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बहुत ही धमाकेदार अपडेट है गोवा में शिला अपने दामाद के साथ रंगरेलियां मना रही है वही बेटी टूर पर राजेश से चूद गई दोनो मां बेटी के लिए वोदका काम कर गई वैशाली को पीयूष और राजेश की बीवी रेणुका के बारे में पता चल गया हैसारा मामला निपटाकर उसने आवाज देकर संजय को बुलाया.. फटाफट बिल देकर वो दोनों बाहर निकल गए.. और तेजी से चलते हुए अपने रूम पर पहुँच गए.. शीला काफी डर गई थी "संजय.. यहाँ रुकने में भी मुझे तो डर लग रहा है.. हमे अब गोवा छोड़ देना चाहिए.. इससे पहले की कोई ओर मुसीबत आ जाए.. तू चेकआउट करने की तैयारी कर.. "
"ठीक है मम्मी जी.. जैसा आप कहें.. हम चले जाएंगे.. लेकिन जाने से पहले एक जबरदस्त चुदाई तो बनती है " अपनी शॉर्ट्स की साइड से लंड बाहर निकालकर दिखाते हुए संजय ने कहा.. "ईसे आपके स्तनों के बीच रगड़ने की ख्वाहिश भी तो पूरी करनी है.. देखिए ये बेचारा कितना उदास है !!"
अपने दामाद का नरम लंड पकड़ते हुए शीला ने कहा "बेटा.. बिना चुदे तो मैं भी जाना नही चाहती.. दिल भरकर तेरे धक्के खाने है.. मेरी चूत को तेरे लंड से पावन करने के बाद ही हम गोवा छोड़ेंगे.. !! अब देर मत कर.. और अपनी मम्मी जी की चूत चाटने की सेवा शुरू कर दे.. "
"आह्ह मम्मी जी.. आपकी तो बातें सुनकर ही मेरा लंड कहीं पिचकारी न छोड़ दे.. " कहते हुए संजय ने शीला को अपनी बाहों में भर लियाया.. छोटे बच्चे की तरह वो शीला के स्तन से चिपक गया.. और नेट वाली ब्रा से एक स्तन को बाहर निकालकर चूसने लगा..
"आह्ह बेटा.. मज़ा आ रहा है.. तेरी जीभ की गर्मी मेरी निप्पल से होते हुए पूरे शरीर में फैल रही है.. देख.. तेरा लंड भी सख्त होकर तैयार हो गया.. इतने सुंदर लंड से चुदने के लिए वैशाली क्यों राजी नही होती ये मुझे समझ में नही आता.. इसे खड़ा हुआ देखकर भी वो कोई रिस्पॉन्स नही देती?"
"रिस्पॉन्स देती है ना.. क्यों नही देती.. मेरे लंड को देखकर ही वो करवट बदल कर सो जाती है"
"पागल है मेरी बेटी.. " कहते हुए शीला घुटनों पर बैठ गई और संजय के गन्ने जैसे सख्त लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी.. शॉर्ट्स की साइड से लंड को चूसने में मज़ा नही आ रहा था.. इसलिए उसने खींचकर संजय की शॉर्ट्स जिस्म से अलग कर दी.. और अपनी ब्रा और चड्डी उतारकर फिर से एक बार स्खलित होने के लिए तैयार हो गई.. उसके चेहरे पर उत्तेजना साफ साफ छलक रही थी..
दोनों नंगे होकर एक दूसरे को चूमने और चाटने में व्यस्त हो गए.. संजय ने शीला की चूत पर अपना हाथ जमा दिया और शीला ने संजय के लंड को गिरफ्त में ले लिया..
"मम्मी जी.. अब मुझे अपने दोनों स्तनों के बीच में लंड घुसेड़ने दो.. "
"हाँ हाँ.. घुसा दे.. मैंने कब मना किया तुझे!! आज ये आखिरी चुदाई होगी हमारी.. जो मन करे तेरा.. वो कर ले.. मैं कुछ नही बोलूँगी"
"मम्मी जी.. आपके मन में भी ऐसी कोई विकृत इच्छा हो तो बता दीजिए... गोवा की ट्रिप यादगार बनानी है हमें.. !!"
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वैशाली और राजेश सर माउंट आबू में.. रेणुका की बर्थडे पार्टी में बियर की चुसकियाँ लेते हुए सिगरेट पर सिगरेट फूँक रहे थे.. राजेश के स्वभाव और पर्सनैलिटी से वैशाली बेहद आकर्षित हो गई थी.. उसने शारीरिक संबंधों के लिए पहले ही मना कर दिया था पर फिर भी राजेश ने बुरा नही माना था.. वैशाली को ये बात बहोत अच्छी लगी राजेश की..
लगभग ग्यारह बज रहे थे.. हर कोई नशे में चूर होकर ट्रिप के मजे ले रहा था.. वैशाली की आँखें भी बियर के नशे में सुरूर से भर रही थी.. इतनी बियर पीने के बाद उसे बड़ी जोर से पेशाब लगी थी.. आखिर जब बात बर्दाश्त से पार हो गई तब वह उठी और राजेश से कहा "एक्स्क्यूज़ मी.. मुझे जाना होगा.. फ्रेश होकर आती हूँ.. आप मेरा वैट करना.. "
"जाना तो मुझे भी है.. चलो मैं भी साथ चलता हूँ.. कहीं तुम्हारे कदम लड़खड़ा गए तो कोई तो चाहिए सहारा देने वाला.. " राजेश ने कहा.. वैशाली शरमा गई.. और नीचे देखने लगी..
"अरे घबराइए नही.. मैं तो जेन्ट्स टॉइलेट में ही जाऊंगा.. तुम्हारे साथ थोड़े ही आने वाला हूँ" हँसते हँसते राजेश ने कहा
"वो तो मुझे भी पता है सर की आप मेरे साथ टॉइलेट में नही आओगे.. चलिए चलते है" वैशाली आगे चाय और राजेश उसके पीछे पीछे.. वैशाली की मटकती गांड को देखकर राजेश की नियत में खोट आने लगी थी.. राजेश की नशीली आँखों में वैशाली की गांड का नशा अलग से जुड़ गया..
पेसेज के आखिर में लेडिज और जेन्ट्स के टॉइलेट अगल बगल में ही थे.. चलते चलते वैशाली के कदम डगमगा गए.. और उसे संभालने के चक्कर में राजेश भी लड़खड़ा गया.. एक दूसरे को संभालते हुए दोनों दीवार का सहारा लेकर खड़े हो गए.. वैशाली के स्तन एक पल के लिए राजेश के हाथों से दब गए.. दोनों एक दूसरे को सॉरी कहने लगे.. और हंस पड़े..
टॉइलेट के पेसेज में दोनों अकेले थे.. हल्की सी रोशनी थी..
"वैशाली, यू आर सो हॉट.. प्लीज एलाऊ मी टू टच योर बूब्स.. सिर्फ एक बार.. मेरी रीक्वेस्ट है.. प्लीज"
"नही सर.. आई कांट डू धिस.. सॉरी.. " वैशाली ने नशे की हालत में भी अपना संयम नही छोड़ा था.. वह दरवाजा खोलकर लेडिज टॉइलेट में घुस गई.. राजेश भी जेन्ट्स टॉइलेट में चला गया.. वह पेशाब करके बाहर निकला और लेडिज टॉइलेट के दरवाजे के बाहर वैशाली का इंतज़ार करने लगा.. तभी लेडिज टॉइलेट का दरवाजा खुला.. एक हाथ बाहर आया और उसने राजेश को अंदर खींच लिया.. एक सेकंड में ही ये सब हो गया..
राजेश कुछ समझ या सोच सके उससे पहले ही वैशाली ने उसे चूम लिया.. उसके मदमस्त उरोज राजेश की छाती से रगड़ रहे थे.. वैशाली इतनी उत्तेजित हो गई थी की राजेश कुछ करे उससे पहले ही उसने हाथ नीचे डालकर उसका लंड पकड़ लिया और धीमे से कान में बोली
"कुछ मत बोलीये.. किसी को पता नही चलना चाहिए की इस क्यूबिकल में हम दोनों है.. एकदम शांत रहिए" वैशाली ने अपना टीशर्ट ऊपर कर दिया और अपने दोनों खिलौने राजेश को खेलने के लिए दे दिए.. मर्द का हाथ उसके स्तनों को स्पर्शते ही वैशाली के चेहरे पर खुमार छाने लगा.. बियर का नशा अपना काम कर रहा था और राजेश का हाथ भी..
राजेश का हाथ वैशाली की गीली पुच्ची तक कब पहुँच गया इसका दोनों को पता ही नही चला.. टॉइलेट की संकरी जगह में वैशाली और राजेश सर दोनों को तकलीफ हो रही थी.. पर दोनों इतने उत्तेजित थे.. जैसे एक दूसरे के जिस्मों को नोच खाना चाहते हो.. राजेश को कब से ललचा रहे वैशाली के बड़े बड़े तंदुरुस्त उरोज.. राजेश ने दोनों हाथों से पकड़कर अनगिनत बार चूम, चाट और काट लिए.. वैशाली को दर्द हो रहा था फिर भी वह चुप थी क्यों की जरा सी भी आवाज उनका भांडा फोड़ सकती थी.. दोनों फटाफट अपनी वासना को तृप्त करने की फिराक में एक छोटा पर रसीला प्रोग्राम कर देना चाहते थे.. जल्द से जल्द हॉल में पहुँचना भी जरूरी थी.. वरना लोगों को शक होने की गुंजाइश थी..
वैशाली ने तुरंत ही अपनी पेन्टी को घुटनों तक सरकाते हुए स्कर्ट ऊपर चढ़ा दिया और फिर उलटी होकर बोली "प्लीज सर.. जल्दी कीजिए.. डाल दीजिए फटाफट" हल्की रोशनी में जगमगाते हुए वैशाली के चरबीदार कूल्हों पर थपकी लगाते हुए राजेश ने उन नितंबों को चौड़ा किया..
"सर वक्त बहोत कम है.. वो सब आराम से बाद में देख लेना.. " उत्तेजनावश अपनी गांड को गोल गोल घुमाते हुए राजेश को आमंत्रित कर रही थी.. राजेश ने वैशाली की कमर को पकड़ा और अपने कड़े लंड को दोनों कूल्हों के बीच में लगाया..
"ईशशश.. सर.. वहाँ नही.. थोड़ा सा नीचे" अपने गांड के छेद पर राजेश के लंड के सुपाड़े का स्पर्श होते ही वैशाली ने सहम गई
"अरे यार.. इतना अंधेरा है.. कुछ दिखना भी तो चाहिए.. " राजेश ने परेशान होते हुए कहा
"सर, आप एक बार जीभ से चाटिए ना.. मुझे बिना चटवाए मज़ा ही नही आता" वैशाली की विनती को सन्मान देते हुए राजेश झुककर नीचे बैठ गया और उसके दोनों चूतड़ों को फैलाकर पहेले गांड और फिर चूत को चाटने लगा.. वैशाली उत्तेजित होकर गांड उछालने लगी.. राजेश तुरंत खड़ा हो गया और वैशाली की चूत में एक धक्के में ही अपना पूरा लंड डाल दिया.. वैशाली सिसकने लगी.. राजेश ने धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू किया और फिर स्पीड पकड़ ली..
वैशाली के कूल्हों से राजेश की जांघों के टकराने की वजह से आवाज आ रही थी.. जब वो आवाज काफी ऊंची हो गई तब दोनों ने घबराकर गति धीमे कर दी.. और फिर से अपनी लय प्राप्त कर ली.. डरते डरते सेक्स करने का मज़ा ही अलग होता है.. करीब दो मिनट तक ऐसे ही धक्के लगाने के बाद राजेश ने अपने सख्त लंड से आखिर के तीन चार धक्के इतने जोर से लगाए की वैशाली की आँखों में पानी आ गया.. उसेके पेट में दर्द होने लगा.. और साथ ही साथ उसकी चूत भी ठंडी हो गई.. राजेश ने भी चूत को अपने वीर्य से सराबोर कर दिया..
अंधेरे माहोल की इस चुदाई के बाद वैशाली घूम गई और राजेश के लंड के प्रति आभार प्रकट करते हुए उसे झुककर चूमने लगी.. राजेश ने उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूम लिया.. राजेश के लंड से खेलते हुए वैशाली ने एकदम धीमी आवाज में उसके कान में कहा "ये रात मुझे ज़िंदगी भर याद रहेगी.. आशा है की आपको भी मज़ा आया होगा.. अगर किस्मत रही तो फिर मिलेंगे.. मैं आपके साथ शांति से समय बिताना चाहती हूँ.. आपका स्वभाव मुझे बहोत पसंद आया.. आशा है की आप मेरी मित्रता का स्वीकार करेंगे.. हमारा शरीर संबंध तो बड़ा ही अनोखा रहा.. लेकिन लौटने के बाद क्या मैं आप से बिना किसी जिस्मानी संबंधों की मित्रता की अपेक्षा रख सकती हूँ ?"
राजेश वैशाली के सुंदर स्तनों को अपने दोनों हाथों से दबाते हुए बोला "वैशाली, हम बड़े अच्छे मित्र बनेंगे.. शरीर का संबंध बने या न बने.. उससे मुझे फरक नही पड़ता.. पर तेरे ये सुंदर स्तनों ने मुझे आज पागल ही कर दिया.. इन्हे दबाने की आशा तो मैं हमेशा रखूँगा ही.. लेकिन ये वादा है मेरा.. की जो भी होगा वो तुम्हारी इच्छा और स्वीकृति से ही होगा.. एक विनती करना चाहूँगा.. तुम्हें कभी भी फिर से ये दोहराने की इच्छा हो तो बेझिझक मेरे पास चली आना.. तुम्हारे जिस्म को पाने के लिए मैं हमेशा बेताब रहूँगा.. और कुछ पाए या न हो पाएं.. एक हल्की सी किस.. थोड़ा सा स्पर्श.. इतना भी मेरे लिए काफी होगा !!"
"ठीक है सर" हँसते हुए वैशाली ने राजेश के होंठों को चूम लिया.. "सर, पहले मैं बाहर देख लूँ.. पेसेज में कोई है तो नही.. मैं इशारा करूँ उसके बाद ही आप निकलना " राजेश अब भी वैशाली के स्तनों को छोड़ नही रहा था.. दबाए ही जा रहा था
"सर अब आप मुझे छोड़ेंगे तो मैं बाहर निकलूँ" वैशाली ने हसनते हुए कहा
"असल में तेरी ब्रेस्ट इतनी आकर्षक है की मुझसे रहा नही जाता.. अब तुमने बिना जिस्मानी संबंधों वाली मित्रता की बात की है.. तो मैं ये सोच रहा हूँ की इन स्तनों दोबारा न जाने कब देखने को मिले.. " राजेश ने कहा
"हम्म.. ओके सर.. ये लीजिए मेरी तरफ से माउंट आबू की ये आखिरी भेंट" कहते हुए उसने राजेश का चेहरा पकड़कर अपने स्तनों पर दबा दिया और उसके लंड को पकड़कर मसल दिया.. फिर वैशाली ने अपने आप को राजेश की गिरफ्त से मुक्त किया और धीरे से दरवाजा खोला.. पेसेज में कोई नही था.. उसने हाथ पकड़कर राजेश को बाहर खींचा.. "सर आप पहले जाइए.. कोई पूछे तो कहना वैशाली टॉइलेट गई है"
"ओह वैशाली.. " कहते हुए राजेश ने एक बार फिर वैशाली के स्तनों को वस्त्रों के ऊपर से ही पकड़कर दबा दिया और फिर न चाहते हुए भी मुड़कर चलने लगा.. वैशाली फिर से अंदर गई.. और नल से पानी लेकर अपनी चूत को धोने लगी.. राजेश के लंड का सारा वीर्य उसने ठीक से साफ किया.. साफ करते करते उसकी मुनिया फिर से चुनमुनाने लगी.. उंगली से क्लिटोरिस को रगड़कर फिर से उसे शांत किया.. अपने स्तनों को ठीक से ब्रा के अंदर दबा दिए.. और अपने बाल ठीक कर दस मिनट बाद बाहर निकली..
