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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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*Index *
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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आप कह बिलकुल सही रहे हैं l आपको लेखन का बहुत अनुभव है l सच कहूँ तो इस फोरम में बहुत से लेखक ऐसे हैं जिनको लेखन में अनुभव बहुत है l मैं अपडेट्स की इंतजार करते करते अपनी वक़्त गुजारने के लिए लिखना शुरू किया l जब इस कहानी के प्लॉट सोचा था तब सिर्फ दो ही चरित्र थे l विलेन एक ऊचाई पर खड़ा है और हीरो को उसके आदमी नीचे गिरा कर जुल्म कर रहे हैं l बस इतना ही l फिर मैंने उन दोनों को चित्रण करते करते दुसरे चरित्रों को उनके इर्द गिर्द ज़माने लगा l जैसा कि आप जानते हैं कि यह मेरा प्रथम प्रयास है l
हाँ एक लेखक को इतनी आजादी होनी ही चाहिए l पर चूंकि लेखन में मैं खुद को पहली बार आजमा रहा हूँ, इसलिए कुछ पाठकों के मत का सम्मान देने की कोशिश करता हूँ l मुझे इससे पहले लेखन का कोई भी अनुभव नहीं रहा l एक पाठक ने मुझ से अनुरोध किया था कि वर्तमान एवं अतीत में तालमेल बिठा कर कहानी लिखनी चाहिए थी l हाँ उन्होंने सच ही कहा था l पर मेरी असुविधा यह थी कि मुझे कहानी की अंत पता है पर कहानी नहीं l अब जो भी लिखा है उस अंत तक पहुंचने के लिए यह मेरी यात्रा है l
जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि इस कहानी के लिए मेरे पास सिर्फ दो ही चरित्र थे l एक विलेन की और एक हीरो की, और दृश्य था वही जो अपने पहले अपडेट में लिखा है I पर उस दो चरित्रों को अंतिम पड़ाव तक पहुंचाने के लिए मुझे और भी चरित्रों को इनके इर्द गिर्द ज़माने पड़े l जब यह कहानी पूरा हो जाएगा इसे और भी रिफाइनींग करना पड़ेगा और मैं कोशिश करूंगा वर्तमान और अतीत में बीच तालमेल बिठा कर कहानी की पुनः रचना करने के लिए l मुझे बहुत खुशी होती है जब आप जैसे लेखक और समीक्षक मेरे उत्साह को बढ़ाते रहते हैं l मैं आपका सदेव आभारी रहूँगा I क्यूंकि आप मानो या ना मानो मेरे कई मार्गदर्शक में एक आप भी हो
भाई साहब - मैंने तो कुछ किया ही नहीं! नाहक ही आप मेरी बढ़ाई कर रहे हैं।
आप इतना बढ़िया लिखते हैं कि हम पाठक लोग आपसे जुड़े हुए हैं - बस! और क्या!
 

Kala Nag

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भाई साहब - मैंने तो कुछ किया ही नहीं! नाहक ही आप मेरी बढ़ाई कर रहे हैं।
आप इतना बढ़िया लिखते हैं कि हम पाठक लोग आपसे जुड़े हुए हैं - बस! और क्या!
फिर भी आपकी लेखन में समय का दर्पण होता है l यही सबसे खासियत है आपकी l मैं पहले भी उल्लेख कर चुका हूँ काम वासना पर लिखना भी एक कला ही है l किसी की Desire होता है और किसी की passion l पर यहाँ ऐसे भी लेखक हैं यह दोनों भावनाएँ मिसींग रहती है l उन लेखकों के लेखन में Sadism ज्यादा झलकती है, उग्रता झलकती है l काम वासना ही सही पर आपके लेखन में प्रेम और समर्पण दिखता है l मुझे ऐसे लेखन बहुत पसंद है l इसलिए आपकी लेखन की बात ही और है l आज कल जिस तरह के लेख लिखते हैं इस फोरम में उनकी स्पीड को मैच नहीं कर पा रहा हूँ l शायद इसे जेनेरेशन गैप कहते हैं l
फिर भी मैच करने की कोशिश कर रहा हूँ l देखते हैं कहाँ तक सफल हो पाते हैं l
फिर से धन्यबाद और आभार
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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Kala Nag Bhai, aaj almost ek mahine baad forum par aaya hoon, aapki story kaafi aage badh gai hain, lekin ek baat jo maine note ki, aapne kahi par bhi story ko bhatkane nahi diya, flashback bhi utni hi achchi tarah se likha gaya hain, ab shuru hogi story present me jiska mere sath sath sabhi pathko ko intezar he....

Aur aapki lekhni ke to kya hi kehne............ gazab likh rahe ho app
 

Kala Nag

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Kala Nag Bhai, aaj almost ek mahine baad forum par aaya hoon, aapki story kaafi aage badh gai hain, lekin ek baat jo maine note ki, aapne kahi par bhi story ko bhatkane nahi diya, flashback bhi utni hi achchi tarah se likha gaya hain, ab shuru hogi story present me jiska mere sath sath sabhi pathko ko intezar he....

Aur aapki lekhni ke to kya hi kehne............ gazab likh rahe ho app
हाँ भाई आपकी कमी बहुत खल रही थी l बहुत दिनों बाद आपका प्रतिक्रिया सामने आया है l धन्यबाद एवं आभार आपका I अब कहानी वर्तमान में आ गया है l विश्वा छूटने वाला है l बहुत जल्द उसे क्षेत्रपालों का सामना करना पड़ेगा l
 

Rajesh

Well-Known Member
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👉छटा अपडेट
---------------
नंदिनी घर पहुंच कर सीधे अपनी भाभी शुभ्रा के पास जाती है l शुभ्रा देखती है कि आज नंदिनी का चेहरा थोड़ा उतरा हुआ है l
शुभ्रा - क्या बात है ननद जी, आज आपका चेहरा उतरा क्यूँ है....
नंदिनी - आज... वीर भैया कॉलेज आए थे...
शुभ्रा - ओह तो यह बात है.... ह्म्म्म्म मतलब आज तेरे दोस्त तुझसे दूर भाग गए होंगे....
नंदिनी - (अपनी भाभी के गोद में अपना सर रख कर) हाँ.... भाभी(थोड़ा उखड़े हुए) बड़ी मुस्किल से मैंने ना चार दोस्त बनाए थे....
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तुम्हारे राजकुमार भाई के जाने से सब बिगड़ गया ह्म्म्म्म...
नंदिनी अपना सिर हिला कर हाँ कहती है....
शुभ्रा - (शरारत करते हुए) तो अब क्या होगा मेरी ननद जी का... जानेंगे ब्रेक के बाद...
नंदिनी - भा.... भी... उहन् हूं...
शुभ्रा -(हा हा हा) अब तू ही बता अब हम क्या कर सकते हैं....
नंदिनी - भाभी.... भाई साहब की इमेज क्या इतना खराब है...
शुभ्रा - (हंसती है, और कहती है) यह इमेज क्या होती है.... इसे चरित्र कहते हैं...
नंदिनी - उं... हुँ... हूँ अब मैं क्या करूं भाभी...
शुभ्रा - अगर मेरी माने तो, तु अपने दोस्तों को सब सच बता दे.... उन्हें अगर तेरी फिलिंगस का कदर होगी... तो वे... अपनी दोस्ती जरूर निभाएंगे.... बरकरार रखेंगे....
नंदिनी -(चुप रहती है)
शुभ्रा - ऐ... क्या हुआ... बहुत दुख हो रहा है...
नंदिनी - नहीं भाभी थोड़ा बुरा लग रहा है... पर दुख नहीं हो रहा है.... क्यूंकि ऐसा तो बचपन से ही मेरे साथ होता आ रहा है... फिर अब क्या नया हो गया....
शुभ्रा नंदिनी के बालों को प्यार से सहला देती है l नंदिनी उसके गोद से अपना चेहरा उठाती है और शुभ्रा को देख कर पूछती है l
नंदिनी - भाभी आप बुरा ना मानों... तो... एक बात पूछूं l
शुभ्रा - ह्म्म्म्म पुछ..
नंदिनी - आप और विक्रम भैया में कुछ...
शुभ्रा - (शुभ्रा झट से खड़ी हो जाती है) रूप कुछ बातेँ बहुत दर्द देते हैं....
नंदिनी - सॉरी भाभी...
शुभ्रा - देख तूने पूछा है तो तुझे बताऊंगी जरूर.... लेकिन फिर कभी.... आज नहीं...
और इस घर में तेरे सिवा मेरा है ही कौन....
नंदिनी उसके पास जाती है और उसके गले लग जाती है l

