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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






Teej-Anveshi-Jain-1619783350-anveshi-jain-2.jpg





तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

motaalund

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***** ***** जीत गई रीत

हमलावर के हाथ में अभी भी पिस्तौल थी और अब वो मरते हुए भी करन पर गोली चलाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन रीत अब अपने रौद्र रूप में आ गई थी।

करन की गोली ने जो हमलावर के माथे में छेद किया वह सारा खून, और कुछ मांस मज्जा निकलकर रीत के बालों में भर गया था। दुःशाशन के वध के बाद जैसे पांचाली ने अपने खुलेकरश उसके रक्त से धोये थे, बस उसी तरह, रक्त टप-टप-टप टपक रहा था।

और जब उसने गिरे हुए हमलावर को करन की ओर निशाना लगाते देखा तो बस, चिघ्घाड़ के साथ वो हवा में उछली, उसके हाथ का चाकू सीधे हमलावर के गर्दन में पैबस्त था सामने से और फिर गिरते हुए उस हमलावर के सीने पर वह सवार हो गई।

फव्वारे की तरह खून निकलकर रीत के चेहरे पर पड़ रहा था। लेकिन चाकू पर उसकी पकड़ कमजोर नहीं हुई और दोनों हाथों से नीचे तक, पसलियों के बीच, उसके मुँह से अभी भी भीषण आवाजें निकल रही थी जिसे सुनकर ही कोई डर के बेहोश हो जाये। चाकू अभी भी अंदर धंसा था। लग रहा था वो सिर्फ अपने हाथों से उसके वक्ष से, उसका सीना चीरकर उसका कलेजा निकालकर बाहर कर देगी।

रीत की आँखों के सामने अब वो हमलावर नहीं था, वो संकट-मोचन का दृश्य देख रही थी जब बाम्ब विस्फोट हुआ, एक शादीशुदा जोड़ा चीथड़ों में बदल गया। वो एक के बाद एक शव उठा रही थी अपने माता-पिता के शव को ढूँढ़ने के लिए।

रेलवे स्टेशन पर वह पुलिस के साथ गई, करन के माता-पिता के शव को पहचानने, और एक और शव मिला पूरी तरह विक्षत, करन का कोट पहने।

मणिकर्णिका पर एक के बाद एक। कोई नहीं बचा था, न उसके घर में न करन के घर में। दोनों के माता-पिता को अंतिम विदा उसी ने दी। और फिर शीतला घाट पर, 3 साल की बच्ची खेलती हँसती, बाम्ब के धमाके में उड़ गई।

वह बार-बार चाकू का वार कर रही थी, चीख रही थी। पेट उसने फाड़ दिया था, अंदर की आँते बाहर निकल आई थी। और उस हमलावर की मृत देह पर बैठी, उसके खून में सनी, बिना रुके वह चीख रही थी और उसके अंग-अंग को चीर रही थी, फाड़ रही थी। उसकी देह पर खड़ी होकर हमलावर के जिस हाथ में अभी भी पिस्टल थी, उसे उसने पकड़ा और जोर से मोड़ दिया। हाथ टूट गया।

श्मशान में विचरण करने वाली जैसे शाकिनी डाकिनी हों उस तरह की आवाज, सब लोग शांत देख रहे थे, करन , चुप, भयाक्रांत। और उस आधे मरे हमलावर ने जैसे मौत देख ली हो। मौत से भी कुछ ज्यादा भयंकर। काली की तरह, रक्त-स्नात, शत्रु-हंता, मृत्यु रूपी साक्षात काल।




करन , वही रीत के मन को स्थिर कर सकता था।

इस जंग में दोनों ने ही खोया था, अपना सब कुछ। और दोनों ने ही पाया था, एक दूसरे को और जिंदगी का एक मकसद। इन हमलावरों से मुक्ति दिलाने का। करन जाकर रीत के सामने खड़ा हुआ।

रीत कुछ देर तक उसे पथरायी निगाहों से देखती रही जैसे पहचान न रही हो। फिर अचानक उसने एक जोर की आवाज निकाली, जिसमें सदियों का दर्द, चीख, डर सब मिला था।

करन ने आगे बढ़कर रीत के खून से सने हाथ पकड़ लिए और दूसरे हमलावर के पास ले गया और उसके कान में बोला- “तुम कुछ मत करना, बस सिर्फ इसके सामने बैठ जाओ…”

रीत को पास में देखकर जोर से वो चीखा।

और करन ने सवाल करना शुरू किया- “तुम्हें किसने भेजा, सेंटर कहाँ है?”

उसे बहुत कम मालूम था, लेकिन जो भी था, तोते की तरह उसने उगल दिया।

काम की बात तब पता चली जब करन ने पूछा- “तुम्हें यहाँ से क्या मेसेज देना था?”

तो उसने नीचे जेब की ओर इशारा किया, जिसमें एक कम्युनिकेशन डिवाइस थी, दो मेसेज प्री-फेड थे,

01॰ लाल बटन- टारगेट एलीमिनेटड, मिशन अचीव्ड।

02॰ हरा बटन- मिशन अबार्टेड।

मिशन सक्सेसफुल होने पर उन्हें लाल बटन दबाना था, और ये मेसेज सीधे कमांड सेंटर पर जाता। इस एक मेसज को देने के बाद वो डिवाइस बेकार हो जाती। यानी इसका इश्तेमाल करके कमांड सेंटर का पता नहीं लग सकता था।

तब तक मीनल ने देखा उसने गले में ताबीज सा कुछ पहन रखा है और उसका दायां हाथ, जो अभी भी थोड़ा बहुत काम का था उधर बढ़ रहा था। मीनल ने झटके से वो ताबीज तोड़ दी और उसे अपने हाथ में ले लिया।

वह एक सायनाइड कैप्स्यूल था। रीत ने पहचाना और फुसफुसा कर बोली।



रीत धीरे-धीरे नार्मल हो रही थी। रीत ने अधमरे हमलावर पर हाथ रखा, और पूछा- “वापस लौटने का क्या प्रोग्राम था?”

और उसने सारी कहानी बयान कर दी- “टार्गट को खत्म करने के बाद, हमें मेसेज देना था। और मेसेज भेजने के 15 मिनट के अंदर हमें बीच पर पहुँच जाना था जहाँ वो बोट हमें मिलती। 15 मिनट की विंडो उसकी थी, मेसेज देने के 10 मिनट से 25 मिनट तक। और वह हमें गहरे समुद्र तक ले जाती जहाँ सबमैरीन हमें पिक-अप करती…”

सबका ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था। अचानक वह अपना दायां हाथ अपने मुँह के पास ले गया। उसमें एक गंडा ऐसा बंधा था और जब तक लोग कुछ समझ पाते, रोक पाते, वह उसके मुँह में था।

सबसे पहले रीत के मुँह से निकला सायनाइड। और अगले पल ही उसके नीले पड़ते शरीर ने उसकी ताईद भी कर दी। अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।
दोनों एक हीं परिस्थिति से गुजर चुके थे..
और एक दूसरे का दर्द समझ सकते थे...
 

motaalund

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***** ***** रैन भई चहुँ देश

रीत और करन ने मिलकर दोनों हमलावर जिस खिड़की से आये थे, उसी खिड़की से उन्हें वापस बाहर फेंक दिया। करन, रीत खिड़की के पास खड़े थे और करन कुछ सोच रहा था, फिर उसने वो कम्युनिकेशन डिवाइस उठाई और कुछ सोचकर मिशन अकम्पलीश होने का मेसेज दिया। तुरंत जवाब आया कांग्रेट्स।

पर अगले पल रीत ने चिल्लाकर करन को वार्न किया।

उस डिवाइस के पीछे कोई लाइट जल रही थी, और करन ने तुरंत उसे खिड़की के बाहर फेंक दिया। वह उन दोनों हमलावरों के शरीर के बीच में गिरा, और अगले ही पल जोर का धमाका हुआ। 10 फिट दूरी का सब कुछ उस धमाके में उड़ गया। इसका मतलब उस डिवाइस में ही दोनों के खत्म करने का पूरा प्लान बना हुआ था।



