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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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लेस्बियन रेसलिंग


लेकिन दीदी ही बोली लेकिन मुझसे नहीं। मेरे तन्नाये उससे- “अरे मुन्ना। घबड़ा मत मिलेगी जल्दी ही मिलेगी तब तक कुश्ती देख…”

और हम लेस्बियन रेसलिंग देखने लगे।

एक लड़की को देखकर ही मुँह में पानी आने लगता है। और लेस्बियन रेसलिंग में तो दो दो। और यहाँ पे तो तीन थी। मेरी सच में हालत खराब हो रही थी। उस कमसिन कच्ची कली ने बहुत कोशिश की लेकिन रीतू भाभी बहुत खायी खेली थी और गुड्डी भी बनारस की सीखी पढ़ी। मुझे लग रहा था की जैसे अभी मिश्रायिन भाभी और मेरी भाभी की जोड़ी के आगे। ननदे बिना लड़े सरेण्डर कर देती हैं। जल्द ही जब गुड्डी आ जाएगी। तो गुड्डी और रीतू भाभी की जोड़ी का यही हाल होगा।

जैसे शेर चूहे को खिलाता है वही हालत वो दोनों उसकी कर रही थी। गुड्डी पूरे जोश में थी।

समोसेवाली के दोनों हाथ, रीतू भाभी की जबर्दस्त गिरफ्त में थे वो बिचारी छटपटा रही थी, चूतड़ पटक रही थी। लेकिन रीतू भाभी और गुड्डी कि जुगल बन्दी के आगे उस कि क्या चलती। गुड्डी ने उसकी दोनों जांघें जबरन फैलवायी और उसके छोटे से कसे छेद को पहले तो अपनी हथेली से रगड़ती रही। और जब वो थोडी गीली हो गई, तो अपनी मंझली उंगली, घचाक से। वो भी पूरी स्टाइल से। मुट्ठी मोड के सिर्फ मंझली उंगली निकली, पूरी ताकत से उसकी कुँवारी कसी कच्ची चूत में पेल दी।



वो बहुत जोर से चीखी।

लेकिन उसकी चीख भाभियों की हँसी और हुंकार में डूब गई।

फाड़ डालो साली छिनार की चूत, बहुत बोल रही थी। सब एक साथ बोली-


“फाड़ दो, पेल दो, फाड़ दो, चोद दो…” भाभियां नारा लगा रही थी।

“अभी उंगली की एक पोर गई है। त़ा इ हाल है अभी तुम्हारे भैया का मोटा लण्ड यहीं घोटेगी, तो कैसे लीलोगी, मेरी प्यारी बन्नो। और उसके बाद मेरे भैया, फिर मोहल्ले के लौंडो का। सीख लो गटागट घोंटना…”

गुड्डी उंगली गोल-गोल घुमाते बोली।



तब तक रीतू भाभी उसकी बस आती हुई चूची को पुल करते हुए बोली-


“इ बिन्न्नो का आज निवान कराय दो बस देखना एतना लण्ड घोंटेंगी, अगले होली तक की कालीन गंज की रंडियों (कालीन गंज हमारे शहर की मशहूर रेड लाईट एरिया है) को भी मात करेंगी।

तब तक गुड्डी ने उस कच्ची कली की बुर से उंगली निकालकर मेरी ओर ललचाते हुए दिखाया और बोली-

बोल लेना है इस छमिया की कच्ची, कोरी, सील बंद है अभी। तुम हाँ करो तो बोलो। वरना उंगली से सील तोड़ दूंगी। बोल एकदम फ्री…”

मैं उहापोह में। बोलूं तो फंसू। मन तो कर रहा था लेकिन झिझक भी रहा था और ना हाँ करने पे भी। सील तो उसकी गुड्डी अपनी उंगली से फाड़ देगी।

“मेरे मुँह से निकल गया नहीं…” लेकिन हाँ और सब भाभियां मेरे ऊपर पिल पड़ी।


एक साथ बहनचोद, बहनचोद का नारा।

गनीमत था की रीतू भाभी जोश में थी और गुड्डी से बोली। यार पहले मैं तो इस कच्ची कली का मजा ले लूँ थोड़ा। और उसके बाद तो क्या कोई मर्द, लौंडिया चोदेगा। जिस जोश और जोर से रीतू भाभी ने अपनी चूत से उसकी अनचुदी, कच्ची, कुँवारी चूत पे घिस्से लगाए। दोनों टांगों को फैलाकर।




और मेरी सोन चिरैया रीतू भाभी से उन्नीस थोड़े ही थी। उसने 'समोसेवाली' के छोटे-छोटे समोसे का स्वाद लेना शुरू किया। कभी उंगली से, कभी अपने होंठों से और उसमें भी गुड्डी उसके कच्चे हरे मटर के दानों ऐसे निपलों को बेसब्रे बालम की तरह से काट लेती, और वो कच्ची कली जोर से चिल्लाती। और भाभियां जवाब जोर के ठहाके लगाती।

गुड्डी बीच-बीच में उसके छोटे जोश में एकदम कड़े समोसे मुझे दिखाकर और ललचाती। लेकिन तभी रीतू भाभी उस लेस्बियन रेसलिंग के लेवल को अगले लेवल पे ले गईं। जो अल्टीमेट सरेंडर टाइप कुश्तियां दिखातें है। उसके आखिरी लेवल में हारने वाली के साथ जो जीतने वाली करती है। बल्की उससे भी कुछ ज्यादा। रीतु भाभी उस कच्ची कली के सिर की ओर जाकर बैठ गईं और गुड्डी को उन्होंने इशारा किया, भरतपूर का मोर्चा सम्हालने को।

लेकिन मेरी सोन चिरैया बोली-

“जरा इसको स्वाद तो चखा दूं…”

गुड्डी का ये डामिनेंट लेज रूप मेरे लिये भी नया था। लेकिन था खूब रसीला।

गुड्डी ने उस कच्ची कली का सिर पकड़कर पहले तो खूब डामिनेटिंग किस उस ‘समोसेवाली’ के रसीले होंठों का लिया और फिर अपनी जुबान उस गदराती, किशोरी के मुँह में ठेल दीदी और मस्त फ्रेंच, डीप किस। अब तक दो-चार और भाभियां भी मैदान में आ गई, शीला भाभी, रीतू भाभी कि वो समवय्स्क, जो मुझे छ्त से रीतू भाभी के साथ खींचकर ले आई थी। एक-दो और।

लेकिन वो सब दर्शक और उत्साह्वर्धक की भूमिका में ही थी लेकिन गुड्डी डीप किस करते हुये, एक-दो पहले तो प्यार भरे चान्टे उस ‘समोसेवाली’ के रंगो से रंगीन गाल पे लगाये। फिर एक जरा जोर से। और उसी के साथ अपने होंठ हटाकर, एक हाथ से जोर से उसके प्यारे प्यारे गाल दबा दिये। और उस गौरेया ने अपनी चोन्च खोल दीदी और उसी के साथ। गुड्डी ने कुछ चुभलाया, मुँह गोल किया, गौरेया के गाल पे प्यार कि चपत लगायी और उसकी खुली चोन्च में थूक।

गुड्डी के मुँह से थूक का गोला, झटके से अन्दर। और जब तक वो सम्हले सम्ह्ले। दुबारा थूक।



अबकी निशाना कुछ गड़बड़ हुआ। एक-दो बून्द गालों पे पड़ गई तो गुड्डी ने उसे भी रगड़कर फैला दिया, अच्छी तरह चेहरे पे, मसल दिया, गाल पे चिकोटी काट ली। और साथ में अपने होठों से गुड्डी ने उसके होंठ सील कर दिये। गुड्डी के हाथ खाली नहीं थे, वो जोर जोर से उन ‘समोसों’ को मसल रही थी, पुल कर रही थी, निपल पिंच कर रही थी।

कई भाभियों ने स्पिटिंग की ये सीन अपने मोबाइल में कैद भी कर लिया था। और अब गुड्डी ने नीचे का रुख किया और रीतू भाभी ने उस 'समोसेवाली' कच्ची कली, ननद के मुँह को कब्जे में किया। गाल पे दो बार पिंच किया।

लेकिन गुड्डी की शरारतें, उसने थोड़ा उसे पलटा और उसके नितम्बों पे प्यार से एक-दो चपत मुझे दिखाते हुए रसीद की। और फिर एक जोर से सीधे उसकी गाण्ड पे। और गुड्डी ने मुझे एक किस, उड़न किस दिया और उसकी गाण्ड के छेद को अपने दोनों अंगूठो से पूरी ताकत से फैलाकर मुझे दिखाते हुए बोली-



