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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

Shetan

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डलवाई लो भौजी होली में



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“अरे नंदोई राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर छिनाल हरामजादी, गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा| चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसड़े में|”


तब तक जमीन पे लेटे मुझे चोद रहे नंदोई ने कस के मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और अब एकदम उनकी छाती पे लेटी मैं कस के चिपकी हुई थी| मेरी टाँगे उनकी कमर के दोनों ओर फैली, चूतड़ भी कस के फैले हुए|

अचानक पीछे से नंदोई ने मेरी गांड़ के छेद पे सुपाड़ा लगा दिया|


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नीचे से नंदोई ने कस के बाँहों में जकड़ रखा था और ननद भी कस के अपनी उँगलियों से मेरी गांड़ का छेद फैला के उनका सुपाड़ा सेंटर कर दिया|

नंदोई ने कस के जो मेरे चूतड़ पकड़ के पेला तो झटाक से मेरी कसी गांड़ फाड़ता, फैलाता सुपाड़ा अंदर| मैं तिलमिलाती रही, छटपटाती रही लेकिन,

“अरे भाभी आप कह रही थीं ना दोनों ओर से मजा लेने का, तो ले लो ना एक साथ दो दो लंड|”



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ननद ने मुझे छेड़ा|


“अरे तेरी सास ने गदहे से चुदवाया था या घोड़े से जो तुझे ऐसे लंड वाला मर्द मिला| ओह लगता है, अरे एक मिनट रुक न नंदोई राजा, अरे तेरी सलहज की कसी गांड़ है, तेरी अम्मा की ४ बच्चों जनी भोंसड़ा नहीं जो इस तरह पेल रहे हो...रुक रुक फट गई, ओह|”


मैं दर्द में गालियाँ दे रही थी|

पर रुकने वाला कौन था?

एक चूचि मेरी गांड़ मारते नंदोई ने पकड़ी और दूसरी चूत चोदते छोटे नंदोई ने, इतने कस-कस के मींजना शुरू किया कि मैं गांड़ का दर्द भूल गई|

थोड़ी हीं देर में जब लंड गांड़ में पूरी तरह घुस चुका था तो उसे अंदर का नेचुरल लुब्रिकेंट भी मिल गया, फिर तो गपागप गपागप...मेरी चूत और गांड़ दोनों हीं लंड लील रही थी|

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कभी एक निकालता दूसरा डालता और दूसरा निकालता तो पहला डालता, और कभी दोनों एक साथ निकाल के एक साथ सुपाड़े से पूरे जड़ तक एक धक्के में पेल देते|
एक बार में जड़ तक लंड गांड़ में उतर जाता, गांड़ भी लंड को कस के दबोच रही थी|

खूब घर्षण भी हो रहा था, कोई चिकनाई भी नहीं थी सिवाय गांड़ के अंदर के मसाले के| मैं सिसक रही थी, तड़प रही थी, मजे ले रही थी| साथ में मेरी साल्ली छिनाल ननद भी मौके का फायदा उठा के मेरी खड़ी मस्त क्लिट को फड़का रही थी, नोच रही थी|



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खूब हचक के गांड़ मारने के बाद नंदोई एक पल के लिए रुके मूसल अभी भी आधे से ज्यादा अंदर हीं था|

उन्होंने लंड के बेस को पकड़ के कस-कस के उसे मथानी की तरह घुमाना शुरू कर दिया|
थोड़ी हीं देर में मेरे पेट में हलचल सी शुरू हो गई| (रात में खूब कस के सास ननद ने खिलाया था और सुबह से 'फ्रेश' भी नहीं हुई थी|) उमड़ घुमड़...और लंड भी अब फचाक फचाक की आवाज के साथ गांड़ के अंदर बाहर...तीन तरफा हमले से मैं दो तीन बार झड़ गई, उसके बाद मेरे नीचे लेटे नंदोई मेरी बुर में झड़े|

उनका लंड निकलते हीं मेरी ननद की उंगलियाँ मेरी चूत में...