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होटल BLUE Inn..
कमरा नंबर 504 में हल्का अंधेरा है और अंधेरे में रॉकी और उसके चार दोस्त सब महफ़िल ज़माये हुए हैं, सारे मॉकटेल की मस्ती में महफ़िल जमाए हुए हैं, सिवाय रॉकी के, म्यूजिक भी बज रहा है और सब धुन के साथ थिरक रहे हैं l कमरे के बीचों-बीच एक व्हाइट बोर्ड रखा हुआ है l सब अपना अपना ड्रिंक खतम करते हैं तो रॉकी जाकर लाइट्स ऑन करता है l जैसे ही कमरे में उजाला होता है तो सबका थिरकना बंद हो जाता है l सब रॉकी को देखते हैं तो रॉकी सबको चीयर करते हुए उनके बीच से जाते हुए म्यूजिक भी बंद कर देता है l

रॉकी - तो भाई लोग... अपना जिगर मजबुत कर लो और अपने जिगरी यार के लिए एक मिशन है जिसको पूरा करना है.....
सब चुप रहते हैं l सब को चुप देख कर रॉकी कहता है - अरे पहले अपना अपना पिछवाड़ा तो सोफा पर रख लो यारों...
सब बैठ जाते हैं, सबके बैठते ही रॉकी एक मार्कर पेन लेकर व्हाइट बोर्ड तक पहुंचता है, और बोर्ड में एक सर्कल बनाता है l
रॉकी - मित्रों यह है नंदिनी.... तो इससे पहले कि हम यह मिशन आरंभ करें.... यह मेरा दोस्त, मेरा यार, मेरा दिलदार मेरा जिगर मेरे फेफड़ा राजु कुछ तथ्यों पर रौशनी डालेगा....
राजू - हाँ तो मित्रों मैं इससे पहले इस पागल के पागलपन में साथ देना नहीं चाहता था..... पर इस मरदूत ने मुझे इतना मजबूर कर दिया..... कहा कि मैं इसका बड़ा चड्डी वाला बड्डी हूँ क्यूँ के तुम सब इसके छोटे चड्डी वाले बड्डी हो..... बस यह जान के मैं इसका काम करने को तैयार हो गया....

राजू की बात खतम होते ही सब हंसते हुए ताली मारते हैं l
रॉकी - (सबको हाथ दिखा कर) अरे रुको यारों रुको..... यहां छोटे मतलब बचपन और बड़ा मतलब इंटर कॉलेज... हाँ अब राजु आगे बढ़....
रॉकी की बात खतम होते ही राजु व्हाइट बोर्ड के पास पहुंचता है और मार्कर पेन लेकर रॉकी के बनाये उस सर्कल के पास कुछ लकीरें खिंचता है और कहता है - जैसा कि मैंने पहले ही बताया था कि नंदिनी विक्रम व वीर की बहन है l तीन पीढ़ियों के बाद क्षेत्रपाल परिवार में लड़की हुई है.... पर रूप नंदिनी जब चार साल की थी तब उसकी माँ का देहांत हुआ था l अब इसपर भी कुछ विवाद है हमारे राजगड में दबे स्वर में कुछ बुजुर्ग आज भी कहते हैं कि रूप कि माँ ने आत्महत्या की थी.... खैर अब वह इस दुनियां में नहीं हैं और रूप के पिता भैरव सिंह क्षेत्रपाल दूसरी शादी भी नहीं की..... अब क्यूँ नहीं की... वेल यह उनका निजी मामला है.....
तो अब परिवार में रूप के दादा जी नागेंद्र सिंह हैं पर वह अब पैरालाइज हैं... ना चल फिर सकते हैं ना ही किसीको कुछ कह पाते हैं...
फिर आते हैं उनके पिता भैरव सिंह पर.... तो यह शख्स पूरे स्टेट में किंग व किंग् मेकर की स्टेटस रखते हैं.... या यूँ कहें कि भैरव सिंह पुरे राज्य में एक पैरलल सरकार हैं....
फिर आते हैं रूप नंदिनी जी के चाचाजी पिनाक सिंह जी के पास...

फ़िलहाल यह महानुभव भुवनेश्वर के मेयर हैं...
इनकी पत्नी श्रीमती सुषमा सिंह जो सिर्फ राजगढ़ महल में ही रहती हैं....
फिर विक्रम सिंह, रूप के सगे भाई व बड़े भाई यह अब भुवनेश्वर में रूलिंग पार्टी के युवा मंच के अध्यक्ष हैं और इनकी पत्नी हैं शुभ्रा सिंह.... इनसे विक्रम सिंह की प्रेम विवाह हुआ है... पर इनके विवाह पर भी लोग तरह तरह की कहानियाँ कह रहे हैं.... खैर अब आते हैं रूप जी के चचेरे भाई वीर सिंह जी...
यह हमारे कालेज के छात्रों के अपराजेय अध्यक्ष हैं...
अब आगे हमारे रॉकी साहब कहेंगे....
इतना कह कर राजू चुप हो जाता है l अब रॉकी अपने जगह से उठता है और अपने सारे दोस्तों को कहता है - यारों सब दुआ करो..
मिलके फ़रियाद करो...
दिल जो चला गया है....
उसे आबाद करो... यारो तुम मेरा साथ दो जरा....
आशीष - बस रॉकी बस ... हम यहाँ तेरे दोस्त इसी लिए ही तो आए हुए हैं और तेरी धुलाई की सोच कर मेरा मतलब है कि तुझे नंदिनी तक पहुंचने की रास्ता बताने वाले हैं.....
पर यार भले ही वह क्षेत्रपाल बहुत पैसे वाले हैं पर यार तु भी तो कम नहीं है....
ठीक हैं पार्टी से जुड़े हुए हैं इसलिए रुतबा बहुत है.... पर समाज में तुम्हारा खानदान का भी बहुत बड़ा नाम है.....
चल माना रूप बहुत सुंदर है..... पर सुंदरता रूप पर खतम हो जाए ऐसा तो नहीं...
तुझे रूप से भी ज्यादा खूबसूरत लड़की मिल सकती है....
पर तुझ पर यह कैसा पागलपन है और क्यूँ है..... के तु... रूप को हासिल करना चाहता है....
देख दोस्त सब सच सच बताना क्यूंकि हम तेरे साथ थे हैं पर कल को अगर कुछ गडबड हुआ तो यह भी सच है कि हमारे जान पर भी आएगा....
आशीष के इतना कहते ही रॉकी अपने अतीत को याद करने लगता है

फ्लैश बैक........

