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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

sunoanuj

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कमरे के बाहर लॉबी में.. काफी असामान्य चहल-पहल की आवाज़ें सुनाई देने लगी.. !!! और उन आवाजों में डर और व्यग्रता के भाव स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ रहे थे.. सब के चेहरे एकदम से गंभीर हो गए.. एक दूसरे की तरफ देखते हुए.. सब की आँखों में बस एक ही प्रश्न था.. की आखिर ऐसा क्या हो गया था.. !!!!

अचानक बाहर से किसी की चिल्लाने की आवाज आई "भागो... पुलिस की रैड पड़ी है.. !!!!"

पुलिस...!!!! तीन अक्षर का यह शब्द.. इंसान को हमेशा से डराता आया है.. !!

बाप रे... !!! पुलिस... !!!! मर गए... !!! अब कल के अखबार में.. फ़ोटो के साथ नाम आना तय हो चुका था.. !! सब की गांड फटकर फ्लावर हो रही थी..

हाथ से अपना सर पटकते हुए मदन ने कहा "माँ चुद गई यार.. हम तो घर पर झूठ बोलकर निकले थे.. अब क्या होगा..??? !!"

घबरा रहें कॉकटेल ने कहा "मैंने भी घर पर झूठ बोला है की एक पुराने दोस्त की मृत्यु हो गई है और उसकी अंतिम क्रिया में शामिल होने जा रहा हूँ " पहली बार सब ने कॉकटेल को बोलते हुए सुना.. आवाज जानी पहचानी जरूर लग रही थी.. पर अभी किसी का ध्यान उस ओर गया ही नहीं.. !!

"पुलिस की रैड है.. आप सब लोग अपने अपने कमरे में चले जाइए.. " काफी डरे हुए हेमंत ने कहा.. सब अपने कपड़े ढूँढने लगे.. जिसके हाथ में जो आया वो लेकर अपना शरीर छुपाते हुए.. सब अपने अपने कमरे की ओर भागे.. !!

जल्दबाजी में.. राजेश के कमरे में स्टेफी के बदले रेणुका चली गई.. और स्टेफी कॉकटेल के सामने वाले कमरे में.. उसके साथ घुस गई.. हेमंत और बार्बी अपने कमरे में दुबक कर बैठ गए.. !!

यह कोई अफवाह नहीं थी.. सचमुच पुलिस की रैड पड़ी थी.. चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था.. रात के एक बजे पुलिस ने किसी अनजान खबर पर एक्शन लिया और इस बहोत बड़े सेक्स रैकिट का पर्दाफाश कर दिया था.. ज्यादातर सदस्य काफी अमीर और बड़ी बड़ी पहचान वाले थे.. उन सब को यकीन था की वह अपने पैसे के दम पर.. या किसी न किसी की सिफारिश के जोर पर बच जाएंगे.. पर दो ही दिन पहले प्रमोट हुए इंस्पेक्टर खान ने किसी की एक न सुनी.. वो हर कमरे में खुद जाकर तलाशी ले रहे थे.. जिन लोगों ने अपने फर्जी नाम बताकर रूम बुक किए थे.. उन सब को थाने ले जाने का आदेश दिया था इंस्पेकटर ने.. एक के बाद एक कपल.. चुपचाप पुलिस की वैन में बैठने लगे.. ईमानदार इन्स्पेक्टर के आगे.. ना पैसों की गर्मी चली और ना ही किसी की सिफारिश.. !!

होटल के प्रत्येक कमरे में जाकर इन्स्पेक्टर सब की पूछताछ कर रहे थे.. उसके साथ चार कॉन्स्टेबल भी थे.. शीला और मदन के कमरे के दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. शीला ने इशारे से मदन को बाथरूम में छुप जाने को कहा.. और अपने उत्तेजक शर्ट और मेक्सी की बिना परवाह किए.. मास्क उतारकर.. बड़ी ही बेफिक्री से दरवाजा खोला

"हैलो मैडम.. मेरा नाम इन्स्पेक्टर खान है.. यह एक तहकीकात है.. और आपको हमें सहकार देना होगा"

"आइए सर.. !!" शीला ने जग से पानी भरकर ग्लास इन्स्पेक्टर को देते हुए कहा "बैठिए ना.. !! वैसे बात क्या है?? और इतनी रात गए आप लोग क्यों आए है?? और आप किस प्रकार के सहकार की बात कर रहे है?"

इन्स्पेक्टर: "देखिए मैडम.. बात दरअसल यह है की... !!"

शीला: "जी, मेरा नाम शीला है.. !!"

इन्स्पेक्टर: "थेंकस मिसिस शीला.. आप ये बताइए.. की आप किसके साथ यहाँ रूम में ठहरी हुई है?"

शीला: "जी, मेरे पति के साथ.. हम और हमारे दोस्त.. मिसिस रेणुका और राजेश.. जो बगल के कमरे में ठहरे हुए है.. हम लोग घूमने निकले थे.. पर वापिस आते वक्त हमें मजबूरन यहाँ रुकना पड़ा.. !!"

इन्स्पेक्टर: "ओह अच्छा.. तो कहाँ है आप के पति?"

शीला: "जी, वो टॉइलेट में है... अभी आ जाएंगे.. दरअसल उन्हें होटल का खाना राज नहीं आता.. इसलिए उन्हें लूज मोशन हो गए है"

उस दौरान शीला ने बड़ी ही चतुराई से रेणुका को कॉल कर.. फोन टेबल पर ही छोड़ दिया.. ताकि रेणुका, उसकी और इन्स्पेक्टर की बातें सुन ले.. और फिर बात करने में कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए

शीला: "सर आपको एतराज न हो तो मैं हमारे दोस्त रेणुका और राजेश को भी यही बुला लूँ?? ताकि आप पूछताछ कर सकें और तसल्ली हो जाए.. आप का समय भी बच जाएगा"

इन्स्पेक्टर: "सॉरी मैडम.. पर ये देखिए.. होटल के रजिस्टर में यह कमरा किसी मिस्टर मेक के नाम से बुक किया गया है"

शीला: "सर, इस बारे में तो मुझे कुछ नहीं पता.. हम तो एक घंटे पहले ही यहाँ पहुंचे है.. और अभी तक हमने चेक-इन की विधि भी नहीं की है.. क्यों की मेरे पति को इतने लूज मोशन हो रहे थे.. की यह सब कार्यवाही का समय ही नहीं था.. वैसे भी रात के बारह बजे थे.. इसलिए हमने सोचा की रजिस्ट्रेशन हम सुबह कर लेंगे.. !!!"

बाहर हो रही बातचीत सुनकर.. मदन को वाकई में पतले दस्त हो गए.. अंदर से आ रही पैखाने की गरजदार आवाज़ें सुनकर.. इन्स्पेक्टर को भी विश्वास हो गया शीला की बातों पर.. कोई इंसान झूठ बोल सकता है.. पर लूज मोशन्स की आवाज़े निकालना मुमकिन नहीं है.. इन्स्पेक्टर की नजरें कब से शीला की मादक क्लीवेज पर चिपक गई थी..

इन्स्पेक्टर: "ठीक है मैडम.. आपके पति ठीक से रिलेक्स हो जाए तब तक हम आपके दोस्तों की पूछताछ कर लेते है.. "

शीला: "जी जरूर सर.. वो मेरी सहेली रेणुका.. पुलिस को देखकर बहोत डर जाती है.. आप समझ सकते हो सर.. !!"

इन्स्पेक्टर: "कोई बात नहीं.. चलिए.. हम उनके रूम में चलते है"

शीला: "सर, अगर उन दोनों को यहीं बुला ले तो?? क्या है की मेरे पति की तबीयत के चलते.. मेरा यहाँ रहना जरूरी है..!! इस तरह.. आपकी पूछताछ भी हो जाएगी.. और मेरे पति को किसी चीज की जरूरत पड़ी तो मैं संभाल भी सकूँगी.. !!"

इन्स्पेक्टर: "ठीक है मैडम.. बुलाइए उन दोनों को इधर.. !!"

पुलिस का नाम सुनते ही.. मदन को सच में लूज मोशन हो गए.. उसका दिमाग सुन्न हो गया था.. कुछ सूझ नहीं रहा था.. एक साथ सेंकड़ों सवाल दिमाग में घूमने लगे थे.. उन सब सवालों में.. सब से बड़ा सवाल था.. शीला यहाँ पहुंची कैसे????

इंस्पेक्टर खान ने हवालदार को इशारा करते ही वो दूसरे कमरे से रेणुका और राजेश को बुला लाया.. दोनों बेहद घबराए हुए थे.. इंस्पेक्टर ने एक दो मामूली से सवाल किए जिसके जवाब देने में ही दोनों की फट गई.. तुरंत शीला ने बाजी अपने हाथ में ले ली और मामले को संभाल लिया.. उस दौरान मदन भी टॉइलेट से बाहर निकल आया.. उसके चेहरे का नूर गायब हो चुका था..

एक रात मजे करने की कितनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ रही थी.. !!

थोड़े और सवाल करने के बाद.. इन्स्पेक्टर ने चारों के आइडेंटिटी प्रूफ मांगें.. चेक करने पर उन्हें तसल्ली हो गई की वह वाकई पति पत्नी ही थे..

इन्स्पेक्टर: "आप सब को डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहता हूँ.. पर आप समझ सकते है की यह हमारी जिम्मेदारी का हिस्सा है.. " फिर मदन की ओर मुड़कर उन्हों ने कहा "मिस्टर, आप तुरंत किसी डॉक्टर को ढूंढकर दवाई ले लीजिए.. फूड-पॉइजन का मामला हो सकता है..!!"

