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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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ANUJ KUMAR

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👉सातवां अपडेट
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अगले दिन....
राजगड़ के एक चौराहे पर एक चाय नाश्ता की दुकान में कुछ लोग चाय की चुस्की भर रहे हैं और कुछ लोग नाश्ता कर रहे हैं l एक मधुर सी आवाज़ गूँजती है उस दुकान में " ॐ श्री भगवते वासु देवाय नमः...
जय जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे"
के तभी अचानक से महल के आसपास बहुत से कौवे उड़ने लगते हैं l उसे देख कर एक लड़की जो दुकान में काम कर रही होती है वह आसमान की तरफ़ देखते हुए कहा - वह देखो वैदेही मासी वह देखो.... अरे.... बाप.... रे... कितना भयानक दिख रहा है... ओह कितने कौवे उड़ रहे हैं क्षेत्रपाल महल के आसपास... वहाँ क्या हुआ होगा वैदेही मासी....
वैदेही - तुझे वहाँ पर देखने को किसने कहा... जा सुबह का तेरा काम हो गया है... सीधे अपने स्कुल जा कर पढ़ाई कर....
वह लड़की - क्या हुआ मासी... मैंने तो बस ऐसे ही पूछा...
वैदेही - देख उस महल के बारे में कोई चर्चा नहीं.... वहाँ शैतानों का बसेरा है... हम जितना दुर रहें उतना अच्छा...
जा अब अपने स्कुल जा (उसे कुछ पैसे देते हुए) और अच्छे से पढ़ाई कर...
वह लड़की - ठीक है मासी... कह कर अपनी स्कुल बैग उठा कर निकल जाती है..
उसी दुकान में काम कर रहे एक बुढ़ी औरत - वैदेही तु हमेशा अपनी कमाई आसपास के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देती है.. तुझे ज़रूरत नहीं होती पैसों की..
वैदेही - मुझे क्या जरूरत है गौरी काकी.. मेरे पास जो ज्यादा है वह इन बच्चों के काम आ रहा है..
गौरी - तेरी जैसी सोच यहाँ किसीकी भी नहीं है... कास के तेरी जैसी सोच सबकी होती.. वैसे आज रंग महल के आसपास कौवे बहुत दिख रहे हैं...
पता नहीं क्या हो रहा है वहाँ....
वैदेही - पता नहीं काकी पर मुझे लगता है किसी के दिन पूरे हुए होंगे... इंसानियत कुचल दी गई होगी... इसलिये कौवे, मातम मना रहे हैं....
इतने में एक लड़का भागते हुए आता है और कहता है - मासी मासी घर पर शनिआ आया है और माँ के साथ बदतमीजी कर रहा है....
यह सुनते ही वैदेही गल्ला खोल कर जितने भी पैसे थे सब निकाले और गौरी से - काकी आप थोड़ा दुकान संभालो मैं अभी आई...
इतना कह कर उस लड़के का हाथ पकड़ कर तेजी से वहाँ से भाग कर उस लड़के के घर पहुंचती है l
वहाँ पहुँच कर देखती है कि एक गुंडा सा आदमी एक औरत का हाथ पकड़ कर खड़ा है और पास ही एक और आदमी शराब के नशे में धुत वहीँ खड़े हिल ड्यूल रहा है l
वैदेही उस गुंडे से - ऐ शनिआ छोड़ दे लक्ष्मी को...
शनिआ - मैंने मुफत में इसके मर्द को जितना दारू पिलाया है..... उसका वसुली करने आया हूँ...
वैदेही - छी... शर्म नहीं आती यह कहते हुए...
शनिआ - तेरी क्यूँ जल रही है क्षेत्रपाल महल की रंडी....
जब इसके मर्द को दर्द नहीं हो रहा है तो..
वैदेही - चुप बे हरामी मादरचोद.... बोल कितने पैसों की दारू पिलाई है....
शनिआ - ओह ओ तो लक्ष्मी के बदले तु लेटेगी मेरे नीचे... यह ले छोड़ दिया लक्ष्मी को... (लक्ष्मी को छोड़ देता है) चल आजा... मेरी सुबह रंगीन बना दे.....
वैदेही - चुप कर बे कुत्ते... मैंने पैसे पूछे हैं..
शनिआ - अच्छा तो... इस कुकुर का पैसा तु लौटाएगी.... ह्म्म्म्म.. चल अभी के अभी तीन हजार निकाल.. चल..
वैदेही पैसे निकाल कर गिनती है,और तीन हजार निकाल कर उसके मुहँ पर फेंकती है l शनिआ वह पैसे उठा लेता है और लक्ष्मी देख कर कहता है - कोई नहीं.. आज नहीं तो फिर कभी सही.. चलता हूँ..
(वैदेही को देखते हुए) तुझे याद रखूँगा रंग महल की रंडी.... तुझे याद रखूँगा...
वैदेही - चल निकल यहाँ से...
शनिआ के जाते ही पहले वैदेही एक जोरदार थप्पड़ मारती ही उस शराबी को l वह शराबी गिर जाता है तो लक्ष्मी भाग कर जाती है उसे और उसे उठा कर नीचे बिठा देती है l

वैदेही - (उस औरत पर चिल्लाते हुए) लक्ष्मी...
लक्ष्मी वैदेही के पास आती है और हाथ जोड़कर नम आँखों से शुक्रिया कहने को होती है कि चटाक... वैदेही लक्ष्मी को भी थप्पड़ मारती है, लक्ष्मी नीचे गिर जाती है तो वह लड़का "माँ" चिल्ला कर लक्ष्मी के पास दौड़ कर जाता है l तभी शराबी उठता है और वैदेही से - साली कुत्तीआ मेरी औरत पर क्यूँ हाथ उठाया...
वैदेही - ओह.... ओ... कितना बड़ा मर्द बन रहा है.... अभी तो शनिआ के आगे दुम हिला रहा था... कुत्ते तेरी मर्दानगी मुझ पर भोंक रहा है...
इसबार वैदेही और जोर से झापड़ लगाती तो वह शराबी गिरता ही नहीं उसका आधे से ज्यादा नशा उतर भी जाता है l
लक्ष्मी - नहीं दीदी मत मारिये इन्हें..
वैदेही - छी.. यह हरीया तुझे बेच चुका था और तु उसकी तरफदारी में मुझे समझा रही है...
हरिया - म.. माफ़ करना दीदी... मैं नशे में.. वह..
वैदेही - तु नशे में क्या किया तुझे मालुम भी है... आज अगर (उस लड़के के सिर पर हाथ फेरते हुए) वरुण सही समय पर मुझे बुलाया नहीं होता तो आज तेरी घर की लक्ष्मी लूट चुकी होती... हरिया तेरी नशे की भेंट चढ़ गई होती तेरे वरुण की माँ...
हरिया - (रोते हुए हाथ जोड़ कर) मैं वह...
वैदेही - बस मुझे कुछ मत समझा... अगर शराब की लत से निकल नहीं पा रहा है... तो जा जहर ला कर लक्ष्मी और वरुण को दे दे... और सुन... अगर फिर शनिआ छोड़ मेरे ऊपर कभी धौंस दिखाया तो तेरी मर्दानगी काट कर उससे तेरे दांत साफ करवाउंगी...
हरिया कुछ कहने को होता है कि वैदेही उसे रोक देती है - सुबह सुरज निकले कितना वक़्त हुआ है कि सुबह सुबह नाश्ता की जगह नशा कर के आया और अपनी घर की लक्ष्मी का सौदा भी कर आया... मुझे कुछ नहीं सुनना... जब नशे में ना हो तब मुझसे बात करना.. जा निकल जा यहां से...
हरिया बिना कुछ कहे नजरें झुका कर बाहर निकल जाता है l
वैदेही - (लक्ष्मी से) तुझे उस हरामी ने हाथ लगाया और तुने उसे छूने भी कैसे दिआ... दरांती निकाल कर सर काट क्यूँ नहीं दी उस शनिआ का..
लक्ष्मी - मैं... उसे देख कर डर गई थी... और उसने उनको जान से मारने की धमकी भी दी थी..
वैदेही - तो मर जाने देती उस करम जले को,.. जो अपने घर की इज़्ज़त को बेचने चला था....
लक्ष्मी - ऐसी बाते न करो दीदी.... आखिर पति हैं मेरे वह..

वैदेही - पति ... आक थू.. ऐसा
मर्द जो बिन पेंदी के लोटे की तरह शराब के नशे में लुढ़कता रहता है... जो अपनी घरवाली व बच्चे की हिफाज़त भी ना कर सके....
छी मैं भी किससे कह रही हूँ....
लक्ष्मी - वह दीदी मैं पैसे लौटा दूंगी...
वैदेही - कोई जरूरत नहीं है लौटाने की... अरे पहले इंसान ही बन जाओ.... जानवरों के राज में जानवर बन गए हो अपने हक़ व इज़्ज़त के लिए लड़ना सीखो.... तब मैं समझूंगी मुझे पैसे मिल गए...
इतना कह कर वैदेही वापस अपने दुकान के पास आती है तो देखती है दुकान का एक हिस्सा उखड़ा हुआ है l
वैदेही - यह... क्या हुआ काकी...
गौरी - वह.... शनिआ एक बैल ले कर आया था और मुझसे पानी मांगा तो मैं जैसे ही हैं पानी लाने मुड़ी तो उसने मौका देख कर बैल की रस्सी इस खंबे पर बांध कर बैल को जोर जोर से मारने लगा..... बैल छटपटाते हुए भाग गया और यह खंबा उखड़ गया.....

वहीं भुवनेश्वर में नंदिनी अपने कमरे से निकलने को होती है कि वहीं शुभ्रा आती है,
शुभ्रा - हाँ तो नंदिनी जी... आज का आपका क्या प्रोग्राम है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म.. रूठे दोस्तों को मनाना है...
शुभ्रा - गुड.... बस सबको सच बता कर दोस्ती करना.... और एक बात कभी कोई उम्मीद मन में पाल मत लेना.... क्यूंकि उम्मीद टूटने पर बहुत दुख होता है... इसलिए सच्चाई जो दे उसे स्वीकार लो...
नंदिनी अपना सर हाँ में हिलाती है और शुभ्रा के गले लग जाती है l
शुभ्रा - अच्छा यह ले....
नंदिनी - यह क्या है भाभी...
शुभ्रा - दही और गुड़ है... अच्छी शगुन के लिए.... जा... तुझे तेरे दोस्त मिल जाएं... मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी...
नंदिनी शुभ्रा को बाय कह कर बाहर निकल जाती है l बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l गाड़ी में बैठे नंदिनी अपने दोनों हाथों के तर्जनी उंगली पर मध्यमा उंगली मोड़ कर आँखे बंद कर कुछ बुदबुदा रही होती है l
ड्राइवर - क्या बात है राज कुमारी जी... आज कोई एक्जाम है क्या... आप इतनी नर्वस हैं...
नंदिनी - हाँ काका एक्जाम तो है पर दोस्ती का...
ड्राइवर - अरे यह आप क्या कर रही हैं राज कुमारी जी... आप मुझे ड्राइवर कहिए या फिर गुरु कहिए पर काका ना कहिए....
युवराज जी को मालुम हुआ तो मेरी खैर नहीं..
नंदिनी - अरे ऐसे कैसे मालुम हो जाएगा... आप मुझे रोज कॉलेज छोड़ने जाते हैं और क्लास खतम होने तक मेरा इंतजार करते हैं फिर मुझे घर ला कर छोड़ते हैं..
आप एक बुजुर्ग पिता की तरह मेरा खयाल रखते हैं...
घर के बाहर एक मेरे बुजुर्ग... जिनके देख रेख में क्षेत्रपाल परिवार इज़्ज़त हो... वह मेरे काका ही तो हो सकते हैं...
गुरु - ध... धन्यबाद राज कुमारी जी... पर माफ़ कीजिएगा... मेरी बुढ़ी कंधे इस रिश्ते का बोझ ना उठा पाएंगे ....
नंदिनी - कोई बात नहीं काका... आप मत निभाना,.. पर रिश्ता मैं निभाउंगी.... और हाँ आपको काका ही बुलाउंगी... और यह मेरा हुकुम है आप मुझे बेटी कहिए....
गुरु - जी.... जी.... बेटी... जी
नंदिनी - अररे.... यह बेटी जी क्या है.... बोलिए बेटी...
गुरु की हालत बहुत खराब हो जाती है एसी कार में भी वह पसीने से भीगने लगता है और बड़ी मुश्किल से कहता है - द्.. देखिए राज कुमारी ज़ी आपने जो सम्मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यबाद... मुझे आप मजबूर मत कीजिए... मुझे बस बेटी जी के हद तक ही रहने दीजिए....
नंदिनी - ठीक है काका मंजूर है...
फिर नंदिनी चुप हो जाती है और सोचने लगती है -अरे यह मैंने कैसे कर लिया... आज मैंने ड्राइवर काका से इतनी सारी बातें की... (मन ही मन हंसने लगती है) हे भगवान इतनी सारी बातें मैंने की... बस मुझे मेरे दोस्तों के साथ भी ऐसे पेश आने की हिम्मत देना.. इतना सोच कर भगवान को याद करते हुए आँखे मूँद लेती है.....

उधर अपने कैबिन में खान कुछ गहरी सोच में डुबा हुआ है, अचानक वह अपनी सोच से बाहर निकलता है l उसने जो कुछ देर पहले सिगरेट सुलगाई थी उसीकी आंच से सोच से बाहर निकला तो उसके मुहँ से अपने आप निकल गया - यह साला विश्वा.... मेरी भी जीना हराम कर रखा है...
अपने टेबल पर पड़े विश्वा का फाइल उठाता है और कवर पलटता है, फ़िर से पढ़ने लगता है
नाम - विश्व प्रताप महापात्र
पिता - स्व. रघुनाथ महापात्र
माता - स्व. सरला महापात्र
उम्र - इक्कीस वर्ष (तब) अब अट्ठाइस वर्ष
गांव - पाइक पड़ा
तालुका - राजगड़
क्षेत्र - यश पुर
अपराध - ठगी, चोरी, लुट, सामुहिक व संगठित लुट / दो हत्याओं का संदेह
रकम - साढ़े सात सौ करोड़
धारा - हत्या का संदेह का लाभ /आईपीसी 420 / आईपीसी 378 व 379 / आईपीसी 392 के तहत चार वर्ष की सज़ा और अगर लूटी हुई रक़म ज़ब्त नहीं हो पा रही है तो तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास

इतना पढ़ने के बाद खान -(मन ही मन) यह सिर्फ फोटो में ही मासूम दिख रहा है.... मगर जुर्म किसी छटे हुए अपराधी की.... इसके साथ सेनापति का किस तरह का जुड़ाव है....

खान टेबल पर लगे कॉलिंग बेल बजता है, बाहर से जगन भाग कर आता है- क्या चाहिए सर जी... चाय... नाश्ता.. कुछ..
खान - हाँ जाओ मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले कर आओ...
जैसे ही जगन मुड़ा खान - अच्छा सुनो.... रुको ज़रा...
जगन रुक जाता है,और खान को देख रहा है l खान उसकी नजरों में खुद को नॉर्मल बनाने की कोशिश करते हुए कहता है - जगन हमारे इस जैल में क्या ऐसा कोई है.... जो मुझे बहुत सी अन-ऑफिसीयल जानकारी भी दे सके...
जगन - जी सर हैं ना.... हमारे दास सर...
खान - ह्म्म्म्म अछा एक काम करो जाओ दास को बुलाओ.... और दो चाय बना कर लाओ....
जगन बाहर चला जाता है, और खान अपनी कुर्सी से उठ कर जैल के नक्शे के सामने खड़ा हो जाता है l

कॉलेज में पहुंच कर नंदिनी सबसे पहले कैन्टीन जाती है l कैन्टीन में उसे देखते ही सब धीरे धीरे खिसक लेते हैं l नंदिनी उन पर ध्यान न दे कर सबको फोन पर कोशिश करती है पर किसीको भी फ़ोन पर नहीं आते देख सबको ह्वाटसप से मैसेज करती है - मैं कैन्टीन में तुम लोगों की इंतजार कर रही हूँ.... जो नहीं आयेगा उसे वीर सिंह क्षेत्रपाल समझ लेगा...
इस मैसेज के तुरंत बाद चार लड़कियाँ तेज़ी से चलते हुए कैन्टीन में पहुंचे l उन्हें देख कर नंदिनी अपनी भोवें सिकुड़ लेती है और चारों को अपने पास पड़े कुर्सी पर बैठने को कहती है l चारों पहले एक दूसरे को देखते हैं फ़िर चुपचाप नंदिनी के पास बैठ जाते हैं l
नंदिनी - यार तुम लोगों का क्या प्रॉब्लम है... मुझसे तुम लोग दुर् क्यूँ भाग रहे हो... (सब चुप रहते हैं) ह्म्म्म्म लगता है तुम सबकी वीर सिंह से क्लास लगवानी पड़ेगी...
बनानी - नहीं नहीं ऐसा मत कहो... तुम जानती हो यहाँ सब क्षेत्रपाल बंधुओं से डरते हैं... और तुम उनकी नजदीक हो... तो जाहिर है कि सब तुमसे भी डरेंगे...
नंदिनी - मैं उनकी नजदीक नहीं हूँ बस खुन के रिश्ते के वजह से उनकी सगी बहन हूँ....
"क्या" सब एक साथ
नंदिनी - और मेरा नाम है रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...
"क्या" फिर एक बार सब एक साथ
नंदिनी - यह बार बार क्या क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.... देखो इस कॉलेज में मेरे भाईयों की इतिहास क्या रहा है... मुझे उससे कोई मतलब नहीं... पर मैं उनके जैसी नहीं हूँ.... मैंने तुम लोगों से सच्चे मन से दोस्ती की है.... अब चाहे तुम मुझसे कोई नाता रखो या ना रखो... तुम्हारे सारे दुख मेरे दुख और तुम्हारे सारे सुख अब मेरे सुख... मेरी पारिवारिक पहचान से अगर तुम लोगों को परेशानी हो रही है तो मैं माफ़ी चाहती हूँ.... पर इसमें मेरा क्या दोष.... वह भाई है मेरा... कॉलेज में मेरी खैरियत बुझने आता है... पर मेरी निजी जिंदगी में उसकी कोई दखल तो है नहीं ना....
खैर मैंने अपनी बात कह दी... और सब सच सच कहा है.... अब मैं अपना हाथ बढ़ा रही हूँ.... अगर मेरी दोस्ती मंजूर हो तो हाथ मिलाओ.... अगर नहीं तो कोई शिकायत भी नहीं... हाँ मुझे दुख जरूर होगा... पर तुम लोगों से कोई गिला नहीं करूंगी...
चारों एक दुसरे को देखते हैं फ़िर भी हिम्मत नहीं हो पाती है l यह देखकर नंदिनी अपना हाथ वापस ले लेती है और उठने होती है कि बनानी उसकी हाथ पकड़ लेती है - सॉरी यार... बस माफ़ करदे... हम सच में डरे हुए थे...
नंदिनी - (खुश होते हुए) मैंने कहा ना तुम निभाओ या ना निभाओ मैं अपनी दोस्ती निभाउंगी... (दोनों हाथों से बनानी का हाथ पकड़ कर) यह वादा है मेरा..
इतना सुनते ही पास खड़े तबस्सुम, अपना हाथ नंदिनी के हाथ पर अपना हाथ रखती है फ़िर भास्वति, फिर इतिश्री सब हाथ मिलाते हैं l नंदिनी खुशी से उछलने लगती है तो वे चारों भी उसके साथ उछलने लग जाते हैं l
"एसक्युज मी प्लीज"
यह सुन कर उन सबका ध्यान उस आवाज़ के तरफ जाती है l एक लड़की हाथों में एक बैग पकड़े हुए उनके पास खड़ी थी l
नंदिनी - येस...
लड़की - हाय, आई आम दीप्ति... कह कर हाथ बढ़ाती है....
नंदिनी - क्या तुम मेरे बारे में जानती हो....
दीप्ति - हाँ अभी अभी तुमने इन सबको बताया.... मैं भी सब सुन रही थी.....
नंदिनी अपना हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लेती है और कहती है - हम पांच थे अब छह हो गए हैं इसलिए अब हम अपने ग्रुप का नाम छटी हुई गैंग रखेंगे....
सब येह येह या..... करते हुए चिल्ला कर उछलते हैं l

वहाँ जैल में खान जैल के नक्शे के सामने खड़ा है तभी दास आता है सैल्यूट दे कर - जय हिंद सर...
खान - जय हिंद दास... रिलाक्स... बैठ जाओ..
दास बैठ जाता है, खान उसके तरफ मुड़ता है कि तभी जगन दो कप चाय ले कर आता है l
खान - उसे टेबल पर रख दो और जाओ यहाँ से.. (उसके जाते ही) दास, तुम्हारा सेनापति के VRS लेने के बारे में क्या खयाल है....
दास - सर उनकी मर्ज़ी...
खान - मुझे ऑफिसीयल नहीं अनऑफिसीयल रीजन चाहिए... और यहाँ तुमसे बेहतर इस विषय पर कोई और रौशनी नहीं डाल सकता है.... इसलिए प्लीज लिभ् बिहाइंड फर्मालिटी... और जो मन में है वही कहो....
दास - सर उनके बेटे के चल बसने के बाद उनका लगाव विश्वा से हो गया था..... इसलिए जब दो महीने बाद विश्वा इस कैद खाने से रिहा हो जाएगा.... तब उनका नौकरी पर आना मुश्किल हो जाएगा... इसलिए वे भी अपनी नौकरी से आजादी चाहते हैं.....
खान - व्हाट रब्बीस..... इसके फाइल देखे हैं मैंने... ब्लडी क्रिमिनल है वह....
दास - हाँ फाइल के हिसाब से तो वही है जो आपने बताया..... पर हक़ीक़त शायद वह ना हो....
खान - व्हाट डु यु मीन....
दास - सार एक बार इसी जैल के अंदर चार वर्ष पहले बहुत ही भयानक दंगा हुआ था.....जिन्होंने यह दंगा कराया था वह प्रोफेशनल आतंकवादी थे... जिनका एक ही लक्ष था सुपरिटेंडेंट सेनापति जी को मारना.... उनको बीच जो भी आए सबको मार देना.... उस दंगे से विश्वा अपनी सूझ बुझ से ना सिर्फ़ पुलिस वालों को बचाया बल्कि पुलिस वालों को सही समय पर आर्मस् व आम्युनेशन उपलब्ध करवा दिया.... जिसके वजह से सारे आतंकवादी मारे गए... और विश्वा का नाम बाहर नहीं आया... बहुत से पुलिस वालों को गैलेंट्री अवार्ड मिला... और प्रमोशन भी... जबकि सम्मान का असली हक़दार विश्वा था....
यह बात सुन कर खान हैरान रह गया l फाइल पलट कर विश्वा के फोटो को देख कर सोचने लगा क्या वाकई इसने ऐसा किया होगा l शायद दास खान की मन की बात पढ़ लिया,
दास - सर जब विश्वा इस जैल में आया था वह बहुत ही डरा हुआ मासूम था..... पर जैसा कि यह सेंट्रल जैल है.... किसी मासूम व नौसिखिए कैदी के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तरह ही है... यहाँ पर बहुत से बड़े बड़े नाम व काम वाले छटे हुए मुज़रिम आते हैं जो खुदको जुर्म की दुनिया के माहिर प्रोफेसर मानते हैं... ऐसे मुज़रिमों के बीच मासूमियत कब तक टिक सकता था सर.... सारे प्रोफेसर मिलकर, मार, पीट कर.... डरा कर धमका कर.... विश्वा को अपने अपने फन में, अपने अपने हुनर में ढालते गए.... विश्वा सीखते सीखते थक जाता था... पर वह इरादों के पक्के प्रोफेसर थे... सीखात सिखाते तब तक चुप नहीं बैठे, जब तक उनके हुनर में विश्वा माहिर ना हो गया....
फिर जैल में बहुत कुछ गैर कानूनी होता था... पर धीरे धीरे विश्वा जैल को अपने कब्जे में किया और बहुत से अनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी.... अब आप ही बताइए... सेनापति सर जी लगाव हो गया तो क्या गलत हुआ....
दास की बातेँ खान के सर से ऊपर गुजर गई l खान एक गहरी सांस ले कर कहा - ठीक है दास अब तुम जाओ.....
दास उठ कर सैल्यूट किया और जय हिंद बोल कर निकल गया l दास के जाते ही खान टेबल पर रखे कॉलिंग बेल बजता है,

उधर वैदेही अपनी दुकान को देख रही है, एक खंबा जिस पर खपरैल का भाड़ जो टीका हुआ था वह गिर कर बिखर गया है l
तभी गुनगुनाते हुए शनिआ एक बैल को ले कर आता है दुकान की हालत देख कर कहता है - अर रा अररे, यह क्या हो गया.... बिचारी की खूंटी उखड गई... चु.. चु.. चु... इसलिए बड़े बुजुर्ग कह गए हैं.... दूसरों के फटे में टांग नहीं अडाना चाहिए... नहीं तो खुद की फट जाती है... हा हा हा हा हा
वैदेही - (मुस्कराते हुए) औरत को झेल नहीं पाया चवन्नी छाप तो जानवर से मदत ली तुने... और हेकड़ी सौ रुपये की दिखा रहा है....
शनिआ - कमीनी मेरी औकात की बात कर रही है.... रंग महल की चुसके फेंकी गुठली,... रंडी साली... रुक मैं दिखाता हूँ तुझे औकात...
शनिआ इतना कह कर वैदेही के पास पहुंच जाता है और वैदेही के तरफ हाथ बढ़ाने को होता है कि वैदेही के हाथ में दरांती देख कर रुक जाता है और पीछे हटने लगता है,
वैदेही - क्यूँ बे क्षेत्रपाल के कुकुर के लीद, फट गई तेरी, उतर गई तेरी मर्दानगी का भूत.....
शनिआ - तुझे याद रखूँगा कुत्तीआ, तुझे याद रखूँगा... मेरी मर्दानगी को ललकार रही है... एक दिन इसी चौराहे पर तेरी चुत फाड़ुंगा.... (कहते हुए बिना पीछे देख कर निकल जाता है)
वैदेही - अबे चल... वरना क्षेत्रपाल महल पहुंचने से पहले कहीं तु छक्के की तरह ताली बजाते हुए ना पहुंचे.
...
गौरी - क्या कर रही है वैदेही.... क्षेत्रपाल के लोगों से खुल्लमखुल्ला दुश्मनी ले रही है...
जब कि इन सबसे टकराने वाला कोई मर्द ही नहीं है.....
वैदेही - तुम फ़िकर ना करो काकी.... बस तीन महीने और... फिर यह पूरा का पूरा राजगड़ एक मर्द को देखेगा भी पहचानेगा भी....
गौरी - क्यों सपनों में जी रही है वैदेही.....
वैदेही - काकी सपना नहीं है.. यह सच है...
गौरी - अच्छा... कौन आएगा यहाँ....


कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर जगन दौड़ कर कैबिन के अंदर आता है,
जगन - जी सर....
खान - जगन.... जाओ.. उस विश्व प्रताप महापात्र को बुलाओ.... मुझे उससे कुछ बात करनी है..












Fantastic update
 

Harman11

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अरे बंधु पिछला अपडेट कल ही तो पोस्ट किया था
आज शाम तक इक्कीसवां अपडेट देने की कोशिश कर रहा हूँ
Are kaya kare sir ap ki story hahi Entni achhi
 

ANUJ KUMAR

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अगले दिन....
राजगड़ के एक चौराहे पर एक चाय नाश्ता की दुकान में कुछ लोग चाय की चुस्की भर रहे हैं और कुछ लोग नाश्ता कर रहे हैं l एक मधुर सी आवाज़ गूँजती है उस दुकान में " ॐ श्री भगवते वासु देवाय नमः...
जय जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे"
के तभी अचानक से महल के आसपास बहुत से कौवे उड़ने लगते हैं l उसे देख कर एक लड़की जो दुकान में काम कर रही होती है वह आसमान की तरफ़ देखते हुए कहा - वह देखो वैदेही मासी वह देखो.... अरे.... बाप.... रे... कितना भयानक दिख रहा है... ओह कितने कौवे उड़ रहे हैं क्षेत्रपाल महल के आसपास... वहाँ क्या हुआ होगा वैदेही मासी....
वैदेही - तुझे वहाँ पर देखने को किसने कहा... जा सुबह का तेरा काम हो गया है... सीधे अपने स्कुल जा कर पढ़ाई कर....
वह लड़की - क्या हुआ मासी... मैंने तो बस ऐसे ही पूछा...
वैदेही - देख उस महल के बारे में कोई चर्चा नहीं.... वहाँ शैतानों का बसेरा है... हम जितना दुर रहें उतना अच्छा...
जा अब अपने स्कुल जा (उसे कुछ पैसे देते हुए) और अच्छे से पढ़ाई कर...
वह लड़की - ठीक है मासी... कह कर अपनी स्कुल बैग उठा कर निकल जाती है..
उसी दुकान में काम कर रहे एक बुढ़ी औरत - वैदेही तु हमेशा अपनी कमाई आसपास के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर देती है.. तुझे ज़रूरत नहीं होती पैसों की..
वैदेही - मुझे क्या जरूरत है गौरी काकी.. मेरे पास जो ज्यादा है वह इन बच्चों के काम आ रहा है..
गौरी - तेरी जैसी सोच यहाँ किसीकी भी नहीं है... कास के तेरी जैसी सोच सबकी होती.. वैसे आज रंग महल के आसपास कौवे बहुत दिख रहे हैं...
पता नहीं क्या हो रहा है वहाँ....
वैदेही - पता नहीं काकी पर मुझे लगता है किसी के दिन पूरे हुए होंगे... इंसानियत कुचल दी गई होगी... इसलिये कौवे, मातम मना रहे हैं....
इतने में एक लड़का भागते हुए आता है और कहता है - मासी मासी घर पर शनिआ आया है और माँ के साथ बदतमीजी कर रहा है....
यह सुनते ही वैदेही गल्ला खोल कर जितने भी पैसे थे सब निकाले और गौरी से - काकी आप थोड़ा दुकान संभालो मैं अभी आई...
इतना कह कर उस लड़के का हाथ पकड़ कर तेजी से वहाँ से भाग कर उस लड़के के घर पहुंचती है l
वहाँ पहुँच कर देखती है कि एक गुंडा सा आदमी एक औरत का हाथ पकड़ कर खड़ा है और पास ही एक और आदमी शराब के नशे में धुत वहीँ खड़े हिल ड्यूल रहा है l
वैदेही उस गुंडे से - ऐ शनिआ छोड़ दे लक्ष्मी को...
शनिआ - मैंने मुफत में इसके मर्द को जितना दारू पिलाया है..... उसका वसुली करने आया हूँ...
वैदेही - छी... शर्म नहीं आती यह कहते हुए...
शनिआ - तेरी क्यूँ जल रही है क्षेत्रपाल महल की रंडी....
जब इसके मर्द को दर्द नहीं हो रहा है तो..
वैदेही - चुप बे हरामी मादरचोद.... बोल कितने पैसों की दारू पिलाई है....
शनिआ - ओह ओ तो लक्ष्मी के बदले तु लेटेगी मेरे नीचे... यह ले छोड़ दिया लक्ष्मी को... (लक्ष्मी को छोड़ देता है) चल आजा... मेरी सुबह रंगीन बना दे.....
वैदेही - चुप कर बे कुत्ते... मैंने पैसे पूछे हैं..
शनिआ - अच्छा तो... इस कुकुर का पैसा तु लौटाएगी.... ह्म्म्म्म.. चल अभी के अभी तीन हजार निकाल.. चल..
वैदेही पैसे निकाल कर गिनती है,और तीन हजार निकाल कर उसके मुहँ पर फेंकती है l शनिआ वह पैसे उठा लेता है और लक्ष्मी देख कर कहता है - कोई नहीं.. आज नहीं तो फिर कभी सही.. चलता हूँ..
(वैदेही को देखते हुए) तुझे याद रखूँगा रंग महल की रंडी.... तुझे याद रखूँगा...
वैदेही - चल निकल यहाँ से...
शनिआ के जाते ही पहले वैदेही एक जोरदार थप्पड़ मारती ही उस शराबी को l वह शराबी गिर जाता है तो लक्ष्मी भाग कर जाती है उसे और उसे उठा कर नीचे बिठा देती है l

वैदेही - (उस औरत पर चिल्लाते हुए) लक्ष्मी...
लक्ष्मी वैदेही के पास आती है और हाथ जोड़कर नम आँखों से शुक्रिया कहने को होती है कि चटाक... वैदेही लक्ष्मी को भी थप्पड़ मारती है, लक्ष्मी नीचे गिर जाती है तो वह लड़का "माँ" चिल्ला कर लक्ष्मी के पास दौड़ कर जाता है l तभी शराबी उठता है और वैदेही से - साली कुत्तीआ मेरी औरत पर क्यूँ हाथ उठाया...
वैदेही - ओह.... ओ... कितना बड़ा मर्द बन रहा है.... अभी तो शनिआ के आगे दुम हिला रहा था... कुत्ते तेरी मर्दानगी मुझ पर भोंक रहा है...
इसबार वैदेही और जोर से झापड़ लगाती तो वह शराबी गिरता ही नहीं उसका आधे से ज्यादा नशा उतर भी जाता है l
लक्ष्मी - नहीं दीदी मत मारिये इन्हें..
वैदेही - छी.. यह हरीया तुझे बेच चुका था और तु उसकी तरफदारी में मुझे समझा रही है...
हरिया - म.. माफ़ करना दीदी... मैं नशे में.. वह..
वैदेही - तु नशे में क्या किया तुझे मालुम भी है... आज अगर (उस लड़के के सिर पर हाथ फेरते हुए) वरुण सही समय पर मुझे बुलाया नहीं होता तो आज तेरी घर की लक्ष्मी लूट चुकी होती... हरिया तेरी नशे की भेंट चढ़ गई होती तेरे वरुण की माँ...
हरिया - (रोते हुए हाथ जोड़ कर) मैं वह...
वैदेही - बस मुझे कुछ मत समझा... अगर शराब की लत से निकल नहीं पा रहा है... तो जा जहर ला कर लक्ष्मी और वरुण को दे दे... और सुन... अगर फिर शनिआ छोड़ मेरे ऊपर कभी धौंस दिखाया तो तेरी मर्दानगी काट कर उससे तेरे दांत साफ करवाउंगी...
हरिया कुछ कहने को होता है कि वैदेही उसे रोक देती है - सुबह सुरज निकले कितना वक़्त हुआ है कि सुबह सुबह नाश्ता की जगह नशा कर के आया और अपनी घर की लक्ष्मी का सौदा भी कर आया... मुझे कुछ नहीं सुनना... जब नशे में ना हो तब मुझसे बात करना.. जा निकल जा यहां से...
हरिया बिना कुछ कहे नजरें झुका कर बाहर निकल जाता है l
वैदेही - (लक्ष्मी से) तुझे उस हरामी ने हाथ लगाया और तुने उसे छूने भी कैसे दिआ... दरांती निकाल कर सर काट क्यूँ नहीं दी उस शनिआ का..
लक्ष्मी - मैं... उसे देख कर डर गई थी... और उसने उनको जान से मारने की धमकी भी दी थी..
वैदेही - तो मर जाने देती उस करम जले को,.. जो अपने घर की इज़्ज़त को बेचने चला था....
लक्ष्मी - ऐसी बाते न करो दीदी.... आखिर पति हैं मेरे वह..

