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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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स्मृति शेष



वो उसका हाथ पकड़कर रीत को, रीत के घर ले आई। बाहर बहुत भीड़ थी। सबको धीरे-धीरे खबर हो रही थी। उनके जूनियर वकील, शहर के ढेर सारे लोग। घर में ताला बंद था। सब लोग सांत्वना के शब्द उससे कह रहे थे। पर वह कहने सुनने से कहीं बहुत दूर थी। तभी पड़ोस की एक महिला, जिन्हें नहीं मालूम था की क्या हो गया है आई। और रीत के कंधे पे टोकती बोली-

“अरे, ताला बंद है, चाभी कहाँ है?”

“मम्मी के पास…” रीत बुदबुदाई

“मम्मी कहाँ हैं?” वो फिर बोली।

रीत ने आसमान की ओर उंगली उठा दी। बिना बोले। भगवान के पास। सबकी आँखें नम हो उठी। दूबे भाभी खींचकर उस महिला को ले गईं और कान में फुसफुसाया।

दूबे भाभी की सास नहीं थी लेकिन जब वो विदा होकर आई तो परछन रीत की मम्मी ने ही किया, सब रस्म। मुँह दिखाई से लेकर कंगन छुड़ाने तक और जब दूबे जी भारी मुसीबत में फँसे थे थाना कचहरी सब हो जाता। वकील साहेब रीत के पिता जी ने ही बचाया था।

किसी वकील ने ताला खोलने वाले को बुलाकर घर खुलाया। अब रीत की कुछ होश आया। कहीं से ढूँढ़ कर मम्मी पापा की फोटो। एक ही फोटो थी। दोनों की साथ-साथ। ड्राइंग रूम में रखी।

किसी ने माला लाकर चढ़ा दिया। रीत वहीं चुपचाप बैठी रही, मुँह झुकाए। गुड्डी ने उससे बोला की करन के कजिन को खबर दे दी गई है। गुड्डी के पास उनकी भाभी का नम्बर था। लेकिन वो लोग परसों शाम तक ही पहुँच पाएंगे। उन्होंने बोला है की उनका इंतेजार ना करें।

गुड्डी, दूबे भाभी, और मुँहल्ले की कुछ औरतें। रात में रीत के साथ ही रही। उस रात पूरे मुँहल्ले में कहीं चुल्हा नहीं जला।

और वह मुँहल्ला। बनारस का ऐसा अकेला मुँहल्ला, उस दिन नहीं था।

अगले दिन लोगों ने मना किया, की रीत के मार्चुरी जाने की जरूरत नहीं है बाडीज को रिसीव करने के लिए।

लेकिन वो गई। पोस्टमार्टम के बाद एक मैदान में बाडीज रखी थी। कुल अट्ठाईस बाडीज थी लेकिन बाहर सौ से ऊपर लोग थे। आठ बाडीज अभी भी आइदेन्तिफाइड नहीं थी। वो लोग भी लाइन में खड़े हो गए। सब लोग चुप दुखी परेशान। लाइन में लोग अन्दर जाते। और अन आइदेन्तिफाइड बाडीज में उनके परिवार के लोग नहीं होते तो चैन की सांस ले बाहर निकलते।

और जिन्हें अपने घर का कोई मिलता फिर रोना चीखना। तीन बाडीज बहुत क्षत विक्षत थी। वो कैस्केट में बंद थी और उनके आगे नाम लिखा था। करन भी वहीं था।


करन के परिवार की भी,

रीत ने ही रिसीव किया। शाम को मणिकर्णिका घाट पर पूरा बनारस था। करन के कजिन को कल आना था। और रीत ने ही सब कुछ। एक लड़की के साथ कोई नहीं था घाट वाले जल्दी कर रहे थे। रीत को उसका चेहरा याद था कल वो मंदिर में जो एक्जाम देकर स्टूडेंट्स आये थे। उन्हीं में से एक थी।