जैसे ही वो अपने क्यूबिकल से बाहर निकली.. थोड़े से दूर बने क्यूबिकल का दरवाजा खुला और उसमें से पीयूष बाहर निकला.. पीयूष की नजर वैशाली पर नही थी.. वो तुरंत दरवाजा खोलकर बाहर की ओर भागा.. लेडिज टॉइलेट में पीयूष???? जरूर कुछ खिचड़ी पक रही थी.. पीयूष अंदर किसी के साथ ही घुसा होगा.. साथ जो भी था.. हो सकता है की वो वैशाली के निकलने से पहले ही चला गया हो.. या फिर अभी भए क्यूबिकल के अंदर ही हो? पता करने का बस एक ही तरीका था.. वैशाली बेज़ीन के पीछे लगे बड़े पत्थर के पीछे छुपकर इंतज़ार करने लगी
थोड़ी ही देर में दरवाजा खुलने की आवाज आई.. वैशाली का दिल जोरों से धड़कने लगा.. कौन होगा? कविता? नही नही.. उन दोनों के बीच तो झगड़ा चल रहा है.. जरूर वो रांड मौसम होगी.. वही कब से मेरे और पीयूष के बीच हड्डी बनकर बैठी हुई है.. पीयूष भी कमीना अपनी साली के पीछे लट्टू होकर घूमता रहता है.. उसकी कच्ची कुंवारी चूत को एकबार चोदकर ही दम लेगा वो.. जैसी जिसकी किस्मत.. नुकसान तो कविता को ही होगा.. कविता भी बेवकूफ है.. उसे इतना भी पता नही चलता की जवान कुंवारी बहन को अपने रोमियो पति के साथ घूमने देना ही नही चाहिए उसे.. और मौसम भी एक नंबर की मादरचोद है.. अपने कच्चे बबले दिखा दिखा कर पीयूष को पागल बना देती है.. जैसे स्तन सिर्फ उसके पास ही है.. मेरे मुकाबले में मौसम के छोटे स्तनों की कोई औकात ही नही है..
वैशाली के दिमाग में ये सारे विचार चल रहे थे तभी पेसेज में किसी के आने की चहलकदमी सुनाई दी.. और वो जो भी थी वह फिर से क्यूबिकल के अंदर चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया.. वैशाली के लिए ज्यादा देर तक छुपे रहना मुमकिन नही था.. क्यों की लेडिज टॉइलेट के दरवाजे से अंदर आते हुए वह साफ दिख रही थी..
वैशाली बाहर निकल गई और चलते हुए हॉल में आ पहुंची.. वह आकर राजेश सर के बाजू में बैठ गई.. पर यहाँ से उसे टॉइलेट वाला पेसेज नजर नही आ रहा था.. उसने राजेश से कहा "सर आपको एतराज न हो तो क्या आप मेरी कुर्सी पर आ सकते है.. यहाँ एसी की ठंडी हवा सीधे मेरे सर पर लग रही है"
"ओ स्योर.. " कहते हुए राजेश खड़ा होकर वैशाली की चैर पर बैठ गया और वैशाली राजेश की चैर पर.. अब यहाँ से पेसेज बिल्कुल साफ नजर आ रहा था.. वैशाली थोड़ी थोड़ी देर पर.. राजेश से बातें करते हुए.. नजरें चुराकर पेसेज की ओर देख लेती..
राजेश ने धीमे से वैशाली के कान में कहा "यार वैशाली.. तेरी तो बहोत टाइट थी.. मज़ा आ गया यार.. "
"थेंक यू सर" वैशाली ने शरमाते हुए नजरे झुका ली
वैशाली बेचैन नज़रों से पेसेज की ओर देख रही थी.. उसके यहाँ बैठने के बाद कोई अंदर गया भी नही था और बाहर आया भी नही था.. उसने पीयूष की ओर देखा.. वो तो आराम से म्यूज़िक के ताल पर झूमते हुए बियर पी रहा था.. वैशाली ने ये भी नोटिस किया की पीयूष भी बार बार पेसेज की ओर देख रहा था.. बहोत खुश लग रहा था पीयूष..
ना चाहते हुए भी राजेश की बातों को सुन रही थी वैशाली.. उसका सारा ध्यान पेसेज पर ही था.. वो कौन थी जो उसके पीयूष को अपनी जाल में फंसा रही थी? तभी पेसेज से एक परछाई आती हुई नजर आई.. धीरे धीरे वह परछाई हॉल की तरफ आते देख वैशाली टकटकी लगाकर पहचानने की कोशिश करने लगी..
चेहरा स्पष्ट दिखते ही वैशाली के पैरों तले से जमीन खिसक गई!!! अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था उसे.. !!! नालायक पीयूष.. ये क्या किया तूने? कब से लगा हुआ है इनके साथ? रेणुका और पीयूष?? ओह माय गॉड.. ये मैं क्या देख रही हूँ?? साला ये पीयूष तो खिलाड़ी निकला.. हरामी.. मादरचोद.. एक साथ कितनों को लपेटें रखा है उसने!! कभी मेरे साथ.. कभी मौसम के साथ.. और अब रेणुका के साथ भी.. !!!
आपकी कहानी बेहतरीन है, क्या ये आपने खुद लिखी है या किसी गुजराती लेखक की कहानी का अनुवाद किया है ?निष्कर्ष निकालना मुश्किल है कि किसकी यौन इच्छाएँ अधिक होती हैं, क्योंकि यह पूरी तरह से व्यक्तिगत और परिस्थितियों पर आधारित होता है।
आमतौर पर यह माना जाता है कि पुरुषों में यौन इच्छाएँ अधिक होती हैं क्योंकि उनका टेस्टोस्टेरोन स्तर उच्च होता है, जो यौन इच्छा को बढ़ाता है। परंतु यह पूरी सच्चाई नहीं है। कई महिलाएँ भी यौन इच्छाओं में प्रबल होती हैं, खासकर अपने जीवन के विभिन्न चरणों में, जैसे कि ओव्यूलेशन के दौरान या गर्भावस्था के समय।
महिलाओं की यौन इच्छाएँ अक्सर भावनात्मक जुड़ाव और संबंधों पर आधारित होती हैं, जबकि पुरुषों की इच्छाएँ कभी-कभी अधिक शारीरिक और सीधी हो सकती हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि महिलाएँ कम यौन इच्छाएँ रखती हैं। समाज और संस्कृतियाँ भी इन इच्छाओं के प्रकट होने और अनुभव करने के तरीके पर प्रभाव डालती हैं। कई बार महिलाएँ अपनी इच्छाओं को खुलकर व्यक्त नहीं करतीं, जिससे यह धारणा बन जाती है कि उनकी यौन इच्छाएँ कम हैं।
कथा सूत्र पर आने के लिए शुक्रिया.. कहानी पर अपने विवेचन और प्रतिक्रिया जरूर दें..
rajeev13
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है चोरी चोरी वैशाली और राजेश ने अपना पानी निकाल कर खुद को शांत कर लियाचेहरा स्पष्ट दिखते ही वैशाली के पैरों तले से जमीन खिसक गई!!! अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था उसे.. !!! नालायक पीयूष.. ये क्या किया तूने? कब से लगा हुआ है इनके साथ? रेणुका और पीयूष?? ओह माय गॉड.. ये मैं क्या देख रही हूँ?? साला ये पीयूष तो खिलाड़ी निकला.. हरामी.. मादरचोद.. एक साथ कितनों को लपेटें रखा है उसने!! कभी मेरे साथ.. कभी मौसम के साथ.. और अब रेणुका के साथ भी.. !!!
"कब से क्या देख रही हो वैशाली? रेणुका को आज से पहले देखा नही क्या तुमने?" हँसते हुए राजेश ने कहा.. वो कब से वैशाली को रेणुका को देखते हुए देख रहा था.. परदे के पीछे क्या खेल चल रहे थे उसका राजेश को कोई इल्म नही था
वैशाली को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे उसे रंगेहाथों किसी ने पकड़ लिया हो.. बात को घुमाते हुए उसने कहा "अरे सर.. मुझे रेणुका जी की साड़ी बहोत पसंद आ गई.. इसलिए कब से उन्हें देख रही हूँ.. कितनी खूबसूरत लगती है वो.. कोई नही कहेगा की उनकी उम्र ४० के करीब है.. तीस साल से जरा भी ज्यादा की नही लगती.. लगता है आपकी संगत का असर है " आँखें लड़ाते हुए उसने राजेश से कहा
"हाँ वो तो है.. हम दोनों खूब इन्जॉय करते है.. लेकिन बिजनेस के चलते काफी समय से मैं उसे वक्त नही दे पा रहा.. अब यहाँ आकर कुछ वक्त साथ बिताने का मौका मिला है.. उसी की चमक है रेणुका के चेहरे पर.. इसके लिए मुझे पीयूष का भी आभार प्रकट करना चाहिए.. उसके आने के बाद ही मुझे ऑफिस से थोड़ा सा वक्त मिल पा रहा है.. और वही वक्त मैं रेणुका के साथ बीताता हूँ.. वरना पिछले तीन सालों में हम मुश्किल से तीन महीने ही साथ रहे है.. आई एम प्राउड ऑफ माय वाइफ.. मेरे इतने बीजी शिड्यूल के बावजूद उसने मुझे कभी एक लबज़ तक नही कहा.. अगर पीयूष मुझे न मिला होता तो हमारा संसार टूटने की कगार पर ही था.. ये तो अच्छा हुआ की रेणुका की एक सहेली शीला जी की सिफारिस पर मैंने पीयूष को इंटरव्यू के लिए बुलाया और सिलेक्ट कर लिया.. पीयूष उनका पड़ोसी है.. " राजेश ने एक सांस में ही पूरी कथा सुना दी
वैशाली के दिमाग में विचारों की शृंखला सी चल पड़ी ...अच्छा.. मतलब मम्मी ने ही रेणुका जी से बात करके पीयूष को नौकरी पर लगवाया है.. लेकिन पीयूष और रेणुका का सेटिंग हुआ कैसे होगा? इस सवाल का जवाब ढूँढना बेहद जरूरी था..
वैशाली: "शीला जी मेरी मम्मी है.. और पीयूष हमारा पड़ोसी है.. हम बचपन में साथ खेलकर बड़े हुए है.. और मैं उसे बहोत अच्छी तरह जानती हूँ.. बहोत ही होनहार लड़का है पीयूष" यह कहते हुए वैशाली मन में सोच रही थी.. जिस तरह उस दिन रेत के ढेर में मुझे रगड़कर चोदा था.. पीयूष होनहार तो है ही..
वैशाली: "कितना वक्त हुआ पीयूष को आपकी कंपनी जॉइन कीये हुए?"
राजेश: "ज्यादा नही.. बस दो महीने हुए है.. पर इतने समय में ही उसने जिस तरह काम किया है.. काबिल-ए-तारीफ है.. लड़का बहोत आगे जाएगा.. !!"
वैशाली सोचने लगी.. कुछ तो बात थी.. सिर्फ दो महीनों में ही पीयूष और रेणुका इतने करीब कैसे आ गए? कहीं नौकरी लगने से पहले ही दोनों का चक्कर चल रहा होगा क्या? और रेणुका मम्मी को कैसे जानती है? कहीं उन दोनों के बीच तो कहीं.. नही नही.. मुझे मम्मी के बारे में इतना गंदा नही सोचना चाहिए..
वैशाली जब विचारों में खोई हुई थी तब सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते हुए वैशाली के स्तनों को तांक रहा था.. अभी कुछ वक्त पहले ही इन्हे दबाए थे.. आहाहा.. कितना मज़ा आया था.. गले में पहने मंगलसूत्र के नीचे दिख रही दो स्तनों के बीच की खाई देखकर ही अंदर हाथ डालने का मन होने लगा राजेश को.. !! कितनी नाजुक और मदमस्त है.. !! एक पुरुष को जो चाहिए वह सब था वैशाली में..
दोनों चुपचाप एक दूसरे को देख रहे थे.. वैशाली सोच रही थी.. मम्मी और रेणुका के बीच कैसे संबंध होंगे? पापा काफी समय से विदेश है और रेणुका का पति भी ज्यादातर बाहर ही रहता है.. ऐसी स्थिति में कहीं दोनों ने मिलकर पीयूष के साथ ही.. ?? बाप रे.. क्या ऐसा हो सकता है?? हो तो सकता है.. पापा के बगैर दो साल मम्मी बिना सेक्स के तो रही नही होगी.. मैं खुद तीन-चार दिन से अधिक बिना सेक्स के पागल सी हो जाती हूँ.. संजय के बिना मुझे भी कितनी तकलीफ होती है!! कितनी रातें मैंने करवटें बदल कर और उँगलियाँ घिस घिसकर काटी है.. लेकिन उंगली में वो मज़ा कहाँ!! पुरुष का वो खास अंग जब अंदर स्पर्श करता है तब जो रियल टच की अनुभूति होती है.. वो उंगली में कभी नही मिल सकती.. अगर थोड़े दिन बिना सेक्स के रहना पड़े तो मेरी यह दशा होती है.. तो मम्मी और रेणुका को तकलीफ होना भी जायज था.. आखिर वह दोनों भी इंसान है और उनकी अपनी जरूरतें होंगी ही.. और यही इच्छा जब बेकाबू बनी होगी तभी रेणुका और पीयूष का संबंध बना होगा.. पर इन सब में मम्मी बीच में कहाँ से आई? क्या वो भी पीयूष के साथ करती होगी? हो सकता है.. शायद कोई ओर मर्द भी हो मम्मी के जीवन में.. जितना सोचती जा रही थी उतना ही उलझ रही थी वैशाली..
राजेश: "एक बात पूछूँ वैशाली?"
वैशाली: "हाँ पूछिए न, सर.. !!" पीयूष, रेणुका और मम्मी को अपने दिमाग से निकालकर सामने बैठे राजेश पर उसने ध्यान केंद्रित किया
"अभी थोड़ी देर पहले मैंने तुझे काफी रीक्वेस्ट की थी.. किस और स्पर्श के लिए.. तब तो तुमने साफ साफ मना कर दिया था.. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ जो तुमने मुझे टॉइलेट के अंदर खींच लिया? इस बात का ताज्जुब हो रहा है मुझे"
"आपकी बात और सोच बिल्कुल सही है सर.. मैंने पहले तो आपको मना किया था.. पर जैसे जैसे हम बात करते गए.. मुझे आपकी कंपनी में बहोत मज़ा आने लगा.. और माउंट आबू के इस रंगीन आजाद माहोल में.. बियर के नशे में.. मैंने कंट्रोल खो दिया सर.. !!"
"अच्छा.. मतलब तुम कंट्रोल खोकर मुझसे लिपट जाओ तो कोई प्रॉब्लेम नही.. और अगर मैं कंट्रोल खो कर सिर्फ एक किस मांग लूँ तो मेरी प्रपोज़ल रिजेक्ट?? ऐसा क्यों?"
वैशाली हंस पड़ी "सर, जो आउट ऑफ कंट्रोल होते है वो कभी प्रपोज नही करते.. सीधा पकड़ ही लेते है.. !! आपने प्रपोज किया क्यों की आप कंट्रोल में थे.. अगर आप आउट ऑफ कंट्रोल होते तो सीधा पकड़कर किस कर लेते.. पूछते नही !!"