वैदेही - पति ... आक थू.. ऐसा
मर्द जो बिन पेंदी के लोटे की तरह शराब के नशे में लुढ़कता रहता है... जो अपनी घरवाली व बच्चे की हिफाज़त भी ना कर सके....
छी मैं भी किससे कह रही हूँ....
लक्ष्मी - वह दीदी मैं पैसे लौटा दूंगी...
वैदेही - कोई जरूरत नहीं है लौटाने की... अरे पहले इंसान ही बन जाओ.... जानवरों के राज में जानवर बन गए हो अपने हक़ व इज़्ज़त के लिए लड़ना सीखो.... तब मैं समझूंगी मुझे पैसे मिल गए...
इतना कह कर वैदेही वापस अपने दुकान के पास आती है तो देखती है दुकान का एक हिस्सा उखड़ा हुआ है l
वैदेही - यह... क्या हुआ काकी...
गौरी - वह.... शनिआ एक बैल ले कर आया था और मुझसे पानी मांगा तो मैं जैसे ही हैं पानी लाने मुड़ी तो उसने मौका देख कर बैल की रस्सी इस खंबे पर बांध कर बैल को जोर जोर से मारने लगा..... बैल छटपटाते हुए भाग गया और यह खंबा उखड़ गया.....

वहीं भुवनेश्वर में नंदिनी अपने कमरे से निकलने को होती है कि वहीं शुभ्रा आती है,
शुभ्रा - हाँ तो नंदिनी जी... आज का आपका क्या प्रोग्राम है...
नंदिनी - ह्म्म्म्म.. रूठे दोस्तों को मनाना है...
शुभ्रा - गुड.... बस सबको सच बता कर दोस्ती करना.... और एक बात कभी कोई उम्मीद मन में पाल मत लेना.... क्यूंकि उम्मीद टूटने पर बहुत दुख होता है... इसलिए सच्चाई जो दे उसे स्वीकार लो...
नंदिनी अपना सर हाँ में हिलाती है और शुभ्रा के गले लग जाती है l
शुभ्रा - अच्छा यह ले....
नंदिनी - यह क्या है भाभी...
शुभ्रा - दही और गुड़ है... अच्छी शगुन के लिए.... जा... तुझे तेरे दोस्त मिल जाएं... मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी...
नंदिनी शुभ्रा को बाय कह कर बाहर निकल जाती है l बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है l गाड़ी में बैठे नंदिनी अपने दोनों हाथों के तर्जनी उंगली पर मध्यमा उंगली मोड़ कर आँखे बंद कर कुछ बुदबुदा रही होती है l
ड्राइवर - क्या बात है राज कुमारी जी... आज कोई एक्जाम है क्या... आप इतनी नर्वस हैं...
नंदिनी - हाँ काका एक्जाम तो है पर दोस्ती का...
ड्राइवर - अरे यह आप क्या कर रही हैं राज कुमारी जी... आप मुझे ड्राइवर कहिए या फिर गुरु कहिए पर काका ना कहिए....
युवराज जी को मालुम हुआ तो मेरी खैर नहीं..
नंदिनी - अरे ऐसे कैसे मालुम हो जाएगा... आप मुझे रोज कॉलेज छोड़ने जाते हैं और क्लास खतम होने तक मेरा इंतजार करते हैं फिर मुझे घर ला कर छोड़ते हैं..
आप एक बुजुर्ग पिता की तरह मेरा खयाल रखते हैं...
घर के बाहर एक मेरे बुजुर्ग... जिनके देख रेख में क्षेत्रपाल परिवार इज़्ज़त हो... वह मेरे काका ही तो हो सकते हैं...
गुरु - ध... धन्यबाद राज कुमारी जी... पर माफ़ कीजिएगा... मेरी बुढ़ी कंधे इस रिश्ते का बोझ ना उठा पाएंगे ....
नंदिनी - कोई बात नहीं काका... आप मत निभाना,.. पर रिश्ता मैं निभाउंगी.... और हाँ आपको काका ही बुलाउंगी... और यह मेरा हुकुम है आप मुझे बेटी कहिए....
गुरु - जी.... जी.... बेटी... जी
नंदिनी - अररे.... यह बेटी जी क्या है.... बोलिए बेटी...
गुरु की हालत बहुत खराब हो जाती है एसी कार में भी वह पसीने से भीगने लगता है और बड़ी मुश्किल से कहता है - द्.. देखिए राज कुमारी ज़ी आपने जो सम्मान दिया उसके लिए बहुत बहुत धन्यबाद... मुझे आप मजबूर मत कीजिए... मुझे बस बेटी जी के हद तक ही रहने दीजिए....
नंदिनी - ठीक है काका मंजूर है...
फिर नंदिनी चुप हो जाती है और सोचने लगती है -अरे यह मैंने कैसे कर लिया... आज मैंने ड्राइवर काका से इतनी सारी बातें की... (मन ही मन हंसने लगती है) हे भगवान इतनी सारी बातें मैंने की... बस मुझे मेरे दोस्तों के साथ भी ऐसे पेश आने की हिम्मत देना.. इतना सोच कर भगवान को याद करते हुए आँखे मूँद लेती है.....

उधर अपने कैबिन में खान कुछ गहरी सोच में डुबा हुआ है, अचानक वह अपनी सोच से बाहर निकलता है l उसने जो कुछ देर पहले सिगरेट सुलगाई थी उसीकी आंच से सोच से बाहर निकला तो उसके मुहँ से अपने आप निकल गया - यह साला विश्वा.... मेरी भी जीना हराम कर रखा है...
अपने टेबल पर पड़े विश्वा का फाइल उठाता है और कवर पलटता है, फ़िर से पढ़ने लगता है
नाम - विश्व प्रताप महापात्र
पिता - स्व. रघुनाथ महापात्र
माता - स्व. सरला महापात्र
उम्र - इक्कीस वर्ष (तब) अब अट्ठाइस वर्ष
गांव - पाइक पड़ा
तालुका - राजगड़
क्षेत्र - यश पुर
अपराध - ठगी, चोरी, लुट, सामुहिक व संगठित लुट / दो हत्याओं का संदेह
रकम - साढ़े सात सौ करोड़
धारा - हत्या का संदेह का लाभ /आईपीसी 420 / आईपीसी 378 व 379 / आईपीसी 392 के तहत चार वर्ष की सज़ा और अगर लूटी हुई रक़म ज़ब्त नहीं हो पा रही है तो तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास

इतना पढ़ने के बाद खान -(मन ही मन) यह सिर्फ फोटो में ही मासूम दिख रहा है.... मगर जुर्म किसी छटे हुए अपराधी की.... इसके साथ सेनापति का किस तरह का जुड़ाव है....

खान टेबल पर लगे कॉलिंग बेल बजता है, बाहर से जगन भाग कर आता है- क्या चाहिए सर जी... चाय... नाश्ता.. कुछ..
खान - हाँ जाओ मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले कर आओ...
जैसे ही जगन मुड़ा खान - अच्छा सुनो.... रुको ज़रा...
जगन रुक जाता है,और खान को देख रहा है l खान उसकी नजरों में खुद को नॉर्मल बनाने की कोशिश करते हुए कहता है - जगन हमारे इस जैल में क्या ऐसा कोई है.... जो मुझे बहुत सी अन-ऑफिसीयल जानकारी भी दे सके...
जगन - जी सर हैं ना.... हमारे दास सर...
खान - ह्म्म्म्म अछा एक काम करो जाओ दास को बुलाओ.... और दो चाय बना कर लाओ....
जगन बाहर चला जाता है, और खान अपनी कुर्सी से उठ कर जैल के नक्शे के सामने खड़ा हो जाता है l

कॉलेज में पहुंच कर नंदिनी सबसे पहले कैन्टीन जाती है l कैन्टीन में उसे देखते ही सब धीरे धीरे खिसक लेते हैं l नंदिनी उन पर ध्यान न दे कर सबको फोन पर कोशिश करती है पर किसीको भी फ़ोन पर नहीं आते देख सबको ह्वाटसप से मैसेज करती है - मैं कैन्टीन में तुम लोगों की इंतजार कर रही हूँ.... जो नहीं आयेगा उसे वीर सिंह क्षेत्रपाल समझ लेगा...
इस मैसेज के तुरंत बाद चार लड़कियाँ तेज़ी से चलते हुए कैन्टीन में पहुंचे l उन्हें देख कर नंदिनी अपनी भोवें सिकुड़ लेती है और चारों को अपने पास पड़े कुर्सी पर बैठने को कहती है l चारों पहले एक दूसरे को देखते हैं फ़िर चुपचाप नंदिनी के पास बैठ जाते हैं l
नंदिनी - यार तुम लोगों का क्या प्रॉब्लम है... मुझसे तुम लोग दुर् क्यूँ भाग रहे हो... (सब चुप रहते हैं) ह्म्म्म्म लगता है तुम सबकी वीर सिंह से क्लास लगवानी पड़ेगी...
बनानी - नहीं नहीं ऐसा मत कहो... तुम जानती हो यहाँ सब क्षेत्रपाल बंधुओं से डरते हैं... और तुम उनकी नजदीक हो... तो जाहिर है कि सब तुमसे भी डरेंगे...
नंदिनी - मैं उनकी नजदीक नहीं हूँ बस खुन के रिश्ते के वजह से उनकी सगी बहन हूँ....
"क्या" सब एक साथ
नंदिनी - और मेरा नाम है रूप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल...
"क्या" फिर एक बार सब एक साथ
नंदिनी - यह बार बार क्या क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.... देखो इस कॉलेज में मेरे भाईयों की इतिहास क्या रहा है... मुझे उससे कोई मतलब नहीं... पर मैं उनके जैसी नहीं हूँ.... मैंने तुम लोगों से सच्चे मन से दोस्ती की है.... अब चाहे तुम मुझसे कोई नाता रखो या ना रखो... तुम्हारे सारे दुख मेरे दुख और तुम्हारे सारे सुख अब मेरे सुख... मेरी पारिवारिक पहचान से अगर तुम लोगों को परेशानी हो रही है तो मैं माफ़ी चाहती हूँ.... पर इसमें मेरा क्या दोष.... वह भाई है मेरा... कॉलेज में मेरी खैरियत बुझने आता है... पर मेरी निजी जिंदगी में उसकी कोई दखल तो है नहीं ना....
खैर मैंने अपनी बात कह दी... और सब सच सच कहा है.... अब मैं अपना हाथ बढ़ा रही हूँ.... अगर मेरी दोस्ती मंजूर हो तो हाथ मिलाओ.... अगर नहीं तो कोई शिकायत भी नहीं... हाँ मुझे दुख जरूर होगा... पर तुम लोगों से कोई गिला नहीं करूंगी...
चारों एक दुसरे को देखते हैं फ़िर भी हिम्मत नहीं हो पाती है l यह देखकर नंदिनी अपना हाथ वापस ले लेती है और उठने होती है कि बनानी उसकी हाथ पकड़ लेती है - सॉरी यार... बस माफ़ करदे... हम सच में डरे हुए थे...
नंदिनी - (खुश होते हुए) मैंने कहा ना तुम निभाओ या ना निभाओ मैं अपनी दोस्ती निभाउंगी... (दोनों हाथों से बनानी का हाथ पकड़ कर) यह वादा है मेरा..
इतना सुनते ही पास खड़े तबस्सुम, अपना हाथ नंदिनी के हाथ पर अपना हाथ रखती है फ़िर भास्वति, फिर इतिश्री सब हाथ मिलाते हैं l नंदिनी खुशी से उछलने लगती है तो वे चारों भी उसके साथ उछलने लग जाते हैं l
"एसक्युज मी प्लीज"
यह सुन कर उन सबका ध्यान उस आवाज़ के तरफ जाती है l एक लड़की हाथों में एक बैग पकड़े हुए उनके पास खड़ी थी l
नंदिनी - येस...
लड़की - हाय, आई आम दीप्ति... कह कर हाथ बढ़ाती है....
नंदिनी - क्या तुम मेरे बारे में जानती हो....
दीप्ति - हाँ अभी अभी तुमने इन सबको बताया.... मैं भी सब सुन रही थी.....
नंदिनी अपना हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लेती है और कहती है - हम पांच थे अब छह हो गए हैं इसलिए अब हम अपने ग्रुप का नाम छटी हुई गैंग रखेंगे....
सब येह येह या..... करते हुए चिल्ला कर उछलते हैं l

वहाँ जैल में खान जैल के नक्शे के सामने खड़ा है तभी दास आता है सैल्यूट दे कर - जय हिंद सर...
खान - जय हिंद दास... रिलाक्स... बैठ जाओ..
दास बैठ जाता है, खान उसके तरफ मुड़ता है कि तभी जगन दो कप चाय ले कर आता है l
खान - उसे टेबल पर रख दो और जाओ यहाँ से.. (उसके जाते ही) दास, तुम्हारा सेनापति के VRS लेने के बारे में क्या खयाल है....
दास - सर उनकी मर्ज़ी...
खान - मुझे ऑफिसीयल नहीं अनऑफिसीयल रीजन चाहिए... और यहाँ तुमसे बेहतर इस विषय पर कोई और रौशनी नहीं डाल सकता है.... इसलिए प्लीज लिभ् बिहाइंड फर्मालिटी... और जो मन में है वही कहो....
दास - सर उनके बेटे के चल बसने के बाद उनका लगाव विश्वा से हो गया था..... इसलिए जब दो महीने बाद विश्वा इस कैद खाने से रिहा हो जाएगा.... तब उनका नौकरी पर आना मुश्किल हो जाएगा... इसलिए वे भी अपनी नौकरी से आजादी चाहते हैं.....
खान - व्हाट रब्बीस..... इसके फाइल देखे हैं मैंने... ब्लडी क्रिमिनल है वह....
दास - हाँ फाइल के हिसाब से तो वही है जो आपने बताया..... पर हक़ीक़त शायद वह ना हो....
खान - व्हाट डु यु मीन....
दास - सार एक बार इसी जैल के अंदर चार वर्ष पहले बहुत ही भयानक दंगा हुआ था.....जिन्होंने यह दंगा कराया था वह प्रोफेशनल आतंकवादी थे... जिनका एक ही लक्ष था सुपरिटेंडेंट सेनापति जी को मारना.... उनको बीच जो भी आए सबको मार देना.... उस दंगे से विश्वा अपनी सूझ बुझ से ना सिर्फ़ पुलिस वालों को बचाया बल्कि पुलिस वालों को सही समय पर आर्मस् व आम्युनेशन उपलब्ध करवा दिया.... जिसके वजह से सारे आतंकवादी मारे गए... और विश्वा का नाम बाहर नहीं आया... बहुत से पुलिस वालों को गैलेंट्री अवार्ड मिला... और प्रमोशन भी... जबकि सम्मान का असली हक़दार विश्वा था....
यह बात सुन कर खान हैरान रह गया l फाइल पलट कर विश्वा के फोटो को देख कर सोचने लगा क्या वाकई इसने ऐसा किया होगा l शायद दास खान की मन की बात पढ़ लिया,
दास - सर जब विश्वा इस जैल में आया था वह बहुत ही डरा हुआ मासूम था..... पर जैसा कि यह सेंट्रल जैल है.... किसी मासूम व नौसिखिए कैदी के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तरह ही है... यहाँ पर बहुत से बड़े बड़े नाम व काम वाले छटे हुए मुज़रिम आते हैं जो खुदको जुर्म की दुनिया के माहिर प्रोफेसर मानते हैं... ऐसे मुज़रिमों के बीच मासूमियत कब तक टिक सकता था सर.... सारे प्रोफेसर मिलकर, मार, पीट कर.... डरा कर धमका कर.... विश्वा को अपने अपने फन में, अपने अपने हुनर में ढालते गए.... विश्वा सीखते सीखते थक जाता था... पर वह इरादों के पक्के प्रोफेसर थे... सीखात सिखाते तब तक चुप नहीं बैठे, जब तक उनके हुनर में विश्वा माहिर ना हो गया....
फिर जैल में बहुत कुछ गैर कानूनी होता था... पर धीरे धीरे विश्वा जैल को अपने कब्जे में किया और बहुत से अनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी.... अब आप ही बताइए... सेनापति सर जी लगाव हो गया तो क्या गलत हुआ....
दास की बातेँ खान के सर से ऊपर गुजर गई l खान एक गहरी सांस ले कर कहा - ठीक है दास अब तुम जाओ.....
दास उठ कर सैल्यूट किया और जय हिंद बोल कर निकल गया l दास के जाते ही खान टेबल पर रखे कॉलिंग बेल बजता है,

उधर वैदेही अपनी दुकान को देख रही है, एक खंबा जिस पर खपरैल का भाड़ जो टीका हुआ था वह गिर कर बिखर गया है l
तभी गुनगुनाते हुए शनिआ एक बैल को ले कर आता है दुकान की हालत देख कर कहता है - अर रा अररे, यह क्या हो गया.... बिचारी की खूंटी उखड गई... चु.. चु.. चु... इसलिए बड़े बुजुर्ग कह गए हैं.... दूसरों के फटे में टांग नहीं अडाना चाहिए... नहीं तो खुद की फट जाती है... हा हा हा हा हा
वैदेही - (मुस्कराते हुए) औरत को झेल नहीं पाया चवन्नी छाप तो जानवर से मदत ली तुने... और हेकड़ी सौ रुपये की दिखा रहा है....
शनिआ - कमीनी मेरी औकात की बात कर रही है.... रंग महल की चुसके फेंकी गुठली,... रंडी साली... रुक मैं दिखाता हूँ तुझे औकात...
शनिआ इतना कह कर वैदेही के पास पहुंच जाता है और वैदेही के तरफ हाथ बढ़ाने को होता है कि वैदेही के हाथ में दरांती देख कर रुक जाता है और पीछे हटने लगता है,
वैदेही - क्यूँ बे क्षेत्रपाल के कुकुर के लीद, फट गई तेरी, उतर गई तेरी मर्दानगी का भूत.....
शनिआ - तुझे याद रखूँगा कुत्तीआ, तुझे याद रखूँगा... मेरी मर्दानगी को ललकार रही है... एक दिन इसी चौराहे पर तेरी चुत फाड़ुंगा.... (कहते हुए बिना पीछे देख कर निकल जाता है)
वैदेही - अबे चल... वरना क्षेत्रपाल महल पहुंचने से पहले कहीं तु छक्के की तरह ताली बजाते हुए ना पहुंचे.
...
गौरी - क्या कर रही है वैदेही.... क्षेत्रपाल के लोगों से खुल्लमखुल्ला दुश्मनी ले रही है...
जब कि इन सबसे टकराने वाला कोई मर्द ही नहीं है.....
वैदेही - तुम फ़िकर ना करो काकी.... बस तीन महीने और... फिर यह पूरा का पूरा राजगड़ एक मर्द को देखेगा भी पहचानेगा भी....
गौरी - क्यों सपनों में जी रही है वैदेही.....
वैदेही - काकी सपना नहीं है.. यह सच है...
गौरी - अच्छा... कौन आएगा यहाँ....


कॉलिंग बेल की आवाज़ सुन कर जगन दौड़ कर कैबिन के अंदर आता है,
जगन - जी सर....
खान - जगन.... जाओ.. उस विश्व प्रताप महापात्र को बुलाओ.... मुझे उससे कुछ बात करनी है..












Fantastic update
👉 आठवां अपडेट
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अपने चैम्बर में बैठे खान अपने टाई को थोड़ा ढीला करता है, और रुमाल से अपना चेहरा पोंछता है, फ़िर अचानक - ओ ह्... व्हाट आइ आम डुइंग.... एक मुज़रिम ही तो आ रहा है..... कौन सा VIP आ रहा है... यह... यह मुझे क्या.... हो गया है.... म.. मैं इतना नर्वस क्यूँ फिल कर रहा हूँ.... या.... आ.. आ.. क्या मैं डर रहा हूँ...
ओह... शीट...(टेबल पर एक घूंसा मारता है, फिर अपने दोनों मुट्ठीयों को भिंच कर टेबल पर रगड़ने लगता है )

इतने में एक आवाज़ उसे सुनाई देती है - क्या मैं अंदर आ सकता हूँ....
खान दरवाज़े पर खड़े विश्वा को देखता है और देखता ही रह जाता है l

सुंदर, सौम्य, शांत व सुदर्शन पर भाव हीन चेहरा लिए एक नौजवान उसके सामने खड़ा था, खान अपने आपको संभाला और कहा
खान - आओ विश्व प्रताप... आओ.. बैठो..
विश्वा - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं... सर... आप इस कारागृह के सरकारी अधिकारी हैं... और मैं एक सजायाफ्ता अपराधी.. हाँ अगर साधारण नागरिक होता तो ज़रूर बैठता... माफ लीजिए
मैं नहीं बैठ सकता...
खान - अरे नहीं... देखो बेशक यह केंद्रीय कारागृह है.... पर मैं अभी तुम्हें सरकारी काम से ही बुलाया है.. और क्यूँकी तुम अब यहाँ कुछ ही दिनों में रिहा हो कर जाने वाले हो... तो मुझे तुम पर एक रिपोर्ट बना कर हेड ऑफिस व गृहमंत्रालय को भेजना पड़ेगा... यह प्रोसिजर और प्रोटोकोल भी है ... इसलिए बैठ जाओ...
विश्वा आगे बढ़ता है और एक कुर्सी खिंच कर खान के सामने बैठ जाता है l
खान - सो.. विश्वा... उर्फ़ श्री विश्व प्रताप महापात्र
मेरे लिए यह रिपोर्ट बनाना जितना महत्वपूर्ण है उससे भी ज्यादा तुम्हारे बारे में जानने के लिए मेरी उत्सुकता भी है.......
अगर... बुरा ना मानों तो कुछ पुछ सकता हूँ...
विश्वा - जी...
खान - विश्वा... मुझे पुलिस में नौकरी करते हुए पच्चीस साल से अधिक हो चुका है.... और मेरा कई तरह के लोगों से सामना हुआ है... तुम कुछ अलग हो... शायद बहुत... तुमने जैल में रहकर अपना ग्रेजुएशन किया और लॉ भी...
विश्वा- नहीं मैं जैल में आने से पहले करेस्पंडींग डिस्टेंसिंग एजुकेशन में ग्रेजुएशन शुरु कर चुका था.... यहाँ पर रह कर पुरा किया....
खान - ओह अच्छा... पर तुमने लॉ तो यहाँ रहते शुरू भी किया और पुरा भी किया...
विश्वा - जी.....
खान - वैसे रिहा होने के बाद.... मेरा मतलब है कि तुम दुसरे स्किल में भी माहिर हो.. जैसे कारपेंटरी, प्लंबिंग, गैरेज मेकैनिक तो तुम... उनमें क्यूँ अपना प्रफेशन नहीं बनाना चाहा....
विश्वा - समाज इतना खुला हुआ नहीं है खान साहब..... कि वह किसी सजायाफ्ता मुज़रिम को काम दे...
खान - तो क्या... तुमने
लॉ में ही अपना... आई मिन... यु आर कंविक्टेड... तुम लॉ में अपना प्रोफेशनल कैरियर कैसे बनाओगे...
विश्वा - किसी बड़े एडवोकेट के असिस्टेंट बन कर....
खान - ओह... हाँ... बस एक आखिरी सवाल...
विश्वा -.............
खान - तुम्हारे बैंक अकाउंट में सात लाख पंद्रह हजार एक सौ पैंसठ रुपये है...
जब कि तुमने... सरकारी स्किल युटीलाइजेशन स्कीम में ही काम किया है... जिसमें शायद दो लाख तक बनते हैं... पर अकाउंट में इतना पैसा....
विश्वा - मैंने लॉ करते वक़्त मिसेज़ प्रतिभा सेनापति जी के साथ एक कंट्राक्ट साइन किया था.... उनके कुछ केसस् में उन्हें असिस्ट किया और मदत भी... उसके बदले में उन्होंने मेरे अकाउंट में वह पैसे जमा कराए हैं....

यह खान के लिए एक और झटका था l

खान - ओह... अच्छा....
ह्म्म्म्म... ठीक है... अब तुम जा सकते
हो.....
इतना सुनते ही विश्वा चुप चाप उठ कर बाहर निकल जाता है, उसके जाते ही खान ऐसे गहरी सांस लेता है जैसे कितने घंटों से सांस दबाए रखा हो फिर उस दरवाजे पर खान की नजर रुक जाती है और बड़बड़ाता है - क्या है यह... जैसे कोई बिजली की नंगी तार... जितना ज्यादा जानने लगा हूँ इसके बारे में... उतना ही ज़ोर का झटका लग रहा है.....

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गाड़ी से उतरते ही नंदिनी तेजी से घर के अंदर जाती है l उसकी खुशी छुपाये नहीं छुप रही है l ऐसा लग रहा है जैसे नंदिनी किसी मजबूरी के तहत चलते हुए घर के भीतर जा रही है, वर्ना वह उड़ते हुए चली जाती l नंदिनी जैसे ही अपनी भाभी के कमरे में पहुंचती है तुरंत ही दरवाज़ा बंद कर देती है और चहकते हुए शुभ्रा के पास आ कर उसे अपने दोनों हाथों से उठा कर नाचने लगती है l
शुभ्रा - अरे.. रुक... देख मैं गिर जाऊँगी... आ.. ह... अरे नीचे उतार मुझे..
नंदिनी शुभ्रा को नीचे उतार देती है और खुद शुभ्रा के बिस्तर पर पीठ के बल गिर जाती है l
शुभ्रा - अरे... रूप.. य.. यह.. तुझे क्या हुआ...
देखा... कहा था उतार दे मुझे... अब तु मेरी वजन नहीं.. सम्भाल पाई ना...
नंदिनी उठ कर बैठती है और शुभ्रा के गालों पर एक चुंबन जड़ देती है l
शुभ्रा - छि... रूप... आज कॉलेज कुछ हुआ क्या... बिगड़ रही तु आज कल...
नंदिनी - अरे भाभी आज मैं बहुत खुश हूँ.... आपने मुझे जैसा कहा था मैंने वैसा ही किया....(गाते हुए कहती है) और मुझे मेरे दोस्त वापस मिल गए.....
शुभ्रा - अच्छा.... ह्म्म्म्म... यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुने...
नंदिनी - और यह क्या भाभी.... आपकी वजन तो फूलों की तरह है... मैं तो अभी भी आपको उठा कर नाच कुद कर सकती हूँ....
शुभ्रा - हाँ... हाँ मालुम है.. पहलवान भाई की बहन जो है....
दोनों हंसते हैं l नंदिनी शुभ्रा के गले लग जाती है और कहती है - थैंक्स भाभी...
शुभ्रा - (उसके गालों को सहलाते हुए) जो किया तूने ही तो किया... मुझे क्यूँ थैंक्स कह रही है....
नंदिनी - आप आज मेरी माँ, दीदी, सहेली बन कर राह दिखाई और मुझे कामयाबी हासिल हुई.... थैंक्यू.... थैंक्यू... थैंक्यू..
शुभ्रा - बस बस आज तेरी गाड़ी वहीँ.... थैंक्यू पर ही रुक गई है....
नंदिनी - तो क्या हुआ भाभी.... जो है.. सो है.. भाभी आज चाची माँ से बात करने को मन कर रहा है.... उनको लगाईये न फोन...
नंदिनी की बात सुन कर शुभ्रा थोड़ा मुस्कराती है और अपना सर हिलाकर सुषमा को फोन लगाती है l
शुभ्रा - प्रणाम चाची माँ...
सुषमा - (फोन से ) जीती रह बहु... और बता... मेरी गुड़िया नंदिनी कैसी है... और कैसी गई उसकी, आज की कॉलेज की दिन.....
शुभ्रा - लो आप ही पुछ लो.... (इतना कहकर फोन नंदिनी को थमा देती है)
नंदिनी - चाची माँ.... प्रणाम... (खुशी से गला थर्रा गई) क.. कैसी हैं आप....
सुषमा - जुग जुग जिए मेरी बच्ची... मैं बहुत अच्छी हूँ... तु बोल.. जाते ही मुझे भूल गई....(नंदिनी अपनी जीभ निकाल कर दांतों तले दबा देती है) आज कैसे याद आ गयी तेरी चाची माँ... ह्म्म्म्म..
नंदिनी - वह चाची माँ. .. सॉरी... वह यहाँ... मेरा मूड हमेशा ख़राब ही रहता था.... इसलिए...
सुषमा - ठीक है... ठीक है.... अब तो मेरी लाडो सहर की रंग में रंग रही है...
नंदिनी - सॉरी... चाची माँ... कसम से... मैं कभी आपको भुला
नहीं सकती हूँ... प्लीज(गला भर आती है)
सुषमा - हे... अरे... पागल लड़की... मैं तो तुझे.. ऐसे ही छेड़ रही थी.... वरना तेरी हर दिन की खबर मैं बहु से लेती रहती थी... और हाँ आज जो तुझे तेरे दोस्त वापस मिले हैं ना.. वह मेरा ही आईडिया था... समझी...
नंदिनी - व्हाट.... मेरा मतलब.. ठीक है कि आप ने भाभी को आईडिया दिया होगा... पर आपको कैसे मालुम हुआ कि मुझे.... आज मेरे दोस्त वापस मिल गए....
सुषमा - बचपन से तुझे पाला है मैंने.... तेरी नस नस से वाकिफ़ हूँ.... तु कब खुलती है और कब सिमट जाती है....
नंदिनी - हाँ... अखिर माँ जो हो आप मेरे..
सुषमा - कोई शक़....
नंदिनी - नहीं.... बिल्कुल नहीं.... फ़िर भी एक शिकायत है और प्रार्थना भी... उपर वाले से... अगले जनम में मुझे आपकी ही कोख से भेजे...
सुषमा - देख यही तेरी अच्छी बात नहीं है... अब तु रोयेगी और मुझे भी रुलाएगी.....अब... अपनी भाभी को फोन दे...
नंदिनी कुछ कह नहीं पाती, उसके आँखों से आंसुओं के धार फुट पड़ते हैं वह चुपचाप फ़ोन शुभ्रा को दे देती है l शुभ्रा उसकी मनःस्थिति को समझ जाती है और नंदिनी से फ़ोन ले लेती है l
शुभ्रा - ह.. हे.. हैलो..
सुषमा - (सिसकते हुए) देखा बहु ऐसी ही है मेरी रूप.. पर मुझे खुशी है कि की तेरे संग रहकर उसके भीतर की लड़की बाहर आ रही है... उसे चहकने दे, उड़ने दे पर थाम के रखना.... बेचारी आजादी मेहसूस कर रही है... बस देखना मेरी बच्ची को.. के वह कहीं बहक ना जाए... कोई उसे बहका ना दे....
शुभ्रा - (बड़ी मुश्किल से भारी गले में) जी... जी... चाची माँ...
शायद सुषमा से और बातेँ करना संभव ना हुआ इसलिए सुषमा उधर से फ़ोन रख देती है l इधर अपने हाथों से अपना मुहँ छुपाये नंदिनी सिसक रही है l
शुभ्रा - (भारी गले में) देखा आते वक्त चहकते हुए आई थी पर अब माहौल देख... तूने क्या कर दिआ...
नंदिनी - (अपनी आँखे पोछते हुए और खुद को सही करते हुए) सॉरी भाभी... पर जानती हो भाभी...(हंसने की कोशिश करते हुए) आज से हम पांच नहीं छह लड़कियों का ग्रुप है...
शुभ्रा - अच्छा....
नंदिनी - एक नई लड़की.. आज ही मुझसे दोस्ती की... नाम है दीप्ति...
शुभ्रा - अरे वाह कल तक एक एक के लाले पड़ गए थे.... आज तो ऊपर वाले ने छप्पर फाड़ कर छह छह दोस्तों को भेज दिया...
नंदिनी - हाँ भाभी... पर वह दीप्ति ना... (मुहँ बनाते हुए) कुछ ज्यादा ही बोलती है... हाँ...
शुभ्रा - ओ हो... ऐसा क्या कह दिआ उसने...
नंदिनी - वह आज ही दोस्त हुई... मगर सबको सर्टिफिकेट देते घूम रही है.... हूं ह
शुभ्रा - ओ... ह्म्म्म्म... मतलब यह हुआ कि... आज उसने तुम्हें भी कुछ सर्टिफिकेट दिया है...
नंदिनी - हाँ... (कहकर नंदिनी अपना मुहँ फूला कर बिस्तर पर आलती पालती मार कर बैठ जाती है)
उसकी ऐसी हालत देख कर शुभ्रा की हंसी छूट जाती है l शुभ्रा को अपने ऊपर हंसते हुए देख कर नंदिनी भड़क जाती है और
नंदिनी - भाभी....
शुभ्रा नंदिनी के चेहरे को अपने दोनों हाथों से ले कर उसके माथे को चूम लेती है और कहती है - रूप... जरा याद करके बताना.... आखिरी बार... तुमने किस पर मुहँ बनाया था या रूठ गई थी...
नंदिनी इतना सुनते ही शुभ्रा को देखती है और कहती है - पता नहीं भाभी....
शुभ्रा - देखा रूप जब दोस्त जीवन में आते हैं.... विरान जीवन में भी बाहर ले आते हैं.... हर रंग में रंग देते हैं... वैसे.. वह दीप्ति ने तुझे कौनसा सर्टिफिकेट दे दिया है....
नंदिनी - (अपनी दोनों मुट्ठी को कस कर भींच लेती है) वह.... वह... मुहं जली कहती है.... कि मैं जब बातेँ शुरू करती हूँ... तो नन स्टॉप मैं ही बातेँ करती हूँ बिना किसीको मौका दिए....
शुभ्रा जोर जोर से हंसने लगती है नंदिनी को देखते हुए फ़िर अपना पेट पकड़ कर हंसने लगती है और कहती है - सच ही कहा है उसने... हा हा हा...
उसे ऐसे हंसता हुआ देख नंदिनी चिढ़ जाती है और चिल्लाती है- भा.... भी
शुभ्रा अपनी हंसी को काबु करती है l बात बदलने के लिए नंदिनी कहती है - जानती हो भाभी... आज हमने अपने ग्रुप का नाम करण किया है... और नाम भी मैंने दिआ है..
इस वार शुभ्रा फ़िर से हंसने लगी - हाँ... हाँ मालुम है... छटी गैंग...
इतना कहते ही शुभ्रा की हंसी रुक जाती है l उसे लगता है कि उसने यह कह कर गलती कर दी l उधर यह सुनकर हैरानी से नंदिनी की आंखे चौड़ी हो जाती है l
नंदिनी - भाभी क्या आपने मेरे पीछे जासूस लगाए हैं.... या फ़िर किसी और के जरिए मुझ पर नजर रखे हुए हैं....
शुभ्रा -शुभ्रा - देख रूप इस सहर में... जब तक तु है... तब तक तु मेरी जिम्मेदारी है.... और हाँ अभी के लिए बस इतना जान ले... मैंने किसी और को तेरे पीछे नहीं लगाया है.... पर हाँ जो तेरी खबर मुझ तक पहुंचा रही है... वह मेरी और तेरी अपनी है.... और मेरे होते हुए... तुझे कुछ भी होने नहीं दूंगी.... अभी फिलहाल इसे सस्पेंस रखते हैं... पर तुझे एक दिन मिलवाउंगी उससे....
नंदिनी - ठीक है भाभी... सारा मजा किरकिरा कर दिया... अब जब कॉलेज से लौटुंगी तब आपसे शेयर करते वह मजा नहीं आएगा....
शुभ्रा - धत पागल.... मुझे थोड़े ना हर दिन की खबर मिलेगी.... वह तो कभी कभी.... फिर भी रूप... मेरे पास अपने दिल में कभी कुछ मत रखना.... क्यूंकि दिल में कोई बात घर कर गई तो वह रिश्तों पर बुरा असर करती है...
नंदिनी - ठीक है भाभी... अच्छा भाभी.... क्यूँ न आज अपने हाथों से कुछ मीठा बना कर खिलाओ.....
शुभ्रा - श् श्श्श श्श्श.... रूप ऐसी बातें तब करना जब इस घर के मर्द इस सहर में ना हो.....
यह जो क्षेत्रपाल परिवार के मर्द मूछों पर ताव देते रहते हैं ना.... वह असल में एक तरफ दौलत की धौंस और दूसरी तरफ खानदानी पहचान का रौब....
उनको मालुम हुआ तो अपने मूछों पर ताव देते कहेंगे.... क्षेत्रपाल परिवार की औरतें क्यूँ कर रसोई में जाएं... हमने इतने नौकर चाकर रखे किसलिए हैं.....
नंदिनी - सौ फीसद सच कह रही हो आप.... तो आप ही बताओ... कब खाएं... मुझे तो आपके हाथ से खाने को बड़ा मन कर रहा है... चाहे खाना कैसे भी बना हो... पर खाना है...
शुभ्रा - ऐ चाहे कैसे भी बना हो मतलब... मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूँ... अगर मेरे हाथ का बना खाना है..... तो फिर कुछ दिन इंतजार कर..... जब तेरे भाई यहाँ नहीं होंगे.... उस दिन तुझे खिलाउंगी...
नंदिनी - वैसे भाभी..... मेरे दोनों भाई पूनम के चांद हो गए हैं..... कभी कभी ही दिखते हैं इस घर में .... देर रात घर आते हैं.... फिर पता नहीं कब उठते हैं और कहां चले जाते हैं.....
शुभ्रा - हाँ इस घर की नियति यही है.... पता नहीं कहाँ कहाँ घूमते फिरते हैं.... सिर्फ़ रात को आते हैं... जब मन किया खाते हैं वरना....
नंदिनी - अब वे लोग कहाँ हो सकते हैं....
शुभ्रा - पता नहीं.... ज़रूरत भी नहीं....