“बोल लेगा। अपनी बहना की प्यारी-प्यारी गाण्ड। आगे वाली के साथ पीछे वाली फ्री। शर्मा मत अभी सब के सामने यहीं हचक के राखी बान्धने वाली बड़ी बहन की मारी है। बोल…”
 
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नमकीन शर्बत




लेकिन गुड्डी की शरारतें, उसने थोड़ा उसे पलटा और उसके नितम्बों पे प्यार से एक-दो चपत मुझे दिखाते हुए रसीद की। और फिर एक जोर से सीधे उसकी गाण्ड पे। और गुड्डी ने मुझे एक किस, उड़न किस दिया और उसकी गाण्ड के छेद को अपने दोनों अंगूठो से पूरी ताकत से फैलाकर मुझे दिखाते हुए बोली-

“बोल लेगा। अपनी बहना की प्यारी-प्यारी गाण्ड। आगे वाली के साथ पीछे वाली फ्री। शर्मा मत अभी सब के सामने यहीं हचक के राखी बान्धने वाली बड़ी बहन की मारी है। बोल…”



दीदी मुझे देखकर मीठा मीठा मुश्कुरा रही थी और सिर हिला के उन्होंने ग्रीन सिगनल दे दिया। लेकिन वो कच्ची कली, रीतू भाभी के चन्गुल से किसी तरह छुड़ाकर बोली-

“नहीं उधर का नहीं…”

जवाब गुड्डी के तमाचे ने दिया। अबकी पूरे जोर से, गाण्ड पे, फूल खिल गया। और गुड्डी बोली-

"अभी तेरी बड़ी बहन चूतड़ उठा उठाकर इसी आँगन में हुमच हुमच के गाण्ड मरवा रही थी, तो तोहरे गाण्ड में कौन से सुर्खाब के पर जड़े हैं।"

तब तक मन्जू भी मैदान में पहुँच गई थी वो बोली-

“हे बिन्नो, इ मत कहना कि तू उमरिया कि बारी हौ। तोहरी उमर के लौन्डे, बान्ध के पीछे, गन्ने के खेत में, अरहरी में, जब देखो तब गाण्ड मरवावत हैं। अब तक गाँव में होती त कब तक सील टूट चुकी होती…”

और जवाब, उसकी ओर से रीतू भाभी ने दिया-


“अरे हमारी इ छिनार ननद भी कौनों से कम नहि है। आप देखना। अगले होली तक अगवाड़ा पिछ्वाड़ा दोनों भोंसड़ा हो जायेगा। सबको बांटेगी हमारी बांकी ननदिया। तब तक बाकी भाभियां चालू हो गईं, गाना गा गा के चिढ़ाने में।"





लौंडन में दीवानी ननदिया।

अरे अरे हमरे तो एक पिया,

ननदी के दस दस। लौण्डन में दीवानी ननदिया,

अरे ननदी को चोदें दस दस लौंडे, अरे दस दस लौंडे


कोई चोदे आगे, कोई चोदे पीछे।

अरे लौंडन से मरवाए गाण्ड हमारी ननदिया।


और उसी लाइन पे गुड्डी ने मुझे दिखाकर उसके चूतड़ फैलाकर दो हाथ प्यार से लगा दिए। दीदी भी मुझे अपनी बांह में भींचती बोली-

देख उसके चूतड़। एकदम आठवी नौवीं के लौंडो तरह हैं ना।

दीदी की निगाह। भी सच में उसके चूतड़ एकदम ब्वॉयइश थे। दीदी ने मेरे गाल पिंच करते हुए कहा।


" ली तो होगी तूने इस उमर के कमसिन लौंडो की।"

मैंने न ना बोली ना हाँ। और हम दोनों उधर ही देख रहे थे।

गुड्डी ने फिर उसकी चियारी हुई गाण्ड में थूक कर बड़ा सा गोला थूक दिया। फिर दो उंगली से गाण्ड की दरार पे फैलाने लगी।

उधर रीतू भाभी ने जोर से उसके जस्ट आये हुए निपल खूब जोर से पिंच किये। वो बहुत जोर से चीखी। रीतू भाभी यही तो चाहती थी।




उन्होंने एक झटके में अपनी चार उंगलियां। उसके खुले मुँह में पेल दी। वो गों गों करती रही। लेकिन रीतू भाभी उसे गोल-गोल घुमाती रही।

एक भाभी ने उसके छोटे-छोटे जोबन को दबाया और बोली-

“सुन, तुझे अपनी रीतू भाभी का भला मानना चाहिये। अरे तेरी प्रैक्टिस करवा दे रही हैं। इसी मुँह से अपने यारों का मोटा-मोटा औजार घोन्टेगी प्यार से। चूसेगी खूब रस ले लेकर।

और तब तक रीतू भाभी ने उसके मुँह से अपनी चारों उंगलियां निकालकर उसके प्यारे गुलाबी गालों पे, उसका सेलाइवा थूक। सब लिसेड़ दिया।

गुड्डी भी नीचे। उसका एक हाथ पिछवाड़े की हाल चाल ले रहा था। तो दूसरा भरतपुर को रगड़ मसलकर वहां पानी निकाल रहा था। राम पियारी तो गीली हो ही गई थी। उसकी फैली गोरी चिकनी जान्घों पे भी रस बह रहा था। देख देखकर मेरा मन ललच रहा था लेकिन तब तक देखना थोड़ा मुश्किल हो रहा था। और भाभियों ने उसे घेर लिया था। लेकिन तब भी उसकी चीख पुकार, भाभियों की हँसी, छेड़-छाड़, कमेन्ट्स से अन्दाजा लग रहा था। और बीच-बीच में दिख भी जा रहा था।

तब तक किसी एक भाभी ने रीतू भाभी की जेठानी लग रही थी, उन्हें ललकारा।


अरे बिचारी इत्ती देर से पियासी है। कईसन भौजायी हो रीतू जरा पिला दे इसे, शर्बत।

शीला भाभी की आवाज आई-

"अरे पिला दो ना न नमकीन शर्बत। अपने शहर कि सबसे नमकीन लौन्डिया हो जायेगी। एकदम जिल्ला टाप और मुँह ना खोले ना त ऐसन छिनरन का मुँह खोल्वाये का तरीका आता है मुझे। "

भाभियों का झुरमुट कुछ हटा। और मैंने देखा।

रीतू भाभी ‘समोसेवाली’ के उपर चढ़ी दोनों जान्घों से कसकर उसके सिर को भींचे, और बस उसके होंठों से कुछ उपर रीतू भाभी और शीला भाभी ने उसके दोनों नथुने जोर से पिंच किये हुये उसका मुँह खोला,



थोड़ी देर पहले जैसे मंजू दीदी के साथ जबरन उन्हें अपनी जांघों के बीच दबाकर बिलकुल वैसे।

भाभियों का झुरमुट फिर गहरा हो गया था। लेकिन मैं अंदाज कर सकता था।



खूब जोर का शोर हल्ला। दीदी ने शायद मेरे चेहरे को पढ़ लिया और गाल पे पिंच करते हुये बोली-


“हे शर्मा रहे हो क्या या बुरा लग रहा है। अरे यार होली में सब चलता है, फिर जहां सिर्फ ननद भौजाइयां सब कुछ…”

मैं तो दीदी के चक्कर में शर्मा रहा था कि उनके सामने ये सब। और जब वो खुद मजा ले रही हैं तो मैं क्युं मुँह फुलाकर। दीदी ने मेरे कन्धे पे हाथ रखकर मेरा ध्यान फिर उधर खींचा और बोली-

तू अभी भी ना शर्मिला ही है। तेरी तो जबर्द्स्त रैगिंग होनी चाहिये। अरे यार। अगर ऐसी हैकड़ लड्कियों की जरा कसकर रगड़ायी ना हो ना तो गायेंगी की अरे भाभियों कि तो हिम्मत ही नहीं पड़ी।
और दूसरा फायदा। होली का का मौका है। इन नई बछेड़िय़ों की शर्म लाज छुड़ाने का, फिर ये भी खुलकर खेलेंगी और शहर के लड़कों का फायदा।

भाभियों का झुरमुट थोड़ा हट गया था और मैं और दीदी अब खेल तमाशा खुलकर देख सकते थे।

फिर से शोर हुआ और।

और मैंने दीदी से बात टालने में भलाई समझी और बोला- “आप रैगिंग क्यों पूछ रही थी। मैंने रैगिंग दी भी है और ली भी है। यहाँ तक की मेरी रैगिंग तो सीनियर लड़कियों ने भी ली है…”

