मेरे शहर की लोलिता
दीदी और गुड्डी ने मिलकर मुझे खड़ा कर दिया और सामने उसको पकड़े रीतू भाभी और शीला भाभी फट गई होली में ‘वो’ एकदम मस्त लग रही थी। छोटे-छोटे आते हुए उभार, सुबह के सूरज की ललछौंही आभा लिए जवानी की दस्तक के निशान, वो 'समोसे' जिन्हें देखकर शहर में ना जाने कितनी सीटियां गूँज जाती थी। जिसके मटकते 'ब्वायिश' चूतड़ों को देखकर ना जाने कितनी बार मेरे तम्बू में बम्बू खड़ा हुआ।
मेरे शहर की लोलिता। लतिका (जी यही नाम था उस कम उम्र किशोरी का) मुट्ठी में आ जाये वो कमर। कितनी बार उसके पीछे, (मेरे सहित) कितने लड़कों ने ये गाना गाया होगा-
हमरे गउंवा वाली गोरिया जब जवान होइहै,
तब हमरो अरे तब हमरो गंगा स्नान होइहै।
आज मौका आ गया था गंगा स्नान का, गंगा खुद आँगन में थी। और हमारे जंग बहादुर बहुत देर से बेताब थे। पहले रीतू भाभी के साथ चूची चोदन (जो अधुरा रह गया) और फिर भाभियों ने जो इसके साथ छल कबड्डी खेली। उसकी आवाजों और दर्शन से हालत और खब हो गई। और अब।
गुड्डी ने मेरे तन्नाये बेताब, बावरे औजार को सीधे, उसके सेंटर पे लगा दिया। जैसे शादी में नाउन, दुल्हे दुल्हन की गान्ठ जोड़ती है, बिलकुल उसी तरह उधर रीतू भाभी ने, अपनी कुँवारी किशोर ननद के दोनों गुलाबी सन्तरे के फांक की तरह रसीले, भगोष्ठ पूरी ताकत से फैला रखे थे और गुड्डी ने मेरा तन्नाया मोटा सुपाड़ा सीधे सेंटर पे रखकर घुसेड़ दिया।
मेरी हिम्मत नहीं थी की मैं नहीं पुश करता। क्योंकी मेरे पीछे मंजू खडी थी और मुझसे ज्यादा जोर से उसने पुश किया और उधर से यही काम रीतू भाभी ने।
आधे से ज्यादा सुपाड़ा चला गया। उसने चीख रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन चीख निकल ही गई, लेकिन मैं रुकने वाला नहीं था। मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा और फिर दुबारा। मेरी हिम्मत भी नहीं थी, धक्कों में बेइमानी करने की। पीछे से मंजू ने पकड़ रखा था और वो कान में बोल रही थी-
लाला, तनिको धीमे किहा ना ता इ मुट्ठी पूरी तोहरी गाण्ड में। दो उंगली तो उसने ठेल ही दी थी। और उससे भी बड़कर गुड्डी।
उस की आँखें। सात जनम तक तो मैं उनके हुकुम का गुलाम बन ही चुका था।
गुड्डी गुनगुना रही थी-
छोटी-छोटी चूचियां, बुर बिना बाल की,
चोदो मेरे राजा मेरी ननदी है कमाल की।
जो काम मन्जू मेरे साथ कर रही थी वही रीतू भाभी उसके साथ कर रही थी और अभी कुछ देर पहले जो रीतू भाभी ने उसे कराया था। उसके बाद तो उसकी हिम्मत भी नहीं पड़ सकती थी (बाद में मैंने वो सारी फिल्म गुड्डी के मोबाइल पे मैंने देखी और रीतू भाभी उसके कान में ये भी बोल रही थी कि शाम तक वो फिल्म यू ट्युब पे चल जायेगी)।
और साथ में रीतू भाभी ने भी उसके पिछवाड़े एक उंगली ठेल रखी थी। अब सुपाड़ा अन्दर घुस चुका था। इसलिये रीतू भाभी, और गुड्डी दोनों को मालूम था कि अब ये बान्की हिरनिया लाख चूतड़ पटके, लण्ड बिना चोदे, मलाई अन्दर झाड़े नहीं निकलने वाला था।
