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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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dhparikh

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Update #23


जय मीना के पीछे पीछे ही उसकी किचन में आ गया। किचन आधुनिक था - हाँलाकि उसके घर की किचन से छोटा था, लेकिन मीना के घर के हिसाब से उचित! सारी सुविधाएँ थीं वहाँ और बड़ा ही सुव्यवस्थित सा घर था।

सब देख कर जय को बड़ा संतोष हुआ - 'कैरियर ओरिएण्टेड वुमन है मीना, लेकिन फिर भी पूरा घर सुव्यवस्थित!'

किचन काउंटर के बगल दो बार स्टूल्स रखे हुए थे, उनमें से एक पर वो बैठ गया, और मीना चाय बनाने में व्यस्त हो गई।

“मीना?”

“हाँ?” मीना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“कुछ अपने बारे में बताओ...”

“अरे! क्या हो गया ठाकुर साहब?” मीना ने हँसते हुए कहा, “आपको कहीं डर तो नहीं लग रहा है कि ये मेरे लिए सही लड़की है भी या नहीं!”

“हा हा! नो... नो वे! कैसी बातें करती हो! तुमसे सही लड़की कोई नहीं है मेरे लिए... कोई और हो ही नहीं सकती... लेकिन बस, क्यूरियस हूँ!”

“हा हा! ओके! ... क्या जानना चाहते हो? पूछो?”

“कुछ भी! जो भी तुम्हारा मन हो, बता दो... वैसे, तुम और तुम्हारा परिवार... कहाँ से हो इंडिया में?”

“बहादुरगढ़...”

जब जय को समझ नहीं आया कि ये कहाँ है, तो मीना ने बताना जारी रखा, “दिल्ली के पास है - एक छोटा सा शहर है! शायद ही नाम सुना हो!”

“ओह! ओके! नहीं सुना! ... मैं भी दिल्ली से हूँ... था... हूँ!”

“हा हा... थे, कि हो? एक पे रहना!”

“ओके, था! वैसे, वहाँ हमारा बंगला है... माँ वहीं रहती हैं न!”

माँ का नाम सुनते ही मीना हिचक गई।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं!”

“अरे बोलो न!” जय ने समझते हुए पूछा, “... माँ को ले कर कोई चिंता है?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे, उनकी चिंता मत करो! ... माँ बहुत स्वीट हैं। मैंने बताया तो है... और अब तो हमारी बात भाभी ने सम्हाल ली है... वो माँ को मना लेंगी! अगर माँ को हमको ले कर कोई चिंता है भी, तो भाभी सब ठीक कर देंगी!” जय बड़े आत्मविश्वास से बोला, “... और वैसे भी, वो तुमको एक बार देख लेंगी न, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि वो तुमको पसंद न करें!”

“हम्म...! आई होप सो!” मीना ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा।

आई नो सो! ... अच्छा, तुमको खाने में क्या पसंद है?” जय ने बात बदल दी।

“सब कुछ... लेकिन मॉडरेट अमाउंट में खाती हूँ... अधिक अधिक नहीं!”

“वो तो दिख ही रहा है!” जय ने मीना के शरीर का जायज़ा लेते हुए कहा।

मीना अदा से मुस्कुराई।

“अच्छा, तुमको हस्बैंड कैसा चाहिए?”

“अरे वाह ठाकुर साहब... कहाँ से हो... खाने में क्या पसंद है... से सीधे हस्बैंड कैसा चाहिए पर आ गए! ... गुड, क्विक जम्प!” कह कर मीना खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे यार बताओ न!”

जवाब में मीना जय की तरफ़ मुड़ी, और उसके दोनों गालों को अपनी हथेलियों में थाम कर उसके होंठों को चूम कर बोली, “तुम... तुम्हारे जैसा!”

“सच सच बताओ!” जय को सुन कर अच्छा लगा, फिर भी वो तसल्ली कर लेना चाहता था।

“ओह जय... सच कह रही हूँ! तुम्हारे जैसा ही साथी चाहिए था मुझे! ... तुम! तुम चाहिए थे मुझे... हाँ, तुम थोड़े ओल्डर होते, तो बेटर था, लेकिन अभी भी ठीक है!” उसने आखिरी वाक्य शरारत से कहा।

“हा हा... व्हाट इस इट विद यू एंड माय एज...” जय हँसते हुए बोला, “तुमसे छोटा हूँ, तो कोई प्रॉब्लम है?”

