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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

sunoanuj

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कमरे के बाहर लॉबी में.. काफी असामान्य चहल-पहल की आवाज़ें सुनाई देने लगी.. !!! और उन आवाजों में डर और व्यग्रता के भाव स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ रहे थे.. सब के चेहरे एकदम से गंभीर हो गए.. एक दूसरे की तरफ देखते हुए.. सब की आँखों में बस एक ही प्रश्न था.. की आखिर ऐसा क्या हो गया था.. !!!!

अचानक बाहर से किसी की चिल्लाने की आवाज आई "भागो... पुलिस की रैड पड़ी है.. !!!!"

पुलिस...!!!! तीन अक्षर का यह शब्द.. इंसान को हमेशा से डराता आया है.. !!

बाप रे... !!! पुलिस... !!!! मर गए... !!! अब कल के अखबार में.. फ़ोटो के साथ नाम आना तय हो चुका था.. !! सब की गांड फटकर फ्लावर हो रही थी..

हाथ से अपना सर पटकते हुए मदन ने कहा "माँ चुद गई यार.. हम तो घर पर झूठ बोलकर निकले थे.. अब क्या होगा..??? !!"

घबरा रहें कॉकटेल ने कहा "मैंने भी घर पर झूठ बोला है की एक पुराने दोस्त की मृत्यु हो गई है और उसकी अंतिम क्रिया में शामिल होने जा रहा हूँ " पहली बार सब ने कॉकटेल को बोलते हुए सुना.. आवाज जानी पहचानी जरूर लग रही थी.. पर अभी किसी का ध्यान उस ओर गया ही नहीं.. !!

"पुलिस की रैड है.. आप सब लोग अपने अपने कमरे में चले जाइए.. " काफी डरे हुए हेमंत ने कहा.. सब अपने कपड़े ढूँढने लगे.. जिसके हाथ में जो आया वो लेकर अपना शरीर छुपाते हुए.. सब अपने अपने कमरे की ओर भागे.. !!

जल्दबाजी में.. राजेश के कमरे में स्टेफी के बदले रेणुका चली गई.. और स्टेफी कॉकटेल के सामने वाले कमरे में.. उसके साथ घुस गई.. हेमंत और बार्बी अपने कमरे में दुबक कर बैठ गए.. !!

यह कोई अफवाह नहीं थी.. सचमुच पुलिस की रैड पड़ी थी.. चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था.. रात के एक बजे पुलिस ने किसी अनजान खबर पर एक्शन लिया और इस बहोत बड़े सेक्स रैकिट का पर्दाफाश कर दिया था.. ज्यादातर सदस्य काफी अमीर और बड़ी बड़ी पहचान वाले थे.. उन सब को यकीन था की वह अपने पैसे के दम पर.. या किसी न किसी की सिफारिश के जोर पर बच जाएंगे.. पर दो ही दिन पहले प्रमोट हुए इंस्पेक्टर खान ने किसी की एक न सुनी.. वो हर कमरे में खुद जाकर तलाशी ले रहे थे.. जिन लोगों ने अपने फर्जी नाम बताकर रूम बुक किए थे.. उन सब को थाने ले जाने का आदेश दिया था इंस्पेकटर ने.. एक के बाद एक कपल.. चुपचाप पुलिस की वैन में बैठने लगे.. ईमानदार इन्स्पेक्टर के आगे.. ना पैसों की गर्मी चली और ना ही किसी की सिफारिश.. !!

होटल के प्रत्येक कमरे में जाकर इन्स्पेक्टर सब की पूछताछ कर रहे थे.. उसके साथ चार कॉन्स्टेबल भी थे.. शीला और मदन के कमरे के दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. शीला ने इशारे से मदन को बाथरूम में छुप जाने को कहा.. और अपने उत्तेजक शर्ट और मेक्सी की बिना परवाह किए.. मास्क उतारकर.. बड़ी ही बेफिक्री से दरवाजा खोला

"हैलो मैडम.. मेरा नाम इन्स्पेक्टर खान है.. यह एक तहकीकात है.. और आपको हमें सहकार देना होगा"

"आइए सर.. !!" शीला ने जग से पानी भरकर ग्लास इन्स्पेक्टर को देते हुए कहा "बैठिए ना.. !! वैसे बात क्या है?? और इतनी रात गए आप लोग क्यों आए है?? और आप किस प्रकार के सहकार की बात कर रहे है?"

इन्स्पेक्टर: "देखिए मैडम.. बात दरअसल यह है की... !!"

शीला: "जी, मेरा नाम शीला है.. !!"

इन्स्पेक्टर: "थेंकस मिसिस शीला.. आप ये बताइए.. की आप किसके साथ यहाँ रूम में ठहरी हुई है?"

शीला: "जी, मेरे पति के साथ.. हम और हमारे दोस्त.. मिसिस रेणुका और राजेश.. जो बगल के कमरे में ठहरे हुए है.. हम लोग घूमने निकले थे.. पर वापिस आते वक्त हमें मजबूरन यहाँ रुकना पड़ा.. !!"

इन्स्पेक्टर: "ओह अच्छा.. तो कहाँ है आप के पति?"

शीला: "जी, वो टॉइलेट में है... अभी आ जाएंगे.. दरअसल उन्हें होटल का खाना राज नहीं आता.. इसलिए उन्हें लूज मोशन हो गए है"

उस दौरान शीला ने बड़ी ही चतुराई से रेणुका को कॉल कर.. फोन टेबल पर ही छोड़ दिया.. ताकि रेणुका, उसकी और इन्स्पेक्टर की बातें सुन ले.. और फिर बात करने में कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए

शीला: "सर आपको एतराज न हो तो मैं हमारे दोस्त रेणुका और राजेश को भी यही बुला लूँ?? ताकि आप पूछताछ कर सकें और तसल्ली हो जाए.. आप का समय भी बच जाएगा"

इन्स्पेक्टर: "सॉरी मैडम.. पर ये देखिए.. होटल के रजिस्टर में यह कमरा किसी मिस्टर मेक के नाम से बुक किया गया है"

शीला: "सर, इस बारे में तो मुझे कुछ नहीं पता.. हम तो एक घंटे पहले ही यहाँ पहुंचे है.. और अभी तक हमने चेक-इन की विधि भी नहीं की है.. क्यों की मेरे पति को इतने लूज मोशन हो रहे थे.. की यह सब कार्यवाही का समय ही नहीं था.. वैसे भी रात के बारह बजे थे.. इसलिए हमने सोचा की रजिस्ट्रेशन हम सुबह कर लेंगे.. !!!"

बाहर हो रही बातचीत सुनकर.. मदन को वाकई में पतले दस्त हो गए.. अंदर से आ रही पैखाने की गरजदार आवाज़ें सुनकर.. इन्स्पेक्टर को भी विश्वास हो गया शीला की बातों पर.. कोई इंसान झूठ बोल सकता है.. पर लूज मोशन्स की आवाज़े निकालना मुमकिन नहीं है.. इन्स्पेक्टर की नजरें कब से शीला की मादक क्लीवेज पर चिपक गई थी..

इन्स्पेक्टर: "ठीक है मैडम.. आपके पति ठीक से रिलेक्स हो जाए तब तक हम आपके दोस्तों की पूछताछ कर लेते है.. "

शीला: "जी जरूर सर.. वो मेरी सहेली रेणुका.. पुलिस को देखकर बहोत डर जाती है.. आप समझ सकते हो सर.. !!"

इन्स्पेक्टर: "कोई बात नहीं.. चलिए.. हम उनके रूम में चलते है"

शीला: "सर, अगर उन दोनों को यहीं बुला ले तो?? क्या है की मेरे पति की तबीयत के चलते.. मेरा यहाँ रहना जरूरी है..!! इस तरह.. आपकी पूछताछ भी हो जाएगी.. और मेरे पति को किसी चीज की जरूरत पड़ी तो मैं संभाल भी सकूँगी.. !!"

इन्स्पेक्टर: "ठीक है मैडम.. बुलाइए उन दोनों को इधर.. !!"

पुलिस का नाम सुनते ही.. मदन को सच में लूज मोशन हो गए.. उसका दिमाग सुन्न हो गया था.. कुछ सूझ नहीं रहा था.. एक साथ सेंकड़ों सवाल दिमाग में घूमने लगे थे.. उन सब सवालों में.. सब से बड़ा सवाल था.. शीला यहाँ पहुंची कैसे????

इंस्पेक्टर खान ने हवालदार को इशारा करते ही वो दूसरे कमरे से रेणुका और राजेश को बुला लाया.. दोनों बेहद घबराए हुए थे.. इंस्पेक्टर ने एक दो मामूली से सवाल किए जिसके जवाब देने में ही दोनों की फट गई.. तुरंत शीला ने बाजी अपने हाथ में ले ली और मामले को संभाल लिया.. उस दौरान मदन भी टॉइलेट से बाहर निकल आया.. उसके चेहरे का नूर गायब हो चुका था..

एक रात मजे करने की कितनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ रही थी.. !!

थोड़े और सवाल करने के बाद.. इन्स्पेक्टर ने चारों के आइडेंटिटी प्रूफ मांगें.. चेक करने पर उन्हें तसल्ली हो गई की वह वाकई पति पत्नी ही थे..

इन्स्पेक्टर: "आप सब को डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहता हूँ.. पर आप समझ सकते है की यह हमारी जिम्मेदारी का हिस्सा है.. " फिर मदन की ओर मुड़कर उन्हों ने कहा "मिस्टर, आप तुरंत किसी डॉक्टर को ढूंढकर दवाई ले लीजिए.. फूड-पॉइजन का मामला हो सकता है..!!"

इन्स्पेक्टर के जाते ही सब को ऐसा महसूस हुआ जैसे छाती पर से एक टन का वज़न कम हो गया हो..!! राजेश और मदन तो रेणुका-शीला से नजरें तक नहीं मिला पा रहे थे.. चारों गुमसुम थे..

आखिर माहोल को स्वाभाविक बनाने के लिए.. शीला ने टेबल से पैकेट उठाकर सिगरेट जलाई.. और एक कश खींचकर सिगरेट रेणुका के हाथों में थमा दी.. मदन और राजेश की सिट्टी-पीट्टी गूम हो गई थी.. जैसे पुलिस थाने में उन्हें रिमांड पर लिया गया हो और इंस्पेक्टर थर्ड डिग्री आजमाने की तैयारी में हो.. कुछ ऐसा ही माहोल था..

मदन और राजेश, अपनी बीवियों को पराये मर्दों से चुदते हुए देखने के बावजूद कुछ बोल पाने की स्थिति में न थे.. क्यों की आज अगर शीला और रेणुका यहाँ नहीं होती तो क्या होता.. यह सोचकर ही दोनों कांप उठते थे..!!

अब सारा टेंशन दूर हो चुका था.. पर फिर भी मदन और राजेश बहोत घबराए हुए थे.. पुलिस का टेंशन खत्म हो चुका था.. पर अब बीवियों की अदालत में दोनों की पेशी होने वाली थी..

शीला चलते चलते मदन के सामने खड़ी होकर उसे देखती रही.. बेहद प्रभावशाली लग रही थी शीला.. अभी भी उसने वो गोल्डन शर्ट, बिना ब्रा के पहन रखा था.. जिसके ऊपर के दो बटन खुले हुए थे.. जिसमें से उसकी नशीली क्लीवेज की झलक नजर आ रहा थी..

शीला: "क्यों राजेश?? तुझे अपने दोस्त की बीवी को नंगा देखने का बड़ा मन था ना.. !!!"

राजेश ने नजरें झुका दी.. वो किसी भी तरह की सफाई देने की स्थिति में न था.. उसने शीला के बारे में जो भी इच्छाएं मदन के सामने जताई थी.. वो सब शीला और रेणुका सुन चुके थे..!! शीला के चमकीले सुनहरे शर्ट के दो खुले बटन से झलक रहे स्तनों के उभार.. और तेज ए.सी. की ठंडी हवा के कारण शर्ट के महीन कपड़े से उभरी हुई निप्पल का नजारा देखते हुए राजेश का गला सूख रहा था.. वो उभार.. वो जोबन.. वो कातिल हुस्न.. नज़ारे को और मादक बनाते हुए शीला ने अपना एक पैर बेड के ऊपर रखकर.. अपनी मेक्सी को जांघों तक उठाए रखा था.. उसका गोरा चमकता हुए घुटना भी बड़ा ही आकर्षक लग रहा था.. सफेद संगेमर्मरी जांघें.. ऐसा नजारा था की देखने वाला सिर्फ उसकी जांघों की सिलवटों पर अपना सुपाड़ा रगड़कर ही अपना पानी गिरा सकता था


SHILA

शीला का अर्ध-नग्न बदन अच्छे-अच्छों का खून गरम करने के लिए काफी था.. दो बड़े बड़े वक्षों वाली.. कामुक मादक गदराई औरत... बेफिक्री से सिगरेट फूंकते हुए धुएं के छल्ले बना रही थी.. अद्भुत द्रश्य था.. !! शीला के शर्ट को ध्यान से देखने पर.. वो शर्ट कई जगह से फटा नजर आ रहा था.. सूखे हुए वीर्य के कई धब्बे भी उसपर मौजूद थे.. पार्टी में एक साथ २०-२५ लोगों ने मिलकर उसे रौंदा था.. यह पूरा नजारा देखकर.. राजेश का लंड उसके बरमूडा में हरकत करने लगा.. और उसकी चड्डी में.. सब की नज़रों के सामने ही उभार बनाने लगा.. ऐसी गंभीर स्थिति में भी अपने लंड को नाचते देखकर राजेश को गुस्सा आ रहा था.. वो मन ही मन अपने लंड को कोस रहा था.. साले, तेरे चक्कर में आज इज्जत की मैया चुद जाती.. बाल बाल बचे है.. अब तो शांति से बैठ, मेरे भाई.. !!!

शीला ने रेणुका की ओर देखकर इशारा किया.. दोनों बिना कुछ कहें, उठ खड़े हुए.. और बगल के कमरे में जाकर सो गए.. राजेश और मदन एक दूसरे के चेहरे को देख रहे थे.. दोनों में से किसी को पता नहीं था की उन दोनों ने ऐसा क्यों किया... !!

सर पर हाथ रखकर मदन ने कहा "यार राजेश, मुसीबत खतम होने का नाम ही नहीं ले रही है.. !!"

राजेश का चेहरा भी बासी बासुंदी जैसा हो गया था.. दोनों बैठे बैठे अपनी किस्मत और अपने लंड को गालियां दे रहे थे..

दूसरे कमरे में...

रेणुका: "मुझे समझ नहीं आया शीला, आखिर तुमने वहाँ से निकल जाने के लिए क्यों कहा?? पतियों की अदला-बदली कर चुदवाने का मस्त मौका था यार.. !!

शीला; "नहीं... आज नहीं.. आज तो उन दोनों घोंचूओ को उदास ही पड़े रहने दे.. हम दोनों है ना.. !! एक दूसरे से खेलकर अपनी प्यास बुझा लेंगे आज की रात.. पर वो दोनों क्या करेंगे?? तड़पने दे सालों को.. !!!"

रेणुका: "बाप रे शीला.. बड़ी जालिम है रे तू.. पता है..!! ये तेरे बबले देखकर, राजेश का लंड खड़ा हो गया था.. !!"

शीला: "हाँ, देखा था मैंने.. पर तब अगर मैं उस लंड के मजे लेने जाती.. तो वो दोनों भी मूड में आ जाते.. मैं चाहती हूँ की सिर्फ एक रात के लिए उन दोनों को अपराधभाव से पीड़ित होने दु.. घर जाकर भी आसानी से नहीं मानना है.. एक एक पल तड़पाना है.. ऐसा करना है की वो दोनों हमारे पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाएं.. भीख मांगें.. ऐसा करने से हमारा पक्ष मजबूत होगा.. और फिर हम अपनी मनमानी कर सकेंगे"

शीला और रेणुका बेड पर लेटे लेटे सिगरेट फूँक रही थी.. और साथ ही साथ, एक दूसरे के स्तनों से खेलते हुए बातें कर रही थी.. शीला का शर्ट नीचे कर उसका स्तन बाहर निकालकर.. उसकी निप्पल चूसते हुए रेणुका ने पूछा

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रेणुका: "अरे शीला.. उस रबर के लंड वाली औरत का क्या हुआ होगा फिर??"

शीला: "अरे हाँ यार.. वो तो अपनी कोई लेस्बियन साथी को लेकर आई थी ना.. चल उसे ढूंढते है.. !!"

रेणुका: "अरे यार.. इतनी रात को कहाँ ढूँढेंगे?? एक एक कमरे पर जाकर दस्तक तो नहीं दे सकते है ना..!! और हमारे हक के दो दो लंड बगल के कमरे में पड़े है.. तब उस रबर के लंड से चुदवाने में क्या फायदा??

शीला: "तू चिंता मत कर.. हम दोनों बिना लंड के भी मजे करेंगे.. वैसे भी आज रात हमने कितने लंड देख लिए.. चूस लिए.. और खेल भी लिए.. मुझे थोड़ी जिज्ञासा इस लिए हो रही है क्यों की वो हेमंत कह रहा था की वो रबर के लंड वाली विकृत और काफी आक्रामक है.. देखें तो सही.. वो क्या चीज है.. कुछ नया देखने और जानने को मिलेगा.. चल.. चलते है"

रेणुका: "शीला, मुझे चलने में कोई दिक्कत नहीं है.. मैं बस यही कह रही हूँ की रात के तीन बजे किसी का दरवाजा खटखटाना मुनासिब होगा?"

शीला: "वो सब तू मुझ पर छोड़ दे.. चल कपड़े पहन ले.. "

अब रेणुका के पास, शीला के साथ जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. उसने तुरंत कपड़े पहन लीये.. और तैयार हो गई..

दोनों कमरे से बाहर निकलें.. रात के तीन बज रहे थे और पूरी लॉबी में नीरव शांति थी.. चार पाँच कमरों के दरवाजे खटखटाते हुए आखिर वह दोनों अपनी मंजिल पर पहुँच ही गई..

दरवाजा खोलने वाली उस औरत ने जल्दबाजी में गाउन पहन लिया था.. और उस पारदर्शी गाउन से रबर का लंड साफ नजर आ रहा था..

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शीला को तो वो देखते ही पहचान गई.. बिना किसी संकोच या औपचारिकता के शीला कमरे के अंदर घुस गई.. रेणुका को अपने पीछे खींचते हुए..!!

फिर तीन बजे से पाँच बजे तक.. चारों औरतों ने मिलकर.. उस रबर के लंड से भरपूर चुदाई कर उसकी धज्जियां उड़ा दी.. अपने भोसड़ों की आग बुझाकर.. रेणुका और शीला चुपचाप कमरे में वापिस लौट आई.. शीला के साहस के कारण रेणुका को इस अनूठे अनुभव का आनंद मिला था और इसलिए अब वह शीला के गहरे प्रभाव के तले दब चुकी थी..

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पूरी रात की इन गतिविधियों के बाद रेणुका बेड पर लेटकर आराम करने जा ही रही थी की तब शीला ने उसका हाथ पकड़कर कहा

शीला: "चल रेणु.. मदन और राजेश के जागने से पहले हमें होटल छोड़ देनी है.. हम उनके साथ बात भी नहीं करेंगे और उन्हें बताएंगे भी नहीं"

आज की रात के अनुभव के बाद, रेणुका इतना तो जान ही गई थी की शीला की बुद्धि उससे सौ गुना ज्यादा तेज थी.. शीला के साथ निरर्थक बहस करने का कोई मतल नहीं था..

दोनों फटाफट बाथरूम में घुसी.. और एक साथ नहाने लगी.. बाहर निकलकर कपड़े पहने.. और चेक-आउट कर दोनों निकल गई.. मदन और राजेश तब अपने कमरे में खर्राटे लेकर सो रहे थे..

सुबह सात बजे राजेश की आँख खुली.. आँखें मलते हुए जब उसका दिमाग थोड़ा जागृत हुआ.. तब कल की डरावनी यादें ताज़ा हो गई.. !! और वो बेड पर स्प्रिंग की तरह उछल गया.. उसने झकझोर कर मदन को जगाया..

राजेश: "अरे यार मदन.. उठ जा यार.. चल यहाँ से जल्दी निकल जाते है.. मुझे तो यहाँ अब एक पल और रहने में भी डर लग रहा है!!"


मदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..
बहुत ही जबरदस्त अपडेट है! दोनों के पतियों की फट कर चॉप हो गई है !
शानदार लिख रहे हो भाई आप !
 

sunoanuj

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बहुत ही जबरदस्त घटना कर्म चल रहा है! अब कॉकटेल की भी पोल खुल गई शीला के सामने !

सेक्सी स्टोरी से थ्रिलर बना दिया आपने एक ही अपडेट में!
👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Ajju Landwalia

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मदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..

उस दौरान, रेणुका और शीला, बड़े ही आराम से मस्ती करते हुए गाड़ी में अपने शहर की ओर जा रहे थे.. देखते ही देखते दोनों रेणुका के घर पहुँच गए.. शीला ऑटो लेकर घर पहुंची.. तब वैशाली ऑफिस जा चुकी थी.. रेणुका और शीला के बीच.. गाड़ी में जो गुफ्तगू हुई, वो जबरदस्त थी..!!

सुबह के दस बज गए थे.. पिछली रात के संस्मरणों के बारे में सोचते हुए शीला रोजमर्रा के काम में मशरूफ़ हो गई...

दोपहर तीन बजे के करीब मदन घर पहुंचा.. उसका चेहरा इतना उदास था, जैसे कोई उसके गोटे चुराकर भाग गया हो.. !! शीला ने उसका ऐसे स्वागत किया जैसे कल रात कुछ हुआ ही न हो.. एकदम स्वाभाविक व्यवहार दिखाया उसने.. !!

मदन धीरे धीरे चलते हुए सोफ़े पर जा बैठा.. शीला उसके लिए पानी का ग्लास लेकर आई..

यहाँ आने से पहले मन ही मन मदन सोच रहा था की घर पहुंचते ही शीला उसकी बैंड बजा देगी.. पर ये तो बिल्कुल उल्टा ही हो रहा था.. !! हाथ में ग्लास थमाकर शीला कोई गीत गुनगुनाते हुए किचन में चली गई.. थोड़ी देर के बाद अदरख की खुश्बू से पता चला की अंदर मस्त मसालेदार चाय बन रही थी..

हाथ में दो बड़े चाय से भरे मग लेकर शीला बाहर आई.. एक मग मदन को दिया और मदन के करीब सोफ़े पर बैठ गई..

मदन की हालत इतनी खस्ता थी की खिड़की के बाहर अपने बरामदे में झुककर झाड़ू लगा रही कविता के लटकते बबले देखने का भी मन नहीं हो रहा था उसे..

अपनी आँखें मटकाते हुए बड़े ही शरारती अंदाज में शीला ने मदन से पूछा "कैसी रही मीटिंग?"

मदन ने जवाब नहीं दिया..

मदन को इस स्थिति में देखकर शीला बेहद खुश हुई.. सशक्त और प्रभावशाली महिलाएं अपनी शक्ति और प्रभाव को पुरुषों पर हमेशा स्थापित करना चाहती हैं.. ऐसी महिलाएं अपनी स्थिति और अधिकार को तब महसूस करती हैं, जब वे अपने पुरुषों को कमजोर या उनके दायित्वों के तले दबा हुआ देखती हैं.. ऐसे सूरत में, महिलाएं आम तौर पर पुरुषों को नियंत्रण में रखने का आनंद महसूस करती हैं, और यह शक्ति का असमान वितरण उनके आत्म-सम्मान और संतुष्टि का हिस्सा बन जाता है..!!

मदन को ओर उंगली करने के लिए उसने उसे कुहनी मारकर कविता की तरफ इशारा करते हुए कहा "वो देख.. कविता के भी उस बार्बी जैसे ही है.. बुला ले उसे आज रात को.. !! तो क्या है, की तुझे झूठ बोलकर दोबारा इतने दूर जाना नहीं पड़ेगा"

मदन: "प्लीज यार शीला.. कविता के लिए ऐसा मत बोल.. उसमें उस बेचारी का क्या दोष?"

शीला: "बात तो तेरी सही है मदन.. पर क्या करूँ?? घूम फिरकर वही सारी बातें याद आ जाती है.. कल जब रेणुका तेरा लंड चूस रही थी.. तब तेरी उत्तेजना जबरदस्त बढ़ गई थी.. मैंने अपनी आँखों से देखा है इसलिए मुकर मत जाना.. वरना मर गया आज तो.. !!"

रेणुका की बात छेड़कर शीला क्या कहना चाह रही थी इसके बारे में मदन सोचता उससे पहले शीला ने और एक बाउंड्री मार दी..

शीला: "बिना मुझ से पूछे.. तुम दोनों ने आपस में ही बीवियाँ बदलने का तय कैसे कर लिया????"

मदन: "अरे यार.. तू ही तो कहती थी.. की तुझे ग्रुप सेक्स करना है.. बी.पी. देखते हुए तू कितनी गरम हो जाती थी और ऐसी बातें किया करती थी.. !! भूल गई क्या??"

शीला: "मदन, चल अंदर चलकर बात करते है"

मदन: "नहीं.. यही पर ही ठीक है.. " मदन जानता था की अंदर बेडरूम में ले जाने का बाद शीला कुछ भी कर सकती थी.. उसे वो जोखिम लेना ही नहीं था..

चाय खत्म हो गई.. पर दोनों की गरमागरम बातें खत्म नहीं हुई.. बड़ी मुश्किल से मदन ने शीला से अपनी जान छुड़ाते हुए कहा

मदन: "मैं थोड़ी देर बाहर जाकर आता हूँ"

शीला ने उसे रोका नहीं.. और वो चला गया.. शीला सोफ़े पर बैठे बैठे आगे की रणनीति सोच रही थी तभी मदन के फोन की रिंग बजी.. जल्दबाजी में मदन फोन ले जाना ही भूल गया था.. !!

शीला ने फोन हाथ में लिया.. स्क्रीन पर रेणुका का नाम नजर आ रहा था.. शीला ने फोन उठाया और कुछ बात की.. फोन काटकर उसने राजेश को फोन लगाया..

राजेश: "हैलो भाभी जी, कैसी है आप?" बड़ी ही विनम्रता से राजेश ने कहा

शीला: "अरे वाह.. कितने भोले बन रहे हो.. इतने भोले राजेश से मुझे कोई बात नहीं करनी.. रखती हूँ" बड़ी शातिर थी शीला

राजेश: "अरे नहीं नहीं भाभी.. कहिए, क्या काम था? वो तो.. कल रात के बाद.. आप से बात करने में थोड़ा संकोच हो रहा था इसलिए.. वरना आप के सामने भला कौन भोला बनकर रहना चाहेगा.. !!"

शीला ने मुस्कुराकर कहा "अच्छा.. !!! मैं तो समझ रही थी की मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ"

राजेश: "भाभी जी, शराब जितनी पुरानी हो उतना ही ज्यादा मज़ा देती है"

शीला: "तो क्या मैं शराब हूँ? तब तो मुझ पर भी सरकार को रोक लगा देनी चाहिए"

राजेश: "खुलेआम मजे लेने पर तो वैसे भी रोक ही है ना.. फिर वो शराब हो या आप.. !! पर चुपके चुपके क्या कुछ नहीं हो सकता.. !! कल रात को ही आपने सारे नज़ारे देख लिए है"

शीला: "राजेश, एक बात कहूँ.. पर किसी को बताना मत"

राजेश: "हाँ कहिए भाभी.. "

शीला: "नहीं ऐसे नहीं.. पहले वादा करो को आप किसी को नहीं बाताओगे.. रेणुका को भी नहीं.. यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए"

राजेश: "बात क्या है भाभी? कुछ सीक्रेट है क्या? वैसे सीक्रेट बात हो या काम.. दोनों में ही मज़ा आता है.. जल्दी कहिए"

शीला: "पहले वादा करो किसी को नहीं बताओगे"

राजेश: "ठीक है, वादा करता हूँ"

शीला: "कैसे कहूँ... मुझे तो शर्म आती है.. राजेश.. कल तुम बहोत ही हार्ड थे.. तुम्हारा वो... उसकी तस्वीर मेरी आँखों के सामने से हट ही नहीं रही है"

सुनते ही राजेश का लंड ऐसे खड़ा हो गया जैसे अभी अभी वियाग्रा के साथ रेड-बुल के दो टीन पी लिए हो.. !! ऐसी उत्तेजना का अनुभव उसने इससे पहले सिर्फ एक ही बार किया था.. माउंट आबू में बियर पीने के बाद जब टॉइलेट में वैशाली ने उसे अंदर खींचकर उसका लंड पकड़ लिया था..!!

शीला: "राजेश, आप मेरे बारे में कुछ बुरा मत सोचिएगा.. आप दोनों जो अंदर अंदर स्वैपिंग करने की बात कर रहे थे.. उसके लिए रेणुका तैयार हो जाती.. शायद मैं भी तैयार हो जाती.. पर मदन कभी भी तैयार नहीं होगा.. मुझसे इतनी मोहब्बत करता है वो.. मुझे किसी और की बाहों में वो देख ही नहीं पाएगा.. !!"

राजेश: "अरे भाभी.. वो सब बातें तो हम सिर्फ मज़ाक मज़ाक में कर रहे थे.. आप उसे सिरियसली मत लीजिए.. चाहे आप हो या रेणुका.. अपने पति के दोस्त के साथ ऐसा करने की कौन भला सोचेगा??"

शीला: "सोच तो कोई भी सकता है.. कुछ भी नामुमकिन नहीं होता.. पति की जानकारी में ये करना जरूर मुश्किल है.. पर उससे छुपाकर तो हो ही सकता है"

सुनकर राजेश के होश उड़ गए "आप क्या कह रही हो भाभी????"

शीला: "प्लीज राजेश.. ये तो अच्छा हुआ की मदन अपना फोन भूल गया तो मैं उसके फोन से ये बात कह रही हूँ.. वरना मेरी ये इच्छा अधूरी ही रह जाती.. सामने से तो ऐसा कहने की मेरी हिम्मत कभी नहीं होती.. पर आज जब मौका मिल ही गया तो मैं उसे छोड़ना भी नहीं चाहती.. मुझे कहने दीजिए.. जब से मैंने तुमको इतना हार्ड होते हुए देखा है.. तब से मेरे रोम रोम में बस तुम्हारी ही याद बसी हुई है.. जो हरदम मुझे मजबूर कर रही है की उस हार्डनेस का अनुभव किए बगैर मैं रह नहीं पाऊँगी.. सिर्फ एक बार.. प्लीज मुझे चांस दो.. आई लव यू राजेश"

स्तब्ध हो गया राजेश.. !! ये क्या खेल खेल रही थी शीला उसके साथ.. !! शीला ने आई लव यु तक बोल दीया?? कोई इतनी जल्दी कैसे किसी से प्रेम कर सकता है?? शीला जबरदस्त गरम औरत थी उसमें कोई दो राय नहीं थी.. पर जैसे भी थी.. थी तो वो उसके दोस्त की बीवी.. मदन के साथ ऐसा धोखा मैं कैसे कर सकता हूँ??

धोखा..!! यह शब्द याद आते ही राजेश के दिल ने उसे एक मजबूत लात लगाकर मैदान के बाहर फेंक दिया.. धोखा देने में अब बाकी ही क्या बचा था?? और मदन भी तो रेणुका की चूत चाट ही चुका था.. !! वो भी मेरे नज़रों के सामने.. !! तो अब धोखे वाली बात के बारे में सोचने का कोई मतलब ही नहीं था.. और मैं कहाँ शीला पर कोई जबरदस्ती कर रहा हूँ?? या उसे फुसला रहा हूँ? ना ही मैं उसे कोई धोखा दे रहा हूँ.. जब वो ही सामने से चलकर आ रही है तो... !!

शीला: "क्या सोच रहे हो राजेश?? यही ना.. की मैं कितनी गिरी हुई और घटिया किस्म की औरत हूँ.. !!"

राजेश चुप ही रहा

शीला: "अब तुम मुझे घटिया समझो या गिरी हुई समझो.. पर मैं अपनी इच्छा को अधूरी छोड़ने वालों में से नहीं हूँ.. मुझे तो कल रात को ही तुम्हारा हार्ड पेनीस देखकर, उसे अंदर लेने का मन कर रहा था.. पर सच कहूँ तो मदन की मौजूदगी में.. मैं खुलकर मज़ा न ले पाती.. मुझे एकांत चाहिए.. सिर्फ तुम और मैं अकेले.. दुनिया का कोई एक ऐसा कोना जहां पर हम दोनों के अलावा और कोई न हो.. ऐसे माहोल में.. मैं मुक्त होकर तुम्हारे साथ इन्जॉय करना चाहती हूँ.. प्लीज मुझे निराश मत करना.. मैं मर रही हूँ तुम्हारी सख्ती को अपने अंदर महसूस करने के लिए.. !!"

राजेश के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे.. शीला ने तो उसे प्रपोज ही कर दिया.. !! अब क्या जवाब दें.. !!

फोन पर बात करते हुए राजेश गाड़ी ड्राइव कर रहा था.. अपने घर की ओर.. वो घर पहुंचकर रेणुका के साथ अपने संबंधों को वापिस दुरस्त करना चाहता था.. दूध फट तो चुका था.. अब उससे जितना जल्दी पनीर बना लिया जाए उतना अच्छा.. !! और इसी बीच शीला का फोन आ गया.. गाड़ी चलाते हुए उसका लंड खड़ा हो गया था.. शीला की बातों ने उसके लंड को फिर बैठने ही नहीं दिया.. ऐसा हाल हो गया की गाड़ी चलाते चलाते ही उसने अपना लंड बाहर निकाला और मूठ लगाने लगा..

राजेश: "ओह्ह भाभी.. अपना तो मेरा हाल कल रात जैसा कर दिया.."

शीला: "तो फिर आ जाओ.. मदन बाहर गया है.. घर पर कोई नहीं है"

राजेश: "और कहीं वो आ गया तो?"

शीला: "एक काम करती हूँ.. उसे फोन करके पूछ लेती हूँ.. की कब लौटने वाला है"

राजेश: "पर कैसे पूछोगी? फोन तो उसका घर पर ही है"

शीला: "जाने दो.. लगता है तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही है"

राजेश: "ऐसा नहीं है भाभी... पर.. !!!"

शीला ने नाराज होकर कहा "मदन लौट आया है" और उसने फोन काट दिया

फोन रखने के बाद शीला को अफसोस हो रहा था की आखिर वासना की बाढ़ में बहकर उसने राजेश से ऐसी बात की ही क्यों?? अब वो क्या सोचेगा मेरे बारे में??

शीला की बातों से बेहद उत्तेजित होकर.. राजेश ने रोड के किनारे गाड़ी पार्क कर दी.. और मूठ लगाते हुए अपने रुमाल में पिचकारी मार ली.. और फिर घर की ओर निकल गया

घर के गंभीर वातावरण को देखते हुए अब वहाँ किसी उत्तेजक घटना के घटने की कोई संभावना नहीं थी.. जैसा राजेश ने सोचा था.. रेणुका मुंह फुलाकर बैठी हुई थी.. और उससे बात करने के मूड में नहीं थी.. और वो स्वाभाविक भी था.. इसलिए राजेश को कोई ताज्जुब नहीं हुआ..

उस रात उन दोनों के बीच कुछ खास नहीं हुआ.. पर बगल में सो रहे दोनों के दिमाग में पिछली रात की घटनाएं घूम रही थी.. रेणुका मदन के लंड को याद कर रही थी.. जब की राजेश के दिमाग में शीला ने आज दोपहर को कही हुई बातें बार बार आ रही थी..

इस तरफ मदन और शीला के हाल भी कुछ ऐसे ही थे.. शीला पार्टी के सारे लंड याद कर रही थी.. जब की मदन के दिमाग में रेणुका का छरहरा बदन घूम रहा था..

राजेश सोते सोते सोच रहा था.. आह्ह.. आज शीला भाभी ने मेरे लंड की तारीफ की.. मुझे खुला निमंत्रण तक दे दिया.. !! याद करते ही राजेश के मुंह से एक सिसकी निकल गई.. जो बगल में लेटकर उत्तेजना से झुलस रही रेणुका ने स्पष्ट रूप से सुना.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो मन ही मन सोच रही थी की अगर कल रात पुलिस की रैड न पड़ी होती.. तो वो और शीला अपनी पहचान अंत तक छुपाने में कामयाब रहते.. और रात का पूरा लुत्फ उठा पाते.. खैर फिर जो हुआ वो कल्पनातीत था.. भला हो शीला का.. जिसने अपनी सही पहचान बताकर सबको बचा लिया.. वरना आज सब के सब जैल की सलाखों के पीछे होते.. बाप रे.. !! समाज में क्या इज्जत रह जाती.. !! हाथ में नाम और पता लिखा हुआ बोर्ड थमाकर पुलिस वाले तस्वीर खींचते और अखबार वाले उसे पहले पन्ने पर छाप देते.. !!!

इस तरफ शीला करवट लेकर अपनी निप्पल को मसल रही थी.. उससे अब यह उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. हेमंत के जवान ताजे लंड ने उसे जो मजे दीये थे.. उसे याद करते हुए वह बहोत गर्म हो गई.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा बदन बुखार से तप रहा हो.. ऊपर से, राजेश को लंड को चूसने पर जो शानदार किक मिली थी वो स्खलित होने के लिए काफी थी.. राजेश के लंड की याद आते ही शीला के भोसड़े में हवस की आग लग गई.. कुछ भी हो जाए.. एक बार तो वो लंड अंदर लेना ही है.. !! पर वो साला एक नंबर का डरपोक है.. क्या किया जाए?? मदन शहर से कहीं बाहर चला जाएँ तो फिर बढ़िया मौके का सेटिंग हो सकता है.. पर वैशाली तो घर पर ही होगी.. उसका क्या करें?? राजेश के घर पर रेणुका हर वक्त रहती थी.. ऑफिस मे पीयूष और पिंटू दोनों उसे पहचानते थे.. और यहाँ घर पर वैशाली और मदन का टेंशन.. ऊपर से.. कविता और अनुमौसी के नज़रों से बचाकर कुछ भी करना नामुमकिन सा था..

सोचते सोचते शीला अपनी चूत को कुरेदती रही.. और ऐसा सोचती रही की जैसे राजेश का लंड अंदर घुस रहा हो.. थोड़ी देर में ही उसकी चूत ने शहद टपका दिया.. और वो सो गई..

दूसरी सुबह, लगभग ग्यारह बजे के आसपास.. मदन पर राजेश का फोन आया.. दोनों ने काफी देर तक लंबी बातचीत की.. शीला बगल मे ही बैठी थी.. पर उस रात की घटना के बाद मदन की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो खड़ा होकर, शीला से दूर जाकर बात करें.. उस रात के बारे में अब तक शीला और मदन के बीच खुल कर बात हुई भी नहीं थी.. !! आखिर मदन ने "बाद में बात करते है" कहते हुए फोन रख दिया..

शीला ने कुछ पूछा नहीं.. उसने उठकर डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया.. मदन ने भी चुपचाप पालतू कुत्ते की तरह खाना खा लिया.. और शीला को बिना कुछ बताएं बाहर चला गया.. वो जितना हो सकें.. शीला के वाक्य-बाणों से दूर रहना चाहता था..

मदन ने बाहर निकलते ही राजेश को फोन किया.. और सीधा उसकी ऑफिस पहुँच गया.. पापा को देखकर वैशाली बहुत ही खुश हो गई.. काफी देर तक मदन और वैशाली की बातें चली.. बड़े ही उत्साह से वैशाली ने अपने काम के बारे मे बताया..

मदन ने राजेश की चेम्बर में प्रवेश किया.. राजेश ने बेल बजाकर प्युन को बुलाया और दो कप कॉफी मँगवाई.. और दोनों बातों में मशरूफ़ हो गए

राजेश: "मदन यार.. घर पर सब कैसा है?? मेरी तो वाट लगी पड़ी है.. !!"