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शाम ढल रही है और रात गहरी हो रही है l एक फाइट रिंग में विक्रम पांच पांच फाइटरों के साथ लड़ रहा है l
नीचे चेयर पर बैठ कर वीर और एक अधेड़ आदमी बैठ कर विक्रम को लड़ते हुए देख रहे हैं l
वह आदमी - वाह क्या लड़ रहे हैं युवराज....
वीर - हाँ... महांती.... यह तो दूध, बादाम, घि से जो चर्बी बनाया जाता है, फिर उसे उतारने के लिए जबर्दस्त कसरत कर पसीना बहाना पड़ता है और यह रिंग व फाइट उसीका परिणाम है.... जितना ज्यादा खाओगे.... उतना ही ज्यादा पसीना बहाओगे.... यह नियम है.... अच्छे स्वास्थ्य के लिए चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए....
महांती - पर माफ कीजिएगा राजकुमार जी... मैंने आपको ना तो कभी पसीना बहाते देखा है ना ही लड़ते हुए...
वीर - अरे मैं भी पसीना खूब बहाता हूँ.... और कसरत भी बहुत करता हूँ... अरे महांती.... कसरत तो मैं इतना करता हूं ऐसी के ठंडक में भी पसीना पानी की तरह निकालता रहता है....
महांती - क्या.... आप बहुत कसरत भी करते हैं.... कब और कहां...
वीर - तुझे बड़ी उत्सुकता है महांती.... मुझे कसरत व पसीना बहाते हुए.... देखने के लिए... ह्म्म्म्म
महांती - नहीं ऐसी बात नहीं है.... मेरा मतलब है... आपको कभी युवराज जी की तरह रिंग में नहीं देखा है...
महांती - अबे वे युवराज हैं.... आने वाले समय में वे राज करेंगे.... और हमारे हिस्से में सारी काज ही आएंगे....
महांती - मैं कुछ समझा नहीं....
वीर - यह बहुत हाई लेवल की बातेँ है... इसे समझने के लिए लेवल बराबरी का होना चाहिए...
उधर फाइट खतम होता है, सारे फाइटर्स जो विक्रम के साथ लड़ रहे थे,सबके सब नीचे गिरे पड़े हैं l
वीर-(ताली मारते हुए) वाह युवराज जी वाह l
महांती - क्या बात है युवराज जी.... आपने तो इन प्रोफेशनल्स को धुल चटा दिआ....
विक्रम - (चेयर पर बैठते हुए) महांती सिर्फ इन सबकी ही नहीं... बल्कि हमारे सिक्युरिटी सर्विस में काम करने वाले सभी गार्ड्स की ट्रेनिंग थोड़ा टफ कर दो.... इन प्रफेशनल्स के रिफ्लेक्सेस अगर इतने स्लो रहेंगे तो.... हमारे सिक्युरिटी सर्विस की डिमांड कम ही जायेगी....
महांती - जी समझ गया युवराज....
विक्रम - अच्छा... अब बताओ.... वह... नभ वाणी के ऑफिस में जो लड़की प्रवीण के बारे में जानकारी जुटा रही थी.... उसका क्या हुआ...
महांती - जी.... अबतक हमारे हाथ खाली है....
विक्रम - जानता हूँ.... मैं बस यह जानना चाहता हूँ... अब तक तुम लोगों ने क्या क्या उखाड़ा है... वह बता....
महांती - सर माफ़ी के साथ.... पहली बात, हमने सिर्फ एक महीने पहले नभ वाणी ऑफिस की सिक्युरिटी को टेक ओवर किया है.... वह लड़की जरूर पहले आ कर रेकी कर जा चुकी थी... इसलिए पिछली बार जब वह आई थी तब चेहरे को अपने दुपट्टे से ढक कर आई थी.... और उसे पहले से ही कैमरा का अंदाजा था... वह जब भी कैमरा के सामने गुजरी... वह अपनी वैनिटी बैग का सहारा लिया था.... इसलिए वह कैमरा से बच पाई थी.... किसीने उसका चेहरा देखा नहीं था तो स्केच आर्टिस्ट के पास जाना बेकार था...
और राम मंदिर एक पब्लिक प्लेस था वहाँ पर झगड़ा कर अंदर जाना मुश्किल था.... क्यूंकि वह जगह एक धार्मिक जगह है.... और सबसे अहम बात.. बेशक इस सहर में राजा साहब का दबदबा है., दखल भी है ... पर यह भी सच है कि यह यश पुर नहीं है.....
विक्रम - बहुत लंबा चौड़ा एक्सप्लेनेशन दे दिया तूने....
महांती - सर फ़िर भी हमने सभी संस्थाओं में अपने आदमी छोड़ रखे हैं.... अगर उस केस में कहीं भी हलचल होती है... तो हम फौरन एक्शन में आयेंगे....
वीर - पर मुझे नहीं लगता है कि.... अब कोई भी प्रवीण की खैरियत पूछेगा.... तक जितने एक्शन हुए हैं.... पूछ ताछ करने वाले को अब अक्ल आ चुकी होगी.... इसलिए अब वह हमसे टकराने से पहले सौ बार सोचेगा.....
विक्रम - अगर तुम्हारी और महांती की लॉजिक सही है.... तो चलो हम जाल बिछायेंगे.... प्रवीण के इंफॉर्मेशन का रुमर उड़ाओ... तो शायद कुछ हाथ लगे....
वीर - हाँ यह हो सकता है.... क्यों महांती..
महांती - जी सर.... ऐसा हम कर सकते हैं...
विक्रम - तो फिर लग जाओ अपने काम पर....
महांती - जी सर... कहकर सैल्यूट ठोक कर चला जाता है,उसके जाते ही
विक्रम - हाँ तो राज कुमार जी.... वैसे आप कौन कौन से कसरत और कहाँ करते हैं कि आप दूध, बादाम व घि की चर्वी उतारते हैं....
वीर - क्या युवराज जी.... आप भी...
विक्रम - महांती ठीक कह रहा था... तुम्हें खुद को कॅंबैट के तैयार करना चाहिए....
वीर - युवराज जी मैं जब भी कॅंबैट करता हूँ... बहुत ही भयंकर घमासान करता हूं....
विक्रम - (उसे घूरते हुए देखता है)......
वीर - देखिए युवराज जी मैं वात्स्यायन के सभी आसनों को बड़ी शिद्दत के साथ करता हूँ.... और ऐसी कमरे में भी जमकर पसीना बहाता हूँ....
विक्रम - राजकुमार..... आप महांती की एक बात ना भूलें.... भले ही हमारा दबदबा यहाँ पर बहुत है.... फ़िर भी यह ना भूलें... यह भुवनेश्वर है यश पुर नहीं..... जो भी करो.. सोच समझ कर करो...
वीर - हाँ यह आपने सही कही.... पर युवराज एक बात पूछूं....
विक्रम - हाँ पूछिए....
वीर - पिछले कई महीनों से देख रहा हूँ.... आप रंग महल के लिए प्रबंधन करते तो हैं ..... पर डेरा नहीं डाल रहे हैं.... क्या मन भर गया आपका या रावण अब राम के राह पर निकला है....
विक्रम - (कुछ देर खामोश रह कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मैं कभी राम नहीं बन सकता.... इस जनम में तो बिलकुल नहीं..... जब तक मैं विक्रम सिंह क्षेत्रपाल हूँ.... मैं रावण ही हूँ....
वीर - तभी तो आप मुझे मेरी तरह रहने दें....
विक्रम - जो मर्जी आए वह करो.... पर इतना ध्यान रहे यहां हमरे दुश्मनों की तादात बहुत है..... आज तक हमने किसी को मौका नहीं दिया है.... तुम भी किसीको मौका मत देना...
वीर - ना ना ना.... मैं सिर्फ अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की परिवार को देखता हूँ.... बहुत मदत भी करता हूँ... बदले में वह भी अपनी मर्जी से... मेरी मदत के बदले भेंट देते हैं.... जिन्हें में दिल व बाहें खोल कर स्वीकार करता हूँ....
विक्रम - इसलिए तुम्हें सम्भलने को कह रहा
हूँ.... रंग महल की रस्म हमारे दुश्मनों के लिए है... और यहां पार्टी के कार्यकर्ता अपने हैं.... यह यशपुर नहीं है.... यशपुर में कुछ भी हो जाए कोई नजर नहीं उठा सकता..... पर यहाँ, कहीं उनका गुस्सा हमला तक तो नहीं.... पर कहीं भड़ास गाली बनकर ना निकले....
वीर - हाँ तो क्या हुआ...मैं कौनसा सुदर्शन चक्र धारी भगवान हूँ.... अगर गाली बर्दास्त ना हुआ तो सुदर्शन चक्र निकाल कर छोड़ दूँ.... मैं जो भी कर रहा हूँ गालियाँ बर्दास्त करने के लिए....... अब कोई मुझे मादरचोद या बहनचोद कहेगा.... तो मुझे बड़ा दुख होगा.... इससे पहले कि वह इस तरह की गालियाँ दे कर मेरा मन दुखा दे इसलिए मैं उन सबकी माँ बहन चोद रहा हूँ....
विक्रम - तुमसे बात करना भी बेकार है....
वीर - ठीक है युवराज जी आप घर जाइए.... मैं किसी पार्टी के कार्यकर्ता के घर जा रहा हूँ...
इतना कह कर वीर निकल जाता है, पर वहीं चेयर पर बैठे विक्रम रह जाता है

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रात को डिनर के टेबल पर तापस व प्रतिभा दोनों डिनर कर रहे हैं l
प्रतिभा - तो सेनापति जी आपके VRS का क्या स्टेटस है....
तापस - क्यूँ वकील साहिबा... लगता है मुझसे भी ज्यादा जल्दी है आपको....
प्रतिभा - आपसे बात करना मतलब अपना सर फोड़ना.... अगर बताना नहीं है तो मत बताओ...
तापस - ऐ मेरी जानेमन...
तुमको इस डिनर की कसम....
रूठा ना करो.....
रूठा ना करो...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
प्रतिभा - अब तो बता दीजिए...
तापस - अरे जान... विजिलेंस क्लियरेंस हो गया है l अब सिर्फ खान से नो ड्यू और नो ऑबजेक्सन सर्टिफिकेट लेना है.... उसे लेने में अगले हफ्ते जाऊँगा...
प्रतिभा - क्यूँ... अगले हफ्ते क्यूँ....
तापस - क्यूँकी मैंने वहाँ जैल छोड़ कर जाने से पहले किसीको कुछ देने का वादा किया है.....
प्रतिभा - क्या वादा किया था और किसइस....
तापस - अरे प्रिये प्राणेश्वरी हमारा अर्दली था ना... वह जगन... उसकी हेल्पर कांस्टेबल पोस्ट की अप्रूवल जो बाकी है.....
प्रतिभा - क्या इस हफ्ते हो जाएगा.....
तापस- हाँ लगभग हो चुका है.... बस लेटर मिलते ही.. मैं अपना नो ड्यू व एनओसी ले आऊंगा....
प्रतिभा - अच्छा (कुछ देर रुक कर) और.... वह... नभ वाणी न्यूज रिपोर्टर....
तापस - (गहरी सांस लेते हुए) सच्चाई बहुत कड़वी और पीड़ा दायक होती है.... और सच यह है कि वह और उसके परिवार में से कोई भी जिंदा नहीं हैं...
प्रतिभा - (हैरानी व दुखी हो कर) क्या........
तापस - मुझे पुरा यकीन है... उनकी लाशें ढूंढने से भी नहीं मिलेंगी....
प्रतिभा - मतलब..
तापस - (अपना खाना खतम कर उठते हुए) मैंने कुछ फैक्टस पर गौर किया और अपने सोर्सेस को इस्तेमाल कर के यह नतीज़ा निकाला के.... जिनको क्षेत्रपाल सहर या दुनिया से ग़ायब करता है... उनके गायब होने के एक ही स्थान है...
प्रतिभा - कौनसी जगह....
तापस - राजगड़....
प्रतिभा - (कुछ चिंतित होते हुए) क्या....
तापस - मैं समझता हूँ तुम्हें अब कौनसी चिंता सता रही है....(प्रतिभा के कंधे पर हाथ रखते हुए) उसे कुछ नहीं होगा... कुछ होने नहीं दूँगा... कम से कम मेरे जीते जी तो नहीं....
तुमने जितना उसे देखा है, समझा है ... मैंने उसे तुमसे कहीं ज्यादा किसी और सांचे में ढलते हुए देखा है.....
और उसकी हिफाज़त के लिए हम दोनों तो हैं ना.... हमने अपनी औलाद के लिए भले ही कुछ ना कर पाए.... पर इसबार ऐसा नहीं होगा.... अपना सब कुछ बाजी लगा देंगे... पर उसे कुछ नहीं होने देंगे..
प्रतिभा तापस के हाथ को पकड़ कर उसे पलकें झपका कर अपनी सम्मति देती है....
Awesome update
 

Kala Nag

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इसको कहते हैं the perfect weathercock :)
आज कल तो ऐसे ही लोग दिख रहे हैं चहुंओर!



बहुत बढ़िया भाई साहेब!



बढ़िया! सीधा, और सरल होना दोष है, ऐसे समाज में।



इस बात का दो तीन बार इस्तेमाल हुआ है! बहुत बढ़िया!



हा हा हा!! :) सही है!



वो जेल में बाद में जो दंगा फसाद हुआ है, शायद इसी कारण से?


एक से बढ़ कर एक नगीने हैं इस बार तो भाई! बहुत उम्दा! बहुत उम्दा!
खौफ और इज़्ज़त के बीच एक पतली सी लाइन होनी चाहिए
यह लाइन दो लोगों को एडवाइज किया गया है
डैनी से विश्व को और विक्रम को पिनाक से
क्यूंकि उनमे से एक नायक है और दुसरा प्रति नायक
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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मित्रों, मुझे बहुत खुशी हो रही है कि आपको मेरी कहानी पसंद आ रही है....
पर थोड़ा धीरज धरे... कल ही अपडेट पोस्ट किया था.... मैं कोशिश में हूँ कि आज देर शाम तक अगला अपडेट दे सकूँ...
कहानी अभी फ्लैश बैक में चल रहा है....
कहानी चूंकि प्रतिशोधात्मक है और अब तक खलनायक की चरित्र पूर्ण रूप से स्थापित हो चुका है
उससे प्रतिशोध लेने वाले का चरित्र भी खलनायक से तुलनात्मक प्रतिद्वंदी के रूप में स्थापित करना आवश्यक है
इसलिए अब विश्व का विश्वा बनने के सफ़र पर हम चल रहे हैं
मैं चेष्टा कर रहा हूँ हर अंक में रोमांच को बांध कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ l
अब तक साथ रहने के लिए अशेष अशेष धन्यबाद
आगे भी रहिएगा
 

ANUJ KUMAR

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👉ग्यारहवाँ अपडेट
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हाँ मेरे जीवन में दुखों का आना बाकी था....
कहते कहते वैदेही खामोश हो गई l प्रतिभा को उसके आँखों के कोने में चमकते आँसू दिखने लगे, फिर अचानक वैदेही अपनी आँखों को पोछते हुए कहा - माँ को जब नवें महीने का दर्द शुरू हुआ बाबा अपने काम से बाहर गए थे.... माँ का दर्द बढ़ रहा था.... घर में मैं अकेली... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.... क्या करूँ... फ़िर भी माँ को नीचे दीवार के सहारे बिठा कर... मैं बाहर निकली और चिल्लायी... मौसी, काकी, मामी, भाभी.... कोई तो आओ मेरी माँ को दर्द हो रहा है....
मोहल्ले के सारी औरतें भाग कर आयी.... मेरी माँ के पास... सबने किसी तरह से बैल गाड़ी का इंतज़ाम किया और माँ को हस्पताल ले गए.... पर उस हस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं था... एक कंपाउंडर और एक RMP थे..
किसी तरह बाबा को ख़बर किया गया था.... बाबा भी आ पहुंचे थे.... पर ख़बर भेजने के बावज़ूद डॉक्टर नहीं आया था.... गांव के कुछ धाई मिलकर बच्चा पैदा होने में मदत की... पर माँ की हालत बहुत खराब हो गई थी.... बच्चा पैदा हुआ.... उसके बाद डॉक्टर पहुंच भी गया था.... पर उसका भी क्या दोष... गांव में वह हर किसीके पास जाता था... इसलिए समय पर पहुंच ना पाया... बच्चा जनते वक़्त धाईयों के लापरवाही से कोई नस कट गया था... इसलिए माँ को बचाना नामुमकिन था... ऐसा कहा था डॉक्टर ने..
बाबुजी का मन बहुत ख़राब हो गया...आस पास के सभी औरतें रोना शुरू कर दिया था... पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था.... की मेरा भाई आया है... तो सब रो क्यूँ रहे हैं.. इतने में एक औरत बाहर आ कर मुझे बुलाया... मैं उसके साथ अंदर गई... माँ बहुत कमजोर दिख रही थी... माँ ने इशारे से पास बुलाया.... और बच्चे को दिखाया..... और कहा - देख तेरा भाई आया है... क्या नाम रखेगी...
मैंने कहा - माँ वो कल स्कुल में ना मास्टर जी पढ़ा रहे थे... विश्व के प्रतापी राजाओं में खारबेल जी का नाम आता है.... तो क्यूँ ना हम भाई को विश्व प्रताप कहें.... माँ ने बड़ी ममता से मेरे चेहरे पर हाथ फेरा और कहा वाह... फिर बच्चे को अपने हाथ में लेकर पुकारा विश्व प्रताप हाँ आज से तेरा नाम विश्व प्रताप है.... और यह तेरी दीदी है... आज से यह तेरा और तु इसका खयाल रखना...
जा बेटी जा अपने बाबा को बुला ला.... मैं बाहर गई और बाबा से कहा - बाबा माँ बुला रही है..
बाबा और मैं अंदर आए तो माँ ने उन्हें कहा - अजी जानते हैं... हमारे मुन्ना का नामकरण हो गया... वैदेही ने नाम दिआ है "विश्व प्रताप" अब मेरे दोनों बच्चे आपके हवाले...
बाबा और सम्भाल ना पाए और रो पड़े - सरला...
माँ - नहीं जी... आप मुझे ऐसे विदा ना करें... मुझे वचन दीजिए... मेरे बच्चों को आप डॉक्टर बनाओगे.... ताकि कल को किसीकी यहां मेरी तरह हालत ना हो.... मैं तो भाग्यवान हूँ... माँ बनी और सुहागन जा रही हूँ...
बाबा - सरला...
माँ - बस... (माँ ने इतना कह कर बाबा को रोक दिया) वैदेही... अपने भाई का खयाल रखेगी ना...
मैंने अपना सर हिला कर हाँ कहा l फिर माँ खामोश हो गई... मैं देख रही थी सब रो रहे थे... सिर्फ मैं और मेरे भाई को छोड़ कर... क्यूंकि तब किसीका मरना मुझे मालुम नहीं था....और मेरा विशु अभी अभी तो दुनिया में आया है...

पर कुछ दीन दिनो बाद हाँ कुछ दिनों बाद माँ की कमी मुझे महसूस हुई l मैंने बाबा से पूछा तो बाबा ने मुझे माँ की तस्वीर के सामने खड़ा कर कहा - बेटी तेरी माँ भगवान के पास गई है.... और तुझे जिम्मेदारी दे कर गई के तु अपने भाई का खयाल रखेगी.... जब तु अच्छे से खयाल रख कर अपने भाई को क़ाबिल बना देगी... तब तेरी माँ आएगी.... बोल अपनी माँ को दिए वचन निभाएगी ना..
मैंने अपना सर हिला कर हाँ ज़वाब दिआ...
उसके बाद मैं विशु का खयाल रखने लगी...
अपना स्कुल व विशु दोनों के बीच समय को बैलेंस कर बाबा के साथ जी रही थी... फिर विशु का स्कुल जाने का वक्त आ गया... एडमिशन के वक्त जब आचार्य ने नाम पुछा मैंने बड़े गर्व से कहा "विश्व प्रताप महापात्र"...
उसके बाद अपनी पढ़ाई के साथ मैं विशु की पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी... इसी तरह विशु सातवीं में पहुंच गया और मैं बारहवीं में हम दोनों की बोर्ड परीक्षा हुई ...
मेरी बारहवीं की बोर्ड और विशु की NRTS बोर्ड... हम दोनों ने पुरे यश पुर को चौका दिआ था... हम दोनों भाई बहन अपने अपने कक्षा के परीक्षा में ज़िले में प्रथम हुए थे.....
सब हमें और बाबा को बधाईयाँ दे रहे थे... गांव में ज्यादा कोई सोचते नहीं थे... इसलिए सब मेरी शादी के लिए प्रस्ताव ले कर बाबा के पास आते थे.... और बाबा बड़ी विनम्रता से सारे प्रस्तावों को मना कर देते थे..
एक दिन पड़ोस के मौसी ने इस बारे में पूछा तो बाबा ने कहा वैदेही पहले डॉक्टर बनेगी.... मैंने उसके माँ को वचन दिया था... अब पुरा करने का वक्त आ गया है....
मैं यह सुन कर बहुत खुश हुई... छुट्टियां चल रही थी... हम भाई बहन गांव में खूब मस्तियाँ कर रहे थे.... एक दिन डाक में एक पत्र आया... बाबा देख कर खुश हो गए....
बोले वैदेही...
मैं - जी बाबा...
बाबा - यह देख बेटी... तेरी डॉक्टरी एंट्रेंस का कॉल लेटर आ गाय...
हम सात दिन बाद कटक जाएंगे...
मैं - खुशी से बाबा को गले लगाया और उछालते कुदते विशु को अपने हाथों से उठा कर झूमने लगी...
विशु - दीदी मुझे उतरो ना... मेरा सर चकरा रहा है... प्लीज उतारो ना...
मैं - (विशु को उतार कर) विशु मेरे भाई... मैं अब डॉक्टर बन जाऊँगी...
मैं और विशु मस्ती में नाचने लगे.... और बाबा हमे देख कर खुश हो रहे थे...
सात दिन बाद बाबा ने एक टेंपो किया था..... यश पुर जाने के लिए... टेंपो पर हम अपना समान रखने के बाद सब आस पास पड़ोस वालों से जाने की इजाजत मांगने लगे... पड़ोस के सभी पहचान वाले हमे हिदायत दे कर विदा करने आए थे...
हमारा टेंपो गली से बाहर निकला ही था कि चार चार जीप से राजा साहब के लोग पहुंचे और टेंपो को रोक कर ड्राइवर को धक्का दिया... ड्राइवर गाड़ी छोड़ कर भाग गया... उनमे से एक आदमी मुझसे बोला - चल राजा साहब आज तेरी नथ उतारेंगे..
बाबा - क्या बकवास कर रहे हो...
आदमी - तु चुप बे बुड्ढे...
इतना कह कर उसने बाबा को लात मारी और कुछ लोग विशु को बाहर खिंच कर फ़ेंक दिए.... विशु जा कर एक लकड़ी के गट्ठे पर गिरा... जिस आदमी ने विशु को उठा कर फेंका था उसी ने मेरे हाथ पकड़ कर मुझे खिंचने लगा... ठीक उसी वक़्त पता नहीं कहाँ से विशु के हाथ में एक कुल्हाड़ी आ गई थी... राजा साहब के लोग इस बात से अनजान थे... वह जो आदमी मेरा हाथ खिंच रहा था... विशु कूदते हुए उस पर कुल्हाड़ी चला दी... उस आदमी का हाथ जिस्म से अलग हो कर उखड़ चुका था...

