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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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रीत


सीधे वह उसकी पीठ पर चढ़ी थी, बायां हाथ सीधे काल का फन्दा बना उस हमलावर के गले में लिपटा था और दायें हाथ की कुहनी ने, उस हाथ पर पूरी ताकत से चोट की, जिसमें उसने एच&के (हेकलर एंड कोच) यूनिवर्सल मशीन पिस्टल पकड़ रखी थी और उसकी उंगलियां ट्रिगर पर थी। कुहनी के साथ पैर की पूरी ताकत भी उसी हाथ की कुहनी पर पड़ी, और अचानक हुए इस हमले का लाभ ये हुआ की गन उसके हाथ से छूट गई और फर्श पर गिर पड़ी।

ये नेवल सर्विस ग्रुप का फेवरिट हथियार था और बहुत ही घातक, खास तौर पे शार्ट रेंज पे, और उसको और घातक बनाता था, 0॰45 एसीपी कार्ट्रिज। ये गोलियां अपनी बड़ी साइज के कारण, पेनीट्रेशन और एक्सपैंशन दोनों ही में तेज और बड़ा असर करती हैं। इससे रक्तश्राव तेज होता है और मारक क्षमता बहुत अधिक है। यह सेमी-आटोमेटिक, आटोमेटिक दोनों ही तरह से सेट हो सकती है लेकिन अभी सेमी-आटोमेटिक मोड में थी।

इससे बचने का सिर्फ एक तरीका था की ये दुश्मन के हाथ में न रहे और अब इसका मालिकाना बदल चुका था। रेंग करके बिस्तर के नीचे से निकले करन ने बन्दूक पर अब कब्ज़ा कर लिया था और अब ट्रिगर पर उसकी उंगलियां थी।

ऐसा बहुत कम होता है की रीत का पहला हमला निर्णायक न हो, लेकिन इस बार ऐसा न हुआ। हाँ एक बहुत बड़ा फायदा ये मिला की गन हमलावर के हाथ से निकलकर करन के हाथ में पहुँच गई थी और मुकाबला अब फायर आर्म्स से हटकर अनआर्म्ड काम्बैट में बदल चुका था। और इसलिए भी था की अनआर्म्ड काम्बैट में अमेरिकन नेवी सील के साथ जब वह ट्रेनिंग में था तो हर मुकाबले में पहले या बहुत रेयरली दूसरे नंबर पे रहता था और फिर कराते और जूडो की ट्रेनिंग चाइनीज स्पेशल आपरेशन फोर्सेज की मैरीन ब्रिगेड के साथ उसने की थी और जवाइंट एक्सरसाइज में भी पार्टिसिपेट किया था। इसलिए वह रीत से मुकाबले में 20 तो नहीं लेकिन 17 भी नहीं था, हाँ 18, 19 जरूर रहा होगा। दूसरे उसके पास अभी भी उसकी पिस्टल और काम्बैट नाइफ थी जिसकी तेज धार का एक हमला काफी होता था।


भले ही हमलावर के दाहिने हाथ ने एच&के पिस्टल से पकड़ छोड़ दी हो लेकिन वो हाथ ही उस हमलावरका हथियार बन गया था और उसकी कुहनी ने एक पिस्टन की तरह सीधे उसकी पीठ पर लदी रीत के पेट में वार किया। कोई दूसरी होती तो उसकी स्प्लीन बर्स्ट हो गई होती और पेट के अंदर के कई अंगो से इंटरनल हैमरेज चालू हो जाता।

लेकिन रीत की रक्षा तो खुद काशी के कोतवाल कर रहे थे और उसने कवच धारण कर रखा था महाविद्या के मन्त्र और आशीर्वाद का। अपने आप उसकी सांस गहरी हो गई, पेट अंदर खिंच गया और उसकी देह गेंद की तरह मुड़ गई, और हमले का असर बस नाम मात्र के लिए हुआ।

कोई दूसरा होता तो शायद ये ‘नाम मात्र’ बेहोश करने के लिए काफी था।


लेकिन रीत रीत थी।

हाँ इसका असर ये जरूर हुआ की हमलावर रीत की पकड़ से पल भरकर लिए छूट गया। और हमलावर को मुड़कर अब रीत को सामना करने का मौका मिल गया था, लेकिन ये मौका इतना भी नहीं था की वो कमांडो नाइफ निकाल सकता। उसने मुक्के का सहारा लिया की पल भर अगर वो रीत को डिसओरिएंट कर पाता तो फिर एक बार चाकू उसके हाथ में आने की बस देरी थी।

हमलावर ने मुड़ते ही दुहरा हमला किया, पैर की किक सीधे रीत के घुटने पे नी-कैप को टारगेट करके, और एक जोरदार मुक्का रीत के चेहरे पे। कोई दूसरा होता तो शायद बत्तीसी बाहर होती और घुटना, नी-रिप्लेसमेंट के लिए तैयार हो जाता। और ऊपर से उसके जूतों में लोहे के कैप लगे थे।

और रीत के लिए भी मुश्किल था बचना, लेकिन रक्षा की जिम्मेदारी तो उसने कोतवाल के जिम्मे कर रखी थी, और बस अपने आप उसका शरीर उछला और हवा में ही मुड़ा, नतीजा ये हुआ की मुक्का बजाय चेहरे पे लगने के उसके कंधे पे लगा और पैर का वार खाली गया।

हमलावर को भी ये अंदाज नहीं था, और उससे बढ़कर ये अंदाज भी उसे नहीं था की उसका मुक्के वाला हाथ रीत की गिरफ्त में होगा। रीत की गिरफ्त की ताकत भी उसे तभी पता चली। लोहे की सँडसी मात थी। उस कोमल कलाई में, पल भर में कलाई तोड़ देने की ताकत थी।

और रीत ने यही किया, एक बार एंटी क्लॉक वाइज और दुबारा क्लॉक वाइज। एक बार और एंटी क्लॉक वाइज करने पर कलाई के सारे लिगामेंट टूट जाते और वो हाथ पूरी तरह बेकार हो जाता। रीत उसके पैरों का हमला देख चुकी थी और उसकी निगाह काउंटर अटैक के लिए उसके पैरों पर थी, पर रीत को यह नहीं अंदाज था की, वो सव्यसाची था दोनों हाथों से बराबर का वार करता था। और हमलावर कराते में ब्लैक बेल्ट था। जो हाथ दस ईंटों को एक साथ तोड़ सकता था।

रीत की कलाई पर बिजली की तेजी से पड़ा। बल्की पड़ने वाला था, और रीत ने उसके पहले ही झटके से हमलावर की कलाई तोड़ दी। पूरी तरह दूटने से उस हमलावर की दायीं कलाई तो बच गई लेकिन दो-चार लिगामेंट तो टूट ही गए और अब वह करीब 70% बेकार हो चुकी थी।

दूसरे रीत का हाथ हटने से कराते का हमला पूरी तरह बेकार हो गया लेकिन उसकी उंगलियों का अगला भाग जो रीत के हाथ को छूता निकल गया, लगा जैसे बिजली का करेंट लगा हो और किसी दूसरे के हाथ को बेकार करने के लिए काफी था।

लेकिन ये रीत थी। और हमले से बचते समय भी अगला हमला करने के लिए तैयार थी। उसकी निगाह अभी भी उस दुष्ट के पैरों पर टिकी थी और वो जानती थी अगला हमला यहीं से आएगा।

और हुआ भी यही। बायां पैर हवा में लहराया, टारगेट रीत की रिब्स।

और रीत हल्के से मुश्कुराई। अब हमलावर पहले से तयशुदा स्क्रिप्ट पर आ गया था और उसको पढ़ना ज्यादा आसान था। रीत न सिर्फ साइड में सरकी, बल्की अबकी उसके दोनों हाथों ने बाएं पैर को जूते के ठीक ऊपर जोर से पकड़ लिया और वही क्लॉक वाइज, एंटी क्लॉक वाइज और फिर क्लॉक वाइज।

