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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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ना भूली वो होली











होली हो और साली न हो, बहुत ना इंसाफी है। होली हो, साली हो और उसकी चोली न खुले, बहुत ना इंसाफी है। चोली में हाथ घुसे, और साली की गाली न हो, बहुत ना इंसाफी है। जीजा और साली की होली, नंदोई और सलहज की होली, ननद और भाभी की होली।

ससुराल में मची पहली होली का धमाल, एक साली की जुबानी, कैसे खेली जीजा ने होली? कैसे खोली जीजा ने चोली? और फिर क्या-क्या खुला?

थैंक्स, और अब शुरू होती है कहानी, होली जीजा साली की।




***** *****साली की जुबानी



जब मैं जवानी की दहलीज पर कदम रख ही रही थी की तब से ही भाभी मुझे छेड़ती थीं कि तुमने अब तक चुदवाना नहीं शुरू किया। ठीक है अगर इंटर पास होने के पहले तूने इंटरकोर्स नहीं किया, तब तक तुमने नहीं चुदवाया तो तुम्हारी चूत का उद्घाटन मुझे अपने सैंयां यानी तुम्हारे भैय्या से करवाना पड़ेगा।

लेकिन इसकी नौबत नहीं आई।

मैं बारहवें में जाने वाली थी। जो कहते हैं न जवानी की रातें मुरादों के दिन, बस वही दिन। लम्बी, गोरी, गालों पर गुलाब खिल रहे थे, और चोली के उभार… बस यूँ कहूं कि सारी सहेलियां मुझे देखकर जलती थीं, और सारे लड़के मरते थे।





और वह मेरी पहली होली थी, जीजा के साथ।

बसन्त की बयार, बाहर पलाश दहक रहे थे और अन्दर मेरी चोली के… बस बिना बात कि अन्गड़ाई लेती थी, बार-बार शीशे के सामने खड़ी होती थी। कभी जोबन के उभार अच्छे लगते, कभी खुद शर्मा जाती, कभी मन करता कि बस कोई कस के पकड़कर दबा ले, दबोच ले।



कुछ दिन पहले जब मेरी बड़ी दीदी की शादी हुई थी तो हम लोगों ने खूब जमकर गालियां सुनायीं और मैंने जीजाजी से कोहबर मैं शर्त मनवा ली कि वोह होली में जरूर आयेगें, और दो-चार दिन रहेंगे। पर होली के कुछ दिन पहले उनका फोन आया कि उन्हें होली कि शाम को ही कहीं बाहर जाना है। इसलिये उनका आना थोड़ा मुश्किल है।

मैंने उनसे रिक्वेस्ट की, कि कम से कम थोड़ी देर के लिये दीदी के साथ आ जायें। फिर यह तय हुआ कि, वह होली को सुबह आ जायेंगे और होली खेलकर दोपहर को वापस चले जायेंगे। होली के एक दिन पहले से ही हम लोग तैयारियां कर रहे थे। ढेर सारा गुलाल, अबीर और रंग, जीजा को रंगने के लिये एकदम पक्के पेंट, भांग वाली गुझिया, ठन्डाई और सारा इन्तजाम मैंने किया।

होली के पहले वाली रात मैं और भाभी देर रात तक किचेन में ही लगे रहे, जिससे कि होली वाले दिन के लिये कोई काम बाकी न रहे।

होली की सुबह कपड़े खराब हो जाने के डर से मैंने हल्के रंग की एक पुरानी फ्राक पहनी, पर पुरानी होने के कारण वह थोड़ी छोटी और बहुत टाईट थी जिससे मेरे उभार और उभरकर सामने आ रहे थे। रंग से बचने के लिए मैं हाथ पैर पर वैसलीन लगा रही थी।

तभी भाभी ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा-

“नन्द रानी, जरा नीचे वाले इलाके में भी, अन्दर तक उंगली डालकर लगा लो और अगर शर्म लग रही हो तो मैं लगा दूं…”



भाभी कि सलाह मानकर, पैन्टी सरकाकर मैंने वहां भी वैसलीन लगा ली। झांटें तो मैंने कल रात ही साफ-सूफ कर ली थी। मेरी कोई प्लानिगं नहीं थी, पर क्या पता? अपनी कुँवारी गुलाबी टाईट चूत देखकर तो एक बार मैं भी शर्मा गई। पर धीरे से मैंने लैबिया को फैलाकर खूब वैसलीन लगायी।

एक प्लास्टीक के पाउच में मैंने सारे रंग रख लिये और दो रंग से भरी बाल्टी छत पर रख ली। वहीं मैं और भाभी ईंतजार करने लगे। होली का हुड़दंग शुरू हो गया था।



आज न छोडेगें हम हमजोली, खेलेगें हम होली,

चाहे भीगे तेरी चुनरिया चाहे भीगे रे चोली,


लाउडस्पीकर पर फिल्मी होली गानों की आवाज, चारों ओर रंग, गुलाल, पिचकारियां, टोली बना-बनाकर लड़के रंग, हुडदंग, मचा रहे थे, बीच-बीच में कबीर… कबीरा सा रा र… और नाम ले-लेकर गालियां, पर आज गालियां भी अच्छी लग रही थीं। तभी मैंने अपना नाम सुना-

नकबेसर कागा ले भागा, सैंयां अभागा ना जागा,

उड़-उड़ कागा संगीता की चोलिया पे बैठा…


भाभी ने इशारा किया, नन्द रानी देखो तुम्हारा ‘वह’ (वह मेरी गली के मोड़ पर रहता था और रोज वहां खड़ा रहना, मेरे स्कूल के टाईम पर, अक्सर मेरे पीछे-पीछे जाना, छेड़ना, शायद उसी ने मुझे पहली बार जवानी आने का एहसास कराया था। मैं उसको लिफ्ट नहीं देती थी, पर सबको मालूम था कि वह मेरा दीवाना है)।

मैंने छिपने की कोशिश की पर भाभी ने मुझे धक्का देकर सामने कर दिया। उसने मुझे देखकर गाना पूरा किया…


उड़-उड़ कागा संगीता की चोलिया पे बैठा, अरे, जोबना का सब रस ले भागा।

और एक रंग भरा गुब्बारा सीधे मेरे ऊपर फेंका, जो ठीक मेरे बायें जोबन पर लगा और वह एकदम रंग से लाल हो गया। मैं एकदम सिहर गई और उसने और उसके साथियों ने फिर जोर से गाया-





अरे, बुर वाली, बुरा न मानो होली है।

उड़-उड़ कागा संगीता की स्कर्ट पे बैठा,

अरे, बुरिया का सब रस ले भागा।

नकबेसर कागा ले भागा, सैंयां अभागा ना जाग।

भाभी ने मुझे रंग भरी बाल्टी पकड़ा दी और मैंने भी ठीक उसके ऊपर डाल दी। भाभी ने मेरे रंगे उरोज को कस के दबाया और चिढ़ाया- “नन्द रानी शुरुआत तो अच्छी हो गई है…”
और होली अच्छी गुजरेगी...
 

motaalund

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***** *****जीजाजी



हम लोगों को पता ही नहीं चला पर जीजाजी पीछे वाले दरवाजे से आ गये थे। झट से मैं और भाभी नीचे आये। हमने प्लान किया था कि हम दोनों मिलकर जीजाजी को रगड़ेंगे, पर वह प्लान ही रह गया।

दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और जीजा ने मुझे।



जीजा पहले ही अपने हाथों में गाढ़ा लाल रंग लगाकर आये थे और उन्होंने झट से मेरे कुँवारे गालों को दबोच लिया और मेरे गुलाबी गालों की रगड़ाई मसलाई चालू हो गई। मैंने अपने हाथों से उनका हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर कोई असर नहीं हुआ। पहली बार मेरे टीन गालों पर किसी मर्द का हाथ पड़ा और बस ऐसा लग रहा था कि… रंग ऊपर लग रहा था और गीली मैं नीचे हो रही थी। उनका हाथ गाल से नीचे सरका तो मैं समझी की…

पर असल निशाना तो कहीं और था। जब तक मैं समझ पाती, उनकी उगंलियां मेरे कुँवारे उभारों के ऊपरी भाग को, फ्राक के अन्दर घुसकर रंग रही थीं।

मैं कांप उठी।

जीजा ने जोर लगाकर और अन्दर हाथ डालकर मेरी कलियों को रंगना, मसलना, रगड़ना शुरू कर दिया। शर्म भी लग रही थी, अच्छा भी लग रहा था। मैं ऊपर-ऊपर हाथ छुड़ाने कि कोशिश कर रही थी पर मन यही कह रहा था कि…



जीजाजी ने मेरा एक जोबन अब अच्छी तरह फ्राक के अदंर पकड़ लिया था और दूसरा वह फ्राक के ऊपर से ही दबा रहे थे। उन्होंने मेरी टीन ब्रा खोलने की कोशिश करते हुए कहा-


“कब तक इन कबूतरों को अन्दर बन्द करके रखोगी?”

