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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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7 मार्च, मंगलवार

दो बाम्ब ब्लास्ट, अट्ठाईस लोग मरे, सौ से ऊपर घायल।



शेष रही मैं केवल,




कम से कम दस लोगों के शव मंदिर में पड़े। चालीस से ऊपर घायल, कैंट स्टेशन पर भी जोरदार धमाका। अठारह से बीस लोगों के स्टेशन पर मरने की आशंका, मंदिर में मरने वालों में आठ महिलाये जिनमें तीन लड़कियां, कईयों की पहचान करना असंभव और इसके बाद लोगों की प्रतिक्रियाएं थी।

मुख्यमंत्री की ओर से पैसे का ऐलान था और लोगों से शान्ति बनाये रखने की अपील थी। कुछ और राष्ट्रीय अन्तर-राष्ट्रीय प्रतिक्रियाये थी।

कुछ जो जिन्दा बचे थे उनकी हालत मरने वालों से कम बदतर नहीं थी। रीत उनमें से एक थी।


रीत जब अपने पैरेंट्स के साथ पहुँची तो मंदिर में बहुत भीड़ थी। एक तो मंगल, और दूसरे बोर्ड के एक्जाम चल रहे थे तो सारे इम्तहान देने वाले लड़के लड़कियां। और रीत ने देखा की वहीं, एक शादी भी चल रही थी। नेपाली दुल्हा दुल्हन, बहुत यंग, खूब सजे धजे। और साथ में घर वाले, बाजे वाजे बज रहे थे। उसने पहली बार मंदिर में शादी देखी थी, खूब खुश लग रहे थे। दूल्हा, बस लालचियों की तरह दुलहन को घूरे जा रहा था।

रीत मन ही मन सोचकर मुश्कुराई। मिलेगी मिलेगी, क्यों इतने ललचा रहे हो। सारे लड़के न ऐसे ही नदीदे होते हैं। बेसबरे। देखता तो करन भी ऐसे ही है। उसकी आँख में लड़के की जगह करन और लड़की की जगह अपनी तस्वीर घूम गई।

इसे कहते हैं टाइमिंग। उसी समय करन का मेसेज आया, वो लोग स्टेशन पहुँच गए है। शिवगंगा प्लेटफार्म पर लगी हुई है। गाड़ी चलने पर रिंग करेगा।


"सुन रीत, क्या सोचकर मुश्कुरा रही है। "

उसकी मम्मी ने ध्यान खींचा।

"बहुत भीड़ है तू जाकर प्रसाद ला हम लोग यहीं इंतेजार करते हैं। "

लड़के लड़कियों की भीड़ के बीच धक्का मुक्की करते रास्ता बनाते। वो प्रसाद की दुकान तक पहुँच गई। वहां भी खचाखच भीड़। उसने वहीं लगे नल से हाथ धोया और दुकान से प्रसाद के लिए लड्डू लिया, और वापस मुड़ी।



तभी बहुत जोर का धमाका हुआ।


रीत को लगा उसके कान के पर्दे फट गए। वह वहीं भहरा कर गिर पड़ी। एक खम्बे से उसके माथे में जोर से चोट लगी। बस उसे इतना याद है, उसे ये भी याद नहीं की वो बेहोश हुई थी की नहीं। थोड़ी देर में जब उसकी आँख खुली तो चारों और कुहराम, भगदड़, टूटी हुई बेंचे। धुंवा। गिरे हुए लोग। बहता हुआ खून और उसकी निगाह वहीं पड़ी, जहां वो दूल्हा दुल्हन थे शादी हो रही थी।

दुलहन की चुनर खून में डूबी, वो गिरी। बस एक मांस के लोथड़े की तरह। लेकिन उसके कुहनी तक चूड़ी और कंगन से भरे हाथ में अभी भी दुल्हे का हाथ था, दुल्हे के शरीर से अलग दुल्हे के शरीर से दूर छिटकी पड़ी थी।

उसके आस पास भी गिरे पड़े थे लेकिन ज्यादा चोट किसी को नहीं थी। तभी उसे याद आया की मम्मी पापा भी तो वहीं थे।

रीत जोर से चीखी- “मम्मीईई…”

किसी तरह खम्बे का सहारा लेकर उठकर खड़ी हुई। उसके पैर में भी चोट आई थी। लंगड़ाते घिसटते उधर की ओर चल पड़ी जिधर उसने मम्मी पापा को छोड़ा था। सम्हल के कोई पीछे से चिल्लाया। वहां खून इतना फैला था की फर्श पर फिसलन हो गई थी। उसके सामने दो लोग वहां फिसल कर गिर पड़े थे।

पास से गुजर रहे किसी आदमी ने बोला- “सरवा। बहुत जबर बाम्ब फोड़ले हौ। बी एच यु तक आवाज गईल…” वो घायलों को लांघते छ्लान्गते वहां पहुँची जहां उसने मम्मी पापा को छोड़ा था। और वहां पर तो पूरा ढेर एक पर एक। कुछ घायल थे, कुछ मरणासन्न थे और कुछ बस शव। तब तक और हल्ला हुआ कुछ पुलिस वाले आ गए थे, लोगों को हटा रहे थे।

बोल रहे थे- देखने दीजिये और भी बम हो सकते हैं। गोदौलिया में अभी-2 एक बाम्ब और मिला है और भीड़ के धक्के के साथ वो पीछे आ गई।