एक पैर फँसा हो तो दूसरे पैर से हमला करना मुश्किल था। ऊपर से दायें हाथ में लिगामेंट टूटने से होने वाले दर्द ने उसे थोड़ा डिसओरिएंट भी कर दिया था। इसलिए बायां हाथ भी अब थोड़ा स्लो हो चुका था। बायां पैर 5 सेकंड में रीत ने बेकार कर दिया, सारी कार्टिलेज टूट चुकी थी और उसी के साथ रीत ने जोर से हेड-बट किया, उसके एक्सपोज्ड पेट की ओर।


“बचो-बचो…” करन की घबड़ाई आवाज तेजी से आई।
 
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रीत -करन

बचो-बचो…” करन की घबड़ाई आवाज तेजी से आई।

करन के हाथ में दुश्मन की गन थी और वो उसकी ओर ट्रेन किये हुए था लेकिन मुश्किल ये थी की रीत और हमलावर एक दूसरे से इस तरह गूंथे हुए थे की फायर करना इम्पॉसिबल था।

डेडलाक, रीत, हमलावर, करन।

रीत की निगाह जब हमलावर के बाएं पैर पर लगी थी और पूरी ताकत से वह उसे तोड़ रही थी, हमलावर का दायां हाथ वो बेकार कर चुकी थी। आलमोस्ट उसी समय दर्द से जूझते, हमलावर ने समझ लिया था की सामने वाला उससे 20 है और अनआर्म्ड काम्बैट में उसके पास ज्यादा वक्त नहीं है तो उसने दो काम किया।

अपने हेड फोन से अपने साथी को एस॰ओ॰एस॰ किया और किसी तरह झुक कर अपनी डुंगरी से कमांडो नाइफ निकाली और पूरी ताकत से, रीत हेड-बट के लिए झुकी थी और उसकी गर्दन पूरी तरह एक्सपोज्ड थी। ये उसके लिए सबसे बढ़िया मौका था, पूरी ताकत से सीधे कारटायड आर्टरी पे, सीधे गर्दन

करन की सांस रुकी हुई थी,

सेकंड का दसवां हिस्सा रहा होगा, और रीत पर लग रहा था कोई दैवी शक्ति सवार हो गई। बिना उसके पैरों को छोड़े उसने पैतरा बदला और जैसे हवा में नाच गई हो। उसके लम्बे बाल खुल गए और पूरा चेहरा जैसे काली अमावस की रात में ढँक गया। जब उसके हाथों ने पैर छोड़ा तो वो पूरी तरह टूट चुका था। और ऊपर से ही रीत ने चाकू वाले हाथ को दबोच लिया।

जोर की चिग्घाड़ निकली रीत के गले से और अब उसके हाथों में जो शक्ति थी, वो उसकी नहीं थी। अबकी बायां हाथ जिसमें चाकू था उसके कब्जे में था और वो उसे मरोड़ रही थी। वह सब कुछ भूल चुकी थी और उसकी पूरी देह की ताकत उस हाथ को तोड़ने में लगी थी।

वैसे भी उस हमलावर का दायां हाथ लगभग बेकार हो चुका था, बायां पैर टूट गया था, इसलिए काउंटर अटैक के चांसेज कम ही थे और अब वह उसे खत्म ही करना चाहती थी। जैसे ही उस हमलावर ने चाकू छोड़ा वह रीत के हाथ में पहुँच गया।



लेकिन उसके साथ ही साथ हमलावर के साथी ने खुली खिड़की से इंट्री मारी, रीत की पीठ उसकी ओर थी। करन ने उसे अपने गन के निशाने पे लेने की कोशिश की, लेकिन उसके पहले ही वो रीत के ठीक पीछे था, और उसका एक हाथ रीत की गर्दन में फँसा था, और दूसरे हाथ में पिस्तौल सीधे रीत की गर्दन पर। और उस पिस्टल का दबाव रीत के साथ करन भी महसूस कर रहा था।

पहला हमलावर तो गिर गया था। उसका एक हाथ और पैर एकदम बेकार हो चुके थे और बाकी दोनों भी सिर्फ 20% काम कर रहे थे। 10-12 हड्डियां, लिगामेंट, कार्टिलेज टूट चुके थे, और वह अब किसी काम का नहीं रह गया था।

लेकिन दूसरे हमलावर का पिस्टल का दबाव अब रीत के गर्दन के पिछले भाग पर बढ़ता जा रहा था। रीत के हाथ से चाकू छूटकर बिस्तर के नीचे गिर गया था।

लेकिन करन के हाथ में जो गन थी उसका निशाना भी सीधे दूसरे हमलावर के माथे के बीच था, और 200 फिट से करन का निशाना नहीं चूकता था यहाँ तो यह मुश्किल से 6-7 फीट की दूरी पर रहा होगा। और ये बात हमलावर भी जानता था, एक साथ एक बार में वह रीत और करन को एलिएमनेट नहीं कर सकता था, जैसे उसकी पिस्टल चलेगी वो जानता था करन की गोली भी चल निकलेगी। यह सिर्फ रीत थी जो उसके और उसकी मौत के बीच में थी।



स्टेलमेट


 
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स्टेलमेट



करन को भी मालूम था की इस हमलावर को मौत का डर नहीं और वह रीत पर किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था। एक पल का गलत फैसला और… मौत।

रीत भी जानती थी कि उसके पीछे खड़ा मौत का सौदागर, प्रोफेशनल है और उसका कोई भी वार कुहनी का, घुटने का सिर्फ एक रिएक्शन करायेगा। वो ट्रिगर दबा देगा और पिस्टल एकदम उसके गले पर सरवाइकल वर्टिब्रा के ठीक ऊपर उसने सटा रखी थी। हल्की सी चोट भी दिमाग से जोड़ने वाली सारी धमनियों, शिराओं और नर्व्स को तोड़ देता साथ ही ट्रेकिया को भी। डेथ इन्सटैंटेनियस होती।

हमलावर अपने पिस्टल से करन को इशारा कर रहा था था की वो अपनी गन जमीन पर फेंक दे वरना रीत पर गोली चल जायेगी। उस काली रात की चादर में लिपटे कमरे में तीनों सिर्फ सिलयुहेट से लग रहे थे। उस हमलावर को कमरे में घुसे एक मिनट भी मुश्किल से हुआ होगा, लेकिन लग रहा था की युग बीत गया। बिना कुछ बोले, वो एक दूसरे को चैलेन्ज कर रहे थे, और दिमाग पढ़ रहे थे।

करन ने देखा की हमलावर की भौंहे तनती जा रही हैं, उसका चेहरा और कड़ा हो गया है। इसका मतलब उसने फैसला ले लिया है। और वह फैसला एक ही हो सकता है, उसने रीत को शूट करना तय कर लिया है। करन ने अपनी आँखों में थोड़ा डर पैदा किया और हमलावर को इशारा किया की वो अपनी गन नीचे कर रहा है। करन जानता था की जैसे ही उसकी गन जमीन छुएगी, हमलावर की पिस्टल पहले रीत का शिकार करेगी फिर उसका।

मुश्कुराकर हमलावर ने उसकी बात मान ली और रीत की गर्दन पर से हाथ और पिस्टल का दबाव कुछ कम किया। लेकिन वह नहीं देख पाया की रीत और करन ने क्या बात की, सिर्फ हल्के से मुश्कुराकर। और फिर बिजली की तेजी से कई घटनाएं हुईं।

रीत ने आँख बंद करके स्मरण किया और एकदम से अपनी साँस रोक ली। उसकी देह एकदम लकड़ी सी हो गई और सरककर वह दो इंच नीचे हो गई। अपनी गरदन भी उसने झुका ली, और उसी समय करन के गन से गोली निकली। रीत के बालों को रगड़ती सीधे हमलावर के दोनों आँखों के बीच।

हमलावर ने जिस हाथ से रीत को पकड़ रखा था वो थोड़ी और ढीली हुई और रीत सरक कर नीचे। उसे मालूम था की गोली की आवाज सुनते ही रिएक्शन के तौर पर वह ट्रिगर दबा देगा, और यही हुआ। हमलावर की दो गोलियां रीत से आधे इंच बगल से गुजरीं।



