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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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देवर भाभी की होली

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देवर भाभी की होली में हरदम जीत भाभी की होती है , ... मर्द के शरीर के एक एक हिस्से की हालचाल का अंदाजा भाभियों को रहता है और देवर तो बस भीगी चोली में झलकते जोबन को देखकर ललचाते ही रहते हैं

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और भाभी थोड़ी दिलदार हुयी तो चोली के अंदर हाथ डाल लिया ,

मैंने सीधे ' वहीँ ' और मुट्ठी में पकड़ लिया , हाथ तो मेरे खाली थे ही , खूंटा इतने जोर से मेरे पिछवाड़े गाड़ रहा था वो , उसकी मोटाई लम्बाई और कहाँ है सब अंदाजा था मुझे पर मंटू को अंदाजा नहीं था की मैं ये भी कर सकती हूँ ,

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और चौंक कर वो एकदम पीछे , ... पर मैं छोड़ने वाली नहीं थी , साथ साथ मैंने गुदगुदी भी लगानी शुरू की , बस वो छुड़ाने के लिए पीछे हटा ,

बचा बंटू ,

तो उसके खुले पैरों पर मैंने एक पैर को मोड़ कर पीछे क्र सुरसुरी करने लगी , बस वो भी , ...

और मैंने जोर का झटका आगे की और दिया , देवर तो दोनों दूर हो गए पर मेरे स्लीवलेस बैकलेस चोली की रही सही एक बटन भी खेत रही ,

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पर मुझे कुछ फरक नहीं पड़ रहा था ,

चोली एकदम खुली थी पर देह से अलग नहीं हुयी थी देह में अटकी थीं हाँ रंगे पुते उभार अब एकदम साफ़ साफ दिख रहे थे

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आंगन के एक कोने में खड़ी मैं बस हंस रही थी , खिलखिला रही थी भांग के नशे का यही असर होता है , जो करो करते रहे बस उसी में मजा आता है ,

डेढ़ डबल भांग वाली गुझिया तो कम्मो ने और डेढ़ इन मेरे देवरों ने , ऊपर से पलट कर जबरन वो जो जबरदस्त भांग वाली ठंडाई मैंने बनायी थी , देवरों ने आधी से ज्यादा मुझे ही पिला दी थी , अच्छी तरह से मेरे ऊपर भांग चढ़ गयी थी ,
लेकिन थोड़ी बहुत तो मैंने इन दोनों के मुंह में भांग वाली गुझिया ठेली ही थी , ...

और वो दोनों भी आंगन के दुसरे कोने में खड़े होकर हंस रहे थे , जोर जोर से खिलखिला रहे थे ,

एकदम मेरी तरह ,
मैंने मंटू को चिढ़ाना शुरू किया , ... और वो दोनों भी मेरी पूरी खुली चोली से झांकते रंगे पुते उभारों की और इशारा कर के चिढ़ा रहे थे

भाभी देखिये , जिस पर लाल रंग लगा है वो बंटू का और जिसपर बैंगनी है वो मेरा , ... एकदम बाँट कर ,...

लेकिन मैं रीतू भाभी की ननद , अब उन्ही की लेवल पर आ गयी

" क्या लाल , बैगनी कर रहे हो , ...मैं सही कह रही थी , सफ़ेद रंग तो सब गाढ़ा वाला अपनी बहिनों के साथ खर्च कर के चले आये , एक बूँद भी मेरी नंदों ने नहीं छोड़ा न , ... सब छिनारों ने निचोड़ लिया ,... "

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जवाब मंटू ने कोई रंग निकाल के अपनी हथेली पर लगाकर , ...लेकिन सूखा रंग बिना पानी के कैसे ,... मुझे और चिढ़ाने का बहाना मिल गया , ...

" अरे तुम लोगों की बहनों ने कुछ सिखाया नहीं , सूखे रगड़ रहे हो ,... थोड़ा तो गीला कर लो , ... कुछ नहीं हो तो तुम्हारे ही ' बम्बे ' से रगड़ रगड़ के मैं पानी निकाल दूँ , ..अरे नल लगा तो है ,... " मैंने आँगन के कोने में लगे एक नल की ओर इशारा किया।

वो उधर झुका हुआ था और मुझे मौका मिल गया ,

मैंने अपने कोंछे में से पुड़िया निकाली , सबसे तेज रंग , कड़ाही के पेंदे की कालिख और साथ में उसी पुड़िया में एक छोटी सी शीशी में से कडुआ तेल , अब ये कालिख होली तक तो छूटने वाली नहीं थी ,

बस दोनों हाथों में कालिख अच्छी तरह रगड़ के , ... मैं सीधे मंटू के पीछे , और जब तक वो सम्हले सम्हले सीधे उसके दोनों चिक्कन गाल मेरे हाथों के बीच ,

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और साथ में वार्निंग , "

" हे आँख मत खोलना , अगर आँख में चला गया न तो जल्दी निकलेगा नहीं , और बहुत जोर से लगेगा मिर्चे से भी तेज , ... आँख बंद ,... " और मेरे दोनों हाथ पहले आँख के ऊपर से ही

बस पहली पारी मेरे हाथ में ,

मारे घबड़ाहट के उसने कस के आँखे बंद की और दोनों हाथों से मेरे हाथ छुड़ाने की कोशिश की ,

बस मैं यही चाहती थी , मेरे ब्लाउज के सारे बटन तोड़े थे न इन दोनों ने , अब बताती हूँ , ...

वो एक स्लीवलेस टी शर्ट बिना बांह की बनियाइन की तरह पहन के आया था , बस मैंने दोनों हाथों से एक झटके से उसे पकड़ के ,...

और वो आँगन दूसरे कोने में , देवर पूरा टॉपलेस ,अब मेरे दोनों हाथ सीधे उसके सीने पर , मेल टिट्स पर ,

और साथ साथ मैंने अपनी दोनों टाँगे उसकी टांगों के बीच में घुसा के फंसा दी , अब न वो पीछे मुड़ सकता था न छूट सकता था , दोनों हाथों से कस के मैंने उसे जकड़ रखा ही था

हाँ उस का चेहरा छूट गया था पर मैंने कस के बोला ,

" हे आंख मत खोलना पांच मिनट तक , मिरचाहवा रंग है आँख में अगर चला गया ,... "

उस के टिट्स जम के रगड़ते मैंने चिढ़ाया ,

" हे तुम दोनों मिल के मुझे टॉपलेस कर रहे थे न , सिर्फ खोल लेने से थोड़ी होता है , ऐसे करते हैं टॉपलेस जैसे मैंने अभी तुझे किया है और कहो तो इसे भी खिंच के अलग कर दूँ , ... "





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पीछे से मैं अपना अगवाड़ा उसके पिछवाड़े पर रगड़ते उसे छेड़ रही थी


मेरे दोनों निपल एकदम खड़े कड़े देवर की अब एकदम खुली पीठ पर बरछी की नोक की तरह चुभ रहे


और मैंने कस के अपने उभार उसकी पीठ पर रगड़ पर भी रही थी , पर उसके टॉपलेस होने का पूरा फायदा मिला मेरे दोनों हाथों को , एक हाथ ने तो कस के उसके टिट्स को पकड़ रखा था , क्या कोई नयी लौंडिया के निपल को रगड़ता होगा जिस तरह मैं कचकचा के रंगड़ रही थी , ... और साथ में उसकी सगी बहन का नाम लेकर , वो भी हाईस्कूल में पढ़ती थी , ...