इन्स्पेक्टर के जाते ही सब को ऐसा महसूस हुआ जैसे छाती पर से एक टन का वज़न कम हो गया हो..!! राजेश और मदन तो रेणुका-शीला से नजरें तक नहीं मिला पा रहे थे.. चारों गुमसुम थे..

आखिर माहोल को स्वाभाविक बनाने के लिए.. शीला ने टेबल से पैकेट उठाकर सिगरेट जलाई.. और एक कश खींचकर सिगरेट रेणुका के हाथों में थमा दी.. मदन और राजेश की सिट्टी-पीट्टी गूम हो गई थी.. जैसे पुलिस थाने में उन्हें रिमांड पर लिया गया हो और इंस्पेक्टर थर्ड डिग्री आजमाने की तैयारी में हो.. कुछ ऐसा ही माहोल था..

मदन और राजेश, अपनी बीवियों को पराये मर्दों से चुदते हुए देखने के बावजूद कुछ बोल पाने की स्थिति में न थे.. क्यों की आज अगर शीला और रेणुका यहाँ नहीं होती तो क्या होता.. यह सोचकर ही दोनों कांप उठते थे..!!

अब सारा टेंशन दूर हो चुका था.. पर फिर भी मदन और राजेश बहोत घबराए हुए थे.. पुलिस का टेंशन खत्म हो चुका था.. पर अब बीवियों की अदालत में दोनों की पेशी होने वाली थी..

शीला चलते चलते मदन के सामने खड़ी होकर उसे देखती रही.. बेहद प्रभावशाली लग रही थी शीला.. अभी भी उसने वो गोल्डन शर्ट, बिना ब्रा के पहन रखा था.. जिसके ऊपर के दो बटन खुले हुए थे.. जिसमें से उसकी नशीली क्लीवेज की झलक नजर आ रहा थी..

शीला: "क्यों राजेश?? तुझे अपने दोस्त की बीवी को नंगा देखने का बड़ा मन था ना.. !!!"

राजेश ने नजरें झुका दी.. वो किसी भी तरह की सफाई देने की स्थिति में न था.. उसने शीला के बारे में जो भी इच्छाएं मदन के सामने जताई थी.. वो सब शीला और रेणुका सुन चुके थे..!! शीला के चमकीले सुनहरे शर्ट के दो खुले बटन से झलक रहे स्तनों के उभार.. और तेज ए.सी. की ठंडी हवा के कारण शर्ट के महीन कपड़े से उभरी हुई निप्पल का नजारा देखते हुए राजेश का गला सूख रहा था.. वो उभार.. वो जोबन.. वो कातिल हुस्न.. नज़ारे को और मादक बनाते हुए शीला ने अपना एक पैर बेड के ऊपर रखकर.. अपनी मेक्सी को जांघों तक उठाए रखा था.. उसका गोरा चमकता हुए घुटना भी बड़ा ही आकर्षक लग रहा था.. सफेद संगेमर्मरी जांघें.. ऐसा नजारा था की देखने वाला सिर्फ उसकी जांघों की सिलवटों पर अपना सुपाड़ा रगड़कर ही अपना पानी गिरा सकता था


SHILA

शीला का अर्ध-नग्न बदन अच्छे-अच्छों का खून गरम करने के लिए काफी था.. दो बड़े बड़े वक्षों वाली.. कामुक मादक गदराई औरत... बेफिक्री से सिगरेट फूंकते हुए धुएं के छल्ले बना रही थी.. अद्भुत द्रश्य था.. !! शीला के शर्ट को ध्यान से देखने पर.. वो शर्ट कई जगह से फटा नजर आ रहा था.. सूखे हुए वीर्य के कई धब्बे भी उसपर मौजूद थे.. पार्टी में एक साथ २०-२५ लोगों ने मिलकर उसे रौंदा था.. यह पूरा नजारा देखकर.. राजेश का लंड उसके बरमूडा में हरकत करने लगा.. और उसकी चड्डी में.. सब की नज़रों के सामने ही उभार बनाने लगा.. ऐसी गंभीर स्थिति में भी अपने लंड को नाचते देखकर राजेश को गुस्सा आ रहा था.. वो मन ही मन अपने लंड को कोस रहा था.. साले, तेरे चक्कर में आज इज्जत की मैया चुद जाती.. बाल बाल बचे है.. अब तो शांति से बैठ, मेरे भाई.. !!!

शीला ने रेणुका की ओर देखकर इशारा किया.. दोनों बिना कुछ कहें, उठ खड़े हुए.. और बगल के कमरे में जाकर सो गए.. राजेश और मदन एक दूसरे के चेहरे को देख रहे थे.. दोनों में से किसी को पता नहीं था की उन दोनों ने ऐसा क्यों किया... !!

सर पर हाथ रखकर मदन ने कहा "यार राजेश, मुसीबत खतम होने का नाम ही नहीं ले रही है.. !!"

राजेश का चेहरा भी बासी बासुंदी जैसा हो गया था.. दोनों बैठे बैठे अपनी किस्मत और अपने लंड को गालियां दे रहे थे..

दूसरे कमरे में...

रेणुका: "मुझे समझ नहीं आया शीला, आखिर तुमने वहाँ से निकल जाने के लिए क्यों कहा?? पतियों की अदला-बदली कर चुदवाने का मस्त मौका था यार.. !!

शीला; "नहीं... आज नहीं.. आज तो उन दोनों घोंचूओ को उदास ही पड़े रहने दे.. हम दोनों है ना.. !! एक दूसरे से खेलकर अपनी प्यास बुझा लेंगे आज की रात.. पर वो दोनों क्या करेंगे?? तड़पने दे सालों को.. !!!"

रेणुका: "बाप रे शीला.. बड़ी जालिम है रे तू.. पता है..!! ये तेरे बबले देखकर, राजेश का लंड खड़ा हो गया था.. !!"

शीला: "हाँ, देखा था मैंने.. पर तब अगर मैं उस लंड के मजे लेने जाती.. तो वो दोनों भी मूड में आ जाते.. मैं चाहती हूँ की सिर्फ एक रात के लिए उन दोनों को अपराधभाव से पीड़ित होने दु.. घर जाकर भी आसानी से नहीं मानना है.. एक एक पल तड़पाना है.. ऐसा करना है की वो दोनों हमारे पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाएं.. भीख मांगें.. ऐसा करने से हमारा पक्ष मजबूत होगा.. और फिर हम अपनी मनमानी कर सकेंगे"

शीला और रेणुका बेड पर लेटे लेटे सिगरेट फूँक रही थी.. और साथ ही साथ, एक दूसरे के स्तनों से खेलते हुए बातें कर रही थी.. शीला का शर्ट नीचे कर उसका स्तन बाहर निकालकर.. उसकी निप्पल चूसते हुए रेणुका ने पूछा

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रेणुका: "अरे शीला.. उस रबर के लंड वाली औरत का क्या हुआ होगा फिर??"

शीला: "अरे हाँ यार.. वो तो अपनी कोई लेस्बियन साथी को लेकर आई थी ना.. चल उसे ढूंढते है.. !!"

रेणुका: "अरे यार.. इतनी रात को कहाँ ढूँढेंगे?? एक एक कमरे पर जाकर दस्तक तो नहीं दे सकते है ना..!! और हमारे हक के दो दो लंड बगल के कमरे में पड़े है.. तब उस रबर के लंड से चुदवाने में क्या फायदा??

शीला: "तू चिंता मत कर.. हम दोनों बिना लंड के भी मजे करेंगे.. वैसे भी आज रात हमने कितने लंड देख लिए.. चूस लिए.. और खेल भी लिए.. मुझे थोड़ी जिज्ञासा इस लिए हो रही है क्यों की वो हेमंत कह रहा था की वो रबर के लंड वाली विकृत और काफी आक्रामक है.. देखें तो सही.. वो क्या चीज है.. कुछ नया देखने और जानने को मिलेगा.. चल.. चलते है"

रेणुका: "शीला, मुझे चलने में कोई दिक्कत नहीं है.. मैं बस यही कह रही हूँ की रात के तीन बजे किसी का दरवाजा खटखटाना मुनासिब होगा?"

शीला: "वो सब तू मुझ पर छोड़ दे.. चल कपड़े पहन ले.. "

अब रेणुका के पास, शीला के साथ जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. उसने तुरंत कपड़े पहन लीये.. और तैयार हो गई..

दोनों कमरे से बाहर निकलें.. रात के तीन बज रहे थे और पूरी लॉबी में नीरव शांति थी.. चार पाँच कमरों के दरवाजे खटखटाते हुए आखिर वह दोनों अपनी मंजिल पर पहुँच ही गई..

दरवाजा खोलने वाली उस औरत ने जल्दबाजी में गाउन पहन लिया था.. और उस पारदर्शी गाउन से रबर का लंड साफ नजर आ रहा था..

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शीला को तो वो देखते ही पहचान गई.. बिना किसी संकोच या औपचारिकता के शीला कमरे के अंदर घुस गई.. रेणुका को अपने पीछे खींचते हुए..!!