उन्हें क्या पता कि इन्हें इत्ते दिनों से मैंने उन्हीं के लिये सम्हाल कर रखा था। ब्रा खोलकर उन्होंने खूब ढेर सारा सूखा रंग, ऊपर से ब्रा के अन्दर डाल दिया और अब मेरे दोनों जोबनों की रगड़ाई मसलाई करने लगे।
जब मेरी कोशिशों का कोई असर नहीं हुआ तो मदद के लिये मैंने भाभी कि ओर देखा, पर वहां तो हालत और गड़बड़ थी।



**** *****लुट गयो जुबना, साल्ली का



चेहरे पे तो दोनों लोगों के अच्छी तरह से रंगे पुते थे ही, भाभी ने दीदी के ब्लाउज में अच्छी तरह हाथ डाल रखा था और दीदी भी, भाभी के ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश कर रही थीं। आँचल तो दोनों के पूरी तरह से हटे हुए थे।

मेरा ध्यान उधर था और इधर जीजा का एक रंग पुता हाथ मेरे फ्राक के अन्दर पहुंच गया।


जब तक मैं सम्हलूं, मेरी जांघ पे हाथ ऊपर पहुंचाकर, उन्होंने मेरी पैन्टी के ऊपर से मेरी… कसकर दबोच लिया और ऊपर से ही रंग लगाने लगे। मैं एकदम गिनगिना गई। एक हाथ ऊपर मेरी जवानी की कलियों को रगड़ मसल रहा था, और दूसरा मेरी कुँवारी जाघों के बीच… पर जीजा की दुष्ट उगंलियों को इससे सतोष थोड़े ही था। मैनें अपनी जाघें कसकर सिकोड़ रखी थीं। लेकिन वह पैन्टी के भीतर घुसकर मेरे गुलाबी लैबिया को भी लाल करने लगीं।

इस दोहरी मार से मैं एकदम बेकाबू हो गई। कुछ शर्म और लाज के मारे और कुछ… मुझे ऐसा कभी नहीं लगा था। मेरा पूरा शरीर कंट्रोल से बाहर हो रहा था। मेरी जांघें अपने आप फैल रही थीं।

और जीजा ने इसका फायदा उठाकर अपनी उगंली की टिप मेरी… मेरी योनी में डाल दिया। मुझे ऐसा लगा जैसे कि कोई 440 वोल्ट का झटका लगा हो। थोड़ी देर बाद मैं थोड़ा सम्हली और दोनों हाथों से उनका हाथ हटाने की कोशिश करने लगी।



पर भाभी मेरी मदद को आ गईं। उन्होंने रंग भरी एक बाल्टी उठाकर जीजा पर फेंकी।

पर मेरे जीजाजी भी कम चालू चीज नहीं थे, उन्होंने मुझे आगे कर दिया और सारा रंग मेरे ऊपर पड़ा और वो भी ज्यादा मेरे सीने पर। जीजा ने चालाकी से जो सूखा रंग मेरे जोबन पर लगाया था वह अब पूरी तरह गीला होकर… और ब्रा तो उन्होंने न सिर्फ खोली थी बल्कि मेरे सीने से अच्छी तरह से हटा दी थी। इसलिये अब मेरा टीन जोबन न सिर्फ रंग से अच्छी तरह लाल हो गया था, बल्कि भीगी फ्राक से चिपक करके पूरी तरह से दिख रहा था।

लेकिन अब वह भाभी को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे, इसलिये मैं फ्री हो गई। जीजा ने तो मुझे अच्छी तरह हर जगह रंग दिया था, पर वह सूखे ही बचे थे और अब मेरा मौका था। मैंने अपने खास पेंट की ट्यूब निकाली और दो रंग मिलाकर हथेली पर ढेर सारा गाढ़ा रंग बनाया, खूब गाढ़ा लाल और कई दिन तक न छूटे ऐसा।

जीजाजी ने भाभी को दोनों हाथों से बल्की साफ-साफ कहूं तो, भाभी के दोनों भरे-भरे स्तनों को पकड़ रखा था, पर भाभी भी बिना उसकी कोई फिक्र किये, उनके सीने पर रंग लगा रही थीं।

मेरे लिये पूरा मौका था। मैंने अपने दोनों हाथों से उनके गालों पर अच्छी तरह से रंग लगाना शुरू कर दिया। उनका पूरा चेहरा मैं अपनी मर्जी से रंग रही थी। यहां तक की उनका मुँह खुलवाकर दांतों पर भी मैंने लाल रंग से मंजन कराया।

दीदी पूरी तरह न्यूट्रल थीं, इसलिये अब हम दोनों जीजा पर भारी पड़ रहे थे। छीना-झपटी में भाभी की चूंचियां ब्लाउज से बाहर भी थोड़ी निकल आई थीं, और जीजा ने उन्हें खूब रगड़कर रंगा था। पर भाभी ने भी उन्हें टापलेस कर दिया और हम दोनों ने मिलकर उनके हाथ अच्छी तरह पीछे बांध दिये। भाभी ने कड़ाही की कालिख से खूब पक्का काला रंग बनाया था। वह उसे लेने गईं।

और मैं जीजा से अपना बदला निकालने लगी। दोनों हाथों में पेंट लगाकर मैं पीछे से, खड़ी होकर उनके पेट, सीने, हाथ हर जगह रंग लगाने लगी। उनके दोनों निप्पल्स को (जैसे वह मेरे जोबन को रगड़ रहे थे वैसे ही, बल्की उससे भी कसकर) रगड़ते हुए मैंने जीजाजी को चिढ़ाया- “क्यों जीजू, आप तो सिर्फ टाप में हाथ डाल रहे थे और हम लोगों ने तो आपको टापलेस ही कर दिया…”

जीजा- “अच्छा, अभी इतना उछल रही थी, जरा सा मैंने रंग लगा दिया था तो…” जीजा ने शिकायत के टोन में कहा।

मैं- “अरे, वो तो मैं आपको बुद्धू बना रही थी…” दोनों हाथों से निप्पल्स को दबाते हुए मैंने फिर चिढ़ाया।

जीजा- “ठीक है, अबकी जब मैं डालूंगा न, तब तुम चाहे जित्ता चिल्लाना, मैं छोड़ने वाला नहीं…”

जीजा की बात को बीच में ही काटते हुए मैंने कहा- “अरे ठीक है जीजू… डाल लीजियेगा, जित्ता मन कहे डाल लीजियेगा, आपकी यह साली डरने वाली नहीं, होली तो होती ही है डालने डलवाने के लिये, पर अभी तो आप डलवाइये…” उनकी पीठ पर खूब कसकर अपने उभारों को दबाते हुए और निचले भाग को भी उनके पीछे रगड़ते हुये मैंने उन्हें चैलेंज किया।

तब तक भाभी कालिख के साथ आ गई थीं और उनके आधे मुँह पर खूब जमकर उसे रगड़ने लगीं।

मैं- “क्यों जीजाजी किसके साथ मुँह काला किया?” मैनें उन्हें फिर छेड़ा।

दीदी- “अरे और किसके साथ? उसी स्साली, मेरी छिनाल नन्द के साथ…” अब तक हम लोगों की चुपचाप होली देखती, दीदी ने बोला।
कच्ची कली की शरम... झिझक.. उहापोह...
बहुत अच्छे से दर्शाया है...
 