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" हे उसके निप्प्स भी तो खूब मस्त हैं , खूब दबाते होंगे न , कभी मुंह में लेकर चूसा है की नहीं , ... "

और दूसरा हाथ नीचे की ओर सरकता हुआ , उसके पेट पर कालिख रगड़ता ,

और मेरे हाथ कोई मेरे देवर की तरह शरीफ तो थे नहीं , की सिर्फ ऊपर की मंजिल पर सारी ताकत खर्च कर दें मैंने बराबर बराबर बाँट लिया , एक हाथ ऊपर की मंजिल के लिए और दूसरा नीचे के लिए ,
और वो भी समझ रहा था , की मेरा दूसरा हाथ किधर जा रहा है , पेट से सरकता हुआ , ... बस जहाँ बरमूडा शुरू हो रहा था ,...

और मैंने बारमूडा नीचे सरकना शुरू कर दिया ,

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अब उसकी हालत खराब , हाथ पैर उसने पटकने शुरू कर दिए , छुड़ाने की लाख कोशिश पर आज उसने अच्छे घर दावत दी थी , बनारस वाली नयकी भौजी के पास , ... और मैं भी एकदम भांग के नशे में चूर ,... मुझे सिर्फ एक चीज दिख रही थी ," भाभी , छोड़िये न , ... प्लीज ,... "

उसने गुहार लगायी और मैंने बारमूडा एक इंच और नीचे सरकाते हुए जोबन कस के उसके पीठ पर रगड़ते , जोर से चिढ़ाया

" क्यों कोई ख़ास चीज छुपाया है उसके अंदर ,... फॉर सिस्टर्स ओनली है क्या ,.... बस ज़रा सा , अच्छा खाली दिखा दो ,... "

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मेरे एक हाथ ने उसे कस के दबोच रखा था पर असली पकड़ थी मेरी दोनों टांगों की जिन्होंने उसकी दोनों टांगों को अच्छी तरह फंसा रखा था और मैंने अपनी दोनों टांगों को फैला के उसकी टांगो को भी ,... छूटने का सवाल ही नहीं था , और मैं अपने देवर को छोड़ने वाली भी नहीं थी , अभी तो होली का मजा आना शुरू हुआ था।

उसने अपने साथी को आवाज लगाई , ... बंटू ने मुझे पीछे से दबोच लिया लेकिन बजाय मेरे हाथ अलग करने के , उसके दोनों हाथ मेरे दोनों जोबन में लग गए पर मुझे कुछ फरक नहीं पड़ता था अरे अगर होली ने थोड़ा देवर ने जोबन रस ले भी लिया तो क्या ,...
बरमूडा अब थोड़ा नीचे , और अब खूंटे का बेस खुल गया था। ..

एकदम चिक्कन मुक्कन , लगता था देवर बाबू झांटे वांटे साफ़ कर के आये थे ,

अँगूठे और तर्जनी के बेस से उसे रगड़ते हुए मैंने चिढ़ाया



" क्यों अपनी बहिनिया की तरह माखन मलाई की तरह ,... "

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और फिर ऊपर के दो इंच ,

पता तो मुझे चल ही गया था मोटा भी है लम्बा भी और कड़क भी , और बेसबरा भी , बस अब ऊपर के हिस्से को पकड़ के मैं खुल के रगड़ रही थी मसल रही थी , बारमूडा थोड़ा और नीचे सरक गया था
पर जिस तरह से वो छटपटा रहा था और पीछे से बंटू लगा था , मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी ,

इससे ज्यादा मुश्किल लग रहा था
बस यही सोच रही थी अगर बस आज कम्मो होती न यहाँ तो इन दोनों को हम दोनों मिल के बता देतीं ,

बनारस वाली भाभियों से होली का मजा क्या होता है।

और कभी कभी न मन की मुराद तुरंत पूरी हो जाती हैं , ...

और मेरी पूरी हो गयी , पीछे वाले दरवाजे से कम्मो आ गयी ,



अब हम लोगों का पलड़ा पक्का भारी था


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ये बरछी हीं तो भेद कर अंदर जाएगा....
 

motaalund

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कम्मो


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पर बैलेंस फिर गड़बड़ा गया

अनुज भी आ गया और कम्मो उसके साथ ,

वो तो अनुज ने गुहार लगाई और बंटू का भी मन , आखिर कम्मो के ब्लाउज फाड़ते ३८ डी वाले जोबन देख कर किसका मन नहीं मचल जाता और कम्मो उसे गरिया गरिया कर चैलेन्ज कर रही थी

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उन दोनों ने मिल के कम्मो साड़ी , ... और साडी के बाद ब्लाउज का नंबर लगना ही था और अब मैं अकेले होगयी थी तो आराम से सफेद पेण्ट मैंने दोनों हाथों पर मला और सीधे अबकी बारमूडा में हाथ डाल दिया

" देखो देवर जी तूम तो सफ़ेद रंग वाली होली खेले नहीं लेकिन मैं बिना सफ़ेद रंग लगाए छोडूंगी नहीं , ... ऐसा पेण्ट है अपनी बहन के मुंह में डालकर चुसवाना तब छूटेगा . "

और पेण्ट अब सीधे मेरे हाथों से देवर के लेकिन दोनों हाथों के अंदर पहुँचने से देवर पर मेरी पकड़ थोड़ी ढीली हो गयी , ... अब वो तीन हम दो , ...

पर कम्मो ने जुगत लगाई , अनुज का भी पेण्ट रंग सब ख़तम हो गए थे , बस कम्मो ने कुछ उसके कान में कहा वो स्टोर में और कम्मो ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया

अब बस , हम दो हमारे दो , ...

और जिधर कम्मो उधर का पलड़ा भारी ,

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फिर तो क्या नहीं हुआ , मैं मंटू के साथ और बंटू के साथकम्मो पूरे आंगन में रंग फैला पड़ा था और मंटू फिसल कर गिर पड़ा , और मैं साथ गिरी उसके ऊपर ,

चोली जुबना पर लथपथ चिपकी पड़ी थी , बटन तो कबके खेत रहे , मंटू ने जैसे मुझे बचाने के लिए अपने दोनों हाथ वहीँ ,...

न उसने हाथ हटाया , न मैंने उसका हाथ पकड़ा ,

अब हम दोनों पकड़ धकड़ से दूर हो चुके थे ,... उसने मेरे दोनों उभार पकडे , और जम कर , ..रंग तो अब सिर्फ बहाना था ,... और मैं भी उसका बरमूडा अभी भी नीचे सरका , देवर का ' वो ' थोड़ा ढंका ज्यादा खुला , ...

और मैं उसके ठीक ऊपर बैठी , मेरा पेटीकोट भी कुछ सिकुड़ा , कुछ सरका और खूंटे के ऊपर

जबरदस्त ग्राइंडिंग

ड्राई हंपिंग ,...