“नहीं! नो प्रॉब्लम... जो किस्मत में है, वो ही तो मिलेगा न!” मीना ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा, “सब कुछ चाहा हुआ तो नहीं हो सकता न!”

अच्छा!” जय ने भी नाराज़ होने का नाटक किया, “तो जाओ, किसी बुड्ढे से कर लो शादी!”

“अरे मेरा प्यारा वुड बी हस्बैंड... मेरी बात का बुरा मान गए?” मीना उसकी नाक को चूमती हुई बोली।

उसी समय चाय में उबाल आ गया। चाय में उबाल की आवाज़ सुन कर मीना चौंक कर तेजी से चूल्हे के पास जा कर उसका नॉब बंद कर देती है। बिल्कुल ठीक समय पर।

“देखा! चाय भी नाराज़ हो गई तुम्हारी बात पर!” जय हँसते हुए बोला।

“कोई नाराज़ वाराज़ नहीं है... वो कह रही है कि मैं तैयार हूँ, और, बहुत टेस्टी हूँ...” मीना मुस्कुराती हुई बोली।

“अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू! बिना पिये कैसे जान लें?”

“हे भगवान! तुमको बहुत हिंदी आती है! इसका मतलब?”
“वो बाद में! पहले चाय पिलाओ! इतनी देर से केवल बातों से ही मन बहला रही हो!”

“अभी लो...”

मीना ने दो प्यालों में चाय छान कर पहले जय को थमाई, फिर खुद ली। दोनों ने चाय की चुस्की ली।

“कैसी बनी है?”

जय ने नाक भौं सिकोड़ते हुए ‘न’ में तेजी तेजी सर हिलाया, “ये कैसी चाय है...”

“अरे, क्या हो गया,” मीना को यकीन ही नहीं हुआ कि जय की चाय का स्वाद ऐसा ख़राब हो सकता है, क्योंकि उसकी चाय तो हमेशा की ही तरह बढ़िया स्वाद वाली थी, “इधर लाओ तो...”

मीना ने जय के प्याले से चुस्की ले कर बड़ी मासूमियत से कहा, “अच्छी तो है!”

जय ने उसके हाथों से अपना प्याला ले कर फिर से चुस्की ली, “हाँ... अब आया इसमें टेस्ट!”

“अच्छा जी... बदमाशी!” जय की शरारत मीना को समझ में आ गई।

“तुमसे नहीं, तो आखिर और किससे करूँ शरारत?”

“किसी से नहीं!” मीना ने बड़े प्यार से जय को देखा।

उसकी आँखों में उसके लिए दुनिया जहान की मोहब्बत वो साफ़ देख सकता था। जय को उस समय इस बात का बोध भी हुआ कि कितनी सुन्दर आँखें हैं मीना की! वो इनको उम्र भर देख सकता है। मीना के मन की सच्चाई उसकी आँखों और उसके चेहरे से बयाँ हो रही थी। और वो सच्चाई थी मीना के मन में उसके लिए मोहब्बत की!

दोनों अचानक से ही ख़ामोश हो गए थे - और चुप हो कर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। जय मीना का हाथ अपने हाथ में ले कर कोमलता से सहला रहा था। अचानक ही कुछ कहने सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही। कुछ देर में चाय ख़तम हो गई।

मीना बोली, “क्या खिलाऊँ डिनर में?”

“क्या आता है तुमको?”

“इतने सालों से यहाँ हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि मुझे कुछ आता नहीं!” मीना अदा से मुस्कुराई, “तुम्हारी होने वाली बीवी लगभग सर्व-गुण संपन्न है!”

“हा हा! अरे वाह! तुमको ये फ़्रेज़ मालूम है?”

“बस कुछ ही... ये उनमें से एक है!” मीना ने ईमानदारी से कहा, “बोलो न! क्या खाओगे?”

“कुछ भी खिला दो मेरी जान! हम तो आसानी से खुश हो जाते हैं!”