लेकिन लांघते, छ्लांगते, वो फिर वहीं पहुँच गई। अब वहां मंदिर के कुछ पुजारी, कुछ लड़के आ गए थे और वो चादर को स्ट्रेचर की तरह बनाकर घायलों को ले जा रहे थे और शवों को एक तरफ रख रहे थे। उसने पहले उनसे इशारे से एक ढेर की ओर इशारा किया। मम्मी पापा को उसने वहीं छोड़ा था। तभी उसने दूबे भाभी को देखा। लगता है वो अभी आई थी।

दूबे भाभी गुड्डी के घर के नीचे रहती थी और उसी के मुँहल्ले की होने की वजह से उसे अच्छी तरह जानती थी। उन्होंने उसे दुबका लिया और हल्के से पूछा, मम्मी।

रीत ने सिर्फ सिर हिलाया और उंगली से उधर इशारा किया। जिधर वो ढेर था।

दूबे भाभी रीत का हाथ पकड़कर लोगों के शरीर, कराहते घायलों को लांघती वहां पहुँच गई, और एक पुजारी से रिक्वेस्ट की- “पंडित जी एह बिटियवा के माई बाप…”

पुजारी ने उधर एक बार निगाह डाली, बड़ी निराशा से दूबे भाभी की ओर देखकर सिर हिलाया। लेकिन दूबे भाभी ने फिर बोला और वो वहां से उठाने में जुट गया।



सब नि:शेष शरीर।

रीत पैर पकड़ती और वो पुजारी हाथ और। उठाकर वहीं किनारे रखते जाते। चार को हटाने के बाद के बाद उसे मम्मी दिखीं, नाक के पास से खून निकलते हुए बस जम गया था।

पुजारी ने झुककर उल्टे हाथ पे सांस महसूस की और दूबे भाभी की ओर ना के इशारे में सिर हिलाया। लेकिन दूबे भाभी ने खुद झुक के उनकी बाडी चेक की, फिर दूसरे हाथ की। जैसे उन्हें विश्वास नहीं हो रहा हो। उस हाथ के कंगन के पास भी बहुत खून जमा था और सिर हिलाकर रीत की ओर देखा। उनकी निराश आँखों ने सब कुछ कह दिया।

मम्मी का सिर और धड़ पापा के ऊपर था। बाकी बाडीज की तरह, उसने मम्मी का पैर पकड़ा और पुजारी ने हाथ और किनारे रख दिया।

पापा के शरीर पर चोट का कोई निशान ऊपर नजर नहीं आ रहा था। उसे कुछ उम्मीद नजर आई। लेकिन उसके पहले वो पुजारी ने ही झुक कर सांस देखी और साथ में स्ट्रेचर वाले को बुलाया। दूबे भाभी ने भी एक नाड़ी पकड़ी। और रीत ने भी।

लेकिन कुछ नहीं बचा था।

तभी लोगों ने देखा। सिर के पीछे जमींन पर ढेर सारा खून, कुछ जम गया था, कुछ अभी भी गीला था। तब तक वहां ढेर सारे पुलिस वाले, अम्बुलेंस, सरकारी गाड़ियां आ गईं। एक पुलिस का इंस्पेक्टर आया और उन लोगों को हटाने लगा।

चलिए चलिए, हटिये सारी बाडीज मार्चरी जायेंगी।

तब तक पुजारी ने उसके कान में कुछ कहा और उसने बाडी, पापा की ओर देखा ओर पहचान लिया। रीत के पापा बनारस क्या पूरे पूर्वांचल के सबसे मशहूर वकील थे। अब उसने रीत की ओर देखा और आप। धीमे से बोला।

दूबे भाभी बोली- “वकील साहेब की लड़की…”

रीत ने पूछा- “हल्की आवाज में, हम लोग ले जा सकते हैं इनको। मम्मी पापा को…”

सब लोग चुप थे लेकिन फिर इन्स्पेक्टर ने बोला- “हमारी मजबूरी है, पोस्टमार्टम करना होगा। सबसे पहले आपका ही। कोई आ जाय दस ग्यारह बजे दिन में…”

तब तक दो मजिस्ट्रेट और सिटी एस पी आ गए थे। इंस्पेक्टर ने रीत के पापा की बाड़ी की ओर इशारा किया। उन लोगों ने भी पहचान लिया। तब तक कुछ होमगार्ड वाले बाड़ीज को उठा-उठाकर पी ए सी की ट्रक में रख रहे थे। जब वो रीत के पापा को।

मजिस्ट्रेट ने बोला- “सम्हालकर…”

रीत पत्थर की हो गई थी। चारों ओर चीख पुकार रोने चिल्लाने की आवाज। लेकिन उसकी आँख से ना आँसू निकला ना मुँह से बोल। वह खड़ी थी इसलिए जिन्दा लग रही थी। थोड़ी देर में पूरा इलाका खाली हो गया। डेड बाडीज, घायल, बचे लोग, सब चले गए।

कुछ तमाशबीन थे, पुलिस उन्हें भी हटा रही थी। अब सिर्फ बाम्ब डिस्पोजल स्क्वाड वाले, फोरेंसिक टीम, इन्वेस्टिगेशन टीम यही लोग चारों और दिख रहे थे। और इधर-उधर बिखरी चप्पले, जमा बिखरा खून। और उन सबके बीच रीत पत्थर की। दो बार दूबे भाभी ने उसे चलने का इशारा किया। एक-दो बार पुलिस वालों ने भी बोला। लेकिन वह संज्ञा शून्य हो गई थी।

तभी एक पुलिस इंस्पेक्टर आया, चेतगंज थाना में था और उन लोगों के पास दूबे भाभी के पास रुका। उनका कोई सम्बन्धी था, और उनको प्रणाम करने के बाद बोला-

“रेलवे स्टेशन पे तो इससे भी ज्यादा तबाही है। शिवगंगा में, स्टेशन पे भी बम फटा है। बाडी बिछी पड़ी है…”

दूबे भाभी को कुछ याद आया और रीत को जोर-जोर से हिलाते हुयें बोली- “हे सुन। आज करन को जाना था ना शिवगंगा से। उसके मम्मी पापा छोड़ने गए थे ना उसको…”

अब रीत होश में आई- “क्या हुआ करन को?”



