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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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लग गया फागुन


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" दीदी , फागुन का पहला दिन कब है " और उन्होंने बोला पता चल जाएगा तुझे खुद ही ,...और सच में पता चल ... गया।

मैंने बताया था न की सुबह की चाय मुझे बेड रूम में ही मिलती थी , और बनाता कौन था , ...ये और कौन ,... मुझे तो रात भर रगड़ के रख देते थे , एकदम कचर कर और मैं उठने की हालत में नहीं रहती थी , ...

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लेकिन ये भी बात है , चाय अच्छी बनाते थे ,पर जब ये ट्रेनिंग के लिए गए तो ये काम शिफ्ट हो गया , ...

मेरी जेठानी , ...

रात तो बस ऐसी ही गुजर जाती , कभी थोड़ी बहुत नींद आती कभी वो भी नहीं , ... और सुबह उठ कर , फ्रेश हो कर सीधे नीचे किचेन में , जहां मेरी जेठानी चाय बनाती रहतीं , ...

तो जब ट्रेनिंग ख़तम कर के ये आये तो भी सुबह का मेरे चाय का सिलसिला नीचे ही चलता रहा , ये तो रात भर दंड बैठक लगा कर सुबह घोड़े ( मेरा मतलब मेरी ननदें ) बेच कर सोते रहते , ..और मैं नीचे जेठानी जी के साथ , दस मिनट की चाय कम से कम डेढ़ घंटे में पूरी होती ,
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और अक्सर ये भी नीचे आ जाते ,कभी इनके आने के पहले रात के नोट्स हम लोग कम्पेयर करते तो कभी , बल्कि अक्सर हम लोगों की की ननद , इनके एलवल वाले माल की बात होती और इनके आने के बाद तो एकदम , बस वही एक बात , ... इनकी हम दोनों मिल के खिंचाई करते बस इनकी ममेरी बहन का नाम इनसे जोड़ जोड़ के ,

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उस दिन भी , मैं नीचे आगयी थी , फ्रेश भी वहीँ हुयी , ब्रश किया , ... रात से ऊपर हम लोगों के बाथरूम में पानी नहीं आ रहा था। और जेठानी जी ने मुझसे कहा की वो थोड़ी देर में आ रही हैं , कुछ अपने आँचल में छुपाये हुए थीं

चाय मैं आज बना लूँ ,...

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बीस पचीस मिनट में आ गयीं वो ,और उसके बीस पचीस मिनट के बाद उनके देवर और आते ही बरामदे में लगे वाश बेसिन के पास , ब्रश करने के लिए ,

और बड़ी तेजी से कम्मो की हंसी सुनाई पड़ी ,
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कम्मो बताया तो था , मेरे ससुराल में जो काम वाली काम करती थी , उसकी बहु , एकदम घर की तरह , ... काम वाली तो महीने भर के तीरथ पर , तो रिश्ते से इनकी भौजी लगती , मुझसे खूब पटती थी उसकी , ...ननदों की रगड़ाई करने के मामले में , 'असली ' वाली गारी गाने के लिए और सब बढ़ कर इन्हे छेड़ने के लिए ,उसकी शादी के चार पांच साल हो गए थे , लेकिन मरद पंजाब कमाने गया था , डेढ़ दो साल में एक बार आता था ,

कभी कभी मैं और जेठानी जी उसे चिढ़ाती थीं की तेरा काम कैसे चलता है ,

तो वो हंस के बोलती , अरे इतने देवर हैं , क्या खाली ननदों के साथ कबड्डी खेलने के लिए बने हैं , ... और इनसे भी उसका रिश्ता देवर भौजाई का ही था ,...
एकदम खुल के इन्हे छेड़ती भी थी ,तो वो जोर जोर से हंस रही थी और ये शीशे में अपने को देख रहे थे ,

मैं भी बाहर निकली तो इन्हे देख कर हंस हंस कर , ...

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मेरे साथ जेठानी जी भी , लेकिन वो ज़रा भी नहीं हंसी , खाली मुझसे बोली ,


" आज फागुन लग गया "

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और इन्हे जोर से हड़काया , ... खबरदार जो ज़रा सा भी छुड़ाया , ... इत्ते मुश्किल से आधे घंटे में लगाया है ,...

सच में जेठानी ने उनकी मस्त धजा बनाई थी , ...

खूब चौड़ी सीधी मांग में भरा छलकता हुआ , खूब भरा सिन्दूर , ... नाक पे झरता
( मुझे अपनी पहली दिन की बात याद आयी , जब सुहागरात के लिए मैं जा रही थी कर सासू जी का पैर छू रही थी , मेरी मांग में खूब कस के सिन्दूर भरा था , ... वो बोलीं , नयी नयी दुल्हिन की पहचान यही है , मांग में सिंदूर दमकता रहे , झड़ता रहे , ...और साथ में बैठी मेरी बुआ सास ने जोड़ा , एकदम नयी दुल्हिन की मांग से सिन्दूर झरे और बुर से सड़का , यही असली पहचान है )

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और माथे पे एक चौड़ी से टिकुली , खूब लाल लाल , ... आँखों में काजल और गाल

एक गाल अच्छी तरह से कालिख से रगड़ रगड़ कर एकदम उनका गोरा गोरा गाल काला उनकी भौजाई ने कर दिया था और दूसरा गाल व्हाइट पेण्ट से बार्निश ,

अब मैं समझी रोज रात को कढ़ाही और भगोने की कालिख क्यों वो रोज रोज के छुड़ाती थीं ,

होंठों पर मेरी ही लाल लिपस्टिक ,

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दीदी ( मेरी जेठानी ) मुझसे मुस्करा के बोलीं ," पता चल गया न फागुन का पहला दिन , ... "