मदन: "मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है.. तेरी भाभी तो मुझसे सीधे मुंह बात भी नहीं करती.. अपने ही घर में बेघर की तरह जी रहा हूँ.. बस खाना खाकर कोने में पड़ा रहता हूँ.. एक रात के मजे की इतनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ेगी ये अंदाजा नहीं था.. बहोत बड़ी गलती हो गई.. तुझे क्या लगता है?"

राजेश: "बिल्कुल सच कहा तूने यार.. पर सोच.. अगर वहाँ हमारी बीवियाँ और पुलिस न आए होते तो कितना मज़ा आता.. !!"

मदन: "वो सब तो ठीक है यार.. पर ये सोच.. हो सकता है पुलिस को अपने सूत्रों से खबर मिली हो और उन्हों ने रैड कर दी.. पर मेरा दिमाग तो यह सोचकर खराब हुआ जा रहा है की हमारी बीवियों को इस बारे में कैसे और कहाँ से पता चला?? और वो दोनों वहाँ पहुंची कैसे??"

राजेश: "तुझे क्या लगता है मदन.. हम जो कुछ भी करते है.. उसका हमारी पत्नियों को पता नहीं चलता.. !! सब पता चलता है.. अगर हम न भी बताएं तो वो हमारी हरकतों से भांप लेती है की कहीं कुछ गलत हो रहा है.. उसे ही तो औरतों की छठी इंद्रिय कहा गया है.. असल मे.. वह लोग बहुत कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते है.. "

मदन: "नहीं यार.. मैं नहीं मानता.. !!"

राजेश: "ऐसा ही होता है मदन.. तू माने या ना मानें.. हकीकत यही है.. जब तक औरतों को अपनी सलामती या इज्जत पर कोई आंच आती न दिखे.. तब तक वो सब कुछ सह लेती है.. पर उन्हें जरा सा भी शक हुआ या डर लगा की मामला बिगड़ रहा है.. वह तुरंत ही सक्रिय हो जाती है.. और फिर वो किस हद तक जा सकती है, वो तो हम दोनों ने अपनी आँखों से देख ही लिया है"

मदन: "हाँ यार.. पर ताज्जुब इस बात का है.. की वो दोनों पुलिस से भी पहले पहुँच चुके थे.. उस हिसाब से उनका नेटवर्क तो पुलिस से भी ज्यादा मजबूत हुआ.. !!"

दोनों बातें कर रहे थे उस वक्त वैशाली कॉफी के तीन कप लेकर चेम्बर के अंदर आई.. राजेश और मदन ने बड़ी ही सफाई से अपनी बात बदल दी और क्रिकेट के बारे में बातें करने लगे..

टेबल पर तीनों कप रखकर वैशाली बैठ गई.. राजेश, मदन की मौजूदगी में ही वैशाली के विशाल तंदूरस्त स्तन-युग्म को देख रहा था.. जिस तरह से वो चलकर अंदर आई.. टाइट टी-शर्ट के अंदर दबी हुई चूचियाँ तालबद्ध लय में ऊपर नीचे हो रही थी.. एक पल के लिए मदन का इमान भी डोल गया पर उसने उस घृणास्पद विचार को रोक लिया..

वैशाली: "सॉरी पापा.. मैं आप लोगों को डिस्टर्ब कर रही हूँ.. पर मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है.. !!"

मदन: "हाँ बोल न बेटा.. !!"

बाप-बेटी की बातचीत बड़े ध्यान से सुनते हुए राजेश अब भी वैशाली के कटीले बबलों को ताड़ रहा था

वैशाली: "दरअसल अभी मौसम का फोन आया था.. उसने मुझे और कविता को अर्जेंट उसके घर बुलाया है.. दो दिनों के लिए.. वो फोन पर बहोत ही रो रही थी.. !!"

राजेश: "तब तो बात जरूर बहोत गंभीर होगी.. !!"

मदन: "उसने कारण बताया या नहीं?? कुछ ज्यादा गंभीर बात हो तो हम भी चलें तुम लोगों के साथ"

वैशाली: "और तो कुछ नहीं बताया पर इतना बोली की उसके मंगेतर तरुण के बीच बहोत बड़ा प्रॉब्लेम हुआ है.. और तरुण सगाई तोड़ना चाहता है"

यह सुनकर राजेश और मदन दोनों चोंक गए

राजेश: "क्या?? ऐसे कैसे सगाई तोड़ सकता है?? कोई मज़ाक है क्या?? पर कुछ तो हुआ होगा उन दोनों के बीच... कुछ बताया मौसम ने?"

वैशाली: "वो फोन पर कुछ भी बताने को राजी नहीं है.. अब तो वहाँ जाकर ही कुछ पता चलेगा की मामले आखिर क्या है.. !!"

मदन: "ये आजकल के बच्चे भी ना.. सगाई-शादी जैसे गंभीर संबंधों को भी गुड्डे-गुड्डियों का खेल ही समझते है.. जब मर्जी की तब कर लिया.. और मन भर गया तो फेंक कर खड़े हो गए.. अरे भाई.. ऐसे थोड़े ही होता है.. !!"

राजेश: "बिल्कुल सही कहा तूने, मदन.. !! सच में.. मुझे तो अब अभी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा"

मदन: "वैशाली बेटा.. तुझे जाना ही चाहिए.. मौसम की इस स्थिति को सहेलियाँ ही बेहतर समझ सकेगी और अच्छे से हेंडल भी कर सकेगी.. माँ-बाप इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उन बेचारों पर तो आसमान टूट पड़ा होगा यह सुनकर... !!"

वैशाली: "ठीक है पापा.. मैं अभी घर को निकलती हूँ.. कविता से भी बात करनी होगी.."

मदन: "ठीक है बेटा.. "

वैशाली ने राजेश की ओर मुड़कर कहा "सर, आज का काम तो मैंने खतम कर दिया है.. अब वापिस आने में एक दो दिन लग सकते है.. तो क्या मैं जा सकती हूँ?"

राजेश: "अरे वैशाली.. यह भी कोई पूछने की बात है?? तू ऑफिस की चिंता मत कर और जा.." राजेश ने ड्रॉअर खोलकर पाँच सौ के दस नोट निकालकर वैशाली को दीये और कहा "ये साथ में रखना.. काम आएंगे"

मदन: "अरे राजेश, क्या कर रहा है यार तू.. उसे जरूरत होगी तो मुझसे ले लेगी.. तू क्यों दे रहा है??"

राजेश: "मुझे पता है की तू उसे दे ही सकता है.. पर अब एक बात समझ ले.. वैशाली को अपने पैरों पर खड़े होना होगा.. और उसमें हम सब उसकी मदद करेंगे.. वो अपनी तनख्वाह से खुद के खर्चे संभालेगी.. हाँ, उसे कभी कुछ भी ज्यादा जरूरत हुई तो हम सब है ना.. !! बाकी उसे अपने हिस्साब से ही जीने दे.. उससे उसका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ेगा... वैशाली, तुम निकलो.. वहाँ जाकर इस प्रॉब्लेम का सही कारण ढूँढने की कोशिश करना.. और पता चले तो अपने पापा को तुरंत बताना.. हो सकता है हम लोग इसमें कुछ मदद कर सकें.. "

वैशाली: "ओके सर.. थेंकस..!!" कहते हुए वैशाली उठकर चली गई.. मुड़कर जाती हुई वैशाली के मटकते नितंब देखकर राजेश की दिल मे जबरदस्त सुरसुरी सी होने लगी..

वैशाली ने बाहर निकलकर ऑटो पकड़ी और तुरंत घर पहुँच गई.. ऑटो में बैठे बैठे उसने पिंटू को सारी बात फोन पर बता दी.. धीरे धीरे पिंटू अब.. किसी और की हो चुकी कविता से ज्यादा वैशाली के प्रति अपना ध्यान केंद्रित कर रहा था.. पिंटू का टूटा हुआ दिल.. और वैशाली का बर्बाद हो चुका वैवाहिक जीवन.. दोनों एक दूजे के लिए आदर्श विकल्प थे.. पर जब जब पिंटू के दिमाग में कविता का विचार आता.. तब उसे लगता की वो कविता का स्थान और किसी को भी नहीं दे पाएगा.. यही सोचकर वो वैशाली से पर्याप्त दूरी बनाए रखता था.. एक बार तो उसे दिमाग में भी आया.. की वो भी वैशाली के साथ जाएँ.. उसी बहाने वह घर भी जा सकेगा और वैशाली के साथ कुछ समय बिताने का मौका भी मिल जाएगा.. पर जैसे ही उसे पता चला की वैशाली तो कविता के साथ जा रही है.. उसने वो प्लान केन्सल कर दिया.. !!

वैशाली घर पहुंची.. शीला घर पर अकेली थी.. वैशाली को इतना जल्दी घर आया देख उसे ताज्जुब हुआ..

शीला: "क्या हुआ बेटा?? तबीयत तो ठीक है ना तेरी??"

वैशाली: "मम्मी, मुझे कुछ नहीं हुआ है.. तुम कविता को यहाँ बुलाओ.. मुझे काम है उसका.."

शीला: "अरे पर हुआ क्या? क्या काम है उसका? तू ही क्यों नहीं चली जाती उसके घर? सब ठीक तो है ना??"

वैशाली: "कुछ भी ठीक नहीं है मम्मी.. मौसम का फोन था.. तरुण सगाई तोड़ना चाहता है.. बहुत रो रही थी बेचारी.. मुझे और कविता को वहाँ बुला रही है"

शीला स्तब्ध होकर बोली "क्या??? ऐसा कैसे हो सकता है? अभी पंद्रह दिन ही तो हुए है सगाई को.. !!"

वैशाली: "पता नहीं मम्मी.. शायद कविता को कुछ पता हो इसके बारे में.. मौसम ने इतना ही कहा की मैं उसकी दीदी को लेकर तुरंत वहाँ आ जाऊ"

शीला गहरी सोच में पड़ गई.. ऐसा तो क्या हो गया अचानक??

शीला ने फोन करके कविता को बुलाया.. कविता तुरंत आ गई.. उसे तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था.. वो तो बेचारी सुनकर ही फुट फुटकर रोने लगी..

शीला और वैशाली ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया और पानी पिलाया

शीला: "हिम्मत रख कविता.. जो होना था सो हो गया.. अच्छा हुआ की शादी से पहली ही हो गया.. वरना मौसम का हाल भी मेरी वैशाली जैसा हो जाता.. !!" और फिर अचानक शीला को याद आया और उसने वैशाली की ओर मुड़ कर देखा और कहा "अरे हाँ बेटा.. देख ये नोटिस आई है.. २५ तारीख को कोर्ट में सुनवाई है.. तुझे अपने पापा के साथ जाना है.. उससे पहले एक बार देसाई अंकल से मिल लेना"

वैशाली: "२५ तारीख को अभी बहोत देर है मम्मी.. फिलहाल मौसम को संभालना बहोत जरूरी है.. मैं सोच रही हूँ की मैं और कविता वहाँ चले जाते है"

शीला: "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है बेटा.. पर तुम दोनों अकेले कैसे जाओगी?"

वैशाली: "क्या मम्मी तुम भी!! दकियानूसी बातें कर रही हो.. हम अपने आप को संभाल सकती है.. "

शीला: "एक बार पापा से पूछ ले"

वैशाली: "मैंने उनसे पूछ लिया है.. वो ऑफिस पर ही थे.. उनसे भी पूछ लिया और राजेश सर की भी पर्मिशन ले ली है.. दोनों ने कहा की मुझे जाना चाहिए"

अब शीला के पास और कोई बहाना नहीं था.. वो बोली "ठीक है.. पर संभाल कर जाना.. ज़माना बहोत खराब है"

कविता उदास होकर घर चली गई.. जब वो आई तब उछलती हुई आई थी.. और जब जा रही थी तब उसके पैरों में से जान ही निकल गई थी

कविता ने घर आकर रोते हुए सारी बात अनुमौसी को बताई.. सुनकर मौसी का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया

अनुमौसी: "उस नालायक में हमारी मौसम को संभालने की ताकत ही नहीं होगी.. वरना क्या कमी है मौसम में?? वही लायक नहीं था मौसम के.."

शाम को पीयूष घर लौटा.. वो पूरा दिन ऑफिस के काम के सिलसिले में बाहर था इसलिए उसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था.. जब कविता ने उसे सारी बात बताई तब वो भी बेहद चोंक गया.. एक पल के लिए तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ..

थोड़ी देर सोचकर पीयूष ने कहा "कल हम दोनों तेरे घर चलते है.. मैं तरुण को समझाऊँगा.. वो पढ़ा लिखा है.. शायद मेरी बात मान जाए.. वैसे मौसम ने तुझे कब बताया इस बारे में? फोन किया था उसने तुझे?"

कविता: "मुझे नहीं.. वैशाली को फोन किया था"

पीयूष: "वैशाली को क्यों फोन किया?? तुझे नहीं कर सकती थी?"

अनुमौसी: "अरे बेटा.. वैशाली को फोन किया हो या कविता को.. क्या फरक पड़ता है?? शायद वो बेचारी कविता को सदमा पहुंचाना न चाहती हो इसलिए वैशाली को फोन किया होगा.. अब तू और कविता वहाँ जाओ.. और हो सके तो उस गधे के बच्चे को समझाओ.. और ना समझे तो कान पकड़कर मेरे पास लेकर आना.. दो चपेड़ लगाकर सीधा कर दूँगी उसे.. !!"

उस रात को बेडरूम में कविता और पीयूष के बीच तरुण और मौसम को लेकर काफी चर्चा हुई.. पीयूष ने मौसम को फोन भी लगाया पर वो बात करने की स्थिति में नहीं थी.. मौसम की माँ, रमिला बहन ने रोते रोते बस इतना ही कहा.. की मौसम ने खाना पीना सब छोड़ दिया है.. बस पूरा दिन रोती रहती है..

वैशाली, कविता और पीयूष दूसरी सुबह बस से मौसम के घर पहुँच गए.. कविता को देखते ही मौसम उसके गले मिलकर बहोत रोई.. पीयूष भी मौसम को गले लगकर सांत्वना देना चाहता था पर माहोल की गंभीरता देखते हुए उसे ऐसा करना योग्य नहीं लगा.. एकाध घंटे के बाद.. सब रोना धोना खत्म करके सब नॉर्मल हुआ.. कविता ने अपनी माँ और मौसम को हिम्मत देकर शांत किया..

शाम को पाँच बजे पीयूष चाय पीने के बहाने बाहर निकला.. तब वैशाली, मौसम और फाल्गुनी, कमरे में बैठकर बातें कर रही थी.. पीयूष का दिल कर रहा था की वो मौसम को भी बाहर ले जाए और प्यारे से सब पूछे.. पर ये मुमकिन न था..

चाय की टपरी पर बैठे बैठे पीयूष बड़ी ही गंभीरता से सोच रहा था.. ऐसा तो क्या हुआ होगा तरुण और मौसम के बीच?? मौसम को पाकर तो तरुण धन्य हो जाना चाहिए था.. कुछ तो कारण होगा.. और उस कारण को जानना बेहद ही जरूरी था..

चाय पीने के बाद सोचते सोचते चलता हुआ पीयूष.. बस अड्डे पर पहुँच गया.. सामने ही बस पड़ी थी.. जिस पर उस शहर का नाम लिखा था जहां तरुण रहता था.. थोड़ा सा सोचकर पीयूष उस बस में चढ़ गया.. !!!

बस की सीट पर बैठते ही पीयूष ने कविता को फोन लगाया

पीयूष: "मैं तरुण से मिलने जा रहा हूँ.. किसी को बताना मत.. कोई मेरे बारे में पूछे तो बताना की कंपनी का अर्जेंट काम निकल गया इसलिए गया है और कल तक लौट आएगा.. वैसे मौसम ने कुछ बताया?? "

कविता: "नहीं यार.. वो तो उस बारे में कुछ बोल ही नहीं रही.. एक ही रट लगाए बैठी है.. की उन दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.. अरे, दोनों के बीच परसों आधी रात तक बात भी हुई थी.. और फिर अचानक क्या हो गया.. दूसरे दिन सुबह दस बजे फोन करके उसने रिश्ता तोड़ दिया"

पीयूष: "ठीक है.. मैं जाकर खुद पूछता हूँ.. तब तक तुम दोनों मौसम और मम्मी जी को संभालना"

कविता: "ओके.. संभलकर जाना"

पीयूष ने फोन रख दिया.. 2 घंटे के सफर के बाद पीयूष तरुण के शहर पहुंचा.. उसने तरुण को फोन लगाया.. तरुण को उसके फोन से कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. उसने पीयूष को एक रेस्टोरेंट का पता दिया और वहाँ पहुँचने के लिए कहा

ढूंढते ढूंढते एक घंटे के बाद पीयूष उस बताए हुए पते पर पहुंचा..

वहाँ एक टेबल पर बैठे तरुण को देखते ही वो उसके पास पहुंचा.. और खड़े खड़े ही सवाल जवाब शुरू कर दीये

पीयूष: "तरुण, ये मैं क्या सुन रहा हूँ?" पीयूष की आवाज में आश्चर्य, मायूसी और क्रोध का मिश्रण था

तरुण ने जवाब नहीं दिया..

पीयूष: "देख तरुण.. तो इतना पढ़ा लिखा है.. मैं ना तो तुझे कोई सलाह या मशवरा दूंगा या फिर ना ही तुझे अपना निर्णय बदलने के लिए फोर्स करूंगा.. अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद से करने का तुझे पूरा हक है.. मैं तो बस सगाई तोड़ने का कारण जानने के लिए आया हूँ.."

तरुण: "पीयूष भैया.. कुछ बातें ऐसी होती है जिसकी चर्चा करने से केवल नफरत और घृणा ही बढ़ती है.. और मैं नहीं चाहता की मैं आप से ऐसी कोई बात करूँ जिसे किसी की ज़िंदगी तबाह हो जाए.. "

पीयूष: "तू मुझे खुलकर बता सकता है.. यकीन मान.. तू जो भी बताएगा वह बात सिर्फ मुझ तक ही रहेगी.. अगर तेरी इच्छा न हो तो असली कारण में किसी को नहीं बताऊँगा.. कोई और ही कारण बताकर सब को मना लूँगा.. सिर्फ यही जानने के लिए मैं इतनी दूर आया हूँ.. इतना तो मुझे जानने का हक है ना.. !!"

तरुण: "अब अगर आप सुनना ही चाहते है तो सुनिए.. !! आपके ससुराल के सभी पात्र चारित्रहीन है.. !!"

सुनकर पीयूष के पैरों तले से धरती खिसक गई.. कहीं ऐसे मेरे और मौसम के संबंधों के बारे में तो नहीं पता चल गया.. !! अपने चेहरे के डर को बड़ी मुश्किल से छुपाते हुए पीयूष ने चकित होने के भाव धारण करते हुए कहा

पीयूष: "क्या बात कर रहा है तू तरुण?? मेरी शादी को इतना समय हो गया पर मुझे तो कभी कुछ ऐसा महसूस नहीं हुआ.. !!"

तरुण: "अब मुझे जो जानने मिला है.. उसे बताने के लिए मेरी जुबान नहीं चलेगी.. इसलिए सारी बातें मैं इस कागज पर लिखकर लाया हूँ" कहते हुए तरुण ने एक फोल्ड किया हुआ कागज पीयूष के हाथ में थमा दिया..

खोलकर पढ़ते ही पीयूष के होश उड गए.. !!!!! अब आगे कुछ भी बोलने-पूछने की आवश्यकता नहीं थी.. वो तरुण से हाथ मिलाकर खड़ा हो गया.. तरुण ने काफी आग्रह किया की वो कुछ खाकर जाए.. पर अब पीयूष के गले से एक निवाला तक उतरना मुमकिन नही था..

जाते जाते पीयूष ने तरुण के कंधे पर हाथ रखकर कहा "तरुण, तेरी और मौसम की जोड़ी बहोत प्यारी लगती है.. किसी और के गुनाह की सजा तू मौसम को दे, ये किस हद तक लाज़मी है?? जो कुछ तुझे जानने को मिला है वह सच ही होगा ऐसा मैं मानता हूँ.. पर इसमें मौसम बेचारी की क्या गलती??"

तरुण: "पीयूष भैया.. परिवार में कुछ भी ऊपर-नीचे या उल्टा-सुलटा हो तो उसका असर सारे सदस्यों पर पड़ता ही है.. ये तो आप भी मानेंगे.. मौसम का दोष सिर्फ इतना ही है की वो ऐसे परिवार की सदस्य है.. आप से हाथ जोड़कर विनती है की मुझे मनाने की कोशिश बिल्कुल मत करना.. मेरे मम्मी-पापा और परिवार के बाकी लोग अब इस रिश्ते के खिलाफ है.. और उन सब को नाराज कर मैं भी सुखी नहीं रह पाऊँगा.. मेरी और से आप मौसम से माफी मांग लेना.. और कहना की तरुण ने तुझे आगे की ज़िंदगी के लिए "ऑल ध बेस्ट" क यहा है.. और अब तरुण तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं है और न कभी होगा.. शायद मौसम मेरी किस्मत में ही नहीं थी.. अब इस बारे में, मैं और बात नहीं करना चाहता भैया.. प्लीज..!!" कहते हुए नम आँखों के साथ तरुण खड़ा होकर रेस्टोरेंट से चला गया.. !!!!

पीयूष स्तब्ध होकर तरुण को जाते हुए देखता रहा.. मायूस होकर वह ऑटो से बस स्टेशन पहुंचा.. अगली बस रात के दस बजे थी.. डॉ घंटों की देरी थी.. अब अनजान शहर मे इतना वक्त खाली बैठे क्या करेगा.. !! बहुत जोरों की भूख लगी थी.. केंटीन में बैठकर उसने भरपेट खाना खाया और फिर बुक-स्टॉल से एक अखबार और एक बुक खरीदकर बैठे बैठे बस का इंतज़ार करने लगा

तभी कविता का फोन आया

फोन उठाकर पीयूष ने कहा "हाँ कविता.. मैं वापिस आ रहा हूँ"

कविता: "मिल भी लिया और बात भी हो गई??"

पीयूष: "हाँ मिल लिया मैंने तरुण से"

कविता: "पाज़िटिव या नेगटिव?" कविता ने इशारे से पूछा

पीयूष ने गहरी सांस छोड़कर कहा "नेगटिव" सच कहने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. आज नहीं तो कल सच सामने आने ही वाला था.. फिर उससे मुंह छुपाकर क्या फायदा.. !!

कविता का मुंह लटक गया.. वो देखकर ही वैशाली समझ गई की पीयूष की मुलाकात का नतीजा क्या निकला होगा.. आदमी का चेहरा ही सब से बेहतरीन आईना होता है.. खुशी, नफरत, गुस्सा, प्रेम या गंभीरता.. इंसान के अंदर के भावों को निष्कर्ष बड़ी खूबी से बता देता है चेहरा.. !! अच्छा हुआ उस वक्त मौसम या उसकी माँ वहाँ मौजूद नहीं थे..

कविता ने आगे कुछ पूछा नहीं और कहा "बस स्टेंड पर उतरकर मुझे फोन करना.. मैं पापा को लेने भेज दूँगी.. आधी रात को तुझे ऑटो नहीं मिलेगा"

पीयूष: "मुझे एक बज जाएगा पहुंचते पहुंचते.. !!"

कविता: "हाँ ठीक है.. तूने खाना खाया?"

पीयूष: "हाँ खा लिया है.. तू मेरी चिंता मत कर..!!"

बस का समय होते ही पीयूष बैठ गया.. और पूरे दिन की थकान के कारण सो गया.. आँख खुली तो स्टेशन आ गया था.. रात का एक बजा था.. और पीयूष कविता को डिस्टर्ब करना नहीं चाहता था.. घर जाकर मौसम को कैसे सांझाए यह सोचते सोचते वो कविता के घर की तरफ चल दिया.. जिस तरुण के लेकर पीयूष के मन में बेहद ईर्ष्या थी.. उसी तरुण पर आज उसे सहानुभूति हो रही थी.. !!

मन की भावनाएं बड़ी विचित्र होती है... कब किसी के लिए कौनसे जज़्बात पैदा हो जाए.. कहा नहीं जा सकता.. फिर वो एक तरफा प्रेम हो.. या नफरत.. ईर्ष्या हो या क्रोध.. !!

सोचते सोचते आधे घंटे बाद वो घर पहुँच गया.. उसने डोरबेल बजाई.. थोड़ी देर के बाद कविता ने दरवाजा खोला.. घर पर सब सो चुके थे

कविता: "तूने फोन क्यों नहीं किया?"

पीयूष: "बेकार में सबके नींद खराब होती.. और वैसे स्टेशन उतना दूर भी नहीं है.. चलते चलते पहुँच गया"

पानी पीने के बाद पीयूष ने कविता को बताया की तरुण का पूरा परिवार अब इस रिश्ते को रखना नहीं चाहता था.. प्रॉब्लेम सिर्फ तरुण और मौसम के बीच होता तो शायद सुलझ भी जाता.. पर बात अब बहोत आगे बढ़ चुकी थी

चोंक उठी कविता ने कहा "अरे पर अचानक बात यहाँ तक कैसे पहुँच गई? दो दिन पहले तक तो सब ठीक था.. वजह बताई की नहीं तरुण ने?"

पीयूष: "हम्म.. न.. नहीं.. कुछ नही बताया" इतने समय से साथ रह रही कविता समझ गई की पीयूष सच नहीं बोल रहा था.. या शायद बोल नहीं पा रहा था.. हो सकता है की पीयूष अभी न बताना चाहता हो.. पर जब दोनों अकेले बेडरूम में होंगे तब वह सच बता ही देगा.. अभी फिलहाल उस पर जबरदस्ती करने का कोई मतलब नहीं था..

कविता: "जो हो गया सो हो गया.. अभी बात करने से हकीकत बदल तो नहीं जाएगी.. !! तू थक गया होगा.. हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जा.. मैं खाना लगाती हूँ.. !!

पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.. कविता ने खाने की थाली लगा दी.. और अंदर रोटियाँ बेलने लगी.. तभी मौसम ऊपर से उतरकर नीचे आई और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..

जंग में हारे हुए योद्धा जैसा पीयूष.. मौसम से नजरें नहीं मिला पा रहा था.. बात को बदलने के इरादे से पीयूष ने कहा

पीयूष: "ओ हाय बेबी.. अभी भी जाग रही? नींद नहीं आ रही?"

मौसम ने उदास होकर कहा "कैसी नींद जीजू.. !!"

रोटी का गरम फुल्का लेकर कविता ने पीयूष की प्लेट में रखते हुए कहा " देख मौसम.. तू कितनी भी चिंता कर ले.. कितना भी जाग ले.. इस समस्या का हल अभी तो मिलने नहीं वाला.. चिंता होना जायज है पर चिंता किसी भी प्रॉब्लेम का हल नहीं है.. और मान ले की यह रिश्ता सच में हमेशा के लिए टूट जाता है.. तो इससे तेरी ज़िंदगी रुक थोड़ी न जाएगी??"

पीयूष: "मौसम.. किसी प्रॉब्लेम का जब हल न हो तो उसे वास्तविकता समझ कर स्वीकार लेना चाहिए.. तुझे यह मान लेना होगा की तरुण अब तेरे जीवन का हिस्सा नहीं है.. सदमा लगना स्वाभाविक है.. यह मैं समझ सकता हूँ.. पर अब तुझे ही तय करना है की इस बात को पकड़कर तू हमेशा के लिए दुखी रहना चाहती है या सब कुछ भूलकर आगे बढ़ना चाहती है.. !!"

मौसम: "जीजू.. मैंने तो हकीकत का स्वीकार कर ही लिया है.. की तरुण अब मेरा नहीं है.. मुझे तो सिर्फ यह जानना है की उसे ऐसा कदम आखिर क्यों उठाना पड़ा?? मैं क्या इतनी गई-गुजरी हुई जो वो मुझे बिना कोई वजह बताएं ही रिश्ता तोड़ दें??"

कविता: "वक्त आने पर सब पता चलेगा मौसम.. तू चिंता मत कर.. सच हमेशा सामने आ ही जाता है.. हो सकता है.. तरुण के साथ ही कोई प्रॉब्लेम हुई हो.. जो वो तुझे बता न पा रहा हो"

सुनकर मौसम का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ.. उसे बस यही जानना था की तरुण के इस कदम के पीछे असली कारण क्या था

मौसम: "जीजू.. मैं यहाँ के वातावरण से तंग आ गई हूँ.. मैं कुछ दिन आपके यहाँ आकर रहना चाहती हूँ.. ताकि मेरे दिमाग से तरुण के विचारों को हटा सकूँ.. यहाँ रहूँगी तो पूरा दिन उसी के बारे में सोचती रहूँगी.. ऊपर से मम्मी का उदास चेहरा मुझसे देखा नहीं जाता.. प्लीज दीदी.. कल हम जितना हो सकें उतना जल्दी निकल जाते है यहाँ से.. !!"

पीयूष: "हाँ हाँ.. क्यों नहीं.. वैसा ही करेंगे.. दरअसल मैं सामने से तुझे यह कहने ही वाला था.. तू हमारे साथ चल.. सब ठीक हो जाएगा.. हम सब है ना तेरे साथ.. फिर किस बात की फिक्र.. !!"

मौसम: "ओके जीजू.. थेंकस.. गुड नाइट"

इतना कहते ही मौसम को फिर से रोना आ गया.. और वो भागकर अपने कमरे की और चली गई.. जाते जाते उसके रोने की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी..

कविता: "पीयूष, अब मुझे तो बता.. !! तरुण ने आखिर सगाई क्यों तोड़ दी??" सीधा सवाल किया कविता ने

पीयूष सोच में पड़ गया.. अब क्या बताएं कविता को?

पीयूष: "कविता, जब किसी बात को निकालने पर काफी सारे लोगों का अहित होना हो.. तब उसे न निकालना ही बेहतर होगा.. चल.. कल जल्दी उठना है.. सो जाते है.. सुबह ६ बजे की बस से निकल जाएंगे"

थोड़े घंटों की नींद लेने के बाद.. कविता, वैशाली, मौसम और पीयूष जाने के लिए तैयार हो गए.. सुबोधकांत उन्हें बस स्टेशन तक छोड़ने आए.. पहली बस मे काफी भीड़ थी.. इसलिए दूसरी बस की राह देखने लगी.. दूसरी बस का भी वही हाल था.. आखिर सुबोधकांत ने सब को अपनी गाड़ी में ही छोड़ आने का फैसला किया

कार तेजी से सड़क पर चल रही थी और उतनी ही तेजी से कविता और मौसम के दिमाग में विचार भी चल रहे थे.. गाड़ी चलाते हुए सुबोधकांत एकदम खामोश थे..

२ घंटों के सफर के बाद वो लोग पहुँच गए.. घर के अंदर घुसते ही मौसम अनुमौसी से गले मिलकर रोने लगी.. अनुमौसी ने अपने अनुभवयुक्त शब्दों से उसे सांत्वना दी..

मौसम कविता की मदद करने किचन में गई.. उस दौरान कविता ने उसे तरुण के बारे में.. उनके संबंधों के बारे में काफी कुछ पूछा.. पर उसे ऐसी कोई हिंट न मिली जिससे की वो किसी बात का अंदाजा लगा पाती

दोपहर के बाद पीयूष ऑफिस चला गया.. काम भी देखना जरूरी था..

थोड़ी देर के बाद, शीला और मदन भी मौसी के घर आ गए.. सुबोधकांत से मिलकर दोनों उनके साथ बैठे.. सुबोधकांत ने मौसम और तरुण की सगाई टूटने के बारे में बताया.. जिसके बारे में वह दोनों पहले से ही जानते थे.. थोड़ी देर की बातों के बाद.. सब एकदम चुपचाप बैठे थे

कविता और मौसम चाय लेकर आए..

चाय एक घूंट में खत्म करते ही.. सुबोधकांत ने अपनी घड़ी की ओर देखकर कहा "अब मुझे निकलना चाहिए"

कविता: "पापा, दोपहर तो हो ही चुकी है.. आप खाना खाकर ही जाइए"

सुबोधकांत: "नहीं बेटा.. अचानक यहाँ आना हुआ इसलिए मेरे कई काम रुकें पड़े है.. मुझे जाना ही होगा.. " बार बार अपनी घड़ी की ओर देख रहें सुबोधकांत तो कविता ने और नहीं रोका

अचानक शीला की नजर सुबोधकांत की गोल्डन केस वाली राडो घड़ी पर गई.. और ध्यान से देखते ही उसकी सांसें थम गई.. !!!

याद आते ही बेहद चोंक गई शीला.. अरे बाप रे... ये तो कॉकटेल है.. !! बिल्कुल यही घड़ी कॉकटेल ने भी पहन रखी थी.. ध्यान से देखने पर सुबोधकांत का शरीर, बोल-चाल सब कुछ कॉकटेल से मेल खा रहा था.. उसका लंड भी जाना-पहचाना सा क्यों लग रहा था वो अब पता चला शीला को.. सुबोधकांत के घर के गराज में एक बार चूस चुकी थी उनका लंड.. इसीलिए जब होटल में वह लंड दोबारा देखा तब हल्की सी भनक तो लगी थी पर याद नहीं आ रहा था.. !! शीला के पूरे बदन में झनझनाहट से छा गई.. हाँ, वो कॉकटेल ही था.. जिसका लंड मैंने और रेणुका दोनों ने दिल खोल कर चूसा था.. हे भगवान.. कहीं सुबोधकांत ने हमें पहचान तो नहीं लिया होगा.. !!!


मदन को वहीं बैठा छोड़कर शीला घबराकर घर वापिस आ गई..

Bahut hi shandar update he vakharia Bhai,

Mausam aur piyush ki sagai tut jaane ka dukh hua......

Sahyad piyush ko subodhkant aur falguni ke rishte ka pata chal gaya

Ya fir use kisi tarah hotel ki riad me subodhkant ke pakde jaane ka pata chal gaya...........

Sheel ne cocktail yaani subodhkant ko ghadi ke dwara pehchan liya.......

Keep rocking Bro
 

Dirty_mind

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रूखी मदन के लौङे पर उछलते हुए
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Sanju@

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राजेश सर की इनोवा में, कविता, पिंटू, वैशाली और पीयूष बैठे हुए थे.. पीयूष के दोस्त की कार में मदन, शीला, रेणुका और राजेश थे.. !!

पूरे रास्ते में सब ने बातें करते हुए बहोत मजे किए.. ये ट्रिप, वैशाली के लिए बड़ी ही यादगार थी.. पिंटू से करीबी होते ही वो संजय की कड़वी यादों को भुला रही थी..

मदन और राजेश की बीच भी अच्छी मित्रता हो गई थी.. रात को हाइवे की एक होटल में डिनर के लिए जब दोनों गाड़ियां रुकी.. तब शीला को अपने दामाद संजय और हाफ़िज़ के संग गुजारे हनीमून की याद आ गई.. संजय, हाफ़िज़, जॉन और चार्ली की याद आते ही शीला का भोसड़ा चुनमुनाने लगा..

सब लोग रेस्टोरेंट की तरफ जा रहे थे तब शीला, रेणुका को लेकर टॉइलेट की तरफ गई.. शीला और रेणुका तो पहले से ही बहोत अच्छी सखियाँ थी.. बाथरूम की तरफ जाते हुए, शीला ने अपनी बातों से रेणुका को भी बेहद गरम कर दिया.. उसने गोवा की ट्रिप के बारे में बताया.. पर ये नहीं बताया की वो अपने दामाद के साथ गई थी.. गोवा में कैसे उसने अंग्रेज जॉन का लंड लिया था.. रास्ते में कैसे कार के ड्राइवर ने उसके बबले दबाए थे.. और फिर ऐसी ही एक होटल के बाहर.. अंधेरे में कैसे उसने बाहर चुदवाया था..

मिर्च-मसाला लगाकर उसने सारी बातें रेणुका को बताई.. रेणुका की हालत खराब हो गई, ये सब सुनकर.. !! उसकी दोनों आँखों से हवस टपकने लगी.. !! शीला देखकर ही समझ गई की रेणुका को लंड की भूख सता रही थी.. टॉइलेट में दोनों अलग अलग क्यूबिकल में पेशाब करके बाहर निकली.. वॉशबेज़ीन में रेणुका जब झुककर अपने हाथ धो रही थी.. तब उसके पल्लू के नीचे से.. काँखों की बगल में.. उसके स्तन लटकते हुए नजर आने लगे..

लेडीज टॉइलेट में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था.. शीला भी बहोत उत्तेजित थी.. वो रेणुका के पीछे खड़ी हो गई और अपनी चूत को उसके चूतड़ों पर दबाकर.. दोनों हाथ आगे ले गई.. और उसके दोनों स्तनों को ब्लाउस के अंदर हाथ डालते हुए सख्ती से पकड़ लिए..!! और उसकी निप्पलों को मसलते हुए, मर्द की तरह धक्के लगाने लगी..

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अपने हाथ धोकर, रेणुका खड़ी हुई और हाथ पोंछे तब तक शीला उसकी गर्दन पर जीभ फेरते हुए चाटकर उसे उत्तेजित करने लगी थी.. वो शीला की तरफ मुड़ी.. और उसके गदराए जिस्म को बाहों मे भरकर उसके होंठों पर रेणुका ने एक उत्तेजक चुंबन कर दिया... शीला के आवेग भरे आक्रमण के आगे रेणुका ज्यादा देर तक खुद को संभाल नहीं पाई.. और शीला के थूक को चाटते चाटते वो अपनी जीभ को अंदर डाल डालकर चूसने लगी.. दोनों के बड़े बड़े स्तन, एकाकार हो गए थे.. !!

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रेणुका: "यार, पहले तो तूने मुझे अपनी बातों से गरम कर दिया.. और अब अपनी इन हरकतों से बेकाबू कर रही है.. !! इरादा क्या है तेरा शीला?? तुझे पता तो है की यहाँ पर कुछ भी ज्यादा कर पाना मुमकिन नहीं है.. !! फिर क्यों उकसा रही है मुझे??"

रेणुका के दोनों बबलों को हाथों से मसलते हुए शीला ने कहा "यार, मुझसे रहा ही नहीं गया.. तू अपने आप पर काबू कर सकती है.. पर मुझे तो एक बार लंड की तलब लग जाएँ फिर मैं कंट्रोल नहीं कर सकती.. मुझे लंड चाहिए ही चाहिए.. !! कैसे भी करके मुझे चुदवाना पड़ेगा.. !! देख तो.. नीचे क्या हालत हो रही है यार.. !!" रेणुका का हाथ पकड़कर अपने घाघरे के नीचे डालते हुए.. पेन्टी के अंदर.. अपनी रस से लसलसित भोसड़े पर दबा दिया..

रेणुका: "हाँ यार.. नीचे तो बवाल मचा हुआ है तेरे.. मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही हो रहा है.. पर अब क्या करें?? यहाँ लंड कहाँ से लाएं??"

शीला: "अब तो और क्या हो सकता है.. !! तू तो घर जाकर.. बड़ी मस्ती से... टांगें फैलाकर.. राजेश के लंड से मस्त होकर चुदवा लेगी.. मुझे तो वैशाली के कारण बहोत कंट्रोल में रहना पड़ता है.. अपने आप को रोकते हुए चुदवाना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता.. अपनी आवाज को रोककर रखना पड़ता है.. कहीं वैशाली सुन न ले.. ऐसे में कहाँ मज़ा आएगा..!! एक काम करते है रेणु.. !!"

शीला के रसद्रवित भोसड़े में तीन तीन उँगलियाँ एक साथ अंदर बाहर करते हुए रेणुका ने कहा "हाँ हाँ .. बोल ना.. !!"


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"खाना खाकर.. जब हम वापिस गाड़ी में बैठें.. तब तू पहले से ही राजेश के साथ आगे बैठ जाना.. मैं मदन के साथ पीछे बैठ जाऊँगी.. अंदर तो ले नहीं पाऊँगी.. पर मदन के हाथों मूठ मरवा लूँगी.. !! वो बॉल दबाते दबाते उंगली डालेगा तो मैं जल्दी फ्रेश हो जाऊँगी.. जब पूरी थाली नसीब न हो तब नाश्ते से ही काम चलाना पड़ता है..!!"