इसके साथ कोई है - इसके साथ कोई है - घाट वाले ने पूछा

“मैं हूँ…” रीत ने बोला।


“नाम…” घाट वाले पूछा।

“नवरीत…” रीत ने बोला और घाट वाले ने नोट कर लिया।


उसका भी अंतिम संस्कार उन्हीं लोगों ने।

रीत अकेली नहीं थी। पूरा मोहल्ला, गुड्डी उसका पूरा परिवार, पापा के दोस्त। सैकड़ों लोग थे।

लेकिन जब रात को रीत घर लौटी। तो अकेली थी। वैसे घर पे कई लोग रुके उस दिन रात को। दूबे भाभी, गुड्डी, पापा के कुछ दोस्त।

बार-बार उसकी नजर करन के घर पे पड़ती। अँधेरे में डूबा। लेकिन कुछ दिनों में सबकी अपनी जिंदगी अपने काम। सिवाय दूबे भाभी के और गुड्डी और उसके परिवार के। दूबे भाभी ने उसे कित्ती बार कहा की वो चल के उसके घर चल के रहे लेकिन रीत नहीं मानी।

अब वह बोलती भी नहीं थी। एक उसकी पुरानी नौकरानी थी। वो उसके साथ आकर रहने लगी। इसी बीच गुड्डी के पापाके कुछ दोस्त रेलवे में थे, उन्होंने भी चेक कराया। करन की वो सीट ट्रेन में खाली गई। वो अपनी सीट पर बैठा ही नहीं था। उन्होंने ऐसी-2 के टीटी से पुछवाया था। दिल्ली पहुँचने पर पुलिस ने भी पूरी ट्रेन चेक की थी।

करन के कजिन दो दिन बाद आये। उसकी भाभी भी। वो लोग रीत से भी मिलने आये। उन्होंने आई॰एम॰ए॰ से भी बात की थी। करन वहां भी नहीं पहुँचा।


वो करन ही था, उसकोट में। ट्रेन चलने में अभी टाइम था। और उसकी माँ की बाड़ी भी एकदम पास मिली थी।

अब रीत की हिम्मत भी जवाब दे रही थी। विश्वास भी। पहले तो वो बुदबुदाती रहती, करन है, करन है। कुछ-कुछ लोग हामी भी भरते।


कौन उसे समझाता हाँ करन, है। उसके ख्यालों में। उसके ख़्वाबों में।

लेकिन गुड्डी आती। रोज आती, बिना नागा। घंटों उसके पास बैठती।

रीत कुछ नहीं बोलती। तब भी। और कभी-कभी जब वो बोलती तो रीत खुद को ब्लेम करती की हर बार वो करन को छोड़ने स्टेशन जाती थी उस बार नहीं गई। इसीलिए करन नाराज होकर कहीं चला गया।

कभी कहती उस दिन अगर प्रसाद लेकर वो जल्दी चली आती। तो मम्मी पापा के साथ वो भी। उसे जिन्दा रहने का कष्ट तो नहीं झेलना पड़ता।

गुड्डी बिचारी क्या बोलती। बस उसका हाथ पकड़कर बैठी रहती। रीत कभी बोलती। वो अभिशप्त है। जिसने उसको प्यार किया। उसके पास आया। वो चला गया। फिर वो गुड्डी की ओर खाली खाली आँखों से देखती और बोलती-

“तू मत आया कर मेरे पास। वरना जल्दी ही तेरा भी नम्बर आ जाएगा और फिर खाली सूखी हँसी हँसती…”

कोई दूसरा होता तो डर कर भाग जाता। लेकिन गुड्डी बैठी रहती रीत के पास। कुछ लोग कहते की वो जोर-जोर से रोई नहीं है इसलिए सदमे से बाहर नहीं आ पा रही है। कोई डाक्टर को दिखाने के लिए बोलते। रीत ने स्कूल जाना छोड़ दिया था। बल्की घर से निकलना भी।


और एक दिन वो हुआ जो।

रीत घर से चली गई।

गुड्डी कहीं चार-पांच दिनों के लिए गई थी लौटकर आई। तो पता चला। सब लोग परेशान, सबसे ज्यादा दूबे भाभी। उन्होंने बताया की। रीत की नौकरानी ने दो दिन पहले आकर बताया की रीत कहीं गई थी। लेकिन नहीं लौटी।