फिर तीन बजे से पाँच बजे तक.. चारों औरतों ने मिलकर.. उस रबर के लंड से भरपूर चुदाई कर उसकी धज्जियां उड़ा दी.. अपने भोसड़ों की आग बुझाकर.. रेणुका और शीला चुपचाप कमरे में वापिस लौट आई.. शीला के साहस के कारण रेणुका को इस अनूठे अनुभव का आनंद मिला था और इसलिए अब वह शीला के गहरे प्रभाव के तले दब चुकी थी..

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पूरी रात की इन गतिविधियों के बाद रेणुका बेड पर लेटकर आराम करने जा ही रही थी की तब शीला ने उसका हाथ पकड़कर कहा

शीला: "चल रेणु.. मदन और राजेश के जागने से पहले हमें होटल छोड़ देनी है.. हम उनके साथ बात भी नहीं करेंगे और उन्हें बताएंगे भी नहीं"

आज की रात के अनुभव के बाद, रेणुका इतना तो जान ही गई थी की शीला की बुद्धि उससे सौ गुना ज्यादा तेज थी.. शीला के साथ निरर्थक बहस करने का कोई मतल नहीं था..

दोनों फटाफट बाथरूम में घुसी.. और एक साथ नहाने लगी.. बाहर निकलकर कपड़े पहने.. और चेक-आउट कर दोनों निकल गई.. मदन और राजेश तब अपने कमरे में खर्राटे लेकर सो रहे थे..

सुबह सात बजे राजेश की आँख खुली.. आँखें मलते हुए जब उसका दिमाग थोड़ा जागृत हुआ.. तब कल की डरावनी यादें ताज़ा हो गई.. !! और वो बेड पर स्प्रिंग की तरह उछल गया.. उसने झकझोर कर मदन को जगाया..

राजेश: "अरे यार मदन.. उठ जा यार.. चल यहाँ से जल्दी निकल जाते है.. मुझे तो यहाँ अब एक पल और रहने में भी डर लग रहा है!!"


मदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..
बहुत ही जबरदस्त अपडेट है! दोनों के पतियों की फट कर चॉप हो गई है !
शानदार लिख रहे हो भाई आप !
 

sunoanuj

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बहुत ही जबरदस्त घटना कर्म चल रहा है! अब कॉकटेल की भी पोल खुल गई शीला के सामने !

सेक्सी स्टोरी से थ्रिलर बना दिया आपने एक ही अपडेट में!
👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Ajju Landwalia

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मदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..

उस दौरान, रेणुका और शीला, बड़े ही आराम से मस्ती करते हुए गाड़ी में अपने शहर की ओर जा रहे थे.. देखते ही देखते दोनों रेणुका के घर पहुँच गए.. शीला ऑटो लेकर घर पहुंची.. तब वैशाली ऑफिस जा चुकी थी.. रेणुका और शीला के बीच.. गाड़ी में जो गुफ्तगू हुई, वो जबरदस्त थी..!!

सुबह के दस बज गए थे.. पिछली रात के संस्मरणों के बारे में सोचते हुए शीला रोजमर्रा के काम में मशरूफ़ हो गई...

दोपहर तीन बजे के करीब मदन घर पहुंचा.. उसका चेहरा इतना उदास था, जैसे कोई उसके गोटे चुराकर भाग गया हो.. !! शीला ने उसका ऐसे स्वागत किया जैसे कल रात कुछ हुआ ही न हो.. एकदम स्वाभाविक व्यवहार दिखाया उसने.. !!

मदन धीरे धीरे चलते हुए सोफ़े पर जा बैठा.. शीला उसके लिए पानी का ग्लास लेकर आई..

यहाँ आने से पहले मन ही मन मदन सोच रहा था की घर पहुंचते ही शीला उसकी बैंड बजा देगी.. पर ये तो बिल्कुल उल्टा ही हो रहा था.. !! हाथ में ग्लास थमाकर शीला कोई गीत गुनगुनाते हुए किचन में चली गई.. थोड़ी देर के बाद अदरख की खुश्बू से पता चला की अंदर मस्त मसालेदार चाय बन रही थी..

हाथ में दो बड़े चाय से भरे मग लेकर शीला बाहर आई.. एक मग मदन को दिया और मदन के करीब सोफ़े पर बैठ गई..

मदन की हालत इतनी खस्ता थी की खिड़की के बाहर अपने बरामदे में झुककर झाड़ू लगा रही कविता के लटकते बबले देखने का भी मन नहीं हो रहा था उसे..

अपनी आँखें मटकाते हुए बड़े ही शरारती अंदाज में शीला ने मदन से पूछा "कैसी रही मीटिंग?"

मदन ने जवाब नहीं दिया..

मदन को इस स्थिति में देखकर शीला बेहद खुश हुई.. सशक्त और प्रभावशाली महिलाएं अपनी शक्ति और प्रभाव को पुरुषों पर हमेशा स्थापित करना चाहती हैं.. ऐसी महिलाएं अपनी स्थिति और अधिकार को तब महसूस करती हैं, जब वे अपने पुरुषों को कमजोर या उनके दायित्वों के तले दबा हुआ देखती हैं.. ऐसे सूरत में, महिलाएं आम तौर पर पुरुषों को नियंत्रण में रखने का आनंद महसूस करती हैं, और यह शक्ति का असमान वितरण उनके आत्म-सम्मान और संतुष्टि का हिस्सा बन जाता है..!!

मदन को ओर उंगली करने के लिए उसने उसे कुहनी मारकर कविता की तरफ इशारा करते हुए कहा "वो देख.. कविता के भी उस बार्बी जैसे ही है.. बुला ले उसे आज रात को.. !! तो क्या है, की तुझे झूठ बोलकर दोबारा इतने दूर जाना नहीं पड़ेगा"

मदन: "प्लीज यार शीला.. कविता के लिए ऐसा मत बोल.. उसमें उस बेचारी का क्या दोष?"

शीला: "बात तो तेरी सही है मदन.. पर क्या करूँ?? घूम फिरकर वही सारी बातें याद आ जाती है.. कल जब रेणुका तेरा लंड चूस रही थी.. तब तेरी उत्तेजना जबरदस्त बढ़ गई थी.. मैंने अपनी आँखों से देखा है इसलिए मुकर मत जाना.. वरना मर गया आज तो.. !!"

रेणुका की बात छेड़कर शीला क्या कहना चाह रही थी इसके बारे में मदन सोचता उससे पहले शीला ने और एक बाउंड्री मार दी..

शीला: "बिना मुझ से पूछे.. तुम दोनों ने आपस में ही बीवियाँ बदलने का तय कैसे कर लिया????"

मदन: "अरे यार.. तू ही तो कहती थी.. की तुझे ग्रुप सेक्स करना है.. बी.पी. देखते हुए तू कितनी गरम हो जाती थी और ऐसी बातें किया करती थी.. !! भूल गई क्या??"

शीला: "मदन, चल अंदर चलकर बात करते है"

मदन: "नहीं.. यही पर ही ठीक है.. " मदन जानता था की अंदर बेडरूम में ले जाने का बाद शीला कुछ भी कर सकती थी.. उसे वो जोखिम लेना ही नहीं था..

चाय खत्म हो गई.. पर दोनों की गरमागरम बातें खत्म नहीं हुई.. बड़ी मुश्किल से मदन ने शीला से अपनी जान छुड़ाते हुए कहा

मदन: "मैं थोड़ी देर बाहर जाकर आता हूँ"

शीला ने उसे रोका नहीं.. और वो चला गया.. शीला सोफ़े पर बैठे बैठे आगे की रणनीति सोच रही थी तभी मदन के फोन की रिंग बजी.. जल्दबाजी में मदन फोन ले जाना ही भूल गया था.. !!

शीला ने फोन हाथ में लिया.. स्क्रीन पर रेणुका का नाम नजर आ रहा था.. शीला ने फोन उठाया और कुछ बात की.. फोन काटकर उसने राजेश को फोन लगाया..

राजेश: "हैलो भाभी जी, कैसी है आप?" बड़ी ही विनम्रता से राजेश ने कहा

शीला: "अरे वाह.. कितने भोले बन रहे हो.. इतने भोले राजेश से मुझे कोई बात नहीं करनी.. रखती हूँ" बड़ी शातिर थी शीला

राजेश: "अरे नहीं नहीं भाभी.. कहिए, क्या काम था? वो तो.. कल रात के बाद.. आप से बात करने में थोड़ा संकोच हो रहा था इसलिए.. वरना आप के सामने भला कौन भोला बनकर रहना चाहेगा.. !!"

शीला ने मुस्कुराकर कहा "अच्छा.. !!! मैं तो समझ रही थी की मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ"

राजेश: "भाभी जी, शराब जितनी पुरानी हो उतना ही ज्यादा मज़ा देती है"

शीला: "तो क्या मैं शराब हूँ? तब तो मुझ पर भी सरकार को रोक लगा देनी चाहिए"

राजेश: "खुलेआम मजे लेने पर तो वैसे भी रोक ही है ना.. फिर वो शराब हो या आप.. !! पर चुपके चुपके क्या कुछ नहीं हो सकता.. !! कल रात को ही आपने सारे नज़ारे देख लिए है"

शीला: "राजेश, एक बात कहूँ.. पर किसी को बताना मत"

राजेश: "हाँ कहिए भाभी.. "

शीला: "नहीं ऐसे नहीं.. पहले वादा करो को आप किसी को नहीं बाताओगे.. रेणुका को भी नहीं.. यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए"

राजेश: "बात क्या है भाभी? कुछ सीक्रेट है क्या? वैसे सीक्रेट बात हो या काम.. दोनों में ही मज़ा आता है.. जल्दी कहिए"

शीला: "पहले वादा करो किसी को नहीं बताओगे"

राजेश: "ठीक है, वादा करता हूँ"

शीला: "कैसे कहूँ... मुझे तो शर्म आती है.. राजेश.. कल तुम बहोत ही हार्ड थे.. तुम्हारा वो... उसकी तस्वीर मेरी आँखों के सामने से हट ही नहीं रही है"

सुनते ही राजेश का लंड ऐसे खड़ा हो गया जैसे अभी अभी वियाग्रा के साथ रेड-बुल के दो टीन पी लिए हो.. !! ऐसी उत्तेजना का अनुभव उसने इससे पहले सिर्फ एक ही बार किया था.. माउंट आबू में बियर पीने के बाद जब टॉइलेट में वैशाली ने उसे अंदर खींचकर उसका लंड पकड़ लिया था..!!