लेकिन करन का निशाना, पहली गोली ने जो छेद किया था दूसरी गोली भी उसी में लगी। और रीत ने गिरते हुए उस हमलावर के डूंगरी से कमांडो ने चाकू निकाल लिया था।
 
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***** ***** जीत गई रीत

हमलावर के हाथ में अभी भी पिस्तौल थी और अब वो मरते हुए भी करन पर गोली चलाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन रीत अब अपने रौद्र रूप में आ गई थी।

करन की गोली ने जो हमलावर के माथे में छेद किया वह सारा खून, और कुछ मांस मज्जा निकलकर रीत के बालों में भर गया था। दुःशाशन के वध के बाद जैसे पांचाली ने अपने खुलेकरश उसके रक्त से धोये थे, बस उसी तरह, रक्त टप-टप-टप टपक रहा था।

और जब उसने गिरे हुए हमलावर को करन की ओर निशाना लगाते देखा तो बस, चिघ्घाड़ के साथ वो हवा में उछली, उसके हाथ का चाकू सीधे हमलावर के गर्दन में पैबस्त था सामने से और फिर गिरते हुए उस हमलावर के सीने पर वह सवार हो गई।

फव्वारे की तरह खून निकलकर रीत के चेहरे पर पड़ रहा था। लेकिन चाकू पर उसकी पकड़ कमजोर नहीं हुई और दोनों हाथों से नीचे तक, पसलियों के बीच, उसके मुँह से अभी भी भीषण आवाजें निकल रही थी जिसे सुनकर ही कोई डर के बेहोश हो जाये। चाकू अभी भी अंदर धंसा था। लग रहा था वो सिर्फ अपने हाथों से उसके वक्ष से, उसका सीना चीरकर उसका कलेजा निकालकर बाहर कर देगी।

रीत की आँखों के सामने अब वो हमलावर नहीं था, वो संकट-मोचन का दृश्य देख रही थी जब बाम्ब विस्फोट हुआ, एक शादीशुदा जोड़ा चीथड़ों में बदल गया। वो एक के बाद एक शव उठा रही थी अपने माता-पिता के शव को ढूँढ़ने के लिए।

रेलवे स्टेशन पर वह पुलिस के साथ गई, करन के माता-पिता के शव को पहचानने, और एक और शव मिला पूरी तरह विक्षत, करन का कोट पहने।

मणिकर्णिका पर एक के बाद एक। कोई नहीं बचा था, न उसके घर में न करन के घर में। दोनों के माता-पिता को अंतिम विदा उसी ने दी। और फिर शीतला घाट पर, 3 साल की बच्ची खेलती हँसती, बाम्ब के धमाके में उड़ गई।

वह बार-बार चाकू का वार कर रही थी, चीख रही थी। पेट उसने फाड़ दिया था, अंदर की आँते बाहर निकल आई थी। और उस हमलावर की मृत देह पर बैठी, उसके खून में सनी, बिना रुके वह चीख रही थी और उसके अंग-अंग को चीर रही थी, फाड़ रही थी। उसकी देह पर खड़ी होकर हमलावर के जिस हाथ में अभी भी पिस्टल थी, उसे उसने पकड़ा और जोर से मोड़ दिया। हाथ टूट गया।

श्मशान में विचरण करने वाली जैसे शाकिनी डाकिनी हों उस तरह की आवाज, सब लोग शांत देख रहे थे, करन , चुप, भयाक्रांत। और उस आधे मरे हमलावर ने जैसे मौत देख ली हो। मौत से भी कुछ ज्यादा भयंकर। काली की तरह, रक्त-स्नात, शत्रु-हंता, मृत्यु रूपी साक्षात काल।



करन , वही रीत के मन को स्थिर कर सकता था।

इस जंग में दोनों ने ही खोया था, अपना सब कुछ। और दोनों ने ही पाया था, एक दूसरे को और जिंदगी का एक मकसद। इन हमलावरों से मुक्ति दिलाने का। करन जाकर रीत के सामने खड़ा हुआ।

रीत कुछ देर तक उसे पथरायी निगाहों से देखती रही जैसे पहचान न रही हो। फिर अचानक उसने एक जोर की आवाज निकाली, जिसमें सदियों का दर्द, चीख, डर सब मिला था।

करन ने आगे बढ़कर रीत के खून से सने हाथ पकड़ लिए और दूसरे हमलावर के पास ले गया और उसके कान में बोला- “तुम कुछ मत करना, बस सिर्फ इसके सामने बैठ जाओ…”

रीत को पास में देखकर जोर से वो चीखा।

और करन ने सवाल करना शुरू किया- “तुम्हें किसने भेजा, सेंटर कहाँ है?”

उसे बहुत कम मालूम था, लेकिन जो भी था, तोते की तरह उसने उगल दिया।

काम की बात तब पता चली जब करन ने पूछा- “तुम्हें यहाँ से क्या मेसेज देना था?”

तो उसने नीचे जेब की ओर इशारा किया, जिसमें एक कम्युनिकेशन डिवाइस थी, दो मेसेज प्री-फेड थे,

01॰ लाल बटन- टारगेट एलीमिनेटड, मिशन अचीव्ड।

02॰ हरा बटन- मिशन अबार्टेड।

मिशन सक्सेसफुल होने पर उन्हें लाल बटन दबाना था, और ये मेसेज सीधे कमांड सेंटर पर जाता। इस एक मेसज को देने के बाद वो डिवाइस बेकार हो जाती। यानी इसका इश्तेमाल करके कमांड सेंटर का पता नहीं लग सकता था।

तब तक मीनल ने देखा उसने गले में ताबीज सा कुछ पहन रखा है और उसका दायां हाथ, जो अभी भी थोड़ा बहुत काम का था उधर बढ़ रहा था। मीनल ने झटके से वो ताबीज तोड़ दी और उसे अपने हाथ में ले लिया।

वह एक सायनाइड कैप्स्यूल था। रीत ने पहचाना और फुसफुसा कर बोली।


रीत धीरे-धीरे नार्मल हो रही थी। रीत ने अधमरे हमलावर पर हाथ रखा, और पूछा- “वापस लौटने का क्या प्रोग्राम था?”

और उसने सारी कहानी बयान कर दी- “टार्गट को खत्म करने के बाद, हमें मेसेज देना था। और मेसेज भेजने के 15 मिनट के अंदर हमें बीच पर पहुँच जाना था जहाँ वो बोट हमें मिलती। 15 मिनट की विंडो उसकी थी, मेसेज देने के 10 मिनट से 25 मिनट तक। और वह हमें गहरे समुद्र तक ले जाती जहाँ सबमैरीन हमें पिक-अप करती…”

सबका ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था। अचानक वह अपना दायां हाथ अपने मुँह के पास ले गया। उसमें एक गंडा ऐसा बंधा था और जब तक लोग कुछ समझ पाते, रोक पाते, वह उसके मुँह में था।

सबसे पहले रीत के मुँह से निकला सायनाइड। और अगले पल ही उसके नीले पड़ते शरीर ने उसकी ताईद भी कर दी। अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।
 
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***** ***** रैन भई चहुँ देश

रीत और करन ने मिलकर दोनों हमलावर जिस खिड़की से आये थे, उसी खिड़की से उन्हें वापस बाहर फेंक दिया। करन, रीत खिड़की के पास खड़े थे और करन कुछ सोच रहा था, फिर उसने वो कम्युनिकेशन डिवाइस उठाई और कुछ सोचकर मिशन अकम्पलीश होने का मेसेज दिया। तुरंत जवाब आया कांग्रेट्स।

पर अगले पल रीत ने चिल्लाकर करन को वार्न किया।

उस डिवाइस के पीछे कोई लाइट जल रही थी, और करन ने तुरंत उसे खिड़की के बाहर फेंक दिया। वह उन दोनों हमलावरों के शरीर के बीच में गिरा, और अगले ही पल जोर का धमाका हुआ। 10 फिट दूरी का सब कुछ उस धमाके में उड़ गया। इसका मतलब उस डिवाइस में ही दोनों के खत्म करने का पूरा प्लान बना हुआ था।



