शीला नंगी होकर अपने दामाद संजय की बाहों में पड़े पड़े गोवा की आखिरी रात को रंगीन बनाने की तैयारी में थी.. दोनों आज अपनी सारी इच्छाओं को पूर्ण करने की फिराक में थे.. क्योंकी ऐसा मौका उन्हें दोबारा नही मिलने वाला था.. दोनों आपस में एकदम खुल चुके थे
शीला की एक एक सिसकी.. संभोग के समय के हावभाव देखकर संजय पागल हो जाता था.. अब तो नोबत ऐसी आन पड़ी थी शीला के साथ प्रत्येक क्षण वो उत्तेजित ही रहता था.. पूरा समय लंड खड़ा रहने के कारण उसे दर्द होता था.. चार चार बार झड़ने के बाद भी शीला, संजय के गोरे.. वीर्य-विहीन लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़े रखती थी..
शीला: "बेटा.. मैंने कभी सोचा भी नही था की अपने दामाद के साथ ही मुझे ये सब करने का मौका मिलेगा.. जो कुछ भी हो रहा है वो मुझे इतना अच्छा लग रहा है की तुम्हें बता नही सकती.. लेकिन आज ये सब कुछ करने का आखिरी दिन है.. तू एक जानदार मर्द है.. एक औरत होने के नाते मैं इतना तो कह ही सकती हूँ की तू अपनी कामुक हरकतों से किसी भी लड़की या स्त्री को अपनी गुलाम बना सकता है.. संजय बेटा.. तेरी हरेक हरकत ऐसी होती है की तुझसे एक बार चुदने के बाद कोई भी तेरे इस डंडे को कभी भूल नही पाएगा.. और मैं तो पहले से ही सेक्स की काफी शौकीन हूँ.. तेरे ससुर के साथ मैंने इतने खुलकर मजे कीये है की तुझे क्या बताऊँ.. !! तेरे साथ चुदते वक्त.. तेरे दमदार धक्कों को मेरी चूत में लेते वक्त.. मुझे ऐसा ही लगता था जैसे तेरे अंदर मदन घुस गया हो.. ये तेरा सुंदर लंड इतना रसीला है की कोई भी स्त्री उसे देखते ही अपने छेद में लेने के लिए बेबस हो जाएँ.. " शीला ने झुककर संजय के लंड को चूम लिया
संजय: "आहह मम्मीजी.. मुंह में लेकर चुसिए..बहोत मज़ा आ रहा है.. मम्मीजी, मैंने आज तक सेंकड़ों लड़कियों और औरतों को चोदा है.. पर आपके जैसी स्त्री मैंने आजतक नही देखि जो २४ घंटे बस चुदने के लिए ही बेकरार हो.. !!" कहते हुए संजय ने शीला के गदराए स्तनों को बड़ी मस्ती से दबा दिया "मम्मीजी, आप एक बार कलकत्ता आइए.. वहाँ मेरे बहोत सारे दोस्त है.. आपको नए नए लंडों को स्वाद मिलेगा.. !!"
शीला: "बेटा.. इतने दूर सिर्फ लंड लेने के लिए आऊँ?? और मुझे अलग अलग लंड लेने में दिलचस्पी नहीं है.. मुझे तो चाहिए एक ताकतवर लंड जो मेरे जनम जनम की भूख को संतुष्ट कर सकें.. मेरी चूत में जो हर दस मिनट पर चुदवाने की चूल मचती है.. उसे शांत कर सकें.. संजयं, तू यहाँ शिफ्ट हो जा.. फिर हम आराम से एक दूसरे को भोग सकेंगे.. तू मेरा दामाद है इसलिए किसी को शक भी नही होगा.. मेरा दिल अभी तेरा लंड लेकर भरा नही है.. अभी तो मुझे तुझसे बहोत बार चुदवाना है.. इतनी बार करवाना है की दोबारा कभी चुदवाने का मन ही न हो" कहते हुए शीला ने संजय को बिस्तर पर लेटा दिया और उसपर सवार हो गई.. संजय के लंड को अपनी गांड के छेद पर सेट किया और हल्के से दबाया.. आह्ह..
