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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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Ab is wajah se purane kisse wapas dhunn dhunn ke padne padenge 😂
ekdam ye sab to teaser the, vaise main sochti hun Phagun ke din chaar ko is forum men post kar dun, bina koyi addition ke bina pictures ke. shaayd kaafi logo ne naa padha ho, aapka kya khyaal hai
 

komaalrani

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Waise holi ka maza to gaon mei hai, hum jaise nomad to bas komalji ke lekhni se apni yaade taza kar lete hain
apane dil ka dukh dard kah diya,... Gaon men ghar parivaar padosiyon ke saath,... shahar men to farz adayagi ho jaata hai .
 

komaalrani

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होली ' दीदी ' के साथ - होली घर आंगन में

( फागुन के दिन चार से )



एकदम रीतू भाभी बोली, तब तक एक-दो और भाभियां मैदान में आ गई थी, कुँवारा देवर मिला था, और उन्होंने मिलकर मेरी टी-शर्ट खींचकर उतार दी। मैं अभी भी टापलेश नहीं हुआ था लेकिन अगले पल हो गया। मेरी बन्याइन के चिथड़े चीथड़े उड़ गए, रीतू और उनकी सहेली भाभियों के सौजन्य से और वो चिथड़े उन्होंने मेरे हाथ में दे दिए।

रीतू भाभी मेरे निपल पिंच करती बोली- “पहले तेरी बहनों की ब्रा फाड़ी थी अब तेरी ब्रा का नम्बर…”

तभी मेरी टी-शर्ट पर जो अब उतर के भाभियों के हाथ में थी, पर मिश्रायिन भाभी की निगाह पड़ी, और वो भी ठठा के हँस पड़ी और बोली। जरा लाला को भी तो देखाओ। अब मैं समझा क्यों सब हँस रही थी। मेरी शर्ट पर खूब बड़े-बड़े अक्षरों में लाल रंग से लिखा था- “बहनचोद”

और उसके नीचे, थोड़े छोटे अक्षरों में- “बहन का भंड़ुआ…”
और सबसे नीचे फिर बड़े अक्षरों में- “गान्डू…”

मैं शर्मा रहा था, झिझक रहा था। बनारस की बात और थी लेकिन यहाँ अपने घर में और ये सब भाभियां, लड़कियां, रोज कहीं न कहीं मुलाकात हो जाती थी, उन सबके सामने। और वो सब मुझे चिढ़ा रही थी, मोहल्ले के रिश्ते से, बहनें लगने वाली, मेरी भाभी की ननदें, लड़कियां भी और भाभियों का तो पूछना ही नहीं।

तभी मेरी निगाह गुड्डी पे पड़ी। उसकी हालत भी अब मेरी जैसे ही हो गई थी। टापलेश तो नहीं हुई थी, हाँ टाप अच्छी तरह से फट और खुल चुका था। और दीदी और वो 'समोसेवाली' उसे दबोचे थी। यही नहीं, दोनों के एक-एक हाथ गुड्डी के जोबन पे थे, खुलकर मसलते रगड़ते।

कोई भाभी बोली- “अपने पिछवाड़े इ गारी लिखकर घुमने का कौनो नया फैशन चला है का। कौन लिखले हौ…”

मेरी निगाह सीधे गुड्डी पे पड़ी उसेक अलावा ये शरारत और किस की हो सकती थी। गुड्डी टुकुर-टुकुर देख रही थी, फिस्स से हँस और झट से बोल पड़ी-

“अरे नहीं। गाली और शर्म किस बात की, जैसा काम वैसा नाम। तो जो जो करते हैं वही लिख लिए होंगे…”

रीतू भाभी अपने दोनों हाथों से मेरे पीठ पे रंग और कालिख रगड़ते गुड्डी से बोली-

“त तोहार का मतलब है की हमारे देवर नम्बरी…”

“बहनचोद हैं…” बात शीला भाभी ने पूरी की और जवाब भी दिया।

“अरे हैं तो हैं, एहमे कौन बुरी बात है। अरे ससुरी हमार सब ननदिए, एनकर बहनी सब ऐसन छिनार हैं साल्ली, झांट बाद में आती है लण्ड के चक्कर में पहैलवे पड़ जाती हैं। पूरे मोहल्ले में बांटती है तो तनी एनाहू के चखाय देंगी तो कौन घिस जाएगा…”

और मेरी निगाह दीदी पे उसी समय पड़ी।

एकदम तन्वंगी, सिर्फ एक साड़ी में लिपटीं, जो रंगों के असर से पारदर्शी नहीं तो पारभासी जरूर हो गई थी। गद्दर जोबन एकदम कड़े-कड़े, लाल, काही रंगों में रंगे, लिपटे साफ-साफ दिख रहे थे यहाँ तक की निपल भी, आलमोस्ट कंचो के साइज के। हम दोनों की निगाहे मुश्कुरायीं, एक दूसरे को देखकर हाई फाइव किया। दीदी ने गुड्डी को दबोच रखा था। जैसे कोई शेरनी, हिरनी के बच्चे को दबोचे। और अभी कुछ देर पहले जैसे भाभियां, इनकी रगड़ाई कर रही थी। वो गुड्डी को रंग कम लगा रही थी, रगड़ाई ज्यादा कर रही थी, अगवाड़े भी पिछवाड़े भी।
तभी उस 'समोसेवाली' कच्ची कली की आवाज सुनाई पड़ी। सिसकी भी चीत्कार भी।

शीला भाभी की वो पकड़ में आ गई थी और शीला भाभी तो गावं की एक्सपर्ट कन्या प्रेमी। वो बिचारी ओवर साइज पिंक शार्ट पहनकर आई थी की बच जायेगी, लेकिन। शीला भाभी ने उसे उतार फेंका और अब बस वो टाप और पैंटी में। भाभी का एक हाथ पैंटी में था और दूसरा टाप में और थोड़ी देर में चर्रर्र चर्र की आवाज सुनाई पड़ी। टाप फट गया। उसके छोटे-छोटे समोसे साफ दिख रहे थे। टीन ब्रा तो भाभियों ने पहले राउंड में फाड़कर फेंक दी थी।

लेकिन जैसे मेरी निगाह उससे मिली वो जोर से और मुश्कुरायी, हल्के से आँख मार दी। लेकिन उसके बाद मैं कुछ देखने की हालत में नहीं रहा।

रीतु भाभी का हाथ मेरे चेहरे पे था बार्निश की नई कोट पेंट करता हुआ। लेकिन सिर्फ एक हाथ, दूसरी भाभी आधे चेहरे पे कालिख रगड़-रगड़ कर लगा रही थी। रीतू भाभी अकेले एक साथ कई हमलें कर सकती थी अब मुझे मालूम हुआ। उनका एक हाथ मेरे मुँह पे तो था ही अब, शर्ट ब्न्याइन विहीन नग्न पीठ पे उनके जोबन, जो फटे ब्लाउज़ में मुश्किल से छुपे थे, रंग लगा रहे थे। और यही नहीं दूसरा हाथ अब पैंट के अंदर मेरे पिछवाड़े नितम्बों पे फिर नितम्बों के बीच सीधे 'वहां' रंग लगा रहा था। अचानक मेरी जोर की चीख निकल गई, रीतु भाभी की पिछवाड़े वाली उंगली अब अन्दर घुस गई थी, पूरी।

“काहो लाला, इत्ते चिकने हो, बचपन से मरवाते हो। एक उंगली पे इ हाल है ता ससुरारी में ता मोट मोट…” रीतू भाभी ने छेड़ा।

जवाब उनकी सहेली और आगे से रंग लगाते भौजी ने दिया। बोली- “कौनो बात नहीं लगता है प्रैक्टिस छूट गई है अरे हम लोग करवा देंगे…”

और साथ ही उन भाभी का हाथ मेरे पैंट के अन्दर, और तन्नाते चर्म दंड पे उन कोमल कोमल हाथों से लाल पेंट की रगड़ाई। अब एक साथ आगे-पीछे दोनों ओर से हमला। चेहरे, सीने और पीठ पे कई कोट रंग तो पहले ही पुत चुके थे अब लेकिन होली। बिलों द बेल्ट चालू हो गई थी। रंगों के साथ गालियां भी। वो भी होली मार्का। लेकिन मेरे भी दिन बहुरे, आगे से रंग लगा रही भाभी अपना स्टाक रिप्लेनिश करने बरामदे की ओर गईं और झुक कर मैं रीतू भाभी के चंगुल से निकल गया।

“हहे देवरजी इ बेईमानी है। डर गये क्या, जो भाग रहे हो?”