विशु - (चिल्लाते हुआ) दीदी आप घर चले जाओ....
बाबा - हाँ बेटी घर के भीतर जाओ और दरवाजा अंदर से बंद करलेना....
विशु सिर्फ तेरह साल का था... पर उसके हाथ में खुन से सनी कुल्हाड़ी उसको और भी खतरनाक बना दिया था... वह जो आदमी मुझे खिंच रहा था.... वह नीचे पड़े छटपटा रहा था...
विशु - दीदी (चिल्लाया)
मैं होश में आयी और अपने घर की तरफ भागने लगी.... विशु और बाबा उनको रोके हुए थे... मैं घर में घुस कर दरवाजा बंद कर दिया.... पर कुछ ही समय में दरवाजा टूट कर गीर गया.... राजा साहब के कुछ लोग मुझे घर से खिंच कर ले जा रहे थे.... मैं चिल्लायी - सुर मामा, धीरू भैया, रमेश चाचा, सुनाम काका, कोई आओ मुझे बचाओ...
पर कोई नहीं आया... वह लोग मुझे खिंचते हुए ले जा रहे थे... मैंने बाबा को बुलाया.. बाबा मुझे बचाओ....
पर बाबा के जिस्म में कोई हरकत नहीं हुआ.... मैंने विशु चिल्लाया... विशु पेट के बल नीचे जमीन पर गिरा हुआ था... एक आदमी ने उसे अपने पैरों के नीचे दबा कर रखा था.... मैंने फ़िर से चिल्लाया विशु....
इस बार विशु बड़ी मुश्किल से उठा... पर उस आदमी ने उसके बालों को पकड़ कर खींच कर बिठा दिआ... मगर विशु हार नहीं मानी... किसी तरह उस आदमी के हाथ को लेकर अपने मुहँ में काट लिया... उस आदमी के हाथ से विशु छुट गया और रास्ते में पड़े कुछ पत्थरों से उन लोगों पर हमला बोल दिया... पर वह नन्हा सा जान कब तक लड़ पाता... एक आदमी ने लाठी चलाई सीधे विशु के सिर पर लगा और विशु वहीं गिर गया....
मैं फिर से चिल्लाने लगी.. काका, मामा, चाचा... कोई तो आओ मेरे विशु को बचाओ.. पर कोई नहीं आया..
और वह सारे लोग मुझे जीप में डाल कर ले जाने लगे... मैं रास्ते में चिल्लाती रही... हर पहचान वाले से मदत को गुहार लगाती रही पर कोई नहीं आया... वह दरिंदे मुझे रंग महल ले गए...
यह कहते ही वैदेही की आवाज़ भर्रा गई.... गहरी गहरी सांसे लेने लगी...
प्रतिभा यह सुन कर शुन हो गई, उसके मुहँ से कोई बोल नहीं निकल रही थी बस एक टक देखे जा रही थी l फिर वैदेही ने कहना शुरू किया - मेरे दोनों हाथ बांध दिए गए थे... और मुहँ में कपड़ा ठूँस कर मेरे मुहं पर टेप चिपका दिआ था... उन चांडालो ने... मुझे उसी हालत में लेकर रंग महल के बैठक में फेंक कर चल दिए...
तभी एक औरत मेरे पास घिसटते हुए आ कर गिरी..
मैं उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी...
राजा साहब - देख कमीनी देख... इसे तु हमारे ऐस गाह से भगा दिआ था..... तो क्या समझी थी हम उसे ढूंढ नहीं पाएंगे... आज तेरे सामने तेरी लौंडीया की नथ उतरेगी...
इतना सुन कर मैं समझने की कोशिश कर रही थी...
वह औरत - राजा साहब इसे छोड़ दीजिए.... इसकी कसूर क्या है बताइए....
राजा - इसका कसूर यह है कि यह पाइकराय वंश के वृक्ष की डाली है जिसे आज टूटना है..
औरत - यह कैसे पाइकराय परिवार की हुई.... यह आपकी वंश की बीज है... यह आपकी बेटी है...
बड़े राजा - चुप कर कुत्तीआ... हमारे पिताजी ने कसम खाई थी... के पाइकराय वंश के औरतों को पीढ़ी दर पीढ़ी रंडी बना कर रखा जाएगा.... इसलिए पाइकराय खानदान के औरतों को क्षेत्रपाल के मर्द चोदेंगे और पैदा होने वाली खानदान के वृक्ष की केवल ल़डकियों को जिंदा रखा जाएगा और लड़कों को मार दिया जाएगा.... देखा नहीं था तूने कैसे तेरी कोख से जनने वाले लड़के को मगरमच्छ का निवाला बना दिया था... आज यह चुदेगी और इससे पैदा होने वाली लड़कियां भी इस रंग महल की रंडी बनेंगी...
इतना सुनते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे....
मुझे समझ में आ गया था कि वह जो मिन्नते कर रही है वह मुझे जनम देने वाली माँ है.... यह औरत मेरी माँ है... अब धीरे धीरे मुझे बचपन की वह सारी बातेँ याद आने लगी... पर मैं हैरान थी... इन दरिंदों ने मुझे ढूंढ कैसे निकाला....
माँ - नहीं राजा साहब यह गलत है... पाप है... अपने खुन के साथ ऐसा अनर्थ ना कीजिए.... यह आपके ही वंश का अंश है... इसे बक्श दीजिए...
राजा और उसका बाप हंसने लगे, उनकी शैतानी हंसी से रंग महल भी थर्रा गया l अब माँ से बर्दाश्त ना हुआ वह भाग कर दीवार में लगी एक तलवार खिंच कर राजा के सामने खड़ी हो गई
माँ - खबरदार अगर किसीने मेरी बेटी को छूने की भी कोशिश की....
राजा की हंसी और भी शैतानी हो गई, और जोर जोर से हंसने लगा
राजा - क्या कहा था तुने... हमारे वंश वृक्ष का अंश है.... हा हा हा... तो अपने ही लगाए पेड़ का फल हम ना खा कर किसी और को कैसे खाने दें... हा हा हा
माँ - ऐ... भैरव... अपने वंश का फल खाएगा तु... इसका मतलब जब रूप जवान हो जाएगी तो उसे भी अपने नीचे सुलाएगा तु...
भैरव - कमीनी रूप कि तुलना तेरी रंडी बेटी से कर रही है....
इतना कह कर भैरव माँ के तरफ बढ़ने लगा, माँ ने तलवार उठा कर भैरव सिंह पर चलाया... पर माँ कमजोर थी और वह एक राक्षस.... तलवार की वार से बच कर पुरी ताकत से माँ को लात मारी... माँ छिटक कर ऐसे गिरी के वह उठ नहीं पाई....
माँ मुझे देख कर बस इतना कहा मुझे माफ कर दे बेटी...
इतने में भैरव सिंह मुझे मेरे बालों सहित खिंचते हुए वहीं बैठक के एक बिस्तर पर गिरा दिया... फ़िर मेरे पैरों को बिस्तर की पैरों के साथ बांध दिया और फिर हाथों को भी खोल कर बिस्तर के पैरों के साथ बांध दिआ... मैं पीठ बल उस बिस्तर बंधी हुई थी....
इतने में माँ सम्भल चुकी थी... वह फिर से तलवार उठा कर अपनी अंतिम प्रयास किया...
माँ - भैरव सिंह....
पर बीच रास्ते में ही बड़े राजा उर्फ़ नागेंद्र ने रोक दिया... और मेरी माँ को पास रखे कुर्सी पर पटक कर माँ के हाथों से तलवार छिन कर माँ के कंधे में ही कुर्सी के साथ ही वही तलवार घुषेड़ दिआ... माँ अब कुर्सी से हिल नहीं पा रही थी...
फिर नागेंद्र अपने कपड़े उतारते हुए मेरे पास आया और मेरी माँ को देखते हुए बोला - अब तेरी लौंडीया कली से फुल बनेगी... तेरे ही आँखों के सामने... और इससे जो लड़की पैदा होगी वह भी हमारे नीचे सोयेगी....
माँ बुरी तरह ज़ख्मी थी उसकी आँखे पत्थरा गई थी...
नागेंद्र अब पूरी तरह से नंगा हो कर मेरे पेट के उपर बैठ कर मुझ पर चाटों पर चाटें बरसाने लगा..
कमीनी - इस घर से भाग गई थी.... अब तेरी नथ ऐसे उतरेगी की फिर कभी भाग नहीं पाएगी..
इतना कह कर मेरे सारे कपड़े फाड़ कर निकाल दिया...
मैंने जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की थी वह मेरे साथ होने लगा... मेरे शरीर के हर कोमल हिस्से को बड़ी बेरहमी से नोचने काटने लगा... पर चिल्ला भी नहीं पा रही थी... मेरे मुहं पर टेप लगा हुआ था... फिर वह दरिंदगी हद से जा कर मेरा बलात्कार करने लगा.... मैं बेहोश हो गई... फिर बीच में जब होश आया तो मेरे ऊपर नागेंद्र नहीं भैरव सिंह था... पर मैं ज्यादा देर बर्दाश्त ना कर सकी, फिर बेहोश हो गई....
जब आँख खुली तो खुदको किसी हस्पताल में पाया... मेरी हालत इतनी खराब हो गई थी कि उन्होंने मुझे इलेक्ट्रिक शॉक दे कर मुझमें जान डाला था..
पर मैं अब जीना नहीं चाहती थी.. मैं खुद को कुछ कर देना चाहती थी.. पर हस्पताल के बेड पर मेरे हाथ बंधे थे... पास खाड़ी डॉक्टरनी को मेरी हालत व मनःस्थिति समझ में आ गई l उसने मुझसे हाथ जोड़ कर बिनती करते हुए कहा - देखो मैं जानती हूं... तुम्हारे साथ क्या हुआ है... तुम्हारा खुन बहना नहीं रुका और तुम होश में भी नहीं आई इसलिए तुम्हें इस हस्पताल लाया गया.....पर प्लीज तुम आत्महत्या मत कर लेना... अगर जिंदा और सही सलामत महल ना लौटी तो उनके कब्जे में मेरा परिवार है... वह लोग उन्हें मार डालेंगे... प्लीज....
मैं उस मजबूर डॉक्टरनी को देख कर कुछ सोचा फ़िर मैंने कहा
मैं - तो फिर एक शर्त पर...
डॉक्टरनी- मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है...
मैं - मेरे शरीर से युटेरस निकाल दीजिए...
डॉक्टरनी - क्या....
मैं - यही मेरी शर्त है...
डॉक्टरनी ने मेरा ऑपरेशन कर युटेरस निकाल दिया और दो महीने बाद जब मैं ठीक हुई तो मुझे महल ले जाया गया
अभी भी मेरे सामने कुछ अनसुलझे सवाल थे....
जिस अतीत को मैं पूरी तरह से भूल चुकी थी.. वह इस तरह मेरे सामने कैसे आया
मेरे बाबा और विशु का क्या हुआ
रंग महल में मुझे गौरी काकी मिली, क्यूंकि बचपन की बातेँ अब याद आ चुकी थी,इसलिए मैंने गौरी काकी को पहचान लिया था l मैंने गौरी काकी से मेरे अनसुलझे सवालों का जवाब मांगा
काकी - तेरी माँ की अंधी ममता तेरे लिए श्राप हो गई वैदेही....
मैं - कैसे काकी...
काकी - तु जिले में अव्वल आई... तेरी फोटो अखबार में आयी थी... वह अखबार राजा जी लेकर यहां आए थे... तेरी माँ ने अखबार में देख कर तुझे पहचान लीआ था... उसने अगर अपनी भावनाओं को रोका होता तो आज तु कहीं और होती.... पर उसकी ममता ने उसे बेबस कर दिया... एक दिन वह छुप कर तुझे देखने चली गई थी... बस राजा जी को ख़बर हो गई... उसके बाद.... (इतना कह कर काकी रोने लगी)
मैं - काकी मेरे बाबा और विशु....
काकी - उनके बारे में कुछ नहीं पता....
इतने में भैरव सिंह आया और कहा.... वह लोग जिंदा हैं... अगर तूने कुछ भी चालाकी की तो दोनों की बोटियां लकड़बग्घों को खिला दी जाएगी...
बस मैं चुप रह गई... फिर आठ सालों का नर्क... जब आठ सालों तक मुझसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो डॉक्टरनी को बुलाया गया... शुक्र था कि वह डॉक्टरनी ही थी.. वह चेक करने के बाद मुझे बाँझ कहा...
जिससे भैरव सिंह के अहं को ठेस पहुंचा.... इतने दिनों के नर्क यातना के पहली बार मुझे एक तृप्ति भरा आनंद मिला...
पर चूंकि उस वंश की शपथ अब किसी काम की नहीं थी इसलिए भैरव सिंह ने मुझे महल के बाहर निकलने का फैसला किया पर वह ऐसे तो नहीं छोड़ सकता था इसलिए एक दिन महल में में मुझे नंगा कर दिया गया और चुड़ैल कह कर मुझे बीच गांव में भगाया गया...... पहले मुझे पत्थर भैरव सिंह के लोग मारना शुरू किया फ़िर जब गाँव वालों ने भी वही किया तो भैरव सिंह के लोग वहाँ से चले गए, पर गांव के लोग मुझे दौड़ा रहे थे... मैं एकदम से थक कर एक पेड़ के पीछे छिपने कोशिश की... पर लोग मुझे पत्थर मारते रहे....
ऐसे वक्त पर एक नौजवान पहुंचा उसने एक चादर से मुझे ढक दिया... फिर चिल्लाया क्यूँ मार रहे हो...
एक - यह चुड़ैल है.. इसलिए....
नौजवान - किसने कहा...
दूसरा - राजा साहब के लोगों ने....
नौजवान - कहाँ है वे लोग...
गांव वाले आपस में बात करने लगे
नौजवान - उन्होंने झूट कह कर तुम्हारे ही हाथों से किसीकी हत्या करा रहे थे....
गांव वालों को बात अब समझ में आ गई थी
नौजवान - अब जाओ यहाँ से....
सब गांव वाले हम दोनों को छोड़ कर चले गए
वह नौजवान मुझे अपने साथ ले जाने लगा...
फिर एक घर के भीतर ले गया.... उस घर में आ कर... मैं हैरान रह गई... मैं उस नौजवान को गौर से देखने लगी.. विशु मेरे मुहँ से निकला...
अचानक वैदेही के कहानी को विराम देते हुए वैदेही की मोबाइल बजने लगी l अपने अतीत से निकल कर वैदेही वर्तमान में आई और फ़ोन उठाई,
वैदेही - ह.. हे... हैलो..
फोन - xxxxxxxxxx
वैदेही - ठीक है काकी... मैं थोड़ी देर बाद निकलुंगी.... और सुबह तक पहुंच जाउंगी...
इधर वैदेही फोन पर बातेँ कर रही थी उधर प्रतिभा पश्चिम आकाश में डूब रहे सूरज को देखने लगी l सफेद बादलों के पीछे सूरज बहुत लाल दिखने लगी है... सूरज की रौशनी से बादलों के धार भी लाल रंग से रंग गई है, जिसके प्रभाव से दया नदी का पानी लाल दिख रहा है l प्रतिभा को लगा आज दया नदी भी वैदेही के यादों के ज़ख्मों से निकले लहू से लाल हो गया है l
वैदेही - अच्छा मासी मेरी कहानी अधूरी रह गई.... फिर कभी मौका मिला तो...
प्रतिभा - कितना झूट कहा था तुमने.... के तु सगी नहीं है प्रताप के... जब कि तु तो सगी से भी बढ़ कर है...
वैदेही - ऐसी बात नहीं है मासी...
प्रतिभा - नहीं... अब मुझे समझ में आ रहा है... तुने क्यूँ कहा था माँ बेटी का रिश्ता तेरे लिए एक श्राप है.... और देख तेरे दुख से दया नदी भी लाल हो गई है...
वैदेही चुप रही
प्रतिभा - अच्छा, तेरे फोन से लगा... तु अब जो भी बस मिले उसमें गांव चली जाएगी.....
वैदेही - जी मासी...
प्रतिभा - चल तुझे बस स्टैंड पर छोड़ देती हूँ.....
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शाम का सुरज ढ़ल चुका है, अंधेरा निकल रहा है फिर भी पश्चिमी आकाश में लाली दिख रही है जो धीरे धीरे मद्धिम हो रही है l
होटल ब्लू इन, कमरा नंबर 504,
कमरे में मॉकटेल पार्टी अपने पुरे रंग में है l एक सम्बलपुरी धुन में सभी थिरक रहे हैं और सबकी हाथों में अपनी अपनी पसंदीदा कुल ड्रिंक की बॉटल है l सब नाचते नाचते थकने लगे तो उनके बीच से रॉकी निकल कर म्युजिक सिस्टम के पास पहुंचकर म्युजिक को बंद कर देता है l म्युजिक के बंद होते ही नाच नाच कर जो हांफने लगे थे सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l
सब बैठते ही रॉकी फ़िर से व्हाइट बोर्ड को सबके सामने लाता है और उसमे लिखता है मिशन नंदिनी l
रॉकी - मित्रों, मेरे प्यारे चड्डी बड्डी कमीनों, मेरे टेढ़े मेड़े येड़े दोस्तों.... आज हम सब फ़िर से इकट्ठे हुए हैं... मिशन नंदिनी पर अगले कदम उठाए जाने की चर्चा के लिए.... जैसा कि हमने पिछले हफ्ते प्लान किया था.. अब उससे आगे निकलने का वक्त आ गया है.... क्यूँ भाई लोग....
आशीष - ऑए ठंड रख ठंड... पहला कदम कितना सही गया उसका भी चर्चा कर लें...
सुशील - उस पर चर्चा क्यूँ... वह काम तो हो चुका है ना... क्यूँ रवि..
रवि - हाँ मेरी गर्लफ्रेंड नंदिनी की छटी गैंग से दोस्ती भी कर ली है.....
राजु - तो पहला कदम क़ामयाब रहा.... पर यह कोई बड़ी बात नहीं.. क्यूँ की अब सही में प्लान बनाया जाएगा और उस पर अमल होगा... और अंत में.... रिजल्ट पर स्कोर भी डिक्लेर होगा...
रॉकी - हाँ तो पहले.... नंदिनी की दोस्तों पर और उनके प्लान्स पर चर्चा कर लेते हैं...
राजु - हाँ तो रवि... चल बता... अब तक हमें क्या पता चला है और हमारे काम की क्या इंफॉर्मेशन है ....
रवि - देखो उनकी दोस्ती हुए अभी तीन चार दिन ही हुए हैं.... पर जितना मालुम हुआ उसको हम रॉकी के टेढ़े मेढ़े यडे ग्रुप वालों के डिस्कस व एनालिसिस करने के बाद..... इस नतीजे पर पहुंचे कि नंदिनी.... जो शायद बीस वर्ष की होने वाली है.... वह अपनी जिंदगी में बहुत अकेली रही है... भुवनेश्वर आने के बाद ही उसके जिंदगी में दोस्त अब आए हैं... वह पहले कभी ज्यादा बात नहीं करती थी पर अब अपने दोस्तों से बहुत बातेँ करती है.... इतना करती है कि सुनने वाला कंफ्यूज हो जाए कि नंदिनी सांस कब ले रही है.....
आशीष - रॉकी भाई मेरे... मैं जितना समझा हूँ.... तु थोड़ी कोशिश करेगा तो.... वह लड़की जो तेरे ख्वाबों ख़यालों में है बहुत जल्द
तेरी बाहों में होगी... और वह शिद्दत से तुझे चाहेगी...
रॉकी - यह तु कैसे बता सकता है....
आशीष - देख उसकी जिंदगी में बहुत खाली पन है जो वह.... अपने दोस्तों के जरिए भरना चाहती है.... उसे नए और बहुत अच्छे दोस्त चाहिए....
सुशील - हाँ.... अब उसकी ल़डकियों वाली दोस्तों का कोटा.... फुल हो चुका है... अब लड़के उससे कोई दोस्ती करने से तो रहे...
राजु - और मैं भी कहूंगा कि तु भी दोस्ती की पहल मत कर...
रॉकी - अबे.... अगर पहल नहीं करूंगा तो कोई और उड़ा ले जाएगा....
आशीष - अबे ढक्कन.... तुझे हमने पहले दिन से ही बता दिया था.... की कंपटीशन में तु अकेला है....
रॉकी - हाँ... अच्छा अच्छा... अरे यार वह एक्साइटमेंट में... भूल गया था...
रवि - देख उसके जिंदगी के खाली पन को दूर करने के लिए.... उसे जितने दोस्त चाहिए थे मिल गए.... अब उसे एक हीरो की ज़रूरत है.... और इस उम्र में जाहिर है हर लड़की का बॉयफ्रेंड ही उसका हीरो होता है....
राजु - हाँ बाबा जी ने सौ फीसद सही कहा है....
सब हंस देते हैं तो रवि का मुहँ खट्टा हो जाता है l
राजु - जस्ट किडींग.... दिल पे मत ले यार...
रवि - ठीक है....
रॉकी - ओके गयज.... लेटस प्रोसीड...
सुशील - हाँ राजु ने सही कहा.... अब नंदिनी को एक हीरो की जरूरत है...
रॉकी - अच्छा हीरो बनने के लिए मुझे क्या करना होगा.... चड्डी पहन कर आसमान में उड़ना होगा.... या फ़िर दीवारों पर मकड़ी की तरह चलना होगा या वीर सिंह का सिर फोड़ना होगा........
राजु - तब तो हो गई रुप तेरी....
रॉकी - क्या मतलब.......
आशीष - अबे हीरो नहीं तु विलेन बन जाएगा.....
रॉकी - तो मैं क्या करूं...
रवि - देख गुरुवार को दीप्ति लोगों की केमिस्ट्री प्रैक्टिकल क्लास है.... और उस दिन केमिस्ट्री लैब में आग लग जाएगी....
रॉकी - वाव क्या बात है.... नंदिनी आग के बीचों-बीच फंसी होगी.... और मैं जा कर उसे बचा लूँगा... तब तो मैं नंदिनी के ही नहीं उसके भाई के नजर में भी.... हीरो बन जाऊँगा...
रवि - अबे ओ शेख चिल्ली जरा दम ले.... उस आग में नंदिनी नहीं.... नंदिनी की दोस्त बनानी होगी...
सब एक साथ - "क्या"
रवि - हाँ मैंने पता किया है.... बनानी का उस दिन बर्थ डे है.... और सारी लड़कियाँ उस दिन बनानी के साथ थोड़ा एटीट्यूड दिखाएंगी..... तो बनानी उस दिन थोड़ी उखड़ी रहेगी.... और उस दिन उसके कपड़े पर दीप्ति कुछ जेली डाल देगी जिसे साफ़ करने बनानी लैब के वश रूम जायेगी... जब बनानी वश रूम में होगी, सारी लड़कियाँ उसे बाहर आने पर बर्थ डे विश करेंगी......ऐसा उनका प्लान है... पर यहीँ पर हम भांजी मार लेंगे.... लैब में आग लगेगी, सारी लड़कियाँ बाहर को भागेंगी और उस वक़्त अपना चिकना जा कर पर उस बनानी को बचा लेना..... बस
सुशील - बस नहीं कार.... अबे भोंदु यहाँ पर कुछ लॉजिक् मिसींग है....
रॉकी - मसलन....
सुशील - प्लान की डिटेल्स बाद में लेंगे.... पहला मिसींग लॉजिक्.... अगर बनानी आग में घिरी होगी तो उसे बचाने की कोशिश नंदिनी भी कर सकती है.... जरूरी तो नहीं कि वह भी दूसरों की तरह आग से डर जाए.... और दुसरा मिसींग लॉजिक्... अपना चिकना रॉकी उसी टाइम पर होगा वह भी कॉमर्स स्ट्रीम के बजाय साइंस के स्ट्रीम में वह भी केमिकल लैब के बाहर....
रॉकी - वाह क्या सोचा है...
अब बोल बे मेटिंग प्लानर
रवि - उसका भी प्लान है...
आशिष - तो उगल ना बे...
रवि - सुनो...चूँकि गुरुवार को बनानी का बर्थडे है.... तो दीप्ति और नंदिनी दोनों ने प्लान बनाया है कि बुधवार को बनानी के लिए ऑनलाइन ब्रेसलेट खरीदने की....... जाहिर सी बात है डेलिवरी की तो वह अपने हाथ है.... चूंकि प्लान के तहत गिफ्ट दोपहर दो बजे कॉलेज पहुँचेगी.... तो रिसीव करने नंदिनी को लैब से बाहर जाना ही होगा.... क्यूँकी अपना चिकना जो हीरोइजम दिखाएगा और उसका हीरोइजम टॉक ऑफ द कॉलेज होगा, तो वह नंदिनी के कानों में पड़नी चाहिए पर नंदिनी को दिखनी नहीं चाहिए....
सुशील - ह्म्म्म्म प्लान तो जबरदस्त है.... ठीक है चलो दूसरे मिसींग लॉजिक् पर अपना ज्ञान का पिटारा खोल......
रवि - इसका भी सोल्यूशन है... लैब का जो अटेंडेंट है मनोज, वह अपना यार है.... उसने अपना रॉकी से उधार लिया था जो लौटाने के लिए रॉकी को पौने दो बजे फ़ोन कर बुलाएगा.... और रॉकी उससे पैसे लेने वहाँ दो बजे तक पहुंच जाएगा....
सुशील - वाह... तू तो सच में कितना बड़ा कमीना निकला बे... तुझे तो शेरलॉक होम्स होना चाहिए बे....
रॉकी - ह्म्म्म्म
आशीष - बढ़िया... पर आग लगेगी कैसे... मेरा मतलब लगायेगा कौन... और आग लगने के वजह से लैब अटेंडेंट मनोज पर डीसीप्लिनारी एक्शन भी हो सकता है....
रवि - हाँ हो सकता है.... इसलिए वह पांच लाख रुपये लेगा....
राजु - क्यूँ रॉकी.... अपनी जेब ढीली करने के लिए तैयार हो जा....
रॉकी - पैसों की चिंता मत करो.... बस प्लान एक्जीक्यूट करो....
आशीष - पर रवि अगर आग के बीचों-बीच घुस कर बनानी को बचाना है... तो अपना हीरो भी तो ज़ख्मी हो सकता है.....
रवि - हाँ मैंने... इसके बारे में भी सोच रखा है.... रॉकी के पूरे जिस्म और अपने कपड़ों पर में अनबर्न व अनफ्लेमेबल जेली लगाएगा... जब वह लिफ्ट से केमिकल लैब पहुँचेगा...
और उसके शर्ट में जो सोल्यूशन लगा होगा उससे पूरे डेढ़ मिनिट तक आग तो जलेगी पर त्वचा तक नहीं पहुंचेगी....
उतने समय में अपना मनोज फायर एस्टींगुइसर की मदत से आग बुझा देगा.... इसलिए रॉकी बिंदास अंदर जाएगा.... और बिंदास बनानी को बचा कर पास के नर्सिंग होम ले जाएगा... और इस तरह से तु नंदिनी और उसके ग्रुप की नज़र में उनके प्यारी दोस्त को बचाने वाला हीरो होगा...
यह सुन कर सभी ताली बजाते हैं l

रॉकी - अबे मैं तो तुझे हरामी कमीना समझ रहा था बे.... पर तु तो एकदम देव मानुष निकला बे..
रवि - साले कमीने लाइन पे आ.... नहीं तो प्लान कैंसिल....
रॉकी - नाराज मत हो... मेरी जान... आई लव यू रे...
रवि - ठीक है... मेरे को कमीना ही रहने दे...
सुशील - रवि प्लान वाकई बहुत जबरदस्त है... पर एक्जिक्युट कैसे करें...
रवि - देख लंच ब्रेक के बाद उनका प्रैक्टिकल है... तुम लोगों को लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देना होगा.... वजह मैंने बताया है बाकी प्लान पर अमल करो लैबोरेट्री के पास पहुंचोगे तो जरूर मगर लिफ्ट के जरिए.... अपनी गाड़ी से कितनी जल्दी अपने पहचान वाले नर्सिंग होम में दाखिला कराओगे.....
क्यूंकि रिपोर्ट उसी आधार पर बनाने हैं और कुछ दिन बनानी को उस नर्सिंग होम में... ट्रीट देनी है... ताकि उससे मिलने बीच बीच में नंदिनी आती रहे..
जैसे ही रवि की बात खतम हुई वैसे रॉकी उठ कर रवि को गले लगा लेता है l सब दोस्त रवि को शाबासी देते हैं l
रॉकी (रवि के दोनों हाथों को पकड़ कर) यार मैं तेरी और तेरी वाली का जिंदगी भर आभारी रहूँगा....
सो दोस्तों मैं लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देता हूँ.... और तुम लोग सब कंटाक्ट में रहना... लेट फिंगर क्रॉस एंड होप फॉर बेस्ट.... अब इस कमरे में अगले हफ्ते मुलाकात होगी.........
गुड़ नाइट यारों
Fabulous update
 
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ANUJ KUMAR

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👉ग्यारहवाँ अपडेट
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हाँ मेरे जीवन में दुखों का आना बाकी था....
कहते कहते वैदेही खामोश हो गई l प्रतिभा को उसके आँखों के कोने में चमकते आँसू दिखने लगे, फिर अचानक वैदेही अपनी आँखों को पोछते हुए कहा - माँ को जब नवें महीने का दर्द शुरू हुआ बाबा अपने काम से बाहर गए थे.... माँ का दर्द बढ़ रहा था.... घर में मैं अकेली... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.... क्या करूँ... फ़िर भी माँ को नीचे दीवार के सहारे बिठा कर... मैं बाहर निकली और चिल्लायी... मौसी, काकी, मामी, भाभी.... कोई तो आओ मेरी माँ को दर्द हो रहा है....
मोहल्ले के सारी औरतें भाग कर आयी.... मेरी माँ के पास... सबने किसी तरह से बैल गाड़ी का इंतज़ाम किया और माँ को हस्पताल ले गए.... पर उस हस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं था... एक कंपाउंडर और एक RMP थे..
किसी तरह बाबा को ख़बर किया गया था.... बाबा भी आ पहुंचे थे.... पर ख़बर भेजने के बावज़ूद डॉक्टर नहीं आया था.... गांव के कुछ धाई मिलकर बच्चा पैदा होने में मदत की... पर माँ की हालत बहुत खराब हो गई थी.... बच्चा पैदा हुआ.... उसके बाद डॉक्टर पहुंच भी गया था.... पर उसका भी क्या दोष... गांव में वह हर किसीके पास जाता था... इसलिए समय पर पहुंच ना पाया... बच्चा जनते वक़्त धाईयों के लापरवाही से कोई नस कट गया था... इसलिए माँ को बचाना नामुमकिन था... ऐसा कहा था डॉक्टर ने..
बाबुजी का मन बहुत ख़राब हो गया...आस पास के सभी औरतें रोना शुरू कर दिया था... पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था.... की मेरा भाई आया है... तो सब रो क्यूँ रहे हैं.. इतने में एक औरत बाहर आ कर मुझे बुलाया... मैं उसके साथ अंदर गई... माँ बहुत कमजोर दिख रही थी... माँ ने इशारे से पास बुलाया.... और बच्चे को दिखाया..... और कहा - देख तेरा भाई आया है... क्या नाम रखेगी...
मैंने कहा - माँ वो कल स्कुल में ना मास्टर जी पढ़ा रहे थे... विश्व के प्रतापी राजाओं में खारबेल जी का नाम आता है.... तो क्यूँ ना हम भाई को विश्व प्रताप कहें.... माँ ने बड़ी ममता से मेरे चेहरे पर हाथ फेरा और कहा वाह... फिर बच्चे को अपने हाथ में लेकर पुकारा विश्व प्रताप हाँ आज से तेरा नाम विश्व प्रताप है.... और यह तेरी दीदी है... आज से यह तेरा और तु इसका खयाल रखना...
जा बेटी जा अपने बाबा को बुला ला.... मैं बाहर गई और बाबा से कहा - बाबा माँ बुला रही है..
बाबा और मैं अंदर आए तो माँ ने उन्हें कहा - अजी जानते हैं... हमारे मुन्ना का नामकरण हो गया... वैदेही ने नाम दिआ है "विश्व प्रताप" अब मेरे दोनों बच्चे आपके हवाले...
बाबा और सम्भाल ना पाए और रो पड़े - सरला...
माँ - नहीं जी... आप मुझे ऐसे विदा ना करें... मुझे वचन दीजिए... मेरे बच्चों को आप डॉक्टर बनाओगे.... ताकि कल को किसीकी यहां मेरी तरह हालत ना हो.... मैं तो भाग्यवान हूँ... माँ बनी और सुहागन जा रही हूँ...
बाबा - सरला...
माँ - बस... (माँ ने इतना कह कर बाबा को रोक दिया) वैदेही... अपने भाई का खयाल रखेगी ना...
मैंने अपना सर हिला कर हाँ कहा l फिर माँ खामोश हो गई... मैं देख रही थी सब रो रहे थे... सिर्फ मैं और मेरे भाई को छोड़ कर... क्यूंकि तब किसीका मरना मुझे मालुम नहीं था....और मेरा विशु अभी अभी तो दुनिया में आया है...

पर कुछ दीन दिनो बाद हाँ कुछ दिनों बाद माँ की कमी मुझे महसूस हुई l मैंने बाबा से पूछा तो बाबा ने मुझे माँ की तस्वीर के सामने खड़ा कर कहा - बेटी तेरी माँ भगवान के पास गई है.... और तुझे जिम्मेदारी दे कर गई के तु अपने भाई का खयाल रखेगी.... जब तु अच्छे से खयाल रख कर अपने भाई को क़ाबिल बना देगी... तब तेरी माँ आएगी.... बोल अपनी माँ को दिए वचन निभाएगी ना..
मैंने अपना सर हिला कर हाँ ज़वाब दिआ...
उसके बाद मैं विशु का खयाल रखने लगी...
अपना स्कुल व विशु दोनों के बीच समय को बैलेंस कर बाबा के साथ जी रही थी... फिर विशु का स्कुल जाने का वक्त आ गया... एडमिशन के वक्त जब आचार्य ने नाम पुछा मैंने बड़े गर्व से कहा "विश्व प्रताप महापात्र"...
उसके बाद अपनी पढ़ाई के साथ मैं विशु की पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी... इसी तरह विशु सातवीं में पहुंच गया और मैं बारहवीं में हम दोनों की बोर्ड परीक्षा हुई ...
मेरी बारहवीं की बोर्ड और विशु की NRTS बोर्ड... हम दोनों ने पुरे यश पुर को चौका दिआ था... हम दोनों भाई बहन अपने अपने कक्षा के परीक्षा में ज़िले में प्रथम हुए थे.....
सब हमें और बाबा को बधाईयाँ दे रहे थे... गांव में ज्यादा कोई सोचते नहीं थे... इसलिए सब मेरी शादी के लिए प्रस्ताव ले कर बाबा के पास आते थे.... और बाबा बड़ी विनम्रता से सारे प्रस्तावों को मना कर देते थे..
एक दिन पड़ोस के मौसी ने इस बारे में पूछा तो बाबा ने कहा वैदेही पहले डॉक्टर बनेगी.... मैंने उसके माँ को वचन दिया था... अब पुरा करने का वक्त आ गया है....
मैं यह सुन कर बहुत खुश हुई... छुट्टियां चल रही थी... हम भाई बहन गांव में खूब मस्तियाँ कर रहे थे.... एक दिन डाक में एक पत्र आया... बाबा देख कर खुश हो गए....
बोले वैदेही...
मैं - जी बाबा...
बाबा - यह देख बेटी... तेरी डॉक्टरी एंट्रेंस का कॉल लेटर आ गाय...
हम सात दिन बाद कटक जाएंगे...
मैं - खुशी से बाबा को गले लगाया और उछालते कुदते विशु को अपने हाथों से उठा कर झूमने लगी...
विशु - दीदी मुझे उतरो ना... मेरा सर चकरा रहा है... प्लीज उतारो ना...
मैं - (विशु को उतार कर) विशु मेरे भाई... मैं अब डॉक्टर बन जाऊँगी...
मैं और विशु मस्ती में नाचने लगे.... और बाबा हमे देख कर खुश हो रहे थे...
सात दिन बाद बाबा ने एक टेंपो किया था..... यश पुर जाने के लिए... टेंपो पर हम अपना समान रखने के बाद सब आस पास पड़ोस वालों से जाने की इजाजत मांगने लगे... पड़ोस के सभी पहचान वाले हमे हिदायत दे कर विदा करने आए थे...
हमारा टेंपो गली से बाहर निकला ही था कि चार चार जीप से राजा साहब के लोग पहुंचे और टेंपो को रोक कर ड्राइवर को धक्का दिया... ड्राइवर गाड़ी छोड़ कर भाग गया... उनमे से एक आदमी मुझसे बोला - चल राजा साहब आज तेरी नथ उतारेंगे..
बाबा - क्या बकवास कर रहे हो...
आदमी - तु चुप बे बुड्ढे...
इतना कह कर उसने बाबा को लात मारी और कुछ लोग विशु को बाहर खिंच कर फ़ेंक दिए.... विशु जा कर एक लकड़ी के गट्ठे पर गिरा... जिस आदमी ने विशु को उठा कर फेंका था उसी ने मेरे हाथ पकड़ कर मुझे खिंचने लगा... ठीक उसी वक़्त पता नहीं कहाँ से विशु के हाथ में एक कुल्हाड़ी आ गई थी... राजा साहब के लोग इस बात से अनजान थे... वह जो आदमी मेरा हाथ खिंच रहा था... विशु कूदते हुए उस पर कुल्हाड़ी चला दी... उस आदमी का हाथ जिस्म से अलग हो कर उखड़ चुका था...

