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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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रीत -करन पुनर्मिलन



रीत के कंधे पर हाथ रखकर मुश्कुराते हुए हुए, करन ने अपना हाथ रख दिया।

“तुम्हारे उस घटिया चेक वाले कोट ने। जब मैं स्टेशन पर पहुँची वो कोट, तुम्हारा लैप टाप एक बेंच पर। बाडी के पार्ट अलग-अलग, सिर तो मिला ही नहीं और मम्मी जी के भी एकदम पास में। इसलिए मैंने, सबने समझा की…”

रीत रुक रुक कर बोली।

“असल में मैंने अपनी सीट पर कोट रखकर और लैपटाप रखकर वहीं सामने वाले सीट पर मेरे ही उमर का एक लड़का बैठा था। उसे बोला देखने के लिए और बाथरूम चला गया। लौट कर आया तो ना लैपटाप, ना कोट और ना लड़का, नीचे मैं जैसे उतरा तो बाम्ब एक्सप्लोड हो गया और मम्मी भी मुझे समझ कर कोट देखकर उसकी और बढ़ी होंगी, इसलिए…”

करन ने सफाई दी।

“और गुड्डी के पापा ने ट्रेन के टीटी से बात की। फिर दिल्ली में पूरी ट्रेन छनवाई। लेकिन तुम ना अपनी सीट पर मिले, ना कहीं ट्रेन में इसीलिए कोट देखकर सबने यही समझा…” रीत ने हौले से बोला।

करन ने एक्सप्लेन किया-

“मैं बेहोश होकर ट्रेन के किसी डिब्बे में पड़ा था। ये तो गनीमत था की कर्नल अहलूवालिया को मैं मिल गया था। उन्होंने अलाहाबाद में किसी बड़े अस्पताल में तुरंत भरती करवाया मेरे ही ब्रेन का आपरेशन हुआ मेजर सर्जरी। डाक्टर ने कहा अगर आधे घंटे की भी देर होती तो मैं डीप कोमा में चला जाता और फिर उससे निकलना बहुत मुश्किल था। फिर तो…”

रीत ने तुरंत अपना हाथ उसके मुँह पर रख दिया और बोली-

“नाम मत लो। क्यों होता तुम्हें कुछ। मुझे ना हो जाता। तुम्हारे लिए मैंने गंगा मैया की आर पार की चुनरी मान रखी है। उस दिन जब मैं स्टेशन जा रही थी। तुम्हें और वो भी तुम्हारे साथ। भैरो बाबा का परसाद। सात सोमवार का व्रत। बहुत खर्च करवाऊँगी तुम्हारा। लेकिन उसके बाद भी हम लोगों ने बहुत ढूँढ़ा। तुम्हारे कजिन ने आई॰एम॰ए॰ भी बात की। लेकिन कोई खोज खबर नहीं मिली…”

“असल में मेरी याददाश्त गायब हो गई थी…” रीत का हाथ दबाते हुए वो बोला।

“मतलब…” रीत ने चौंक कर पूछा।

“मतलब। उस घटना के पहले की कोई भी बात मुझे याद नहीं थी। सब भूल गया था…” करन बोला।



“दुष्यंत की तरह…” फिर गाल फुलाकर रीत बोली- “और तुमने मुझे कोई अंगूठी भी नहीं दी थी।

“लेकिन मेरी याददाश्त भी वापस आ गई। देखो और मैं भी आ गया…” करन ने कसकर रीत को बांहों में भींचते हुए कहा और गाल पे कसकर चूम लिया।

“हे जूठा कर दिया ना। गंदे…” रीत बोली। फिर मुश्कुराते हुए बोली, जानते हो अब मैं दूबे भाभी के साथ रहने लगी हूँ। बहुत खुश होंगी तुम्हें देखकर और हाथ पकड़कर सीधे दूबे भाभी के घर। लेकिन पूरे मुँहल्ले में करन के आने की खबर फैल गई थी और होलिका दहन के साथ दीवाली हो गई थी। था तो वो उसी मोहल्ले का और फिर रीत अब पूरे मोहल्ले की बेटी, ननद।
 
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रीत -करन पुनर्मिलन



लेकिन पूरे मुँहल्ले में करन के आने की खबर फैल गई थी और होलिका दहन के साथ दीवाली हो गई थी। था तो वो उसी मोहल्ले का और फिर रीत अब पूरे मोहल्ले की बेटी, ननद।

दूबे भाभी ने गुलगुले बनाये दोनों के लिए। करन ने खाते-खाते झपट्टा मार कर एक रीत के हाथ से भी खा लिया और उसकी उंगली भी काट ली।