तब तक पीछे से मैंने अंकवार में उन्हें धर दबोचा और एक हाथ ब्लाउज़ के ऊपर से और दूसरा अन्दर। भला हो मेरी कालोनी की बहनों, उनकी ननदों का जिन्होंने रीतू भाभी की ब्रा पहले ही लूट ली थी। इसलिए इस देवर को अब जोबन लूटने में कोई दिक्कत नहीं थी।

दोनों चूचियों को कचकचा के मसलते मैंने उन्हें छेड़ा-

“अरे रीतू भाभी, इ होली के मौके पे कौनो बेवकूफे देवर होगा जो तोहरे अस गद्दर जोबन वाली भौजाई को बिना रगड़े छोड़ेगा…”

और जवाब में रीतू भाभी, ने अपने मस्त भरे-भरे चूतड़ मेरे पैंट फाड़ते लण्ड पे रगड़ दिया। मेरे जंगबहादुर बौरा गए। मेरे हाथ ने रीतू भाभी का साया विहीन साड़ी पीछे से उठा दिया। क्या मस्त गाण्ड फाड़ू चूतड़ थे रीतू भाभी के। सच। जैसे गद्दर जोबन, वैसे गद्दर चूतड़, खूब भारी, कड़े, जब वो चलती थी तो शादी के बाद से ही, उनका जान मारूं पिछवाड़ा देखकर मेरी क्या, सबकी हालत खराब हो जाती थी और हमसे ज्यादा रीतू भाभी हमारी हालत जानती थी इसलिए थोड़ा और ही चूतड़ मटका देती थी। और आज वही चित्तौड़ गढ़ मेरे हाथ में था।

मैंने रंग पैंट सब लगाया। मसला और मेरी उंगली सीधे पिछवाड़े। आखीरकार, उन्होंने भी तो मेरी उंगली की थी। लेकिन मेरी उंगली रीतू भाभी की बुर में घुसी और भाभी ने अपनी बुर सिकोड़ ली, जैसे कोई प्रेमिका के घर में घुस जाय और और सजनी उसे अन्दर लेकर सांकल बंद कर दे। लेकिन रीतू भाभी इत्ती सीधी भी नहीं थी। वो मेरे सामने खड़ी थी मेरी ओर पीठ कर के, और उन्होंने हाथ पीछे कर के मेरे खूंटे को, पैंट के अन्दर हाथ करके पकड़ लिया।

तब तक दो-तीन और भाभियां आकर शामिल हो गई, एक ने एक बाल्टी रंग सीधे मेरी पीठ पे फेंकी। पूरी तेजी से। दूसरी ने मुझे दिखाते हुए रंगों, पैंट और सीधे कड़ाही से निकाली कालिख का काकटेल बनाकर सीधे मेरे पैंट में, पिछवाड़े और दोनों नितम्बों की जमकर रगड़ाई शुरू हो गई। और कुछ देर तरजनी फिर पिछवाड़े। और साथ में उनकी गालियां भी।

“साले तेरी बहनों की बुर का भोंसड़ा और तुझे गान्डू बनाकर छोडूंगी, डलवा चुपचाप।"

और तीसरी भाभी के हाथ के रंग मेरे सीने पेट पे लग रहे थे। जिनके जरा सा छुअन से पूरे देह में सिहरन उठ जाती थी, उन्चौसो काम पवन एक साथ चलते थे।

वही जोबन के मद में माती, मदमाती रस की गागर भाभियां। खुद मेरी देह में। लेकिन मेरा और रीतू भाभी का होली का प्रोग्राम बदस्तूर जारी था। उनका ब्लाउज़ अब तार तार हो चुका था। मेरे हाथ उसी तरह से जोबन की रगड़ाई कर रहे थे तो कभी निपल पिंच कर लेते। मेरा दूसरा हाथ उनकी रस मलाई का नीचे रस ले रहा था और एक उंगली अंदर। रीतू भाभी के भरतपुर का मंथन कर रही थी। और रीतू भाभी तो मुझसे भी दस गुना जोश में मेरा लण्ड ऊपर-नीचे। आगे-पीछे कर रही थी। कभी खुले सुपाड़े को रगड़ भी देती अंगूठे से। तब तक मिश्रायिन भाभी की आवाज गूंजी। अरे अभी ये साल्ला, छिनार का पैंट, उसका पहले चीर हरण तो करो इसका फिर नंगे नचाओ।

अगले ही पल दोनों भाभियों ने मेरा हाथ पीछे से पकड़कर किसी किशोर ननद की खिंच के जबरन उतारी गई तीस नम्बर की ब्रा से मेरा हाथ बाँध दिया और पेंट उतारने की रस्म रीतु भाभी ने पूरी की। बड़े आराम से। सबको दिखाते हुए।

पहले रीतु भाभी ने बहुत प्यार से सबको दिखाते हुए मेरे तम्बू के बम्बू को पैंट के ऊपर से सहलाया। फिर धीमे-धीमे बटन, फिर जिपर खोला और फिर तीनों भाभियों ने मिलकर एक साथ सर्ररर, पैंट नीचे खिंचा और जब तक मैं समझू। रितू भाभी ने उसका बाल बनाया और पूरी तेजी से वो छत के ऊपर पहुँच गया। और मैं मात्र चड्ढी में। वो चड्ढी भी वी टाइप बस किसी तरह खूंटे को छुपाये। मेरी सारी भाभियां, लड़कियां, आँगन बरामदे में बैठी रिंग साइड सीट पे देख रही थी। फूल मांटी।

अब आगे का काम कौन संभालेगा। रीतू भाभी ने सभा को चुनौती दी। दीदी ने गुड्डी को खींचकर आगे कर दिया-

“ये हक सिर्फ इसका है…”

गुड्डी ने रीतू भाभी के कान में कुछ कहा। गुड्डी और रीतू भाभी की पक्की दोस्ती हो गई थी और रीतू भाभी ने जाकर, 'समोसेवाली' को भी पकड़कर लाकर खड़ा कर दिया, और बोली-

“ये हक तो आज एक कच्ची कली वाली बहन का ही है…”
 

komaalrani

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'समोसेवाली'





और मैं मात्र चड्ढी में। वो चड्ढी भी वी टाइप बस किसी तरह खूंटे को छुपाये। मेरी सारी भाभियां, लड़कियां, आँगन बरामदे में बैठी रिंग साइड सीट पे देख रही थी। फूल मांटी।

अब आगे का काम कौन संभालेगा। रीतू भाभी ने सभा को चुनौती दी। दीदी ने गुड्डी को खींचकर आगे कर दिया- “ये हक सिर्फ इसका है…”

गुड्डी ने रीतू भाभी के कान में कुछ कहा। गुड्डी और रीतू भाभी की पक्की दोस्ती हो गई थी और रीतू भाभी ने जाकर, 'समोसेवाली' को भी पकड़कर लाकर खड़ा कर दिया, और बोली-


“ये हक तो आज एक कच्ची कली वाली बहन का ही है…”

गुड्डी अब काम पे लग गई और मेरी भाभियों ने मुझे जबरन निहुरा दिया। गुड्डी ने पहले सब लड़कियों, भाभियों को दिखाते हुए मेरे नितम्बों को सहलाया, मसला। ब्रीफ इतनी छोटी थी की बस। नितम्ब के दर्रे में फँसी हुई थी और उसे जरा सा सरका कर अंदर का भी दृश्य दिखाया। कालिख, लाल काही नीला तरह-तरहकर रंग, पेंट। और आँख मटका कर पहले आडियेंस से फिर मुझसे पूछा-


“क्यों? मार लिया जाय की छोड़ दिया जाय। बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाय…”

चारों और से आवाज उठी- “मार लिया जाय… मार लिया जाय…”

और सबसे तेज रीतु भाभी की- “अरे इत्ते मस्त चिकने की इत्ती मस्त गाण्ड। वो भी होली के दिन। न मारना सख्त नाइंसाफी है…”


गुड्डी मेरी पिछवाड़े की दरार में उंगली फिरा रही थी। फिर उसने एक झटके में चड्ढी थोड़ी नीचे सरका दी। अब नितम्ब तो खुल ही गए थे। बीच का छेद भी दिख रहा था। गुड्डी ने उसे पहले लोगों को भर नजर देख लेने दिया। और फिर नीलाम वाले की तरह बोली लगाने लगी।

इत्तनी मस्त मक्खन मलाई गाण्ड। होली का स्पेशल डिस्काउंट। जिसको देखकर बनारस के सारे लौंडेबाजों का मन डोल उठा बचाकर मैं यहाँ ले आई किसी तरह से। बोली बोली लगाओ।

सबसे पहली बोली लगायी। रीतू भाभी ने। चार आने। हँसते हँसते सबकी हालत खराब थी।



गुड्डी ने बुरा सा मुँह बनाया- “अरे इत्ता कम दाम। इत्ते गोरे गालों वाले चिकने लौंडे की कुछ तो कीमत बढ़ाओ…”

हँसते हुए अब मेरी भाभी मैदान में आ गईं और बोली- “पांच आने…”

“पांच आने में क्या होगा?” गुड्डी दुखी होकर बोली, फिर उसने कुछ जैसे सोचकर जोड़ा-

“चलिए। आप भी क्या याद करेंगी की किसी बनारस वाली से पड़ा था। होली क स्पेशल डिस्काउंट। एक के साथ एक फ्री। इनकी कुँवारी सो काल्ड बहन कम मस्त माल। सारे शहर का धमाल, बड़ी कैपिसिटी है उसकी। एक के साथ एक फ्री इनके साथ। इनकी बहन रंजी गदहे की गली वाली।"

रीतू भाभी फिर मैदान में आई- “चल तू बोलती है तो आठ आने…”


“आठ आने, आठ आने। आठ आने में तो… चाय दस रूपये, खाना बारह रूपये। नहीं दाम बढ़ाइए…”

फिर गुड्डी मेरे पास आ गई और मेरे दोनों नितम्बों को जैसे उसने बहुत जोर लगाकर फैलाया, और मुश्किल से तरजनी का एक पोर घुसेड़ा। और फिर सबको दिखाकर बोली-

“एकदम कोरी है। अप के ननदों की तरह नहीं की। झांटे आई नहीं और बैगन, खीरा सब अन्दर…”

एक बार फिर सारी भाभियों की हँसी का फुहारा फूट पड़ा। और मेरी भाभी और रीतू भाभी की आवाज एक साथ सुनाई पड़ी-

“ये बात तूने एकदम सही कही। बैगन और मोमबत्ती का दाम कभी कम ही नहीं होता…”

उसने फिर बोली शुरू की आठ आने आठ आने। तब तक मेरी भाभी ने फिर आवाज लगायी- “मेरी सारी ननदे शामिलकर दे तो एक रूपये में…”

चलिए गुड्डी ने आवाज लगाई-

“आप भी क्या याद करेंगी। ये और उनकी सारी ममेरी चचेरी फुफेरी मौसेरी बहनें। एक रूपये। एक रूपये…”

तब तक जैसे कोई मोबाइल बजा हो। उसने फोन उठाया। फिर मेरे कान में बात करने का नाटक किया और बोली, कम है थोड़ा और ओके। फाइनल…”

और फोन रखकर बोली- “आप मौका चूक गईं। माल बिक गया…”

“कितने में?” सबने एक साथ पूछा।

“बीस आने में। ये और साथ में इनकी साऱी मायकेवालियां। बनारस से फोन आया था…” हँसकर वो बोली।

किसी लड़की ने पूछा- “कौन है वो?”