" एकदम दीदी , शुरुआत ऐसी है तो ,... "लेकिन मेरी बात ख़तम होने के पहले ही उनकी तेज निगाह अपने देवर पर पड़ी , जो वाश बेसिन के सामने मुंह धोने की कोशिश कर रहे थे ,
" खबरदार जो रंग छुड़ाने की कोशिश की , इत्ती मेहनत से रगड़ रगड़ के लगाया है पूरे आधे घंटे। "

उन्होंने अपने देवर को हड़काया।
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तबतक कम्मो भी मैदान में आ गयी , वही जो मेरी जेठानी से उमर में साल दो साल ही बड़ी रही होगी और लगती इनकी भौजी ही थी , और साथ में मेरी सास भी पूजा कर के आ गयीं , वो भी इन्हे देखकर मुस्कराने लगीं। " अरे अगर तनिको छुड़वाने क कोशिश करीहें न , तो जितना मुंहवा पे लगा है न उसका दूना गंडियों पर लग जाएगा , ... दू दू भौजाई हैं , ... "
कम्मो एकदम अपने लेवल पर आ गयी .

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मैं मजा लेने का मौका क्यों छोड़ती , चाय छानते मैं बोली , ( देख मैं उनको रही थी , पूछ अपनी जेठानी से रही थी , सच में बहुत मज़ा आ रहा था उनकी दुर्गत देखने में ,... )
" लेकिन दीदी आपके देवर ने मुंह किसके साथ काला किया ये समझ में नहीं आ रहा है "

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लेकिन जवाब कम्मो ने दिया , मुझसे चाय लेकर अपने देवर को देते बोली ,

" और कौन , उ एलवल वाली छिनार , उहै चोदवासी फिरती है , का नाम है ओकर ,... रंडी ,... कहो देवर जी सही कह रही हूँ न ओहि के साथ "

वो बेचारे क्या बोलते , सासू जी बगल में बैठी थीं , और वो एकदम खुल के मुस्करा रही थी और मेरी जेठानियों को चढ़ा रही थीं , "

मैं भी अब एकदम खुल गयी सबसे , मैंने थोड़ा सा नाम में संशोधन किया , ...

" रंडी की ,... गुड्डी "

" अरे नाम भले गुड्डी है , काम तो रंडी का ही है ,... पैदायशी खानदानी रंडी क्यों देवर जी है न ,... "

अब मेरी जेठानी भी कम्मो के लेवल पर उतर आयीं थीं ,
मोहब्बत के सुहाने दिन...
जवानी की हसीं रातें...
 
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motaalund

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गुड्डी मेरी ननद


when was lady lazarus written

" अरे नाम भले गुड्डी है , काम तो रंडी का ही है ,... पैदायशी खानदानी रंडी क्यों देवर जी है न ,... " अब मेरी जेठानी भी कम्मो के लेवल पर उतर आयीं थीं ,

उनके तो वैसे ही बोल नहीं फूटते थे और यहाँ दो दो भौजाइयां , ... और साथ में बगल में उनकी माँ बैठी थीं , और हम सब मिल के उन्हें रगड़ रहे थे। और मैं आग में घी डाल रही थी , रात में कमरे में तो गुड्डी का नाम लेकर इन्हे छेड़ती ही थी , पर आज सबके सामने , एकदम जबरदस्त मज़ा आ रहा था ,

" आपके देवर ने कितनी बार मुंह काला किया उस रंडी , मेरा मतलब गुड्डी के साथ। "

जेठानी ने मुस्करा के मेरी ओर देखा जैसे कह रही हों , एकदम असल देवरानी हो मेरी , पर जवाब एक बार फिर कम्मो ने दिया , उन्ही से पूछ कर ,

" बोलो न , कितने बार , .... एक दो बार में ओह छिनार क बुर की प्यास तो बुझेगी नहीं , ... लेकिन आने दो , जउने दिन पकड़ में आएगी न यह फागुन में , एही आंगन में ओके नंगे नचाउंगी , तोहरे सामने , और बाल्टी भर रंग सीधे उसकी बुर में डालूंगी तो उसकी पियास ठंडी होगी , ... "

" अरे न नाउन दूर न नहन्नी , जाके बुला लाइए न उसको , ... अब आपकी भाभी कह रही हैं , और आपकी बात तो वो रंडी , ... मेरा मतलब गुड्डी टालती नहीं , ... "मैं भी उनकी रगड़ाई में जुट गयी।

लेकिन सासू जी ने एकदम वीटो कर दिया , बोलीं , ... अरे फ़ोन काहे को है , फिर अभी तो उसका स्कूल चल रहा होगा , जब शाम को बाजार जाना तो एलवल हो लेना , लेकिन अभिन गुझिया , चिप्स , पापड़ बहुत काम है , ... "

और मेरी सास , मेरी जेठानी , कम्मो सब लोग किचेन के बाहर बैठ कर होली का सामान बनाने में लग गए , उन्होंने उठने की कोशिश की , तो कम्मो ने रोक लिया , खाली हमार नन्दन के साथे मुंह काला करे में लगे रहते है , चलो बैठ के काम करवाओ , ... और वो फस्स मार के बैठ गए।

मैं तो समझ रही थी , मुस्करा रही थी , इस लड़के को तो सिर्फ एक काम आता है , ... कोई बहाना बना के मुझे टुकुर टुकुर देखना , ... जहाँ वो बैठे थे , वहां से मैं किचेन में साफ़ साफ दिख रही थी , आज किचेन में खाना बनाने का काम मेरे जिम्मे था , होली के सामान बनाने का काम सास जेठानी के जिम्मे , ... "

मैंने पीढ़ा थोड़ा और सरका लिया , जिसे उन्हें और साफ़ दिख सकूँ , .. देखने का मन कर रहा है तो बेचारे का तो देखे। सच में एकदम नदीदे थे , कभी भी उनका मन नहीं भरता था , न देखने में न ,... और कभी मैं उनका कान का पान बना के पूछती भी थी , तेरा मन नहीं भरता तो वो बेसरम साफ़ बोलता , .. नहीं , सात जनम का तो लिखवा के लाया हूँ , तो तेरी सात जनम तक तो छुट्टी नहीं ,