रीत जोर से चिल्लाई- “भाभी ले लिया मेरा। काट लिया…”

दूबे भाभी दौड़ती आई और अपने अंदाज में झुक के उन्होंने पहले तो रीत की शलवार का नाड़ा, कुर्ता उठाकर चेक किया। फिर ऊपर देखा, गाल सहलाया, और हँसकर बोली-

“सब पैकिंग तो दुरुस्त है कैसे ले लिया इसने। झूठ मूठ मेरे सीधे साधे नंदोई को बदनाम करती हो और ले लेगा तो इसका हक है…”


फिर वो करन से बोली- “अगर ये सीधे से ना लेने दे। ना तो मुझे बुला लेना। मैं हाथ पैर पकड़ लूँगी। छोड़ना मत इसे…”

रीत हँसते-हँसते दुहरी हो रही थी- “भाभी। इसको देखकर आज आपने भी पाला बदल लिया…”

“नंदोई और सलहज का रिश्ता ही स्पेशल होता है…” दूबे भाभी हँसते हुए बोली।

“भाभी आपने एकदम सही बोला। और देखिये मैंने एक पंडित को हाथ दिखाया था…”

रीत के प्लेट के गुलगुले खतम करते करन बोला- “वो बोला की तुम्हारे हाथ में, इसी साल एक सुन्दर सी गोरी सी बीबी है। लेकिन थोड़ी नकचढ़ी और छ बच्चे हैं…”

रीत उछल गई और बोली- “ये मुझसे नहीं होने वाला है। एक-दो तक तो ठीक। लेकिन छ…”

दूबे भाभी ने फिर अपने नंदोई यानी करन का साथ दिया। वो रीत को हड़काती बोली-

“तुझे क्या। सारी सारी रात तो ये बेचारा मेहनत करेगा। बस तुम पेट फुला लेना और नौ महीने बाद केहाँ केहाँ। अगले साल फिर। जहाँ बच्चा बाहर, मर्द अन्दर और जब इसको मेहनत करने से कोई ऐतराज नहीं तो तुझे क्या? बस रात रात भर टांग उठाने की प्रैक्टिस शुरू कर दे। तू वैसे भी इतना योग करती है। जिम विम जाती है। तो क्या दिक्कत होगी तुझे…”

रीत हँसते-हँसते पागल हो रही थी, बोली- “भाभी आपने तो बड़े दलबदलू नेताओं को भी मात कर दिया…”

लेकिन दूबे भाभी,... वो भी आज कितने दिन बाद इतनी खुश थी। अब उनका निशाना करन की ओर था-


“भैया। पंडितवा इहे साल बोला था ना…”

रीत ने मुश्कुराते हुए करन को घूरा।

लेकिन वो महा सीरियस और दूबे भाभी से बोला- “हाँ भाभी…”

“त। फिर मई में लगन शुरू हो जायेगी। मई जून में शहनाई बजा दो। बन्ना बन्नी। और ठीक नौ महीने बाद सोहर…” दूबे भाभी ने पूरा प्रोग्राम बना दिया।

“हमारी तो आदत नहीं है बड़े लोगों की बात टालने की। अब जो आप कह रही हैं तो ठीक ही है। हाँ बस अपनी ननद को मनाना, समझाना आपकी जिम्मेदारी है…” बड़ी सीरियसली करन ने दूबे भाभी से बोला।

रीत बड़ी मुश्किल से अपनी मुश्कान दबा पा रही थी। गनीमत थी की उसी समय डी॰बी॰ का फोन आ गया वो उन लोगों का इंतेजार कर रहे थे।

----

और कुछ देर बाद


आज अवध में होरी रे रसिया। अरे आज।

होरी से रसिया, बरजोरी रे रसिया।

पहले करन, फिर रीत भी साथ-साथ गाने लगी-

अरे केके हाथ पिचकारी और के के हाथ अबीरा रे रसिया।

वहां सब अबीर गुलाल उड़ा रहे थे। रीत ने थोड़ा सा गुलाल लेकर करन के गाल में लगा दिया। और जब करन पीछे पड़ा तो वो भाग ली। लेकिन करन ने उसे दबोच लिया और पूरी की पूरी प्लेट भर अबीर उसके ऊपर बाल, गाल सब लाल।

लक्सा की होलिका से वो आगे ही निकले थे की वो ‘स्पेशल’ पान की दुकान पड़ी। रीत ने उसे चढ़ाया। बनारस आये हो और पान ना खाए। फिर बोली की ये स्पेशल पान बनाता है।

करन ने दुकान वाले को पैसा पकड़ाया। तो दुकान वाले ने पूछा- “स्ट्रांग?”