शीला: "तेरे मोटे लंड से जब गांड की दीवारें रगड़ती है तब बड़ी ही तेज खुजली होती है अंदर.. आज इस आखिरी रात को यादगार बनाने के लिए मैं तुझसे अपनी गांड मरवाना चाहती हूँ"
संजय: "ओह्ह ओह्ह आह्ह मम्मीजी.. कितनी टाइट है आपकी गांड आह्ह.. " सिसकियाँ लेते हुए संजय ने अपनी गांड ऊपर कर दी और शीला की कमर को दोनों हाथों से पकड़कर उसकी गांड को ड्रिल करने लगा.. शीला की दर्द से भरी सिसकियाँ.. और संजय की कराहों की गूंज के बीच.. शीला की गांड को चीरता हुआ संजय का तगड़ा लंड अंदर घुस गया.. शीला के परिपक्व और मदमस्त स्तनों को दोनों हाथों से पकड़कर मसलते हुए संजय ने उसे अपनी ओर खींचा.. और उसके रसीले कामुक होंठों पर एक जबरदस्त किस कर दी..
शीला और उसका दामाद संजय.. एक कपल की तरह नही.. पर पति पत्नी की तरह एक दूसरे में खो गए.. संजय का लंड शीला की गांड में ऐसे फिट हो गया जैसे वो दोनों जनम जनम के साथी हो.. कमर हुचकाते हुए संजय.. अपने लंड को शीला की गांड के अंदर बाहर कर रहा था.. और शीला की गांड ऐसे लंड गटक रही थी जैसे उसका सर्जन ही लंड लेने के लिए हुआ हो.. बड़ी मस्त ठुकाई हो रही थी शीला की गांड की..
संजय: "ओह्ह मम्मी जी.. कितनी टाइट गांड है यार.. मेरे लंड में दर्द होने लगा है.. आह्ह जरा धीरे धीरे.. !!!"
शीला: "आह्ह बेटा.. मेरा तो मन कर रहा है की मैं तेरी रखेल बन जाऊँ.. और तू मुझे पूरा दिन चोदता रहें.. अलग अलग आसनों में..ओह्ह बेटा.. बहोत जोरों की खुजली मची है मेरी गांड में.. लगा जोर से धक्के.. फाड़ दे मेरी गांड.. आह्ह आह्ह ओह्ह ओह्ह.. !!"
संजय के ऊपर हिंसक होकर कूद रही थी शीला.. कैसी जवान लड़की से दोगुना जोर था शीला के धक्कों में.. उसकी गदराई कामुक काया की एक एक अंग भंगिमा.. किसी भी पुरुष को अपने वश में करने के लिए काफी थी.. शीला ने हाथ नीचे डालकर संजय का लंड पकड़ लिया और थोड़ा सा रुककर अपनी गांड से बाहर निकाला.. थोड़ा सा झुकी और एक ही धक्के में अपने भोसड़े में उतार दिया..
शीला: "आह्ह.. आग तो यहाँ भी लगी हुई है.. जमकर धक्के लगा बेटा.. आग बुझा दे मेरी.. अब और रहा नही जाता संजु बेटा.. !!" शीला ने अपनी रिधम प्राप्त कर लिए थी.. वो संजय के जिस्म पर ऐसे हावी हो गई थी जैसे किसी बड़े मगरमच्छ ने छोटी सी गिलहरी को दबोच रखा हो.. संजय का लंड अब दर्द करने लगा था.. पर अपना बचाव करने की स्थिति में नही था वो.. शीला ने जैसे उसके शरीर, मन और मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया था.. बेजान पड़े पड़े वो बस शीला से संचालित हो रहा था.. शीला के इस सुनामी जैसे हमले को देखकर वो स्तब्ध हो गया था.. पड़े रहने के अलावा उसके पास ओर कोई विकल्प नही था.. शीला इतनी हिंसक होकर उसके लंड पर कूद रही थी जैसे उसके लंड को शरीर से अलग कर देना चाहती हो..