शीला: "राजेश, आप मेरे बारे में कुछ बुरा मत सोचिएगा.. आप दोनों जो अंदर अंदर स्वैपिंग करने की बात कर रहे थे.. उसके लिए रेणुका तैयार हो जाती.. शायद मैं भी तैयार हो जाती.. पर मदन कभी भी तैयार नहीं होगा.. मुझसे इतनी मोहब्बत करता है वो.. मुझे किसी और की बाहों में वो देख ही नहीं पाएगा.. !!"

राजेश: "अरे भाभी.. वो सब बातें तो हम सिर्फ मज़ाक मज़ाक में कर रहे थे.. आप उसे सिरियसली मत लीजिए.. चाहे आप हो या रेणुका.. अपने पति के दोस्त के साथ ऐसा करने की कौन भला सोचेगा??"

शीला: "सोच तो कोई भी सकता है.. कुछ भी नामुमकिन नहीं होता.. पति की जानकारी में ये करना जरूर मुश्किल है.. पर उससे छुपाकर तो हो ही सकता है"

सुनकर राजेश के होश उड़ गए "आप क्या कह रही हो भाभी????"

शीला: "प्लीज राजेश.. ये तो अच्छा हुआ की मदन अपना फोन भूल गया तो मैं उसके फोन से ये बात कह रही हूँ.. वरना मेरी ये इच्छा अधूरी ही रह जाती.. सामने से तो ऐसा कहने की मेरी हिम्मत कभी नहीं होती.. पर आज जब मौका मिल ही गया तो मैं उसे छोड़ना भी नहीं चाहती.. मुझे कहने दीजिए.. जब से मैंने तुमको इतना हार्ड होते हुए देखा है.. तब से मेरे रोम रोम में बस तुम्हारी ही याद बसी हुई है.. जो हरदम मुझे मजबूर कर रही है की उस हार्डनेस का अनुभव किए बगैर मैं रह नहीं पाऊँगी.. सिर्फ एक बार.. प्लीज मुझे चांस दो.. आई लव यू राजेश"

स्तब्ध हो गया राजेश.. !! ये क्या खेल खेल रही थी शीला उसके साथ.. !! शीला ने आई लव यु तक बोल दीया?? कोई इतनी जल्दी कैसे किसी से प्रेम कर सकता है?? शीला जबरदस्त गरम औरत थी उसमें कोई दो राय नहीं थी.. पर जैसे भी थी.. थी तो वो उसके दोस्त की बीवी.. मदन के साथ ऐसा धोखा मैं कैसे कर सकता हूँ??

धोखा..!! यह शब्द याद आते ही राजेश के दिल ने उसे एक मजबूत लात लगाकर मैदान के बाहर फेंक दिया.. धोखा देने में अब बाकी ही क्या बचा था?? और मदन भी तो रेणुका की चूत चाट ही चुका था.. !! वो भी मेरे नज़रों के सामने.. !! तो अब धोखे वाली बात के बारे में सोचने का कोई मतलब ही नहीं था.. और मैं कहाँ शीला पर कोई जबरदस्ती कर रहा हूँ?? या उसे फुसला रहा हूँ? ना ही मैं उसे कोई धोखा दे रहा हूँ.. जब वो ही सामने से चलकर आ रही है तो... !!

शीला: "क्या सोच रहे हो राजेश?? यही ना.. की मैं कितनी गिरी हुई और घटिया किस्म की औरत हूँ.. !!"

राजेश चुप ही रहा

शीला: "अब तुम मुझे घटिया समझो या गिरी हुई समझो.. पर मैं अपनी इच्छा को अधूरी छोड़ने वालों में से नहीं हूँ.. मुझे तो कल रात को ही तुम्हारा हार्ड पेनीस देखकर, उसे अंदर लेने का मन कर रहा था.. पर सच कहूँ तो मदन की मौजूदगी में.. मैं खुलकर मज़ा न ले पाती.. मुझे एकांत चाहिए.. सिर्फ तुम और मैं अकेले.. दुनिया का कोई एक ऐसा कोना जहां पर हम दोनों के अलावा और कोई न हो.. ऐसे माहोल में.. मैं मुक्त होकर तुम्हारे साथ इन्जॉय करना चाहती हूँ.. प्लीज मुझे निराश मत करना.. मैं मर रही हूँ तुम्हारी सख्ती को अपने अंदर महसूस करने के लिए.. !!"

राजेश के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे.. शीला ने तो उसे प्रपोज ही कर दिया.. !! अब क्या जवाब दें.. !!

फोन पर बात करते हुए राजेश गाड़ी ड्राइव कर रहा था.. अपने घर की ओर.. वो घर पहुंचकर रेणुका के साथ अपने संबंधों को वापिस दुरस्त करना चाहता था.. दूध फट तो चुका था.. अब उससे जितना जल्दी पनीर बना लिया जाए उतना अच्छा.. !! और इसी बीच शीला का फोन आ गया.. गाड़ी चलाते हुए उसका लंड खड़ा हो गया था.. शीला की बातों ने उसके लंड को फिर बैठने ही नहीं दिया.. ऐसा हाल हो गया की गाड़ी चलाते चलाते ही उसने अपना लंड बाहर निकाला और मूठ लगाने लगा..

राजेश: "ओह्ह भाभी.. अपना तो मेरा हाल कल रात जैसा कर दिया.."

शीला: "तो फिर आ जाओ.. मदन बाहर गया है.. घर पर कोई नहीं है"

राजेश: "और कहीं वो आ गया तो?"

शीला: "एक काम करती हूँ.. उसे फोन करके पूछ लेती हूँ.. की कब लौटने वाला है"

राजेश: "पर कैसे पूछोगी? फोन तो उसका घर पर ही है"

शीला: "जाने दो.. लगता है तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही है"

राजेश: "ऐसा नहीं है भाभी... पर.. !!!"

शीला ने नाराज होकर कहा "मदन लौट आया है" और उसने फोन काट दिया

फोन रखने के बाद शीला को अफसोस हो रहा था की आखिर वासना की बाढ़ में बहकर उसने राजेश से ऐसी बात की ही क्यों?? अब वो क्या सोचेगा मेरे बारे में??

शीला की बातों से बेहद उत्तेजित होकर.. राजेश ने रोड के किनारे गाड़ी पार्क कर दी.. और मूठ लगाते हुए अपने रुमाल में पिचकारी मार ली.. और फिर घर की ओर निकल गया

घर के गंभीर वातावरण को देखते हुए अब वहाँ किसी उत्तेजक घटना के घटने की कोई संभावना नहीं थी.. जैसा राजेश ने सोचा था.. रेणुका मुंह फुलाकर बैठी हुई थी.. और उससे बात करने के मूड में नहीं थी.. और वो स्वाभाविक भी था.. इसलिए राजेश को कोई ताज्जुब नहीं हुआ..

उस रात उन दोनों के बीच कुछ खास नहीं हुआ.. पर बगल में सो रहे दोनों के दिमाग में पिछली रात की घटनाएं घूम रही थी.. रेणुका मदन के लंड को याद कर रही थी.. जब की राजेश के दिमाग में शीला ने आज दोपहर को कही हुई बातें बार बार आ रही थी..

इस तरफ मदन और शीला के हाल भी कुछ ऐसे ही थे.. शीला पार्टी के सारे लंड याद कर रही थी.. जब की मदन के दिमाग में रेणुका का छरहरा बदन घूम रहा था..

राजेश सोते सोते सोच रहा था.. आह्ह.. आज शीला भाभी ने मेरे लंड की तारीफ की.. मुझे खुला निमंत्रण तक दे दिया.. !! याद करते ही राजेश के मुंह से एक सिसकी निकल गई.. जो बगल में लेटकर उत्तेजना से झुलस रही रेणुका ने स्पष्ट रूप से सुना.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो मन ही मन सोच रही थी की अगर कल रात पुलिस की रैड न पड़ी होती.. तो वो और शीला अपनी पहचान अंत तक छुपाने में कामयाब रहते.. और रात का पूरा लुत्फ उठा पाते.. खैर फिर जो हुआ वो कल्पनातीत था.. भला हो शीला का.. जिसने अपनी सही पहचान बताकर सबको बचा लिया.. वरना आज सब के सब जैल की सलाखों के पीछे होते.. बाप रे.. !! समाज में क्या इज्जत रह जाती.. !! हाथ में नाम और पता लिखा हुआ बोर्ड थमाकर पुलिस वाले तस्वीर खींचते और अखबार वाले उसे पहले पन्ने पर छाप देते.. !!!