करन पे हल्की-हल्की भांग चढ़ रही थी। वो बोला- “नहीं सुपर स्ट्रांग…”

उसने फिर पूछा- “कितने का?”

करन बोला- “सबका…”

दुकानदार ने अपने हाथ में सौ के दो नोट देखे और फिर पान को और मदन मंजरी डालकर पलंग-तोड़ पान को सुपर स्ट्रांग किया और एक दर्जन पान बाँधकर दे दिए।

सामने ही नत्था हलवाई की दुकान थी। करन बोला दूबे भाभी के लिए गुलाब जामुन ले लें।

रीत खुश होकर बोली। अरे नेकी और पूछ पूछ। एकदम वो भी स्पेशल वाला। करन को क्या मालूम था। स्पेशल मतलब भांग की डबल डोज। एक किलो उसने ले लिया।

घर पहुँचते दस बज गए थे।

दूबे भाभी चार बार दरवाजे पे झाँक चुकी थी

रीत तो दूबे भाभी से बोली- “भाभी हम लोगों को अभी जाना है बड़ौदा। बस मैं सामान पैक करके अभी आई। बाकी आपको ये बता देंगे…”

आँधी तूफान की तरह अपने कमरे में चली गई और अपनी अटैची लेकर लौटी तो देखा की करन ने भाभी को 'स्पेशल पान' और गुलाब जामुन का घुस देकर पटा लिया था। भाभी खाना लगा रही थी और वो भाभी को मक्खन लगा रहा था। भाभी रीत से बोली देख। तेरे लिये तेरी फेवरिट, दाल भरी पूड़ी बना रही हूँ। गरम गरम खा ले।

खाते समय जब भाभी ने करन की थाली में तीसरी पूड़ी डालने की कोशिश की तो वो उछल पड़ा- “नहीं भाभी दो से ज्यादा एकदम नहीं। जरा भी जगह नहीं है…”

भाभी ने बोला- “चार तो कम से कम खाना पड़ेगा। इतनी सुन्दर, प्यारी सी ननद तुम्हारे साथ भेज रही हूँ। अरे चार पूड़ी नहीं खाओगे तो रात में आज चार बार चढ़ाई कैसे करोगे। इसके ऊपर…”

करन ने भाभी के हाथ से तीसरी पूड़ी छीन कर अपनी थाली में डाल ली, फिर तिरछी निगाह से रीत की ओर देखते बोला- “भाभी अगर ये बात है। तो मैं तो कम से कम छ पूड़ी खाऊंगा…”

रीत ने मुश्कुराते हुए करन को देखा। और भाभी की ओर बनावटी गुस्से से देखती बोली- “भाभी आप भी ना…”

करन की थाली में पांचवीं पूड़ी डालते, रीत की बात अनसुनी करते बोली- “और अगर ये जरा भी नखड़ा करे, ना-नुकुर करे तो। पूरी जबरदस्ती करने की छूट मेरी और से है। और सुबह फोन करके मैं पूछूंगी की मेरी इस ननद के साथ कितनी बार…”

रीत हँसे जा रही थी- “भाभी, नंदोई को देखते ही आपने पाला बदल लिया। कितनी तेजी से…”

और खाने के बाद भाभी ने करन के लाख न न करने पर भी नत्था का वो डबल भांग के डोज वाला, गुलाब जामुन जबरदस्ती। और अबकी रीत ने दूबे भाभी का पूरा साथ दिया। अपने गोरे-गोरे हाथों से करन के गाल दबाकर मुँह खुलवाने में।

लेकिन करन ने हिसाब बराबर कर लिया। रीत के मुँह में जबरदस्ती गुलाब जामुन डालकर। अबकी भाभी ने रीत के दोनों हाथ पीछे पकड़ रखे थे। हाँ पान के लिए जब उसने मना किया तो उन्होंने दो जोड़ी पान रुमाल में बाँधकर रीत के पर्स में डाल दिए। और बोला- “अब इसे खिलाने की जिम्मेदारी तुम्हारी…”

मुँह में ठूंसा। गुलाब जामुन खतम करती, मुश्कुराती वो शैतान बोली- “एकदम भाभी। आपकी ननद हूँ कोई मजाक नहीं…”

वो लोग निकलने लगे तो अचानक दूबे भाभी को कुछ याद आया। रीत से वो बोली- “एक मिनट तू रुक…”