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पांच साल पहले जब रॉकी इंटर में पढ़ना शुरू किया था l तब एक दिन घरसे कॉलेज जाने के लिए कार में बैठा l कार की खिड़की से अपनी मम्मी को हाथ हिला कर बाइ कह खिड़की का कांच उठा दिया l ड्राइवर गाड़ी घर से निकाल कर कॉलेज के रोड पर दौड़ा दिया l कुछ देर बाद म्यूनिसिपाल्टी के लोग रास्ता खोदते दिखे तो ड्राइवर दिशा बदल कर गाड़ी ले जाने लगा l गाड़ी के भीतर रॉकी अपने धुन में मस्त, आई-पॉड से गाने सुन रहा था l जब गाड़ी एक सुनसान सड़क पर जा रही थी तभी एक एम्बुलेंस सामने आकर रुकी तो ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक लगा कर गाड़ी रोक दिआ l ड्राइवर एम्बुलेंस के ड्राइवर पर चिल्लाने लगा l गाड़ी के ऐसे रुकते ही और ड्राइवर के चिल्लाते ही रॉकी का भी ध्यान टूटा और उसने देखा कुछ लोग एक स्ट्रेचर लेकर कार की बढ़ रहे हैं l इससे पहले कुछ समझ पाता ड्राइवर के मुहं पर रूमाल डाल कर बेहोश कर दिए और इससे पहले रॉकी कुछ और सोच पाता वैसा ही हाल रॉकी का भी हुआ l रॉकी जब आँखे खोल कर देखा तो अपने आप को एक बिस्तर पर पाया l पास एक आदमी जो काले लिबास में एक चेयर पर बैठ कर कोई फ़िल्मी मैग्जीन देख रहा था l रॉकी अचानक से बेड पर उठ कर बैठ गया l
रॉकी -(डरते हुए) त....त.... तुम... लोग... कौन हो l
वह आदमी - अरे हीरो.... होश आ गया तेरे को...... वाह.... हम लोग तेरे फैन हैं.... हम लोगों ने तेरे नाम पर एक बहुर बड़ा फैन क्लब बनाए हैं.... और तेरे फैन लोग बहुत सोशल सर्विस करते रहते हैं... इसलिए तेरे बाप से उस क्लब के लिए डोनेशन मांगने वाले हैं....
तब रॉकी इतना तो समझदार हो गया था और वह समझ गया कि उसका किडनैप हुआ है और बदले में उसके बाप से पैसा वसूला जाएगा l
वह आदमी उठा और बाहर जा कर दरवाजा बंद कर दिआ l फिर रॉकी चुप चाप उसी बिस्तर पर लेट गया l थोड़ी देर बाद वह आदमी और उसके साथ तीन और आदमी अंदर आए l
(पहला वाला आदमी को आ 1, और वैसे ही सारे लोगों की क्रमिक संख्या दे रहा हूँ)
आ 1- सुन बे हीरो... तेरी उम्र इतनी तो है के... तु अब तक समझ गया होगा कि तु यहाँ क्यूँ है...
रॉकी ने हाँ में सर हिलाया l
आ 2- गुड.... चल अब बिना देरी किए अपना बाप का पर्सनल नंबर बता.....
रॉकी - 98XXXXXXXX
आ 1- (और दोनों से) हीरो को खाना दे दो...
और हीरो खाना खा और चुपचाप सो जा....
दो दिन बाद तुझे तेरे फॅमिली के हवाले कर दिया जाएगा l
रॉकी अपना सर हिला कर हाँ कहा, तो सब उस कमरे से बाहर चले गए और कुछ देर बाद उनमें से एक आदमी एक थाली और एक पार्सल दे कर चला गया l रॉकी ने इधर उधर पानी के लिए नजर घुमाया तो देखा वश बेसिन के ऊपर अक्वागार्ड लगा हुआ है l इसलिए रॉकी चुप चाप खाना खाया और बिस्तर पर सोने की कोशिश करने लगा l ऐसे ही दो दिन बीत गए l तीसरे दिन शाम को रॉकी के आँखों में पट्टी बांध कर उसे कहीं ले गए l जब एक जगह उसकी आँखों से पट्टी खुली तो खुदको एक अंजान कंस्ट्रक्शन साइट् पर पाया l उसने गौर किया तो देखा कि असल में वह चार आदमियों की गैंग नहीं थी बल्कि एक बीस पच्चीस लोगों की गैंग थी l सबके हाथों में एसएलआर(Self Loaded Rifle) गनस् थे l थोड़ी देर बाद जिसने रॉकी से उसके बाप का फोन नंबर मांगा था शायद वह उस गिरोह का लीडर था वह बदहवास भागता हुआ आ रहा था और उसके पीछे एक आदमी शिकारी के ड्रेस में चला आ रहा था l गैंग लीडर - (चिल्ला कर) कोई गोली मत चलाओ, कोई गोली मत चलाओ
सब के हाथों में गनस् होने के बावज़ूद उनका लीडर किससे डर कर भाग कर आ रहा है, यह सोच कर गैंग के लोग एक दूसरे को देख रहे हैं l
तभी गैंग लीडर आ कर रुक जाता है और पिछे मुड़ता है l पीछे शिकारी के ड्रेस में काला चश्मा पहने हुए वह शख्स दोनों हाथ जेब में डाले खड़ा हो जाता है l तभी उस गैंग का एक आदमी उस शिकारी के पैरों के पास गोलियां बरसाने लगता है l पर वह शिकारी बिना किसी डर के वहीं खड़ा रहता है l गैंग का लीडर उस गोली चलाने वाले को अपनी जेब से माउजर निकाल कर शूट कर देता है और घुटनों पर बैठ जाता कर अपना सर झुका लेता है l
शिकारी - कल तक तुम लोग क्या करते थे मुझे कोई मतलब नहीं...
पर आज से और अभी से यह हमारा इलाक़ा है... और हमारे इलाके में...
गैंग लीडर - हमे मालुम नहीं था युवराज जी हम आपके इलाके से फिर कभी नजर नहीं आयेंगे...
शिकारी - बहुत अच्छे...
चल छोकरे चल मेरे साथ...
रॉकी उस शिकारी के साथ निकल गया और पीछे वह गुंडे वैसे के वैसे ही रह जाते हैं l
रॉकी उस शिकारी के साथ एक गाड़ी में बैठ जाता है l गाड़ी चलती जा रही थी और रॉकी एक टक उस शिकारी को देखे जा रहा था और सोच रहा था क्या ताव है, गोलियों से भी डरता नहीं, एक अकेला आया उस गिरोह के बीच से उसे कितनी आसानी से लेकर आ गया l
रॉकी उस शिकारी की पर्सनैलिटी से काफ़ी इम्प्रेस हो चुका था l कुछ देर बाद रॉकी का घर आया l दोनों अंदर गए तो रॉकी के पिता सिंहाचल पाढ़ी उस शिकारी के सामने घुटनों के बल पर बैठ गए l तब वहाँ पर बैठे दुसरे शख्स ने कहा - अब कोई फ़िकर नहीं पाढ़ी बाबु... आप क्षेत्रपाल जी के संरक्षण में हैं...
सिंहाचल- युवराज विक्रम सिंह जी.... कहिए मुझे क्या करना होगा...
विक्रम सिंह - आप जब तक हमें प्रोटेक्शन टैक्स देते रहेंगे...... तब तक...
इस सहर ही नहीं इस राज्य में भी आपकी तकलीफ़ हमारी तकलीफ़....
इतना कह कर विक्रम और वह आदमी चले जाते हैं l
रात भर रॉकी विक्रम के बारे में सोचता रहा और उसकी चाल, बात और ताव से इम्प्रेस जो था l
अगले दिन वह कॉलेज में मालुम हुआ वह जो दुसरा आदमी उसके घर में था वह राजकुमार वीर सिंह था l
रॉकी की उम्र जितना बढ़ता जा रहा था उतना ही विक्रम उसके दिलों दिमाग पर छाया हुआ था l
जब बी-कॉम के साथ साथ अपने पिता की बिजनैस में ध्यान देने लगा, तब उसे यह एहसास होने लगा किसी भी फील्ड में हुकुमत करनी है तो आदमी के पास या तो बेहिसाब दौलत होनी चाहिए या फिर बेहिसाब ताकत, क्षेत्रपाल के परिवार के पास दोनों ही था l एक तरह से रॉकी के मन में इंफेरिअर कॉम्प्लेक्स बढ़ रहा था l हमेशा उसके मन में एक ख्वाहिश पनप रहा था कास ऐसी ताव ऐसी रुतबा उसके पास होता l
ऐसे में उसे रूप दिखती है और उसके बारे में जानते ही वह एक फ़ैसला करता है, अगर कैसे भी वह रूप के जरिए क्षेत्रपाल परिवार से जुड़ जाए तो वह भी ऐसा ही रौब रुतबा मैंटैंन कर पाएगा l