इस तरफ शीला करवट लेकर अपनी निप्पल को मसल रही थी.. उससे अब यह उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. हेमंत के जवान ताजे लंड ने उसे जो मजे दीये थे.. उसे याद करते हुए वह बहोत गर्म हो गई.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा बदन बुखार से तप रहा हो.. ऊपर से, राजेश को लंड को चूसने पर जो शानदार किक मिली थी वो स्खलित होने के लिए काफी थी.. राजेश के लंड की याद आते ही शीला के भोसड़े में हवस की आग लग गई.. कुछ भी हो जाए.. एक बार तो वो लंड अंदर लेना ही है.. !! पर वो साला एक नंबर का डरपोक है.. क्या किया जाए?? मदन शहर से कहीं बाहर चला जाएँ तो फिर बढ़िया मौके का सेटिंग हो सकता है.. पर वैशाली तो घर पर ही होगी.. उसका क्या करें?? राजेश के घर पर रेणुका हर वक्त रहती थी.. ऑफिस मे पीयूष और पिंटू दोनों उसे पहचानते थे.. और यहाँ घर पर वैशाली और मदन का टेंशन.. ऊपर से.. कविता और अनुमौसी के नज़रों से बचाकर कुछ भी करना नामुमकिन सा था..

सोचते सोचते शीला अपनी चूत को कुरेदती रही.. और ऐसा सोचती रही की जैसे राजेश का लंड अंदर घुस रहा हो.. थोड़ी देर में ही उसकी चूत ने शहद टपका दिया.. और वो सो गई..

दूसरी सुबह, लगभग ग्यारह बजे के आसपास.. मदन पर राजेश का फोन आया.. दोनों ने काफी देर तक लंबी बातचीत की.. शीला बगल मे ही बैठी थी.. पर उस रात की घटना के बाद मदन की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो खड़ा होकर, शीला से दूर जाकर बात करें.. उस रात के बारे में अब तक शीला और मदन के बीच खुल कर बात हुई भी नहीं थी.. !! आखिर मदन ने "बाद में बात करते है" कहते हुए फोन रख दिया..

शीला ने कुछ पूछा नहीं.. उसने उठकर डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया.. मदन ने भी चुपचाप पालतू कुत्ते की तरह खाना खा लिया.. और शीला को बिना कुछ बताएं बाहर चला गया.. वो जितना हो सकें.. शीला के वाक्य-बाणों से दूर रहना चाहता था..

मदन ने बाहर निकलते ही राजेश को फोन किया.. और सीधा उसकी ऑफिस पहुँच गया.. पापा को देखकर वैशाली बहुत ही खुश हो गई.. काफी देर तक मदन और वैशाली की बातें चली.. बड़े ही उत्साह से वैशाली ने अपने काम के बारे मे बताया..

मदन ने राजेश की चेम्बर में प्रवेश किया.. राजेश ने बेल बजाकर प्युन को बुलाया और दो कप कॉफी मँगवाई.. और दोनों बातों में मशरूफ़ हो गए

राजेश: "मदन यार.. घर पर सब कैसा है?? मेरी तो वाट लगी पड़ी है.. !!"

मदन: "मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है.. तेरी भाभी तो मुझसे सीधे मुंह बात भी नहीं करती.. अपने ही घर में बेघर की तरह जी रहा हूँ.. बस खाना खाकर कोने में पड़ा रहता हूँ.. एक रात के मजे की इतनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ेगी ये अंदाजा नहीं था.. बहोत बड़ी गलती हो गई.. तुझे क्या लगता है?"

राजेश: "बिल्कुल सच कहा तूने यार.. पर सोच.. अगर वहाँ हमारी बीवियाँ और पुलिस न आए होते तो कितना मज़ा आता.. !!"

मदन: "वो सब तो ठीक है यार.. पर ये सोच.. हो सकता है पुलिस को अपने सूत्रों से खबर मिली हो और उन्हों ने रैड कर दी.. पर मेरा दिमाग तो यह सोचकर खराब हुआ जा रहा है की हमारी बीवियों को इस बारे में कैसे और कहाँ से पता चला?? और वो दोनों वहाँ पहुंची कैसे??"

राजेश: "तुझे क्या लगता है मदन.. हम जो कुछ भी करते है.. उसका हमारी पत्नियों को पता नहीं चलता.. !! सब पता चलता है.. अगर हम न भी बताएं तो वो हमारी हरकतों से भांप लेती है की कहीं कुछ गलत हो रहा है.. उसे ही तो औरतों की छठी इंद्रिय कहा गया है.. असल मे.. वह लोग बहुत कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते है.. "

मदन: "नहीं यार.. मैं नहीं मानता.. !!"

राजेश: "ऐसा ही होता है मदन.. तू माने या ना मानें.. हकीकत यही है.. जब तक औरतों को अपनी सलामती या इज्जत पर कोई आंच आती न दिखे.. तब तक वो सब कुछ सह लेती है.. पर उन्हें जरा सा भी शक हुआ या डर लगा की मामला बिगड़ रहा है.. वह तुरंत ही सक्रिय हो जाती है.. और फिर वो किस हद तक जा सकती है, वो तो हम दोनों ने अपनी आँखों से देख ही लिया है"

मदन: "हाँ यार.. पर ताज्जुब इस बात का है.. की वो दोनों पुलिस से भी पहले पहुँच चुके थे.. उस हिसाब से उनका नेटवर्क तो पुलिस से भी ज्यादा मजबूत हुआ.. !!"

दोनों बातें कर रहे थे उस वक्त वैशाली कॉफी के तीन कप लेकर चेम्बर के अंदर आई.. राजेश और मदन ने बड़ी ही सफाई से अपनी बात बदल दी और क्रिकेट के बारे में बातें करने लगे..

टेबल पर तीनों कप रखकर वैशाली बैठ गई.. राजेश, मदन की मौजूदगी में ही वैशाली के विशाल तंदूरस्त स्तन-युग्म को देख रहा था.. जिस तरह से वो चलकर अंदर आई.. टाइट टी-शर्ट के अंदर दबी हुई चूचियाँ तालबद्ध लय में ऊपर नीचे हो रही थी.. एक पल के लिए मदन का इमान भी डोल गया पर उसने उस घृणास्पद विचार को रोक लिया..

वैशाली: "सॉरी पापा.. मैं आप लोगों को डिस्टर्ब कर रही हूँ.. पर मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है.. !!"

मदन: "हाँ बोल न बेटा.. !!"

बाप-बेटी की बातचीत बड़े ध्यान से सुनते हुए राजेश अब भी वैशाली के कटीले बबलों को ताड़ रहा था

वैशाली: "दरअसल अभी मौसम का फोन आया था.. उसने मुझे और कविता को अर्जेंट उसके घर बुलाया है.. दो दिनों के लिए.. वो फोन पर बहोत ही रो रही थी.. !!"

राजेश: "तब तो बात जरूर बहोत गंभीर होगी.. !!"

मदन: "उसने कारण बताया या नहीं?? कुछ ज्यादा गंभीर बात हो तो हम भी चलें तुम लोगों के साथ"

वैशाली: "और तो कुछ नहीं बताया पर इतना बोली की उसके मंगेतर तरुण के बीच बहोत बड़ा प्रॉब्लेम हुआ है.. और तरुण सगाई तोड़ना चाहता है"

यह सुनकर राजेश और मदन दोनों चोंक गए

राजेश: "क्या?? ऐसे कैसे सगाई तोड़ सकता है?? कोई मज़ाक है क्या?? पर कुछ तो हुआ होगा उन दोनों के बीच... कुछ बताया मौसम ने?"

वैशाली: "वो फोन पर कुछ भी बताने को राजी नहीं है.. अब तो वहाँ जाकर ही कुछ पता चलेगा की मामले आखिर क्या है.. !!"

मदन: "ये आजकल के बच्चे भी ना.. सगाई-शादी जैसे गंभीर संबंधों को भी गुड्डे-गुड्डियों का खेल ही समझते है.. जब मर्जी की तब कर लिया.. और मन भर गया तो फेंक कर खड़े हो गए.. अरे भाई.. ऐसे थोड़े ही होता है.. !!"

राजेश: "बिल्कुल सही कहा तूने, मदन.. !! सच में.. मुझे तो अब अभी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा"

मदन: "वैशाली बेटा.. तुझे जाना ही चाहिए.. मौसम की इस स्थिति को सहेलियाँ ही बेहतर समझ सकेगी और अच्छे से हेंडल भी कर सकेगी.. माँ-बाप इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उन बेचारों पर तो आसमान टूट पड़ा होगा यह सुनकर... !!"

वैशाली: "ठीक है पापा.. मैं अभी घर को निकलती हूँ.. कविता से भी बात करनी होगी.."

मदन: "ठीक है बेटा.. "

वैशाली ने राजेश की ओर मुड़कर कहा "सर, आज का काम तो मैंने खतम कर दिया है.. अब वापिस आने में एक दो दिन लग सकते है.. तो क्या मैं जा सकती हूँ?"

राजेश: "अरे वैशाली.. यह भी कोई पूछने की बात है?? तू ऑफिस की चिंता मत कर और जा.." राजेश ने ड्रॉअर खोलकर पाँच सौ के दस नोट निकालकर वैशाली को दीये और कहा "ये साथ में रखना.. काम आएंगे"

मदन: "अरे राजेश, क्या कर रहा है यार तू.. उसे जरूरत होगी तो मुझसे ले लेगी.. तू क्यों दे रहा है??"