और मैंने उसे अपने बाहों में भर लिया। मेरे होंठ अब उसके होंठों पे थे, और हाथ उन समोसों पे जिन्होने सारे शहर को बेताब कर रखा था। छोटे जरूर थे। लेकिन एकदम रस गुल्ले। मैं कभी सहलाता, कभी दबाता तो कभी अपने होंठ वहां लगाता। लेकिन उसने एक बात ये बोली कि बस मेरी चुदायी की रफ्तार दस गुनी हो गई। मेरे कानों पे अपने रसीले होंठ लगाकर वो बोली-
तुम क्या सोचते हो देखकर सिर्फ तुम्हारा ही मन करता था। मेरे अन्दर तुझ से भी ज्यादा आग लगी थी…”
अब मैं समझा की ये बात कितनी सच है की लड़कियों की एड़ी में आँख होती है। और उनकी झांटे बाद में आती हैं, चूत में खुजली पहले मचने लगती है।
और उस आग का इलाज खड़े खड़े तो ठीक से हो नहीं सकता था। तो मैंने उसे वहीं रंगो से भरे आँगन में लिटा दिया। लम्बी टांगे मेरे कन्धे पे। लेकिन गुड्डी के बिना कोई काम हो सकता है क्या। तो गुड्डी ने आँगन में फैले, ननदों के टाप, चिथड़े हुये ब्रा और पैन्टी। सब को इकट्ठा कर उसके चूतड़ के नीचे रख दिया। अब चुदायी का इन्त्जाम पूरा था। और मैंने जो उन ‘समोसो’ को पकड़कर, हुमच के धक्का मारा। आधे से ज्यादा लण्ड अन्दर था। और साथ-साथ ही उस कि सील भी टूट गई।
जोर से चीखी वो।
लेकिन गुड्डी और रीतू भाभी, कसकर उस कि कलाई पकड़े थी जिससे वो टस से मस नहीं हो पायी। उसके बाद उसके उभार सहलाते गुड्डी बोली-
“अरे यार ये चीज कभी ना कभी तो फटनी थी। जल्दी फट गई तेरी। तो अब बिना डर यारों से मजा ले सकेगी। दुबारा ये दर्द थोड़े ही होगा। अब तो बस मजा ही मजा है। और तेरी किस्मत की पहले बार में ही इतना मोटा मूसल मिला है वो भी भैया का…”
तब तक रीतू भाभी की एक सहेली, पीछे से उसके गोल-गोल नितम्ब सहलाती बोली-
“तू लकी है यार। जो कुँवारी, होली के दिन अपनी सील खुलवाती है ना। होलिका देवी उससे इतना खुश रहती है की जिंदगी भर उसे मोटे और सख्त की कमी नहीं होती। एक मांगेगी, तीन मिलेंगे। चल अब ले मजा खुलकर।"
एक से एक कमेंट चल रहे थे। लेकिन उसका फायदा हुआ की कुछ तो उसका दर्द का अहसास कम हो गया और कुछ उस की धड़क खुल गई। और सबसे बड़ी बात अब उसका ध्यान उसकी कच्ची कली में घुसे मोटे खूंटे से थोड़ा हट गया था।
मैंने भी मौके का फायदा उठाया, उसके होंठों को चूसते हुए जीभ उसके मुँह में डाली। अब वो चीख नहीं सकती थी। एक हाथ कमर पे रखकर उसे अपनी ओर खींचा, दूसरे हाथ से उसके बस उठ रहे जोबन को जोर से दबाया। गुड्डी समझ गई थी। उसने मुश्कुराते हुए थम्स अप का सिगनल दिया। और मैंने हुमच के पहले पूरी ताकत से एक धक्का, फिर दूसरा धक्का मारा।
और रीतू भाभी ने भी उसी के साथ हचक के उस कुँवारी ननद की गाण्ड में उंगली पेल दी और उसने खुद कमर मेरी ओर उचका दी। दो तिहाई यानी करीब छ इंच मेरा मोटा लण्ड अन्दर था। मेरे होंठ अभी भी उसके होंठ को सील किये हुए थे। पीछे से रीतू भाभी भी उसे कसकर दबोचे हुए थी। धीमे-धीमे मैंने मुसल उसकी नई ओखली में चलाना शुरू किया। आगे-पीछे आगे-पीछे। और साथ में उन छोटे-छोटे समोसों का मजा। कभी चूस लेता तो कभी बाईट ले लेता तो कभी जोर से दबा देता।
और अब उसको भी मजा आना शुरू हो गया था वो भी मेरे कन्धों को पकड़कर अपनी ओर खींच रही थी, पुल कर रही थी, चूतड़ उचका रही थी। और गुड्डी कभी उसके गालों को कभी जोबन को सहलाकर गा गा के अपनी नई, ननद को छेड़ रही थी-