रीत औरकरन ने मिलकर कमरे को पूरी तरह ठीक किया और उसके बाद करन पकड़कर रीत को बाथरूम में,....फिर और करन बाहर कंट्रोल रूम में गया। और रिवाइंड करने पर उसे हमलावरों की सारी हरकतें पता चल गईं, जैमर लगाना, आने के रास्ते में माइन्स लगाना, सारी बातें। पहले करन ने जैमर ठीक किया। और आई॰बी॰ के चीफ से बात की और उन्हें सब कुछ बताया।

उन्होंने उसे दो मिनट इंतेजार करने को कहा और खुद आर॰ए॰डब्लू॰ के डायरेक्टर को और एडिशनल सेक्रेटरी होम (इंटरनल सिक्योरिटी) को जगा के बताया। आर॰ए॰डब्लू॰ को वैसे भी इन्वॉल्व होना था क्योंकी करन आर॰ए॰डब्लू॰ का आपरेटिव था।

और जब आई॰बी॰डायरेकटर का फोन आया तो उनके इंस्ट्रक्शन बहुत साफ थे-

“बेहोश कंट्रोल रूम सिक्योरिटी आपरेटिव्स को बेहोश ही रहने दें और उन्हें हाथ न लगाएं। कंट्रोल रूम के फूटेज से हमलावरों की फूटेज के वीडियो को अपने पास कापी करके, कंट्रोल रूम के सिक्योरिटी कैमरे से उसे डिलीट कर दें। लोकल सिक्योरिटी को न इन्वाल्व करें, सिर्फ आई॰बी॰ के आपरेटिव को जो पुलिस पोस्ट पर इंतेजार कर रहा है उससे कांन्टैक्ट करें और उसके साथ मिलकर सब कुछ ‘नार्मल ऐसा’ कर दें। उनका एक्सट्रैकशन प्री-पोन किया जा रहा है और 20-25 मिनट में उन लोगों को वहां से निकलना होगा…”

करन ने पहले कंट्रोल रूम के फूटेज टेम्पर किये, हमलावर के सारे फूटेज अपने मोबाईल में और एक पेन ड्राइव में लेकर उसे आई॰बी॰ और आर॰ए॰डब्लू॰ को भी भेज दिया। उसके बाद आई॰बी॰ के आदमी को फोन किया। उसके पास भी मेसेज जस्ट पहुँचा था। जब तक वो आये, उसके पहले करन ने पेरीमीटर का चक्कर लगाया और फेन्स को कटा पाया। साथ में एक लूप लगा था। ये साफ था की हमलावर यहीं से घुसे थे। करन ने फेन्स ठीक की। और सबूत बताने वाला वो लूप अपने पास रख लिया।

बाहर रास्ते में आकर उसने माइंस ढूँढ़ी, जो उसके लिए इसलिए मुश्किल नहीं थी की उसने सी॰सी॰टीवी की फूटेज में लोकेशन साफ-साफ देखी थी। बहुत सम्हालकर उसने दोनों माइंस डिफ्यूज की और रास्ते के बाकी ‘कांटे’ हटाये।

कुछ ही देर में आई॰बी॰ का आपरेटिव वहां पहुँच गया और दोनों पिछवाड़े गए जहाँ करन ने खिड़की से दोनों हमलवारों की बाडी बाहर फेंकी थी।

उसके बगल में कम्युनिकेशन डिवाइस जो एक्सप्लोड हो चुकी थी, वो भी पड़ी थी। और उसके विस्फोट से दोनों बाडीज अब इतनी क्षत-विक्षत हो चुकी थी की उन्हें पहचानना मुश्किल था।

करन और उस आपरेटिव ने मिलकर बारी-बारी से दोनों बाडीज को समुद्र तक पहुँचाया, और फिर किनारे पड़े पत्थर उनमें बाँधकर उन्हें समुद्र तल में डुबो दिया। उस समय टाइड का समय था, थोड़ी ही देर में लहरें उन्हें समुद्र तट से दूर पहुँचा देती। यही वो समय था जब उस हमलावर के मुताबिक बोट को उनका इन्तजार करना था, लेकिन आस-पास कोई बोट नजर नहीं आई।
करन ने बदले हुए प्रोग्राम के बारे में रीत को बता दिया था। आई॰बी॰ का आपरेटिव बाहर कंट्रोल रूम में कहीं से बात कर रहा था।



जब करन अंदर गया तो रीत बाथरूम में थी, कमरा एकदम साफ कर दिया गया था, और सामान पैक था। करन दूसरे बाथरूम में दाखिल हो गया। उसकी देह पर भी हमलावरों के खून के छींटे थे। नहाकर वह तैयार हो रहा था कीरीत ने दरवाजा खटखटाया, गाड़ी आ गई है। वो जल्दी-जल्दी बाहर निकला। रीत तैयार थी। रीत अब नार्मल लग रही थी । गाड़ी एक दूध बांटने वाली मिल्कवैन थी, जिसे देखकर किसी को शक न हो, लेकिन उसके सारे शीशे ब्लैक टिंटेड ग्लासेज थे और पर्दे पड़े थे। ड्राइवर गाड़ी से नहीं उतरा और करन, रीत लगेज एरिया में बैठ गए, अपने सामान के साथ।

20 मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चापर खड़ा था, और उनका सामान उसमें रख दिया गया। उसमें बैठ गए। और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चुका था। किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।



20 मिनट बाद वह वड़ोदरा में लैंड किये। लेकिन वह सिविलयन एयरपोर्ट पर नहीं थे। वह वड़ोदरा एयरफोर्स बेस पर उतरे। और बगल में एयर फोर्स का एक प्लेन तैयार खड़ा था।

रीत की आँखों में थोड़ी सी पुरानी चपलता लौट आई थी। और अब वो दोनों एयर फोर्स के जहाज में बैठ गए और उनके बैठते ही जहाज उड़ चला। करन को मालूम था, कि वो दोनों बनारस नहीं जा रहे हैं। वह बनारस से बहुत दूर जा रहे थे। और सिर्फ बनारस से ही नहीं अपनी पुरानी जिंदगी से दूर जा रहे थे शायद हमेशा के लिए।



आई॰बी॰ ने उनके ऊपर हुए इस हमले के बाद ये फैसला किया था की उनकी सिक्योरटी के लिए और नेशनल सिक्योरटी के लिए ये जरूरी है की उन्हें एक प्रोटेक्शन प्रोग्राम में रखा जाय, जिसमें उनकी पूरी आइडेंटिटी नई होगी। थोड़ा बहुत प्लास्टिक सर्जरी, नया माहौल, नया बैकग्राउंड।



करन ने जो मेसेज दिया था उससे दुश्मन के कमांड सेंटर को ये सूचना मिल गई होगी की दोनों एलिमिनेट हो चुके हैं। लेकिन उनके जानने वालों पर वह तब भी निगाह रखेंगे और अगर इन्होंने उनसे कांटैक्ट रखा तो इस कवर स्टोरी को मेंटेन करना मुश्किल होगा।



करन ने सिर्फ आनंद को मेसेज किया था, और ये कहा था की गुड्डी, दूबे भाभी और फेलू-दा को सिर्फ ये बताएं की वो सेफ हैं। यह करन को भी नहीं मालूम था कि वो और रीत कहाँ जा रहे हैं, उनकी नई आई॰डी॰ क्या होगी?