जब दूबे भाभी ने डांटा तब उसने कबूला की रीत तीन दिन से घर पर नहीं है। और उसके पहले भी कई बार रात रात भर।

गुड्डी के पापा मुँहल्ले के कई लोग खुद दूबे भाभी। कहाँ कहाँ नहीं गए। घाटों पर। रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, कोतवाली शहर के सारे हास्पिटल, मार्चरी लेकिन उस दिन किसी ने बोला की चार दिन पहले उसे उन्होंने। सुखमयी माँ के आश्रम में देखा था। एक कोने में अकेले बैठी थी।
प्रसंग ने मन को अंदर तक छू लिया...
भावनाओं को व्यक्त करना वो भी शब्दों में... आपके सिवा कोई नहीं कर सकता..
जो अशांत और क्षुब्ध के दे...
लेकिन जिस पर बीती वो हीं अपने दर्द को समझ सकता है...
 

motaalund

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रीत करन -चंद्र ग्रहण

please do read, and share your thoughts, thanks.
सचमुच ये ग्रहण तो पूर्ण चंद्र ग्रहण निकला..
लेकिन फिर उजाला भी निकलता है...
 

motaalund

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Pura man dukhi ho gaya komalji.

Paheli bar ese seen likhe. Aap dukh likhti to sirf judai. Lekin ye bahot dard bhara kissa he. Pata nahi kyo dill itna jyada bhavuk kar diya aapne.

Aaj mere pas bolne ko kuchh nahi he
हर मानवीय रंग को निरुपित करने में उस्तादी है... कोमल रानी की...
 

motaalund

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रीत -करन पुनर्मिलन



और जब करन कोकर्नल अहलूवालिया ने बोला की बनारस में एक बड़ा टेरर प्लाट पनप रहा है वो तुरन्त चल दिया।

बस उसने आई॰बी॰ वालों को बोला था की वो मीटिंग में थोड़ा लेट आयेगा उसे थोड़ा काम है।

बाबतपुर एयरपोर्ट से वो सीधे घाट पर गया, गंगा के किनारे। जिस अंतिम समय माँ पिता को बेटे की आवश्यकता होती है वो नहीं था। उसने मम्मी पापा को तर्पण दिया।

पण्डे ने पूछा- “और कोई?”
करन के मन में एक चुलबुली सी लड़की की तस्वीर उभरी। पहले वो बुदबुदाया- “हाँ। फिर जोर से बोला नहीं…”
वही गंगा के तट पे वो खड़ा रहा। फिर कुछ सोचकर उसने घाट वाले से पूछा- “आपके पास वो रजिस्टर होगा जिसमें नाम लिखा रहता है जिन लोगों का…”

“हाँ हाँ एकदम। बिना नाम बताये तो हम लोग…” और दौड़कर रजिस्टर ले आया।

“वो जो बम ब्लास्ट हुआ था आठ मार्च की डेट होगी…” करन ने कांपते हुए पूछा और उस आदमी ने पन्ना खोल कर उसके सामने कर दिया।

वो बस मना रहा था। नवरीत का नाम ना हो। नवरीत का नाम ना हो। वो आलमोस्ट पेज के अंत तक पहुँच गया था। अब तक नवरीत का नाम नहीं था। लेकिन अंत में, अंतिम नाम के पहले नवरीत लिखा था। वो जड़ हो गया। सिर्फ उसने उंगली से उस नाम की ओर इशारा किया घाट वाले को।

“ये लड़की। बच्ची थी बिचारी, मैंने ही तो कराया था इसका काम…”

“उम्र क्या रही होगी?” किसी तरह से करन ने पूछा।

“अरे ग्यारवी बारहवीं में पढ़ती रही होगी, सतरह अट्ठारह…”



और उसी के साथ सब कुछ रीत गया। बची खुची उम्मीद आशा। गंगा में घुल रही राख की तरह विलीन हो गई। बूँद-बूँद। घाट वाले ने रजिस्टर उसके हाथ से ले लिया। करन अपनी टैक्सी की ओर मुड़ा। भारी कदम। जैसे अपने कंधे पर अपना शव लिए। जब वो मीटिंग में घुसा तो बस उसे ये लग रहा था की ज़िंदा रहना कितनी बड़ी सजा है।