रेणुका: "कार में?? राजेश की मौजूदगी में तुझे शर्म नहीं आएगी??"

शीला: "उसका सारा ध्यान तो ड्राइविंग में ही होगा.. तुझे एक और काम करना होगा.. पास बैठे बैठे.. तू राजेश के साथ छेड़खानियाँ करती रहना.. मर्दों को ऐसा सब बहोत पसंद होता है.. तू चुपके से अंधेरे में उसके लंड पर हाथ रखकर सहलाते रहना.. उसका ध्यान फिर कहीं और भटकेगा ही नहीं.. और तुम दोनों की हरकतें देखकर, फिर हम दोनों शुरू हो जाएंगे.. !! जब हमाम में सब नंगे हो फिर भला शर्म कैसी??"

रेणुका: "साली, तू एक नंबर की शातिर है.. !!"

शीला: "और हाँ.. सिर्फ ऊपर ऊपर से ही मत सहलाना.. चैन खोलकर बाहर भी निकालना.. मैं भी तो देखूँ.. किस लंड से तू रोज चुदवाती है.. इसी बहाने राजेश का लंड देखने मिल जाएगा"

रेणुका: "सिर्फ देखने में क्या मज़ा आएगा तुझे.. !! मेरे पति का लंड देखकर तुझे कहाँ संतोष होने वाला है.. !! ये तो ऐसी चीज है जिसे देखकर बेचैनी और बढ़ जाती है.. शीला, अगर सही में मजे करने हो तो.. तू राजेश के साथ बैठ और मैं मदन के साथ बैठती हूँ.. जस्ट फॉर चेंज.. मज़ा आएगा"

हवसखोर शीला, रेणुका की यह बात सुनकर एकदम बेकाबू हो गई

"ओह्ह रेणुका.. ये तूने क्या कह दिया??? मेरा और मदन का बहोत पुराना सपना है.. पार्टनर बदल कर सेक्स करने का.. पर वो आज तक पूरा नहीं हुआ है.." शीला ने सिसकते हुए कहा.. रेणुका के हाथ को अपने भोसड़े पर और सख्ती से दबा दिया उसने

रेणुका: "क्या सच में?? हम दोनों भी ऐसे मौके की तलाश में है.. असल में.. राजेश के कॉन्टेक्ट में एक कपल है.. जो पार्टनर चेंज करने के लिए राजी है.. पर वो लोग बहोत घबरा रहे है.. इसलिए अबतक मिलना नहीं हुआ.. वेबसाइट पर कॉन्टेक्ट हुआ है.. वो लोग रोज मेसेज भेजते है.. राजेश बता रहा था की उस वेबसाइट पर ऐसे पचास से ज्यादा जोड़ों का ग्रुप है.. जो आपस में पार्टनर बदलते रहते है.. यार, मुझे तो सुनकर ही ऐसा मज़ा आ गया था.. पर अब तक कुछ हो नहीं पाया यार.. !!"

शीला: "ओह्ह रेणुका.. तू ऐसी सब बातें मत कर.. आह्ह.. तू एक काम कर.. राजेश को कोने में ले जाकर बता दे.. की वो मेरे साथ ही बैठें.. और वो निःसंकोच होकर मेरे बबले दबाएं.. और उसे जो मर्जी कर्रे मेरे साथ.. मुझे बुरा नहीं लगेगा.. मैं मदन को तैयार करती हूँ.. हम कार में ही पार्टनर बदल लेते है.. मस्त सेटिंग हो जाएगा.. !! अगर राजेश भी मेरे और मदन जैसा खुले विचारों वाला हो तो.. हम एक कमरे में ही ग्रुप सेक्स का सेटिंग कर सकते है.. "

रेणुका: "हाँ यार.. राजेश को वैसे तो कोई प्रॉब्लेम नहीं होना चाहिए.. तभी तो वो उस वेबसाइट पर कपल ढूंढ रहा था.. पर अनजाने लोगों के साथ यह सब करने में बड़ा जोखिम होता है.. इसलिए वो भी थोड़ा सा झिझक रहा था"

शीला: "हाँ, वो तो है.. पर हमारे साथ तो ये प्रॉब्लेम भी नहीं होगा.. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं लगेगी.. चल अब चलते है.. कहीं कोई आ गया तो तकलीफ हो जाएगी"

रेणुका: "एक मिनट रुक जा शीला.. मेरे दिमाग में ओर एक आइडिया आ रहा है"

शीला: "अरे यार, जल्दी चल.. सब इंतज़ार कर रहे होंगे हमारा.. जाते जाते बताना तेरा आइडिया.. !!"

रेणुका ने शीला की चूत से उँगलियाँ बाहर निकाली और हाथ धो लिए.. दोनों टॉइलेट से बाहर निकली.. मदन और राजेश बातें कर रहे थे.. वैशाली और कविता भी बातों में उलझी हुई थी.. पीयूष अपने मोबाइल पर लगा हुआ था

चलते चलते शीला ने पूछा "अब बोल, क्या बता रही थी तू?"

रेणुका: "मैं ये सोच रही थी.. हम अभी अपने मर्दों को इस बारे में कुछ नहीं बताएंगे.. हम ऐसे पेश आएंगे जैसे हम खुद ही एक दूसरे के पतिओ को पटा रहे है.. उन्हें बिना कुछ कहें"

शीला: "कार में ये सब कैसे करेंगे?? उससे अच्छा तो बता कर ही करते है"

रेणुका: "मैं जैसे कह रही हूँ वैसा कर.. हम फिलहाल अपने अपने पार्टनर के साथ ही बैठेंगे"

शीला: "ठीक है यार.. जैसा तू कहें.. पर एक दूसरे के पति के साथ बातें तो कर सकते है ना.. !!"

रेणुका: "हाँ कर सकते है.. पर सिर्फ बातें ही करनी है अभी के लिए.. बाकी सब छुप छुपकर करना होगा.. कल से हम फोन पर शुरू करेंगे.. तू राजेश को फोन करना और मैं मदन को फोन करूंगी.. हम दोनों आपस में एक दूसरे को सब बता देंगे.. पर अपने पति को कुछ नहीं बताएंगे.. फिर देखते है.. हमारे मर्द कैसे पेश आते है"

शीला: "यार, गजब का आइडिया सोचा है तूने.. मतलब अब इस उम्र में हमें फ्लर्ट करना होगा.. वो भी एक दूसरे के पति के साथ.. !!"

रेणुका: "अरे यार, फ्लर्ट करने के लिए कोई उम्र थोड़े ही होती है.. !! वो तो कभी भी कर सकते है"

दोनों चलते चलते टेबल के पास आई.. अपने अपने पति के पास बैठ गई.. थोड़ी देर के बाद.. शीला ने कहा "यार यहाँ कोने में मुझे घुटन हो रही है.. रेणुका, तुझे प्रॉब्लेम न हो तो तू यहाँ बैठ जाएगी?" रेणुका तुरंत ही उठ खड़ी हुई और मदन के पास बैठ गई.. मुसकुराते हुए शीला राजेश के पास आकर बैठ गई

पीयूष, कविता, पिंटू और वैशाली एक टेबल पर थोड़े दूर बैठे थे.. उन्हें इन चारों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.. कविता को जरा सा भी अंदाजा नहीं था की उसके प्रेमी पिंटू के प्रति, वैशाली आकर्षित हो चुकी थी.. आपस में बातें करते हुए, वैशाली और पिंटू और करीब आते जा रहे थे.. अठारह बीस साल की लड़की, लड़कों के दिखावे से आकर्षित होती थी.. पर तीस की उम्र पार कर चुकी लड़कियां, लड़के के विचार, सद्गुण और सलामती देखकर आकर्षित होती है..

राजेश: "ये तो आप दोनों ने अदला-बदली कर दी.. मेरे साथ शीला जी और मदन के साथ रेणुका.. हा हा हा हा"

रेणुका ने शर्म के मारे आँखें झुका दी..

राजेश: "अरे, मैं तो मज़ाक कर रहा था"

शैतानी मुस्कान के साथ शीला ने कहा "अच्छा मज़ाक था.. !!"

मदन ने चोंककर रेणुका के सामने देखा.. वो कनखियों से मदन को देख रही थी.. उसने अपनी नजरें फेर ली.. और खाना खाने पर ध्यान केंद्रित किया

खाना खाकर सब वापिस अपनी गाड़ियों में बैठ गए.. पीयूष की गाड़ी आगे जाने दी और मदन ड्राइविंग सीट पर बैठ गया..

रेणुका: "अरे राजेश, मदन कब से गाड़ी चला रहा है.. थक गया होगा.. थोड़ी देर तू गाड़ी चला ले"

राजेश" "मैं बस बोलने ही वाला था.. मैं चला लेता हूँ.. !!"

मदन को रेणुका की ये बात बहोत अच्छी लगी "थेंकस रेणुका.. मैं वाकई थक चुका हूँ"

राजेश ड्राइवर सीट पर बैठ गया और रेणुका उसके साथ.. शीला और मदन पीछे की सीट पर बैठ गए

जैसे ही गाड़ी चली.. शीला ने मदन की जांघों पर हाथ रख दिया.. और मदन के सामने देखकर, शैतानी भरी मुस्कान देते हुए आँख मारी.. धीरे से उसके लंड को सहला रही शीला का हाथ पकड़कर मदन ने उसके कान में कहा "यार, क्यों सो रहे सांप को जगा रही है?? ये जाग गया तो फिर शिकार मांगेगा.. "

शीला ने मदन के कान मे कहा "तेरे सांप में अब शिकार करने का दम ही कहाँ है.. !!"

शीला इतनी उत्तेजित थी की उसने मदन की मर्दानगी को ही ललकार दिया.. जब भी उसका भरपूर चुदाई का मन हो तब वो मदन को ऐसा ही कुछ बोलकर उकसाती.. और फिर मदन उसे बेरहमी से चोद देता.. !!

शीला की आँखों से टपकती वासना को देखकर मदन सोच में पड़ गया.. ये साली इस समय गरमाए बैठी हुई है?? यहाँ गाड़ी में, राजेश और रेणुका की मौजूदगी में.. इसे कैसे शांत करूँ.. !!

शीला: "बहोत गर्मी हो रही है यार.. रेणुका, जरा एसी तेज कर दे"

रेणुका ने मुसकुराते हुए कहा "अब तुझे इस उम्र में बड़ी गर्मी चढ़ रही है.. !! देखना.. कहीं घर जाकर मदन को अपनी आग में मत झोंक देना.. तेरी आग के बारे में, मैं अच्छे से जानती हूँ.. एसी की हवा से शांत नहीं होने वाली तू"

शीला: "चुप कर बदमाश.. कुछ भी बोलती रहती है.. वैसे गर्मी तो तेरे अंदर भी कुछ कम नहीं है.. अच्छे अच्छों को पिघलाने का हुनर है तुझ में.. !!"

रेणुका: "अब वो तो महसूस करने वाले को पता.. की मेरे अंदर कितनी गर्मी है.. पर हम भी अपनी गर्मी उन्हीं को दिखाते है जिसमे इस गर्मी को शांत करने की ताकत हो"

रेणुका और शीला, जान बूझकर खुलकर बातें कर रही थी.. उनकी बातें सुनकर मदन और राजेश को भी थोड़ा सा ताज्जुब हुआ.. धीरे धीरे दोनों ज्यादा से ज्यादा खुलने लगी..

ब्लाउस से एक स्तन बाहर निकालकर, ड्राइव कर रहे राजेश का हाथ खींचकर, उसपर रख दिया रेणुका ने.. टाइट ब्लाउस से पूरा स्तन तो बाहर नहीं निकाल पाई.. पर आधे स्तन की उभरी हुई निप्पल पर वो राजेश की हथेली को रगड़ने लगी.. इस हरकत से.. और रेणुका तथा शीला की उत्तेजक बातें सुनकर.. राजेश का लंड पतलून में तंबू बनाकर खड़ा हो गया

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रेणुका राजेश का लंड बाहर निकालना चाहती थी.. पर उसके पेंट की चैन खुल ही नहीं रही थी.. शीला की बातें सुनकर राजेश का लंड इतना सख्त होकर अंदर से दबाव बना रहा था की चैन खुलने ही नहीं दे रहा था.. रेणुका ऊपर ऊपर से ही.. उस कचौड़ी जैसे फुले हुए हिस्से को सहलाने लगी.. आखिर राजेश ने ही रेणुका का काम आसान करने के लिए.. अपने पेंट का एक बटन खोल दिया.. बटन खुलते ही.. आधी चैन अपने आप खुल गई.. वी शैप की अन्डरवेर के साइड से सख्त लोडे को बाहर निकालकर, राजेश ने रेणुका के हाथों में सौंप दिया.. जिसे पकड़ते ही रेणुका की आह्ह निकल गई..

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रेणुका ने अपना चेहरा राजेश के कान के करीब लाकर.. बिल्कुल धीमे से कहा "माय गॉड.. ये क्या है राजेश!! इतना टाइट तो आज तक कभी नहीं हुआ.. मैं नंगी होकर अपनी चूत फैलाकर तेरे मुंह पर रख देती हूँ तब भी इतना कडक नहीं होता है.. " रेणुका की इन हरकतों को देखकर शीला समझ गई की राजेश का लंड बाहर निकल चुका है.. मदन की मौजूदगी की जरा भी परवाह किए बगैर, शीला ने थोड़ा सा आगे आकर रेणुका के हाथ में जकड़े राजेश के लंड को देखा..

मदन: "क्या देख रही है शीला? शर्म नहीं आती तुझे?"

शीला ने बेधड़क होकर कहा "अच्छा.. अभी तू साइड से.. रेणुका के स्तन को देख रहा था.. तब तुझे शर्म नहीं आई थी?"

शीला ने मदन का लंड बाहर निकाला और झुककर चूसने लगी.. मदन की आँखें बंद हो गई.. शीला के कामुक होंठों ने लंड के इर्दगिर्द ऐसी पकड़ बना ली थी की वो अपने आपे से बाहर हो रहा था.. अपनी जीभ से शीला ऐसा कमाल कर रही थी की मदन से रहा नहीं जा रहा था.. ये तो मदन था जो शीला की इस कामुक चुसाई को बर्दाश्त कर पा रहा था.. और कोई होता तो उसके लंड ने कब का इस्तीफा दे दिया होता.. !!

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मदन ने शीला के सर को पकड़े रखा था.. जब वो लंड अंदर लेने के लिए झुकती तब वो अपनी गांड उठाकर उसके मुंह में अंदर तक अपना लंड पेल देता.. शीला के मुंह से विचित्र आवाज़ें निकल रही थी.. शीला जान बूझकर ज्यादा आवाज़ें कर रही थी.. वो चाहती थी की रेणुका और राजेश उसकी आवाजों को सुने.. पर मदन को बहोत शर्म आ रही थी.. शीला और रेणुका एक दूसरे के सामने देखते हुए बार बार हंस रही थी..

राजेश ने पीछे देखते हुए कहा : "अरे क्या हो रहा है पीछे?" राजेश को अंदाजा तो लग गया था पर फिर भी उसने पूछा

मदन ने आगे की सीट पर बैठे राजेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "भाई, कुछ नहीं हो रहा है.. तुम अपना ध्यान ड्राइव करने पर ही रखो..वरना एक्सीडेंट हो जाएगा"

हँसते हुए राजेश ने ड्राइविंग पर ध्यान केंद्रित किया.. पर रेणुका को मदन कैसे रोकता?? वो तो पीछे देखने लगी.. झुकी हुई शीला को..

मदन ने शरमाते हुए कहा "वो जरा शीला सफर के कारण थक गई है इसलिए मेरी गोद में सो रही है.. थोड़ा सा वॉमीट जैसा हो रहा है उसे इसलिए ऐसी आवाज़ें निकाल रही है" वैसे रेणुका को पता ही था की शीला क्या कर रही थी..

रेणुका: "अच्छा.. ?? मुझे तो ऐसी आवाज़ें आई जैसे कोई कुल्फी चूस रहा हो"

राजेश: "कहीं कोई गुड न्यूज़ तो नहीं है ना शीला भाभी..!! मदन, हम सब का मुंह मीठा करवाना पड़ेगा.. इस बार तो पक्का लड़का ही होगा..!!" उसने हँसते हँसते कहा

मदन: "क्या राजेश तू भी?? इस उम्र में अगर तुझे मिठाई खानी हो तो मुझे किसी 20 साल की लड़की से ब्याहना पड़ेगा.. मेरी तलवार में तो अब भी वार करने की ताकत है.. पर तेरी भाभी की म्यान सूख चुकी है.. !!"

अपना सिर ऊपर नीचे करते हुए मदन के लंड को चूस रही शीला को रेणुका देखती ही रही.. मदन शर्म से पानी पानी हो रहा था.. रेणुका ने राजेश के लंड को अपनी मुठ्ठी में दबाकर हिलाते हुए शीला को देखने के लिए पलटी.. तब उसका खुला हुआ गोरा स्तन, मदन की आँखों के बिल्कुल सामने आ गया.. मदन को अपने बबले को तांकते हुए देखकर.. रेणुका ने बिना शरमाये, राजेश के गाल पर किस कर दिया.. और मदन की तरफ देखकर उसे आँख मारी.. और कहा.. "आप दोनों इतना सब कर सकते हो तो हम इतना तो कर ही सकते है ना.. !!" इतनी मादक आवाज में रेणुका ने आमंत्रण भरी आँखों से मदन की ओर देखकर कहा

मदन: "आप को जो करना हो कर सकते हो.. मैंने कब मना किया.. ?? अगर आप को भी वॉमीट होने जैसा हो रहा हो तो आप भी गोद में सो जाइए.. जो करना हो कीजिए.. बस पीछे मत देखिए"

रेणुका : "एक बार शीला का हो जाने दो.. फिर सोचती हूँ"

मदन चोंक गया "मतलब?? मैं मेरी गोद में सुलाने की बात नहीं कर रहा हूँ.. क्या आप भी!!!"

राजेश ड्राइविंग करते करते इन सारी बातों का मज़ा ले रहा था

मदन की गोद में मुंह डालकर चूस रही शीला ने मुंह से लंड निकाला और कहा "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है रेणुका.. तू मदन की गोद में मुंह डालेगी तो मैं भी राजेश की गोद में मुंह डाल दूँगी" इतना कहकर शीला फिर से मदन का लंड चूसने में मशरूफ़ हो गई..

रेणुका को महसूस हुआ.. की जब शीला ने राजेश की गोद में जाने की बात खी.. तब राजेश का लंड और कडा हो गया.. वो इस बारे में राजेश के कान में कुछ कहने ही वाली थी.. चेहरा उसके कान के करीब ले जाकर वो कुछ कहती.. उससे पहले ही मदन ने पीछे से रेणुका के गोरे चिकने गाल पर एक हल्की सी पप्पी कर दी.. रेणुका का पूरा शरीर सिहरने लगा.. सिर्फ आधी सेकंड में ये हो गया.. राजेश और शीला को तो इसके बारे में पता तक नहीं चला क्योंकि राजेश आगे बैठा था और शीला का चेहरा नीचे था.. रेणुका के जिस्म में रोमांच और उत्तेजना की एक लहर सी दौड़ गई.. अपने पति की मौजूदगी में किसी गैर मर्द से चूमे जाने का विचार भी रोमांचित कर देता है..

जैसे कुछ न हुआ हो वैसे रेणुका राजेश के लंड से खेलती रही..

पीछे की सीट पर मदन का पूरा शरीर तंग हो गया.. शीला मुंह से लंड निकालकर उठ गई.. और अपनी टांगों के बीच हाथ डालकर उसने पेन्टी उतारकर पर्स में रख दी.. फिर दोनों हाथों से उसने अपना घाघरा उठाया.. और अपनी नंगी चूत को खुद ही सहलाने लगी.. पूरी कार में शीला के भोसड़े की मादक गंध फैल गई.. आगे की सीट पर बैठा राजेश भी समझ गया की पीछे क्या हो रहा था..

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राजेश ने रेणुका से कहा : "अरे यार.. ठीक से बबले बाहर निकाल.. इस तरह आधे आधे में कुछ मज़ा नहीं आ रहा.. पीछे देखकर कुछ तो सीख.. !!"

रेणुका ने तुरंत अपने ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये.. और अपने दोनों खरगोशों को खोल दिया.. "पहले से बोलना चाहिए था ना तुझे.. !! बिना कहें मुझे कैसे पता चलता.. ले दबा ले.. जितना मन करें.. !!" रेणुका जान बूझकर थोड़ी ऊंची आवाज में बोली ताकि मदन को भी सुनाई दे..

राजेश ने भी ऊंची आवाज में.. शीला सुन सके उस तरह कहा "तुझे अपने बबलों को कभी ढंकना ही नहीं चाहिए.. कपड़ों के पीछे ये बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते"

"ऊँहहह.. जरा धीरे धीरे दबा यार.. तोड़ देगा क्या??" अंगड़ाई लेते हुए रेणुका ने कहा.. "और इन्हें जरूरत के समय ही खोल सकते है.. तुम्हारा भी हर वक्त खड़ा थोड़े ही रहता है?? जब जरूरत होती है तभी तो उठता है तुम्हारा.. !!"

"आह्ह रेणु... अब तो रहा नहीं जाता" राजेश ने सिसकते हुए कहा

"आज कुछ ज्यादा ही टाइट हो गया है तेरा.. डार्लिंग, परफ़ॉर्मन्स के टाइम तो इतना सख्त नहीं होता तेरा.. !! आज क्या खास हो गया??"

राजेश: "आज का माहोल ही कुछ ऐसा है जानु.. तू भी आज कितनी खिली खिली लग रही है.. इतना तो बेडरूम में कभी नहीं चमकती.. किसी और बेटसमेन का साथ इनिंग खेलना का मन तो नहीं बना लिया.. हा हा हा हा हा.. !!"

मदन: "नई जगह हो.. और नया क्लाइमेट हो तब खेलने में ज्यादा मज़ा आता है.. राजेश तुझे घास वाली पिच ज्यादा पसंद है या बिना घास की?"

राजेश: "मुझे घास से कोई मतलब नहीं.. हाँ अगर पिच नई मिल जाए तो बेटिंग करने का मज़ा आ जाएँ"

मदन और राजेश क्या बात कर रहे थे वो दोनों महिलायें अच्छी तरह समझ रही थी.. और वो भी मजे ले रही थी

कामुक हरकतें और बातें करते करते वो लोग कब शहर पहुँच गए, पता ही नहीं चला.. !!

राजेश ने रेणुका को एक आखिरी किस देकर कहा "चलो अब बाकी सब घर जाके करना.. हम पहुँच रहे है" राजेश ने अपना लंड रेणुका के हाथ से छुड़ाते हुए कहा और बड़ी मुश्किल से उसे पेंट में फिर से कैद किया..

शीला ने अपना घाघरा नीचे कर दिया.. इतना सब करने के बावजूद वो झड़ नहीं पाई थी.. ऐसे वातावरण में सबके सामने उसका झड़ना मुमकिन भी नहीं था.. उसे चाहिए था तड़कता-भड़कता स्खलन.. चीखते चिल्लाते हुए.. आवाज को रोककर झड़ना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था..

चारों एकदम नॉर्मल होकर ठीक से बैठ गए.. शहर के अंदर घुसते ही.. एक होटल के पास, पीयूष गाड़ी खड़ी रखकर इन चारों का इंतज़ार कर रहा था.. राजेश और रेणुका गाड़ी से उतरे.. और अपनी गाड़ी में बैठ गए.. पीयूष, कविता और वैशाली उतरकर दूसरी गाड़ी में बैठ गए.. राजेश अपनी गाड़ी में पिंटू को ले गया.. क्योंकि दूसरी गाड़ी में जगह नहीं बची थी..


सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है शीला ने रेणुका को गरम कर दिया दोनों ही कामुक हो गई है और दोनों ने एक दूसरे के पति के साथ मस्ती करने का प्लान बनाया लेकिन बाद में दोनों ने गाड़ी में अपने अपने पति के साथ मस्ती की
 

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मदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..

उस दौरान, रेणुका और शीला, बड़े ही आराम से मस्ती करते हुए गाड़ी में अपने शहर की ओर जा रहे थे.. देखते ही देखते दोनों रेणुका के घर पहुँच गए.. शीला ऑटो लेकर घर पहुंची.. तब वैशाली ऑफिस जा चुकी थी.. रेणुका और शीला के बीच.. गाड़ी में जो गुफ्तगू हुई, वो जबरदस्त थी..!!

सुबह के दस बज गए थे.. पिछली रात के संस्मरणों के बारे में सोचते हुए शीला रोजमर्रा के काम में मशरूफ़ हो गई...

दोपहर तीन बजे के करीब मदन घर पहुंचा.. उसका चेहरा इतना उदास था, जैसे कोई उसके गोटे चुराकर भाग गया हो.. !! शीला ने उसका ऐसे स्वागत किया जैसे कल रात कुछ हुआ ही न हो.. एकदम स्वाभाविक व्यवहार दिखाया उसने.. !!

मदन धीरे धीरे चलते हुए सोफ़े पर जा बैठा.. शीला उसके लिए पानी का ग्लास लेकर आई..

यहाँ आने से पहले मन ही मन मदन सोच रहा था की घर पहुंचते ही शीला उसकी बैंड बजा देगी.. पर ये तो बिल्कुल उल्टा ही हो रहा था.. !! हाथ में ग्लास थमाकर शीला कोई गीत गुनगुनाते हुए किचन में चली गई.. थोड़ी देर के बाद अदरख की खुश्बू से पता चला की अंदर मस्त मसालेदार चाय बन रही थी..

हाथ में दो बड़े चाय से भरे मग लेकर शीला बाहर आई.. एक मग मदन को दिया और मदन के करीब सोफ़े पर बैठ गई..

मदन की हालत इतनी खस्ता थी की खिड़की के बाहर अपने बरामदे में झुककर झाड़ू लगा रही कविता के लटकते बबले देखने का भी मन नहीं हो रहा था उसे..

अपनी आँखें मटकाते हुए बड़े ही शरारती अंदाज में शीला ने मदन से पूछा "कैसी रही मीटिंग?"

मदन ने जवाब नहीं दिया..

मदन को इस स्थिति में देखकर शीला बेहद खुश हुई.. सशक्त और प्रभावशाली महिलाएं अपनी शक्ति और प्रभाव को पुरुषों पर हमेशा स्थापित करना चाहती हैं.. ऐसी महिलाएं अपनी स्थिति और अधिकार को तब महसूस करती हैं, जब वे अपने पुरुषों को कमजोर या उनके दायित्वों के तले दबा हुआ देखती हैं.. ऐसे सूरत में, महिलाएं आम तौर पर पुरुषों को नियंत्रण में रखने का आनंद महसूस करती हैं, और यह शक्ति का असमान वितरण उनके आत्म-सम्मान और संतुष्टि का हिस्सा बन जाता है..!!

मदन को ओर उंगली करने के लिए उसने उसे कुहनी मारकर कविता की तरफ इशारा करते हुए कहा "वो देख.. कविता के भी उस बार्बी जैसे ही है.. बुला ले उसे आज रात को.. !! तो क्या है, की तुझे झूठ बोलकर दोबारा इतने दूर जाना नहीं पड़ेगा"

मदन: "प्लीज यार शीला.. कविता के लिए ऐसा मत बोल.. उसमें उस बेचारी का क्या दोष?"

शीला: "बात तो तेरी सही है मदन.. पर क्या करूँ?? घूम फिरकर वही सारी बातें याद आ जाती है.. कल जब रेणुका तेरा लंड चूस रही थी.. तब तेरी उत्तेजना जबरदस्त बढ़ गई थी.. मैंने अपनी आँखों से देखा है इसलिए मुकर मत जाना.. वरना मर गया आज तो.. !!"

रेणुका की बात छेड़कर शीला क्या कहना चाह रही थी इसके बारे में मदन सोचता उससे पहले शीला ने और एक बाउंड्री मार दी..

शीला: "बिना मुझ से पूछे.. तुम दोनों ने आपस में ही बीवियाँ बदलने का तय कैसे कर लिया????"

मदन: "अरे यार.. तू ही तो कहती थी.. की तुझे ग्रुप सेक्स करना है.. बी.पी. देखते हुए तू कितनी गरम हो जाती थी और ऐसी बातें किया करती थी.. !! भूल गई क्या??"

शीला: "मदन, चल अंदर चलकर बात करते है"

मदन: "नहीं.. यही पर ही ठीक है.. " मदन जानता था की अंदर बेडरूम में ले जाने का बाद शीला कुछ भी कर सकती थी.. उसे वो जोखिम लेना ही नहीं था..

चाय खत्म हो गई.. पर दोनों की गरमागरम बातें खत्म नहीं हुई.. बड़ी मुश्किल से मदन ने शीला से अपनी जान छुड़ाते हुए कहा

मदन: "मैं थोड़ी देर बाहर जाकर आता हूँ"

शीला ने उसे रोका नहीं.. और वो चला गया.. शीला सोफ़े पर बैठे बैठे आगे की रणनीति सोच रही थी तभी मदन के फोन की रिंग बजी.. जल्दबाजी में मदन फोन ले जाना ही भूल गया था.. !!

शीला ने फोन हाथ में लिया.. स्क्रीन पर रेणुका का नाम नजर आ रहा था.. शीला ने फोन उठाया और कुछ बात की.. फोन काटकर उसने राजेश को फोन लगाया..

राजेश: "हैलो भाभी जी, कैसी है आप?" बड़ी ही विनम्रता से राजेश ने कहा

शीला: "अरे वाह.. कितने भोले बन रहे हो.. इतने भोले राजेश से मुझे कोई बात नहीं करनी.. रखती हूँ" बड़ी शातिर थी शीला

राजेश: "अरे नहीं नहीं भाभी.. कहिए, क्या काम था? वो तो.. कल रात के बाद.. आप से बात करने में थोड़ा संकोच हो रहा था इसलिए.. वरना आप के सामने भला कौन भोला बनकर रहना चाहेगा.. !!"

शीला ने मुस्कुराकर कहा "अच्छा.. !!! मैं तो समझ रही थी की मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ"

राजेश: "भाभी जी, शराब जितनी पुरानी हो उतना ही ज्यादा मज़ा देती है"

शीला: "तो क्या मैं शराब हूँ? तब तो मुझ पर भी सरकार को रोक लगा देनी चाहिए"

राजेश: "खुलेआम मजे लेने पर तो वैसे भी रोक ही है ना.. फिर वो शराब हो या आप.. !! पर चुपके चुपके क्या कुछ नहीं हो सकता.. !! कल रात को ही आपने सारे नज़ारे देख लिए है"

शीला: "राजेश, एक बात कहूँ.. पर किसी को बताना मत"

राजेश: "हाँ कहिए भाभी.. "

शीला: "नहीं ऐसे नहीं.. पहले वादा करो को आप किसी को नहीं बाताओगे.. रेणुका को भी नहीं.. यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए"

राजेश: "बात क्या है भाभी? कुछ सीक्रेट है क्या? वैसे सीक्रेट बात हो या काम.. दोनों में ही मज़ा आता है.. जल्दी कहिए"

शीला: "पहले वादा करो किसी को नहीं बताओगे"

राजेश: "ठीक है, वादा करता हूँ"

शीला: "कैसे कहूँ... मुझे तो शर्म आती है.. राजेश.. कल तुम बहोत ही हार्ड थे.. तुम्हारा वो... उसकी तस्वीर मेरी आँखों के सामने से हट ही नहीं रही है"

सुनते ही राजेश का लंड ऐसे खड़ा हो गया जैसे अभी अभी वियाग्रा के साथ रेड-बुल के दो टीन पी लिए हो.. !! ऐसी उत्तेजना का अनुभव उसने इससे पहले सिर्फ एक ही बार किया था.. माउंट आबू में बियर पीने के बाद जब टॉइलेट में वैशाली ने उसे अंदर खींचकर उसका लंड पकड़ लिया था..!!

शीला: "राजेश, आप मेरे बारे में कुछ बुरा मत सोचिएगा.. आप दोनों जो अंदर अंदर स्वैपिंग करने की बात कर रहे थे.. उसके लिए रेणुका तैयार हो जाती.. शायद मैं भी तैयार हो जाती.. पर मदन कभी भी तैयार नहीं होगा.. मुझसे इतनी मोहब्बत करता है वो.. मुझे किसी और की बाहों में वो देख ही नहीं पाएगा.. !!"

राजेश: "अरे भाभी.. वो सब बातें तो हम सिर्फ मज़ाक मज़ाक में कर रहे थे.. आप उसे सिरियसली मत लीजिए.. चाहे आप हो या रेणुका.. अपने पति के दोस्त के साथ ऐसा करने की कौन भला सोचेगा??"

शीला: "सोच तो कोई भी सकता है.. कुछ भी नामुमकिन नहीं होता.. पति की जानकारी में ये करना जरूर मुश्किल है.. पर उससे छुपाकर तो हो ही सकता है"

सुनकर राजेश के होश उड़ गए "आप क्या कह रही हो भाभी????"

शीला: "प्लीज राजेश.. ये तो अच्छा हुआ की मदन अपना फोन भूल गया तो मैं उसके फोन से ये बात कह रही हूँ.. वरना मेरी ये इच्छा अधूरी ही रह जाती.. सामने से तो ऐसा कहने की मेरी हिम्मत कभी नहीं होती.. पर आज जब मौका मिल ही गया तो मैं उसे छोड़ना भी नहीं चाहती.. मुझे कहने दीजिए.. जब से मैंने तुमको इतना हार्ड होते हुए देखा है.. तब से मेरे रोम रोम में बस तुम्हारी ही याद बसी हुई है.. जो हरदम मुझे मजबूर कर रही है की उस हार्डनेस का अनुभव किए बगैर मैं रह नहीं पाऊँगी.. सिर्फ एक बार.. प्लीज मुझे चांस दो.. आई लव यू राजेश"

स्तब्ध हो गया राजेश.. !! ये क्या खेल खेल रही थी शीला उसके साथ.. !! शीला ने आई लव यु तक बोल दीया?? कोई इतनी जल्दी कैसे किसी से प्रेम कर सकता है?? शीला जबरदस्त गरम औरत थी उसमें कोई दो राय नहीं थी.. पर जैसे भी थी.. थी तो वो उसके दोस्त की बीवी.. मदन के साथ ऐसा धोखा मैं कैसे कर सकता हूँ??

धोखा..!! यह शब्द याद आते ही राजेश के दिल ने उसे एक मजबूत लात लगाकर मैदान के बाहर फेंक दिया.. धोखा देने में अब बाकी ही क्या बचा था?? और मदन भी तो रेणुका की चूत चाट ही चुका था.. !! वो भी मेरे नज़रों के सामने.. !! तो अब धोखे वाली बात के बारे में सोचने का कोई मतलब ही नहीं था.. और मैं कहाँ शीला पर कोई जबरदस्ती कर रहा हूँ?? या उसे फुसला रहा हूँ? ना ही मैं उसे कोई धोखा दे रहा हूँ.. जब वो ही सामने से चलकर आ रही है तो... !!

शीला: "क्या सोच रहे हो राजेश?? यही ना.. की मैं कितनी गिरी हुई और घटिया किस्म की औरत हूँ.. !!"

राजेश चुप ही रहा

शीला: "अब तुम मुझे घटिया समझो या गिरी हुई समझो.. पर मैं अपनी इच्छा को अधूरी छोड़ने वालों में से नहीं हूँ.. मुझे तो कल रात को ही तुम्हारा हार्ड पेनीस देखकर, उसे अंदर लेने का मन कर रहा था.. पर सच कहूँ तो मदन की मौजूदगी में.. मैं खुलकर मज़ा न ले पाती.. मुझे एकांत चाहिए.. सिर्फ तुम और मैं अकेले.. दुनिया का कोई एक ऐसा कोना जहां पर हम दोनों के अलावा और कोई न हो.. ऐसे माहोल में.. मैं मुक्त होकर तुम्हारे साथ इन्जॉय करना चाहती हूँ.. प्लीज मुझे निराश मत करना.. मैं मर रही हूँ तुम्हारी सख्ती को अपने अंदर महसूस करने के लिए.. !!"

राजेश के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे.. शीला ने तो उसे प्रपोज ही कर दिया.. !! अब क्या जवाब दें.. !!

फोन पर बात करते हुए राजेश गाड़ी ड्राइव कर रहा था.. अपने घर की ओर.. वो घर पहुंचकर रेणुका के साथ अपने संबंधों को वापिस दुरस्त करना चाहता था.. दूध फट तो चुका था.. अब उससे जितना जल्दी पनीर बना लिया जाए उतना अच्छा.. !! और इसी बीच शीला का फोन आ गया.. गाड़ी चलाते हुए उसका लंड खड़ा हो गया था.. शीला की बातों ने उसके लंड को फिर बैठने ही नहीं दिया.. ऐसा हाल हो गया की गाड़ी चलाते चलाते ही उसने अपना लंड बाहर निकाला और मूठ लगाने लगा..

राजेश: "ओह्ह भाभी.. अपना तो मेरा हाल कल रात जैसा कर दिया.."

शीला: "तो फिर आ जाओ.. मदन बाहर गया है.. घर पर कोई नहीं है"

राजेश: "और कहीं वो आ गया तो?"

शीला: "एक काम करती हूँ.. उसे फोन करके पूछ लेती हूँ.. की कब लौटने वाला है"

राजेश: "पर कैसे पूछोगी? फोन तो उसका घर पर ही है"

शीला: "जाने दो.. लगता है तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही है"

राजेश: "ऐसा नहीं है भाभी... पर.. !!!"

शीला ने नाराज होकर कहा "मदन लौट आया है" और उसने फोन काट दिया

फोन रखने के बाद शीला को अफसोस हो रहा था की आखिर वासना की बाढ़ में बहकर उसने राजेश से ऐसी बात की ही क्यों?? अब वो क्या सोचेगा मेरे बारे में??

शीला की बातों से बेहद उत्तेजित होकर.. राजेश ने रोड के किनारे गाड़ी पार्क कर दी.. और मूठ लगाते हुए अपने रुमाल में पिचकारी मार ली.. और फिर घर की ओर निकल गया

घर के गंभीर वातावरण को देखते हुए अब वहाँ किसी उत्तेजक घटना के घटने की कोई संभावना नहीं थी.. जैसा राजेश ने सोचा था.. रेणुका मुंह फुलाकर बैठी हुई थी.. और उससे बात करने के मूड में नहीं थी.. और वो स्वाभाविक भी था.. इसलिए राजेश को कोई ताज्जुब नहीं हुआ..

उस रात उन दोनों के बीच कुछ खास नहीं हुआ.. पर बगल में सो रहे दोनों के दिमाग में पिछली रात की घटनाएं घूम रही थी.. रेणुका मदन के लंड को याद कर रही थी.. जब की राजेश के दिमाग में शीला ने आज दोपहर को कही हुई बातें बार बार आ रही थी..

इस तरफ मदन और शीला के हाल भी कुछ ऐसे ही थे.. शीला पार्टी के सारे लंड याद कर रही थी.. जब की मदन के दिमाग में रेणुका का छरहरा बदन घूम रहा था..

राजेश सोते सोते सोच रहा था.. आह्ह.. आज शीला भाभी ने मेरे लंड की तारीफ की.. मुझे खुला निमंत्रण तक दे दिया.. !! याद करते ही राजेश के मुंह से एक सिसकी निकल गई.. जो बगल में लेटकर उत्तेजना से झुलस रही रेणुका ने स्पष्ट रूप से सुना.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो मन ही मन सोच रही थी की अगर कल रात पुलिस की रैड न पड़ी होती.. तो वो और शीला अपनी पहचान अंत तक छुपाने में कामयाब रहते.. और रात का पूरा लुत्फ उठा पाते.. खैर फिर जो हुआ वो कल्पनातीत था.. भला हो शीला का.. जिसने अपनी सही पहचान बताकर सबको बचा लिया.. वरना आज सब के सब जैल की सलाखों के पीछे होते.. बाप रे.. !! समाज में क्या इज्जत रह जाती.. !! हाथ में नाम और पता लिखा हुआ बोर्ड थमाकर पुलिस वाले तस्वीर खींचते और अखबार वाले उसे पहले पन्ने पर छाप देते.. !!!