और मैं खुद उन्हें चूम के बोलती ,

"और आठवें मैं मैं साजन तुम सजनी ,... जितनी रगड़ाई तुम सात जनम में करोगे न उतनी मैं एक जनम में अकेले कर दूंगी तेरी , सब हिसाब रख रही हूँ , सूद के साथ साथ। "

मैं किचेन का काम भी कर रही थी और बाहर की सब बात भी सुन रही थी , बीच बीच में पलीता भी लगाती और दो भौजाइयां उनकी जिस तरह खिंचाई कर रही थीं ये भी देख रही थी , गुझिया का सामान बन रहा था , मेरी सास ने कम्मो को बोला , ज़रा देख ले न पहले मीठा ठीक है न ,

" तानी चख के देखा न , " कम्मो ने एक चुटकी में गुझिया का खोवा , सीधे उनके मुंह में डाल के पूछा ,

लेकिन मैं अपनी सास को मान गयी , फगुनाहट उनपर भी चढ़ रही थी ,

" अरे भौजी क ऊँगली केतना मीठ है ये मत बताना , खोआ और मीठ तो नहीं चाहिए , ... " उन्होंने उनसे पूछा।

ऊँगली थोड़ा और उनके मुंह में धँसाते कम्मो बोली , " अरे उ रंडी ,.. गुड्डी क होंठवा अस मीठ है ना , ... "

" हाँ " उन्होंने सर हिलाया और सास मेरी कम्मो सब लोग हंस पड़े , साथ में किचन में से मैं बोलीं ,

" तो चलो मान तो लिया चखे हो ,... हमार ननदिया के होंठ। "



" अरे ऊपर वाला और नीचे वाला दोनों , हमार देवर को समझती का हो , पक्का बहनचोद है , "

उनके मुंह से निकली सीधे अपने होंठों के बीच डालती कम्मो बोली। तबतक मेरी जेठानी जो स्टोर से कुछ सामान निकालने गयी थीं , वापस आ गयी , सु वो भी सब रही थी और उन्होंने भी जोड़ दिया , ...

" और हमार ननद भाइचॉद "
फिर तो दोनों उनकी भौजाइयां , डबल अटैक , ... और डबल मीनिंग तो छोड़ दीजिये असल वाली , और आज मेरी जेठानी भी एकदम कम्मो के लेवल पर

" क्यों देवर जी समोसे कैसे पंसद है , आपको , छोटे साइज वाले , ... ये देखिये हैं न एकदम गुड्डी की साइज के "छोटे छोटे होली वाले समोसे बनाते मेरी भौजी ने चिढ़ाया ,

" अरे दबाय मीज मीज के बड़ा कर दिया , ... मिजवाती तो होगी न तुमसे , ... " कम्मो समोसा तलते बोली। "

मेरा मन भी नहीं लग रहा था , किचेन का काम जल्दी जल्दी ख़तम कर के मैं बाहर होली का सामान बनवाने पहुंची और गुझिया तलने का काम मैंने ले लिया ,

सास मुझे दे रही थीं , और उनकी दोनों भौजाइयां बचा हुआ मैदा उनके गाल में लगाने में लगी थीं ,

वो वाश बेसिन पर गए छुड़ाने , और मेरी जेठानी स्टोर से पिछली होली के बचे रंग का स्टॉक ला के मेरी सास को दिखा रही थीं , इतना बचा है आज शाम को मंगा लुंगी और , लेकिन ये पता नहीं केतना चटख होगा , ...

और मैंने सुझाव दे दिया , इनकी दोनों भौजाइयों को ,

" अरे आपके देवर हैं न चेक कर लीजिये उनके गाल पे , ... "

" बहू ठीक तो कह रही हैं , अब खाली गुझिया ही छानना है , मैं और बहू मिल कर कर लेंगे , तुम दोनों उठों न " सासू जी ने ग्रीन सिग्नल दे दिया ,
उफ्फ ये छेड़छाड़.. भरी मस्ती...
 
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motaalund

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लग गया फागुन,

उनका फागुन, उनकी भौजाइयां


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वो वाश बेसिन पर गए छुड़ाने , और मेरी जेठानी स्टोर से पिछली होली के बचे रंग का स्टॉक ला के मेरी सास को दिखा रही थीं , इतना बचा है आज शाम को मंगा लुंगी और , लेकिन ये पता नहीं केतना चटख होगा , ...और मैंने सुझाव दे दिया , इनकी दोनों भौजाइयों को ,

" अरे आपके देवर हैं न चेक कर लीजिये उनके गाल पे , ... "

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" बहू ठीक तो कह रही हैं , अब खाली गुझिया ही छानना है , मैं और बहू मिल कर कर लेंगे , तुम दोनों उठों न " सासू जी ने ग्रीन सिग्नल दे दिया ,

बस कम्मो के हाथ में बैंगनी रंग और मेरी जेठानी के हाथ में गाढ़ा लाल रंग ,वो वाश बेसिन पर , चेहरे का मैदा छुड़ाने में लगे थे ,

पीछे से दोनों भौजाइयां , मेरी जेठानी ने दोनों गाल अपने देवर के दबोचे और कम्मो ने सीधे कुर्ते के अंदर हाथ डाला ,

" अरे बरामदे में नहीं , आंगन में ,... " सासू जी ने वहीँ से गाइड किया।

थोड़ी ही देर में देवर और दोनों भौजाइयां , आंगन में

मेरी जेठानी ने तैयारी पहले से कर रखी थी , आंगन में दो बाल्टियां थीं ,

एक में गाढ़ा लाल और दुसरे में नीला रंग घोल के उन्होने रख रखा था , और भाभी उनकी , बहोत तगड़ी , निशाना भी अचूक , ...


