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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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फागुन के दिन चार के अंश

होली का राशिफल -

कन्या राशि की भाभियों के लिए



"आपके आने वाले दिन बहुत शुभ है. आपका लंड का अकाल ख़त्म होने वाला है। इस होली में एक से एक मोटी मोटी पिचकारियां मिलेंगी, पिचकाने को, आपके देवरों की। आपकी चोली फाड़ चूँचियाँ भी खूब रगड़ी जाएंगी। पिछवाड़े का बाजा बजने का पूरा चांन्स है. लेकिन इसके लिए आपको इस फागुन में कुछ विशेष उपाय करना पडेगा, ध्यान से पढ़ें और अमल करें।

इस होली विशेषांक के आखिरी पन्ने पर लंड पुराण का रोज जोर जोर से परायण करें और किसी कुंवारे देवर के मोटे औजार का ख्याल करें। इस होली में मौका निकल के किसी कुंवारे देवर की नथ उतार दें, भले ही जबरदस्ती करनी पड़े। इस होली में देवर की किसी कुँवारी कन्या की सील तोड़ने में पूरी सहायता करें। फागुन में किसी दो चूत में ऊँगली करें और उस कुँवारी चूत की सील तुड़वाने में सहायता करें। ऐसा करने से साल भर आप पर लंड देव की कृपा रहेगी। वैसे तो आप कहने को कन्या राशि की हैं, लेकिन बचपन की छिनाल हैं। इसलिए अगर आप कन्याओं को छिनाल बनाने में सहायता करेंगी तो लंड देव की आप पर विशेष कृपा रहेगी। इस होली में हर देवर का दिल रखें, बिल का दान करें। दान करने से जैसे धन नहीं घटता वैसे जोबन दान करने से बिल और मस्त होती है।

आपकी होली बहुत जोरदार होगी।
होली के अवसर पर हरेक राशि के राशिफल की एक छोटी सी पत्रिका आती थी...
और हर तरह के भविष्यवानियों से रंगा रंग रहती थी....
अब वो तो ढूंढने पर नहीं मिलती... लेकिन आपके इस पोस्ट ने उन क्षणों को लौटा दिया....
 
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motaalund

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राशिफल ( फागुन के दिन चार से )


astronomy emoticons

मीन राशि

मीन राशि वाली कन्याओं के लिए यह होली बहुत शुभ है।


astronomy emoticons

उन्हें अबकी अपनी मन पसंद पिचकारी से होली खेलने को मिलेगी। उनकी बाल्टी में सफ़ेद रंग की खूब बौछार होगी, बाल्टी हरदम भरी रहेगी, लबालब। बस ध्यान दें की पिचकारी खेलते समय हमेशा ठीक से और प्यार से पकड़ें, और ध्यान रखें की सीधे से डलवा लें, डालने वाले जीजा हों, स्कूल का लड़का हो या पडोसी, ज्यादा उछलकूद करने से पिचकारी और रंग दोनों गलत जगह जा सकता है.

हाँ एक बात का ध्यान रखें जिसे दिल दिया हो बिल उसे जल्दी से दे दें। वर्ना याद रखिये आप मीन राशि की हैं, साल भर बिन पानी की मछली की तरह तड़पना पड़ सकता है. इस फागुन में आपके लिए एक परमानेंट पिचकारी का इंतजाम हो सकता है, और वो खूब लम्बी भी है मोटी भी, और रंग से भरी, उसे देख कर आपकी सहेलियां जलेंगी। जल्दी कीजिये मुहूर्त अच्छा है, अगर आपके कोई जीजा हों तो जिद्द कर के उन्हें होली में बुलाइये और फिर पिचकारी को पिचकाइये। आपकी सहेलियां अगर जले तो मिल बाँट के। मीन तो पानी में ही रहती है आप क्यों प्यासी तड़प रही हैं? इस फागुन में आपकी राशि पर लंड योग लग गया है. बस थोड़ी सी हिम्मत कीजिये, एक पल का दर्द और जीवन भर का मज़ा.

होली में और पूरे फागुन भर जोबन दान करें, आपके जोबन सबसे मस्त हो जायेंगे, कड़े भी बड़े भी। देखकर बल्कि सोचकर ही सारे लड़कों का खड़ा हो जाएगा और सारे शहर के लड़के आपका नाम लेकर मुट्ठ मारेंगे। टॉक ऑफ टाउन होने का सबसे अच्छा मौका है होली।

हाँ, ऊँगली करना बंद करिये और इस पत्रिका के चौथे पन्ने पर दिए गए लंड महिमा का गान अपने किसी यार या जीजू के औजार के बारे में सोचते हुए रोज ११ बार गायें। निश्चित सफलता होगी। होलिका देवी की कृपा आप पर बनी रहेगी। फागुन में न तो गालियों का बुरा मानिये न स्कूल या मोहल्ले में मिली 'अच्छी वाली टाइटल का ' बस मन की बात सुनिए मना मत करिए वरना अगर कोई यार दुखी हुआ तो तो होलिका देवी भी दुखी हो जाती हैं. इसलिए इस होली में न सिर्फ चोली में हाथ जाने दीजिये बल्कि भरतपुर भी लुटा दीजिये।



astronomy emoticons
बाकी राशियों का भी राशिफल अपेक्षित है...
 