इस तरफ शीला करवट लेकर अपनी निप्पल को मसल रही थी.. उससे अब यह उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. हेमंत के जवान ताजे लंड ने उसे जो मजे दीये थे.. उसे याद करते हुए वह बहोत गर्म हो गई.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा बदन बुखार से तप रहा हो.. ऊपर से, राजेश को लंड को चूसने पर जो शानदार किक मिली थी वो स्खलित होने के लिए काफी थी.. राजेश के लंड की याद आते ही शीला के भोसड़े में हवस की आग लग गई.. कुछ भी हो जाए.. एक बार तो वो लंड अंदर लेना ही है.. !! पर वो साला एक नंबर का डरपोक है.. क्या किया जाए?? मदन शहर से कहीं बाहर चला जाएँ तो फिर बढ़िया मौके का सेटिंग हो सकता है.. पर वैशाली तो घर पर ही होगी.. उसका क्या करें?? राजेश के घर पर रेणुका हर वक्त रहती थी.. ऑफिस मे पीयूष और पिंटू दोनों उसे पहचानते थे.. और यहाँ घर पर वैशाली और मदन का टेंशन.. ऊपर से.. कविता और अनुमौसी के नज़रों से बचाकर कुछ भी करना नामुमकिन सा था..

सोचते सोचते शीला अपनी चूत को कुरेदती रही.. और ऐसा सोचती रही की जैसे राजेश का लंड अंदर घुस रहा हो.. थोड़ी देर में ही उसकी चूत ने शहद टपका दिया.. और वो सो गई..

दूसरी सुबह, लगभग ग्यारह बजे के आसपास.. मदन पर राजेश का फोन आया.. दोनों ने काफी देर तक लंबी बातचीत की.. शीला बगल मे ही बैठी थी.. पर उस रात की घटना के बाद मदन की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो खड़ा होकर, शीला से दूर जाकर बात करें.. उस रात के बारे में अब तक शीला और मदन के बीच खुल कर बात हुई भी नहीं थी.. !! आखिर मदन ने "बाद में बात करते है" कहते हुए फोन रख दिया..

शीला ने कुछ पूछा नहीं.. उसने उठकर डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया.. मदन ने भी चुपचाप पालतू कुत्ते की तरह खाना खा लिया.. और शीला को बिना कुछ बताएं बाहर चला गया.. वो जितना हो सकें.. शीला के वाक्य-बाणों से दूर रहना चाहता था..

मदन ने बाहर निकलते ही राजेश को फोन किया.. और सीधा उसकी ऑफिस पहुँच गया.. पापा को देखकर वैशाली बहुत ही खुश हो गई.. काफी देर तक मदन और वैशाली की बातें चली.. बड़े ही उत्साह से वैशाली ने अपने काम के बारे मे बताया..

मदन ने राजेश की चेम्बर में प्रवेश किया.. राजेश ने बेल बजाकर प्युन को बुलाया और दो कप कॉफी मँगवाई.. और दोनों बातों में मशरूफ़ हो गए

राजेश: "मदन यार.. घर पर सब कैसा है?? मेरी तो वाट लगी पड़ी है.. !!"

मदन: "मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है.. तेरी भाभी तो मुझसे सीधे मुंह बात भी नहीं करती.. अपने ही घर में बेघर की तरह जी रहा हूँ.. बस खाना खाकर कोने में पड़ा रहता हूँ.. एक रात के मजे की इतनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ेगी ये अंदाजा नहीं था.. बहोत बड़ी गलती हो गई.. तुझे क्या लगता है?"

राजेश: "बिल्कुल सच कहा तूने यार.. पर सोच.. अगर वहाँ हमारी बीवियाँ और पुलिस न आए होते तो कितना मज़ा आता.. !!"

मदन: "वो सब तो ठीक है यार.. पर ये सोच.. हो सकता है पुलिस को अपने सूत्रों से खबर मिली हो और उन्हों ने रैड कर दी.. पर मेरा दिमाग तो यह सोचकर खराब हुआ जा रहा है की हमारी बीवियों को इस बारे में कैसे और कहाँ से पता चला?? और वो दोनों वहाँ पहुंची कैसे??"

राजेश: "तुझे क्या लगता है मदन.. हम जो कुछ भी करते है.. उसका हमारी पत्नियों को पता नहीं चलता.. !! सब पता चलता है.. अगर हम न भी बताएं तो वो हमारी हरकतों से भांप लेती है की कहीं कुछ गलत हो रहा है.. उसे ही तो औरतों की छठी इंद्रिय कहा गया है.. असल मे.. वह लोग बहुत कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते है.. "

मदन: "नहीं यार.. मैं नहीं मानता.. !!"

राजेश: "ऐसा ही होता है मदन.. तू माने या ना मानें.. हकीकत यही है.. जब तक औरतों को अपनी सलामती या इज्जत पर कोई आंच आती न दिखे.. तब तक वो सब कुछ सह लेती है.. पर उन्हें जरा सा भी शक हुआ या डर लगा की मामला बिगड़ रहा है.. वह तुरंत ही सक्रिय हो जाती है.. और फिर वो किस हद तक जा सकती है, वो तो हम दोनों ने अपनी आँखों से देख ही लिया है"

मदन: "हाँ यार.. पर ताज्जुब इस बात का है.. की वो दोनों पुलिस से भी पहले पहुँच चुके थे.. उस हिसाब से उनका नेटवर्क तो पुलिस से भी ज्यादा मजबूत हुआ.. !!"

दोनों बातें कर रहे थे उस वक्त वैशाली कॉफी के तीन कप लेकर चेम्बर के अंदर आई.. राजेश और मदन ने बड़ी ही सफाई से अपनी बात बदल दी और क्रिकेट के बारे में बातें करने लगे..

टेबल पर तीनों कप रखकर वैशाली बैठ गई.. राजेश, मदन की मौजूदगी में ही वैशाली के विशाल तंदूरस्त स्तन-युग्म को देख रहा था.. जिस तरह से वो चलकर अंदर आई.. टाइट टी-शर्ट के अंदर दबी हुई चूचियाँ तालबद्ध लय में ऊपर नीचे हो रही थी.. एक पल के लिए मदन का इमान भी डोल गया पर उसने उस घृणास्पद विचार को रोक लिया..

वैशाली: "सॉरी पापा.. मैं आप लोगों को डिस्टर्ब कर रही हूँ.. पर मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है.. !!"

मदन: "हाँ बोल न बेटा.. !!"

बाप-बेटी की बातचीत बड़े ध्यान से सुनते हुए राजेश अब भी वैशाली के कटीले बबलों को ताड़ रहा था

वैशाली: "दरअसल अभी मौसम का फोन आया था.. उसने मुझे और कविता को अर्जेंट उसके घर बुलाया है.. दो दिनों के लिए.. वो फोन पर बहोत ही रो रही थी.. !!"

राजेश: "तब तो बात जरूर बहोत गंभीर होगी.. !!"

मदन: "उसने कारण बताया या नहीं?? कुछ ज्यादा गंभीर बात हो तो हम भी चलें तुम लोगों के साथ"

वैशाली: "और तो कुछ नहीं बताया पर इतना बोली की उसके मंगेतर तरुण के बीच बहोत बड़ा प्रॉब्लेम हुआ है.. और तरुण सगाई तोड़ना चाहता है"

यह सुनकर राजेश और मदन दोनों चोंक गए

राजेश: "क्या?? ऐसे कैसे सगाई तोड़ सकता है?? कोई मज़ाक है क्या?? पर कुछ तो हुआ होगा उन दोनों के बीच... कुछ बताया मौसम ने?"

वैशाली: "वो फोन पर कुछ भी बताने को राजी नहीं है.. अब तो वहाँ जाकर ही कुछ पता चलेगा की मामले आखिर क्या है.. !!"

मदन: "ये आजकल के बच्चे भी ना.. सगाई-शादी जैसे गंभीर संबंधों को भी गुड्डे-गुड्डियों का खेल ही समझते है.. जब मर्जी की तब कर लिया.. और मन भर गया तो फेंक कर खड़े हो गए.. अरे भाई.. ऐसे थोड़े ही होता है.. !!"

राजेश: "बिल्कुल सही कहा तूने, मदन.. !! सच में.. मुझे तो अब अभी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा"

मदन: "वैशाली बेटा.. तुझे जाना ही चाहिए.. मौसम की इस स्थिति को सहेलियाँ ही बेहतर समझ सकेगी और अच्छे से हेंडल भी कर सकेगी.. माँ-बाप इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उन बेचारों पर तो आसमान टूट पड़ा होगा यह सुनकर... !!"

वैशाली: "ठीक है पापा.. मैं अभी घर को निकलती हूँ.. कविता से भी बात करनी होगी.."

मदन: "ठीक है बेटा.. "

वैशाली ने राजेश की ओर मुड़कर कहा "सर, आज का काम तो मैंने खतम कर दिया है.. अब वापिस आने में एक दो दिन लग सकते है.. तो क्या मैं जा सकती हूँ?"

राजेश: "अरे वैशाली.. यह भी कोई पूछने की बात है?? तू ऑफिस की चिंता मत कर और जा.." राजेश ने ड्रॉअर खोलकर पाँच सौ के दस नोट निकालकर वैशाली को दीये और कहा "ये साथ में रखना.. काम आएंगे"

मदन: "अरे राजेश, क्या कर रहा है यार तू.. उसे जरूरत होगी तो मुझसे ले लेगी.. तू क्यों दे रहा है??"

राजेश: "मुझे पता है की तू उसे दे ही सकता है.. पर अब एक बात समझ ले.. वैशाली को अपने पैरों पर खड़े होना होगा.. और उसमें हम सब उसकी मदद करेंगे.. वो अपनी तनख्वाह से खुद के खर्चे संभालेगी.. हाँ, उसे कभी कुछ भी ज्यादा जरूरत हुई तो हम सब है ना.. !! बाकी उसे अपने हिस्साब से ही जीने दे.. उससे उसका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ेगा... वैशाली, तुम निकलो.. वहाँ जाकर इस प्रॉब्लेम का सही कारण ढूँढने की कोशिश करना.. और पता चले तो अपने पापा को तुरंत बताना.. हो सकता है हम लोग इसमें कुछ मदद कर सकें.. "

वैशाली: "ओके सर.. थेंकस..!!" कहते हुए वैशाली उठकर चली गई.. मुड़कर जाती हुई वैशाली के मटकते नितंब देखकर राजेश की दिल मे जबरदस्त सुरसुरी सी होने लगी..

वैशाली ने बाहर निकलकर ऑटो पकड़ी और तुरंत घर पहुँच गई.. ऑटो में बैठे बैठे उसने पिंटू को सारी बात फोन पर बता दी.. धीरे धीरे पिंटू अब.. किसी और की हो चुकी कविता से ज्यादा वैशाली के प्रति अपना ध्यान केंद्रित कर रहा था.. पिंटू का टूटा हुआ दिल.. और वैशाली का बर्बाद हो चुका वैवाहिक जीवन.. दोनों एक दूजे के लिए आदर्श विकल्प थे.. पर जब जब पिंटू के दिमाग में कविता का विचार आता.. तब उसे लगता की वो कविता का स्थान और किसी को भी नहीं दे पाएगा.. यही सोचकर वो वैशाली से पर्याप्त दूरी बनाए रखता था.. एक बार तो उसे दिमाग में भी आया.. की वो भी वैशाली के साथ जाएँ.. उसी बहाने वह घर भी जा सकेगा और वैशाली के साथ कुछ समय बिताने का मौका भी मिल जाएगा.. पर जैसे ही उसे पता चला की वैशाली तो कविता के साथ जा रही है.. उसने वो प्लान केन्सल कर दिया.. !!

वैशाली घर पहुंची.. शीला घर पर अकेली थी.. वैशाली को इतना जल्दी घर आया देख उसे ताज्जुब हुआ..

शीला: "क्या हुआ बेटा?? तबीयत तो ठीक है ना तेरी??"

वैशाली: "मम्मी, मुझे कुछ नहीं हुआ है.. तुम कविता को यहाँ बुलाओ.. मुझे काम है उसका.."

शीला: "अरे पर हुआ क्या? क्या काम है उसका? तू ही क्यों नहीं चली जाती उसके घर? सब ठीक तो है ना??"

वैशाली: "कुछ भी ठीक नहीं है मम्मी.. मौसम का फोन था.. तरुण सगाई तोड़ना चाहता है.. बहुत रो रही थी बेचारी.. मुझे और कविता को वहाँ बुला रही है"

शीला स्तब्ध होकर बोली "क्या??? ऐसा कैसे हो सकता है? अभी पंद्रह दिन ही तो हुए है सगाई को.. !!"

वैशाली: "पता नहीं मम्मी.. शायद कविता को कुछ पता हो इसके बारे में.. मौसम ने इतना ही कहा की मैं उसकी दीदी को लेकर तुरंत वहाँ आ जाऊ"

शीला गहरी सोच में पड़ गई.. ऐसा तो क्या हो गया अचानक??

शीला ने फोन करके कविता को बुलाया.. कविता तुरंत आ गई.. उसे तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था.. वो तो बेचारी सुनकर ही फुट फुटकर रोने लगी..

शीला और वैशाली ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया और पानी पिलाया

शीला: "हिम्मत रख कविता.. जो होना था सो हो गया.. अच्छा हुआ की शादी से पहली ही हो गया.. वरना मौसम का हाल भी मेरी वैशाली जैसा हो जाता.. !!" और फिर अचानक शीला को याद आया और उसने वैशाली की ओर मुड़ कर देखा और कहा "अरे हाँ बेटा.. देख ये नोटिस आई है.. २५ तारीख को कोर्ट में सुनवाई है.. तुझे अपने पापा के साथ जाना है.. उससे पहले एक बार देसाई अंकल से मिल लेना"

वैशाली: "२५ तारीख को अभी बहोत देर है मम्मी.. फिलहाल मौसम को संभालना बहोत जरूरी है.. मैं सोच रही हूँ की मैं और कविता वहाँ चले जाते है"

शीला: "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है बेटा.. पर तुम दोनों अकेले कैसे जाओगी?"

वैशाली: "क्या मम्मी तुम भी!! दकियानूसी बातें कर रही हो.. हम अपने आप को संभाल सकती है.. "

शीला: "एक बार पापा से पूछ ले"

वैशाली: "मैंने उनसे पूछ लिया है.. वो ऑफिस पर ही थे.. उनसे भी पूछ लिया और राजेश सर की भी पर्मिशन ले ली है.. दोनों ने कहा की मुझे जाना चाहिए"

अब शीला के पास और कोई बहाना नहीं था.. वो बोली "ठीक है.. पर संभाल कर जाना.. ज़माना बहोत खराब है"

कविता उदास होकर घर चली गई.. जब वो आई तब उछलती हुई आई थी.. और जब जा रही थी तब उसके पैरों में से जान ही निकल गई थी

कविता ने घर आकर रोते हुए सारी बात अनुमौसी को बताई.. सुनकर मौसी का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया

अनुमौसी: "उस नालायक में हमारी मौसम को संभालने की ताकत ही नहीं होगी.. वरना क्या कमी है मौसम में?? वही लायक नहीं था मौसम के.."

शाम को पीयूष घर लौटा.. वो पूरा दिन ऑफिस के काम के सिलसिले में बाहर था इसलिए उसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था.. जब कविता ने उसे सारी बात बताई तब वो भी बेहद चोंक गया.. एक पल के लिए तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ..

थोड़ी देर सोचकर पीयूष ने कहा "कल हम दोनों तेरे घर चलते है.. मैं तरुण को समझाऊँगा.. वो पढ़ा लिखा है.. शायद मेरी बात मान जाए.. वैसे मौसम ने तुझे कब बताया इस बारे में? फोन किया था उसने तुझे?"

कविता: "मुझे नहीं.. वैशाली को फोन किया था"

पीयूष: "वैशाली को क्यों फोन किया?? तुझे नहीं कर सकती थी?"

अनुमौसी: "अरे बेटा.. वैशाली को फोन किया हो या कविता को.. क्या फरक पड़ता है?? शायद वो बेचारी कविता को सदमा पहुंचाना न चाहती हो इसलिए वैशाली को फोन किया होगा.. अब तू और कविता वहाँ जाओ.. और हो सके तो उस गधे के बच्चे को समझाओ.. और ना समझे तो कान पकड़कर मेरे पास लेकर आना.. दो चपेड़ लगाकर सीधा कर दूँगी उसे.. !!"

उस रात को बेडरूम में कविता और पीयूष के बीच तरुण और मौसम को लेकर काफी चर्चा हुई.. पीयूष ने मौसम को फोन भी लगाया पर वो बात करने की स्थिति में नहीं थी.. मौसम की माँ, रमिला बहन ने रोते रोते बस इतना ही कहा.. की मौसम ने खाना पीना सब छोड़ दिया है.. बस पूरा दिन रोती रहती है..

वैशाली, कविता और पीयूष दूसरी सुबह बस से मौसम के घर पहुँच गए.. कविता को देखते ही मौसम उसके गले मिलकर बहोत रोई.. पीयूष भी मौसम को गले लगकर सांत्वना देना चाहता था पर माहोल की गंभीरता देखते हुए उसे ऐसा करना योग्य नहीं लगा.. एकाध घंटे के बाद.. सब रोना धोना खत्म करके सब नॉर्मल हुआ.. कविता ने अपनी माँ और मौसम को हिम्मत देकर शांत किया..

शाम को पाँच बजे पीयूष चाय पीने के बहाने बाहर निकला.. तब वैशाली, मौसम और फाल्गुनी, कमरे में बैठकर बातें कर रही थी.. पीयूष का दिल कर रहा था की वो मौसम को भी बाहर ले जाए और प्यारे से सब पूछे.. पर ये मुमकिन न था..

चाय की टपरी पर बैठे बैठे पीयूष बड़ी ही गंभीरता से सोच रहा था.. ऐसा तो क्या हुआ होगा तरुण और मौसम के बीच?? मौसम को पाकर तो तरुण धन्य हो जाना चाहिए था.. कुछ तो कारण होगा.. और उस कारण को जानना बेहद ही जरूरी था..

चाय पीने के बाद सोचते सोचते चलता हुआ पीयूष.. बस अड्डे पर पहुँच गया.. सामने ही बस पड़ी थी.. जिस पर उस शहर का नाम लिखा था जहां तरुण रहता था.. थोड़ा सा सोचकर पीयूष उस बस में चढ़ गया.. !!!

बस की सीट पर बैठते ही पीयूष ने कविता को फोन लगाया

पीयूष: "मैं तरुण से मिलने जा रहा हूँ.. किसी को बताना मत.. कोई मेरे बारे में पूछे तो बताना की कंपनी का अर्जेंट काम निकल गया इसलिए गया है और कल तक लौट आएगा.. वैसे मौसम ने कुछ बताया?? "

कविता: "नहीं यार.. वो तो उस बारे में कुछ बोल ही नहीं रही.. एक ही रट लगाए बैठी है.. की उन दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.. अरे, दोनों के बीच परसों आधी रात तक बात भी हुई थी.. और फिर अचानक क्या हो गया.. दूसरे दिन सुबह दस बजे फोन करके उसने रिश्ता तोड़ दिया"

पीयूष: "ठीक है.. मैं जाकर खुद पूछता हूँ.. तब तक तुम दोनों मौसम और मम्मी जी को संभालना"

कविता: "ओके.. संभलकर जाना"

पीयूष ने फोन रख दिया.. 2 घंटे के सफर के बाद पीयूष तरुण के शहर पहुंचा.. उसने तरुण को फोन लगाया.. तरुण को उसके फोन से कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. उसने पीयूष को एक रेस्टोरेंट का पता दिया और वहाँ पहुँचने के लिए कहा

ढूंढते ढूंढते एक घंटे के बाद पीयूष उस बताए हुए पते पर पहुंचा..

वहाँ एक टेबल पर बैठे तरुण को देखते ही वो उसके पास पहुंचा.. और खड़े खड़े ही सवाल जवाब शुरू कर दीये

पीयूष: "तरुण, ये मैं क्या सुन रहा हूँ?" पीयूष की आवाज में आश्चर्य, मायूसी और क्रोध का मिश्रण था

तरुण ने जवाब नहीं दिया..

पीयूष: "देख तरुण.. तो इतना पढ़ा लिखा है.. मैं ना तो तुझे कोई सलाह या मशवरा दूंगा या फिर ना ही तुझे अपना निर्णय बदलने के लिए फोर्स करूंगा.. अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद से करने का तुझे पूरा हक है.. मैं तो बस सगाई तोड़ने का कारण जानने के लिए आया हूँ.."

तरुण: "पीयूष भैया.. कुछ बातें ऐसी होती है जिसकी चर्चा करने से केवल नफरत और घृणा ही बढ़ती है.. और मैं नहीं चाहता की मैं आप से ऐसी कोई बात करूँ जिसे किसी की ज़िंदगी तबाह हो जाए.. "

पीयूष: "तू मुझे खुलकर बता सकता है.. यकीन मान.. तू जो भी बताएगा वह बात सिर्फ मुझ तक ही रहेगी.. अगर तेरी इच्छा न हो तो असली कारण में किसी को नहीं बताऊँगा.. कोई और ही कारण बताकर सब को मना लूँगा.. सिर्फ यही जानने के लिए मैं इतनी दूर आया हूँ.. इतना तो मुझे जानने का हक है ना.. !!"

तरुण: "अब अगर आप सुनना ही चाहते है तो सुनिए.. !! आपके ससुराल के सभी पात्र चारित्रहीन है.. !!"

सुनकर पीयूष के पैरों तले से धरती खिसक गई.. कहीं ऐसे मेरे और मौसम के संबंधों के बारे में तो नहीं पता चल गया.. !! अपने चेहरे के डर को बड़ी मुश्किल से छुपाते हुए पीयूष ने चकित होने के भाव धारण करते हुए कहा

पीयूष: "क्या बात कर रहा है तू तरुण?? मेरी शादी को इतना समय हो गया पर मुझे तो कभी कुछ ऐसा महसूस नहीं हुआ.. !!"

तरुण: "अब मुझे जो जानने मिला है.. उसे बताने के लिए मेरी जुबान नहीं चलेगी.. इसलिए सारी बातें मैं इस कागज पर लिखकर लाया हूँ" कहते हुए तरुण ने एक फोल्ड किया हुआ कागज पीयूष के हाथ में थमा दिया..

खोलकर पढ़ते ही पीयूष के होश उड गए.. !!!!! अब आगे कुछ भी बोलने-पूछने की आवश्यकता नहीं थी.. वो तरुण से हाथ मिलाकर खड़ा हो गया.. तरुण ने काफी आग्रह किया की वो कुछ खाकर जाए.. पर अब पीयूष के गले से एक निवाला तक उतरना मुमकिन नही था..

जाते जाते पीयूष ने तरुण के कंधे पर हाथ रखकर कहा "तरुण, तेरी और मौसम की जोड़ी बहोत प्यारी लगती है.. किसी और के गुनाह की सजा तू मौसम को दे, ये किस हद तक लाज़मी है?? जो कुछ तुझे जानने को मिला है वह सच ही होगा ऐसा मैं मानता हूँ.. पर इसमें मौसम बेचारी की क्या गलती??"

तरुण: "पीयूष भैया.. परिवार में कुछ भी ऊपर-नीचे या उल्टा-सुलटा हो तो उसका असर सारे सदस्यों पर पड़ता ही है.. ये तो आप भी मानेंगे.. मौसम का दोष सिर्फ इतना ही है की वो ऐसे परिवार की सदस्य है.. आप से हाथ जोड़कर विनती है की मुझे मनाने की कोशिश बिल्कुल मत करना.. मेरे मम्मी-पापा और परिवार के बाकी लोग अब इस रिश्ते के खिलाफ है.. और उन सब को नाराज कर मैं भी सुखी नहीं रह पाऊँगा.. मेरी और से आप मौसम से माफी मांग लेना.. और कहना की तरुण ने तुझे आगे की ज़िंदगी के लिए "ऑल ध बेस्ट" क यहा है.. और अब तरुण तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं है और न कभी होगा.. शायद मौसम मेरी किस्मत में ही नहीं थी.. अब इस बारे में, मैं और बात नहीं करना चाहता भैया.. प्लीज..!!" कहते हुए नम आँखों के साथ तरुण खड़ा होकर रेस्टोरेंट से चला गया.. !!!!

पीयूष स्तब्ध होकर तरुण को जाते हुए देखता रहा.. मायूस होकर वह ऑटो से बस स्टेशन पहुंचा.. अगली बस रात के दस बजे थी.. डॉ घंटों की देरी थी.. अब अनजान शहर मे इतना वक्त खाली बैठे क्या करेगा.. !! बहुत जोरों की भूख लगी थी.. केंटीन में बैठकर उसने भरपेट खाना खाया और फिर बुक-स्टॉल से एक अखबार और एक बुक खरीदकर बैठे बैठे बस का इंतज़ार करने लगा

तभी कविता का फोन आया

फोन उठाकर पीयूष ने कहा "हाँ कविता.. मैं वापिस आ रहा हूँ"

कविता: "मिल भी लिया और बात भी हो गई??"

पीयूष: "हाँ मिल लिया मैंने तरुण से"

कविता: "पाज़िटिव या नेगटिव?" कविता ने इशारे से पूछा

पीयूष ने गहरी सांस छोड़कर कहा "नेगटिव" सच कहने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. आज नहीं तो कल सच सामने आने ही वाला था.. फिर उससे मुंह छुपाकर क्या फायदा.. !!

कविता का मुंह लटक गया.. वो देखकर ही वैशाली समझ गई की पीयूष की मुलाकात का नतीजा क्या निकला होगा.. आदमी का चेहरा ही सब से बेहतरीन आईना होता है.. खुशी, नफरत, गुस्सा, प्रेम या गंभीरता.. इंसान के अंदर के भावों को निष्कर्ष बड़ी खूबी से बता देता है चेहरा.. !! अच्छा हुआ उस वक्त मौसम या उसकी माँ वहाँ मौजूद नहीं थे..

कविता ने आगे कुछ पूछा नहीं और कहा "बस स्टेंड पर उतरकर मुझे फोन करना.. मैं पापा को लेने भेज दूँगी.. आधी रात को तुझे ऑटो नहीं मिलेगा"

पीयूष: "मुझे एक बज जाएगा पहुंचते पहुंचते.. !!"

कविता: "हाँ ठीक है.. तूने खाना खाया?"

पीयूष: "हाँ खा लिया है.. तू मेरी चिंता मत कर..!!"

बस का समय होते ही पीयूष बैठ गया.. और पूरे दिन की थकान के कारण सो गया.. आँख खुली तो स्टेशन आ गया था.. रात का एक बजा था.. और पीयूष कविता को डिस्टर्ब करना नहीं चाहता था.. घर जाकर मौसम को कैसे सांझाए यह सोचते सोचते वो कविता के घर की तरफ चल दिया.. जिस तरुण के लेकर पीयूष के मन में बेहद ईर्ष्या थी.. उसी तरुण पर आज उसे सहानुभूति हो रही थी.. !!

मन की भावनाएं बड़ी विचित्र होती है... कब किसी के लिए कौनसे जज़्बात पैदा हो जाए.. कहा नहीं जा सकता.. फिर वो एक तरफा प्रेम हो.. या नफरत.. ईर्ष्या हो या क्रोध.. !!

सोचते सोचते आधे घंटे बाद वो घर पहुँच गया.. उसने डोरबेल बजाई.. थोड़ी देर के बाद कविता ने दरवाजा खोला.. घर पर सब सो चुके थे

कविता: "तूने फोन क्यों नहीं किया?"

पीयूष: "बेकार में सबके नींद खराब होती.. और वैसे स्टेशन उतना दूर भी नहीं है.. चलते चलते पहुँच गया"

पानी पीने के बाद पीयूष ने कविता को बताया की तरुण का पूरा परिवार अब इस रिश्ते को रखना नहीं चाहता था.. प्रॉब्लेम सिर्फ तरुण और मौसम के बीच होता तो शायद सुलझ भी जाता.. पर बात अब बहोत आगे बढ़ चुकी थी

चोंक उठी कविता ने कहा "अरे पर अचानक बात यहाँ तक कैसे पहुँच गई? दो दिन पहले तक तो सब ठीक था.. वजह बताई की नहीं तरुण ने?"

पीयूष: "हम्म.. न.. नहीं.. कुछ नही बताया" इतने समय से साथ रह रही कविता समझ गई की पीयूष सच नहीं बोल रहा था.. या शायद बोल नहीं पा रहा था.. हो सकता है की पीयूष अभी न बताना चाहता हो.. पर जब दोनों अकेले बेडरूम में होंगे तब वह सच बता ही देगा.. अभी फिलहाल उस पर जबरदस्ती करने का कोई मतलब नहीं था..

कविता: "जो हो गया सो हो गया.. अभी बात करने से हकीकत बदल तो नहीं जाएगी.. !! तू थक गया होगा.. हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जा.. मैं खाना लगाती हूँ.. !!

पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.. कविता ने खाने की थाली लगा दी.. और अंदर रोटियाँ बेलने लगी.. तभी मौसम ऊपर से उतरकर नीचे आई और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..

जंग में हारे हुए योद्धा जैसा पीयूष.. मौसम से नजरें नहीं मिला पा रहा था.. बात को बदलने के इरादे से पीयूष ने कहा

पीयूष: "ओ हाय बेबी.. अभी भी जाग रही? नींद नहीं आ रही?"

मौसम ने उदास होकर कहा "कैसी नींद जीजू.. !!"

रोटी का गरम फुल्का लेकर कविता ने पीयूष की प्लेट में रखते हुए कहा " देख मौसम.. तू कितनी भी चिंता कर ले.. कितना भी जाग ले.. इस समस्या का हल अभी तो मिलने नहीं वाला.. चिंता होना जायज है पर चिंता किसी भी प्रॉब्लेम का हल नहीं है.. और मान ले की यह रिश्ता सच में हमेशा के लिए टूट जाता है.. तो इससे तेरी ज़िंदगी रुक थोड़ी न जाएगी??"

पीयूष: "मौसम.. किसी प्रॉब्लेम का जब हल न हो तो उसे वास्तविकता समझ कर स्वीकार लेना चाहिए.. तुझे यह मान लेना होगा की तरुण अब तेरे जीवन का हिस्सा नहीं है.. सदमा लगना स्वाभाविक है.. यह मैं समझ सकता हूँ.. पर अब तुझे ही तय करना है की इस बात को पकड़कर तू हमेशा के लिए दुखी रहना चाहती है या सब कुछ भूलकर आगे बढ़ना चाहती है.. !!"

मौसम: "जीजू.. मैंने तो हकीकत का स्वीकार कर ही लिया है.. की तरुण अब मेरा नहीं है.. मुझे तो सिर्फ यह जानना है की उसे ऐसा कदम आखिर क्यों उठाना पड़ा?? मैं क्या इतनी गई-गुजरी हुई जो वो मुझे बिना कोई वजह बताएं ही रिश्ता तोड़ दें??"

कविता: "वक्त आने पर सब पता चलेगा मौसम.. तू चिंता मत कर.. सच हमेशा सामने आ ही जाता है.. हो सकता है.. तरुण के साथ ही कोई प्रॉब्लेम हुई हो.. जो वो तुझे बता न पा रहा हो"

सुनकर मौसम का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ.. उसे बस यही जानना था की तरुण के इस कदम के पीछे असली कारण क्या था

मौसम: "जीजू.. मैं यहाँ के वातावरण से तंग आ गई हूँ.. मैं कुछ दिन आपके यहाँ आकर रहना चाहती हूँ.. ताकि मेरे दिमाग से तरुण के विचारों को हटा सकूँ.. यहाँ रहूँगी तो पूरा दिन उसी के बारे में सोचती रहूँगी.. ऊपर से मम्मी का उदास चेहरा मुझसे देखा नहीं जाता.. प्लीज दीदी.. कल हम जितना हो सकें उतना जल्दी निकल जाते है यहाँ से.. !!"

पीयूष: "हाँ हाँ.. क्यों नहीं.. वैसा ही करेंगे.. दरअसल मैं सामने से तुझे यह कहने ही वाला था.. तू हमारे साथ चल.. सब ठीक हो जाएगा.. हम सब है ना तेरे साथ.. फिर किस बात की फिक्र.. !!"

मौसम: "ओके जीजू.. थेंकस.. गुड नाइट"

इतना कहते ही मौसम को फिर से रोना आ गया.. और वो भागकर अपने कमरे की और चली गई.. जाते जाते उसके रोने की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी..

कविता: "पीयूष, अब मुझे तो बता.. !! तरुण ने आखिर सगाई क्यों तोड़ दी??" सीधा सवाल किया कविता ने

पीयूष सोच में पड़ गया.. अब क्या बताएं कविता को?

पीयूष: "कविता, जब किसी बात को निकालने पर काफी सारे लोगों का अहित होना हो.. तब उसे न निकालना ही बेहतर होगा.. चल.. कल जल्दी उठना है.. सो जाते है.. सुबह ६ बजे की बस से निकल जाएंगे"

थोड़े घंटों की नींद लेने के बाद.. कविता, वैशाली, मौसम और पीयूष जाने के लिए तैयार हो गए.. सुबोधकांत उन्हें बस स्टेशन तक छोड़ने आए.. पहली बस मे काफी भीड़ थी.. इसलिए दूसरी बस की राह देखने लगी.. दूसरी बस का भी वही हाल था.. आखिर सुबोधकांत ने सब को अपनी गाड़ी में ही छोड़ आने का फैसला किया

कार तेजी से सड़क पर चल रही थी और उतनी ही तेजी से कविता और मौसम के दिमाग में विचार भी चल रहे थे.. गाड़ी चलाते हुए सुबोधकांत एकदम खामोश थे..

२ घंटों के सफर के बाद वो लोग पहुँच गए.. घर के अंदर घुसते ही मौसम अनुमौसी से गले मिलकर रोने लगी.. अनुमौसी ने अपने अनुभवयुक्त शब्दों से उसे सांत्वना दी..

मौसम कविता की मदद करने किचन में गई.. उस दौरान कविता ने उसे तरुण के बारे में.. उनके संबंधों के बारे में काफी कुछ पूछा.. पर उसे ऐसी कोई हिंट न मिली जिससे की वो किसी बात का अंदाजा लगा पाती

दोपहर के बाद पीयूष ऑफिस चला गया.. काम भी देखना जरूरी था..

थोड़ी देर के बाद, शीला और मदन भी मौसी के घर आ गए.. सुबोधकांत से मिलकर दोनों उनके साथ बैठे.. सुबोधकांत ने मौसम और तरुण की सगाई टूटने के बारे में बताया.. जिसके बारे में वह दोनों पहले से ही जानते थे.. थोड़ी देर की बातों के बाद.. सब एकदम चुपचाप बैठे थे

कविता और मौसम चाय लेकर आए..

चाय एक घूंट में खत्म करते ही.. सुबोधकांत ने अपनी घड़ी की ओर देखकर कहा "अब मुझे निकलना चाहिए"

कविता: "पापा, दोपहर तो हो ही चुकी है.. आप खाना खाकर ही जाइए"

सुबोधकांत: "नहीं बेटा.. अचानक यहाँ आना हुआ इसलिए मेरे कई काम रुकें पड़े है.. मुझे जाना ही होगा.. " बार बार अपनी घड़ी की ओर देख रहें सुबोधकांत तो कविता ने और नहीं रोका

अचानक शीला की नजर सुबोधकांत की गोल्डन केस वाली राडो घड़ी पर गई.. और ध्यान से देखते ही उसकी सांसें थम गई.. !!!

याद आते ही बेहद चोंक गई शीला.. अरे बाप रे... ये तो कॉकटेल है.. !! बिल्कुल यही घड़ी कॉकटेल ने भी पहन रखी थी.. ध्यान से देखने पर सुबोधकांत का शरीर, बोल-चाल सब कुछ कॉकटेल से मेल खा रहा था.. उसका लंड भी जाना-पहचाना सा क्यों लग रहा था वो अब पता चला शीला को.. सुबोधकांत के घर के गराज में एक बार चूस चुकी थी उनका लंड.. इसीलिए जब होटल में वह लंड दोबारा देखा तब हल्की सी भनक तो लगी थी पर याद नहीं आ रहा था.. !! शीला के पूरे बदन में झनझनाहट से छा गई.. हाँ, वो कॉकटेल ही था.. जिसका लंड मैंने और रेणुका दोनों ने दिल खोल कर चूसा था.. हे भगवान.. कहीं सुबोधकांत ने हमें पहचान तो नहीं लिया होगा.. !!!


मदन को वहीं बैठा छोड़कर शीला घबराकर घर वापिस आ गई..
Fantastic update
 

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मदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..

उस दौरान, रेणुका और शीला, बड़े ही आराम से मस्ती करते हुए गाड़ी में अपने शहर की ओर जा रहे थे.. देखते ही देखते दोनों रेणुका के घर पहुँच गए.. शीला ऑटो लेकर घर पहुंची.. तब वैशाली ऑफिस जा चुकी थी.. रेणुका और शीला के बीच.. गाड़ी में जो गुफ्तगू हुई, वो जबरदस्त थी..!!

सुबह के दस बज गए थे.. पिछली रात के संस्मरणों के बारे में सोचते हुए शीला रोजमर्रा के काम में मशरूफ़ हो गई...

दोपहर तीन बजे के करीब मदन घर पहुंचा.. उसका चेहरा इतना उदास था, जैसे कोई उसके गोटे चुराकर भाग गया हो.. !! शीला ने उसका ऐसे स्वागत किया जैसे कल रात कुछ हुआ ही न हो.. एकदम स्वाभाविक व्यवहार दिखाया उसने.. !!

मदन धीरे धीरे चलते हुए सोफ़े पर जा बैठा.. शीला उसके लिए पानी का ग्लास लेकर आई..

यहाँ आने से पहले मन ही मन मदन सोच रहा था की घर पहुंचते ही शीला उसकी बैंड बजा देगी.. पर ये तो बिल्कुल उल्टा ही हो रहा था.. !! हाथ में ग्लास थमाकर शीला कोई गीत गुनगुनाते हुए किचन में चली गई.. थोड़ी देर के बाद अदरख की खुश्बू से पता चला की अंदर मस्त मसालेदार चाय बन रही थी..

हाथ में दो बड़े चाय से भरे मग लेकर शीला बाहर आई.. एक मग मदन को दिया और मदन के करीब सोफ़े पर बैठ गई..

मदन की हालत इतनी खस्ता थी की खिड़की के बाहर अपने बरामदे में झुककर झाड़ू लगा रही कविता के लटकते बबले देखने का भी मन नहीं हो रहा था उसे..

अपनी आँखें मटकाते हुए बड़े ही शरारती अंदाज में शीला ने मदन से पूछा "कैसी रही मीटिंग?"

मदन ने जवाब नहीं दिया..

मदन को इस स्थिति में देखकर शीला बेहद खुश हुई.. सशक्त और प्रभावशाली महिलाएं अपनी शक्ति और प्रभाव को पुरुषों पर हमेशा स्थापित करना चाहती हैं.. ऐसी महिलाएं अपनी स्थिति और अधिकार को तब महसूस करती हैं, जब वे अपने पुरुषों को कमजोर या उनके दायित्वों के तले दबा हुआ देखती हैं.. ऐसे सूरत में, महिलाएं आम तौर पर पुरुषों को नियंत्रण में रखने का आनंद महसूस करती हैं, और यह शक्ति का असमान वितरण उनके आत्म-सम्मान और संतुष्टि का हिस्सा बन जाता है..!!