रॉकी.... हे.... रॉकी..... आशीष उसे जगाता है तो रॉकी अपनी फ्लैश बैक से बाहर निकालता है l

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रॉकी - ओह... असल में कैसे कहूँ समझ में नहीं आ रहा है..... ह्म्म्म्म.... ठीक है.... सुनो दोस्तों... आप चाहें जैसे भी हो... आपके जीवन में एक लड़की ऐसी आती है जो आपके जीने की मायने बदल जाते हैं... जब जिंदगी उसके बगैर जिंदगी नहीं लगती..
.. जिसके लिए... जान भी कोई कीमत नहीं रखती...

मेरे जीवन में रूप नंदिनी वही लड़की है जिसके प्यार में मैं मीट जाना चाहता हूँ....
अगर तुम सबको मेरे भावनाओं में सच्चाई दिखे और उसका कद्र हो तो मेरी मदत करो और मेरी राह बनाओ.....

सब चुप रहते हैं

राजु - देख अगर तेरी भावनाएँ सच में रूप के लिए इतनी गहरी है तो..... ठीक है हम तेरी मदत करेंगे...... तेरे लिए हम रास्ता बनाएंगे और तुझे उस पर अमल करना होगा... समझ ले एक रियलिटी गेम है.... तु कंटेस्टेंट है और हम जज जो तुझे पॉइंट्स देते रहेंगे और हर लेवल पर इंप्रुवमेंट के लिए बोलते रहेंगे,.. ताकि ..... तुझे... तेरे हर ऐक्ट पर स्कोर मालुम होता रहे....
"यीये......" सारे दोस्त उसे चीयर्स करते हैं l
रॉकी व्हाइट बोर्ड पर जो भी लिखा था सब मिटाता है और बोर्ड पर मिशन नंदिनी लिखता है l
रॉकी - आशीष पहले तु बता..
आशीष - देखो मुझे जो लगा.... या राजू से जितना मैंने समझा....
नंदिनी अपने पारिवारिक पहचान से दूरी बनाए रखना चाहती है क्यूंकि उसकी पारिवारिक पहचान से उसे दोस्त नहीं मिल रहे हैं l
रॉकी - करेक्ट..
अब... सुशील तु बोल..
सुशील - देख तुझे उसकी बात जानने के लिए उसकी दोस्तों के ग्रुप में एक लड़की स्पाय डेप्लॉय करना होगा...
रॉकी - करेक्ट... पर वह लड़की कौन होगी..
सुशील - रवि की गर्ल फ्रेंड... और कौन...
रवि - क्यों तुम सब रंडवे हो क्या....
सुशील - भोषड़ी के रंडवे नहीं हैं हम.... पर तेरी वाली साइंस मैं है इसलिए...
रवि - ठीक है...
रॉकी - ह्म्म्म्म फिर उसके बाद
राजु - ऑए जरा धीरे... जल्दबाजी मत करियो.... देख कॉलेज में सब जानते हैं कि वह क्षेत्रपाल परिवार से ताल्लुक रखती है...... इसलिए तेरी राह में कोई ट्रैफिक नहीं है... क्यूंकि कोई कंपटीटर नहीं है...
रवि - हाँ यह बात तो है...
रॉकी - अब करना क्या है...
राजु - अबे बोला ना धीरे... जिस तेजी से गाड़ी दौड़ा रहा है ना ब्रेक लगा तु... अबे पुरे स्टेट में जिसके आगे कोई सर भी नहीं उठाता उसकी बेटी है वह.... जिसकी मर्जी से भुवनेश्वर में कंस्ट्रक्शन से लेकर कोई नये प्रोजेक्ट तक हो रहे हैं उसकी भतीजी है वह.... जिसके आगे सारे गुंडे पानी भरते हैं उसकी बहन है वह... और यह मत भूल इस कॉलेज के अनबिटेबल प्रेसिडेंट वीर सिंह भी उसका भाई है....
अगर वह तुझे सिद्दत से चाहेगी तो तब तेरे लिए अपने बाप व भाई से टकराएगी....लड़ जाएगी....
तुझे सिर्फ दोस्ती नहीं करनी है बल्कि तुझे उसके दिल, उसके आत्मा में उतरना है... बसना है...
जल्दबाज़ी बहुत ही घातक सिद्ध होगा....

आशीष - राजु बिल्कुल सही कह रहा है.... बेशक क्षेत्रपाल परिवार की ल़डकी है ... शायद तेरे लिए ही तीन पीढ़ीयों बाद आयी हो.....
तेरा बेड़ा पार वही लगाएगी.... मगर तब जब वह तुझे सिद्दत से चाहेगी...
रवि - हाँ अब तक हमने जितना एनालिसिस किया है... उससे इतना तो मालुम हो गया है कि उसके परिवार के रौब के चलते रूप भी ऐसे मामलों से सावधानी बरतती होगी....
राजु - इसलिए पहला काम यह कर के उसके आस पास अपना कोई स्पाय डेप्लॉय कर... जब उसके कुछ पसंद व ना पसंद मालुम पड़ेगा...
हम अगला कदम उसी के हिसाब से उठाना होगा..
रॉकी सबको शांति से सुन रहा था l उसे सबकी बात सही लगी l
रॉकी - ठीक है दोस्तों अब से हर शनिवार यहाँ पर मॉकटेल पार्टी और मिशन नंदिनी की एनालिसिस...