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motaalund

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ऋतुओं का राजा बसंत -कुसुमाकर

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रसो का राजा श्रृंगार रस

और दोनों का साथ होली का पर्व


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बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।

मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ॥

श्रीमद्भगवद्गीता के दसवे अध्याय का पैंतीसवां श्लोक। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है ,जो ऋतुओ में कुसुमाकर अर्थात वसंत है , वह मैं ही तो हूँ।

यही कुसुमाकर तो प्रिय विषय है सृजन का। यही कुसुमाकर मौसम है कुसुम के एक एक दल को पल्लवित होने का। अमराइयों में मंजरियो के रससिक्त होकर महकने और मधुमय पराग लिए उड़ाते भौरों के गुनगुना उठाने की ऋतु है वसंत।

प्रकृति के श्रृंगार की ऋतु।

वसंत तो सृजन का आधार बताया गया है। सृष्टि के दर्शन का सिद्धान्त बन कर कुसुमाकर ही स्थापित होता है। यही कारण है कि सीजन और काव्य के मूल में तत्व के रूप में इसकी स्थापना दी गयी है। सृष्टि की आदि श्रुति ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में रचनाओं से लेकर वर्तमान साहित्यकारों ने भी अपनी सौंदर्य-चेतना के प्रस्फुटन के लिए प्रकृति की ही शरण ली है। शस्य श्यामला धरती में सरसों का स्वर्णिम सौंदर्य, कोकिल के मधुर गुंजन से झूमती सघन अमराइयों में गुनगुनाते भौरों पर थिरकती सूर्य की रशिमयां, कामदेव की ऋतुराज 'बसंत' का सजीव रूप कवियों की उदात्त कल्पना से मुखरित हो उठता है। उपनिषद, पुराण-महाभारत, रामायण (संस्कृत) के अतिरिक्त हिन्दी, प्राकृत, अपभ्रंश की काव्य धारा में भी बसंत का रस भलीभांति व्याप्त रहा है। अर्थवेद के पृथ्वीसूत्र में भी बसंत का व्यापक वर्णन मिलता है। महर्षि वाल्मीकि ने भी बसंत का व्यापक वर्णन किया है।

किष्किंधा कांड में पम्पा सरोवर तट इसका उल्लेख मिलता है-

अयं वसन्त: सौमित्रे नाना विहग नन्दिता।



बुध्दचरित में भी बसंत ऋतु का जीवंत वर्णन मिलता है।

भारवि के किरातार्जुनीयम, शिशुपाल वध, नैषध चरित, रत्नाकर कृत हरिविजय, श्रीकंठ चरित, विक्रमांक देव चरित, श्रृंगार शतकम, गीतगोविन्दम्, कादम्बरी, रत्नावली, मालतीमाधव और प्रसाद की कामायनी में बसंत को महत्त्वपूर्ण मानकर इसका सजीव वर्णन किया गया है।

कालिदास ने बसंत के वर्णन के बिना अपनी किसी भी रचना को नहीं छोड़ा है। मेघदूत में यक्षप्रिया के पदों के आघात से फूट उठने वाले अशोक और मुख मदिरा से खिलने वाले वकुल के द्वारा कवि बसंत का स्मरण करता है। कवि को बसंत में सब कुछ सुन्दर लगता है। कालिदास ने 'ऋतु संहार' में बसंत के आगमन का सजीव वर्णन किया है:-


द्रुमा सपुष्पा: सलिलं सपदमंस्त्रीय: पवन: सुगंधि:।

सुखा प्रदोषा: दिवासश्च रम्या:सर्वप्रियं चारुतरे वतन्ते॥


यानी बसंत में जिनकी बन आती है उनमें भ्रमर और मधुमक्खियाँ भी हैं।


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'कुमारसंभवम्' में कवि ने भगवान शिव और पार्वती को भी नहीं छोड़ा है। कालिदास बसंत को शृंगार दीक्षा गुरु की संज्ञा भी देते हैं:-


प्रफूल्ला चूतांकुर तीक्ष्ण शयको,द्विरेक माला विलसद धर्नुगुण:

मनंति भेत्तु सूरत प्रसिंगानां,वसंत योध्दा समुपागत: प्रिये।


वृक्षों में फूल आ गये हैं, जलाशयों में कमल खिल उठे हैं, स्त्रियाँ सकाम हो उठी हैं, पवन सुगंधित हो उठी है, रातें सुखद हो गयी हैं और दिन मनोरम, ओ प्रिये! बसंत में सब कुछ पहले से और सुखद हो उठा है।



हरिवंश, विष्णु तथा भागवत पुराणों में बसंतोत्सव का वर्णन है।

माघ ने 'शिशुपाल वध' में नये पत्तों वाले पलाश वृक्षों तथा पराग रस से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्प समूहों से सुगंधित बसंत ऋतु का अत्यंत मनोहारी शब्दों वर्णन किया है।


नव पलाश पलाशवनं पुर: स्फुट पराग परागत पंवानम्

मृदुलावांत लतांत मलोकयत् स सुरभि-सुरभि सुमनोमरै:

प्रियतम के बिना बसंत का आगमन अत्यंत त्रासदायक होता है। विरह-दग्ध हृदय में बसंत में खिलते पलाश के फूल अत्यंत कुटिल मालूम होते हैं तथा गुलाब की खिलती पंखुड़ियाँ विरह-वेदना के संताप को और अधिक बढ़ा देती हैं।

महाकवि विद्यापति कहते है -

मलय पवन बह, बसंत विजय कह,भ्रमर करई रोल, परिमल नहि ओल।

ऋतुपति रंग हेला, हृदय रभस मेला।अनंक मंगल मेलि, कामिनि करथु केलि।

तरुन तरुनि संड्गे, रहनि खपनि रंड्गे।


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विद्यापति की वाणी मिथिला की अमराइयों में गूंजी थी। बसंत के आगमन पर प्रकृति की पूर्ण नवयौवना का सुंदर व सजीव चित्र उनकी लेखनी से रेखांकित हुआ है:-

आएल रितुपति राज बसंत,छाओल अलिकुल माछवि पंथ।

दिनकर किरन भेल पौगड़,केसर कुसुम घएल हेमदंड।

हिन्दी साहित्य का आदिकालीन रास-परम्परा का 'वीसलदेव रास' कवि नरपतिनाल्हदेव का अनूठा गौरव ग्रंथ है। इसमें स्वस्थ प्रणय की एक सुंदर प्रेमगाथा गाई गई है। प्राकृतिक वातावरण के प्रभाव से विरह-वेदना में उतार-चढ़ाव होता है। बसंत की छमार शुरू हो गई है, सारी प्रकृति खिल उठी है। रंग-बिरंगा वेष धारण कर सखियाँ आकर राजमती से कहती हैं:-

चालऊ सखि!आणो पेयणा जाई,आज दी सई सु काल्हे नहीं।

पिउ सो कहेउ संदेसड़ा,हे भौंरा, हे काग।

ते धनि विरहै जरि मुई,तेहिक धुंआ हम्ह लाग।

विरहिणी विलाप करती हुई कहती है कि हे प्रिय, तुम इतने दिन कहाँ रहे, कहाँ भटक गए? बसंत यूं ही बीत गया, अब वर्षा आ गई है।



आचार्य गोविन्द दास के अनुसार:-

विहरत वन सरस बसंत स्याम।

जुवती जूथ लीला अभिराम

मुकलित सघन नूतन तमाल।

जाई जूही चंपक गुलाल पारजात मंदार माल।

लपटात मत्त मधुकरन जाल।


जायसी ने बसंत के प्रसंग में मानवीय उल्लास और विलास का वर्णन किया है-

फल फूलन्ह सब डार ओढ़ाई। झुंड बंधि कै पंचम गाई।

बाजहिं ढोल दुंदुभी भेरी। मादक तूर झांझ चहुं फेरी।

नवल बसंत नवल सब वारी। सेंदुर बुम्का होर धमारी।

भक्त कवि कुंभनदान ने बसंत का भावोद्दीपक रूप इस प्रकार प्रस्तुत किया है:-

मधुप गुंजारत मिलित सप्त सुर भयो हे हुलास, तन मन सब जंतहि।

मुदित रसिक जन उमगि भरे है न पावत, मनमथ सुख अंतहि।

कवि चतुर्भुजदास ने बसंत की शोभा का वर्णन इस प्रकार किया है-

फूली द्रुम बेली भांति भांति,नव वसंत सोभा कही न जात।

अंग-अंग सुख विलसत सघन कुंज,छिनि-छिनि उपजत आनंद पुंज।



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कवि कृष्णदास ने बसंत के माहौल का वर्णन यूं किया है:-

प्यारी नवल नव-नव केलि

नवल विटप तमाल अरुझी मालती नव वेलि,

नवल वसंत विहग कूजत मच्यो ठेला ठेलि।

सूरदास ने पत्र के रूप में बसंत की कल्पना की है:-

ऐसो पत्र पटायो ऋतु वसंत, तजहु मान मानिन तुरंत,

कागज नवदल अंबुज पात, देति कमल मसि भंवर सुगात।


तुलसी दास के काव्य में बसंत की अमृतसुधा की मनोरम झांकी है:-

सब ऋतु ऋतुपति प्रभाऊ, सतत बहै त्रिविध बाऊं

जनु बिहार वाटिका, नृप पंच बान की।

जनक की वाटिका की शोभा अपार है, वहां राम और लक्ष्मण आते हैं:-

भूप बागु वट देखिऊ जाई, जहं बसंत रितु रही लुभाई।


घनांद का प्रेम काव्य-परम्परा के कवियों से सर्वोच्च स्थान पर है। ये स्वच्छंद, उन्मुक्त व विशुध्द प्रेम तथा गहन अनुभूति के कवि हैं। प्रकृति का माधुर्य प्रेम को उद्दीप्त करने में अपनी विशेष विशिष्टता रखता है। कामदेव ने वन की सेना को ही बसंत के समीप लाकर खड़ा कर दिया:-