विशु - (चिल्लाते हुआ) दीदी आप घर चले जाओ....
बाबा - हाँ बेटी घर के भीतर जाओ और दरवाजा अंदर से बंद करलेना....
विशु सिर्फ तेरह साल का था... पर उसके हाथ में खुन से सनी कुल्हाड़ी उसको और भी खतरनाक बना दिया था... वह जो आदमी मुझे खिंच रहा था.... वह नीचे पड़े छटपटा रहा था...
विशु - दीदी (चिल्लाया)
मैं होश में आयी और अपने घर की तरफ भागने लगी.... विशु और बाबा उनको रोके हुए थे... मैं घर में घुस कर दरवाजा बंद कर दिया.... पर कुछ ही समय में दरवाजा टूट कर गीर गया.... राजा साहब के कुछ लोग मुझे घर से खिंच कर ले जा रहे थे.... मैं चिल्लायी - सुर मामा, धीरू भैया, रमेश चाचा, सुनाम काका, कोई आओ मुझे बचाओ...
पर कोई नहीं आया... वह लोग मुझे खिंचते हुए ले जा रहे थे... मैंने बाबा को बुलाया.. बाबा मुझे बचाओ....
पर बाबा के जिस्म में कोई हरकत नहीं हुआ.... मैंने विशु चिल्लाया... विशु पेट के बल नीचे जमीन पर गिरा हुआ था... एक आदमी ने उसे अपने पैरों के नीचे दबा कर रखा था.... मैंने फ़िर से चिल्लाया विशु....
इस बार विशु बड़ी मुश्किल से उठा... पर उस आदमी ने उसके बालों को पकड़ कर खींच कर बिठा दिआ... मगर विशु हार नहीं मानी... किसी तरह उस आदमी के हाथ को लेकर अपने मुहँ में काट लिया... उस आदमी के हाथ से विशु छुट गया और रास्ते में पड़े कुछ पत्थरों से उन लोगों पर हमला बोल दिया... पर वह नन्हा सा जान कब तक लड़ पाता... एक आदमी ने लाठी चलाई सीधे विशु के सिर पर लगा और विशु वहीं गिर गया....
मैं फिर से चिल्लाने लगी.. काका, मामा, चाचा... कोई तो आओ मेरे विशु को बचाओ.. पर कोई नहीं आया..
और वह सारे लोग मुझे जीप में डाल कर ले जाने लगे... मैं रास्ते में चिल्लाती रही... हर पहचान वाले से मदत को गुहार लगाती रही पर कोई नहीं आया... वह दरिंदे मुझे रंग महल ले गए...
यह कहते ही वैदेही की आवाज़ भर्रा गई.... गहरी गहरी सांसे लेने लगी...
प्रतिभा यह सुन कर शुन हो गई, उसके मुहँ से कोई बोल नहीं निकल रही थी बस एक टक देखे जा रही थी l फिर वैदेही ने कहना शुरू किया - मेरे दोनों हाथ बांध दिए गए थे... और मुहँ में कपड़ा ठूँस कर मेरे मुहं पर टेप चिपका दिआ था... उन चांडालो ने... मुझे उसी हालत में लेकर रंग महल के बैठक में फेंक कर चल दिए...
तभी एक औरत मेरे पास घिसटते हुए आ कर गिरी..
मैं उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी...
राजा साहब - देख कमीनी देख... इसे तु हमारे ऐस गाह से भगा दिआ था..... तो क्या समझी थी हम उसे ढूंढ नहीं पाएंगे... आज तेरे सामने तेरी लौंडीया की नथ उतरेगी...
इतना सुन कर मैं समझने की कोशिश कर रही थी...
वह औरत - राजा साहब इसे छोड़ दीजिए.... इसकी कसूर क्या है बताइए....
राजा - इसका कसूर यह है कि यह पाइकराय वंश के वृक्ष की डाली है जिसे आज टूटना है..
औरत - यह कैसे पाइकराय परिवार की हुई.... यह आपकी वंश की बीज है... यह आपकी बेटी है...
बड़े राजा - चुप कर कुत्तीआ... हमारे पिताजी ने कसम खाई थी... के पाइकराय वंश के औरतों को पीढ़ी दर पीढ़ी रंडी बना कर रखा जाएगा.... इसलिए पाइकराय खानदान के औरतों को क्षेत्रपाल के मर्द चोदेंगे और पैदा होने वाली खानदान के वृक्ष की केवल ल़डकियों को जिंदा रखा जाएगा और लड़कों को मार दिया जाएगा.... देखा नहीं था तूने कैसे तेरी कोख से जनने वाले लड़के को मगरमच्छ का निवाला बना दिया था... आज यह चुदेगी और इससे पैदा होने वाली लड़कियां भी इस रंग महल की रंडी बनेंगी...
इतना सुनते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे....
मुझे समझ में आ गया था कि वह जो मिन्नते कर रही है वह मुझे जनम देने वाली माँ है.... यह औरत मेरी माँ है... अब धीरे धीरे मुझे बचपन की वह सारी बातेँ याद आने लगी... पर मैं हैरान थी... इन दरिंदों ने मुझे ढूंढ कैसे निकाला....
माँ - नहीं राजा साहब यह गलत है... पाप है... अपने खुन के साथ ऐसा अनर्थ ना कीजिए.... यह आपके ही वंश का अंश है... इसे बक्श दीजिए...
राजा और उसका बाप हंसने लगे, उनकी शैतानी हंसी से रंग महल भी थर्रा गया l अब माँ से बर्दाश्त ना हुआ वह भाग कर दीवार में लगी एक तलवार खिंच कर राजा के सामने खड़ी हो गई
माँ - खबरदार अगर किसीने मेरी बेटी को छूने की भी कोशिश की....
राजा की हंसी और भी शैतानी हो गई, और जोर जोर से हंसने लगा
राजा - क्या कहा था तुने... हमारे वंश वृक्ष का अंश है.... हा हा हा... तो अपने ही लगाए पेड़ का फल हम ना खा कर किसी और को कैसे खाने दें... हा हा हा
माँ - ऐ... भैरव... अपने वंश का फल खाएगा तु... इसका मतलब जब रूप जवान हो जाएगी तो उसे भी अपने नीचे सुलाएगा तु...
भैरव - कमीनी रूप कि तुलना तेरी रंडी बेटी से कर रही है....
इतना कह कर भैरव माँ के तरफ बढ़ने लगा, माँ ने तलवार उठा कर भैरव सिंह पर चलाया... पर माँ कमजोर थी और वह एक राक्षस.... तलवार की वार से बच कर पुरी ताकत से माँ को लात मारी... माँ छिटक कर ऐसे गिरी के वह उठ नहीं पाई....
माँ मुझे देख कर बस इतना कहा मुझे माफ कर दे बेटी...
इतने में भैरव सिंह मुझे मेरे बालों सहित खिंचते हुए वहीं बैठक के एक बिस्तर पर गिरा दिया... फ़िर मेरे पैरों को बिस्तर की पैरों के साथ बांध दिया और फिर हाथों को भी खोल कर बिस्तर के पैरों के साथ बांध दिआ... मैं पीठ बल उस बिस्तर बंधी हुई थी....
इतने में माँ सम्भल चुकी थी... वह फिर से तलवार उठा कर अपनी अंतिम प्रयास किया...
माँ - भैरव सिंह....
पर बीच रास्ते में ही बड़े राजा उर्फ़ नागेंद्र ने रोक दिया... और मेरी माँ को पास रखे कुर्सी पर पटक कर माँ के हाथों से तलवार छिन कर माँ के कंधे में ही कुर्सी के साथ ही वही तलवार घुषेड़ दिआ... माँ अब कुर्सी से हिल नहीं पा रही थी...
फिर नागेंद्र अपने कपड़े उतारते हुए मेरे पास आया और मेरी माँ को देखते हुए बोला - अब तेरी लौंडीया कली से फुल बनेगी... तेरे ही आँखों के सामने... और इससे जो लड़की पैदा होगी वह भी हमारे नीचे सोयेगी....
माँ बुरी तरह ज़ख्मी थी उसकी आँखे पत्थरा गई थी...
नागेंद्र अब पूरी तरह से नंगा हो कर मेरे पेट के उपर बैठ कर मुझ पर चाटों पर चाटें बरसाने लगा..
कमीनी - इस घर से भाग गई थी.... अब तेरी नथ ऐसे उतरेगी की फिर कभी भाग नहीं पाएगी..
इतना कह कर मेरे सारे कपड़े फाड़ कर निकाल दिया...
मैंने जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की थी वह मेरे साथ होने लगा... मेरे शरीर के हर कोमल हिस्से को बड़ी बेरहमी से नोचने काटने लगा... पर चिल्ला भी नहीं पा रही थी... मेरे मुहं पर टेप लगा हुआ था... फिर वह दरिंदगी हद से जा कर मेरा बलात्कार करने लगा.... मैं बेहोश हो गई... फिर बीच में जब होश आया तो मेरे ऊपर नागेंद्र नहीं भैरव सिंह था... पर मैं ज्यादा देर बर्दाश्त ना कर सकी, फिर बेहोश हो गई....
जब आँख खुली तो खुदको किसी हस्पताल में पाया... मेरी हालत इतनी खराब हो गई थी कि उन्होंने मुझे इलेक्ट्रिक शॉक दे कर मुझमें जान डाला था..
पर मैं अब जीना नहीं चाहती थी.. मैं खुद को कुछ कर देना चाहती थी.. पर हस्पताल के बेड पर मेरे हाथ बंधे थे... पास खाड़ी डॉक्टरनी को मेरी हालत व मनःस्थिति समझ में आ गई l उसने मुझसे हाथ जोड़ कर बिनती करते हुए कहा - देखो मैं जानती हूं... तुम्हारे साथ क्या हुआ है... तुम्हारा खुन बहना नहीं रुका और तुम होश में भी नहीं आई इसलिए तुम्हें इस हस्पताल लाया गया.....पर प्लीज तुम आत्महत्या मत कर लेना... अगर जिंदा और सही सलामत महल ना लौटी तो उनके कब्जे में मेरा परिवार है... वह लोग उन्हें मार डालेंगे... प्लीज....
मैं उस मजबूर डॉक्टरनी को देख कर कुछ सोचा फ़िर मैंने कहा
मैं - तो फिर एक शर्त पर...
डॉक्टरनी- मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है...
मैं - मेरे शरीर से युटेरस निकाल दीजिए...
डॉक्टरनी - क्या....
मैं - यही मेरी शर्त है...
डॉक्टरनी ने मेरा ऑपरेशन कर युटेरस निकाल दिया और दो महीने बाद जब मैं ठीक हुई तो मुझे महल ले जाया गया
अभी भी मेरे सामने कुछ अनसुलझे सवाल थे....
जिस अतीत को मैं पूरी तरह से भूल चुकी थी.. वह इस तरह मेरे सामने कैसे आया
मेरे बाबा और विशु का क्या हुआ
रंग महल में मुझे गौरी काकी मिली, क्यूंकि बचपन की बातेँ अब याद आ चुकी थी,इसलिए मैंने गौरी काकी को पहचान लिया था l मैंने गौरी काकी से मेरे अनसुलझे सवालों का जवाब मांगा
काकी - तेरी माँ की अंधी ममता तेरे लिए श्राप हो गई वैदेही....
मैं - कैसे काकी...
काकी - तु जिले में अव्वल आई... तेरी फोटो अखबार में आयी थी... वह अखबार राजा जी लेकर यहां आए थे... तेरी माँ ने अखबार में देख कर तुझे पहचान लीआ था... उसने अगर अपनी भावनाओं को रोका होता तो आज तु कहीं और होती.... पर उसकी ममता ने उसे बेबस कर दिया... एक दिन वह छुप कर तुझे देखने चली गई थी... बस राजा जी को ख़बर हो गई... उसके बाद.... (इतना कह कर काकी रोने लगी)
मैं - काकी मेरे बाबा और विशु....
काकी - उनके बारे में कुछ नहीं पता....
इतने में भैरव सिंह आया और कहा.... वह लोग जिंदा हैं... अगर तूने कुछ भी चालाकी की तो दोनों की बोटियां लकड़बग्घों को खिला दी जाएगी...
बस मैं चुप रह गई... फिर आठ सालों का नर्क... जब आठ सालों तक मुझसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो डॉक्टरनी को बुलाया गया... शुक्र था कि वह डॉक्टरनी ही थी.. वह चेक करने के बाद मुझे बाँझ कहा...
जिससे भैरव सिंह के अहं को ठेस पहुंचा.... इतने दिनों के नर्क यातना के पहली बार मुझे एक तृप्ति भरा आनंद मिला...
पर चूंकि उस वंश की शपथ अब किसी काम की नहीं थी इसलिए भैरव सिंह ने मुझे महल के बाहर निकलने का फैसला किया पर वह ऐसे तो नहीं छोड़ सकता था इसलिए एक दिन महल में में मुझे नंगा कर दिया गया और चुड़ैल कह कर मुझे बीच गांव में भगाया गया...... पहले मुझे पत्थर भैरव सिंह के लोग मारना शुरू किया फ़िर जब गाँव वालों ने भी वही किया तो भैरव सिंह के लोग वहाँ से चले गए, पर गांव के लोग मुझे दौड़ा रहे थे... मैं एकदम से थक कर एक पेड़ के पीछे छिपने कोशिश की... पर लोग मुझे पत्थर मारते रहे....
ऐसे वक्त पर एक नौजवान पहुंचा उसने एक चादर से मुझे ढक दिया... फिर चिल्लाया क्यूँ मार रहे हो...
एक - यह चुड़ैल है.. इसलिए....
नौजवान - किसने कहा...
दूसरा - राजा साहब के लोगों ने....
नौजवान - कहाँ है वे लोग...
गांव वाले आपस में बात करने लगे
नौजवान - उन्होंने झूट कह कर तुम्हारे ही हाथों से किसीकी हत्या करा रहे थे....
गांव वालों को बात अब समझ में आ गई थी
नौजवान - अब जाओ यहाँ से....
सब गांव वाले हम दोनों को छोड़ कर चले गए
वह नौजवान मुझे अपने साथ ले जाने लगा...
फिर एक घर के भीतर ले गया.... उस घर में आ कर... मैं हैरान रह गई... मैं उस नौजवान को गौर से देखने लगी.. विशु मेरे मुहँ से निकला...
अचानक वैदेही के कहानी को विराम देते हुए वैदेही की मोबाइल बजने लगी l अपने अतीत से निकल कर वैदेही वर्तमान में आई और फ़ोन उठाई,
वैदेही - ह.. हे... हैलो..
फोन - xxxxxxxxxx
वैदेही - ठीक है काकी... मैं थोड़ी देर बाद निकलुंगी.... और सुबह तक पहुंच जाउंगी...
इधर वैदेही फोन पर बातेँ कर रही थी उधर प्रतिभा पश्चिम आकाश में डूब रहे सूरज को देखने लगी l सफेद बादलों के पीछे सूरज बहुत लाल दिखने लगी है... सूरज की रौशनी से बादलों के धार भी लाल रंग से रंग गई है, जिसके प्रभाव से दया नदी का पानी लाल दिख रहा है l प्रतिभा को लगा आज दया नदी भी वैदेही के यादों के ज़ख्मों से निकले लहू से लाल हो गया है l
वैदेही - अच्छा मासी मेरी कहानी अधूरी रह गई.... फिर कभी मौका मिला तो...
प्रतिभा - कितना झूट कहा था तुमने.... के तु सगी नहीं है प्रताप के... जब कि तु तो सगी से भी बढ़ कर है...
वैदेही - ऐसी बात नहीं है मासी...
प्रतिभा - नहीं... अब मुझे समझ में आ रहा है... तुने क्यूँ कहा था माँ बेटी का रिश्ता तेरे लिए एक श्राप है.... और देख तेरे दुख से दया नदी भी लाल हो गई है...
वैदेही चुप रही
प्रतिभा - अच्छा, तेरे फोन से लगा... तु अब जो भी बस मिले उसमें गांव चली जाएगी.....
वैदेही - जी मासी...
प्रतिभा - चल तुझे बस स्टैंड पर छोड़ देती हूँ.....
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शाम का सुरज ढ़ल चुका है, अंधेरा निकल रहा है फिर भी पश्चिमी आकाश में लाली दिख रही है जो धीरे धीरे मद्धिम हो रही है l
होटल ब्लू इन, कमरा नंबर 504,
कमरे में मॉकटेल पार्टी अपने पुरे रंग में है l एक सम्बलपुरी धुन में सभी थिरक रहे हैं और सबकी हाथों में अपनी अपनी पसंदीदा कुल ड्रिंक की बॉटल है l सब नाचते नाचते थकने लगे तो उनके बीच से रॉकी निकल कर म्युजिक सिस्टम के पास पहुंचकर म्युजिक को बंद कर देता है l म्युजिक के बंद होते ही नाच नाच कर जो हांफने लगे थे सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं l
सब बैठते ही रॉकी फ़िर से व्हाइट बोर्ड को सबके सामने लाता है और उसमे लिखता है मिशन नंदिनी l
रॉकी - मित्रों, मेरे प्यारे चड्डी बड्डी कमीनों, मेरे टेढ़े मेड़े येड़े दोस्तों.... आज हम सब फ़िर से इकट्ठे हुए हैं... मिशन नंदिनी पर अगले कदम उठाए जाने की चर्चा के लिए.... जैसा कि हमने पिछले हफ्ते प्लान किया था.. अब उससे आगे निकलने का वक्त आ गया है.... क्यूँ भाई लोग....
आशीष - ऑए ठंड रख ठंड... पहला कदम कितना सही गया उसका भी चर्चा कर लें...
सुशील - उस पर चर्चा क्यूँ... वह काम तो हो चुका है ना... क्यूँ रवि..
रवि - हाँ मेरी गर्लफ्रेंड नंदिनी की छटी गैंग से दोस्ती भी कर ली है.....
राजु - तो पहला कदम क़ामयाब रहा.... पर यह कोई बड़ी बात नहीं.. क्यूँ की अब सही में प्लान बनाया जाएगा और उस पर अमल होगा... और अंत में.... रिजल्ट पर स्कोर भी डिक्लेर होगा...
रॉकी - हाँ तो पहले.... नंदिनी की दोस्तों पर और उनके प्लान्स पर चर्चा कर लेते हैं...
राजु - हाँ तो रवि... चल बता... अब तक हमें क्या पता चला है और हमारे काम की क्या इंफॉर्मेशन है ....
रवि - देखो उनकी दोस्ती हुए अभी तीन चार दिन ही हुए हैं.... पर जितना मालुम हुआ उसको हम रॉकी के टेढ़े मेढ़े यडे ग्रुप वालों के डिस्कस व एनालिसिस करने के बाद..... इस नतीजे पर पहुंचे कि नंदिनी.... जो शायद बीस वर्ष की होने वाली है.... वह अपनी जिंदगी में बहुत अकेली रही है... भुवनेश्वर आने के बाद ही उसके जिंदगी में दोस्त अब आए हैं... वह पहले कभी ज्यादा बात नहीं करती थी पर अब अपने दोस्तों से बहुत बातेँ करती है.... इतना करती है कि सुनने वाला कंफ्यूज हो जाए कि नंदिनी सांस कब ले रही है.....
आशीष - रॉकी भाई मेरे... मैं जितना समझा हूँ.... तु थोड़ी कोशिश करेगा तो.... वह लड़की जो तेरे ख्वाबों ख़यालों में है बहुत जल्द
तेरी बाहों में होगी... और वह शिद्दत से तुझे चाहेगी...
रॉकी - यह तु कैसे बता सकता है....
आशीष - देख उसकी जिंदगी में बहुत खाली पन है जो वह.... अपने दोस्तों के जरिए भरना चाहती है.... उसे नए और बहुत अच्छे दोस्त चाहिए....
सुशील - हाँ.... अब उसकी ल़डकियों वाली दोस्तों का कोटा.... फुल हो चुका है... अब लड़के उससे कोई दोस्ती करने से तो रहे...
राजु - और मैं भी कहूंगा कि तु भी दोस्ती की पहल मत कर...
रॉकी - अबे.... अगर पहल नहीं करूंगा तो कोई और उड़ा ले जाएगा....
आशीष - अबे ढक्कन.... तुझे हमने पहले दिन से ही बता दिया था.... की कंपटीशन में तु अकेला है....
रॉकी - हाँ... अच्छा अच्छा... अरे यार वह एक्साइटमेंट में... भूल गया था...
रवि - देख उसके जिंदगी के खाली पन को दूर करने के लिए.... उसे जितने दोस्त चाहिए थे मिल गए.... अब उसे एक हीरो की ज़रूरत है.... और इस उम्र में जाहिर है हर लड़की का बॉयफ्रेंड ही उसका हीरो होता है....
राजु - हाँ बाबा जी ने सौ फीसद सही कहा है....
सब हंस देते हैं तो रवि का मुहँ खट्टा हो जाता है l
राजु - जस्ट किडींग.... दिल पे मत ले यार...
रवि - ठीक है....
रॉकी - ओके गयज.... लेटस प्रोसीड...
सुशील - हाँ राजु ने सही कहा.... अब नंदिनी को एक हीरो की जरूरत है...
रॉकी - अच्छा हीरो बनने के लिए मुझे क्या करना होगा.... चड्डी पहन कर आसमान में उड़ना होगा.... या फ़िर दीवारों पर मकड़ी की तरह चलना होगा या वीर सिंह का सिर फोड़ना होगा........
राजु - तब तो हो गई रुप तेरी....
रॉकी - क्या मतलब.......
आशीष - अबे हीरो नहीं तु विलेन बन जाएगा.....
रॉकी - तो मैं क्या करूं...
रवि - देख गुरुवार को दीप्ति लोगों की केमिस्ट्री प्रैक्टिकल क्लास है.... और उस दिन केमिस्ट्री लैब में आग लग जाएगी....
रॉकी - वाव क्या बात है.... नंदिनी आग के बीचों-बीच फंसी होगी.... और मैं जा कर उसे बचा लूँगा... तब तो मैं नंदिनी के ही नहीं उसके भाई के नजर में भी.... हीरो बन जाऊँगा...
रवि - अबे ओ शेख चिल्ली जरा दम ले.... उस आग में नंदिनी नहीं.... नंदिनी की दोस्त बनानी होगी...
सब एक साथ - "क्या"
रवि - हाँ मैंने पता किया है.... बनानी का उस दिन बर्थ डे है.... और सारी लड़कियाँ उस दिन बनानी के साथ थोड़ा एटीट्यूड दिखाएंगी..... तो बनानी उस दिन थोड़ी उखड़ी रहेगी.... और उस दिन उसके कपड़े पर दीप्ति कुछ जेली डाल देगी जिसे साफ़ करने बनानी लैब के वश रूम जायेगी... जब बनानी वश रूम में होगी, सारी लड़कियाँ उसे बाहर आने पर बर्थ डे विश करेंगी......ऐसा उनका प्लान है... पर यहीँ पर हम भांजी मार लेंगे.... लैब में आग लगेगी, सारी लड़कियाँ बाहर को भागेंगी और उस वक़्त अपना चिकना जा कर पर उस बनानी को बचा लेना..... बस
सुशील - बस नहीं कार.... अबे भोंदु यहाँ पर कुछ लॉजिक् मिसींग है....
रॉकी - मसलन....
सुशील - प्लान की डिटेल्स बाद में लेंगे.... पहला मिसींग लॉजिक्.... अगर बनानी आग में घिरी होगी तो उसे बचाने की कोशिश नंदिनी भी कर सकती है.... जरूरी तो नहीं कि वह भी दूसरों की तरह आग से डर जाए.... और दुसरा मिसींग लॉजिक्... अपना चिकना रॉकी उसी टाइम पर होगा वह भी कॉमर्स स्ट्रीम के बजाय साइंस के स्ट्रीम में वह भी केमिकल लैब के बाहर....
रॉकी - वाह क्या सोचा है...
अब बोल बे मेटिंग प्लानर
रवि - उसका भी प्लान है...
आशिष - तो उगल ना बे...
रवि - सुनो...चूँकि गुरुवार को बनानी का बर्थडे है.... तो दीप्ति और नंदिनी दोनों ने प्लान बनाया है कि बुधवार को बनानी के लिए ऑनलाइन ब्रेसलेट खरीदने की....... जाहिर सी बात है डेलिवरी की तो वह अपने हाथ है.... चूंकि प्लान के तहत गिफ्ट दोपहर दो बजे कॉलेज पहुँचेगी.... तो रिसीव करने नंदिनी को लैब से बाहर जाना ही होगा.... क्यूँकी अपना चिकना जो हीरोइजम दिखाएगा और उसका हीरोइजम टॉक ऑफ द कॉलेज होगा, तो वह नंदिनी के कानों में पड़नी चाहिए पर नंदिनी को दिखनी नहीं चाहिए....
सुशील - ह्म्म्म्म प्लान तो जबरदस्त है.... ठीक है चलो दूसरे मिसींग लॉजिक् पर अपना ज्ञान का पिटारा खोल......
रवि - इसका भी सोल्यूशन है... लैब का जो अटेंडेंट है मनोज, वह अपना यार है.... उसने अपना रॉकी से उधार लिया था जो लौटाने के लिए रॉकी को पौने दो बजे फ़ोन कर बुलाएगा.... और रॉकी उससे पैसे लेने वहाँ दो बजे तक पहुंच जाएगा....
सुशील - वाह... तू तो सच में कितना बड़ा कमीना निकला बे... तुझे तो शेरलॉक होम्स होना चाहिए बे....
रॉकी - ह्म्म्म्म
आशीष - बढ़िया... पर आग लगेगी कैसे... मेरा मतलब लगायेगा कौन... और आग लगने के वजह से लैब अटेंडेंट मनोज पर डीसीप्लिनारी एक्शन भी हो सकता है....
रवि - हाँ हो सकता है.... इसलिए वह पांच लाख रुपये लेगा....
राजु - क्यूँ रॉकी.... अपनी जेब ढीली करने के लिए तैयार हो जा....
रॉकी - पैसों की चिंता मत करो.... बस प्लान एक्जीक्यूट करो....
आशीष - पर रवि अगर आग के बीचों-बीच घुस कर बनानी को बचाना है... तो अपना हीरो भी तो ज़ख्मी हो सकता है.....
रवि - हाँ मैंने... इसके बारे में भी सोच रखा है.... रॉकी के पूरे जिस्म और अपने कपड़ों पर में अनबर्न व अनफ्लेमेबल जेली लगाएगा... जब वह लिफ्ट से केमिकल लैब पहुँचेगा...
और उसके शर्ट में जो सोल्यूशन लगा होगा उससे पूरे डेढ़ मिनिट तक आग तो जलेगी पर त्वचा तक नहीं पहुंचेगी....
उतने समय में अपना मनोज फायर एस्टींगुइसर की मदत से आग बुझा देगा.... इसलिए रॉकी बिंदास अंदर जाएगा.... और बिंदास बनानी को बचा कर पास के नर्सिंग होम ले जाएगा... और इस तरह से तु नंदिनी और उसके ग्रुप की नज़र में उनके प्यारी दोस्त को बचाने वाला हीरो होगा...
यह सुन कर सभी ताली बजाते हैं l

रॉकी - अबे मैं तो तुझे हरामी कमीना समझ रहा था बे.... पर तु तो एकदम देव मानुष निकला बे..
रवि - साले कमीने लाइन पे आ.... नहीं तो प्लान कैंसिल....
रॉकी - नाराज मत हो... मेरी जान... आई लव यू रे...
रवि - ठीक है... मेरे को कमीना ही रहने दे...
सुशील - रवि प्लान वाकई बहुत जबरदस्त है... पर एक्जिक्युट कैसे करें...
रवि - देख लंच ब्रेक के बाद उनका प्रैक्टिकल है... तुम लोगों को लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देना होगा.... वजह मैंने बताया है बाकी प्लान पर अमल करो लैबोरेट्री के पास पहुंचोगे तो जरूर मगर लिफ्ट के जरिए.... अपनी गाड़ी से कितनी जल्दी अपने पहचान वाले नर्सिंग होम में दाखिला कराओगे.....
क्यूंकि रिपोर्ट उसी आधार पर बनाने हैं और कुछ दिन बनानी को उस नर्सिंग होम में... ट्रीट देनी है... ताकि उससे मिलने बीच बीच में नंदिनी आती रहे..
जैसे ही रवि की बात खतम हुई वैसे रॉकी उठ कर रवि को गले लगा लेता है l सब दोस्त रवि को शाबासी देते हैं l
रॉकी (रवि के दोनों हाथों को पकड़ कर) यार मैं तेरी और तेरी वाली का जिंदगी भर आभारी रहूँगा....
सो दोस्तों मैं लॉजिस्टिक्स पर ध्यान देता हूँ.... और तुम लोग सब कंटाक्ट में रहना... लेट फिंगर क्रॉस एंड होप फॉर बेस्ट.... अब इस कमरे में अगले हफ्ते मुलाकात होगी.........
गुड़ नाइट यारों
Fabulous update
👉बारहवां अपडेट
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सुबह का अखबार लिए तापस अपने बैठक में बैठा ख़बर पढ़ रहा था l
तापस - अरे जान.... सुनती हो....
प्रतिभा - xxxx
तापस - जान...
प्रतिभा - हूं....
तापस - क्या हुआ मेरे यार को... बेजार से लग रहे हैं...
प्रतिभा - (अपने आपको सम्हालते हुए) हाँ... क्या चाहिए आपको...
तापस - (उसके चेहरे को गौर से देखता है, और गाते हुए ) मुझे तेरी हाथ का चाय मिल जाए तो क्या बात हो...
प्रतिभा - (बिना कोई प्रतिक्रिया दिए) अभी लाती हूँ....
प्रतिभा किचन के अंदर चली जाती है, उसे जाते हुए देख तापस कुछ सोच में पड़ जाता है l थोड़ी देर बाद उसका ध्यान टूटता है जब प्रतिभा चाय का कप बढ़ाती है और वहीँ खड़ी रहती है, तापस उससे चाय ले लेता है l
तापस - क्या हुआ....
प्रतिभा - नहीं तो... कुछ भी तो नहीं हुआ....
तापस-(प्रतिभा का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाता है) क्या बात है... जब से वैदेही को छोड़ कर आई हो... खोई खोई सी रहती हो.... कहाँ है... मेरी जान...
प्रतिभा....
प्रतिभा तापस को देखती है और कहती है - सेनापति जी क्या हम आज पूरी चलें.... जगन्नाथ जी के दर्शन को...
तापस - अभी या शाम को....
प्रतिभा - क्यूँ आपका कुछ काम था क्या....
तापस - अरे वही अपना नो ड्यू और एन ओ सी लाने जैल जाना है और जगन का काम हो गया है... उसे भी उसका लेटर देना है...
प्रतिभा - क्या यह सब काम दोपहर के बाद हो नहीं सकता...
तापस - हाँ हो सकता है... पर अभी भी तुमने वजह नहीं बताई...
प्रतिभा - मुझे भगवान से माफी मंगनी है.... और दुआ मन्नत भी करनी है...
तापस - दुआ और मन्नत...
प्रतिभा - हाँ सेनापति जी... प्लीज आप जाकर तैयार हो जाइए ना...
तापस - एक शर्त है....
प्रतिभा - क्या...
तापस - मुझे मेरी जान मिल जाए तो आपकी हर हुकुम सिर आँखों पर...
प्रतिभा मुस्कराने की कोशिश करती है पर मुस्करा नहीं पाती l
तापस - (प्रतिभा का हाथ पकड़ कर) क्या हुआ बताओ... दिल में कुछ भी मत रखो...
प्रतिभा, तापस के गले लग जाती है और सुबकने लगती है
तापस - क्या हुआ प्रतिभा.... (उसके सर पर हाथ रखते हुए)
प्रतिभा - (खुदको सम्हालते हुए) व वो वैदेही की कहानी जानने के बाद दिल बहुत भारी हो गया है....
इसलिए भगवान के पास जाना चाहती हूँ...
फिर वैदेही की कहानी जितनी सुनी थी सब तापस को बता देती है l तापस सब सुनने के बाद एक गहरी सांस लेता है
तापस - हूँ... पर तुम मंदिर क्यूँ जाना चाहती हो...
प्रतिभा - जानते हैं सेनापति जी.... जब जब दुखों का पहाड़ टूटा हम पर... भगवान पर मेरा विश्वास डगमगाया... पर वह फूल सी जान जिस पर दुखों का ज़लज़ला टूटा है... उसका विश्वास भगवान से जरा भी नहीं हिला... डॉक्टर बनना था उसको... किस्मत ने उसे क्या बना दिआ... फिर भी आज वह अपने लिए नहीं बल्कि आज भी वह अपनों के लिए भगवान से दुआ मांगती है... वह भी अटूट श्रद्धा और आस्था के साथ...
तापस - यही तो फर्क़ है उनमें और हम में... बेशक वह डॉक्टर नहीं बन पाई... पर आज भी वह अपने समाज की बीमारी से लड़ रही है... और ठीक कहा तुमने... हमे उसकी इस लड़ाई के लिए दुआ मन्नत करनी चाहिए...
तुम रुको अभी मैं तैयार हो कर आता हूँ...

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कॉलेज में...

रॉकी टेंशन में है,वह छत पर एक कोने से दूसरे कोने तक चहल कदम कर रहा है, राजू उसे इस तरह से इधर उधर होते हुए देख रहा है,
रॉकी - अबे... और कितना टाइम लगेगा... उस रवि को यहाँ आने के लिए...
राजू - अब मुझे क्या पता... कितना टाइम लगेगा... आता ही होगा.. अभी क्लास भी कहाँ शुरू हुआ है... सो चील...
रॉकी - अबे तेरा चील गया तेल लेने... साला सर पर कौवे मंडरा रहे हैं.... और इन कमीनों का अब तक कोई खबर भी नहीं है....
इतने में आशीष, सुशील और रवि आकर पहुंचते हैं,
रवि - क्या हुआ... इतना टेंशन में क्यूँ है...
रॉकी - देख प्लान तूने बनाया है.... अब मुझे बिट टू बिट बता...
रवि - आ बैठ.... बताता हूं...
सब पानी के टंकी के छाँव में आकर बैठ जाते हैं
रवि - देख हमको उस छटी गैंग का गुरुवार को होने वाली हर मूवमेंट मालूम हो चुका है..... इसलिए हमे भी अपना प्लान परफेक्ट रूप से एक्जिक्युट करना है... जरा सी गलती.... जानते हो सब क्या हो सकता है....(सब ने अपना अपना सर हिलाया)
रवि - देखो हम जो करने जा रहे हैं.... वह सिर्फ छटी गैंग को लपेटे में लेने के लिए नहीं... बल्कि पूरे कॉलेज को यकीन दिलाने के लिए भी.....(रवि हाथ बढ़ाता है) देखो ना तो हम प्रोफेशनल हैं... और ना ही क्रिमिनलस हैं..... हम स्टूडेंट्स हैं... इसलिए वन फॉर ऑल एंड ऑल फॉर वन... (सब उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हैं)
रवि - देखो उनका प्लान था सिर्फ़ गिफ्ट देने की.. पर फ़िर टाइमिंग का प्रॉब्लम हुआ इसलिए उन्होंने गिफ्ट को केक के साथ जोड़ दिया... मतलब उनको केक के साथ गिफ्ट डिलीवर होगा....
रॉकी - अच्छा तो उनका टाइमिंग क्या है...
रवि - ठीक दो बजे... डिलिवरी लेने नंदिनी और दीप्ति दोनों प्रिन्सिपल के ऑफिस जाएंगे...
रॉकी - ह्म्म्म्म....
रवि - बनानी उस वक्त लैब के वश रूम में होगी... बाहर क्या हो रहा है उसे मालुम भी नहीं होगी... सबका प्लान है उसे चौकाने के लिए... पर वह चौकेगी जरूर... हम उसे चौकाएंगे....
रॉकी - यही तो... कब और कैसे...
रवि - देखो मैंने मनोज से पता लगा लिया है... पहला तो टोटल लैब इंश्योरड् है..
आशीष - अब यह मनोज कौन है...
रवि - अबे ओ गजनी की औलाद.... भूल गया क्या... लैब असिस्टेंट...
आशीष - ओ... हाँ..
रॉकी - लैब का कितना नुकसान हो सकता है...
रवि - क्यूँ...
तू इंश्योरेंस एजेंट है क्या.....
रॉकी - अबे मैं इसलिए पूछा.. अगर आग ज्यादा फैल गया तो रिस्क बहुत ज्यादा होगा....
रवि - तु उसकी फ़िकर ना कर... प्लान में इंप्रोवाइजेशन परफेक्ट हुआ है... ज्यादा नुकसान नहीं होगा... सिर्फ कंसेंट्रेटेड् लिक्विड सोल्यूशन जलेगा... बस तुझे उस के ऊपर अग्निपथ के अमिताभ बच्चन की तरह भाग कर बनानी तक पहुंचना होगा... और अपनी बाहों में उठा कर उसे बाहर लाना होगा.... उसे हस्पताल या नर्सिंग होम लेना या ना ले जाना कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन पर छोड़ देंगे....
सब - क्यूँ...
रवि - ज्यादा सीन बनाने से शक़ कर सकते हैं... और हाँ फ़िर से रिमाइंड कर रहा हूँ... तू उस दिन अपने सर पर जेल लगा कर मस्त हेर स्टाइल में आना...
रॉकी - वह क्यूँ....
रवि - क्यूंकि आग के लपटों में तेरा चेहरा और बाल खराब हो सकता है... इसी लिए अगर उस दिन सर पे जेल लगा कर आएगा.. तो तुझे अनफ्लेमेबल जेल लगाने पर कोई शक नहीं कर पाएगा... और सुन तेरा हीरोइजम सिर्फ छटी गैंग के इम्प्रेस करने के लिए नहीं... बल्कि पूरे कॉलेज को चुतिआ बनाने के लिए भी होगा... इसलिए कोई गलती नहीं...
सुशील - देख रॉकी हम सब जोश में तो हाँ कह दिए.... पर अब सब तेरे हाथ में है... यहाँ अपना फ्यूचर और कैरियर दोनों दाव पर लगी हुई है...
रॉकी - अबे डरा मत... कुछ लफड़ा हुआ तो मैं अपने उपर सब ले लूँगा... हाँ रवि अब पूरा सीन समझा...