"वो तो मैं कर ही सकता था.. पर फिर तुम मेरे बारे में क्या सोचती.. !! यहाँ इस वक्त तुम मेरी मेहमान हो.. तुम्हारी मर्जी के खिलाफ मैं कैसे कुछ कर सकता था?"
वैशाली: "बात तो आपकी सोलह आने सच है सर.. देखिए.. अगर हम चार धाम की यात्रा के दौरान ऐसा कुछ करते तो गलत होता.. पर यहाँ माउंट आबू का वातावरण ही अलग है.. रात का माहोल.. हाथ में बियर का ग्लास.. और ऐसे उत्तेजक कपड़ों में लड़कियां आस पास मंडरा रही हो.. तब थोड़ा सा ऊपर नीचे हो जाए तो हर किसी को थोड़ा समझना चाहिए.. अब ईसे देखो.. पीयूष की वाइफ कविता को.. जिस तरह के कपड़े उसने पहने है.. देखकर कितने मर्दों को इरेक्शन हो गया होगा.. !!"
राजेश: "कहीं तुम्हारे कहने का मतलब ये तो नही है न की ऐसा कुछ न करके मैंने गलती कर दी?? अगर ऐसा है तो मैं अपनी उस गलती को अभी सुधार लेने को तैयार हूँ"
"मतलब??" वैशाली रोमांचित हो गई राजेश की बात सुनकर.. "अरे मैं तो बस मज़ाक कर रही हूँ.. " कहते हुए उसने बात को वहीं रोकने की कोशिश की.. पर राजेश इस बात का अंत लाने को तैयार नही था
"वैशाली, तेरी छाती पर ये जो मंगलसूत्र के बीच की लकीर दिख रही है ना.. वहाँ किस करने का बहोत मन कर रहा है.. अब अगर मैं इजाजत माँगता हूँ तो तुम कहोगी की मैं कंट्रोल में हूँ.. और अगर सीधे सीधे किस कर लेता हूँ तो तुम्हें लगेगा की मैंने तुमसे जबरदस्ती की.. अब बोलो.. मैं क्या करूँ?"
वैशाली एकदम ही शरमा गई.. आसपास करीब ४० लोग थे और उसमे से काफी लोग पहचान के भी थे.. अगर बियर के नशे में राजेश ने सब के बीच कोई उलटी सीधी हरकत कर दी तो.. बाप रे!!
"सर, आप भी ना.. बड़े वो हो.. !!"
राजेश: "क्यों?? मैंने पूछकर कुछ गलत किया क्या?"
वैशाली: "अरे नही नही.. मेरे कहने का ये मतलब था की पहले हमने जो कुछ भी किया वो चार दीवारों के बीच सब की नज़रों से दूर किया था.. और अभी आप मुझे सब के सामने छाती पर किस करना चाहते हो.. अगर रेणुका मैडम ने देख लिया तो आपको माउंट के ऊपर से ही धक्का दे देगी.. अगर आसपास कोई नही होता तो बात अलग थी.. "
"अच्छा? ये बात है? तो चलो वापिस टॉइलेट में चलते है" राजेश ने वैशाली को चोंका दिया..
वैशाली सोच में पड़ गई.. अब क्या करें? बार बार टॉइलेट में थोड़े ही जा सकते है? कोई देख लेगा तो शक हो जाएगा..
"सोच क्या रही हो? ये लो.. एक दो दम लगाओ.. तो कुछ दिमाग काम करेगा" सिगरेट देते हुए राजेश ने कहा
वैशाली ने एक दम लगाते हुए कहा "सर, अभी थोड़ी देर पहले ही आपने खोलकर दबाए है.. चूसे भी है.. अभी एक छोटी सी लकीर के लिए इतनी जिद क्यों कर रहे हो? भरपेट खाना खा लेने के बाद.. सौंफ और मिस्री के पीछे पड़े हो.. !!"
"बात तो तुम्हारी सही है.. लेकिन कभी कभी खुली छाती देखकर भी इतनी उत्तेजना नही होती जो छोटी सी लकीर को देखकर होती है"
वैशाली ने आसपास देखा.. सब अपनी मस्ती में खोए हुए थे.. उसने टेबल पर झुककर अपने दोनों स्तनों को टीका दिया.. उसके साथ ही उसके स्तन उभरकर बाहर निकले.. और बीच की खाई काफी गहरी नजर आने लगी.. यौवन के शिखरों जैसे स्तनों को दिखाकर वैशाली ने कहा "फिलहाल तो आप बस देखकर ही काम चला लीजिए.. अगर मौका मिलें तो मैं खुद ही आपसे दबवा लूँगी.. ठीक है!! असल में.. मैं खुद भी दबवाना चाहती हूँ"
वैशाली के उभरते उरोजों को देखकर राजेश बेकाबू हो गया.. और वैशाली की कामुक बातों ने उसे ओर उत्तेजित कर दिया
राजेश: "वैशाली, मुझसे तो अब रहा नही जाता.. कुछ भी कर.. पर मुझे इन्हे चूसने दे प्लीज.. आह्ह.. थोड़ी और पास आ तो मैं इन्हें छु सकूँ.. दूर क्यों भाग रही हो यार?? या तो फिर चल मेरे साथ टॉइलेट में.. " राजेश अपना आपा खो रहा था.. और साथ ही साथ उसकी बातें सुनकर वैशाली की पुच्ची भी फुदक रही थी..
"नही सर.. आप प्लीज समझने की कोशिश कीजिए.. ये तो मैंने आपको शांत करने के लिए दिखाए.. बाकी आप देख ही सकते है.. आसपास कितने सारे लोग है!!"
"मैं तेरी बात समझ रहा हूँ.. पर तू भी जरा टेबल के नीचे जाकर मेरी हालत देख?" राजेश ने कहा
जानबूझ कर हाथ से चम्मच गिराते हुए वैशाली ने टेबल के नीचे देखा "अरे बाप रे!! ये क्या कर रहे है आप सर? अंदर रख दीजिए.. किसी ने देख लिया तो आफत आ जाएगी.. " टेबल के नीचे राजेश ने अपने पेंट की चैन खोलकर अपना फनफनाता हथियार हाथ में पकड़ा हुआ था.. वैशाली का चेहरा शर्म और उत्तेजना से लाल हो गया.. वो भी गरम हो गई.. खुलेआम लंड देखने का यह पहला मौका था वैशाली के लिए..
वैशाली ने आसपास नजर डाली.. कहीं कोई सलामत जगह मिल जाएँ तो चुदाई का दूसरा राउंड कर लेने के लिए.. पर हॉल के अंदर ऐसी कोई जगह नही दिखी जहां वो राजेश के लंड और अपनी चूत को ठंडी कर सकें..
"प्लीज वैशाली.. अगर तुम मुझे अपनी क्लीवेज पर किस नही करने दोगी तो ये बैठेगा ही नही.. और जब तक ये बैठेगा नही तब तक मैं उसे पेंट के अंदर नही डाल पाऊँगा" राजेश ने विनती की
खुले वातावरण में लंड देखकर वैशाली की नियत भी डगमगा गई थी पर यहाँ पर कुछ भी करना मुमकिन नही था.. क्या करूँ? एक तरफ चूत में हो रही खुजली.. तो दूसरी तरफ प्राइवसी की तकलीफ.. खुले में थोड़े ही ये सब हो सकता है?
अचानक वैशाली को एक आइडिया सुझा.. हॉल के इस भाग की दीवार पर.. करीब चार फुट ऊपर एक कांच का कपबोर्ड बना था.. जिसके अंदर किताबें रखी थी
वैशाली: "सर, एक काम करते है.. मैं उस कपबोर्ड से किताब लेने खड़ी हो जाती हूँ.. सब लोगों की तरह मेरी पीठ होगी।। जब तक मैं किताब को निकालूँ उस दौरान आपको जो करना है कर लीजिए.. ठीक है!! पर आस पास देखते रहना.. और कहीं कुछ रिस्क लगे तो मुझे इशारा कर देना.." कहते हुए वैशाली ने खड़े होकर आसपास एक नजर दौड़ाई.. किसी की नजर उन पर नही थी.. पर खड़े होने के कारण उसके उभरे हुए स्तन वापिस ब्रा के अंदर चले गए.. लेकिन राजेश अब पीछे हटने के मूड में नही था.. जैसे ही वैशाली कपबोर्ड का कांच का दरवाजा खोलने के लिए झुकी.. उसके स्तन राजेश के मुंह के बिल्कुल ही करीब आ गए.. राजेश ने वैशाली की गदराई क्लीवेज पर अपनी जीभ फेर दी.. और एक स्तन भी दबा लिया.. वैशाली किताब को ढूँढने में वक्त लगा रही थी.. और काफी देर तक वह ढूंढती रही और राजेश का ज्यादा से ज्यादा मौका देती रही.. दोनों पेट्रोल से आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे.. ऐसी हरकतों से कभी आग नही बुझती.. उल्टा और भड़क जाती है.. राजेश ने हिम्मत करके वैशाली के टॉप में हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल लिया.. वैशाली को भी राजेश का लंड हाथ में पकड़ने की तीव्र इच्छा हो रही थी
"कोई देख तो नही रहा??" वैशाली ने एकदम धीमी आवाज में पूछा.. "अगर कोई देख रहा हो तो मैं एक किताब बाहर निकालूँ.. वरना ऐसे ही बैठ जाती हूँ"
"नही, कोई नही देख रहा.. तुम बैठ जाओ"
वैशाली ने कपबोर्ड बंद किया और बैठ गई..
"अब मिल गई आपको ठंडक?" वैशाली ने कहा
"हाँ यार.. वैशाली.. तेरे जिस्म में कुछ तो ऐसी खास बात है.. किसी स्त्री को देखकर इतना उत्तेजित मैं कभी नही हुआ पहले" राजेश के हाथ की हलचल देखते हुए वैशाली को साफ पता चल रहा था की वो टेबल की नीचे मूठ लगा रहे थे.. उसके स्तनों को देखकर !!
"यार वैशाली.. वापिस टेबल पर झुक जा.. तेरे बॉल छलक कर बाहर दिखेंगे तो मेरा जल्दी छूट जाएगा.. !!" राजेश बेचैन चेहरे से अपने लंड की ओर देख रहा था
"नही सर.. अभी आप छोड़ मत देना.. मुझे भी खेलना है उसके साथ.. आपका काम तो हो गया.. अब मेरी बारी.. " कहते हुए वो टेबल के नीचे घुस गई और एक ही सेकंड में राजेश का लंड उसके मुंह में था.. !! फटाफट उसने सात आठ बार लंड को मुंह में अंदर बाहर किया और तुरंत वापिस चैर पर बैठ गई.. "बस सर.. अब इससे ज्यादा कुछ नही हो सकता.. आप अपना पानी निकाल लो.. और मैं अपना निकालती हूँ.. " कहते ही वैशाली ने अपने स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर चुत को रगड़ना शुरू कर दिया.. अचानक वैशाली को अपनी कलाई पर कुछ गरम एहसास हुआ.. पर अपनी चूत रगड़ते हुए उसे ये देखने का समय नही था.. दो तीन मिनटों तक चूत की भरसक रगड़ाई करने के बाद.. वो भारी सांसें लेते हुए झड़ गई.. अब उसने अपनी कलाई पर नजर डाली.. उस पर राजेश का वीर्य लगा हुआ था.. हँसते हुए वैशाली ने उन बूंदों को अपनी कलाई से चाट लीया.. और फिर अपनी जिन उंगलियों से उसने अपनी चुत को रगड़ा था.. उन गीली उंगलियों को राजेश के बियर भरे ग्लास में डुबोते हुए बोली "अब बियर का असली स्वाद मिलेगा.. ये आज का आखिरी ग्लास मेरा..!!"
"हाँ यार.. मुझे भी कुछ ज्यादा ही चढ़ गई आज.. " वैशाली की बात से सहमत होकर राजेश ने कहा
दोनों ने बियर का ग्लास खतम किया और सिगरेट सुलगा कर पार्टी में जुड़ गए.. सब लोग नशे में धुत थे और मस्ती से झूम रहे थे.. डांस करते हुए सब जान बूझकर कविता के जिस्म और बोब्बों से टकरा रहे थे.. कविता भी शायद बियर के नशे में थी.. वो भी पागलों की तरह झूम रही थी.. पीयूष मौसम के कंधे पर हाथ रखकर कुछ गुफ्तगू कर रहा था.. और पिंटू फाल्गुनी को कंपनी दे रहा था.. पूरी पार्टी में सिर्फ पीयूष, मौसम और फाल्गुनी ही ऐसे थे जिन्हों ने शराब नही पी थी..
रेणुका की बर्थडे पार्टी और आबू की ट्रिप अपने अंत की ओर बढ़ रही थी.. पीयूष अभी अभी रेणुका को चोदकर आया था.. फिर भी मौसम के कंधों पर हाथ रखकर बार बार उसके उभारों को छु रहा था.. वैशाली ये सब देखकर गुस्से से आग बबूला हो रही थी.. पर वो कर भी क्या कर सकती थी!! हाँ.. कविता जरूर कुछ कर सकती थी.. लेकिन उसे फिलहाल पीयूष की पड़ी नही थी.. और अपनी मस्ती में ही मस्त थी.. पीयूष का हाथ बार बार मौसम के उभारों पर होते हुए उसकी निप्पल पर चले जाते तब मौसम उसका हाथ हटा देती..
लेकिन पीयूष के सर पर तो हवस का भूत सवार था.. थोड़ी देर शांत रहकर वह वापिस अपनी हरकतें शुरू कर देता.. आखिर बगल में मौसम जैसी कच्ची कली खड़ी हो.. और अपने आकर्षक उभार दिखा रही हो.. और सब कुछ करने को राजी भी हो.. तब कोई कैसे खुद को कंट्रोल करें!! गलती पीयूष की नही थी.. पर मौसम की जवानी ही कुछ ऐसी कातिल थी.. की उसके चक्कर में पीयूष सब को भूल चुका था.. वैशाली, शीला, रेणुका.. अरे अपनी कविता को भी भूल चुका था.. सौन्दर्य का जादू अक्सर जानलेवा होता है.. मौसम तो अपने जिस्म पर पुरुष का स्पर्श पाकर अपनी ट्रिप को यादगार बना चुकी थी.. जीवन की पहली किस भी उसे यही मिली थी.. वो जितना पीयूष से दूर जाने की कोशिश करती.. उतना ही ज्यादा आकर्षित हो रही थी.. अपने आप से वो बार बार पूछ रही थी.. वो क्या बात थी जो उसे पीयूष की ओर खींचती जा रही थी? इतनी कोशिशों के बावजूद भी? अपनी बहन के पति के साथ ये सब करने का परिणाम कितना भयानक हो सकता है ये जानने के बावजूद भी वह खुद को क्यों नही रोक पा रही थी इस बात का उसे भी आश्चर्य हो रहा था.. मौसम को इन सब में मज़ा भी आ रहा था और डर भी लग रहा था..
मौसम के कंधों पर हाथ रखे हुए पीयूष रेणुका को कुछ इशारे कर रहा था.. ये वैशाली ने देख लिया.. वैशाली पीयूष के पास आकर गाना गुनगुनाने लगी.. "कहीं पे निगाहें.. कहीं पे निशाना" वैशाली के कदम लड़खड़ा रहे थे.. जैसे मौसम और पीयूष के बीच हड्डी बनने के लीये आई हो.. वैसे वैशाली ने पीयूष के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "क्या यार पीयूष? तू तो कविता को भूल ही गया!! जब से आया है तब से मौसम के साथ ही घूम रहा है!!"
मौसम का मुंह यह सुनकर इतना सा हो गया.. जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो.. उसने झटके से अपने कंधे से पीयूष का हाथ हटा दिया.. और शरमाकर एक कोने में खड़ी हो गई..