राज रचि अनुराग जचि, सुनिकै घनानंद बांसुरी बाजी।

फैले महीप बसंत समीप, मनो करि कानन सैन है साजी।


रीतिकालीन कवियों ने जगह-जगह बसंत का सुंदर वर्णन किया है। आचार्य केशव ने बसंत को दम्पत्ति के यौवन के समान बताया है। जिसमें प्रकृति की सुंदरता का वर्णन है। भंवरा डोलने लगा है, कलियाँ खिलने लगी हैं यानी प्रकृति अपने भरपूर यौवन पर है। आचार्य केशव ने इस कविता में प्रकृति का आलम्बन रूप में वर्णन किया है:-

दंपति जोबन रूप जाति लक्षणयुत सखिजन,

कोकिल कलित बसंत फूलित फलदलि अलि उपवन।

बिहारी प्रेम के संयोग-पक्ष के चतुर चितेरे हैं। 'बिहारी सतसई' उनकी विलक्षण प्रतिभा का परिचायक है। कोयल की कुहू-कुहू तथा आम्र-मंजरियों का मनोरम वर्णन देखिए:-

वन वाटनु हपिक वटपदा, ताकि विरहिनु मत नैन।

कुहो-कुहो, कहि-कहिं उबे, करि-करि रीते नैन।

हिये और सी ले गई, डरी अब छिके नाम।

दूजे करि डारी खदी, बौरी-बौरी आम।

'पद्माकर' ने गोपियों के माध्यम से श्रीकृष्ण को वसंत का संदेश भेजा है:-

पात बिन कीन्हे ऐसी भांति गन बेलिन के,

परत न चीन्हे जे थे लरजत लुंज है।

कहै पदमाकर बिसासीया बसंत कैसे,

ऐसे उत्पात गात गोपिन के भुंज हैं।

ऊधो यह सूधो सो संदेसो कहि दीजो भले,

हरि सों हमारे हयां न फूले बन कुंज है।

ऋतू वर्णन जब करते है तब पद्माकर फिर गाते है -

कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में

क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है.

कहे पद्माकर परागन में पौनहू में

पानन में पीक में पलासन पगंत है

द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में

देखौ दीप-दीपन में दीपत दिगंत है

बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में

बनन में बागन में बगरयो बसंत है

कवि 'देव' की नायिका बसंत के भय से विहार करने नहीं जाती, क्योंकि बसंत पिया की याद दिलायेगा:-

देव कहै बिन कंस बसंत न जाऊं, कहूं घर बैठी रहौ री

हूक दिये पिक कूक सुने विष पुंज, निकुंजनी गुंजन भौंरी।

सेनापति ने बसंत ऋतु का अलंकार प्रधान करते हुए बसंत के राजा के साथ रूपक संजोया है-

बरन-बरन तरू फूल उपवन-वन सोई चतुरंग संग दलि लहियुत है,

बंदो जिमि बोलत बिरद वीर कोकिल, गुंजत मधुप गान गुन गहियुत है,

ओबे आस-पास पहुपन की सुबास सोई सोंधे के सुगंध मांस सने राहियुत है।

आधुनिक कवियों की लेखनी से भी बसंत अछूता नहीं रहा। रीति काल में तो वसंत कविता के सबसे आवश्यक टेव के रूप में उभर कर स्थापित हुआ है। महादेवी वर्मा की अपनी वेदनायें उदात्त और गरिमामयी हैं-

मैं बनी मधुमास आली!

आज मधुर विषाद की घिर करुण आई यामिनी,

बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चाँदनी

उमड़ आई री, दृगों में

सजनि, कालिन्दी निराली!

रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली,

जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पंचम तान लीं;

बह चली निश्वास की मृदु

वात मलय-निकुंज-वाली!

सजल रोमों में बिछे है पाँवड़े मधुस्नात से,

आज जीवन के निमिष भी दूत है अज्ञात से;

क्या न अब प्रिय की बजेगी

मुरलिका मधुराग वाली?

मैथिलीशरण गुप्त ने उर्मिला के असाधारण रूप का चित्रण किया है। उर्मिला स्वयं रोदन का पर्याय है। अपने अश्रुओें की वर्षा से वह प्रकृति को हरा-भरा करना चाहती है:-

हंसो-हंसो हे शशि फलो-फूलो, हंसो हिंडोरे पर बैठ झूलो।

यथेष्ट मैं रोदन के लिए हूं, झड़ी लगा दूं इतना पिये हूं।

जयशंकर प्रसाद तो वसंत से सवाल ही पूछ लेते है - पतझड़ ने जिन वृक्षों के पत्ते भी गिरा दिये थे, उनमें तूने फूल लगा दिये हैं। यह कौन से मंत्र पढ़कर जादू किया है:-

रे बसंत रस भने कौन मंत्र पढ़ि दीने तूने

कामायानी में जयशंकर प्रसाद ने श्रध्दा को बसंत-दूत के रूप में प्रस्तुत किया है-

कौन हो तुम बसंत के दूत?

विरस पतझड़ में अति सुकुमार

घन तिमिर में चपला की रेख

तमन में शीतल मंद बयार।

विभिन्न ज्ञानियों के होली संदर्भ को संकलित रूप में पेश कर हमें कृतज्ञ कर दिया...
 
