पूरी तरह अनसुना कर दिया। मेरी आँखें और ध्यान पूरी तरह गुड्डी की चोट लगे दायें हाथ पर लगा था। गनीमत थी की उसने कुहनी तक बांह वाला एक अनारकली सूट पहन रखा था। किचेन का काम। इस हालत में।

“टाइम कम है। सुन, तू झटपट तहरी बना ले, आलू, टमाटर, गोभी, गाजर सब डालकर। और हाथ खाओगी किससे, तो बस फ्रेश टमाटर की चटनी बना लेना…” भाभी ने फैसला सुना दिया।

तब तक हेडक्वारटर्स से काल आ गई, और भाभी ने एक घूँट में बाकी चाय खत्म कर दी और उठने वाली थी की गुड्डी धीरे से बोल उठी।

“वो तो ऊपर सोने गए थे तो आप क्या लोरी सुनाने…”

क्या जोर से भाभी शर्माईं किया और एक हाथ सीधे गुड्डी की पीठ पे- “बस दो ढाई महीने की बात है, आएगी इसी घर में फिर पूछूंगी, दिन दहाड़े जब जुम्हाई आएगी…”
Wah kya Sher likha hai..
Kyun na tumko chahe..uff love this komal bhabhi
 

Shetan

Well-Known Member
15,107
40,566
259
Top