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एक बार में ही पूरी बाल्टी उठाकर सीधे अपने देवर पर , उनका सफ़ेद कुरता , पाजामा , ...

पीछे से उनकी कम्मो भौजी ने उन्हें दबोच रखा था , और अपने बड़े बड़े ३८ डी डी , कड़े कड़े जोबन उनकी पीठ में रगड़ रही थीं ,

मेरी जेठानी का निशाना अचूक था , रंग सीधे उनके कुर्ते पर और फिर खूंटे पर , ( चड्ढी उन्होंने पहन नहीं रखी थी ) , पाजामा पूरा चिपक कर , एकदम साफ़ साफ़ , ...सब कुछ दिखता है वाले अंदाज में

लेकिन उनके देवर भी कम तगड़े चालाक नहीं थे ,

अपनी कम्मो भौजी को ढाल की तरह सीधे आगे , और कम्मो का आँचल देवर की बदमाशी से या आपधापी में नीचे सरक गया पता नहीं , पर

मेरी जेठानी की आधी बाल्टी का गाढ़ा लाल रंग सीधे कम्मो के ब्लाउज पर ,
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ब्लाउज पूरा गीला होकर उसके बड़े बड़े उभारों से चिपक गया , और ब्रा वो पहनती नहीं थी ,...ब्लाउज भी एकदम छोटा सा बस नीचे से उभारों को उभारे , उठाये और लो कट , चोली कट

इन्होने दोनों हाथों से अपनी कम्मो भौजी को पीछे से जकड़ रखा था ,दोनों हाथ उसके चिकने पेट पर ब्लाउज जहाँ नीचे से शुरू होता था बस वहीँ ,

मैं समझ सकती थी इनकी हालत , और इनसे ज्यादा इनके खूंटे की हालत , ...

ऐसे मस्त बड़े बड़े जोबन , साफ़ साफ़ झलक रहे हों , मैं जान रही थी मन तो इनका कर रहा होगा , ब्लाउज के अंदर हाथ डालकर , ब्लाउज फाड़ कर दबोच लें , ...

ये क्या कोई भी मर्द होता , ... होली हो , कम्मो ऐसी लाइन मारती , रसीली भौजाई हो , ब्लाउज के अंदर सेंध लगाने का ये मौका नहीं छोड़ता , पर ये भी न , ...

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इनकी झिझक , सरम , लिहाज ,...
रंगों की बौछार....
 
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motaalund

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कम्मो



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ये क्या कोई भी मर्द होता , ... होली हो , कम्मो ऐसी लाइन मारती , रसीली भौजाई हो , ब्लाउज के अंदर सेंध लगाने का ये मौका नहीं छोड़ता पर ये भी न , ...
इनकी झिझक , सरम , लिहाज ,...

बहुत हिम्मत की तो ब्लाउज के ऊपर से ही उन गीले चिपके उभारों को कस के पकड़ लिया ,
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कम्मो ने कुछ भी छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की , बस अपने बड़े बड़े चूतड़ उनके खूंटे पर रगड़ रही थी ,

होली थी , भौजाई थी , रिश्ता था , हक था उसका ,...

लेकिन होली अभी शुरू हुयी थी , भौजाई दो देवर एक , मेरी जेठानी कम्मो की हेल्प के लिए पहुँच गयीं , ... और उनसे ज्यादा किसे मालूम था इनकी कमजोरी ,

गुदगुदी ,

बस कभी कांखों में , तो कभी पेट में , ... और थोड़ी देर में ही उनकी हालत खराब हो गयी , ... बस एक बार कम्मो छूट गयी तो जो काम भौजाइयों को करना चाहिए साथ , कुर्ता उनका गीला तो हो ही गया था , उतारने की जहमत उन दोनों ने नहीं की करनी भी नहीं चाहिए ,

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चरर चरर , कुरता दो हिस्सों में बंट गया , ... और सीधे आंगन में ,... वो मुड़ कर मेरी जेठानी को पकडने की कोशिश करते तो कम्मो गुदगुदी लगाने के लिए तैयार रहती ,

मैं तल गुझिया रही थी ,

लेकिन मेरी निगाह आंगन में चल रही होली पर लगी थी , मेरी सास की और कभी कभी हम दोनों एक दुसरे को देख कर मुस्करा रहे थे

" दीदी , आपने अपने देवर की ब्रा क्यों छोड़ रखी है , इनकी बहने तो उभार के , झलकाती चलती हैं , ... "

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मैं भी होली में बात के जरिये ही शामिल होती बोली ,

मेरी सास ने धीरे से मुझसे कहा ,

" एकदम सही कहती हो , ... "

और कम्मो ने एकदम मेरी बात मान कर इनकी बनयान भी , और फिर फटे कुर्ते बनयाइंन से इनके दोनों हाथ पीछे कर के बाँध लिए ,

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कम्मो ने खुद अपने आँचल को अपनी कमर में बाँध दिया था और दोनों जोबन साफ़ साफ़ दिख रहे थे , दोनों हाथ में बैगनी रंग लगा के अब अपने देवर के चिकने गाल को रगड़ रही थी , और पीछे से जेठानी जी ' ब्रा ' के फटने के बाद लाल नीले रंग से इनके ' टिट्स ' को रंग रही थीं ,
खूंटे की हालत ख़राब थी , और अब कुर्ते का कवर भी नहीं था , साफ़ दिख रहा था , ...
किसी भी देवर की हालत खराब होती , एक भौजाई पीछे से एक आगे से दोनों के जबरदस्त जोबन ,

आँगन में होली खेल रही भौजाई देवर से कम मैं नहीं भीग रही थी ,

मुझे अपने गाँव की होली याद आ रही थी ,

वहां जो देवर भौजाइयों की पकड़ में आ जाता , ... और बचता कोई नहीं था , ... अब तक उसका पाजामा , नेकर भी

फ़ट फुट कर आंगन में होती और वो निहुरा के , मुठियाया भी जाता और उससे उसकी बहनों का नाम ले ले के उससे सड़का भी लगवाया जाता , पर यहाँ अभी तो , ...