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motaalund

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आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी,
बोरी गई रंगन सुगंधन झकोरै है ।

कहि पदमाकर इकंत चलि चौकि चढ़ि,
हारन के बारन के बंद-फंद छोरै है ॥


घाघरे की घूमनि, उरुन की दुबीचै पारि,
आँगी हू उतारि, सुकुमार मुख मोरै है ।


दंतन अधर दाबि, दूनरि भई सी चाप,
चौवर-पचौवर कै चूनरि निचौरै है ॥


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अच्छे पाठक हीं अच्छे लेखक हो सकते हैं.. ये बात आपने साबित कर दी...
 
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motaalund

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bahoot bahoot dhanyvaad



कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।

चूड़ी भरी कलाइयाँ, खनके बाजू-बंद,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।

फीके सारे पड़ गए, पिचकारी के रंग,
अंग-अंग फागुन रचा, साँसें हुई मृदंग।

धूप हँसी बदली हँसी, हँसी पलाशी शाम,
पहन मूँगिया कंठियाँ, टेसू हँसा ललाम।



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भूली बिसरी यादें... आनंदित कर जाती हैं...
 
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motaalund

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IMG-20230308-110325
Rango ki duniya ki alag hi kahani he. Rang rasiya sabad hamare lie bahot uchit sabad he. Vese rang rasiya geet konse rag me gaya. Ye to muje pata nahi par shashtriya sangit ka gajab sangit he. Har rang ki apni alag pahechan alag hi kahani he. Har rang jyotish shashtro me alag hi mukam rakhta he.
IMG-20230308-110346
Lal (red) ; ye rang zunun se bhara he. Kahete he. Naksho par or patro me ye jung ko darsata he. Ye graho me surya ko jatata he. Behat garam or joshila. Ye kundli me gussa or josh ko darsata he. Ye rango ka raja he
IMG-20230308-110400
Keshariya (orange); koi ise bhagva bhi kaheta he. Pavitra rang ye graho me mangal ko darsata he. Graho or rango dono me ye shenapati ki bumika adah karra he. Ye pavitrata or nabhi pe cantrol ko darsata he. Behat adbhut or imandar.
IMG-20230308-110421
Pila (yellow) ; ye rang graho me guru ka he. Vidhya gyan kudli me bhi iska karya yahi he.

IMG-20230308-110456
Safed (White) ; shanti. Yudh samapti. Is ka karya yahi he. Hathiyar dalse se jyada safed zanda laherana jyada uchit he. Ye ek ahinsha vadi vichar he. Moti dahi jese tatva. Ye graho me chandrama ko arpit he. Isi lie kundli se sache prem ko darsata he.
IMG-20230308-110509
Hara (green) ; vese to ye rang budh ka he. Budh matlab vanijya vyopar. Is ka karya yahi he. Budhi ka sahi prayog. Rajniti or chanakya niti bhi iske hi adhin he.
IMG-20230308-110534
Kala (black) ; ye rang graho me shani ka he. Kuchh log ise nakar atmak mante he. Par ye ek saja dene vala bhi rang he. Ye darsata he ki apne farz se muh mod lene valo ke lie chunoti. Tantva loha. Desh sar jamin se gardari karne vale or mata pita ko dukh dene valo ke lie kal. Par ye rang he bahot khubshurat. Sabse alag hi.
IMG-20230308-110553 IMG-20230308-110608 IMG-20230308-110621
Nila (blue) ; ye rang graho me shukra ka he. Ye inshan ki vasna ko darsata he. Sath nan ke andar ki nakar atmak bhavna bhi. Sayad name se purling he. Par darsal ye striling he. Iska tantva virya he. Ankho me iska sthan no 6 he. Behat mahatvapurn
IMG-20230308-110440
In sath rango se hi samast bhramhand ki rachna he.
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Har rang har graho se or anko se juda huaa he. Agar koi ankh se rango ko khoje ya rango se ankho ko khoje to bhi safalta mil jaegi.
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Bina rango ke jvan ek bimari he. Jese color blaind. Rango ke bina ye duniya adhuri he.
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Socho jivan me rang na ho to ye duniya kesi lagegi. Ek viran. Mahesus to yahi hoga.
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Duniya ka har rang ki alag kahani. Rango se hi bhavnao ka pata chalta he. Gussa khushi dunkh sukh.
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Kisi ko kisi rang se bahot lagav hota he to kisi ko bahot jyada nafarat. Meri najar me to rango ki yahi kahani he.


Bura na mano holi he.
आपका विश्लेष्ण भी काफी उम्दा है...
 

motaalund

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होली देवर भाभी की


कम्मो

( मोहे रंग दे -होली प्रसंग )


"कम्मो बहुत नाराज थी आप से , आप उसे भौजी नहीं मानते वो कह रही थी। उसे भी पता चल गया की आपका मन तो बहुत करता है उसकी चोली में हाथ डालने का , जोबन जबरदंग हैं ही उसके , लेकिन होली में भी ,... वो कह रही थी , की उसकी बेइज्जती तो वो बर्दास्त कर लेती जबरदंग जोबन की बेइज्जती आज तक किसी ने नहीं की , ... कहीं वो काम वाली है इसलिए तो नहीं , ... ये बात उसने नहीं कही थी मैं कह रही हूँ ,

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भूल गए ससुराल में नाउन क बहू कैसी रगड़ाई की थी और नाउन के बेटी भी , ... उन दोनों का तो छोडो सलहज , साली का रिश्ता लगता है , नाउन खुदे बोल रही थी , अपनी सलहज से पूछ लेना , आने दो पाहुन को सास का रिश्ता लगने से क्या होता है , होली ने नई उम्र की बहुओं का कान काटूंगी ,...