मदन को ओर उंगली करने के लिए उसने उसे कुहनी मारकर कविता की तरफ इशारा करते हुए कहा "वो देख.. कविता के भी उस बार्बी जैसे ही है.. बुला ले उसे आज रात को.. !! तो क्या है, की तुझे झूठ बोलकर दोबारा इतने दूर जाना नहीं पड़ेगा"

मदन: "प्लीज यार शीला.. कविता के लिए ऐसा मत बोल.. उसमें उस बेचारी का क्या दोष?"

शीला: "बात तो तेरी सही है मदन.. पर क्या करूँ?? घूम फिरकर वही सारी बातें याद आ जाती है.. कल जब रेणुका तेरा लंड चूस रही थी.. तब तेरी उत्तेजना जबरदस्त बढ़ गई थी.. मैंने अपनी आँखों से देखा है इसलिए मुकर मत जाना.. वरना मर गया आज तो.. !!"

रेणुका की बात छेड़कर शीला क्या कहना चाह रही थी इसके बारे में मदन सोचता उससे पहले शीला ने और एक बाउंड्री मार दी..

शीला: "बिना मुझ से पूछे.. तुम दोनों ने आपस में ही बीवियाँ बदलने का तय कैसे कर लिया????"

मदन: "अरे यार.. तू ही तो कहती थी.. की तुझे ग्रुप सेक्स करना है.. बी.पी. देखते हुए तू कितनी गरम हो जाती थी और ऐसी बातें किया करती थी.. !! भूल गई क्या??"

शीला: "मदन, चल अंदर चलकर बात करते है"

मदन: "नहीं.. यही पर ही ठीक है.. " मदन जानता था की अंदर बेडरूम में ले जाने का बाद शीला कुछ भी कर सकती थी.. उसे वो जोखिम लेना ही नहीं था..

चाय खत्म हो गई.. पर दोनों की गरमागरम बातें खत्म नहीं हुई.. बड़ी मुश्किल से मदन ने शीला से अपनी जान छुड़ाते हुए कहा

मदन: "मैं थोड़ी देर बाहर जाकर आता हूँ"

शीला ने उसे रोका नहीं.. और वो चला गया.. शीला सोफ़े पर बैठे बैठे आगे की रणनीति सोच रही थी तभी मदन के फोन की रिंग बजी.. जल्दबाजी में मदन फोन ले जाना ही भूल गया था.. !!

शीला ने फोन हाथ में लिया.. स्क्रीन पर रेणुका का नाम नजर आ रहा था.. शीला ने फोन उठाया और कुछ बात की.. फोन काटकर उसने राजेश को फोन लगाया..

राजेश: "हैलो भाभी जी, कैसी है आप?" बड़ी ही विनम्रता से राजेश ने कहा

शीला: "अरे वाह.. कितने भोले बन रहे हो.. इतने भोले राजेश से मुझे कोई बात नहीं करनी.. रखती हूँ" बड़ी शातिर थी शीला

राजेश: "अरे नहीं नहीं भाभी.. कहिए, क्या काम था? वो तो.. कल रात के बाद.. आप से बात करने में थोड़ा संकोच हो रहा था इसलिए.. वरना आप के सामने भला कौन भोला बनकर रहना चाहेगा.. !!"

शीला ने मुस्कुराकर कहा "अच्छा.. !!! मैं तो समझ रही थी की मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ"

राजेश: "भाभी जी, शराब जितनी पुरानी हो उतना ही ज्यादा मज़ा देती है"

शीला: "तो क्या मैं शराब हूँ? तब तो मुझ पर भी सरकार को रोक लगा देनी चाहिए"

राजेश: "खुलेआम मजे लेने पर तो वैसे भी रोक ही है ना.. फिर वो शराब हो या आप.. !! पर चुपके चुपके क्या कुछ नहीं हो सकता.. !! कल रात को ही आपने सारे नज़ारे देख लिए है"

शीला: "राजेश, एक बात कहूँ.. पर किसी को बताना मत"

राजेश: "हाँ कहिए भाभी.. "

शीला: "नहीं ऐसे नहीं.. पहले वादा करो को आप किसी को नहीं बाताओगे.. रेणुका को भी नहीं.. यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए"

राजेश: "बात क्या है भाभी? कुछ सीक्रेट है क्या? वैसे सीक्रेट बात हो या काम.. दोनों में ही मज़ा आता है.. जल्दी कहिए"

शीला: "पहले वादा करो किसी को नहीं बताओगे"

राजेश: "ठीक है, वादा करता हूँ"

शीला: "कैसे कहूँ... मुझे तो शर्म आती है.. राजेश.. कल तुम बहोत ही हार्ड थे.. तुम्हारा वो... उसकी तस्वीर मेरी आँखों के सामने से हट ही नहीं रही है"

सुनते ही राजेश का लंड ऐसे खड़ा हो गया जैसे अभी अभी वियाग्रा के साथ रेड-बुल के दो टीन पी लिए हो.. !! ऐसी उत्तेजना का अनुभव उसने इससे पहले सिर्फ एक ही बार किया था.. माउंट आबू में बियर पीने के बाद जब टॉइलेट में वैशाली ने उसे अंदर खींचकर उसका लंड पकड़ लिया था..!!

शीला: "राजेश, आप मेरे बारे में कुछ बुरा मत सोचिएगा.. आप दोनों जो अंदर अंदर स्वैपिंग करने की बात कर रहे थे.. उसके लिए रेणुका तैयार हो जाती.. शायद मैं भी तैयार हो जाती.. पर मदन कभी भी तैयार नहीं होगा.. मुझसे इतनी मोहब्बत करता है वो.. मुझे किसी और की बाहों में वो देख ही नहीं पाएगा.. !!"

राजेश: "अरे भाभी.. वो सब बातें तो हम सिर्फ मज़ाक मज़ाक में कर रहे थे.. आप उसे सिरियसली मत लीजिए.. चाहे आप हो या रेणुका.. अपने पति के दोस्त के साथ ऐसा करने की कौन भला सोचेगा??"

शीला: "सोच तो कोई भी सकता है.. कुछ भी नामुमकिन नहीं होता.. पति की जानकारी में ये करना जरूर मुश्किल है.. पर उससे छुपाकर तो हो ही सकता है"

सुनकर राजेश के होश उड़ गए "आप क्या कह रही हो भाभी????"

शीला: "प्लीज राजेश.. ये तो अच्छा हुआ की मदन अपना फोन भूल गया तो मैं उसके फोन से ये बात कह रही हूँ.. वरना मेरी ये इच्छा अधूरी ही रह जाती.. सामने से तो ऐसा कहने की मेरी हिम्मत कभी नहीं होती.. पर आज जब मौका मिल ही गया तो मैं उसे छोड़ना भी नहीं चाहती.. मुझे कहने दीजिए.. जब से मैंने तुमको इतना हार्ड होते हुए देखा है.. तब से मेरे रोम रोम में बस तुम्हारी ही याद बसी हुई है.. जो हरदम मुझे मजबूर कर रही है की उस हार्डनेस का अनुभव किए बगैर मैं रह नहीं पाऊँगी.. सिर्फ एक बार.. प्लीज मुझे चांस दो.. आई लव यू राजेश"

स्तब्ध हो गया राजेश.. !! ये क्या खेल खेल रही थी शीला उसके साथ.. !! शीला ने आई लव यु तक बोल दीया?? कोई इतनी जल्दी कैसे किसी से प्रेम कर सकता है?? शीला जबरदस्त गरम औरत थी उसमें कोई दो राय नहीं थी.. पर जैसे भी थी.. थी तो वो उसके दोस्त की बीवी.. मदन के साथ ऐसा धोखा मैं कैसे कर सकता हूँ??

धोखा..!! यह शब्द याद आते ही राजेश के दिल ने उसे एक मजबूत लात लगाकर मैदान के बाहर फेंक दिया.. धोखा देने में अब बाकी ही क्या बचा था?? और मदन भी तो रेणुका की चूत चाट ही चुका था.. !! वो भी मेरे नज़रों के सामने.. !! तो अब धोखे वाली बात के बारे में सोचने का कोई मतलब ही नहीं था.. और मैं कहाँ शीला पर कोई जबरदस्ती कर रहा हूँ?? या उसे फुसला रहा हूँ? ना ही मैं उसे कोई धोखा दे रहा हूँ.. जब वो ही सामने से चलकर आ रही है तो... !!

शीला: "क्या सोच रहे हो राजेश?? यही ना.. की मैं कितनी गिरी हुई और घटिया किस्म की औरत हूँ.. !!"

राजेश चुप ही रहा

शीला: "अब तुम मुझे घटिया समझो या गिरी हुई समझो.. पर मैं अपनी इच्छा को अधूरी छोड़ने वालों में से नहीं हूँ.. मुझे तो कल रात को ही तुम्हारा हार्ड पेनीस देखकर, उसे अंदर लेने का मन कर रहा था.. पर सच कहूँ तो मदन की मौजूदगी में.. मैं खुलकर मज़ा न ले पाती.. मुझे एकांत चाहिए.. सिर्फ तुम और मैं अकेले.. दुनिया का कोई एक ऐसा कोना जहां पर हम दोनों के अलावा और कोई न हो.. ऐसे माहोल में.. मैं मुक्त होकर तुम्हारे साथ इन्जॉय करना चाहती हूँ.. प्लीज मुझे निराश मत करना.. मैं मर रही हूँ तुम्हारी सख्ती को अपने अंदर महसूस करने के लिए.. !!"

राजेश के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे.. शीला ने तो उसे प्रपोज ही कर दिया.. !! अब क्या जवाब दें.. !!

फोन पर बात करते हुए राजेश गाड़ी ड्राइव कर रहा था.. अपने घर की ओर.. वो घर पहुंचकर रेणुका के साथ अपने संबंधों को वापिस दुरस्त करना चाहता था.. दूध फट तो चुका था.. अब उससे जितना जल्दी पनीर बना लिया जाए उतना अच्छा.. !! और इसी बीच शीला का फोन आ गया.. गाड़ी चलाते हुए उसका लंड खड़ा हो गया था.. शीला की बातों ने उसके लंड को फिर बैठने ही नहीं दिया.. ऐसा हाल हो गया की गाड़ी चलाते चलाते ही उसने अपना लंड बाहर निकाला और मूठ लगाने लगा..

राजेश: "ओह्ह भाभी.. अपना तो मेरा हाल कल रात जैसा कर दिया.."

शीला: "तो फिर आ जाओ.. मदन बाहर गया है.. घर पर कोई नहीं है"

राजेश: "और कहीं वो आ गया तो?"

शीला: "एक काम करती हूँ.. उसे फोन करके पूछ लेती हूँ.. की कब लौटने वाला है"

राजेश: "पर कैसे पूछोगी? फोन तो उसका घर पर ही है"

शीला: "जाने दो.. लगता है तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही है"

राजेश: "ऐसा नहीं है भाभी... पर.. !!!"

शीला ने नाराज होकर कहा "मदन लौट आया है" और उसने फोन काट दिया

फोन रखने के बाद शीला को अफसोस हो रहा था की आखिर वासना की बाढ़ में बहकर उसने राजेश से ऐसी बात की ही क्यों?? अब वो क्या सोचेगा मेरे बारे में??

शीला की बातों से बेहद उत्तेजित होकर.. राजेश ने रोड के किनारे गाड़ी पार्क कर दी.. और मूठ लगाते हुए अपने रुमाल में पिचकारी मार ली.. और फिर घर की ओर निकल गया

घर के गंभीर वातावरण को देखते हुए अब वहाँ किसी उत्तेजक घटना के घटने की कोई संभावना नहीं थी.. जैसा राजेश ने सोचा था.. रेणुका मुंह फुलाकर बैठी हुई थी.. और उससे बात करने के मूड में नहीं थी.. और वो स्वाभाविक भी था.. इसलिए राजेश को कोई ताज्जुब नहीं हुआ..

उस रात उन दोनों के बीच कुछ खास नहीं हुआ.. पर बगल में सो रहे दोनों के दिमाग में पिछली रात की घटनाएं घूम रही थी.. रेणुका मदन के लंड को याद कर रही थी.. जब की राजेश के दिमाग में शीला ने आज दोपहर को कही हुई बातें बार बार आ रही थी..

इस तरफ मदन और शीला के हाल भी कुछ ऐसे ही थे.. शीला पार्टी के सारे लंड याद कर रही थी.. जब की मदन के दिमाग में रेणुका का छरहरा बदन घूम रहा था..

राजेश सोते सोते सोच रहा था.. आह्ह.. आज शीला भाभी ने मेरे लंड की तारीफ की.. मुझे खुला निमंत्रण तक दे दिया.. !! याद करते ही राजेश के मुंह से एक सिसकी निकल गई.. जो बगल में लेटकर उत्तेजना से झुलस रही रेणुका ने स्पष्ट रूप से सुना.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो मन ही मन सोच रही थी की अगर कल रात पुलिस की रैड न पड़ी होती.. तो वो और शीला अपनी पहचान अंत तक छुपाने में कामयाब रहते.. और रात का पूरा लुत्फ उठा पाते.. खैर फिर जो हुआ वो कल्पनातीत था.. भला हो शीला का.. जिसने अपनी सही पहचान बताकर सबको बचा लिया.. वरना आज सब के सब जैल की सलाखों के पीछे होते.. बाप रे.. !! समाज में क्या इज्जत रह जाती.. !! हाथ में नाम और पता लिखा हुआ बोर्ड थमाकर पुलिस वाले तस्वीर खींचते और अखबार वाले उसे पहले पन्ने पर छाप देते.. !!!

इस तरफ शीला करवट लेकर अपनी निप्पल को मसल रही थी.. उससे अब यह उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. हेमंत के जवान ताजे लंड ने उसे जो मजे दीये थे.. उसे याद करते हुए वह बहोत गर्म हो गई.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा बदन बुखार से तप रहा हो.. ऊपर से, राजेश को लंड को चूसने पर जो शानदार किक मिली थी वो स्खलित होने के लिए काफी थी.. राजेश के लंड की याद आते ही शीला के भोसड़े में हवस की आग लग गई.. कुछ भी हो जाए.. एक बार तो वो लंड अंदर लेना ही है.. !! पर वो साला एक नंबर का डरपोक है.. क्या किया जाए?? मदन शहर से कहीं बाहर चला जाएँ तो फिर बढ़िया मौके का सेटिंग हो सकता है.. पर वैशाली तो घर पर ही होगी.. उसका क्या करें?? राजेश के घर पर रेणुका हर वक्त रहती थी.. ऑफिस मे पीयूष और पिंटू दोनों उसे पहचानते थे.. और यहाँ घर पर वैशाली और मदन का टेंशन.. ऊपर से.. कविता और अनुमौसी के नज़रों से बचाकर कुछ भी करना नामुमकिन सा था..

सोचते सोचते शीला अपनी चूत को कुरेदती रही.. और ऐसा सोचती रही की जैसे राजेश का लंड अंदर घुस रहा हो.. थोड़ी देर में ही उसकी चूत ने शहद टपका दिया.. और वो सो गई..

दूसरी सुबह, लगभग ग्यारह बजे के आसपास.. मदन पर राजेश का फोन आया.. दोनों ने काफी देर तक लंबी बातचीत की.. शीला बगल मे ही बैठी थी.. पर उस रात की घटना के बाद मदन की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो खड़ा होकर, शीला से दूर जाकर बात करें.. उस रात के बारे में अब तक शीला और मदन के बीच खुल कर बात हुई भी नहीं थी.. !! आखिर मदन ने "बाद में बात करते है" कहते हुए फोन रख दिया..

शीला ने कुछ पूछा नहीं.. उसने उठकर डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया.. मदन ने भी चुपचाप पालतू कुत्ते की तरह खाना खा लिया.. और शीला को बिना कुछ बताएं बाहर चला गया.. वो जितना हो सकें.. शीला के वाक्य-बाणों से दूर रहना चाहता था..

मदन ने बाहर निकलते ही राजेश को फोन किया.. और सीधा उसकी ऑफिस पहुँच गया.. पापा को देखकर वैशाली बहुत ही खुश हो गई.. काफी देर तक मदन और वैशाली की बातें चली.. बड़े ही उत्साह से वैशाली ने अपने काम के बारे मे बताया..

मदन ने राजेश की चेम्बर में प्रवेश किया.. राजेश ने बेल बजाकर प्युन को बुलाया और दो कप कॉफी मँगवाई.. और दोनों बातों में मशरूफ़ हो गए

राजेश: "मदन यार.. घर पर सब कैसा है?? मेरी तो वाट लगी पड़ी है.. !!"

मदन: "मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है.. तेरी भाभी तो मुझसे सीधे मुंह बात भी नहीं करती.. अपने ही घर में बेघर की तरह जी रहा हूँ.. बस खाना खाकर कोने में पड़ा रहता हूँ.. एक रात के मजे की इतनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ेगी ये अंदाजा नहीं था.. बहोत बड़ी गलती हो गई.. तुझे क्या लगता है?"

राजेश: "बिल्कुल सच कहा तूने यार.. पर सोच.. अगर वहाँ हमारी बीवियाँ और पुलिस न आए होते तो कितना मज़ा आता.. !!"

मदन: "वो सब तो ठीक है यार.. पर ये सोच.. हो सकता है पुलिस को अपने सूत्रों से खबर मिली हो और उन्हों ने रैड कर दी.. पर मेरा दिमाग तो यह सोचकर खराब हुआ जा रहा है की हमारी बीवियों को इस बारे में कैसे और कहाँ से पता चला?? और वो दोनों वहाँ पहुंची कैसे??"

राजेश: "तुझे क्या लगता है मदन.. हम जो कुछ भी करते है.. उसका हमारी पत्नियों को पता नहीं चलता.. !! सब पता चलता है.. अगर हम न भी बताएं तो वो हमारी हरकतों से भांप लेती है की कहीं कुछ गलत हो रहा है.. उसे ही तो औरतों की छठी इंद्रिय कहा गया है.. असल मे.. वह लोग बहुत कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते है.. "

मदन: "नहीं यार.. मैं नहीं मानता.. !!"

राजेश: "ऐसा ही होता है मदन.. तू माने या ना मानें.. हकीकत यही है.. जब तक औरतों को अपनी सलामती या इज्जत पर कोई आंच आती न दिखे.. तब तक वो सब कुछ सह लेती है.. पर उन्हें जरा सा भी शक हुआ या डर लगा की मामला बिगड़ रहा है.. वह तुरंत ही सक्रिय हो जाती है.. और फिर वो किस हद तक जा सकती है, वो तो हम दोनों ने अपनी आँखों से देख ही लिया है"

मदन: "हाँ यार.. पर ताज्जुब इस बात का है.. की वो दोनों पुलिस से भी पहले पहुँच चुके थे.. उस हिसाब से उनका नेटवर्क तो पुलिस से भी ज्यादा मजबूत हुआ.. !!"

दोनों बातें कर रहे थे उस वक्त वैशाली कॉफी के तीन कप लेकर चेम्बर के अंदर आई.. राजेश और मदन ने बड़ी ही सफाई से अपनी बात बदल दी और क्रिकेट के बारे में बातें करने लगे..

टेबल पर तीनों कप रखकर वैशाली बैठ गई.. राजेश, मदन की मौजूदगी में ही वैशाली के विशाल तंदूरस्त स्तन-युग्म को देख रहा था.. जिस तरह से वो चलकर अंदर आई.. टाइट टी-शर्ट के अंदर दबी हुई चूचियाँ तालबद्ध लय में ऊपर नीचे हो रही थी.. एक पल के लिए मदन का इमान भी डोल गया पर उसने उस घृणास्पद विचार को रोक लिया..

वैशाली: "सॉरी पापा.. मैं आप लोगों को डिस्टर्ब कर रही हूँ.. पर मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है.. !!"

मदन: "हाँ बोल न बेटा.. !!"

बाप-बेटी की बातचीत बड़े ध्यान से सुनते हुए राजेश अब भी वैशाली के कटीले बबलों को ताड़ रहा था

वैशाली: "दरअसल अभी मौसम का फोन आया था.. उसने मुझे और कविता को अर्जेंट उसके घर बुलाया है.. दो दिनों के लिए.. वो फोन पर बहोत ही रो रही थी.. !!"

राजेश: "तब तो बात जरूर बहोत गंभीर होगी.. !!"

मदन: "उसने कारण बताया या नहीं?? कुछ ज्यादा गंभीर बात हो तो हम भी चलें तुम लोगों के साथ"

वैशाली: "और तो कुछ नहीं बताया पर इतना बोली की उसके मंगेतर तरुण के बीच बहोत बड़ा प्रॉब्लेम हुआ है.. और तरुण सगाई तोड़ना चाहता है"

यह सुनकर राजेश और मदन दोनों चोंक गए

राजेश: "क्या?? ऐसे कैसे सगाई तोड़ सकता है?? कोई मज़ाक है क्या?? पर कुछ तो हुआ होगा उन दोनों के बीच... कुछ बताया मौसम ने?"

वैशाली: "वो फोन पर कुछ भी बताने को राजी नहीं है.. अब तो वहाँ जाकर ही कुछ पता चलेगा की मामले आखिर क्या है.. !!"

मदन: "ये आजकल के बच्चे भी ना.. सगाई-शादी जैसे गंभीर संबंधों को भी गुड्डे-गुड्डियों का खेल ही समझते है.. जब मर्जी की तब कर लिया.. और मन भर गया तो फेंक कर खड़े हो गए.. अरे भाई.. ऐसे थोड़े ही होता है.. !!"

राजेश: "बिल्कुल सही कहा तूने, मदन.. !! सच में.. मुझे तो अब अभी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा"

मदन: "वैशाली बेटा.. तुझे जाना ही चाहिए.. मौसम की इस स्थिति को सहेलियाँ ही बेहतर समझ सकेगी और अच्छे से हेंडल भी कर सकेगी.. माँ-बाप इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उन बेचारों पर तो आसमान टूट पड़ा होगा यह सुनकर... !!"

वैशाली: "ठीक है पापा.. मैं अभी घर को निकलती हूँ.. कविता से भी बात करनी होगी.."

मदन: "ठीक है बेटा.. "

वैशाली ने राजेश की ओर मुड़कर कहा "सर, आज का काम तो मैंने खतम कर दिया है.. अब वापिस आने में एक दो दिन लग सकते है.. तो क्या मैं जा सकती हूँ?"

राजेश: "अरे वैशाली.. यह भी कोई पूछने की बात है?? तू ऑफिस की चिंता मत कर और जा.." राजेश ने ड्रॉअर खोलकर पाँच सौ के दस नोट निकालकर वैशाली को दीये और कहा "ये साथ में रखना.. काम आएंगे"

मदन: "अरे राजेश, क्या कर रहा है यार तू.. उसे जरूरत होगी तो मुझसे ले लेगी.. तू क्यों दे रहा है??"

राजेश: "मुझे पता है की तू उसे दे ही सकता है.. पर अब एक बात समझ ले.. वैशाली को अपने पैरों पर खड़े होना होगा.. और उसमें हम सब उसकी मदद करेंगे.. वो अपनी तनख्वाह से खुद के खर्चे संभालेगी.. हाँ, उसे कभी कुछ भी ज्यादा जरूरत हुई तो हम सब है ना.. !! बाकी उसे अपने हिस्साब से ही जीने दे.. उससे उसका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ेगा... वैशाली, तुम निकलो.. वहाँ जाकर इस प्रॉब्लेम का सही कारण ढूँढने की कोशिश करना.. और पता चले तो अपने पापा को तुरंत बताना.. हो सकता है हम लोग इसमें कुछ मदद कर सकें.. "

वैशाली: "ओके सर.. थेंकस..!!" कहते हुए वैशाली उठकर चली गई.. मुड़कर जाती हुई वैशाली के मटकते नितंब देखकर राजेश की दिल मे जबरदस्त सुरसुरी सी होने लगी..

वैशाली ने बाहर निकलकर ऑटो पकड़ी और तुरंत घर पहुँच गई.. ऑटो में बैठे बैठे उसने पिंटू को सारी बात फोन पर बता दी.. धीरे धीरे पिंटू अब.. किसी और की हो चुकी कविता से ज्यादा वैशाली के प्रति अपना ध्यान केंद्रित कर रहा था.. पिंटू का टूटा हुआ दिल.. और वैशाली का बर्बाद हो चुका वैवाहिक जीवन.. दोनों एक दूजे के लिए आदर्श विकल्प थे.. पर जब जब पिंटू के दिमाग में कविता का विचार आता.. तब उसे लगता की वो कविता का स्थान और किसी को भी नहीं दे पाएगा.. यही सोचकर वो वैशाली से पर्याप्त दूरी बनाए रखता था.. एक बार तो उसे दिमाग में भी आया.. की वो भी वैशाली के साथ जाएँ.. उसी बहाने वह घर भी जा सकेगा और वैशाली के साथ कुछ समय बिताने का मौका भी मिल जाएगा.. पर जैसे ही उसे पता चला की वैशाली तो कविता के साथ जा रही है.. उसने वो प्लान केन्सल कर दिया.. !!

वैशाली घर पहुंची.. शीला घर पर अकेली थी.. वैशाली को इतना जल्दी घर आया देख उसे ताज्जुब हुआ..

शीला: "क्या हुआ बेटा?? तबीयत तो ठीक है ना तेरी??"

वैशाली: "मम्मी, मुझे कुछ नहीं हुआ है.. तुम कविता को यहाँ बुलाओ.. मुझे काम है उसका.."

शीला: "अरे पर हुआ क्या? क्या काम है उसका? तू ही क्यों नहीं चली जाती उसके घर? सब ठीक तो है ना??"

वैशाली: "कुछ भी ठीक नहीं है मम्मी.. मौसम का फोन था.. तरुण सगाई तोड़ना चाहता है.. बहुत रो रही थी बेचारी.. मुझे और कविता को वहाँ बुला रही है"

शीला स्तब्ध होकर बोली "क्या??? ऐसा कैसे हो सकता है? अभी पंद्रह दिन ही तो हुए है सगाई को.. !!"

वैशाली: "पता नहीं मम्मी.. शायद कविता को कुछ पता हो इसके बारे में.. मौसम ने इतना ही कहा की मैं उसकी दीदी को लेकर तुरंत वहाँ आ जाऊ"

शीला गहरी सोच में पड़ गई.. ऐसा तो क्या हो गया अचानक??

शीला ने फोन करके कविता को बुलाया.. कविता तुरंत आ गई.. उसे तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था.. वो तो बेचारी सुनकर ही फुट फुटकर रोने लगी..

शीला और वैशाली ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया और पानी पिलाया

शीला: "हिम्मत रख कविता.. जो होना था सो हो गया.. अच्छा हुआ की शादी से पहली ही हो गया.. वरना मौसम का हाल भी मेरी वैशाली जैसा हो जाता.. !!" और फिर अचानक शीला को याद आया और उसने वैशाली की ओर मुड़ कर देखा और कहा "अरे हाँ बेटा.. देख ये नोटिस आई है.. २५ तारीख को कोर्ट में सुनवाई है.. तुझे अपने पापा के साथ जाना है.. उससे पहले एक बार देसाई अंकल से मिल लेना"

वैशाली: "२५ तारीख को अभी बहोत देर है मम्मी.. फिलहाल मौसम को संभालना बहोत जरूरी है.. मैं सोच रही हूँ की मैं और कविता वहाँ चले जाते है"

शीला: "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है बेटा.. पर तुम दोनों अकेले कैसे जाओगी?"

वैशाली: "क्या मम्मी तुम भी!! दकियानूसी बातें कर रही हो.. हम अपने आप को संभाल सकती है.. "

शीला: "एक बार पापा से पूछ ले"

वैशाली: "मैंने उनसे पूछ लिया है.. वो ऑफिस पर ही थे.. उनसे भी पूछ लिया और राजेश सर की भी पर्मिशन ले ली है.. दोनों ने कहा की मुझे जाना चाहिए"

अब शीला के पास और कोई बहाना नहीं था.. वो बोली "ठीक है.. पर संभाल कर जाना.. ज़माना बहोत खराब है"

कविता उदास होकर घर चली गई.. जब वो आई तब उछलती हुई आई थी.. और जब जा रही थी तब उसके पैरों में से जान ही निकल गई थी

कविता ने घर आकर रोते हुए सारी बात अनुमौसी को बताई.. सुनकर मौसी का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया

अनुमौसी: "उस नालायक में हमारी मौसम को संभालने की ताकत ही नहीं होगी.. वरना क्या कमी है मौसम में?? वही लायक नहीं था मौसम के.."

शाम को पीयूष घर लौटा.. वो पूरा दिन ऑफिस के काम के सिलसिले में बाहर था इसलिए उसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था.. जब कविता ने उसे सारी बात बताई तब वो भी बेहद चोंक गया.. एक पल के लिए तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ..

थोड़ी देर सोचकर पीयूष ने कहा "कल हम दोनों तेरे घर चलते है.. मैं तरुण को समझाऊँगा.. वो पढ़ा लिखा है.. शायद मेरी बात मान जाए.. वैसे मौसम ने तुझे कब बताया इस बारे में? फोन किया था उसने तुझे?"

कविता: "मुझे नहीं.. वैशाली को फोन किया था"

पीयूष: "वैशाली को क्यों फोन किया?? तुझे नहीं कर सकती थी?"

अनुमौसी: "अरे बेटा.. वैशाली को फोन किया हो या कविता को.. क्या फरक पड़ता है?? शायद वो बेचारी कविता को सदमा पहुंचाना न चाहती हो इसलिए वैशाली को फोन किया होगा.. अब तू और कविता वहाँ जाओ.. और हो सके तो उस गधे के बच्चे को समझाओ.. और ना समझे तो कान पकड़कर मेरे पास लेकर आना.. दो चपेड़ लगाकर सीधा कर दूँगी उसे.. !!"

उस रात को बेडरूम में कविता और पीयूष के बीच तरुण और मौसम को लेकर काफी चर्चा हुई.. पीयूष ने मौसम को फोन भी लगाया पर वो बात करने की स्थिति में नहीं थी.. मौसम की माँ, रमिला बहन ने रोते रोते बस इतना ही कहा.. की मौसम ने खाना पीना सब छोड़ दिया है.. बस पूरा दिन रोती रहती है..

वैशाली, कविता और पीयूष दूसरी सुबह बस से मौसम के घर पहुँच गए.. कविता को देखते ही मौसम उसके गले मिलकर बहोत रोई.. पीयूष भी मौसम को गले लगकर सांत्वना देना चाहता था पर माहोल की गंभीरता देखते हुए उसे ऐसा करना योग्य नहीं लगा.. एकाध घंटे के बाद.. सब रोना धोना खत्म करके सब नॉर्मल हुआ.. कविता ने अपनी माँ और मौसम को हिम्मत देकर शांत किया..

शाम को पाँच बजे पीयूष चाय पीने के बहाने बाहर निकला.. तब वैशाली, मौसम और फाल्गुनी, कमरे में बैठकर बातें कर रही थी.. पीयूष का दिल कर रहा था की वो मौसम को भी बाहर ले जाए और प्यारे से सब पूछे.. पर ये मुमकिन न था..

चाय की टपरी पर बैठे बैठे पीयूष बड़ी ही गंभीरता से सोच रहा था.. ऐसा तो क्या हुआ होगा तरुण और मौसम के बीच?? मौसम को पाकर तो तरुण धन्य हो जाना चाहिए था.. कुछ तो कारण होगा.. और उस कारण को जानना बेहद ही जरूरी था..

चाय पीने के बाद सोचते सोचते चलता हुआ पीयूष.. बस अड्डे पर पहुँच गया.. सामने ही बस पड़ी थी.. जिस पर उस शहर का नाम लिखा था जहां तरुण रहता था.. थोड़ा सा सोचकर पीयूष उस बस में चढ़ गया.. !!!

बस की सीट पर बैठते ही पीयूष ने कविता को फोन लगाया

पीयूष: "मैं तरुण से मिलने जा रहा हूँ.. किसी को बताना मत.. कोई मेरे बारे में पूछे तो बताना की कंपनी का अर्जेंट काम निकल गया इसलिए गया है और कल तक लौट आएगा.. वैसे मौसम ने कुछ बताया?? "

कविता: "नहीं यार.. वो तो उस बारे में कुछ बोल ही नहीं रही.. एक ही रट लगाए बैठी है.. की उन दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.. अरे, दोनों के बीच परसों आधी रात तक बात भी हुई थी.. और फिर अचानक क्या हो गया.. दूसरे दिन सुबह दस बजे फोन करके उसने रिश्ता तोड़ दिया"

पीयूष: "ठीक है.. मैं जाकर खुद पूछता हूँ.. तब तक तुम दोनों मौसम और मम्मी जी को संभालना"

कविता: "ओके.. संभलकर जाना"

पीयूष ने फोन रख दिया.. 2 घंटे के सफर के बाद पीयूष तरुण के शहर पहुंचा.. उसने तरुण को फोन लगाया.. तरुण को उसके फोन से कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. उसने पीयूष को एक रेस्टोरेंट का पता दिया और वहाँ पहुँचने के लिए कहा

ढूंढते ढूंढते एक घंटे के बाद पीयूष उस बताए हुए पते पर पहुंचा..

वहाँ एक टेबल पर बैठे तरुण को देखते ही वो उसके पास पहुंचा.. और खड़े खड़े ही सवाल जवाब शुरू कर दीये

पीयूष: "तरुण, ये मैं क्या सुन रहा हूँ?" पीयूष की आवाज में आश्चर्य, मायूसी और क्रोध का मिश्रण था

तरुण ने जवाब नहीं दिया..

पीयूष: "देख तरुण.. तो इतना पढ़ा लिखा है.. मैं ना तो तुझे कोई सलाह या मशवरा दूंगा या फिर ना ही तुझे अपना निर्णय बदलने के लिए फोर्स करूंगा.. अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद से करने का तुझे पूरा हक है.. मैं तो बस सगाई तोड़ने का कारण जानने के लिए आया हूँ.."

तरुण: "पीयूष भैया.. कुछ बातें ऐसी होती है जिसकी चर्चा करने से केवल नफरत और घृणा ही बढ़ती है.. और मैं नहीं चाहता की मैं आप से ऐसी कोई बात करूँ जिसे किसी की ज़िंदगी तबाह हो जाए.. "

पीयूष: "तू मुझे खुलकर बता सकता है.. यकीन मान.. तू जो भी बताएगा वह बात सिर्फ मुझ तक ही रहेगी.. अगर तेरी इच्छा न हो तो असली कारण में किसी को नहीं बताऊँगा.. कोई और ही कारण बताकर सब को मना लूँगा.. सिर्फ यही जानने के लिए मैं इतनी दूर आया हूँ.. इतना तो मुझे जानने का हक है ना.. !!"

तरुण: "अब अगर आप सुनना ही चाहते है तो सुनिए.. !! आपके ससुराल के सभी पात्र चारित्रहीन है.. !!"

सुनकर पीयूष के पैरों तले से धरती खिसक गई.. कहीं ऐसे मेरे और मौसम के संबंधों के बारे में तो नहीं पता चल गया.. !! अपने चेहरे के डर को बड़ी मुश्किल से छुपाते हुए पीयूष ने चकित होने के भाव धारण करते हुए कहा

पीयूष: "क्या बात कर रहा है तू तरुण?? मेरी शादी को इतना समय हो गया पर मुझे तो कभी कुछ ऐसा महसूस नहीं हुआ.. !!"

तरुण: "अब मुझे जो जानने मिला है.. उसे बताने के लिए मेरी जुबान नहीं चलेगी.. इसलिए सारी बातें मैं इस कागज पर लिखकर लाया हूँ" कहते हुए तरुण ने एक फोल्ड किया हुआ कागज पीयूष के हाथ में थमा दिया..

खोलकर पढ़ते ही पीयूष के होश उड गए.. !!!!! अब आगे कुछ भी बोलने-पूछने की आवश्यकता नहीं थी.. वो तरुण से हाथ मिलाकर खड़ा हो गया.. तरुण ने काफी आग्रह किया की वो कुछ खाकर जाए.. पर अब पीयूष के गले से एक निवाला तक उतरना मुमकिन नही था..

जाते जाते पीयूष ने तरुण के कंधे पर हाथ रखकर कहा "तरुण, तेरी और मौसम की जोड़ी बहोत प्यारी लगती है.. किसी और के गुनाह की सजा तू मौसम को दे, ये किस हद तक लाज़मी है?? जो कुछ तुझे जानने को मिला है वह सच ही होगा ऐसा मैं मानता हूँ.. पर इसमें मौसम बेचारी की क्या गलती??"

तरुण: "पीयूष भैया.. परिवार में कुछ भी ऊपर-नीचे या उल्टा-सुलटा हो तो उसका असर सारे सदस्यों पर पड़ता ही है.. ये तो आप भी मानेंगे.. मौसम का दोष सिर्फ इतना ही है की वो ऐसे परिवार की सदस्य है.. आप से हाथ जोड़कर विनती है की मुझे मनाने की कोशिश बिल्कुल मत करना.. मेरे मम्मी-पापा और परिवार के बाकी लोग अब इस रिश्ते के खिलाफ है.. और उन सब को नाराज कर मैं भी सुखी नहीं रह पाऊँगा.. मेरी और से आप मौसम से माफी मांग लेना.. और कहना की तरुण ने तुझे आगे की ज़िंदगी के लिए "ऑल ध बेस्ट" क यहा है.. और अब तरुण तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं है और न कभी होगा.. शायद मौसम मेरी किस्मत में ही नहीं थी.. अब इस बारे में, मैं और बात नहीं करना चाहता भैया.. प्लीज..!!" कहते हुए नम आँखों के साथ तरुण खड़ा होकर रेस्टोरेंट से चला गया.. !!!!

पीयूष स्तब्ध होकर तरुण को जाते हुए देखता रहा.. मायूस होकर वह ऑटो से बस स्टेशन पहुंचा.. अगली बस रात के दस बजे थी.. डॉ घंटों की देरी थी.. अब अनजान शहर मे इतना वक्त खाली बैठे क्या करेगा.. !! बहुत जोरों की भूख लगी थी.. केंटीन में बैठकर उसने भरपेट खाना खाया और फिर बुक-स्टॉल से एक अखबार और एक बुक खरीदकर बैठे बैठे बस का इंतज़ार करने लगा

तभी कविता का फोन आया

फोन उठाकर पीयूष ने कहा "हाँ कविता.. मैं वापिस आ रहा हूँ"

कविता: "मिल भी लिया और बात भी हो गई??"

पीयूष: "हाँ मिल लिया मैंने तरुण से"

कविता: "पाज़िटिव या नेगटिव?" कविता ने इशारे से पूछा

पीयूष ने गहरी सांस छोड़कर कहा "नेगटिव" सच कहने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. आज नहीं तो कल सच सामने आने ही वाला था.. फिर उससे मुंह छुपाकर क्या फायदा.. !!

कविता का मुंह लटक गया.. वो देखकर ही वैशाली समझ गई की पीयूष की मुलाकात का नतीजा क्या निकला होगा.. आदमी का चेहरा ही सब से बेहतरीन आईना होता है.. खुशी, नफरत, गुस्सा, प्रेम या गंभीरता.. इंसान के अंदर के भावों को निष्कर्ष बड़ी खूबी से बता देता है चेहरा.. !! अच्छा हुआ उस वक्त मौसम या उसकी माँ वहाँ मौजूद नहीं थे..

कविता ने आगे कुछ पूछा नहीं और कहा "बस स्टेंड पर उतरकर मुझे फोन करना.. मैं पापा को लेने भेज दूँगी.. आधी रात को तुझे ऑटो नहीं मिलेगा"

पीयूष: "मुझे एक बज जाएगा पहुंचते पहुंचते.. !!"

कविता: "हाँ ठीक है.. तूने खाना खाया?"

पीयूष: "हाँ खा लिया है.. तू मेरी चिंता मत कर..!!"