कोई दूसरा होता तो शायद ' सफ़ेद रंग ' वाली हालत में आ जाता , पर मेरा देवर था बहुत ही तगड़ा

हलके हलके अब वो ड्राई हंपिंग में मेरा साथ दे रहा था ,

और कम्मो तो और उसका ब्लाउज और बंटू की टी शर्ट दोनों आंगन में एक साथ पड़ी थीं

वो सिर्फ पेटीकोट में और देवर सिर्फ बारमूडा में और कम्मो ' शरीफ ' नहीं थी चुन चुन के गालियां दे रही थी और बंटू का बरमूडा घुटने के नीचे , खूंटा बाहर

कम्मो ने कुछ मुझे इशारा किया

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और मेरी ओर कम्मो के कॉम्बो के आगे दो देवरों की क्या बिसात , ... दोनों पकडे जकड़े थे और अब आगे का हिस्सा मैंने सम्हाला था और पिछवाड़ा कम्मो के हवाले

क्या कोई लौण्डेबाज गांड मारेगा जिस तरह कम्मो उन दोनों देवरों के पिछवाड़े की ' हाल चाल ' ले रही थी

और दोनों खूंटे मेरे हाथ में आराम से पहले कालिख फिर ट्यूब से गाढ़ी वार्निश , और फिर लाल काही नीले रंग की कॉकटेल , और फिर जम कर एकदम खुल के उन दोनों की बहनों का नाम ले ले कर मुठियाते हुए



"सालों अगर ७० तक मामला ढीला नहीं हुआ तो मैं अपनी सारी ननदों को तुम सब के नाम लिख दूंगी "

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और फूल स्पीड से , और मंटू को छेड़ते हुए बोली ,

"तुम दोनों ने मेरा दायाँ बायां बांटा था न ,... दाएं वाले पे तुमने लगाया था और बाएं वाले पे बंटू ने , तो मैं दाएं हाथ से तेरा और बाएं हाथ से बंटू को मुठिया रही हूँ है न बराबर का मामला "



पीछे से कम्मो बोली ,

जो पहले झड़ा न उसकी इसी आँगन में गांड मारूंगी मैं , और स्सालो गांडुओं ये मत पूछना कैसे , पहले अपनी चूँची से फिर मुट्ठी , तुम स्साले बचपन के गांडू हो मुझे मालूम है, बचपन से बहुत गाँड़ मरवाई होगी पर सब गाँड़ मरवाने का रिकार्ड आज टूट जाएगा दोनों का "


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६० हुआ , ७० हुआ , ८० हुआ , ९० के बाद मेरी रफ़्तार भी कम होने लगी , पर दोनों वैसे के वैसे टाइट

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उधर अनुज दरवाजा पीट रहा था , तो कम्मो ने दरवाजा खोल दिया ,...
घोड़ी के साथ घुड़सवार भी तगड़ा होना चाहिए...
 

motaalund

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कहानी आगे

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उधर अनुज दरवाजा पीट रहा था , तो कम्मो ने दरवाजा खोल दिया ,...

------

हम तीन , हमारे दो ,... बल्कि इस समय तो हम दो हमारे दो , ( अनुज को तो जुगत लगा के कम्मो भौजी ने स्टोर रूम में बंद कर दिया था )

हम सब भांग के नशे में टुन्न , ... मेरे दोनों हाथों मेरे दोनों देवर के मोटे मोटे खूंटे , आसानी से मुट्ठी में न समायें, खुल के जोर से मुठिया रही थी ,

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मेरी ससुराल की लड़कियां औरतें , वैसे तो अपने भाई बाप से चुदवाती रहती हैं , लेकिन सब की सब बच्चा जनने के पहले , गाभिन होने के लिए ,

सब की सब गदहे घोड़े के साथ , जब तक पेट न फूल जाए

( मेरी सास के बारे में तो मेरी और मेरी जेठानी दोनों की यही सोच थी , मेरी जेठानी जी के वो , जेठानी के देवर दोनों ही, गदहे घोड़े से कम नहीं थी और और जेठानी के देवर मेरे जेठ से बीस नहीं तो २२ जरूर ही होंगे , और अब अनुज , मंटू और बंटू का देखकर तो मैं पक्का कह सकती थी और उन दोनों को गरिया भी रही थी उन की माँ का नाम ले ले कर )

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"स्साले , तुम दोनों का असली बाप कोई गदहा होगा , जाके अपनी माई से पूछना , लेकिन तोहार नयकी भौजी भी बनारस की हैं , निचोड़ के रख देंगी ,"

दोनों के बरमूडा तो मैंने खुद उतारे थे , और मैं भी देवरों की मेहनत और किस्मत पूरी तरह टॉपलेस , साड़ी भी आँगन में छितरी पड़ी , पेटीकोट रंग में तर बतर , देह से चिपका , जांघें , जाँघों के बीच सब कुछ साफ़ साफ़ झलक रहा था ,
मैं दोनों देवरों का मुट्ठ मार रही थी , खूंटा पकड़े , सटासट , सटासट

और कम्मो भौजी दोनों के पिछवाड़े पड़ी थीं , होली में बिना देवर की गाँड़ मारे , लेकिन मैं जान रही थी कम्मो की शरारत , वो चाह रही थी , दोनों देवर आज मेरी ,

और अनुज , ने जब अंदर से हल्ला मचाना शुरू किया तो कम्मो को मौका मिल गया , मेरे कान में वो फुसफुसा के बोली ,

" तुम निपटो इन दोनों से मैं जा के उस स्साले का गन्ना चूसती हूँ , आखिर उस भंडुए की बहन पटानी है अपने भाइयों के लिए , ... आज तेरी ये देवर बजा के रहेंगे "

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लेकिन कम्मो भौजी इतनी आसानी से , तो कम्मो क्यों मशहूर होतीं , देवरों का जाते जाते उन्होंने फायदा भी करा दिया ,

सिर्फ पेटीकोट पहनी थी मैं ,

तो बस , उस पेटीकोट को उठा के मेरी कमर में अच्छी तरह फंसा दिया , एकदम बस एक छल्ले की तरह , भरतपुर का दरवाजा और गोलकुंडा का रास्ता दोनों खुल गए थे , खुल्ल्मखुला , और बंटू और मंटू के कानो में मंत्र उन्होंने फूंक दिया था ,

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नतीजा हुआ की पल भर के लिए दोनों मेरे हाथ से छूट गए , बस उन्होंने होली में जैसे सब देवर करते हैं , भौजी की देवर बाँट, मुझे बाँट लिया ,

आगे दे बंटू , पीछे से मंटू , और दोनों ने एक साथ मुझे जकड लिया

दो दो गदहा छाप खूंटे ,

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अपने गाँव में देवर भाभी की बहुत होली मैंने देखी थी , और एक बात अच्छी तरह समझ ली थी ,


होली में जो मना करे, वो भौजी नहीं ,


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मना करने पर जो मान जाए , वो देवर नहीं
और अगर कोई देवर मान जाय तो उसकी माँ बहन सब चोद देने चाहिए उसी के सामने

दोनों कस के रगड़ घिस कर रहे थे , चार हाथों में मुझे कस के बांध रखा था , हिल भी नहीं सकती थी , हिलना चाहता भी कौन था , इतनी देर मैंने इन दोनों की रगड़ाई की अब मिठाई भी तो मिलनी चाहिए बेचारों को , ...

कम्मो ने स्टोर का दरवाजा खोला , लेकिन अनुज बाहर निकल पाता उसके पहले दरवाजा बं अब इससे ज्यादा क्या इशारा मिलता मुझे , और मुझसे ज्यादा बंटू और मंटू को ,कम्मो बीच में नहीं आएगी , अनुज वहीँ बंद कमरे में अपनी कम्मो भौजी के साथ सफ़ेद रंग वाली होली खेल रहा है ,

और वो दोनों आँगन में नयकी भौजी के साथ , अपनी पिचकारी का रंग पूरा खाली करें


मैं वैसे भी , जब से मैंने तने हुए बारमूडा देखे थे दोनों को चिढ़ा रही थी


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असली भाभी के पल्ले पड़े हो , दोनों की पिचकारी , पिचका के रख दूंगी ,...