करन सामान लेकर बाहर निकल गया था। वो जल्दी से लौट कर आई और कुछ रीत की मुट्ठी में पकड़ा दिया और बोला- “बस झट से इसे पर्स में रख ले…”

तब तक करन की आवाज आई- “देर हो रही है…”

और रीत और दूबे भाभी बाहर आ गईं। रीत कार में करन के बगल में बैठ गई और कार चल दी।

दूबे भाभी और रीत का रिश्ता, ननद-भाभी का था। उसी तरह खुलकर मजाक, छेड़ छाड़, मस्ती, दोस्ती। लेकिन आज उनकी निगाहें उसे बेटी की तरह विदा कर रही थी। नम आँखें बार अशीष रही थी, दुआ कर रही थी- “सदा सुहागन रहे ये…” इन दोनों की जोड़ी इसी तरह हँसती खेलती बनी रहे। किसी की बुरी नजर न लगे। मेरी उमर लग जाय इसे।

जब तक कार गली के मोड़ से ओझल नहीं हो गई वो देखती रही, दुलराती रही और रीत भी पीछे मुड़कर उन्हीं को देख रही थी। हाथ हिला रही थी।

शहर से निकलने के बाद जब करन ड्राइवर से कुछ बात कर रहा था। रीत ने अपना पर्स खोल कर देखा, भाभी ने चलते समय क्या उसकी मुट्ठी में पकड़ाया था। वह मुश्कुराए बिना नहीं रह सकी।

वैसलीन की एक शीशी, बड़ी सी।
 
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komaalrani

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रीत -करन पुनर्मिलन

तो कैसा लगा रीत करन का पुनर्मिलन,

उनके स्कूल के दिनों का रोमांस ( पृष्ठ ४३ ) फिर बिछोह ( पृष्ठ ४९ ) तो आप पिछले पन्नो में पढ़ ही चुके हैं

और अब ये टर्न


रीत करन के साथ और भी ढेर सारे पात्र मेरी लम्बी कहानी या शायद लघु उपन्यास कहना ठीक होगा, फागुन के दिन चार के पार्ट हैं

और मेरे कई मित्रों ने शायद इसे न पढ़ा हो इसलिए मैं सोच रही थी की फिर कभी इसे इस फोरम में पोस्ट करूँ, अभी नहीं जब वक्त मिला,


तो बस अब नंबर आपका है लाइक और कमेंट करने का
 
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Shetan

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रीत -करन पुनर्मिलन



और जब करन कोकर्नल अहलूवालिया ने बोला की बनारस में एक बड़ा टेरर प्लाट पनप रहा है वो तुरन्त चल दिया।

बस उसने आई॰बी॰ वालों को बोला था की वो मीटिंग में थोड़ा लेट आयेगा उसे थोड़ा काम है।

बाबतपुर एयरपोर्ट से वो सीधे घाट पर गया, गंगा के किनारे। जिस अंतिम समय माँ पिता को बेटे की आवश्यकता होती है वो नहीं था। उसने मम्मी पापा को तर्पण दिया।

पण्डे ने पूछा- “और कोई?”
करन के मन में एक चुलबुली सी लड़की की तस्वीर उभरी। पहले वो बुदबुदाया- “हाँ। फिर जोर से बोला नहीं…”
वही गंगा के तट पे वो खड़ा रहा। फिर कुछ सोचकर उसने घाट वाले से पूछा- “आपके पास वो रजिस्टर होगा जिसमें नाम लिखा रहता है जिन लोगों का…”

“हाँ हाँ एकदम। बिना नाम बताये तो हम लोग…” और दौड़कर रजिस्टर ले आया।

“वो जो बम ब्लास्ट हुआ था आठ मार्च की डेट होगी…” करन ने कांपते हुए पूछा और उस आदमी ने पन्ना खोल कर उसके सामने कर दिया।

वो बस मना रहा था। नवरीत का नाम ना हो। नवरीत का नाम ना हो। वो आलमोस्ट पेज के अंत तक पहुँच गया था। अब तक नवरीत का नाम नहीं था। लेकिन अंत में, अंतिम नाम के पहले नवरीत लिखा था। वो जड़ हो गया। सिर्फ उसने उंगली से उस नाम की ओर इशारा किया घाट वाले को।

“ये लड़की। बच्ची थी बिचारी, मैंने ही तो कराया था इसका काम…”

“उम्र क्या रही होगी?” किसी तरह से करन ने पूछा।

“अरे ग्यारवी बारहवीं में पढ़ती रही होगी, सतरह अट्ठारह…”