बस का समय होते ही पीयूष बैठ गया.. और पूरे दिन की थकान के कारण सो गया.. आँख खुली तो स्टेशन आ गया था.. रात का एक बजा था.. और पीयूष कविता को डिस्टर्ब करना नहीं चाहता था.. घर जाकर मौसम को कैसे सांझाए यह सोचते सोचते वो कविता के घर की तरफ चल दिया.. जिस तरुण के लेकर पीयूष के मन में बेहद ईर्ष्या थी.. उसी तरुण पर आज उसे सहानुभूति हो रही थी.. !!

मन की भावनाएं बड़ी विचित्र होती है... कब किसी के लिए कौनसे जज़्बात पैदा हो जाए.. कहा नहीं जा सकता.. फिर वो एक तरफा प्रेम हो.. या नफरत.. ईर्ष्या हो या क्रोध.. !!

सोचते सोचते आधे घंटे बाद वो घर पहुँच गया.. उसने डोरबेल बजाई.. थोड़ी देर के बाद कविता ने दरवाजा खोला.. घर पर सब सो चुके थे

कविता: "तूने फोन क्यों नहीं किया?"

पीयूष: "बेकार में सबके नींद खराब होती.. और वैसे स्टेशन उतना दूर भी नहीं है.. चलते चलते पहुँच गया"

पानी पीने के बाद पीयूष ने कविता को बताया की तरुण का पूरा परिवार अब इस रिश्ते को रखना नहीं चाहता था.. प्रॉब्लेम सिर्फ तरुण और मौसम के बीच होता तो शायद सुलझ भी जाता.. पर बात अब बहोत आगे बढ़ चुकी थी

चोंक उठी कविता ने कहा "अरे पर अचानक बात यहाँ तक कैसे पहुँच गई? दो दिन पहले तक तो सब ठीक था.. वजह बताई की नहीं तरुण ने?"

पीयूष: "हम्म.. न.. नहीं.. कुछ नही बताया" इतने समय से साथ रह रही कविता समझ गई की पीयूष सच नहीं बोल रहा था.. या शायद बोल नहीं पा रहा था.. हो सकता है की पीयूष अभी न बताना चाहता हो.. पर जब दोनों अकेले बेडरूम में होंगे तब वह सच बता ही देगा.. अभी फिलहाल उस पर जबरदस्ती करने का कोई मतलब नहीं था..

कविता: "जो हो गया सो हो गया.. अभी बात करने से हकीकत बदल तो नहीं जाएगी.. !! तू थक गया होगा.. हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जा.. मैं खाना लगाती हूँ.. !!

पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.. कविता ने खाने की थाली लगा दी.. और अंदर रोटियाँ बेलने लगी.. तभी मौसम ऊपर से उतरकर नीचे आई और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..

जंग में हारे हुए योद्धा जैसा पीयूष.. मौसम से नजरें नहीं मिला पा रहा था.. बात को बदलने के इरादे से पीयूष ने कहा

पीयूष: "ओ हाय बेबी.. अभी भी जाग रही? नींद नहीं आ रही?"

मौसम ने उदास होकर कहा "कैसी नींद जीजू.. !!"

रोटी का गरम फुल्का लेकर कविता ने पीयूष की प्लेट में रखते हुए कहा " देख मौसम.. तू कितनी भी चिंता कर ले.. कितना भी जाग ले.. इस समस्या का हल अभी तो मिलने नहीं वाला.. चिंता होना जायज है पर चिंता किसी भी प्रॉब्लेम का हल नहीं है.. और मान ले की यह रिश्ता सच में हमेशा के लिए टूट जाता है.. तो इससे तेरी ज़िंदगी रुक थोड़ी न जाएगी??"

पीयूष: "मौसम.. किसी प्रॉब्लेम का जब हल न हो तो उसे वास्तविकता समझ कर स्वीकार लेना चाहिए.. तुझे यह मान लेना होगा की तरुण अब तेरे जीवन का हिस्सा नहीं है.. सदमा लगना स्वाभाविक है.. यह मैं समझ सकता हूँ.. पर अब तुझे ही तय करना है की इस बात को पकड़कर तू हमेशा के लिए दुखी रहना चाहती है या सब कुछ भूलकर आगे बढ़ना चाहती है.. !!"

मौसम: "जीजू.. मैंने तो हकीकत का स्वीकार कर ही लिया है.. की तरुण अब मेरा नहीं है.. मुझे तो सिर्फ यह जानना है की उसे ऐसा कदम आखिर क्यों उठाना पड़ा?? मैं क्या इतनी गई-गुजरी हुई जो वो मुझे बिना कोई वजह बताएं ही रिश्ता तोड़ दें??"

कविता: "वक्त आने पर सब पता चलेगा मौसम.. तू चिंता मत कर.. सच हमेशा सामने आ ही जाता है.. हो सकता है.. तरुण के साथ ही कोई प्रॉब्लेम हुई हो.. जो वो तुझे बता न पा रहा हो"

सुनकर मौसम का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ.. उसे बस यही जानना था की तरुण के इस कदम के पीछे असली कारण क्या था

मौसम: "जीजू.. मैं यहाँ के वातावरण से तंग आ गई हूँ.. मैं कुछ दिन आपके यहाँ आकर रहना चाहती हूँ.. ताकि मेरे दिमाग से तरुण के विचारों को हटा सकूँ.. यहाँ रहूँगी तो पूरा दिन उसी के बारे में सोचती रहूँगी.. ऊपर से मम्मी का उदास चेहरा मुझसे देखा नहीं जाता.. प्लीज दीदी.. कल हम जितना हो सकें उतना जल्दी निकल जाते है यहाँ से.. !!"

पीयूष: "हाँ हाँ.. क्यों नहीं.. वैसा ही करेंगे.. दरअसल मैं सामने से तुझे यह कहने ही वाला था.. तू हमारे साथ चल.. सब ठीक हो जाएगा.. हम सब है ना तेरे साथ.. फिर किस बात की फिक्र.. !!"

मौसम: "ओके जीजू.. थेंकस.. गुड नाइट"

इतना कहते ही मौसम को फिर से रोना आ गया.. और वो भागकर अपने कमरे की और चली गई.. जाते जाते उसके रोने की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी..

कविता: "पीयूष, अब मुझे तो बता.. !! तरुण ने आखिर सगाई क्यों तोड़ दी??" सीधा सवाल किया कविता ने

पीयूष सोच में पड़ गया.. अब क्या बताएं कविता को?

पीयूष: "कविता, जब किसी बात को निकालने पर काफी सारे लोगों का अहित होना हो.. तब उसे न निकालना ही बेहतर होगा.. चल.. कल जल्दी उठना है.. सो जाते है.. सुबह ६ बजे की बस से निकल जाएंगे"

थोड़े घंटों की नींद लेने के बाद.. कविता, वैशाली, मौसम और पीयूष जाने के लिए तैयार हो गए.. सुबोधकांत उन्हें बस स्टेशन तक छोड़ने आए.. पहली बस मे काफी भीड़ थी.. इसलिए दूसरी बस की राह देखने लगी.. दूसरी बस का भी वही हाल था.. आखिर सुबोधकांत ने सब को अपनी गाड़ी में ही छोड़ आने का फैसला किया

कार तेजी से सड़क पर चल रही थी और उतनी ही तेजी से कविता और मौसम के दिमाग में विचार भी चल रहे थे.. गाड़ी चलाते हुए सुबोधकांत एकदम खामोश थे..

२ घंटों के सफर के बाद वो लोग पहुँच गए.. घर के अंदर घुसते ही मौसम अनुमौसी से गले मिलकर रोने लगी.. अनुमौसी ने अपने अनुभवयुक्त शब्दों से उसे सांत्वना दी..

मौसम कविता की मदद करने किचन में गई.. उस दौरान कविता ने उसे तरुण के बारे में.. उनके संबंधों के बारे में काफी कुछ पूछा.. पर उसे ऐसी कोई हिंट न मिली जिससे की वो किसी बात का अंदाजा लगा पाती

दोपहर के बाद पीयूष ऑफिस चला गया.. काम भी देखना जरूरी था..

थोड़ी देर के बाद, शीला और मदन भी मौसी के घर आ गए.. सुबोधकांत से मिलकर दोनों उनके साथ बैठे.. सुबोधकांत ने मौसम और तरुण की सगाई टूटने के बारे में बताया.. जिसके बारे में वह दोनों पहले से ही जानते थे.. थोड़ी देर की बातों के बाद.. सब एकदम चुपचाप बैठे थे

कविता और मौसम चाय लेकर आए..

चाय एक घूंट में खत्म करते ही.. सुबोधकांत ने अपनी घड़ी की ओर देखकर कहा "अब मुझे निकलना चाहिए"

कविता: "पापा, दोपहर तो हो ही चुकी है.. आप खाना खाकर ही जाइए"

सुबोधकांत: "नहीं बेटा.. अचानक यहाँ आना हुआ इसलिए मेरे कई काम रुकें पड़े है.. मुझे जाना ही होगा.. " बार बार अपनी घड़ी की ओर देख रहें सुबोधकांत तो कविता ने और नहीं रोका

अचानक शीला की नजर सुबोधकांत की गोल्डन केस वाली राडो घड़ी पर गई.. और ध्यान से देखते ही उसकी सांसें थम गई.. !!!

याद आते ही बेहद चोंक गई शीला.. अरे बाप रे... ये तो कॉकटेल है.. !! बिल्कुल यही घड़ी कॉकटेल ने भी पहन रखी थी.. ध्यान से देखने पर सुबोधकांत का शरीर, बोल-चाल सब कुछ कॉकटेल से मेल खा रहा था.. उसका लंड भी जाना-पहचाना सा क्यों लग रहा था वो अब पता चला शीला को.. सुबोधकांत के घर के गराज में एक बार चूस चुकी थी उनका लंड.. इसीलिए जब होटल में वह लंड दोबारा देखा तब हल्की सी भनक तो लगी थी पर याद नहीं आ रहा था.. !! शीला के पूरे बदन में झनझनाहट से छा गई.. हाँ, वो कॉकटेल ही था.. जिसका लंड मैंने और रेणुका दोनों ने दिल खोल कर चूसा था.. हे भगवान.. कहीं सुबोधकांत ने हमें पहचान तो नहीं लिया होगा.. !!!

मदन को वहीं बैठा छोड़कर शीला घबराकर घर वापिस आ गई..
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया है
राजेश और मदन की अपने ही घरं में लगी पडी हैं जैसे धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का
बेचारी मौसम तो सगाई तुट जाने से पुरी तरहा से तुट गयी है
सगाई तुटने का कारण पियुष और तरुण की मुलाखात में सामने भी आ गया और वो कारण पियुष ने किसी को भी नहीं बताया मेरे खयाल से वो सुबोधकांत हैं जो हाॅटेल में पुलिस के हत्थे चढ गया था और उसकी पहचान शीला के घर भी सामने आ गयी सुबोधकांत ही काॅकटेल हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Sanju@

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राजेश सर की इनोवा में, कविता, पिंटू, वैशाली और पीयूष बैठे हुए थे.. पीयूष के दोस्त की कार में मदन, शीला, रेणुका और राजेश थे.. !!

पूरे रास्ते में सब ने बातें करते हुए बहोत मजे किए.. ये ट्रिप, वैशाली के लिए बड़ी ही यादगार थी.. पिंटू से करीबी होते ही वो संजय की कड़वी यादों को भुला रही थी..

मदन और राजेश की बीच भी अच्छी मित्रता हो गई थी.. रात को हाइवे की एक होटल में डिनर के लिए जब दोनों गाड़ियां रुकी.. तब शीला को अपने दामाद संजय और हाफ़िज़ के संग गुजारे हनीमून की याद आ गई.. संजय, हाफ़िज़, जॉन और चार्ली की याद आते ही शीला का भोसड़ा चुनमुनाने लगा..

सब लोग रेस्टोरेंट की तरफ जा रहे थे तब शीला, रेणुका को लेकर टॉइलेट की तरफ गई.. शीला और रेणुका तो पहले से ही बहोत अच्छी सखियाँ थी.. बाथरूम की तरफ जाते हुए, शीला ने अपनी बातों से रेणुका को भी बेहद गरम कर दिया.. उसने गोवा की ट्रिप के बारे में बताया.. पर ये नहीं बताया की वो अपने दामाद के साथ गई थी.. गोवा में कैसे उसने अंग्रेज जॉन का लंड लिया था.. रास्ते में कैसे कार के ड्राइवर ने उसके बबले दबाए थे.. और फिर ऐसी ही एक होटल के बाहर.. अंधेरे में कैसे उसने बाहर चुदवाया था..

मिर्च-मसाला लगाकर उसने सारी बातें रेणुका को बताई.. रेणुका की हालत खराब हो गई, ये सब सुनकर.. !! उसकी दोनों आँखों से हवस टपकने लगी.. !! शीला देखकर ही समझ गई की रेणुका को लंड की भूख सता रही थी.. टॉइलेट में दोनों अलग अलग क्यूबिकल में पेशाब करके बाहर निकली.. वॉशबेज़ीन में रेणुका जब झुककर अपने हाथ धो रही थी.. तब उसके पल्लू के नीचे से.. काँखों की बगल में.. उसके स्तन लटकते हुए नजर आने लगे..

लेडीज टॉइलेट में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था.. शीला भी बहोत उत्तेजित थी.. वो रेणुका के पीछे खड़ी हो गई और अपनी चूत को उसके चूतड़ों पर दबाकर.. दोनों हाथ आगे ले गई.. और उसके दोनों स्तनों को ब्लाउस के अंदर हाथ डालते हुए सख्ती से पकड़ लिए..!! और उसकी निप्पलों को मसलते हुए, मर्द की तरह धक्के लगाने लगी..

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अपने हाथ धोकर, रेणुका खड़ी हुई और हाथ पोंछे तब तक शीला उसकी गर्दन पर जीभ फेरते हुए चाटकर उसे उत्तेजित करने लगी थी.. वो शीला की तरफ मुड़ी.. और उसके गदराए जिस्म को बाहों मे भरकर उसके होंठों पर रेणुका ने एक उत्तेजक चुंबन कर दिया... शीला के आवेग भरे आक्रमण के आगे रेणुका ज्यादा देर तक खुद को संभाल नहीं पाई.. और शीला के थूक को चाटते चाटते वो अपनी जीभ को अंदर डाल डालकर चूसने लगी.. दोनों के बड़े बड़े स्तन, एकाकार हो गए थे.. !!

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रेणुका: "यार, पहले तो तूने मुझे अपनी बातों से गरम कर दिया.. और अब अपनी इन हरकतों से बेकाबू कर रही है.. !! इरादा क्या है तेरा शीला?? तुझे पता तो है की यहाँ पर कुछ भी ज्यादा कर पाना मुमकिन नहीं है.. !! फिर क्यों उकसा रही है मुझे??"

रेणुका के दोनों बबलों को हाथों से मसलते हुए शीला ने कहा "यार, मुझसे रहा ही नहीं गया.. तू अपने आप पर काबू कर सकती है.. पर मुझे तो एक बार लंड की तलब लग जाएँ फिर मैं कंट्रोल नहीं कर सकती.. मुझे लंड चाहिए ही चाहिए.. !! कैसे भी करके मुझे चुदवाना पड़ेगा.. !! देख तो.. नीचे क्या हालत हो रही है यार.. !!" रेणुका का हाथ पकड़कर अपने घाघरे के नीचे डालते हुए.. पेन्टी के अंदर.. अपनी रस से लसलसित भोसड़े पर दबा दिया..

रेणुका: "हाँ यार.. नीचे तो बवाल मचा हुआ है तेरे.. मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही हो रहा है.. पर अब क्या करें?? यहाँ लंड कहाँ से लाएं??"

शीला: "अब तो और क्या हो सकता है.. !! तू तो घर जाकर.. बड़ी मस्ती से... टांगें फैलाकर.. राजेश के लंड से मस्त होकर चुदवा लेगी.. मुझे तो वैशाली के कारण बहोत कंट्रोल में रहना पड़ता है.. अपने आप को रोकते हुए चुदवाना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता.. अपनी आवाज को रोककर रखना पड़ता है.. कहीं वैशाली सुन न ले.. ऐसे में कहाँ मज़ा आएगा..!! एक काम करते है रेणु.. !!"

शीला के रसद्रवित भोसड़े में तीन तीन उँगलियाँ एक साथ अंदर बाहर करते हुए रेणुका ने कहा "हाँ हाँ .. बोल ना.. !!"


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"खाना खाकर.. जब हम वापिस गाड़ी में बैठें.. तब तू पहले से ही राजेश के साथ आगे बैठ जाना.. मैं मदन के साथ पीछे बैठ जाऊँगी.. अंदर तो ले नहीं पाऊँगी.. पर मदन के हाथों मूठ मरवा लूँगी.. !! वो बॉल दबाते दबाते उंगली डालेगा तो मैं जल्दी फ्रेश हो जाऊँगी.. जब पूरी थाली नसीब न हो तब नाश्ते से ही काम चलाना पड़ता है..!!"

रेणुका: "कार में?? राजेश की मौजूदगी में तुझे शर्म नहीं आएगी??"

शीला: "उसका सारा ध्यान तो ड्राइविंग में ही होगा.. तुझे एक और काम करना होगा.. पास बैठे बैठे.. तू राजेश के साथ छेड़खानियाँ करती रहना.. मर्दों को ऐसा सब बहोत पसंद होता है.. तू चुपके से अंधेरे में उसके लंड पर हाथ रखकर सहलाते रहना.. उसका ध्यान फिर कहीं और भटकेगा ही नहीं.. और तुम दोनों की हरकतें देखकर, फिर हम दोनों शुरू हो जाएंगे.. !! जब हमाम में सब नंगे हो फिर भला शर्म कैसी??"

रेणुका: "साली, तू एक नंबर की शातिर है.. !!"

शीला: "और हाँ.. सिर्फ ऊपर ऊपर से ही मत सहलाना.. चैन खोलकर बाहर भी निकालना.. मैं भी तो देखूँ.. किस लंड से तू रोज चुदवाती है.. इसी बहाने राजेश का लंड देखने मिल जाएगा"

रेणुका: "सिर्फ देखने में क्या मज़ा आएगा तुझे.. !! मेरे पति का लंड देखकर तुझे कहाँ संतोष होने वाला है.. !! ये तो ऐसी चीज है जिसे देखकर बेचैनी और बढ़ जाती है.. शीला, अगर सही में मजे करने हो तो.. तू राजेश के साथ बैठ और मैं मदन के साथ बैठती हूँ.. जस्ट फॉर चेंज.. मज़ा आएगा"

हवसखोर शीला, रेणुका की यह बात सुनकर एकदम बेकाबू हो गई

"ओह्ह रेणुका.. ये तूने क्या कह दिया??? मेरा और मदन का बहोत पुराना सपना है.. पार्टनर बदल कर सेक्स करने का.. पर वो आज तक पूरा नहीं हुआ है.." शीला ने सिसकते हुए कहा.. रेणुका के हाथ को अपने भोसड़े पर और सख्ती से दबा दिया उसने

रेणुका: "क्या सच में?? हम दोनों भी ऐसे मौके की तलाश में है.. असल में.. राजेश के कॉन्टेक्ट में एक कपल है.. जो पार्टनर चेंज करने के लिए राजी है.. पर वो लोग बहोत घबरा रहे है.. इसलिए अबतक मिलना नहीं हुआ.. वेबसाइट पर कॉन्टेक्ट हुआ है.. वो लोग रोज मेसेज भेजते है.. राजेश बता रहा था की उस वेबसाइट पर ऐसे पचास से ज्यादा जोड़ों का ग्रुप है.. जो आपस में पार्टनर बदलते रहते है.. यार, मुझे तो सुनकर ही ऐसा मज़ा आ गया था.. पर अब तक कुछ हो नहीं पाया यार.. !!"

शीला: "ओह्ह रेणुका.. तू ऐसी सब बातें मत कर.. आह्ह.. तू एक काम कर.. राजेश को कोने में ले जाकर बता दे.. की वो मेरे साथ ही बैठें.. और वो निःसंकोच होकर मेरे बबले दबाएं.. और उसे जो मर्जी कर्रे मेरे साथ.. मुझे बुरा नहीं लगेगा.. मैं मदन को तैयार करती हूँ.. हम कार में ही पार्टनर बदल लेते है.. मस्त सेटिंग हो जाएगा.. !! अगर राजेश भी मेरे और मदन जैसा खुले विचारों वाला हो तो.. हम एक कमरे में ही ग्रुप सेक्स का सेटिंग कर सकते है.. "

रेणुका: "हाँ यार.. राजेश को वैसे तो कोई प्रॉब्लेम नहीं होना चाहिए.. तभी तो वो उस वेबसाइट पर कपल ढूंढ रहा था.. पर अनजाने लोगों के साथ यह सब करने में बड़ा जोखिम होता है.. इसलिए वो भी थोड़ा सा झिझक रहा था"

शीला: "हाँ, वो तो है.. पर हमारे साथ तो ये प्रॉब्लेम भी नहीं होगा.. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं लगेगी.. चल अब चलते है.. कहीं कोई आ गया तो तकलीफ हो जाएगी"

रेणुका: "एक मिनट रुक जा शीला.. मेरे दिमाग में ओर एक आइडिया आ रहा है"

शीला: "अरे यार, जल्दी चल.. सब इंतज़ार कर रहे होंगे हमारा.. जाते जाते बताना तेरा आइडिया.. !!"

रेणुका ने शीला की चूत से उँगलियाँ बाहर निकाली और हाथ धो लिए.. दोनों टॉइलेट से बाहर निकली.. मदन और राजेश बातें कर रहे थे.. वैशाली और कविता भी बातों में उलझी हुई थी.. पीयूष अपने मोबाइल पर लगा हुआ था

चलते चलते शीला ने पूछा "अब बोल, क्या बता रही थी तू?"

रेणुका: "मैं ये सोच रही थी.. हम अभी अपने मर्दों को इस बारे में कुछ नहीं बताएंगे.. हम ऐसे पेश आएंगे जैसे हम खुद ही एक दूसरे के पतिओ को पटा रहे है.. उन्हें बिना कुछ कहें"

शीला: "कार में ये सब कैसे करेंगे?? उससे अच्छा तो बता कर ही करते है"

रेणुका: "मैं जैसे कह रही हूँ वैसा कर.. हम फिलहाल अपने अपने पार्टनर के साथ ही बैठेंगे"

शीला: "ठीक है यार.. जैसा तू कहें.. पर एक दूसरे के पति के साथ बातें तो कर सकते है ना.. !!"

रेणुका: "हाँ कर सकते है.. पर सिर्फ बातें ही करनी है अभी के लिए.. बाकी सब छुप छुपकर करना होगा.. कल से हम फोन पर शुरू करेंगे.. तू राजेश को फोन करना और मैं मदन को फोन करूंगी.. हम दोनों आपस में एक दूसरे को सब बता देंगे.. पर अपने पति को कुछ नहीं बताएंगे.. फिर देखते है.. हमारे मर्द कैसे पेश आते है"

शीला: "यार, गजब का आइडिया सोचा है तूने.. मतलब अब इस उम्र में हमें फ्लर्ट करना होगा.. वो भी एक दूसरे के पति के साथ.. !!"

रेणुका: "अरे यार, फ्लर्ट करने के लिए कोई उम्र थोड़े ही होती है.. !! वो तो कभी भी कर सकते है"

दोनों चलते चलते टेबल के पास आई.. अपने अपने पति के पास बैठ गई.. थोड़ी देर के बाद.. शीला ने कहा "यार यहाँ कोने में मुझे घुटन हो रही है.. रेणुका, तुझे प्रॉब्लेम न हो तो तू यहाँ बैठ जाएगी?" रेणुका तुरंत ही उठ खड़ी हुई और मदन के पास बैठ गई.. मुसकुराते हुए शीला राजेश के पास आकर बैठ गई

पीयूष, कविता, पिंटू और वैशाली एक टेबल पर थोड़े दूर बैठे थे.. उन्हें इन चारों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.. कविता को जरा सा भी अंदाजा नहीं था की उसके प्रेमी पिंटू के प्रति, वैशाली आकर्षित हो चुकी थी.. आपस में बातें करते हुए, वैशाली और पिंटू और करीब आते जा रहे थे.. अठारह बीस साल की लड़की, लड़कों के दिखावे से आकर्षित होती थी.. पर तीस की उम्र पार कर चुकी लड़कियां, लड़के के विचार, सद्गुण और सलामती देखकर आकर्षित होती है..

राजेश: "ये तो आप दोनों ने अदला-बदली कर दी.. मेरे साथ शीला जी और मदन के साथ रेणुका.. हा हा हा हा"

रेणुका ने शर्म के मारे आँखें झुका दी..

राजेश: "अरे, मैं तो मज़ाक कर रहा था"

शैतानी मुस्कान के साथ शीला ने कहा "अच्छा मज़ाक था.. !!"

मदन ने चोंककर रेणुका के सामने देखा.. वो कनखियों से मदन को देख रही थी.. उसने अपनी नजरें फेर ली.. और खाना खाने पर ध्यान केंद्रित किया

खाना खाकर सब वापिस अपनी गाड़ियों में बैठ गए.. पीयूष की गाड़ी आगे जाने दी और मदन ड्राइविंग सीट पर बैठ गया..

रेणुका: "अरे राजेश, मदन कब से गाड़ी चला रहा है.. थक गया होगा.. थोड़ी देर तू गाड़ी चला ले"

राजेश" "मैं बस बोलने ही वाला था.. मैं चला लेता हूँ.. !!"

मदन को रेणुका की ये बात बहोत अच्छी लगी "थेंकस रेणुका.. मैं वाकई थक चुका हूँ"

राजेश ड्राइवर सीट पर बैठ गया और रेणुका उसके साथ.. शीला और मदन पीछे की सीट पर बैठ गए

जैसे ही गाड़ी चली.. शीला ने मदन की जांघों पर हाथ रख दिया.. और मदन के सामने देखकर, शैतानी भरी मुस्कान देते हुए आँख मारी.. धीरे से उसके लंड को सहला रही शीला का हाथ पकड़कर मदन ने उसके कान में कहा "यार, क्यों सो रहे सांप को जगा रही है?? ये जाग गया तो फिर शिकार मांगेगा.. "

शीला ने मदन के कान मे कहा "तेरे सांप में अब शिकार करने का दम ही कहाँ है.. !!"

शीला इतनी उत्तेजित थी की उसने मदन की मर्दानगी को ही ललकार दिया.. जब भी उसका भरपूर चुदाई का मन हो तब वो मदन को ऐसा ही कुछ बोलकर उकसाती.. और फिर मदन उसे बेरहमी से चोद देता.. !!

शीला की आँखों से टपकती वासना को देखकर मदन सोच में पड़ गया.. ये साली इस समय गरमाए बैठी हुई है?? यहाँ गाड़ी में, राजेश और रेणुका की मौजूदगी में.. इसे कैसे शांत करूँ.. !!

शीला: "बहोत गर्मी हो रही है यार.. रेणुका, जरा एसी तेज कर दे"

रेणुका ने मुसकुराते हुए कहा "अब तुझे इस उम्र में बड़ी गर्मी चढ़ रही है.. !! देखना.. कहीं घर जाकर मदन को अपनी आग में मत झोंक देना.. तेरी आग के बारे में, मैं अच्छे से जानती हूँ.. एसी की हवा से शांत नहीं होने वाली तू"

शीला: "चुप कर बदमाश.. कुछ भी बोलती रहती है.. वैसे गर्मी तो तेरे अंदर भी कुछ कम नहीं है.. अच्छे अच्छों को पिघलाने का हुनर है तुझ में.. !!"

रेणुका: "अब वो तो महसूस करने वाले को पता.. की मेरे अंदर कितनी गर्मी है.. पर हम भी अपनी गर्मी उन्हीं को दिखाते है जिसमे इस गर्मी को शांत करने की ताकत हो"

रेणुका और शीला, जान बूझकर खुलकर बातें कर रही थी.. उनकी बातें सुनकर मदन और राजेश को भी थोड़ा सा ताज्जुब हुआ.. धीरे धीरे दोनों ज्यादा से ज्यादा खुलने लगी..

ब्लाउस से एक स्तन बाहर निकालकर, ड्राइव कर रहे राजेश का हाथ खींचकर, उसपर रख दिया रेणुका ने.. टाइट ब्लाउस से पूरा स्तन तो बाहर नहीं निकाल पाई.. पर आधे स्तन की उभरी हुई निप्पल पर वो राजेश की हथेली को रगड़ने लगी.. इस हरकत से.. और रेणुका तथा शीला की उत्तेजक बातें सुनकर.. राजेश का लंड पतलून में तंबू बनाकर खड़ा हो गया

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रेणुका राजेश का लंड बाहर निकालना चाहती थी.. पर उसके पेंट की चैन खुल ही नहीं रही थी.. शीला की बातें सुनकर राजेश का लंड इतना सख्त होकर अंदर से दबाव बना रहा था की चैन खुलने ही नहीं दे रहा था.. रेणुका ऊपर ऊपर से ही.. उस कचौड़ी जैसे फुले हुए हिस्से को सहलाने लगी.. आखिर राजेश ने ही रेणुका का काम आसान करने के लिए.. अपने पेंट का एक बटन खोल दिया.. बटन खुलते ही.. आधी चैन अपने आप खुल गई.. वी शैप की अन्डरवेर के साइड से सख्त लोडे को बाहर निकालकर, राजेश ने रेणुका के हाथों में सौंप दिया.. जिसे पकड़ते ही रेणुका की आह्ह निकल गई..

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रेणुका ने अपना चेहरा राजेश के कान के करीब लाकर.. बिल्कुल धीमे से कहा "माय गॉड.. ये क्या है राजेश!! इतना टाइट तो आज तक कभी नहीं हुआ.. मैं नंगी होकर अपनी चूत फैलाकर तेरे मुंह पर रख देती हूँ तब भी इतना कडक नहीं होता है.. " रेणुका की इन हरकतों को देखकर शीला समझ गई की राजेश का लंड बाहर निकल चुका है.. मदन की मौजूदगी की जरा भी परवाह किए बगैर, शीला ने थोड़ा सा आगे आकर रेणुका के हाथ में जकड़े राजेश के लंड को देखा..

मदन: "क्या देख रही है शीला? शर्म नहीं आती तुझे?"

शीला ने बेधड़क होकर कहा "अच्छा.. अभी तू साइड से.. रेणुका के स्तन को देख रहा था.. तब तुझे शर्म नहीं आई थी?"

शीला ने मदन का लंड बाहर निकाला और झुककर चूसने लगी.. मदन की आँखें बंद हो गई.. शीला के कामुक होंठों ने लंड के इर्दगिर्द ऐसी पकड़ बना ली थी की वो अपने आपे से बाहर हो रहा था.. अपनी जीभ से शीला ऐसा कमाल कर रही थी की मदन से रहा नहीं जा रहा था.. ये तो मदन था जो शीला की इस कामुक चुसाई को बर्दाश्त कर पा रहा था.. और कोई होता तो उसके लंड ने कब का इस्तीफा दे दिया होता.. !!

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मदन ने शीला के सर को पकड़े रखा था.. जब वो लंड अंदर लेने के लिए झुकती तब वो अपनी गांड उठाकर उसके मुंह में अंदर तक अपना लंड पेल देता.. शीला के मुंह से विचित्र आवाज़ें निकल रही थी.. शीला जान बूझकर ज्यादा आवाज़ें कर रही थी.. वो चाहती थी की रेणुका और राजेश उसकी आवाजों को सुने.. पर मदन को बहोत शर्म आ रही थी.. शीला और रेणुका एक दूसरे के सामने देखते हुए बार बार हंस रही थी..

राजेश ने पीछे देखते हुए कहा : "अरे क्या हो रहा है पीछे?" राजेश को अंदाजा तो लग गया था पर फिर भी उसने पूछा

मदन ने आगे की सीट पर बैठे राजेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "भाई, कुछ नहीं हो रहा है.. तुम अपना ध्यान ड्राइव करने पर ही रखो..वरना एक्सीडेंट हो जाएगा"

हँसते हुए राजेश ने ड्राइविंग पर ध्यान केंद्रित किया.. पर रेणुका को मदन कैसे रोकता?? वो तो पीछे देखने लगी.. झुकी हुई शीला को..

मदन ने शरमाते हुए कहा "वो जरा शीला सफर के कारण थक गई है इसलिए मेरी गोद में सो रही है.. थोड़ा सा वॉमीट जैसा हो रहा है उसे इसलिए ऐसी आवाज़ें निकाल रही है" वैसे रेणुका को पता ही था की शीला क्या कर रही थी..

रेणुका: "अच्छा.. ?? मुझे तो ऐसी आवाज़ें आई जैसे कोई कुल्फी चूस रहा हो"

राजेश: "कहीं कोई गुड न्यूज़ तो नहीं है ना शीला भाभी..!! मदन, हम सब का मुंह मीठा करवाना पड़ेगा.. इस बार तो पक्का लड़का ही होगा..!!" उसने हँसते हँसते कहा

मदन: "क्या राजेश तू भी?? इस उम्र में अगर तुझे मिठाई खानी हो तो मुझे किसी 20 साल की लड़की से ब्याहना पड़ेगा.. मेरी तलवार में तो अब भी वार करने की ताकत है.. पर तेरी भाभी की म्यान सूख चुकी है.. !!"

अपना सिर ऊपर नीचे करते हुए मदन के लंड को चूस रही शीला को रेणुका देखती ही रही.. मदन शर्म से पानी पानी हो रहा था.. रेणुका ने राजेश के लंड को अपनी मुठ्ठी में दबाकर हिलाते हुए शीला को देखने के लिए पलटी.. तब उसका खुला हुआ गोरा स्तन, मदन की आँखों के बिल्कुल सामने आ गया.. मदन को अपने बबले को तांकते हुए देखकर.. रेणुका ने बिना शरमाये, राजेश के गाल पर किस कर दिया.. और मदन की तरफ देखकर उसे आँख मारी.. और कहा.. "आप दोनों इतना सब कर सकते हो तो हम इतना तो कर ही सकते है ना.. !!" इतनी मादक आवाज में रेणुका ने आमंत्रण भरी आँखों से मदन की ओर देखकर कहा

मदन: "आप को जो करना हो कर सकते हो.. मैंने कब मना किया.. ?? अगर आप को भी वॉमीट होने जैसा हो रहा हो तो आप भी गोद में सो जाइए.. जो करना हो कीजिए.. बस पीछे मत देखिए"

रेणुका : "एक बार शीला का हो जाने दो.. फिर सोचती हूँ"

मदन चोंक गया "मतलब?? मैं मेरी गोद में सुलाने की बात नहीं कर रहा हूँ.. क्या आप भी!!!"

राजेश ड्राइविंग करते करते इन सारी बातों का मज़ा ले रहा था

मदन की गोद में मुंह डालकर चूस रही शीला ने मुंह से लंड निकाला और कहा "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है रेणुका.. तू मदन की गोद में मुंह डालेगी तो मैं भी राजेश की गोद में मुंह डाल दूँगी" इतना कहकर शीला फिर से मदन का लंड चूसने में मशरूफ़ हो गई..

रेणुका को महसूस हुआ.. की जब शीला ने राजेश की गोद में जाने की बात खी.. तब राजेश का लंड और कडा हो गया.. वो इस बारे में राजेश के कान में कुछ कहने ही वाली थी.. चेहरा उसके कान के करीब ले जाकर वो कुछ कहती.. उससे पहले ही मदन ने पीछे से रेणुका के गोरे चिकने गाल पर एक हल्की सी पप्पी कर दी.. रेणुका का पूरा शरीर सिहरने लगा.. सिर्फ आधी सेकंड में ये हो गया.. राजेश और शीला को तो इसके बारे में पता तक नहीं चला क्योंकि राजेश आगे बैठा था और शीला का चेहरा नीचे था.. रेणुका के जिस्म में रोमांच और उत्तेजना की एक लहर सी दौड़ गई.. अपने पति की मौजूदगी में किसी गैर मर्द से चूमे जाने का विचार भी रोमांचित कर देता है..

जैसे कुछ न हुआ हो वैसे रेणुका राजेश के लंड से खेलती रही..

पीछे की सीट पर मदन का पूरा शरीर तंग हो गया.. शीला मुंह से लंड निकालकर उठ गई.. और अपनी टांगों के बीच हाथ डालकर उसने पेन्टी उतारकर पर्स में रख दी.. फिर दोनों हाथों से उसने अपना घाघरा उठाया.. और अपनी नंगी चूत को खुद ही सहलाने लगी.. पूरी कार में शीला के भोसड़े की मादक गंध फैल गई.. आगे की सीट पर बैठा राजेश भी समझ गया की पीछे क्या हो रहा था..

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राजेश ने रेणुका से कहा : "अरे यार.. ठीक से बबले बाहर निकाल.. इस तरह आधे आधे में कुछ मज़ा नहीं आ रहा.. पीछे देखकर कुछ तो सीख.. !!"

रेणुका ने तुरंत अपने ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये.. और अपने दोनों खरगोशों को खोल दिया.. "पहले से बोलना चाहिए था ना तुझे.. !! बिना कहें मुझे कैसे पता चलता.. ले दबा ले.. जितना मन करें.. !!" रेणुका जान बूझकर थोड़ी ऊंची आवाज में बोली ताकि मदन को भी सुनाई दे..

राजेश ने भी ऊंची आवाज में.. शीला सुन सके उस तरह कहा "तुझे अपने बबलों को कभी ढंकना ही नहीं चाहिए.. कपड़ों के पीछे ये बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते"

"ऊँहहह.. जरा धीरे धीरे दबा यार.. तोड़ देगा क्या??" अंगड़ाई लेते हुए रेणुका ने कहा.. "और इन्हें जरूरत के समय ही खोल सकते है.. तुम्हारा भी हर वक्त खड़ा थोड़े ही रहता है?? जब जरूरत होती है तभी तो उठता है तुम्हारा.. !!"

"आह्ह रेणु... अब तो रहा नहीं जाता" राजेश ने सिसकते हुए कहा

"आज कुछ ज्यादा ही टाइट हो गया है तेरा.. डार्लिंग, परफ़ॉर्मन्स के टाइम तो इतना सख्त नहीं होता तेरा.. !! आज क्या खास हो गया??"

राजेश: "आज का माहोल ही कुछ ऐसा है जानु.. तू भी आज कितनी खिली खिली लग रही है.. इतना तो बेडरूम में कभी नहीं चमकती.. किसी और बेटसमेन का साथ इनिंग खेलना का मन तो नहीं बना लिया.. हा हा हा हा हा.. !!"

मदन: "नई जगह हो.. और नया क्लाइमेट हो तब खेलने में ज्यादा मज़ा आता है.. राजेश तुझे घास वाली पिच ज्यादा पसंद है या बिना घास की?"

राजेश: "मुझे घास से कोई मतलब नहीं.. हाँ अगर पिच नई मिल जाए तो बेटिंग करने का मज़ा आ जाएँ"

मदन और राजेश क्या बात कर रहे थे वो दोनों महिलायें अच्छी तरह समझ रही थी.. और वो भी मजे ले रही थी

कामुक हरकतें और बातें करते करते वो लोग कब शहर पहुँच गए, पता ही नहीं चला.. !!

राजेश ने रेणुका को एक आखिरी किस देकर कहा "चलो अब बाकी सब घर जाके करना.. हम पहुँच रहे है" राजेश ने अपना लंड रेणुका के हाथ से छुड़ाते हुए कहा और बड़ी मुश्किल से उसे पेंट में फिर से कैद किया..

शीला ने अपना घाघरा नीचे कर दिया.. इतना सब करने के बावजूद वो झड़ नहीं पाई थी.. ऐसे वातावरण में सबके सामने उसका झड़ना मुमकिन भी नहीं था.. उसे चाहिए था तड़कता-भड़कता स्खलन.. चीखते चिल्लाते हुए.. आवाज को रोककर झड़ना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था..