गुड्डी घूम के आँख मटका के बोली- “इनकी होने वाली सास। अब नथ वही उतारेगी…”



मिश्रायिन भाभी गुड्डी से बोली-

“चल अब औजार तो दिखा। और गुड्डी ने 'समोसेवाली' की ओर मुँह करके कहा-

“चल अब तेरा काम शुरू। पकड़ो, पकड़ो काटेगा नहीं। चड्ढी के ऊपर से ही उस 'समोसेवाली' कच्ची कली के हाथ में जबरन पकड़ाते हुए गुड्डी बोली।

मैं देख रहा था की रीतू भाभी गुड्डी को कैसे उकसा रही थी। दोनों ने ही मुझे उस 'समोसेवाली' से नैन मटक्का करते देख लिया था। ना ना करते उसने चड्ढी के ऊपर से पकड़ लिया और हल्के से दबा दिया। गुड्डी ने उसे फूसफुसा के समझाया-

“सोच, जब तेरे हाथ में ये इत्ता मजा दे रहा है तो तेरी फुद्दी में घुस के कितना मजा देगा। ले ले…”

“खोलो, खोलो, खोलो…” सब भाभियां चिल्ला रही थी।

फिर कालोनी की लड़कियों ने भी जवाइन कर लिया- “खोलो खोलो…”
गुड्डी और उसने मिलकर चड्ढी को थोड़ा नीचे किया। अब ‘वो’ थोड़ा-थोड़ा दिख रहा था।

“खोलो, खोलो…” शोर आसमान छू रहा था। के हवाले और अब गुड्डी ने मैदान उस 'समोसेवाली' के हवाले कर दिया, और उसने एक झटके में, जैसे कोई स्प्रिंग वाला चाकू निकल आये आठ इंच का, बस उसी तरह से वो उछलकर बाहर आ गया। खूब मोटा कडियल। लाल पीले नील रंगों से पुता। एक पल को सन्नाटा सा छा गया। फिर खूब जोर-जोर से हो हो शुरू हुआ।

पहले लड़कियों ने फिर रीतू भाभी और फिर मेरी भाभी भी। मिश्रायिन भाभी तारीफ वाली नजर से देख रही थी। तो भाभी ने उनके कान में कुछ कहा जैसे कह रही हों आखीरकार, देवर किसका है?

गुड्डी ने उस 'समोसेवाली' का हाथ पकड़कर जबरन मेरे खूंटे पे पकड़वा दिया और बोला- “चल अब ले मजा खुलकर…”

उसने थोड़ा मुँह बनाया, थोड़ी ना-नुकुर की, लेकिन गुड्डी के आगे किसी की चली है, जो उसकी चलती। और मन तो उसका भी कर रहा था। फिर तो दोनों हाथों से पकड़कर उस कच्ची कली ने जिसके ‘छोटे-छोटे समोसे’ के सब दीवाने थे, हल्के-हल्के आगे-पीछे करना शुरू कर दिया।

लण्ड एकदम टन्न।

लड़कियों ने भाभियों ने जोर-जोर से शोर मचाना शुरू किया। वो सब भी ठंडाई, वोडका, रम और जिन के नशे में टुन्न थी।

“खोलो, खोलो…” और उस छुटकी ने सबको ललचाते, दिखाते, आखीरकार, एक झटके में खोल दिया। सुपाड़ा बाहर। मस्त गुस्सैल पहाड़ी आलू ऐसा मोटा, लाल। एक बार फिर सन्नाटा छा गया। सबकी आँखें वहीं गड़ी। और फिर। हो हो हो हो हो। जोर का शोर।

और गुड्डी ने 'समोसेवाली' को पकड़कर घोषणा कर दी की-

“अब ये इसे पूरा मुँह में लेकर दिखायेगी…” वो लाख ना-नुकुर करती रही, पर गुड्डी कहाँ मानने वाली।
साथ-साथ में आँगन में बैठी भाभियों का शोर गुंजा- “हाँ हाँ हाँ…”

और गुड्डी का साथ देने रीतू भाभी मैदान में आ गई। उसको समझा के बोली-

“ज्यादा छिनारपन मत कर। अभी तो ये खाली मुँह की बात कर रही है। मैं होती तो नीचे वाले मुँह में घुसवाती। ले ले मजा आयेगा…”

वो रीतु भाभी की ओर मुड़कर बोली- “नहीं भाभी नहीं जाएगा। बहुटी मोटा है…”

गुड्डी ने हड़काया- “तो फिर मुट्ठ मारकर खड़ा क्यों किया। लेना तो पड़ेगा ही…”

रीतू भाभी ने समझाया- “अरे यार लालीपाप चूसती है की नहीं। कार्नेटो का कोन लेती है की नहीं। बस अच्छा चल थोड़ा सा ले। बहुत थोड़ा सा ले ले। फिर मैं गुड्डी को मना लूंगी जल्दी कर…”

'समोसेवाली' बिचारी। मन तो उसका भी कर रहा था। उसने थोड़ा सा मुँह खोला और गुड्डी ने मेरा लण्ड सीधे उसके होंठों के बीच। फिर तो वो लाख गों गों करती रही। सिर हिलाती रही लेकिन रीतू भाभी के चंगुल में आ गई थी। वो जबरन उसका सिर पकड़ पीछे से ठेल रही थी। और इधर गुड्डी भी जबरन मेरे लण्ड के बेस पे हाथ से पकड़कर उसे पूरी ताकत से पुश कर रही थी।

करीब चार इंच। आधा घुस गया तो दोनों रुकी और रीतू भाभी ने उसे, 'समोसेवाली' को छेड़ा, आखीरकार, उनकी ननद लगती थी-

“क्यों कैसा लग रहा है भैया का लण्ड चूसने में। आज होली में तूने अच्छी शुरूआत कर दी है अब चल। अगली होली तक तेरे मुहल्ले के जितने भैया लगते हैं। सबके चुसवा दूंगी…”


और फिर मोबाइल के कैमरे सीधे क्लोज अप।

और फिर रीतू भाभी मेरे पीछे साथ में साऱी भाभियां भी। बहनचोद, बहनचोद। जब थोड़ी देर वो चूस चुकी तो रीतू भाभी ने फिर उसका सिर पीछे से पुश किया और अब तो मैं भी मेरे हाथ उसके 'समोसे' पे। गुड्डी ने कब का उसका 'टाप उतार फेंका था।

मैंने जोश में थोड़ा और पेला। करीब छ इंच तक उसने घोंट लिया और पांच-छ मिनट तक रीतू भाभी ने उस कच्ची कली को चुसवाया।

तब तक गुड्डी अपने हाथ में मेरे चड्ढी लिए आनाउन्स कर रही थी। वो जोर-जोर से बोल रही थी-

‘ये जिसके ऊपर गिरेगा। बस उसकी किस्मत। उसकी लाटरी खुल गई। आज होली के दिन होलिका माई का परसाद, ये मस्त खड़ा झंडा। आगे से पीछे से…”

“अरे साफ-साफ काहें नहीं बोलती, चूत में गाण्ड में…” मंजू ने उसे हड़काया।

गुड्डी लेकिन बिना रुके बोलती रही- “फिर कोई ना नानुकुर नहीं चलेगी। बोलो फेंकू…”
तब तक कोई लड़की बोली- “ये बेईमानी है। आप आँख बंद कर के फेंकिये…”

 

komaalrani

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दीदी


गुड्डी लेकिन बिना रुके बोलती रही- “फिर कोई ना नानुकुर नहीं चलेगी। बोलो फेंकू…” तब तक कोई लड़की बोली- “ये बेईमानी है। आप आँख बंद कर के फेंकिये…”

चलो तेरी ही बात मान ली। और गुड्डी ने आँख बंद करके एक चक्कर लगाया और मेरी ब्रीफ फेंक दी। वह सीधे मंजू और शीला भाभी के बीच दीदी बैठीं थी, उनके ऊपर और इतनी तेजी से की उनकी साड़ी नीचे और दोनों रसीले जोबन बाहर।

मेरी आँखें वहीं चिपकी रह गई। एकदम कड़े, खूब भरे-भरे। मंजू और शीला भाभी ने उन्हें पकड़कर खड़ा कर दिया और वो युद्ध स्थल पर आगन के बीच में। जहाँ कुछ देर पहले वो कच्ची कली मेरा लण्ड चूस रही थी और अब थक के उसने मुँह हटा लिया था।