“ऐसे मत बोलो जय... आई वांट टू मेक यू फ़ील स्पेशल... तुम मेरे लिए सबसे स्पेशल हो! और, पहली बार घर भी आये हो, तो बिना तुम्हारी ठीक से ख़ातिरदारी किए तुमको नहीं जाने दूँगी!”

“हा हा! ... जो तुमको सबसे अच्छा आता है, वो पका दो! मेरे लिए वही स्पेशल है!”

“ठीक है! तुम आराम से बैठो... मन करे तो घर देखो... वैसे, देखने जैसा कुछ भी नहीं है! मैं बनाती हूँ कुछ ख़ास!”

मीना ने जय के गले में अपनी बाँहें डाल कर उसको दो बार चूमा, और फिर अलग हो कर डिनर की तैयारी में व्यस्त हो गई। कुछ देर तक दोनों बातें करते रहे, और मीना खाना पकाने में व्यस्त रही। खाना पकाने को ले कर उसका उत्साह देख कर जय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।

शाम में पहली बार उसने मीना की देहयष्टि को बड़ी ध्यान से देखा - उसने एक रंग-बिरंगा स्वेटर पहना हुआ था, और नीचे एक घुटनों तक लम्बा स्कर्ट। घर में हीटिंग चल रही थी, नहीं तो इन महीनों शिकागो की ठंडक बढ़ जाती थी। वैसे भी दिन भर तेज़ ठंडी हवाएँ चलती ही रहती थीं। स्वेटर ढीला ढाला था, लेकिन सुरुचिपूर्ण था - ऐसा, जिसमें लड़की अपने प्रियतम को पसंद आए।
मीना सचमुच उसको बहुत पसंद आ रही थी!

“वाइन पियोगे?” कुछ समय बाद मीना ने पूछा।

“हाँ...”

“शिराज़ या मेर्लो?”

“शिराज़...”

मीना ने मुस्कुरा कर किचन के बगल लगे सेलर से रेड वाइन की एक बोतल निकाली और दो वाइन गिलासों में बारी बारी डाला। ठंडी के मौसम के हिसाब से रेड वाइन मुफ़ीद थी।

“चियर्स,” जय ने कहा और अपने गिलास को मीना के गिलास से टुनकाया।

“चियर्स...”

“उम्म...” पहला सिप ले कर जय ने अनुमोदन में सर हिलाया, “लेकिन यार, चाय का स्वाद खराब हो गया!”

“ओह्हो!” मीना नहीं चाहती थी कि जय का कोई भी अनुभव खराब हो, “सॉरी हनी!”

“हनी?” जय ने फिर से शरारत से पूछा।

मीना के गाल शर्म से गुलाबी हो गए, “इंडियन वीमेन डू नॉट कॉल दीयर हस्बैंड्स बाई दीयर नेम्स...!”

“ओये होए... क्या बात है मेरी जान!” जय मीना के करीब आते हुए बोला, “ऐसे करोगी तो कण्ट्रोल नहीं होगा मुझे...”

“किस बात पर कण्ट्रोल नहीं होगा?” मीना ने भली भाँति जानते हुए भी पूछा।

“मेरे इरादों पर...”

मीना बनावटी चाल में इठलाती हुई जय के पास आई, और उसके गले में बाहें डालती हुई बोली, “अभी नहीं हनी! ... बट आई प्रॉमिस, कि तुमको मैं हर तरह का सुख दूँगी! यू विल नेवर बी अनसैटिस्फाइड!”

“ये सब मत बोलो... दिल में कुछ कुछ होने लगता है!”

“हा हा... आई लव यू!” कह कर मीना ने उसको चूम लिया।
“अब जल्दी से इस वाइन का भी टेस्ट बढ़िया कर दो!”
मीना ने जय के गिलास से वाइन सिप पर के उसको वापस दे दिया। जय ने सहर्ष उसकी जूठी की हुई वाइन की चुस्की ली, और बोला,

“हाँ! अब आया स्वाद!”

मीना उसकी बात पर दिल खोल कर, खिलखिला कर हँसने लगी।

जय के मन के ख़याल आया कि वो मीना को बहुत चाहता है, और उससे अधिक वो किसी और लड़की को कभी प्यार नहीं कर सकेगा।

'शी इस द वन!'