जवाब इंस्पेक्टर ने दिया- “ऐसा बम शिवगंगा ट्रेन और कैंट स्टेशन में भी फूटा है। बहुत हालत खराब है आप का कोई परिचित था क्या स्टेशन पे। ट्रेन में।
 
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रीत करन -चंद्र ग्रहण



रीत की प्रीति आपने पढ़ी थी पेज ४३ पर

यह प्रसंग ठीक उसके बाद का है , सारे सहृदय मित्रों से अनुरोध है इसे पढ़ के अपने मंतव्य जरूर बताएं।
 
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komaalrani

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***** ***** करन



अब रीत होश में आई- “क्या हुआ करन को?”

जवाब इंस्पेक्टर ने दिया- “ऐसा बम शिवगंगा ट्रेन और कैंट स्टेशन में भी फूटा है। बहुत हालत खराब है आप का कोई परिचित था क्या स्टेशन पे। ट्रेन में।

“हाँ…” रीत की धड़कन फिर से चल रही थी।

“चलिए फिर मेरी बाइक पे बैठ जाइये। वैसे तो घुसना मुश्किल होगा वहाँ… और रीत उसके बाइक पे बैठ गई। वो दुबे भाभी से बोला अच्छा बुआ चलते हैं। लौटकर इनको आपके यहां छोड़ देंगे। रेक्शा वेक्सान तो मिलेगा नहीं…”

दूबे भाभी बोली- “ले जा भैया। कम से कम उन्हा सब ठीक होय। करन को कुछ न हुआ हो। रीत भी रास्ते भर यही मनाती रही। सभी देवता पित्तर, गंगा मैया की आर पार की चुनरी, क्या-क्या नहीं मान लिया उसने और बस वो वही बुदबुदा रही थी।

करन ठीक है। करन ठीक है, करन को कुछ नहीं हुआ है। करन को कुछ नहीं हो सकता।

रास्ते भर सन्नाटा पसरा था सब दुकानें बंद। कोई रिक्शा गाड़ी कुछ नहीं। सिर्फ चीखती अम्बुलेंस। सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियां और एक-दो मीडिया वैन। जव वो स्टेशन पहुँची। पहला सवाल उसने यही पूछा कोई कुली था-

शिवगंगा?

वो बिना रुके बोला दो घंटे बाद जायेगी। लेकिन जायेगी। और वो बम वाली बात, शिवगंगा में। रीत की धड़कन तेजी से चल रही थी।

अब वो कुली रुक गया और बोला- “अफवाह थी ट्रेन में कोई बाम्ब नहीं था अभी कुत्ता से जांच कर रहे हैं…लेकिन प्लेटफार्म पर बाम्ब बहुत तगड़ा था बहुत लोग मरे हैं। अब पुलिस वाले किसी को भी घुसने नहीं दे रहे हैं।"

लेकिन रीत उस पुलिस इंस्पेक्टर के साथ थी इसलिए प्लेटफार्म पे घुस गई। वहां का मंजर और खौफनाक था। प्लेटफार्म पर सिर्फ पुलिस वाले ही नजर आ रहे थे। कुछ पुलिस वाले डेड बाडीज को एक लाइन में लगा रहे थे। और वही उसी में रीत ने देखा।

करन के डैड को, चेहरा उनका बहुत जख्मी था, आँखें अभी भी खुली थी। रीत वहीं जाकर खड़ी हो गई और जो पोलिस वाला लिस्ट बना रहा था, उससे उस बाड़ी की ओर इशारा किया।

“तुम जानती हो इनको…” पुलिस वाले ने मुड़कर पूछा।

जी रीत ने बोला, और उनका नाम पता सारे डिटेल बताए। और तुम क्या लगती हो इनकी अपना नाम नोट कराओ, पुलिस वाले ने पूछा। उसके साथ जो दूबे भाभी का रिश्तेदार चेतगंज थाने का इन्स्पेक्टर था उसने बोला पड़ोस की है।

लेकिन रीत बोली- “मेरा नाम नवरीत है, और मैं पड़ोस की हूँ। और रिश्तेदार भी।

पुलिस वाले ने नोट कर लिया।

उसकी निगाहें पूरे प्लेटफार्म पर टहल रही थी पुलिस वालों के अलावा वहां कोई और जिन्दा नहीं था । करन कहीं नजर नहीं आया। शिवगंगा ट्रेन लगी हुई थी। उसे खींचकर दूसरे प्लेटफार्म पे शिफ्ट किया जा रहा था।

तभी उसकी निगाह एक और बाडी पे पड़ी कोई महिला। हाथ अलग, हाथ में कुछ पकड़े थी। रीत बढ़कर वहां पहुँची। चेहरा पहचानना मुश्किल हो रहा था। लेकिन रीत के लिए, उसने इशारे से पुलिस वाले को बुलाया और बोली- “ये करण… मेरा मतलब… करन के डैड की बाड़ी की ओर इशारा करके बोला। इनकी वाइफ हैं…”

पुलिस वाले ने नोट कर लिया और बोला की-

“अच्छा हुआ की आप आ गईं वरना हम इन्हें अन क्लेम्ड बाडिस में डाल देते। कल आप मार्चरी में आ जाइयेगा। बाड़ी हम आपको ही देंगे वरना कई बार काम्प्लिकेशन हो जाती है…”