सारे के सारे जो उस कमरे में थे सब अंगूठा दिखा कर उसके बातों का समर्थन किया l
Nice update bro
 

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फिर भी आपकी लेखन में समय का दर्पण होता है l यही सबसे खासियत है आपकी l मैं पहले भी उल्लेख कर चुका हूँ काम वासना पर लिखना भी एक कला ही है l किसी की Desire होता है और किसी की passion l पर यहाँ ऐसे भी लेखक हैं यह दोनों भावनाएँ मिसींग रहती है l उन लेखकों के लेखन में Sadism ज्यादा झलकती है, उग्रता झलकती है l काम वासना ही सही पर आपके लेखन में प्रेम और समर्पण दिखता है l मुझे ऐसे लेखन बहुत पसंद है l इसलिए आपकी लेखन की बात ही और है l आज कल जिस तरह के लेख लिखते हैं इस फोरम में उनकी स्पीड को मैच नहीं कर पा रहा हूँ l शायद इसे जेनेरेशन गैप कहते हैं l
फिर भी मैच करने की कोशिश कर रहा हूँ l देखते हैं कहाँ तक सफल हो पाते हैं l
फिर से धन्यबाद और आभार
♥️♥️♥️🙏🙏
 
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👉सातवां अपडेट
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अगले दिन....
राजगड़ के एक चौराहे पर एक चाय नाश्ता की दुकान में कुछ लोग चाय की चुस्की भर रहे हैं और कुछ लोग नाश्ता कर रहे हैं l एक मधुर सी आवाज़ गूँजती है उस दुकान में " ॐ श्री भगवते वासु देवाय नमः...
जय जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे"
के तभी अचानक से महल के आसपास बहुत से कौवे उड़ने लगते हैं l उसे देख कर एक लड़की जो दुकान में काम कर रही होती है वह आसमान की तरफ़ देखते हुए कहा - वह देखो वैदेही मासी वह देखो.... अरे.... बाप.... रे... कितना भयानक दिख रहा है... ओह कितने कौवे उड़ रहे हैं क्षेत्रपाल महल के आसपास... वहाँ क्या हुआ होगा वैदेही मासी....
वैदेही - तुझे वहाँ पर देखने को किसने कहा... जा सुबह का तेरा काम हो गया है... सीधे अपने स्कुल जा कर पढ़ाई कर....
वह लड़की - क्या हुआ मासी... मैंने तो बस ऐसे ही पूछा...
वैदेही - देख उस महल के बारे में कोई चर्चा नहीं.... वहाँ शैतानों का बसेरा है... हम जितना दुर रहें उतना अच्छा...
जा अब अपने स्कुल जा (उसे कुछ पैसे देते हुए) और अच्छे से पढ़ाई कर...
वह लड़की - ठीक है मासी... कह कर अपनी स्कुल बैग उठा कर निकल जाती है..
उसी दुकान में काम कर रहे एक बुढ़ी औरत - वैदेही तु हमेशा अपनी कमाई आसपास के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देती है.. तुझे ज़रूरत नहीं होती पैसों की..
वैदेही - मुझे क्या जरूरत है गौरी काकी.. मेरे पास जो ज्यादा है वह इन बच्चों के काम आ रहा है..
गौरी - तेरी जैसी सोच यहाँ किसीकी भी नहीं है... कास के तेरी जैसी सोच सबकी होती.. वैसे आज रंग महल के आसपास कौवे बहुत दिख रहे हैं...
पता नहीं क्या हो रहा है वहाँ....
वैदेही - पता नहीं काकी पर मुझे लगता है किसी के दिन पूरे हुए होंगे... इंसानियत कुचल दी गई होगी... इसलिये कौवे, मातम मना रहे हैं....
इतने में एक लड़का भागते हुए आता है और कहता है - मासी मासी घर पर शनिआ आया है और माँ के साथ बदतमीजी कर रहा है....
यह सुनते ही वैदेही गल्ला खोल कर जितने भी पैसे थे सब निकाले और गौरी से - काकी आप थोड़ा दुकान संभालो मैं अभी आई...
इतना कह कर उस लड़के का हाथ पकड़ कर तेजी से वहाँ से भाग कर उस लड़के के घर पहुंचती है l
वहाँ पहुँच कर देखती है कि एक गुंडा सा आदमी एक औरत का हाथ पकड़ कर खड़ा है और पास ही एक और आदमी शराब के नशे में धुत वहीँ खड़े हिल ड्यूल रहा है l
वैदेही उस गुंडे से - ऐ शनिआ छोड़ दे लक्ष्मी को...
शनिआ - मैंने मुफत में इसके मर्द को जितना दारू पिलाया है..... उसका वसुली करने आया हूँ...
वैदेही - छी... शर्म नहीं आती यह कहते हुए...
शनिआ - तेरी क्यूँ जल रही है क्षेत्रपाल महल की रंडी....
जब इसके मर्द को दर्द नहीं हो रहा है तो..
वैदेही - चुप बे हरामी मादरचोद.... बोल कितने पैसों की दारू पिलाई है....
शनिआ - ओह ओ तो लक्ष्मी के बदले तु लेटेगी मेरे नीचे... यह ले छोड़ दिया लक्ष्मी को... (लक्ष्मी को छोड़ देता है) चल आजा... मेरी सुबह रंगीन बना दे.....
वैदेही - चुप कर बे कुत्ते... मैंने पैसे पूछे हैं..
शनिआ - अच्छा तो... इस कुकुर का पैसा तु लौटाएगी.... ह्म्म्म्म.. चल अभी के अभी तीन हजार निकाल.. चल..
वैदेही पैसे निकाल कर गिनती है,और तीन हजार निकाल कर उसके मुहँ पर फेंकती है l शनिआ वह पैसे उठा लेता है और लक्ष्मी देख कर कहता है - कोई नहीं.. आज नहीं तो फिर कभी सही.. चलता हूँ..
(वैदेही को देखते हुए) तुझे याद रखूँगा रंग महल की रंडी.... तुझे याद रखूँगा...
वैदेही - चल निकल यहाँ से...
शनिआ के जाते ही पहले वैदेही एक जोरदार थप्पड़ मारती ही उस शराबी को l वह शराबी गिर जाता है तो लक्ष्मी भाग कर जाती है उसे और उसे उठा कर नीचे बिठा देती है l