और उसी के साथ सब कुछ रीत गया। बची खुची उम्मीद आशा। गंगा में घुल रही राख की तरह विलीन हो गई। बूँद-बूँद। घाट वाले ने रजिस्टर उसके हाथ से ले लिया। करन अपनी टैक्सी की ओर मुड़ा। भारी कदम। जैसे अपने कंधे पर अपना शव लिए। जब वो मीटिंग में घुसा तो बस उसे ये लग रहा था की ज़िंदा रहना कितनी बड़ी सजा है।

मीटिंग में आई॰बी॰ वालों ने उसे उसकी सीट बतायी। लेकिन उसके पहले उसकी नजर सामने बैठी लड़की पर पड़ी। गोरी, किशोरी, तन्वंगी। एकदम कैट जैसी और अचानक वो चिल्लाया- “रीत…”

और वो भी उसी तरह खड़ी होकर चिल्लाई- “करन…”

और वो दोनों क्या-क्या बोलते रहे। मीटिंग में क्या हुआ दोनों को कुछ नहीं पता चला।बस दोनों की आँखें एक दूसरे को दुलराती रही, सहलाती रही।

बिना बोले वो मुँह भर बतियाते रहे। बस उसे लग रहा था की ज़िंदा रहना कितना अच्छा है और मीटिंग के बाद उन दोनों ने एक दूसरे को बस भींच लिया। जैसे आज दुनियां का आखिरी दिन है।

उसके बाद बाद करन बोला-

“मैंने बहुत कोशिश की तुम्हारे नाम से। “नवरीत…” का कोई रिकार्ड नहीं मिला, क्रेडिट कार्ड, बैंक का एकाउंट, सिम कार्ड। तुम्हारे नाम से कुछ नहीं मिला…”

“मैं। हाँ। बहुत दिन तक एक दूसरी दुनियां में चली गई थी और उसमें से निकली तो। तो। तुम मुझे रीत कहते थे ना। तो मैंने अपना नाम रीत कर लिया। इसीलिए नवरीत के नाम से कुछ नहीं मिला होगा। नवरीत अब है नहीं। बस तुम्हारी रीत है…”

उसका हाथ अपने हाथ से कसकर दबाती रीत बोली।

“और मैंने स्कूल में भी चेक किया…” करन बोला।

“मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया था। नाम कट गया। अब दूसरे स्कूल में एडमिशन ले लिया था। वहीं से इंटर कर लिया है और रिजल्ट के बाद बी काम करूँगी। “कालेज में भी नाम रीत ही है इसलिए…”

वो ब़स करन को देखे जा रही थी।

“और। और वो बात शायद करन बोलना नहीं चाहता था। बोल दिया- “लेकिन मैं यहाँ आने से पहले घाट पे गया था। वहां रजिस्टर में ‘नवरीत’ करन ने हिचकिचाते कहा।

“वो। वो शायद मेरी गलती थी। पर उस समय घाट पर एक लड़की की, मेरी ही एज की रही होगी। उसके साथ कोई नहीं था कृमेशन के लिए, घाट वाले बार-बार कह रहे थे की कौन है इसके साथ। मैंने बोल दिया। मैं हूँ उसके साथ। हम लोगों ने उसका भी। किसी ने नाम पूछा। मुझे लगा मेरा नाम पूछ रहे हैं। मैंने बता दिया नवरीत। शायद इसीलिए…” रीत बोली।

“चलो अब कोई बात नहीं मिल तो गए ना हम दोनों…”

रीत के कंधे पर हाथ रखकर मुश्कुराते हुए हुए, करन ने अपना हाथ रख दिया।
Amezing ye yadap hi to muje yaha khich lati he.

Aap ko reet ke lie chahera diya vo khas mene apni kahani To me rista pakka samzu ke lie rakha tha. Me har kirdar ke lie achhe chahera ka istamal karti hu.

Par aap ke sabdo me itni siddat he ki reet ka ye chahera aap par nyochhavar.
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Shetan

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रीत -करन पुनर्मिलन



लेकिन पूरे मुँहल्ले में करन के आने की खबर फैल गई थी और होलिका दहन के साथ दीवाली हो गई थी। था तो वो उसी मोहल्ले का और फिर रीत अब पूरे मोहल्ले की बेटी, ननद।

दूबे भाभी ने गुलगुले बनाये दोनों के लिए। करन ने खाते-खाते झपट्टा मार कर एक रीत के हाथ से भी खा लिया और उसकी उंगली भी काट ली।

रीत जोर से चिल्लाई- “भाभी ले लिया मेरा। काट लिया…”

