कालिया का निपटारा
बनारस और बड़ोदा के बाद लगता है कालिया को मेरा काल बनने का काम सौंपा गया था, और अगर गुड्डी न होती तो,
....मैं जैसे संज्ञा शून्य हो गया था, बस पथरायी निगाहों से गुड्डी को देख रहा था। घाव से खून रिसना अब बंद हो गया था। चेहरे की रंगत भी वापस आ रही थी। वह गहरी नींद में थी। मेरे हाथ हल्के-हल्के उसके माथे पे फिर रहे थे। फिर अचानक मुझे होश आया, बाहर छत पे कालिया, मरणासन्न स्थिति में मैं उसे छोड़ आया था,... और फेलू दा और कार्लोस भी।
हल्के से, बहुत धीमे-धीमे गुड्डी का सिर मैंने तकिये से टिकाया और दबे पाँव, गुड्डी की ओर देखते हुये बाहर आ गया। उसका चेहरा अब एकदम शांत लग रहा था, हमेशा की तरह एक हल्की सी मुश्कान।
और अबकी छत पर मैं बिना किसी भय के तेजी से पहुँचा, फेलू दा और कार्लोस अपना काम खत्म कर चुके थे। कालिया को उन्होंने अच्छी तरह एक रस्सी में छान बाँध दिया था।उसकी आँखें थोड़ी देर पहले ही बंद हो चुकी थी।
उन्होंने अच्छी तरह उसकी तलाशी कर ली थी, और जैसे की आशंका थी, कुछ भी नहीं मिला। न कोई फोन, न कोई पेपर, जो उसकी आइडेंटिटी कन्फर्म कर सके या कुछ सुराग दे सके। सिवाय उस बेल्ट के जिसपर छप्पन छुरियां बंधी थी और सब एक दूसरे से अलग, सिवाय एक बात के कि सब पर ‘के’ खुदा हुआ था। फेलू दा आम के पेड़ की मोटी टहनी पर रस्सी का दूसरा सिरा लटका रहे थे जिसमें कालिया का निष्प्राण शरीर बंधा था। और कार्लोस ने सार संक्षेप टाइप में हाल बता दिया।
कालिया अपने कांट्रेक्ट फिक्स करने के लिए फोन, सेट फोन, इ-मेल ऐसे किसी भी एलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इश्तेमाल नहीं करता था, ये बात खुफिया एजेंसीज ने अब तक पता कर ली थी, इसलिए उसे ट्रेस करना लगभग असंभव था। फिर वो किसी से कोई हेल्प नहीं लेता था, न ही उसका कोई एसोशिएट था। लेकिन उसके सात-आठ अकाउंट थे, और कार्लोस अपनी पुरानी जान पहचान से इसे ट्रेस करवा रहे थे। और परसों देर रात उन्हें पता चला की उसके केमैन आइलैंड के अकाउंट में एक बड़ी मोटी रकम ट्रांसफर हुई थी। और केमैन आइलैंड से 6-7 अकाउंट्स से होते हुए कई टुकड़ों में वह पैसा 45 मिनट में गायब हो गया।
लेकिन उसी पीरियड में इंटरपोल की एक मनी लांड्रिंग यूनिट ने उसे आब्जर्व कर लिया और यह सूचना कार्लोस तक पहुँच गई। जितने इलेक्ट्रानिक फूटप्रिंट मिले उससे 80% यह तय हो गया की ट्रांजैक्शन पड़ोस के एक देश से ट्रिगर हुआ है।
बस इतना अलार्म बेल के लिए काफी था। और जब आज बहुत सुबह उन्हें पता चला की कालिया ने नेपाल सीमा, सोनाली के पास पार की है तो बस उन्हें ये समझ में आ गया की टारगेट कौन है? और मेरी समझ में आ गया की देर रात फेलू दा क्यों बार-बार मेसेज करके हाल चाल पूछ रहे थे। क्यों उन्हें इतनी चिंता हो रही थी।
कार्लोस ने बोला की वो और फेलू दा करीब दो घंटे पहले यहाँ पहुँचे। लेकिन पेड़ के नीचे की दबी घासों से उन्हें अहसास हो गया था की, कालिया पेड़ के ऊपर घनी टहनियों के बीच छिपा है। छत पर पहुँचने का यही एक रास्ता था। और करीब आधे घंटे पहले तक उन्होंने इन्तजार किया, और जब कालिया उस पेड़ से उत्तर कर छत पर उतरा उसके बाद वो दोनों लोग पेड़ पर चढ़ गए। जैसे ही कालिया ने चाकू निकाला था, उसके दो मिनट पहले ही वो छत पर पहुँचे थे।
मैं- “आप लोग यहाँ आये कैसे?”
बिना बोले कार्लोस और फेलू दा ने एक साथ सड़क की ओर इशारा किया, डगडग, एक दूसरी जंगे अजीम के जमाने की ट्रक और कार्लोस की फेवरिट।
“चलें…” मुझसे फेलू दा बोले और कार्लोस से उन्होंने हल्के से कहा- “चंदवक…”
और कार्लोस ने सिर हिला के हामी भर दी। और आम के पेड़ की मोटी टहनी से टंगी रस्सी से पहले उन्होंने कालिया के शरीर को नीचे उतारा और फिर खुद। उसकी चाकू वाली बेल्ट मेरे पास रह गई थी। कुछ ही देर में सड़क पर से डगडग के स्टार्ट होने की हल्की आवाज सुनाई दी।
‘चंदवक’ यानी सुबह होने तक कालिया गोमती नदी के सुपुर्द होगा।
और मैं कमरे में वापस पहुँचा तो अभी पांच भी नहीं बजा था। रंजी और गुड्डी दोनों सो रही थी। रात की कालिमा कम होने का नाम नहीं ले रही थी। मैंने हल्के से गुड्डी का सिर उठाकर अपनी गोद में ले लिया और हल्के-हल्के सहलाने लगा।