राजेश: "मुझे पता है की तू उसे दे ही सकता है.. पर अब एक बात समझ ले.. वैशाली को अपने पैरों पर खड़े होना होगा.. और उसमें हम सब उसकी मदद करेंगे.. वो अपनी तनख्वाह से खुद के खर्चे संभालेगी.. हाँ, उसे कभी कुछ भी ज्यादा जरूरत हुई तो हम सब है ना.. !! बाकी उसे अपने हिस्साब से ही जीने दे.. उससे उसका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ेगा... वैशाली, तुम निकलो.. वहाँ जाकर इस प्रॉब्लेम का सही कारण ढूँढने की कोशिश करना.. और पता चले तो अपने पापा को तुरंत बताना.. हो सकता है हम लोग इसमें कुछ मदद कर सकें.. "

वैशाली: "ओके सर.. थेंकस..!!" कहते हुए वैशाली उठकर चली गई.. मुड़कर जाती हुई वैशाली के मटकते नितंब देखकर राजेश की दिल मे जबरदस्त सुरसुरी सी होने लगी..

वैशाली ने बाहर निकलकर ऑटो पकड़ी और तुरंत घर पहुँच गई.. ऑटो में बैठे बैठे उसने पिंटू को सारी बात फोन पर बता दी.. धीरे धीरे पिंटू अब.. किसी और की हो चुकी कविता से ज्यादा वैशाली के प्रति अपना ध्यान केंद्रित कर रहा था.. पिंटू का टूटा हुआ दिल.. और वैशाली का बर्बाद हो चुका वैवाहिक जीवन.. दोनों एक दूजे के लिए आदर्श विकल्प थे.. पर जब जब पिंटू के दिमाग में कविता का विचार आता.. तब उसे लगता की वो कविता का स्थान और किसी को भी नहीं दे पाएगा.. यही सोचकर वो वैशाली से पर्याप्त दूरी बनाए रखता था.. एक बार तो उसे दिमाग में भी आया.. की वो भी वैशाली के साथ जाएँ.. उसी बहाने वह घर भी जा सकेगा और वैशाली के साथ कुछ समय बिताने का मौका भी मिल जाएगा.. पर जैसे ही उसे पता चला की वैशाली तो कविता के साथ जा रही है.. उसने वो प्लान केन्सल कर दिया.. !!

वैशाली घर पहुंची.. शीला घर पर अकेली थी.. वैशाली को इतना जल्दी घर आया देख उसे ताज्जुब हुआ..

शीला: "क्या हुआ बेटा?? तबीयत तो ठीक है ना तेरी??"

वैशाली: "मम्मी, मुझे कुछ नहीं हुआ है.. तुम कविता को यहाँ बुलाओ.. मुझे काम है उसका.."

शीला: "अरे पर हुआ क्या? क्या काम है उसका? तू ही क्यों नहीं चली जाती उसके घर? सब ठीक तो है ना??"

वैशाली: "कुछ भी ठीक नहीं है मम्मी.. मौसम का फोन था.. तरुण सगाई तोड़ना चाहता है.. बहुत रो रही थी बेचारी.. मुझे और कविता को वहाँ बुला रही है"

शीला स्तब्ध होकर बोली "क्या??? ऐसा कैसे हो सकता है? अभी पंद्रह दिन ही तो हुए है सगाई को.. !!"

वैशाली: "पता नहीं मम्मी.. शायद कविता को कुछ पता हो इसके बारे में.. मौसम ने इतना ही कहा की मैं उसकी दीदी को लेकर तुरंत वहाँ आ जाऊ"

शीला गहरी सोच में पड़ गई.. ऐसा तो क्या हो गया अचानक??

शीला ने फोन करके कविता को बुलाया.. कविता तुरंत आ गई.. उसे तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था.. वो तो बेचारी सुनकर ही फुट फुटकर रोने लगी..

शीला और वैशाली ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया और पानी पिलाया

शीला: "हिम्मत रख कविता.. जो होना था सो हो गया.. अच्छा हुआ की शादी से पहली ही हो गया.. वरना मौसम का हाल भी मेरी वैशाली जैसा हो जाता.. !!" और फिर अचानक शीला को याद आया और उसने वैशाली की ओर मुड़ कर देखा और कहा "अरे हाँ बेटा.. देख ये नोटिस आई है.. २५ तारीख को कोर्ट में सुनवाई है.. तुझे अपने पापा के साथ जाना है.. उससे पहले एक बार देसाई अंकल से मिल लेना"

वैशाली: "२५ तारीख को अभी बहोत देर है मम्मी.. फिलहाल मौसम को संभालना बहोत जरूरी है.. मैं सोच रही हूँ की मैं और कविता वहाँ चले जाते है"

शीला: "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है बेटा.. पर तुम दोनों अकेले कैसे जाओगी?"

वैशाली: "क्या मम्मी तुम भी!! दकियानूसी बातें कर रही हो.. हम अपने आप को संभाल सकती है.. "

शीला: "एक बार पापा से पूछ ले"

वैशाली: "मैंने उनसे पूछ लिया है.. वो ऑफिस पर ही थे.. उनसे भी पूछ लिया और राजेश सर की भी पर्मिशन ले ली है.. दोनों ने कहा की मुझे जाना चाहिए"

अब शीला के पास और कोई बहाना नहीं था.. वो बोली "ठीक है.. पर संभाल कर जाना.. ज़माना बहोत खराब है"

कविता उदास होकर घर चली गई.. जब वो आई तब उछलती हुई आई थी.. और जब जा रही थी तब उसके पैरों में से जान ही निकल गई थी

कविता ने घर आकर रोते हुए सारी बात अनुमौसी को बताई.. सुनकर मौसी का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया

अनुमौसी: "उस नालायक में हमारी मौसम को संभालने की ताकत ही नहीं होगी.. वरना क्या कमी है मौसम में?? वही लायक नहीं था मौसम के.."

शाम को पीयूष घर लौटा.. वो पूरा दिन ऑफिस के काम के सिलसिले में बाहर था इसलिए उसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था.. जब कविता ने उसे सारी बात बताई तब वो भी बेहद चोंक गया.. एक पल के लिए तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ..

थोड़ी देर सोचकर पीयूष ने कहा "कल हम दोनों तेरे घर चलते है.. मैं तरुण को समझाऊँगा.. वो पढ़ा लिखा है.. शायद मेरी बात मान जाए.. वैसे मौसम ने तुझे कब बताया इस बारे में? फोन किया था उसने तुझे?"

कविता: "मुझे नहीं.. वैशाली को फोन किया था"

पीयूष: "वैशाली को क्यों फोन किया?? तुझे नहीं कर सकती थी?"

अनुमौसी: "अरे बेटा.. वैशाली को फोन किया हो या कविता को.. क्या फरक पड़ता है?? शायद वो बेचारी कविता को सदमा पहुंचाना न चाहती हो इसलिए वैशाली को फोन किया होगा.. अब तू और कविता वहाँ जाओ.. और हो सके तो उस गधे के बच्चे को समझाओ.. और ना समझे तो कान पकड़कर मेरे पास लेकर आना.. दो चपेड़ लगाकर सीधा कर दूँगी उसे.. !!"

उस रात को बेडरूम में कविता और पीयूष के बीच तरुण और मौसम को लेकर काफी चर्चा हुई.. पीयूष ने मौसम को फोन भी लगाया पर वो बात करने की स्थिति में नहीं थी.. मौसम की माँ, रमिला बहन ने रोते रोते बस इतना ही कहा.. की मौसम ने खाना पीना सब छोड़ दिया है.. बस पूरा दिन रोती रहती है..

वैशाली, कविता और पीयूष दूसरी सुबह बस से मौसम के घर पहुँच गए.. कविता को देखते ही मौसम उसके गले मिलकर बहोत रोई.. पीयूष भी मौसम को गले लगकर सांत्वना देना चाहता था पर माहोल की गंभीरता देखते हुए उसे ऐसा करना योग्य नहीं लगा.. एकाध घंटे के बाद.. सब रोना धोना खत्म करके सब नॉर्मल हुआ.. कविता ने अपनी माँ और मौसम को हिम्मत देकर शांत किया..

शाम को पाँच बजे पीयूष चाय पीने के बहाने बाहर निकला.. तब वैशाली, मौसम और फाल्गुनी, कमरे में बैठकर बातें कर रही थी.. पीयूष का दिल कर रहा था की वो मौसम को भी बाहर ले जाए और प्यारे से सब पूछे.. पर ये मुमकिन न था..

चाय की टपरी पर बैठे बैठे पीयूष बड़ी ही गंभीरता से सोच रहा था.. ऐसा तो क्या हुआ होगा तरुण और मौसम के बीच?? मौसम को पाकर तो तरुण धन्य हो जाना चाहिए था.. कुछ तो कारण होगा.. और उस कारण को जानना बेहद ही जरूरी था..

चाय पीने के बाद सोचते सोचते चलता हुआ पीयूष.. बस अड्डे पर पहुँच गया.. सामने ही बस पड़ी थी.. जिस पर उस शहर का नाम लिखा था जहां तरुण रहता था.. थोड़ा सा सोचकर पीयूष उस बस में चढ़ गया.. !!!