दूबे भाभी दौड़ती आई और अपने अंदाज में झुक के उन्होंने पहले तो रीत की शलवार का नाड़ा, कुर्ता उठाकर चेक किया। फिर ऊपर देखा, गाल सहलाया, और हँसकर बोली-

“सब पैकिंग तो दुरुस्त है कैसे ले लिया इसने। झूठ मूठ मेरे सीधे साधे नंदोई को बदनाम करती हो और ले लेगा तो इसका हक है…”


फिर वो करन से बोली- “अगर ये सीधे से ना लेने दे। ना तो मुझे बुला लेना। मैं हाथ पैर पकड़ लूँगी। छोड़ना मत इसे…”

रीत हँसते-हँसते दुहरी हो रही थी- “भाभी। इसको देखकर आज आपने भी पाला बदल लिया…”

“नंदोई और सलहज का रिश्ता ही स्पेशल होता है…” दूबे भाभी हँसते हुए बोली।

“भाभी आपने एकदम सही बोला। और देखिये मैंने एक पंडित को हाथ दिखाया था…”

रीत के प्लेट के गुलगुले खतम करते करन बोला- “वो बोला की तुम्हारे हाथ में, इसी साल एक सुन्दर सी गोरी सी बीबी है। लेकिन थोड़ी नकचढ़ी और छ बच्चे हैं…”

रीत उछल गई और बोली- “ये मुझसे नहीं होने वाला है। एक-दो तक तो ठीक। लेकिन छ…”

दूबे भाभी ने फिर अपने नंदोई यानी करन का साथ दिया। वो रीत को हड़काती बोली-

“तुझे क्या। सारी सारी रात तो ये बेचारा मेहनत करेगा। बस तुम पेट फुला लेना और नौ महीने बाद केहाँ केहाँ। अगले साल फिर। जहाँ बच्चा बाहर, मर्द अन्दर और जब इसको मेहनत करने से कोई ऐतराज नहीं तो तुझे क्या? बस रात रात भर टांग उठाने की प्रैक्टिस शुरू कर दे। तू वैसे भी इतना योग करती है। जिम विम जाती है। तो क्या दिक्कत होगी तुझे…”

रीत हँसते-हँसते पागल हो रही थी, बोली- “भाभी आपने तो बड़े दलबदलू नेताओं को भी मात कर दिया…”

लेकिन दूबे भाभी,... वो भी आज कितने दिन बाद इतनी खुश थी। अब उनका निशाना करन की ओर था-


“भैया। पंडितवा इहे साल बोला था ना…”

रीत ने मुश्कुराते हुए करन को घूरा।

लेकिन वो महा सीरियस और दूबे भाभी से बोला- “हाँ भाभी…”

“त। फिर मई में लगन शुरू हो जायेगी। मई जून में शहनाई बजा दो। बन्ना बन्नी। और ठीक नौ महीने बाद सोहर…” दूबे भाभी ने पूरा प्रोग्राम बना दिया।

“हमारी तो आदत नहीं है बड़े लोगों की बात टालने की। अब जो आप कह रही हैं तो ठीक ही है। हाँ बस अपनी ननद को मनाना, समझाना आपकी जिम्मेदारी है…” बड़ी सीरियसली करन ने दूबे भाभी से बोला।

रीत बड़ी मुश्किल से अपनी मुश्कान दबा पा रही थी। गनीमत थी की उसी समय डी॰बी॰ का फोन आ गया वो उन लोगों का इंतेजार कर रहे थे।

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और कुछ देर बाद


आज अवध में होरी रे रसिया। अरे आज।

होरी से रसिया, बरजोरी रे रसिया।

पहले करन, फिर रीत भी साथ-साथ गाने लगी-

अरे केके हाथ पिचकारी और के के हाथ अबीरा रे रसिया।

वहां सब अबीर गुलाल उड़ा रहे थे। रीत ने थोड़ा सा गुलाल लेकर करन के गाल में लगा दिया। और जब करन पीछे पड़ा तो वो भाग ली। लेकिन करन ने उसे दबोच लिया और पूरी की पूरी प्लेट भर अबीर उसके ऊपर बाल, गाल सब लाल।

लक्सा की होलिका से वो आगे ही निकले थे की वो ‘स्पेशल’ पान की दुकान पड़ी। रीत ने उसे चढ़ाया। बनारस आये हो और पान ना खाए। फिर बोली की ये स्पेशल पान बनाता है।

करन ने दुकान वाले को पैसा पकड़ाया। तो दुकान वाले ने पूछा- “स्ट्रांग?”

करन पे हल्की-हल्की भांग चढ़ रही थी। वो बोला- “नहीं सुपर स्ट्रांग…”

उसने फिर पूछा- “कितने का?”