रीत औरकरन ने मिलकर कमरे को पूरी तरह ठीक किया और उसके बाद करन पकड़कर रीत को बाथरूम में,....फिर और करन बाहर कंट्रोल रूम में गया। और रिवाइंड करने पर उसे हमलावरों की सारी हरकतें पता चल गईं, जैमर लगाना, आने के रास्ते में माइन्स लगाना, सारी बातें। पहले करन ने जैमर ठीक किया। और आई॰बी॰ के चीफ से बात की और उन्हें सब कुछ बताया।

उन्होंने उसे दो मिनट इंतेजार करने को कहा और खुद आर॰ए॰डब्लू॰ के डायरेक्टर को और एडिशनल सेक्रेटरी होम (इंटरनल सिक्योरिटी) को जगा के बताया। आर॰ए॰डब्लू॰ को वैसे भी इन्वॉल्व होना था क्योंकी करन आर॰ए॰डब्लू॰ का आपरेटिव था।

और जब आई॰बी॰डायरेकटर का फोन आया तो उनके इंस्ट्रक्शन बहुत साफ थे-

“बेहोश कंट्रोल रूम सिक्योरिटी आपरेटिव्स को बेहोश ही रहने दें और उन्हें हाथ न लगाएं। कंट्रोल रूम के फूटेज से हमलावरों की फूटेज के वीडियो को अपने पास कापी करके, कंट्रोल रूम के सिक्योरिटी कैमरे से उसे डिलीट कर दें। लोकल सिक्योरिटी को न इन्वाल्व करें, सिर्फ आई॰बी॰ के आपरेटिव को जो पुलिस पोस्ट पर इंतेजार कर रहा है उससे कांन्टैक्ट करें और उसके साथ मिलकर सब कुछ ‘नार्मल ऐसा’ कर दें। उनका एक्सट्रैकशन प्री-पोन किया जा रहा है और 20-25 मिनट में उन लोगों को वहां से निकलना होगा…”

करन ने पहले कंट्रोल रूम के फूटेज टेम्पर किये, हमलावर के सारे फूटेज अपने मोबाईल में और एक पेन ड्राइव में लेकर उसे आई॰बी॰ और आर॰ए॰डब्लू॰ को भी भेज दिया। उसके बाद आई॰बी॰ के आदमी को फोन किया। उसके पास भी मेसेज जस्ट पहुँचा था। जब तक वो आये, उसके पहले करन ने पेरीमीटर का चक्कर लगाया और फेन्स को कटा पाया। साथ में एक लूप लगा था। ये साफ था की हमलावर यहीं से घुसे थे। करन ने फेन्स ठीक की। और सबूत बताने वाला वो लूप अपने पास रख लिया।

बाहर रास्ते में आकर उसने माइंस ढूँढ़ी, जो उसके लिए इसलिए मुश्किल नहीं थी की उसने सी॰सी॰टीवी की फूटेज में लोकेशन साफ-साफ देखी थी। बहुत सम्हालकर उसने दोनों माइंस डिफ्यूज की और रास्ते के बाकी ‘कांटे’ हटाये।

कुछ ही देर में आई॰बी॰ का आपरेटिव वहां पहुँच गया और दोनों पिछवाड़े गए जहाँ करन ने खिड़की से दोनों हमलवारों की बाडी बाहर फेंकी थी।

उसके बगल में कम्युनिकेशन डिवाइस जो एक्सप्लोड हो चुकी थी, वो भी पड़ी थी। और उसके विस्फोट से दोनों बाडीज अब इतनी क्षत-विक्षत हो चुकी थी की उन्हें पहचानना मुश्किल था।

करन और उस आपरेटिव ने मिलकर बारी-बारी से दोनों बाडीज को समुद्र तक पहुँचाया, और फिर किनारे पड़े पत्थर उनमें बाँधकर उन्हें समुद्र तल में डुबो दिया। उस समय टाइड का समय था, थोड़ी ही देर में लहरें उन्हें समुद्र तट से दूर पहुँचा देती। यही वो समय था जब उस हमलावर के मुताबिक बोट को उनका इन्तजार करना था, लेकिन आस-पास कोई बोट नजर नहीं आई।
करन ने बदले हुए प्रोग्राम के बारे में रीत को बता दिया था। आई॰बी॰ का आपरेटिव बाहर कंट्रोल रूम में कहीं से बात कर रहा था।



जब करन अंदर गया तो रीत बाथरूम में थी, कमरा एकदम साफ कर दिया गया था, और सामान पैक था। करन दूसरे बाथरूम में दाखिल हो गया। उसकी देह पर भी हमलावरों के खून के छींटे थे। नहाकर वह तैयार हो रहा था कीरीत ने दरवाजा खटखटाया, गाड़ी आ गई है। वो जल्दी-जल्दी बाहर निकला। रीत तैयार थी। रीत अब नार्मल लग रही थी । गाड़ी एक दूध बांटने वाली मिल्कवैन थी, जिसे देखकर किसी को शक न हो, लेकिन उसके सारे शीशे ब्लैक टिंटेड ग्लासेज थे और पर्दे पड़े थे। ड्राइवर गाड़ी से नहीं उतरा और करन, रीत लगेज एरिया में बैठ गए, अपने सामान के साथ।

20 मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चापर खड़ा था, और उनका सामान उसमें रख दिया गया। उसमें बैठ गए। और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चुका था। किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।



20 मिनट बाद वह वड़ोदरा में लैंड किये। लेकिन वह सिविलयन एयरपोर्ट पर नहीं थे। वह वड़ोदरा एयरफोर्स बेस पर उतरे। और बगल में एयर फोर्स का एक प्लेन तैयार खड़ा था।

रीत की आँखों में थोड़ी सी पुरानी चपलता लौट आई थी। और अब वो दोनों एयर फोर्स के जहाज में बैठ गए और उनके बैठते ही जहाज उड़ चला। करन को मालूम था, कि वो दोनों बनारस नहीं जा रहे हैं। वह बनारस से बहुत दूर जा रहे थे। और सिर्फ बनारस से ही नहीं अपनी पुरानी जिंदगी से दूर जा रहे थे शायद हमेशा के लिए।



आई॰बी॰ ने उनके ऊपर हुए इस हमले के बाद ये फैसला किया था की उनकी सिक्योरटी के लिए और नेशनल सिक्योरटी के लिए ये जरूरी है की उन्हें एक प्रोटेक्शन प्रोग्राम में रखा जाय, जिसमें उनकी पूरी आइडेंटिटी नई होगी। थोड़ा बहुत प्लास्टिक सर्जरी, नया माहौल, नया बैकग्राउंड।



करन ने जो मेसेज दिया था उससे दुश्मन के कमांड सेंटर को ये सूचना मिल गई होगी की दोनों एलिमिनेट हो चुके हैं। लेकिन उनके जानने वालों पर वह तब भी निगाह रखेंगे और अगर इन्होंने उनसे कांटैक्ट रखा तो इस कवर स्टोरी को मेंटेन करना मुश्किल होगा।



करन ने सिर्फ आनंद को मेसेज किया था, और ये कहा था की गुड्डी, दूबे भाभी और फेलू-दा को सिर्फ ये बताएं की वो सेफ हैं। यह करन को भी नहीं मालूम था कि वो और रीत कहाँ जा रहे हैं, उनकी नई आई॰डी॰ क्या होगी?