मीटिंग में आई॰बी॰ वालों ने उसे उसकी सीट बतायी। लेकिन उसके पहले उसकी नजर सामने बैठी लड़की पर पड़ी। गोरी, किशोरी, तन्वंगी। एकदम कैट जैसी और अचानक वो चिल्लाया- “रीत…”

और वो भी उसी तरह खड़ी होकर चिल्लाई- “करन…”

और वो दोनों क्या-क्या बोलते रहे। मीटिंग में क्या हुआ दोनों को कुछ नहीं पता चला।बस दोनों की आँखें एक दूसरे को दुलराती रही, सहलाती रही।

बिना बोले वो मुँह भर बतियाते रहे। बस उसे लग रहा था की ज़िंदा रहना कितना अच्छा है और मीटिंग के बाद उन दोनों ने एक दूसरे को बस भींच लिया। जैसे आज दुनियां का आखिरी दिन है।

उसके बाद बाद करन बोला-

“मैंने बहुत कोशिश की तुम्हारे नाम से। “नवरीत…” का कोई रिकार्ड नहीं मिला, क्रेडिट कार्ड, बैंक का एकाउंट, सिम कार्ड। तुम्हारे नाम से कुछ नहीं मिला…”

“मैं। हाँ। बहुत दिन तक एक दूसरी दुनियां में चली गई थी और उसमें से निकली तो। तो। तुम मुझे रीत कहते थे ना। तो मैंने अपना नाम रीत कर लिया। इसीलिए नवरीत के नाम से कुछ नहीं मिला होगा। नवरीत अब है नहीं। बस तुम्हारी रीत है…”

उसका हाथ अपने हाथ से कसकर दबाती रीत बोली।

“और मैंने स्कूल में भी चेक किया…” करन बोला।

“मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया था। नाम कट गया। अब दूसरे स्कूल में एडमिशन ले लिया था। वहीं से इंटर कर लिया है और रिजल्ट के बाद बी काम करूँगी। “कालेज में भी नाम रीत ही है इसलिए…”

वो ब़स करन को देखे जा रही थी।

“और। और वो बात शायद करन बोलना नहीं चाहता था। बोल दिया- “लेकिन मैं यहाँ आने से पहले घाट पे गया था। वहां रजिस्टर में ‘नवरीत’ करन ने हिचकिचाते कहा।

“वो। वो शायद मेरी गलती थी। पर उस समय घाट पर एक लड़की की, मेरी ही एज की रही होगी। उसके साथ कोई नहीं था कृमेशन के लिए, घाट वाले बार-बार कह रहे थे की कौन है इसके साथ। मैंने बोल दिया। मैं हूँ उसके साथ। हम लोगों ने उसका भी। किसी ने नाम पूछा। मुझे लगा मेरा नाम पूछ रहे हैं। मैंने बता दिया नवरीत। शायद इसीलिए…” रीत बोली।

“चलो अब कोई बात नहीं मिल तो गए ना हम दोनों…”

रीत के कंधे पर हाथ रखकर मुश्कुराते हुए हुए, करन ने अपना हाथ रख दिया।
सब गलतफहमी दूर हो गई....
 

motaalund

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रीत -करन पुनर्मिलन



रीत के कंधे पर हाथ रखकर मुश्कुराते हुए हुए, करन ने अपना हाथ रख दिया।

“तुम्हारे उस घटिया चेक वाले कोट ने। जब मैं स्टेशन पर पहुँची वो कोट, तुम्हारा लैप टाप एक बेंच पर। बाडी के पार्ट अलग-अलग, सिर तो मिला ही नहीं और मम्मी जी के भी एकदम पास में। इसलिए मैंने, सबने समझा की…”

रीत रुक रुक कर बोली।

“असल में मैंने अपनी सीट पर कोट रखकर और लैपटाप रखकर वहीं सामने वाले सीट पर मेरे ही उमर का एक लड़का बैठा था। उसे बोला देखने के लिए और बाथरूम चला गया। लौट कर आया तो ना लैपटाप, ना कोट और ना लड़का, नीचे मैं जैसे उतरा तो बाम्ब एक्सप्लोड हो गया और मम्मी भी मुझे समझ कर कोट देखकर उसकी और बढ़ी होंगी, इसलिए…”