फिर मुड़कर उसके साथ वाले इन्स्पेक्टर से बोला की ब्लास्ट इसी बेंच के पास हुआ था, इसलिए इसके आस पास सबसे ज्यादा डैमेज हुआ है और बाडीज भी बहुत खराब हालत में हैं।

रीत की निगाह भी बेंच की ओर पड़ी और वो बहुत जोर से चीख उठी। भयानक हृदय विदारक चीख। बेंच जली मुड़ी एक ओर को झुकी पड़ी थी। और उसपर एक अधजला कोट पड़ा था। और एक सिर विहीन पूरी तरह नष्ट विक्षत शरीर। उसके टुकड़े इधर-उधर।

“करण…” जोर से चीखी रीत।

ये बड़े चेक वाले कोट को वो सोते-सोते भी पहचान सकती थी। कितना चिढ़ाती थी उसे। लेकिन करन नए कोट के लिए तैयार नहीं होता था। उसकी बड़ी-बड़ी पाकेट। वो कोट के पास आकर खड़ी हो गई। पथराई निगाहों से देख रही थी। कुछ नहीं बचा अब। मम्मी पापा और अब। करण।

आप ये कोट पहचानती हैं?” पुलिस वाले ने हल्के से उससे पूछा…”

रीत ने हामी में सिर हिलाया और उसकी ओर मुड़कर बोली- “करन… करन का है…”

दूबे भाभी के रिश्तेदार इन्स्पेक्टर ने बोला।

"वो जो दोनों बाड़ी देखा था ना। उन्हीं के लड़के। "

पुलिस वाले ने लिस्ट में करन का नाम नोट कर लिया। बेंच से थोड़ी दूर छिटका हुआ एक लैपटाप का बैग अधजला पड़ा था। पुलिस वाले ने उसकी और इशारा करके पूछा बोला- “इसे पहचानती हैं?”

“हाँ…” डबडबाती आँखें ऊपर करके वो बोली- करन का है है मेरे साथ ही लिया था।

पुलिस वाले ने लिस्ट में कुछ और नोट कर लिया। तब तक पुलिस वाले को उसके किसी सीनियर आफिसर ने बुलाया और वो उधर मुड़ गया।

रीत ने कोट के बाहर की जेब में हाथ डाला। वो पीला गुलाब जो घंटे भर पहले उसकी चोटी में था। खून से लथपथ। अन्दर की जेब में रीत ने हाथ डाला। उसकी चिट्ठियों का पुलिंदा। जो करन हमेशा अपने पास रखता था। चिट्ठियां और गुलाब रीत के हाथों में थे।

और अब रीत। पागल हो गई। वह एक बार फिर से चीखी।

कर न।

और आस पास दौड़ दौड़कर। हाथ पैर। उंगलियां। ला ला कर लगाने लगी। जैसे सब जोड़-जोड़ कर अपने करन को वो फिर से जिन्दा कर लेगी। आस पास के सारे पुलिस वाले दौड़ पड़े और रीत को पकड़ने लगे। लेकिन उसके अन्दर जैसे दस आदमियों का बल आ गया था। वह छुड़ाकर बेंच के नीचे पड़े शरीर के हिस्सों को उठाने लगी।

किसी तरह पुलिस वाले उसे खींचकर वहां से ले गए और उसे प्लेटफार्म से बाहर किया। तभी किसी ने बोला की उस बाड़ी का सिर मिल गया है। लेकिन। ब्लास्ट से वो रेलवे ट्रेक पर फिंक गया था और उसी समय उसके ऊपर से एक शंटिंग इंजिन,

दूबे भाभी के रिश्तेदार जो इन्स्पेक्टर थे। उन्होंने रीत को दूबे भाभी के घर छोड़ दिया। रीत का घर उनके घर के ही था। रीत के बिना बोले ही वो समझ गईं। कुछ नहीं बचा।
 
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komaalrani

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स्मृति शेष



वो उसका हाथ पकड़कर रीत को, रीत के घर ले आई। बाहर बहुत भीड़ थी। सबको धीरे-धीरे खबर हो रही थी। उनके जूनियर वकील, शहर के ढेर सारे लोग। घर में ताला बंद था। सब लोग सांत्वना के शब्द उससे कह रहे थे। पर वह कहने सुनने से कहीं बहुत दूर थी। तभी पड़ोस की एक महिला, जिन्हें नहीं मालूम था की क्या हो गया है आई। और रीत के कंधे पे टोकती बोली-

“अरे, ताला बंद है, चाभी कहाँ है?”

“मम्मी के पास…” रीत बुदबुदाई

“मम्मी कहाँ हैं?” वो फिर बोली।

रीत ने आसमान की ओर उंगली उठा दी। बिना बोले। भगवान के पास। सबकी आँखें नम हो उठी। दूबे भाभी खींचकर उस महिला को ले गईं और कान में फुसफुसाया।

दूबे भाभी की सास नहीं थी लेकिन जब वो विदा होकर आई तो परछन रीत की मम्मी ने ही किया, सब रस्म। मुँह दिखाई से लेकर कंगन छुड़ाने तक और जब दूबे जी भारी मुसीबत में फँसे थे थाना कचहरी सब हो जाता। वकील साहेब रीत के पिता जी ने ही बचाया था।

किसी वकील ने ताला खोलने वाले को बुलाकर घर खुलाया। अब रीत की कुछ होश आया। कहीं से ढूँढ़ कर मम्मी पापा की फोटो। एक ही फोटो थी। दोनों की साथ-साथ। ड्राइंग रूम में रखी।