वैशाली ने ये देखकर हँसते हुए कहा "अरे अरे.. टेक इट ईजी.. मैं तो बस मज़ाक कर रही थी.. " वैशाली को जो कहना था वो कह दिया और फिर बात को वापिस घुमा भी दिया.. स्त्रीओं को इस कला में महारथ हासिल होती है.. लेकिन मौसम अब डर गई थी.. झूठ-मूठ हँसते हुए उसने वैशाली से कहा "इट्स ओके.. मुझे बुरा नही लगा.." तभी नशे में झूमती हुई कविता वहाँ आ पहुंची.. उसके कपड़े देखकर पीयूष को शर्म आ रही थी.. पर अभी सब के सामने उसे कुछ भी कह पाना मुमकिन नही था.. नशे की हालत में कविता बात का बतंगड़ बना देती.. पीयूष सब के बीच कोई तमाशा खड़ा करना नही चाहता था.. ऐसी कोई हरकत करके वो रेणुका को भी गंवाना नही चाहता था.. उसने मन में गांठ बांध ली थी.. कविता को जो कुछ भी कहना है वो घर पर जाकर कहेगा..
मौसम और वैशाली के बीच खड़े पीयूष को देखकर कविता ने उसकी उंगली की "अरे वाह पीयूष.. तेरे तो चारों तरफ गोपियाँ मंडरा रही है!! बाकी है तू पक्का रोमियो.. मैं ये सोच रही थी की तेरी जोड़ी किसके साथ ज्यादा जाचेगी? वैशाली के साथ या मौसम के साथ? किससे पूछूँ? एक काम करते है.. रेणुका जी से ही पूछ लेते है.. चल.. !!"
वैशाली और मौसम को सिट्टी पीट्टी गूम हो गई.. बाप रे!! आज कविता जरूर तमाशा खड़ा करेगी.. बात को घुमाते हुए वैशाली ने कहा
वैशाली: "पीयूष की जोड़ी तो सिर्फ कविता के साथ ही अच्छी लगती है.. आखिर दोनों पति पत्नी है.. पीयूष.. तू कविता के साथ खड़ा हो जा.. मैं अपने मोबाइल में तुम दोनों की तस्वीर लेकर दिखाती हूँ.. कितने अच्छे लगते हो साथ में तुम दोनों.. !! अगर तुम्हारी जोड़ी अच्छी नही लगी तो फिर हम रेणुका जी से पूछेंगे.. ठीक है?" नशे के असर में लड़खड़ाती हुई कविता ने कपड़े तो उत्तेजक पहने ही थे.. पर नाच नाचकर वह कपड़े अस्तव्यस्त भी हो गए थे.. टॉप के साइड से उसकी आधे से ज्यादा चूचियाँ नजर आ रही थी.. उसके कपड़ों से सुंदरता का कम और नग्नता का प्रदर्शन ज्यादा हो रहा था.. ऊपर से उसमें मिला शराब का नशा.. नशा चढ़ते ही कविता बेफिक्र होकर किसी की परवाह कीये बिना झूम रही थी.. और आस पास मंडराते भँवरे.. मौका मिलते ही इस फूल का रस चूसने में कसर नही छोड़ते थे..
पीयूष को कविता के बगल में खड़ा रखकर वैशाली ने जबरदस्ती फ़ोटो खींच ली.. और सब को दिखाने लगी.. अब देखने वाले ये तो नही कहेंगे की जोड़ी अच्छी नही लगती.. !! सब ने यही कहा.. की जोड़ी अच्छी है और पीयूष के मुकाबले कविता ज्यादा सुंदर लगती है.. अपने गुणगान और पीयूष का अपमान सुनकर बड़े ही आत्मसंतोष के साथ खुश होकर कविता पहले से भी ज्यादा उन्मुक्त होकर महफ़िल के मजे लेने लगी.. पीयूष ने जो बर्ताव उसके साथ किया था उसका दिल से बदला ले लिया था कविता ने और इसी बात का जश्न मना रही थी वो.. !!!
कविता के जाते ही मौसम और वैशाली ने चैन की सांस ली..
"आज बहोत बातें कर रही थी तू राजेश सर के साथ?" पीयूष ने पूछताछ शुरू कर दी वैशाली से
"हाँ पीयूष.. मैं अकेली थी.. तू तो मौसम के साथ ही चिपका हुआ था.. कविता तो अपनी मस्ती में थी.. और तुझे मौसम के अलावा और कोई दिख ही नही रहा.. मैं अकेली बोर हो रही थी.. अच्छा हुआ की राजेश सर ने अपना समय दिया.. और मेरी उदासी कम हुई.. बाकी जिसके साथ मस्ती करने के इरादे से मैं यहाँ आई थी.. उसे तो मेरी पड़ी ही नही है!!"
"अरे यार वैशाली.. तुझे बुरा लगा हो तो आई एम सॉरी.. मैं सामने से तुझे फोर्स करके यहाँ लाया था. तू बोर ना हो ये देखने की जिम्मेदारी मेरी है.. पर मौसम और फाल्गुनी थे इसलिए मैंने सोचा की तुझे कंपनी मिल जाएगी.. बाकी तू सोच रही है ऐसा कुछ नही है.. मेरा ध्यान हमेशा से तेरे ऊपर था.. "
Thank you so much bhabhiji :Awesome Superb erotic
adbhut update
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Thanks Ek number bhaiBehtreen update
Thanks Premkumar65Fantastic update.
Thanks a lot Ajju LandwaliaGazab ki update he vakharia Bhai,
Party me sabki nazar kavita par hi jam gayi.................lag bhi itni gazab ki rahi he kavita
Piyush aur kavita ke jhagde ka fayda lagta he pintu se pehle rajesh na utha le
Gazab bhai.......simply outstanding
Keep rocking Bro
शीला नंगी होकर अपने दामाद संजय की बाहों में पड़े पड़े गोवा की आखिरी रात को रंगीन बनाने की तैयारी में थी.. दोनों आज अपनी सारी इच्छाओं को पूर्ण करने की फिराक में थे.. क्योंकी ऐसा मौका उन्हें दोबारा नही मिलने वाला था.. दोनों आपस में एकदम खुल चुके थे
शीला की एक एक सिसकी.. संभोग के समय के हावभाव देखकर संजय पागल हो जाता था.. अब तो नोबत ऐसी आन पड़ी थी शीला के साथ प्रत्येक क्षण वो उत्तेजित ही रहता था.. पूरा समय लंड खड़ा रहने के कारण उसे दर्द होता था.. चार चार बार झड़ने के बाद भी शीला, संजय के गोरे.. वीर्य-विहीन लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़े रखती थी..
शीला: "बेटा.. मैंने कभी सोचा भी नही था की अपने दामाद के साथ ही मुझे ये सब करने का मौका मिलेगा.. जो कुछ भी हो रहा है वो मुझे इतना अच्छा लग रहा है की तुम्हें बता नही सकती.. लेकिन आज ये सब कुछ करने का आखिरी दिन है.. तू एक जानदार मर्द है.. एक औरत होने के नाते मैं इतना तो कह ही सकती हूँ की तू अपनी कामुक हरकतों से किसी भी लड़की या स्त्री को अपनी गुलाम बना सकता है.. संजय बेटा.. तेरी हरेक हरकत ऐसी होती है की तुझसे एक बार चुदने के बाद कोई भी तेरे इस डंडे को कभी भूल नही पाएगा.. और मैं तो पहले से ही सेक्स की काफी शौकीन हूँ.. तेरे ससुर के साथ मैंने इतने खुलकर मजे कीये है की तुझे क्या बताऊँ.. !! तेरे साथ चुदते वक्त.. तेरे दमदार धक्कों को मेरी चूत में लेते वक्त.. मुझे ऐसा ही लगता था जैसे तेरे अंदर मदन घुस गया हो.. ये तेरा सुंदर लंड इतना रसीला है की कोई भी स्त्री उसे देखते ही अपने छेद में लेने के लिए बेबस हो जाएँ.. " शीला ने झुककर संजय के लंड को चूम लिया
संजय: "आहह मम्मीजी.. मुंह में लेकर चुसिए..बहोत मज़ा आ रहा है.. मम्मीजी, मैंने आज तक सेंकड़ों लड़कियों और औरतों को चोदा है.. पर आपके जैसी स्त्री मैंने आजतक नही देखि जो २४ घंटे बस चुदने के लिए ही बेकरार हो.. !!" कहते हुए संजय ने शीला के गदराए स्तनों को बड़ी मस्ती से दबा दिया "मम्मीजी, आप एक बार कलकत्ता आइए.. वहाँ मेरे बहोत सारे दोस्त है.. आपको नए नए लंडों को स्वाद मिलेगा.. !!"
शीला: "बेटा.. इतने दूर सिर्फ लंड लेने के लिए आऊँ?? और मुझे अलग अलग लंड लेने में दिलचस्पी नहीं है.. मुझे तो चाहिए एक ताकतवर लंड जो मेरे जनम जनम की भूख को संतुष्ट कर सकें.. मेरी चूत में जो हर दस मिनट पर चुदवाने की चूल मचती है.. उसे शांत कर सकें.. संजयं, तू यहाँ शिफ्ट हो जा.. फिर हम आराम से एक दूसरे को भोग सकेंगे.. तू मेरा दामाद है इसलिए किसी को शक भी नही होगा.. मेरा दिल अभी तेरा लंड लेकर भरा नही है.. अभी तो मुझे तुझसे बहोत बार चुदवाना है.. इतनी बार करवाना है की दोबारा कभी चुदवाने का मन ही न हो" कहते हुए शीला ने संजय को बिस्तर पर लेटा दिया और उसपर सवार हो गई.. संजय के लंड को अपनी गांड के छेद पर सेट किया और हल्के से दबाया.. आह्ह..
शीला: "तेरे मोटे लंड से जब गांड की दीवारें रगड़ती है तब बड़ी ही तेज खुजली होती है अंदर.. आज इस आखिरी रात को यादगार बनाने के लिए मैं तुझसे अपनी गांड मरवाना चाहती हूँ"
संजय: "ओह्ह ओह्ह आह्ह मम्मीजी.. कितनी टाइट है आपकी गांड आह्ह.. " सिसकियाँ लेते हुए संजय ने अपनी गांड ऊपर कर दी और शीला की कमर को दोनों हाथों से पकड़कर उसकी गांड को ड्रिल करने लगा.. शीला की दर्द से भरी सिसकियाँ.. और संजय की कराहों की गूंज के बीच.. शीला की गांड को चीरता हुआ संजय का तगड़ा लंड अंदर घुस गया.. शीला के परिपक्व और मदमस्त स्तनों को दोनों हाथों से पकड़कर मसलते हुए संजय ने उसे अपनी ओर खींचा.. और उसके रसीले कामुक होंठों पर एक जबरदस्त किस कर दी..
शीला और उसका दामाद संजय.. एक कपल की तरह नही.. पर पति पत्नी की तरह एक दूसरे में खो गए.. संजय का लंड शीला की गांड में ऐसे फिट हो गया जैसे वो दोनों जनम जनम के साथी हो.. कमर हुचकाते हुए संजय.. अपने लंड को शीला की गांड के अंदर बाहर कर रहा था.. और शीला की गांड ऐसे लंड गटक रही थी जैसे उसका सर्जन ही लंड लेने के लिए हुआ हो.. बड़ी मस्त ठुकाई हो रही थी शीला की गांड की..
संजय: "ओह्ह मम्मी जी.. कितनी टाइट गांड है यार.. मेरे लंड में दर्द होने लगा है.. आह्ह जरा धीरे धीरे.. !!!"
शीला: "आह्ह बेटा.. मेरा तो मन कर रहा है की मैं तेरी रखेल बन जाऊँ.. और तू मुझे पूरा दिन चोदता रहें.. अलग अलग आसनों में..ओह्ह बेटा.. बहोत जोरों की खुजली मची है मेरी गांड में.. लगा जोर से धक्के.. फाड़ दे मेरी गांड.. आह्ह आह्ह ओह्ह ओह्ह.. !!"
संजय के ऊपर हिंसक होकर कूद रही थी शीला.. कैसी जवान लड़की से दोगुना जोर था शीला के धक्कों में.. उसकी गदराई कामुक काया की एक एक अंग भंगिमा.. किसी भी पुरुष को अपने वश में करने के लिए काफी थी.. शीला ने हाथ नीचे डालकर संजय का लंड पकड़ लिया और थोड़ा सा रुककर अपनी गांड से बाहर निकाला.. थोड़ा सा झुकी और एक ही धक्के में अपने भोसड़े में उतार दिया..
शीला: "आह्ह.. आग तो यहाँ भी लगी हुई है.. जमकर धक्के लगा बेटा.. आग बुझा दे मेरी.. अब और रहा नही जाता संजु बेटा.. !!" शीला ने अपनी रिधम प्राप्त कर लिए थी.. वो संजय के जिस्म पर ऐसे हावी हो गई थी जैसे किसी बड़े मगरमच्छ ने छोटी सी गिलहरी को दबोच रखा हो.. संजय का लंड अब दर्द करने लगा था.. पर अपना बचाव करने की स्थिति में नही था वो.. शीला ने जैसे उसके शरीर, मन और मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया था.. बेजान पड़े पड़े वो बस शीला से संचालित हो रहा था.. शीला के इस सुनामी जैसे हमले को देखकर वो स्तब्ध हो गया था.. पड़े रहने के अलावा उसके पास ओर कोई विकल्प नही था.. शीला इतनी हिंसक होकर उसके लंड पर कूद रही थी जैसे उसके लंड को शरीर से अलग कर देना चाहती हो..
संजय अब घबरा रहा था.. कहीं शीला की ये तीव्र सेक्स की भूख उसकी जान न ले ले.. आँखें बंदकर वो प्रार्थना कर रहा था की शीला जल्द से जल्द झड जाए.. करीब १२ मिनट के भीषण धक्कों के शीला ढल पड़ी.. ऐसे लाश होकर संजय की छाती पर गिरी जैसे उसके शरीर की सारी ऊर्जा भांप बनकर उड़ गई हो.. शीला के विराट स्तनों और बदन के वज़न तले संजय दब गया था.. उसका लंड अब वीर्य छोड़ पाने की स्थिति में भी नही रहा था.. और बिना झड़े ही नरम होकर शीला के भोसड़े से बाहर निकल गया था.. और मरे हुए चूहे जैसे लटक रहा था.. दायें तरफ के आँड की ओर लटक रहे मुरझाएं लंड को देखकर ही पता लग रहा था की शीला के भोसड़े के अंदर उस पर क्या बीती होगी.. संजय ने मन ही मन अपने ससुर को सलाम कर दी.. जिन्होंने इतने सालों से इस हवस की महासागर को समेटकर संभाल रखा था.. पता नही ससुरजी कैसे इस शेरनी को काबू में रखते होंगे.. !! संजय सोच रहा था.. मैं इतना बड़ा चुदक्कड़ हूँ फिर भी मम्मी जी ने मेरे झाग निकाल दिए.. कोई सामान्य इंसान होता उसकी तो जान ही निकल जाती मम्मी जी के नीचे.. !!!
रात के साढ़े बारह बजे.. एक जानदार ऑर्गैज़म के बाद.. शीला और संजय बाथरूम में साथ नहाने गए.. नहाते हुए शीला ने फिरसे एकबार संजय को मुख-मैथुन का अलौकिक आनंद दिया.. वह जानती थी की किसी भी मर्द को अगर काबू में करना हो तो मुख-मैथुन से बेहतर ओर कोई दूसरा विकल्प नही है..