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और मेरी सारी भौजाइयों ने जबसे उन्हें पता चला है की उनके नन्दोई पूरे दस दिन तक होली में उनके हवाले रहेंगे , रोज मुझे फोन करके कहतीं , ... जितना वो अपने देवरों की रगड़ाई करती हैं , उससे दस गुना ज्यादा उनके ननदोई की रगड़ाई होने वाली थी ,

पर यहाँ उनकी भौजाइयां अभी भी कमर के ऊपर ही ,...

मैं अपने को नहीं रोक सकी , मैंने अपनी सास से बोल दिया , गुझिया तली जा चुकी चुकी थी , मैंने कड़ाही उतारते हुए अपनी सास से कहा ,

" दो दो भौजाइयां , और अभी तक देवर के पाजामे का नाड़ा नहीं खुला "


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" एकदम सही बोलती हो " और वहीँ बरामदे में बैठी उन्होंने उनकी दोनों भौजाइयों को ललकारा , जो बात मैंने कही थी वही दुहराकर

" दो दो भौजाइयां , और अभी तक देवर के पाजामे का नाड़ा नहीं खुला "

और कम्मो ने अपने हाथ में कालिख उन्हें दिखा के मली और चिढ़ाया , "जउन रंग तोहरे मुंहवा क उहे पिछवाड़े क "

और पाजामे के अंदर पिछवाड़े से डाल दिया , ...
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और मेरी जेठानी गाढ़े नीले रंग की भरी बाल्टी लेकर उनके पास ले जाके रख दिया , ... उनके तो दोनों हाथ कस के पीछे बंधे थे ,

मेरी सास को लगा शायद वो बैठी रहेंगी तो मामला उससे ज्यादा नहीं बढ़ेगा , तो वो उठ कर अंदर जाने लगी ,

लेकिन तभी मेरी निगाह भांग के गोले पर पड़ी , ... भांग वाली गुझिया तो बनी ही नहीं , ...

और वो मेरी बात समझ गयीं , कम्मो की ओर इशारा कर के बोलीं ,

शाम को तुम दोनों मिल के बना लेना , लेकिन डबल भांग , सिंगल भाग वाली गुझिया अलग अलग गोंठना भी , अलग डिब्बे में भी रख देना , मैं कमरे में चलती हूँ , थोड़ी देर आराम कर लेती हूँ , ...

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और शायद मेरी जेठानियाँ उनके जाने का ही इन्तजार कर रही थीं , पाजामा फाड़ते खूंटे की ओर इशारा करते कम्मो मेरी जेठानी से बोली ,

" इहो बहुत गरमाइल हौ तानी इसको भी ठंडा कर दें ,... "

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" एकदम " जेठानी बोलीं ,

और कम्मो ने गाढ़ा नीला बाल्टी का रंग कुछ देर तो पजामे के ऊपर से सीधे उनके खूंटे पर डाला , फिर पाजामा खिंच कर सीधे खूंटे पर पाजामे के अंदर गाढ़ा नीला रंग ,

" अरे एकर असली गर्मी तो गुड्डी रानी एंकर बहिन बुझाएंगी , ... "

मेरी जेठानी उनके पेट पर रंग लगाते बोलीं ,



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और कम्मो , पाजामे के अंदर धीमे धीमे रंग डालते सीधे अपने देवर से बोली

" घबड़ा जिन , एही फागुन में , एही आंगन में तोहरी बहिन को नंगे कर के नचवाऊंगी और तोहें चढ़ाउंगी अपने सामने , ... "
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और उनकी भौजाई , मेरी जेठानी ने एक पैकेट पूरा का पूरा सूखा बैगनी रंग , खोल कर उनके पाजामे के अंदर सीधे डाल दिया और बोला

" और क्या जंगल में मोर नाचा किसने देखा , एकदम हम सबके सामने फटेगी उसकी इसी होली में इसी पिचकारी से , पूरा सफ़ेद रंग डाल उसके अंदर , ... "

सास चली गयी थीं और अब मैं भी खुल के बोल रही थी

" एकदम दीदी आपने तो अपने देवर के मन की बात कर दी , आखिर इनका पुराना माल है , नेवान तो इन्हे ही करना चाहिए। "

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" और एक बार तू बस फाड़ दा ओकर फिर तो तोहार जितने सार हैं , हम सबके भाई ,... चोद चोद कर तोहरी बहिन की चूत अगली होली तक भोंसड़ा कर देंगे , ... "

कम्मो पूरी बाल्टी का रंग एक बार में इनके पाजामे में खाली करती बोली।

लेकिन बात के चक्कर में इनकी भौजाइयों ने शायद ये नहीं देखा की इनके देवर ने अपने हाथ छुड़ा लिए और जब कम्मो बाल्टी एक बार फिर से नल में लगाने गयी , उन्होंने पीछे से पकड़ लिया , ...