किसी ने माला लाकर चढ़ा दिया। रीत वहीं चुपचाप बैठी रही, मुँह झुकाए। गुड्डी ने उससे बोला की करन के कजिन को खबर दे दी गई है। गुड्डी के पास उनकी भाभी का नम्बर था। लेकिन वो लोग परसों शाम तक ही पहुँच पाएंगे। उन्होंने बोला है की उनका इंतेजार ना करें।

गुड्डी, दूबे भाभी, और मुँहल्ले की कुछ औरतें। रात में रीत के साथ ही रही। उस रात पूरे मुँहल्ले में कहीं चुल्हा नहीं जला।

और वह मुँहल्ला। बनारस का ऐसा अकेला मुँहल्ला, उस दिन नहीं था।

अगले दिन लोगों ने मना किया, की रीत के मार्चुरी जाने की जरूरत नहीं है बाडीज को रिसीव करने के लिए।

लेकिन वो गई। पोस्टमार्टम के बाद एक मैदान में बाडीज रखी थी। कुल अट्ठाईस बाडीज थी लेकिन बाहर सौ से ऊपर लोग थे। आठ बाडीज अभी भी आइदेन्तिफाइड नहीं थी। वो लोग भी लाइन में खड़े हो गए। सब लोग चुप दुखी परेशान। लाइन में लोग अन्दर जाते। और अन आइदेन्तिफाइड बाडीज में उनके परिवार के लोग नहीं होते तो चैन की सांस ले बाहर निकलते।

और जिन्हें अपने घर का कोई मिलता फिर रोना चीखना। तीन बाडीज बहुत क्षत विक्षत थी। वो कैस्केट में बंद थी और उनके आगे नाम लिखा था। करन भी वहीं था।

करन के परिवार की भी,

रीत ने ही रिसीव किया। शाम को मणिकर्णिका घाट पर पूरा बनारस था। करन के कजिन को कल आना था। और रीत ने ही सब कुछ। एक लड़की के साथ कोई नहीं था घाट वाले जल्दी कर रहे थे। रीत को उसका चेहरा याद था कल वो मंदिर में जो एक्जाम देकर स्टूडेंट्स आये थे। उन्हीं में से एक थी।

इसके साथ कोई है - इसके साथ कोई है - घाट वाले ने पूछा

“मैं हूँ…” रीत ने बोला।


“नाम…” घाट वाले पूछा।

“नवरीत…” रीत ने बोला और घाट वाले ने नोट कर लिया।


उसका भी अंतिम संस्कार उन्हीं लोगों ने।

रीत अकेली नहीं थी। पूरा मोहल्ला, गुड्डी उसका पूरा परिवार, पापा के दोस्त। सैकड़ों लोग थे।

लेकिन जब रात को रीत घर लौटी। तो अकेली थी। वैसे घर पे कई लोग रुके उस दिन रात को। दूबे भाभी, गुड्डी, पापा के कुछ दोस्त।

बार-बार उसकी नजर करन के घर पे पड़ती। अँधेरे में डूबा। लेकिन कुछ दिनों में सबकी अपनी जिंदगी अपने काम। सिवाय दूबे भाभी के और गुड्डी और उसके परिवार के। दूबे भाभी ने उसे कित्ती बार कहा की वो चल के उसके घर चल के रहे लेकिन रीत नहीं मानी।

अब वह बोलती भी नहीं थी। एक उसकी पुरानी नौकरानी थी। वो उसके साथ आकर रहने लगी। इसी बीच गुड्डी के पापाके कुछ दोस्त रेलवे में थे, उन्होंने भी चेक कराया। करन की वो सीट ट्रेन में खाली गई। वो अपनी सीट पर बैठा ही नहीं था। उन्होंने ऐसी-2 के टीटी से पुछवाया था। दिल्ली पहुँचने पर पुलिस ने भी पूरी ट्रेन चेक की थी।

करन के कजिन दो दिन बाद आये। उसकी भाभी भी। वो लोग रीत से भी मिलने आये। उन्होंने आई॰एम॰ए॰ से भी बात की थी। करन वहां भी नहीं पहुँचा।

वो करन ही था, उसकोट में। ट्रेन चलने में अभी टाइम था। और उसकी माँ की बाड़ी भी एकदम पास मिली थी।

अब रीत की हिम्मत भी जवाब दे रही थी। विश्वास भी। पहले तो वो बुदबुदाती रहती, करन है, करन है। कुछ-कुछ लोग हामी भी भरते।

कौन उसे समझाता हाँ करन, है। उसके ख्यालों में। उसके ख़्वाबों में।

लेकिन गुड्डी आती। रोज आती, बिना नागा। घंटों उसके पास बैठती।

रीत कुछ नहीं बोलती। तब भी। और कभी-कभी जब वो बोलती तो रीत खुद को ब्लेम करती की हर बार वो करन को छोड़ने स्टेशन जाती थी उस बार नहीं गई। इसीलिए करन नाराज होकर कहीं चला गया।

कभी कहती उस दिन अगर प्रसाद लेकर वो जल्दी चली आती। तो मम्मी पापा के साथ वो भी। उसे जिन्दा रहने का कष्ट तो नहीं झेलना पड़ता।

गुड्डी बिचारी क्या बोलती। बस उसका हाथ पकड़कर बैठी रहती। रीत कभी बोलती। वो अभिशप्त है। जिसने उसको प्यार किया। उसके पास आया। वो चला गया। फिर वो गुड्डी की ओर खाली खाली आँखों से देखती और बोलती-

“तू मत आया कर मेरे पास। वरना जल्दी ही तेरा भी नम्बर आ जाएगा और फिर खाली सूखी हँसी हँसती…”