रीत एक कोने में प्लेन की खिड़की से सिर टिकाये गुमसुम बैठी थी।



बनारस में दूबे भाभी ने आँचल के कोने से, आँसू का एक टुकड़ा पोंछा और अशिषा- “बिटिया जहाँ रहो खुश रहो। करन है न तोहरे साथ…” और फिर आसमान की ओर भरी निगाह से देखकर बुदबुदाया- “वकील साहब, आप जहाँ हों, बिटिया को आशीष दो…”
20 मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चापर खड़ा था, और उनका सामान उसमें रख दिया गया। उसमें बैठ गए। और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चुका था। किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।

कृपया स्पष्ट करें कि उषा सुबह की वेला है कि शाम की...
मेरी जानकारी में सूर्य भगवान उषा के साथ आते हैं और प्रत्युषा के साथ विदा होते हैं...
 

komaalrani

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20 मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चापर खड़ा था, और उनका सामान उसमें रख दिया गया। उसमें बैठ गए। और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चुका था। किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।

कृपया स्पष्ट करें कि उषा सुबह की वेला है कि शाम की...
मेरी जानकारी में सूर्य भगवान उषा के साथ आते हैं और प्रत्युषा के साथ विदा होते हैं...
प्रत्युषा

प्रति + उषा


(यण संधि)

उषा के पूर्व की स्थिति,

dawn or probably pre dawn


उषा सूर्य की एक पत्नी का भी नाम है ,

यह शब्द संध्या के लिए नहीं प्रयुक्त होता है, न ही उषा का विलोम है बल्कि उषा के ठीक पहले की स्थिति है




तो यह बस जब भोर हो रही हो उस समय का द्योतक है,

उषा भोर का

इसलिए इस पंक्ति का प्रयोग हुआ

किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।

आपने अच्छा हुआ पूछ लिया ये संशय हो सकता है बहुत से पाठकों को रहा है

और वैसे प्रत्युषा आजकल लड़कियों के नाम के रूप में ज्यादा प्रयुक्त होता है
 
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motaalund

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प्रत्युषा

प्रति + उषा


(यण संधि)

उषा के पूर्व की स्थिति,

dawn or probably pre dawn


उषा सूर्य की एक पत्नी का भी नाम है ,

यह शब्द संध्या के लिए नहीं प्रयुक्त होता है, न ही उषा का विलोम है बल्कि उषा के ठीक पहले की स्थिति है




तो यह बस जब भोर हो रही हो उस समय का द्योतक है,

उषा भोर का

इसलिए इस पंक्ति का प्रयोग हुआ

किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।

आपने अच्छा हुआ पूछ लिया ये संशय हो सकता है बहुत से पाठकों को रहा है

और वैसे प्रत्युषा आजकल लड़कियों के नाम के रूप में ज्यादा प्रयुक्त होता है
सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं, सुबह सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और शाम में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) है।
सोर्स : हिंदी अखबार...
 

Shetan

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रीत का जवाब

रीत का कमरा भी उसने बाहर से लाक कर दिया था। अब रीत करन अपने बिल में बंद थे और सिर्फ उन्हें उस कमरे में घुस के एलिमिनेट करना था। न वो कहीं बाहर भाग सकते थे, न कहीं बाहर से हेल्प आ सकती थी। उसने एक बार फिर ध्यान से फीड सुना, रीत के कमरे से कोई आवाज नहीं आ रही थी। इसका मतलब वो सभी निश्चिन्त सो रहे थे।

दोनों एक साथ बाहर रीत के कमरे के सामने इकट्ठे हुए। खिड़की से उनकी नाइट विजन ग्लासेज से साफ दिख रहा था, बिस्तर पर सब सो रहे थे, रजाई से ढंके, हाँ रजाई थोड़ी सी सरक गई थी एक ओर, जो अक्सर अगर एक पलंग पे कई लोग सोएं तो हो जाता है। जो आदमी एक्सटर्नल एरिया चेक करके आया था उसने अपने को कंट्रोल रूम के बाहर पोजीशन किया, जहाँ से वो बाहर का रास्ता देख सकता था, कंट्रोल रूम में कोई फोन आये तो सुन सकता था और वहां से रीत की खिड़की के बाहर खड़े अपने साथी के विजुअल कांटैक्ट में भी था। दोनों के बीच की दूरी मुश्किल से 80-85 मीटर थी और कोई बात होने पे वो 15-20 सेकंड पे पहुँच जाता।

और दोनों इयर-बड और फेस-माइक के जरिये कांटैक्ट में थे ही।


पहला आदमी खिड़की से घुस के टारगेट को एलिमिनेट या न्यूट्रलाइज करता और चार मिनट के बाद दूसरा भी अंदर पहुँच जाता। फिर दोनों को बोट पर बैठे अपने कंट्रोल को सक्सेस मेसेज देना था जहाँ से सेटेलाइट फोन से वो सबमैरीन को और कमांड सेंटर को मेसेज भेजता।

पहले हमलावर ने एक पल के लिए खिड़की से अंदर कमरे को देखा और चारों ओर की पोजीशन चेक की। पहली बार से कोई फर्क नहीं था। या तो वो खिड़की शीशा तोड़कर दाखिल होता लेकिन वो रीत और करन के बारे में अच्छी तरह ब्रीफ किया गया था और उसकी सक्सेस 90% सरप्राइज पर ही डिपेंड करती थी।



उसने अपनी डुंगरी की जेब से मल्टीपर्पज 5॰11 डबल रिस्पान्डर नाइफ निकाला, और खिड़की के शीशे पर एक निशान खींचा और दुबारा जब परपेंडीकुलर दबाव लगाकर उसने काटना शुरू किया तो पूरा का पूरा ग्लास नीचे से कट गया लेकिन वो अलर्ट था और शीशे के टूटकर गिरने के पहले उसने एक शीट पर सारा ग्लास कलेक्ट कर लिया जिससे कोई आवाज न हो। अब पूरी खिड़की बिना शीशे के थी और कोई भी जैग्गड एजेज नहीं थी।

कमरे में अभी भी कोई हरकत नहीं थी। उसके बाद कमरे में घुसना बच्चे का खेल था। लेकिन उसे नहीं मालूम था आगे क्या होना है?


रीत कबर्ड में कपड़ों के पीछे छुपी दबी खड़ी थी। न वह कुछ सोच रही थी, न तैयारी, बस एकदम सन्नद्ध। उसकी हर इन्द्रियां, खुली, सचेत, सजग, हमले को तैयार। बिना देखे उसे पता चल गया की कब दोनों खिड़की के पास खड़े हुए। उसके कान जरा सी हरकत को सुनने के लिए तैयार थे और जब चाकू से शीशे के काटने की बहुत हल्की सी आवाज आई और शीशे की गिरने की वो भी उसने सुनी। लेकिन हर चीज पता करने के लिए सुनना देखना जरूरी नहीं होती।

महा विद्याओं का आशीर्वाद, योग की शिक्षा या दीक्षा, उसकी पूरी देह आँख भी थी कान भी। शीशे के हटते ही जो हवा का झोंका आया बस उससे उसे अंदाज लग गया की बस अब खिड़की खुल गई है और हमला होने वाला है। बहुत हल्की सी रोशनी जो बाहर से आ रही थी, उसके अवरुद्ध होने से रीत को ये भी पता चल गया की वो अंदर आ गया है और उसकी लोकेशन कहाँ है।

वह कबर्ड और पलंग के बीच खड़ा था। और आते ही उसने जो पहला हमला किया उसके लिए रीत और करन दोनों तैयार थे, और न तैयार होते तो पहली बाजी क्या पूरा मैच हार जाते।


दो स्टेन-ग्रेनेड, एम-84 पहले तो घुसते ही उसने पलंग की ओर फेंके। इनका असर तेज फ्लैशिंग लाइट और धमाकेदार आवाज (जो 170-180 डेसीबेल की रही होगी) -हुआ। और, नार्मली, लोग ऐसी तेज आवाज में करीब आधे मिनट से एक मिनट तक अपना ओरिएनेटशन खो देत्ते हैं, कुछ करने की हालत में नहीं रहते है। बैलेंस समाप्त हो जाता है और कुछ दिखाई पड़ना भी मुश्किल होता है।


इतने समय में अटैक करने वाले को सिचुएशन पूरी तरह कंट्रोल करना आसान होता है।


लेकिन रीत ने इसकी तैयारी पूरी कर रखी थी। कबर्ड में पड़े कंबल से उसने अपने चेहरे, कान को अच्छी तरह ढक रखा था, खुद टंगे हुए कपड़ों के पीछे खड़ी थी और कबर्ड एक झिर्री के अलावा पूरी तरह बंद था, इसलिए कबर्ड, कपड़ों और कंबल ने स्टेन-ग्रेनेड के असर से उसको अच्छी तरह इन्सुलेट कर दिया। हाँ फायदा ये हुआ की अटैकर की लोकेशन अब उसे पूरी तरह कन्फर्म हो गई थी।