रवि - हाँ तो सीन यह है... जब नंदिनी को खबर मिलेगी कि उसका पार्सल आया है... तब वे लोग बनानी को किसी तरह से वश रूम भेज देंगे.... बनानी के वश में जाते ही नंदिनी और दीप्ति भागते हुए प्रिन्सिपल के ऑफिस जाएंगे.... उनके नीचे जाते ही अपना रॉकी लिफ्ट से लैब तक पहुंचेगा.. पर तुझे लिफ्ट के अंदर यह जेल(एक जेल की शीशी दिखा कर)...... अपने चेहरे और बालों पर लगा लेगा...आग ठीक दो बज कर पांच मिनिट पर लगेगी.... दो बज कर सात मिनिट में आग आग चिल्ला कर सारे ल़डकियों को मनोज बाहर निकाल देगा...
रॉकी - तो क्या बनानी बाहर नहीं आ पाएगी.... क्यूँ की आवाज तो बनानी भी सुन पाएगी...
रवि - नहीं एक कंसेंट्रेटेड सोल्यूशन लैब में वश रूम के एंट्रेंस तक फैली होगी.... वह वश रूम में फंस जाएगी... तुझे बाहर तेरे लिए पहले तैयार एप्रन जो मनोज पहना होगा उसे ले लेना....उसे पहन कर अंदर जा कर बनानी तक पहुंच जाना...बनानी को अपनी दोनों हाथो से उठा कर जब बाहर निकलेगा तब तेरे एप्रन में आग लगेगी तेरे बाहर आते ही फायर एष्टींगुसर से मनोज तुझ पे लगी आग बुझा देगा... तू बनानी को छोड़ कर सीधे जेन्ट्स वश रूम को भागेगा... वहां कपड़ों के साथ वश ले लेगा और एप्रन वहीँ उतार फेंक बाहर निकल कर सीधे घर चला जाएगा... तेरे जाते ही नंदिनी और दीप्ति पहुंच जाएंगी.... अगले दिन तू अपने बाल छोटे कर पहुंच जाना.... ताकि सबको लगे के तुने अपने जले हुए बालों के वजह से बाल छोटे किए हैं...
इतना कह कर रवि चुप हो जाता है l सब ख़ामोशी से आंखें फाड़ रवि को सुन लेने के बाद सबका मुँह खुला रह गया l
रॉकी - क्या दिमाग है बे तेरा... बोले तो एकदम झकास...
राजू - साला पुलिस भी चकरा जाएगा...
सुशील - वाव... कमीना.. साला शैतान का दिमाग रखा है बे तूने..
रवि - अबे कमीनों... बस भी करो... इतने प्लानिंग में ही डीसेंट्री हो गई है... सालों मरवाओगे क्या...
रॉकी - वन फॉर ऑल... ऑल फॉर वन...
सब फ़िर से अपने हाथ मिलाते हैं


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कैन्टीन में छटी गैंग अपनी मस्ती में मजा कर रहा है l तभी कैन्टीन के अंदर वीर सिंह आता है l जिसे देख कर सिर्फ छटी गैंग को छोड़ कर सभी टेबल खाली कर चले जाते हैं l
नंदिनी - खबरदार तुम में से कोई यहां से हिला तो... मैं अभी उसे भगा कर आती हूँ...
नंदिनी अपनी टेबल से उठ कर वीर सिंह के पास जाती है l
वीर - कैसी हैं राज कुमारी जी...
नंदिनी - अच्छी हूँ...
वीर - तो दोस्त बन गए आपके...
नंदिनी - जी...
वीर - हमसे पहचान नहीं करवायेंगी...
नंदिनी - जी नहीं.... सब आपको आपसे बेहतर जानते हैं...
वीर - माय कंप्लीमेंट...
नंदिनी - आप यहाँ से शीघ्र जाएं...
वीर - हमे भगाने की जल्दी है आपको...
नंदिनी - जी राजकुमार जी... हम नहीं चाहते हमारे कोई दोस्त हमसे इसलिए दोस्ती तोड़ दें... क्यूंकि आप हमारे भाई हैं...
वीर - ओ... तो बात ऐसी है... मतलब आपके लिए दोस्त आपके भाई से ज्यादा महत्व रखते हैं...
नंदिनी - हाँ... फ़िलहाल.. इस वक्त तो हाँ...
वीर सिंह मुस्कराता हुआ बाहर निकल जाता है l नंदिनी एक गहरी सांस छोड़ती है और रिलैक्स फिल् करती है, और अपने टेबल पर हंसते हुए वापस आती है l
उधर वीर सिंह अपने क्लास में पहुंचता है l जहां एक लेक्चरर सोशलिज्म पर पढ़ा रहा है l जैसे ही वीर सिंह को देखते है लेक्चरर समेत सारे छात्र खड़े हो जाते हैं l
वीर - क्या बात है सर... आप आज समाजवाद पर पढ़ा रहे हैं... वाह बहुत अच्छा विषय है..
लेक्चरर - कहिए राजकुमार जी... कैसे आना हुआ...
वीर - मैं आया हूँ... तो मेरा अटेंडेंश कंफर्म कर दीजिए....
लेक्चरर - जी राज कुमार जी...
वीर - गुड... अच्छा मैं चलता हूँ..
इतना कह कर वीर निकल जाता है, उसके जाते ही लेक्चरर अपना लेक्चर शुरू करने वाला होता है कि तब एक छात्र खड़ा हो जाता है और कहता है - सर.... मेरा एक सवाल है सर....
लेक्चरर - येस...
छात्र - आप सोशलिज्म पर पढ़ा रहे हैं... पर आप मॉनार्की के आगे सर झुकाते हैं...
लेक्चरर - वेरी गुड.. बहुत अच्छा सवाल है... मैं इसका ज़वाब अवश्य दूँगा.... अगली बार जब वीर सिंह यहां आए तब उसके सामने यह सवाल करना... मैं ज़वाब वीर सिंह के सामने ही देना चाहूंगा....
छात्र अपना मुहँ बना कर बैठ जाता है l और लेक्चरर अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाता है l


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खान अपने चैम्बर में कुछ फाइलें चेक कर साइन कर रहा है l
मे आई कम इन.... एक आवाज़
अपने चश्मे को सही करते खान कुर्सी से उठ कर,
खान - अरे... सेनापति... क्या मज़ाक कर रहे हो... अमा यार यह तुम्हारा ही ऑफिस है...
तापस - ऊँ हूं... यह अब तुम्हारी ऑफिस है... और मैंने तुम्हें हैंड ओवर कर दिआ है... वैसे भी.. सरकार ने मेरी VRS को मंजूरी दे दी है....
खान - चलो... तुम्हारी ना सही... अपने दोस्त की ऑफिस समझ कर आ जाओ यार...
तापस हंसते हुए अंदर आता है और खान अपने चेयर से उठ कर तापस के पास जाकर उसे गले लगा लेता है l
खान - नजरें तरस गईं राह तकतें तकतें
बहुत देर कर दी हजूर आते आते
तापस - हा हा हा... अभी भी शायरी....
खान - हाँ यार... ना तुमने मज़ाक छोड़ा.. ना हमने शायरी... आ बैठ..
दोनों अपने अपने जगह पर बैठ जाते हैं l खान बेल बजाता है l जगन दौड़ कर आता है l जगन भीतर आकर दोनों को बड़े जोश के साथ सैल्यूट देता है l खान के कुछ कहने से पहले एक ठंडा पानी का ग्लास तापस के आगे रख देता है l
तापस - कैसे हो जगन...
जगन - सब आपकी कृपा है...
तापस - अरे यार... हमे इंसान ही रहने दो... (इतना कह कर अपने जेब से एक लिफाफा निकाल कर) यह लो तुम्हारा हेल्पर कांस्टेबल पोस्ट पर कमिश्नरेट से क्लीयरेंस...
जगन लेटर हाथ में लिए तापस के पैरों में गिर जाता है l तापस उसे उठा कर कहता है - देखो मैंने तुमसे वादा किया था l और यह क्या.... जब भी वर्दी में हो.. किसीके पैरों में गिर मत जाना... सैल्यूट तक ही रहना... समझे... (आँखों में धन्यबाद के आंसू लिए जगन हाँ में सर हिलाता है) और अगले महीने तुम तीन महीनों के लिए नयागड़ ट्रेनिंग के लिए जा रहे हो l सो तैयार हो जाओ...
खान - आख़िर तुमने अपना किया हुआ वादा पुरा कर दिआ....
तापस - हाँ यार... यही एक बोझ था... लो उतर गया... लाओ यार मेरा नो ड्यू और एन ओ सी...
खान - जगन जाओ और दास से कहो सेनापति के फाइल ले कर यहाँ आए..
जगन - जी सर.... सैल्यूट दे कर जगन बाहर चला जाता है l थोड़ी देर बाद दास एक फाइल ले कर अंदर आता है l
दास दोनों को सैल्यूट करता है और फाइल को खान के टेबल पर रख देता है l
खान - थैंक यु दास... (तापस की तरफ फाइल बढ़ा कर) यह लो साइन करो...
सेनापति साइन करदेता है l खान भी एक साइन कर देता है फ़िर एक काग़ज़ सेनापति को दे देता है l
खान, दास को इशारा करता है l दास वह फाइल ले कर चला जाता है l
खान - लो भाई हमने भी अपना काम कर दिआ...
तापस - हाँ.. यार.. बहुत बहुत धन्यबाद... अच्छा अब मुझे इजाज़त दो..
खान - अमा यार कभी दावत पर भी बुलाओ... अर्सा हो गया है... भाभी जी के हाथों का जाफ्रानी पुलाव खाए हुए...
तापस - क्यूँ नहीं... इस इतवार को... छुट्टी भी होगा और मौका भी, दस्तूर भी...
खान - तो ठीक है... तुम्हारे VRS की खुशी में...
तापस - डन....
अपना काग़ज़ लेकर तापस चला जाता है l खान उसे जाते हुए देखता रहता है l

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वीर सिंह ESS ऑफिस आता है l गेट के बाहर उसे अनु दिखती है
वीर - अरे तुम यहाँ... इस वक्त...
अनु - जी वह आपने इसी ऑफिस को आने के लिए बोला था..
वीर - हाँ... पर कल आने को बोला था ना... कल क्यूँ नहीं आयी..
अनु - हाँ पर कल रवि वार था ना..
वीर - तो... तो.. क्या हुआ...
अनु - क्या रवि वार को भी ऑफिस खुला रहती है क्या..
वीर - हाँ... एक मिनिट.. हम बाहर क्यूँ बात कर रहे हैं... चलो अंदर..
दोनों ऑफिस के अंदर आते हैं, और वीर एक चैम्बर में घुस जाता है, उसके पीछे पीछे अनु भी घुस जाती है
वीर पहले तो हैरान हो जाता है, फिर वह मुस्करा देता है
वीर - चलो ठीक है... पर सुबह जॉइन ना कर अब तक क्या कर रही थी...
अनु - वह नौकरी मुझे आप देंगे बोले थे... इसलिए आपकी इंतजार कर रही थी..
वीर - अच्छा...
अनु - आपने बताया नहीं... यहाँ सातों दिन काम होता है क्या.
वीर - यहाँ ऑफिस सातों दिन खुला रहता है.... पर ड्यूटी के दिन छह दिन ही होते हैं.. और एक दिन छुट्टी..
अनु - हाँ... तब तो ठीक है... अच्छा.. मुझे पैसे कितने मिलेंगे..
वीर - तुम ही बताओ... तुम्हें कितना चाहिए..
अनु - (हकलाते हुए) अ.. अठारह .... ह.. जार..
वीर - अठारह.. हजार..
अनु- ज्यादा है..
वीर - जानती हो अठारह हजार के लिए तुम्हें यहां पर तीन तीन नौकरी करनी पड़ेगी....
अनु - (हैरान होते हुए) तीन, तीन....
वीर - हाँ...
अनु - तो मैं घर कब जाऊँगी...
वीर - अरे... ऑफिस के टाइम में ही तुम्हें तीनों के काम करने होंगे....
अनु अपनी दाहिनी हाथ की नाखुन चबाती है... और कुछ सोच में पड़ जाती है l
अनु - क्या क्या करना पड़ेगा...
वीर - अरे कुछ नहीं... तुम्हारे लिए ज्यादा काम नहीं होगा...
अनु - फिर भी मुझे क्या करना होगा....
वीर - देखो, यह सेक्योरिटी सर्विस है तो तुम्हारा पहला काम यहां पर गार्ड बनना... तुम्हारे लिए आसान कर देता हूँ.. तुम मेरी इसी ऑफिस की कमरे को ही गार्ड करोगी ठीक है......
अनु-(खुशी से चहकते हुए) आ... ह... और... एक नौकरी...
वीर - और दो...
अनु - हाँ मेरा मतलब है... दुसरी...
वीर - हाँ दुसरी... मेरी पर्सनल असिस्टेंट की...
अनु - उसमें क्या करना होगा...
वीर - उसमें (एक डायरी को बढ़ाते हुए) यह डायरी लेना और मैं जिसे फोन लगाने को बोलूँ... उसे लगा देना...
अनु - क्यूँ.. आपके मोबाइल फोन में... यह सब नंबर नहीं हैं क्या...
वीर - मैं तुम्हें तीन तीन नौकरी तुम्हारी सहूलियत के लिए दे रहा हूँ... तुम मुझे काम समझा रही हो...
अनु - (घबराते हुए) नहीं नहीं मेरा यह मतलब नहीं था...
वीर - ठीक है.. ठीक है..यह दुसरी नौकरी मंजुर है...
अनु - जी जी.. हाँ... जी... और तीसरी...
वीर - वह मेरी पर्सनल सेक्रेटरी की....
अनु - सेक्रेटरी की.... वाव... उसमे क्या करना पड़ता है...
वीर - पड़ता है....
अनु - मेरा मतलब... क्या करना पड़ेगा...
वीर - कुछ नहीं..(ड्रॉयर से दो स्माइली बॉल निकालता है) आज कल इतना काम बढ़ गया है कि... मुझे इस उम्र में ही BP की शिकायत होने लगी है... तो यह दो बॉल अपने पास रखना... जब मुझे गुस्सा आ जाए... या ज्यादा पसीना आ जाए... तब यह दोनों मुझे दे देना.. ताकि मैं इसे दबाता रहूँ... ऐसे दबाना ही मेरी दवा है... कभी इसे खो मत देना... क्युकी मुझे अगर दबाने को कुछ ना मिला तो मैं पागल सा हो जाऊँगा...
अनु - ओह...
वीर - क्या तुम कर पाओगी...
अनु - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... मैं यह तीनों काम सम्हाल सकती हूँ
वीर - शाबाश..
वीर इंटरकॉम पर किसीको ऑर्डर किया
एक एपइंटमेंट लेटर में जॉब डेसक्रिपशन का कॉलम और सैलरी कॉलम खाली रख कर मेरे पास लाओ l
कुछ देर बाद एक लड़की चुइंगम चबाते हुए एक फॉर्म लाकर वीर को देती है और एक नजर अनु पर डालती है और मुस्कराकर बाहर निकल जाती है l
वीर उस फॉर्म को भर देता है, और अनु को उस पर साइन करने को कहा l अनु चहकते हुए अपना नाम साइन करने फॉर्म मांगती है, लेकिन फॉर्म को वीर पकड कर कहाँ साइन करना है दिखाता है l अनु साइन अपने सीट से उठती है और जैसे ही साइन करने के लिए झुकती है उसके बड़े बड़े चुचें उसकी कुर्ती से वैसे ही उछलकर झांकने लगते हैं l यह देख कर वीर सिंह का पूरा जबड़ा खुल जाता है l वह थूक निगल कर उस आठवें अजूबे को आँखे फाड़ कर घूरने लगता है और टेबल पर रखे स्माइली बॉल को जोर जोर से दबाने लगता है l
अनु उसे बॉल यूँ दबाते देख कर - राज कुमार जी क्या हुआ आपको..
वीर - क.. कुछ.. नहीं... तुम साइन करते रहो...
सारे कागजात पर साइन करने के बाद वीर सिंह को काग़ज़ वापस कर देती है l
वीर - वाह... कितनी अच्छी सिग्नेचर है... जी करता है... अब सारे ऑफिस के कागजात साइन करने के लिए तुम्हें दे दूँ.... (बॉल और जोर से दबाने लगा)
अनु - राजकुमार जी यह मेरे किस हिस्से में आएगा...
वीर - पर्सनल असिस्टेंट..
अनु - ठीक है... मैं कर दिआ करूंगी...
वीर - गुड़.... आरे... तुम तो बहुत अच्छी हो... जाओ कल से ड्यूटी पर आ जाना...
अनु - राजकुमार जी... धन्यबाद...
वीर - यह लो.... यह दोनों बॉल अपने पास रखो....
अनु - जी.. (वह दोनों बॉल ले लेती है) और बाहर अपनी कुल्हे मटकाते निकल जाती है l
वीर - एक चुत... साला एक चुत... आदमी को हरामी बना देता है...
Awesome update
 
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ANUJ KUMAR

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👉चौदहवां अपडेट
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पिनाक पर हुए हमले को एक दिन हो चुका है l सभी अखबार व सभी न्यूज चैनलों में इस हादसे को लेकर कॉलम लिखे गए हैं और डिबेट भी हो रहे हैं l
वीर गाड़ी चला रहा है कि उसका मोबाइल बजने लगता है l गाड़ी के डिस्प्ले में छोटे राजा जी का नाम दिखता है, वीर अपने स्टेयरिंग मैं फोन रिसीव स्विच ऑन करता है l
वीर - हैलो....
पिनाक - कहाँ हो राज कुमार जी....
वीर - जी ऑफिस जा रहा हूँ.....
पिनाक - आज शाम तक राजा साहब भुवनेश्वर पहुंच रहे हैं....
वीर - क्या.... पर क्यूँ... जो भी हुआ.... उसे युवराज जी सम्भाल लेंगे.... फिर इस बात का स्ट्रेस राजा साहब जी क्यूँ ले रहे हैं.....
पिनाक - पहले बात सुनो.... फ़िर उस पर अपना कोई मंतव्य रखो...
वीर - जी कहिए....
पिनाक - आज रात एकाम्र रिसॉर्ट का मालिकाना हक ट्रांसफ़र होगा.... KK सारे कागजात हमे सौंपेगा... इसलिए आज रात अगर तुम्हारा कोई कार्यक्रम हो तो उसे रद्द कर देना....
वीर - जी...
पिनाक - बहुत अच्छे.... (इतना कह कर पिनाक फोन काट देता है)
इतने में वीर की गाड़ी ESS दफ्तर के पार्किंग में पहुंच जाती है l वीर गाड़ी से उतर कर पास खड़े एक गार्ड को चाबी देता है l गार्ड सैल्यूट कर वीर से गाड़ी की चाबी ले लेता है l वीर जैसे ही ऑफिस की सीढ़ी चढ़ने को होता है उधर से महांती सीढ़ी उतरते हुए - गुड मॉर्निंग राजकुमार जी....
वीर - गुड मॉर्निंग महांती....
महांती - राजकुमार जी एक बात कहाना चाहूँगा.... अगर आप बुरा ना माने तो...
वीर - आप उगल ही दो... वरना तुम्हें आज बदहजमी रहेगी दिन भर...
महांती - सर कल ही छोटे राजा जी के उपर हमला हुआ है... आप को ड्राइवर के साथ-साथ सेक्यूरिटी भी ले कर चलना चाहिए....
वीर - वह जिसकी गांड में सुलेमानी कीड़ा कुलबुला रहा है... उससे डर कर मैं अपना लाइफ स्टाइल बदल दूँ.... क्यूँ भई.... उसे चूल मची है... इसलिए छोटे राजा जी के पीछे लगा है... मेरे पीछे तो नहीं है ना...
महांती - मैं वही तो समझा रहा हूँ.... उसकी दुश्मनी छोटे राजाजी से है.... और आप उनके बेटे हैं.... क्यूंकि अब वह छोटे राजा जी के सेक्यूरिटी को देख कर समझ चुका होगा... उन्हें अब छेड़ नहीं सकता है.... तो कहीं आप को वह टार्गेट ना कर दे...
वीर - थैंक्यू... महांती.... मेरे लिए इतना सोचने के लिए... पर यकीन मानों... मैं भी दिल से चाहता हूँ... की वह मेरे पीछे आए... साला लाइफ में चूल और चील तो है पर थ्रिल मिसींग है... वैसे तुम यहाँ आए किस लिए थे...
महांती - आज राजा साहब आ रहे हैं... उनके लिए सेक्योरिटी सेक्यूर करना है... इसलिए प्लान का ब्लू प्रिंट लेकर युवराज जी के पास जा रहा हूँ....
वीर - ओ...
महांती - और महीना खतम हो रहा है... सबका एटेंडेंस और ड्यूटी रोस्टर चेक करने आया था....
वीर - तो सब चेक कर लिए...
महांती - जी...
वीर - ठीक है... जाओ युवराज जी आपका इंतजार कर रहे होंगे...
महांती वहाँ से चला जाता है

वीर मन ही मन बुदबुदाता है ("साला बाहर ही खड़े खड़े पका दिआ" ) और अंदर जाता है l अंदर उसे अनु दिखती है जो किसी से हंस हंस कर बात कर रही है l वीर l अनु का हंसता हुआ चेहरा देख कर वीर के चेहरे पर अपने आप मुस्कान आ जाती है l वह अनु के तरफ बढ़ने लगता है कि उसे लगता है कि अनु किसी लड़के से बात कर रही है l वीर के चेहरे पर जो मुस्कान आई थी वह गायब हो जाता है l वीर पास आ कर देखता है के वह लड़का जिससे अनु बात कर रही है, वह ESS का ही एक गार्ड है l वीर के पास पहुंचते ही वह लड़का वीर को सैल्यूट करता है l उसकी देखा देखी अनु भी वीर को सैल्यूट करती है l
वीर - कौन हो तुम... और यहाँ क्या कर रहे हो...
लड़का - राजकुमार जी आपने मुझे पहचाना नहीं...
वीर ना मे सर हिलाता है
लड़का - राजकुमार जी मैं आपके घर गया था जॉब के लिए... और आपने मुझे एक लेटर दे कर ESS ऑफिस में जॉइन करने के लिए भेजा था...
वीर - तो तुम्हें नौकरी मिल गया है ना.. फिर प्रॉब्लम क्या है तुम्हारा... एक मिनिट तुम गदाधर नायक के बेटे हो ना...
लड़का - जी राजकुमार जी... मैं... उनका बेटा मृत्युंजय नायक...
वीर - हाँ.... और तुम्हारी माँ और बहन कैसी हैं...
मृत्युंजय - सब आपकी कृपा है... राजकुमार जी..
वीर - तुम यहाँ.... इस वक्त...
मृत्युंजय - जी.. वह... मैं... असल में अपना ड्यूटी रोस्टर थोड़ा बदलवाना चाहता था... इसलिए महांती सर से अनुरोध करने आया था... तो महांती सर ने आपसे बात करने के लिए कहा...
वीर - ह्म्म्म्म... चलो अंदर चल कर बात करते हैं....
तीनों कैबिन के अंदर आते हैं l वीर अपनी चेयर पर बैठ जाता है l दोनों खड़े रहे हैं l
वीर - हाँ... अब बोलो...
मृत्युंजय - वह राज कुमार जी.... मैं जब से नौकरी में जॉइन किया हूँ... तब से मुझे "सॉफ्ट कंप्यू सॉल्यूशन" कॉल सेंटर में नाइट् शिफ्ट की ड्यूटी दी गई है l
वीर - हाँ इसलिए ना... ताकि तुम दिन भर अपने घर पर ध्यान दे सको और अपनी पढ़ाई कर सको.... और रात में ड्यूटी कर सको....
मृत्युंजय - जी राज कुमार जी... तब चूंकि नौकरी नई नई थी इसलिए मैं सब में राजी हो गया था..
वीर - अच्छा तो अब पुराने हो गए हो...
मृत्युंजय - जी ऐसी बात नहीं है राजकुमार जी....
वीर - फिर कैसी बात है....
मृत्युंजय - रात भर ड्यूटी के बाद दिन में सो जाता हूँ... इसलिए ना तो ठीक से पढ़ाई हो पा रहा है... और ना ही घर की ध्यान...
वीर - ह्म्म्म्म तो... तुम ही बताओ... तुम्हारी ड्यूटी कब लगानी चाहिए....
मृत्युंजय - वह....
वीर - हाँ... हाँ.... बोलो...
मृत्युंजय - अगर मेरी ड्यूटी बी शिफ्ट यानी दिन के तीन बजे से ले कर रात ग्यारह बजे तक लगा देते... तो...
वीर - अच्छा जाओ... मैं देखता हूँ... क्या हो सकता है...
मृत्युंजय वीर को सैल्यूट कर बाहर निकल जाता है l वीर अनु को घूरता है l
अनु वीर को अपने तरफ ऐसे घूरते हुए देख कर अनु थोड़ी नर्वस हो जाती है l
अनु - क.. क्या.. ह... हुआ राज कुमार जी...

वीर - यह तुम उस मृत्युंजय को पहले से जानती हो...
अनु - नहीं... नहीं.. तो... क्यूँ... क्या हुआ...
वीर - तो फिर... तुम उसके साथ इस तरह से हंस हंस कर बात क्यूँ कर रही थी... जैसे बरसों को पहचान हो...
अनु - वह तो अभी आया... और हम दोनों आपके ही बारे में बात कर रहे थे... मुझे मेरे कम पढ़े लिखे होने के बावजूद नौकरी दी...
वीर - ह्म्म्म्म.... तो तुम... क्या चाहती हो....
अनु - म.. मे.. मैं क्या चाहती हूँ मतलब....
वीर - मुझे... उस लड़के... हाँ.. मृत्युंजय के लिए क्या करना चाहिए....
अनु - जी... बात उसके परिवार की है... वह रात भर बाहर रहता है... उसे.. अपनी माँ और बहन की चिंता होती होगी.... पर नौकरी की मजबूरी भी है.... आप दाता हैं... आपकी जो मर्जी...
वीर - तुम क्या चाहती हो...
अनु - (वीर को देखती है) आप उसके परिवार के ख़ातिर मृत्युंजय की बात रख लीजिए...
वीर - अगर मैं उसकी बात रख लूँ.... तो तुम्हें खुशी होगी...
अनु - जी...(मुस्कराते हुए)
वीर - तुम खुश किसके लिए होगी....क्या मृत्युंजय के लिए
अनु - (अपना सर ना में हिलाते हुए) इसलिए कि मैंने आपके बारे में जो भी कहा है... वह सच है... इसलिए...
वीर - चलो मैं तुम्हारा मन रख लेता हूँ....
अनु खुश हो जाती है और मुस्करा कर पूछती है - मैं कॉफी लाऊँ...
वीर हाँ में अपना सर हिलाता है l अनु चहकते हुए कॉफी लेने बाहर निकल जाती है l वीर मन ही मन सोचता है "कितनों को अपने नीचे लिटाया है...परवाह किसीकी नहीं की....तुझ में ऐसा क्या खास है.. के तेरी एक मुस्कान के लिए मैंने दगा अपनी उसूलों कर ली...
तभी वीर की मोबाइल बजने लगी l वीर मोबाइल के स्क्रीन पर युवराज देखता है l
वीर - हैलो...
विक्रम - आप कहाँ हो राजकुमार....
वीर - ऑफिस में...
विक्रम - (हैरान हो कर) ऑफिस को लेकर तुम कबसे इतने सिरीयस होने लगे...
वीर - कहीं पर तो सिरीयस होना पड़ेगा....
वैसे इस टाइम पर आपने मुझे कैसे याद किया...
विक्रम - तुमने नास्ता किए बगैर इतनी जल्दी घर से निकल गए...
वीर - हाँ मैं यहीं नास्ता कर लूँगा.... पर आपने बताया नहीं किसलिए याद किया...
विक्रम - हाँ आज राजा साहब आ रहे हैं...
वीर - हाँ मालूम है... मुझे छोटे राजा जी ने बताया है... और अभी अभी यहाँ पर महांती ने बताया... और वह शायद आप से ही मिलने गया होगा..
विक्रम - ओह अच्छा.
ठीक है... आज शाम को वक़्त पर पहुंच जाना...
वीर - जी युवराज...

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विक्रम फोन रख कर अपने कमरे से बाहर निकल कर डायनिंग हॉल में आता है l डायनिंग टेबल पर शुभ्रा और नंदिनी बैठ कर अपना नास्ता कर रहे हैं l विक्रम आ कर डायनिंग टेबल बैठ जाता है, थोड़ा खरास लेता है l शुभ्रा और नंदिनी उसे देखते हैं l
विक्रम - वो आज रात... एकाम्र रिसॉर्ट की ओनर शिप राजा साहब जी को ट्रांसफर होने वाली है... इसलिए आज वहीं पर रात पार्टी है... सहर के जानेमाने लोग आये होंगे... आप लोग चलेंगे तो अच्छा होगा....
शुभ्रा - मुझे पार्टियों में बोर लगती है... इसलिए मैं जाना नहीं चाहती... हाँ राजकुमारी जाना चाहें तो उन्हें आप ले जा सकते हैं...
विक्रम - यह आप कैसी बातेँ कर रही हैं... यह हमारे परिवार की फंक्शन है... और हम ही ना रहे वहां पर... ठीक नहीं लगेगा...
शुभ्रा - यह हम का क्या मतलब.....
विक्रम - हम मतलब हम... मतलब आप, राजकुमारी जी और मैं ...
शुभ्रा - और हम किसलिए जाएं....
विक्रम - हमारे परिवार की फंक्शन है... इसलिए...
शुभ्रा - युवराज जी... परिवार...? इस घर में चार लोग रह रहे हैं... आप, राजकुमार, राजकुमारी और मैं.... हम चारों में आपस में क्या सम्बंध है... युवराज जी...
विक्रम - यह आप कैसी बातेँ कर रहे हैं... आप इस परिवार की बहू हैं... हमारी अर्धांगिनी हैं... राजकुमारी जी और राजकुमार जी की भाभी हैं...
शुभ्रा - क्या मैं अपने देवर को कभी देवर जी बुलाया है, क्या आप अपनी बहन को बहन बुलाया है... क्या आप अपने पिता जी को पिताजी कह कर बुलाया है... क्षेत्रपाल परिवार के सभी पुरुष बाहर जिस परिचय लिए परिचित हैं... वे उसी परिचय लिए परिवार वालों के साथ रहते हैं... हम घर में हैं या बाहर हैं यह मालूम नहीं पड़ता..... यह
रिश्ते, यह नाते वास्तव में आपकी राजसी रुतबे के नीचे दब कर दम तोड़ चुकी हैं... इसलिए उन रिश्तों का हवाला मत दीजिए... क्यूंकि ऐसी खोखली रुतबों को ढ़ो कर आपके उस हाई सोसाइटी में मुझे दम घुटने लगती है.... इसलिए आप ही वह पार्टी अटेंड कीजिए... मुझे माफ करें... और आपके उस पार्टी में आने वाली बड़े घरों की औरतों... पार्टी में फैशन परेड करने आती हैं ना कि कोई पार्टी अटेंड करने.... मुझे किसीको देखने या दिखाने नहीं जाना है....
विक्रम खामोश रहता है l वह नंदिनी की तरफ देखता है l नंदिनी बेफिक्री से अपना नास्ता कर रही है l
विक्रम - राज कुमारी जी... क्या आप जाना नहीं चाहेंगी...
नंदिनी - जी नहीं.. युवराज जी...
विक्रम - क्यूँ...
नंदिनी - वह जिनके पार्टी में जाने की बात कर रहे हैं... क्या उन्होंने कोई न्योता भेजा है...
विक्रम - वह हमारे पिता राजा साहब हैं...
नंदिनी - हमारे...? वह सिर्फ हमारे नहीं... बल्कि पूरे स्टेट के राजा साहब हैं.... और जैसा कि भाभी ने कहा राजसी रुतबे, जरूरतें रिश्तों को अपने नीचे दबा कर खत्म कर चुकी हैं.... इसलिए रिश्तों की आड़ में उन राजसी ढकोसलों को ढोने की बात ना करें... वैसे भी हमारे लिए कोई नियम बदला नहीं है... ना राजगड़ में ना भुवनेश्वर में...
इतना कह कर नंदिनी वहाँ से उठ कर चली जाती है l शुभ्रा भी विक्रम को बिना देखे वहाँ से उठ कर चली जाती है l विक्रम मन मसोस कर रहा जाता है l तभी एक नौकर आकर महांती की आने की खबर करता है l विक्रम बिना खाए वहाँ से उठ कर चला जाता है l
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खान फाइलों पर झुक कर बड़े ध्यान से कुछ पढ़ कर पास रखे डायरी में नोट बना कर लिख रहा है l
"मे आई कम इन सर" सुनकर खान दरवाजे के तरफ देखता है l
खान - आओ दास आओ.. कुछ खास....
दास - जी सर... (एक लिफाफा टेबल पर रखते हुए) इसे देखिए.... शायद आपको इंट्रेस्ट हो...
खान दास को देखते हुए लिफाफा अपने हाथ में लेता है l पाने वाले के नाम "विश्व प्रताप महापात्र" और भेजने वाली संस्थान का नाम पढ़ते ही खान की आँखे बड़ी हो जाती हैं और भौवें तन जाती हैं l
खान - दास यह आदमी क्या है.... मैं जितना सोचता हूँ के इसे समझ गया... हर दूसरे पल यह आदमी उतना ही मुझे चौंका देता है....
दास - xxxxxxxx
खान बेल बजाता है l एक संत्री अंदर आ कर सलामी देता है l
खान - विश्वा को जानते हो....
संत्री - जी सर....
खान - ह्म्म्म्म मैं भी यही सोच रहा था... जाओ उसे कहो... इसके काम की एक खत मेरे पास आया है.... आकर मुझसे ले ले....
संत्री - जी सर.... (इतना कह कर वह संत्री चला जाता है)
दास - एसक्युज मी सर, आई मैं लिव नाउ...
खान - ओह येस.... एंड थैंक्यू....
दास सैल्यूट दे कर बाहर निकल जाता है l खान उस लिफ़ाफ़े को देख कर सोच में डूब जाता है l
कुछ देर बाद "क्या मैं अंदर आ सकता हूँ"
खान - हाँ विश्व प्रताप आइए.... और बिना कोई तकल्लुफ के बैठ जाईए....
विश्वा बिना कोई विरोध किए खान के सामने बैठ जाता है l
विश्वा कुछ नहीं कहता है, खान भी चुप रहता है l जब विश्वा ना खान से लिफाफा मांगता है ना कुछ बात करता है, तो खान विश्वा को देखने लगता है l विश्वा के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखता है l खान को उसकी ख़ामोशी कचोटती है, तो रह नहीं पता, इसलिए ख़ामोशी तोड़ते हुए - जानते हैं विश्व बाबु... मैंने आपको क्यूँ बुलाया है....
विश्वा - जी...
खान - क्या.... सच में...
विश्वा - आपके पास मेरा AIBE की एंट्रेस एडमिट कार्ड आया होगा...
खान - हाँ... म.. मतलब... कैसे...
विश्वा - जो भी वकालत करता है.... AIBE उसका अगला पड़ाव होता है...
खान - हाँ.... पर... तुम सजायाफ्ता हो... आई मिन.. यू आर कंवीक्टेड...
विश्वा - स्टेट बार काउंसिल के जरिए रजिस्ट्रेशन और रिकॉमेंडेशन से...
और आप ने उस एडमिट कार्ड में ऐनेक्सचर जो अटैच है उसमें टर्मस एंड कंडीशन में साफ लिखा है......शायद पढ़ा नहीं है...
खान - ओह...
विश्वा - सर अगर आप ने इसी लेटर के लिए बुलाया था तो एक फेवर कर दीजिए...
खान - हाँ... क्या...
विश्वा - इस एडमिट कार्ड को... सेनापति सर जी तक पहुंचा दीजिए... बाकी वह देख लेंगे...
खान - हाँ.. जरूर... (थोड़ा सा हंसी आ गई) मुझे पच्चीस साल से ज्यादा हो गए कानून को सेवा देते हुए.... पर कानून की इतनी बारीकीयों से पुरी तरह से अनजान रहा....
विश्वा - यह भारतीय संविधान व कानून व्यवस्था है.... जिसके छेद में चूहा भले ही ना निकल पाए मगर हाती जरूर निकल जाता है....
खान - तुम्हें कानून की डिग्री हासिल किया कौनसे छेद की तलाश में ... और तुम कौन हो... चूहा या हाती...
विश्वा - कानून की डिग्री इसलिए हासिल की... ताकि उन छेदों को बंद कर दूँ जिससे ना चूहे निकल सके ना हाती... और रही मेरी बात तो अब मैं शिकारी बन गया हूँ...