दीदी की निगाह अभी भी उधर थी, बोली-

“बुद्धू हो ना तुम, बुद्धू ही रहोगे। अरे मैं कालेज की रैगिंग की बात नहीं कर रही थी। ससुराल की रैगिंग की बात कर रही थी। जानते हो मेरी ससुराल की पहली होली में। मेरा सास ने खुद और मुझे उन्होंने मेरी ननदों के साथ उकसाया। तेरी तो गाँव में शादी हो रही है ना। तो जो कोहबर में रैगिंग होगी ना। उसके आगे ये सब बच्चों का खेल है। कालेज की रैगिंग तो इसके आगे कुछ भी नहीं। हाँ और सिर्फ साली सलहज नहीं असली रगड़ायी तो सास करती है। वो भी अपनी सास के साथ, मौसेरी, चचेरी, सब…”

दीदी की बातों से मेरे मन में गुड्डी की मम्मी, मेरी सास की बात याद आ गई कि खुलकर गुड्डी से मैं उनके बारे में मजाक करता था।



और गुड्डी बोलती भी थी कि जब मैं उनके पल्ले पढ़ूंगा ना तो वो मेरी कितनी ऐसी की तैसी करेंगी। उसका कोई ठिकाना नहीं और फिर बात सिर्फ कोहबर की नहीं थी। गुड्डी को मैंने प्रामिस कर दिया था कि जब तक मैं बनारस में रहुंगा, चाहे ट्रेनिंग, चाहे पोस्टिंग। मुझे अपने ससुराल में ही रहना होगा। तो इसका मतलब कि ये रैगिंग रोजाना होगी मेरी।

लेकिन अब कुछ हो भी नहीं सकता था और कई बार रगड़े जाने में भी मजा आता है।

तब तक रीतू भाभी की आवाज सुनायी पड़ी। एकदम पास से-


"देख तेरे लिये कितना मस्त माल लायी हुं। एकदम कच्ची कली। अब आयेगा कुश्ती का मजा।"

मैने देखा कि रीतू भाभी और शीला भाभी उस ‘समोसेवाली’ को पकड़े और साथ में गुड्डी भी। सबसे मजेदार बात ये थी की उस ‘कच्ची कली’ के चेहरे पे उस रगड़ाई के बाद ना कोई गुस्सा था ना कोई परेशानी। बल्की वो हल्के-हल्के मुश्कुरा रही थी।

दीदी और गुड्डी ने मिलकर मुझे खड़ा कर दिया और सामने उसको पकड़े रीतू भाभी और शीला भाभी फट गई होली में ‘वो’ एकदम मस्त लग रही थी। छोटे-छोटे आते हुए उभार, सुबह के सूरज की ललछौंही आभा लिए जवानी की दस्तक के निशान, वो 'समोसे' जिन्हें देखकर शहर में ना जाने कितनी सीटियां गूँज जाती थी। जिसके मटकते 'ब्वायिश' चूतड़ों को देखकर ना जाने कितनी बार मेरे तम्बू में बम्बू खड़ा हुआ।

 
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मेरे शहर की लोलिता



दीदी और गुड्डी ने मिलकर मुझे खड़ा कर दिया और सामने उसको पकड़े रीतू भाभी और शीला भाभी फट गई होली में ‘वो’ एकदम मस्त लग रही थी। छोटे-छोटे आते हुए उभार, सुबह के सूरज की ललछौंही आभा लिए जवानी की दस्तक के निशान, वो 'समोसे' जिन्हें देखकर शहर में ना जाने कितनी सीटियां गूँज जाती थी। जिसके मटकते 'ब्वायिश' चूतड़ों को देखकर ना जाने कितनी बार मेरे तम्बू में बम्बू खड़ा हुआ।

मेरे शहर की लोलिता। लतिका (जी यही नाम था उस कम उम्र किशोरी का) मुट्ठी में आ जाये वो कमर। कितनी बार उसके पीछे, (मेरे सहित) कितने लड़कों ने ये गाना गाया होगा-


हमरे गउंवा वाली गोरिया जब जवान होइहै,

तब हमरो अरे तब हमरो गंगा स्नान होइहै।

आज मौका आ गया था गंगा स्नान का, गंगा खुद आँगन में थी। और हमारे जंग बहादुर बहुत देर से बेताब थे। पहले रीतू भाभी के साथ चूची चोदन (जो अधुरा रह गया) और फिर भाभियों ने जो इसके साथ छल कबड्डी खेली। उसकी आवाजों और दर्शन से हालत और खब हो गई। और अब।

गुड्डी ने मेरे तन्नाये बेताब, बावरे औजार को सीधे, उसके सेंटर पे लगा दिया। जैसे शादी में नाउन, दुल्हे दुल्हन की गान्ठ जोड़ती है, बिलकुल उसी तरह उधर रीतू भाभी ने, अपनी कुँवारी किशोर ननद के दोनों गुलाबी सन्तरे के फांक की तरह रसीले, भगोष्ठ पूरी ताकत से फैला रखे थे और गुड्डी ने मेरा तन्नाया मोटा सुपाड़ा सीधे सेंटर पे रखकर घुसेड़ दिया।

मेरी हिम्मत नहीं थी की मैं नहीं पुश करता। क्योंकी मेरे पीछे मंजू खडी थी और मुझसे ज्यादा जोर से उसने पुश किया और उधर से यही काम रीतू भाभी ने।

आधे से ज्यादा सुपाड़ा चला गया। उसने चीख रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन चीख निकल ही गई, लेकिन मैं रुकने वाला नहीं था। मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा और फिर दुबारा। मेरी हिम्मत भी नहीं थी, धक्कों में बेइमानी करने की। पीछे से मंजू ने पकड़ रखा था और वो कान में बोल रही थी-

लाला, तनिको धीमे किहा ना ता इ मुट्ठी पूरी तोहरी गाण्ड में। दो उंगली तो उसने ठेल ही दी थी। और उससे भी बड़कर गुड्डी।


उस की आँखें। सात जनम तक तो मैं उनके हुकुम का गुलाम बन ही चुका था।

गुड्डी गुनगुना रही थी-




छोटी-छोटी चूचियां, बुर बिना बाल की,

चोदो मेरे राजा मेरी ननदी है कमाल की।

जो काम मन्जू मेरे साथ कर रही थी वही रीतू भाभी उसके साथ कर रही थी और अभी कुछ देर पहले जो रीतू भाभी ने उसे कराया था। उसके बाद तो उसकी हिम्मत भी नहीं पड़ सकती थी (बाद में मैंने वो सारी फिल्म गुड्डी के मोबाइल पे मैंने देखी और रीतू भाभी उसके कान में ये भी बोल रही थी कि शाम तक वो फिल्म यू ट्युब पे चल जायेगी)।

और साथ में रीतू भाभी ने भी उसके पिछवाड़े एक उंगली ठेल रखी थी। अब सुपाड़ा अन्दर घुस चुका था। इसलिये रीतू भाभी, और गुड्डी दोनों को मालूम था कि अब ये बान्की हिरनिया लाख चूतड़ पटके, लण्ड बिना चोदे, मलाई अन्दर झाड़े नहीं निकलने वाला था।

और मैंने उसे अपने बाहों में भर लिया। मेरे होंठ अब उसके होंठों पे थे, और हाथ उन समोसों पे जिन्होने सारे शहर को बेताब कर रखा था। छोटे जरूर थे। लेकिन एकदम रस गुल्ले। मैं कभी सहलाता, कभी दबाता तो कभी अपने होंठ वहां लगाता। लेकिन उसने एक बात ये बोली कि बस मेरी चुदायी की रफ्तार दस गुनी हो गई। मेरे कानों पे अपने रसीले होंठ लगाकर वो बोली-


तुम क्या सोचते हो देखकर सिर्फ तुम्हारा ही मन करता था। मेरे अन्दर तुझ से भी ज्यादा आग लगी थी…”

अब मैं समझा की ये बात कितनी सच है की लड़कियों की एड़ी में आँख होती है। और उनकी झांटे बाद में आती हैं, चूत में खुजली पहले मचने लगती है।

और उस आग का इलाज खड़े खड़े तो ठीक से हो नहीं सकता था। तो मैंने उसे वहीं रंगो से भरे आँगन में लिटा दिया। लम्बी टांगे मेरे कन्धे पे। लेकिन गुड्डी के बिना कोई काम हो सकता है क्या। तो गुड्डी ने आँगन में फैले, ननदों के टाप, चिथड़े हुये ब्रा और पैन्टी। सब को इकट्ठा कर उसके चूतड़ के नीचे रख दिया। अब चुदायी का इन्त्जाम पूरा था। और मैंने जो उन ‘समोसो’ को पकड़कर, हुमच के धक्का मारा। आधे से ज्यादा लण्ड अन्दर था। और साथ-साथ ही उस कि सील भी टूट गई।