वैदेही - (उस औरत पर चिल्लाते हुए) लक्ष्मी...
लक्ष्मी वैदेही के पास आती है और हाथ जोड़कर नम आँखों से शुक्रिया कहने को होती है कि चटाक... वैदेही लक्ष्मी को भी थप्पड़ मारती है, लक्ष्मी नीचे गिर जाती है तो वह लड़का "माँ" चिल्ला कर लक्ष्मी के पास दौड़ कर जाता है l तभी शराबी उठता है और वैदेही से - साली कुत्तीआ मेरी औरत पर क्यूँ हाथ उठाया...
वैदेही - ओह.... ओ... कितना बड़ा मर्द बन रहा है.... अभी तो शनिआ के आगे दुम हिला रहा था... कुत्ते तेरी मर्दानगी मुझ पर भोंक रहा है...
इसबार वैदेही और जोर से झापड़ लगाती तो वह शराबी गिरता ही नहीं उसका आधे से ज्यादा नशा उतर भी जाता है l
लक्ष्मी - नहीं दीदी मत मारिये इन्हें..
वैदेही - छी.. यह हरीया तुझे बेच चुका था और तु उसकी तरफदारी में मुझे समझा रही है...
हरिया - म.. माफ़ करना दीदी... मैं नशे में.. वह..
वैदेही - तु नशे में क्या किया तुझे मालुम भी है... आज अगर (उस लड़के के सिर पर हाथ फेरते हुए) वरुण सही समय पर मुझे बुलाया नहीं होता तो आज तेरी घर की लक्ष्मी लूट चुकी होती... हरिया तेरी नशे की भेंट चढ़ गई होती तेरे वरुण की माँ...
हरिया - (रोते हुए हाथ जोड़ कर) मैं वह...
वैदेही - बस मुझे कुछ मत समझा... अगर शराब की लत से निकल नहीं पा रहा है... तो जा जहर ला कर लक्ष्मी और वरुण को दे दे... और सुन... अगर फिर शनिआ छोड़ मेरे ऊपर कभी धौंस दिखाया तो तेरी मर्दानगी काट कर उससे तेरे दांत साफ करवाउंगी...
हरिया कुछ कहने को होता है कि वैदेही उसे रोक देती है - सुबह सुरज निकले कितना वक़्त हुआ है कि सुबह सुबह नाश्ता की जगह नशा कर के आया और अपनी घर की लक्ष्मी का सौदा भी कर आया... मुझे कुछ नहीं सुनना... जब नशे में ना हो तब मुझसे बात करना.. जा निकल जा यहां से...
हरिया बिना कुछ कहे नजरें झुका कर बाहर निकल जाता है l
वैदेही - (लक्ष्मी से) तुझे उस हरामी ने हाथ लगाया और तुने उसे छूने भी कैसे दिआ... दरांती निकाल कर सर काट क्यूँ नहीं दी उस शनिआ का..
लक्ष्मी - मैं... उसे देख कर डर गई थी... और उसने उनको जान से मारने की धमकी भी दी थी..
वैदेही - तो मर जाने देती उस करम जले को,.. जो अपने घर की इज़्ज़त को बेचने चला था....
लक्ष्मी - ऐसी बाते न करो दीदी.... आखिर पति हैं मेरे वह..

वैदेही - पति ... आक थू.. ऐसा
मर्द जो बिन पेंदी के लोटे की तरह शराब के नशे में लुढ़कता रहता है... जो अपनी घरवाली व बच्चे की हिफाज़त भी ना कर सके....
छी मैं भी किससे कह रही हूँ....
लक्ष्मी - वह दीदी मैं पैसे लौटा दूंगी...
वैदेही - कोई जरूरत नहीं है लौटाने की... अरे पहले इंसान ही बन जाओ.... जानवरों के राज में जानवर बन गए हो अपने हक़ व इज़्ज़त के लिए लड़ना सीखो.... तब मैं समझूंगी मुझे पैसे मिल गए...
इतना कह कर वैदेही वापस अपने दुकान के पास आती है तो देखती है दुकान का एक हिस्सा उखड़ा हुआ है l
वैदेही - यह... क्या हुआ काकी...
गौरी - वह.... शनिआ एक बैल ले कर आया था और मुझसे पानी मांगा तो मैं जैसे ही हैं पानी लाने मुड़ी तो उसने मौका देख कर बैल की रस्सी इस खंबे पर बांध कर बैल को जोर जोर से मारने लगा..... बैल छटपटाते हुए भाग गया और यह खंबा उखड़ गया.....

वहीं भुवनेश्वर में नंदिनी अपने कमरे से निकलने को होती है कि वहीं शुभ्रा आती है,
शुभ्रा - हाँ तो नंदिनी जी... आज का आपका क्या प्रोग्राम है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म.. रूठे दोस्तों को मनाना है...
शुभ्रा - गुड.... बस सबको सच बता कर दोस्ती करना.... और एक बात कभी कोई उम्मीद मन में पाल मत लेना.... क्यूंकि उम्मीद टूटने पर बहुत दुख होता है... इसलिए सच्चाई जो दे उसे स्वीकार लो...
नंदिनी अपना सर हाँ में हिलाती है और शुभ्रा के गले लग जाती है l
शुभ्रा - अच्छा यह ले....
नंदिनी - यह क्या है भाभी...
शुभ्रा - दही और गुड़ है... अच्छी शगुन के लिए.... जा... तुझे तेरे दोस्त मिल जाएं... मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी...
नंदिनी शुभ्रा को बाय कह कर बाहर निकल जाती है l बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l गाड़ी में बैठे नंदिनी अपने दोनों हाथों के तर्जनी उंगली पर मध्यमा उंगली मोड़ कर आँखे बंद कर कुछ बुदबुदा रही होती है l
ड्राइवर - क्या बात है राज कुमारी जी... आज कोई एक्जाम है क्या... आप इतनी नर्वस हैं...
नंदिनी - हाँ काका एक्जाम तो है पर दोस्ती का...
ड्राइवर - अरे यह आप क्या कर रही हैं राज कुमारी जी... आप मुझे ड्राइवर कहिए या फिर गुरु कहिए पर काका ना कहिए....
युवराज जी को मालुम हुआ तो मेरी खैर नहीं..
नंदिनी - अरे ऐसे कैसे मालुम हो जाएगा... आप मुझे रोज कॉलेज छोड़ने जाते हैं और क्लास खतम होने तक मेरा इंतजार करते हैं फिर मुझे घर ला कर छोड़ते हैं..
आप एक बुजुर्ग पिता की तरह मेरा खयाल रखते हैं...
घर के बाहर एक मेरे बुजुर्ग... जिनके देख रेख में क्षेत्रपाल परिवार इज़्ज़त हो... वह मेरे काका ही तो हो सकते हैं...
गुरु - ध... धन्यबाद राज कुमारी जी... पर माफ़ कीजिएगा... मेरी बुढ़ी कंधे इस रिश्ते का बोझ ना उठा पाएंगे ....
नंदिनी - कोई बात नहीं काका... आप मत निभाना,.. पर रिश्ता मैं निभाउंगी.... और हाँ आपको काका ही बुलाउंगी... और यह मेरा हुकुम है आप मुझे बेटी कहिए....
गुरु - जी.... जी.... बेटी... जी
नंदिनी - अररे.... यह बेटी जी क्या है.... बोलिए बेटी...
गुरु की हालत बहुत खराब हो जाती है एसी कार में भी वह पसीने से भीगने लगता है और बड़ी मुश्किल से कहता है - द्.. देखिए राज कुमारी ज़ी आपने जो सम्मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यबाद... मुझे आप मजबूर मत कीजिए... मुझे बस बेटी जी के हद तक ही रहने दीजिए....
नंदिनी - ठीक है काका मंजूर है...
फिर नंदिनी चुप हो जाती है और सोचने लगती है -अरे यह मैंने कैसे कर लिया... आज मैंने ड्राइवर काका से इतनी सारी बातें की... (मन ही मन हंसने लगती है) हे भगवान इतनी सारी बातें मैंने की... बस मुझे मेरे दोस्तों के साथ भी ऐसे पेश आने की हिम्मत देना.. इतना सोच कर भगवान को याद करते हुए आँखे मूँद लेती है.....