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घर में किसी को आना जाना नहीं थी ,

लेकिन कहते हैं न मारने वाले से ,

वही हुआ ,

कम्मो निकली पीछे से अनुज , बदहवास , परेशान , मंटू से ,

और अनुज के हाथ में फोन ,... ( मंटू और बंटू ने तो होली शुरू होने के पहले ही अपने फोन बंद कर बरामदे में रख दिए थे )

" मंटू तेरे घर से दस बार फोन आ चूका है , तुझे ढूंढ रहे हैं , वो तो तेरी माँ खुद यहाँ आ रही थीं , मैंने मना कर दिया "

पता चला की क्राइसिस ये थी की मंटू की भौजाई बियाने वाली थीं , उन्हें दर्द उठा और हॉस्पिटल ले जाने वाला कोई नहीं था।

बाइक बंटू की थी जिस पर तीनों ट्रिपलिंग कर के आये थे , इसलिए तीनों ,

हाँ जाने के पहले कम्मो ने मेरी और अपनी दोनों की और से बोल दिया ,

" लाला हमार तोहार फगुआ उधार , लेकिन आजाना कल परसों , न मूसल कहीं गया न ओखरी। "


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जोड़ा पारी में होली खेलने का मजा हीं कुछ और है....
 

motaalund

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सफ़ेद रंग की होली

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……

हुयी जम के हुयी , सफ़ेद रंग की होली।

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पहले अनुज के साथ , कम्मो की , ...



और मंटू बंटू के साथ भी , ...

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मेरे जाने के पहले ( अनुज तब तक बनारस चला गया था , इम्तहान देने ) ,





नहीं नहीं सिर्फ कम्मो नहीं , मैं भी होली में साथ थी ,

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एक दिन बाद ही अनुज बनारस जाने वाला था , वहां गुड्डो के के घर हमने उसके रहने किया था ( अरे वही गुड्डो , हाईस्कूल वाली , मेरी शादी में आयी थी और जिस समय अनुज ने उसकी नथ उतारी थी , और उसके बाद बीसों बार ) , मैंने कम्मो को समझाया था ,

" आप बड़ी हो , देवर को आज असली वाली होली , बनारस में जाके हम भौजाइयों की नाक न कटवाए , तलवार तो हम दोनों ने उसकी कितनी बार देखी है , पकड़ी है , आज तलवार बाजी भी , ... "

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" एकदम , मैं तो खुद आज उसके ऊपर चढ़ के , निचोड़ के रख दूंगी स्साले को , देखूंगी कितना रंग है बहनचोद की पिचकारी में। "



कम्मो तो पहले से ही तैयार थी , और अब मैंने भी मन बना लिया था , हमारे गाँव की होली में कोई भौजाई किसी देवर को छोड़ती नहीं थी , ... तो मैं ही क्यों इस स्साले चिकने को ,... हाँ बस मैंने तय किया था पहले कम्मो , एक तो वो बड़ी थीं , दूसरी बात मेरी और उसकी दोनों हिचक निकल जायेगी , और असली बात , सेकेण्ड राउंड में पहली बार से डेढ़ गुना टाइम तो लगता ही है और रगड़ाई भी जम के होती है , ... तो बस इसलिए ,



लेकिन सफ़ेद रंग वाली होली के पहले असल रंग वाली होली भी तो होनी ,ही थी , और अबकी मैंने और कम्मो दोनों ने एकदम गाँव देहात वाली होली की तैयारी की थी , कड़ाही की कालिख कई दिन की , कीचड़ , ' और भी बहुत कुछ. और हाँ देवरों को पिछवाड़े का मजा कम्मो ऊँगली से ही देती थी , लेकिन मेरे दिमाग में एक आइडिया आया और ,


कंडोम में गुलाल भर भर के , तीन चार मोटे मोटे , सात आठ इंच के , ....

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और सबसे बड़ी बात ये थी की आज मैदान एकदम क्लियर था , सास और जेठानी पड़ोस के गाँव में किसी रिश्तेदारी में गयी थीं ,सुबह सुबह रिश्तेदारी में , इनको भी बाजार में कुछ काम था , तीन चार घंटे के लिए ये भी ग्यारह बजे निकल गए , यानी दोपहर तक दो भौजाइयां और उसी समय आया बेचारा कुंवारा देवर ,



उसके आते ही कम्मो ने उसे घर के अंदर किया और उसे दिखाते हुए , एक बड़ा सा भुन्नासी ताला पांच किलो का, बाहर ंनिकल कर के , बाहर के दरवाजे पर वो बड़ा सा ताला लगाया , और पीछे के दरवाजे से अंदर और वो दरवाजा भी बंद , ...

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अब कोई मिलने विलने वाला आता भी तो समझ जाता की घर में कोई नहीं है ,



और अनुज भी समझ गया की आज क्या होने वाला है उसके साथ ,



आज सिर्फ भौजाइयां कपडे उतार के नहीं छोड़ देंगी , बल्कि कपडे के अंदर वाले का भी पूरा इम्तहान लेंगी ,



लेकिन पहली बाजी मेरे देवर के हाथ ही रही



हर बार की तरह मैंने सोचा था की उसे डबल भांग वाली गुझिया और ठंडाई खिला के पहले हम दोनों उसे टुन्न कर देंगे फिर तो , ..


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लेकिन आज देवर जी तैयारी से आये थे फिर कम्मो भी बाहर ताला बंद करने में लगी थी मैं अकेली ,

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बस ठंडाई का ग्लास उसने मेरे हाथ से ले लिया , ' लाइए भाभी मैं पकड़ लेता हूँ '



मैंने भी उसे दे दिया और और जब तक प्लेट से गुझिया उठाती जबरन पूरी की पूरी ठंडाई का ग्लास मेरे होंठों से चिपका के , मुझे पिला के ही वो माना , और साथ में आध नहीं तो तिहाई इस छिना झपटी में मेरी चोली के अंदर , और



और चोली भी मैंने एकदम झीनी सी , कसी कसी ,... बैकलेस , स्ट्रिंग वाली ,



कम्मो की तरह मैंने भी अब देवरों से होली खेलते समय ब्रा पहनना बंद कर दिया था ,



बस वो मेरे उभारों से एकदम चिपक गयी ,

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भांग भरी ठंडाई मेरी देह के अंदर , मेरी देह के ऊपर
मेरी चोली के अंदर ,
और भौजाई की भीगी चोली में झलकते जोबन को देखकर जो असर देवरों पर होता है , वही मेरे देवर पर हुआ , खूंटा टनाटन ,

और कनखियों से उस टनटनाये खूंटे को देख कर मैं भी गीली हो गयी ,




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और भौजाई की भीगी चोली में झलकते जोबन को देखकर जो असर देवरों पर होता है , वही मेरे देवर पर हुआ , खूंटा टनाटन ,

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और कनखियों से उस टनटनाये खूंटे को देख कर मैं भी गीली हो गयी ,



कम्मो तब तक आ गयी थी , लेकिन वो मेरी बचत को नहीं आयी , लगता है देवर भौजी में पहले ही कुछ 'हिसाब किताब सेट ' हो गया था ,

अनुज ने आँखों ही आँखों में गुहार लगायी और उसकी भौजी ने हाँ भर दी ,



" चल यार स्साले बहनचोद तू भी क्या याद करेगा , दस मिनट तक मैं सिर्फ देखूंगी , लेकिन इसके बदलें में तेरी वो गोरी गोरी कोरी बहिनिया पर , गुड्डी छिनरिया पर मेरे भाई सब चढ़ेंगे ये सोच लेना "

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जैसे कुछ वेब साइट पर होता है न , अगर आपने साइट पर क्लिक कर दिया तो ये माना जाएगा की सारी कुकीज , ट्राजन वर्म्स टर्म्स कंडीशन आपको स्वीकार है , एकदम वैसे ही मेरे ऊपर हाथ लगाते ही , मेरी ननद रानी पर कम्मो के भाइयों का नंबर लिख जाता

पर मेरी ऐसी भौजाई सामने हो तो किसे बहन की याद आती है ,



जब तक मैं कुछ सोचूं , उस ने घात लगा दी ,



मैं अपने दोनों गाल हाथों से ढंक कर रंग से बचा रही थी और देवर ने चोली के अंदर घात लगा दी , एक हाथ चोली के अंदर और दूसरा मेरी पीठ पर



बैकलेस चोली की स्ट्रिंग ,

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सरसर , सरसर , ... सरकती हुयी चोली आंगन में , ...