जोर से चीखी वो।

लेकिन गुड्डी और रीतू भाभी, कसकर उस कि कलाई पकड़े थी जिससे वो टस से मस नहीं हो पायी। उसके बाद उसके उभार सहलाते गुड्डी बोली-


“अरे यार ये चीज कभी ना कभी तो फटनी थी। जल्दी फट गई तेरी। तो अब बिना डर यारों से मजा ले सकेगी। दुबारा ये दर्द थोड़े ही होगा। अब तो बस मजा ही मजा है। और तेरी किस्मत की पहले बार में ही इतना मोटा मूसल मिला है वो भी भैया का…”

तब तक रीतू भाभी की एक सहेली, पीछे से उसके गोल-गोल नितम्ब सहलाती बोली-

“तू लकी है यार। जो कुँवारी, होली के दिन अपनी सील खुलवाती है ना। होलिका देवी उससे इतना खुश रहती है की जिंदगी भर उसे मोटे और सख्त की कमी नहीं होती। एक मांगेगी, तीन मिलेंगे। चल अब ले मजा खुलकर।"

एक से एक कमेंट चल रहे थे। लेकिन उसका फायदा हुआ की कुछ तो उसका दर्द का अहसास कम हो गया और कुछ उस की धड़क खुल गई। और सबसे बड़ी बात अब उसका ध्यान उसकी कच्ची कली में घुसे मोटे खूंटे से थोड़ा हट गया था।

मैंने भी मौके का फायदा उठाया, उसके होंठों को चूसते हुए जीभ उसके मुँह में डाली। अब वो चीख नहीं सकती थी। एक हाथ कमर पे रखकर उसे अपनी ओर खींचा, दूसरे हाथ से उसके बस उठ रहे जोबन को जोर से दबाया। गुड्डी समझ गई थी। उसने मुश्कुराते हुए थम्स अप का सिगनल दिया। और मैंने हुमच के पहले पूरी ताकत से एक धक्का, फिर दूसरा धक्का मारा।

और रीतू भाभी ने भी उसी के साथ हचक के उस कुँवारी ननद की गाण्ड में उंगली पेल दी और उसने खुद कमर मेरी ओर उचका दी। दो तिहाई यानी करीब छ इंच मेरा मोटा लण्ड अन्दर था। मेरे होंठ अभी भी उसके होंठ को सील किये हुए थे। पीछे से रीतू भाभी भी उसे कसकर दबोचे हुए थी। धीमे-धीमे मैंने मुसल उसकी नई ओखली में चलाना शुरू किया। आगे-पीछे आगे-पीछे। और साथ में उन छोटे-छोटे समोसों का मजा। कभी चूस लेता तो कभी बाईट ले लेता तो कभी जोर से दबा देता।

और अब उसको भी मजा आना शुरू हो गया था वो भी मेरे कन्धों को पकड़कर अपनी ओर खींच रही थी, पुल कर रही थी, चूतड़ उचका रही थी। और गुड्डी कभी उसके गालों को कभी जोबन को सहलाकर गा गा के अपनी नई, ननद को छेड़ रही थी-


अरे छोट-छोट, अरे छोट-छोट जोबना दाबे में मजा देय

ननदी हमारी चोदे में मजा देय।


राजा चोद ले टंगिया उठाय के,

अरे चूची दबाय के ना।


मैंने जिंदगी में गुड्डी की बात नहीं टाली थी। टांगें उठाकर चूची दबा दबाकर मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा था। तब तक पीछे से मंजू की आवाज सुनायी दी-

“अरे लाला। फागुन में कातिक का मजा दो हमरी छिनार ननदिया को, इसे कुतिया बनाकर चोदो। फाड़ दो साल्ली की…”


मेरे कुछ करने के पहले ही रीतू भाभी और गुड्डी की जुगल बंदी मैदान में आ गई और दोनों ने उसे डागी पोज में कर दिया और मैं अब पीछे से उस कुँवारी कली के ऊपर चढ़ा हुआ था। और तभी रीतू भाभी ने जो मेरे पीछे थी। देख लिया और जबर्दस्त गाली दी- “साले भोंसड़ी के। तेरी सारी बहनों की फुद्दी मारूं। अपनी बहन के भंड़ुवे, पेल पूरा। बाकी किसके लिए बचा रखा है…”

और जो काम गाली ने नहीं किया। वो रीतू भाभी की उंगली ने किया, पूरा पिछवाड़े अन्दर और साथ में मेरा लण्ड भी आठ इंच अन्दर, बाल्स तक।

गुड्डी भी वो उसके उभार सहला रही थी छेड़ रही थी- “अरे ले ले यार। ननदों के लिए कोई रोक टोक नहीं है। ले ले सीधे। मजा ले खुलकर। वरना आरेंज जूस और पीना है। अभी तो सिर्फ रीतू भाभी ने…” गुड्डी ने निपल पिंच कर के बोला।

और मैंने सुपाड़ा बाहर तक निकाल कर के ठेल दिया, जड़ तक। रीतू भाभी की उंगली उसकी क्लिट भी सहला रही थी। और थोड़ी देर में वो झड़ने लगी।

लेकिन मुझे तो टाइम लगना ही था। एक बार छत पे गुड्डी की, फिर कुछ देर पहले दीदी की गाण्ड और अब ये तीसरी बार। मैं अब रिमझिम बूंदी से मुसलाधार बारिश और तूफान की तरह चोद रहा था। हर धक्का उसकी बच्चे दानी पे रुकता।

वो सिहर उठती, काँप उठती और थोड़ी देर में दुबारा। आँधी में पत्ते की तरह वो कांपने लगी। वो दुबारा झड़ रही थी। उसकी कच्ची चूत मेरे लण्ड को निचोड़ रही थी दबा रही थी।

मैंने एक-दो पल के लिए रुका। लेकिन मैं भी अब। और उसकी चूचियों पे जोर जोर से मैंने बाईट के मार्क बना दिए। दोनों कंधे पकड़े और, चूतड़ सहलाए। और फिर पूरी तेजी से हचक-हचक कर, हुमच हुमच कर चोदने लगा, बिना रुके, लगातार। और फिर इस बार वो झड़ी तो साथ में मैं भी। कटोरी भर मलाई अंदर, बहुत देर तक हम दोनों डागी पोजीशन में ही पड़े रहे। और जब मैंने लण्ड बाहर निकाला और वो खड़ी हुई तो मेरे वीर्य की एक धार उसकी गुलाबी चूत से निकलकर उसकी चिकनी रेशमी गोरी जांघ पे। दो-चार बूंदें, सफेद, गाढ़ा थक्का। गुड्डी ने उसे अपनी एक उंगली में लपेटा और उसके होंठों पे लगा दिया।

मुझे लगा की अब वो गुस्सा हो जायेगी, लेकिन उसने जीभ निकालकर चाट लिया और मुझे देखकर मुश्कुरा दी। मैं भी मुश्कुरा दिया। फिर वो रेशम की डोर में बंधी चली आई सीधे मेरी बांह में। मैंने जोर से उसे भींच लिया। और उससे भी ज्यादा जोर से उसने और मेरे इयर लोबस को किस करके बोली- बहुत दिन की साध पूरी हुई मेरी।

और उसके बाद गुड्डी का नम्बर था। उसने गुड्डी को भी बांहों में लेकर भींच लिया। उन दोनों में पक्की दोस्ती हो गई। लग रहा था की पता नहीं कब की बिछड़ी सहेलियां मिली है।
 
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malikarman

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मेरे शहर की लोलिता



दीदी और गुड्डी ने मिलकर मुझे खड़ा कर दिया और सामने उसको पकड़े रीतू भाभी और शीला भाभी फट गई होली में ‘वो’ एकदम मस्त लग रही थी। छोटे-छोटे आते हुए उभार, सुबह के सूरज की ललछौंही आभा लिए जवानी की दस्तक के निशान, वो 'समोसे' जिन्हें देखकर शहर में ना जाने कितनी सीटियां गूँज जाती थी। जिसके मटकते 'ब्वायिश' चूतड़ों को देखकर ना जाने कितनी बार मेरे तम्बू में बम्बू खड़ा हुआ।

मेरे शहर की लोलिता। लतिका (जी यही नाम था उस कम उम्र किशोरी का) मुट्ठी में आ जाये वो कमर। कितनी बार उसके पीछे, (मेरे सहित) कितने लड़कों ने ये गाना गाया होगा-


हमरे गउंवा वाली गोरिया जब जवान होइहै,

तब हमरो अरे तब हमरो गंगा स्नान होइहै।

आज मौका आ गया था गंगा स्नान का, गंगा खुद आँगन में थी। और हमारे जंग बहादुर बहुत देर से बेताब थे। पहले रीतू भाभी के साथ चूची चोदन (जो अधुरा रह गया) और फिर भाभियों ने जो इसके साथ छल कबड्डी खेली। उसकी आवाजों और दर्शन से हालत और खब हो गई। और अब।