*
Nice update....
 

parkas

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Update #23


जय मीना के पीछे पीछे ही उसकी किचन में आ गया। किचन आधुनिक था - हाँलाकि उसके घर की किचन से छोटा था, लेकिन मीना के घर के हिसाब से उचित! सारी सुविधाएँ थीं वहाँ और बड़ा ही सुव्यवस्थित सा घर था।

सब देख कर जय को बड़ा संतोष हुआ - 'कैरियर ओरिएण्टेड वुमन है मीना, लेकिन फिर भी पूरा घर सुव्यवस्थित!'

किचन काउंटर के बगल दो बार स्टूल्स रखे हुए थे, उनमें से एक पर वो बैठ गया, और मीना चाय बनाने में व्यस्त हो गई।

“मीना?”

“हाँ?” मीना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“कुछ अपने बारे में बताओ...”

“अरे! क्या हो गया ठाकुर साहब?” मीना ने हँसते हुए कहा, “आपको कहीं डर तो नहीं लग रहा है कि ये मेरे लिए सही लड़की है भी या नहीं!”

“हा हा! नो... नो वे! कैसी बातें करती हो! तुमसे सही लड़की कोई नहीं है मेरे लिए... कोई और हो ही नहीं सकती... लेकिन बस, क्यूरियस हूँ!”

“हा हा! ओके! ... क्या जानना चाहते हो? पूछो?”

“कुछ भी! जो भी तुम्हारा मन हो, बता दो... वैसे, तुम और तुम्हारा परिवार... कहाँ से हो इंडिया में?”

“बहादुरगढ़...”

जब जय को समझ नहीं आया कि ये कहाँ है, तो मीना ने बताना जारी रखा, “दिल्ली के पास है - एक छोटा सा शहर है! शायद ही नाम सुना हो!”

“ओह! ओके! नहीं सुना! ... मैं भी दिल्ली से हूँ... था... हूँ!”

“हा हा... थे, कि हो? एक पे रहना!”

“ओके, था! वैसे, वहाँ हमारा बंगला है... माँ वहीं रहती हैं न!”

माँ का नाम सुनते ही मीना हिचक गई।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं!”

“अरे बोलो न!” जय ने समझते हुए पूछा, “... माँ को ले कर कोई चिंता है?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे, उनकी चिंता मत करो! ... माँ बहुत स्वीट हैं। मैंने बताया तो है... और अब तो हमारी बात भाभी ने सम्हाल ली है... वो माँ को मना लेंगी! अगर माँ को हमको ले कर कोई चिंता है भी, तो भाभी सब ठीक कर देंगी!” जय बड़े आत्मविश्वास से बोला, “... और वैसे भी, वो तुमको एक बार देख लेंगी न, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि वो तुमको पसंद न करें!”

“हम्म...! आई होप सो!” मीना ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा।

आई नो सो! ... अच्छा, तुमको खाने में क्या पसंद है?” जय ने बात बदल दी।

“सब कुछ... लेकिन मॉडरेट अमाउंट में खाती हूँ... अधिक अधिक नहीं!”

“वो तो दिख ही रहा है!” जय ने मीना के शरीर का जायज़ा लेते हुए कहा।

मीना अदा से मुस्कुराई।

“अच्छा, तुमको हस्बैंड कैसा चाहिए?”

“अरे वाह ठाकुर साहब... कहाँ से हो... खाने में क्या पसंद है... से सीधे हस्बैंड कैसा चाहिए पर आ गए! ... गुड, क्विक जम्प!” कह कर मीना खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे यार बताओ न!”

जवाब में मीना जय की तरफ़ मुड़ी, और उसके दोनों गालों को अपनी हथेलियों में थाम कर उसके होंठों को चूम कर बोली, “तुम... तुम्हारे जैसा!”

“सच सच बताओ!” जय को सुन कर अच्छा लगा, फिर भी वो तसल्ली कर लेना चाहता था।

“ओह जय... सच कह रही हूँ! तुम्हारे जैसा ही साथी चाहिए था मुझे! ... तुम! तुम चाहिए थे मुझे... हाँ, तुम थोड़े ओल्डर होते, तो बेटर था, लेकिन अभी भी ठीक है!” उसने आखिरी वाक्य शरारत से कहा।

“हा हा... व्हाट इस इट विद यू एंड माय एज...” जय हँसते हुए बोला, “तुमसे छोटा हूँ, तो कोई प्रॉब्लम है?”