चारों एकदम नॉर्मल होकर ठीक से बैठ गए.. शहर के अंदर घुसते ही.. एक होटल के पास, पीयूष गाड़ी खड़ी रखकर इन चारों का इंतज़ार कर रहा था.. राजेश और रेणुका गाड़ी से उतरे.. और अपनी गाड़ी में बैठ गए.. पीयूष, कविता और वैशाली उतरकर दूसरी गाड़ी में बैठ गए.. राजेश अपनी गाड़ी में पिंटू को ले गया.. क्योंकि दूसरी गाड़ी में जगह नहीं बची थी..


सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है शीला ने रेणुका को गरम कर दिया दोनों ही कामुक हो गई है और दोनों ने एक दूसरे के पति के साथ मस्ती करने का प्लान बनाया लेकिन बाद में दोनों ने गाड़ी में अपने अपने पति के साथ मस्ती की
 

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सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!

संजय के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद, इंस्पेक्टर तपन के कहने पर मदन ने शहर के एक बड़े वकील के द्वारा वैशाली के तलाक का केस दाखिल करवा दिया था.. जब तक ये मामला शांति से निपट नहीं जाता तब तक मदन ने वैशाली को इंतज़ार करने की हिदायत दी हुई थी..

कविता के लौट जाने के बाद, वैशाली पीयूष की कंपनी बहोत मिस कर रही थी.. जब कविता नहीं थी तब दोनों ने साथ में बड़े मजे कीये थे.. पर अब कविता की हाज़री में वो पीयूष से दूर ही रहने लगी थी.. पीयूष को भी इस बात का अंदाजा लग चुका था इसलिए वो भी सब के सामने वैशाली से अंतर बनाकर रखता था

मौसम की शादी की तारीख तय हो चुकी थी.. दीपावली के पंद्रह दिन बाद का मुहूरत था.. सुबोधकान्त और रमिलाबहन शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे.. कविता भी, जब मौका मिलता, अपनी बहन की शादी के लिए शॉपिंग करने निकल पड़ती.. और लड़कियों/औरतों को शॉपिंग पसंद भी इतना होती है.. भूख प्यास सब भूल जाते है.. अरे, मोहल्ले में कोई चूड़ी बेचने वाला भी आवाज लगाएं तो सब काम छोड़कर उसे मधूमक्खियों की तरह घेर लेती है.. रोज दोपहर को खाने के बाद, कविता वैशाली को लेकर शॉपिंग के लिए निकल जाती थी.. बहन की शादी थी इसलिए कविता का उत्साहित होना लाज़मी भी था..

पिछले हफ्ते जब कविता मायके में थी तब वो घंटों पिंटू के साथ बातें करती थी.. पर घर लौटने के बाद वो सब बंद हो गया था.. बहोत मिस कर रही थी वो पिंटू को.. पीयूष मौसम को मिस कर रहा था.. पति और पत्नी दोनों के दिलों में उदासी छाई हुई थी.. और उसका असर उनके सहजीवन पर भी पड़ रहा था.. रात को बिस्तर पर लेटकर न कविता सेक्स को याद करती और ना पीयूष याद दिलाता.. कविता को पीयूष का लंड पकड़ने का मन भी नहीं हो रहा था.. और पीयूष, मौसम के साथ गुजारें उन हसीन लम्हों को याद करते हुए कविता के बगल में ही सो जाता.. मौसम अब पराई हो गई थी ये सदमा पीयूष बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.. अंदर ही अंदर वो तरुण के प्रति ईर्ष्या से जल रहा था..

एक दिन शीला और मदन घर के बाहर बरामदे में झूले पर बैठे हुए थे.. वैशाली अंदर मोबाइल पर चैट कर रही थी.. पिंटू के साथ.. पिंटू अब जैसे उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था.. ऑफिस में तो खैर वो दोनों ज्यादा बातें नहीं करते थे.. पर घर पहुँचने के बाद दोनों मोबाइल पर भरपूर चैट करते थे.. चैट पर भी पिंटू ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था.. और उसकी इस बात ने वैशाली को बेहद आकर्षित किया था.. अक्सर कविता उसके सामने पिंटू को बहोत तारीफ करती रहती थी.. और वैशाली ने खुद भी यह अनुभव किया था..

वैशाली ने शीला को भी यह बता दिया था की पिंटू के साथ उसकी अच्छी पटती थी.. शीला और मदन को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी.. उल्टा शीला ने उसे हिदायत देते हुए कहा था की उसका जब भी पिंटू से मिलने का मन करें तब वो दोनों घर पर ही मिलें.. समाज की नज़रों में वैशाली अब भी संजय की पत्नी थी.. वो लोग बाहर कहीं मिलते तो लोग हजार बातें बनाते..

शीला और मदन आराम से झूले पर झूल रहे थे

शीला: "मदन, घर पर बैठे बैठे बोर हो गई मैं तो.. कहीं जाने का मन कर रहा है यार.. सिर्फ हम दोनों.. !!"

मदन समझ गया की शीला का भोसड़ा चुदने के लिए फड़फड़ा रहा था.. इसलिए बेचैन हो रही थी शीला.. लंड लेने के लिए तड़प रही थी.. कुछ करना पड़ेगा.. !! शीला चोदते वक्त इतनी आवाज़ें करती थी की वैशाली दूसरे कमरे में भी आराम से सुन पाती.. इसलिए काफी दिनों से चुदाई का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था

मदन: "सही कहा तूने.. राजेश से बात करते है.. साथ में दो तीन दिनों के लिए कहीं घूम आते है.. फ्रेश हो जाएंगे"

शीला: "पर घूमने जाएंगे तो वैशाली को भी साथ ले जाना पड़ेगा ना.. उसे छोड़कर नहीं जा सकते"

मदन: "फिर तो वही बात हो गई.. !! वैशाली साथ मे होंगी तो फिर क्या फायदा.. !!"

शीला: "हम्म कुछ करना पड़ेगा.. कोई ऐसी जगह ढूँढ़नी पड़ेगी जहां हम दोनों खुलकर मजे कर सकें"

मदन: "अरे शीला.. वो दूधवाले की बीवी हमारी कुछ मदद कर सकती है क्या? उसका घर मिल सकता है क्या?"

शीला: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर उससे कैसे कहूँ?? कुछ सेटिंग तो करना पड़ेगा यार.. मैं कुछ करती हूँ.. उसे एक बार घर मिलने बुलाती हूँ.. नहीं तो मैं ही उसके घर मिलने चली जाती हूँ" शीला और मदन दोनों की आँखों मे चमक आ गई.. रूखी के दूध भरे बबलों के बारे मे सोचते ही मदन की आँखों मे सांप लोटने लगे..

शीला: "मुझे पता ही की तुझे वो दूधवाले की बीवी क्यों याद आई.. पर उसके इतने बड़े बड़े है की तेरे हाथ मे भी नहीं आएंगे" मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए शीला ने शरारती अंदाज मे कहा

मदन: "अरे यार, ऐसा नहीं है.. तू किसी और जगह का जुगाड़ कर दे.. मुझे प्रॉब्लेम नहीं है" अपनी चोरी पकड़े जाने पर मदन ने सफाई दी "अरे हाँ शीला.. राजेश के घर पर हो सकता है क्या?"

शीला: "नहीं यार.. अभी अभी उनसे मित्रता हुई है.. ऐसी बातों के लिए उनसे घर मांगने मे झिझक होगी"

मदन: "तो फिर उस दूधवाले के घर के अलावा और कोई चारा नहीं है"

शीला: "देखती हूँ, क्या हो सकता है"

उस रात को, हवस हद से ज्यादा बढ़ जाने पर.. शीला और मदन ने अपनी आवाजों को रोककर चुदाई की.. बगल के कमरे मे वैशाली सो रही थी इसलिए दोनों को चुपचाप चोदना पड़ा.. बिलकुल मज़ा नहीं आया..!!

सुबह साढ़े पाँच बजे, रसिक की साइकिल की घंटी सुनकर, शीला की आँख खुल गई.. शीला उठकर बेडरूम से बाहर आई.. और बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया.. वो बाहर आई और मुख्य दरवाजा खोला.. रसिक सामने ही खड़ा था

रसिक: "पतीला नहीं लाई भाभी?? दूध कैसे लोगी?"

शीला: "रोज सिर्फ दूध ही देगा?? या और कुछ भी है तेरे पास देने के लिए??" शीला ने अपना गाउन ऊपर किया.. अंदर न ब्रा पहनी थी और ना ही पेन्टी.. अपना भोसड़ा दिखाते हुए वो बोली "इसमें दूध लेना है मुझे.. बोल, कब देगा?"

शीला के मदमस्त नंगे बबलों को दोनों हथेलियों से दबाते हुए रसिक ने कहा "मैं तो मार रहा हूँ देने के लिए भाभी.. आप कहो तो अभी घुसा दूँ"

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शीला: "मेरी बात ध्यान से सुन.. आज अभी साढ़े दस बजे मैं तेरे घर आऊँगी.. रूखी को कहीं भेज देना एक घंटे के लिए.. किसी को पता नहीं लगना चाहिए.. तेरे माँ बाप तो आगे के कमरे मे रहेंगे.. मैं पीछे के रास्ते अंदर आ जाऊँगी.. तेरा घर तो काफी बड़ा है.. पीछे के कमरे मे करेंगे"

रसिक: "ठीक है भाभी" जाते जाते उसने शीला की निप्पलों को बारी बारी मुँह मे भरकर चूस लिया.. और शीला के हाथ मे अपना लोडा भी पकड़ा दिया.. खूँटे जैसे लंड को पकड़कर शीला थरथराने लगी.. रसिक चला गया

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रोज पीयूष के साथ ऑफिस जाती वैशाली... आज पीयूष के चले जाने के बाद अकेले ही ऑफिस जाने निकली.. रास्ते मे उसने पिंटू को फोन किया.. ऑफिस मे तो सब की मौजूदगी के कारण खुलकर बात नहीं हो पाती थी.. काफी दिनों से कविता का भी फोन नहीं आया था इसलिए वैशाली से बातें करना पिंटू को बहोत अच्छा लगता था.. दोनों यहाँ वहाँ की बातें करते थे.. ऑफिस पहुँचने तक वैशाली पिंटू से बात करती रहती.. यह रोज का नित्याक्रम बन चुका था..

वैशाली के जाने के बाद साढ़े नौ बजे, मदन को बताकर, शीला रसिक के घर जाने के लिए तैयार हो गई.. मदन सोच रहा था की शीला घर का सेटिंग करने जा रही है.. हालांकि शीला तो खुद का सेटिंग करने निकली थी

मदन: "हाँ जाकर आ.. तू कहें तो मैं भी साथ चलूँ?"

शीला: "पागल है क्या?? तेरी मौजूदगी मे रूखी से ऐसी बात भला कैसे पूछूँ?"

मदन: "ठीक है.. तू अकेली ही चली जा.. बेस्ट ऑफ लक"

घर से बाहर निकलते निकलते शीला को हंसी आ रही थी.. अब मदन को क्या कहें?? बाहर चुदवाने जा रही बीवी को ये बेवकूफ "बेस्ट ऑफ लक" कह रहा था..

वो फटाफट चलते चलते रसिक के घर की ओर जाने लगी.. रास्ते मे उसने एक कॉल किया.. कॉल खतम करके वो मुसकुराते हुए चल पड़ी.. रसिक के घर पहुंचकर.. वो पीछे के रास्ते चुपके से चली गई.. और दरवाजा खटखटाने लगी.. रसिक ने दरवाजा खोला और शीला को हाथ से पकड़कर अंदर खींच लिया.. और दरवाजा बंद कर उसे दबोच लिया

रसिक की बाहों मे शीला का बदन हवस से तपने लगा... जानबूझकर आज वो बिना ब्रा पहने आई थी.. रसिक के हाथ और उसके बबलों के बीच कुछ नहीं आना चाहिए..

"सब सलामत है ना.. !! कोई आ तो नहीं जाएगा?" शीला ने कहा

"चिंता मत कीजिए.. पीछे के कमरे मे कोई नहीं आता" रसिक ने शीला के बबलों को रौंदना शुरू कर दिया

रसिक का हाथ स्तनों पर फिरते ही शीला की जवानी उछलने लगी..

"यार तू ऊपर सहला रहा है और नीचे से मेरा पानी छूटना शुरू हो गया.. आह रसिक" पाजामे के ऊपर से रसिक का लंड पकड़ते हुए शीला ने कहा "ये तो तैयार ही खड़ा है"


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"अरे भाभी, सुबह से.. जब से आपने घर आने का कहा.. तब से ये तैयार है.. !! पर आप एक मिनट रुकिए भाभी" शीला का हाथ अपने लंड से हटाते हुए रसिक खड़ा हो गया

"अब क्या है यार? सारी तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए तुझे.. इसलिए तो पहले से बताया था.. " चूत की खुजली से परेशान शीला ने कहा

रसिक छोटी से खिड़की को बंद कर रहा था.. पीछे से उसकी विशाल पीठ को देखकर शीला सोच रही थी की.. इसके पूर्वज जरूर असुर योनि से होंगे.. तभी ये इतना हट्टा-कट्टा राक्षस जैसा है.. साला जब ऊपर चढ़ता है तब पूरा जिस्म छील जाता है..

रसिक ने खटिया के सामने एक टेबल लगा दिया और उसपर नाश्ते की डिश सजा दी.. अगर कोई आ भी जाएँ तो दिखाने के लिए..

"अब सब ठीक है.. आप जैसे मर्जी करवा लीजिए.. कोई दिक्कत नहीं होगी"

रसिक की लंगोट मे हाथ डालकर उसके मूसल जैसे लंड को पकड़ते ही शीला के बदन मे सुरसुरी होने लगी.. मदन ने एक बार एक ब्लू फिल्म दिखाई थी जिसमे लड़कियां घोड़े के लंड से खेल रही थी.. घोड़े के चार पैरों के बीच बैठकर.. लड़किया उस विकराल तीन फुट लंबे लंड से विकृति पूर्वक खेल रही थी.. रसिक का लंड पकड़ते ही शीला को वो सीन की याद आ गई.. आँखें बंद कर वो रसिक के लंड को सहलाती रही..



"आह्ह भाभी, जल्दी कीजिए.. बाहर भी निकालिए इसे.. कब तक खेलती रहोगी" रसिक ने बेचैन होकर कहा

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शीला ने लंगोट से रसिक के लंड को बाहर निकाला.. आह्ह.. देखते ही शीला सिहर उठी.. विकराल अजगर जैसा रसिक का दमदार लंड.. टमाटर जितना बड़ा सुपाड़ा.. और लंड की फुली हुई नसें.. शीला की कलाई जितना मोटा था रसिक का लंड.. !! शीला की चूत ने रस और गंध छोड़ना शुरू कर दिया था.. जबरदस्त उत्तेजित हो गई थी वो.. उसके स्तन एकदम सख्त हो गए थे.. निप्पलें तनकर खड़ी हो गई थी..

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दोनों हाथों से लंड को जड़ से पकड़कर.. शीला ने अपने मुंह मे डाल दीया... आँखें बंद कर उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उस ब्लू फिल्म की हीरोइन की तरह वो भी घोड़े का लंड चूस रही है.. वो तब तक चूसती रही जब तक की उसका मुंह दर्द नहीं करने लगा.. रसिक के आँड़ भी अंडे की साइज़ के थे.. शीला उसके लंड और आँड पर टूट पड़ी थी.. कभी लंड को चूमती.. तो कभी आँड़ों को मुंह मे भरकर चूसती.. वैसे तो शीला को मदन का लंड चूसने मे भी मज़ा आता था.. पर रसिक के मूसल की बात ही निराली थी..

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शीला की चूत अब बगावत पर उतर आई थी.. इतनी तेज खुजली हो रही थी इस लंड को देखकर.. शीला ने ब्लाउस के हुक खोल दीये.. और अपने नारियल जैसे स्तनों को मुक्त कर दिया.. अत्यंत उत्तेजित होकर उसने अपने दोनों चुचे रसिक के लंड पर रगड़ दीये.. शीला के स्तनों से रगड़ खाकर रसिक का लंड लोहे के गरम सरिये जैसा हो गया था.. शीला ने अपने दोनों विराट स्तनों के बीच रसिक का लंड दबा दिया.. शीला की छातियों का नरम नरम स्पर्श मिलते ही रसिक का लोडा भी फुदकने लगा.. शीला के नखरे रसिक को पागल बना रहे थे..

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वो खड़े खड़े.. शीला के दूध जैसे गोरे बबलों को देख रहा था.. दीवार पर अपना सर टीकाकर बैठी शीला का घाघरा पूर्णतः ऊपर की तरफ उठ चुका था.. और शीला जितना हो सकें उतना पैर चौड़े कर.. अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लंड को प्यार करती रही.. उत्तेजित होकर जब रसिक बेकाबू हो जाता तब वो शीला के मुंह को ही चूत समझकर अपने लंड को बड़ी ही ताकत से अंदर धकेल देता.. पीछे दीवार और आगे लंड का आक्रामक हमला.. शीला की हवस संतुष्ट कर सकें उतना लंड उसके मुंह के अंदर दाखिल हो रहा था और रसिक के बड़े बड़े अंडकोश, शीला की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. रसिक की धीरज अब जवाब दे रही थी..

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पागलों की तरह रसिक का लंड चूस रही शीला को रसिक ने झुककर कहा "बस भाभी.. आप ऐसे ही चूसती रही तो मेरा निकल जाएगा.. और अंदर डालने का मौका ही नहीं मिलेगा.. "

जैसे रसिक की बात सुनी ही न हो वैसे शीला लंड चूसती ही रही.. काफी देर तक चूसने के बाद जब उसका मन तृप्त हुआ तभी उसने मुंह से लंड निकाला.. और रसिक की जांघों के बीच से उठ खड़ी हुई..

शीला के बिखरे हुए बाल.. हवस टपकाती लाल लाल आँखें.. गाल पर चिपका हुआ रसिक का थोड़ा सा वीर्य..!! जबरदस्त लग रही थी शीला..!! रसिक अब शीला के मदमस्त उरोजों पर टूट पड़ा.. और उसके दोनों स्तनों को बेरहमी से मसल दिया.. एक के बाद एक दोनों स्तनों की निप्पलों को चूसते हुए रसिक ने शीला पर धाबा मोल दिया.. एक इंच लंबी निप्पल को काटते ही शीला की सिसकियाँ निकलने लगी.. रसिक शीला को जितना दर्द पहुंचाता उतना ही शीला और हिंसक हो रही थी.. रसिक के लंड को मुठ्ठी में पकड़कर शीला निचोड़ने लगी.. शीला के मांसल गोलों को रसिक जितनी बेरहमी से दबाता.. शीला की उत्तेजना घटने के बजाए और भड़क जाती..

एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर.. जितना हो सकता था उतनी आक्रामकता से एक दूसरे से शरीर का घर्षण कर रहें थे दोनों.. शीला ने अपना घाघरा उठाकर रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया.. चूत की गर्मी का एहसास अपने लंड के सुपाड़े पर होते ही रसिक का लोडा शीला की मुठ्ठी मे ठुमकने लगा..

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शीला: "ओह्ह रसिक.. अब और नहीं रहा जाता.. जल्दी से मुझे खटिया पर पटककर चोद दें.. जरा भी रहम मत करना.. मर रही हूँ तेरे लंड से चुदने के लिए!! आज तो फाड़ ही डाल मेरी गुफा.. जल्दी जल्दी कर.. आह्ह.. !!"

रसिक: "हाँ भाभी... आपका बदन देखकर मेरा लोडा अब इतना तन चुका है की अब इसे बिना चोदे चैन नहीं मिलने वाला.. पर मैं दरवाजे की कुंडी ठीक से चेक कर लूँ.. कहीं रूखी बेवक्त न टपक पड़े"

रसिक दरवाजे की कुंडी चेक करने गया पर बेचारे नादान रसिक को कहाँ पता था की...

शीला ने रूखी को अपने घर भेजा था.. मदन के पास..!!! ताकि मदन उसके दूध भरे बबलों का लुत्फ उठा सकें.. और जब तक शीला का मिसकॉल नहीं जाता तब तक वो वापिस लौटने वाली नहीं थी.. वैसे शीला को मदन के साथ सेक्स करने मे उतनी दिक्कत नहीं थी.. रात को वैशाली की मौजूदगी के कारण कंट्रोल रखना पड़ता था.. पर दिन भर तो वैशाली ऑफिस रहती थी.. उस समय दोनों चाहें उतना चोद सकते थे.. लेकिन शीला चाहती ही थी की इसी बहाने रसिक के मूसल से ठुकवा सकें.. और मदन भी रूखी के दूध भरे स्तनों को देखकर होश खो बैठा था.. मदन की हवस को ही सीढ़ी बनाते हुए शीला रसिक के लंड तक पहुँच गई थी.. मदन उसी विश्वास में था की इतनी सुंदर, मॉडर्न और सम्पूर्ण संतुष्ट शीला, किसी मामूली से दूधवाले से थोड़े ही चुदवाएगी.. !! पर ऐसा गलत आत्मविश्वास कभी नहीं रखना चाहिए.. स्त्री कभी भी, कुछ भी कर सकती है

मदन बेचारे को कहाँ पता था की जब वो विदेश में मेरी के बबले चूस रहा था तब शीला रसिक के साथ रंगरेलियाँ मना रही थी.. !!

रसिक के सामने ही अपनी चूत खुजाते हुए शीला खटिया पर बैठ गई और अपने सारे वस्त्र उतार दीये.. कपड़े उसने संभालकर खटिया के बगल में इस तरह रखें की जरूरत पड़ने पर वो तुरंत उन्हें पहन सकें.. शीला के पीछे पीछे रसिक आया.. सामने से चलकर आ रहें रसिक की दोनों जांघों के बीच झूल रहें विकराल लोडे को देखकर.. किसी भी स्त्री की नियत बिगड़ सकती थी.. ऐसा मोटा और तगड़ा था उसका लंड.. शीला को नंगी बैठें देख.. रसिक उत्तेजित सांड की तरह बेकाबू हो गया.. और शीला के सामने अपनी बनियान उतार दी.. चौड़े कंधे.. काले घुँघराले बालों से भरी हुई छाती.. देहाती श्याम रंग.. अलमस्त काया.. और साढ़े छह फिट की ऊंचाई.. बड़ी बड़ी मूछें.. कान में चांदी की बाली.. कम से कम 90 किलो वज़न था रसिक का.. !!

शीला: "बाप रे, रसिक.. !! कितना बड़ा है ये तेरा.. !! किसी जवान लड़की के छेद में अगर तू ये तेरा लंड डालेगा तो उस बेचारी की वहीं जान निकल जाएगी.. "

रसिक को अपनी ओर आते देख.. शीला खटिया पर टांगें फैलाकर लेट गई.. उसने खुद ही अपने चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. आज वो हफ्तों की भूख शांत करने आई थी..!!

धीरे धीरे रसिक शीला के करीब आया.. और खटिया के कोने पर बैठ गया.. शीला की मांसल गदराई जांघों पर हाथ फेरते हुए उसने कहा "कितनी चिकनी है आपकी जांघें, भाभी। इसपर तो मैं अपना लंड रगड़कर ही पानी गिरा सकता हूँ.. " कहते हुए शीला की भोस तक अपना हाथ ले गया.. शीला के पैर तो पहले से ही चौड़े थे.. इसलिए उसके भोसड़े तक पहुँचने में रसिक को जरा भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा

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खुरदरे हाथों का स्पर्श शीला को और उत्तेजित कर गया.. वो नीचे से अपने चूतड़ उठाकर गोल गोल घुमाने लगी.. "सहलाना बंद कर रसिक.. अंदर चीटीयां काट रही है मुझे.. डाल दे तेरा लंड अंदर.. आह्ह मर गई.. !!"

शीला रूखी के बारे में सोचने लगी.. कितनी किस्मत वाली है वोह.. रोज ऐसे तगड़े लंड से चुदना नसीब हो रहा था उसे.. फिर भी कमीनी जीवा के लंड के पीछे पागल थी.. मायके और ससुराल दोनों में उसके पास उत्कृष्ट कक्षा के तगड़े लंड उपलब्ध थे..

रसिक ने शीला की दोनों जांघों के बीच पोजीशन ले ली.. जिस तरह लड़ाकू विमान टेक-ऑफ के लिए तैयार होते है, बिल्कुल वैसे ही.. रसिक का लंड, शीला की भोसड़े की गंध सूंघकर हिलोरे लेने लगा था..


रसिक ने दोनों हाथों को शीला के घुटनों पर रख दिया.. और दोनों पैरों को अपने कंधे पर ले लिया.. भोसड़े पर लंड टेककर अंदर डालने की कोशिश की.. पर उस तरह लंड अंदर घुस नहीं पा रहा था.. आखिर शीला ने अपने एक हाथ से स्तन मसलते हुए दूसरे हाथ से रसिक के लंड को हाथ में लिया और अपने गरम भांप छोड़ रहे सुराख पर रख दिया.. हल्के से गांड उचकते ही रसिक का सुपाड़ा अंदर घुस गया.. "अब मार धक्के.. जोर से.. फाड़ दे इसे.. आह्ह"

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अब रसिक भी कहाँ पीछे हटने वाला था.. !! उसने दबाकर एक जोरदार धक्का लगाया.. और शीला के भोसड़े को चीरते हुए उसका लंड बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकराया..

"ऊईईई माँ... मर गई.. ओह्ह रसिक.. अपना लोडा बाहर निकाल और फिर से इसी तरह एक और धक्का लगा.. आह्ह मज़ा आ गया.. जरा जोर से.. !!" शीला की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी.. "कौन जाने क्या खाकर तुझे तेरी माँ ने पैदा किया था.. कितना खूंखार लंड है रे तेरा... अब चोद डाल.. अपनी माँ की चूत समझ कर चोद दे मुझे.. !!"

रसिक ने शीला के पैरों को छोड़ दिया.. और शीला ने उसके कंधों पर दोनों पैरों से कुंडली मार दी.. रसिक ने शीला के दोनों बबलों को अपने हाथों से दबाते हुए.. अपनी अलमस्त काया का पूरा 90 किलो वजन एक साथ ही शीला के ऊपर थोप दिया.. नौ इंच का लंड और नब्बे किलो का वज़न.. बड़े आराम से झेल रही थी शीला.. !!

रसिक के वजनदार धक्कों को शीला ने बड़ी ही आसानी से झेल लिया.. पर खटिया के पैर इसे बर्दाश्त न कर पाएं.. कड़ाके की आवाज के साथ खटिया टूट गई.. "अरे अरे अरे... !!" कहते हुए रसिक शीला को संभालने गया.. पर आखिर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम की जीत हुई.. काबिल शीला ने इस स्थिति में भी रसिक का लंड बाहर निकलने नहीं दिया.. उसने अपने भोसड़े की मांसपेशियों के बीच रसिक के लोडे को ऐसा दबोच रखा था की उसके बाहर निकलने की कोई गुंजाइश नहीं थी..

टूटी हुई खटिया से उठने की कोशिश कर रहें रसिक को शीला ने अपनी बाहों में भरते हुए.. उसके पसीने से तर कंधों पर काटते हुए कहा "उठ मत.. चालू ही रख.. इसी स्थिति में धक्के लगाना शुरू कर दे.. मज़ा आ रहा है यार.. "

रसिक ने फिर आव देखा न ताव.. धनाधन धक्के लगाना शुरू कर दिया.. उसके प्रत्येक प्रहार से शीला की भूख और खुजली कुछ कुछ संतुष्ट हो रही थी.. रसिक के कूल्हों को अपने नाखूनों से कुरेदते हुए शीला उसे अपने जिस्म से और सख्ती से दबा रही थी.. रसिक बिना रुकें, शीला को पूरे जोश से चोद रहा था और शीला नीचे तृप्ति के महासागर में गोते लगा रही थी.. शीला भी पसीने से तरबतर हो गई थी जीवन के इस सर्वोच्च आनंद को महसूस करते हुए.. रसिक के पसीने की गंध शीला की हवस को ओर भड़का रही थी..


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टूटी हुई खटिया में चोदना असुविधाजनक तो था ही.. पर जब इच्छाशक्ति प्रबल हो तब कोई भी समस्या ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती..

"आहहह रसिक.. लगा जोर से शॉट.. मार डाल मुझे.. ओह्ह आह्ह.. शाबाश.. और जोर से.. ऊईई माँ.. आह्ह अहह.. स्पीड बढ़ा.. मैं झड़ने वाली हूँ.. आ.. आ.. आ.. आ.. आ.... !!" शीला के स्खलन की अंतिम क्षणों में रसिक भी थककर चूर हो गया.. उसके विकराल लंड ने वीर्य की गरम गरम पिचकारी जब बुर के अंदर तक छोड़ी.. तब शीला ने अपने नाखून रसिक की पीठ पर गाड़ दीये.. रसिक की पीठ पर ऐसे निशान बन गए थे जैसे किसी खूंखार शेरनी ने अपना पंजा मार दिया हो.. !!

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शीला के बबले रसिक की छाती के बोझ तले दबकर चपटे हो गए थे.. बबलों की चर्बी का अतिरिक्त हिस्सा.. दोनों बगलों से बाहर झलक रहा था.. टूटी हुई खटिया में.. पैर फैलाकर लेटी शीला तभी शांत हुई जब उसका भोसड़ा पूर्णतः तृप्त हो गया.. रसिक को अपनी बाहों में भींचकर शीला तेजी से हांफने लगी.. बिखरे हुए बाल.. आँखों में तृप्ति के भाव के साथ शीला पड़ी रही.. और उसके ऊपर रसिक ऐसे गिरा हुआ था जैसे एनकाउंटर में मारे गए किसी गुंडे की लावारिस लाश हो..

थोड़ी देर तक दोनों उसी स्थिति में पड़े रहे.. शीला के तकियों जैसे स्तनों पर से उठने का भला कीसे मन होगा.. !! लेकिन रसिक उस स्थिति में भी समय को लेकर चौकन्ना था..

"अब आप मुझे छोड़िए तो मैं खड़ा हो सकूँ.. वैसे मज़ा आ गया आज तो भाभी.. ये रूखी पता नहीं अब तक क्यों नहीं लौटी?? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था.. !! वैसे देखने जाएँ तो अच्छा ही हुआ की वो अब तक नहीं लौटी.. वरना हमारे रंग में भंग पड़ता.. !!"

शीला: "हाँ हाँ उठ जा.. और अपने लोडे को बाहर निकाल.. अंदर एकदम फिट हो गया है.. कुत्तों की तरह.. तू भी कपड़े पहन ले और मैं भी तैयार हो जाती.. फिर कोई आ जाएँ तो भी प्रॉब्लेम नहीं होगा.. "

दोनों ने उठकर कपड़े पहने

रसिक: "अब इस टूटी हुई खटिया का क्या करूँ? घर में ये एक ही खटिया है.. रूखी तो ये देखकर ही मेरी जान निकाल देगी.. शाम तक इसे ठीक कराना ही होगा.. बेकार में खर्चा हो गया मेरा.. !!"

शीला ने तुरंत अपने पर्स से सौ सौ की तीन नोट निकालकर रसिक को थमा दी.. थोड़े से संकोच के साथ, रसिक ने पैसे ले लिए..

रसिक: "शुक्रिया भाभी.. वैसे आज आपके साथ जो मज़ा आया.. ऐसा मज़ा मुझे रूखी के साथ कभी नहीं आता है.. समझ में नहीं आ रहा की रूखी कहाँ मर गई?? कमीनी किसी ओर के साथ तो खटिया नहीं तोड़ रही होगी??"

शीला खिलखिलाकर हंस पड़ी "सब तेरे जैसे थोड़े ही होते है.. चल अब मैं चलती हूँ.. ज्यादा देर बैठूँगी तो फिर से मन हो जाएगा"

रसिक: "अरे भाभी, थोड़ी देर बैठिए ना.. जी करता है की पूरा दिन आपके सामने बैठकर देखता ही रहूँ.. कितनी सुंदर हो आप"

शीला: "ज्यादा रोमेन्टीक मत बन.. ऐसा तो क्या देख लिया तूने मेरे अंदर?"

रसिक: "एक बात कहूँ.. ?? जब हम कर रहे थे.. तब आपने कहा था की अगर मैं अपना ये लंड किसी जवान खूबसूरत लड़की के अंदर घुसा दूँ तो वो मर जाएगी.. उसी से याद आया.. मेरा बहोत मन कर रहा है.. किसी फेशनेबल जवान लड़की को चोदने का.. आप मेरी कुछ मदद करो ना.. !!"

शीला: "साले, मुझे क्या दलाल समझ रखा है तूने?? और तेरा रूप-रंग तो देख.. !! तुझे नंगा देखकर लड़कियां वहीं बेहोश हो जाएगी.. !!"

रसिक: "क्या भाभी आप भी.. !!!"

शीला: "तेरे लिए तो रूखी की गुफा ही ठीक है.. कागज की कश्ती जैसी नाजुक चूतें, तेरा ये मूसल बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी"

शीला के बबलों को दबाते हुए रसिक ने फिर से विनती की.. "कुछ कीजिए ना भाभी, प्लीज"

शीला: "अरे यार.. तू तो मेरे गले ही पड़ गया.. मैं कहाँ से लाऊँ तेरे लिए जवान फेशनेबल लड़की?? और मिल भी जाएँ तो मैं क्या कहूँ उसे?? की जा इस दूधवाले से चुद जा.. !! नहीं भाई नहीं.. मुझसे ये नहीं होगा"

रसिक: "आप को कहीं ढूँढने नहीं जाना है भाभी... आपको तो सिर्फ मुझे मदद करनी है"

शीला: "अच्छा... तूने ढूंढ भी ली है.. !! बता.. कौन है वो अभागी लड़की??"

कमर पर हाथ रखकर जबरदस्त स्टाइल में खड़ी थी शीला.. जिसे देखकर अच्छे से अच्छे मर्दों को छक्के छूट जाएँ..

रसिक: "भाभी.. अगर आप मुझे सहयोग दें तो बगल के चिमन काका के घर ही मेरा काम हो सकता है"

शीला: "मतलब?? तू कविता की बात कर रहा है??" चोंक उठी वो..

कविता से शीला बराबर परिचित थी.. उतना ही नहीं.. वो रसिक और कविता दोनों के शारीरिक भूगोल से भी वाकिफ थी.. इन दोनों के उम्र से लेकर लंड-चूत के नाप तक.. किसी भी चीज में कोई समानता नहीं थी.. ये तो ऐसा हाल होता जैसे किसी कुत्तिया पर गधा चढ़ने की बात कर रहा हो.. शीला की आँखों के सामने.. फटी हुई चूत के साथ.. लहू-लुहान लेटी हुई बेहोश कविता का द्रश्य आ गया.. बाहर खड़ी हुई एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ी भी दिखाई देने लगी.. शीला ने अगर थोड़ी ओर कल्पना की होती तो उसे रसिक की गिरफ़्तारी समेत और कई द्रश्य भी नजर आ जाते

कांप उठी शीला.. क्योंकि वो अच्छे से जानती थी.. कविता की तितली जैसी शोख चंचल काया.. रसिक नाम का सांड.. एक ही पल में रौंद देगा.. रसिक की बात सुनकर.. शीला का दिमाग.. कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा.. वो सोचने लगी.. जब मैं कलकत्ता गई थी तब तो कहीं रसिक ने कविता के ऊपर नजर नहीं डाली होगी.. !! अनुमौसी भी रसिक के लंड की दीवानी है.. कहीं अपना भोसड़ा मरवाने के चक्कर में.. मौसी ने कविता का सौदा तो नहीं कर दिया रसिक के साथ.. !! नहीं नहीं.. ऐसा तो नहीं हुआ होगा.. वरना रसिक मुझे ये सब क्यों बताता.. !! सीधा मौसी के साथ ही कविता का सेटिंग कर लेता..

"क्या सोच रही हो भाभी? मेरी बात का बुरा लगा क्या आपको??" चुपचाप बैठकर सोच रही शीला को देखकर रसिक ने पूछा

शीला: "ऐसा कुछ नहीं है रसिक.. कविता का सेटिंग तो मैं नहीं करवा सकती.. पर अगर कोई नए जमाने की मॉडर्न लड़की का कॉन्टेक्ट होगा तो तुझसे मिलवा दूँगी जरूर.. अभी तो ऐसा कोई मेरे ध्यान में नहीं है.. शहर की लड़कियों को मॉडर्न हेंडसम रोमियो टाइप लड़के पसंद होते है.. उन्हें देसी नारियल के पानी से ज्यादा कोक और पेप्सी पसंद होती है.. शुद्ध घी का हलवा खाने से उनका फिगर खराब हो जाता है पर पीत्ज़ा, बर्गर इत्यादि खाने में उन्हें कोई हर्ज नहीं होता.. सब औरतें या लड़कियां मेरे जैसी नहीं होती.. की जिन्हें असली मर्द की परख हो.. अगर तू भी क्लीनशेव होकर मॉडर्न कपड़े पहन ले तो वो लड़कियां तेरे पीछे भागेगी.. हट्टा-कट्टा तो तू है ही.. आजकल दंभ और दिखावे का ज़माना है.. तेरे पास फूटी कौड़ी भी न हो तो चलेगा पर तुझे दिखावा ऐसा करना होगा की जैसे तू करोड़पति हो.. आज कल तो जहर भी अच्छे पेकिंग में डालकर बेच सकते है.. केसर युक्त गुटखा की तरह.. !!"

रसिक: "अरे भाभी.. मैं ठहरा दूधवाला.. अब सूट-बूट पहनकर दूध बेचने निकलूँगा तो कौन खरीदेगा?? ये तो बस एक मेरी ख्वाहिश थी जो मैंने आप को बताई.. वरना मैं कौन सा यहाँ मरा जा रहा हूँ.. और आप तो हो ही मेरे पास.. आप भी मॉडर्न ही हो.. पर कविता का गन्ने जैसा पतला शरीर देखता हूँ तो मन में खयाल आता है की ऐसी लड़की को चोदने में कितना मज़ा आएगा.. !! लंड घुसाने पर कैसे छटपटाएगी.. !!!"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ तेरी बात रसिक.. तेरे लोडे में इतनी ताकत है की कोई भी तेरा लेकर छटपटाएगी..!! पर जरा कविता की चूत के बारे में तो सोच.. तू अंदर डालेगा तो बेचारी की फट के फ्लावर बन जाएगी.. मुश्किल से पच्चीस की है कविता.. तेरे जैसा लंड उसने सपने भी देखा नहीं होगा.. उसकी उम्र या अनुभव अधिक होने दे.. वो खुद-ब-खुद चलकर तेरे पास आएगी.. उसके साथ अच्छे संबंध रख.. अभी तो नहीं पर भविष्य में जरूर कुछ होगा.. " आश्वासन देते हुए शीला ने कहा

"वैसे तूने कभी कविता से इस बारे में कुछ बात की है क्या?" शीला का नार्को टेस्ट शुरू हो गया

"नहीं भाभी.. ऐसा तो कुछ नहीं कहा मैंने"

शीला: "तो फिर कविता तेरे दिमाग में कैसे आ गई एकदम से??"

रसिक: "कविता दूध लेते वक्त काफी मज़ाक मस्ती करती है मेरे साथ.. इसलिए मुझे लगा की....!!"

शीला: "रसिक, कविता ऐसी नहीं है.. कोई भी लड़की या स्त्री ऐसी नहीं होती.. जब तक वह खुद असन्तुष्ट हो... मज़ाक करने का मतलब ये नहीं होता की लड़की कुछ भी करने को तैयार है"

रसिक: "वैसे देखने जाए तो पुरुष भी ऐसा सब हालात के मारे ही तो करता है.. मैं आप से जिद नहीं कर रहा भाभी.. पर कभी कविता सामने से खुद अगर ऐसी कोई बात छेड़ें.. तो आप मुझे जरूर याद करना.. !!"