संजय अब घबरा रहा था.. कहीं शीला की ये तीव्र सेक्स की भूख उसकी जान न ले ले.. आँखें बंदकर वो प्रार्थना कर रहा था की शीला जल्द से जल्द झड जाए.. करीब १२ मिनट के भीषण धक्कों के शीला ढल पड़ी.. ऐसे लाश होकर संजय की छाती पर गिरी जैसे उसके शरीर की सारी ऊर्जा भांप बनकर उड़ गई हो.. शीला के विराट स्तनों और बदन के वज़न तले संजय दब गया था.. उसका लंड अब वीर्य छोड़ पाने की स्थिति में भी नही रहा था.. और बिना झड़े ही नरम होकर शीला के भोसड़े से बाहर निकल गया था.. और मरे हुए चूहे जैसे लटक रहा था.. दायें तरफ के आँड की ओर लटक रहे मुरझाएं लंड को देखकर ही पता लग रहा था की शीला के भोसड़े के अंदर उस पर क्या बीती होगी.. संजय ने मन ही मन अपने ससुर को सलाम कर दी.. जिन्होंने इतने सालों से इस हवस की महासागर को समेटकर संभाल रखा था.. पता नही ससुरजी कैसे इस शेरनी को काबू में रखते होंगे.. !! संजय सोच रहा था.. मैं इतना बड़ा चुदक्कड़ हूँ फिर भी मम्मी जी ने मेरे झाग निकाल दिए.. कोई सामान्य इंसान होता उसकी तो जान ही निकल जाती मम्मी जी के नीचे.. !!!
रात के साढ़े बारह बजे.. एक जानदार ऑर्गैज़म के बाद.. शीला और संजय बाथरूम में साथ नहाने गए.. नहाते हुए शीला ने फिरसे एकबार संजय को मुख-मैथुन का अलौकिक आनंद दिया.. वह जानती थी की किसी भी मर्द को अगर काबू में करना हो तो मुख-मैथुन से बेहतर ओर कोई दूसरा विकल्प नही है..
अगर ईमानदारी से सर्वे किया जाए तो कोई कपल ऐसा नही मिलेगा जिसे ओरल सेक्स में मज़ा न आता हो.. मर्द को अपना लंड चुसवाने में.. और औरत को अपनी चुत चटवाने में हमेशा आनंद आता है.. सब के सामने या दोस्तों के बीच.. इस क्रिया को घृणास्पद या गंदा कहने वाले लोग.. बेडरूम की चार दीवारों के बीच बड़े आराम से इसका मज़ा उठाते है.. इतना ही नही.. दुनिया के सारे मर्द यही सोचते है.. की उसके जितनी विकृत हरकतें और कोई नही करता होगा.. उसमें भी जब उसकी बीवी उससे कहें "बाप रे.. क्या कर रहे हो आप? आप को तो कुछ शर्म ही नही है.. एक नंबर के बेशर्म हो.. !!" यह सुनते ही पुरुष का अहंकार पोषित होता है और वो सातवे आसमान पर पहुँच जाता है.. और इसी भ्रामक अहंकार का उपयोग कर औरतें मर्दों से अपने काम निकलवा लेती है.. इंसानों की बात छोड़िए.. जानवर भी तो ऐसा ही करते है.. !!! नर जानवर मादा की योनि की गंध सूंघकर और उसे चाटकर ही उसे संभोग के लिए तैयार करता है.. हाँ, मादा जानवर कभी नर के साथ मुख-मैथुन नही करती.. ये क्रिया केवल मनुष्यों में ही देखी जाती है.. कुदरत ने इस मामले में इंसानों को ज्यादा ही स्वतंत्रता दी है..