गुड्डी ने मेरे तन्नाये बेताब, बावरे औजार को सीधे, उसके सेंटर पे लगा दिया। जैसे शादी में नाउन, दुल्हे दुल्हन की गान्ठ जोड़ती है, बिलकुल उसी तरह उधर रीतू भाभी ने, अपनी कुँवारी किशोर ननद के दोनों गुलाबी सन्तरे के फांक की तरह रसीले, भगोष्ठ पूरी ताकत से फैला रखे थे और गुड्डी ने मेरा तन्नाया मोटा सुपाड़ा सीधे सेंटर पे रखकर घुसेड़ दिया।

मेरी हिम्मत नहीं थी की मैं नहीं पुश करता। क्योंकी मेरे पीछे मंजू खडी थी और मुझसे ज्यादा जोर से उसने पुश किया और उधर से यही काम रीतू भाभी ने।

आधे से ज्यादा सुपाड़ा चला गया। उसने चीख रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन चीख निकल ही गई, लेकिन मैं रुकने वाला नहीं था। मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा और फिर दुबारा। मेरी हिम्मत भी नहीं थी, धक्कों में बेइमानी करने की। पीछे से मंजू ने पकड़ रखा था और वो कान में बोल रही थी-

लाला, तनिको धीमे किहा ना ता इ मुट्ठी पूरी तोहरी गाण्ड में। दो उंगली तो उसने ठेल ही दी थी। और उससे भी बड़कर गुड्डी।


उस की आँखें। सात जनम तक तो मैं उनके हुकुम का गुलाम बन ही चुका था।

गुड्डी गुनगुना रही थी-




छोटी-छोटी चूचियां, बुर बिना बाल की,

चोदो मेरे राजा मेरी ननदी है कमाल की।

जो काम मन्जू मेरे साथ कर रही थी वही रीतू भाभी उसके साथ कर रही थी और अभी कुछ देर पहले जो रीतू भाभी ने उसे कराया था। उसके बाद तो उसकी हिम्मत भी नहीं पड़ सकती थी (बाद में मैंने वो सारी फिल्म गुड्डी के मोबाइल पे मैंने देखी और रीतू भाभी उसके कान में ये भी बोल रही थी कि शाम तक वो फिल्म यू ट्युब पे चल जायेगी)।

और साथ में रीतू भाभी ने भी उसके पिछवाड़े एक उंगली ठेल रखी थी। अब सुपाड़ा अन्दर घुस चुका था। इसलिये रीतू भाभी, और गुड्डी दोनों को मालूम था कि अब ये बान्की हिरनिया लाख चूतड़ पटके, लण्ड बिना चोदे, मलाई अन्दर झाड़े नहीं निकलने वाला था।

और मैंने उसे अपने बाहों में भर लिया। मेरे होंठ अब उसके होंठों पे थे, और हाथ उन समोसों पे जिन्होने सारे शहर को बेताब कर रखा था। छोटे जरूर थे। लेकिन एकदम रस गुल्ले। मैं कभी सहलाता, कभी दबाता तो कभी अपने होंठ वहां लगाता। लेकिन उसने एक बात ये बोली कि बस मेरी चुदायी की रफ्तार दस गुनी हो गई। मेरे कानों पे अपने रसीले होंठ लगाकर वो बोली-


तुम क्या सोचते हो देखकर सिर्फ तुम्हारा ही मन करता था। मेरे अन्दर तुझ से भी ज्यादा आग लगी थी…”

अब मैं समझा की ये बात कितनी सच है की लड़कियों की एड़ी में आँख होती है। और उनकी झांटे बाद में आती हैं, चूत में खुजली पहले मचने लगती है।

और उस आग का इलाज खड़े खड़े तो ठीक से हो नहीं सकता था। तो मैंने उसे वहीं रंगो से भरे आँगन में लिटा दिया। लम्बी टांगे मेरे कन्धे पे। लेकिन गुड्डी के बिना कोई काम हो सकता है क्या। तो गुड्डी ने आँगन में फैले, ननदों के टाप, चिथड़े हुये ब्रा और पैन्टी। सब को इकट्ठा कर उसके चूतड़ के नीचे रख दिया। अब चुदायी का इन्त्जाम पूरा था। और मैंने जो उन ‘समोसो’ को पकड़कर, हुमच के धक्का मारा। आधे से ज्यादा लण्ड अन्दर था। और साथ-साथ ही उस कि सील भी टूट गई।

जोर से चीखी वो।

लेकिन गुड्डी और रीतू भाभी, कसकर उस कि कलाई पकड़े थी जिससे वो टस से मस नहीं हो पायी। उसके बाद उसके उभार सहलाते गुड्डी बोली-


“अरे यार ये चीज कभी ना कभी तो फटनी थी। जल्दी फट गई तेरी। तो अब बिना डर यारों से मजा ले सकेगी। दुबारा ये दर्द थोड़े ही होगा। अब तो बस मजा ही मजा है। और तेरी किस्मत की पहले बार में ही इतना मोटा मूसल मिला है वो भी भैया का…”

तब तक रीतू भाभी की एक सहेली, पीछे से उसके गोल-गोल नितम्ब सहलाती बोली-

“तू लकी है यार। जो कुँवारी, होली के दिन अपनी सील खुलवाती है ना। होलिका देवी उससे इतना खुश रहती है की जिंदगी भर उसे मोटे और सख्त की कमी नहीं होती। एक मांगेगी, तीन मिलेंगे। चल अब ले मजा खुलकर।"

एक से एक कमेंट चल रहे थे। लेकिन उसका फायदा हुआ की कुछ तो उसका दर्द का अहसास कम हो गया और कुछ उस की धड़क खुल गई। और सबसे बड़ी बात अब उसका ध्यान उसकी कच्ची कली में घुसे मोटे खूंटे से थोड़ा हट गया था।

मैंने भी मौके का फायदा उठाया, उसके होंठों को चूसते हुए जीभ उसके मुँह में डाली। अब वो चीख नहीं सकती थी। एक हाथ कमर पे रखकर उसे अपनी ओर खींचा, दूसरे हाथ से उसके बस उठ रहे जोबन को जोर से दबाया। गुड्डी समझ गई थी। उसने मुश्कुराते हुए थम्स अप का सिगनल दिया। और मैंने हुमच के पहले पूरी ताकत से एक धक्का, फिर दूसरा धक्का मारा।

और रीतू भाभी ने भी उसी के साथ हचक के उस कुँवारी ननद की गाण्ड में उंगली पेल दी और उसने खुद कमर मेरी ओर उचका दी। दो तिहाई यानी करीब छ इंच मेरा मोटा लण्ड अन्दर था। मेरे होंठ अभी भी उसके होंठ को सील किये हुए थे। पीछे से रीतू भाभी भी उसे कसकर दबोचे हुए थी। धीमे-धीमे मैंने मुसल उसकी नई ओखली में चलाना शुरू किया। आगे-पीछे आगे-पीछे। और साथ में उन छोटे-छोटे समोसों का मजा। कभी चूस लेता तो कभी बाईट ले लेता तो कभी जोर से दबा देता।

और अब उसको भी मजा आना शुरू हो गया था वो भी मेरे कन्धों को पकड़कर अपनी ओर खींच रही थी, पुल कर रही थी, चूतड़ उचका रही थी। और गुड्डी कभी उसके गालों को कभी जोबन को सहलाकर गा गा के अपनी नई, ननद को छेड़ रही थी-


अरे छोट-छोट, अरे छोट-छोट जोबना दाबे में मजा देय

ननदी हमारी चोदे में मजा देय।


राजा चोद ले टंगिया उठाय के,

अरे चूची दबाय के ना।


मैंने जिंदगी में गुड्डी की बात नहीं टाली थी। टांगें उठाकर चूची दबा दबाकर मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा था। तब तक पीछे से मंजू की आवाज सुनायी दी-

“अरे लाला। फागुन में कातिक का मजा दो हमरी छिनार ननदिया को, इसे कुतिया बनाकर चोदो। फाड़ दो साल्ली की…”


मेरे कुछ करने के पहले ही रीतू भाभी और गुड्डी की जुगल बंदी मैदान में आ गई और दोनों ने उसे डागी पोज में कर दिया और मैं अब पीछे से उस कुँवारी कली के ऊपर चढ़ा हुआ था। और तभी रीतू भाभी ने जो मेरे पीछे थी। देख लिया और जबर्दस्त गाली दी- “साले भोंसड़ी के। तेरी सारी बहनों की फुद्दी मारूं। अपनी बहन के भंड़ुवे, पेल पूरा। बाकी किसके लिए बचा रखा है…”