पलंग के नीचे छुपे करन को पलंग का पूरा प्रोटेक्शन तो मिला ही, जो उन्होंने रजाई खींच रखी थी नीचे तक उसने भी ब्लाइंडिंग फ्लैश और साउंड को अब्जार्ब कर लिया। इसके साथ ही रजाई से निकालकर करन ने रूई अपने कान में ठूंस रखी थी, दोनों हाथों से कान जोर से बंद कर रखे थे और अपने को फर्श से चिपका रखा था।


लेकिन हमलावर ने स्टेन-ग्रेनेड का असर खत्म होने के पहले ही स्मोक-ग्रेनेड एक पलंग के ऊपर और दूसरा पलंग के नीचे की ओर लांच किया। लेकिन उनका असर शुरू हो उसके पहले ही तेजी से कबर्ड का दरवाजा खुला, कपड़ों का एक बण्डल सीधे उसके ऊपर और जब तक वह सम्हले रीत सीधे उसके कंधों पर।

स्मोक में नाइट विजन गागल्स के बावजूद हमलावर के लिए देखना मुश्किल था।

लेकिन रीत को किसी नाइट विजन की कभी जरूरत नहीं पड़ी।

काली अँधेरी रात में घने जंगल में चीता शिकार की घात में बैठा रहता है, और तेजी से भागते सारंग को जिस झटके से दबोच लेता है, या सुंदरबन में जंगलों और सागर के बीच नाव पर बैठे शिकार को जिस तरह झपट्टा मारकर बंगाल का बाघ अपना शिकार बना लेता है, सिर्फ अपनी शक्ति, स्वभाव और प्रकृति के कारण बस वही हालत रीत की थी।

महाविद्या-स्त्रोत और महाविद्या-कवच का पाठ अभी उसने किया था, और बस सबका आशीर्वाद सबकी शक्ति लेकर उतरी थी, विनाश की दूती बनकर। सीधे वह उसकी पीठ पर चढ़ी थी, बायां हाथ सीधे काल का फन्दा बना उस हमलावर के गले में लिपटा था और दायें हाथ की कुहनी ने, उस हाथ पर पूरी ताकत से चोट की, जिसमें उसने एच&के (हेकलर एंड कोच) यूनिवर्सल मशीन पिस्टल पकड़ रखी थी और उसकी उंगलियां ट्रिगर पर थी। कुहनी के साथ पैर की पूरी ताकत भी उसी हाथ की कुहनी पर पड़ी, और अचानक हुए इस हमले का लाभ ये हुआ की गन उसके हाथ से छूट गई और फर्श पर गिर पड़ी।
Amezing komalji kis fild me aap toper nahi ho. Superb. Romance shararat masti. Mistirias. Co colding, slave sex, pain, drama, imosans, or ab thriller action bhi.


Aap ke charan kaha he guruji.
 

Shetan

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रीत


सीधे वह उसकी पीठ पर चढ़ी थी, बायां हाथ सीधे काल का फन्दा बना उस हमलावर के गले में लिपटा था और दायें हाथ की कुहनी ने, उस हाथ पर पूरी ताकत से चोट की, जिसमें उसने एच&के (हेकलर एंड कोच) यूनिवर्सल मशीन पिस्टल पकड़ रखी थी और उसकी उंगलियां ट्रिगर पर थी। कुहनी के साथ पैर की पूरी ताकत भी उसी हाथ की कुहनी पर पड़ी, और अचानक हुए इस हमले का लाभ ये हुआ की गन उसके हाथ से छूट गई और फर्श पर गिर पड़ी।

ये नेवल सर्विस ग्रुप का फेवरिट हथियार था और बहुत ही घातक, खास तौर पे शार्ट रेंज पे, और उसको और घातक बनाता था, 0॰45 एसीपी कार्ट्रिज। ये गोलियां अपनी बड़ी साइज के कारण, पेनीट्रेशन और एक्सपैंशन दोनों ही में तेज और बड़ा असर करती हैं। इससे रक्तश्राव तेज होता है और मारक क्षमता बहुत अधिक है। यह सेमी-आटोमेटिक, आटोमेटिक दोनों ही तरह से सेट हो सकती है लेकिन अभी सेमी-आटोमेटिक मोड में थी।

इससे बचने का सिर्फ एक तरीका था की ये दुश्मन के हाथ में न रहे और अब इसका मालिकाना बदल चुका था। रेंग करके बिस्तर के नीचे से निकले करन ने बन्दूक पर अब कब्ज़ा कर लिया था और अब ट्रिगर पर उसकी उंगलियां थी।

ऐसा बहुत कम होता है की रीत का पहला हमला निर्णायक न हो, लेकिन इस बार ऐसा न हुआ। हाँ एक बहुत बड़ा फायदा ये मिला की गन हमलावर के हाथ से निकलकर करन के हाथ में पहुँच गई थी और मुकाबला अब फायर आर्म्स से हटकर अनआर्म्ड काम्बैट में बदल चुका था। और इसलिए भी था की अनआर्म्ड काम्बैट में अमेरिकन नेवी सील के साथ जब वह ट्रेनिंग में था तो हर मुकाबले में पहले या बहुत रेयरली दूसरे नंबर पे रहता था और फिर कराते और जूडो की ट्रेनिंग चाइनीज स्पेशल आपरेशन फोर्सेज की मैरीन ब्रिगेड के साथ उसने की थी और जवाइंट एक्सरसाइज में भी पार्टिसिपेट किया था। इसलिए वह रीत से मुकाबले में 20 तो नहीं लेकिन 17 भी नहीं था, हाँ 18, 19 जरूर रहा होगा। दूसरे उसके पास अभी भी उसकी पिस्टल और काम्बैट नाइफ थी जिसकी तेज धार का एक हमला काफी होता था।


भले ही हमलावर के दाहिने हाथ ने एच&के पिस्टल से पकड़ छोड़ दी हो लेकिन वो हाथ ही उस हमलावरका हथियार बन गया था और उसकी कुहनी ने एक पिस्टन की तरह सीधे उसकी पीठ पर लदी रीत के पेट में वार किया। कोई दूसरी होती तो उसकी स्प्लीन बर्स्ट हो गई होती और पेट के अंदर के कई अंगो से इंटरनल हैमरेज चालू हो जाता।

लेकिन रीत की रक्षा तो खुद काशी के कोतवाल कर रहे थे और उसने कवच धारण कर रखा था महाविद्या के मन्त्र और आशीर्वाद का। अपने आप उसकी सांस गहरी हो गई, पेट अंदर खिंच गया और उसकी देह गेंद की तरह मुड़ गई, और हमले का असर बस नाम मात्र के लिए हुआ।

कोई दूसरा होता तो शायद ये ‘नाम मात्र’ बेहोश करने के लिए काफी था।


लेकिन रीत रीत थी।

हाँ इसका असर ये जरूर हुआ की हमलावर रीत की पकड़ से पल भरकर लिए छूट गया। और हमलावर को मुड़कर अब रीत को सामना करने का मौका मिल गया था, लेकिन ये मौका इतना भी नहीं था की वो कमांडो नाइफ निकाल सकता। उसने मुक्के का सहारा लिया की पल भर अगर वो रीत को डिसओरिएंट कर पाता तो फिर एक बार चाकू उसके हाथ में आने की बस देरी थी।

हमलावर ने मुड़ते ही दुहरा हमला किया, पैर की किक सीधे रीत के घुटने पे नी-कैप को टारगेट करके, और एक जोरदार मुक्का रीत के चेहरे पे। कोई दूसरा होता तो शायद बत्तीसी बाहर होती और घुटना, नी-रिप्लेसमेंट के लिए तैयार हो जाता। और ऊपर से उसके जूतों में लोहे के कैप लगे थे।