जो डायलॉग हम लोग उससे मारती थीं , " देवर से होली खेलनी है , देवर के कपड़ों से थोड़े ही ' और सब कपडे फाड़ फूड़ के , चीथड़े कर के , चारो और , कुछ आंगन में कुछ छत पर ,



चोली उसने फाड़ी तो नहीं लेकिन , ...



कम्मो दूर खड़ी खिलखिला रही थी , सामने घड़ी देख रही थी , ' अभी भी आठ मिनट बचे हैं "

मैं मस्ती के मारे पथरा सी गयी थी , मेरी आँखे बंद हो रही थीं , मेरे जोबन पत्थर के कड़े हो गए थे , निपल दोनों कंचे की तरह बड़े , कड़े

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और मेरा जवान होता देवर , किशोर उनसे खेल रहा था ,



उसके उँगलियों की छुअन , मेरी देह की सिहरन , पहले तो थोड़ा झिझकते हुए अनुज ने मेरे मेरे उन्मुक्त खुले उरोजों को छुआ , फिर हलके से सहलाया और फिर तो एक दम कस के दबोच लिया ,

इतना नौसिखिया भी नहीं था , मेरा देवर , गुड्डो और रेनू दो किशोरियों की नथ उतार चुका था ,



पर फागुन में जो रस जवान भाभी के जोबन में है , वो कहीं नहीं और आज दोनों जोबन उसकी मुट्ठी में थे ,


फिर कुछ देर पहले भांग वाली गुझिया खाते हुए मैं और कम्मो जो प्लान बना रहे थे , स्साला चिकना आज पकड़ में आ जाए , तो बिना उसे चोदे छोड़ेंगे नहीं , सीधे से नहीं तो जबरदस्ती .
और अब वही देवर , मेरे जोबन का रस खुल कर ले रहा था , मैं दे रही थी ,

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दो मिनट , चार मिनट ,... मैं सिहर रही थी , गीली हो रही थी , चोली मेरी नीचे आँगन में गिरी , ब्रा मैंने पहनी नहीं थी , और साडी भी बस मुड़ी तुड़ी , कमर में लिपटी ,



लेकिन फिर किसी तरह मैं उबरी , तन मन तो बस में होने वाला नहीं था , एक जवान किशोर को देख कर , हाँ दिमाग ने साथ दिया , ... मुझे जेठानी ने बतया था और अब मैं भी अच्छी तरह समझ गयी थी , इतनी बार इसके साथ होली खेल कर ,



मेरे देवर की चाभी ,.... गुदगुदी ,...

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मेरे देवर के दोनों हाथ तो मेरे दोनों उभारों पर थे , पर मेरे दोनों हाथ तो खाली थे कांख , पेट , जाँघों पर ,

और अब वही देवर ,

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मेरे जोबन का रस खुल कर ले रहा था , मैं दे रही थी ,





दो मिनट , चार मिनट ,... मैं सिहर रही थी , गीली हो रही थी , चोली मेरी नीचे आँगन में गिरी , ब्रा मैंने पहनी नहीं थी , और साडी भी बस मुड़ी तुड़ी , कमर में लिपटी ,



लेकिन फिर किसी तरह मैं उबरी , तन मन तो बस में होने वाला नहीं था , एक जवान किशोर को देख कर , हाँ दिमाग ने साथ दिया , ... मुझे जेठानी ने बतया था और अब मैं भी अच्छी तरह समझ गयी थी , इतनी बार इसके साथ होली खेल कर ,

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मेरे देवर की चाभी ,.... गुदगुदी ,... मेरे देवर के दोनों हाथ तो मेरे दोनों उभारों पर थे , पर मेरे दोनों हाथ तो खाली थे कांख , पेट , जाँघों पर ,



ही ही ही ही ही , बुरा हाल था उसका , और मौके का फायदा उठाकर पहले तो मैंने उसे टॉपलेस किया , उसकी बनायिन नुमा टी शर्ट खींच कर फाड़ दी , फिर अपनी साड़ी सम्हाली , चोली दुबारा पहनने का न मौका था न टाइम , बस उसी साड़ी से दुबारा खूब टाइट अपने उभारों को बाँध कर साड़ी पेटीकोट में खोंस ली ,

वो बेचारा अभी भी ललचा रहा था , झीनी गीली साडी में जोबन तो खुल कर दिख ही रहे थे , निप्स भी बरछी , कटार की नोक की तरह साफ़ साफ़ ,

मैं शादी से पहले ही अपनी भाभियों की गाँव में होली देख देख कर समझ गयी थी की देवर ननद से होली देह की होती है , रंग तो बहाना है ,



बस , अब मेरा नंबर था , रगड़ने का और उसका गिनगिनाने का ,



मैंने कस के धृतराष्ट्र की तरह पाश में उसे बाँध लिया और बास झीनी सी साड़ी की ओट में छुपे मेरे उभार अब उसके सीने पर मैं रगड़ रही थी , और इरादा बता रही थी आज तेरी रगड़ाई होगी अच्छी तरह से ,

मेरी उँगलियाँ उसकी पीठ पर टहल रही थीं , जैसे सैकड़ों सांप , बिच्छू रेंग रहे हों , उनके काम दंश उसके देह पर चुभ रहे हों ,

मैंने जीभ से उसके कान में सुरसुरी करनी शुरू कर दी , हलके से उसके ईयर लोब्स को काट लिया ,

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मारे मस्ती के अब उसके सिसकने की बारी थी उसने अपने दोनों हाथों से मुझे दबोच लिया , अपनी देह से एकदम चिपका लिया ,



जो मेरी दो बरछी कटारियां उसके सीने में चुभ रही थीं


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उसका जवाब उसकी जाँघों के बीच का भाला , अब एकदम तन्नाया मेरी जाँघों के बीच में घुसने की कोशिश करने की कर रहा था ,

होली में कौन भौजी होगी जो अपने जवान होते देवर को मना करेगी ,

जवाब में मैंने भी अपनी काम गुफा उसके खड़े गुस्साए भाले पर रगड़नी शुरू कर दी , और उसके कान में फुसफुसाया ,



" स्साले , आज निचोड़ के रख दूंगी , ये पिचकारी , "



उसका एक हाथ अब पेटीकोट के अंदर मेरे बड़े बड़े नितम्बो पर , ... वो मुझे अपनी ओर खींच रहा था मेरे दोनों चूतड़ पकड़ के , मैं क्यों छोड़ती उसे , मेरा भी एक हाथ पैंट के अंदर पिछवाड़े , उसके किशोर नितम्बो पर , सीधे दरार पर मैंने ऊँगली लगाई ,



लेकिन मेरा दूसरा हाथ अब पेट से सरक कर आगे , लेकिन बस मैंने अपनी ऊँगली के टिप से उसके बेस पर , बस छू भर दिया ,

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अनुज बाबू आज साफ़ सूफ कर के आये थे , इरादा देवर का पूरा था तो भाभियों का कौन कच्चा था ,

खूंटा कब से खड़ा था ,

खूंटा कब से खड़ा था ,



मैंने बस तर्जनी से बेस से आगे की ओर सहलाना शुरू किया , दो इंच , चार इंच , पांच इंच , और सुपाड़े के बेस पर बस छू भर के हाथ हटा दिया अब सीधे मुट्ठी में ,

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नहीं मुठियाना नहीं शुरू किया , बस बेस को पकड़ लिया ,

ये स्साले कम उम्र वाले देवर न , एक तो नौसिखिये ( खैर इस मामले में मेरा देवर पक्का था ) और दूसरा गौने की दुलहन से भी ज्यादा लजाते शरमाते हैं , पर भाभियाँ किस लिए होती हैं यही उनकी लाज शरम लूटने के लिए , और यहाँ तो दो थीं और दोनों का आज इरादा पक्का था , देवर की इज्जत लूटने का ,

दस मिनट कब के हो चुके थे , ...