रीत एक कोने में प्लेन की खिड़की से सिर टिकाये गुमसुम बैठी थी।



बनारस में दूबे भाभी ने आँचल के कोने से, आँसू का एक टुकड़ा पोंछा और अशिषा- “बिटिया जहाँ रहो खुश रहो। करन है न तोहरे साथ…” और फिर आसमान की ओर भरी निगाह से देखकर बुदबुदाया- “वकील साहब, आप जहाँ हों, बिटिया को आशीष दो…”
 
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komaalrani

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Iske pahle ki gahtanayen page 55 par shuru se
 

Rajizexy

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सिक्योरिटी अरेंजमेंट



सड़क की ओर एक कमांड पोस्ट बना दी गई थी और आधी सड़क को रिपेअर के नाम पे बंद कर दिया गया था, जिसे कोई बड़ी वेहिकल जैसे ट्रक आदि एक्सप्लोसिव के साथ न आ सके। वहां से सेफ हाउस के बीच कम्युनिकेशन लाइन भी बना दी गई। सिक्योरिटी अरेंजमेंट। उस रेस्टहाउस के चारों ओर फेंसिंग पहले से थी, उसे और स्ट्रांग कर दिया गया था और सरविलेन्स कैमरे भी फिट कर दिए गए थे। जब करन और रीत आये तो उसे एलेक्ट्रिफाई भी कर दिया गया।

घर के अंदर ही एक कंट्रोल रूम भी बना दिया गया था, एक बाहरी कमरे में जहाँ सारे कैमरे की फीड्स आती थी। सरविलेन्स कैमरे 110° डिग्री तक रोटेट कर सकते थे, और कम रोशनी में भी काम कर सकते थे। इसके साथ ही वो और इलेक्ट्रिफाइड फेन्स, एक आक्सिलरी सोर्स आफ पावर से भी जुड़े थे, जिससे अगर मुख्य पावर सोर्स किसी तरह डिस्कनेक्ट हो जाय तो भी वो आधे घंटे तक काम कर सकते थे।

कैमरे एक प्रोटेक्टिव डिवाइस से कवर थे, जिससे तेज हवा, बर्ड हिट आदि से वो डैमेज न हों। वो सारे कैमरे आई॰पी॰ बेस्ड थे यानी उनकी फीड इंटरनेट के जरिये कंट्रोल रूम तक पहुँचती थी। कंट्रोल रूम में 14 विंडो कंट्रोल मानिटर पर लगी थी, जिससे सारे कैमरे अलग-अलग देखे जा सकते थे। इसके साथ-साथ वहां से कैमरे का रोटेशन, जूम, एंगल इत्यादि कंट्रोल किया जाता था। वहां पर 3 दिन की रिकार्डिंग हार्ड ड्राइव पे रखी जा सकती थी और 4 घंटे की रिकार्डिंग सर्वर में भी रहती थी, जिसे रिवाइंड करके किसी भी एरिया को देखा जा सकता था।

इस कंट्रोल रूम से बाहरी सड़क के पास जहाँ ‘सड़क बन रही है’ के नाम पर आधी सड़क बंद करके सेफ हाउस की एंट्री कंटोल की जाती थी, वहां से भी था। एक बुलडोजर पर वहां एक स्पेशल फोर्स का आदमी था, जो ‘फुल्ली इक्विप्ड’ था और पास में रखी मोटर साइकिल से 7 मिनट में किसी इमरजंसी में ‘सेफ हाउस’ में पहुँच सकता था।

वो आदमी वहां से 4 किलोमीटर दूर एक पुलिस पोस्ट को किसी इमरजंसी में मेसज दे सकता था। वहाँ आई॰बी॰ का एक आफिसर बैठा था, जो स्टेट गवर्नमेंट से लियाजन कर रहा था। एक स्पेशल टास्क फोर्स आन काल थी और 14 मिनट में उस पुलिस पोस्ट तक पहुँच सकती थी। उसी तरह एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड की यूनिट भी अलर्ट पर थी। लेकिन न तो टास्क फोर्स को न एम्बुलेंस या फायर ब्रिगेड को इससे अधिक कुछ मालूम था की एक रिहर्सल होने वाली है।

कंट्रोल रूम में दो लोग थे और रोड सिक्योर किये आदमी को जोड़ के कुल तीन लोग सेफ हाउस के प्रोटेक्शन में थे जो नार्म्स के अनुसार सही थे। लेकिन उन तीनों को भी रीत और करन के बारे में कुछ नहीं मालूम था, हाँ मीनल से वो जरूर मिले थे। ये तीनों पूरी तरह आर्म्ड थे।

कंट्रोल रूम में बैठे दो लोगों में एक लगातार कैमरे की मानिटरिंग करता और दूसरा हर आधे घंटे में निकलकर एक्सटर्नल पेरीमीटर का 15 मिनट में धीमे-धीमे चक्कर काटता। दोनों अपने-अपने काम बदल के करते। हर दो घंटे की डूयटी के बाद आधे घंटे के लिए रिलेक्स भी करना होता था जिससे अलर्टनेस पीक पर रहे।

करन ने आने के बाद सिर्फ एक चेंज किया की कंट्रोल रूम में आ रही फीड के साथ-साथ कंट्रोल रूम में भी एक कैमरा लगाकर ये सारी फीड उन लोगों के कमरे में लगे 40 इंच के दीवार पर लगे टीवी पे कनेक्ट करवा ली, जिससे अब उस टीवी पे, टीवी के प्रोग्राम, रंगबिरंगी फिल्मों के साथ-साथ वो रिमोट से चैनेल बदलकर कंट्रोल रूम में लगे कैमरे से कंट्रोल रूम और वहां आ रही फीड को जब चाहें तब देख सकें।

दूसरी बात उसने ये की, की आई॰बी॰ आपरेटिव के साथ एक हाट लाइन कनेक्टिविटी इस्टैब्लिश की, जहाँ बस बटन दबाते ही उसे मालूम हो जाए की खतरा है। करन को मालूम था की एक तो दुश्मन अभी इस हालात में नहीं है की कुछ करे, और अगर कुछ हुआ तो वो उस ताकत के साथ होगा की अल्टीमेटली उसको और रीत को ही उनसे निबटना होगा।
Didi aise lagta hai jese koi jasusi novel padh rahi hun Vese bahut samay pahle me,aise no El padha karti thi, tum ne ajj purane din yaad kra diye.Abhi tak kuchh khas samjh nahin aaya , agge dekhti hu, kuchh palle pad ta hai yah nahi.
 

Rajizexy

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कंट्रोल रूम न्यूट्रलाइज्ड

एक आदमी अंदर से निकलकर जैसे ही मुड़ा, वो दोनों तैयार थे। पीछे से अँधेरे से निकलकर एक ने उसे पीछे से दबोचा और सीधे हाथ मुँह पे जिससे कोई चीख न निकल पाये। साथ में क्लोरोफार्म में डूबा पैक नाक पे। उन्हें इंस्ट्रक्शन साफ थे की आखिरी टारगेट तक फायर आर्म का इश्तेमाल नहीं करना है, और सिक्योरिटी फोर्सेज को सिर्फ न्यूट्रलाइज करना है, बिना कोई आवाज किये।

उनका सबसे बड़ा वेपन सरप्राइज था। क्लोरोफार्म के साथ एक चाप उसकी गर्दन पे भी पड़ा और वो बेहोश होकर नीचे, लेकिन रोकते हुए, गिरते-गिरते आवाज हल्की सी हो ही गई।

और अंदर कंट्रोल रूम से आवाज आई- “क्या हुआ?”