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और उनके सफेद मक्खन को ले के सीधे मेरे मुँह में, चेहरे पे अच्छी तरह फेसियल कर दिया| लेकिन नंदोई अभी भी कस-कस के गांड़ मार रहे थे...बल्कि साथ साथ मथ रहे थे| (एक बार पहले भी वो अभी हीं मेरे भाई की गांड़ में झड़ चुके थे|)

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और जब उन्होंने झड़ना शुरू किया तो पलट के मुझे पीठ के बल लिटा के लंड, गांड़ से निकाल के 'सीधे' मेरे मुँह पे|
मैंने जबरन मुँह भींच लिया लेकिन दोनों नंदोइयों ने एक साथ कस के मेरा गाल जो दबाया तो मुँह खुल गया|

फिर तो उन्होंने सीधे मुँह में लंड ठेल दिया|

मुझे बड़ा ऐसा...ऐसा लग रहा था लेकिन उन्होंने कस के मेरा सिर पकड़ रखा था और दूसरे नंदोई ने मुँह भींच रखा था| धीरे धीरे कर के पूरा लंड घुसेड़ दिया मेरे मुँह में...उनके लंड में...लिथड़ा...लिथड़ा..

वो बोले,
“अरे सलहज रानी गांड़ में तो गपाक गपाक ले रही थी तो मुँह में लेने में क्यों झिझक रही हो?”


“भाभी एक नंदोई ने तो जो बुर में सफेद मक्खन डाला वो तो आपने मजे ले के गटक लिया तो इस मक्खन में क्या खराबी है? अरे एक बार स्वाद लग गया न तो फिर ढूंढती फिरियेगा, फिर आपके हीं तो गांड़ का माल है| जरा चख के तो देखिए|”

ननद ने छेड़ा और फिर नंदोइयों को ललकारा,

“अरे आज होली के दिन सलहज को नया स्वाद लगा देना, छोड़ना मत चाहे जितना ये चूतड़ पटके...”

मैं आँख बंद कर के चाट चूट रही थी|


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कोई रास्ता भी नहीं था| लेकिन अब धीरे धीरे मेरे मुँह को भी और एक...| नए ढंग की वासना मेरे ऊपर सवार हो रही थी| लेकिन मेरी ननद को मेरी बंद आँख भी नहीं कबूल थी|

उसने कस के मेरे निप्पल पिंच किये और साथ में नंदोई ने बाल खींचे,

“अरे बोल रही थी ना कि मेरे लंड को लाल रंग का कर दिया कि मेरी बहनें चूसेंगी तब भी इसका रंग लाल हीं रहेगा ना, तो देख छिनाल, तेरी गांड़ से निकल के किस रंग का हो गया है?”

वास्तव में लाल रंग तो कहीं दिख हीं नहीं रहा था| वो पूरी तरह मेरी गांड़ के रस से लिपटा...

“चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुँह से नहीं निकलेगा| चल चाट चूस कस-कस के..ले ले गांड़ का मजा|”



वो कस के ठेलते बोले|
Ese page yaad dilva diye. Lagta he vahi kahaniya fir se padhna suru karni padegi. Hotho par shahed laga kar hat jana. Fir to bar bar bechare hotho pe jeebh ghumate rahe jae redars
 

Shetan

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पिछवाड़े का रस -दीदी का



गुड्डी भी दीदी की गाण्ड की ओर आ गई और रीतू भाभी ने फिर पूछा- “हम लोगों ने इसकी पिचकारी का रंग क्या-क्या कर दिया था…”

गुड्डी हँसकर बोली- “अरे एक रंग हो तो बताऊँ। लाल काही नीला…”

“और अब देख इस पिटारी का जादू…” हँसकर रीतु भाभी बोली।

और उसी समय दीदी की कसी अब तक कुँवारी, सटी-सटी गाण्ड से मेरा मोटा लण्ड निकला। एकदम मक्खन, दीदी की गाण्ड के रंग में रंगा। सिर्फ एक रंग। दीदी के गाण्ड के गाण्ड रस का रंग। गुड्डी और रीतू भाभी दोनों इतने जोश में आ गईं की दोनों ने एक साथ दीदी की चूत पे हमला बोल दिया। एक क्लिट दबाती तो दूसरी बुर में दो-दो उंगली डालकर चोदती।