बस की सीट पर बैठते ही पीयूष ने कविता को फोन लगाया

पीयूष: "मैं तरुण से मिलने जा रहा हूँ.. किसी को बताना मत.. कोई मेरे बारे में पूछे तो बताना की कंपनी का अर्जेंट काम निकल गया इसलिए गया है और कल तक लौट आएगा.. वैसे मौसम ने कुछ बताया?? "

कविता: "नहीं यार.. वो तो उस बारे में कुछ बोल ही नहीं रही.. एक ही रट लगाए बैठी है.. की उन दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.. अरे, दोनों के बीच परसों आधी रात तक बात भी हुई थी.. और फिर अचानक क्या हो गया.. दूसरे दिन सुबह दस बजे फोन करके उसने रिश्ता तोड़ दिया"

पीयूष: "ठीक है.. मैं जाकर खुद पूछता हूँ.. तब तक तुम दोनों मौसम और मम्मी जी को संभालना"

कविता: "ओके.. संभलकर जाना"

पीयूष ने फोन रख दिया.. 2 घंटे के सफर के बाद पीयूष तरुण के शहर पहुंचा.. उसने तरुण को फोन लगाया.. तरुण को उसके फोन से कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. उसने पीयूष को एक रेस्टोरेंट का पता दिया और वहाँ पहुँचने के लिए कहा

ढूंढते ढूंढते एक घंटे के बाद पीयूष उस बताए हुए पते पर पहुंचा..

वहाँ एक टेबल पर बैठे तरुण को देखते ही वो उसके पास पहुंचा.. और खड़े खड़े ही सवाल जवाब शुरू कर दीये

पीयूष: "तरुण, ये मैं क्या सुन रहा हूँ?" पीयूष की आवाज में आश्चर्य, मायूसी और क्रोध का मिश्रण था

तरुण ने जवाब नहीं दिया..

पीयूष: "देख तरुण.. तो इतना पढ़ा लिखा है.. मैं ना तो तुझे कोई सलाह या मशवरा दूंगा या फिर ना ही तुझे अपना निर्णय बदलने के लिए फोर्स करूंगा.. अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद से करने का तुझे पूरा हक है.. मैं तो बस सगाई तोड़ने का कारण जानने के लिए आया हूँ.."

तरुण: "पीयूष भैया.. कुछ बातें ऐसी होती है जिसकी चर्चा करने से केवल नफरत और घृणा ही बढ़ती है.. और मैं नहीं चाहता की मैं आप से ऐसी कोई बात करूँ जिसे किसी की ज़िंदगी तबाह हो जाए.. "

पीयूष: "तू मुझे खुलकर बता सकता है.. यकीन मान.. तू जो भी बताएगा वह बात सिर्फ मुझ तक ही रहेगी.. अगर तेरी इच्छा न हो तो असली कारण में किसी को नहीं बताऊँगा.. कोई और ही कारण बताकर सब को मना लूँगा.. सिर्फ यही जानने के लिए मैं इतनी दूर आया हूँ.. इतना तो मुझे जानने का हक है ना.. !!"

तरुण: "अब अगर आप सुनना ही चाहते है तो सुनिए.. !! आपके ससुराल के सभी पात्र चारित्रहीन है.. !!"

सुनकर पीयूष के पैरों तले से धरती खिसक गई.. कहीं ऐसे मेरे और मौसम के संबंधों के बारे में तो नहीं पता चल गया.. !! अपने चेहरे के डर को बड़ी मुश्किल से छुपाते हुए पीयूष ने चकित होने के भाव धारण करते हुए कहा

पीयूष: "क्या बात कर रहा है तू तरुण?? मेरी शादी को इतना समय हो गया पर मुझे तो कभी कुछ ऐसा महसूस नहीं हुआ.. !!"

तरुण: "अब मुझे जो जानने मिला है.. उसे बताने के लिए मेरी जुबान नहीं चलेगी.. इसलिए सारी बातें मैं इस कागज पर लिखकर लाया हूँ" कहते हुए तरुण ने एक फोल्ड किया हुआ कागज पीयूष के हाथ में थमा दिया..

खोलकर पढ़ते ही पीयूष के होश उड गए.. !!!!! अब आगे कुछ भी बोलने-पूछने की आवश्यकता नहीं थी.. वो तरुण से हाथ मिलाकर खड़ा हो गया.. तरुण ने काफी आग्रह किया की वो कुछ खाकर जाए.. पर अब पीयूष के गले से एक निवाला तक उतरना मुमकिन नही था..

जाते जाते पीयूष ने तरुण के कंधे पर हाथ रखकर कहा "तरुण, तेरी और मौसम की जोड़ी बहोत प्यारी लगती है.. किसी और के गुनाह की सजा तू मौसम को दे, ये किस हद तक लाज़मी है?? जो कुछ तुझे जानने को मिला है वह सच ही होगा ऐसा मैं मानता हूँ.. पर इसमें मौसम बेचारी की क्या गलती??"

तरुण: "पीयूष भैया.. परिवार में कुछ भी ऊपर-नीचे या उल्टा-सुलटा हो तो उसका असर सारे सदस्यों पर पड़ता ही है.. ये तो आप भी मानेंगे.. मौसम का दोष सिर्फ इतना ही है की वो ऐसे परिवार की सदस्य है.. आप से हाथ जोड़कर विनती है की मुझे मनाने की कोशिश बिल्कुल मत करना.. मेरे मम्मी-पापा और परिवार के बाकी लोग अब इस रिश्ते के खिलाफ है.. और उन सब को नाराज कर मैं भी सुखी नहीं रह पाऊँगा.. मेरी और से आप मौसम से माफी मांग लेना.. और कहना की तरुण ने तुझे आगे की ज़िंदगी के लिए "ऑल ध बेस्ट" क यहा है.. और अब तरुण तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं है और न कभी होगा.. शायद मौसम मेरी किस्मत में ही नहीं थी.. अब इस बारे में, मैं और बात नहीं करना चाहता भैया.. प्लीज..!!" कहते हुए नम आँखों के साथ तरुण खड़ा होकर रेस्टोरेंट से चला गया.. !!!!

पीयूष स्तब्ध होकर तरुण को जाते हुए देखता रहा.. मायूस होकर वह ऑटो से बस स्टेशन पहुंचा.. अगली बस रात के दस बजे थी.. डॉ घंटों की देरी थी.. अब अनजान शहर मे इतना वक्त खाली बैठे क्या करेगा.. !! बहुत जोरों की भूख लगी थी.. केंटीन में बैठकर उसने भरपेट खाना खाया और फिर बुक-स्टॉल से एक अखबार और एक बुक खरीदकर बैठे बैठे बस का इंतज़ार करने लगा

तभी कविता का फोन आया

फोन उठाकर पीयूष ने कहा "हाँ कविता.. मैं वापिस आ रहा हूँ"

कविता: "मिल भी लिया और बात भी हो गई??"

पीयूष: "हाँ मिल लिया मैंने तरुण से"

कविता: "पाज़िटिव या नेगटिव?" कविता ने इशारे से पूछा

पीयूष ने गहरी सांस छोड़कर कहा "नेगटिव" सच कहने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. आज नहीं तो कल सच सामने आने ही वाला था.. फिर उससे मुंह छुपाकर क्या फायदा.. !!

कविता का मुंह लटक गया.. वो देखकर ही वैशाली समझ गई की पीयूष की मुलाकात का नतीजा क्या निकला होगा.. आदमी का चेहरा ही सब से बेहतरीन आईना होता है.. खुशी, नफरत, गुस्सा, प्रेम या गंभीरता.. इंसान के अंदर के भावों को निष्कर्ष बड़ी खूबी से बता देता है चेहरा.. !! अच्छा हुआ उस वक्त मौसम या उसकी माँ वहाँ मौजूद नहीं थे..

कविता ने आगे कुछ पूछा नहीं और कहा "बस स्टेंड पर उतरकर मुझे फोन करना.. मैं पापा को लेने भेज दूँगी.. आधी रात को तुझे ऑटो नहीं मिलेगा"

पीयूष: "मुझे एक बज जाएगा पहुंचते पहुंचते.. !!"

कविता: "हाँ ठीक है.. तूने खाना खाया?"

पीयूष: "हाँ खा लिया है.. तू मेरी चिंता मत कर..!!"

बस का समय होते ही पीयूष बैठ गया.. और पूरे दिन की थकान के कारण सो गया.. आँख खुली तो स्टेशन आ गया था.. रात का एक बजा था.. और पीयूष कविता को डिस्टर्ब करना नहीं चाहता था.. घर जाकर मौसम को कैसे सांझाए यह सोचते सोचते वो कविता के घर की तरफ चल दिया.. जिस तरुण के लेकर पीयूष के मन में बेहद ईर्ष्या थी.. उसी तरुण पर आज उसे सहानुभूति हो रही थी.. !!

मन की भावनाएं बड़ी विचित्र होती है... कब किसी के लिए कौनसे जज़्बात पैदा हो जाए.. कहा नहीं जा सकता.. फिर वो एक तरफा प्रेम हो.. या नफरत.. ईर्ष्या हो या क्रोध.. !!

सोचते सोचते आधे घंटे बाद वो घर पहुँच गया.. उसने डोरबेल बजाई.. थोड़ी देर के बाद कविता ने दरवाजा खोला.. घर पर सब सो चुके थे

कविता: "तूने फोन क्यों नहीं किया?"