अगर ईमानदारी से सर्वे किया जाए तो कोई कपल ऐसा नही मिलेगा जिसे ओरल सेक्स में मज़ा न आता हो.. मर्द को अपना लंड चुसवाने में.. और औरत को अपनी चुत चटवाने में हमेशा आनंद आता है.. सब के सामने या दोस्तों के बीच.. इस क्रिया को घृणास्पद या गंदा कहने वाले लोग.. बेडरूम की चार दीवारों के बीच बड़े आराम से इसका मज़ा उठाते है.. इतना ही नही.. दुनिया के सारे मर्द यही सोचते है.. की उसके जितनी विकृत हरकतें और कोई नही करता होगा.. उसमें भी जब उसकी बीवी उससे कहें "बाप रे.. क्या कर रहे हो आप? आप को तो कुछ शर्म ही नही है.. एक नंबर के बेशर्म हो.. !!" यह सुनते ही पुरुष का अहंकार पोषित होता है और वो सातवे आसमान पर पहुँच जाता है.. और इसी भ्रामक अहंकार का उपयोग कर औरतें मर्दों से अपने काम निकलवा लेती है.. इंसानों की बात छोड़िए.. जानवर भी तो ऐसा ही करते है.. !!! नर जानवर मादा की योनि की गंध सूंघकर और उसे चाटकर ही उसे संभोग के लिए तैयार करता है.. हाँ, मादा जानवर कभी नर के साथ मुख-मैथुन नही करती.. ये क्रिया केवल मनुष्यों में ही देखी जाती है.. कुदरत ने इस मामले में इंसानों को ज्यादा ही स्वतंत्रता दी है..
शावर लेते हुए जब शीला घुटनों के बल बैठकर अपने दामाद का लंड चूस रही थी तब उसका ध्यान इस बात पर जरा भी नही था की संजय को मज़ा आ रहा है या नही.. वह तो खो चुकी थी अपनी ही मैथुन की अलौकिक दुनिया में.. लंड के लिए उसने अपने मन में जो कुछ भी विकृतियाँ पाल रखी थी वो सब उसने गोवा की इस आलीशान होटल के बाथरूम में ही संतुष्ट करने का मन बना लिया था.. संजय के विकराल लंड को अपने मुख के अंदर बाहर कर रही थी.. उसने अपनी आँखें इसलिए खोली थी ताकि वो दीवार पर लगे आईने में अपनी हरकतें देख सके.. फिर से एक बार पूरे लंड को मुंह से बाहर निकालकर उसने अपनी जीभ से उसे चाट लिया.. एक एक हरकत को आईने में देखकर वो उत्तेजित हो रही थी.. संजय तो शीला के हाथों का एक खिलौना बनकर रह गया था.. वो शीला के स्तनों को बार बार दबाकर.. निप्पलों को खींचकर अपनी सास के स्तनों से खेलने की सालों पुरानी तमन्नाओं को पूरी कर रहा था.. संजय को वो समय याद आ रहा था.. जब जब वो ससुराल आता तब अपनी सास के गदराए जोबन को देखते ही बेचैन हो जाता था.. तब से उसे महसूस होता की इस स्त्री में कुछ ऐसा खास था जो मर्दों को अपनी ओर चुंबक की तरह खींच लेती थी..
जब संजय वैशाली को पहली बार देखने आया था तब से वो अपनी सास के हुस्न का आशिक बन गया था.. जब पहली बार शीला ने झुककर नाश्ते की प्लेट टेबल पर रखी थी और जिस तरह उसके सामने देखा था.. संजय को ऐसा ही लगा था जैसे वो उसके चोदने के लिए आमंत्रित कर रही हो.. वैशाली से कहीं ज्यादा वो शीला के प्यार में पागल था.. शीला के लिए ये कोई नई बात नही थी.. वो अपने दामाद की गंदी नज़रों से काफी समय पहले ही वाकिफ हो चुकी थी.. पहले तो वो ज्यादातर संजय के सामने आती ही नही थी.. ताकि उसकी कामुक नज़रों का सामना न करना पड़ें.. तब से लेकर आज तक.. उनके संबंध कहाँ से कहाँ पहुँच गए!!! शीला के हाथों में अपने दामाद का लंड आ चुका था.. और जिन उन्नत स्तनों को याद करते हुए संजय, वैशाली की चूत का भोसड़ा बना देता था.. वो स्तन भी संजय के हाथों में थे.. आम तौर पर संभोग के दौरान.. पुरुष सक्रिय होते है और स्त्री निष्क्रिय.. पर यहाँ तो सारी सक्रियता का ठेका शीला ने ही ले रखा था.. संजय तो बेचारा बस अपनी सास के आदेशों का पालन ही कर रहा था..
शीला आईने में संजय के लंड को ऐसे देख रही थी जैसी किसी एंटिक पीस को देख रही हो.. बार बार वो संजय के लंड को चूमती.. चाटती.. संजय शीला के इस कामुक स्वरूप को कभी नही जान पाता.. अगर उसे गोवा लेकर नही आता तो..
शीला खड़ी हो गई और संजय के गले लग गई.. उसके आलिंगन में केवल उत्तेजना नही थी.. पर बेफिक्री से समाज और दुनियादारी के डर से दूर.. ये आखिरी आलिंगन हो रहा था इस भाव से लिपट पड़ी.. अपने दामाद के साथ ये संबंध संयोग से हुआ था.. और इस संबंध को समाज की स्वीकृति मिलना असंभव था.. पर शीला और संजय को एक दूसरे का चस्का लग गया था.. क्या भविष्य होगा इस संबंध का?? घर जाने के बाद दोनों अपने आप को कैसे रोक पाएंगे? वैसे सोचा जाएँ तो.. समाज जिसे स्वीकार नही कर सकता.. ऐसे कितने सारे संबंध हमारे आस पास पनप रहे होंगे.. !!! कीसे पता.. !!!
संजय के लंड की चुभन अपनी चिकनी जांघों पर फ़ील करते हुए शीला उत्तेजित कम और भावुक ज्यादा हो रही थी.. हाफ़िज़ का फोन आ चुका था.. वो वापिस जाने के लिए गाड़ी तैयार कर चुका था.. और दोनों का इंतज़ार कर रहा था.. चेकआउट करने की घड़ी जैसे जैसे नजदीक आती गई.. वैसे वैसे शीला संजय को और जोर से आलिंगन करती रही.. पर आँखें बंद कर देने से तूफान चला तो नही जाता.. !! सिर्फ दिखना बंद होता है
आखिर वो घड़ी आ गई.. दोनों तैयार होकर रीसेप्शन काउन्टर पर पहुँच गए.. शीला जान बूझकर धीरे धीरे तैयार हुई थी ताकि उतना ज्यादा समय संजय के साथ बिताने को मिले.. फिर भी वो क्षण आकर खड़ी हो गई.. संजय पेमेंट और चेकआउट की प्रक्रिया पूर्ण कर रहा था.. वेटर ने उनका सामान उठाकर गाड़ी की डीकी में रख दिया था.. बड़े ही भारी मन के साथ शीला ने गोवा और अपने दामाद के साथ संबंध को अलविदा कहा.. संजय के आने से पहले ही वो गाड़ी में जा बैठी.. हाफ़िज़ ने ए.सी. पहले से ही चला रखा था इसलिए गाड़ी का वातावरण एकदम ठंडा था..
हाफ़िज़: "मैडम, साड़ी में आप बड़ी कातिल लगती हो" बेक-मिरर सेट करके शीला की तरफ देखकर उसने कहा
शीला: "साड़ी के अंदर का सब कुछ तो देख रखा है तुमने.. अब भी मन नही भरा क्या??"
हाफ़िज़: "कसम से शीला.. तू चीज ही ऐसी है.. एक बार चोदकर मन ही नही भरा.. !!"
शीला: "चुप मर हरामी.. अभी तेरा बाप आ जाएगा और सुनेगा तो नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी.. उस दिन वो फ़ोटो वाले से तो मुश्किल से बची थी मैं.. "
हाफ़िज़: "अरे कोई मुसीबत नही होगी यार.. चल मेरे कु एक पप्पी दे" ड्राइवर सीट पर मुड़ते हुए हाफ़िज़ ने विचित्र डिमांड की..
शीला ने गुस्से से कहा "पागल हो गया है क्या?"
हाफ़िज़: "यार शीला.. तू माल ही ऐसी है की अच्छे अच्छे पागल हो जाएँ.. अब यार टाइम जास्ती खोटी मत कर.. उसके आने से पहले एक धमाकेदार पप्पी दे दे.. तो ड्राइविंग में मुझे मज़ा आयें"
शीला: "तू जरा समझ यार.. वो आ जाएगा अभी.. रास्ते में कहीं चांस मिला तो जरूर दूँगी.. ठीक है!!"
हाफ़िज़: "अरे मेरी रानी.. पता नही है पल की.. और बात करे है कल की.. " हाफ़िज़ ने अपनी सीट से उठकर शीला के स्तनों पर हाथ फेर दिया.. संजय के आ जाने के डर से शीला सहम कर बैठी रही.. पर हाफ़िज़ का हाथ उसके उरोजों पर हटाने की उसकी हिम्मत क्यों नही हुई.. क्या पता!! वो कितनी भी कोशिश कर लेती.. पर पुरुष का स्पर्श होते ही अपना कंट्रोल खो बैठती.. उसकी सालों पुरानी बीमारी थी ये.. शीला ने खिड़की से बाहर देखा.. संजय कहीं नजर नही आ रहा था.. अंधेरे का फायदा उठाकर उसने फटाफट अपने ब्लाउस के दो हुक खोल दिए.. और अपने दोनों विशाल स्तनों को बाहर निकालकर हाफ़िज़ के हाथों में थमा दिए..
शीला: "ले.. उसके आने से पहले दबा ले जितना दबाना हो.. उसकी मौजूदगी में अगर ऐसी वैसी बात या हरकत की तो तकलीफ हो जाएगी, मेरे बाप!!"
शीला के मदमस्त बबले मसलते हुए उसकी निप्पलों को दबाते हुए हाफ़िज़ ने कहा "क्या मस्त मम्मे है तेरे शीला मेरी जान.. " उसने दोनों स्तनों को ऐसा मरोड़ा की शीला की चीख निकल गई..
शीला: "कमीने.. अपनी नजर रखना.. कहीं वो आ न जाएँ.. नहीं तो तेरी गांड फाड़कर रख देगा.. "
हाफ़िज़: "नही आएगा.. मुझे खिड़की से सब नजर आ रहा है.. तू चिंता मत कर, मेरी नजर है.. तू मजे कर और कुछ मत सोच"
शीला फिर से बेबस होकर हाफ़िज़ के मर्दाना हाथों से हो रहे अपने स्तनों के मर्दन का आनंद लेने लगी.. ये कार्यक्रम थोड़ी देर तक चलता रहा और तभी दूर से संजय नजर आया.. दोनों अलग हो गए.. शीला अपनी सीट पर ठीक से बैठ गई और अपने स्तनों को ब्लाउस और ब्रा के अंदर दबाकर डालने लगी.. संजय दरवाजे तक पहुँच गया और शीला एक हुक बंद भी नही कर पाई.. उसने पल्लू से अपने उरोजों को ढँक लिया.. अंदर बैठते ही संजय ने शीला के पल्लू में हाथ डाला.. तब शीला पल्लू के नीचे ही पहले से ही खुले हुक को खोलने का नाटक करती रही और तभी हाफ़िज़ ने गाड़ी को पाँचवे गियर पर लिया.. शीला ने खुद ही खोलकर अपना स्तन संजय के हाथ में रख दिया..
"पहले से ही खोल रखा था?? क्या बात है मम्मी जी.. "
संजय ने बरमूडा पहन रखा था.. उसकी खुली जांघों पर शीला हाथ फेरते हुए उसके लंड को सहला रही थी
"बेटा.. समय न बिगड़े इसलिए मैं तैयार बैठी थी.. तेरे आते ही.. तेरे पसंदीदा खिलौने से तू खेल सके इसलिए.. !! मुझे पता है तुझे मेरी छातियाँ बहोत पसंद है" इतना कहते ही शीला ने बरमूडा के अंदर हाथ डालकर संजय के मुर्झाएँ लंड को मुठ्ठी में पकड़ लिया.. संजय ने शीला की कमर में हाथ डालकर अपने तरफ खींच लिया.. और दोनों आखिरी रोमांस में व्यस्त हो गए.. शीला की कामुक हरकतें इतनी जंगली हो गई थी.. जैसे इन आखिरी पलों को वो पूरे दिल से उपभोग करना चाहती हो..
जैसे जैसे रास्ता कटता गया और गोवा की ट्रिप अपने अंत की ओर जाने लगी.. शीला अपने हाथों को और तीव्रता से चलाने लगी.. संजय के अंगों के साथ हो रही एक एक छेड़खानी में एक अजीब प्रकार की आतुरता थी.. जिसका मतलब शायद ये भी निकलता था की काश.. !! इस स्वतंत्रता की रात की सुबह जल्दी न हो.. शीला का हाथ चलते ही संजय का लंड चड्डी की साइड से बाहर आकर शीला को उकसाने लगा.. उसके सुपाड़े का स्पर्श होते ही शीला की चूत में जैसे चिनगारी हुई..
"ओह्ह बेटा.. तेरा बम्बू तो फिरसे तैयार हो गया.. " संजय के लंड को मुठ्ठी में दबाते हुए शीला ने कहा
"ओह्ह मम्मीजी.. आप तो गजब हो यार.. !!" संजय इससे ज्यादा कुछ बोल नही पाया.. एक तरफ उसके हाथों में शीला के स्तन थे.. और दूसरी तरफ शीला के हाथों का स्पर्श उसके लंड के टोपे पर इतना आह्लादक और कामुक लग रहा था.. कोई मर्द अपनी उत्तेजना को कैसे कंट्रोल करे!!
हर पल उसके लंड का कद बढ़ता जा रहा था.. शीला के मदमस्त बबले भी जैसे उसके लंड के साथ प्रतियोगिता में शामिल होकर तंग हो रहे थे.. हाफ़िज़ कार चलाते हुए सास-दामाद की कामुक बातों और मादक आवाजों को सुनकर.. अपनी चैन खोलकर लंड बाहर निकालके हिला रहा था.. आगे और पीछे की सीट के बीच एक पतला सा पर्दा था.. जिसके कारण वो पीछे का द्रश्य देख तो नही पा रहा था.. लेकिन उनकी आवाज से पीछे क्या हो रहा था उसकी कल्पना कर वो गाड़ी चलाते चलाते मूठ मार रहा था
जितनी तेज गति से गाड़ी चल रही थी उतनी ही गति से हाफ़िज़ अपने लंड को हिला रहा था.. शीला के संग बिताई हसीन पलों को याद करते हुए उसे स्खलित होने में ज्यादा वक्त नही लगा.. एक शानदार पिचकारी लगाकर वो ठंडा हो गया.. गाड़ी साफ करने वाले कपड़े से उसने अपना लंड पोंछ लिया..
सेक्स के अलावा कोई खास घटना हुई नही सफर के दौरान.. तेज गति से भागती हुई गाड़ी सुबह पाँच बजे तक एक सुंदर होटल के प्रांगण में आकर रुक गई.. पूरी रात के ड्राइविंग के बाद उसे थोड़े आराम और एक कडक चाय की जरूरत थी.. शीला और संजय के साथ हाफ़िज़ भी गाड़ी के बाहर निकला.. बाहर काफी अंधेरा था.. शीला और संजय होटल की ओर चलते जा रहे थे और पीछे पीछे हाफ़िज़ शीला के पृष्ठ भाग को छेड़ते हुए चल रहा था.. संजय को पता न चले उस तरह वो बार बार शीला के कूल्हों पर हाथ फेर रहा था.. एक बार तो वो शीला के पीछे इतना करीब आ गया की उसने अपना लंड शीला की गांड पर रगड़ लिया..