motaalund

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साली, सलहज एक साथ



जीजा का आधा मुँह काला था और बाकी आधे पर मैं सफेद वार्निश का पेंट लगा रही थी।

भाभी जो अब पीठ पर काला रंग लगा रही थीं, बोल पडीं- “अरे नन्दें तो साल्ली सब कि सब होती ही हैं बचपन की छिनाल, ये क्यों नहीं कहती की मेरे नंदोई ही बहनचोद हैं बल्कि साथ-साथ…”

ये कहते हुए उन्होंने अपना कालिख लगा हुआ हाथ उनके पिछवाड़े डाल दिया और- “गान्डू हैं…” कहकर अपनी बात पूरी की।

जीजा की चिहुंक से हम लोगों को अन्दाज लग गया कि भाभी ने कहां रंग लगाया है।

भोले स्वर में भाभी ने कहा- “अरे, नन्दोई जी, एक उंगली में ही… मुझे तो मालूम था कि आप बचपन के गान्डू हैं। लगता है प्रैक्टिस छूट गई है। खैर… मैं करवा देती हूं…”

बेचारे जीजाजी, उनके दोनों हाथ बंधे थे और साली और सलहज दोनों… भाभी खूब जमकर पिछवाड़े अन्दर तक और मैं भी खूब जमकर… मैंने सिर में खूब सूखा रंग और बाकी हर जगह अपना पक्का पैंट… जीजा की अच्छी हालत हो रही थी।

भाभी तभी एक बाल्टी में रंग भरकर ले आयीं। जीजाजी के ‘वहां’ इशारा करते हुए, बोलीं- “यह जगह अब तक लगता है बची है…”

(सुबह की भांग की दो-दो गुझिया, जीजा ने मेरी चूची की जो रगड़ायी की, होली का माहौल, मैं भी बेशर्म हो गई थी)

मैं- “हां भाभी…” कहकर मैंने उनका पाजामा आगे की ओर खींच दिया, और भाभी ने पूरी बाल्टी का रंग ‘उसके’ ऊपर उड़ेल दिया। पर भाभी ने फिर कहा- “अरे, वहां पेन्ट भी तो लगाओ…” और उन्होंने मेरा पेंट लगा हाथ जीजाजी के पाजामे में डालकर ‘उसे’ पकड़ा दिया।

पहली बार मेरे कुँवारे, टीन हाथों ने ‘उसे’ छुआ था और मैं एकदम सिहर गई। मेरी पूरी देह में मस्ती छा गई। लेकिन मैं घबड़ा, शर्मा रही थी… वह खूब कड़ा… बड़ा… लग रहा था।

भाभी ने फोर्स करते हुये कहा-


“अरे, होली के दिन साली जीजा का लण्ड पकड़ने में शर्मायेगी तो… कैसे चलेगा? अभी चूत में जायेगा तो चूतर उठा-उठा करके लीलोगी…”

और उन्होंने मेरे हाथ में लण्ड पकड़ा ही दिया।

मैं भी मस्ती में लण्ड में रगड़कर पेंट लगाने लगी।

इसी बीच जीजाजी ने अपना हाथ छुड़ा लिया। पर जब तक वह पकड़ पाते हम आंगन के दूसरे छोर पर थे। जीजा ने रंग भरी बाल्टी उठाई और सीधे भाभी के रसीले जोबन पर निशाना लगाकर फेंका। पर भाभी भी कम थोड़े ही थीं, उन्होंने भी जीजा के मेरे हाथ लगने के बाद खड़े पाजामा फाड़ते, टेंटपोल पर फेंका।

तब तक जीजू के निशाने पे मैं आ गई थी। उन्होंने मेरे किशोर उभरते हुए उभारों पर इस तरह रंग फेंका कि, मैं एकदम गीली हो गई। ब्रा तो पहले ही हट गई थी और अब मेरी चूचियां टाइट और गीली फ्राक से चिपक कर एकदम साफ दिख रही थीं। जब तक मैं संभलती जीजा के दूसरे वार ने ठीक मेरी जांघों के बीच रंग की धार डाल दी।

मैं उत्तेजना से एकदम कांप गई। उस समय तो अगर मुझे जीजा पकड़कर… तो मैं…

पर भाभी ने बोला- “अरे तू भी तो डाल… और हाँ ठीक निशाने पे…”

मैं भी एकदम बेशर्म हो गई थी। मैंने भी जीजू के पाजामे के अन्दर से झलकते खड़े लण्ड पर सीधे रंग भरी बाल्टी डाल दी।

देर तक गीले रंगों की होली चलती रही। जीजा टापलेस तो थे ही, मेरे और भाभी के ‘ठीक निशाने’ पर डाले गये रंग से ‘उनका’ एक बित्ते का… खूंटा सा खड़ा… साफ दिख रहा था। और मेरी भी पुरानी टाईट, झीनी फ्राक देह से ऐसी चिपकी थी कि… पूरा जोबन का उभार… और नीचे भी गोरी-गोरी जांघें… फ्राक एकदम टांगों के बीच चिपकी हुई थी।

जीजू बस ऐसे जोश में थे कि लग रहा था कि उनका बस चले तो मुझे वहीं चोद दें (और उस हालत में, मैं मना भी नहीं करती)।



पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया। और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई। मैं अकेली रह गई।
ये तिकड़ी भी कमाल का गीली होली का आनंद ले रहे हैं...
 

motaalund

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***** *****पकड़ी गई



पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया। और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई।

मैं अकेली रह गई।

जीजा की मुश्कान देखकर मैं भांप गई कि उन्होंने मेरी हालत समझ ली है। उन्होंने जेब से पेंट निकाला और अपने हाथ पर मला। मैं कातर हिरणी की तरह भागी, पर कितना भाग पाती। उन्होंने मुझे पकड़ लिया। उन्हें अब कोई जल्दी नहीं थी। उन्होंने एक हाथ से मेरी दोनों कलाईयां पकड़ लीं और दूसरे हाथ से फ्राक के सारे हुक धीरे-धीरे खोल दिये। मेरे कुँवारे उभारों को पहले तो वह धीरे-धीरे सहलाते रहे फिर उन्होंने कसकर रगड़ते हुये, मेरे टेनिस बाल साइज, उभरते हुए, किशोर जोबन का पूरा मजा लेना शुरू कर दिया।

कभी वह कसकर दबा देते, कभी निप्पल्स को पकड़कर खींच देते। फ्राक उठने से, उनका जोश… लोहे सा कड़ा… सीधे मेरे चूतड़ों के बीच… उनकी चाहत का और मेरी नई आई जवानी का एहसास करा रहा था। बाहर होली का हल्ला पूरे पीक पर था और अन्दर फागुन का नशा मेरे तन में, मन में छा रहा था। मेरी चूचियों पर जीजू का हाथ, शर्म भी लग रही थी। और मन कर रहा थ कि बस… जीजू ऐसे रगड़ते ही रहें।

उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा तो मुझे ऐसा लगा कि शायद अब मैं फ्री हो गई, पर… उस हाथ से उन्होंने मेरे छोटे-छोटे, कसे-कसे, चूतड़ों पर रंग लगाना शुरू कर दिया। जब तक मैं सम्हलती, पैंटी में हाथ डालकर उन्होंने मेरी कुँवारी गुलाबी सहेली को भी दबोच लिया। वहां खूब रंग लगाने के बाद उनकी शरारती उंगलियां मेरे भगोष्ठों में जवानी का नशा जगाने लगीं।

उनका अगूंठा मेरे क्लिट को छेड़ रहा था। ऊपर जोबन की रगड़ाई, मसलाई और नीचे… जीजा ने एक उगंली मेरी कसी कली में, खूब जोर से घुसा दी। उनकी उगंली की टिप जो मेरी चूत के अन्दर थी, अब अच्छी तरह से आगे पीछे हो रही थी। मैं मस्ती से पागल हो रही थी। अनजाने में ही मैं अपना चूतड़ उनके लण्ड पर रगड़ रही थी। पर किसी तरह मैं बोली- “जीजू, प्लीज… निकाल लीजिये…”