और जो काम गाली ने नहीं किया। वो रीतू भाभी की उंगली ने किया, पूरा पिछवाड़े अन्दर और साथ में मेरा लण्ड भी आठ इंच अन्दर, बाल्स तक।

गुड्डी भी वो उसके उभार सहला रही थी छेड़ रही थी- “अरे ले ले यार। ननदों के लिए कोई रोक टोक नहीं है। ले ले सीधे। मजा ले खुलकर। वरना आरेंज जूस और पीना है। अभी तो सिर्फ रीतू भाभी ने…” गुड्डी ने निपल पिंच कर के बोला।

और मैंने सुपाड़ा बाहर तक निकाल कर के ठेल दिया, जड़ तक। रीतू भाभी की उंगली उसकी क्लिट भी सहला रही थी। और थोड़ी देर में वो झड़ने लगी।

लेकिन मुझे तो टाइम लगना ही था। एक बार छत पे गुड्डी की, फिर कुछ देर पहले दीदी की गाण्ड और अब ये तीसरी बार। मैं अब रिमझिम बूंदी से मुसलाधार बारिश और तूफान की तरह चोद रहा था। हर धक्का उसकी बच्चे दानी पे रुकता।

वो सिहर उठती, काँप उठती और थोड़ी देर में दुबारा। आँधी में पत्ते की तरह वो कांपने लगी। वो दुबारा झड़ रही थी। उसकी कच्ची चूत मेरे लण्ड को निचोड़ रही थी दबा रही थी।

मैंने एक-दो पल के लिए रुका। लेकिन मैं भी अब। और उसकी चूचियों पे जोर जोर से मैंने बाईट के मार्क बना दिए। दोनों कंधे पकड़े और, चूतड़ सहलाए। और फिर पूरी तेजी से हचक-हचक कर, हुमच हुमच कर चोदने लगा, बिना रुके, लगातार। और फिर इस बार वो झड़ी तो साथ में मैं भी। कटोरी भर मलाई अंदर, बहुत देर तक हम दोनों डागी पोजीशन में ही पड़े रहे। और जब मैंने लण्ड बाहर निकाला और वो खड़ी हुई तो मेरे वीर्य की एक धार उसकी गुलाबी चूत से निकलकर उसकी चिकनी रेशमी गोरी जांघ पे। दो-चार बूंदें, सफेद, गाढ़ा थक्का। गुड्डी ने उसे अपनी एक उंगली में लपेटा और उसके होंठों पे लगा दिया।

मुझे लगा की अब वो गुस्सा हो जायेगी, लेकिन उसने जीभ निकालकर चाट लिया और मुझे देखकर मुश्कुरा दी। मैं भी मुश्कुरा दिया। फिर वो रेशम की डोर में बंधी चली आई सीधे मेरी बांह में। मैंने जोर से उसे भींच लिया। और उससे भी ज्यादा जोर से उसने और मेरे इयर लोबस को किस करके बोली- बहुत दिन की साध पूरी हुई मेरी।

और उसके बाद गुड्डी का नम्बर था। उसने गुड्डी को भी बांहों में लेकर भींच लिया। उन दोनों में पक्की दोस्ती हो गई। लग रहा था की पता नहीं कब की बिछड़ी सहेलियां मिली है।
Bahut khubsurat update....inta bada update aur photo ek bhi nahi bahut na insafi hai
 

komaalrani

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Bahut khubsurat update....inta bada update aur photo ek bhi nahi bahut na insafi hai
chaliye aapki shikyaat door karane ke liye do chaar pics daal din, Vaise meri ye original story Phagun ke Din Chaar men pics nahi hain shayad us samay x forum pe pics dalane ka system bhi nahi tha,
 

pprsprs0

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लेस्बियन रेसलिंग


लेकिन दीदी ही बोली लेकिन मुझसे नहीं। मेरे तन्नाये उससे- “अरे मुन्ना। घबड़ा मत मिलेगी जल्दी ही मिलेगी तब तक कुश्ती देख…”

और हम लेस्बियन रेसलिंग देखने लगे।

एक लड़की को देखकर ही मुँह में पानी आने लगता है। और लेस्बियन रेसलिंग में तो दो दो। और यहाँ पे तो तीन थी। मेरी सच में हालत खराब हो रही थी। उस कमसिन कच्ची कली ने बहुत कोशिश की लेकिन रीतू भाभी बहुत खायी खेली थी और गुड्डी भी बनारस की सीखी पढ़ी। मुझे लग रहा था की जैसे अभी मिश्रायिन भाभी और मेरी भाभी की जोड़ी के आगे। ननदे बिना लड़े सरेण्डर कर देती हैं। जल्द ही जब गुड्डी आ जाएगी। तो गुड्डी और रीतू भाभी की जोड़ी का यही हाल होगा।

जैसे शेर चूहे को खिलाता है वही हालत वो दोनों उसकी कर रही थी। गुड्डी पूरे जोश में थी।

समोसेवाली के दोनों हाथ, रीतू भाभी की जबर्दस्त गिरफ्त में थे वो बिचारी छटपटा रही थी, चूतड़ पटक रही थी। लेकिन रीतू भाभी और गुड्डी कि जुगल बन्दी के आगे उस कि क्या चलती। गुड्डी ने उसकी दोनों जांघें जबरन फैलवायी और उसके छोटे से कसे छेद को पहले तो अपनी हथेली से रगड़ती रही। और जब वो थोडी गीली हो गई, तो अपनी मंझली उंगली, घचाक से। वो भी पूरी स्टाइल से। मुट्ठी मोड के सिर्फ मंझली उंगली निकली, पूरी ताकत से उसकी कुँवारी कसी कच्ची चूत में पेल दी।



वो बहुत जोर से चीखी।

लेकिन उसकी चीख भाभियों की हँसी और हुंकार में डूब गई।

फाड़ डालो साली छिनार की चूत, बहुत बोल रही थी। सब एक साथ बोली-


“फाड़ दो, पेल दो, फाड़ दो, चोद दो…” भाभियां नारा लगा रही थी।

“अभी उंगली की एक पोर गई है। त़ा इ हाल है अभी तुम्हारे भैया का मोटा लण्ड यहीं घोटेगी, तो कैसे लीलोगी, मेरी प्यारी बन्नो। और उसके बाद मेरे भैया, फिर मोहल्ले के लौंडो का। सीख लो गटागट घोंटना…”

गुड्डी उंगली गोल-गोल घुमाते बोली।



तब तक रीतू भाभी उसकी बस आती हुई चूची को पुल करते हुए बोली-


“इ बिन्न्नो का आज निवान कराय दो बस देखना एतना लण्ड घोंटेंगी, अगले होली तक की कालीन गंज की रंडियों (कालीन गंज हमारे शहर की मशहूर रेड लाईट एरिया है) को भी मात करेंगी।

तब तक गुड्डी ने उस कच्ची कली की बुर से उंगली निकालकर मेरी ओर ललचाते हुए दिखाया और बोली-

बोल लेना है इस छमिया की कच्ची, कोरी, सील बंद है अभी। तुम हाँ करो तो बोलो। वरना उंगली से सील तोड़ दूंगी। बोल एकदम फ्री…”

मैं उहापोह में। बोलूं तो फंसू। मन तो कर रहा था लेकिन झिझक भी रहा था और ना हाँ करने पे भी। सील तो उसकी गुड्डी अपनी उंगली से फाड़ देगी।

“मेरे मुँह से निकल गया नहीं…” लेकिन हाँ और सब भाभियां मेरे ऊपर पिल पड़ी।


एक साथ बहनचोद, बहनचोद का नारा।

गनीमत था की रीतू भाभी जोश में थी और गुड्डी से बोली। यार पहले मैं तो इस कच्ची कली का मजा ले लूँ थोड़ा। और उसके बाद तो क्या कोई मर्द, लौंडिया चोदेगा। जिस जोश और जोर से रीतू भाभी ने अपनी चूत से उसकी अनचुदी, कच्ची, कुँवारी चूत पे घिस्से लगाए। दोनों टांगों को फैलाकर।




और मेरी सोन चिरैया रीतू भाभी से उन्नीस थोड़े ही थी। उसने 'समोसेवाली' के छोटे-छोटे समोसे का स्वाद लेना शुरू किया। कभी उंगली से, कभी अपने होंठों से और उसमें भी गुड्डी उसके कच्चे हरे मटर के दानों ऐसे निपलों को बेसब्रे बालम की तरह से काट लेती, और वो कच्ची कली जोर से चिल्लाती। और भाभियां जवाब जोर के ठहाके लगाती।