थोड़ी ही देर में दीदी झड़ने लगी।

लेकिन वो दोनों रुकी नहीं। रीतु भाभी तो खैर, रीतू भाभी थी। लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी और दीदी का रिश्ता भी तो ननद भाभी वाला ही था। दीदी दुबारा झड़ने लगी। और जब वो झड़ती तो साथ-साथ उनकी मस्त गाण्ड मेरा लण्ड एकदम दबोच लेती, निचोड़ लेती कसकर जैसे कई पूरी ताकत से मुट्ठी में लण्ड दबा रहा हो। पागल होकर मैं भी मस्ती में तेजी से उनकी गाण्ड मार रहा था।

और जब वो तीसरी बार झड़ीं तो साथ में मैं भी। लेकिन इसमें बहुत कुछ हाथ रीतु भाभी का भी था। उन्होंने अब मेरी गाण्ड में दो उंगली हुमच के पेल दी थी और साथ-साथ ही मेरे प्रोस्ट्रेट को जमकर रगड़ दिया था। बस गिरते हुए मैं बेहोश नहीं हुआ मजे से। बाकी सब कुछ हो गया। मेरा लण्ड दीदी की गाण्ड में पूरी तरह धंसा था। और दोनों हाथ उनकी चूची पे।

मुट्ठी भर गाढ़ी रबड़ी तो दीदी की गाण्ड में गई ही होगी। और एक बार फिर रीतू भाभी की मेरी गाण्ड में धंसी उंगली ने दुबारा प्रोस्ट्रेट को दबाया। तो फिर।

और साथ में गुड्डी भी कभी मेरे पेल्हड़ (बाल्स) सहलाती, तो कभी उसे दबा देती। जब मैंने लण्ड बाहर निकाला। तो उसपर पूरी तरह मक्खन मलाई, लिपटी चिपटी। दीदी खड़ी हुई। मुझे कुछ लजाकर, कुछ मजे से देखा और कुछ दूर हटके खड़ी हो गई और मुझे मीठी-मीठी निगाहों से देख रही थी।

तब तक मिश्रायिन भाभी मैदान में आ गई और मुझसे पूछीं- “हे अपनी बहना को मक्खन मलाई खिलाया की नहीं…”'

उनकी बात समझ के मैंने मुश्कुराते हुए ना में सिर हिलाया तो वो हड़काते हुए बोली- “लाला। नौसिखिये हो अभी। अरे गाण्ड मारने के बाद जब तक गाण्ड मरवाने वाली का मुँह जबरन ना खुलवा के उससे मक्खन मलाई न चटवाया तो गाण्ड मारने का मजा पूरा नहीं होगा…”

गुड्डी मुझे नमकीन निगाहों से देख रही थी।

मैंने उसकी ओर देखकर बोला- “भाभी। आगे से पक्का याद रखूँगा…”

गुड्डी की नीम शहद निगाहों ने मुश्कुराकर बिना बोले कहा- “धत्त बीती रात की यादें और आने वाली रातों के सपने अभी भी उसमें तैर रहे थे…”

मिश्रायिन भाभी को कहाँ फुरसत थी इन चार आँखों के खेल देखने की। वो और रीतू भाभी। उन दोनों ने झपट के दीदी को फिर से पकड़ा, निहुराया और जब तक वो बिचारी समझें। मिश्रायिन भाभी ने दीदी की गाण्ड को दोनों हाथों से चियारा और रीतू भाभी की दो उंगलियां जड़ तक गाण्ड के अन्दर और उसे मोड़कर चम्मच की तरह स्कूप बनाकर।

और सबसे पहले वो 'समोसेवाली' पकड़ी गई। रीतू भाभी ने गुड्डी को भी हुंकार लगायी। और फिर उन दोनों ने मिलकर। गुड्डी ने गाल दबाकर उस किशोरी का मुँह खुलवाया और रीतू भाभी ने दीदी की गाण्ड से निकली दोनों उंगली सीधे उसके मुँह में।