शावर लेते हुए जब शीला घुटनों के बल बैठकर अपने दामाद का लंड चूस रही थी तब उसका ध्यान इस बात पर जरा भी नही था की संजय को मज़ा आ रहा है या नही.. वह तो खो चुकी थी अपनी ही मैथुन की अलौकिक दुनिया में.. लंड के लिए उसने अपने मन में जो कुछ भी विकृतियाँ पाल रखी थी वो सब उसने गोवा की इस आलीशान होटल के बाथरूम में ही संतुष्ट करने का मन बना लिया था.. संजय के विकराल लंड को अपने मुख के अंदर बाहर कर रही थी.. उसने अपनी आँखें इसलिए खोली थी ताकि वो दीवार पर लगे आईने में अपनी हरकतें देख सके.. फिर से एक बार पूरे लंड को मुंह से बाहर निकालकर उसने अपनी जीभ से उसे चाट लिया.. एक एक हरकत को आईने में देखकर वो उत्तेजित हो रही थी.. संजय तो शीला के हाथों का एक खिलौना बनकर रह गया था.. वो शीला के स्तनों को बार बार दबाकर.. निप्पलों को खींचकर अपनी सास के स्तनों से खेलने की सालों पुरानी तमन्नाओं को पूरी कर रहा था.. संजय को वो समय याद आ रहा था.. जब जब वो ससुराल आता तब अपनी सास के गदराए जोबन को देखते ही बेचैन हो जाता था.. तब से उसे महसूस होता की इस स्त्री में कुछ ऐसा खास था जो मर्दों को अपनी ओर चुंबक की तरह खींच लेती थी..
जब संजय वैशाली को पहली बार देखने आया था तब से वो अपनी सास के हुस्न का आशिक बन गया था.. जब पहली बार शीला ने झुककर नाश्ते की प्लेट टेबल पर रखी थी और जिस तरह उसके सामने देखा था.. संजय को ऐसा ही लगा था जैसे वो उसके चोदने के लिए आमंत्रित कर रही हो.. वैशाली से कहीं ज्यादा वो शीला के प्यार में पागल था.. शीला के लिए ये कोई नई बात नही थी.. वो अपने दामाद की गंदी नज़रों से काफी समय पहले ही वाकिफ हो चुकी थी.. पहले तो वो ज्यादातर संजय के सामने आती ही नही थी.. ताकि उसकी कामुक नज़रों का सामना न करना पड़ें.. तब से लेकर आज तक.. उनके संबंध कहाँ से कहाँ पहुँच गए!!! शीला के हाथों में अपने दामाद का लंड आ चुका था.. और जिन उन्नत स्तनों को याद करते हुए संजय, वैशाली की चूत का भोसड़ा बना देता था.. वो स्तन भी संजय के हाथों में थे.. आम तौर पर संभोग के दौरान.. पुरुष सक्रिय होते है और स्त्री निष्क्रिय.. पर यहाँ तो सारी सक्रियता का ठेका शीला ने ही ले रखा था.. संजय तो बेचारा बस अपनी सास के आदेशों का पालन ही कर रहा था..
शीला आईने में संजय के लंड को ऐसे देख रही थी जैसी किसी एंटिक पीस को देख रही हो.. बार बार वो संजय के लंड को चूमती.. चाटती.. संजय शीला के इस कामुक स्वरूप को कभी नही जान पाता.. अगर उसे गोवा लेकर नही आता तो..
शीला खड़ी हो गई और संजय के गले लग गई.. उसके आलिंगन में केवल उत्तेजना नही थी.. पर बेफिक्री से समाज और दुनियादारी के डर से दूर.. ये आखिरी आलिंगन हो रहा था इस भाव से लिपट पड़ी.. अपने दामाद के साथ ये संबंध संयोग से हुआ था.. और इस संबंध को समाज की स्वीकृति मिलना असंभव था.. पर शीला और संजय को एक दूसरे का चस्का लग गया था.. क्या भविष्य होगा इस संबंध का?? घर जाने के बाद दोनों अपने आप को कैसे रोक पाएंगे? वैसे सोचा जाएँ तो.. समाज जिसे स्वीकार नही कर सकता.. ऐसे कितने सारे संबंध हमारे आस पास पनप रहे होंगे.. !!! कीसे पता.. !!!