गुड्डी बीच-बीच में उसके छोटे जोश में एकदम कड़े समोसे मुझे दिखाकर और ललचाती। लेकिन तभी रीतू भाभी उस लेस्बियन रेसलिंग के लेवल को अगले लेवल पे ले गईं। जो अल्टीमेट सरेंडर टाइप कुश्तियां दिखातें है। उसके आखिरी लेवल में हारने वाली के साथ जो जीतने वाली करती है। बल्की उससे भी कुछ ज्यादा। रीतु भाभी उस कच्ची कली के सिर की ओर जाकर बैठ गईं और गुड्डी को उन्होंने इशारा किया, भरतपूर का मोर्चा सम्हालने को।

लेकिन मेरी सोन चिरैया बोली-

“जरा इसको स्वाद तो चखा दूं…”

गुड्डी का ये डामिनेंट लेज रूप मेरे लिये भी नया था। लेकिन था खूब रसीला।

गुड्डी ने उस कच्ची कली का सिर पकड़कर पहले तो खूब डामिनेटिंग किस उस ‘समोसेवाली’ के रसीले होंठों का लिया और फिर अपनी जुबान उस गदराती, किशोरी के मुँह में ठेल दीदी और मस्त फ्रेंच, डीप किस। अब तक दो-चार और भाभियां भी मैदान में आ गई, शीला भाभी, रीतू भाभी कि वो समवय्स्क, जो मुझे छ्त से रीतू भाभी के साथ खींचकर ले आई थी। एक-दो और।

लेकिन वो सब दर्शक और उत्साह्वर्धक की भूमिका में ही थी लेकिन गुड्डी डीप किस करते हुये, एक-दो पहले तो प्यार भरे चान्टे उस ‘समोसेवाली’ के रंगो से रंगीन गाल पे लगाये। फिर एक जरा जोर से। और उसी के साथ अपने होंठ हटाकर, एक हाथ से जोर से उसके प्यारे प्यारे गाल दबा दिये। और उस गौरेया ने अपनी चोन्च खोल दीदी और उसी के साथ। गुड्डी ने कुछ चुभलाया, मुँह गोल किया, गौरेया के गाल पे प्यार कि चपत लगायी और उसकी खुली चोन्च में थूक।

गुड्डी के मुँह से थूक का गोला, झटके से अन्दर। और जब तक वो सम्हले सम्ह्ले। दुबारा थूक।



अबकी निशाना कुछ गड़बड़ हुआ। एक-दो बून्द गालों पे पड़ गई तो गुड्डी ने उसे भी रगड़कर फैला दिया, अच्छी तरह चेहरे पे, मसल दिया, गाल पे चिकोटी काट ली। और साथ में अपने होठों से गुड्डी ने उसके होंठ सील कर दिये। गुड्डी के हाथ खाली नहीं थे, वो जोर जोर से उन ‘समोसों’ को मसल रही थी, पुल कर रही थी, निपल पिंच कर रही थी।

कई भाभियों ने स्पिटिंग की ये सीन अपने मोबाइल में कैद भी कर लिया था। और अब गुड्डी ने नीचे का रुख किया और रीतू भाभी ने उस 'समोसेवाली' कच्ची कली, ननद के मुँह को कब्जे में किया। गाल पे दो बार पिंच किया।

लेकिन गुड्डी की शरारतें, उसने थोड़ा उसे पलटा और उसके नितम्बों पे प्यार से एक-दो चपत मुझे दिखाते हुए रसीद की। और फिर एक जोर से सीधे उसकी गाण्ड पे। और गुड्डी ने मुझे एक किस, उड़न किस दिया और उसकी गाण्ड के छेद को अपने दोनों अंगूठो से पूरी ताकत से फैलाकर मुझे दिखाते हुए बोली-



“बोल लेगा। अपनी बहना की प्यारी-प्यारी गाण्ड। आगे वाली के साथ पीछे वाली फ्री। शर्मा मत अभी सब के सामने यहीं हचक के राखी बान्धने वाली बड़ी बहन की मारी है। बोल…”



“अभी उंगली की एक पोर गई है। त़ा इ हाल है अभी तुम्हारे भैया का मोटा लण्ड यहीं घोटेगी, तो कैसे लीलोगी, मेरी प्यारी बन्नो। और उसके बाद मेरे भैया, फिर मोहल्ले के लौंडो का। सीख लो गटागट घोंटना…”


“बोल लेगा। अपनी बहना की प्यारी-प्यारी गाण्ड। आगे वाली के साथ पीछे वाली फ्री। शर्मा मत अभी सब के सामने यहीं हचक के राखी बान्धने वाली बड़ी बहन की मारी है। बोल…”

“”
Mast 👌👌👌
 
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motaalund

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रंग -प्रसंग,


कोमल के संग



होली हो और होली के किस्से न हों,... लेकिन इस बार मैं अपनी कुछ कहानियों के जो इस फोरम में हैं उन्ही के होली से जुड़े हुए अंश एक बार फिर से पन्ने पलट के साझा करुँगी, जैसे हर होली की बयार हर फगुनाहट मस्ती के साथ टीस भी लाती है, कुछ गुजरी हुयी होलियों के, ऐसी होली जो हो ली,... लेकिन मन में बार बार होती है, पड़ोस वाली से, क्लास वाली से या फिर देवर भाभी, जीजा साली की हो, उम्र गुजरती है, रिश्तों पर वक्त की चादरें चढ़ने लगती हैं,... लेकिन मन तो वही रहता है तो मैं शुरू करुँगी

मोहे रंग दे, के होली प्रसंग से



when was lady lazarus written
देवर भाभी की होली

और

ननद भाभी की होली


when was lady lazarus written
जोगीरा सारा रा रा ...
 
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motaalund

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मोहे रंग दे



मेरी ही नहीं मेरे बहुत से मित्रों की प्रिय कहानी है, और रंग है नेह का, सजनी का रंग साजन पर चढ़ने का और साजन का रंग चढ़ने पर,

एक नवदम्पति जो प्रेमी भी हैं,... चार आँखों का खेल शादी के पहले शुरू हुआ लेकिन बातचीत बस एक दो लाइन और फिर फिर एकदम अरेंज्ड शादी वाली शादी लेकिन नैनों के बाण चल गए थे

और मन के रंग के साथ तन के रंग भी,

लेकिन इस कहानी में होली के रंग भी है,

फागुन के चढ़ने के,

देवर से छेड़छाड़ के और देवर भाभी की मस्ती के

और ननद भौजाई की होली

तो बस इस के कुछ चुने हुए अंश से इस थ्रेड की शुरआत करती हूँ और अगर आप में से किसी ने यह कहानी न पढ़ी हो तो जरूर पढ़िए लिंक दे ही दिया

होली की शुभकामनाएं
होली के अवसर पर इस थ्रेड ने एक अलग हीं फगुआ की मस्ती भर दी है...
 
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motaalund

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मोहे रंग दे ,



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रंग की यह कहानी साजन के रंग में सजनी के रंगने की है ,

सजनी के रंग में साजन के रंगने की है ,



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और होली की है , ...और होली की नहीं भी है ,...

मन और तन दोनों रंगने की है ,

नेह के रंग की , देह के रंग की ,... एक ऐसी कहानी जो सिर्फ इस देस में हो सकती है ,



वो रंग जो चढ़ता है सिर्फ उतरता नहीं

जो पद्माकर ने कहा था


एरी! मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सोँ,

कढिगो अबीर पै अहीर को कढै नहीँ ।


वो रंग जो कभी उतरता नहीं

जो खुसरो ने कहा ,



आज रंग है री मां रंग है री , मेरे महबूब के घर आज रंग है री

मोरे ख्वाजा के घर रंग है री ,

अबकी बहार चुनर मोरी रंग दे ,... रखिये लाज हमारी
आज रंग है री मां रंग है री , मेरे महबूब के घर आज रंग है री


.....


खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग ,

तन मोरा मन प्रीतम का , दोनों एक ही रंग ,...

कैसे चढ़ा प्रीतम का रंग प्यारी के ऊपर ,


कैसे छाया , मन भाया प्यारी का रंग प्रीतम को ,...





मोहे रंग बसंती रंग दे ख्वाजा जी ,... मोहे अपने ही रंग में रंग ले ,...
जो तू मांगे रंग की रंगाई , जो तू मांगे रंग की रंगाई ,...
मोरा जोबन गिरवी रख ले ,...


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तो बस इसी कहानी के होली के प्रसंग
सभी प्राणी इस ऋतू में इस कदर बौराए र्ह्त्र हैं... कि अलग हीं शमां बंध जाता है....
और मोहे रंग दे... कि प्रस्तुति नवविवाहित की अपनों से अपने के मिलन की है...
 