मेरी जेठानी कुछ देर के लिए मेरे पास आ गयीं , सब सामान हटा के बरामदे से स्टोर में रखने के लिए , और आंगन में पीछे से उन्होंने कम्मो को उन्होंने दबोच रखा था अबकी हाथ सीधे जोबन पर था और हलके हलके वो दबा रहे थे , मसल रहे थे

मैं और दीदी ( इनकी भाभी ) बरामदे से खड़े देखते मुस्करा रहे थे ,

फागुन सच में लग गया था।

जो इनकी रगड़ाई हुयी थी उसका सूद मूल के साथ अपनी भौजाई की कड़ी कड़ी चूँची ब्लाउज के ऊपर से रगड़ रगड़ के वसूल कर रहे थे वो ,

और कम्मो भी मान गयी मैं एकदम मेरी गाँव वाली भाभियों के टक्कर की , एकदम इनकी सलहजों की तरह ,

और मैं समझ रही थी की कम्मो के मोटे मोटे चूतड़ क्या कर रहे थे ,

उनके पाजामा फाड़ते खूंटे को वो अपने चूतड़ से रगड़ रही थी , मसल रही थी , ... और साथ में होली की रंगीन गालियां ,

" अरे स्साले बहनचोद , गुड्डी रंडी के भंडुए , ... आपन पिचकारी आपन बहिनी के लिए बचा के रखे हो का , ... अरे अबकी फागुन में चोदवाउंगी ओह छिनार को , अगर नहीं फाड़ी देवर जी तूने मेरी ननद की न तो हम तोहार गाँड़ फ़ाड़ के रख देंगे , ... "

और साथ में बरामदे में से मैं और उनकी भाभी भी साथ दे रहे थे

" अरे उस गुड्डी छिनार की गाँड़ भी खूब मारने लायक है , एहि फागुन में उसकी चूत और गाँड़ दोनों फट जानी चाहिए , " मैं भी अब खुल के बोल रही थी , और जेठानी जी ने जोड़ा

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' नहीं तो हम सब उसकी तीनो भौजाई , यह फागुन में मुट्ठी डाल के उसकी बुर गाँड़ फाड़ेंगे , सोच लो देवर जी तोहैं अपने खूंटे से उसकी चूत गाँड़ फाड़नी है या हम लोगो की मुट्ठी से "

जवाब उन्होंने इतनी कस के कम्मो के जोबन को मसल के दिया की चट चट ब्लाउज के दो बटन टूट गए ,

और तब तक मेरी जेठानी एक बार फिर देवर की रगड़ाई करने , ... बाल्टी में पानी भर गया था , और जेठानी ने पूरे दो पैकेट मुर्गा छाप गाढ़ा लाल रंग घोल के रंग बनाया , अपने हाथ में कालिख के साथ कडुवा तेल मिलाकर रंग , और पहुँच गयी अपने देवर की रगड़ाई को

घण्टे भर से ज्यादा होली चली , खूब मस्ती लेकिन मुझे सिर्फ एक बात का अफ़सोस रहा , बल्कि दो बात का

दो दो भौजाइयां और मुर्गा बाहर नहीं निकला , ...और उनका हाथ भी उनकी कम्मो भौजी के ब्लाउज के अंदर नहीं घुसा , बस ऊपर से रगड़ा रगड़ी , ...


मुझे ये बात ठीक नहीं लगी , होली में भौजी के चोली के अंदर हाथ न घुसे तो कोई भी भौजाई बुरा मान जाएगी , खास तौर से कम्मो ऐसी मस्त भौजाई ,

लेकिन चलिए आज फागुन का पहला दिन था , पर मैंने अपनी मन की बात कम्मो से भी कही , और उनसे भी रात को ,



लेकिन शाम को अचानक मेरी सास और जेठानी को जाना पड़ा ,
हर पात्र अपने फॉर्म में...
 
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motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद, होली के इस थ्रेड पर पहला कमेंट आपका और पहली लाइक भी आपकी

होली की ढेर सारी शुभकामनाएं
आप सबको भी...
 
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Shetan

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समोसे वाली - होली घर आंगन की

( फागुन के दिन चार से )





और उस समोसेवाली ने मुझे देखकर मुश्कुराया और मेरी निगाहों ने भी उसे हाई फाइव किया। वो सीधे रीतु भाभी को चिढ़ाने लगी-

“क्यों भाभी मजा आया मेरे भैया से। अभी एक का ले लो। देखना मेरे सारे भाई बारी-बारी से लाइन लगायेंगे…”

दूसरी छुटकी और जहर बोली-


“अरे हमारी रीतू भाभी को तूने समझा क्या है। नैहर में खूब प्रैक्टिस कर के आई है। बारी-बारी से क्यों। एक साथ तीन-तीन तो खूब आराम से ले लेंगी रीतू भाभी। अपने भाइयों को नहीं मना करती थी। तो हमारे भाइयों को क्यों मना करेंगी…”

“एक एक पे तीन-तीन। एक एक पे तीन-तीन…” पीछे से बाकी लड़कियां चिल्लाने लगी।



बिचारी रीतू भाभी को जोश भी आ रहा था, गुस्सा भी लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी। न बोल सकती थी। चूची चोदते चोदते, जोश में आकर मैंने अपना मोटा मस्त सुपाड़ा भी रीतू भाभी के मुँह में ठेल दिया था। और उनका मुँह अब बंद था। बिचारी सिर्फ गों गों कर रही थी। कुनमुना रही थी। ननदों की बात का जवाब देने के लिए बेताब हो रही थी। लेकिन मुँह तो बंद था। मैं खूब जोश में रीतू भाभी की बड़ी-बड़ी चूची चोदने के साथ, अब मुँह भी चोद रहा था।



रीतू भाभी ने इशारा किया एक मिनट और मैंने सुपाड़ा मुँह से निकाल लिया उनके थूक से लिपटा, लिथड़ा। वो पलट के उस छोटी ननद से बोली-

“साल्ली छिनार बुर चोदी, गदहे की जनी, इसी आँगन में तुझे तेरे भाई से ना चुदवाया। पटक पटक के तो कहना…”

हँसकर उस कच्ची कली 'समोसेवाली' ने जवाब दिया-

“अरे भाभी। पहले आप ले लो मेरे भैया का मोटा सख्त। फिर देखा जाएगा…”