संजय के लंड की चुभन अपनी चिकनी जांघों पर फ़ील करते हुए शीला उत्तेजित कम और भावुक ज्यादा हो रही थी.. हाफ़िज़ का फोन आ चुका था.. वो वापिस जाने के लिए गाड़ी तैयार कर चुका था.. और दोनों का इंतज़ार कर रहा था.. चेकआउट करने की घड़ी जैसे जैसे नजदीक आती गई.. वैसे वैसे शीला संजय को और जोर से आलिंगन करती रही.. पर आँखें बंद कर देने से तूफान चला तो नही जाता.. !! सिर्फ दिखना बंद होता है
आखिर वो घड़ी आ गई.. दोनों तैयार होकर रीसेप्शन काउन्टर पर पहुँच गए.. शीला जान बूझकर धीरे धीरे तैयार हुई थी ताकि उतना ज्यादा समय संजय के साथ बिताने को मिले.. फिर भी वो क्षण आकर खड़ी हो गई.. संजय पेमेंट और चेकआउट की प्रक्रिया पूर्ण कर रहा था.. वेटर ने उनका सामान उठाकर गाड़ी की डीकी में रख दिया था.. बड़े ही भारी मन के साथ शीला ने गोवा और अपने दामाद के साथ संबंध को अलविदा कहा.. संजय के आने से पहले ही वो गाड़ी में जा बैठी.. हाफ़िज़ ने ए.सी. पहले से ही चला रखा था इसलिए गाड़ी का वातावरण एकदम ठंडा था..
हाफ़िज़: "मैडम, साड़ी में आप बड़ी कातिल लगती हो" बेक-मिरर सेट करके शीला की तरफ देखकर उसने कहा
शीला: "साड़ी के अंदर का सब कुछ तो देख रखा है तुमने.. अब भी मन नही भरा क्या??"
हाफ़िज़: "कसम से शीला.. तू चीज ही ऐसी है.. एक बार चोदकर मन ही नही भरा.. !!"
शीला: "चुप मर हरामी.. अभी तेरा बाप आ जाएगा और सुनेगा तो नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी.. उस दिन वो फ़ोटो वाले से तो मुश्किल से बची थी मैं.. "
हाफ़िज़: "अरे कोई मुसीबत नही होगी यार.. चल मेरे कु एक पप्पी दे" ड्राइवर सीट पर मुड़ते हुए हाफ़िज़ ने विचित्र डिमांड की..
शीला ने गुस्से से कहा "पागल हो गया है क्या?"
हाफ़िज़: "यार शीला.. तू माल ही ऐसी है की अच्छे अच्छे पागल हो जाएँ.. अब यार टाइम जास्ती खोटी मत कर.. उसके आने से पहले एक धमाकेदार पप्पी दे दे.. तो ड्राइविंग में मुझे मज़ा आयें"
शीला: "तू जरा समझ यार.. वो आ जाएगा अभी.. रास्ते में कहीं चांस मिला तो जरूर दूँगी.. ठीक है!!"
हाफ़िज़: "अरे मेरी रानी.. पता नही है पल की.. और बात करे है कल की.. " हाफ़िज़ ने अपनी सीट से उठकर शीला के स्तनों पर हाथ फेर दिया.. संजय के आ जाने के डर से शीला सहम कर बैठी रही.. पर हाफ़िज़ का हाथ उसके उरोजों पर हटाने की उसकी हिम्मत क्यों नही हुई.. क्या पता!! वो कितनी भी कोशिश कर लेती.. पर पुरुष का स्पर्श होते ही अपना कंट्रोल खो बैठती.. उसकी सालों पुरानी बीमारी थी ये.. शीला ने खिड़की से बाहर देखा.. संजय कहीं नजर नही आ रहा था.. अंधेरे का फायदा उठाकर उसने फटाफट अपने ब्लाउस के दो हुक खोल दिए.. और अपने दोनों विशाल स्तनों को बाहर निकालकर हाफ़िज़ के हाथों में थमा दिए..
शीला: "ले.. उसके आने से पहले दबा ले जितना दबाना हो.. उसकी मौजूदगी में अगर ऐसी वैसी बात या हरकत की तो तकलीफ हो जाएगी, मेरे बाप!!"
शीला के मदमस्त बबले मसलते हुए उसकी निप्पलों को दबाते हुए हाफ़िज़ ने कहा "क्या मस्त मम्मे है तेरे शीला मेरी जान.. " उसने दोनों स्तनों को ऐसा मरोड़ा की शीला की चीख निकल गई..