“चल अब छोटी बहन के बाद बड़ी बहन का नंबर…” रीतू भाभी बोली और दीदी के गुलाबी रसीले होंठ मेरे तन्नाये सुपाड़े पे लगा दिए।
दीदी ने भी बिना देर किये पूरा सुपाड़ा गप्प कर लिया। गुड्डी ने भी मौके का फायदा उठाया और झुकी हुई दीदी की साड़ी कमर के नीचे तक सरका दी।

और अब उनके मस्त, बड़े-बड़े गदराये उभार मेरी आँखों के सामने। बचपन में कितनी बार उनके बारे में सोच सोच कर मेरा खूंटा खड़ा हुआ था और आज एकदम।

गुड्डी ने मुझे आँखों से उकसाया और मेरे दोनों हाथ दीदी की रसीली चूचियों पे। एकदम मस्त लड्डू, दो जैसे मेरे हाथ में आ गए हों। कित्ती यादें और आ गई साथ में उसे मीठा करने के लिए। पहले तो मैंने हल्के से छूवा। जैसे राखी वाले दिन दीदी ने छुलाया था, फिर जोर से गपुच लिया। दोनों हाथों से हल्के-हल्के कभी सहलाता, तो कभी दबा देता और कभी उसके शिखर पर घुंडी जैसे निपल, गोल गुलाबी। उन्हें भी फ्लिक कर देता। दीदी भी चूसते हुए मेरी शरारतों को देखकर वो दिन याद करती और आँखों-आँखों में मुझे देखकर मुश्कुरा देती। दीदी अब अनुभव हो गई थी। इसलिए उस 'समोसेवाली’ की तरह घबड़ा नहीं रही थी। प्यार से धीरे-धीरे उन्होंने करीब छ इंच गपक लिया। मैं लगातार उनके जोबन का रस लेता हुआ अपने ग्यारहवीं-बारहवीं के दिनों की यादों में डूब उतरा रहा था।

लेकिन रीतु भाभी। इत्ते से संतुष्ट नहीं होने वाली थी-


“अरे मेरी बांकी छिनार। इत्तना तो वो कच्ची कली कल की बछेड़ी घोंट गई थी। पूरा लेने का है वरना मेरे देवर बाकी का क्या तेरी। की। "

और जोर से उन्होंने ऊपर से दीदी का सिर पुश कर दिया…”

गों गो करते हुए दीदी आलमोस्ट पूरा घोंट गई। एकाध इंच बाहर रहा होगा। लेकिन रीतू भाभी ने सिर पर से दबाव हटाया नहीं। तब तक मंजू भी हम लोगों के पास आ गई और उसने दीदी की साड़ी को मोड़कर कमर तक पहुँचा दिया। बस एक पतले से छल्ले की तरह और वो दीदी की खुले हुये नितम्ब सहलाने लगी। पूरी तरह ना जाने कितने पेंट रंग वहां चुपड़े हुए थे।

लेकिन उसकी मस्ती उससे बढ़ ही रही थी, उसके कटाव, कड़ापन, उभार, एकदम ठोस। बस देखकर मन, हाँ वही गाण्ड मार लेने का कर रहा था। और बस ये सोचते हुए दीदी का मुँह अब मैं खूब जोर-जोर से चोदने लगा जैसे की उनकी गाण्ड ही मार रहा हूँ। और उधर रीतू भाभी की छेड़खानी और दीदी के सिर पे उनका दबाव। एकदम पूरा आठ इंच अन्दर।

दीदी के गाल पूरे तरह फूले फूले लण्ड से, आँखें भी चूसते हुए बस उबली पड़ रही थी। सुपाड़ा उनके गले से बार-बार रगड़ रहा था और तभी मिश्रायिन भाभी की आवाज गूंजी-


“हे खाली मुँह में लेने की नहीं हुई थी आगे या पीछे घोंटना होगा। पूरा…”

दीदी ने जोर-जोर से न में सिर हिलाया। मैं सोच सकता था क्यों? अभी कुछ देर पहले तो उनकी रामप्यारी भाभी की पूरी मुट्ठी घोंट चुकी थी। दर्द के मारे अभी भी बुरा हाल होगा वहां तो।

लेकिन मंजू ने बात सम्हाल ली।
दीदी के चूतड़ प्यार से सहलाते हुए वो बोली-


“अरे सुन घबड़ा मत आगे नहीं तो पीछे से ले ले ना। अरे हमरी नाही तो अपनी भाई की सोच। बचपन से तेरे नाम पे मुट्ठ मारता होगा…”

मंजू का बात एकदम सही थी।

तीन चीजें एक साथ हुई। मंजू की बात सुनकर मारे खुशी के मैंने जोर-जोर से दीदी का मखमली मुँह चोदना शुरू कर दिया। दीदी के निपल जोर से पिंच करके मरोड़ते हुए रीतू भाभी बोली। अरे लाल्ली। खूब थूक लगाकर चाटना, यही चिकनाई मिलेगी। हम कोई क्रीम वरिम नहीं लगाएंगी।

गुड्डी मुँह बनाकर बोली- “सरसों का तेल भी नहीं…”

और रीतू भाभी ने साफ मना कर दिया और मंजू ने पूरी ताकत से अपनी तरजनी, दीदी की गाण्ड में घुसेड़ दी लेकिन एक पोर ही जा पायी।

मंजू दीदी से बोली- “अरे का नंदोई जी तोहार पिछवाड़े एक दिन भी ना मरवाई हो का…”

दीदी ने मेरा लण्ड मुँह में घोंटे घोंटे, जोर से ना में सिर हिलाया। मंजू अभी भी दीदी की गाण्ड में उंगली गोल-गोल घुमा रही थी और उनके जोर और प्रैक्टिस के बावजूद सिर्फ दो पोर अन्दर घुस पाया था।

मंजू ने फिर दीदी से पूछा- “का तोहार इ अभी कोरी हौ?”

दीदी ने जोर से हाँ में सिर हिलाया और रीतु भाभी ने मुझे इशारा किया। मैंने दीदी के मुँह में से लण्ड बाहर खींच लिया। बिना बोले उन्होंने और मंजू ने पास पड़ी एक नीची मेज पे दीदी को झुका दिया। दीदी भी जानती थी अब क्या होना है?

मैं भी जानता था की मुझे क्या करना है। दीदी आलमोस्ट डागी पोजीशन में थी, मस्त चूतड़ हवा में उठे हुए और अपने दोनों पैर उन्होंने खुद फैला लिए थे। रीतु भाभी अब दीदी के नितम्ब सहला रही थी। फिर उन्होंने और मंजू ने मिलकर उसे फैला दिया। पीछे से मिश्रायींन भाभी की आवाज आई-


“लाला। अगर एक बार में पूरा खूंटा अन्दर ना गया। त सोच लो मैं आऊँगी। और मेरी मुट्ठी तेरी गाण्ड के अंदर…”

मैं सिहर गया। अभी कुछ देर पहले ही तो देख चुका था की कैसे उन्होंने भाभी और मंजू के साथ मिलकर दीदी की फिस्टिंग की थी। तो मेरी क्या औकात थी। दीदी स्टूल पे झुकी, एकदम कुतिया वाले पोज में, दोनों टांगें फैली, गाण्ड हवा में उठी। मुझे देखकर हल्के से मुश्कुरा दी। मानो कह रही हो की आ जाओ भैया हर साल राखी में जिस जिस 'मिठाई' को देखकर ललचाते थे। आज सब तेरे हवाले। मन भरकर चखो। मुझे फिर अपने ग्यारहवीं बारहवीं के क्लास के दिन याद आ गये।

आजकल जिस तरह रंजी से शहर में आग लगा रखी है न बिलकुल वही हालत दीदी की थी। बल्की ठीक ठीक बोलूं तो दीदी के मस्त चूतड़ों की कसी पाजामी में जब वो चूतड़, मटकाते हुए निकलती ना। खूब भारी भारी। क्या कटाव, देखकर सारे लड़कों के खड़े हो जाते, और आज वही पिछवाड़े का दरवाजा मेरे लिए खुला था, दावत देता।

मैंने एक पल के लिए सोचा लेकिन बिना किसी लूब के। वो भी दीदी की कोरी गाण्ड। पर भाभियां किस मर्ज की दवा होती हैं। मेरा काम काम रीतू भाभी और मंजू ने आसान कर दिया। एक दांये, दूसरा बांये। दोनों ने दीदी के छोटे से पिछवाड़े के छेद में अपना अंगूठा डालकर, फिर पूरी ताकत से अपनी अपनी ओर फैलाकर, छेद चौड़ा कर दिया। जहाँ एक सिर्फ दरार सी दिख रही थी अब छोटा सा गोल-गोल छेद साफ दिख रहा था।

बाकी का काम गुड्डी ने आसान कर दिया। उसने अपने मुँह में खूब थूक का एक बड़ा सा गोला बनाया और ठीक दीदी की गाण्ड के छेद पे निशाना लगाकर जोर से सारा थूक अन्दर। और मैं कुछ सोचता सोचता, उसके पहले दीदी की गाण्ड के छेद पे गुड्डी ने मेरा तन्नाया लण्ड सटा दिया। सुपाड़ा एकदम सेंटर पे जहाँ गुड्डी के थूक का गोला गया था। कुछ मैंने जोर लगाया। और उससे ज्यादा गुड्डी ने लण्ड पकड़कर पुश किया और थोड़ा सा सुपाड़ा अन्दर। एक बार सुपाड़े को गाण्ड की महक मिल जाय। फिर तो। कमर पकड़कर मैंने अब खुद एक-दो बार पुश किया।