और रीत के लिए भी मुश्किल था बचना, लेकिन रक्षा की जिम्मेदारी तो उसने कोतवाल के जिम्मे कर रखी थी, और बस अपने आप उसका शरीर उछला और हवा में ही मुड़ा, नतीजा ये हुआ की मुक्का बजाय चेहरे पे लगने के उसके कंधे पे लगा और पैर का वार खाली गया।

हमलावर को भी ये अंदाज नहीं था, और उससे बढ़कर ये अंदाज भी उसे नहीं था की उसका मुक्के वाला हाथ रीत की गिरफ्त में होगा। रीत की गिरफ्त की ताकत भी उसे तभी पता चली। लोहे की सँडसी मात थी। उस कोमल कलाई में, पल भर में कलाई तोड़ देने की ताकत थी।

और रीत ने यही किया, एक बार एंटी क्लॉक वाइज और दुबारा क्लॉक वाइज। एक बार और एंटी क्लॉक वाइज करने पर कलाई के सारे लिगामेंट टूट जाते और वो हाथ पूरी तरह बेकार हो जाता। रीत उसके पैरों का हमला देख चुकी थी और उसकी निगाह काउंटर अटैक के लिए उसके पैरों पर थी, पर रीत को यह नहीं अंदाज था की, वो सव्यसाची था दोनों हाथों से बराबर का वार करता था। और हमलावर कराते में ब्लैक बेल्ट था। जो हाथ दस ईंटों को एक साथ तोड़ सकता था।

रीत की कलाई पर बिजली की तेजी से पड़ा। बल्की पड़ने वाला था, और रीत ने उसके पहले ही झटके से हमलावर की कलाई तोड़ दी। पूरी तरह दूटने से उस हमलावर की दायीं कलाई तो बच गई लेकिन दो-चार लिगामेंट तो टूट ही गए और अब वह करीब 70% बेकार हो चुकी थी।

दूसरे रीत का हाथ हटने से कराते का हमला पूरी तरह बेकार हो गया लेकिन उसकी उंगलियों का अगला भाग जो रीत के हाथ को छूता निकल गया, लगा जैसे बिजली का करेंट लगा हो और किसी दूसरे के हाथ को बेकार करने के लिए काफी था।

लेकिन ये रीत थी। और हमले से बचते समय भी अगला हमला करने के लिए तैयार थी। उसकी निगाह अभी भी उस दुष्ट के पैरों पर टिकी थी और वो जानती थी अगला हमला यहीं से आएगा।

और हुआ भी यही। बायां पैर हवा में लहराया, टारगेट रीत की रिब्स।

और रीत हल्के से मुश्कुराई। अब हमलावर पहले से तयशुदा स्क्रिप्ट पर आ गया था और उसको पढ़ना ज्यादा आसान था। रीत न सिर्फ साइड में सरकी, बल्की अबकी उसके दोनों हाथों ने बाएं पैर को जूते के ठीक ऊपर जोर से पकड़ लिया और वही क्लॉक वाइज, एंटी क्लॉक वाइज और फिर क्लॉक वाइज।

एक पैर फँसा हो तो दूसरे पैर से हमला करना मुश्किल था। ऊपर से दायें हाथ में लिगामेंट टूटने से होने वाले दर्द ने उसे थोड़ा डिसओरिएंट भी कर दिया था। इसलिए बायां हाथ भी अब थोड़ा स्लो हो चुका था। बायां पैर 5 सेकंड में रीत ने बेकार कर दिया, सारी कार्टिलेज टूट चुकी थी और उसी के साथ रीत ने जोर से हेड-बट किया, उसके एक्सपोज्ड पेट की ओर।


“बचो-बचो…” करन की घबड़ाई आवाज तेजी से आई।
Ekdam asli nari shakti ka roop dikha diya aap ne. Ab tak aap ne nari ko kis kis roop me dikhaya he. Ye alag to nahi kahungi. Par bas yahi baki tha. Amezing.
 

komaalrani

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सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं, सुबह सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और शाम में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) है।
सोर्स : हिंदी अखबार...




प्रत्युषा का अर्थ संध्या है यह आपने बताया की हिंदी अखबार में इसका स्त्रोत है, एकदम सही है, यह खबर भास्कर में करीब छह महीने पहले छठ के उत्सव पर निकली और मैंने उसे जस का तस कोट कर रही हूँ

ज्योतिषाचार्य बालाकांत पांडेय कहते हैं छठ को लेकर मान्यता है कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा है। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रातः काल में सूर्य की पहली किरण ‘उषा’ और संध्याकाल में सूर्य की अंतिम किरण ‘प्रत्युषा’ को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है।

https://www.bhaskar.com/local/bihar...vening-and-usha-in-the-morning-130491338.html

लेकिन अगर जांच पड़ताल करें तो पता चलेगा की मूल अवधारणा ही गलत है,

भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। विवाह के बाद संज्ञा ने वैवस्वत और यम नामक दो पुत्रों और यमुना नामक एक पुत्री को जन्म दिया।

संज्ञा बड़े कोमल स्वभाव की थी, जबकि सूर्य देव प्रचंड तेजवान थे। संज्ञा सूर्य देव के तेज़ को बड़े कष्ट से सहन कर पाती थी। उसके लिए वह तेज़ असहनीय था। तब उनके तेज़ से बचने के लिए वह अपनी छाया को उनकी सेवा में छोड़कर स्वयं पिता विश्वकर्मा के पास चली गई। वहाँ रहते हुए अनेक दिन हो गए, तब विश्वकर्मा ने उसे पति के घर लौटने को कहा। वह सूर्य देव के तेज़ से भयभीत थी और उनका सामना नहीं करना चाहती थी। इसलिए उत्तरकुरु नामक स्थान पर घोड़ी का रूप बनाकर तपस्या करने लगी।

इधर सूर्य देव और संज्ञा की संतानें छाया को ही संज्ञा समझते थे। एक दिन छाया ने किसी बात से क्रोधित होकर यम को शाप दे दिया। शाप से भयभीत होकर यम पिता सूर्य की शरण में गए और उन्हें माता द्वारा शाप देने की बात बताई।

‘माता ने अपने पुत्र को शाप दे दिया’- यह सुनकर सूर्य को छाया पर संदेह हो गया। उन्होंने छाया को बुलवाया और उससे संज्ञा के विषय में पूछने लगे। छाया के चुप रहने पर वे उसे शाप देने को तैयार हो गए। तब भयभीत छाया ने सबकुछ सच-सच बता दिया। सूर्य देव ने उसी क्षण समाधि लगाकर देखा कि संज्ञा उत्तरकुरु नामक स्थान पर घोड़ी का रूप धारण कर उनके तेज़ को सौम्य और शुभ करने के उद्देश्य से कठोर तपस्या कर रही है।

तब सूर्यदेव ने अपने श्वसुर विश्वकर्मा के पास जाकर उनसे अपना तेज़ कम करने की प्रार्थना की। विश्वकर्मा ने उनके तेज़ को कम कर दिया। सूर्य के ऋग्वेदमय तेज़ से पृथ्वी, सामवेदमय तेज़ से स्वर्ग और यजुर्वेदमय तेज़ से पाताल की रचना हुई। सूर्यदेव के तेज़ के सोलह भाग थे। विश्वकर्मा ने इनमें से पन्द्रह भाग कम कर दिए और उनसे भगवान शिव का त्रिशूल, विष्णु का चक्र, वसुआक नामक भयंकर शंकु, अग्निदेव की शक्ति, कुबेर की पालकी तथा अन्य देवगण के लिए अस्त्र-शस्त्रों की रचना की। तभी से सूर्यदेव अपने तेज़ के सोलहवें भाग से ही चमकते हैं।

तेज़ कम होने के बाद सूर्यदेव घोड़े का रूप बनाकर संज्ञा के पास गए और वहीं उसके साथ संसर्ग किया। इससे उन्हें नासत्य, दस्त्र और रेवंत नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। नासत्य और दस्त्र अश्विनीकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुए। तत्पश्चात् सूर्य ने प्रसन्न होकर संज्ञा से वर माँगने को कहा। संज्ञा ने अपने पुत्र वैवस्वत के लिए मनु पद, यम के लिए शाप मुक्ति और यमुना के लिए नदी के रूप में प्रसिद्ध होना माँगा। भगवान सूर्यदेव ने इच्छित वर प्रदान किए और उसे साथ लेकर अपने लोक में लौट गए.