वो भी सोच रही थी, बिना झड़े, मैं थोड़ी रीतू भाभी ऐसे मस्त माल को छोड़ने वाला हूँ।
सोचना उसका बिलकुल सही था। ऐसी मस्त डी साइज चूचियां रोज रोज थोड़े ही चोदने को मिलती हैं। मैंने चूची चोदन की रफ्तार बढ़ा दी। सारी लड़कियां उस 'समोसेवाली' के साथ मिलकर जोर-जोर से चिल्ला रही थी-

“भाभी की ले लो। रीतू भाभी की ले लो…”

लेकिन तभी वो हुआ जिसे ना मैं सोच सकता था न वो। भाभियों में सबसे कम उम्र की, सबसे छोटी। जो अभी बल्की भाभी थी भी नहीं। लेकिन जिसे सारी लड़कियां, छुटकी भाभी, नयकी भाभी कहकर छेड़ रही थी। उससे नहीं रहा गया। वो मैदान में आ गई। और उसने पीछे से।

जी आपने सही गेस किया। गुड्डी से नहीं रहा गया। 'समोसेवाली' की ये बातें सुनकर। और वो पीछे से। उसने अंकवार में ऐसे दबोचा की वो 'समोसेवाली' हिल भी नहीं सकती थी। गुड्डी ने फिर एक झटके में उसका बचा खुचा टाप फाड़कर मेरे ऊपर फेंक दिया। ब्रा तो पहले राउंड में ही भाभियों ने सारी ननदों का चीथ के अलग कर दिया था।

उसके छोटे-छोटे निपल मरोड़ के गुड्डी उसके गाल पे जोर से बाईट कर के बोली-

“अरे छिनरो, बहुत तेरी चूत में मिर्च लग रही है। ना तो अभी सारी आग ठंडी करती हूँ…”

गुड्डी के मैदान में आते ही रीतू भाभी भी तिलमिलाने लगी। मुझसे बोली-

“बस थोड़ी देर छोड़ दे न बस इस रंडी की चूत का भूत झाड़ के आती हूँ…”

“भाभी इसका क्या होगा?”

मैंने तन्नाये जंगबहादुर की ओर इशारा कर के पूछा।

“तुझसे ज्यादा इसका ख्याल मुझे है। और भाभी देवर का फागुन तो साल भर चलता है…” वो बोली।

“न भाभी न इतना लम्बा इन्तजार मुझसे ना होने का…” मैंने जोर से उनकी चूची चोदते हुये कहा।



“बस थोड़ी देर के लिए छोड़ दे ना पांच मिनट के लिए। प्रामिस… तेरे औजार का मस्त इंतजाम करवाऊँगी अभी, तुरंत। और जहाँ तक मेरा सवाल है। तू जब चाहे, जैसे चाहे, आगे-पीछे, उपर नीचे सब…”

मेरी पकड़ थोड़ी ढीली पड़ी। मैं शायद तब भी ना छोड़ता लेकिन गुड्डी ना उसे मेरी हर कमजोरी मालूम है और उसकी हर बात मेरे लिए आर्डर होती है। और गुड्डी ने वो हरकत कर दी। गुड्डी ने 'समोसेवाली' के 'समोसे' अपने हाथों पे पकड़कर उभार के मुझे दिखाकर ललचाया।

गुड्डी बोली-

“बहुत ललचाते थे ना दूर-दूर से मौका है ले लो मजा चख लो स्वाद इन छोटे-छोटे समोसों का…”

सच में मुँह में पानी आ गया। लाइफ टाइम आफर।

और उसने आँख से इशारा भी किया। मैंने रीतू भाभी को छोड़ दिया। बस पल भर में वो कच्ची कली, गुड्डी और रीतू भाभी के बीच में सैंड विच बन गई। मैच का रुख एक पल में बदल गया। भाभियां फिर भारी। मैं आगन में बैठ गया।

और दीदी भी मेरे पास आकर बैठ गईं और जंगबहादुर उनकी कोमल कोमल मुट्ठी में। आठ इंच की तलवार तैयार थी लेकिन रीतू भाभी ऐन मौके पे।

“क्यों भौजाई ने दे दिया ना धोखा ऐन मौके पे कर दिया के॰एल॰पी॰डी॰…”

मैं सिर्फ मुश्कुरा दिया, और कर भी क्या सकता था।

लेकिन दीदी ही बोली लेकिन मुझसे नहीं। मेरे तन्नाये उससे- “अरे मुन्ना। घबड़ा मत मिलेगी जल्दी ही मिलेगी तब तक कुश्ती देख…”



और हम लेस्बियन रेसलिंग देखने लगे।
Paheli bar esa padha jisme nanand ke sabad bhouji pe bhari pade ho.

1) “क्यों भाभी मजा आया मेरे भैया से। अभी एक का ले लो। देखना मेरे सारे भाई बारी-बारी से लाइन लगायेंगे…”

दूसरी छुटकी और जहर बोली-

“अरे हमारी रीतू भाभी को तूने समझा क्या है। नैहर में खूब प्रैक्टिस कर के आई है। बारी-बारी से क्यों। एक साथ तीन-तीन तो खूब आराम से ले लेंगी रीतू भाभी। अपने भाइयों को नहीं मना करती थी। तो हमारे भाइयों को क्यों मना करेंगी…”

2) अरे भाभी। पहले आप ले लो मेरे भैया का मोटा सख्त। फिर देखा जाएगा…”

Ese to fir pura update hi note me lena padega. Kya kya note karungi. Pura update hi mazedar he
 

motaalund

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थोड़ा सा फ्लैश बैक

(स्कूल में होली)

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पहली बार ये अहसास मुझे दसवीं में हुआ , उसी साल बसंत कालेज , बनारस के एक स्कूल में एडमिशन हुआ था
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आठ तक तो मैंने गाँव के स्कूल में ही पढ़ाई की थी ,

हर बार की तरह होली बोर्ड के एक्जाम के बीच में पड़ रही थी , इसलिए जब स्कूल एक्जाम के पहले दिन बंद हुआ , उस दिन ही लड़कियों ने होली खेलने का प्रोग्राम बनाया , लेकिन स्कूल में बहुत रिस्ट्रिक्शन , सिर्फ अबीर गुलाल , ... और वो भी ज्यादा जबरदस्ती नहीं , बस गाल वाल पे , ...