लेकिन गुड्डी अभी भी लण्ड के बेस पे पकड़कर ठेल रही थी पूरे जोर से। और रीतू भाभी, और मंजू अभी भी दीदी की गाण्ड खूब जोर से चियारे खड़ी थी।

अब आधे से ज्यादा सुपाड़ा अन्दर था। गुड्डी एक हाथ से मेरा लण्ड पकड़े थी दूसरे हाथ से मेरा नितम्ब दबाते, हल्के से किस कर के बोली-

“जैसे आज तेरी दीदी की तुझे दिलवा रही हूँ ना। तेरी सारी बहनों की दिलवाऊँगी, चूत भी गाण्ड भी। सब चोदना सबकी। बहुत तड़पते थे ना।

रीतू भाभी तो और एक हाथ आगे। बोली- “अरे गुड्डी सिर्फ बहनों की क्यों?”
“ऊप्स गलती हो गई…” गुड्डी बनकर बोली।

जो गुड्डी बोल रही थी। मैं समझ रहा था और कुछ उसका असर, और उसकी उंगलियां अब जिस तरह से मेरे नितम्बों की दरार के बीच छेड़ रही थी। उसका असर ये हुआ की मैंने हचक के दीदी की गाण्ड में तीन-चार धक्के अब पूरी ताकत से मारे और मेरा मोटा सुपाड़ा अन्दर। जोर से उनकी चीख निकल गई। लेकिन उस होली की हुड़दंग मैं कौन चीख सुन रहा था।
 
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दीदी का पिछवाड़ा - होली में मस्ती घर आंगन में

( फागुन के दिन चार से )









जो गुड्डी बोल रही थी। मैं समझ रहा था और कुछ उसका असर, और उसकी उंगलियां अब जिस तरह से मेरे नितम्बों की दरार के बीच छेड़ रही थी। उसका असर ये हुआ की मैंने हचक के दीदी की गाण्ड में तीन-चार धक्के अब पूरी ताकत से मारे और मेरा मोटा सुपाड़ा अन्दर। जोर से उनकी चीख निकल गई। लेकिन उस होली की हुड़दंग मैं कौन चीख सुन रहा था।

और अब हम सब समझ गए थे की दीदी लाख चूतड़ पटके। एक बार जो ये हलब्बी, मोटा सुपाड़ा अंदर धंस गया था तो लण्ड बाहर नहीं आ सकता था, और गुड्डी, मंजू और रीतु भाभी की छेड़खानी और बढ़ गई थी।

“देखा। जो इनके शर्ट पे लिखा था पिछवाड़े, झूठ नहीं लिखा था। देखो कितना रस ले लेकर अपनी बहन की…” गुड्डी मंजू से बोली।

और मंजू ने हड़का लिया। साफ-साफ काहें ना बोलती की का लिखा था।

“बहनचोद…” गुड्डी भी पूरे होली के जोश में थी, वो बोली- “देखा भरे आँगन में सबके सामने अपनी बहन की चोद चोद के राखी की कीमत एडवांस में दे रहे हैं…”

“ता खाली बहनचोदे बनेंगे…” मंजू ने और आग लगाई।

“नहीं नहीं। ऐसा कैसे होगे। इनके घर में माल की कमी है का। अभी आगे आगे देखो…” रीतू भाभी ने आग में घी छोड़ा।

उन सबों की बातों का असर ये हुआ की दीदी के मस्त मम्मे पकड़कर, अब मैं हचक के पेल रहा था। सूत-सूत कर के लण्ड आगे बढ़ रहा था। दरेरता, रगड़ता, घिसटता। सिरफ गुड्डी ने दीदी की गाण्ड में जो थूक का गोला दिया था। बस वही चिकनाई थी। इसलिए जोर से रगड़ रहा था। और अब गाण्ड के छल्ले ने भी लण्ड को जकड़ लिया था। आगे घुसना मुश्किल हो रहा था।

मंजू ने शायद मेरे मन की बात समझ ली थी। वो बोली-\\


“अरे लाला एक धक्का और मारा, हचक के अपनी बहन की गाण्ड में, बस। एकरे बाद तो चिकनाई की कौनो जरूरते नाहीं। अंदर तो मक्खने मक्खन भरा हौ। चिक्कन चिक्कन। एक बार उ लग गया तो…”

मंजू की बात में दम था और मैंने फिर दीदी की चूची पहले खूब मसली और फिर पूरी ताकत से उनकी कमर पकड़कर तीन-चार धक्के मारे। गाण्ड का छल्ला पार।

अब मेरे पीछे का मोर्चा रीतू भाभी ने सम्हाला था। होली में अब उनका ब्लाउज़ भी खेत रहा और साड़ी उन्होंने सरका दी या सरक गई पता नहीं। उनके खूब कड़े-कड़े गद्दर रसीले जोबन सीधे मेरी पीठ पे रगड़ खा रहे थे। बल्की वो जान बूझ के रगड़ रही थी। जीभ की नोक मेरे इयर लोबस को छू रही थी और एक हाथ मेरे सीने पे फिर से रंग लगा रहा था मेरे निपल को छेड़ रहा था। और दूसरा हाथ मेरे पैरों के बीच से अन्दर मेरे बाल्स को छू रहा था, सहला रहा था रंग लगा रहा था।

मेरा आधे से ज्यादा लण्ड अभी भी बाहर था और रीतू भाभी उस पे लाल गाढ़ा रंग लगा रही थी। अब तक भाभियों ने ना जाने कितने कोट लाल, नील काही रंग के वहां लागा दिए थे।

गुड्डी और मंजू भी वहीं थे।

रीतु भाभी गुड्डी से बोली- “चल तुझे एक जादू दिखाती हूँ…” दीदी के गाण्ड की ओर इशारा करते हुए वो गुड्डी से बोली।

गुड्डी ने सिर हिला के कहा- “बताइये ना?”

मेरे लण्ड की ओर इशारा कर के वो बोली- “बोल किस रंग का हैं अभी?”

“चितकबरा…” हँसते हुए गुड्डी बोली- “लाल काही नीला, लेकिन लाल ज्यादा…”

“और अब इस जादू की पिटारी में से होकर लौटेगा न ता बस एक रंग का हो जाएगा…” रीतु भाभी बोली।

गुड्डी नहीं समझी। लेकिन मंजू समझ गईं। और वो रीतू भाभी से हँसकर बोली- “अरे एहका अभी इस पहेली का जवाब मत बताओ। थोड़ी देर में खुदे देख लेगी…”

तब तक मंजू किसी भाभी की सहायता के लिए चली गईं। और बचीं गुड्डी और रीतू भाभी। अब गुड्डी ने आगे का मोर्चा सम्हाला था और रीतू भाभी ने पीछे का। गुड्डी दीदी की कड़ी-कड़ी चूचियों की मसलाई कर रही थी। कोई मर्द भी क्या ऐसे करेगा।

लेकिन आखीरकार, दीदी गुड्डी की ननद तो लगती ही थी भले बड़ी लगें और उससे भी बढ़कर अभी कुछ ही देर पहले तो रंगों के नाम पे। गुड्डी के उभारों की इसी तरह रगड़ाई, दीदी और वो समोसेवाली कर रही थी मिलकर अपने ननद के हक को पूरे जोर और जोश से निबाहते और रीतू भाभी मुझे पीछे से दबोचे। उनके रंग से डूबे उभार मेरे पीठ से होली खेलते। उनका एक हाथ मेरी बाल्स को सहला रहा था और दूसरा नितम्बों की दरार्रों के बीच।

उन्होंने दीदी को छेड़ा- “क्यों मजा आया, मरवाते हुए अपने भैया से?”

गुड्डी ने तड़का लगाया-

“मजा तो आ ही रहा होगा। पुराना याराना है…”

लेकिन फिर बोली-

“एक बात है। इनकी बहनों का एक से मन नहीं भरता। जब तक एक साथ-साथ तीन-तीन न हों। वो जो रंडी… मेरा मतलब रंजी है ना। मैंने उससे बोला बनारस चलेगी तो तेरे ऊपर ऊपर एक साथ तीन-तीन चढ़ेंगे और तीन लाइन लगाकर इन्तजार करेंगे तो इतनी…” तो रंजी बोली- “अरे तेरे मेरे मुँह में घी शक्कर…”

मैंने उसे चिढ़ाया- “अरे घी शक्कर या?”