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होटल ब्लू इन की छत पर रॉकी खुशी से चिल्ला रहा है,उछल रहा है, नाच रहा है, कूद रहा है, गाना गा रहा है l
उसके सारे दोस्त उसे देख रहे हैं l
रॉकी - आ.. ह.... हा हा हा... हो हो हो ओ...
राजू - बस रॉकी बस...
रवि - अरे यार इसे पकड़ लो.... इसकी खुशी बेकाबू हो गई है... पागल हो गया है...
सुशील और आशीष रॉकी को पकड़ लेते हैं l उसे पकड़ कर बिठा देते हैं l
राजू - अबे तुझे क्या हो गया है.... यार खुद को सम्भाल... क्यूँ हमे डरा रहा है...
रॉकी - ऑए राजू... प्यार तुम करियो... मत डरियो... यह प्यार बड़ा मजा देता है...
रवि - ऑए पागल... होश में आ... एक तो बुलाया है और हमे डरा भी रहा है...
आशीष - हाँ यार... प्लान के मुताबिक... हमे तो कल इकट्ठे होना चाहिए था... अचानक एक दिन पहले क्यूँ...
रॉकी - ऑए.. मित्रों.. कमीनों... आज मुझे उड़ना है... यारों मैं आज बहुत खुश हूँ...
रॉकी रवि को खिंच कर उसके गाल पर एक लंबा चुम्मा लेता है l रवि उससे छूटने की कोशिश करता है l
रवि - अबे छोड़.. छी.. छी.. छोड़ मुझे...
सुशील - अबे सब धीरे से खिसक लो... साला पागल हो गया है...
रवि - चिल्लाता है... बचाओ...
रॉकी उसे छोड़ देता है l
रॉकी - चील यारों चील...
मेरे दिल, जिगर, फेफड़ों के टुकड़ों तुम जियो हज़ारों साल यह दुआ है मेरी...
रवि - ऑए... बता ना फिर क्या हुआ....
रॉकी - जैसा कि पहले प्लान सेट था... मैंने अपना काम कर दिआ था... तुम लोगों जो भविष्य वाणी की थी वह सच हो गया था...
अरे यार... मेरे हीरो गिरी के चर्चे घर तक पहुंच गया था... कल ही प्रिन्सिपल बुढ़ोउ ने पापा को फोन पर बता दिआ था... और जैसे कि प्लान के मुताबिक.. मैं हेयर कट कर घर पहुंचा..... पहले तो गालियों की बौछार हुई... फिर टिपीकल इंडियन मॉम की एंट्री.... थोड़े आँसू.. थोड़े रोने के बाद.... पापा ने मुझे शाबासी दी...... फिर पापा बोले कि कल यानी आज कॉलेज में पहले प्रिन्सिपल से मिल लूँ...
मैं आज सुबह तैयार हो कर प्रिन्सिपल के ऑफिस गया था... ऑए होय.... क्या बताऊँ मित्रों.... प्रिन्सिपल ने मेरी इतनी तारीफ की... मुझे बहुत शर्म आने लगी.... खैर... फिर प्रिन्सिपल ने कहा कि उन्हें मालूम है कि उनके मना करने के बावजूद वह अग्नि कांड का विडिओ वायरल हो चुका है.... वेल कॉलेज के रेपुटेशन पर कोई आंच तो नहीं आई.... पर तरह तरह की गॉसिपींग हो रही है.... क्यूंकि तुम आज के जेनरेशन के हो तो कुछ ऐसा करो की लोग वह गॉसिपींग को भूल जाएं.... मैंने भी जोश में आकर कहा ठीक है सर मनडे को मैं आपके सामने एक प्लान ले कर आऊंगा... अगर आपको पसंद आए तो उस पर हम आगे बढ़ेंगे.... इतना सुन कर बुड्ढा बहुत खुश हुआ और मुझे बेस्ट ऑफ लक बोल कर मुझे जाने को कहा.... मैं भी अपनी खुशी को दबाये बाहर आया.... ऑए यारों अब मैं क्या कहूँ.... प्रिन्सिपल ऑफिस के बाहर ही छटी गैंग मेरा इंतजार कर रही थी.... मुझे देखते ही सब मेरे पास आए और मुझे सबने थैंक्स कहा... फिर सबने मुझसे हाथ भी मिलाया.... और जाने जिगर के छल्लो मुझसे नंदिनी भी हाथ मिलाई.... आह.... यारों मैं तब से सिर्फ उड़ ही रहा हूँ....
राजू - चल अब तक सब सही गया है... अच्छा रवि तूने मनोज को पैसे दे दिए...
रवि - हाँ उसे पांच लाख रुपये दे दिए......
सुशील - ह्म्म्म्म तो.. रॉकी साहब.... अब आप प्रिन्सिपल को कौनसी टोपी पहनाने वाले हो...
रॉकी - यह मुझे क्या पता.... यारों तुम लोगों को बुलाया भी इसीलिए है...
सब - क्या..... क्या मतलब है तेरा....
रॉकी - देखो पहला स्टेप था उनके ग्रुप में किसीको सेट करना सो हो गया.... दूसरा स्टेप था उनके नजर में आना... वह भी इम्प्रेशन के साथ... वह भी हो गया....
आरे मित्रों, बंधुओं अब प्रिन्सिपल ने हमे मौका दे रहा है.... इस मौके को भुनाना है... हम कुछ ऐसा करते हैं कि हमारे इस प्रोग्राम में वह छटी गैंग भी सामिल हो जाए...
आशीष - अबे ऑए येड़े.... यह मन ही मन पेड़े खाना छोड़... साले इतने में ही हमारे ब्लड प्रेशर इधर की उधर हो गई...
राजू - और नहीं तो क्या.... तुझे इतनी जल्दी किस बात की है.... अबे हम पहले भी बता चुके हैं.... रेस में तू अकेला है...
रवि - भई... अब मेरा दिमाग शुन्य हो चुका है.... मुझे माफ करो....
रॉकी - क्या यार... अब मौका खुद किस्मत दे रहा है... और तुम लोग कुछ कर नहीं रहे हो...
आशीष - वैसे मेरे पास एक प्लान तो है....
सब - क्या...
आशीष - हाँ... है तो.. पर पता नहीं... प्रिन्सिपल को पसंद आएगा या नहीं....
रॉकी - तो बोल ना... अगर हम सबको पसंद आ गया.. तो प्रिन्सिपल तक पहुंचा देंगे...
आशीष - देख... मेरा चचेरा भाई है... जो एफएम 97 में रेडियो जॉकी है...
रवि - हाँ तो...
आशीष - देखो अब मेरी प्लान ध्यान से सुनो.... मेरा कजीन सुरेश नाम है उसका.... वह एक थ्रिलींग मोमेंट को सब के पास पहुंचाना चाहता है... मतलब एफ एम स्टूडियो को बाहर लोगों के बीच लाना चाहता है पब्लिक में से किसी एक को रैंडमली सिलेक्टेड कोई सब्जेक्ट चुन कर एक दिन की मोहलत देते हैं प्रेजेंटेशन के लिए.... तो क्यूँ ना हम अगले हफ्ते उसे बुलाए..... ऐसा किसी भी कॉलेज में नहीं हुआ है.... हमारी कॉलेज में पहली बार होगा.. तो यह भी टॉक ऑफ द यूथ होगा....
रॉकी - वाह क्या बात है... सालों दिमाग रखे हो या सुपर कंप्युटर...
राजू - इसमें हम उन ल़डकियों को कैसे सामिल करेंगे... और किसे और कैसे मौका देंगे....
सुशील - हाँ... यह पॉइंट है...
आशीष - उन ल़डकियों को सामिल कराने का जिम्मा... रवि की गर्ल फ्रेंड की है.....
रवि - अबे... यह क्या बोल रहा है...
रॉकी - हाँ... आशीष... ठीक कह रहा है....
आशीष - तो इसबार टॉपिक कोई भी हो रेडियो एफ एम पर नंदिनी प्रेजेंटेशन देगी...
रवि - कैसे...
आशीष - सारे स्टूडेंट्स से कहा जाएगा कि वे सब अपना नाम एक चिट पर लिख कर हमें दें... हम उसकी नामकी लॉटरी निकलेंगे...क्यूंकि रूल यही है कि जिसका नाम आयेगा... वही प्रेजेंटेशन देगा... सिम्पल...
रॉकी - वाव तो इसबार.... नंदिनी का नाम आयेगा... वाह... पर अगर प्रोग्राम फ्लॉप हो गया तो...
आशीष - अगर फ्लॉप रहा तो नंदिनी का दिल टुटेगा... और उसकी टुटे हुए दिल को सहारा दे देना.... और प्रोग्राम हिट हुआ... तो चिकने.... वह तुझे फिरसे थैंक्स कहेगी और हाथ भी मिलाएगी....
रॉकी - वाव... ओ.... हो... हो
Super nice update
 

ANUJ KUMAR

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👉पंद्रहवा अपडेट
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शाम ढल चुकी है, रात परवान चढ़ रही है l एकाम्र रिसॉर्ट को दुल्हन की तरह सजा दी गई है l रौशनी से रिसॉर्ट जग मगा रहा है l अंदर मेहमान आने शुरू हो गए हैं l सारे मेहमानों को महांती के साथ KK बाहर खड़े हो कर स्वागत कर रहे हैं और अंदर पिनाक नौकरों को सबको ठंडा गरम पूछने को हिदायत दे रहा है l विक्रम और वीर एक जगह पर बैठे हुए हैं l
विक्रम - क्या बात है.... राजकुमार.... तुम कब सुधरोगे.... राजकुमार हो... राजकुमार जैसे दिखो तो सही.... सिर्फ धौंस ज़माने के लिए राजकुमार वाला एटिट्यूड दिखाने से क्या होगा..... कपड़ों से और चेहरे से वह रौब और रुतबा झलकना चाहिए....
वीर - अब आप भी... छोटे राजाजी की तरह बोलने लगे....
विक्रम - तो क्या गलत बोलते हैं... छोटे राजाजी...
वीर - xxxxxxx
विक्रम - पार्टी हम दे रहे हैं... हमारे रौब और रुतबा भी अनुरूप होना चाहिए....
वीर - xxxxxxx
विक्रम - राजकुमार जी...
वीर - युवराज जी.... मैं समझ रहा हूँ... चूंकि आपको बोर लग रहा है... इसलिए आप मुझे पका रहे हैं....
विक्रम - xxxxxxx
वीर - आप मुझे समझा नहीं रहे हैं.... बल्कि खीज निकाल रहे हैं....
विक्रम - xxxxxx
वीर - क्या बात है युवराज..... लगता है... आपके दिल में कोई बात है....
विक्रम वहाँ से उठ कर चला जाता है l वीर उसे जाते हुए देखता है l
"राजकुमार" आवाज़ सुन कर वीर पलट कर देखता है l पिनाक उसे इशारे से बुला रहा है l वीर अपने जगह से उठता है और पिनाक के पास जाता है l
वीर - क्या हुआ... छोटे राजा जी.... नौकर चाकर मर गए क्या.... आपको आवाज़ दे कर बुलाना पड़ रहा है.....
पिनाक - कुछ खास लोगों से पहचान करवानी थी.... इसलिए आवाज़ दे कर बुलाया आपको.... इनसे मिलिए... यह हैं छत्तीसगड से रायगड़ के राजा हैं भास्कर सिंह जुदेव....
वीर - प्रणाम... महाराज...
भास्कर - यशस्वी भव... राजकुमार... क्या कर रहे हैं आज कल...
वीर -( एक गहरी सांस लेने के बाद) एम कॉम फाइनल ईयर में हूँ... स्टूडेंट्स यूनियन प्रेसिडेंट हूँ और अभी जो सेक्यूरिटी सर्विस देख रहे हैं अपने इर्द गिर्द मैं उस संस्थान में CEO हूँ...
भास्कर - वाव... ग्रेट.. इतनी सी उम्र में... इतना कुछ..सम्भाल रखा है आपने... वैसे आप इंडिया में क्यूँ पढ़ाई कर रहे हैं.... फॉरेन में क्यूँ नहीं की.....
वीर - (पिनाक पर एक नजर डालने के बाद) अपनी मिट्टी से दूर होने से लोगों के बीच रौब और रुतबा कम हो जाता है....
भास्कर - ठीक.. ठीक... वाह छोटे राजा जी... आपका राजकुमार तो हीरा है..
पिनाक-कोई शक़...
भास्कर - वैसे राजकुमार... मानना पड़ेगा आपके ESS गार्ड्स को.... मैं इस साल झारसुगड़ा में मित्तल ग्रुप के फंक्शन में गेस्ट बन कर गया था... वहीँ पर ESS कमांडोज की डेमॉनस्टेशन देखा था... वाकई किसी भी सरकारी कमांडोज को मात दे सकते हैं....
वीर - शुक्रिया... महाराज जी...
भास्कर - अरे छोटे राजा जी यह राजा साहब कब आयेंगे...
पिनाक - राजा साहब वक्त के साथ नहीं... वक्त राजा साहब के साथ चलता है... घड़ी में कुछ ही सेकंड रह गए हैं... यकीन मानिये... राजा साहब पहुंच ही जायेंगे...
इतने में सभी गार्ड्स मैन गेट के तरफ भागते हैं, एक सफेद रंग की रॉल्स रॉयस आकर रुकती है, जिस पर 0001 का नंबर लिखा हुआ है l जब सारे गार्ड्स अपनी पोजीशन ले लेते हैं तभी भैरव सिंह गाड़ी से उतरता है l KK उसकी गाड़ी का दरवाजा खोलता है l
भैरव सिंह अकड़ और गुरूर के साथ पहनावे को ठीक करते हुए लॉन में बने पंडाल की बढ़ने लगा l सब मेहमान उसे ही देख रहे हैं l पंडाल पर पहुंच कर सीधे अपनी कुर्सी पर बैठ गया l किसीको कोई अभिवादन नहीं किया ना ही किसीको हाथ उठा कर नमस्ते किया l पर सभी मेहमान उसे सम्मान के साथ बधाई भी दे रहा था l पिनाक भास्कर को लेकर पंडाल की ओर बढ़ गया l वीर जा कर विक्रम के पास खड़ा हो गया l
वीर KK को भाग दौड़ करते हुए देख कर विक्रम को कहा - युवराज जी इस पार्टी में होस्ट कौन है और घोस्ट कौन... पता ही नहीं चल रहा है...
विक्रम - ह्म्म्म्म....
पंडाल में पहले दीप प्रज्वलन किया जाता है l फ़िर ग्यारह ओड़िशी नर्तकियाँ मंगला चरण नृत्य प्रस्तुत करते हैं l
विक्रम अपनी जगह से निकला और एक वेटर से दो शराब की बोतल ले कर कहीं बाहर चला जाता है l वीर उसे जाता देख कर उसके पीछे चला जाता है l विक्रम रिसॉर्ट के एक तरफ़ जहां एक नकली झरना बना हुआ है उसके तालाब के किनारे जा कर बैठ जाता है और एक बोतल खोल कर सीधे गटक ने लगता है l उसे देख कर वीर भाग कर जाता है और कहता है
वीर - यह क्या कर रहे हैं राजकुमार... ऐसे रॉ पियेंगे तो लिवर जल जायेगा...
विक्रम - (आधी बोतल गटकने के बाद) जले हुए को क्या जलायेगा...
वीर - युवराज जी... यह आप अपनी ऐसी हालत क्यों बना रखी है...
विक्रम - (उसे देखते हुए ) जानते हो राज कुमार हम दोनों का रिस्ता क्या है....
वीर - हम... भाई हैं... क्षेत्रपाल परिवार के वारिस हैं...
विक्रम - फिर तुम्हें मैं राजकुमार क्यूँ कह रहा हूँ... और तुम मुझे युवराज....
वीर - xxxxxx
विक्रम - क्यूंकि हमे बचपन से यही दिव्य और ब्रह्म ज्ञान दिया गया है... यही पहचान है घर दुनिया के लिए और हर रिश्तों के लिए....
वीर इस बार भी चुप रहता है और विक्रम के पास बैठ जाता है l
विक्रम - हमे यही सिखाया गया... कभी किसीके आगे मत झुकना.... अभी तुमने देखा ना... सब राजा साहब को हाथ जोड़ रहे थे... बधाई दे रहे थे... पर राजा साहब किसीको ना अभिवादन किया... यही उन्होंने हमे विरासत में दी है....
जिसकी वजन के नीचे हमारी आपसी रिश्ते दम तोड़ चुकी हैं..... हम राजा साहब की धौंस को सब पर थोप रहे हैं... यही हमे सिखाया गया है... कोई हमे पहचाने या ना पहचाने पर सबके मन में राजा साहब का डर होना चाहिए... और हमे यह रेस्पांसीबिलीटी दी गई है... के हम राजा साहब की खौफ को जन जन तक पहुंचाए.....
विक्रम बोतल उठाकर उसे खाली कर देता है और खाली बोतल को फेंक देता है l
मैंने उसे टूटकर चाहा.... इतना चाहा कि.... राजा साहब के इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी भी की... पर ना उसका प्यार मिला ना उसका दिल जीत सका....
जानते हो.... राजा साहब भी शादी के लिए तैयार क्यूँ हुए.. क्यूंकि उसकी पिता जगबंधु सामंत सिंहार का पार्टी में राजा साहब से भी बड़ा और जबरदस्त रुतबा था.... इसलिए मजबूरी में शादी को राजी हुए.... पर अकड़ देखो ऐसा जैसे किसीके आगे नहीं झुकते....
हम झूट और नकली जिंदगी जी रहे हैं....

वीर विक्रम के कंधे पर अपना हाथ रखता है l विक्रम भी अपना एक हाथ कंधे पर ले कर वीर के हाथ पर रख देता है.
मैं हर सुबह एक आस लिये उठता हूँ... के एक बार... हाँ एक बार... उसकी आँखों में अपने लिए सिर्फ एक बार चाहत देखूँ... उसके लिए मैं कई मौतें मरने के लिए तैयार भी हूँ... पर हर शाम सूरज की तरह मेरी आस भी डूब जाती है... फिर एक नई सुबह के इंतजार में....
उसके और मेरे बीच एक समंदर के जितना फासला है.... उस समंदर के जितना मेरे दिल में उसके लिए प्यार है.... हाँ यह बात और है कि उसी समंदर के जितना मेरे लिए उसके दिल में नफरत है....
विक्रम और एक बोतल खोलता है, वीर उसे रोकने की कोशिश करता है तो विक्रम उसके हाथों को छिटक देता है, और फ़िर बोतल को अपने मुहँ से लगा कर कुछ घूंट पीता है l
विक्रम - राजा साहब उसे बहु नहीं मानते.... भले ही उसे उपर से कभी कभी बहु बुलाते हैं... वह राजगड़ में नहीं रह सकीं तो हम भुवनेश्वर आ गए... और यहाँ हम इतने बड़े घर में सिर्फ़ चार लोग रहते हैं.. हमारी अपनी अपनी चारदीवारी है... पर उस घर में हम एक दूसरे से पीठ किए खड़े हुए हैं और जुड़े हुए हैं....
मैं... भगवान को नहीं मानता, क्यूँकी हम राक्षस हैं.... शायद राक्षस भी बहुत छोटा हो जाएगा हमारे कर्मों के आगे....
तुम पूछ रहे थे ना मैं क्यूँ रंग महल नहीं जा रहा हूँ.... रंग महल में हम क्या बन जाते हैं... हमारे बीच क्या कोई रिस्ता रहता भी है... शराब, कबाब और औरत को वहाँ हम आपस में ऐसे बांटते हैं जैसे भेड़िये गोश्त को आपस में बांटते हैं....
मैं ऊब गया हूँ... इन सब चीजों से.... मेरा इन सबमें ना.... साचुरेशन लेवल पर आ गया है.... हम क्षेत्रपाल हैं... कभी राम की राह पर नहीं चल सकते हैं.... और रावण भी छोटा लगने लगता है... ऐसे कर्म करने लगे हैं....
बस एक ही ख्वाहिश है... एक मुस्कान उसके चेहरे पर, वह भी अपने लिए... एक बार देख लूँ... पर यह अब कभी मुमकिन नहीं होगा...
शादी के फोरॉन बाद जब मुझे पता चला...... कि वह माँ बनने वाली है... तब मैंने कसम खाई की उसके कदमों में दुनिया की हर खुशी ला कर रख दूँ... मैं उस दिन सहर के एक दुकान से सारे खिलौने ख़रीद कर घर ले आया था... पर उसी दिन मुझे मालूम हुआ... उसने मेरे बच्चे को गिरा दिया है....
यह कह कर विक्रम की रुलाई फुट पड़ती है, और वीर यह नई बात जान कर बहुत हैरान हो जाता है l रोते रोते विक्रम बेहोश हो जाता है l वीर अपने चारो तरफ देखता है, कोई उनके तरफ नहीं देख रहा है, शायद उन पर किसीका ध्यान ही नहीं है l वीर विक्रम को अपने कंधे पर उठा कर अपनी गाड़ी के पिछले सीट पर सुला देता है और चारों तरफ नजर दौड़ाता है, सभी लोग पार्टी में इंजॉय कर रहे हैं l वीर गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है और गाड़ी स्टार्ट कर रिसॉर्ट से निकल कर घर की ओर चल देता है l आज विक्रम के बारे में कुछ ऐसा मालूम हुआ है जो उसके दिमाग को हिला कर रख दिया है l वह सोचने लगता है - "युवराज और शुभ्रा भाभी जी के बीच संबंध इतने खराब हैं.... युवराज जी कितने बहादुर हैं, मजबूत हैं... पर अंदर से इतने टूटे हुए.... युवराज जी प्यार करते हैं... टूट कर चाहते हैं.. शुभ्रा भाभी जी को... उनकी एक मुस्कराहट के लिए खुद को मिटा सकते हैं... ऐसा कह रहे थे.... क्या कोई ऐसा कर सकता है..
ओह ऊफ मैं क्यूँ ऐसा सोच रहा हूँ....
नहीं... नहीं
ऐसे सोचते सोचते घर पहुंच जाता है l गाड़ी को पार्क कर पिछला दरवाजा खोलता है, विक्रम गाड़ी से निकाल कर अपने कंधे पर डाल कर घर दरवाजे पर पहुंचता है और बेल बजाता है l एक नौकर दरवाजा खोलता है और किनारे खड़ा हो जाता है l वीर विक्रम को ले कर उसके कमरे में बेड सुला देता है और अपने कमरे की बढ़ जाता है l जैसे ही अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करने को होता है तो देखता है कि विक्रम के कमरे की ओर शुभ्रा को जाते हुए l वीर चुपके से विक्रम के कमरे के बाहर खड़े हो कर अंदर देखता है l कमरे के अंदर शुभ्रा विक्रम के जुते उतार देती है, और बिस्तर पर विक्रम को सही दिशा में सुलाती है फिर उसके ऊपर चादर ओढ़ देती है l शुभ्रा जैसे ही मुड़ती है, वीर दबे पांव में वापस अपने कमरे में वापस आ जाता है और शुभ्रा को विक्रम के कमरे से निकल कर जाते हुए देखता है, शुभ्रा के जाते ही वीर भी अपने कमरे का दरवाजा बंद कर अपने बिस्तर पर गिर जाता है l उसे रह रह कर विक्रम की कही सारी बातेँ याद आ रही है l वह अपने बिस्तर पर बैठ जाता है, इधर उधर नजर दौड़ाने लगता है, उसे उसकी टेबल पर एक पेन स्टैंड पर पड़ती है जो एक क्रिकेट के बल के डिजाइन की थी, उस बॉल नुमा पेन स्टैंड को देखते ही उसे अनु और अनु के हाथ में दो स्माइली बॉल याद आ जाती है l अनु के याद आते ही वीर के होठों पर मुस्कान आ जाती है l वह एक तकिया को सीने से लगा कर अनु को याद करते हुए अपनी आँखे मूँद लेता है l
सुबह नौ बजे वीर की आँखें खुलती हैं तो वह हड़बड़ा कर उठ जाता है l जल्दी जल्दी बाथरूम में फ्रेश हो कर अच्छे कपड़े पहन कर, कंघी कर नीचे दौड़ते हुए उतरता है l डायनिंग टेबल पर सिर्फ विक्रम बैठा था जो दोनों हाथों से अपना सर पकड़ कर बैठा हुआ है, और उसके सामने नींबू पानी का ग्लास रखा हुआ है l विक्रम जैसे ही वीर को देखता है पूछता है - कहाँ चल दिए... राजकुमार जी...
वीर - जी ऑफिस...
विक्रम - ऑफिस....(एक नौकर को इशारा करते हुए) इनके लिए भी निंबु पानी के तीन ग्लास लेकर आओ...
वीर - युवराज जी... आप शायद भूल रहे हैं... कल शराब आपने पी रखी थी... मैं नहीं...
विक्रम - पर नशा आपको हुआ है... राजकुमार जी...
वीर - जी नहीं...
विक्रम - जी हाँ...
वीर - कैसे....
विक्रम - आज सन डे है...
वीर - क्या.... ओ... हाँ... वह मैं... कुछ इंस्पेक्शन करना था इसलिए ऑफिस जा रहा था....
विक्रम - ओ... अच्छा.. ठीक है... जाओ...
वीर - नहीं... आप अगर मना कर रहे हैं... तो नहीं जाता हूँ...
विक्रम - मैंने कब मना किया....
वीर - अभी आपने किया ना.... युवराज जी आपको नशा बहुत जोर का हो गया है.... (नौकर को) ऐ अच्छे से युवराज जी को नींबू की पानी देना... हाँ...
कह कर वीर अपने कमरे की ओर चला जाता है

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तापस ट्रैक शूट पहन कर अपने बैठक में बैठे अख़बार पढ़ रहा है, और प्रतिभा किचन में व्यस्त है, कॉलींग बेल बजती है l
तापस - अरे जानेमन जाने जिगर, जरा ध्यान दो इधर... लगता है कोई आया है... ना जाने क्या खबर लाया है....
प्रतिभा अपने हाथ में एक बेलन लेकर आती है, उसे बेलन की अवतार में देख कर तापस टी पोय पर अखबार रख देता है l
तापस - माँ गो बेलन धारिणी...
जगदंबे तारिणी क्षमा क्षमा
मैं जाता हूँ दरवाजा खोलता हूँ आप रसोई में जाएं हमारे लिए बिना शक्कर वाली चाय लाएं...
प्रतिभा - हो गया आपका...
तापस - हाँ.. हाँ.. वैसे दो चाय लाना...
प्रतिभा - ठीक है...
तापस दरवाजा खोलता है और सामने खान को देख कर
तापस - वाह क्या बात है... वह आए हमारे क्वार्टर में उनकी मेहरबानी और खुदा की कुदरत है...
कभी हम उनको और अपने फटीचर क्वार्टर को देखते हैं....
खान - हा हा हा हा... इरशाद इरशाद...
तापस और खान दोनों बैठक में आते हैं l तापस खान को बैठने का इशारा करता है l खान सोफ़े पर बैठ जाता है l प्रतिभा ट्रे में दो चाय के कप के साथ अंदर आती है l
प्रतिभा - कैसे हैं खान भाई...
खान - नमस्ते भाभी...
प्रतिभा - यह लीजिए चाय... गरमा गरम.. वह भी बिना चीनी के....
खान - वाह भाभी... आपको तो सब याद है...
प्रतिभा - कैसी बात कर रहे हैं... खान भाई... मलकानगिरी में तीन साल हम आपस में पड़ोसी थे....
और आज आपके बहाने से यह भी आज जाफरानी पुलाव खाने वाले हैं....
सब एक साथ हंसते हैं l प्रतिभा वापस किचन में चली जाती है l खान अपने कोट के भीतरी जेब से एक फाइल निकाल कर टीपोय के ऊपर रखता है l फिर धीरे धीरे चाय पीते हुए तापस को देखने लगता है l तापस फाइल पर एक नजर डालकर मजे में चाय पीने लगता है l चाय खतम होने के बाद तापस कप टी पोय पर रख देता है और खान भी अपना कप रख देता है l
तापस - भाई मेरे... मुझ पर ही पुलिसिया तकनीक आजमाओगे...
खान - मतलब तुम जानते हो मैं क्या जानकारी चाहता हूँ...
तापस - देखो तुम मेरे बारे में अच्छे तरह से जानते हो और मैं तुम्हारे बारे में.... तुम्हारे मन में उत्सुकता है... तो जानकारी लो और मिटाओ.... माना कि अब तुम जॉब में हो और मैं नहीं हूँ.... पर हमने कोई क्राइम तो नहीं कि है.... जिस देश का कानून... फांसी की सजा पाने वाले को भी शादी की परमिशन देता हो... उस कानून का मुहाफीज रहा हूँ... और हमने कोई गुनाह नहीं किया है... यह तुम भी जानते हो...
खान - हाँ... मैं बस तुम्हारा कॉन्फिडेंस देखना चाहता था....
खान अपनी जगह से उठता है और कहता है - सेनापति... हम ट्रेनिंग मेट थे... कुछ जगहों में मिलकर काम किया है... हमने नक्सल प्रभावित इलाकों में साथ साथ कुंभींग ऑपरेशन को अंजाम दिया है... बस आखिरी के दस साल तुमसे दूर रहा... पर फिर भी इतना तो कह ही सकता हूँ... तुम्हें गुनहगारों से कितनी नफरत है... इसलिए जब जैल में जाना कि तुम्हें एक कैदी जो कि एक सजायाफ्ता मुजरिम है... उससे लगाव हो गया है... बल्कि उसकी पढ़ाई का भी ध्यान रख रहे हो... और तो और भाभी उसे अपना बेटा मानतीं हैं... तब से दिल में तुम्हारे और उस विश्व प्रताप के बारे में जानने की जिज्ञासा है.... मुझे लगता है... तुम मुझे यह सब बता सकते थे... पर बताया नहीं... क्यूँ...
तापस - उसे ज्ञान फ़ालतू में देना नहीं चाहिए.... जिस के मन में जानने की इच्छा ना हो... इसलिए दोस्त होने के बावजूद जब तक तुमने जानने की इच्छा नहीं की... तब तक मैंने बताने की जरूरत नहीं समझी...
खान - तो अब...
तापस - बताऊँगा जरूर... पर पहले कुछ विषयों पर और तथ्यों पर विमर्ष कर लें....
खान - (सोफ़े पर बैठते हुए) ठीक है....
तापस - हाँ तो पहले यह बताओ... तुमने क्या पता किया और क्या जानना चाहते हो...
खान - पता क्या करना है... मेरे सबअर्डीनेट, कॉलीग सब कहते हैं.... विश्वा ज़रूर बेकसूर है...
तो सवाल है.. अगर बेकसूर है तो.. कोर्ट में रि हियरींग पिटीशन की अर्जी क्यूँ नहीं दी.....
मेरा यार और उसकी बीवी दोनों ही कानून के सिपाही हैं, मुहाफिज हैं.. और तो और जिनके मजबुत दलीलों के दम पर विश्वा सजायाफ्ता है... मेरी भाभी जी उसे अपना बेटा मानते हैं...
वह BA इम्तिहान के लिए पैरॉल में बाहर जाता रहा... उस वक़्त उसके लिए पैरॉल का इंतजाम जयंत चौधरी नामक वकील करता रहा था... उसे जब ट्रेस किया तो पता चला... वह असल में पोलिटिकल सुपारी किलर और ईस्टर्न बेल्ट अंडरवर्ल्ड डॉन डैनी का वक़ील था... अब यहां मैं कैसे मान लूँ की विश्वा बेकसूर रहा होगा... जिसका पैरॉल एक डॉन का वकील कर रहा हो.... सब कहते हैं कि उसने आज से साढ़े चार साल पहले जैल में जो दंगा हुआ था... उसमें तुम्हें और दूसरे पुलिस वालों को बचाया था.... जबकि तुमने खुद रिपोर्ट बनाया है... दंगो में पुलिस व मुज़रिमों की बीच मुठभेड़ हुई थी.... जिससे पुलिस की तरफ से बाषठ राउन्ड गोलियां चली और सारे हथियार बंद अपराधी मारे गए थे....
हाँ और एक बात... एक लड़की जैल विजिटर लिस्ट में वैदेही नाम है उसका... वह आती थी सिर्फ तुमसे मिलकर चली जाती थी... पर जब से भाभी विश्वा से जैल में मिलने गई... उसके बाद वह फिर कभी जैल नहीं गई....
विश्वा जैल में रहकर लॉ किया.... सारा इंतज़ाम उसके लिए भाभी जी ने की.... और तो और (कहकर एक लिफ़ाफ़ा निकाल कर टेबल पर रखते हुए) AIBE इम्तिहान के लिए स्टेट बार काउंसिल से रजिस्ट्रेशन और रिकॉमेंडेशन भी जरूर भाभी ने कराई होगी.... आखिर वे स्वयं भी बार काउंसिल में पोस्ट पर हैं.... अब यह जानने के बाद... किसका सिर नहीं चकराएगा....
तापस - ह्म्म्म्म... खान लगता है... आज तुम सिर्फ दुपहर का खाना ही नहीं.... रात का खाना खा कर ही जाओगे....
खान - ह्म्म्म्म... तो.. फ़िर..
तापस अब सोफ़े से उठता है और अपने बैठक के दीवार पर लगे ओड़िशा के मानचित्र के सामने खड़ा होता है l
तापस - खान..... यह मैप अपना राज्य ओड़िशा की पोलिटिकल मैप है.... क्या तुम मुझे यशपुर या राजगड़ दिखा सकते हो....
खान अपनी जगह से उठ कर तापस के बगल में खड़े हो कर मैप देखने लगता है, फ़िर अपना सर हिला कर ना में इशारा करता है l
तापस - ठीक है... कम से कम यह तो दिखा सकते हो... कहाँ हो सकता है....
खान केंदुझर, देवगड़ और सुंदरगड़ के सीमा पर हाथ रख देता है l
तापस - ठीक... अच्छा यह बताओ तुम राजगड़ के बारे में क्या जानकारी रखते हो...
खान - ज्यादा कुछ नहीं... बस ओड़िशा के राजनीति में जो परिवार अपना दबदबा और दखल रखता है... वह इसी क्षेत्र से आते हैं...
तापस - बिल्कुल सही... कभी सोचा है... एक जगह जिसे मानचित्र में ढूंढे तो नहीं मिलती मगर... ऐसी जगह से आने वाला एक परिवार राज्य की राजनीति में इतना प्रभाव या दखल रखती है.. कैसे और क्यों...
खान - नहीं... कभी.. सोचा नहीं... या यूँ कहूँ कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी....
तापस - ह्म्म्म्म... कभी मेरी सोच भी तुम्हारी ही तरह थी.... पर तब तक.... जब तक विश्व से नहीं जुड़ा था... (खान के तरफ देख कर) आओ अब सोफ़े पर बैठते हैं.....
दोनों आकर सोफ़े पर बैठते हैं l
तापस - खान.... मैं जानता हूं... तुम्हें कोई हैरानी नहीं हुई होगी... जब मैंने तुमसे राजगड़ के पूछा...
खान - नहीं... क्यूंकि मैंने विश्व की फाइल पढ़ी है... वह राजगड़ से है और तुमनें इसलिए राज़गड़ का जिक्र छेड़ा है...
तापस - हाँ... अब कहानी पर आने से पहले... तुम क्षेत्रपाल परिवार के बारे में क्या जानते हो....
खान - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं.. कुछ भी नहीं जानता...
तापस - तो तुम पहले इस राजवंश के बारे में सब कुछ जान लो.... फिर मेरी कहानी और भावनाओं को समझ सकोगे....

तापस फ़िर से सोफा छोड़ कर खड़ा होता है, फिर ओड़िशा के मानचित्र के सामने आकर रुक जाता है l कुछ बातेँ हैं जो ओड़िशा को भारत में स्वतंत्र पहचान देती है,अगर सही मानों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों की सशस्त्र संग्राम की बात करें तो पहली बार 1803 पाइक विद्रोह था भारत का पहला स्वतंत्रता विद्रोह.... पहली भाषा भीतिक राज्य बना ओड़िशा 1936 में.... यहाँ तक रसगुल्ला ओड़िशा का है जो रथयात्रा के बाद लक्ष्मी जी भोग लगाया जाता है... वह ओड़िशा का है.... जिसका इतिहास में ग्यारहवीं शताब्दी में स्पष्ट जिक्र मिलता है और जिसे हाल ही में जियो इंडेक्स का सर्टिफिकेट भी मिला है....
खान - हाँ मैं जानता हूँ... पर इस कहानी में इन सबका क्या काम है....
तापस - जब भोई राजवंश की अगुवाई में सन 1795 से 1803 तक जो पाइक विद्रोह हुआ... उस विद्रोह को दमन करने के लिए पाटना से इस्ट इंडिया के ईस्टर्न रेजिमेंट जब आज के यशपुर के रास्ते खुर्दा जाती थी... तब उनकी असलहा, बारूद व रसद सब लूट ली जाती थी... और वह ग्रुप कोई आम नागरिक का ग्रुप नहीं था... बल्कि डकैतों का गिरोह हुआ करता था... अब अंग्रेज अपने कुट नीति के जरिए उस डकैतों के सरदार के पास सुलह के लिए संदेश भेजा...
उनकी सुलह वाली मीटिंग में यह तय हुआ आज का यशपुर प्रांत के ढाई सौ गांव को उस डाकुओं के सरदार यश वर्धन सिंह को दे दिआ जाएगा.. और उन्हें एक राजा का मान्यता दी जाएगी....
यह डील पक्की होते ही यश वर्धन के ग्रुप अंग्रेजों के साथ दिया.... और ओड़िशा के पतन के साथ एक नए राजवंश सामने आया....
चूंकि वह इलाक़ा बियाबान, बीहड़ व जंगलों से भरा हुआ था... इसलिए ओड़िशा के पतन के बाद वह इलाक़ा अंग्रेजों के काम की नहीं थी.... पर यश वर्धन के काम की थी... उसने अपने नाम के अनुसार उस प्रांत के नाम "यशपुर" रखा... और जहां महल बनाया उस इलाके का नाम राजगड़ रखा... चूंकि अब यश वर्धन राजा था... इसलिए दूसरे राजाओं की तरह उसने भी अपने वंश के लिए एक नया सरनेम जोड़ा "क्षेत्रपाल"... यह है इस राज वंश की आरंभ की कहानी.... अंग्रेजों ने क्षेत्रपाल की राज पाठ व झंडा को मान्यता दे दी...
खान - ठीक है... पर विश्व से उस राजवंश का क्या संबंध...
तापस - बताता हूँ...आजादी के बाद जब भारत में लोक तंत्र के लिए चुनाव कराए जाने लगे, तो जाहिर है यश पुर इससे अछूता नहीं रह सका... तब सारे राज पाठ भारत में खत्म किए जा रहे थे.... इसलिए शासन दंड को हाथों में रखने के लिए.... यश पुर के तत्कालीन राजा सौरभ सिंह क्षेत्रपाल भैरव सिंह क्षेत्रपाल के परदादा जी ने भी चुनाव लड़ने का निश्चय किया.... तब राजगड़ के एक स्कूल शिक्षक लंबोदर पाइकराय लोक तंत्र की मंत्र व शक्ति को लोगों तक पहुंचाने के लिए कमर कस ली... वे चुनाव में सौरभ सिंह के खिलाफ़ लड़े.... नतीज़ा.... लंबोदर भारी मतों से जीत दर्ज की.....
राजा सौरभ सिंह को अंदाजा नहीं था के लोग उसे हरा देंगे.... उसकी हार पूरे यशपुर पर अभिशाप बन कर टूटा... सौरभ सिंह ने हार की शर्म के मारे आत्म हत्या कर ली... उस दिन लोग लंबोदर के जीत के साथ राज साही से आजादी की जश्न दिन भर मनाते रहे.... फ़िर आई वह काली रात.... जिसकी सुबह आज तक यश पुर वाले नहीं देखे हैं... (इतना कह कर तापस थोड़ी देर चुप रहा) उस रात सौरभ सिंह का बेटा रुद्र सिंह क्षेत्रपाल का अहम तांडव बनकर पूरे राज गड़ में नाचा.... रुद्र सिंह अपने सारे लोगों को इकट्ठा किया और सबसे पहले लंबोदर पाइकराय को पूरे राजगड़ में घोड़ों से बाँध कर गली गली खिंचा... फ़िर उसके बीवी और बहनों को उठा कर ले गया.... पाइकराय परिवार के सारे मर्द उस रात मारे गए.... और औरतों का बलात्कार होता रहा... तुम्हें शायद यकीन ना आये... उन औरतों से जनम लेने वाली ल़डकियों के साथ भी वही सलूक किया जाता रहा.... कुछ देर पहले तुमने वैदेही का जिक्र किया था ना.... यह वैदेही क्षेत्रपाल व पाइकराय परिवार की अंतिम बायोलॉजीकाल पीढ़ी है....
खान - या.. अल्लाह... (अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया)
तापस - मैंने तुम्हें उस परिवार की इतिहास इसलिए बताई... ताकि तुम उसे वर्तमान से जोड़ कर देख सको...
Awesome update
 

ANUJ KUMAR

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खान - क्षेत्रपाल परिवार का इतिहास, राजगड़, और विश्वा और वर्तमान... आपस में जुड़े हुए हैं...