लेकिन तभी कम्मो ने एक बड़ी बाल्टी भर रंग हम दोनों की ओर फेंक दिया ,

कई असर हुए ,

एक तो मेरे देवर ने मुझे आगे कर दिया और मैं लाल भभुका

दूसरे रंग के जोर से एक बार फिर मेरी साड़ी पूरी तरह खुल गयी जो मैंने उभारों पर लपेटा था और मैं एक बार फिर टॉपलेस ,

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तीसरे अब कम्मो भौजी भी होली में शामिल हो गयीं तो भौजाई का पलड़ा भारी ,

लेकिन उसके पहले कम्मो ने गाढ़े गाढ़े नीले रंग की के पूरी बाल्टी , और इस बार मुझे अपना रोल मालूम था ,


मैंने देवर की पैंट को पकड़ कर बाहर की ओर खींचा , दोनों अपने पैर फंसा कर , उसके पैर फैला दिए , अब वो हिल भी नहीं सकता था



पूरी बाल्टी की धार उसके खूंटे पर पैंट के अंदर ,



अब पीछे से कम्मो भौजी , आगे से कोमल भाभी , बीच में देवर ,


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घर के बाहर से ताला बंद और अगले चार पांच घंटे तक किसी का आना जाना नहीं ,



कम्मो मेरी तरह ' धीमी आंच वाली ' नहीं थी , वो एकदम फ्रण्टल असाल्ट वाली , तो पहले तो पैंट की बेल्ट आँगन में नजर आयी , फिर बटन और बाद में ज़िपर





कम्मो भौजी अपने दोनों हाथों में गाढ़ा काही रंग पोत कर पहले से तैयार थीं , बस सीधे मेरे देवर के गोरे गोरे चिकने चर्म दंड पर , और कस के दबोच के वो मुठिया रही थीं पांच कोट , दस कोट ,

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और मैं अपने दोनों हाथों में गाढ़ा लाल रंग , रंग नहीं पेट , वो भी प्रिंट वाला , ... जब मेरा नंबर आया तो अनुज जोर से चीखा ,



कम्मो भौजी ने अब पिछवाड़े का मोर्चा सम्हाल लिया था और उनकी एक ऊँगली जड़ तक अंदर , साथ में उसकी चीख का जवाब भी दे दिया उन्होंने



" स्साले , भोंसड़ी के , बहनचोद , तेरी बहन की बुर चोदू , बनारस जा रहे हो ,वहां भौजाइयां , गाँड़ पहले मारेंगी , रंग बाद में खेलेंगी , ... इतना कस के तो तेरी बहन गुड्डी भी नहीं चीखेगी , जब मेरे भाई , बनारस वाले सब उसकी फाड़ेंगे ,... "


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कम्मो भौजी ने दस कोट काही रंग का लगाया था , तो मैं क्यों पीछे रहती बारह कोट लाल रंग की मैंने उसके मूसल पर लगा दी , ज़म क़र मुठियाया।

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उसके बाद कम्मो भौजी ने गाढ़ी कड़ाही के पेंदे की कालिख ,
पिचकारी से लगाया रंग अंदर तक गीला करता है....
 
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होली


मैं -देवर दोनों टॉपलेस




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कम्मो भौजी ने दस कोट काही रंग का लगाया था , तो मैं क्यों पीछे रहती बारह कोट लाल रंग की मैंने उसके मूसल पर लगा दी , ज़म क़र मुठियाया।

उसके बाद कम्मो भौजी ने गाढ़ी कड़ाही के पेंदे की कालिख , मैंने सफ़ेद बार्निश ,



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और हाँ ये कहाँ लिखा है की देवरानी जेठानी की होली नहीं होती , मैं और मेरे देवर दोनों टॉपलेस थे , तो कम्मो कैसे बचती तो मैंने ही उसकी चोली खोल के , सीधे आँगन में ,

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पर कम्मो भी इतनी सीधी नहीं , उसने मेरी पेटीकोट में फंसी साड़ी को खींच के फेंक दिया , तो मैंने भी

बस अब दोनों भौजाइयां पेटीकोट में रंग से गीले , देह से चिपके , और

देवर सिर्फ पैंट में और उसकी भी सारी बटनें , जिपर खुला , ,... मैंने कुछ बटन तोड़ भी दी ,

आगे से मैं , मेरे रंग में भीजे उरोज देवर की छाती से रगड़ते घिसटते और पीछे से कम्मो भौजी कस के अपने जोबन अनुज के पीठ पर मलती



खूंटा भी हम दोनों ने बाँट लिया था , गन्ना उनके हाथ , रसगुल्ला मेरे हाथ ,

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बस सिर्फ ये फैसला करना था की देवर की कौन पहले लेगा ,

मैं कह रही थी की कम्मो भौजी बड़ी हैं पहले वो , और उसके बाद मैं मना नहीं करूंगी ,

लेकिन कम्मो का कहना था मैं नयकी भौजी हूँ , मेरा पहला फागुन है , तो देवर के साथ सफ़ेद रंग वाली होली पहले मुझे खेलनी चाहिए , उसके बाद अनुज ना नुकर भी करेगा तो तो वो बिना उसे चोदे नहीं छोड़ेंगी ,

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बीच में अनुज कुछ बोलने की कोशिश करता तो हम दोनों उसे गाली दे दे कर चुप करा देते , तेरी भी ली जायेगी , तेरी बहन की भी ली जायेगी , ...
बीच में कई बार फोन की घंटी बजी पर मैं अनसुनी कर रही थी , मेरा ध्यान चिकने देवर पर था ,

फिर लगातार , कम्मो ही बोली ,

अरे ये जाकर देख ले न , कौन स्साला अपनी माँ बहन चुदाने के लिए बौराया है , ... और ये कहीं भागा नहीं जा रहा है आज इसी आंगन में इसकी ली जायेगी ,

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मैंने बरामदे में जाकर फोन उठाया , ...


मैंने बरामदे में जाकर फोन उठाया , ...