करन ने सफाई दी।

“और गुड्डी के पापा ने ट्रेन के टीटी से बात की। फिर दिल्ली में पूरी ट्रेन छनवाई। लेकिन तुम ना अपनी सीट पर मिले, ना कहीं ट्रेन में इसीलिए कोट देखकर सबने यही समझा…” रीत ने हौले से बोला।

करन ने एक्सप्लेन किया-

“मैं बेहोश होकर ट्रेन के किसी डिब्बे में पड़ा था। ये तो गनीमत था की कर्नल अहलूवालिया को मैं मिल गया था। उन्होंने अलाहाबाद में किसी बड़े अस्पताल में तुरंत भरती करवाया मेरे ही ब्रेन का आपरेशन हुआ मेजर सर्जरी। डाक्टर ने कहा अगर आधे घंटे की भी देर होती तो मैं डीप कोमा में चला जाता और फिर उससे निकलना बहुत मुश्किल था। फिर तो…”

रीत ने तुरंत अपना हाथ उसके मुँह पर रख दिया और बोली-

“नाम मत लो। क्यों होता तुम्हें कुछ। मुझे ना हो जाता। तुम्हारे लिए मैंने गंगा मैया की आर पार की चुनरी मान रखी है। उस दिन जब मैं स्टेशन जा रही थी। तुम्हें और वो भी तुम्हारे साथ। भैरो बाबा का परसाद। सात सोमवार का व्रत। बहुत खर्च करवाऊँगी तुम्हारा। लेकिन उसके बाद भी हम लोगों ने बहुत ढूँढ़ा। तुम्हारे कजिन ने आई॰एम॰ए॰ भी बात की। लेकिन कोई खोज खबर नहीं मिली…”

“असल में मेरी याददाश्त गायब हो गई थी…” रीत का हाथ दबाते हुए वो बोला।

“मतलब…” रीत ने चौंक कर पूछा।

“मतलब। उस घटना के पहले की कोई भी बात मुझे याद नहीं थी। सब भूल गया था…” करन बोला।



“दुष्यंत की तरह…” फिर गाल फुलाकर रीत बोली- “और तुमने मुझे कोई अंगूठी भी नहीं दी थी।

“लेकिन मेरी याददाश्त भी वापस आ गई। देखो और मैं भी आ गया…” करन ने कसकर रीत को बांहों में भींचते हुए कहा और गाल पे कसकर चूम लिया।

“हे जूठा कर दिया ना। गंदे…” रीत बोली। फिर मुश्कुराते हुए बोली, जानते हो अब मैं दूबे भाभी के साथ रहने लगी हूँ। बहुत खुश होंगी तुम्हें देखकर और हाथ पकड़कर सीधे दूबे भाभी के घर। लेकिन पूरे मुँहल्ले में करन के आने की खबर फैल गई थी और होलिका दहन के साथ दीवाली हो गई थी। था तो वो उसी मोहल्ले का और फिर रीत अब पूरे मोहल्ले की बेटी, ननद।
विछोह में क्रंदन तक ले जाती हैं तो मिलन भी कम आनंद दायी नहीं है...
 

motaalund

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रीत -करन पुनर्मिलन



लेकिन पूरे मुँहल्ले में करन के आने की खबर फैल गई थी और होलिका दहन के साथ दीवाली हो गई थी। था तो वो उसी मोहल्ले का और फिर रीत अब पूरे मोहल्ले की बेटी, ननद।

दूबे भाभी ने गुलगुले बनाये दोनों के लिए। करन ने खाते-खाते झपट्टा मार कर एक रीत के हाथ से भी खा लिया और उसकी उंगली भी काट ली।

रीत जोर से चिल्लाई- “भाभी ले लिया मेरा। काट लिया…”