https://bharatdiscovery.org/india/संज्ञा_(सूर्य_की_पत्नी)



इसलिए कई जगहों पर सूर्य की दो पत्नियों का जिक्र आता है , संज्ञा और छाया। उषा और प्रत्युषा उनकी पत्निया नहीं थीं।


उषा का जिक्र ऋग्वेद की ऋचाओं में है,

उषस् (उषा) एक वैदिक देवी हैं। संस्कृत में, उषस् का मतलब "उदय" है

ऋग्वेद में, वह एक युवा स्त्री है जो स्वर्णिम रथ से आकाशमार्ग पर यात्रा करती है। वे भोर की देवी हैं।वेदों में उषा देवता मात्र ऐसी स्त्री पात्र हैं जिन्हें लक्षित करके अनेक सूक्त रचे गए। उनका गुणगान लगभग 20 सूक्तों में किया गया है।

In RV 6.64.1-2 (trans. Jamison), Ushas is invoked as follows:

Vedic:

1. úd u śriyá uṣáso rócamānā ásthur apā́ṃ nórmáyo rúśantaḥ

kr̥ṇóti víśvā supáthā sugā́ny ábhūd u vásvī dákṣiṇā maghónī

2. bhadrā́ dadr̥kṣa urviyā́ ví bhāsy út te śocír bhānávo dyā́m apaptan

āvír vákṣaḥ kr̥ṇuṣe śumbʰámānóṣo devi rócamānā máhobhiḥ

English translation:

1. The shining Dawns have arisen for splendor, glistening like the waves of the waters.

She makes all pathways, all passages easy to travel. She has appeared— the good priestly gift, the bounteous one. 2. Auspicious, you have become visible; you radiate widely. Your flare, your radiant beams have flown up to heaven.


You reveal your breast as you go in beauty, goddess Dawn, shining with all your might.

In the "family books" of the Rig Veda (e.g. RV 6.64.5), Ushas is the divine daughter—a divó duhitâ —of Dyaus Pita ("Sky Father").

5. Convey (it)—you who as the unsurpassable one with your oxen convey the boon at your pleasure, Dawn,

you who are a goddess, o Daughter of Heaven. Become worthy to be seen with your munificence at the early invocation


( Jamison, Stephanie (2014). The Rigveda - the earliest religious poetry of India. Oxford University Press. p. 863.)

उषा की भगिनी निशा है

लेकिन उषा और निशा दोनों ही सूर्य की पत्नियां नहीं हैं।



उषा के बाद हम प्रत्युषा की खोज गूगल देव की सहायता से कर सकते है

कहीं कहीं अंग्रेजी स्पेलिंग के चक्कर में उसे प्रत्युष भी कहा जाता है लेकिन हिंदी में प्रत्युषा ही कहते हैं

अनेक धार्मिक परम्पराओं में इस शब्द का प्रयोग डान या प्री डान के लिए हुआ है

महायान बौद्ध परम्परा



Pratyūṣa (प्रत्यूष) refers to “dawn”, according to the Vajratuṇḍasamayakalparāja, an ancient Buddhist ritual manual on agriculture from the 5th-century (or earlier), containing various instructions for the Sangha to provide agriculture-related services to laypeople including rain-making, weather control and crop protection.—Accordingly, [while describing an offering manual] “[...] At dawn (pratyūṣa) being alone in privacy, having made the cross-legged gesture, this mantra should be called to mind thirty-two times. [...]”.

Source: De Gruyter: A Buddhist Ritual Manual on Agriculture

शैव परम्परा में भी प्रत्युषा शब्द का प्रयोग सुबह के लिए हुआ है

Pratyūṣa (प्रत्यूष) refers to “daybreak”, according to the Svacchanda-tantra.—Accordingly, [verse 4.1-2, while describing the interpretation of dreams]—“In the bright morning, at daybreak (pratyūṣa), after purification, etc., one by one as [explained in the previous chapter, the Ācārya] should enter the house. The pupil, who has sipped pure water, holds a flower in his hand. After bowing to the guru, delighted, he should tell his dreams to the guru”.

https://www.wisdomlib.org/definition/pratyusha

लेकिन अगर हम इन सब पचड़ों में न पड़ें और गूगल देव से बच्चों के नाम के संदर्भ में प्रत्युषा का अर्थ पूछें तो वहां भी वही लिख कर आता है

https://www.myupchar.com/baby-names/meaning-of-pratyusha

प्रत्युषा नाम के प्रचलन का एक कारण बालिका वधू की आनंदी थीं जिसका किरदार प्रत्युषा बनर्जी ने निभाया था परन्तु अल्पआयु में ही वह नहीं रही।

अगर प्रत्युषा - सांझ लिख कर खोजेंगे तो भास्कर का लेख आएगा और सिर्फ प्रत्युषा का अर्थ गूगल देव से पूछेंगे तो बच्चों के नाम आएंगे और अर्थ भी





मैंने विस्तार से इस लिए लिख दिया की दो चार लोग जो इसे पढ़ें अपना फैसला खुद करें वैसे भी नाम में क्या रखा है ,
 

motaalund

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प्रत्युषा का अर्थ संध्या है यह आपने बताया की हिंदी अखबार में इसका स्त्रोत है, एकदम सही है, यह खबर भास्कर में करीब छह महीने पहले छठ के उत्सव पर निकली और मैंने उसे जस का तस कोट कर रही हूँ

ज्योतिषाचार्य बालाकांत पांडेय कहते हैं छठ को लेकर मान्यता है कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा है। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रातः काल में सूर्य की पहली किरण ‘उषा’ और संध्याकाल में सूर्य की अंतिम किरण ‘प्रत्युषा’ को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है।

https://www.bhaskar.com/local/bihar...vening-and-usha-in-the-morning-130491338.html

लेकिन अगर जांच पड़ताल करें तो पता चलेगा की मूल अवधारणा ही गलत है,

भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। विवाह के बाद संज्ञा ने वैवस्वत और यम नामक दो पुत्रों और यमुना नामक एक पुत्री को जन्म दिया।

संज्ञा बड़े कोमल स्वभाव की थी, जबकि सूर्य देव प्रचंड तेजवान थे। संज्ञा सूर्य देव के तेज़ को बड़े कष्ट से सहन कर पाती थी। उसके लिए वह तेज़ असहनीय था। तब उनके तेज़ से बचने के लिए वह अपनी छाया को उनकी सेवा में छोड़कर स्वयं पिता विश्वकर्मा के पास चली गई। वहाँ रहते हुए अनेक दिन हो गए, तब विश्वकर्मा ने उसे पति के घर लौटने को कहा। वह सूर्य देव के तेज़ से भयभीत थी और उनका सामना नहीं करना चाहती थी। इसलिए उत्तरकुरु नामक स्थान पर घोड़ी का रूप बनाकर तपस्या करने लगी।

इधर सूर्य देव और संज्ञा की संतानें छाया को ही संज्ञा समझते थे। एक दिन छाया ने किसी बात से क्रोधित होकर यम को शाप दे दिया। शाप से भयभीत होकर यम पिता सूर्य की शरण में गए और उन्हें माता द्वारा शाप देने की बात बताई।

‘माता ने अपने पुत्र को शाप दे दिया’- यह सुनकर सूर्य को छाया पर संदेह हो गया। उन्होंने छाया को बुलवाया और उससे संज्ञा के विषय में पूछने लगे। छाया के चुप रहने पर वे उसे शाप देने को तैयार हो गए। तब भयभीत छाया ने सबकुछ सच-सच बता दिया। सूर्य देव ने उसी क्षण समाधि लगाकर देखा कि संज्ञा उत्तरकुरु नामक स्थान पर घोड़ी का रूप धारण कर उनके तेज़ को सौम्य और शुभ करने के उद्देश्य से कठोर तपस्या कर रही है।