कोई दूसरा होता तो डर कर भाग जाता। लेकिन गुड्डी बैठी रहती रीत के पास। कुछ लोग कहते की वो जोर-जोर से रोई नहीं है इसलिए सदमे से बाहर नहीं आ पा रही है। कोई डाक्टर को दिखाने के लिए बोलते। रीत ने स्कूल जाना छोड़ दिया था। बल्की घर से निकलना भी।


और एक दिन वो हुआ जो।

रीत घर से चली गई।

गुड्डी कहीं चार-पांच दिनों के लिए गई थी लौटकर आई। तो पता चला। सब लोग परेशान, सबसे ज्यादा दूबे भाभी। उन्होंने बताया की। रीत की नौकरानी ने दो दिन पहले आकर बताया की रीत कहीं गई थी। लेकिन नहीं लौटी।

जब दूबे भाभी ने डांटा तब उसने कबूला की रीत तीन दिन से घर पर नहीं है। और उसके पहले भी कई बार रात रात भर।

गुड्डी के पापा मुँहल्ले के कई लोग खुद दूबे भाभी। कहाँ कहाँ नहीं गए। घाटों पर। रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, कोतवाली शहर के सारे हास्पिटल, मार्चरी लेकिन उस दिन किसी ने बोला की चार दिन पहले उसे उन्होंने। सुखमयी माँ के आश्रम में देखा था। एक कोने में अकेले बैठी थी।
 
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komaalrani

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रीत करन -चंद्र ग्रहण

please do read, and share your thoughts, thanks.
 
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Shetan

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रीत करन -चंद्र ग्रहण

please do read, and share your thoughts, thanks.
Pura man dukhi ho gaya komalji.

Paheli bar ese seen likhe. Aap dukh likhti to sirf judai. Lekin ye bahot dard bhara kissa he. Pata nahi kyo dill itna jyada bhavuk kar diya aapne.

Aaj mere pas bolne ko kuchh nahi he
 
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तो रीत की प्रीत के ये पल आपके हवाले,

कैसे लगे जरूर बताइयेगा,... फ़िल्मी अंत्याक्षरी, पुराने गाने और फिर थोड़ा और बड़े होने पर कवितायें

लेकिन कैशोर्य की बातें अक्सर बिन बोले या ऐसे ही शायद कही जाती हैं

ढाई आखर प्रेम का

और ये ढाई आखर बड़े मुश्किल पड़ते हैं जिसने पढ़ लिया उसको भी और जो नहीं पढ़ पाया उसको भी।
Perfect
 
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स्मृति शेष



वो उसका हाथ पकड़कर रीत को, रीत के घर ले आई। बाहर बहुत भीड़ थी। सबको धीरे-धीरे खबर हो रही थी। उनके जूनियर वकील, शहर के ढेर सारे लोग। घर में ताला बंद था। सब लोग सांत्वना के शब्द उससे कह रहे थे। पर वह कहने सुनने से कहीं बहुत दूर थी। तभी पड़ोस की एक महिला, जिन्हें नहीं मालूम था की क्या हो गया है आई। और रीत के कंधे पे टोकती बोली-

“अरे, ताला बंद है, चाभी कहाँ है?”

“मम्मी के पास…” रीत बुदबुदाई

“मम्मी कहाँ हैं?” वो फिर बोली।

रीत ने आसमान की ओर उंगली उठा दी। बिना बोले। भगवान के पास। सबकी आँखें नम हो उठी। दूबे भाभी खींचकर उस महिला को ले गईं और कान में फुसफुसाया।

दूबे भाभी की सास नहीं थी लेकिन जब वो विदा होकर आई तो परछन रीत की मम्मी ने ही किया, सब रस्म। मुँह दिखाई से लेकर कंगन छुड़ाने तक और जब दूबे जी भारी मुसीबत में फँसे थे थाना कचहरी सब हो जाता। वकील साहेब रीत के पिता जी ने ही बचाया था।

किसी वकील ने ताला खोलने वाले को बुलाकर घर खुलाया। अब रीत की कुछ होश आया। कहीं से ढूँढ़ कर मम्मी पापा की फोटो। एक ही फोटो थी। दोनों की साथ-साथ। ड्राइंग रूम में रखी।

किसी ने माला लाकर चढ़ा दिया। रीत वहीं चुपचाप बैठी रही, मुँह झुकाए। गुड्डी ने उससे बोला की करन के कजिन को खबर दे दी गई है। गुड्डी के पास उनकी भाभी का नम्बर था। लेकिन वो लोग परसों शाम तक ही पहुँच पाएंगे। उन्होंने बोला है की उनका इंतेजार ना करें।

गुड्डी, दूबे भाभी, और मुँहल्ले की कुछ औरतें। रात में रीत के साथ ही रही। उस रात पूरे मुँहल्ले में कहीं चुल्हा नहीं जला।

और वह मुँहल्ला। बनारस का ऐसा अकेला मुँहल्ला, उस दिन नहीं था।

अगले दिन लोगों ने मना किया, की रीत के मार्चुरी जाने की जरूरत नहीं है बाडीज को रिसीव करने के लिए।

लेकिन वो गई। पोस्टमार्टम के बाद एक मैदान में बाडीज रखी थी। कुल अट्ठाईस बाडीज थी लेकिन बाहर सौ से ऊपर लोग थे। आठ बाडीज अभी भी आइदेन्तिफाइड नहीं थी। वो लोग भी लाइन में खड़े हो गए। सब लोग चुप दुखी परेशान। लाइन में लोग अन्दर जाते। और अन आइदेन्तिफाइड बाडीज में उनके परिवार के लोग नहीं होते तो चैन की सांस ले बाहर निकलते।