तो गुड्डी बात सही करके बोली- “मेरा मतलब। मोटे मोटे लण्ड, मुझे तो मजा आ जाएगा। दो से तो मजा ही नहीं आता…”

गुड्डी की बात एकदम सही थी। वो और रंजी जब बात करती चल रही थी तो मैं पीछे था। ये सारी बात मैंने सुनी थी।

लेकिन रीतू भाभी ने दीदी के क्लिट को रगड़ते हुए बोला-

“अरे तो तू क्या समझती है। मेरी इस छिनार ननद के यार यहाँ कम है। अरे मेरे जित्ते देवर हैं सब इसके यार हैं। अभी जब यहाँ से होली खेल के कालोनी में वापस चलेंगे ना तो देखना वहां ये लम्बी लाइन लगी होगी इसके जोबन मर्दन के लिए…” गुड्डी ने भी साथ-साथ दीदी के निपल पिंच किये और बोली- “लेकिन इकलौते राखी बंधवाने वाली भाई का रिश्ता तो अलग ही है…”

“अरे तभी तो उसे अपनी कच्ची कुवारी गाण्ड दे रही है ना। अपने भैया के लिए ससुराल से कोरी बचाकर ले आई…”

और इसी के साथ रीतू भाभी ने जो हरकत की वो (उन्होंने मेरी गाण्ड में आधी तरजनी पेल दी) या उनकी बातों का हुआ की मैंने खूब जोर से धक्का मारा और अब आधे से ज्यादा लण्ड दीदी की गाण्ड में था। दीदी की एक चूची अब गुड्डी के हाथ में थी दूसरी मेरे और मैं हचक के पेल रहा था उनकी गाण्ड में। लेकिन कुँवारी सीलबंद गाण्ड बिना लूब के। मैं सुपाड़े तक निकालकर डाल रहा था लेकिन आधे लण्ड से ही। रीतू भाभी ने ये बात पकड़ ली।

और मेरे कान में बोली-


“लाला ये बेईमानी नहीं चेलेगी पेल साल्ल्ली की गाण्ड में पूरा हलब्बी लण्ड…”

और साथ ही रीतू भाभी ने हचक के, अपनी पूरी उंगली मेरी कसी गाण्ड में ठेल दी और फिर बोली- “बुलाऊं मिश्रायिन भाभी को पूरी मुट्ठी ठेल देंगी तेरी गाण्ड में।

कुछ उनकी बात का असर कुछ डर। मैंने अबकी सुपाड़ा तक निकालकर पूरी ताकत से पेला तो करीब सात इंच दीदी की गाण्ड में घुस गया।

दीदी बहुत जोर से चीखीं।

मैं दीदी की गाण्ड हुमच-हुमच के मार रहा था और मेरे दोनों हाथ जोर-जोर से उनकी चूची मसल रहे थे। मेरी आँख के सामने बार-बार वो नजारा घूम जाता था। राखी के दिन दीदी झुक के, मुझे राखी बांधती थी और कैसे मेरी निगाहें, उनके टाप फाड़ते किशोर उभारों को सहलाती रहती थी। उस समय भी दीदी के जोबन उनके क्लास की लड़कियों से बीस ही थे।



दीदी जब मस्त चाल से चलती थी उनकी लम्बी चोटी उनके मोटे मोटे चूतड़ की दरार के बीच रगड़ खाती थी। उस समय वो बारहवें में पढ़ती थी। तो लड़के पीछे से गाते थे-



हमने माना हम पर साजन जोबनवा भरपूर है।



और दीदी कभी उन्हें तिरछी नजरिया के बाण मारती तो कभी अपने मस्त भारी चूतड़ मटका के घायल कर देती। और राखी के दीदी दिन ने मेरे ललचाये हाथों को अपने टाप के ऊपर से जोबन छूने दिए थे। खूब कड़े, एकदम दहक गए थे मेरे हाथ। और ये सोचकर मैंने एक बार फिर उनकी मस्त चूची को दबा दिया। अब तो और गद्दर हो गए थे शादी के बाद।



दीदी ने शिकायत भरी, कुछ खुशी वाली निगाह से देखा मुझे और जवाब में सुपाड़े तक लण्ड निकालकर एक हलब्बी धक्का दे मारा। सीधे दीदी की गाण्ड के पिछले हिस्से से जाकर टकराया। दीदी की गाण्ड में मेरा लण्ड सटासट जा रहा था, और उससे भी ज्यादा जोश में मेरी गाण्ड में रीतू भाभी की उंगली, और साथ में मेरी पीठ पर उनकी मस्त चूचियों की रगड़ाई।



तभी मेरे लण्ड पे दीदी की गाण्ड के गाण्ड रस का एक छोटा सा टुकड़ा। मक्खन नजर आया और मुझसे पहले जैसे रीतू भाभी की पैनी निगाह ने उसे देखा और मेरे कान में वो कुछ बुद्बुदायीं। मैं उनका इशारा समझ गया। लेकिन रीतू भाभी भी ना।

उन्होंने मेरे दीदी की गाण्ड में धंसे लण्ड का बेस पकड़ा और उसे लगी गोल-गोल घुमाने। पहले धीमे-धीमे फिर तेजी से फिर उल्टी दिशा में। मेरा लण्ड अभी आधा बाहर था। उनकी देखा देखी अब मैंने वही काम शुरू किया और मेरा लण्ड मथानी बनकर दीदी की गाण्ड मथने लगा, और मथने से जो होता है वही हुआ। दीदी की गाण्ड से मक्खन निकलने लगा। मेरे लण्ड पे कुछ गिजगिजा सा, लसलसा सा महसूस हुआ, गीला गीला। लेकिन उसके असर से मेरे जंगबहादुर अब दूनी तेजी से दीदी की गाण्ड मारने में लग गए।

रीतू भाभी का भी एक हाथ अब अपनी प्यारी ननद की सेवा में लग गया था। उनकी दो उंगलियां दीदी की बुर में आगे-पीछे हो रही थी और गुड्डी अभी भी जोबन रगड़ाई में लगी थी।

तभी रीतू भाभी ने गुड्डी को आवाज दी- “चल जरा इधर आ। तुझे एक जादू दिखाती हूँ। मैंने तुझसे कहा था न की मेरी इस छिनार नन्द के पास एक जादू की पिटारी है देख…”

गुड्डी भी दीदी की गाण्ड की ओर आ गई और रीतू भाभी ने फिर पूछा- “हम लोगों ने इसकी पिचकारी का रंग क्या-क्या कर दिया था…”

गुड्डी हँसकर बोली- “अरे एक रंग हो तो बताऊँ। लाल काही नीला…”


“और अब देख इस पिटारी का जादू…” हँसकर रीतु भाभी बोली।
 
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पिछवाड़े का रस -दीदी का



गुड्डी भी दीदी की गाण्ड की ओर आ गई और रीतू भाभी ने फिर पूछा- “हम लोगों ने इसकी पिचकारी का रंग क्या-क्या कर दिया था…”

गुड्डी हँसकर बोली- “अरे एक रंग हो तो बताऊँ। लाल काही नीला…”

“और अब देख इस पिटारी का जादू…” हँसकर रीतु भाभी बोली।

और उसी समय दीदी की कसी अब तक कुँवारी, सटी-सटी गाण्ड से मेरा मोटा लण्ड निकला। एकदम मक्खन, दीदी की गाण्ड के रंग में रंगा। सिर्फ एक रंग। दीदी के गाण्ड के गाण्ड रस का रंग। गुड्डी और रीतू भाभी दोनों इतने जोश में आ गईं की दोनों ने एक साथ दीदी की चूत पे हमला बोल दिया। एक क्लिट दबाती तो दूसरी बुर में दो-दो उंगली डालकर चोदती।

थोड़ी ही देर में दीदी झड़ने लगी।

लेकिन वो दोनों रुकी नहीं। रीतु भाभी तो खैर, रीतू भाभी थी। लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी और दीदी का रिश्ता भी तो ननद भाभी वाला ही था। दीदी दुबारा झड़ने लगी। और जब वो झड़ती तो साथ-साथ उनकी मस्त गाण्ड मेरा लण्ड एकदम दबोच लेती, निचोड़ लेती कसकर जैसे कई पूरी ताकत से मुट्ठी में लण्ड दबा रहा हो। पागल होकर मैं भी मस्ती में तेजी से उनकी गाण्ड मार रहा था।

और जब वो तीसरी बार झड़ीं तो साथ में मैं भी। लेकिन इसमें बहुत कुछ हाथ रीतु भाभी का भी था। उन्होंने अब मेरी गाण्ड में दो उंगली हुमच के पेल दी थी और साथ-साथ ही मेरे प्रोस्ट्रेट को जमकर रगड़ दिया था। बस गिरते हुए मैं बेहोश नहीं हुआ मजे से। बाकी सब कुछ हो गया। मेरा लण्ड दीदी की गाण्ड में पूरी तरह धंसा था। और दोनों हाथ उनकी चूची पे।

मुट्ठी भर गाढ़ी रबड़ी तो दीदी की गाण्ड में गई ही होगी। और एक बार फिर रीतू भाभी की मेरी गाण्ड में धंसी उंगली ने दुबारा प्रोस्ट्रेट को दबाया। तो फिर।

और साथ में गुड्डी भी कभी मेरे पेल्हड़ (बाल्स) सहलाती, तो कभी उसे दबा देती। जब मैंने लण्ड बाहर निकाला। तो उसपर पूरी तरह मक्खन मलाई, लिपटी चिपटी। दीदी खड़ी हुई। मुझे कुछ लजाकर, कुछ मजे से देखा और कुछ दूर हटके खड़ी हो गई और मुझे मीठी-मीठी निगाहों से देख रही थी।

तब तक मिश्रायिन भाभी मैदान में आ गई और मुझसे पूछीं- “हे अपनी बहना को मक्खन मलाई खिलाया की नहीं…”'

उनकी बात समझ के मैंने मुश्कुराते हुए ना में सिर हिलाया तो वो हड़काते हुए बोली- “लाला। नौसिखिये हो अभी। अरे गाण्ड मारने के बाद जब तक गाण्ड मरवाने वाली का मुँह जबरन ना खुलवा के उससे मक्खन मलाई न चटवाया तो गाण्ड मारने का मजा पूरा नहीं होगा…”

गुड्डी मुझे नमकीन निगाहों से देख रही थी।

मैंने उसकी ओर देखकर बोला- “भाभी। आगे से पक्का याद रखूँगा…”

गुड्डी की नीम शहद निगाहों ने मुश्कुराकर बिना बोले कहा- “धत्त बीती रात की यादें और आने वाली रातों के सपने अभी भी उसमें तैर रहे थे…”