शीला: "पागलों जैसी बातें मत कर.. कविता कभी इस बात के लिए राजी नहीं होगी... और अगर राजी हो भी गई तो तेरा ये गधे जैसा लंड लेने की उसकी क्षमता ही नहीं है.. दो-तीन धक्कों में तो उसकी चूत फट जाएगी.. और तू फंस जाएगा.. गलती से भी ऐसा कुछ मत करना.. किस्मत में होगा तो वो सामने से आएगी.. पर अगर तू जबरदस्ती करने गया और कुछ उंच-नीच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. !! चल अब मैं चलती हूँ"


आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था.. अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
वैशाली और पिंटू में नजदीकियों बढ़ रही है वहीं शीला ने रसिक के साथ खटिया तोड़ चुदाई की है
वही दूसरी ओर मदन ने भी रूखी को चख लिया है
शीला ने क्या प्लान बनाया है रसिक को पता भी नहीं चलने दिया
 

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आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था..

अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..


"ये क्या है रूखी?" शीला ने गुस्सा करते हुए कहा

"कुछ नहीं भाभी.. मैं तो आप से मिलने आई थी.. पर आप बाहर गई हुई थी इसलिए भैया ने मुझे यहाँ बैठने को कहा.. मैं तो आपका इंतज़ार कर रही थी" रूखी ने जवाब दिया

"तो क्या ये तेरे भैया ने तुझे बिस्तर पर बैठने को कहा था?? और वो भी ब्लाउस के तीन हुक खोलकर??" शीला ने लाल आँख करते हुए मदन की तरफ देखा

वैसे ये शीला का ही प्रपंच था.. रूखी को उसने ही फोन कर यहाँ घर पर बुलाया था.. उसे पक्का यकीन था की रूखी को अकेले पाकर मदन अपने आप को रोक नहीं पाएगा.. और रूखी भी जनम जनम की भूखी थी.. वो जानबूझकर गुस्सा इसलिए जता रही थी ताकि मदन उसके नियंत्रण मे रहे.. दूसरा, जितनी देर तक मदन रूखी के साथ उलझा रहता, उतनी ही ज्यादा देर तक उसे रसिक के मजेदार लंड से चुदने का समय मिलता..

"अरे भाभी, मैं तो सोफ़े पर ही बैठी थी.. पर भैया ने मुझे अंदर बुला लिया.. मैंने सोचा उन्हें कुछ काम होगा.. मुझे कहाँ पता था की भैया मेरे साथ ऐसा कुछ करेंगे.. " रूखी ने ब्लाउस के बटन बंद करते हुए सफाई दी

शीला ने क्रोधित होकर मदन के सामने देखा.. मदन चुपचाप नजरें झुकाएं खड़ा था.. रूखी जल्दबाजी में ब्लाउस के बटन बंद करने गई.. पर बड़े बड़े.. दूध भरे स्तनों को ताकत से ब्लाउस में बंद करते हुए उसकी दोनों निप्पलों से दूध टपक पड़ा.. जिसे देखकर मदन के मुंह से सिसकी निकल गई.. आह्ह!!

शीला रूखी के मदमस्त स्तनों को देखती ही रही.. मदन भी स्तब्ध होकर देख रहा था.. पीले रंग के पतले ब्लाउस की कटोरियों का आगे का हिस्सा दूध निकलने के कारण गीला हो रखा था.. और ब्लाउस गीला होकर पारदर्शक हो गया था.. रूखी की निप्पल ब्लाउस में से भी साफ नजर आने लगी थी.. स्तन को नीचे से दबा रही रूखी.. ढंकने के चक्कर में और दूध बहा रही थी..

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"रहने दे रूखी.. अब क्यों छुपा रही है.. जो देखना था वो तो मदन ने सब कुछ देख ही लिया है.. और मैंने भी.. !! अब छुपाने का कोई मतलब नहीं है" शीला ने रूखी से कहा

यह सुनते ही रूखी ने अपने निरर्थक प्रयत्नों पर रोक लगा दी.. और ब्लाउस के हुक को छोड़ दिया.. उसी के साथ.. उसके दोनों स्तन लटक गए.. दो भव्य स्तनों और निप्पलों के ऊपर लगी दूध की बूंदों का सौन्दर्य देखकर जो होना था वहीं हुआ..

रुखी का ये रूप देखकर शीला भी अचंभित हो गई.. वो समझ गई की इसमें बेचारे मदन की कोई गलती नहीं थी.. यह सीन देखकर मिट्टी का पुतला भी उत्तेजित हो जाता.. !!

मदन से रहा नहीं गया.. और शीला की मौजूदगी में ही.. उसकी जरा भी परवाह कीये बगैर.. वो रूखी के करीब गया.. और उसकी एक निप्पल को मुंह में भरकर.. छोटे बच्चे की तरह दूध चूसने लगा..

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"ओह्ह भैया.. छोड़ भी दीजिए.. अरे भाभी, आप भैया को कुछ कहिए ना.. !! ये क्या कर रहे हो भैया.. !! भाभी गुस्सा करेगी.. छोड़ दो मुझे.. आह्ह" शीला के सामने ही मदन की इन हरकतों से रूखी शर्म से लाल हो गई.. और मदन को अपने शरीर से दूर धकेलने की कोशिश करने लगी..

पर मदन इस मौके को छोड़ने वाला नहीं था.. वो जानता था की शीला चाहें जितना गुस्सा कर लें.. अभी ये सब देखकर उसकी चूत में चुनचुनी होना शुरू हो जाएगी.. और जैसे मैं रूखी के बबले देखकर तड़प रहा हूँ.. वैसे ही वो लंड लेने के लिए तड़पने लगेगी.. !! और हुआ भी वैसा ही.. शीला आगे बढ़ी और ऐसे खड़ी हो गई जिससे उसे सारा द्रश्य आराम से नजर आए.. तीरछी नज़रों से शीला की ओर देखकर रूखी मुस्करा रही थी और मदन दोनों हाथों से उसके स्तन को दबाकर दूध निकाल रहा था..

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शीला बेडरूम से बाहर आई और तसल्ली कर ली की मुख्य दरवाजा ठीक से लॉक था.. और बेडरूम में चली आई.. फिर रूखी को आँख मारते हुए उसने विजयी मुद्रा में अंगूठा दिखाकर आगे बढ़ने की अनुमति दे दी.. और रूखी के सामने ही अपने घाघरे के ऊपर से भोसड़े को खुजाते हुए.. अपने ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये.. और उन दोनों के साथ शरीक हो गई..

मदन के पास शीला की तरफ देखने का भी समय नहीं था.. रूखी के स्तनों को पच-पच की आवाज के साथ चूस रहें मदन की पेंट से शीला ने उसका लंड बाहर निकाला और चूसने लगी.. उसके लंड के स्वाद से वो पिछले तीस साल से परिचित थी.. पर आज उसका स्वाद कुछ अलग ही था.. वो समझ गई की उसके लंड पर रूखी के मदमस्त भोसड़े का शहद लगा हुआ था.. इसलिए स्वाद अलग लग रहा था.. रूखी ने मदन के लंड की तरफ नजर भी नहीं डाली.. ये देखकर ही शीला समझ गई की उसके आने से पहले चुदाई का एक राउन्ड हो चुका था.. मदन की कामुकता को वो बखूबी जानती थी..

शीला को शामिल हुआ देख मदन जोश में आ गया.. और टेंशन-मुक्त होकर उसने रूखी के बदन को सहलाना शुरू कर दिया.. बिस्तर पर लेट चुकी रूखी की दोनों टांगें खोल दी शीला ने.. भरपूर झांटों के जंगल में छुपी हुई चूत खुल गई.. मदन इतना उत्तेजित था की उसे रूखी के अलावा और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था.. उसके लंड की सख्ती देखकर ही पता चलता था की आज उसका सुरूर कुछ अलग ही था..

शीला ने मदन को खड़ा किया और रूखी की फैली हुई जांघों के बीच बिठा दिया.. और वो खुद रूखी के मुंह पर अपनी चूत लगाते हुए.. मदन के सामने मुंह रखकर बैठ गई.. मदन ने रूखी की दोनों जांघों को चौड़ा किया.. और एक ही धक्के में अपना पूरा लंड उसके गीले गुलिस्तान में डाल दिया..


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धक्के लगाते हुए वो शीला को चूम रहा था.. रूखी नीचे से गांड उछाल उछालकर चुदवा रही थी.. और शीला रूखी से अपनी चूत चटवा रही थी.. मदन के लंड ने रूखी को तृप्त करके ही दम लिया.. और संतोष के भाव रूखी के चेहरे पर छलक उठें.. शीला भी अपना भोसड़ा रगड़ते हुए झड़ गई.. और शीला रूखी के ऊपर से उतर गई..

रूखी अब धीरे से खड़ी हुई.. और कपड़े पहनने लगी.. तैयार होकर वो चुपचाप चली गई.. शीला या मदन से बिना कुछ बात किए.. मदन का लंड मुरझाने के बाद उसे खयाल आया की अब शीला का क्या करें?? आज से पहले दोनों के बीच ऐसी स्थिति नहीं आई थी.. उसे पता था की शीला उसकी कोई सफाई सुनने वाली नहीं थी.. दूध भरे बबलों के प्रति उसका जुनून शीला जानती थी.. पर अब शीला क्या कहेगी वो उसके इंतज़ार में था.. शीला भी मदन की ओर तीखी नज़रों से देख रही थी..

काफी देर तक शीला कुछ नहीं बोली.. फिर मदन की तरफ उसका पतलून फेंकते हुए कहा "ले मदन.. कम से कम पेंट तो पहन ले.. अभी कविता या अनुमौसी मे से कोई आ गया तो उनको देखकर ये तेरी लुल्ली फिर से खड़ी हो जाएगी.. और वो ये सोचेंगे की इसका ऐसा हाल मुझे चोदकर हुआ है.. मेरी चुदाई हुई भी है या नहीं वो उन्हें कहाँ पता चलेगा.. !!"

मदन ने चुपचाप पेंट पहन लिया और धीमे से बोला "सॉरी यार.. पर मुझे ये पता नहीं चला की गुस्सा होने के बावजूद तू हमारे साथ शामिल कैसे हो गई?"

शीला गुस्से से कांपते हुए बोली: "मेरी गांड मरवाने शामिल हुई मैं.. !!! साले चूतिये.. तू और रूखी मजे उड़ाओ.. तो मैं क्या क्या खड़े खड़े देखती रहती.. ?? गुस्सा तो ऐसा आ रहा था.. मन कर रहा था की रसिक को अभी के अभी यहाँ बुलाऊँ.. और तेरे सामने ही उससे मेरा भोसड़ा फड़वा लूँ.. पर हम दोनों की लड़ाई में.. ओह आई एम सॉरी..!! अब तो रूखी भी शामिल हो चुकी है.. हम तीनों की लड़ाई में.. बेकार में रसिक से क्यों चुदवाऊँ.. !! मुझे कोई अपनी मर्जी का मर्द मिलने दे.. फिर देखना.. तेरी आँखों के सामने अगर मैंने अपनी चूत न मरवाई.. तो मेरा नाम बदल देना.. !!"

मदन: "शीलु मेरी जान... यार मुझसे गलती हो गई.. अगर मेरा विश्वास करे तो एक बात कहूँ.. ?? उस रूखी ने आकर मेरे सामने ऐसे ऐसे नखरे कीये.. जैसे मेरा तपोभंग करने आई हो.. झुक झुककर अपने बबले दिखा रही थी.. मैं कितना कंट्रोल करता यार.. !!"

शीला: "तू वहाँ विदेश में जब अपनी मकान-मालकिन के बबले चूस रहा था तब यहाँ मुझे देखकर कितने मर्द अपने लंड खुजाते थे.. तो क्या मैं उन सब के सामने टांगें फैलाकर चुद जाती.. !! एक बार तो एक सांड हमारे घर के बाहर खड़ा था.. इतना बड़ा लंड था उसका.. तो क्या मैं उसके नीचे सो जाती??" शीला जब बोलने बैठती तब कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता था..

मदन: "अरे यार तुम औरत हो.. औरतों में तो कंट्रोल होता है.. मर्द ही कंट्रोल नहीं कर सकते"

शीला: "कुछ भी हो मदन.. पर तूने जो कुछ भी किया वो ठीक नहीं किया.. अभी के अभी मेरी चूत ठंडी करनी है मुझे.. बता कैसे करेगा?? तू तो पिचकारी मारकर शांत हो गया.. उस रूखी की चूत में.. अब मैं क्या करूँ??"

मदन: "आई एम सॉरी यार.. अब छोड़ ना.. वो है ही ऐसी की देखकर लंड तैयार हो गया मेरा.. ऊपर से उसके दूध भरे बबलों की लालच.. तुझे तो पता है मेरी कमजोरी.. "

शीला जानबूझकर गुस्सा कर रही थी और मदन के मजे ले रही थी.. उसी वक्त दस्तक देकर कविता ने घर में प्रवेश किया..

"कैसे हो मदन भैया?" कोयल सी मीठी आवाज में कविता ने कहा

"अरे कविता.. आजा अंदर.. ये देख तेरी भाभी कब से क्लास ले रही है मेरी.. " मदन ने कहा.. कविता के आने से उसने राहत की सांस ली

कविता: "क्या हो गया भाभी? क्यूँ डांट रही हो भैया को?"

शीला ने मुंह बिगाड़कर कहा "अपने भैया से ही पूछ...!!"

मदन: "अरे ऐसी कोई खास बात नहीं है.. बेकार में तू बात का बतंगड़ बना रही है"

कविता: "अरे पर कोई मुझे बताएगा की आखिर बात क्या है?"

शीला और मदन दोनों चुप हो गए.. क्या बताते?? की मदन रूखी के बबले चूसते हुए रंगेहाथों पकड़ा गया.. ??

शीला: "कुछ नहीं है कविता.. ये तो मियां-बीवी की रोज की नोंकझोंक है.. तू बता.. कैसे आना हुआ? कैसी चल रही ही मौसम की शादी की तैयारी?" बोलते बोलते शीला किचन में गई और कविता उसके पीछे पीछे

कविता: "बस चल रही है तैयारी.. मौसम की शादी के लिए पापा ने आपको और भैया को एक हफ्ते पहले से आने के लिए कहा है" फिर अचानक कविता ने कहा "एक मिनट भाभी... आज सुबह सुबह ही रोमांस का मुड़ बन गया था क्या?"

शीला: "क्यों?"

कविता धीरे से शीला के कान में कुछ फुसफुसाई

शीला: "नहीं रे नहीं.. ऐसा तो कुछ नहीं हुआ..पर क्यों पूछा??"

कविता: "आपके पेटीकोट के पीछे ये जो धब्बा है.. देखकर ही पता चलता है.. झूठ क्यों बोल रही हो भाभी.. आप के जितना अनुभव भले ही ना हो.. पर इतना तो मैं समझ ही सकती हूँ की ऐसे धब्बे कब बन जाते है कपड़ों पर"

चोंककर शीला ने अपने पीछे हाथ लगाकर देखा.. गिलेपन का एहसास होते ही वो शरमा गई.. रसिक के लोडे की दमदार पिचकारी से निकला वीर्य.. रह रहकर उसकी चूत से रिसकर पेटीकोट को गीला कर रहा था.. अच्छा हुआ जब वो मदन से झगड़ रही थी तब मदन का ध्यान नहीं गया..

शीला ने कविता को अपने करीब खींचा और उसके कान में कहा "ये धब्बा तुम्हारे भैया की वजह से नहीं बना है"

कविता चोंककर जोर से बोली "क्या??????" आँखें फटी की फटी रह गई उसकी.. और अपने चेहरे को शर्म के मारे हाथों से ढँकते हुए वो बोली "तो फिर किसका है?"

शीला: "वो मैं नहीं बता सकती.. टॉप सीक्रेट है.. जैसे तेरे और पिंटू का सीक्रेट है ना.. वैसा ही कुछ.. "

कविता: "अरे वाह भाभी.. आपने तो पहले कभी बताया ही नहीं.. बताइए ना.. कौन है वो?"

शीला: "अभी चुप मर.. फिर कभी बताऊँगी"

कविता ने शीला के पीछे जाकर फिर से वो धब्बा देखते हुए कहा "इतना बड़ा धब्बा?? मेरे कपड़ों पर तो बस छोटा सा दाग ही होता है.. आप तो जैसे पानी के पोखर में बैठकर आई हो इतना गीला हो गया है.. "

शीला ने कुहनी तक हाथ दिखाकर इशारा करते हुए कहा "इतना बड़ा है उसका.. देखा है कभी इतना बड़ा लंड??" फिर अपने दोनों हथेलियों को जोड़कर बोली "इतना सारा निकला था.. तभी तो बड़ा धब्बा बना हुआ है.. थोड़ी सी पिचकारी से कभी ऐसा धब्बा थोड़े ही बनता है"

"बाप रे भाभी.. क्या आप भी.. !!" "लंड" शब्द सुनकर कविता का गोरा मुखड़ा शर्म से लाल लाल हो गया.. इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है??

अचानक कविता के हावभाव बदल गए.. उसे वो मनहूस रात याद आ गई जब उसकी सास ने आइसक्रीम में दवाई मिलाकर उसे बेहोश करने की कोशिश की थी.. और रसिक के साथ उसके जिस्म का सौदा कर दिया था.. और रसिक ने उसकी चूचियाँ भी दबा दी थी.. आज तक पीयूष और पिंटू के अलावा किसी ने उसके नंगे जिस्म को हाथ नहीं लगाया था.. रसिक का लंड जब उसने देखा तब उसका दिल बैठ गया था.. कितना बड़ा था.. !!! बाप रे बाप.. !! वो शीला को कहना चाहती थी की.. हाँ.. उतना बड़ा लंड मैंने देखा है.. पर फिर आगे क्या बताती?

शीला: "क्या हुआ? चुप क्यों हो गई?? यही सोच रही है ना की इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है.. !! अरे भाई.. तुम आजकल की लड़कियों ने दुनिया देखी ही कहाँ है.. !! गाँव के देसी घी की ताकत का तुम्हें अंदाजा भी नहीं है"

कविता: "भाभी... !! आपने कितनों के देख रखे है??"

शीला: "चुप कर.. अब तू मेरी तहकीकात मत कर.. बात मेरी नहीं हो रही अभी.. बात बड़े लंड की हो रही है.. " मदन घर में मौजूद था इसलिए दोनों चुपके चुपके बात कर रही थी

शीला बड़े लंड का विवरण दे रही थी.. और कविता को शीला के प्रत्येक शब्द सुनकर रसिक का डरावना लंड याद आ रहा था.. देसी घी?? कविता सोच में पड़ गई.. उसकी सास भी रसिक के प्यार में पागल थी.. अब शीला भाभी भी वहीं भाषा में बात कर रही थी.. सासु माँ तो प्यार में ऐसी पागल हो गई थी की मेरे जिस्म का ही सौदा कर बैठी थी रसिक के साथ.. इस बुढ़ापे में इतनी नीच हरकत करने के लिए वो तैयार हो गई.. मतलब कुछ तो खास बात होगी उसमें..

शीला: "तेरे भैया जब बाहर जाए.. तब ये बात याद दिलाना मुझे.. अभी ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा.. !!"

कविता और शीला किचन में बातें कर रही थी उस वक्त.. मदन को राजेश का फोन आया.. बात करने के बाद.. फोन कट करने से पहले उसने राजेश से कहा "मैं शीला को पूछकर अभी दो मिनट में बताता हूँ"

मदन: "शीला, राजेश बिजनेस के काम से चार दिनों के लिए बेंगलोर जा रहा है.. अकेला ही है और मुझे साथ ले जाना चाहता है.. अगर तुझे प्रॉब्लेम न हो तो मैं चला जाऊँ उसके साथ?"

शीला: "कब जाना है?? तू यार एन मौके पर ऐसे प्रोग्राम बनाएगा तो कैसे चलेगा?? फिर मैं यहाँ चार दिन तक क्या करूँ?"

कविता खिलखिलाकर हंस पड़ी.. "चार दिन तक क्या करूँ" इस वाक्य का सही अर्थ वो समझ रही थी

मदन: "अरे यार.. तू गुस्सा मत कर.. मैं मना कर देता हूँ राजेश को.. " थोड़ी नाराजगी के साथ मदन ने कहा

कविता: "अरे भाभी.. प्लान बन रहा है तो जाने दो भैया को.. राजेश सर की कंपनी भी है.. क्या आप भी.. !!"

शीला: "अरे वाह.. बड़ी तरफदारी कर रही है अपने भैया की.." कविता का कान खींचते हुए शीला ने कहा

कविता: "वो इसलिए की अगर मदन भैया नहीं गए.. तो राजेश सर जरूर पीयूष को अपने साथ बेंगलोर ले जाएंगे.. फिर चार दिन तक मैं क्या करूँ??" हँसते हुए कविता ने कहा

शीला: "कमीनी.. एक नंबर की चैप्टर है तू.. ठीक है.. तू कह रही है इसलिए जाने देती हूँ.. वरना इन पतियों को ज्यादा छूट देनी नहीं चाहिए.. वरना साले हमारी आँखों के सामने ही इनकी रास-लीला शुरू हो जाएगी"

मदन ने तुरंत फॉन पर राजेश को बता दिया की वो साथ चलेगा.. राजेश ने मदन को चार बजे उसकी ऑफिस पर पहुँचने के लिए कहा

तुरंत ही मदन ने पेकिंग शुरू कर दी.. कुछ जरूरी सामान लेने वो बाहर गया

कृत्रिम क्रोध के साथ शीला ने कहा "कविता, अब तू मेरे साथ ही रहेगी.. तूने मुझे अकेला कर दिया.. अब मैं भी तुझे पीयूष के साथ नहीं रहने दूँगी.. मेरा उपवास होगा तो तुझे भी खाने नहीं दूँगी मैं.. !!"

कविता: "कोई बात नहीं भाभी.. मैं मम्मीजी को बताकर आती हूँ की आज आपके साथ ही खाना खाऊँगी.. मैं आई दो मिनट में"

कविता गई.. कमर तक लटक रही चोटी को हिलाते हुए.. अपनी पतली कमर मटकाते जा रही कविता को पीछे से देखती रही शीला.. और सोच रही थी.. हे भगवान.. इस पतली सी लड़की पर अगर रसिक चढ़ेगा तो इसका क्या हाल होगा?? कविता की चोटी जितनी लंबी है उतना ही लंबा लोडा है रसिक का..

कविता जल्दी जल्दी घर गई और तुरंत वापिस लौट आई.. दरवाजा अंदर से लॉक करके सोफ़े पर बैठ गई.. खाना तैयार था और दोनों मदन के आने का इंतज़ार करने लगे..

शीला: "दरवाजा क्यों बंद किया?? मदन अभी आता ही होगा? शेविंग क्रीम लेने ही तो गया है"

कविता: "हमारी बातें डिस्टर्ब न हो इसलिए मैंने दरवाजा बंद कर दिया है.. मदन भैया आएंगे तब खोल देंगे.. "

शीला वापिस बड़े लंड की बात शुरू करेगी इस इंतज़ार में कविता थोड़ी देर बैठी रही.. फिर बात की शुरुआत करने के लिए उसने कहा

कविता: "भाभी, मौसम की सगाई के दिन आप बहोत सुंदर लग रही थी"

शीला: "हाँ और तू भी बहोत प्यारी लग रही थी.. जब पिंटू के साथ खड़ी थी"

कविता: "क्या सच में?? हम दोनों की जोड़ी इतनी सुंदर लगती है भाभी?"

शीला: "हाँ बहोत ही अच्छी लग रही थी.. पीयूष से तलाक लेकर पिंटू से शादी कर ले"

कविता ने एक गहरी सांस छोड़ी.. और चुप हो गई

कविता: "रेणुका जी और राजेश सर की जोड़ी भी बहोत मस्त लग रही थी.. हैं ना भाभी?"

शीला: "अरे तेरी बात से मुझे याद आया.. राजेश बिजनेस टूर पर जा रहा है तो रेणुका भी घर पर अकेली होगी.. उसके घर ही चली जाती हूँ.. पर.. फिर वैशाली अकेली हो जाएगी.. रेणुका को ही यहाँ बुला लेती हूँ"

कविता बैठे बैठे टीवी देख रही थी तब शीला ने रेणुका के मोबाइल पर कॉल लगाया.. रेणुका ने तुरंत उठाया

रेणुका: "हाई शीला.. मैं तुझे ही याद कर रही थी.. कितने दिन हो गए हमें मिलें हुए.. तू तो मुझे भूल ही गई है"

शीला: "नहीं यार.. भूल गई होती तो फोन क्यों करती तुझे.. !! बोल क्या कर रही है? अकेली है?"

रेणुका: "दिन के समय तो मैं अकेली ही होती हूँ.. क्यों पूछा.. ?? कोई आया है क्या??" रेणुका का इशारा रसिक की तरफ था

शीला: "नहीं यार.. वैसे कल तेरा क्या प्रोग्राम है?"

रेणुका: "कुछ खास नहीं.. राजेश के साथ मूवी देखने जाने का प्लान है"

शीला: "क्यों?? राजेश बेंगलोर नहीं जाने वाला?? मदन को तो उसने कॉल किया था की वो चार दिनों के लिए जा रहा है और मदन भी उसके साथ जाने वाला है.. अभी खाना खाकर मदन निकलने ही वाला है"

तभी घर की डोरबेल बजी..

रेणुका से बातें करते हुए शीला ने दरवाजा खोला.. मदन के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया.. बातें करते करते शीला ने खाना परोसा.. और फिर मदन ने खाना फटाफट खतम किया और अपना बेग लेकर तुरंत निकल गया

शीला: "मतलब तुझे पता ही नहीं है की राजेश बेंगलोर जाने वाला है??"

रेणुका: "वैसे तो मुझे बताकर जाता है.. पर हो सकता है की कोई अर्जेंट काम निकल आया हो" रेणुका काफी मुक्त विचारों वाली थी.. उसे राजेश पर पूरा भरोसा था..

दोनों की बातें चल रही थी तब रेणुका के बेडरूम में किसी ओर मोबाइल की रिंग सुनाई दी

रेणुका: "अरे, राजेश अपना दूसरा मोबाइल घर पर ही भूल गया है.. किसी का कॉल आ रहा है.. तू फोन चालू रख.. " रेणुका ने दूसरे फोन पर बात करते हुए कहा "ओके, थेंकस.. मैं उन्हें बता दूँगी" कहते हुए दूसरा फोन कट कर दिया

रेणुका: "शीला.. यार मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है"

शीला: "क्यों?? क्या हुआ?"

रेणुका: "एक काम कर.. तू मेरे घर आजा.. फिर सब बताती हूँ"

शीला: "अरे यार.. मैं अभी कविता के साथ हूँ.. और शाम को वैशाली भी घर आ जाएगी.. मैं नहीं आ सकती"

रेणुका: "कविता शाम तक थोड़े ही तेरे साथ रहेगी.. !! वो तो पीयूष के आते ही घुस जाएगी उसकी बाहों में.. सर्दी कितनी है.. !! सब को अपना अपना हीटर याद आ जाता है रात को.. तू एक काम कर.. कविता को निपटाकर घर भेज दें.. और तू यहाँ चली आ.. मैं पिंटू को फोन करके बता देती हूँ को वो शाम को वैशाली को यहाँ छोड़ जाएँ.. तीनों साथ डिनर करेंगे.. !!"

शीला: "ठीक है.. मैं एक घंटे में फोन करती हूँ.. तब तक देख.. शायद राजेश तुझे फोन करें.. !!"

रेणुका: "ओके.. ठीक है.. बाय.. मैं इंतज़ार करूंगी तेरा.. !!"

रेणुका ने फोन रख दिया..

कविता और शीला ने एकाध घंटे तक काफी बातें की.. कविता के सवालों में.. देसी घी और बड़े लंड का बार बार जिक्र होता था.. उसकी तमाम बातें कामअग्नि को भड़काने वाली थी..पेट्रोल से आग बुझाने की कोशिश कर रही थी कविता... ऊपर से शीला की गरम बातें उसे और उत्तेजित कर रही थी.. कविता के चेहरे के खुमार को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी शीला.. कविता के सवालों का जवाब देते देते शीला भी गरम हो गई थी..

कविता: "भाभी, अब तो मदन भैया भी चले गए.. मैं दरवाजा बंद कर देती हूँ.. अब सारी बातें विस्तार से बताइए मुझे.. मुझे सुनने में बहोत मज़ा आ रहा है"

शीला: "तू अभी नादान है कविता.. तेरी उम्र की थी तब मैं भी ऐसी ही थी.. मैंने खुद ही सेक्स के सारे पाठ पढ़ें.. और ऐसी माहिर हो गई की आज भी मदन को खुश रख पाती हूँ.. हम औरतें पति की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है.. उनको पूरा संतोष मिलें.. उनका दिल ना दुखें.. इसका पूरा पूरा ध्यान रखते है.. पर क्या हम अपनी खुशी के लिए भी कभी जीते है क्या?? सब कुछ वहीं करते है जो पति को पसंद हो.. एक बात बता.. तू पीयूष का लंड चूसती है क्या??"

शीला के इस अचानक सवाल से कविता शर्म से पानी पानी हो गई

"हाँ भाभी.. " कविता ने सिर्फ इतना ही कहा

"कितनी देर तक?"

"थोड़ी देर के लिए ही भाभी"

शीला: "क्यों? ज्यादा देर तक क्यों नहीं चूसती?"

"अच्छा नहीं लगता भाभी.. मुंह दुखने लगता है"

शीला: "मैं तेरे भैया का लंड तब तक चूसती हूँ जब तक की वो हाथ जोड़कर बाहर निकालने के लिए विनती न करें.. ऐसी चुसाई करो तो पति खुश होगा ही होगा.. अरे खुश क्या होगा.. हमारा गुलाम बन कर रहेगा.. अगर ठीक से चूसना आता हो तो.. !! अच्छा.. ये बता.. तुझे अपनी चूत चटवाने में मज़ा आता है?"

कविता: "बहोत मज़ा आता है भाभी.. इतना मज़ा आता है की उसके अंदर डालने से पहले ही मैं झड़ जाती हूँ.. सिर्फ चटवाकर ही मैं पूरी संतुष्ट हो जाती हूँ"

शीला: "अच्छा.. मान ले अगर पीयूष को चाटना पसंद न हो.. तो??"

कविता: "पर उसे तो बहोत पसंद है भाभी.. मुझे इन सब चीजों के बारे में कहाँ पता ही था?? शादी करके आई तब मुझे सिर्फ किस और बूब्स दबाने के अलावा और कुछ पता नहीं था"

शीला: "झूठ मत बोल.. शादी के पहले पिंटू के साथ कुछ नहीं किया था क्या?? उसका देखा तो होगा ही तूने.. !!"

कविता: "देखने में और चूसने में फरक होता है ना भाभी.. !! मेरा पिंटू तो इतना अच्छा है की मेरी कितनी मिन्नतों बाद उसने मुझे अपना लंड दिखाया था.. मैं जबरदस्ती उसका हाथ अपने बूब्स पर रख दूँ तभी वो दबाता था"

शीला: "क्यों भला.. !! उसका खड़ा नहीं होता है क्या?? पिंटू को तुझे चोदने का मन नहीं करता था क्या? तेरे जैसी सुंदर लड़की अकेले में मिल जाएँ तो अच्छे अच्छों की नियत खराब हो जाएँ"

कविता: "खड़ा भी होता था.. और पत्थर जैसा सख्त भी हो जाता था.. कभी कभी मैं जिद करके पेंट के ऊपर से उसका पकड़ लेती थी तब पता चलता था की कितना टाइट हो जाता उसका लंड.. पर थोड़ी देर सहलाने के बाद वो मेरा हाथ हटा देता था"

शीला: "अजीब बात है.. !! मैंने आज तक ऐसा मर्द नहीं देखा.. जो इतने टाइट माल को चोदने से अपने आप को रोक सकें.. !!"

कविता: "मैं भी वहीं कहती थी उसे भाभी.. तो वो बोलता.. की मेरी शादी हो जाएँ उसके बाद हम सब कुछ करेंगे.. वो चाहता था की मुझे पहली बार मेरा पति ही चोदे.. मेरा बहोत मन था की मैं अपना सील पिंटू से तुड़वाऊँ.. पर वो माना ही नहीं.. !!"

शीला: "तूने पहली बार पिंटू का लंड देखा तब कैसा महसूस हुआ था? शादी के आखिरी हफ्ते तक उसने तुझे अपना लंड क्यों नहीं दिखाया?"

कविता: "वो तो दिखाना चाहता ही नहीं था.. पर हमारी किसी बात को लेकर शर्त लगी थी जो मैं जीत गई और बदले में मैंने उसे अपना लंड दिखाने के लिए कहा"

शीला: "पागल.. सिर्फ लंड देखने के लिए क्यों कहा? चुदवा ही लेती.. !!"

कविता: "तब मेरे दिमाग में नहीं आई ये बात.. वरना मज़ा आ जाता भाभी.. "

बात करते करते शीला खड़ी हुई और कविता के करीब आई.. कविता की छाती से उसका पल्लू हटा दिया.. ब्लाउस में कैद अमरूद जैसे उसके स्तनों को पकड़ते हुए.. झुककर उसने अत्यंत कामुकता से कविता के लाल होंठों को चूम लिया..

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शीला: "सिर्फ बातें करते करते हम कितनी गरम हो गई.. !! सच बता.. नीचे गीला हो रहा है या नहीं?"

कविता: "ओह भाभी.. जरा जोर से दबाइए ना.. हाँ.. नीचे गीली हो गई है मेरी.. और चूल भी मच रही है.. आपने चाटने की बात की और मेरी वो.. नीचे पानी छोड़ने लगी.. आह्ह.. अभी कोई आकर चाटने को तैयार हो तो मैं अभी अपनी टांगें फैलाकर लेट जाऊँ.."

शीला: "जैसा मन तुझे अभी कर रहा है.. पुरुषों को चौबीसों घंटे होता रहता है.. की काश कोई आकर उनका लंड चूसें.. इसलिए.. लंड चूसने के लिए कभी खुद का मूड नहीं देखना चाहिए.. बस सहूलियत देखनी चाहिए.. उनकी इच्छा तो हमेशा होगी.. और हमारा मूड कभी नहीं होगा.. समझी?? मरने की हालत में पड़े हुए मर्द का लंड अगर कोई चूस ले तो वो तब भी मना नहीं करेगा.. बल्कि बच जाएगा"

कविता ने शीला के खरबूजे जैसे स्तनों पर चेहरा रख दिया.. और उसकी गदराई कमर को दोनों हाथों से लपेट लिया.. शीला के विशाल स्तनों पर अपना गाल रगड़ने लगी कविता

शीला: "जब हमें पता है की हमारे पति को इससे खुशी मिलती है.. फिर उन्हें क्यों उस सुख से वंचित रखना.. !!"

कविता: "पता नहीं भाभी.. पर मुझे लंड चूसना ज्यादा पसंद नहीं है.. हाँ चूत चटवाना बहोत अच्छा लगता है"

शीला ने धीरे से अपने ब्लाउस के दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर निकाला.. और कविता के बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा "ले कविता.. चूस ले इसे.. देख.. बातें करते हुए कितने सख्त हो गए है ये.. मैं जब भी गर्म हो जाती है तब ये सख्त पत्थर जैसे हो जाते है.. मदन होता तो दोनों हाथों से मसल मसलकर इन्हें ढीले कर देता.. आज यह जिम्मेदारी तेरी है.. चल अब तू मदन बन जा.. और इन्हें मसल दे.. फट रही है छातियाँ मेरी.. आह्ह.. जल्दी जल्दी कर यार.. !!"

कविता के मुंह में निप्पल देकर शीला ने बात आगे बढ़ाई..

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शीला: "कविता, अभी तू नाजुक है.. तेरी चूत सिर्फ पीयूष का लंड अंदर ले सकें उतनी ही चौड़ी हुई होगी.. पर तुझे पता है.. सब लंड एक जैसे नहीं होते.. अलग अलग रंग.. अलग अलग साइज़.. अलग अलग मोटाई होती है सब की"

शीला की एक इंच लंबी निप्पल को मुंह से निकालकर कविता ने कहा "हाँ भाभी, पीयूष कभी कभी तीन तीन उँगलियाँ एक साथ डाल देता है..तब दर्द होता है.. मैं मुश्किल से दो उँगलियाँ ही अंदर ले पाती हूँ.. पिंटू और पीयूष के लंड की साइज़ एक सी है.. !!"

शीला: "मेरे छेद में तो मदन चार उँगलियाँ डाल दे तो भी कम पड़ जाती है मुझे.. आह्ह कविता.. मोटा तगड़ा लंड अंदर डलवाने में जो मज़ा आता है.. वो मैं बता नहीं सकती.. अंदर ऐसे घुसता है.. चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ.. आह्ह.. दिल गार्डन गार्डन हो जाता है"

"दर्द नहीं होता आपको??" कविता ने फिर से निप्पल मुंह में लेकर चूसते हुए कहा

शीला ने कविता के सर को अपने स्तनों से दबाते हुए कहा "अरे मेरी जान.. उसी में तो असली मज़ा आता है.. उस दुख में जो सुख है वो ओर किसी में नहीं.. चल अब नीचे भी थोड़ा सा सहला दें.. " कविता का हाथ पकड़कर शीला ने अपने घाघरे के अंदर डालकर.. भोसड़े पर दबा दिया..

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"ओह्ह भाभी.. कितनी गरम है आपकी तो.. !! बाप रे.. !!" शीला के भोसड़े के वर्टिकल होंठों पर लगे चिपचिपे प्रवाही को हथेली से पूरी भोस पर रगड़ते हुए कविता ने कहा

"बस बस.. ओर नहीं कविता.. फिर मेरा मन हो गया तो लंड कहाँ से लाएंगे?? प्लीज रहने दे.. !!" शीला ने सिसकते हुए कहा

कविता को बेहद उत्तेजित करने के बाद शीला ने कहा "कविता, अब मुझे रेणुका के घर जाना होगा.. तू अपने घर जा और मैं रेणुका के घर के लिए निकलती हूँ.. इस बारे में हम कभी विस्तार से बात करेंगे.. जब किसी दिन पीयूष और मदन दोनों न हों, तब तू रात को सोने आ जान.. सब समझूँगी.. ठीक है.. !!"

कविता को गर्म करके मजधार में छोड़ दिया शीला ने.. और मन ही मन खुश होते हुए वो कपड़े बदलने गई.. कविता के सामने ही वो कपड़े बदल रही थी.. जब शीला अपने सारे कपड़े उतारकर मादरजात नंगी हो गई तब उसे देखकर कविता का गला सूखने लगा.. बेड के कोने पर एक पैर टिकाकर शीला ने कविता की आँखों के सामने ही.. अपना भोसड़ा दबा दिया.. और तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए.. भोसड़े का सारा पानी अपनी हथेली में ले लिया..

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और फिर कविता के पल्लू से उसे पोंछ दिया.. और कपड़े पहन लिए.. चूत की असन्तुष्ट भूख से परेशान होते हुए कविता अपने घर चली गई.. अच्छा तो शीला को भी नहीं लगा था.. कविता को यूं गर्म कर छोड़ देना.. पर अभी उसकी चूत को ठंडा करने का समय नहीं था.. फिलहाल रेणुका के घर जल्दी पहुंचना जरूरी था.. अगर जल्दी न होती तो वो कविता की चूत को ठंडा जरूर कर देती..

कविता के जाने के बाद, शीला ने वैशाली को फोन कर बता दिया की वो रेणुका के घर जा रही है और उसे भी शाम को ऑफिस से छूटकर वहीं पहुंचना है..


शीला तैयार होकर, अपना पर्स लेकर निकल पड़ी, रेणुका के घर जाने के लिए..
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है मजा आ गया शीला खुद रसिक के साथ खटिया तोड़ चुदाई कर ली और खुद के प्लान के हिसाब से जब मदन ने रूखी की चुदाई कर ली तो उस पर गुस्सा हो गई खुद करे तो मजे दूसरे करे तो गुस्सा
राजेश और मदन कौनसी चिड़िया को फंसाने निकले हैं वहीं शीला और रेणुका दोनों भी मजा करने वाली है
 
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