जीजू- “क्या? अभी तो मैंने डाला भी नहीं है साली जी…” कसकर चूची दबाते हुये, जीजू ने चिढ़ाया।

मैं- “और… क्या डालेंगें…” उसी मूड में मैंने भी, उनके खूंटे पर पीछे धक्का देते हुए पूछा।

जीजू- “यह लण्ड… तुम्हारी चूत में…” उन्होंने भी धक्का लगाते हुए जवाब दिया।

मैं- “नहीं… वह दीदी की चीज है… वहीं डालिये…” हँसते हुए मैं बोली।

जीजू- “नहीं… आज तो दीदी की छोटी दीदी की बुर में जायेगा…” जीजा बोले।

मैं- “अच्छा, तो आपका मतलब है की, आपकी दीदी यानी कि, दीदी की नन्द… उसके साथ तो आप पहले से ही…”

मेरी बात काटकर, जीजू ने मेरी चूची कसकर दबाते हुये इत्ती जोर का धक्का मारा कि मुझे लगा कि उनका लण्ड, पैंटी फाड़कर सीधे मेरी बुर में समा जायेगा।

जीजू बोले- “अच्छा तो तुम भी… अब तो तुम्हारी कुँवारी चूत फाड़कर ही दम लूंगा…”
तभी काफी जोर का हल्ला हुआ, पड़ोस की भाभियां बाहर से धक्का दे रही थीं। इस हगांमे का फायदा उठाकर, मैं छुड़ाकर सीधे छत पर भाग गई। मेरा सीना अभी भी धड़क रहा था।
जीजू की साली भी चहक चहक के मजे ले रही है...
 

motaalund

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***** *****छत पर



बाहर, रंगों के साथ होली के गाने, और, कबीर के साथ गालियों की बौछार हो रही थी। मैंने नीचे झांककर देखा तो, मिश्रा भाभी, दूबे भाभी के साथ 3-4 और पड़ोस की भाभियां थीं। रंगे-पुते होने के कारण जिनके चेहरे साफ नहीं दिख रहे थे।

मिश्रा भाभी तो अपनी लम्बी कद काठी और खूब भारी (कम से कम 38डी) उरोजों के कारण अलग ही दिखती थीं, और गन्दे मजाक करने में तो वह सबसे आगे थीं। उन सब लोगों ने पहले दीदी को घेरा।

किसी ने कहा कि- “अरे नन्दोई कहां हैं?”

दूबे भाभी बोलीं- “अरे, पहले नन्द साल्ली से निपट लें, नन्दोई की गाण्ड तो बाद में मारनी ही है…” और उन्होंने दीदी की साड़ी खींच ली। मिश्रा भाभी ने भी सीधे ब्लाउज पर हाथ डाला और बोला- “देखूं, शादी के बाद दबवा-दबवा कर मम्मे कित्ते बढ़े हैं…” पर दीदी भी कम नहीं थी। उन्होंने भी उनके मम्मे पकड़ लिये। छीना झपटी में दोनों के ब्लाउज फट गये। मिश्रा भाभी ब्रा में बंद अपनी क्वीन साइज चूचियां से दीदी की चूचियां दबाने लगीं।

दीदी ने भी जोर से उनकी चूची को दबाया और बोलीं- “लगता है, कई दिनों से मेरे भैया ने चूची मर्दन नहीं किया है, चलिये मैं मसल देती हूं…”

मुझे पता ही नहीं चला कि कब जीजू छत पर आ गये और उन्होंने मुझे पीछे से पकड़कर मेरा चूची मर्दन शुरू कर दिया। उन्होंने मुझे वहीं लिटा दिया और फ्राक खोलकर मेरे जोबन को आजाद कर दिया। अन्दर, बाहर होली का हुड़दंग, जीजा की की गई मेरी रगड़ाई, मस्ती से मेरी आँखें मुंदी जा रही थी। मुझे पता ही नहीं चला कि कब जीजा ने मेरी पैन्टी उतारी, कब मेरी टांगें उठाकर अपने कन्धों पर रख ली।

मैं मना कर रही थी- “नहीं… जीजू नहीं…”

पर हम दोनों को मालूम था कि मेरा मना करना कित्ता असली है? मुझे तब पता चला जब जीजा की मोटी पिचकारी मेरे निचले गुलाबी होंठों पर रगड़ने लगी। थोड़ी देर उसे छेड़ने के बाद जीजा ने मेरे दोनों कन्धे पकड़कर एक जोर का धक्का मारा।

दर्द के मारे मुझे दिन में तारे दिखने लगे पर जब तक मैं संभलती, जीजा ने उससे भी जोरदार, दूसरा धक्का मार दिया। रोकने के बाद भी मेरे मुँह से चीख निकल गई। नीचे इतना हंगामा चल रहा था कि किसी को पता नहीं चलने वाला था।

जीजू ने मुझे चूम लिया और मेरे मम्मों को सहलने लगे। मुझे समझाते हुये बोले- “बस अब और दर्द नहीं होगा…”

मैं कुछ नहीं बोली।

जीजू घबड़ा कर बोले- “क्यों, बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है, निकाल लूं?”

मैं मुश्कुरा पड़ी और चूतर उठाकर नीचे से हल्का धक्का लगाते हुए बोली- “क्यों, जीजू इत्ती जल्दी। मुझे तो लग रहा था कि… आपकी पिचकारी में बहुत रंग है और आप खूब देर तक… लगता है सारा रंग आपने दीदी की नन्द के साथ…”

जीजू- “अच्छा साली, अभी बताता हूं, अभी दिखता हूं अपनी पिचकारी की ताकत? तेरी फुद्दी को चोद-चोदकर भोंसड़ा बनाता हूं…” कहकर उन्होंने दोनों चूचियों को पकड़कर पूरी ताकत से धक्का मारा कि मेरी चूत अन्दर तक हिल गई। कभी वो मेरी दोनों चूचियों को कसकर रगड़ते, कभी उनका एक हाथ मेरी क्लिट को छेड़ता।

मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरा दर्द मस्ती में बदल गया और मैं भी धीरे-धीरे, नीचे से चूतर हिलाकर जीजू का साथ देने लगी। जैसे ही जीजू को यह अन्दाज लगा उन्होंने चुदाई का टेम्पो बढ़ा दिया। अब उनका लण्ड करीब-करीब पूरा बाहर निकालते और फिर वह उसे अन्दर पेल देते। जब वह चूत को फैलाते, रगड़ते हुए अन्दर घुसता।

पहली बार मेरी चूत लण्ड का मजा ले रही थी। दर्द तो हो रहा था पर मजा भी इत्ता आ रह था कि… बस मन कर रहा था जीजू ऐसे ही चोदते रहें।

जब मैंने नीचे झांका तो वहां तो… मिश्रा भाभी ने दीदी का साया उठा दिया था और वह अपनी चूत दीदी की चूत पर घिस रहीं थीं। पीछे से दूबे भाभी रंग लगाकर दीदी के मम्मे ऐसे मसल रही थीं… कि जीजू भी उत्ते जोर से मेरे मम्मे नहीं मसल रहे थे।

पर यह देखकर जीजू को भी जोश आ गया और वह खूब कस के मेरी चूचियों कि रगड़ाई करने लगे। उनका लण्ड अब धक्के मारता तो वह मेरी क्लिट भी रगड़ता और… मैं तो कई बार…

पर काफी देर की चुदाई के बाद जीजा की पिचकारी ने रंग डाला। उनके सफेद रंग ने मेरी काम कटोरी भर दी बल्की रंग बहकर मेरी जाघों पर भी बह रहा था। कुछ देर बाद मैं उठी और अपने कपड़े पहने। पर तब तक सीढ़ी पर मुझे भाभी लोगों की आने की आवाज सुनाई पड़ी।

मैं तो बचकर नीचे उतर आई पर, बेचारे जीजू पकड़े गये।
अब तो जीजू के साथ कपड़ा फाड़ होली हीं होगी....
 