दूबे भाभी दौड़ती आई और अपने अंदाज में झुक के उन्होंने पहले तो रीत की शलवार का नाड़ा, कुर्ता उठाकर चेक किया। फिर ऊपर देखा, गाल सहलाया, और हँसकर बोली-

“सब पैकिंग तो दुरुस्त है कैसे ले लिया इसने। झूठ मूठ मेरे सीधे साधे नंदोई को बदनाम करती हो और ले लेगा तो इसका हक है…”


फिर वो करन से बोली- “अगर ये सीधे से ना लेने दे। ना तो मुझे बुला लेना। मैं हाथ पैर पकड़ लूँगी। छोड़ना मत इसे…”

रीत हँसते-हँसते दुहरी हो रही थी- “भाभी। इसको देखकर आज आपने भी पाला बदल लिया…”

“नंदोई और सलहज का रिश्ता ही स्पेशल होता है…” दूबे भाभी हँसते हुए बोली।

“भाभी आपने एकदम सही बोला। और देखिये मैंने एक पंडित को हाथ दिखाया था…”

रीत के प्लेट के गुलगुले खतम करते करन बोला- “वो बोला की तुम्हारे हाथ में, इसी साल एक सुन्दर सी गोरी सी बीबी है। लेकिन थोड़ी नकचढ़ी और छ बच्चे हैं…”

रीत उछल गई और बोली- “ये मुझसे नहीं होने वाला है। एक-दो तक तो ठीक। लेकिन छ…”

दूबे भाभी ने फिर अपने नंदोई यानी करन का साथ दिया। वो रीत को हड़काती बोली-

“तुझे क्या। सारी सारी रात तो ये बेचारा मेहनत करेगा। बस तुम पेट फुला लेना और नौ महीने बाद केहाँ केहाँ। अगले साल फिर। जहाँ बच्चा बाहर, मर्द अन्दर और जब इसको मेहनत करने से कोई ऐतराज नहीं तो तुझे क्या? बस रात रात भर टांग उठाने की प्रैक्टिस शुरू कर दे। तू वैसे भी इतना योग करती है। जिम विम जाती है। तो क्या दिक्कत होगी तुझे…”

रीत हँसते-हँसते पागल हो रही थी, बोली- “भाभी आपने तो बड़े दलबदलू नेताओं को भी मात कर दिया…”

लेकिन दूबे भाभी,... वो भी आज कितने दिन बाद इतनी खुश थी। अब उनका निशाना करन की ओर था-


“भैया। पंडितवा इहे साल बोला था ना…”

रीत ने मुश्कुराते हुए करन को घूरा।

लेकिन वो महा सीरियस और दूबे भाभी से बोला- “हाँ भाभी…”

“त। फिर मई में लगन शुरू हो जायेगी। मई जून में शहनाई बजा दो। बन्ना बन्नी। और ठीक नौ महीने बाद सोहर…” दूबे भाभी ने पूरा प्रोग्राम बना दिया।

“हमारी तो आदत नहीं है बड़े लोगों की बात टालने की। अब जो आप कह रही हैं तो ठीक ही है। हाँ बस अपनी ननद को मनाना, समझाना आपकी जिम्मेदारी है…” बड़ी सीरियसली करन ने दूबे भाभी से बोला।

रीत बड़ी मुश्किल से अपनी मुश्कान दबा पा रही थी। गनीमत थी की उसी समय डी॰बी॰ का फोन आ गया वो उन लोगों का इंतेजार कर रहे थे।

----

और कुछ देर बाद


आज अवध में होरी रे रसिया। अरे आज।

होरी से रसिया, बरजोरी रे रसिया।

पहले करन, फिर रीत भी साथ-साथ गाने लगी-

अरे केके हाथ पिचकारी और के के हाथ अबीरा रे रसिया।

वहां सब अबीर गुलाल उड़ा रहे थे। रीत ने थोड़ा सा गुलाल लेकर करन के गाल में लगा दिया। और जब करन पीछे पड़ा तो वो भाग ली। लेकिन करन ने उसे दबोच लिया और पूरी की पूरी प्लेट भर अबीर उसके ऊपर बाल, गाल सब लाल।

लक्सा की होलिका से वो आगे ही निकले थे की वो ‘स्पेशल’ पान की दुकान पड़ी। रीत ने उसे चढ़ाया। बनारस आये हो और पान ना खाए। फिर बोली की ये स्पेशल पान बनाता है।

करन ने दुकान वाले को पैसा पकड़ाया। तो दुकान वाले ने पूछा- “स्ट्रांग?”