शीला: "कमीने.. अपनी नजर रखना.. कहीं वो आ न जाएँ.. नहीं तो तेरी गांड फाड़कर रख देगा.. "
हाफ़िज़: "नही आएगा.. मुझे खिड़की से सब नजर आ रहा है.. तू चिंता मत कर, मेरी नजर है.. तू मजे कर और कुछ मत सोच"
शीला फिर से बेबस होकर हाफ़िज़ के मर्दाना हाथों से हो रहे अपने स्तनों के मर्दन का आनंद लेने लगी.. ये कार्यक्रम थोड़ी देर तक चलता रहा और तभी दूर से संजय नजर आया.. दोनों अलग हो गए.. शीला अपनी सीट पर ठीक से बैठ गई और अपने स्तनों को ब्लाउस और ब्रा के अंदर दबाकर डालने लगी.. संजय दरवाजे तक पहुँच गया और शीला एक हुक बंद भी नही कर पाई.. उसने पल्लू से अपने उरोजों को ढँक लिया.. अंदर बैठते ही संजय ने शीला के पल्लू में हाथ डाला.. तब शीला पल्लू के नीचे ही पहले से ही खुले हुक को खोलने का नाटक करती रही और तभी हाफ़िज़ ने गाड़ी को पाँचवे गियर पर लिया.. शीला ने खुद ही खोलकर अपना स्तन संजय के हाथ में रख दिया..
"पहले से ही खोल रखा था?? क्या बात है मम्मी जी.. "
संजय ने बरमूडा पहन रखा था.. उसकी खुली जांघों पर शीला हाथ फेरते हुए उसके लंड को सहला रही थी
"बेटा.. समय न बिगड़े इसलिए मैं तैयार बैठी थी.. तेरे आते ही.. तेरे पसंदीदा खिलौने से तू खेल सके इसलिए.. !! मुझे पता है तुझे मेरी छातियाँ बहोत पसंद है" इतना कहते ही शीला ने बरमूडा के अंदर हाथ डालकर संजय के मुर्झाएँ लंड को मुठ्ठी में पकड़ लिया.. संजय ने शीला की कमर में हाथ डालकर अपने तरफ खींच लिया.. और दोनों आखिरी रोमांस में व्यस्त हो गए.. शीला की कामुक हरकतें इतनी जंगली हो गई थी.. जैसे इन आखिरी पलों को वो पूरे दिल से उपभोग करना चाहती हो..
जैसे जैसे रास्ता कटता गया और गोवा की ट्रिप अपने अंत की ओर जाने लगी.. शीला अपने हाथों को और तीव्रता से चलाने लगी.. संजय के अंगों के साथ हो रही एक एक छेड़खानी में एक अजीब प्रकार की आतुरता थी.. जिसका मतलब शायद ये भी निकलता था की काश.. !! इस स्वतंत्रता की रात की सुबह जल्दी न हो.. शीला का हाथ चलते ही संजय का लंड चड्डी की साइड से बाहर आकर शीला को उकसाने लगा.. उसके सुपाड़े का स्पर्श होते ही शीला की चूत में जैसे चिनगारी हुई..
"ओह्ह बेटा.. तेरा बम्बू तो फिरसे तैयार हो गया.. " संजय के लंड को मुठ्ठी में दबाते हुए शीला ने कहा
"ओह्ह मम्मीजी.. आप तो गजब हो यार.. !!" संजय इससे ज्यादा कुछ बोल नही पाया.. एक तरफ उसके हाथों में शीला के स्तन थे.. और दूसरी तरफ शीला के हाथों का स्पर्श उसके लंड के टोपे पर इतना आह्लादक और कामुक लग रहा था.. कोई मर्द अपनी उत्तेजना को कैसे कंट्रोल करे!!