शीला को हाफ़िज़ की हरकतें अच्छी तो नही लग रही थी क्योंकी अभी फिलहाल वो स्थिति न थी की शीला को मज़ा आयें.. पूरी रात उसने संजय के साथ अटखेलियाँ करते हुए बिताई थी.. संजय की उंगली ने उसके भोसड़े को ३-४ बार स्खलित कर दिया था.. सफर की थकान भी थी.. और संजय को पता चल जाने का डर भी था.. इसलिए वो हाफ़िज़ के स्पर्श का आनंद ले नही पा रही थी..
होटल के करीब पहुंचते ही हाफ़िज़ शीला से दूर चला गया.. उसकी इस समझदारी को देखकर शीला मन ही मन प्रसन्न हुई.. तीनों ने अदरख वाली कडक चाय का लुत्फ उठाया.. संजय ने सिगरेट जलाई.. दो दम मारते ही उसके पेट में उथल-पुथल होने लगी.. जैसा अक्सर सिगरेट पीने वालों के साथ होता है
संजय: "हाफ़िज़, तुम मेमसाब को लेकर गाड़ी में बैठो.. मुझे टॉइलेट जाना पड़ेगा.. मैं १५-२० मिनट में आता हूँ.. "
हाफ़िज़: 'जी साहब.. चलिए मैडम" हाफ़िज़ आगे आगे चल दिया और शीला उसके पीछे.. दोनों गाड़ी के पास पार्किंग में पहुंचे जहां कोई लाइट न होने की वजह से अब भी काफी अंधेरा था.. गाड़ी के पास पहुंचते ही.. अंधेरे का लाभ उठाकर शीला ने हाफ़िज़ को अपनी ओर खींचकर बाहों में भर लिया और एक जबरदस्त किस देकर कहा "मैंने कहा था न.. की रास्ते में मौका मिलेगा तो मैं कुछ करूंगी.. तो अब बिना समय गँवाएं कर ले पीछे से.. मेरा घाघरा उठाकर डाल दे अपना लोडा.. इससे पहले की कोई आ जाएँ.. " कहते ही शीला ने गाड़ी के बोनेट पर अपने दोनों हाथ टीका दिए और अपने चूतड़ को उठाते हुए हाफ़िज़ का लंड लेने के लिए तैयार हो गई.. फटी आँखों से हाफ़िज़ इस हवस की महारानी को देखता ही रहा.. फिर धीरे से उसने शीला का घाघरा ऊपर किया.. और शीला के नंगे चूतड़ों के प्रातः दर्शन कीये.. देखते ही हाफ़िज़ का लंड एक झटके में खड़ा हो गया..
शीला के कूल्हों में ऐसी बरकत थी की हाफ़िज़ का लंड अब बाहर निकलने के लिए तरसने लगा.. हाफ़िज़ ने तुरंत अपनी चैन खोलकर हथियार बाहर निकाला और हमले की तैयारी की.. लंड के टोपे पर थूक लगाकर उसने शीला के गरम सुराख पर टिकाया.. एक जोर के धक्के के साथ शीला की गुफा उस्ताद को निगल गई.. दोनों कूल्हों पर हथेलियाँ रखकर हाफ़िज़ ने जबरदस्त पमपिंग शुरू कर दिया.. शीला इस प्रत्येक पल को अपनी आखिरी क्षण मानते हुए पूरे मजे लेने लगी.. हाफ़िज़ के दमदार धक्कों से पूरी गाड़ी हिल रही थी.. जैसे वो शीला को नही.. गाड़ी को चोद रहा हो!!
शीला जब बोनेट पर झुककर हाफ़िज़ से ठुकवा रही थी.. तभी.. गाड़ी की पिछली सीट पर पड़ा उसका मोबाइल बजने लगा.. लेकिन वासना के सागर में डूबी हुई शीला को मोबाइल की रिंग कहाँ सुनाई पड़ती!!! सामने टॉइलेट के कमोड पर बैठकर सिगरेट फूँक रहे संजय को वेन्टीलेशन से हाफ़िज़ और अपनी सास के बीच हो रही चुदाई नजर आ रही थी.. अंधेरा छट रहा था.. और द्रश्य इतना साफ नही था.. पर जुवान हाफ़िज़ अपनी सास को चोद रहा है वह साफ पता चल रहा था..
दस मिनट के अद्वितीय संभोग के बाद शीला के भोसड़े का मुर्गा "कुक-डे-कूक" बोल उठा और वोह झड़ गई.. उसी के साथ हाफ़िज़ के ताकतवर लंड ने भी इस्तीफा घोषित कर दिया.. और गोवा के ट्रिप का अंतिम अध्याय समाप्त हुआ.. शीला ने घाघरा नीचे किया और चुपचाप गाड़ी में बैठ गई..धीरे धीरे उजाला हो रहा था.. शीला तो चाहती थी की इस रात की कभी सुबह न हो.. संजय कार के पास आ पहुंचा.. और हाफ़िज़ बाथरूम की ओर चला गया..
अब १५० किलोमीटर का अंतर बाकी था और इन तीनों को यह बाकी का सफर सज्जनता पूर्वक पूर्ण करना था.. थोड़ी बहोत छेड़खानियों के अलावा कुछ ज्यादा कर पाना मुमकिन भी नही था.. डीकी खोलकर संजय ने अपने बेग से पेंट और शर्ट निकाला और शॉर्ट्स के ऊपर ही कपड़े पहन लिए.. तभी हाफ़िज़ बाथरूम से लौटा.. तुरंत गाड़ी ड्राइव करने का आदेश देकर संजय गाड़ी में बैठ गया..
जैसे जैसे समय बीतता गया.. राह कटती गई.. अपना शहर नजदीक आता गया.. शीला के मन को संकोच और शर्म ने घेर लिया.. वो सोचने लगी.. पिछले दो दिनों में क्या क्या नही हुआ.. !!! ऐसी सारी घटनाएं बड़ी सहजता से हो चुकी थी जिनके बारे में उसने कभी सपने में भी नही सोचा था..!! एक विदेशी से चुदवाया.. गोरी के साथ लेस्बियन सेक्स किया.. अपने दामाद से चुदवाया और गांड भी मरवाई.. और अंत में एक मामूली ड्राइवर से भी अपना भोसड़ा मरवा लिया.. !! शीला का गोरा चेहरा शर्म से लाल हो गया.. सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ते ही जैसी लालिमा नजर आती है वैसी ही कुछ शीला के चेहरे पर भी लिप्त थी..
बहुत ही धमाकेदार अपडेट हैपार्टी खत्म होने की कगार पर थी.. रेणुका ने सब को आखिरी बार संबोधित करते हुए कहा
"प्यारे परिवारजन, मेरे जन्मदिन को आप से सब ने अपनी उपस्थिति से यादगार बना दिया.. आप सब भविष्य में भी हमारे साथ जुड़े रहेंगे ऐसी अपेक्षा और विश्वास है.. अगली बर्थडे मैं बेंगकॉक में मनाना चाहती हूँ.. आप सब के साथ.. थेंक यू राजेश फॉर गीविंग मी सच अ मेमोरेबल पार्टी एंड थेंक यू एवरीबड़ी.. अगर किसी को भी कुछ तकलीफ हुई हो तो क्षमा चाहती हूँ.. इसके साथ ही आज की शानदार रात को यहीं खतम करते है.. आप सब अपने कमरे में जाकर आराम कीजिए.. कल सुबह साइट-सीइंग की लिए चलेंगे.. और दोपहर के बाद हम वापिस लौटने का सफर शुरू करेंगे.. गुड नाइट एंड स्वीट ड्रीम्स!!"
सब ने तालियों से पार्टी का समापन किया.. एक के बाद एक सब अपने कमरे की और जाने लगे.. सब के साथ कोई न कोई था.. सिर्फ वैशाली ही अकेली थी.. अपनी इस स्थिति से काफी व्यथित हो गई वैशाली.. सब के साथ कोई न कोई साथी था.. और वो यहाँ अकेली थी जब की संजय वहाँ किसी रांड की बाहों में पड़ा होगा..
साली कैसी कमबख्त ज़िंदगी है ये!!! आज संजय और मेरे बीच सब सही होता तो हम भी हाथ में हाथ डालकर डांस कर रहे होते.. पार्टी का अलग ही मज़ा आता.. बाकी कपल्स की तरह रूम में जाकर जबरदस्त चुदाई भी करते.. ऐसे खुले वातावरण में कितनी सारी इच्छाएं उठती है मन में!! पीयूष के साथ उतावला सेक्स और राजेश सर के साथ टॉइलेट में चुदाई ना करवानी पड़ती आज.. आराम से ए.सी. रूम में मुलायम बेड पर टांगें फैलाकर चुदवाती..!! सब निकल रहे थे और वैशाली इन खयालों के कारण उदास खड़ी हुई थी
"आप अभी भी यही खड़ी हो?? कमरे में चलना नही है क्या? सब चले गए.. " फाल्गुनी ने वैशाली का हाथ पकड़कर खींचा तब वैशाली अपने विचारों से बाहर आई.. वैशाली की आँखों के कोने में चमक रहें आंसुओं को देखकर वह समझ गई की कुछ तो गड़बड़ थी.. वरना इतनी शानदार पार्टी के बाद भला कोई उदास क्यों होगा!!
"इतनी उदास क्यों हो दीदी?" फाल्गुनी ने पूछा
"कुछ नही.. बस मेरे पति की याद आ गई थी.. "
"ओह्ह इतनी सी बात.. उदास क्यों हो रही हो.. फोन उठाओ और बात कर लो.. " नादान फाल्गुनी ने कहा
"नही फाल्गुनी.. मेरी समस्या गंभीर है.. तू नही समझेगी.. ज़िंदगी ने ऐसे अजीब मोड पर लाकर खड़ा कर दिया है की मुझे खुद ही नही पता आगे क्या होगा!!"
फाल्गुनी: "आपके हसबंड और आपके बीच झगड़ा हुआ है?" बड़ी ही निर्दोषता से उसने पूछा
"झगड़ा नही हुआ है.. जिंदगी ही खतम हो गई है.. पिछले दो सालों से हमारे बीच मनमुटाव है.. काफी समय से हम एक दूसरे से ठीक से बात भी नही करते.. यहाँ सब कपल्स को इन्जॉय करते देख मेरा दिल भर आया... दुख होना स्वाभाविक है!!"
पूरे हॉल में बस फाल्गुनी और वैशाली अकेले बचे थे..
"मैडम जी, अगर आपको यहाँ रुकना हो तो मैं हॉल बंद करने बाद में आऊँ?" मेनेजर ने उनसे पूछा
"अरे नही.. आप बंद कर दीजिए.. हम बस जा ही रहे है.. " वैशाली और फाल्गुनी बाहर निकल गए..
होटल के तीसरे माले पर कमरे की बालकनी में खड़े होकर आसमान में टिमटिमाते तारों को देखने लगी..
"अगर तुझे नींद आ रही हो तो सो जा.. मैं थोड़ी देर यहीं रुकूँगी.. " वैशाली ने फाल्गुनी से कहा.. मौसम, फाल्गुनी और वैशाली एक ही कमरे में रुके थे.. मौसम नाइटी पहनकर बेड पर लेटे हुए इन दोनों की बातें सुन रही थी.. उसे थोड़ी नींद आ रही थी इसलिए वो वहीं लेटी रही..
फाल्गुनी ने मौसम को सोते हुए देखकर कहा "बाहर बालकनी में चल.. दीदी के साथ बैठते है.. वापिस घर जाकर फिर सोना ही तो है.. यहाँ दोबारा कब आना होगा कीसे पता.. !!" फाल्गुनी ने बालकनी में दो कुर्सियाँ लगाते हुए कहा
"क्यों नही आएंगे वापिस?? शादी के बाद पति के साथ हनीमून पर यहीं तो आएंगे " फाल्गुनी को अपनी ओर खींचते हुए मौसम ने कहा
"तू आराम से सो जा.. और सपने में हनीमून मना ले.. हमे शांति से बैठने दे" कहते हुए फाल्गुनी खड़ी हो गई
"कोई बात नही.. तुझे हनीमून पर न जाना हो तो मुझे बता देना.. तेरे पति के साथ मैं चली जाऊँगी... और तू घर पर बैठे बैठे बातें करते रहना" खिलखिलाकर हँसते हुए मौसम ने कहा
इन दोनों की हंसी-ठिठोली सुनकर वैशाली की उदासी के बादल भी छट गए..
वैशाली: "तुम दोनों कब से हनीमून हनीमून लगे हुए है.. पर उसमें क्या होता है ये पता भी है?? हनीमून में क्या करते है ये जानती हो?"
"वो तो जब मौका मिलेगा तब सीख लेंगे.. आप भी तो जब गई होगी तब नई नई ही होंगी.. जैसे आप ने सीख लिया वैसे हम भी सीख लेंगे"
"नई नई थी या नही वो तुम्हें क्या पता??" वैशाली ने शरारती आंखो से कहा और हंस पड़ी "अपना पाप तो हम खुद ही जानते है.. वो तो हमारे पति को भी पता नही होता की जिस बच्चे को वो गोदी में लेकर खेल रहा है वो असल में उसका है भी या नही.. सिर्फ माँ ही जानती है.. मेरा बेटा, मेरा बेटा कहते हुए उछल रहे पति की आवाज सुनकर किचन में उसकी पत्नी मन ही मन मुस्कुरा रही होती है की जिसे तू अपनी औलाद समझ रहा है वह असल में मेरे पुराने प्रेमी की निशानी है.. " वैशाली ने जीवन के कटु सत्य को फाल्गुनी और मौसम के सामने उजागर किया..
तीनों बातों में मशरूफ़ थे.. वैशाली और फाल्गुनी कुर्सी पर बैठे हुए अपने पैर बालकनी की दीवार पर टिकाए हुए थे.. मौसम बेड पर पड़े पड़े तकिये को अपनी बाहों में लेकर बातें कर रही थी.. वैशाली ने भी कपड़े बदलकर छोटी सी नाइटी पहन ली थी.. पैर दीवार पर रखे होने के कारण उसकी छोटी सी नाइटी उसकी जांघों तक सरक गई थी.. और उसकी गोरी गदराई जांघें साफ नजर आ रही थी.. वैसे कमरे में तीनों लड़कियां ही थी इसलिए वह बेफिक्र थी.. अब मौसम भी उठकर तीसरी कुर्सी पर उन दोनों के साथ बैठ गई
मौसम: "आप दोनों को नींद नही आ रही? बारह बज रहे है.. बातें कर कर के मेरी भी नींद उड़ा दी आप लोगों ने..
वैशाली: "तू आराम से सो जा.. तुझे कौन रोक रहा है.. तेरे पति के साथ हनीमून पर आबू आएगी तब सोने को नसीब ही नही होगा.. याद रखना!!"
मौसम: "तभी तो कह रही हूँ.. उस वक्त जागना पड़ेगा इसलिए सो जाते है"
वैशाली: "तू चिंता मत कर.. उस समय अगर तुझे नींद आ भी गई तो तेरा पति छातियाँ दबाकर तुझे जगा देगा.. "
वैशाली की यह खुल्लमखुल्ला बातचीत से मौसम और फाल्गुनी.. दोनों के जिस्मों में सुरसुरी होने लगी.. वैसे मौसम ने कुछ घंटों पहले ही अपने जीजू से छातियाँ दबवाई थी.. इसलिए उसके शरीर में जो स्पंदन जग रहे थे वह वासना के थे.. फाल्गुनी के मन में वासना का भाव कम और जिज्ञासा का भाव ज्यादा था..
मौसम: "एक बात मुझे समझ नही आती वैशाली.. जब पुरुष का हाथ हमारी छाती को छूता है तब बहोत मज़ा आता है क्या?" जान कर भी अनजान बन रही थी मौसम..