अरे छोट-छोट, अरे छोट-छोट जोबना दाबे में मजा देय
ननदी हमारी चोदे में मजा देय।
राजा चोद ले टंगिया उठाय के,
अरे चूची दबाय के ना।
मैंने जिंदगी में गुड्डी की बात नहीं टाली थी। टांगें उठाकर चूची दबा दबाकर मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा था। तब तक पीछे से मंजू की आवाज सुनायी दी-
“अरे लाला। फागुन में कातिक का मजा दो हमरी छिनार ननदिया को, इसे कुतिया बनाकर चोदो। फाड़ दो साल्ली की…”
मेरे कुछ करने के पहले ही रीतू भाभी और गुड्डी की जुगल बंदी मैदान में आ गई और दोनों ने उसे डागी पोज में कर दिया और मैं अब पीछे से उस कुँवारी कली के ऊपर चढ़ा हुआ था। और तभी रीतू भाभी ने जो मेरे पीछे थी। देख लिया और जबर्दस्त गाली दी- “साले भोंसड़ी के। तेरी सारी बहनों की फुद्दी मारूं। अपनी बहन के भंड़ुवे, पेल पूरा। बाकी किसके लिए बचा रखा है…”
और जो काम गाली ने नहीं किया। वो रीतू भाभी की उंगली ने किया, पूरा पिछवाड़े अन्दर और साथ में मेरा लण्ड भी आठ इंच अन्दर, बाल्स तक।
गुड्डी भी वो उसके उभार सहला रही थी छेड़ रही थी- “अरे ले ले यार। ननदों के लिए कोई रोक टोक नहीं है। ले ले सीधे। मजा ले खुलकर। वरना आरेंज जूस और पीना है। अभी तो सिर्फ रीतू भाभी ने…” गुड्डी ने निपल पिंच कर के बोला।
और मैंने सुपाड़ा बाहर तक निकाल कर के ठेल दिया, जड़ तक। रीतू भाभी की उंगली उसकी क्लिट भी सहला रही थी। और थोड़ी देर में वो झड़ने लगी।
लेकिन मुझे तो टाइम लगना ही था। एक बार छत पे गुड्डी की, फिर कुछ देर पहले दीदी की गाण्ड और अब ये तीसरी बार। मैं अब रिमझिम बूंदी से मुसलाधार बारिश और तूफान की तरह चोद रहा था। हर धक्का उसकी बच्चे दानी पे रुकता।
वो सिहर उठती, काँप उठती और थोड़ी देर में दुबारा। आँधी में पत्ते की तरह वो कांपने लगी। वो दुबारा झड़ रही थी। उसकी कच्ची चूत मेरे लण्ड को निचोड़ रही थी दबा रही थी।
मैंने एक-दो पल के लिए रुका। लेकिन मैं भी अब। और उसकी चूचियों पे जोर जोर से मैंने बाईट के मार्क बना दिए। दोनों कंधे पकड़े और, चूतड़ सहलाए। और फिर पूरी तेजी से हचक-हचक कर, हुमच हुमच कर चोदने लगा, बिना रुके, लगातार। और फिर इस बार वो झड़ी तो साथ में मैं भी। कटोरी भर मलाई अंदर, बहुत देर तक हम दोनों डागी पोजीशन में ही पड़े रहे। और जब मैंने लण्ड बाहर निकाला और वो खड़ी हुई तो मेरे वीर्य की एक धार उसकी गुलाबी चूत से निकलकर उसकी चिकनी रेशमी गोरी जांघ पे। दो-चार बूंदें, सफेद, गाढ़ा थक्का। गुड्डी ने उसे अपनी एक उंगली में लपेटा और उसके होंठों पे लगा दिया।
मुझे लगा की अब वो गुस्सा हो जायेगी, लेकिन उसने जीभ निकालकर चाट लिया और मुझे देखकर मुश्कुरा दी। मैं भी मुश्कुरा दिया। फिर वो रेशम की डोर में बंधी चली आई सीधे मेरी बांह में। मैंने जोर से उसे भींच लिया। और उससे भी ज्यादा जोर से उसने और मेरे इयर लोबस को किस करके बोली- बहुत दिन की साध पूरी हुई मेरी।
और उसके बाद गुड्डी का नम्बर था। उसने गुड्डी को भी बांहों में लेकर भींच लिया। उन दोनों में पक्की दोस्ती हो गई। लग रहा था की पता नहीं कब की बिछड़ी सहेलियां मिली है।