और जिन्हें अपने घर का कोई मिलता फिर रोना चीखना। तीन बाडीज बहुत क्षत विक्षत थी। वो कैस्केट में बंद थी और उनके आगे नाम लिखा था। करन भी वहीं था।


करन के परिवार की भी,

रीत ने ही रिसीव किया। शाम को मणिकर्णिका घाट पर पूरा बनारस था। करन के कजिन को कल आना था। और रीत ने ही सब कुछ। एक लड़की के साथ कोई नहीं था घाट वाले जल्दी कर रहे थे। रीत को उसका चेहरा याद था कल वो मंदिर में जो एक्जाम देकर स्टूडेंट्स आये थे। उन्हीं में से एक थी।

इसके साथ कोई है - इसके साथ कोई है - घाट वाले ने पूछा

“मैं हूँ…” रीत ने बोला।


“नाम…” घाट वाले पूछा।

“नवरीत…” रीत ने बोला और घाट वाले ने नोट कर लिया।


उसका भी अंतिम संस्कार उन्हीं लोगों ने।

रीत अकेली नहीं थी। पूरा मोहल्ला, गुड्डी उसका पूरा परिवार, पापा के दोस्त। सैकड़ों लोग थे।

लेकिन जब रात को रीत घर लौटी। तो अकेली थी। वैसे घर पे कई लोग रुके उस दिन रात को। दूबे भाभी, गुड्डी, पापा के कुछ दोस्त।

बार-बार उसकी नजर करन के घर पे पड़ती। अँधेरे में डूबा। लेकिन कुछ दिनों में सबकी अपनी जिंदगी अपने काम। सिवाय दूबे भाभी के और गुड्डी और उसके परिवार के। दूबे भाभी ने उसे कित्ती बार कहा की वो चल के उसके घर चल के रहे लेकिन रीत नहीं मानी।

अब वह बोलती भी नहीं थी। एक उसकी पुरानी नौकरानी थी। वो उसके साथ आकर रहने लगी। इसी बीच गुड्डी के पापाके कुछ दोस्त रेलवे में थे, उन्होंने भी चेक कराया। करन की वो सीट ट्रेन में खाली गई। वो अपनी सीट पर बैठा ही नहीं था। उन्होंने ऐसी-2 के टीटी से पुछवाया था। दिल्ली पहुँचने पर पुलिस ने भी पूरी ट्रेन चेक की थी।

करन के कजिन दो दिन बाद आये। उसकी भाभी भी। वो लोग रीत से भी मिलने आये। उन्होंने आई॰एम॰ए॰ से भी बात की थी। करन वहां भी नहीं पहुँचा।


वो करन ही था, उसकोट में। ट्रेन चलने में अभी टाइम था। और उसकी माँ की बाड़ी भी एकदम पास मिली थी।

अब रीत की हिम्मत भी जवाब दे रही थी। विश्वास भी। पहले तो वो बुदबुदाती रहती, करन है, करन है। कुछ-कुछ लोग हामी भी भरते।


कौन उसे समझाता हाँ करन, है। उसके ख्यालों में। उसके ख़्वाबों में।

लेकिन गुड्डी आती। रोज आती, बिना नागा। घंटों उसके पास बैठती।

रीत कुछ नहीं बोलती। तब भी। और कभी-कभी जब वो बोलती तो रीत खुद को ब्लेम करती की हर बार वो करन को छोड़ने स्टेशन जाती थी उस बार नहीं गई। इसीलिए करन नाराज होकर कहीं चला गया।

कभी कहती उस दिन अगर प्रसाद लेकर वो जल्दी चली आती। तो मम्मी पापा के साथ वो भी। उसे जिन्दा रहने का कष्ट तो नहीं झेलना पड़ता।

गुड्डी बिचारी क्या बोलती। बस उसका हाथ पकड़कर बैठी रहती। रीत कभी बोलती। वो अभिशप्त है। जिसने उसको प्यार किया। उसके पास आया। वो चला गया। फिर वो गुड्डी की ओर खाली खाली आँखों से देखती और बोलती-

“तू मत आया कर मेरे पास। वरना जल्दी ही तेरा भी नम्बर आ जाएगा और फिर खाली सूखी हँसी हँसती…”

कोई दूसरा होता तो डर कर भाग जाता। लेकिन गुड्डी बैठी रहती रीत के पास। कुछ लोग कहते की वो जोर-जोर से रोई नहीं है इसलिए सदमे से बाहर नहीं आ पा रही है। कोई डाक्टर को दिखाने के लिए बोलते। रीत ने स्कूल जाना छोड़ दिया था। बल्की घर से निकलना भी।


और एक दिन वो हुआ जो।

रीत घर से चली गई।

गुड्डी कहीं चार-पांच दिनों के लिए गई थी लौटकर आई। तो पता चला। सब लोग परेशान, सबसे ज्यादा दूबे भाभी। उन्होंने बताया की। रीत की नौकरानी ने दो दिन पहले आकर बताया की रीत कहीं गई थी। लेकिन नहीं लौटी।

जब दूबे भाभी ने डांटा तब उसने कबूला की रीत तीन दिन से घर पर नहीं है। और उसके पहले भी कई बार रात रात भर।

गुड्डी के पापा मुँहल्ले के कई लोग खुद दूबे भाभी। कहाँ कहाँ नहीं गए। घाटों पर। रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, कोतवाली शहर के सारे हास्पिटल, मार्चरी लेकिन उस दिन किसी ने बोला की चार दिन पहले उसे उन्होंने। सुखमयी माँ के आश्रम में देखा था। एक कोने में अकेले बैठी थी।
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komaalrani