motaalund

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होली के मौके पे सोनिया की एक कविता*



जब सरसती है चूत शर्माकर,

पनीली रसीली भरमाई सी,

चुदास चुलबुली हरजाई सी,

सिसकती सिसियाती सरसाई सी,

महकती महकाती फूलों के उपवन सी,

तड़पती पिचकारी के लिए, लौड़े सी,

तरसती गाढ़ी मलाई के लिए, भांग मिली सी।





मन करता है कोई आकर भींच ले,

भर के बाँहों में सींच दे,

मुह को मुखरस से,

चूत को लण्डरस से,

मसलकर चूचियां चिंचोड़ दे,

पूरी देह बुरी तरह निचोड़ दे,





चढ़ के बदन पर रौंद दे बेदर्द कोई,

एक उतरे तो दूजा चढ़े - जैसे बारात कोई,

फगुनाहट आँखों में - नींद खोई,

बदन में दर्द, रग-रग में पीड़ा पोई,




टपकती चूत- बिन मौसम बरसात,

रिसती रस बूँद - मानो चूत रोई।

कोई मर्द आये ले पिचकारी लौड़े की,

मेरे हर छेद में भर दे दवा असरदार लौड़े की,

गला तर हो जाए, पिला दे मुँह से लौड़े की,

गाण्ड करे तोबा, जो पड़े चोट लौड़े की,




जब लगी हो लाइन - हर साइज हर रंग के लौड़े हों,

दीदी - होली तभी होती है,

गाढ़े सफेद वीर्य की छूटती धारों से सनी चूचियां हों,


झांटें हों उलझी सी लौड़े के संग, तभी होली होती है।

* (अभी जैसे इस फोरम में आरूषी जी की कविताओं ने धूम मचा रखी है,

पिछले फोरम में सोनिया जी भी कहानियों के साथ अपनी कविता पेश करती थी और मेरी इस होली की कहानी के साथ उन्होंने होली के मौसम में ये कविता पोस्ट की थी}
ये संग्रह दुबारा पढ़ कर...
पुराने फोरम की कशिश दोबारा उठ गई...
 

motaalund

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रंग प्रसंग -होली देवर भाभी की

आरुषी जी की कविता के संग

देवर भाभी ऐसे रंगीले रिश्ते कम ही होते हैं और उस पर अगर आरूषि जी के शब्दों की फुहार पड़ जाए

इस रंग प्रसंग के कुछ आखिरी प्रसंग - आरुषी जी के संग



देवर जी ऐसे क्यों रोज़ मुझे ताकते हो
हर रात मेरे कमरे में क्यों झाँकते हो

आफताब से बढ़कर है तुम्हारी सूरत
लगता है तुम कोई अजंता की मूरत


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बातो में तुमसे मन नहीं जीत सकती
लेकिन करो ना तुम मुझसे ऐसी मस्ती


देखा है मैंने तुमको ऊंगली करते
मेरे नाम लेके रातो को झरते


नहीं तुम्हारे भैया से अब कोई आस
भुजा नहीं पाते अब वो मेरी प्यास


तेरे महकते बदन को बाहों में भर लूँ
आओ तुम्हें झुका कर में प्यार कर लूं


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बात तो करते हो बहुत भारी भारी
लगती नहीं मुझे ठीक नीयत तुम्हारी


है तेरी आँखों का सुरूर इतना

बता मेरे दिल का कसूर कितना

कुसूर इतना है कि तू मदहोश हो बैठा
जोश ही जोश में तू अपने होश खो बैठा

तेरे जिस्म का जिस को मिल जाए नजारा
होश में फिर वो कैसे रह पाए बेचारा

दिन रात कपड़ो में मेरे क्या ढूंढ़ते हो
बता जरा मेरी पैंटी को क्यों सुंघते हो


तुम्हारे बदन की उसमें खुशबू है आती
मेरी सांसो में वो हर रोज है महकाती

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सच्चा नहीं तेरा धोखा है प्यार
चढ़ा है तुझे सिर्फ वासना का बुखार


प्यास तेरी बड़ी है प्यास मेरी भी बड़ी
आ मेरे पहलू में दूर मुझसे क्यों खड़ी

नहीं चाहिए मुझे कोई झूठ वादे
खुल के बता क्या है तेरे इरादे


ओ मेरी प्रियतमा ओ मेरी सुहासिनी
चाटना चाहता हूं मैं तेरे बुर की चाशनी


उम्मीद के घोड़े तुम न सरपट भगाओ
जरा पेंट खोलो और लौड़ा दिखाओ


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देवर भाभी के रिश्ते पे ये लाइने आरुषि जी की है और अब होली देवर भाभी की

मोहे रंग दे से
:applause::applause:
 

motaalund

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दो भाभी

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तीन देवर

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सफ़ेद रंग वाली होली हुयी , जबरदस्त हुयी , लेकिन कहानी की मजबूरी उसे काल क्रमानुसार बढ़ना पड़ता है न , जैसे जैसे मैंने ससुराल में पहली पहली बार फागुन का रस लूटा , देवर ननदों के साथ

सब बताउंगी , कुछ भी सेंसर वेंसर नहीं , सच्ची , जो मैंने रगड़ाई की के साथ साथ , जो मेरी रगड़ाई मेरे देवरों ने की वो भी ,

जी , देवरों ने , एक साथ तीन तीन

लेकिन शुरू से , वरना मैं भूल जाती हूँ तो चलिए ,... शुरू करती हूँ , बात न किस्सा न कहानी , एकदम सच , देवर तीन , भाभी दो

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असल में गलती उन तीनो की नहीं थी , मैं ही कुछ ज्यादा मस्ती में थी , फगुआहट कुछ जोर से चढ़ी थी , दो दिन से ये नहीं थे , जेठानी और सास भी नहीं थीं और सिर्फ मैं और कम्मो

और मैंने खूब रगड़ाई की , हाँ उस समय अकेले थी मैंने , ..

अनुज ने जब दरवाजा खुलवाया तो मैं पहले तो , लेकिन जब उसके साथ बंटू और मंटू को देखा , एक पल के लिए तो मैं सहमी , वो तीन , कहीं आज मेरी कस के , ... और वो कम्मो भी न , अभी पंद्रह मिनट पहले चली गयी थी , मैंने रोका भी तो बोली बस आधे पौन घण्टे में आती हूँ ,

लेकिन मैं सम्हल गयी ,आखिर देवर हैं , फागुन है , और अनुज भी है , बहुत हुआ तो थोड़ा बहुत रंग , ...और वो भी अगर मैंने उकसाया तो

उकसाना उनके घर में घुसने के पहले ही शुरू कर दिया , दोनों को बंटू मंटू को जोर से हड़काया ,

फागुन में भी भूल गए , एक नयी नयी भाभी आयी हैं , ... अरे हर साल तो अपनी बहनों से होली खेलते ही हो , ...