दरवाजा दुबारा खुला, लेकिन अबकी पहला हमलावर तैयार था और दरवाजा खुलते ही दो स्मोक बाम्ब उसने कंट्रोल रूम के अंदर फेंके और जब तक कंट्रोल रूम का आपरेटिव कुछ समझता, टेजर गन के दो डाट उसके अंदर पैबस्त थे और वो आलमोस्ट बेहोश था।

क्लोरोफार्म का पैच उसके मुँह पर भी लगा, और उसके बाद उसे गैग करके प्लास्टिकफ से उसके हाथ पीछे करके बाँध दिए और पैर भी। यही नहीं एक काले कपड़े की पट्टी उसके आँख पे भी कसकर बाँध दी गई। और यही काम बाहर गिरे आपरेटिव के साथ भी हुआ। वैसे क्लोरोफार्म का असर कम से कम 45 मिनट रहता और उसके बाद भी पूरी तरह गैग और बंधे वो किसी काम के नहीं थे। एक पल के लिए उनकी नजर कंट्रोल मानीटर पर पड़ी लेकिन अचानक एक पैनल देखकर दोनों चौंक गए। उन दोनों की पूरी तस्वीर वहां आ रही थी। दोनों ने चारों ओर निगाह डाली और ढूँढ़ते हुए आखीरकार, वो कैमरा मिल गया जो कंट्रोल रूम पे निगाह रख रहा था।

पहले तो उन्होंने उस कैमरे को उतारा, और पिछले 5 मिनट की रिकार्डिंग डिलीट की, जिसमें उनके कंट्रोल रूम पे कब्जा करने की दास्तान कैद थी।

“ये कैमरा इन दोनों के लिए तो रहा नहीं होगा, कोई और मानीटर कर रहा होगा…” एक बोला और फिर उसने कैमरे की रिकार्डिग थोड़ी पीछे करके लूप बनाकर सेट कर दी लेकिन कैमरे की क्लॉक भी टिंकर कर दी। अब जो भी उस कैमरे की फीड देखता, पांच मिनट से पहले की तीन मिनट की फीड देखता जो बार-बार लूप होती लेकिन क्लॉक चलती रहती। अभी भी काफी काम बाकी था।

जिसने रीत के कमरे के बाहर माइक लगाया था, उसने घर चेक करने की जिम्मेदारी सम्हाली और दूसरे ने बाहर का एरिया सिक्योर करने की, और तुरंत बाहर निकल लिया। उन लोगों को बोट से उतरे 12 मिनट हो चुके थे और 5-6 मिनट में उन्हें आपरेशन शुरू कर देना था। 15 मिनट आपरेशन के और 5-10 मिनट वापस तट पर पहुँचने के, कुल 45 मिनट समय उन्होंने तय किया था। और आपरेशन सक्सेसफुल होते ही उन्हें प्रीफेड कनफर्मेंशन मेसेज करना था।

बाहर का इलाका सिक्योर करने का पहला स्टेप था, जैमर लगाना और टेलीफोन केबल काटना। अब वहां से बाहर कम्युनिकेशन इम्पासिबल था। जो आदमी एक्सटर्नल पेरीमीटर पर एक नजर डाल रहा था, फेन्स सिर्फ एक जगह से खुली थी जहाँ से सड़क का रास्ता था।

कोई आएगा तो इधर से ही आएगा। उन लोगों ने जो फोन सुना था, उसके हिसाब से आधे घंटे पे उसका फोन आना था और कोई जवाब न मिलने पर 40-45 मिनट पर ही वो आता, लेकिन उसके पहले भी अगर वो या और कोई आया तो उसका ‘इंतजाम’ तो करना था। सड़क पर करीब 500 मीटर दूर उसने कुछ डिटोनेटर लगा दिए, और अब कोई भी वेहिकल वहां से गुजरती या पैदल भी तो दबाव पैड्स से वो अलार्म ट्रिप होते जो साउंड अलार्म ट्रिगर करते।

फिर घर के एकदम पास करीब 200 मीटर दूर उसने दो एंटी पर्सोनल माइंस लगा दी और उन्हें मार्क भी कर दिया। कोई भी वेहिकल अगर उसके ऊपर से गुजरती तो दबाव से वो माइंस ब्लास्ट होती। ये एम-16 माइंस थी और इनका कैजुअल्टी रेट 20 से 25 मीटर तक था। दोनों माइन उसने अच्छी तरह कैमोफ्लाज कर दिया। रात के अँधेरे में कुछ भी दिखना मुश्किल था, और ऊपर से कोई इन्हें सस्पेक्ट नहीं करता।

अब अगर अंदर से टारगेट कोई हेल्प मांगते भी तो जैमर की वजह से मुश्किल था और अगर कोई हेल्प आई भी तो ये दो माइंस उनके लिए काफी थे। तब तक उसके पास उसके साथी का मेसेज आया इनर एरिया सिक्योर। और वह वापस घर की ओर बढ़ लिया। उसके साथी ने, जिसने रीत का कमरा आडेंटीफाई किया था, घर के अंदर के सारे कमरे, किचेन बाथरूम के साथ चेक कर लिए थे।

सारे कमरे खाली थे। कंट्रोल रूम के दोनों आपरेटिव के अलावा कोई नहीं था। फिर भी उसने सारे कमरों के दरवाजे बाहर से बंद करके उसमें प्लास्टिकफ लगाकर लाक कर दिया। अगर कोई रिस्क्यू टीम आई तो हो सकता है कि वो इन कमरों की खिड़कियों से घुसने की कोशिश करे, तो अगर वो कमरे में घुस भी गए तो उन्हें दरवाजे को तोड़ना पड़ेगा।

रीत का कमरा भी उसने बाहर से लाक कर दिया था। अब रीत करन अपने बिल में बंद थे और सिर्फ उन्हें उस कमरे में घुस के एलिमिनेट करना था। न वो कहीं बाहर भाग सकते थे, न कहीं बाहर से हेल्प आ सकती थी। उसने एक बार फिर ध्यान से फीड सुना, रीत के कमरे से कोई आवाज नहीं आ रही थी। इसका मतलब वो सभी निश्चिन्त सो रहे थे।

दोनों एक साथ बाहर रीत के कमरे के सामने इकट्ठे हुए। खिड़की से उनकी नाइट विजन ग्लासेज से साफ दिख रहा था, बिस्तर पर सब सो रहे थे, रजाई से ढंके, हाँ रजाई थोड़ी सी सरक गई थी एक ओर, जो अक्सर अगर एक पलंग पे कई लोग सोएं तो हो जाता है।

जो आदमी एक्सटर्नल एरिया चेक करके आया था उसने अपने को कंट्रोल रूम के बाहर पोजीशन किया, जहाँ से वो बाहर का रास्ता देख सकता था, कंट्रोल रूम में कोई फोन आये तो सुन सकता था और वहां से रीत की खिड़की के बाहर खड़े अपने साथी के विजुअल कांटैक्ट में भी था। दोनों के बीच की दूरी मुश्किल से 80-85 मीटर थी और कोई बात होने पे वो 15-20 सेकंड पे पहुँच जाता।



और दोनों इयर-बड और फेस-माइक के जरिये कांटैक्ट में थे ही। पहला आदमी खिड़की से घुस के टारगेट को एलिमिनेट या न्यूट्रलाइज करता और चार मिनट के बाद दूसरा भी अंदर पहुँच जाता। फिर दोनों को बोट पर बैठे अपने कंट्रोल को सक्सेस मेसेज देना था जहाँ से सेटेलाइट फोन से वो सबमैरीन को और कमांड सेंटर को मेसेज भेजता।



पहले हमलावर ने एक पल के लिए खिड़की से अंदर कमरे को देखा और चारों ओर की पोजीशन चेक की। पहली बार से कोई फर्क नहीं था। या तो वो खिड़की शीशा तोड़कर दाखिल होता लेकिन वो रीत और करन के बारे में अच्छी तरह ब्रीफ किया गया था और उसकी सक्सेस 90% सरप्राइज पर ही डिपेंड करती थी।



उसने अपनी डुंगरी की जेब से मल्टीपर्पज 5॰11 डबल रिस्पान्डर नाइफ निकाला, और खिड़की के शीशे पर एक निशान खींचा और दुबारा जब परपेंडीकुलर दबाव लगाकर उसने काटना शुरू किया तो पूरा का पूरा ग्लास नीचे से कट गया लेकिन वो अलर्ट था और शीशे के टूटकर गिरने के पहले उसने एक शीट पर सारा ग्लास कलेक्ट कर लिया जिससे कोई आवाज न हो। अब पूरी खिड़की बिना शीशे के थी और कोई भी जैग्गड एजेज नहीं थी।



कमरे में अभी भी कोई हरकत नहीं थी। उसके बाद कमरे में घुसना बच्चे का खेल था। लेकिन उसे नहीं मालूम था आगे क्या होना है?