लेकिन मैं गाँव की लड़की और रीतू भाभी की ननद ,



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( पिछले साल की होली रीतू भाभी की ससुराल में पहली होली थी और क्या मस्ती हुयी थी , ... )


तो बिना गीले रंग के और ' इधर उधर रगड़े ' कहाँ से होली पूरी होती ,

रीतू भाभी की जुगत कहीं फेल होती , उन्होंने मुझे गुलाल के बड़े बड़े तीन पैकेट दिए , मेरे और मेरी दो ख़ास सहेलियों के लिए ( लेकिन ये बात उन्होंने सिर्फ मुझे बतायी , उन दोनों से शेयर नहीं करनी थी , २०-८० का रेशियो है यानी २० % गुलाल और ८०% उसमे मुर्गा छाप पक्का रंग मिला है ).


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दूसरा आइडिया मुझे आया , सहेलियों की भांग की गुझिया खिलाने का , लेकिन रीतू भाभी ने तुरंत वीटो कर दिया ,

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स्कूल में एक तो बाहर से खाने का सामान मना है , दूसरे गुझिया देख के लड़कियों को शक होजाता ,
मैंने तुरंत एक कहानी गढ़ी , मेरी बर्थडे ,

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और रीतू भाभी मुस्कराने लगी , एकदम उनकी असली ननद और उन्होंने फिर एक बात जोड़ी , जो मिठाई तेरे स्कूल की कैंटीन में मिलती हो , ... लाल पेड़ा , ललुआ बहुत मस्त बनाता है , ... बस ये तय हो गया की लाल पेड़ा पूरे एक किलो शुद्ध असली बनारसी भांग की , हर पेड़े में दो दो गोली , रीतू भाभी ने अपने हाथ से बनाया , ... और ये भी उन्ही का आइडिया था कैंटीन के डिब्बे में ही सील बंद , ... भांग वाले पेड़े,

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जबरदस्त होली हुयी , पहले तो सिर्फ गाल और माथे पर , फिर जो लड़कियां सबसे ज्यादा उचकती थीं , होली के नाम पर , मेरी दो सहेलियों ने एक एक हाथ पकड़ लिए , फिर मेरे हाथ गाल से सरक कर ,...



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स्सालियों ने मुझे ही बिग बी की टाइटल दी थी ,

एक हाथ से स्कूल टॉप की बटन खुली , और दूसरे हाथ से नए आते चूजों को दुलराया , सहलाया ,

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और वही रीतू भाभी ब्रांड गुलाल , सिर्फ डाला नहीं कस कस के मला ,

" अरे यार गुलाल ही तो है , लगवा लो , अभी वो तेरा वाला लगाता तो खूब मजे से मिसवाती "

फिर निपल पर पिंच और साथ में उस लड़की के पीछे जो लड़के पड़े थे उनके नाम ले ले कर , और मैं भी नहीं बची , मेरी भी भी खूब रगड़ाई हुयी , और मेरे साथ मेरे भौंरों का नाम ले ले कर , ...
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और स्कूल के गेट के बाहर निकलने के पहले , अपनी वाटर बॉटल से सब लड़कियों के कपडे के ऊपर अंदर , ... अब गुलाल के अंदर के रंग ने असर दिखा दिया , सबके उभार , पिछवाड़ा , कुछ के तो जाँघों के बीच में भी ,
लेकिन सबसे ज्यादा भौंरो को , ..स्साले मवाली बहनचोद , पता नहीं उन्हें कैसे पता चल गया था की आज हम लोगों की होली होगी और रोज तो आठ दस लड़के स्कूल के गेट पर रहते थे , आज तो दर्जन भर से ऊपर , ...



और लगाते समय भी हम लोग अपंनी सहेलीयों को लड़को का नाम ले ले कर , ये चंदू की ओर से ये चुन्नू की ओर से ये टुन्नू की ओर से ,

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बेचारे रंग तो लगा नहीं सकते हाँ रंगी पुती पुती , भीगी , देह से चिपकी , हर अंग झलकती देख देख कर आँखे खूब सेंकते है , और सिर्फ लड़कियों की ही नहीं , बड़ी उम्र की औरतों की भी होली और होली के बाद रंग से भीगी , देह से चिपकी साडी ब्लाउज से झलकते अंग का मजा लेने वाले कम नहीं होते



लेकिन हम लड़कियां , औरतें भी यही सोचती हैं , ले तो ले , आखिर होली है , मन तो सबका करता है , ...

ये अल्हड़ मस्ती भरे क्षण.. शायद कभी लौट के आ जाएं...
 
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motaalund

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होरी खेलूँगी श्याम तोते नाय हारूँ
उड़त गुलाल लाल भए बादर, भर गडुआ रंग को डारूँ
होरी में तोय गोरी बनाऊँ लाला, पाग झगा तरी फारूँ
औचक छतियन हाथ चलाए, तोरे हाथ बाँधि गुलाल मारूँ।



आपका भी जवाब नहीं...
इन छंदों के पेश करने में...
 
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Shetan

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होली के अवसर पर इस थ्रेड ने एक अलग हीं फगुआ की मस्ती भर दी है...
Meri sab se fev he ye. Mohe rang de
 

motaalund

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यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,


आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!

निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,


आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!

प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,



जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!



गीले शिकवे भूल के दोस्तों... दुश्मन भी गले मिल जाते हैं...
 
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