करन पे हल्की-हल्की भांग चढ़ रही थी। वो बोला- “नहीं सुपर स्ट्रांग…”

उसने फिर पूछा- “कितने का?”

करन बोला- “सबका…”

दुकानदार ने अपने हाथ में सौ के दो नोट देखे और फिर पान को और मदन मंजरी डालकर पलंग-तोड़ पान को सुपर स्ट्रांग किया और एक दर्जन पान बाँधकर दे दिए।

सामने ही नत्था हलवाई की दुकान थी। करन बोला दूबे भाभी के लिए गुलाब जामुन ले लें।

रीत खुश होकर बोली। अरे नेकी और पूछ पूछ। एकदम वो भी स्पेशल वाला। करन को क्या मालूम था। स्पेशल मतलब भांग की डबल डोज। एक किलो उसने ले लिया।

घर पहुँचते दस बज गए थे।

दूबे भाभी चार बार दरवाजे पे झाँक चुकी थी

रीत तो दूबे भाभी से बोली- “भाभी हम लोगों को अभी जाना है बड़ौदा। बस मैं सामान पैक करके अभी आई। बाकी आपको ये बता देंगे…”

आँधी तूफान की तरह अपने कमरे में चली गई और अपनी अटैची लेकर लौटी तो देखा की करन ने भाभी को 'स्पेशल पान' और गुलाब जामुन का घुस देकर पटा लिया था। भाभी खाना लगा रही थी और वो भाभी को मक्खन लगा रहा था। भाभी रीत से बोली देख। तेरे लिये तेरी फेवरिट, दाल भरी पूड़ी बना रही हूँ। गरम गरम खा ले।

खाते समय जब भाभी ने करन की थाली में तीसरी पूड़ी डालने की कोशिश की तो वो उछल पड़ा- “नहीं भाभी दो से ज्यादा एकदम नहीं। जरा भी जगह नहीं है…”

भाभी ने बोला- “चार तो कम से कम खाना पड़ेगा। इतनी सुन्दर, प्यारी सी ननद तुम्हारे साथ भेज रही हूँ। अरे चार पूड़ी नहीं खाओगे तो रात में आज चार बार चढ़ाई कैसे करोगे। इसके ऊपर…”

करन ने भाभी के हाथ से तीसरी पूड़ी छीन कर अपनी थाली में डाल ली, फिर तिरछी निगाह से रीत की ओर देखते बोला- “भाभी अगर ये बात है। तो मैं तो कम से कम छ पूड़ी खाऊंगा…”

रीत ने मुश्कुराते हुए करन को देखा। और भाभी की ओर बनावटी गुस्से से देखती बोली- “भाभी आप भी ना…”

करन की थाली में पांचवीं पूड़ी डालते, रीत की बात अनसुनी करते बोली- “और अगर ये जरा भी नखड़ा करे, ना-नुकुर करे तो। पूरी जबरदस्ती करने की छूट मेरी और से है। और सुबह फोन करके मैं पूछूंगी की मेरी इस ननद के साथ कितनी बार…”

रीत हँसे जा रही थी- “भाभी, नंदोई को देखते ही आपने पाला बदल लिया। कितनी तेजी से…”

और खाने के बाद भाभी ने करन के लाख न न करने पर भी नत्था का वो डबल भांग के डोज वाला, गुलाब जामुन जबरदस्ती। और अबकी रीत ने दूबे भाभी का पूरा साथ दिया। अपने गोरे-गोरे हाथों से करन के गाल दबाकर मुँह खुलवाने में।

लेकिन करन ने हिसाब बराबर कर लिया। रीत के मुँह में जबरदस्ती गुलाब जामुन डालकर। अबकी भाभी ने रीत के दोनों हाथ पीछे पकड़ रखे थे। हाँ पान के लिए जब उसने मना किया तो उन्होंने दो जोड़ी पान रुमाल में बाँधकर रीत के पर्स में डाल दिए। और बोला- “अब इसे खिलाने की जिम्मेदारी तुम्हारी…”