( आगे की कहानी पृष्ठ ५७ पर )
Bahut achha laga Komal didi ka festival mode se jasusi mode mein aana.
Perfect interesting & jasusi update
👌👌👌💯💯💯✅✅✅
 

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***** ***** रैन भई चहुँ देश

रीत और करन ने मिलकर दोनों हमलावर जिस खिड़की से आये थे, उसी खिड़की से उन्हें वापस बाहर फेंक दिया। करन, रीत खिड़की के पास खड़े थे और करन कुछ सोच रहा था, फिर उसने वो कम्युनिकेशन डिवाइस उठाई और कुछ सोचकर मिशन अकम्पलीश होने का मेसेज दिया। तुरंत जवाब आया कांग्रेट्स।

पर अगले पल रीत ने चिल्लाकर करन को वार्न किया।

उस डिवाइस के पीछे कोई लाइट जल रही थी, और करन ने तुरंत उसे खिड़की के बाहर फेंक दिया। वह उन दोनों हमलावरों के शरीर के बीच में गिरा, और अगले ही पल जोर का धमाका हुआ। 10 फिट दूरी का सब कुछ उस धमाके में उड़ गया। इसका मतलब उस डिवाइस में ही दोनों के खत्म करने का पूरा प्लान बना हुआ था।



रीत औरकरन ने मिलकर कमरे को पूरी तरह ठीक किया और उसके बाद करन पकड़कर रीत को बाथरूम में,....फिर और करन बाहर कंट्रोल रूम में गया। और रिवाइंड करने पर उसे हमलावरों की सारी हरकतें पता चल गईं, जैमर लगाना, आने के रास्ते में माइन्स लगाना, सारी बातें। पहले करन ने जैमर ठीक किया। और आई॰बी॰ के चीफ से बात की और उन्हें सब कुछ बताया।

उन्होंने उसे दो मिनट इंतेजार करने को कहा और खुद आर॰ए॰डब्लू॰ के डायरेक्टर को और एडिशनल सेक्रेटरी होम (इंटरनल सिक्योरिटी) को जगा के बताया। आर॰ए॰डब्लू॰ को वैसे भी इन्वॉल्व होना था क्योंकी करन आर॰ए॰डब्लू॰ का आपरेटिव था।

और जब आई॰बी॰डायरेकटर का फोन आया तो उनके इंस्ट्रक्शन बहुत साफ थे-

“बेहोश कंट्रोल रूम सिक्योरिटी आपरेटिव्स को बेहोश ही रहने दें और उन्हें हाथ न लगाएं। कंट्रोल रूम के फूटेज से हमलावरों की फूटेज के वीडियो को अपने पास कापी करके, कंट्रोल रूम के सिक्योरिटी कैमरे से उसे डिलीट कर दें। लोकल सिक्योरिटी को न इन्वाल्व करें, सिर्फ आई॰बी॰ के आपरेटिव को जो पुलिस पोस्ट पर इंतेजार कर रहा है उससे कांन्टैक्ट करें और उसके साथ मिलकर सब कुछ ‘नार्मल ऐसा’ कर दें। उनका एक्सट्रैकशन प्री-पोन किया जा रहा है और 20-25 मिनट में उन लोगों को वहां से निकलना होगा…”

करन ने पहले कंट्रोल रूम के फूटेज टेम्पर किये, हमलावर के सारे फूटेज अपने मोबाईल में और एक पेन ड्राइव में लेकर उसे आई॰बी॰ और आर॰ए॰डब्लू॰ को भी भेज दिया। उसके बाद आई॰बी॰ के आदमी को फोन किया। उसके पास भी मेसेज जस्ट पहुँचा था। जब तक वो आये, उसके पहले करन ने पेरीमीटर का चक्कर लगाया और फेन्स को कटा पाया। साथ में एक लूप लगा था। ये साफ था की हमलावर यहीं से घुसे थे। करन ने फेन्स ठीक की। और सबूत बताने वाला वो लूप अपने पास रख लिया।

बाहर रास्ते में आकर उसने माइंस ढूँढ़ी, जो उसके लिए इसलिए मुश्किल नहीं थी की उसने सी॰सी॰टीवी की फूटेज में लोकेशन साफ-साफ देखी थी। बहुत सम्हालकर उसने दोनों माइंस डिफ्यूज की और रास्ते के बाकी ‘कांटे’ हटाये।

कुछ ही देर में आई॰बी॰ का आपरेटिव वहां पहुँच गया और दोनों पिछवाड़े गए जहाँ करन ने खिड़की से दोनों हमलवारों की बाडी बाहर फेंकी थी।

उसके बगल में कम्युनिकेशन डिवाइस जो एक्सप्लोड हो चुकी थी, वो भी पड़ी थी। और उसके विस्फोट से दोनों बाडीज अब इतनी क्षत-विक्षत हो चुकी थी की उन्हें पहचानना मुश्किल था।

करन और उस आपरेटिव ने मिलकर बारी-बारी से दोनों बाडीज को समुद्र तक पहुँचाया, और फिर किनारे पड़े पत्थर उनमें बाँधकर उन्हें समुद्र तल में डुबो दिया। उस समय टाइड का समय था, थोड़ी ही देर में लहरें उन्हें समुद्र तट से दूर पहुँचा देती। यही वो समय था जब उस हमलावर के मुताबिक बोट को उनका इन्तजार करना था, लेकिन आस-पास कोई बोट नजर नहीं आई।
करन ने बदले हुए प्रोग्राम के बारे में रीत को बता दिया था। आई॰बी॰ का आपरेटिव बाहर कंट्रोल रूम में कहीं से बात कर रहा था।



जब करन अंदर गया तो रीत बाथरूम में थी, कमरा एकदम साफ कर दिया गया था, और सामान पैक था। करन दूसरे बाथरूम में दाखिल हो गया। उसकी देह पर भी हमलावरों के खून के छींटे थे। नहाकर वह तैयार हो रहा था कीरीत ने दरवाजा खटखटाया, गाड़ी आ गई है। वो जल्दी-जल्दी बाहर निकला। रीत तैयार थी। रीत अब नार्मल लग रही थी । गाड़ी एक दूध बांटने वाली मिल्कवैन थी, जिसे देखकर किसी को शक न हो, लेकिन उसके सारे शीशे ब्लैक टिंटेड ग्लासेज थे और पर्दे पड़े थे। ड्राइवर गाड़ी से नहीं उतरा और करन, रीत लगेज एरिया में बैठ गए, अपने सामान के साथ।

20 मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चापर खड़ा था, और उनका सामान उसमें रख दिया गया। उसमें बैठ गए। और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चुका था। किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।



20 मिनट बाद वह वड़ोदरा में लैंड किये। लेकिन वह सिविलयन एयरपोर्ट पर नहीं थे। वह वड़ोदरा एयरफोर्स बेस पर उतरे। और बगल में एयर फोर्स का एक प्लेन तैयार खड़ा था।

रीत की आँखों में थोड़ी सी पुरानी चपलता लौट आई थी। और अब वो दोनों एयर फोर्स के जहाज में बैठ गए और उनके बैठते ही जहाज उड़ चला। करन को मालूम था, कि वो दोनों बनारस नहीं जा रहे हैं। वह बनारस से बहुत दूर जा रहे थे। और सिर्फ बनारस से ही नहीं अपनी पुरानी जिंदगी से दूर जा रहे थे शायद हमेशा के लिए।



आई॰बी॰ ने उनके ऊपर हुए इस हमले के बाद ये फैसला किया था की उनकी सिक्योरटी के लिए और नेशनल सिक्योरटी के लिए ये जरूरी है की उन्हें एक प्रोटेक्शन प्रोग्राम में रखा जाय, जिसमें उनकी पूरी आइडेंटिटी नई होगी। थोड़ा बहुत प्लास्टिक सर्जरी, नया माहौल, नया बैकग्राउंड।



करन ने जो मेसेज दिया था उससे दुश्मन के कमांड सेंटर को ये सूचना मिल गई होगी की दोनों एलिमिनेट हो चुके हैं। लेकिन उनके जानने वालों पर वह तब भी निगाह रखेंगे और अगर इन्होंने उनसे कांटैक्ट रखा तो इस कवर स्टोरी को मेंटेन करना मुश्किल होगा।



करन ने सिर्फ आनंद को मेसेज किया था, और ये कहा था की गुड्डी, दूबे भाभी और फेलू-दा को सिर्फ ये बताएं की वो सेफ हैं। यह करन को भी नहीं मालूम था कि वो और रीत कहाँ जा रहे हैं, उनकी नई आई॰डी॰ क्या होगी?