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और चमरौटी , भरौटी वाली , पानी भरने वाली कहाईन , गुलबिया ,...सब ,... और ये सब ,...



" नहीं ये नहीं है , ऐसा कुछ नहीं हमने तो उनको हरदम भौजी माना है , माना का है , हैं ही लेकिन ,... "

जवाब उन्होंने दे दिया लेकिन ऐन मौके पर रुक गए।



" लेकिन क्या बताओ न साफ़ साफ़ , ... " मैंने पूछ लिया।



" मन तो मेरा बहुत कर रहा था उसकी चोली में हाथ डालने को , लेकिन मन कर रहा था की कहीं भौजी गुस्सा न हो जाये , फिर ,... फिर तुम भी बैठी थी सामने , ... "



ये भी न एक तो बहुत सीधे है , फिर लजाते भी कितना है , पता नहीं ये लड़का कैसे सुधरेगा , ... मैंने उनके कान का पान बनाया और प्यार से समझाया ,



" यार तेरी गलती नहीं है , जो बुद्धू होते हैं न बुद्धू ही रहते हैं ,... अरे बुद्धूराम , ... वो तो इन्तजार कर रही थीं , खुद मुझसे बोलीं , होली में देवर भाभी की चोली न खोले तो ये भाभी की बेइज्जती है , ... और मैं क्यों बुरा मानती। मैं तो इस बात का बुरा मान रही थी की चोली फटी नहीं , अरे ऊपर झाँपर से तो होली में हर कोई चोली दबा लेता है

देवर का हक तो सीधे चोली के अंदर का है , ... ससुराल जा के साली सलहज के सामने नाक कटाओगे , ... खैर चलो , अगर कल चोली नहीं फटी और तेरी कम्मो भाभी का पेटीकोट नहीं खुला तो मैं भी उनके साथ मिल के तेरा ,... "

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देवर भौजी की असली होली अगले दिन हुयी सुबह सुबह ,


कम्मो भी तैयार थी और अब इनकी हिचक झिझक भी ,...

और मेरी जेठानी सास थे भी नहीं ,... इनकी और इनके कम्मो भौजी की होली अगले दिन कैसे शुरू हुयी , ये बताने का कोई मतलब नहीं , ...

देवर भाभी की होली तो कभी भी शुरू हो जाती है , कहाँ भी कैसे भी , और फागुन हो ,


कम्मो ऐसी रसीली जबरदंग जोबन वाली भौजी हो , जो अपने हर देवर को साजन बना के , ...


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फिर तो , बस परेशानी इनकी झिझक की थी तो कल रात में मैंने इन्हे खूब हड़काया था , ...

और कम्मो को भी समझाया था , देवर तोहरे थोड़े ज्यादा सीधे हैं , तो तोहिंके ,...


फिर सुबह सुबह मैंने दोनों को , देवर को भी भौजाई को भी , डबल भांग वाली एक नहीं दो दो गुझिया भी , ...


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मैं बरामदे में बैठी देख रही थी , मजे ले रही थी और आज मेरी सास जेठानी कोई थी भी नहीं ,
और तभी चरर की आवाज से मेरा ध्यान एक बार फिर से इनकी और इनकी कम्मो भौजी की ओर लौट गया। उनका ब्लाउज ,.... मैं मुस्कराने लगी , यही तो मैं चाहती थी।

कम्मो के मम्मे जबरदस्त थे ,

खूब बड़े , कड़े और एकदम खड़े , ... 38 डी डी ,

मम्मे देखकर तो ये वैसे ही ललचाते थे , और इनकी कम्मो भौजी के मम्मे तो और एकदम जबरदंग , और ऊपर से वो कभी भी ब्रा नहीं पहनती थी और ब्लाउज भी एकदम पतला , ... झलकते छलकते रहते थे , दोनों मम्मे

कल होली की शुरआत में बेचारे ब्लाउज के अंदर भले हाथ न डाल पाए हों पर रंग से भीगे , देह से चिपके पतले पारभासी ब्लाउज से झलक के एकदम साफ़ साफ़ दिख रहे थे , और ऊपर से जब वो ब्लाउज के ऊपर से अपनी कम्मो भौजी के ३८ डी डी वाले उभार दबा रहे थे , मसल रहे थे ,

वो भी उन्हें उकसा रही थी अपने कड़े कड़े बड़े बड़े चूतड़ कस कस के अपने देवर के भीगे पाजामे में तने बौराये खूंटे पे रगड़ रगड़ कर के ,