गुड्डी ने चिढ़ाया। बिचारी ने मंजन नहीं किया था ना सुबह। जरा ठीक से मंजन करवाइयेगा। इसके मोती के से दांतों पे। वो छटपटाती रही। लेकिन गुड्डी की चंगुल से बच निकलना। वो बिंदास बनारसी बाला और अब ये आँगन तो उसी का होना था। हर साल होली में ननदों के साथ हुड़दंग। और गुड्डी- रीतू भाभी की देखा-देखी, बाकी भाभियों ने भी। बस ननदें पकड़ी जाती, निहुराई जाती और उंगली पहले नीचे अन्दर और फिर मंजन। मैं बरामदे में बैठी दीदी के साथ जाकर आँगन में हो रही होली का हुडदंग देखने लगा।

दीदी ने खुद मेरे कंधे पे हाथ रखकर कहा- “वास्तव में तू बड़ा हो गया था…”

और जैसे उन्होंने मेरे आँखों की भाषा समझ ली हो- “बोली मैंने तो तुझे पहले ही लिफ्ट दी थी लेकिन तू ही…”

दीदी की बात काटकर मैं खुद बोला- “बुद्धू था मैं…”

मेरे गाल पिंच करती वो बोली- “वो तो तू अब भी है…” फिर मेरे दोनों सिर को पकड़कर सीधे होंठों पे कचकचा के किस करते बोली- “गलती मेरी है, बड़ी मैं हूँ उस दिन राखी के दिन जब तुम ना-नुकुर कर रहे थे। न वहीं पकड़कर तुझे रेप कर देती। अभी कब तक हो तुम…”

“चार-पांच दिन तो हूँ ही। हाँ रंगपंचमी के पहले बनारस जाना है। रंग पंचमी वहीं…” मैं बोला।


दीदी का हाथ मेरे कंधे पे था और अब मैंने हाथ उनके कंधे पे रख लिया था। उन्होंने अपनी साड़ी फिर लपेट ली थी, लेकिन उभार कुछ बाहर थे, कुछ झलक रहे थे। मैंने भी अपना हाथ उनके कंधे पे रख दिया। मेरी उंगलियां फिर उनके उभारों को देखकर ललचा रही थी। और दीदी ने जैसे मेरे मन की बात समझ के मेरे हाथ खिंच के सीधे अपने मस्त उभारों के ऊपर और मेरे इयर लोबस को चूम के बोली- “फिर तो तेरे जाने के पहले। एकाध बार कबड्डी हो सकती है…”

मेरे मन की बरसों की साध- “एकदम दीदी सिर्फ एकाध बार क्यों?”
Ritu bhabhi ki juban is kahani me. Mohe rang de ka komaliya ka kirdar. Dono ka apni apni chhinar nandiyo se ki mitthi chhed chhad padhne me bahot mazedar lagta he
 

Shetan

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Waah... update ne Pani nikal diya
Thanks so much
 
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komaalrani

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Ritu bhabhi ki juban is kahani me. Mohe rang de ka komaliya ka kirdar. Dono ka apni apni chhinar nandiyo se ki mitthi chhed chhad padhne me bahot mazedar lagta he
Thanks aapko accha laga HOLI ho nanad bhabhi ki chhedkhani na ho, ...aur Phagun ke din Chaar main soch rahi hun poori ki pori is forum men post karun kya khaayl hai abhi to bas kuch namune hain
 

komaalrani

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Chhutki ki kami rahe gai.
Ayegi Aayegi, vo bhi aayegi
 

komaalrani

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Shetan

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Thanks aapko accha laga HOLI ho nanad bhabhi ki chhedkhani na ho, ...aur Phagun ke din Chaar main soch rahi hun poori ki pori is forum men post karun kya khaayl hai abhi to bas kuch namune hain
Jisko aap ki adat lagi ho. Usko aapko thanks bolne ki jarur nahi komalji ulta ham aap ko thanks kahenge. Kyoki hame aap ka nasha he komalji.