करन बोला- “सबका…”

दुकानदार ने अपने हाथ में सौ के दो नोट देखे और फिर पान को और मदन मंजरी डालकर पलंग-तोड़ पान को सुपर स्ट्रांग किया और एक दर्जन पान बाँधकर दे दिए।

सामने ही नत्था हलवाई की दुकान थी। करन बोला दूबे भाभी के लिए गुलाब जामुन ले लें।

रीत खुश होकर बोली। अरे नेकी और पूछ पूछ। एकदम वो भी स्पेशल वाला। करन को क्या मालूम था। स्पेशल मतलब भांग की डबल डोज। एक किलो उसने ले लिया।

घर पहुँचते दस बज गए थे।

दूबे भाभी चार बार दरवाजे पे झाँक चुकी थी

रीत तो दूबे भाभी से बोली- “भाभी हम लोगों को अभी जाना है बड़ौदा। बस मैं सामान पैक करके अभी आई। बाकी आपको ये बता देंगे…”

आँधी तूफान की तरह अपने कमरे में चली गई और अपनी अटैची लेकर लौटी तो देखा की करन ने भाभी को 'स्पेशल पान' और गुलाब जामुन का घुस देकर पटा लिया था। भाभी खाना लगा रही थी और वो भाभी को मक्खन लगा रहा था। भाभी रीत से बोली देख। तेरे लिये तेरी फेवरिट, दाल भरी पूड़ी बना रही हूँ। गरम गरम खा ले।

खाते समय जब भाभी ने करन की थाली में तीसरी पूड़ी डालने की कोशिश की तो वो उछल पड़ा- “नहीं भाभी दो से ज्यादा एकदम नहीं। जरा भी जगह नहीं है…”

भाभी ने बोला- “चार तो कम से कम खाना पड़ेगा। इतनी सुन्दर, प्यारी सी ननद तुम्हारे साथ भेज रही हूँ। अरे चार पूड़ी नहीं खाओगे तो रात में आज चार बार चढ़ाई कैसे करोगे। इसके ऊपर…”

करन ने भाभी के हाथ से तीसरी पूड़ी छीन कर अपनी थाली में डाल ली, फिर तिरछी निगाह से रीत की ओर देखते बोला- “भाभी अगर ये बात है। तो मैं तो कम से कम छ पूड़ी खाऊंगा…”

रीत ने मुश्कुराते हुए करन को देखा। और भाभी की ओर बनावटी गुस्से से देखती बोली- “भाभी आप भी ना…”

करन की थाली में पांचवीं पूड़ी डालते, रीत की बात अनसुनी करते बोली- “और अगर ये जरा भी नखड़ा करे, ना-नुकुर करे तो। पूरी जबरदस्ती करने की छूट मेरी और से है। और सुबह फोन करके मैं पूछूंगी की मेरी इस ननद के साथ कितनी बार…”

रीत हँसे जा रही थी- “भाभी, नंदोई को देखते ही आपने पाला बदल लिया। कितनी तेजी से…”

और खाने के बाद भाभी ने करन के लाख न न करने पर भी नत्था का वो डबल भांग के डोज वाला, गुलाब जामुन जबरदस्ती। और अबकी रीत ने दूबे भाभी का पूरा साथ दिया। अपने गोरे-गोरे हाथों से करन के गाल दबाकर मुँह खुलवाने में।

लेकिन करन ने हिसाब बराबर कर लिया। रीत के मुँह में जबरदस्ती गुलाब जामुन डालकर। अबकी भाभी ने रीत के दोनों हाथ पीछे पकड़ रखे थे। हाँ पान के लिए जब उसने मना किया तो उन्होंने दो जोड़ी पान रुमाल में बाँधकर रीत के पर्स में डाल दिए। और बोला- “अब इसे खिलाने की जिम्मेदारी तुम्हारी…”

मुँह में ठूंसा। गुलाब जामुन खतम करती, मुश्कुराती वो शैतान बोली- “एकदम भाभी। आपकी ननद हूँ कोई मजाक नहीं…”

वो लोग निकलने लगे तो अचानक दूबे भाभी को कुछ याद आया। रीत से वो बोली- “एक मिनट तू रुक…”



करन सामान लेकर बाहर निकल गया था। वो जल्दी से लौट कर आई और कुछ रीत की मुट्ठी में पकड़ा दिया और बोला- “बस झट से इसे पर्स में रख ले…”

तब तक करन की आवाज आई- “देर हो रही है…”