कुल चौदह मिस्ड काल ,

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कम्मो के देवर का था , इनका।


मैं बहुत झुंझलाई , ऐन मौके पर लेकिन क्या करती , फोन उठाना ही पड़ा , और फिर ऊपर अपने कमरे में ,


और फिर थोड़ा बहुत रंग पोंछा , झट से साडी ब्लाउज पहनी , और फिर बाहर ,



हाँ जाने से पहले उस चिकने से बोलना नहीं भूली , ... मिलते हैं ब्रेक के बाद और कम्मो के कान में , निचोड़ लेना स्साले की अच्छी तरह , जब तक मैं वापस आऊं ,

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हाँ आप भी कहेंगे की ये रस में भंग , एक बार फिर , हुआ क्या था , बताती हूँ , यार सांस भी तो लेने दो , वो भी तो फोन पर साफ़ साफ़ कुछ नहीं बोल पा रहे थे , बस घबड़ाये हुए , हाँ जो उन्होंने कहा वो मैंने किया , उनकी कार की डुप्लीकेट चाभी लेकर आने की , ये भी न सब मर्दों की तरह , कुछ भी नहीं होता इनसे , सिवाय पढ़ाई लिखाई के कम्पनी के काम के और ' वो ' वाला भी , थोड़ा बहुत लेकिन उसमें उनकी सलहज और मेरी रीतू भाभी का बड़ा हाथ था , इन्हे चढ़ाने , उकसाने में ,


मुझे लगा शायद पर्स भूल गए हैं तो मैं फोन पर ही बोली , " अरे पर्स भूल गए हैं तो मुझे क्यों फोन किया , उस एलवल वाली को , मेरी छुटकी ननदिया को फोन करते , एक रात के बदले में सारी दूकान लिख देता दूकान वाला , ... " पर वो मजाक के मूड में नहीं थे , बस बहुत ही परेशान लग रहे थे , ...

बात सिर्फ पर्स की नहीं थी , उन्होंने बड़े जतन से एक लम्बी लिस्ट बनाई थी , ससुराल वालियों की साली सलहज और सास की ,... अपनी सास और सलहज की सहायता से , मैंने ही उनसे कहा था की ससुराल में होली खेलोगे तो होली का नेग भी देना होगा , ऐसे खाली हाथ , और सिर्फ छुटकी और मंझली ही नहीं , गाँव के रिश्ते की पट्टीदारी की यहाँ तक की काम करने वाली कहारिन , नाउन की लड़कियां भी इनकी साली ही तो लगेंगी , और उनकी भौजाइयां इनकी सलहज और सबसे ज्यादा वही फुदक रही थीं , ... इनकी होली में रगड़ाई के लिए , और जो गाली गाने में मैं थोड़ा झिझकती , बस नाउन की बीटिया को इशारा करती और वो सात पीढ़ी नयौत देती ,

वो कार की चाभी भूल गए थे , और पर्स के साथ लिस्ट और भी सब कुछ कार के अंदर , कार की चाभी भी , दरवाजा उन्होंने बंद कर दिया ,

मैं सोच रही थी एक बार इन्हे कार की चाभी दे कर निकल जाउंगी , चिकने की हाल चाल लेने , लेकिन

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इनसे क्या कहती , अब शॉपिंग में इनकी मदद ,


पूरे चार घंटे लगाए उन्होंने , तब भी थोड़ा बहुत रह ही गया , तो ये तय हुआ की बाकी अगले दिन , उसके बाद इनके पास टाइम नहीं था , दो दिन बाद फिर तो जाना ही था ,

और खाना भी हम लोगों ने बाहर ही खाया , पहली बार इनके साथ ससुराल में किसी रेस्टोरेंट में खाना खा रही थी , बड़ा अच्छा लगा।

जब घर लौटी तो सिर्फ आँगन में रंग होली के हुड़दंग की कहानी बता रहे थे , कम्मो अपने पीछे वाले कमरे में चली गयी थी।



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लेकिन शाम को कम्मो ने पूरी कहानी सुनाई , बिना किसी सेंसर के , सफ़ेद रंग वाली होली हुयी और वो भी जबरदस्त पूरे तीन बार ,

कम्मो ने पांच मिनट भी इन्तजार नहीं किया , वहीँ आंगन में देवर को पटक दिया , पीठ के बल , उसी आँगन में गिरी , भीगी मेरी चोली , अपने ब्लाउज से देवर के हाथ बाँध दिए और चढ़ गयी उसके ऊपर ,

कुछ देर तक तो उस तने खूंटे के ऊपर अपने भीगे होंठों को रगड़ाती रही , नीचे से चिकना बेताब था , पर देवर को तड़पाने ललचाने का अलग मजा है

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लेकिन मन तो कम्मो का भी कर रहा था , एक जोर का धक्का और ,... गपाक

एक झटके में मोटा सुपाड़ा अंदर , लेकिन फिर कम्मो रुक गयी सारी ८४ कलाएं चुदाई की उसे आती थीं , मायके से ही सीख पढ़ कर , गन्ने के खेत की चैम्पियन ,
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अरहर के खेत की मास्टरनी ,

बस जोर जोर से वो अपनी बुर में देवर का मोटा सुपाड़ा भींच रही थी , दबा रही थी , निचोड़ रही थी ,

देवर बेचारा बेताब , नीचे से उचकने की कोशिश कर रहा था चूतड़ उचका रहा था अंत में उसंने अर्जी लगायी ,

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" भौजी करो न "

जवाब में कम्मो जोर से मुस्करायी और कस के उसके सुपाड़े को भींचते उससे पूछा।

" पहले ये बताओ , तोहार बहिनिया , ई गुड्डो , चोदवाये लायक हो गयी है न ,... "


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कौन सगा भाई बोलता , .. पर कम्मो ने अपने को हल्का सा ऊपर खींचा जैसे बाहर निकाल रही हो , फिर एक बार कचकचा के गाल काट के पूछा.

" उसीकी क्लास वाली , उसकी सहेली , उसकी समौरिया , को कितने बार चोदे हो , तोहरी भौजी को सब मालूम है , बतावा साफ़ साफ़ तोहार गुड्डी चोदवाये लायक मस्त माल हो गयी हैं न , झूठ बोलोगे तो तुम अपने रास्ते हम अपने रास्ते , देवर भौजी में कउनो छिपाव नहीं होता। "


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" हाँ " बहुत हलके से नीचे दबा चिकना बोला ,

" साफ साफ़ बोल स्साले वरना अभी गाँड़ मार लुंगी , अपनी मुट्ठी से " एक बार फिर सुपाड़े पर बुर का दबाव बढ़ाते वो बोली

" हाँ " अबकी कुछ जोर से उसकी आवाज खुली। "

" कौन क्या , साफ साफ़ बोल जैसे मैंने पूछा वरना , " कम्मो गरजी।

" हाँ हो गयी है , गुड्डी मेरी बहन चुदाने लायक "


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ये हुयी न मेरे देवर लायक बात , ये कह के पूरी ताकत से कम्मो ने एक धक्का मारा और आधा बांस अंदर।

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हाथ तो बंधे ही थे , दोनों हाथ उसके कस के पकड़ के अपने निप्स कम्मो ने देवर के होंठों पर रगड़े , और जैसे ही वो चूसने के लिए बढ़ा , सर उठाकर होंठ खोले , कम्मो ने अपने जोबन दूर कर लिए और चिढ़ाते आँख नचाते दूर कर लिए और पूछी

" हे तेरी गुड्डी के छोटे छोटे जोबन हो गए हैं न दबाने लायक "


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उसके हाँ कहने पर ही भौजी के जोबन का स्वाद उसे मिला और साथ में एक जोरदार धक्का और ,

लकिन एक दो इंच अभी और बचा था , और कम्मो ने अनुज से कहलवाया , कबूल करवाया की गुड्डी को ,

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कम्मो के भाई , उसके गाँव वाले , चमरौटी के चमार , भरौटी के भर , पठानटोली के पठान , सब चढ़ेंगे उसके ऊपर , सारे बनारसवाले , और तीन तिरबाचा नहीं दस बार कहलवाया तब चुदाई शुरू हुयी ,

और फिर तो तूफ़ान आ गया , क्या कोई मर्द किसी जवान होती कच्ची कली को चोदेगा , जिस तरह कम्मो मेरे देवर को चोद रही रही , बिना रुके धक्के दपर धक्के . मर्द को ऊपर चढ़ कर चोदने में कम्मो भौजी यूपी चैम्पियन थीं , धक्के पर धक्के ,