Meri 1st story meri biwi police wali. Sirf 20 pages me hi vaha ek mene comment ki hui he. Me komalji aur dr chutiya ko apni prerna manti hu. Ab to aap us se bhi jyada ho.
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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पिछवाड़े का रस -दीदी का



गुड्डी भी दीदी की गाण्ड की ओर आ गई और रीतू भाभी ने फिर पूछा- “हम लोगों ने इसकी पिचकारी का रंग क्या-क्या कर दिया था…”

गुड्डी हँसकर बोली- “अरे एक रंग हो तो बताऊँ। लाल काही नीला…”

“और अब देख इस पिटारी का जादू…” हँसकर रीतु भाभी बोली।

और उसी समय दीदी की कसी अब तक कुँवारी, सटी-सटी गाण्ड से मेरा मोटा लण्ड निकला। एकदम मक्खन, दीदी की गाण्ड के रंग में रंगा। सिर्फ एक रंग। दीदी के गाण्ड के गाण्ड रस का रंग। गुड्डी और रीतू भाभी दोनों इतने जोश में आ गईं की दोनों ने एक साथ दीदी की चूत पे हमला बोल दिया। एक क्लिट दबाती तो दूसरी बुर में दो-दो उंगली डालकर चोदती।

थोड़ी ही देर में दीदी झड़ने लगी।

लेकिन वो दोनों रुकी नहीं। रीतु भाभी तो खैर, रीतू भाभी थी। लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी और दीदी का रिश्ता भी तो ननद भाभी वाला ही था। दीदी दुबारा झड़ने लगी। और जब वो झड़ती तो साथ-साथ उनकी मस्त गाण्ड मेरा लण्ड एकदम दबोच लेती, निचोड़ लेती कसकर जैसे कई पूरी ताकत से मुट्ठी में लण्ड दबा रहा हो। पागल होकर मैं भी मस्ती में तेजी से उनकी गाण्ड मार रहा था।

और जब वो तीसरी बार झड़ीं तो साथ में मैं भी। लेकिन इसमें बहुत कुछ हाथ रीतु भाभी का भी था। उन्होंने अब मेरी गाण्ड में दो उंगली हुमच के पेल दी थी और साथ-साथ ही मेरे प्रोस्ट्रेट को जमकर रगड़ दिया था। बस गिरते हुए मैं बेहोश नहीं हुआ मजे से। बाकी सब कुछ हो गया। मेरा लण्ड दीदी की गाण्ड में पूरी तरह धंसा था। और दोनों हाथ उनकी चूची पे।

मुट्ठी भर गाढ़ी रबड़ी तो दीदी की गाण्ड में गई ही होगी। और एक बार फिर रीतू भाभी की मेरी गाण्ड में धंसी उंगली ने दुबारा प्रोस्ट्रेट को दबाया। तो फिर।

और साथ में गुड्डी भी कभी मेरे पेल्हड़ (बाल्स) सहलाती, तो कभी उसे दबा देती। जब मैंने लण्ड बाहर निकाला। तो उसपर पूरी तरह मक्खन मलाई, लिपटी चिपटी। दीदी खड़ी हुई। मुझे कुछ लजाकर, कुछ मजे से देखा और कुछ दूर हटके खड़ी हो गई और मुझे मीठी-मीठी निगाहों से देख रही थी।

तब तक मिश्रायिन भाभी मैदान में आ गई और मुझसे पूछीं- “हे अपनी बहना को मक्खन मलाई खिलाया की नहीं…”'

उनकी बात समझ के मैंने मुश्कुराते हुए ना में सिर हिलाया तो वो हड़काते हुए बोली- “लाला। नौसिखिये हो अभी। अरे गाण्ड मारने के बाद जब तक गाण्ड मरवाने वाली का मुँह जबरन ना खुलवा के उससे मक्खन मलाई न चटवाया तो गाण्ड मारने का मजा पूरा नहीं होगा…”

गुड्डी मुझे नमकीन निगाहों से देख रही थी।

मैंने उसकी ओर देखकर बोला- “भाभी। आगे से पक्का याद रखूँगा…”

गुड्डी की नीम शहद निगाहों ने मुश्कुराकर बिना बोले कहा- “धत्त बीती रात की यादें और आने वाली रातों के सपने अभी भी उसमें तैर रहे थे…”

मिश्रायिन भाभी को कहाँ फुरसत थी इन चार आँखों के खेल देखने की। वो और रीतू भाभी। उन दोनों ने झपट के दीदी को फिर से पकड़ा, निहुराया और जब तक वो बिचारी समझें। मिश्रायिन भाभी ने दीदी की गाण्ड को दोनों हाथों से चियारा और रीतू भाभी की दो उंगलियां जड़ तक गाण्ड के अन्दर और उसे मोड़कर चम्मच की तरह स्कूप बनाकर।