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अनुज ने कुछ बहाना बनाने की कोशिश की , बंटू ने भी , कोचिंग , एक्जाम पर मंटू थोड़ा तेज था , बोला

" भाभी देखिये हम आ गए है , आप ही का दरवाजा बंद था , ... "


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" और तुम ने एक बार कहा और मैंने खोल दिया , ... है न , मैं उन भाभियों में नहीं हु जो देवर के लिए दरवाजा बंद रखती हैं , देखो झट से खोल दिया , ... "

मैं हँसते हुए बोली , ,
मैं सच में उन भाभियों में नहीं थी जो डबल मीनिंग डायलॉग में देवर से पीछे रह जाएँ ,

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और मंटू की देखा देखी अब बंटू भी , हिम्मत उसकी बढ़ गयी , हँसते हुए बोला ,

" भाभी आपने खोल दिया है तो देखिये हम बिना डाले जाएंगे नहीं , ... "

" अच्छा एक तो इतने दिन बाद दरसन दिया है , ऊपर से आते ही डालने डलवाने की बात करने लगे , ... वो तो अभी देखती हूँ , ... कौन डालता है कौन डलवाता है , ... "

मेरी निगाह मंटू के पैंट पर थी , तम्बू थोड़ा खड़ा था और जो दिख रहा था वो जबरदस्त था , ... मोटा भी कड़ा भी और मुझे वहां देखते हुए बंटू और मंटू ने देख लिया

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पर मेरे ऊपर कुछ फरक नहीं पड़ रहा था , मैं चिढ़ाते हुए बोली " क्या डालोगे , अरे पिचकारी में कुछ रंग वंग भी है किस सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गए हो , ... "
" अरे भाभी , आप ने अभी हमारी पिचकारी देखी कहाँ है , ... "

मंटू बोला ,

मैं स्टोर की ओर मुड़ रही थी , लेकिन रुक गयी , उसकी ओर आँख नचा के देखा और छेड़ा ,

" किस किस को दिखाया है , मेरी कोई ननद बची है की नहींऔर , और सिर्फ दिखाया है की पकड़ाया भी है , ... "

और बजाय स्टोर के घर के बाहरी दरवाजे की ओर मुड़ी , फिर अनुज से बोला ,

"अभी घर में कोई है नहीं तुम्हारी बुआ बड़ी भाभी शाम को आएँगी , और तेरे भइया तो दो दिन से , ... ज़रा बाहर का दरवाजा चेक कर लूँ , अभी कम्मो भी नहीं है ,... "

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असल में वहीँ पर मैंने कुछ रंग गुलाल रख रखा था , और वो पुड़िया उठा के लौटते हुए सीधे बंटू और मंटू के मांग में , एकदम सिन्दूर की तरह ,
मौका और दस्तूर दोनों है.... देवरों और भाभियों के लिए...
 

motaalund

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चिकना देवर


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और वो पुड़िया उठा के लौटते हुए सीधे बंटू और मंटू के मांग में , एकदम सिन्दूर की तरह , जब तक वो दोनों सम्हले , मैं स्टोर के दरवाजे पे खड़ी थी , और वहीँ से दोनों को ललचाते हुए चिढ़ा रही थी ,
" अरे तुम दोनों का सिन्दूर दान तो हो गया , अब नौ महीने बाद सोहर होगा , पक्का ,... पेट फूलना शुरू हुआ है की नहीं अभी "
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" अरे भाभी यहाँ तो आइये न , आप देखिये अभी से ,... " अनुज बोला

" मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ , अरे कुछ खाने पीने को ले आऊं , ... वरना कहोगे की तेरी बुआ और बड़की भाभी नहीं है तो भाभी ने भूखा भूखा रखा " स्टोर से ही मैं बोली

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मैंने सोच लिया था उन तीनो को कैसे , पहले तो भांग वाली गुझिया , फिर ठंडाई मैंने बनायीं वही कम्मो स्पेशल डबल डोज वाली

लेकिन साथ में डबल मीनिंग डायलॉग , होली की छेड़ छाड़ , स्टोर से भी मेरी जारी थी


असल में मैं आज कुछ ज्यादा ही मस्ती में थी ,



और उस की जिम्मेदार मैं खुद थी , ..

मैं और थोड़ी बहुत कम्मोअसल में पिछले डेढ़ दो घण्टे से मैं और कम्मो कुछ ज्यादा ही मस्ती कर रहे थे , कम्मो अपने ' देवरों ' के किस्से सुना रही थी ( उसका मरद पंजाब कमाने गया था , और साल में एक दो बार ही आता था , हफ्ते दो हफ्ते के लिए और कम्मो ने मुझे अपना राज बताया था , ' आखिर देवर और नन्दोई काहें के लिए होते हैं '


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दो चार दिन भी उसका नागा नहीं होता था ) ,

और साथ में टीवी पे अच्छी वाली पिक्चर , हम लोग एक सी ऍफ़ एन एम् ( क्लॉथ्ड फीमेल नेकेड मेल ) वाली पिक्चर देख रहे थे लड़के यंग टीनेजर्स बेयरली 18 टाइप और महिलायें , एक दो एम् आई एल ऍफ़ टाइप ,

पहले तो जब लड़के डांस कर रहे थे तो कम्मो बोली , अरे इसमें कौन बात है लेकिन जब कपडे उतरने शुरू हुए और अंत में सिर्फ छोटी सी चड्ढी में

मैं और कम्मो भी फिल्म वाली औरतों की तरह जोर जोर से अब सीटी बजा रहे ताली पीट रहे थे
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" खोल साले खोल , ... " कम्मो भी जोर जोर से चड्ढी भी सरक गयी लेकिन अब उस ने हाथ से छिपा लिया और फिल्म में हल्ला जोर जोर से

और अब मैं भी कम्मो के साथ सीटी बजा रही थी , चिल्ला रही थी ,

फिल्म में दो लड़कियां गयी स्टेज पर , एक ने लड़के को पीछे से पकड़ा और दूसरे ने उसका हाथ हटा दिया

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जोर की चीखें निकली , और हम दोनों भी , औजार जबरदस्त था लेकिन थोड़ा सोया थोड़ा जागा ,

कम्मो ने मेरी ओर देखा तो मैंने उसे इशारा किया , और फिल्म में हैण्ड जॉब , सब लड़कियां औरतें बारी बारी और जो लड़कियां थोड़ी बहुत हिचक रही थीं , डांस करने वाला लड़का उसी के पीछे , ... और बाकी लड़कियां भी पकड़ के जबरदस्ती उस पकड़वा रही थीं , चुसवा रही थीं
और हम दोनों भी खूब जोर जोर से ,

कम्मो , हँसते हँसते बोली , ये लड़के सब हम लोगों के देवर की तरह लग रहे हैं , ...

एक दम मैंने हामी भरी ,

मिल जाए तो मैं बिना चोदे छोडूंगी नहीं , कम्मो उठते होये बोली और स्टोर से गुझिया का डिब्बा निकाल के ले आयी

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गुझिया खाते मैं बोली ,

" अरे होली में देवर को बिना चोदे छोड़ना , अरे पाप लगता है , होलिका का शाप लग जाएगा , अगर देवर बच के निकल गया। "

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" एकदम जरा उधर देखो , ... "

एक लड़के को तीन औरतों ने पकड़ रखा था , वो छपटटा रहा था , लेकिन दो ने उसके दोनों हाथ कस के दबोच रखा था , और तीसरी चढ़ गयी उसके ऊपर , खुद अपने हाथ से पकड़ कर सेंटर किया और क्या कस के धक्का मारा

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एक बार में आधा से ज्यादा अंदर , और बाकी की लड़कियों ने खूब जोर से सीटी मारी ,

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पर उन स ज्यादा जोर से मेरी और कम्मो की सीटी थी।

और वो क्या हचक हचक एक चोद रही थी , लड़का जितना छटपटा रहा था उतनी ही जोर से वो न सिर्फ चोद रही थी , कभी झुक के अपनी बड़ी बड़ी चूँची उसके छाती पर रगड़ रही थी , कचकचा के गाल काट रही थीं

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" अरे स्साला कोई बहनचोद चिकना देवर पकड़ में आ जाता न पक्का , बिना चोदे नहीं छोड़ती , ... " बोल कम्मो रही थी थी लेकिन मन मेरा भी ,

और तभी मेरा ध्यान गुझिया के डिब्बे की ओर पड़ा और मैं जोर से चौंकी ,

ये तो डबल भांग वाली गुझिया का डिब्बा था ,

मैं दो खा चुकी थी , मैं जब कम्मो से बोली तो उसने चुप करा दिया ,

" अरे सामने देखो एक और पकड़ा गया , .. अरे जल्दी में डिब्बा देखने का ध्यान नहीं रहा , फिर भांग चढ़ भी जायेगी तो क्या हुआ हम ही तुम तो हैं , ... "

मेरा ध्यान फिर सामने ये लड़का तो एकदम अनुज टाइप खूब चिकना और एक औरत अब उसके ऊपर चढ़ गयी थी , और साथ में एक और ,... एक चोद रही थी तो दूसरी उसके ऊपर चढ़ कर अपनी चुसवा रही थी ,

मेरे मुंह से भी निकल गया , सच यार आज कोई देवर पकड़ में आ जाता , तो हम दोनों मिल के इस फिल्म वालों से भी दो हाथ ,...

