***** ***** जीत गई रीत
हमलावर के हाथ में अभी भी पिस्तौल थी और अब वो मरते हुए भी करन पर गोली चलाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन रीत अब अपने रौद्र रूप में आ गई थी।
करन की गोली ने जो हमलावर के माथे में छेद किया वह सारा खून, और कुछ मांस मज्जा निकलकर रीत के बालों में भर गया था। दुःशाशन के वध के बाद जैसे पांचाली ने अपने खुलेकरश उसके रक्त से धोये थे, बस उसी तरह, रक्त टप-टप-टप टपक रहा था।
और जब उसने गिरे हुए हमलावर को करन की ओर निशाना लगाते देखा तो बस, चिघ्घाड़ के साथ वो हवा में उछली, उसके हाथ का चाकू सीधे हमलावर के गर्दन में पैबस्त था सामने से और फिर गिरते हुए उस हमलावर के सीने पर वह सवार हो गई।
फव्वारे की तरह खून निकलकर रीत के चेहरे पर पड़ रहा था। लेकिन चाकू पर उसकी पकड़ कमजोर नहीं हुई और दोनों हाथों से नीचे तक, पसलियों के बीच, उसके मुँह से अभी भी भीषण आवाजें निकल रही थी जिसे सुनकर ही कोई डर के बेहोश हो जाये। चाकू अभी भी अंदर धंसा था। लग रहा था वो सिर्फ अपने हाथों से उसके वक्ष से, उसका सीना चीरकर उसका कलेजा निकालकर बाहर कर देगी।
रीत की आँखों के सामने अब वो हमलावर नहीं था, वो संकट-मोचन का दृश्य देख रही थी जब बाम्ब विस्फोट हुआ, एक शादीशुदा जोड़ा चीथड़ों में बदल गया। वो एक के बाद एक शव उठा रही थी अपने माता-पिता के शव को ढूँढ़ने के लिए।
रेलवे स्टेशन पर वह पुलिस के साथ गई, करन के माता-पिता के शव को पहचानने, और एक और शव मिला पूरी तरह विक्षत, करन का कोट पहने।
मणिकर्णिका पर एक के बाद एक। कोई नहीं बचा था, न उसके घर में न करन के घर में। दोनों के माता-पिता को अंतिम विदा उसी ने दी। और फिर शीतला घाट पर, 3 साल की बच्ची खेलती हँसती, बाम्ब के धमाके में उड़ गई।
वह बार-बार चाकू का वार कर रही थी, चीख रही थी। पेट उसने फाड़ दिया था, अंदर की आँते बाहर निकल आई थी। और उस हमलावर की मृत देह पर बैठी, उसके खून में सनी, बिना रुके वह चीख रही थी और उसके अंग-अंग को चीर रही थी, फाड़ रही थी। उसकी देह पर खड़ी होकर हमलावर के जिस हाथ में अभी भी पिस्टल थी, उसे उसने पकड़ा और जोर से मोड़ दिया। हाथ टूट गया।
श्मशान में विचरण करने वाली जैसे शाकिनी डाकिनी हों उस तरह की आवाज, सब लोग शांत देख रहे थे, करन , चुप, भयाक्रांत। और उस आधे मरे हमलावर ने जैसे मौत देख ली हो। मौत से भी कुछ ज्यादा भयंकर। काली की तरह, रक्त-स्नात, शत्रु-हंता, मृत्यु रूपी साक्षात काल।
करन , वही रीत के मन को स्थिर कर सकता था।
इस जंग में दोनों ने ही खोया था, अपना सब कुछ। और दोनों ने ही पाया था, एक दूसरे को और जिंदगी का एक मकसद। इन हमलावरों से मुक्ति दिलाने का। करन जाकर रीत के सामने खड़ा हुआ।
रीत कुछ देर तक उसे पथरायी निगाहों से देखती रही जैसे पहचान न रही हो। फिर अचानक उसने एक जोर की आवाज निकाली, जिसमें सदियों का दर्द, चीख, डर सब मिला था।
करन ने आगे बढ़कर रीत के खून से सने हाथ पकड़ लिए और दूसरे हमलावर के पास ले गया और उसके कान में बोला- “तुम कुछ मत करना, बस सिर्फ इसके सामने बैठ जाओ…”
रीत को पास में देखकर जोर से वो चीखा।
और करन ने सवाल करना शुरू किया- “तुम्हें किसने भेजा, सेंटर कहाँ है?”
उसे बहुत कम मालूम था, लेकिन जो भी था, तोते की तरह उसने उगल दिया।
काम की बात तब पता चली जब करन ने पूछा- “तुम्हें यहाँ से क्या मेसेज देना था?”
तो उसने नीचे जेब की ओर इशारा किया, जिसमें एक कम्युनिकेशन डिवाइस थी, दो मेसेज प्री-फेड थे,
01॰ लाल बटन- टारगेट एलीमिनेटड, मिशन अचीव्ड।
02॰ हरा बटन- मिशन अबार्टेड।
मिशन सक्सेसफुल होने पर उन्हें लाल बटन दबाना था, और ये मेसेज सीधे कमांड सेंटर पर जाता। इस एक मेसज को देने के बाद वो डिवाइस बेकार हो जाती। यानी इसका इश्तेमाल करके कमांड सेंटर का पता नहीं लग सकता था।
तब तक मीनल ने देखा उसने गले में ताबीज सा कुछ पहन रखा है और उसका दायां हाथ, जो अभी भी थोड़ा बहुत काम का था उधर बढ़ रहा था। मीनल ने झटके से वो ताबीज तोड़ दी और उसे अपने हाथ में ले लिया।
वह एक सायनाइड कैप्स्यूल था। रीत ने पहचाना और फुसफुसा कर बोली।
रीत धीरे-धीरे नार्मल हो रही थी। रीत ने अधमरे हमलावर पर हाथ रखा, और पूछा- “वापस लौटने का क्या प्रोग्राम था?”
और उसने सारी कहानी बयान कर दी- “टार्गट को खत्म करने के बाद, हमें मेसेज देना था। और मेसेज भेजने के 15 मिनट के अंदर हमें बीच पर पहुँच जाना था जहाँ वो बोट हमें मिलती। 15 मिनट की विंडो उसकी थी, मेसेज देने के 10 मिनट से 25 मिनट तक। और वह हमें गहरे समुद्र तक ले जाती जहाँ सबमैरीन हमें पिक-अप करती…”
सबका ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था। अचानक वह अपना दायां हाथ अपने मुँह के पास ले गया। उसमें एक गंडा ऐसा बंधा था और जब तक लोग कुछ समझ पाते, रोक पाते, वह उसके मुँह में था।
सबसे पहले रीत के मुँह से निकला सायनाइड। और अगले पल ही उसके नीले पड़ते शरीर ने उसकी ताईद भी कर दी। अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।