तब सूर्यदेव ने अपने श्वसुर विश्वकर्मा के पास जाकर उनसे अपना तेज़ कम करने की प्रार्थना की। विश्वकर्मा ने उनके तेज़ को कम कर दिया। सूर्य के ऋग्वेदमय तेज़ से पृथ्वी, सामवेदमय तेज़ से स्वर्ग और यजुर्वेदमय तेज़ से पाताल की रचना हुई। सूर्यदेव के तेज़ के सोलह भाग थे। विश्वकर्मा ने इनमें से पन्द्रह भाग कम कर दिए और उनसे भगवान शिव का त्रिशूल, विष्णु का चक्र, वसुआक नामक भयंकर शंकु, अग्निदेव की शक्ति, कुबेर की पालकी तथा अन्य देवगण के लिए अस्त्र-शस्त्रों की रचना की। तभी से सूर्यदेव अपने तेज़ के सोलहवें भाग से ही चमकते हैं।

तेज़ कम होने के बाद सूर्यदेव घोड़े का रूप बनाकर संज्ञा के पास गए और वहीं उसके साथ संसर्ग किया। इससे उन्हें नासत्य, दस्त्र और रेवंत नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। नासत्य और दस्त्र अश्विनीकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुए। तत्पश्चात् सूर्य ने प्रसन्न होकर संज्ञा से वर माँगने को कहा। संज्ञा ने अपने पुत्र वैवस्वत के लिए मनु पद, यम के लिए शाप मुक्ति और यमुना के लिए नदी के रूप में प्रसिद्ध होना माँगा। भगवान सूर्यदेव ने इच्छित वर प्रदान किए और उसे साथ लेकर अपने लोक में लौट गए.

https://bharatdiscovery.org/india/संज्ञा_(सूर्य_की_पत्नी)



इसलिए कई जगहों पर सूर्य की दो पत्नियों का जिक्र आता है , संज्ञा और छाया। उषा और प्रत्युषा उनकी पत्निया नहीं थीं।


उषा का जिक्र ऋग्वेद की ऋचाओं में है,

उषस् (उषा) एक वैदिक देवी हैं। संस्कृत में, उषस् का मतलब "उदय" है

ऋग्वेद में, वह एक युवा स्त्री है जो स्वर्णिम रथ से आकाशमार्ग पर यात्रा करती है। वे भोर की देवी हैं।वेदों में उषा देवता मात्र ऐसी स्त्री पात्र हैं जिन्हें लक्षित करके अनेक सूक्त रचे गए। उनका गुणगान लगभग 20 सूक्तों में किया गया है।

In RV 6.64.1-2 (trans. Jamison), Ushas is invoked as follows:

Vedic:

1. úd u śriyá uṣáso rócamānā ásthur apā́ṃ nórmáyo rúśantaḥ

kr̥ṇóti víśvā supáthā sugā́ny ábhūd u vásvī dákṣiṇā maghónī

2. bhadrā́ dadr̥kṣa urviyā́ ví bhāsy út te śocír bhānávo dyā́m apaptan

āvír vákṣaḥ kr̥ṇuṣe śumbʰámānóṣo devi rócamānā máhobhiḥ

English translation:

1. The shining Dawns have arisen for splendor, glistening like the waves of the waters.

She makes all pathways, all passages easy to travel. She has appeared— the good priestly gift, the bounteous one. 2. Auspicious, you have become visible; you radiate widely. Your flare, your radiant beams have flown up to heaven.


You reveal your breast as you go in beauty, goddess Dawn, shining with all your might.

In the "family books" of the Rig Veda (e.g. RV 6.64.5), Ushas is the divine daughter—a divó duhitâ —of Dyaus Pita ("Sky Father").

5. Convey (it)—you who as the unsurpassable one with your oxen convey the boon at your pleasure, Dawn,

you who are a goddess, o Daughter of Heaven. Become worthy to be seen with your munificence at the early invocation


( Jamison, Stephanie (2014). The Rigveda - the earliest religious poetry of India. Oxford University Press. p. 863.)

उषा की भगिनी निशा है

लेकिन उषा और निशा दोनों ही सूर्य की पत्नियां नहीं हैं।



उषा के बाद हम प्रत्युषा की खोज गूगल देव की सहायता से कर सकते है

कहीं कहीं अंग्रेजी स्पेलिंग के चक्कर में उसे प्रत्युष भी कहा जाता है लेकिन हिंदी में प्रत्युषा ही कहते हैं

अनेक धार्मिक परम्पराओं में इस शब्द का प्रयोग डान या प्री डान के लिए हुआ है

महायान बौद्ध परम्परा



Pratyūṣa (प्रत्यूष) refers to “dawn”, according to the Vajratuṇḍasamayakalparāja, an ancient Buddhist ritual manual on agriculture from the 5th-century (or earlier), containing various instructions for the Sangha to provide agriculture-related services to laypeople including rain-making, weather control and crop protection.—Accordingly, [while describing an offering manual] “[...] At dawn (pratyūṣa) being alone in privacy, having made the cross-legged gesture, this mantra should be called to mind thirty-two times. [...]”.

Source: De Gruyter: A Buddhist Ritual Manual on Agriculture

शैव परम्परा में भी प्रत्युषा शब्द का प्रयोग सुबह के लिए हुआ है

Pratyūṣa (प्रत्यूष) refers to “daybreak”, according to the Svacchanda-tantra.—Accordingly, [verse 4.1-2, while describing the interpretation of dreams]—“In the bright morning, at daybreak (pratyūṣa), after purification, etc., one by one as [explained in the previous chapter, the Ācārya] should enter the house. The pupil, who has sipped pure water, holds a flower in his hand. After bowing to the guru, delighted, he should tell his dreams to the guru”.

https://www.wisdomlib.org/definition/pratyusha

लेकिन अगर हम इन सब पचड़ों में न पड़ें और गूगल देव से बच्चों के नाम के संदर्भ में प्रत्युषा का अर्थ पूछें तो वहां भी वही लिख कर आता है

https://www.myupchar.com/baby-names/meaning-of-pratyusha

प्रत्युषा नाम के प्रचलन का एक कारण बालिका वधू की आनंदी थीं जिसका किरदार प्रत्युषा बनर्जी ने निभाया था परन्तु अल्पआयु में ही वह नहीं रही।

अगर प्रत्युषा - सांझ लिख कर खोजेंगे तो भास्कर का लेख आएगा और सिर्फ प्रत्युषा का अर्थ गूगल देव से पूछेंगे तो बच्चों के नाम आएंगे और अर्थ भी





मैंने विस्तार से इस लिए लिख दिया की दो चार लोग जो इसे पढ़ें अपना फैसला खुद करें वैसे भी नाम में क्या रखा है ,
Well researched and explained quoting various sources.
I bow to your efforts in clearing doubts about meaning of word.
I also admire your vast and in-depth knowledge on plethora of subjects.
लेकिन चॉपर उड़ते समय शाम हो गया (मेरी समझ में) इसलिए तालमेल नहीं बैठ रहा था...

ये शब्द किसी नाम के संदर्भ में प्रयोग नहीं हुआ था और समय की स्थिति को दर्शा रहा था इसलिए संशय पैदा हुआ....
और उस क्षण को मन अपनी कल्पना में नहीं उतार सका...
इस संदेह को दूर करने के लिए आपको कष्ट देना पड़ा...
आपको कष्ट देने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ...
 