तापस - हाँ.... और.. विश्वा.. इतिहास को एक नई दिशा देगा.... भूगोल भी बदल जाएगा....
प्रतिभा अब बैठक में आती है, एक थाली को चम्मच से बजते हुए
प्रतिभा - सॉरी फर इंट्रेपशन.... खाना तैयार है... अब जो भी कहना सुनना है... सब खाने के बाद....
खान - हाँ.. हाँ... क्यूँ नहीं....
प्रतिभा - वैसे खान भाई साहब.... आज रात का खाना खा कर ही जाइएगा....
खान - क्यूं...
प्रतिभा - क्यूंकि आप के सारे सवालों का ज़वाब मिलते मिलते रात हो जायेगी....
तापस - हाँ भाई... खाने के टेबल पर भी... बात चित हो सकती है... चलो...
प्रतिभा - नहीं बिलकुल नहीं..... खाना खाने के बाद....
तापस - जैसी आपकी आज्ञा देवी जी.....
प्रतिभा - हाँ... हो गया.... चलो यार... खाना न मिलने से अच्छा है... की पहले पेट भर लेते हैं....

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रॉकी - (फोन पर) अरे... यार... यह बीच बीच में सन डे क्यूँ आता है यार....
आशीष - (फोन पर) अबे साले रोमियो की औलाद.... तूने अपनी जिंदगी बर्बाद करने की ठानी है.... तो ठीक है.... कमीने हमे भी उसमें घसीट कर..... हमारा रात, दिन, दिमाग और टाइम भी बर्बाद कर रहा है.....
रॉकी - ऑए... मुझे रोमियो ना बुलाईयो.... अबे रोमियो तो विदेशी है.... अपन... फूल टुस देसी... समझा क्या....
आशीष - अबे मैं तो समझ गया.... पर देसी लवर ऐसा कौन है बे... जिसने इश्क़ के मैदान में झंडे गाड़े हों....
रॉकी - अबे... तू कम्बख्त है, बदबख्त है... कमीने... हर मिट्टी की अपनी प्यार कहानी होती है.... उसमें सिर्फ प्यार, प्यार और प्यार की खुशबु होती है....
आशीष - हाँ तो बोल ना... अपनी ओड़िशा के मिट्टी में कौनसी प्रेम कहानी की खुशबु तैर रही है....
रॉकी - अबे... तुम जैसों को तो गोली मार देनी चाहिए.... अपनी मिट्टी की अमर प्रेम कहानी है केदार गौरी की....
आशीष - ठीक है ठीक है... तो आशिक केदार की औलाद... आज तू मेरा दिन खराब क्यूँ कर रहा है.... अबे साले हफ्ते में एक ही तो दिन आता है... जब जितना मर्जी हम सो सकते हैं... मेरा यह दिन क्यूँ बर्बाद कर रहा है....
रॉकी - अबे... सुनना...
आशीष - नहीं.. बिल्कुल.. नहीं... मैं फोन स्विच ऑफ कर रहा हूँ... अगर कुछ काम आए तो... मेरे घर पहुंच जाईयो....
इतना कह कर आशीष अपना फोन ऑफ कर देता है, जैसे ही आशीष फोन काट देता है, रॉकी अपना मुहँ बना कर फोन रख देता है

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विक्रम तैयार हो कर डायनिंग टेबल पर आता है, देखता है कोई नहीं है वहाँ
विक्रम - (एक नौकर से) आज लंच के लिए अभी तक कोई आया क्यूँ नहीं है....
नौकर - जी युवराज जी.... मालकिन अपनी और राजकुमारी जी के लिए खाना... बेड रूम में ही मंगवा लिया है....
विक्रम - ओह.....
नौकर टेबल पर प्लेट लगाता है तो विक्रम उसे पूछता है
विक्रम - अच्छा.... वो राज कुमार जी... उन्होंने खाना खा लिया क्या...
नौकर - जी.... अभी तक वह भी नहीं आये हैं....
विक्रम - अच्छा तुम अभी प्लेट मत लगाओ.... मैं राजकुमार जी को बुला कर लता हूँ...
नौकर - जी... आप क्यूँ... तकलीफ कर रहे हैं... युवराज जी... मैं उन्हें आपका सन्देशा दे दूँगा...
विक्रम - अरे नहीं.... अपने ही घर में... अपने ही भाई को बुलाने जा रहा हूँ.... तुम रुको थोड़ी देर....

इधर शुभ्रा के कमरे में एक टेबल पर शुभ्रा और नंदिनी दोनों बैठ कर खाना खा रहे हैं
शुभ्रा - हाँ तो रूप... कहो कैसे चल रही है आपकी कॉलेज लाइफ...
नंदिनी - भाभी... आप मुझे नंदिनी बुलाने की आदत डाल लो ना....
शुभ्रा - ठीक है नंदिनी जी... कहिए... आज कल...
नंदिनी - अच्छी चल रही है... भाभी... एकदम मस्त.....
शुभ्रा - वह.... तुम्हारे कॉलेज का हीरो कैसा है....
नंदिनी - अच्छा ही होगा....
शुभ्रा - अच्छा ही होगा मतलब...
नंदिनी - क्या मतलब....
शुभ्रा - अरे आज कल तुम्हारे पीछे... मंडराता है या नहीं....
नंदिनी - भाभी... आप कहाना क्या चाहते हो...
शुभ्रा - अरे अब वह कॉलेज का हीरो है... और हमारी नंदिनी कॉलेज की सबसे खूब सूरत लड़की...
नंदिनी - भाभी... ऐसा कुछ नहीं है..... हाँ...
शुभ्रा - क्यूँ...
नंदिनी - भाभी... अब वास्तव में आयें.... मेरी शादी राजा साहब ने तय कर दिया है... इसलिए मैं अपनी आँखों में इस तरह के सपने और दिल में ख्वाहिशों को पलने नहीं दे रही....
शुभ्रा - ह्म्म्म्म....
नंदिनी - रॉकी... अच्छा लड़का है.... शायद कोई भी आम लड़की उसे पाना चाहेगी.... पर वह मेरे टाइप का नहीं है....
शुभ्रा - और तेरे टाइप का कौन है......
नंदिनी - पता नहीं क्यूंकि इस विषय में... मैं कोई आम लड़की नहीं हूँ... मैं खास हूँ....
शुभ्रा - (हंस कर) याद है... पिछले हफ्ते हम क्यूँ खास हैं... आम क्यूँ नहीं है... इस बात पर तु कितनी अपसेट थी....
नंदिनी - पर सच्चाई यही है... की मैं आम लड़की नहीं हूँ.... और मेरी शादी तय हो चुकी है....
शुभ्रा - अच्छा... फ़र्ज़ कर तुझे किसीसे प्यार हो जाए.... मतलब अगर तुझे तेरे टाइप का मिल गया तो...
नंदिनी - भाभी... ऐसा शायद... कोई है नहीं....
शुभ्रा - क्यूँ.....
नंदिनी - मुझे इम्प्रेस कर सके ऐसा मर्द कोई नहीं है...
शुभ्रा - क्यूँ.... तुझे अपनी जीवन साथी के लिए किस तरह का मर्द होना चहिये ....
नंदिनी - कोई ऐसा जो मेरे बाप राजा साहब के आँखों में... आँखे डाल कर बात कर सके... जिसके आगे मेरे बाप की अकड़ घुटने टेक् दे...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तब तो रॉकी ही क्या... कोई भी नहीं होगा...
नंदिनी - तभी तो मैंने कहा.... मैं ऐसी ख्वाहिशों को ना अपने दिल में पलने देती हूँ और ना ही आँखों में सपनों को इजाजत देती हूँ..

इधर वीर अपने बेड पर लेटा हुआ मोबाइल की स्क्रीन को स्क्रोल कर रहा है और चिढ़ रहा है उधर विक्रम वीर के कमरे के बाहर आकर खड़ा होता है l कुछ सोचने के बाद दरवाजे पर दस्तक देता है l अंदर से
वीर - कौन है...
विक्रम - मैं हूँ...
वीर - कौन....
विक्रम - राजकुमार जी मैं हूँ...
वीर दरवाजा खोलता है, सामने विक्रम को देख कर
वीर - अरे युवराज जी आप... यहाँ...
विक्रम - हाँ.. वो... तुम खाना खाने नीचे नहीं आए तो... बुलाने आ गया....
वीर - आप बुलाने आए हैं....
विक्रम - हाँ... क्यूँ तुम्हें अच्छा नहीं लगा....
वीर - नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है... पर.. शायद हम आज तक परिवार के हर सदस्य तक ख़बरें पहुंचाई है..... कभी ख़बर लेकर नहीं गए किसीके पास....
विक्रम - हाँ... शायद इसलिए हम एक ही छत के नीचे... एक दूसरे से अजनबी ही रहे हैं... अबतक..... क्या तुम... चलोगे डायनिंग टेबल पर मेरा साथ देने....
वीर - हाँ हाँ क्यों नहीं.....
वीर अपने कमरे से निकल कर विक्रम के साथ चल देता है l दोनों डायनिंग टेबल पर पहुंचते हैं l नौकर दोनों के लिए प्लेट लगाता है और खाना परोसता है l
विक्रम - राजकुमार लगता है... किसी बात की कोई खीज है आपके मन में....
वीर - ऐसी बात नहीं... युवराज जी.... सोच रहा था... की कल मुझे भी आपके ही तरह पी कर लुढ़क जाना चाहिए था....
विक्रम - ऐसा क्यूँ....
वीर - मुझे इतनी जल्दी उठने की आदत नहीं थी... पिछले कुछ दिनों से यह आदत पड़ गई.... कास कल शनिवार था यह याद होता.... तो मैं भी पी कर अभी तक सोया रहता...
विक्रम - जल्दी उठना अच्छी आदत है...
वीर-मेरे लिए नहीं... वक्त बर्बाद होता है... टाइम स्पेंड ही नहीं होता..
विक्रम - तो इसलिए खीज गए थे....
वीर - जी युवराज जी... फोन पर इतने नंबर हैं... पर बातेँ करने लायक कोई नहीं... सब या तो नौकर चाकर हैं या फिर हमारे मुलाजिम....
विक्रम - ठीक कहा आपने... हमारे या तो नौकर, चाकर, मुलाजिम हो सकते हैं या फिर दुश्मन... कोई दोस्त नहीं है... या फिर हमने बनाए नहीं....
इतने में एक नौकर आकर वहां खड़ा होता है,
विक्रम - क्या हुआ...
नौकर - जी महांती बाबु आए हैं... कह रहे थे.. कुछ जानकारी हाथ लगे हैं...
विक्रम - उन्हें बिठाओ खाने को पूछो और ठंडा गरम पूछो... हम पहुंच रहे हैं....

बैठक में महांती अपने हाथ में फाइल लिए बैठा हुआ है, बार बार अपनी घड़ी देख रहा है, नौकर आकर खाने पीने के लिए पूछता है तो वह मना कर देता है l नौकर के जाते ही महांती उस बड़े से बैठक में टहलता रहता है l फिर टहलते टहलते एक बड़े से तस्वीर के सामने आकर खड़ा हो जाता है l वह फोटो भैरव सिंह की एक आदमकद तस्वीर है, जिसमें भैरव सिंह एक सिंहासन पर बैठा हुआ है और उसके पैरों के नीचे एक बड़ा सा बाघ लेटा हुआ है l महांती उस तस्वीर में खोया हुआ है कि उसे उस तस्वीर में दो अक्स की छाया दिखती है l महांती मुड़ कर देखता है विक्रम और वीर दोनों आकर सोफा पर बैठ चुके हैं l
महांती - गुड आफ्टर नून युवराज जी... गुड आफ्टर नून राजकुमार जी....
विक्रम - गुड आफ्टर नून महांती.... तुमने खाने से मना कर दिया...
महांती - जी वो मैं खा कर ही निकला था....
विक्रम - ठीक है... अब बताओ.... क्या जानकारी लाए हो....
महांती विक्रम के सामने पड़ी छोटे टेबल पर अपना फाइल रखता है और उसमें से चार फोटो निकाल कर टेबल पर रख देता है l
महांती - यह वही लोग हैं... जो गुरुवार को छोटे राजा जी पर हादसे को अंजाम दिया था....
वीर तुरंत उन फोटो पर झुक जाता है और महांती से - महांती तुम्हें उनके लाशें लानी चाहिए थी... ना कि यह फोटोज..
महांती - राजकुमार जी यह लोग ट्रेस हो गए हैं... और हमारे सर्विलांस पर हैं.... हम जब चाहें इन्हें दबोच सकते हैं... पर युवराज जी ने कहा था कि पता लगा कर नजर रखने के लिए.... इसलिए... हमने उन्हें छोड़ रखा है....
विक्रम - राजकुमार जी... महांती सही कह रहा है.... जो आदमी छोटे राजा जी पर हमला करवाया है... वह इतनी आसानी से सामने नहीं आएगा.... हाँ तो महांती कैसे खोजा इन्हें तुमने और क्या पता लगाया है इनके बारे में...
महांती - युवराज... उस दिन की हादसे को देख कर... हमे इतना तो मालूम हो गया था की उन्होंने हादसे के लिए उसी जगह को पहले से ही मुकर्रर कर लीआ था..... और हमले के लिए जरूर रेकी की होगी.... इसलिए हम हमले के दिन व हमले के एक महीने पहले तक के.... उस एरिया के सारे सीसीटीवी फूटेज हासिल कर ली... वह चार सनाइपर्स हैं... प्रोफेशनल हैं... पैसा उठा कर किसी का भी गेम कर सकते हैं...
विक्रम - सबूत कुछ छोड़ा था क्या...
महांती - नहीं... उनके हिसाब से तो नहीं...
वीर - फिर... तुमने कैसे पता लगा लिया.....
महांती - क्यूँ की... हम अपने काम में प्रोफेशनल हैं...
विक्रम - शाबाश... महांती... अब बताओ कैसे पता लगाया...
महांती - चारों अपनी अपनी जगह चुन लेने के बाद... वहाँ पहुंचने के लिए कोई जोमाटो डिलिवरी बॉय, कोई इलेक्ट्रिसियन तो कोई टेलीफोन रिपैरींग वाला बन कर गए थे.... चूंकि महीने भर से किसी ना किसी रूप में जगह की रेकी कर रहे थे... इसलिए बारीकी से चेक करने पर नजर में आ गए...
वीर - महांती.... अगर वो प्रोफेशनल थे... फिर इतनी आसानी से कैसे तुम्हारे नजर में आ गए...
महांती - आसानी से कहाँ... राजकुमार जी... वे बहुत ही चालाक थे.... वह अपनी अपनी जगह के लिए दूसरों से रेकी कारवाई थी.... अगर हमने महीने भर की फुटेज चेक ना किया होता तो उनको ट्रेस करना बहुत ही मुश्किल था.....
विक्रम - (ताली बजाते हुए) वाव महांती वाव... गुड जॉब...
महांती - थैंक्यू युवराज जी... अब आगे क्या करना है....
विक्रम - उन्हें हाथ मत लगाओ.... बस उनकी अगले स्टेप की इंतजार करते हैं....

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लंच खतम हो चुका है l प्रतिभा ने सारे बर्तन समेट कर किचन चली गई l अब सोफ़े पर दो मित्र आकर बैठ जाते हैं l
खान - क्षेत्रपाल परिवार का इतना क्रुर इतिहास रहा है....
तापस - अभी खतम कहाँ हुई है... इतिहास को और थोड़ा क्रूरता देखना बाकी था....
खान - क्या मतलब...
तापस - चूंकि सौरभ सिंह की हार और लंबोदर पाइकराय की जीत का उत्सव दिन में मनाया गया था... और उसकी सदमें में सौरभ सिंह दिन में आत्म हत्या की थी.... इसलिए रुद्र सिंह ने घोषणा की के राजगड़ में आम जनता कभी भी दिन में उत्सव या मातम नहीं मना पाएंगे..... उस दिन के बाद राजगड़ में आज तक शादी, जन्म दिन या शव का दाह संस्कार सब आधी रात के समय की जाती है... और बहुत ही कम लोगों की उपस्थिति में.....
खान - व्हाट...
तापस - हाँ... और एक वक़्त दहशत इतनी थी लोगों में की लड़की की माहवारी की उम्र शुरू होती थी... तब से लड़की को घर में बंद कर रख देते थे और यहाँ तक लड़की को काले रंग लगा कर छुपा कर रखते थे....
खान - इंपसिबल... ऐसा हुआ था... या तुम बढ़ा चढ़ा के पेश कर रहे हो....
तापस - मैं... तुम्हें कोई कोरी बकवास नहीं सुना रहा हूँ... आज जब हम सिक्स्थ जेनेरेशन की तकनीक से खुद को विकसित कर रहे हैं..... वहीँ हमारे देश में एक ऐसा प्रांत है... जिसे देख कर लगता है.. जैसे वह प्रांत हमारे ग्रह की है ही नहीं.....
खान - क्या कभी किसी सरकार ने सुध नहीं ली....
तापस - यहीं पर क्षेत्रपाल परिवार चालाकी कर गई.... रुद्र सिंह दूर की सोच कर... किंग् मेकर बनने का प्लान बनाया....
उसकी दहशत इस कदर लोगों के मन में घर कर गई..... के रुद्र सिंह का फरमान ही काफी होता था... किसीको वोट देने के लिए...
इस तरह सरकार व सरकारी संस्थाओं में अपनी पैठ ज़माने लगा... इस परंपरा को रुद्र सिंह के बाद नागेंद्र सिंह और नागेंद्र सिंह के बाद अब भैरव सिंह आगे बढ़ा रहा है.... वैसे नागेंद्र सिंह जिंदा है... पर पैरालाइज है....
खान - खैर... दोस्त..विश्वा की केस हिस्ट्री में.... कहीं पर भी क्षेत्रपाल परिवार का जिक्र नहीं आता....
तापस - कैसे आएगा.... जब सारे संस्थान क्षेत्रपाल के उंगलियों पर नाच रहें हो... खान... यार जरा सोचो... एक एक इक्कीस वर्ष का नौजवान.... जो सिर्फ इंटर तक पढ़ा है... वह भी अव्वल नम्बरों से और राजगड़ पंचायत का सरपंच बनता है और तो और सिर्फ़ एक ही वर्ष में इतना क़ाबिल हो जाता है कि वह दो सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर पुरे यश पुर कस्बे में खर्च होने वाले पांच साल की राशि साढ़े सात सौ करोड़ रुपए गवन कर देता है... क्या तुम इस फैब्रिकेटेड थ्योरी को मान सकते हो...
खान सोच में पड़ जाता है और चुप रहता है l
तापस - देखा... हो गए ना लाज़वाब.... सच पूछो तो मैं भी... मैं क्या प्रतिभा भी इस झूट को सच ही मान कर चले थे... पर हमारे जीवन में जो भूचाल आया... तो मैंने अपने तरफ से पर्सनल एंक्वेरी की... तब हाती का वह दांत दिखा... जिसे छुपाया गया था....
खान - हाँ... तुम्हारे... थ्योरी में दम तो है.... सच कहूँ तो... विश्वा की केस फाइल देख कर लग ही नहीं रहा था... पर अब वाकई मैं लाज़वाब हूँ....
तापस - विश्वा... क्षेत्रपाल के ट्रैप में फंस गया था.... लेकिन विश्वा अपनी पर्सनल लड़ाई के चलते भैरव सिंह से नहीं टकराया था.... वह लड़ाई भी राजगड़ के लोगों की थी... जिसमें वह अभिमन्यु बन गया...
खान - एक बात मेरे समझ में नहीं आया....
खान का इसतरह बीच में पूछे जाने पर तापस उसे सवालिया नजर से देखता है
खान - रुद्र सिंह और नागेंद्र सिंह के परंपरा को..... आगे बढ़ाते हुए अगर भैरव सिंह उसी दहशत को कायम रखा.... फिर ऐसी क्या वजह हुई कि क्षेत्रपाल परिवार को... राजनीति में सीधे आना पड़ा....
तापस - उसका सिर्फ एक ही ज़वाब है..... विश्वा....
खान - विश्वा.... कैसे...
तापस - साढ़े सात सौ करोड़ कोई मामुली रकम नहीं है.... उसे डकार ने के लिए अपना दायरा राजगड़ से बाहर राजधानी भुवनेश्वर तक लाना जरूरी था....
और विश्वा एक साधारण आदमी हो कर भी जिस तरह से भैरव सिंह को कानून की चपेट में लाने की कोशिश की.... फ्यूचर सैफटी के लिए क्षेत्रपाल परिवार को सीधे राजनीति से जुड़ना मजबूरी बन गया.....
खान - ओह.... विश्वा.. का कानून पढ़ने की वजह यह है....
तापस - हाँ भी और नहीं भी...
खान - तुम मुझे कंफ्यूज कर रहे हो.....
तापस - नहीं... जब हमारी कहानी जान जाओगे.... तब तुम्हारी सारी कंफ्यूजन दूर हो जाएगी....
खान - तो फिर बताओ... विश्वा की कहानी....
तापस - ना... विश्वा के राजगड़ वाली कहानी नहीं बता सकता... सच कहूँ तो... उसकी कहानी हमने कभी विश्वा से पूछा ही नहीं.... इसलिए मैं सिर्फ विशु का विश्वा बनना.... और कैसे विश्वा हमारे जीवन में आया,... हमसे जुड़ कर हमारा हिस्सा बन गया.... यही बता सकता हूँ...
खान - तो फिर तुम... इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचे.... के विश्वा बेकसूर है....
तापस - तुम खुद समझ जाओगे....
अब कहानी फ्लैश बैक में जाएगी l बेशक फ्लैश बैक को प्रस्तुति तापस की है पर यह कहानीकार की नजरिए से प्रस्तुत होगा l

सात साल पहले..

तापस को भुवनेश्वर जैल की चार्ज लेते हुए दो साल हो चुके हैं l उसकी सरकारी क्वार्टर में एक दिन सुबह,
प्रतिभा एक कमरे में आती है, उस कमरे में बेड पर एक लड़का सोया हुआ है जिसे प्रतिभा हिला कर उठाने की कोशिश करती है l
प्रतिभा - उठिए डॉक्टर साहब... आज कॉलेज नहीं जाना है क्या...
लड़का - माँ.... थोड़ी देर और सोने दो ना....
प्रतिभा - क्या... अररे.. डॉक्टर साहब आप ऐसे सो जाएंगे तो आगे चलकर आपके पास कोई मरीज़ नहीं आएगा...
"प्रत्युष" बाहर एक कड़क आवाज आती है l जिसे सुनते ही वह लड़का बेड छोड़ कर सीधे अपने रूम के अटैच बाथ रूम में घुस जाता है l प्रतिभा उसकी यह हालत देख कर हंसती हुई बाहर आती है l
बाहर तापस बैठ कर अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्की ले रहा है l
तापस - देखा जान.... सिर्फ़ एक ही आवाज़ से बेटा एकदम फुर्तीला हो गया...
प्रतिभा - आप भी ना उसे बेवजह डराते रहते हो....
तापस - अरे कहाँ... तुम उसे दब्बू बना रही थी... मैं उसमें स्पाइडर मैन की चुस्ती भर दिया...
प्रतिभा - हाँ.. हाँ... आप सुपर मैन जो ठहरे...
तापस - क्यूँ.. झूट बोल रही हो... तुम माँ बेटे दोनों... मुझे मेरे पीठ के पीछे हिटलर कहते हो.... तुम क्या समझती हो... मुझे कुछ नहीं पता...
प्रतिभा - हाँ... तो... क्या झूट... बोलते हैं हम... जब देखो मेरे मेरे बच्चे के पीछे पड़े रहते हो.... जैल में चोर डाकू शायद आपसे संभलते नहीं... इसलिए चले हैं मेरे बेटे पर... अपना रौब झाड़ने...
तापस - हाँ... हाँ... वह तो बस आपका ही बेटा है... हमारा कुछ भी नहीं....
"गुड मॉर्निंग डैड" दोनों की बहस के बीच यह आवाज़ सुनाई देता है l
तापस - गुड मॉर्निंग बेटा... चलो मुझे जॉइन करो नाश्ते में...
प्रत्युष - जी...
प्रतिभा - अरे वाह... शुरू हो गए बाप बेटे... और मुझ दुखियारी को किनारे कर दिया...
प्रत्युष - ओह माँ... आप से ही सुबह शुभ होती है... उम्म्म्म्म (कह कर प्रतिभा के गाल को चूम लेता है)
प्रतिभा - जगन...
जगन - जी माजी...
प्रतिभा - चलो सबका प्लेट लगा दो...
जगन - जी माजी... अभी लगाता हूँ...
सभी डायनिंग टेबल पर बैठे हुए हैं l जगन सबको नाश्ता परोस देता है l
तापस - अरे जगन... टीवी जरा लगा दो....नाश्ता करते वक्त न्यूज सुनने का मजा ही कुछ और है...
प्रतिभा - हाँ जगन लगा दे टीवी.... इनकी बड़बड़ सुनने से अच्छा है... देश दुनिया की खबर जान लेना...
जगन टीवी ऑन कर उसमें एक न्यूज चैनल लगा देता है l सुबह सुबह उस न्यूज चैनल में ब्रेकिंग न्यूज चल रही है
"आज की बड़ी खबर... राजगड़ में बहुत ही बड़ी पैसों की हेरा फेरी सामने आई है l पिछ्ले कुछ वर्षों से मनरेगा और ब्लॉक उन्नयन के लिए सरकार की ओर से नियमित दिआ जा रहा पैसों को कुछ सरकारी अधिकारियों के मिली भगत से दबा कर रखा गया था l राजगड़ के नए सरपंच श्री विश्व प्रताप महापात्र के साथ मिल कर करीब साढ़े साथ सौ करोड़ रुपये गवन कर लिए l हमारे संवाददाता के अनुसार यह भेद खुलते ही कुछ अधिकारी भाग गए हैं l पर पुलिस की सूझ बुझ से सरपंच विश्व प्रताप धर लिए गए हैं l राजगड़ के एक पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता बताया है कि श्री विश्व प्रताप अपने सहयोगियों के साथ भाग रहे थे, इसलिए मजबूरन पुलिस को गोली चलानी पड़ी l सारे सहयोगी तो भाग गए पर गोली पांव में लगने के वजह से विश्व प्रताप पुलिस के हाथ लगे l अब मुख्य मंत्री जी ने इस केस को सीधे हाई कोर्ट में चलाने का निर्देश दिया है l
हमसे जुड़े रहें, ब्रेक के बाद हम इस केस से जुड़े तथ्यों को आगे और बतायेंगे"

यह देखकर प्रत्युष - टीवी पर वह सरपंच मेरे ही उम्र का लग रहा है.. है ना माँ...
प्रतिभा - है भगवान... इतना बड़ा जुर्म वो भी इतनी छोटी उम्र में... वैसे तेरे डैड की तो लॉटरी लग गई...
तापस - क्यूँ भई... इसमें लॉटरी लगने वाली बात कहाँ से आ गई....
प्रतिभा - अरे चीफ मिनिस्टर जी कहा है कि... इस केस की सुनवाई हाई कोर्ट में हो... तो इसका मतलब तो यह हुआ ना... वह मुजरिम आपका मेहमान होगा....
तापस - अरे यार... तुम कहाँ की बाते कहाँ जोड़ रही हो... जब फील्ड में था... मुज़रिमों से मेरा कड़क व्यवहार के चलते... मुझे तीन तीन ऑफिसीयल वॉर्निंग के बाद जब मैं सुधर ना पाया..... तो जैल में पोस्टिंग कर दी... ताकि मेरी BP हमेशा अब नॉर्मल रहे...
सब जानते हैं... मुझे मुज़रिमों से कितना चिढ़ है... पर डिपार्टमेंट की नजाने मुझसे कौनसी दुश्मनी है कि मुझे सीधे जैल में पोस्टिंग कर दिए...
यह सुनते ही माँ बेटे दोनों हंस देते हैं l फिर अपना नाश्ता खतम करने के बाद,
प्रत्युष - ओके माँ.. ओके डैड... मैं कॉलेज के लिए निकालता हूँ...
प्रतिभा - रुक ना मैं उसी रास्ते से जाऊँगी... तुझे छोड़ दूंगी...
प्रत्युष - ना माँ.. आप जब भी मुझे कॉलेज में छोड़ती हो... सब मुझे ममास् बॉय कह कर चिढ़ाते हैं.... वैसे भी बड़ा हो रहा हूँ... बच्चा तो नहीं हूँ... चला जाऊँगा...
प्रतिभा - अच्छा वो चिढ़ाते हैं.... तो तुझे बुरा लगता है.... अररे मैदान ए जंग में माई का लाल को चैलेंज दिआ जाता है... समझा... और ममास् बॉय को हिंदी में क्या कहते हैं... बता जरा...
प्रत्युष - (हाथ जोड़ कर) मेरी वकील माँ... मुझसे बड़ी गलती हो गई... अब मुझे बक्स दो.. और मुझे अपने दोस्तों के साथ जाने दो ना प्लीज l
तापस - ठीक ही तो कह रहा है.... उसे अपने दोस्तों के साथ एंजॉय करने दो... जाओ... बेटे.. एंजॉय योर डे..
प्रत्युष - ओह थैंक्स डैड...
इतना कह कर प्रत्युष निकल जाता है l उसके जाते ही
प्रतिभा - ऐसे मौकों पर.. हमेशा आप उसके साथ देते हैं...
तापस - ओह कॉम ऑन... इस उम्र में... बच्चों को अपने दोस्तों का साथ बहुत अच्छा लगता है.. यू नो इट... तुमने भी तो कॉलेज लाइफ एंजॉय किया है...
प्रतिभा मुहँ फूला कर बैठ जाती है l उसका मुहँ बुलाना देख कर तापस हंस देता है
तापस हंसता देख कर प्रतिभा अपनी आँखे सिकुड़ कर गुस्से से देखती है l तापस को वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई दिखी l वह धीरे से निकलने लगता है कि उसका मोबाइल बजने लगता है l
तापस - (अपना मोबाइल उठाता है, एक अंजान नंबर देखता है ) हैलो,...
फोन - सुपरिटेंडेंट सेनापति जी बोल रहे हैं...
तापस - जी... आप कौन...
फोन - मैं... इंस्पेक्टर राजगड़ से.... हम कटक के ××××× हस्पताल से बोल रहा हूँ..
तापस - कहिये... मुझे क्यूँ फोन किया...
फोन - आपके हवाले एक सरकारी मुजरिम करना है... यह प्रोटोकोल है... इसलिए आपको फोन किया है...
तापस - कहीं.. वो साढ़े सात सौ करोड़ फ्रॉड केस वाला तो नहीं...
फोन - जी... वही है..
तापस - ठीक है... मुझे पहुंचते पहुंचते दुपहर हो जाएगी....
फोन - जी ठीक है... हम इंतजार कर लेंगे.... जय हिंद..
तापस - जी बेहतर... जय हिंद....
तापस एक गहरी सांस लेकर सोफ़े पर बैठ जाता है, प्रतिभा अब तक उसे देख रही थी और फोन पर हुए तापस की बातों से उसे अंदाजा हो गया था, तापस को अब सरकारी फरमान के वजह से अब वो करना है जो तापस को बिल्कुल पसंद नहीं है l
तापस सोफ़े पर अपनी आँखे मूँद कर बैठा हुआ है, प्रतिभा उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखती है l
प्रतिभा - एक काम करते हैं... हम मिलकर कटक जाते हैं... जब तक आप उसे रिसीव कर लेंगे.. मैं अपना काम निपटा लुंगी.. फ़िर हम मिलकर वापस आ जाएंगे....
तापस अपना सर हिला कर हामी भरता है, और फोन कर के ऑफिस से गाड़ी के लिए कह देता है और तैयार होने के लिए अंदर चला जाता है l
थोड़ी देर बाद घर के सामने एक कार आ कर रुकती है l दोनों पति पत्नी अपने अपने कर्म मय जीवन के लिबास में आ कर गाड़ी में बैठ जाते हैं l गाड़ी कटक की और दौड़ती है l पहले हाई कोर्ट में प्रतिभा उतर जाती है और फ़िर गाड़ी ×××××× हस्पताल में आकर रुकती है l
तापस गाड़ी से उतर कर फोन पर राजगढ़ के इंस्पेक्टर को फोन लगाता है l
तापस - जी आप कहाँ पर हैं...
फोन - कैजुअलटी में ग्यारह नंबर की बेड के पास....
तापस फोन काट कर अपने सिपाहीयों के साथ कैजुअलटी वर्ड में पहुंचता है l इंस्पेक्टर तापस की वर्दी देख कर पहचान लेता है और उसके साथ उसके सारे सिपाही तापस को सैल्यूट करते हैं l
तापस - कहाँ है आपका मुज़रिम...
इंस्पेक्टर - वह सिर्फ हमारा ही नहीं पूरे ओड़िशा का, पूरे भारत का और पूरे कानून व संविधान का मुज़रिम है.....
तापस - जस्ट इन्फॉर्मेशन मांगा.... किसी राजनेता का भाषण नहीं....
इंस्पेक्टर - सॉरी...
तापस - कहाँ है....
इंस्पेक्टर अपनी हाथों से इशारा करते हुए एक बेड की तरफ दिखाता है
Fantastic update
 
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