समझ तो ये भी रहे थे की उनकी भौजी फागुन में क्या चाहती हैं , और आज तो ,

एक तो कल रात मैंने उन्हें साफ़ साफ़ समझा दिया था , उनको भी , उनके उस मूसलचंद को भी , ... फागुन में भौजी , साली सलहज का हक इसपर मुझसे पहले है ( और मुझे तो शक था की जब ये ससुराल पहुंचेंगे तो उस लिस्ट में उनकी सास भी जुड़ जाएंगी ) ,
उन से ज्यादा उनकी कम्मो भौजी को ,

उनके देवर गौने की दुल्हिन से भी ज्यादा लजाते शर्माते हैं , जबतक कुछ जोर जबरदस्ती नहीं करेंगी वो , तो फागुन ऐसे सूखा चला जाएगा ,

और फिर आज सुबह देवर भौजाई दोनों को डबल भांग की दो दो गुझिया ,

और आज मेरी जेठानी, सास भी नहीं थी , सिर्फ मैं , और मैं तो खुद ही उन दोनों लोगो को चढ़ा रही थी ,
उनका एक हाथ ब्लाउज के अंदर घुस गया , चरर चररर , रहा सहा ब्लाउज भी फट गया ,... और अब दोनों हाथों की चांदी ,

कोई छोटे मोटे उभार नहीं थे , एकदम बड़े बड़े मक्खन के कटोरे , मुश्किल से उनके देवर के दोनों हाथों में आ रहे थे और ऊपर से उनकी कम्मो भौजी बजाय छुड़ाने के गरिया रही थीं

" अभिन हमहुँ फाड़ेंगी तोहार , लेकिन खाली पजामा नहीं पजामे अंदर वाला भी , ... बचपन में गांड मरवाये होंगे न वो याद आजायेगा , ... लौंडे तेल वैसलीन लगा के इस चिकने की मारते रहे होंगे पर मैं सूखी मारूंगी ,... "



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मैं बरामदे में बैठी बैठी देवर भाभी की मस्ती देख रही थी , पर मैं अपने को नहीं रोक पायी , ... वहीँ से खिलखिलाते हुए बोली ,

" अरे नहीं , अभी इनकी कोरी है , कोहबर में खुद अपनी सास सलहज के सामने कबूला था इन्होने "



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तब तक ये कस कस के कम्मो भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया मसल रहे थे , और जोबन मर्दन में तो जैसे इन्होने पी एच डी कर रखी थी , मुझसे ज्यादा कौन जानता था इस बात को , बस एक बार चोली खुल जाए और इनका हाथ लड़की के उभारों पर छू बस जाए , फिर तो वो खुद टाँगे फैला देगी , ...

कौन

और कम्मो तो खूब खेली खायी , ... उसकी हालत तो एकदम , ... वो एक जोबन एक निपल फ्लिक कर रहे थे तो दूसरे को पूरी ताकत से मीज रहे थे

सच में देवर भाभी की होली हो , जीजा साली की या नन्दोई सलहज की रंग तो बहाना है ,असली चीज तो जोबन मीजना मसलना रगड़ना है , और होली में जिसने भौजाई , साली , सलहज के जोबन नहीं मसले रगड़े न वो असली देवर , जीजा या नन्दोई है , और जिसने न मलवाया वो असली भौजाई , साली , सलहज नहीं ,

लेकिन कम्मो भौजी असली भौजी थीं , और उन्हें डर ये था की कहीं उनका देवर बिचक न जाये , इसलिए नाम के लिए भी वो इनका हाथ नहीं पकड़ रही थी , पर उन्हें गरियाने से कौन रोक सकता था

मैं तो कत्तई नहीं ,

" हे कहाँ से सीखा अइसन चूँची मीजना , मसलना , बचपन से आपन बहिन महतारी चूँची मीज मीज , के, स्साले तेरी बहन की गाँड़ मारुं ,... " कम्मो उन्हें गरिया रही थी ,




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और हँसते हुए मैं बोली

" एकदम सही कह रही हो आप , लेकिन उस एलवल वाली की कच्ची अमिया , .. जरूर अपनी महतारी के साथ , ... उन्ही की बड़ी बड़ी हैं , ... "
" एकदम सही कह रही है तोहार दुल्हिन , अरे एक चूँची ये चूसर चूसर पीते थे और दूसरी चूँची रगड़ता मीजते थे , काहें देवर जी "
मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,
इन रिश्तों में होली तो एक नए उमंग का संचार के देती है...
 
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motaalund

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मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,

इनकी माँ बहन को गाली , उनका नाम लेकर छेड़ना , वियाग्रा से ज्यादा काम करता था , ... रात में तीन चार बार के बाद भी जैसे ही मैं उस दर्जा आठ वाली का नाम ले के उन्हें छेड़ती थी , ... लोहे का खम्भा झूठ , ... ऐसा कड़ा खड़ा और फिर मेरी रगड़ाई तय होती थी , ...

और वही हुआ , ... चूँची मसलने के साथ साथ वो पीछे से ही कम्मो के चूतड़ों पर ऐसे जोर जोर के धक्के मार रहे थे जैसे उसकी गाँड़ मार के रहेंगे।

और उनकी भौजाई कौन कम छिनार , वो भी अपने बड़े बड़े चूतड़ रगड़ के ,... साडी तो उनकी पहले ही खेत रही थी वो अब सिर्फ पेटीकोट में और उनके देवर बनियाइन , पाजामें में ,...