वैशाली: "क्यों? तुझे अब तक ऐसा कोई अनुभव नही हुआ क्या??? सच सच बता.. बगैर दबवाये ही तेरे इतने बड़े हो गए क्या?? मुझे तो पक्का डाउट है.. किसी की मदद लिए बगैर इतने आकर्षक और परफेक्ट शेप में ये रह ही नही सकते.. और मौसम.. तेरे बबलों की ताजगी देखकर यही लगता है की तू जरूर किसी से दबवाती होगी.. !!"
फाल्गुनी: "सही बात है दीदी.. ये साली बड़ी छुपी रुस्तम है.. किसी को पता भी न चले वैसे मजे करने वाली.. मैं अच्छे से जानती हूँ ईसे"
मौसम: "साली.. मुझे क्यों बदनाम करती है.. !! पूरा दिन तो मैं तेरे साथ होती हूँ.. फिर मैं कहाँ किसी से ऐसा करवाने जा सकती हूँ? थोड़ा तो विश्वास रख मुझ पर"
वैशाली: "विश्वास? हा हा हा हा हा.. आज के जमाने में विश्वास सगे भाई पर भी नही रख सकते.. तू अखबारों में पढ़ती होगी.. जवान लड़की पर उसका भाई या बाप ही रेप करता है कई जगह.. "
मौसम: "वैशाली, तुम जो कह रही हो उसे बलात्कार कहते है.. अपनी मर्जी से दबवाने में और बलात्कार में जमीन आसमान का फरक है.. क्या तुम यह कहना चाहती हो की जबरदस्ती होने पर भी लड़की को मज़ा आता होगा?"
फाल्गुनी का चेहरा एकदम पीला पड़ गया "नही ऐसा कभी नही हो सकता.. किसी भी लड़की के लिए जबरदस्ती सहना बेहद यातनामय होता है" बोलकर फाल्गुनी एकदम चुप हो गई.. पर उसे एहसास हुआ की उसने बहोत बड़ी गलती कर दी ये बोलकर.. उसके कहने का मतलब ना समझ सके ऐसे मूर्ख नही थे वैशाली और मौसम
मौसम: "फाल्गुनी? तुझे पता भी है क्या बोल रही है? ये सब तुझे कैसे पता? क्या तेरे साथ कभी ऐसा कुछ??"
फाल्गुनी ने जवाब नही दिया
वैशाली ने बड़े ही प्यार और वात्सल्य से जांघ पर हाथ फेरते हुए कहा "मौसम की बात का जवाब दे फाल्गुनी"
फाल्गुनी: "नही यार ऐसा कुछ खास नही है"
फाल्गुनी की आवाज बदल गई.. उसकी आवाज में एक अजीब प्रकार का डर झलक रहा था.. वह नीचे देखते हुए बैठी रही
वैशाली: "सच सच बता फाल्गुनी.. मैं कल से देख रही हूँ.. इतने खुले और आजाद वातावरण में भी तुम किसी भी पुरुष के साथ ज्यादा बात नही करती.. मैं ये जानना चाहती हूँ की तू इतनी चुप चुप क्यों रहती है? प्लीज हमें बता"
मौसम: "बिल्कुल सही कहा तुमने वैशाली.. इस बात को तो मैंने भी नोटिस किया है.. सेक्स के बारे में जब भी बात होती है तब तू दूर ही भागती है.. कॉलेज में भी तू लड़कों से दूर रहती है.. मैं काफी समय से पूछना चाहती थी.. अच्छा हुआ आज ये बात निकली"
वैशाली: "देख फाल्गुनी, यहाँ पर हमारे अलावा और कोई नही है.. और हम दोनों तुझे वचन देते है की हम किसी को भी नही बताएंगे.. बता.. क्या हुआ था तेरे साथ?"
फाल्गुनी: "ऐसा भी कुछ नही हुआ था.. पर जब भी मैं सेक्स के बारे में सोचती हूँ.. मन में अजीब सा डर लगने लगता है.. पता नही क्यों.. रात को नींद में जब मैं उत्तेजित हो जाती हूँ तब सपने में एक भयानक चेहरा आँखों के सामने आ जाता है ओर वो मेरे साथ.. जबरदस्ती करने लगता है.. !!"
वैशाली और मौसम स्तब्ध होकर सुनते रहे..
वैशाली: "जबरदस्ती करने लगता है.. मतलब क्या करता है?"
फाल्गुनी: "प्लीज दीदी.. आगे मत पूछिए.. मुझे तो बताने में भी शर्म आती है" थरथर कांपती फाल्गुनी ने अपनी खुली हुई जांघें अचानक बंद कर दी..
थोड़ी देर के लिए तीनों चुप बैठे रहे
अब वैशाली कुर्सी से खड़ी होकर बोली "यहाँ आओ फाल्गुनी.. मेरे पास.. मौसम तू भी" मौसम तुरंत उठी और वैशाली के पास जाकर खड़ी हो गई.. लेकिन फाल्गुनी कुर्सी पर अब भी बैठी ही रही..
मौसम का हाथ पकड़कर वैशाली ने उसे अपनी ओर खींचा और उसके होंठों पर एक मस्त लेस्बियन किस कर दी.. मौसम इस हरकत के लिए तैयार नही थी.. उसे बड़ा अचरज हुआ.. पर वैशाली ने इस आश्चर्य को उत्तेजना में बदलते हुए मौसम के स्तनों को.. फाल्गुनी की नज़रों के सामने ही.. दबाना शुरू कर दिया..
ये देखते ही फाल्गुनी ऐसे थरथराने लगी जैसे उसने भूत देख लिया हो.. उसे इस तरह कांपते हुए देख वैशाली ने यह अंदाजा लगाया की जरूर कोई ऐसी घटना घाटी थी फाल्गुनी के साथ जिसके कारण उसके कोमल मन पर गंभीर असर किया था.. या तो फिर उसने कोई ऐसा खतरनाक मंज़र देखा था.. कुछ तो था जिसके कारण फाल्गुनी सेक्स से जुड़ी बातों से इतना डर रही थी..
वैशाली सोच रही थी की ऐसा क्या करूँ जिससे उसका यह डर गायब हो जाएँ.. !!
मौसम के स्तनों पर वैशाली का हाथ, ना उसने हटाने की कोशिश की और ना ही फाल्गुनी की नजर उसके स्तनों से..
वैशाली: "कैसा महसूस हो रहा है तुझे मौसम? सच सच बताना.. "
मौसम: "ओह वैशाली.. मज़ा ही आएगा ना.. जाहीर सी बात है!!"
वैशाली: "देख फाल्गुनी.. मौसम को कितना मज़ा आ रहा है.. देखा तूने!!" मौसम के स्तनों को मसलते हुए वैशाली ने फाल्गुनी की ओर देखकर कहा "तू बेकार ही डर रही है फाल्गुनी.. एक औरत होते हुए अगर मेरा स्पर्श मौसम को इतना मज़ा दे रहा हो.. तो सोच.. जब किसी पुरुष का मर्दाना हाथ पड़ेगा तब कितना जबरदस्त मज़ा आएगा!! सच कह रही हूँ फाल्गुनी.. तू अपने मन से सेक्स के प्रति घृणा और डर निकाल दे.. ये तो जीवन का सब से श्रेष्ठ आनंद है.. " वैशाली मौसम के अद्भुत वक्षों को धीरे धीरे मसलते हुए फाल्गुनी के डर को दूर करने की कोशिश कर रही थी.. मौसम भी वैशाली के इस प्रयास में पूर्ण सहयोग दे रही थी.. और उसे मज़ा भी आ रहा था.. जो की साइड इफेक्ट था..!!
मौसम की कुंवारी छाती पुरुष के मर्दाना स्पर्श को एक बार चख चुकी थी.. जैसे आदमखोर शेर एक बार इंसान का खून चख ले फिर उसे चैन नही पड़ता वैसे ही कुछ हाल मौसम का भी था.. जिन स्तनों को देखकर लड़के मूठ लगाते थे वही स्तनों को अभी दबाने वाले पुरुष की तलाश थी.. काफी सुंदर द्रश्य था.. माउंट आबू की शांत रात्री के माहोल में शराब पीकर सब सो रहे थे.. तब रात के साढ़े बारह बजे.. यह तीन लड़कियां एक दूसरे के अंगों को पुरुष से दबवाने के बारे में सोच रहे थे..
सीनियर शिक्षिका की तरह वैशाली अपना रोल बखूबी निभा रही थी.. आज के ही दिन वैशाली ने पीयूष और राजेश सर दोनों से अपनी मरवाई हुई थी.. अलग अलग लंड से चुदकर काफी बार जानदार ऑर्गजम का आनंद और चमक उसके चेहरे पर साफ छलक रही थी..
वैशाली: "फाल्गुनी.. एक समय था जब मैं भी सेक्स के मामले में तेरी तरह ही गंवार थी.. मुझे तो ये ही पता नही चल रहा था की कुदरत ने लड़कियों की छाती पर ये बबले आखिर बनाए क्यों थे!! इतनी ही समझ थी की आगे जाकर होने वाले बच्चे को दूध पिलाने की लिए ही इस व्यवस्था को बनाया गया होगा.. पर एक बार जब ये स्तन दबे.. तब मुझे एहसास हुआ की दूध पिलाने के लिए तो इसका उपयोग बाद में होगा.. इसका असली काम तो दबवाकर मजे लूटने का था.. तू मानेगी नही मौसम.. मुझे हमेशा ताज्जुब होता था की लड़के आखिर मेरी छातियों को हमेशा क्यों तांकते होंगे? मुझे भी सब कुछ संजय के साथ शादी करने के बाद ही पता चला.. शादी की पहली रात जब संजय ने मेरी छातियों को दबाया और चूसा.. तब मुझे पता चला की जीवन का असली मज़ा छाती को ब्रा के अंदर छुपाने में नही.. पर किसी के हाथों में सौंपने में था.. !!"
वैशाली की इस असखलित प्रवाह वाला लेक्चर फाल्गुनी बड़े ध्यान से सुन रही थी.. वैशाली दोनों के चेहरों की तरफ देख रही थी.. उसे लगा की दोनों को उसकी बातों में गहरी दिलचस्पी थी..
वैशाली: "फाल्गुनी.. एक बात पूछूँ.. तुम दोनों सच सच बताना.. !! मैं प्रोमिस करती हूँ की इस बात को मैं राज ही रखूंगी.. तू यहाँ आ फाल्गुनी मेरे पास.. घबरा मत.. यहाँ आ" फाल्गुनी धीरे से उठकर उन दोनों के पास गई.. तीनों इतने करीब खड़ी थी की अगर थोड़ा सा भी और नजदीक आती तो उनके स्तन आपसे में दब जाते..
फाल्गुनी के गोरे गालों पर वैशाली ने हल्के से हाथ फेर लिया.. और बड़े प्रेम से उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा "फाल्गुनी, तूने कभी लिप किस की ही?" फाल्गुनी की हथेली कांप रही थी "बता न फाल्गुनी?.. मौसम तूने कभी.. ??" फाल्गुनी के साथ मौसम को भी घेरे में लिया वैशाली ने..
मौसम: "मैंने तो नही की.. " पर इतना बोलते ही मौसम को पीयूष के संग बिताएं वो हसीन पल याद आने लगे.. हल्की सी मुस्कान के साथ उसने कहा "वैशाली मुझे लिप किस अच्छी नही लगती यार.. एक दूसरे के मुंह में मुंह डालना मुझे नही पसंद.. घिन आती है.. "
फाल्गुनी ने धीमी आवाज में कहा "मैंने एक इंग्लिश मूवी में देखा तो है.. पर ट्राय नही किया कभी"
वैशाली: "ओके.. अब अगर तुम दोनों को दिक्कत न हो.. तो क्या हम एक दूसरे को किस करें? जब तुम्हारी शादी होगी और पति लिप किस करेगा तब तुम दोनों को यह अनुभव बहोत काम आएगा.. पर तुम्हारी इच्छा हो तो ही.. लिप किस भी एक कला है.. सीखना बहोत जरूरी है"
मौसम: "हाँ मुझे सिखाओ.. मैं सीखना चाहती हूँ" फाल्गुनी कुछ बोलने जा ही रही थी पर उससे पहले मौसम शुरू हो गई इसलिए वह चुप रही.. वैशाली ने फाल्गुनी का हाथ पकड़कर अपने एकदम नजदीक खींचते हुए कहा "मौसम.. पहले मैं फाल्गुनी को किस करूंगी.. फिर हम दोनों करेंगे.. ठीक है!!"
मौसम: "ओके डन.. पहले तुम दोनों करो.. मैं देखूँगी और सीखूँगी"
वैशाली: "फाल्गुनी, आर यू रेडी?"
डरी हुई फाल्गुनी कुछ बोल न पाई.. वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए दूसरा सवाल किया "कभी किसी ओर लड़की की ब्रेस्ट को दबाया है?" फाल्गुनी ने सर दायें बाएं हिलाकर "ना" कहा.. दोनों की हरकतें देखकर मौसम का हाथ अनजाने में ही खुद के स्तनों पर चला गया..
वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली में अपना स्तन दे दिया.. और कहा "जरा जोर से दबा.. और देख कितना मज़ा आता है!!"
सहमी हुई फाल्गुनी मशीन की तरह वैशाली के स्तन को दबा रही थी.. ना ऊष्मा थी और ना ही वासना
वैशाली: "सहला क्या रही है.. जरा जोर से दबा.. तभी तो मज़ा आएगा" फाल्गुनी के गले में अपना हाथ डालकर अपने होंठों को उसके नाक तक लेकर वैशाली ने धीरे से चाट लिया.. फाल्गुनी ने ना ही विरोध किया और ना ही कुछ बोली.. अब वैशाली ने फाल्गुनी के स्तनों को अपने हाथों से बड़े जोर से मसल दिया
फाल्गुनी: "आह्ह.. दीदी.. धीरे से.. दर्द हो रहा है"
वैशाली: "अरे यार.. मैं तो ये कह रही हूँ की इस तरह दबा मेरे.. समझी.. जरा जोर से.. तेरे बॉल अभी अनछुए और कोरे है.. इसलिए दर्द हो रहा है.. मेरे तो अब अनुभवी हो गए है.. धीरे धीरे दबाने से मेरे स्तनों को कुछ महसूस ही नही होता इसलिए कह रही हूँ की जरा ताकत लगाकर दबा" इतना कहकर वैशाली ने फाल्गुनी के गालों को चूम लिया.. चूमने के बाद उसने अपनी जीभ बाहर निकालकर उसके गाल को चाट लिया.. पूरा गीला कर दिया.. वैशाली को पता था की फाल्गुनी को इसमें मज़ा नही आ रहा था पर शुरुआत में ऐसा होना स्वाभाविक था..
अब वैशाली ने फाल्गुनी की हथेली को अपनी नाइटी के अंदर डालकर अपने नंगे चुचे का स्पर्श करवाया.. "आह्ह.. " यह द्रश्य देखकर ही मौसम की सिसकी निकल गई.. और वो दोनों हथेलियों से अपने स्तन दबाने लगी..
कुदरत के बक्शे हुए इन सुंदर यौवन कलशों को अब तक अनगिनत बार आईने में देखकर मसल चुकी मौसम.. फाल्गुनी के स्तनों को कभी छुआ नही था उसने.. हाँ कभी कभार अनजाने में हल्का सा स्पर्श जरूर हो जाता.. या फिर स्तन दब जाते तब एक दूसरे को हँसकर "सॉरी" बोल देते थे.. उस हंसी का मतलब ये होता था की भले ही गलती से दब गए हो.. पर स्तन का दबना ही उसका भविष्य होता है.. और दबने में ही स्तनों के अस्तित्व की सार्थकता थी..