उधर अपने कैबिन में खान कुछ गहरी सोच में डुबा हुआ है, अचानक वह अपनी सोच से बाहर निकलता है l उसने जो कुछ देर पहले सिगरेट सुलगाई थी उसीकी आंच से सोच से बाहर निकला तो उसके मुहँ से अपने आप निकल गया - यह साला विश्वा.... मेरी भी जीना हराम कर रखा है...
अपने टेबल पर पड़े विश्वा का फाइल उठाता है और कवर पलटता है, फ़िर से पढ़ने लगता है
नाम - विश्व प्रताप महापात्र
पिता - स्व. रघुनाथ महापात्र
माता - स्व. सरला महापात्र
उम्र - इक्कीस वर्ष (तब) अब अट्ठाइस वर्ष
गांव - पाइक पड़ा
तालुका - राजगड़
क्षेत्र - यश पुर
अपराध - ठगी, चोरी, लुट, सामुहिक व संगठित लुट / दो हत्याओं का संदेह
रकम - साढ़े सात सौ करोड़
धारा - हत्या का संदेह का लाभ /आईपीसी 420 / आईपीसी 378 व 379 / आईपीसी 392 के तहत चार वर्ष की सज़ा और अगर लूटी हुई रक़म ज़ब्त नहीं हो पा रही है तो तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास

इतना पढ़ने के बाद खान -(मन ही मन) यह सिर्फ फोटो में ही मासूम दिख रहा है.... मगर जुर्म किसी छटे हुए अपराधी की.... इसके साथ सेनापति का किस तरह का जुड़ाव है....

खान टेबल पर लगे कॉलिंग बेल बजता है, बाहर से जगन भाग कर आता है- क्या चाहिए सर जी... चाय... नाश्ता.. कुछ..
खान - हाँ जाओ मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले कर आओ...
जैसे ही जगन मुड़ा खान - अच्छा सुनो.... रुको ज़रा...
जगन रुक जाता है,और खान को देख रहा है l खान उसकी नजरों में खुद को नॉर्मल बनाने की कोशिश करते हुए कहता है - जगन हमारे इस जैल में क्या ऐसा कोई है.... जो मुझे बहुत सी अन-ऑफिसीयल जानकारी भी दे सके...
जगन - जी सर हैं ना.... हमारे दास सर...
खान - ह्म्म्म्म अछा एक काम करो जाओ दास को बुलाओ.... और दो चाय बना कर लाओ....
जगन बाहर चला जाता है, और खान अपनी कुर्सी से उठ कर जैल के नक्शे के सामने खड़ा हो जाता है l

कॉलेज में पहुंच कर नंदिनी सबसे पहले कैन्टीन जाती है l कैन्टीन में उसे देखते ही सब धीरे धीरे खिसक लेते हैं l नंदिनी उन पर ध्यान न दे कर सबको फोन पर कोशिश करती है पर किसीको भी फ़ोन पर नहीं आते देख सबको ह्वाटसप से मैसेज करती है - मैं कैन्टीन में तुम लोगों की इंतजार कर रही हूँ.... जो नहीं आयेगा उसे वीर सिंह क्षेत्रपाल समझ लेगा...
इस मैसेज के तुरंत बाद चार लड़कियाँ तेज़ी से चलते हुए कैन्टीन में पहुंचे l उन्हें देख कर नंदिनी अपनी भोवें सिकुड़ लेती है और चारों को अपने पास पड़े कुर्सी पर बैठने को कहती है l चारों पहले एक दूसरे को देखते हैं फ़िर चुपचाप नंदिनी के पास बैठ जाते हैं l
नंदिनी - यार तुम लोगों का क्या प्रॉब्लम है... मुझसे तुम लोग दुर् क्यूँ भाग रहे हो... (सब चुप रहते हैं) ह्म्म्म्म लगता है तुम सबकी वीर सिंह से क्लास लगवानी पड़ेगी...
बनानी - नहीं नहीं ऐसा मत कहो... तुम जानती हो यहाँ सब क्षेत्रपाल बंधुओं से डरते हैं... और तुम उनकी नजदीक हो... तो जाहिर है कि सब तुमसे भी डरेंगे...
नंदिनी - मैं उनकी नजदीक नहीं हूँ बस खुन के रिश्ते के वजह से उनकी सगी बहन हूँ....
"क्या" सब एक साथ
नंदिनी - और मेरा नाम है रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...
"क्या" फिर एक बार सब एक साथ
नंदिनी - यह बार बार क्या क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.... देखो इस कॉलेज में मेरे भाईयों की इतिहास क्या रहा है... मुझे उससे कोई मतलब नहीं... पर मैं उनके जैसी नहीं हूँ.... मैंने तुम लोगों से सच्चे मन से दोस्ती की है.... अब चाहे तुम मुझसे कोई नाता रखो या ना रखो... तुम्हारे सारे दुख मेरे दुख और तुम्हारे सारे सुख अब मेरे सुख... मेरी पारिवारिक पहचान से अगर तुम लोगों को परेशानी हो रही है तो मैं माफ़ी चाहती हूँ.... पर इसमें मेरा क्या दोष.... वह भाई है मेरा... कॉलेज में मेरी खैरियत बुझने आता है... पर मेरी निजी जिंदगी में उसकी कोई दखल तो है नहीं ना....
खैर मैंने अपनी बात कह दी... और सब सच सच कहा है.... अब मैं अपना हाथ बढ़ा रही हूँ.... अगर मेरी दोस्ती मंजूर हो तो हाथ मिलाओ.... अगर नहीं तो कोई शिकायत भी नहीं... हाँ मुझे दुख जरूर होगा... पर तुम लोगों से कोई गिला नहीं करूंगी...
चारों एक दुसरे को देखते हैं फ़िर भी हिम्मत नहीं हो पाती है l यह देखकर नंदिनी अपना हाथ वापस ले लेती है और उठने होती है कि बनानी उसकी हाथ पकड़ लेती है - सॉरी यार... बस माफ़ करदे... हम सच में डरे हुए थे...
नंदिनी - (खुश होते हुए) मैंने कहा ना तुम निभाओ या ना निभाओ मैं अपनी दोस्ती निभाउंगी... (दोनों हाथों से बनानी का हाथ पकड़ कर) यह वादा है मेरा..
इतना सुनते ही पास खड़े तबस्सुम, अपना हाथ नंदिनी के हाथ पर अपना हाथ रखती है फ़िर भास्वति, फिर इतिश्री सब हाथ मिलाते हैं l नंदिनी खुशी से उछलने लगती है तो वे चारों भी उसके साथ उछलने लग जाते हैं l
"एसक्युज मी प्लीज"
यह सुन कर उन सबका ध्यान उस आवाज़ के तरफ जाती है l एक लड़की हाथों में एक बैग पकड़े हुए उनके पास खड़ी थी l
नंदिनी - येस...
लड़की - हाय, आई आम दीप्ति... कह कर हाथ बढ़ाती है....
नंदिनी - क्या तुम मेरे बारे में जानती हो....
दीप्ति - हाँ अभी अभी तुमने इन सबको बताया.... मैं भी सब सुन रही थी.....
नंदिनी अपना हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लेती है और कहती है - हम पांच थे अब छह हो गए हैं इसलिए अब हम अपने ग्रुप का नाम छटी हुई गैंग रखेंगे....
सब येह येह या..... करते हुए चिल्ला कर उछलते हैं l