हर पल उसके लंड का कद बढ़ता जा रहा था.. शीला के मदमस्त बबले भी जैसे उसके लंड के साथ प्रतियोगिता में शामिल होकर तंग हो रहे थे.. हाफ़िज़ कार चलाते हुए सास-दामाद की कामुक बातों और मादक आवाजों को सुनकर.. अपनी चैन खोलकर लंड बाहर निकालके हिला रहा था.. आगे और पीछे की सीट के बीच एक पतला सा पर्दा था.. जिसके कारण वो पीछे का द्रश्य देख तो नही पा रहा था.. लेकिन उनकी आवाज से पीछे क्या हो रहा था उसकी कल्पना कर वो गाड़ी चलाते चलाते मूठ मार रहा था
जितनी तेज गति से गाड़ी चल रही थी उतनी ही गति से हाफ़िज़ अपने लंड को हिला रहा था.. शीला के संग बिताई हसीन पलों को याद करते हुए उसे स्खलित होने में ज्यादा वक्त नही लगा.. एक शानदार पिचकारी लगाकर वो ठंडा हो गया.. गाड़ी साफ करने वाले कपड़े से उसने अपना लंड पोंछ लिया..
सेक्स के अलावा कोई खास घटना हुई नही सफर के दौरान.. तेज गति से भागती हुई गाड़ी सुबह पाँच बजे तक एक सुंदर होटल के प्रांगण में आकर रुक गई.. पूरी रात के ड्राइविंग के बाद उसे थोड़े आराम और एक कडक चाय की जरूरत थी.. शीला और संजय के साथ हाफ़िज़ भी गाड़ी के बाहर निकला.. बाहर काफी अंधेरा था.. शीला और संजय होटल की ओर चलते जा रहे थे और पीछे पीछे हाफ़िज़ शीला के पृष्ठ भाग को छेड़ते हुए चल रहा था.. संजय को पता न चले उस तरह वो बार बार शीला के कूल्हों पर हाथ फेर रहा था.. एक बार तो वो शीला के पीछे इतना करीब आ गया की उसने अपना लंड शीला की गांड पर रगड़ लिया..
शीला को हाफ़िज़ की हरकतें अच्छी तो नही लग रही थी क्योंकी अभी फिलहाल वो स्थिति न थी की शीला को मज़ा आयें.. पूरी रात उसने संजय के साथ अटखेलियाँ करते हुए बिताई थी.. संजय की उंगली ने उसके भोसड़े को ३-४ बार स्खलित कर दिया था.. सफर की थकान भी थी.. और संजय को पता चल जाने का डर भी था.. इसलिए वो हाफ़िज़ के स्पर्श का आनंद ले नही पा रही थी..
होटल के करीब पहुंचते ही हाफ़िज़ शीला से दूर चला गया.. उसकी इस समझदारी को देखकर शीला मन ही मन प्रसन्न हुई.. तीनों ने अदरख वाली कडक चाय का लुत्फ उठाया.. संजय ने सिगरेट जलाई.. दो दम मारते ही उसके पेट में उथल-पुथल होने लगी.. जैसा अक्सर सिगरेट पीने वालों के साथ होता है
संजय: "हाफ़िज़, तुम मेमसाब को लेकर गाड़ी में बैठो.. मुझे टॉइलेट जाना पड़ेगा.. मैं १५-२० मिनट में आता हूँ.. "
हाफ़िज़: 'जी साहब.. चलिए मैडम" हाफ़िज़ आगे आगे चल दिया और शीला उसके पीछे.. दोनों गाड़ी के पास पार्किंग में पहुंचे जहां कोई लाइट न होने की वजह से अब भी काफी अंधेरा था.. गाड़ी के पास पहुंचते ही.. अंधेरे का लाभ उठाकर शीला ने हाफ़िज़ को अपनी ओर खींचकर बाहों में भर लिया और एक जबरदस्त किस देकर कहा "मैंने कहा था न.. की रास्ते में मौका मिलेगा तो मैं कुछ करूंगी.. तो अब बिना समय गँवाएं कर ले पीछे से.. मेरा घाघरा उठाकर डाल दे अपना लोडा.. इससे पहले की कोई आ जाएँ.. " कहते ही शीला ने गाड़ी के बोनेट पर अपने दोनों हाथ टीका दिए और अपने चूतड़ को उठाते हुए हाफ़िज़ का लंड लेने के लिए तैयार हो गई.. फटी आँखों से हाफ़िज़ इस हवस की महारानी को देखता ही रहा.. फिर धीरे से उसने शीला का घाघरा ऊपर किया.. और शीला के नंगे चूतड़ों के प्रातः दर्शन कीये.. देखते ही हाफ़िज़ का लंड एक झटके में खड़ा हो गया..