एकदम कम्मो बोली लेकिन उसे आधे घण्टे के लिए कुछ काम , हम लोगों के घर से सटे ही कुछ कोठरिया थी , ... बस उसी में

वो गयी और मैंने वो भांग वाली गुझिया , स्टोर में रखी , आधी बची थी वो मैं भी गपक गयी।

कुल ढाई गुझिया , ... मैं जानती थी आधे घंटे के अंदर शायद असर होगा , ...

मैंने सोचा होगा तो होगा , सो जाउंगी , कोई आनेवाला तो है नहीं , फिर कम्मो है न सम्हाल लेगी वो

पर आधे घण्टे के पहले ही अनुज और उसके दोनों दोस्त आ गए।

भांग , कम्मो के साथ मस्ती वाली बातें और वो फिल्म , जबरदस्त असर हो रहा था मेरे ऊपर। असल में भांग के साथ दो चक्कर है उसका असर आधे पौन घंटे में पूरी तरह चढ़ता है , और जो बात आप सोचो वही बात बार बार मन में घूमती है , उसका असर दिमाग पर तन पर सब जगह होता है , बस वही हो रहा था मेरे साथ।


उस फिल्म में जो औरतें टीनेजर्स लड़कों के साथ कर रही थीं , जबरदस्त कपडे उतारना , पकड़ के मुठियाना और सबसे ज्यादा बार बार दिमाग में घूम रहा था , कैसे पकड़ के उन सबने जबरदस्ती चोद दिया , वो सब चिंचिया रहे थे , ...

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और ऊपर से कम्मो की बातें , ... स्साला कउनो चिक्क्न देवर आज भेंटाय जाय तो बिन चोदे ना छोड़ब ,...

अनजाने में मेरी आँखों के सामने मंटू का खूंटा नजर आ रहा था , एक तो दोनों बारमूडा पहने थे वो कर बंटू , और बंटू का भी , हाथ से स्साला छिपाने की कोशिश कर रहा था पर इश्क , मुश्क और खड़ा लंड कहीं छिपाने से छिपता है , और कैसे ललचायी नजर से वो सब मेरे उभार देख रहे थे ,
होली तो मस्ती के लिए हीं है..
भाभी मस्त तो होली मस्त....
 

motaalund

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बंटू और मंटू


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अनजाने में मेरी आँखों के सामने मंटू का खूंटा नजर आ रहा था ,

एक तो दोनों बारमूडा पहने थे वो कर बंटू , और बंटू का भी , हाथ से स्साला छिपाने की कोशिश कर रहा था



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पर इश्क , मुश्क और खड़ा लंड कहीं छिपाने से छिपता है , और कैसे ललचायी नजर से वो सब मेरे उभार देख रहे थे ,

और मेरा हाथ खुद अपने उभारों पर टहल रहा था , हलके हलके छू रहा था , सहला रहा था , मैंने कस के एक बार दबा दिया ,


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जैसे वो लड़के दबा रहे हों , ... मैंने अपनी ऊँगली से निप्स खुद दो चार बार फ्लिक किये और वो एकदम टनाटन , ... एक तो आज मैंने ब्रा भी नहीं पहनी थी , घर में कोई था भी नहीं , ... बस थोड़ी मस्ती , और ब्लाउज भी ऐसा दो साल पहले भी मुझे टाइट होता था , ... लो कट था , लाल रंग का ,

और साडी भी एकदम ट्रांसपैरेंट वाली , ... झलकौवा , ... मुझे क्या मालूम था की ये सब आ जाएंगे , अनुज ने कोई फोन वोन भी नहीं किया था वरना मैं , ...

मैं ठंडाई बना रही थी लेकिन मेरा एक हाथ बार खुद मेरे उभारों पर , और अब मैं चुटकी में लेकर निप्स को बार बार , ...

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और लग रहा था की वो फिल्म वाले , .. और उन लड़कों की जगह बंटू और मंटू नजर आ रहे थे , ...

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लेकिन बार बार मैं ये भी सोच रही थी जैसे हम लोगों ने अनुज को टुन्न करके , भांग वाली गुझिया और ठण्डाई , ... बस वही ट्रिक , ..और एक बार वो तीनों टुन्न हो हाय तो मैं अकेले ही झेल लुंगी , ...

और जैसे अनुज की ज्यादा हिम्मत नहीं पड़ती वैसे ही ये भी होंगे ,...

उन सबके पास जाने के पहले मैंने एक जग में खूब गाढ़ा लाल रंग भी भर लिया , होली की शुरुआत मैंने समझ लिया था भाभी को ही करनी पड़ती है , और ढेर सारे रंग की पुड़िया , पेण्ट अपने पेटीकोट में खोंस ली थी ,



हो जाय होली , साले देवरों की ले लुंगी आज , ...


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और मैंने एक बार आँचल ठीक कर लिया , मतलब बस एक पतले छल्ले की तरह दोनों उभारों के बीच में और पीछे , पेटी कोट में खोंस लिया जिससे ब्लाउज टाइट रहे और आँचल खुल के नीचे न गिरे , ... पर इसका असर ये हुआ , की मेरे दोनों चोली फाड़ते उभार अब एकदम साफ़ दिख रहे थे और उभार ही नहीं निप्स भी , ...

मैंने बस वही अनुज के साथ की हुयी ट्रिक ट्राई की ,

ट्रे झुक के उन तीनो के सामने रखा और एक गुझिया बंटू को खिलाने की कोशिश करते बोली

" देखो भाभी के रहते हुए देवर अपने हाथ का इस्तेमाल करें , ... आज तो तुम सबको मेरे हाथ से खाना होगा , ... " पर काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है , और मेरी ट्रिक उन सबों को पता चल गयी थीं ,

बंटू बोला ,

" भाभी आप एकदम सही कहती हैं , लेकिन तीन तीन देवरों के सामने रहते हुए भाभी को अपने हाथ का इस्तेमाल करना पड़े , ये भी तो हम देवरों के लिए शर्म की बात है , हम लोग खाएंगे , ... लेकिन पहले आप ,...

मैंने देखा नहीं पीछे से मंटू मेरे पीछे पहुँच गया और मेरी पतली कमर कस के उसने दबोच लिया और एक हाथ से मेरे गाल को दबा दिया , मेरा मुंह खुल गया , और गुझिया मेरे मुंह में , ...
लेकिन मैं इतनी जल्दी हार नहीं मानने वाली थी , आधी तो मेरे मुंह के अंदर चला गया पर बाकी मैंने अपने होंठ से ही बंटू के ,

भाभी के होंठों से खाने का स्वाद कौन देवर मना करता , ... पर आधी आधी में , भी डेढ़ गुझिया तो मेरे पेट में चली ही गयी , और यही हाल ठंडाई का हुआ , ...

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मंटू मुझे पीछे से कस के दबोचे था और अब उसका खूंटा एकदम खड़ा था , ... उन फिल्म वाले लड़कों से २२ नहीं तो २० रहा ही होगा , ...