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komaalrani

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बहुत आभार इतनी लम्बी पोस्ट आपने ध्यान से पढ़ी


कन्फ्यूजन भास्कर वाली पोस्ट में छठ के संदर्भ में प्र.त्युषा को जिन स्वामी जी ने सूर्य की पत्नी और सांझ से जोड़ के किया, वहीँ से हुआ जिससे आप को लगा की ये दृश्य शाम का है।

प्रत्युषा का प्रयोग इस पोस्ट के शुरू में भी हुआ है , और पूरा दृश्य रात का है, सुबह होने तक उन लोगों ने सेफ हाउस छोड़ दिया।

मैं इस पोस्ट की शुरुआत से एक बार फिर बात शुरू करती हूँ

"
बाहर तेज हवायें चल रही थी। अंदर खिड़की का परदा सरक गया था, और बंद शीशे से कुछ दूर उछलती कूदती अरब सागर की तरंगे दिख रही थी और उसमें अपना मुँह देखता झांकता चाँद, जो बस सामान समेटकर, अपने घर पहुँचने की जल्दी में था। करन बीच में और उसके एक ओर रीत, गहरी नींद के आगोश में।


गाढ़ी काली स्याही की चादर में लिपटा अरब सागर गहरी नींद में सो रहा था। शांत, थका। बस कभी-कभी छोटी-छोटी कोई लहर चली आती। ऊपर आसमान भी जैसे उसी का प्रतिविम्ब हो रहा था। बादलों ने चादर तान रखी थी और न चाँद, न तारे, सिर्फ काला आसमान। हवा भी एकदम बंद थी।

जैसे कुछ होने की आशंका से चाँद अपना काम निपटा के जल्दी-जल्दी पग भरता, अपने घर की ओर भागा जा रहा था। पर रात अभी बाकी थी। आखिरी पहर था रात का। प्रत्युषा ने अभी अंगड़ाई भी लेनी नहीं शुरू की थी। पश्चिमी तट पर सुबह थोड़ी देर से ही होती थी, और अरब सागर के उस कोने में वैसे भी कोई आबादी नहीं थी, बस सन्नाटा था।

लेकिन तभी एक काली नीली रंग की इंफ्लेटबेल बोट क्षितिज पर उभरी। लहरों के बीच छुपी ढकी। करीब 5 मीटर लम्बी, ढाई मीटर चौड़ी। "


हमला जो अरब सागर से हुआ वो रात में हुआ और रात में ही लड़ाई सारी ख़तम हो गयी।

अब हम इस भाग के अंत की ओर बढ़ें तो,...

वो जल्दी-जल्दी बाहर निकला। रीत तैयार थी। रीत अब नार्मल लग रही थी लेकिन वोएकदम चुप थी। गाड़ी एक दूध बांटने वाली मिल्कवैन थी, जिसे देखकर किसी को शक न हो, लेकिन उसके सारे शीशे ब्लैक टिंटेड ग्लासेज थे और पर्दे पड़े थे। ड्राइवर गाड़ी से नहीं उतरा और करन, रीत लगेज एरिया में बैठ गए, अपने सामान के साथ।

यहाँ मिल्क वैन का इस्तेमाल इसलिए किया गया की सुबह के समय दूध की बॉटल बांटने के लिए मिल्क वैन सामान्य होती।

और अब अंतिम लाइने

20 मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चापर खड़ा था, और उनका सामान उसमें रख दिया गया। तीनों उसमें बैठ गए। और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चुका था। किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।


20 मिनट बाद वह वड़ोदरा में लैंड किये। लेकिन वह सिविलयन एयरपोर्ट पर नहीं थे। वह तीनों वड़ोदरा एयरफोर्स बेस पर उतरे। और बगल में एयर फोर्स का एक प्लेन तैयार खड़ा था।

कहीं सांझ का जिक्र नहीं है लेकिन अगर प्रत्युषा को सांझ समझने से ये संशय होना स्वाभविक था

अब अगर पहले भाग से आखिरी भाग को मिलाएंगे तो ये भी अंदाज रहेगा की हमले का समय शायद पूरा आधे घण्टे या उसके आस पास का रहा होगा क्योंकि जब हमलावर आये तो, ' आखिरी पहर था रात का। प्रत्युषा ने अभी अंगड़ाई भी लेनी नहीं शुरू की थी।"

और जब रीत और करन वहां से निकले तो

"और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चुका था। किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी। '

तो यह समय का आभास दिखाते हैं की इस घटना में कितना समय लगा। मैं प्रयास करती हूँ की कहानी से स्थान और समय दोनों का अगर आभास हो तो पाठक तक सम्प्रेषणीयता बढ़ जाती है।

पर आप ऐसे पाठक विरले होते हैं जो इन सारे निहितार्थों को समझे उनका रस लें मैं और मेरी कहानियां दोनों ही आपके सदैव आभारी रहेंगे।

आगे क्या हुआ रीत का वो मैंने छोड़ दिया था क्योंकि वही फागुन के दिन चार का अंत भी था लेकिन अब कुछ लाइने लिख ही देती हूँ


इतना तो हम सबको याद ही है की रीत-करन पर हजीरा में हुए हमले के बाद आई॰बी॰ ने सारा प्रोग्राम चेंज कर दिया। उन्हें एक हेलीकाप्टर से बड़ौदा ले आया गया और उसके बाद, वहां से एयरफोर्स के स्पेशल प्लेन से, फिर?


बताती हूँ, बताती हूँ।

करन को भी नहीं मालूम था प्लेन कहाँ लैंड करेगा, और शायद पायलट को भी नहीं। क्योंकी दो-तीन बार लास्ट मिनट इंस्ट्रक्शंस चेंज हुए। रीत तो खैर पूरी तरह डेज्ड थी। 8:30- 9:00 बजे के आसपास, प्लेन पंजाब की किसी छोटी सी एयरफील्ड पर उतरा और वहां तुरंत उन लोगों को एक अम्बुलेन्स में पीछे लिटा दिया गया और इंस्ट्रक्शन थे की वो लेटे ही रहेंगे। एम्बुलेंस की सारी खिड़कियों पर काली स्क्रीन और मोटे पर्दे लगे थे। ड्राइवर ने भी रास्ते में उन लोगों से कोई बात नहीं की।

एक घंटे की ड्राइव के बाद ड्राइवर ने गाड़ी खड़ी कर दी, और उतरकर चला गया। कुछ देर बाद करन के फोन पर मेसेज आया की अब वो दोनों बाहर निकल सकते हैं। ये एक फार्म हाउस था जिसके चारों ओर ऊँची ऊँची दीवारें थी। यह वह सेफ हाउस था जो अगले 4 महीने तक उनका घर रहा। दोनों की प्लासिटक सर्जरी की गई, रीत की थोड़ी कम, करन की थोड़ी ज्यादा। रीत ने भूरे कांटैक्ट लेंस पहनने की प्रैक्टिस की।

और उसके साथ ही भाषा, लोकल कल्चर का कोर्स। दोनों को पंजाब में लोकेट किया गया था, और 6 महीनों के अंदर रीत पक्की पंजाबी कुड़ी बन गई। नवरीत देवल, और करन हो गया शुभ करन।

दोनों को चाल ढाल, बात करने का अंदाज सब कुछ बदलना पड़ा। रीत ने 5 किलो वजन भी बढ़ाया। मोहाली के पास के एक कस्बे में, जो उस फार्महाउस से बहुत दूर नहीं था, रीत ने कालेज में एडमिशन लिया।


आई॰बी॰ वालों ने एक पक्की पर्सनैलिटी उनके लिए गढ़ दी थी, डाक्युमेंट्स, बैकग्राउंड, फिजिकल अपीयरेंस, लेकिन मन में उमड़ती घूमड़ती यादों का क्या करें।

अक्सर वह हँसते-हँसते उदास हो जाती थी, कोई लाख पूछे बोल भी नहीं सकती थी, अतीत की दरवाजे खिड़कियां तो छोड़िये, रोशनदान तक खोलना मुश्किल था। अब वह पूरी तरह आई॰बी॰ की हो चुकी थी, और करन आर॰ए॰डब्लू॰ का।

गुड्डी की शादी में रीत नहीं आई। गुड्डी को मालूम भी था कि वो नहीं आ पाएगी। सुहाग के लाल जोड़े में सजी वो गुमसुम बैठी थी, और जब वह मंडप में जाने के लिए उठने ही वाली थी कि किसी ने फोन पकड़ा दिया- “रीत का फोनz”

बहुत देर तक दोनों फोन पकड़े रही। बातें कुछ भी नहीं हुईं। लेकिन दोनों रोयीं बहुत।


सुखिया सब संसार है, खाए और सोये।
दुखिया दास कबीर है, जागे और रोये।



कभी कभी वो दुःख भी बांचना पड़ता है।
 
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