शीला के कूल्हों में ऐसी बरकत थी की हाफ़िज़ का लंड अब बाहर निकलने के लिए तरसने लगा.. हाफ़िज़ ने तुरंत अपनी चैन खोलकर हथियार बाहर निकाला और हमले की तैयारी की.. लंड के टोपे पर थूक लगाकर उसने शीला के गरम सुराख पर टिकाया.. एक जोर के धक्के के साथ शीला की गुफा उस्ताद को निगल गई.. दोनों कूल्हों पर हथेलियाँ रखकर हाफ़िज़ ने जबरदस्त पमपिंग शुरू कर दिया.. शीला इस प्रत्येक पल को अपनी आखिरी क्षण मानते हुए पूरे मजे लेने लगी.. हाफ़िज़ के दमदार धक्कों से पूरी गाड़ी हिल रही थी.. जैसे वो शीला को नही.. गाड़ी को चोद रहा हो!!
शीला जब बोनेट पर झुककर हाफ़िज़ से ठुकवा रही थी.. तभी.. गाड़ी की पिछली सीट पर पड़ा उसका मोबाइल बजने लगा.. लेकिन वासना के सागर में डूबी हुई शीला को मोबाइल की रिंग कहाँ सुनाई पड़ती!!! सामने टॉइलेट के कमोड पर बैठकर सिगरेट फूँक रहे संजय को वेन्टीलेशन से हाफ़िज़ और अपनी सास के बीच हो रही चुदाई नजर आ रही थी.. अंधेरा छट रहा था.. और द्रश्य इतना साफ नही था.. पर जुवान हाफ़िज़ अपनी सास को चोद रहा है वह साफ पता चल रहा था..
दस मिनट के अद्वितीय संभोग के बाद शीला के भोसड़े का मुर्गा "कुक-डे-कूक" बोल उठा और वोह झड़ गई.. उसी के साथ हाफ़िज़ के ताकतवर लंड ने भी इस्तीफा घोषित कर दिया.. और गोवा के ट्रिप का अंतिम अध्याय समाप्त हुआ.. शीला ने घाघरा नीचे किया और चुपचाप गाड़ी में बैठ गई..धीरे धीरे उजाला हो रहा था.. शीला तो चाहती थी की इस रात की कभी सुबह न हो.. संजय कार के पास आ पहुंचा.. और हाफ़िज़ बाथरूम की ओर चला गया..
अब १५० किलोमीटर का अंतर बाकी था और इन तीनों को यह बाकी का सफर सज्जनता पूर्वक पूर्ण करना था.. थोड़ी बहोत छेड़खानियों के अलावा कुछ ज्यादा कर पाना मुमकिन भी नही था.. डीकी खोलकर संजय ने अपने बेग से पेंट और शर्ट निकाला और शॉर्ट्स के ऊपर ही कपड़े पहन लिए.. तभी हाफ़िज़ बाथरूम से लौटा.. तुरंत गाड़ी ड्राइव करने का आदेश देकर संजय गाड़ी में बैठ गया..
जैसे जैसे समय बीतता गया.. राह कटती गई.. अपना शहर नजदीक आता गया.. शीला के मन को संकोच और शर्म ने घेर लिया.. वो सोचने लगी.. पिछले दो दिनों में क्या क्या नही हुआ.. !!! ऐसी सारी घटनाएं बड़ी सहजता से हो चुकी थी जिनके बारे में उसने कभी सपने में भी नही सोचा था..!! एक विदेशी से चुदवाया.. गोरी के साथ लेस्बियन सेक्स किया.. अपने दामाद से चुदवाया और गांड भी मरवाई.. और अंत में एक मामूली ड्राइवर से भी अपना भोसड़ा मरवा लिया.. !! शीला का गोरा चेहरा शर्म से लाल हो गया.. सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ते ही जैसी लालिमा नजर आती है वैसी ही कुछ शीला के चेहरे पर भी लिप्त थी..