वहाँ जैल में खान जैल के नक्शे के सामने खड़ा है तभी दास आता है सैल्यूट दे कर - जय हिंद सर...
खान - जय हिंद दास... रिलाक्स... बैठ जाओ..
दास बैठ जाता है, खान उसके तरफ मुड़ता है कि तभी जगन दो कप चाय ले कर आता है l
खान - उसे टेबल पर रख दो और जाओ यहाँ से.. (उसके जाते ही) दास, तुम्हारा सेनापति के VRS लेने के बारे में क्या खयाल है....
दास - सर उनकी मर्ज़ी...
खान - मुझे ऑफिसीयल नहीं अनऑफिसीयल रीजन चाहिए... और यहाँ तुमसे बेहतर इस विषय पर कोई और रौशनी नहीं डाल सकता है.... इसलिए प्लीज लिभ् बिहाइंड फर्मालिटी... और जो मन में है वही कहो....
दास - सर उनके बेटे के चल बसने के बाद उनका लगाव विश्वा से हो गया था..... इसलिए जब दो महीने बाद विश्वा इस कैद खाने से रिहा हो जाएगा.... तब उनका नौकरी पर आना मुश्किल हो जाएगा... इसलिए वे भी अपनी नौकरी से आजादी चाहते हैं.....
खान - व्हाट रब्बीस..... इसके फाइल देखे हैं मैंने... ब्लडी क्रिमिनल है वह....
दास - हाँ फाइल के हिसाब से तो वही है जो आपने बताया..... पर हक़ीक़त शायद वह ना हो....
खान - व्हाट डु यु मीन....
दास - सार एक बार इसी जैल के अंदर चार वर्ष पहले बहुत ही भयानक दंगा हुआ था.....जिन्होंने यह दंगा कराया था वह प्रोफेशनल आतंकवादी थे... जिनका एक ही लक्ष था सुपरिटेंडेंट सेनापति जी को मारना.... उनको बीच जो भी आए सबको मार देना.... उस दंगे से विश्वा अपनी सूझ बुझ से ना सिर्फ़ पुलिस वालों को बचाया बल्कि पुलिस वालों को सही समय पर आर्मस् व आम्युनेशन उपलब्ध करवा दिया.... जिसके वजह से सारे आतंकवादी मारे गए... और विश्वा का नाम बाहर नहीं आया... बहुत से पुलिस वालों को गैलेंट्री अवार्ड मिला... और प्रमोशन भी... जबकि सम्मान का असली हक़दार विश्वा था....
यह बात सुन कर खान हैरान रह गया l फाइल पलट कर विश्वा के फोटो को देख कर सोचने लगा क्या वाकई इसने ऐसा किया होगा l शायद दास खान की मन की बात पढ़ लिया,
दास - सर जब विश्वा इस जैल में आया था वह बहुत ही डरा हुआ मासूम था..... पर जैसा कि यह सेंट्रल जैल है.... किसी मासूम व नौसिखिए कैदी के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तरह ही है... यहाँ पर बहुत से बड़े बड़े नाम व काम वाले छटे हुए मुज़रिम आते हैं जो खुदको जुर्म की दुनिया के माहिर प्रोफेसर मानते हैं... ऐसे मुज़रिमों के बीच मासूमियत कब तक टिक सकता था सर.... सारे प्रोफेसर मिलकर, मार, पीट कर.... डरा कर धमका कर.... विश्वा को अपने अपने फन में, अपने अपने हुनर में ढालते गए.... विश्वा सीखते सीखते थक जाता था... पर वह इरादों के पक्के प्रोफेसर थे... सीखात सिखाते तब तक चुप नहीं बैठे, जब तक उनके हुनर में विश्वा माहिर ना हो गया....
फिर जैल में बहुत कुछ गैर कानूनी होता था... पर धीरे धीरे विश्वा जैल को अपने कब्जे में किया और बहुत से अनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी.... अब आप ही बताइए... सेनापति सर जी लगाव हो गया तो क्या गलत हुआ....
दास की बातेँ खान के सर से ऊपर गुजर गई l खान एक गहरी सांस ले कर कहा - ठीक है दास अब तुम जाओ.....
दास उठ कर सैल्यूट किया और जय हिंद बोल कर निकल गया l दास के जाते ही खान टेबल पर रखे कॉलिंग बेल बजता है,

उधर वैदेही अपनी दुकान को देख रही है, एक खंबा जिस पर खपरैल का भाड़ जो टीका हुआ था वह गिर कर बिखर गया है l
तभी गुनगुनाते हुए शनिआ एक बैल को ले कर आता है दुकान की हालत देख कर कहता है - अर रा अररे, यह क्या हो गया.... बिचारी की खूंटी उखड गई... चु.. चु.. चु... इसलिए बड़े बुजुर्ग कह गए हैं.... दूसरों के फटे में टांग नहीं अडाना चाहिए... नहीं तो खुद की फट जाती है... हा हा हा हा हा
वैदेही - (मुस्कराते हुए) औरत को झेल नहीं पाया चवन्नी छाप तो जानवर से मदत ली तुने... और हेकड़ी सौ रुपये की दिखा रहा है....
शनिआ - कमीनी मेरी औकात की बात कर रही है.... रंग महल की चुसके फेंकी गुठली,... रंडी साली... रुक मैं दिखाता हूँ तुझे औकात...
शनिआ इतना कह कर वैदेही के पास पहुंच जाता है और वैदेही के तरफ हाथ बढ़ाने को होता है कि वैदेही के हाथ में दरांती देख कर रुक जाता है और पीछे हटने लगता है,
वैदेही - क्यूँ बे क्षेत्रपाल के कुकुर के लीद, फट गई तेरी, उतर गई तेरी मर्दानगी का भूत.....
शनिआ - तुझे याद रखूँगा कुत्तीआ, तुझे याद रखूँगा... मेरी मर्दानगी को ललकार रही है... एक दिन इसी चौराहे पर तेरी चुत फाड़ुंगा.... (कहते हुए बिना पीछे देख कर निकल जाता है)
वैदेही - अबे चल... वरना क्षेत्रपाल महल पहुंचने से पहले कहीं तु छक्के की तरह ताली बजाते हुए ना पहुंचे.
...
गौरी - क्या कर रही है वैदेही.... क्षेत्रपाल के लोगों से खुल्लमखुल्ला दुश्मनी ले रही है...
जब कि इन सबसे टकराने वाला कोई मर्द ही नहीं है.....
वैदेही - तुम फ़िकर ना करो काकी.... बस तीन महीने और... फिर यह पूरा का पूरा राजगड़ एक मर्द को देखेगा भी पहचानेगा भी....
गौरी - क्यों सपनों में जी रही है वैदेही.....
वैदेही - काकी सपना नहीं है.. यह सच है...
गौरी - अच्छा... कौन आएगा यहाँ....


कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर जगन दौड़ कर कैबिन के अंदर आता है,
जगन - जी सर....
खान - जगन.... जाओ.. उस विश्व प्रताप महापात्र को बुलाओ.... मुझे उससे कुछ बात करनी है..












Superb update bro
 
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