और सबसे पहले वो 'समोसेवाली' पकड़ी गई। रीतू भाभी ने गुड्डी को भी हुंकार लगायी। और फिर उन दोनों ने मिलकर। गुड्डी ने गाल दबाकर उस किशोरी का मुँह खुलवाया और रीतू भाभी ने दीदी की गाण्ड से निकली दोनों उंगली सीधे उसके मुँह में।

गुड्डी ने चिढ़ाया। बिचारी ने मंजन नहीं किया था ना सुबह। जरा ठीक से मंजन करवाइयेगा। इसके मोती के से दांतों पे। वो छटपटाती रही। लेकिन गुड्डी की चंगुल से बच निकलना। वो बिंदास बनारसी बाला और अब ये आँगन तो उसी का होना था। हर साल होली में ननदों के साथ हुड़दंग। और गुड्डी- रीतू भाभी की देखा-देखी, बाकी भाभियों ने भी। बस ननदें पकड़ी जाती, निहुराई जाती और उंगली पहले नीचे अन्दर और फिर मंजन। मैं बरामदे में बैठी दीदी के साथ जाकर आँगन में हो रही होली का हुडदंग देखने लगा।

दीदी ने खुद मेरे कंधे पे हाथ रखकर कहा- “वास्तव में तू बड़ा हो गया था…”

और जैसे उन्होंने मेरे आँखों की भाषा समझ ली हो- “बोली मैंने तो तुझे पहले ही लिफ्ट दी थी लेकिन तू ही…”

दीदी की बात काटकर मैं खुद बोला- “बुद्धू था मैं…”

मेरे गाल पिंच करती वो बोली- “वो तो तू अब भी है…” फिर मेरे दोनों सिर को पकड़कर सीधे होंठों पे कचकचा के किस करते बोली- “गलती मेरी है, बड़ी मैं हूँ उस दिन राखी के दिन जब तुम ना-नुकुर कर रहे थे। न वहीं पकड़कर तुझे रेप कर देती। अभी कब तक हो तुम…”

“चार-पांच दिन तो हूँ ही। हाँ रंगपंचमी के पहले बनारस जाना है। रंग पंचमी वहीं…” मैं बोला।


दीदी का हाथ मेरे कंधे पे था और अब मैंने हाथ उनके कंधे पे रख लिया था। उन्होंने अपनी साड़ी फिर लपेट ली थी, लेकिन उभार कुछ बाहर थे, कुछ झलक रहे थे। मैंने भी अपना हाथ उनके कंधे पे रख दिया। मेरी उंगलियां फिर उनके उभारों को देखकर ललचा रही थी। और दीदी ने जैसे मेरे मन की बात समझ के मेरे हाथ खिंच के सीधे अपने मस्त उभारों के ऊपर और मेरे इयर लोबस को चूम के बोली- “फिर तो तेरे जाने के पहले। एकाध बार कबड्डी हो सकती है…”

मेरे मन की बरसों की साध- “एकदम दीदी सिर्फ एकाध बार क्यों?”

dumbwhoreeeee
 

komaalrani

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होली में मुशायरा-आँगन में, ननद भाभियों में


volcano

( फागुन के दिन चार कहानी का अंश- एक होली प्रसंग )

दीदी ने जैसे मेरे मन की बात समझ के मेरे हाथ खिंच के सीधे अपने मस्त उभारों के ऊपर और मेरे इयर लोबस को चूम के बोली- “फिर तो तेरे जाने के पहले। एकाध बार कबड्डी हो सकती है…”

मेरे मन की बरसों की साध- “एकदम दीदी सिर्फ एकाध बार क्यों?”