और रीत और दूबे भाभी बाहर आ गईं। रीत कार में करन के बगल में बैठ गई और कार चल दी।

दूबे भाभी और रीत का रिश्ता, ननद-भाभी का था। उसी तरह खुलकर मजाक, छेड़ छाड़, मस्ती, दोस्ती। लेकिन आज उनकी निगाहें उसे बेटी की तरह विदा कर रही थी। नम आँखें बार अशीष रही थी, दुआ कर रही थी- “सदा सुहागन रहे ये…” इन दोनों की जोड़ी इसी तरह हँसती खेलती बनी रहे। किसी की बुरी नजर न लगे। मेरी उमर लग जाय इसे।

जब तक कार गली के मोड़ से ओझल नहीं हो गई वो देखती रही, दुलराती रही और रीत भी पीछे मुड़कर उन्हीं को देख रही थी। हाथ हिला रही थी।

शहर से निकलने के बाद जब करन ड्राइवर से कुछ बात कर रहा था। रीत ने अपना पर्स खोल कर देखा, भाभी ने चलते समय क्या उसकी मुट्ठी में पकड़ाया था। वह मुश्कुराए बिना नहीं रह सकी।


वैसलीन की एक शीशी, बड़ी सी।
Reet ka kissa padhne ke bad to man alag alag kalpnae karne laga. Please request he ki ise jaldi khatam na karna. Fojisab ki baho me bahot anand he. Milna bichhadna vo yaade amezing.

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Ye sabdo ka jadu to dill me gudgudi macha gaya.

रीत उछल गई और बोली- “ये मुझसे नहीं होने वाला है। एक-दो तक तो ठीक। लेकिन छ…”

दूबे भाभी ने फिर अपने नंदोई यानी करन का साथ दिया। वो रीत को हड़काती बोली-

“तुझे क्या। सारी सारी रात तो ये बेचारा मेहनत करेगा। बस तुम पेट फुला लेना और नौ महीने बाद केहाँ केहाँ। अगले साल फिर। जहाँ बच्चा बाहर, मर्द अन्दर और जब इसको मेहनत करने से कोई ऐतराज नहीं तो तुझे क्या? बस रात रात भर टांग उठाने की प्रैक्टिस शुरू कर दे। तू वैसे भी इतना योग करती है। जिम विम जाती है। तो क्या दिक्कत होगी तुझे…”

रीत हँसते-हँसते पागल हो रही थी, बोली- “भाभी आपने तो बड़े दलबदलू नेताओं को भी मात कर दिया…”
 
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Shetan

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रीत -करन पुनर्मिलन

तो कैसा लगा रीत करन का पुनर्मिलन,

उनके स्कूल के दिनों का रोमांस ( पृष्ठ ४३ ) फिर बिछोह ( पृष्ठ ४९ ) तो आप पिछले पन्नो में पढ़ ही चुके हैं

और अब ये टर्न


रीत करन के साथ और भी ढेर सारे पात्र मेरी लम्बी कहानी या शायद लघु उपन्यास कहना ठीक होगा, फागुन के दिन चार के पार्ट हैं

और मेरे कई मित्रों ने शायद इसे न पढ़ा हो इसलिए मैं सोच रही थी की फिर कभी इसे इस फोरम में पोस्ट करूँ, अभी नहीं जब वक्त मिला,


तो बस अब नंबर आपका है लाइक और कमेंट करने का
Please foji sab ke sath vaviahik jivan pe kuchh romance likh do. Request he.

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komaalrani

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Amezing ye yadap hi to muje yaha khich lati he.

Aap ko reet ke lie chahera diya vo khas mene apni kahani To me rista pakka samzu ke lie rakha tha. Me har kirdar ke lie achhe chahera ka istamal karti hu.

Par aap ke sabdo me itni siddat he ki reet ka ye chahera aap par nyochhavar.
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Thanks so much for enjoying the thread
 

motaalund

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मेरे दिमाग में एक विचार आया जिसे मैं साझा करना चाहती हूं और आपके विचार जानना चाहती हूं
औरते अक्सर खूबसूरत दिखने के लिए चेहरे पर क्रीम पाउडर लगाती हैं। होंठों पर लिपस्टिक लगाती हैं, नाखूनों पर नेल-पालिश लगाती हैं।आई-ब्रो बनवाती हैं, आँखों की पलकों पर मस्कारा लगाती हैं।फिर घर से बाहर निकलती हैं और लड़के देख के बोलते है। यार गांड़ देख साली की😍


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सुंदरता का पैमाना अलग-अलग होता है....
आगे से देखो तो दूसरे चीज की तारीफ होगी पीछे से देखो तो....
 
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