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motaalund

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लग गया फागुन


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और यह बात पक्की भी हो गयी , जब हम लोग शॉपिंग से लौटे तो जेठानी जी अकेले बाहर बरामदे में खड़ी थी , इन्हे चिढ़ाते बोलीं , गाँव की होली , रगड़ायी तो तेरी खूब होगी , लेकिन चलो तेरी कोहबर की शर्त तो पूरी होगी , और जब हम दोनों ऊपर कमरे में चढ़ रहे थे तो उन्होंने अपने देवर को वार्न भी कर दिया ,

" ये मत सोचो यहाँ बच जाओगे , मुझसे , ... ससुराल तो होली में जाओगे , यहाँ तो फागुन लगते ही ,... पहले दिन से ही और अबकी तो मेरे साथ कम्मो भी है।
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दीदी फागुन कब से लगेगा ,

मैंने अपनी जेठानी से पूछा।

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वो जोर से खिलखिलायीं , और साथ में कम्मो भी , ..." सुबह सुबह मेरे देवर को देख लेना , पता चल जाएगा , आज फागुन का पहला दिन है। "

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सच में फागुन का इन्तजार सबसे ज्यादा रहता है देवर को और उससे ज्यादा भाभियों को , ...

और फागुन का पता तो खिलते पलाश और हवा की फगुनाहट दे देती है ,

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आम में लगे बौर ,
खेतों में फूली इतराती बसंती सरसों , नयी जवान होती लड़कियों की तरह इठलाती खिलती है ,

और कब यह फागुन सीधे आँखों से साँसों से उतर कर तन मन में आग लगा देता है , पता नहीं चलता।

बाहर आम बौराता है , और घर में तन मन सब , ...


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आज कल तो यू ट्यूब पर होली के नए गाने आने लगते हैं , देवर भाभी , जीजा साली , गानों में होली के साथ चोली की तुक जरूर जोड़ी जाती है , किस्मत वाला देवर हुआ और थोड़ा उदार साली या जोशीली सलहज हुयी तो साली के चोली में भी सेंध लग ही जाती है , वरना चोली के ऊपर से ही , ....

देवर भाभी तो साथ ही रहते हैं ,

आज के व्हाट्सऐप और टेक्स्ट के जमाने में , जीजा साली के बीच सन्देश गरमा भी जाते हैं और ना ना के बीच भी जीजा हाँ समझने की कोशिश करते हैं , ...
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सच में मुझे ये बात सास की और उनके पीछे मेरी जेठानी की अच्छी लगी की उन्होंने मेरे बिना बोले , मेरे मन की और सबसे बढ़कर इनकी मन की बात समझ ली , ... लेकिन लेकिन मन के कोने में कहीं ये भी था की ससुराल में होली के मजे ,... नयी दुल्हन की रगड़ायी ,

पर ये भी था होली के प्लान के सेंटर में कहीं मेरे नन्दोई भी थे , ..

.शादी के बाद से मेरी उनसे अच्छी सेटिंग हो गयी थी और उन्होंने जिस तरह से मिली की रगड़ाई की , गुड्डो को शीशे में उतारा , ... उन्होंने मुझे चैलेंज किया था की होली में नहीं छोडूंगा बचोगी नहीं ,... और मैंने भी बोला था बचना कौन चाहती है , ..आइये अगर इसी आँगन में आपके कपडे नहीं फाड़े ,... और मेरी जेठानी ने भी चैलेन्ज दे दिया था दिया था , ..

एकदम नन्दोई जी , अबकी दो दो सलहज होंगी , डरियेगा मत ,...


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हफ्ते में एक बार ननद का फोन आ ही जाता था और साथ में पीछे से वो भी , डबल मीनिंग डायलॉग, सच में कुछ रिश्ते , इसके बिना अच्छे ही नहीं लगते , ननदोई सलहज का उसमें से एक है , दोनों शादी शुदा , अनुभवी , ... पर नन्दोई जी ही , ...मैदान उन्होंने ही छोड़ दिया ,... उनके घर में कोई शादी थी होली के एक दो दिन आगे पीछे, ,... और इसलिए
और मेरा देवर , अनुज ,...

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उसका भी कोई इंजीनियरिंग का इंट्रेंस का एक्जाम था , मैंने सोचा था होली में उस की रगड़ाई करुँगी जबरदस्त , ... वैसे तो कर्टसी मी , गुड्डो और रेनू के ऊपर चढ़ाई कर चुका था वो , ...फिर भी मेरे सामने इतना शर्मीला , लजीला ,... मुझे बार बार रीतू भाभी की बात याद आ जाती थी , ऐसे चिकने लौंडो को होली में , नंगा कर के ,... निहुरा के , बस सारी सरम लिहाज उनकी गाँड़ में डाल दो , ... आँगन में आधा घंटा नंगा नचाओ , उनकी बहनों के सामने , बहनों का नाम ले ले के सड़का मरवाओ , ... देखो स्साली सरम ,...

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अब मैं रीतू भाभी की बराबरी तो नहीं कर सकती थी ,... लेकिन थी तो उन्ही की ननद , और रीतू भाभी ने सात बार कसम धरवाई थी , ससुराल में उनकी नाक नहीं कटवाउंगी , ... लेकिन वो स्साला मेरा देवर खुद ही होली के चार दिन पहले बनारस जा रहा था , वही इम्तहान के चक्कर में , ...

पर मेरी सासू सच्च में बहुत अच्छी थीं , पहला अच्छा काम इन्होने ये किया की इन्हे पैदा किया ,... ( मेरी मम्मी होतीं तो तुरंत ये जोड़तीं , पता नहीं किससे चुदवा के , गदहा , घोड़ा ,... और सच में वो गदहे घोड़े वाली बात पर मैं भी अब यकीन करने लगी थी , इनका वो देखकर ) ,
लेकिन सब से अच्छी बात थी , मेरे मन की बात , बिना ब्रॉडकास्ट , टेलीकास्ट किये उन्हें पता चल जाती थी , मेरे बिना बोले ,

और मेरे इस उहापोह को भी वो समझ गयीं , जिस दिन ये फैसला हुआ की होली में ये अपने ससुराल जाएंगे , उसी दिन शाम को खाने के बाद , ...

" अरे दुल्हिन का सोच रही हो , देवर ननद की रगड़ाई होली की ,... अरे उ तो फागुन लगते ही ,... फिर होली तो पंद्रह दिन बाद पड़ेगी न , ... तो पन्दरह दिन तक रोज होली , ... "
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और जेठानी ने भी हुंकारी भरी , ...

एकदम और पहले तो मैं अकेले थी अब तो तुम भी हो , कम्मो भी है ,एकदम कपडा फाड़ होली ,...अरे रंग देवर ननद से खेलते हैं , उनके कपड़ों से थोड़े ही ,

एकदम रीतू भाभी टाइप उवाच , सच में जितनी गाँव में मेरी रीतू भाभी से दोस्ती थी , उससे कम मैं अपनी जेठानी से नहीं खुली थी , सुहाग रात के दिन उन्होंने ही मुझे समझाया था की उनका देवर कुछ ज्यादा ही सीधा है केयरिंग है , इसलिए मैं ज्यादा ना ना न करूँ , वरना ,.. और उनकी बात सोलहों आना सच थी


पन्दरह दिन तो नहीं , १२-१३ दिन मैं यहाँ थी ससुराल में , ...

फिर इनकी ससुराल , ... प्लान ये था की होली के दो दिन पहले हम लोग पहुंचेंगे , ...मंझली का हाईस्कूल का बोर्ड चल रहा था उस दिन लास्ट पेपर था ,...अगले दिन ,... जिस दिन होली जलती वो भी ,... वो बनारस में अपनी किसी सहेली के साथ रह कर बोर्ड दे रही थी , ... तो वो और उसकी सहेली भी , ...इनके ससुराल में तो पांच दिन की होली होती थी , ... रंग पंचमी तक , ...और असली होली तो होली के बाद ही होती थी , कीचड़ और ,... रंगपंचमी के बाद तीन दिन और हम लोग रहते , कुल दस दिन ,...और वहीँ से सीधे इनकी जॉब पर , ... फ्लाइट बनारस से ही थी।


और सासू जी की बात से मेरे मन में एक नया जोश आ गया , १२ -१३ दिन कम नहीं होते , गुड्डी , रेनू , उसकी और सहेलियां , अनुज ,... मेरा देवर ,..



इसीलिए मैं जेठानी जी से पूछ रही थी ,

" दीदी , फागुन का पहला दिन कब है " और उन्होंने बोला पता चल जाएगा तुझे खुद ही ,...

और सच में पता चल ... गया।


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भले ही कोहबर होली में ना हुआ हो..
लेकिन सबको अपने कोहबर के गुदगुदाते यादों को ताजा कर जाती है...
 
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