और जब धक्के बीच में रोक देतीं वो तो उनके होंठ , हाथ , नाख़ून और सबसे बढ़कर ३८ डी डी की साइज की जबरदंग चूँचियाँ , एकदम खड़ी , कड़ी पथरीली ,

जैसे कोई लौंडा किसी लौंडिया के कस कस के गाल काटे बस उसी तरह , अपने नाख़ून से चिकने देवर के छोटे छोटे निपल ऐसे पिंच कर रही थीं जैसे उसके न हों उसकी छोटी बहन गुड्डी के हों , और उसी गुड्डी का नाम ले ले कर एक से एक गालियां न खुद ले रही थीं , बल्कि अपने देवर से दिलवा रही थीं ,

और ज़रा भी हिचकिचाता वो तो कस के दांतो से उसके निप्स काट लेतीं और तब तक नहीं छोड़तीं जब तक , ... वो खुद अपनी बहन को गाली नहीं देता , बोलता की उसकी छुटकी बहिनिया को दस दस बनारस के लौंडे चोदेगे।

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और उसके बाद बिना धक्के के , भौजी अपनी चूत में देवर का लौंडा ले कर ऐसे कस कस के भींचती की , कोई कमजोर मर्द होता तो वैसे ही झड़ जाता , पर था वो मेरा देवर , सच्चा मर्द ,

और उसके बाद बिना एक बूँद भी बाहर निकाले , जैसे कोई सावन का झूला झुलाये , जड़ तक लंड अदंर घुसेड़े , आगे पीछे आगे पीछे धक्के मार मार के , मार के , हिलती डुलती , लेकिन देवर को नहीं हिलने देतीं

देवर ने बहुत चिरौरी मिनती की मान लिया उसकी बहिन , भौजी जिससे भी कहेंगी , चाहेंगी , वो वो उसकी बहिन के ऊपर चढ़ेगा ,...



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और देवर के हाथ खुल गए , लेकिन अभी भी वो नीचे दबा था ,

हाँ देवर भौजी दोनों का फायदा होगया , दोनों चूँची का रस कस कस के वो निचोड़ रहा था , कस के भौजी की पीठ देवर ने पकड़ ली ,



और अब जब कम्मो ने धक्के लगाने शुरू किये तो नीचे से अनुज भी धक्के का जवाब धक्के से देता , वो भी अब कभी भौजी के रसभरे उभार चूस लेता , कभी अपने नाख़ून भौजी की पीठ में गड़ा देता ,

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और भौजी मस्ती में , एकदम लंड उसका बाहर निकाल कर , ... एक धक्के में पूरा अंदर , गप्प और जोर से अपनी चूत को सिकोड़ के देवर का लंड भींचने लगतीं , कोई भी देवर ऐसी ही होली चाहेगा ,

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पर कुछ देर बाद देवर ऊपर भौजी , धक्के थोड़े धीमे होगये , मस्ती बढ़ गयी , चुम्मा चाटी , काटा काटी ,

एक बार भौजाई की मोटी मांसल जाँघे देवर ने फैलाई और अब चुदाई एक बार फिर पूरी जोर से , देवर इतना कच्चा खिलाड़ी भी नहीं था , लंड के बेस से वो कम्मो भौजी की क्लिट रगड़ने लगा

कम्मो की देह थरथराने लगी , कांपने लगी , और उस के बाद जोर जोर के धक्के ,

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कम्मो ने झड़ना शुरू किया , उसकी बुर ने देवर का लंड भींचना शुरू किया और साथ में अनुज भी ,

देर तक देवर की पिचकारी सफ़ेद रंग फेंकती रही भौजी की बाल्टी में , जिसके बिना किसी देवर भाभी की असली होली पूरी नहीं होती ,

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देर तक अनुज कम्मो के ऊपर पड़ा रहा और उठा तो कम्मो की जाँघों के बीच , गाढ़ी सफ़ेद मलाई थक्केदार बाहर बहती हुयी ,

कम्मो ने अंगुली से निकाल के देवर को चटा दिया और एक बार कस के फिर बाँहों में बाँध लिया और लेटी रही ,

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फिर कम्मो ने पूछना शुरू कर दिया , बताना शुरू कर दिया ,

बनारस का प्रोग्राम , ... अनुज ने बताया , होली के अगले ही दिन उसका इम्तहान है , इसलिए आज ही निकल रहा है , तीन चार दिन कोचिंग , लेकिन गुड्डो और उसकी माँ दोनों ने बोला है इम्तहान के बाद चार पांच दिन रुकने का , होली में तो वो कमरे में बंद रहेगा , अगले दिन एग्जाम , इसलिए ,

कम्मो ने समझाया , अरे यार बनारस में रंग पंचमी होती है , होली के बाद भी पांच दिन तक होली , तो तुम्हारे एग्जाम के बाद भी तीन दिन तक तो होली रहेगी ,

लेकिन समझ लो , क्या करना है , गुड्डो की तूने ले ही ली है , अब गुड्डो की माँ उसकी सहेलियां , बनारस का रस सबको नहीं मिलता , और हम लोगों की नाक मत कटवाना , कोई बचनी नहीं चाहिए , उमर वुमार रिश्ता विस्ता मत देखना , बस सीधे , ...
अरहर... गन्ने... बंसवाड़ी की मास्टरनी... क्या खूब है...
 

komaalrani

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शायद ये पहली कहानी है जो नायक के परिप्रेक्ष्य से लिखी गई है...
हाँ लम्बी कहानियों की बात करें अगर तो

और सब कहानियों को मैं जोड़ूँ तो बहुत सी छोटी कहानियां है जैसे,

लला फिर अइयो खेलन होरी,

its a hard rain

येलो रोजेज

अटम सोनाटा

एक रात सलहज के साथ,... ऐसी और भी कुछ होंगी जो पुरुष के पर्स्पेक्टिव से हैं

और होली के रंग में तो तीन चरित्रों का पर्स्पेक्टिव था, ननद अन्नया, भाभी छन्दा और दो लड़के अनुज और मनोज ये एक अलग प्रयोग था लेकिन कुछ मित्रों को छोड़ एक ज्यादा लोगो को पंसद नहीं आया शायद।


फागुन के दिन चार में नैरेटर भले ही पुरुष है ( आनंद ) पर वह कहानी भी स्त्री या कन्या प्रधान ही अपने आप हो गयी। और सबसे स्ट्रांग कैरेक्टर उसमे रीत का उभरा एक ट्रैजिक भी ( माता -पिता दोनों बनारस में बॉम्ब ब्लास्ट में मारे गए थे,.. और उसका एक मित्र जो आई एम् ए में ट्रेनिंग कर रहा था उसे भी मरा ही मान लिया गया था और उस मित्र के माता पिता भी उसी दिन बनारस स्टेशन पर हुए बॉम्ब ब्लास्ट में मारे गए थे ) बहादुर भी लेकिन जबरदस्त सेन्स आफ हूयमर


उसी कहानी के होली के प्रसंग इस बार मैंने शेयर किये

पुरानी बातें याद कराने के लिए बहुत आभार


🙏🙏🙏🙏🙏
 

komaalrani

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गुड्डी और गुंजा की जोड़ी...
तो जैसे जय वीरू...
बहुत अच्छी उपमा दी आपने
 

komaalrani

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घरेलु असली होलियों के इत्ते ढेर सारे लिंक शेयर करने के लिए आभार
 

komaalrani

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ससुराल में तीक्ष्ण नजरों वाला जासूस हीं...
वरना गोते लगाते नजर आएंगे....
Ekdam sahi kaha aur agar sasuraal banaras men ho to aur
 
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