लेकिन इन दोनों नादान लड़कियों का दिमाग इतना ज्यादा भी कलुषित नही हुआ था.. कभी कभार टीवी पर दिख जाती कोंडोम की एड.. या फिर किसी मूवी का उत्तेजक गाना या सीन.. देखकर उत्तेजित होती दोनों इतनी मासूम भी नही थी.. पर अन्य फॉरवर्ड और मॉडर्न लड़कियों के मुकाबले मौसम और फाल्गुनी सेक्स के मामले में बिल्कुल अनुभवहीन थे.. अब तक सेंकड़ों बार वो दोनों खुद के स्तनों को छु चुके थे पर आज तक कभी ऐसा एहसास नही हुआ था.. फाल्गुनी का पूरा शरीर वैशाली के स्तन का स्पर्श होते ही कांपने लगा.. वो ऐसे पेश आ रही थी जैसे काफी डरी हुई हो.. पर बिना इसकी परवाह कीये.. वैशाली ने फाल्गुनी के कान में कहा "कैसे लगे मेरे स्तन तुझे, फाल्गुनी?"
"ओह्ह प्लीज दीदी.. " फाल्गुनी सिर्फ इतना ही बोल पाई.. बालकनी के अंधेरे में अपना पूरा स्तन ही नाइटी से बाहर निकाल दिया वैशाली ने.. और फाल्गुनी के हाथ में थमाते हुए दबवाने लगी.. "और ये देख मेरी निप्पल.. कैसी लगी तुझे फाल्गुनी?" वैशाली के एक के बाद एक कामुक सवालों से फाल्गुनी के जवान कुँवारे जिस्म में बिजली सी दौड़ रही थी.. उसका कांपना अभी बंद नही हुआ था.. वैशाली अपने स्तनों पर चल रही ठंडी हवा को महसूस करते हुए सिहर रही थी.. उसने मौसम से कहा "अपनी नाइटी ऊपर कर के देख.. स्तनों पर जब ठंडी ठंडी हवा टकराती है तब कितना मज़ा आता है.. !!"
मौसम शरमा गई.. और बोली "मुझे लगता है.. की तुम काफी एक्साइटेड हो गई हो वैशाली"
"तो उसमें गलत भी क्या है मौसम? यहाँ होटल में हर कोई अपने पति या बॉयफ्रेंड को अपने बाहों में भरके उनके मस्त लंड से चुदवा रही होगी.. और यहाँ मैँ.. शादीशुदा होते हुए भी तड़प रही हूँ.. आप दोनों ने तो वो मज़ा लिया नहीं है इसलिए नही समझ पाओगे.. पर एक बार स्त्री पुरुष के स्पर्श को प्राप्त कर ले फिर वो उसकी जरूरत बन जाता है.. जब तक सिर्फ उंगलियों से मास्टरबेट ही किया हो तब तक असली पेनिस से करवाने के मजे के बारे में पता नही चलता.. बस ऐसा ही लगता है की उंगलियों में ही सारा सुख छुपा हुआ है.. पर एक बार जब छेद के अंदर मर्द का अंग घुसता है और अंदर बाहर होता है.. और उसकी सख्ती से रोम रोम जीवंत हो जाता है.. ओह्ह फाल्गुनी.. अब तुझे कैसे समझाऊँ.. अभी मुझे लंड की सख्ती बड़ी याद आ रही है.. मुझे ऐसा एहसास हो रहा है जैसे नीचे हजारों चींटियाँ एक साथ काट रही हो.. ऐसी खुजली हो रही है की मैं बता नही सकती.. मैं तो वो स्वाद काफी बार चख चुकी हूँ.. इसीलिए आधी रात को ऐसे मादक माहोल में मुझे याद आ रही है.. इसमे मेरी कोई गलती नही है"
कहते हुए वैशाली ने फाल्गुनी को अपनी बाहों में भर लिया और उसके कुँवारे होंठों पर अपने होंठ रखकर फाल्गुनी को उसके जीवन की पहली लिप किस भेंट कर दी.. थरथर कांपती फाल्गुनी ने मुंह फेरते हुए इनकार करने की कोशिश की.. पर वह इनकार से ज्यादा इजहार का संकेत था.. वैशाली की उत्तेजना उसके शरीर को फाल्गुनी से भी ज्यादा बल दे रही थी.. एक तरफ फाल्गुनी की नादान उम्र और चढ़ती जवानी की चाह उसे शरण में आने की लिए मजबूर कर रही थी.. "दीदी प्लीज.... " अभी भी वो अशक्त विरोध कर रही थी.. लेकिन दूसरी तरफ वैशाली की चूत लंड मांग रही थी.. और लंड की अनुपस्थिति में वह सारी कसर फाल्गुनी पर निकाल रही थी..
जब वैशाली ने फाल्गुनी को बाहों में भर लिया तब फाल्गुनी के कडक स्तन वैशाली की छातियों पर चुभने लगे थे.. अब फाल्गुनी भी इन हरकतों से मजे लेने लगी थी..
वैशाली: "यार फाल्गुनी.. तेरी ब्रेस्ट कितनी कडक है.. !! मेरे बॉल पर तेरी दोनों निप्पल चुभ रही है मुझे!!"
यह गरमागरम सीन देखकर मौसम की जांघों के बीच में चुनचुनी होने लगी.. पीयूष ने उसके स्तन जिस तरह मसले थे.. उसे वो सीन याद आ गया.. उसने वैशाली के कंधे पर हाथ रखकर उसे दबाया.. अंधेरे में वैशाली को उसके हावभाव तो दिखे नही पर वो समझ गई की मौसम फाल्गुनी से भी अधिक उत्तेजित हो चुकी थी.. पर मौसम ने तो किसी और काम के लिए हाथ रखा था
मौसम: 'वैशाली.. वहाँ देखो.. !!"
मौसम ने वैशाली और फाल्गुनी के रोमांस के रंग में भंग करते हुए दोनों को सामने की तरफ के गेस्टहाउस के चौथे मजले के एक कमरे की आधी खुली खिड़की से दिख रहे द्रश्य की ओर निर्देश किया.. एक कपल की हरकतें खिड़की से साफ नजर आ रही थी.. तीनों की नजर वहीं चिपक गई..
वैशाली: "तुम दोनों देखती रहो.. अब इनका कार्यक्रम शुरू होगा"
खिड़की से दिख रहा था.. एक पुरुष और स्त्री आपस में चुम्मा-चाटी कर रहे थे..
"मैं अभी आई.. " कहते हुए वैशाली भागकर कमरे में गई और अपनी बेग से दूरबीन लेकर वापिस लौटी.. दूरबीन से से देखकर उसने फाल्गुनी को देते हुए कहा.. "तू थोड़ी देर देख फिर मौसम को देना और फिर वापिस मुझे.. सब मिलकर देखते है"
मौसम: "दूरबीन तो मैं भी लाई हूँ.. "
वैशाली: "तो जल्दी लेकर आ.. मुफ़्त में बी.पी. देखने का मौका मिला है.. जा जल्दी"
दूरबीन से देखते हुए फाल्गुनी ने कहा "वैशाली.. वो दोनों किस कर रहे है.. एकदम साफ साफ दिख रहा है यार.. " फाल्गुनी को अब मज़ा आ रहा था
"ला मुझे भी देखने दे.. " वैशाली ने कहा
"नही.. मुझे देखने दे पहले" फाल्गुनी ने दूरबीन नही दिया
दूरबीन से उस बेखबर और बिंदास कपल के हरकतों को देख रही फाल्गुनी के स्तनों पर हाथ रखकर वैशाली दूसरे हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी.. तभी मौसम भी अपना दूरबीन ले आई.. और वैशाली के पीछे खड़े होकर देखने लगी.. मौसम के स्तन वैशाली की पीठ पर छु रहे थे..
मौसम: "देख देख फाल्गुनी.. वो आदमी बॉल दबा रहा है उस औरत के" रोमांचित होकर उसने फाल्गुनी से कहा
वैशाली फाल्गुनी के स्तनों को हल्के हल्के मसलते हुए अपनी क्लिटोरिस से खेल रही थी.. उसे उस कपल की हरकतें देखने में कोई दिलचस्पी नही थी क्योंकि उसके लिए ये कोई नई बात तो थी नही.. लेकिन फाल्गुनी और मौसम के लिए ये पहली बार था.. सेक्स का लाइव टेलीकास्ट देखने का मौका.. दोनों कुंवारी लड़कियां ये देखने के लिए आतुर थी की आगे ओर क्या होगा.. !! फाल्गुनी को ये सब देखने में पता ही नही चला की कब वैशाली ने उसकी नाइटी के सारे हुक खोल दीये और उसके दोनों उरोजों को बाहर निकालकर दबाने लगी.. मौसम भी उत्तेजित होकर अपने स्तनों को वैशाली की पीठ पर रगड़ने लगी थी
मौसम बालकनी के उस कामुक सीन को दूरबीन से देखते हुए.. कुछ घंटों पहले अपने जीजू के संग हुए संसर्ग को याद करते हुए गीली हो रही थी.. फाल्गुनी अभी नादान थी.. वो तो ये द्रश्य देखकर हतप्रभ से हो गई थी.. सामने दिख रहा सीन कुछ ऐसा था.. वह औरत खिड़की पकड़े खड़ी हुई थी और उसका पार्टनर पीछे से गर्दन और पीठ को चूम रहा था.. बाहर घनघोर अंधेरा था और कमरे की लाइट चालू थी इसलिए इन तीनों को वहाँ का नजर एकदम साफ साफ नजर आ रहा था..
कब से मौसम और फाल्गुनी दूरबीन पर ऐसे चिपकी थी जैसे गुड पर मक्खी.. अब वैशाली को भी इच्छा हो गई उस कपल की हरकतें देखने की.. किसी जोड़े को संभोग करते हुए देखना अपने आप में ही बड़ा अनोखा अनुभव होता है.. किसी कपल की विकृत काम हरकतों को देखकर वैसी ही प्रबल उत्तेजना होती है जो वास्तविक संभोग के दौरान होती है..
मौसम के हाथ से दूरबीन छीनते हुए वैशाली ने कहा "मुझे तो देखने दे.. !! तू तो कब से ऐसे देख रही है जैसे तुझे इस बारे में परीक्षा देनी हो और उसकी तैयारी कर रही हो.. " अब बिना दूरबीन के मौसम को साफ नजर तो नही आ रहा था.. फिर भी आँखें खींचकर वो देखने की कोशिश कर रही थी.. इस बात से बेखबर की उसके स्तन वैशाली की पीठ से दबकर बिल्कुल ही चपटे हो गए थे.. या तो फिर हो सकता है की उसे पता हो और उत्तेजना के मारे जान बूझकर उसने ही अपने स्तन वैशाली की पीठ से दबा दिए हो.. !!
"तुम दोनों में से किसी ने भी मर्द का पेनिस देखा है कभी?" वैशाली के इस बोल्ड और बिंदास प्रश्न से मौसम और फाल्गुनी की हालत खराब हो गई..
फाल्गुनी: "नही दीदी.. कभी नही.. "
मौसम ने कुछ जवाब नही दिया.. वो सोच रही थी की जीजू का लंड आज दिख ही जाने वाला था अगर वो थोड़ी सी और हिम्मत करती तो.. पर खुले बाजार के बीच वो ऐसा कैसे करती?
"कैसा होता है.. वैशाली?" मौसम ने अपने स्तन पीठ पर रगड़ते हुए वैशाली को पूछा
"देख.. देख.. वो औरत उस मर्द का चूस रही है" वैशाली ने मौसम के हाथों में दूरबीन थमाते हुए कहा.. मौसम ने दूरबीन लिया और वैशाली के पीछे से हटकर वो अब फाल्गुनी के पीछे खड़ी हो गई और देखने लगी..
वैशाली ने मौसम की गर्दन के पीछे एक हल्की सी किस कर दी और बोली "बहोत ही मस्त होता है यार.. मर्द का हथियार.. अब तुम दोनों को क्या बताऊँ.. !! हाथ में पकड़े तो छोड़ने का मन ही नही करता.. देखो वो कितने मजे से चूस रही है? देखा.. ??" वैशाली अब काफी उत्तेजित हो गई थी और उसके हाथ की हलचल इस बात का सबूत दे रहा था क्योंकि उसने फाल्गुनी के स्तनों को नाइटी के बाहर निकाल ही दिया था और अब वो मौसम के स्तनों से खेल रही थी..
मौसम की काँख के नीचे से दोनों हाथ अंदर डालकर वैशाली ने मौसम के दूरबीन पकड़े हाथों को पकड़ लिया.. अब उसने मौसम की नाइटी के अंदर हाथ डालकर जोर से उसके उरोजों को दबाया.. मौसम की हल्की चीख निकल गई.. "क्या कर रही हो यार? जरा धीरे धीरे दबा न.. ज्यादा गर्मी चढ़ रही हो तो चली जा सामने वाले उस कमरे में.. वो तैयार ही बैठा है "
वैशाली ने अपने दोनों स्तन बाहर निकालकर मौसम की पीठ से घिसते हुए उसकी चुत पर उंगली फेरी.. सीधा अपने प्राइवेट पार्ट पर वैशाली के हाथ का स्पर्श महसूस होते ही मौसम सहम गई और अपनी जांघें भींच ली.. "छी छी.. वैशाली.. इन दोनों को तो देख.. कैसा गंदा गंदा कर रहे है!! मुझे तो देखकर ही घिन आती है.. देख तो सही !!"
दूरबीन हाथ में लेकर वैशाली ने देखा.. वह पुरुष उस स्त्री की चूत के होंठों को फैलाकर चाट रहा था.. उस स्त्री की एक टांग खिड़की पर टिकी हुई थी और उसका पार्टनर अपनी जीभ अंदर तक फेर रहा था.. वैशाली ने हँसकर मौसम को अपनी ओर मोडाल और गले लगाते हुए कहा "यार यही तो सब से सर्वोत्तम सुख होता है.. जितना मज़ा लंड से चुदवाने में आता है.. उतना ही मज़ा अपनी चटवाने में भी आता है.. एक बार जीभ का स्पर्श नीचे चूत पर हो तब ऐसे झटके लगते है अंदर.. की तुम्हें क्या बताऊँ.. !!"
वैशाली के मुंह से "लंड" और "चूत" जैसे शब्द सुनकर फाल्गुनी और मौसम शर्म से लाल हो गए..
मौसम: "वैशाली.. तुमने अभी बताया ना की मर्द का पेनिस देखने लायक होता है.. !! तो मुझे वो देखना है.. !!"
वैशाली ने अन दोनों हाथ नाइटी के अंदर डालकर मौसम के दोनों जवान चुचे हाथ में पकड़ लिए और दबाने लगी..
वैशाली: "तू पागल है क्या मौसम!! मेरे पास लंड कहाँ है जो मैं तुम्हें दिखाऊँ.. !! मेरे पास तो बस तेरे जैसी चूत ही है.. देखना तो मुझे भी है पर अभी इस वक्त लंड कहाँ से लाऊँ??"
फाल्गुनी चुपचाप मौसम और वैशाली की कामुक बातें सुनते हुए दूरबीन से उस कपल की एक एक हरकत को बड़े ध्यान से देख रही थी..
वैशाली: "मौसम, तू एक हाथ से दूरबीन पकड़ और दूसरे हाथ से फाल्गुनी की चुची दबा.. तो उसे भी मज़ा आए.. "
मौसम ने तुरंत ही फाल्गुनी के मासूम स्तनों को दोनों हाथों से दबाते हुए उसके गाल पर पप्पी कर दी.. और एक बार उसके गाल को चाट भी लिया.. गाल पर मौसम की जीभ का स्पर्श होते ही फाल्गुनी उत्तेजना से कराहने लगी.. तभी अचानक वो सामने दिख रहे कपल ने अपनी खिड़की बंद कर दी
फाल्गुनी निराश हो गई "खेल खतम और पैसा हजम"