रीत एक कोने में प्लेन की खिड़की से सिर टिकाये गुमसुम बैठी थी।



बनारस में दूबे भाभी ने आँचल के कोने से, आँसू का एक टुकड़ा पोंछा और अशिषा- “बिटिया जहाँ रहो खुश रहो। करन है न तोहरे साथ…” और फिर आसमान की ओर भरी निगाह से देखकर बुदबुदाया- “वकील साहब, आप जहाँ हों, बिटिया को आशीष दो…”
Very nice jasusi story,
purane din yaad karva diye didi tum ne ,
jab me jasusi novel padh ti thi kabhi kabhi.
Bilkul steek likha hai Komal didi tum ne.
U r perfect in all fields Komal mam,Raji salutes u.
U Rock Komal 👇didi


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motaalund

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रीत करन और हमला अरब सागर से



बाहर तेज हवायें चल रही थी। अंदर खिड़की का परदा सरक गया था, और बंद शीशे से कुछ दूर उछलती कूदती अरब सागर की तरंगे दिख रही थी और उसमें अपना मुँह देखता झांकता चाँद, जो बस सामान समेटकर, अपने घर पहुँचने की जल्दी में था। करन और उसके एक ओर रीत गहरी नींद के आगोश में।

गाढ़ी काली स्याही की चादर में लिपटा अरब सागर गहरी नींद में सो रहा था। शांत, थका। बस कभी-कभी छोटी-छोटी कोई लहर चली आती। ऊपर आसमान भी जैसे उसी का प्रतिविम्ब हो रहा था। बादलों ने चादर तान रखी थी और न चाँद, न तारे, सिर्फ काला आसमान। हवा भी एकदम बंद थी।

जैसे कुछ होने की आशंका से चाँद अपना काम निपटा के जल्दी-जल्दी पग भरता, अपने घर की ओर भागा जा रहा था। पर रात अभी बाकी थी। आखिरी पहर था रात का। प्रत्युषा ने अभी अंगड़ाई भी लेनी नहीं शुरू की थी। और वैसे भी पश्चिमी तट पर सुबह थोड़ी देर से ही होती थी। और अरब सागर के उस कोने में वैसे भी कोई आबादी नहीं थी, बस सन्नाटा था।


लेकिन तभी एक काली नीली रंग की इंफ्लेटबेल बोट क्षितिज पर उभरी। लहरों के बीच छुपी ढकी। करीब 5 मीटर लम्बी, ढाई मीटर चौड़ी।

जिसे मिलेट्री आपरेशन के बारे में थोड़ा भी ज्ञान होता वो पहचान लेता की ये सी॰आर॰आर॰सी॰ (काम्पैक्ट रबर रेडिंग क्राफ्ट) है, या जिसे अक्सर जोडियक के नाम से भी जानते हैं। यह उछलती कूदती लहरों पर भी तैर लेती है और अगर कहीं चार फिट तक ही पानी हो वहां भी उसे समस्या नहीं आती। कैमोफ्लाज रंग के चलते रात के अँधेरे में पास से भी उसका पता करना लगभग असंभव था।


तट पर आने के पहले वो कुछ देर ठिठकी, ठहरी और जब उसे लग गया की इस काली रात में उसे किसी ने नहीं देखा तो, दो आदमी उसमें से निकलकर हल्के पानी में कुछ देर तैरकर फिर चल के तट पर आ गये। काली डुंगरी के साथ उनके चेहरे बालाक्लवा से ढंके थे और उनपर भी कैमोफ्लाज पेंट पुता हुआ था। आँखों पर बहुत हल्की नाइट विजन गागल्स बी॰एन॰वी॰डी॰ (बायनोक्यूलर नाइट विजन डिवाइस) लगे हुए थे जिसका तकनीकी नाम एल॰3 एन॰पी॰वी॰एस॰31 है।

वह दोनों स्पेशल सर्विस ग्रुप (नेवी) के चुने हुए लोगों में से थे। 12 घंटे में 55 किलोमीटर मार्च, सारे सामान के साथ आधे घंटे में 8 किलोमीटर दौड़ना, अंडरवाटर डाइविंग के साथ-साथ हाई अल्टीट्यूड हाई ओपनिंग और हाई अल्टीट्यूड लो ओपनिंग पैराशूट ट्रेनिंग उन्होंने डिस्टिंक्शन के साथ पूरी की थी।

लेकिन उससे महत्वपूर्ण बात ये थी की उन्होंने अमेरिकन नेवी सील्स के साथ ट्रेनिंग की थी और उन गिने चुने लोगों में थे जिन्हें 24 हफ्ते की बी॰यू॰डी॰ ट्रेनिंग (बेसिक अंडरवाटर डिमालिशन ट्रेनिंग) के साथ-साथ सील क्वालिफिकेशन ट्रेनिंग (एस॰क्यू॰टी॰) और सील ट्रूप ट्रेनिंग (एस॰टी॰टी॰) भी की।


नेवी सील के साथ कई बार स्पेशल बोट सर्विस (एस॰बी॰एस॰) जो ब्रिटिश नेवी की स्पेशल यूनिट है, उन्होंने जवाइंट एक्सरसाइज में भाग लिया था। अभी कुछ दिनों पहले तक वह कराची में पी॰एन॰एस॰इकबाल के पार्ट थे, लेकिन उसके बाद कराची में ही बेस्ड के स्पेशल अंडरकवर आपरेशन के पार्ट हो गए थे जिसके बारे में आई॰ एस॰ आई॰ के भी कुछ लोगों को ही पता था।

वह इन्फ्लेटेबल बोट एक मिडगेट सबमैरीन के जरिये आई थी और सी-कोस्ट के कुछ दूर पहले कुछ देर के लिए सरफेस हुई थी जहाँ पर उसने इन्फ्लेटेबल बोट उतारी थी। टारगेट सी-कोस्ट से 450 मीटर दूर था। घुप्प अँधेरे में भी वो साफ दिख रहा था। सी-कोस्ट से ही वो रेंग करके आगे बढ़ रहे थे, हालंकि उनके नाइट विजन से साफ दिख रहा था की आस-पास कोई नहीं है। शोल्डर, चूतड़ एक लेवल पर थे और वो सिर्फ ऐंकल को पुश करते-करते बढ़ रहे थे। करीब 200 मीटर रेंग करके वो रुक गए। टारगेट अब 250 मीटर के आसपास था। सारी खिड़कियां बंद थी और पर्दों से ढंकी। सिर्फ एक खिड़की का पर्दा कुछ हटा था।

उनका अंदाज था की एक्सटर्नल सिक्योरटी पैरामीटर 250 मीटर पर सेट किया गया होगा, इसलिए उसके 10-15 मीटर पहले ही वो रुक गए।

सेफ हाउस। हाथी को कहाँ छुपा सकते हैं? हाथियों के बीच। ये एक बड़ा पुराना सवाल जवाब है। लेकिन अगर उस हाथी के साथ आप दो-चार एक्स्ट्रा महावत रखें, उसका हौदा बुलेट प्रूफ बना दें। तो क्या वो हाथी बाकी हाथियों में छिप सकेगा?
आस पास वातावरण...
जिसका एक खाका खींच दिया है...
लगता आपने आखों के सामने पूरा दृश्य उतर दिया...
साथ में उनके एक्शन...
का आगाज....
बहुत बढ़िया...
 
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