मिश्रायिन भाभी को कहाँ फुरसत थी इन चार आँखों के खेल देखने की। वो और रीतू भाभी। उन दोनों ने झपट के दीदी को फिर से पकड़ा, निहुराया और जब तक वो बिचारी समझें। मिश्रायिन भाभी ने दीदी की गाण्ड को दोनों हाथों से चियारा और रीतू भाभी की दो उंगलियां जड़ तक गाण्ड के अन्दर और उसे मोड़कर चम्मच की तरह स्कूप बनाकर।

और सबसे पहले वो 'समोसेवाली' पकड़ी गई। रीतू भाभी ने गुड्डी को भी हुंकार लगायी। और फिर उन दोनों ने मिलकर। गुड्डी ने गाल दबाकर उस किशोरी का मुँह खुलवाया और रीतू भाभी ने दीदी की गाण्ड से निकली दोनों उंगली सीधे उसके मुँह में।

गुड्डी ने चिढ़ाया। बिचारी ने मंजन नहीं किया था ना सुबह। जरा ठीक से मंजन करवाइयेगा। इसके मोती के से दांतों पे। वो छटपटाती रही। लेकिन गुड्डी की चंगुल से बच निकलना। वो बिंदास बनारसी बाला और अब ये आँगन तो उसी का होना था। हर साल होली में ननदों के साथ हुड़दंग। और गुड्डी- रीतू भाभी की देखा-देखी, बाकी भाभियों ने भी। बस ननदें पकड़ी जाती, निहुराई जाती और उंगली पहले नीचे अन्दर और फिर मंजन। मैं बरामदे में बैठी दीदी के साथ जाकर आँगन में हो रही होली का हुडदंग देखने लगा।

दीदी ने खुद मेरे कंधे पे हाथ रखकर कहा- “वास्तव में तू बड़ा हो गया था…”

और जैसे उन्होंने मेरे आँखों की भाषा समझ ली हो- “बोली मैंने तो तुझे पहले ही लिफ्ट दी थी लेकिन तू ही…”

दीदी की बात काटकर मैं खुद बोला- “बुद्धू था मैं…”

मेरे गाल पिंच करती वो बोली- “वो तो तू अब भी है…” फिर मेरे दोनों सिर को पकड़कर सीधे होंठों पे कचकचा के किस करते बोली- “गलती मेरी है, बड़ी मैं हूँ उस दिन राखी के दिन जब तुम ना-नुकुर कर रहे थे। न वहीं पकड़कर तुझे रेप कर देती। अभी कब तक हो तुम…”

“चार-पांच दिन तो हूँ ही। हाँ रंगपंचमी के पहले बनारस जाना है। रंग पंचमी वहीं…” मैं बोला।


दीदी का हाथ मेरे कंधे पे था और अब मैंने हाथ उनके कंधे पे रख लिया था। उन्होंने अपनी साड़ी फिर लपेट ली थी, लेकिन उभार कुछ बाहर थे, कुछ झलक रहे थे। मैंने भी अपना हाथ उनके कंधे पे रख दिया। मेरी उंगलियां फिर उनके उभारों को देखकर ललचा रही थी। और दीदी ने जैसे मेरे मन की बात समझ के मेरे हाथ खिंच के सीधे अपने मस्त उभारों के ऊपर और मेरे इयर लोबस को चूम के बोली- “फिर तो तेरे जाने के पहले। एकाध बार कबड्डी हो सकती है…”

मेरे मन की बरसों की साध- “एकदम दीदी सिर्फ एकाध बार क्यों?”
 

pprsprs0

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ekdam ye sab to teaser the, vaise main sochti hun Phagun ke din chaar ko is forum men post kar dun, bina koyi addition ke bina pictures ke. shaayd kaafi logo ne naa padha ho, aapka kya khyaal hai
Haa bilkul 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
 

malikarman

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पिछवाड़े का रस -दीदी का



गुड्डी भी दीदी की गाण्ड की ओर आ गई और रीतू भाभी ने फिर पूछा- “हम लोगों ने इसकी पिचकारी का रंग क्या-क्या कर दिया था…”

गुड्डी हँसकर बोली- “अरे एक रंग हो तो बताऊँ। लाल काही नीला…”

“और अब देख इस पिटारी का जादू…” हँसकर रीतु भाभी बोली।

और उसी समय दीदी की कसी अब तक कुँवारी, सटी-सटी गाण्ड से मेरा मोटा लण्ड निकला। एकदम मक्खन, दीदी की गाण्ड के रंग में रंगा। सिर्फ एक रंग। दीदी के गाण्ड के गाण्ड रस का रंग। गुड्डी और रीतू भाभी दोनों इतने जोश में आ गईं की दोनों ने एक साथ दीदी की चूत पे हमला बोल दिया। एक क्लिट दबाती तो दूसरी बुर में दो-दो उंगली डालकर चोदती।

थोड़ी ही देर में दीदी झड़ने लगी।

लेकिन वो दोनों रुकी नहीं। रीतु भाभी तो खैर, रीतू भाभी थी। लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी और दीदी का रिश्ता भी तो ननद भाभी वाला ही था। दीदी दुबारा झड़ने लगी। और जब वो झड़ती तो साथ-साथ उनकी मस्त गाण्ड मेरा लण्ड एकदम दबोच लेती, निचोड़ लेती कसकर जैसे कई पूरी ताकत से मुट्ठी में लण्ड दबा रहा हो। पागल होकर मैं भी मस्ती में तेजी से उनकी गाण्ड मार रहा था।

और जब वो तीसरी बार झड़ीं तो साथ में मैं भी। लेकिन इसमें बहुत कुछ हाथ रीतु भाभी का भी था। उन्होंने अब मेरी गाण्ड में दो उंगली हुमच के पेल दी थी और साथ-साथ ही मेरे प्रोस्ट्रेट को जमकर रगड़ दिया था। बस गिरते हुए मैं बेहोश नहीं हुआ मजे से। बाकी सब कुछ हो गया। मेरा लण्ड दीदी की गाण्ड में पूरी तरह धंसा था। और दोनों हाथ उनकी चूची पे।

मुट्ठी भर गाढ़ी रबड़ी तो दीदी की गाण्ड में गई ही होगी। और एक बार फिर रीतू भाभी की मेरी गाण्ड में धंसी उंगली ने दुबारा प्रोस्ट्रेट को दबाया। तो फिर।

और साथ में गुड्डी भी कभी मेरे पेल्हड़ (बाल्स) सहलाती, तो कभी उसे दबा देती। जब मैंने लण्ड बाहर निकाला। तो उसपर पूरी तरह मक्खन मलाई, लिपटी चिपटी। दीदी खड़ी हुई। मुझे कुछ लजाकर, कुछ मजे से देखा और कुछ दूर हटके खड़ी हो गई और मुझे मीठी-मीठी निगाहों से देख रही थी।

तब तक मिश्रायिन भाभी मैदान में आ गई और मुझसे पूछीं- “हे अपनी बहना को मक्खन मलाई खिलाया की नहीं…”'

उनकी बात समझ के मैंने मुश्कुराते हुए ना में सिर हिलाया तो वो हड़काते हुए बोली- “लाला। नौसिखिये हो अभी। अरे गाण्ड मारने के बाद जब तक गाण्ड मरवाने वाली का मुँह जबरन ना खुलवा के उससे मक्खन मलाई न चटवाया तो गाण्ड मारने का मजा पूरा नहीं होगा…”

गुड्डी मुझे नमकीन निगाहों से देख रही थी।

मैंने उसकी ओर देखकर बोला- “भाभी। आगे से पक्का याद रखूँगा…”

गुड्डी की नीम शहद निगाहों ने मुश्कुराकर बिना बोले कहा- “धत्त बीती रात की यादें और आने वाली रातों के सपने अभी भी उसमें तैर रहे थे…”

मिश्रायिन भाभी को कहाँ फुरसत थी इन चार आँखों के खेल देखने की। वो और रीतू भाभी। उन दोनों ने झपट के दीदी को फिर से पकड़ा, निहुराया और जब तक वो बिचारी समझें। मिश्रायिन भाभी ने दीदी की गाण्ड को दोनों हाथों से चियारा और रीतू भाभी की दो उंगलियां जड़ तक गाण्ड के अन्दर और उसे मोड़कर चम्मच की तरह स्कूप बनाकर।

और सबसे पहले वो 'समोसेवाली' पकड़ी गई। रीतू भाभी ने गुड्डी को भी हुंकार लगायी। और फिर उन दोनों ने मिलकर। गुड्डी ने गाल दबाकर उस किशोरी का मुँह खुलवाया और रीतू भाभी ने दीदी की गाण्ड से निकली दोनों उंगली सीधे उसके मुँह में।

गुड्डी ने चिढ़ाया। बिचारी ने मंजन नहीं किया था ना सुबह। जरा ठीक से मंजन करवाइयेगा। इसके मोती के से दांतों पे। वो छटपटाती रही। लेकिन गुड्डी की चंगुल से बच निकलना। वो बिंदास बनारसी बाला और अब ये आँगन तो उसी का होना था। हर साल होली में ननदों के साथ हुड़दंग। और गुड्डी- रीतू भाभी की देखा-देखी, बाकी भाभियों ने भी। बस ननदें पकड़ी जाती, निहुराई जाती और उंगली पहले नीचे अन्दर और फिर मंजन। मैं बरामदे में बैठी दीदी के साथ जाकर आँगन में हो रही होली का हुडदंग देखने लगा।

दीदी ने खुद मेरे कंधे पे हाथ रखकर कहा- “वास्तव में तू बड़ा हो गया था…”