मुँह में ठूंसा। गुलाब जामुन खतम करती, मुश्कुराती वो शैतान बोली- “एकदम भाभी। आपकी ननद हूँ कोई मजाक नहीं…”

वो लोग निकलने लगे तो अचानक दूबे भाभी को कुछ याद आया। रीत से वो बोली- “एक मिनट तू रुक…”



करन सामान लेकर बाहर निकल गया था। वो जल्दी से लौट कर आई और कुछ रीत की मुट्ठी में पकड़ा दिया और बोला- “बस झट से इसे पर्स में रख ले…”

तब तक करन की आवाज आई- “देर हो रही है…”

और रीत और दूबे भाभी बाहर आ गईं। रीत कार में करन के बगल में बैठ गई और कार चल दी।

दूबे भाभी और रीत का रिश्ता, ननद-भाभी का था। उसी तरह खुलकर मजाक, छेड़ छाड़, मस्ती, दोस्ती। लेकिन आज उनकी निगाहें उसे बेटी की तरह विदा कर रही थी। नम आँखें बार अशीष रही थी, दुआ कर रही थी- “सदा सुहागन रहे ये…” इन दोनों की जोड़ी इसी तरह हँसती खेलती बनी रहे। किसी की बुरी नजर न लगे। मेरी उमर लग जाय इसे।

जब तक कार गली के मोड़ से ओझल नहीं हो गई वो देखती रही, दुलराती रही और रीत भी पीछे मुड़कर उन्हीं को देख रही थी। हाथ हिला रही थी।

शहर से निकलने के बाद जब करन ड्राइवर से कुछ बात कर रहा था। रीत ने अपना पर्स खोल कर देखा, भाभी ने चलते समय क्या उसकी मुट्ठी में पकड़ाया था। वह मुश्कुराए बिना नहीं रह सकी।


वैसलीन की एक शीशी, बड़ी सी।
ननद भाभी की जुगलबंदी भी जाते जाते मुस्कान ले आती है....
 

motaalund

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Amezing ye yadap hi to muje yaha khich lati he.

Aap ko reet ke lie chahera diya vo khas mene apni kahani To me rista pakka samzu ke lie rakha tha. Me har kirdar ke lie achhe chahera ka istamal karti hu.

Par aap ke sabdo me itni siddat he ki reet ka ye chahera aap par nyochhavar.
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विलाप के बाद मिलाप...
 

motaalund

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Reet ka kissa padhne ke bad to man alag alag kalpnae karne laga. Please request he ki ise jaldi khatam na karna. Fojisab ki baho me bahot anand he. Milna bichhadna vo yaade amezing.

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Ye sabdo ka jadu to dill me gudgudi macha gaya.

रीत उछल गई और बोली- “ये मुझसे नहीं होने वाला है। एक-दो तक तो ठीक। लेकिन छ…”

दूबे भाभी ने फिर अपने नंदोई यानी करन का साथ दिया। वो रीत को हड़काती बोली-

“तुझे क्या। सारी सारी रात तो ये बेचारा मेहनत करेगा। बस तुम पेट फुला लेना और नौ महीने बाद केहाँ केहाँ। अगले साल फिर। जहाँ बच्चा बाहर, मर्द अन्दर और जब इसको मेहनत करने से कोई ऐतराज नहीं तो तुझे क्या? बस रात रात भर टांग उठाने की प्रैक्टिस शुरू कर दे। तू वैसे भी इतना योग करती है। जिम विम जाती है। तो क्या दिक्कत होगी तुझे…”

रीत हँसते-हँसते पागल हो रही थी, बोली- “भाभी आपने तो बड़े दलबदलू नेताओं को भी मात कर दिया…”
टाँग के साथ-साथ जाँघों का भी एक्सरसाइज...
कभी ऊपर चढ़ कर करना हुआ तो....
 

motaalund

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Thanks so much for enjoying the thread
उत्कृष्ट प्रस्तुति....
 
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