और मारे शरारत के मैंने अपने बड़े बड़े चूतड़ कस के उस खड़े खूंटे पर रगड़ रही थी ,

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मंटू ने पेटीकोट में फंसे मेरे आँचल को निकाल दिया और एक झटके में साडी

अनुज ने जग में रखे हुए लाल रंग को देख लिया था और उसने बंटू को इशारा किया , ... बस

मंटू तो कस के मुझे पकडे ही था , बंटू खड़ा हुआ आराम से मेरी एकदम कसी चिपकी चोली को अंगूठे एक ऊँगली से जबरन थोड़ा सा फैलाया , मेरा पूरा क्लीवेज दिख रहा था ,

बस पूरे जग का लाल रंग मेरे जोबन पर धीरे धीरे ,

यहाँ नहीं , आँगन में चलो मैं कहती रही पर वो सब पूरे जग का रंग मेरे ब्लाउज के अंदर डाल के माने

और मैं वो तीनो उसके बाद आँगन में

मैंने वही बात कही जो उस दिन अनुज कह रहा था

" भाभी आप तीन और मैं अकेले "


और उन तीनों ने वही जवाब दिया जो उस दिन मैंने दिया था ,

" घबड़ाइये मत भाभी , हम लोग आप को बाँट लेंगे एक के पास एक ही हिस्सा आएगा , "

और मेरे गाल मेरे देवर के अनुज के हिस्से में

और बंटू और मंटू ने मेरे दोनों उभार बाँट लिए , पहले तो थोड़ी देर दोनों थोड़ा झिझकते रहे चोली के ऊपर से , चोली के ऊपर के हिस्से में , बहुत हुआ तो जरा सा क्लीवेज में हलका सा ,

लेकिन उन दोनों से ज्यादा मैं गरमा रही थी और मैं जानती थी अपने ससुराल वाले लड़कों को कैसे गरम किया जाता है ,

उनकी बहनों का नाम लेकर , और मैंने बंटू और मंटू दोनों की बहनों का नाम ले ले कर , ...



मैं तुमसे पूछूं , हे मंटू भैया , हे बंटू भैया , तोहरी बहिनी क कारोबार कैसे चले , उनके रातों क रोजगार कैसे चले

अरे तोहरी बेबी क जोबना का ब्यौपार कैसे चले अरे तोहरी मीता क जोबना क रोजगार कैसे चले ,
,,,,

अरे तोहरी बहिना ने एक किया दो किया , साढ़े तीन किया , हिन्दू मुसलमान किया , कोरी चमार


नौ सौ भंडुए कालीन गंज के ( हमारी ससुराल का रेड लाइट एरिया )



अच्छा इसके पहले होली में किसका दबाते थे , खाली अपनी अपनी बहनों का या एक दूसरे की बहनों का भी चोली में हाथ डाल डाल के , तभी तो मेरी ननदों की इतनी जबरदस्त दबवाने मिजवाने की प्रैक्टिस है ,

बंटू भैया तेरी दोनों के उभार तो इसलिए मस्त आये हैं न बचपन से अपनी बहनों का खूब दबाते थे इसलिए इन सबों का उभार , हाईस्कूल में ही , सिर्फ कपडे के ऊपर से ही दबाते थे या अंदर से भी , ...

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बस इतना कहना काफी था , ऊपर से चोली के अंदर बंटू ने , नीचे से चोली के अंदर मंटू ने हाथ डाल दिया , ...

मैं फिर चिल्लाई तुम दोनों एक साथ ,

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तो दोनों ने साथ साथ जवाब दिया ,

" नहीं भाभी , दाएं वाला मेरा है देखिये मैं सिर्फ बैंगनी रंग लगा रहा हूँ आप जब नहाइयेगा तो देख लीजियेगा। " बंटू बोला।

" अरे नहाने का इन्तजार करने की क्या जरूरत , भौजी को अबहिंये खोल के दिखा देते हैं , मेरा वाला पक्का नीला है , मंटू बोला और बंटू को उकसाया , खोल दे न , ...

जब तक मैं मना करती चोली का नीचे वाला बटन , बंटू ने खोल दिया और ऊपर वाला मंटू ने ,
एक बटन पहले ही दोनों के हाथ डालने से टूट चुका था , कुल चार बटनों में से सिर्फ एक बचा था , इसलिए चोली जोबन पर से अलग तो नहीं हुयी लेकिन अब मेरे दोनों देवर के हाथ खुल के मेरे उभार पे ,

लगा रहा था सैकड़ों बिच्छू मेरे जोबन पर डोल रहे हैं , एक तो भांग का नशा ऊपर से दोनों जवान होते लड़कों का हाथ सीधे उभारों पर , दोनों बदमाश

कभी बस हलके हलके सहलाते , बस जैसे छू रहे हों , हवा की तरह सहला रहे हों , मेरे उभार पथरा रहे थे , आँखे मुंदी पड़ रही थी , और बंटू सहलाते सहलाते जब मेरे निप्स को को फ्लिक करता तो बस , ... जैसे जान नहीं निकली ,

मन कर रहा था , ये स्साले चिकने , कस के क्यों नहीं दबाते , जोर से क्यों नहीं मसलते , मस्ती से क्यों नहीं रगड़ते ,

और पहले मंटू ने फिर बंटू ने जैसे मेरे मन की बात सुन ली और अब दोनों एक साथ कस कस के , खूब जोर से रगड़ रहे थे मसल रहे थे ,



कभी कभी दर्द भी हो रहा था मीठा मीठा , कभी कभी अच्छा भी लग रहा था , ... ऊपर से तो मैं बोल रही थी , छोड़ न , छोड़ बहुत हो गया , ... पर मन कर रहा था , और कस के , .. ओह्ह , ...


दोनों के एक एक हाथ खाली थे , असल में खाली नहीं थे , दोनों ने कस के मुझे उन्ही हाथों से दबोच भी रखा था और मेरे चिकने पेट पर रंग लगा रहे थे , मुझे लग रहा था पेट से सरक कर और नीचे , और नीचे ,

लेकिन दोनों ऊपर की मंजिल पर ही बिजी थे , और उन दोनों की जोबन रगड़ाई से मेरी भी हालत खराब थी , मैं हिल डुल नहीं सकती थी , पर हाथ तो मेरे दोनों खाली ही थे ,

….
मैं सोच रही की बंटू मंटू को जरा जवाब दूँ , हाथ तो मेरे दोनों खाली ही थे और सबसे बड़ी बात ये थी की अनुज थोड़ी देर के लिए कहीं चला गया था , उसका कोई फोन आ गया था ,



लेकिन जिस तरह बंटू मंटू के हाथ मेरे उभारो पर सरक रहे थे , सहला रहे थे , छू रहे थे , . एकदम मस्ती छ रही थी , मैं समझ सकती थी ये सब कितना ललचा रहे होंगे , जैसे कोई बच्चा कैंडी की दूकान के बाहर खड़े होकर ललचाता रहे , ... कोई हलवाई की दुकान में रखे मोतीचूर के लड्डू देखता रहे और सोचता रहे ये तो उसे मिलना नहीं ,



और अचानक उसे मिल जाए , ...



दोनों एक साथ , कभी कस के दबाते मसलते , कभी साथ साथ मेरा निपल्स फ्लिक करते , मैं गीली हो रही थी लेकिन हालत उन दोनों लड़कों की कम ख़राब नहीं थी , मैं जान बूझ कर अपने हिप्स कस कस के रगड़ रही थी , मंटू ने मुझे कस के पकड़ रखा था , और उस का खूंटा सीधे मेरे पेटीकोट पर , मेरे हिप्स के बीच , ... वो तो उन के आते ही मैंने समझ लिया थी की दोनों ने बारमूडा के नीचे कुछ नहीं पहन रखा है , बस एक स्लीवलेस टी शर्ट , बनाययिन ऐसी और बारमूडा ,.. लेकिन आज मैंने भी कौन सी ब्रा और पैंटी पहन रखी थी , तो सीधे जैसे उसका बरमूडा फाड़कर मेरे पेटीकोट में सेंध लगाकर , मेरे देवर का खूंटा ,...

बस वहीँ मैंने घात लगायी ,

और इसी लिए देवर भाभी की होली में हरदम जीत भाभी की होती है , ... मर्द के शरीर के एक एक हिस्से की हालचाल का अंदाजा भाभियों को रहता है और देवर तो बस भीगी चोली में झलकते जोबन को द्केहकर ललचाते ही रहते हैं और भाभी थोड़ी दिलदार हुयी तो चोली के अंदर हाथ डाल लिया ,



सीधे ' वहीँ ' और मुट्ठी में पकड़ लिया , हाथ तो मेरे खाली थे ही , खूंटा इतने जोर से मेरे पिछवाड़े गाड़ रहा था वो , उसकी मोटाई लम्बाई और कहाँ है सब अंदाजा था मुझे
एक भाभी होली का रंग फ़ेंक कर उस तरफ भागती थी... जहाँ कोई नहीं जाता...
फिर तो होली हो जाती थी...
 
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