दीदी ने मेरा हाथ खिंच के अपने उभारों पे दबाते हुए बोला- “तू अभी भी बहुत भोला है, शर्मीला। ससुराल में नाक कटवाएगा हम लोगों की…”

और मेरे हाथों ने अपना काम शुरू कर दिया। उभारों की नाप जोख का। उधर ननद भाभियों की धमाचौकड़ी खतम हो गई थी। एक बार फिर से इंटरवल सा था सब लोग फिर ठंडाई, गुलाब जामुन, गुझिया और कोल्ड-ड्रिंक (दारू से लेस्ड) खतम करने में लगे थे।

तब तक गुड्डी आकर धम्म से हम दोनों के पास बैठ गई और दीदी को आरेंज जूस का एक कार्टन पकड़ा दिया और हँसते हुए बोली-

“आपका बहुत आरेंज जूस दब दबाकर हम लोगों ने निकाल लिया है। थोड़ा भरपाई कर लीजिये…”

दीदी ने सील बंद देखकर बिना डर, जब तक मैं रोकूँ, कार्टन खोलकर सीधे मुँह में गटका और फिर मेरी ओर इशारा करके, गुड्डी के फटे टाप से बाहर झांकते, रंग लगे कबूतरों को मसल के चिढ़ाया- “तेरा तो आरेंज जूस निकालने का परमानेंट इंतजाम कर दिया है हम लोगों ने…”

गुड्डी कुछ शर्माई, कुछ झिझकी लेकिन वो बिंदास बनारसी बाला बोली-

“आपके मुँह में घी शक्कर। लेकिन चलिए आप भी क्या याद करिएगा। होली के मौके पे वो जूसर आपको दिया…”

मेरे हाथ भी भी दीदी की नारंगियों पे थे। दीदी ने चार-पांच बड़े-बड़े घूँट लेकर आरेंज जूस का कार्टन मेरी ओर बढ़ा दिया। मैं उन्हें कैसे बताता की इसमें आरेंज जूस से ज्यादा आरेंज वोदका मिली है। जो भांग मिली ठंडाई से दस गुना ज्यादा नशीली है। गुड्डी ने और चढ़ाया,

" कैसे भाई हो बहन इत्ते प्यार से दे रही है और तुम नखड़ा दिखा रहे हो।"

मैंने ले लिया।

तब तक रीतू भाभी भी मेरे दूसरी ओर आकर बैठ गईं। उनके हाथ में भी वाही आरेंज वोदका मिली आरेंज जूस का कार्टन था और उसे पीते हुए वो बोली-

“सिर्फ बहन की ही लेते हो या भाभी की भी और उन्होंने अपना आरेंज जूस का कार्टन बढ़ा दिया।

गुड्डी भी और आग लगाया उसने-

“अरे जो आदमी खुद अपनी शर्ट के पीछे अपना नाम बहनचोद। लिख के घूमता फिरे उससे पूछना क्या?”

मेरा दूसरा हाथ रीतू भाभी की गीली रंग से भीगी पारदर्शी साड़ी से झांकते उभार पे और मैंने उनके कार्टन से भी सिप ले ली। दोनों ने मिलकर आधा कार्टन मेरे पेट में। बाकी रीतू भाभी और दीदी। हाँ गुड्डी जो बहुत बोल रही थी उसको भी दोनों ने पकड़ कर दो-चार पेग के बराबर पिला ही दिया। असर हम सब पे पांच मिनट में चालू हो गया। होली का रंग चारों ओर था।

घर के बाहर से हुरियारों के होली के भोजपुरी गानों की आवाज-

रँगे के बा घाघरा चोलिया हो। घाघरा चोलिया।

कोई दूसरी टोली गा रही थी।


कच्चे कच्चे दू गो अनार बा। रंगे के तैयार बा न।

और साथ में कबीरा होली और जोगीडा की आवाजें। आरेंज वोदका का जोश। और आँगन में भी अब वही गानों, गालियों के रंग। भाभियां ननदों को पकड़ पकड़कर नचा रही थी। उनसे गालियां दिलवा रही थी। वो भी मेरा नाम लेकर। आरेंज वोदका का जोश गुड्डी पे भी चढ़ गया वो मेरे, दीदी और रीतू भाभी के साथ आँगन के किनारे बैठी थी।

मैंने उससे कहा- “हे तेरे पे भी नशा चढ़ रहा है…”

तो गुड्डी वहीं से एक शेर बोली-


“फुद्दी का नशा प्यारे, नशा सब से नशीला है,

जिसे देखो यहाँ चूत के पानी से गीला है।
 
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