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रीत -करन पुनर्मिलन



और जब करन कोकर्नल अहलूवालिया ने बोला की बनारस में एक बड़ा टेरर प्लाट पनप रहा है वो तुरन्त चल दिया।

बस उसने आई॰बी॰ वालों को बोला था की वो मीटिंग में थोड़ा लेट आयेगा उसे थोड़ा काम है।

बाबतपुर एयरपोर्ट से वो सीधे घाट पर गया, गंगा के किनारे। जिस अंतिम समय माँ पिता को बेटे की आवश्यकता होती है वो नहीं था। उसने मम्मी पापा को तर्पण दिया।

पण्डे ने पूछा- “और कोई?”
करन के मन में एक चुलबुली सी लड़की की तस्वीर उभरी। पहले वो बुदबुदाया- “हाँ। फिर जोर से बोला नहीं…”
वही गंगा के तट पे वो खड़ा रहा। फिर कुछ सोचकर उसने घाट वाले से पूछा- “आपके पास वो रजिस्टर होगा जिसमें नाम लिखा रहता है जिन लोगों का…”

“हाँ हाँ एकदम। बिना नाम बताये तो हम लोग…” और दौड़कर रजिस्टर ले आया।

“वो जो बम ब्लास्ट हुआ था आठ मार्च की डेट होगी…” करन ने कांपते हुए पूछा और उस आदमी ने पन्ना खोल कर उसके सामने कर दिया।

वो बस मना रहा था। नवरीत का नाम ना हो। नवरीत का नाम ना हो। वो आलमोस्ट पेज के अंत तक पहुँच गया था। अब तक नवरीत का नाम नहीं था। लेकिन अंत में, अंतिम नाम के पहले नवरीत लिखा था। वो जड़ हो गया। सिर्फ उसने उंगली से उस नाम की ओर इशारा किया घाट वाले को।

“ये लड़की। बच्ची थी बिचारी, मैंने ही तो कराया था इसका काम…”

“उम्र क्या रही होगी?” किसी तरह से करन ने पूछा।

“अरे ग्यारवी बारहवीं में पढ़ती रही होगी, सतरह अट्ठारह…”



और उसी के साथ सब कुछ रीत गया। बची खुची उम्मीद आशा। गंगा में घुल रही राख की तरह विलीन हो गई। बूँद-बूँद। घाट वाले ने रजिस्टर उसके हाथ से ले लिया। करन अपनी टैक्सी की ओर मुड़ा। भारी कदम। जैसे अपने कंधे पर अपना शव लिए। जब वो मीटिंग में घुसा तो बस उसे ये लग रहा था की ज़िंदा रहना कितनी बड़ी सजा है।

मीटिंग में आई॰बी॰ वालों ने उसे उसकी सीट बतायी। लेकिन उसके पहले उसकी नजर सामने बैठी लड़की पर पड़ी। गोरी, किशोरी, तन्वंगी। एकदम कैट जैसी और अचानक वो चिल्लाया- “रीत…”

और वो भी उसी तरह खड़ी होकर चिल्लाई- “करन…”

और वो दोनों क्या-क्या बोलते रहे। मीटिंग में क्या हुआ दोनों को कुछ नहीं पता चला।बस दोनों की आँखें एक दूसरे को दुलराती रही, सहलाती रही।

बिना बोले वो मुँह भर बतियाते रहे। बस उसे लग रहा था की ज़िंदा रहना कितना अच्छा है और मीटिंग के बाद उन दोनों ने एक दूसरे को बस भींच लिया। जैसे आज दुनियां का आखिरी दिन है।

उसके बाद बाद करन बोला-

“मैंने बहुत कोशिश की तुम्हारे नाम से। “नवरीत…” का कोई रिकार्ड नहीं मिला, क्रेडिट कार्ड, बैंक का एकाउंट, सिम कार्ड। तुम्हारे नाम से कुछ नहीं मिला…”

“मैं। हाँ। बहुत दिन तक एक दूसरी दुनियां में चली गई थी और उसमें से निकली तो। तो। तुम मुझे रीत कहते थे ना। तो मैंने अपना नाम रीत कर लिया। इसीलिए नवरीत के नाम से कुछ नहीं मिला होगा। नवरीत अब है नहीं। बस तुम्हारी रीत है…”

उसका हाथ अपने हाथ से कसकर दबाती रीत बोली।

“और मैंने स्कूल में भी चेक किया…” करन बोला।

“मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया था। नाम कट गया। अब दूसरे स्कूल में एडमिशन ले लिया था। वहीं से इंटर कर लिया है और रिजल्ट के बाद बी काम करूँगी। “कालेज में भी नाम रीत ही है इसलिए…”

वो ब़स करन को देखे जा रही थी।

“और। और वो बात शायद करन बोलना नहीं चाहता था। बोल दिया- “लेकिन मैं यहाँ आने से पहले घाट पे गया था। वहां रजिस्टर में ‘नवरीत’ करन ने हिचकिचाते कहा।

“वो। वो शायद मेरी गलती थी। पर उस समय घाट पर एक लड़की की, मेरी ही एज की रही होगी। उसके साथ कोई नहीं था कृमेशन के लिए, घाट वाले बार-बार कह रहे थे की कौन है इसके साथ। मैंने बोल दिया। मैं हूँ उसके साथ। हम लोगों ने उसका भी। किसी ने नाम पूछा। मुझे लगा मेरा नाम पूछ रहे हैं। मैंने बता दिया नवरीत। शायद इसीलिए…” रीत बोली।

“चलो अब कोई बात नहीं मिल तो गए ना हम दोनों…”

रीत के कंधे पर हाथ रखकर मुश्कुराते हुए हुए, करन ने अपना हाथ रख दिया।
 
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