लेकिन चुदाई और होली में कब कौन पलटी मार जाए पता नहीं चलता , वही हुआ , ... अब बाजी भौजी के हाथ में थी ,

वही पहले गुदगुदी , ... फिर कम्मो ने पीछे पीछे से उनकी भीगी बनयायिन खींची , चररर , ... फट के हाथ में आ गयी ,

और जब तक वो सम्हलते उनकी भौजी ने उनके दोनों हाथ पीछे करके उन्ही की फटी बनयाईन और अपने फटे ब्लाउज से बाँध दिया था ,

फिर कड़ाही की कालिख , लाल , बैंगनी रंग का जबरदस्त कॉकटेल बना के अपने हाथ में रगड़ा और , पाजामा फटा नहीं , बस आराम से भौजी ने नाड़ा खोल दिया ,

( कल यही तो मैं सास से शिकायत कर रही थी , दो दो भौजाई और देवर का नाड़ा न खुले , ... लेकिन किसी किसी दुलहन का नाड़ा अगर कुछ बहाना वहाना बना के गौने की रात खुलने से बच भी जाता है तो अगले दिन तो शर्तिया खुलता है , बस वही हालत कम्मो भौजी के देवर की हुयी ,


नाड़ा खुल गया और रंग में लथपथ पैजामा उनकी कम्मो भौजी ने उछाल के फेंक दिया , मेरी ओर

और बरामदे में बैठी बैठी मैंने उसे कैच कर लिया , आखिर इतना तो मेरा हक भी था और जिम्मेदारी भी , ... आखिर उनकी कम्मो भौजी की देवरानी थी मैं ,

फटा पोस्टर निकला हीरो ,

लेकिन उसकी आजादी क्षणभंगुर थी , जैसे कम्मो के चोली फटने के बाद आज़ाद जोबन उनके देवर के हाथों में कैद हो गए वैसे ही

उनके देवर के पाजामा खुलने के बाद , आजाद खूंटे को कम्मो के हाथों ने कैद कर लिया ,

फिर तो पहले कालिख , बैंगनी लाल रंग की कॉकटेल , और फिर सफ़ेद पेण्ट

साथ में भौजी जबरदस्त मुठिया रही थीं , सुपाड़ा एकदम खुला , ... फूला , बौराया ,...

अब लग रहा था देवर भाभी की होली हो रही है ,...

मान गयी मैं उनकी कम्मो भौजी को , असल होली , देवर भौजी की आज हो रही थी ,

एकदम खुल्लम खुल्ला ,




जैसे देवर भौजाई , ननदोई सलहज , और जीजा साली की होनी चाहिए ,...



क्या जबरदस्त मुट्ठ मार रही थीं अपने देवर की , रंग पेण्ट कालिख का जबरदस्त कातिल कॉकटेल , सुपाड़ा एकदम खुला और बित्ते भर का लंड भौजी की दायीं मुट्ठी में कसा ,

भौजी भी समझ गयीं थीं देवर उनका लम्बी रेस का घोडा है , केतना भी जोर जोर से मुठियाएंगी वो पिघलने वाला नहीं ,

लेकिन कम्मो भौजी सिर्फ अपने देवर का लंड ही नहीं मुठिया रही थीं , जो रंग उनके देवर ने चोली फाड़ कर उनके जोबना में मला था पीछे से देवर की पीठ पर ,

दायां हाथ में कम्मो के इनका लंड था , मोटा तन्नाया , पर बायां हाथ तो खाली था , और वो उनके चिकने पिछवाड़े पर , सफ़ेद वार्निश पेण्ट रगड़ रगड़ कर , ... और साथ में दो ऊँगली , पिछवाड़े के छेद पर और साथ में उनकी भौजी की गालियां

" स्साले किसके लिए कोरा बचा के रखा है , असों होली में तोहार गाँड़ जरूर फटी , एकदम तोहरी बहिनिया की तरह कोर हो , एक बार खुल जाए न तो देखना एक से एक मोटा लंड तोहरी गाँड़ में जायेगी ,

में बरामदे में बैठी कम्मो को उकसा रही थी , इन्हे चिढ़ा रही थी और सोच रही थी कम्मो की बात एकदम सही है , इस होली में तो इनके पिछवाड़े की नथ उतरनी तय है , कोहबर में तो कैसे कर के बच गए , लेकिन सलहज सास सब ने बोल रखा था , जब ससुराल आओगे न तो बचेगी नहीं , और ये तो होली में , वो भी दस दिन के लिए , .. रीतू भाभी रोज याद दिलाती थीं मुझे , नन्दोई के पिछवाड़े वैसलीन लगाया की नहीं , ...

मैं अपनी जेठानी की कम्मो की ओर थी , लेकिन ये कहाँ लिखा है की देवरानी जेठानी में होली नहीं होगी , ... पर शुरआत कम्मो ने ही की ,
पात्रों के मनोविज्ञान में भी आप पारंगत हैं...
 
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