पीयूष: "बेकार में सबके नींद खराब होती.. और वैसे स्टेशन उतना दूर भी नहीं है.. चलते चलते पहुँच गया"

पानी पीने के बाद पीयूष ने कविता को बताया की तरुण का पूरा परिवार अब इस रिश्ते को रखना नहीं चाहता था.. प्रॉब्लेम सिर्फ तरुण और मौसम के बीच होता तो शायद सुलझ भी जाता.. पर बात अब बहोत आगे बढ़ चुकी थी

चोंक उठी कविता ने कहा "अरे पर अचानक बात यहाँ तक कैसे पहुँच गई? दो दिन पहले तक तो सब ठीक था.. वजह बताई की नहीं तरुण ने?"

पीयूष: "हम्म.. न.. नहीं.. कुछ नही बताया" इतने समय से साथ रह रही कविता समझ गई की पीयूष सच नहीं बोल रहा था.. या शायद बोल नहीं पा रहा था.. हो सकता है की पीयूष अभी न बताना चाहता हो.. पर जब दोनों अकेले बेडरूम में होंगे तब वह सच बता ही देगा.. अभी फिलहाल उस पर जबरदस्ती करने का कोई मतलब नहीं था..

कविता: "जो हो गया सो हो गया.. अभी बात करने से हकीकत बदल तो नहीं जाएगी.. !! तू थक गया होगा.. हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जा.. मैं खाना लगाती हूँ.. !!

पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.. कविता ने खाने की थाली लगा दी.. और अंदर रोटियाँ बेलने लगी.. तभी मौसम ऊपर से उतरकर नीचे आई और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..

जंग में हारे हुए योद्धा जैसा पीयूष.. मौसम से नजरें नहीं मिला पा रहा था.. बात को बदलने के इरादे से पीयूष ने कहा

पीयूष: "ओ हाय बेबी.. अभी भी जाग रही? नींद नहीं आ रही?"

मौसम ने उदास होकर कहा "कैसी नींद जीजू.. !!"

रोटी का गरम फुल्का लेकर कविता ने पीयूष की प्लेट में रखते हुए कहा " देख मौसम.. तू कितनी भी चिंता कर ले.. कितना भी जाग ले.. इस समस्या का हल अभी तो मिलने नहीं वाला.. चिंता होना जायज है पर चिंता किसी भी प्रॉब्लेम का हल नहीं है.. और मान ले की यह रिश्ता सच में हमेशा के लिए टूट जाता है.. तो इससे तेरी ज़िंदगी रुक थोड़ी न जाएगी??"

पीयूष: "मौसम.. किसी प्रॉब्लेम का जब हल न हो तो उसे वास्तविकता समझ कर स्वीकार लेना चाहिए.. तुझे यह मान लेना होगा की तरुण अब तेरे जीवन का हिस्सा नहीं है.. सदमा लगना स्वाभाविक है.. यह मैं समझ सकता हूँ.. पर अब तुझे ही तय करना है की इस बात को पकड़कर तू हमेशा के लिए दुखी रहना चाहती है या सब कुछ भूलकर आगे बढ़ना चाहती है.. !!"

मौसम: "जीजू.. मैंने तो हकीकत का स्वीकार कर ही लिया है.. की तरुण अब मेरा नहीं है.. मुझे तो सिर्फ यह जानना है की उसे ऐसा कदम आखिर क्यों उठाना पड़ा?? मैं क्या इतनी गई-गुजरी हुई जो वो मुझे बिना कोई वजह बताएं ही रिश्ता तोड़ दें??"

कविता: "वक्त आने पर सब पता चलेगा मौसम.. तू चिंता मत कर.. सच हमेशा सामने आ ही जाता है.. हो सकता है.. तरुण के साथ ही कोई प्रॉब्लेम हुई हो.. जो वो तुझे बता न पा रहा हो"

सुनकर मौसम का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ.. उसे बस यही जानना था की तरुण के इस कदम के पीछे असली कारण क्या था

मौसम: "जीजू.. मैं यहाँ के वातावरण से तंग आ गई हूँ.. मैं कुछ दिन आपके यहाँ आकर रहना चाहती हूँ.. ताकि मेरे दिमाग से तरुण के विचारों को हटा सकूँ.. यहाँ रहूँगी तो पूरा दिन उसी के बारे में सोचती रहूँगी.. ऊपर से मम्मी का उदास चेहरा मुझसे देखा नहीं जाता.. प्लीज दीदी.. कल हम जितना हो सकें उतना जल्दी निकल जाते है यहाँ से.. !!"

पीयूष: "हाँ हाँ.. क्यों नहीं.. वैसा ही करेंगे.. दरअसल मैं सामने से तुझे यह कहने ही वाला था.. तू हमारे साथ चल.. सब ठीक हो जाएगा.. हम सब है ना तेरे साथ.. फिर किस बात की फिक्र.. !!"

मौसम: "ओके जीजू.. थेंकस.. गुड नाइट"

इतना कहते ही मौसम को फिर से रोना आ गया.. और वो भागकर अपने कमरे की और चली गई.. जाते जाते उसके रोने की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी..

कविता: "पीयूष, अब मुझे तो बता.. !! तरुण ने आखिर सगाई क्यों तोड़ दी??" सीधा सवाल किया कविता ने

पीयूष सोच में पड़ गया.. अब क्या बताएं कविता को?

पीयूष: "कविता, जब किसी बात को निकालने पर काफी सारे लोगों का अहित होना हो.. तब उसे न निकालना ही बेहतर होगा.. चल.. कल जल्दी उठना है.. सो जाते है.. सुबह ६ बजे की बस से निकल जाएंगे"

थोड़े घंटों की नींद लेने के बाद.. कविता, वैशाली, मौसम और पीयूष जाने के लिए तैयार हो गए.. सुबोधकांत उन्हें बस स्टेशन तक छोड़ने आए.. पहली बस मे काफी भीड़ थी.. इसलिए दूसरी बस की राह देखने लगी.. दूसरी बस का भी वही हाल था.. आखिर सुबोधकांत ने सब को अपनी गाड़ी में ही छोड़ आने का फैसला किया

कार तेजी से सड़क पर चल रही थी और उतनी ही तेजी से कविता और मौसम के दिमाग में विचार भी चल रहे थे.. गाड़ी चलाते हुए सुबोधकांत एकदम खामोश थे..

२ घंटों के सफर के बाद वो लोग पहुँच गए.. घर के अंदर घुसते ही मौसम अनुमौसी से गले मिलकर रोने लगी.. अनुमौसी ने अपने अनुभवयुक्त शब्दों से उसे सांत्वना दी..

मौसम कविता की मदद करने किचन में गई.. उस दौरान कविता ने उसे तरुण के बारे में.. उनके संबंधों के बारे में काफी कुछ पूछा.. पर उसे ऐसी कोई हिंट न मिली जिससे की वो किसी बात का अंदाजा लगा पाती

दोपहर के बाद पीयूष ऑफिस चला गया.. काम भी देखना जरूरी था..

थोड़ी देर के बाद, शीला और मदन भी मौसी के घर आ गए.. सुबोधकांत से मिलकर दोनों उनके साथ बैठे.. सुबोधकांत ने मौसम और तरुण की सगाई टूटने के बारे में बताया.. जिसके बारे में वह दोनों पहले से ही जानते थे.. थोड़ी देर की बातों के बाद.. सब एकदम चुपचाप बैठे थे

कविता और मौसम चाय लेकर आए..

चाय एक घूंट में खत्म करते ही.. सुबोधकांत ने अपनी घड़ी की ओर देखकर कहा "अब मुझे निकलना चाहिए"

कविता: "पापा, दोपहर तो हो ही चुकी है.. आप खाना खाकर ही जाइए"

सुबोधकांत: "नहीं बेटा.. अचानक यहाँ आना हुआ इसलिए मेरे कई काम रुकें पड़े है.. मुझे जाना ही होगा.. " बार बार अपनी घड़ी की ओर देख रहें सुबोधकांत तो कविता ने और नहीं रोका

अचानक शीला की नजर सुबोधकांत की गोल्डन केस वाली राडो घड़ी पर गई.. और ध्यान से देखते ही उसकी सांसें थम गई.. !!!

याद आते ही बेहद चोंक गई शीला.. अरे बाप रे... ये तो कॉकटेल है.. !! बिल्कुल यही घड़ी कॉकटेल ने भी पहन रखी थी.. ध्यान से देखने पर सुबोधकांत का शरीर, बोल-चाल सब कुछ कॉकटेल से मेल खा रहा था.. उसका लंड भी जाना-पहचाना सा क्यों लग रहा था वो अब पता चला शीला को.. सुबोधकांत के घर के गराज में एक बार चूस चुकी थी उनका लंड.. इसीलिए जब होटल में वह लंड दोबारा देखा तब हल्की सी भनक तो लगी थी पर याद नहीं आ रहा था.. !! शीला के पूरे बदन में झनझनाहट से छा गई.. हाँ, वो कॉकटेल ही था.. जिसका लंड मैंने और रेणुका दोनों ने दिल खोल कर चूसा था.. हे भगवान.. कहीं सुबोधकांत ने हमें पहचान तो नहीं लिया होगा.. !!!


मदन को वहीं बैठा छोड़कर शीला घबराकर घर वापिस आ गई..

Bahut hi shandar update he vakharia Bhai,

Mausam aur piyush ki sagai tut jaane ka dukh hua......

Sahyad piyush ko subodhkant aur falguni ke rishte ka pata chal gaya

Ya fir use kisi tarah hotel ki riad me subodhkant ke pakde jaane ka pata chal gaya...........

Sheel ne cocktail yaani subodhkant ko ghadi ke dwara pehchan liya.......

Keep rocking Bro
 
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