और जैसे उन्होंने मेरे आँखों की भाषा समझ ली हो- “बोली मैंने तो तुझे पहले ही लिफ्ट दी थी लेकिन तू ही…”

दीदी की बात काटकर मैं खुद बोला- “बुद्धू था मैं…”

मेरे गाल पिंच करती वो बोली- “वो तो तू अब भी है…” फिर मेरे दोनों सिर को पकड़कर सीधे होंठों पे कचकचा के किस करते बोली- “गलती मेरी है, बड़ी मैं हूँ उस दिन राखी के दिन जब तुम ना-नुकुर कर रहे थे। न वहीं पकड़कर तुझे रेप कर देती। अभी कब तक हो तुम…”

“चार-पांच दिन तो हूँ ही। हाँ रंगपंचमी के पहले बनारस जाना है। रंग पंचमी वहीं…” मैं बोला।


दीदी का हाथ मेरे कंधे पे था और अब मैंने हाथ उनके कंधे पे रख लिया था। उन्होंने अपनी साड़ी फिर लपेट ली थी, लेकिन उभार कुछ बाहर थे, कुछ झलक रहे थे। मैंने भी अपना हाथ उनके कंधे पे रख दिया। मेरी उंगलियां फिर उनके उभारों को देखकर ललचा रही थी। और दीदी ने जैसे मेरे मन की बात समझ के मेरे हाथ खिंच के सीधे अपने मस्त उभारों के ऊपर और मेरे इयर लोबस को चूम के बोली- “फिर तो तेरे जाने के पहले। एकाध बार कबड्डी हो सकती है…”

मेरे मन की बरसों की साध- “एकदम दीदी सिर्फ एकाध बार क्यों?”
Waah... update ne Pani nikal diya
 

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पिछवाड़े का रस -दीदी का



गुड्डी भी दीदी की गाण्ड की ओर आ गई और रीतू भाभी ने फिर पूछा- “हम लोगों ने इसकी पिचकारी का रंग क्या-क्या कर दिया था…”

गुड्डी हँसकर बोली- “अरे एक रंग हो तो बताऊँ। लाल काही नीला…”

“और अब देख इस पिटारी का जादू…” हँसकर रीतु भाभी बोली।

और उसी समय दीदी की कसी अब तक कुँवारी, सटी-सटी गाण्ड से मेरा मोटा लण्ड निकला। एकदम मक्खन, दीदी की गाण्ड के रंग में रंगा। सिर्फ एक रंग। दीदी के गाण्ड के गाण्ड रस का रंग। गुड्डी और रीतू भाभी दोनों इतने जोश में आ गईं की दोनों ने एक साथ दीदी की चूत पे हमला बोल दिया। एक क्लिट दबाती तो दूसरी बुर में दो-दो उंगली डालकर चोदती।

थोड़ी ही देर में दीदी झड़ने लगी।

लेकिन वो दोनों रुकी नहीं। रीतु भाभी तो खैर, रीतू भाभी थी। लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी और दीदी का रिश्ता भी तो ननद भाभी वाला ही था। दीदी दुबारा झड़ने लगी। और जब वो झड़ती तो साथ-साथ उनकी मस्त गाण्ड मेरा लण्ड एकदम दबोच लेती, निचोड़ लेती कसकर जैसे कई पूरी ताकत से मुट्ठी में लण्ड दबा रहा हो। पागल होकर मैं भी मस्ती में तेजी से उनकी गाण्ड मार रहा था।

और जब वो तीसरी बार झड़ीं तो साथ में मैं भी। लेकिन इसमें बहुत कुछ हाथ रीतु भाभी का भी था। उन्होंने अब मेरी गाण्ड में दो उंगली हुमच के पेल दी थी और साथ-साथ ही मेरे प्रोस्ट्रेट को जमकर रगड़ दिया था। बस गिरते हुए मैं बेहोश नहीं हुआ मजे से। बाकी सब कुछ हो गया। मेरा लण्ड दीदी की गाण्ड में पूरी तरह धंसा था। और दोनों हाथ उनकी चूची पे।

मुट्ठी भर गाढ़ी रबड़ी तो दीदी की गाण्ड में गई ही होगी। और एक बार फिर रीतू भाभी की मेरी गाण्ड में धंसी उंगली ने दुबारा प्रोस्ट्रेट को दबाया। तो फिर।

और साथ में गुड्डी भी कभी मेरे पेल्हड़ (बाल्स) सहलाती, तो कभी उसे दबा देती। जब मैंने लण्ड बाहर निकाला। तो उसपर पूरी तरह मक्खन मलाई, लिपटी चिपटी। दीदी खड़ी हुई। मुझे कुछ लजाकर, कुछ मजे से देखा और कुछ दूर हटके खड़ी हो गई और मुझे मीठी-मीठी निगाहों से देख रही थी।

तब तक मिश्रायिन भाभी मैदान में आ गई और मुझसे पूछीं- “हे अपनी बहना को मक्खन मलाई खिलाया की नहीं…”'

उनकी बात समझ के मैंने मुश्कुराते हुए ना में सिर हिलाया तो वो हड़काते हुए बोली- “लाला। नौसिखिये हो अभी। अरे गाण्ड मारने के बाद जब तक गाण्ड मरवाने वाली का मुँह जबरन ना खुलवा के उससे मक्खन मलाई न चटवाया तो गाण्ड मारने का मजा पूरा नहीं होगा…”

गुड्डी मुझे नमकीन निगाहों से देख रही थी।

मैंने उसकी ओर देखकर बोला- “भाभी। आगे से पक्का याद रखूँगा…”

गुड्डी की नीम शहद निगाहों ने मुश्कुराकर बिना बोले कहा- “धत्त बीती रात की यादें और आने वाली रातों के सपने अभी भी उसमें तैर रहे थे…”

मिश्रायिन भाभी को कहाँ फुरसत थी इन चार आँखों के खेल देखने की। वो और रीतू भाभी। उन दोनों ने झपट के दीदी को फिर से पकड़ा, निहुराया और जब तक वो बिचारी समझें। मिश्रायिन भाभी ने दीदी की गाण्ड को दोनों हाथों से चियारा और रीतू भाभी की दो उंगलियां जड़ तक गाण्ड के अन्दर और उसे मोड़कर चम्मच की तरह स्कूप बनाकर।

और सबसे पहले वो 'समोसेवाली' पकड़ी गई। रीतू भाभी ने गुड्डी को भी हुंकार लगायी। और फिर उन दोनों ने मिलकर। गुड्डी ने गाल दबाकर उस किशोरी का मुँह खुलवाया और रीतू भाभी ने दीदी की गाण्ड से निकली दोनों उंगली सीधे उसके मुँह में।

गुड्डी ने चिढ़ाया। बिचारी ने मंजन नहीं किया था ना सुबह। जरा ठीक से मंजन करवाइयेगा। इसके मोती के से दांतों पे। वो छटपटाती रही। लेकिन गुड्डी की चंगुल से बच निकलना। वो बिंदास बनारसी बाला और अब ये आँगन तो उसी का होना था। हर साल होली में ननदों के साथ हुड़दंग। और गुड्डी- रीतू भाभी की देखा-देखी, बाकी भाभियों ने भी। बस ननदें पकड़ी जाती, निहुराई जाती और उंगली पहले नीचे अन्दर और फिर मंजन। मैं बरामदे में बैठी दीदी के साथ जाकर आँगन में हो रही होली का हुडदंग देखने लगा।

दीदी ने खुद मेरे कंधे पे हाथ रखकर कहा- “वास्तव में तू बड़ा हो गया था…”

और जैसे उन्होंने मेरे आँखों की भाषा समझ ली हो- “बोली मैंने तो तुझे पहले ही लिफ्ट दी थी लेकिन तू ही…”

दीदी की बात काटकर मैं खुद बोला- “बुद्धू था मैं…”

मेरे गाल पिंच करती वो बोली- “वो तो तू अब भी है…” फिर मेरे दोनों सिर को पकड़कर सीधे होंठों पे कचकचा के किस करते बोली- “गलती मेरी है, बड़ी मैं हूँ उस दिन राखी के दिन जब तुम ना-नुकुर कर रहे थे। न वहीं पकड़कर तुझे रेप कर देती। अभी कब तक हो तुम…”

“चार-पांच दिन तो हूँ ही। हाँ रंगपंचमी के पहले बनारस जाना है। रंग पंचमी वहीं…” मैं बोला।


दीदी का हाथ मेरे कंधे पे था और अब मैंने हाथ उनके कंधे पे रख लिया था। उन्होंने अपनी साड़ी फिर लपेट ली थी, लेकिन उभार कुछ बाहर थे, कुछ झलक रहे थे। मैंने भी अपना हाथ उनके कंधे पे रख दिया। मेरी उंगलियां फिर उनके उभारों को देखकर ललचा रही थी। और दीदी ने जैसे मेरे मन की बात समझ के मेरे हाथ खिंच के सीधे अपने मस्त उभारों के ऊपर और मेरे इयर लोबस को चूम के बोली- “फिर तो तेरे जाने के पहले। एकाध बार कबड्डी हो सकती है…”

मेरे मन की बरसों की साध- “एकदम दीदी सिर्फ एकाध बार क्यों?”
फिर तो तेरे जाने के पहले। एकाध बार कबड्डी हो सकती है…”

मेरे मन की बरसों की साध- “एकदम दीदी सिर्फ एकाध बार क्यों?” 🔥🔥🔥🔥🔥🔥
 
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