“नहीं! नो प्रॉब्लम... जो किस्मत में है, वो ही तो मिलेगा न!” मीना ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा, “सब कुछ चाहा हुआ तो नहीं हो सकता न!”

अच्छा!” जय ने भी नाराज़ होने का नाटक किया, “तो जाओ, किसी बुड्ढे से कर लो शादी!”

“अरे मेरा प्यारा वुड बी हस्बैंड... मेरी बात का बुरा मान गए?” मीना उसकी नाक को चूमती हुई बोली।

उसी समय चाय में उबाल आ गया। चाय में उबाल की आवाज़ सुन कर मीना चौंक कर तेजी से चूल्हे के पास जा कर उसका नॉब बंद कर देती है। बिल्कुल ठीक समय पर।

“देखा! चाय भी नाराज़ हो गई तुम्हारी बात पर!” जय हँसते हुए बोला।

“कोई नाराज़ वाराज़ नहीं है... वो कह रही है कि मैं तैयार हूँ, और, बहुत टेस्टी हूँ...” मीना मुस्कुराती हुई बोली।

“अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू! बिना पिये कैसे जान लें?”

“हे भगवान! तुमको बहुत हिंदी आती है! इसका मतलब?”
“वो बाद में! पहले चाय पिलाओ! इतनी देर से केवल बातों से ही मन बहला रही हो!”

“अभी लो...”

मीना ने दो प्यालों में चाय छान कर पहले जय को थमाई, फिर खुद ली। दोनों ने चाय की चुस्की ली।

“कैसी बनी है?”

जय ने नाक भौं सिकोड़ते हुए ‘न’ में तेजी तेजी सर हिलाया, “ये कैसी चाय है...”

“अरे, क्या हो गया,” मीना को यकीन ही नहीं हुआ कि जय की चाय का स्वाद ऐसा ख़राब हो सकता है, क्योंकि उसकी चाय तो हमेशा की ही तरह बढ़िया स्वाद वाली थी, “इधर लाओ तो...”

मीना ने जय के प्याले से चुस्की ले कर बड़ी मासूमियत से कहा, “अच्छी तो है!”

जय ने उसके हाथों से अपना प्याला ले कर फिर से चुस्की ली, “हाँ... अब आया इसमें टेस्ट!”

“अच्छा जी... बदमाशी!” जय की शरारत मीना को समझ में आ गई।

“तुमसे नहीं, तो आखिर और किससे करूँ शरारत?”

“किसी से नहीं!” मीना ने बड़े प्यार से जय को देखा।

उसकी आँखों में उसके लिए दुनिया जहान की मोहब्बत वो साफ़ देख सकता था। जय को उस समय इस बात का बोध भी हुआ कि कितनी सुन्दर आँखें हैं मीना की! वो इनको उम्र भर देख सकता है। मीना के मन की सच्चाई उसकी आँखों और उसके चेहरे से बयाँ हो रही थी। और वो सच्चाई थी मीना के मन में उसके लिए मोहब्बत की!

दोनों अचानक से ही ख़ामोश हो गए थे - और चुप हो कर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। जय मीना का हाथ अपने हाथ में ले कर कोमलता से सहला रहा था। अचानक ही कुछ कहने सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही। कुछ देर में चाय ख़तम हो गई।

मीना बोली, “क्या खिलाऊँ डिनर में?”

“क्या आता है तुमको?”

“इतने सालों से यहाँ हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि मुझे कुछ आता नहीं!” मीना अदा से मुस्कुराई, “तुम्हारी होने वाली बीवी लगभग सर्व-गुण संपन्न है!”

“हा हा! अरे वाह! तुमको ये फ़्रेज़ मालूम है?”

“बस कुछ ही... ये उनमें से एक है!” मीना ने ईमानदारी से कहा, “बोलो न! क्या खाओगे?”

“कुछ भी खिला दो मेरी जान! हम तो आसानी से खुश हो जाते हैं!”

“ऐसे मत बोलो जय... आई वांट टू मेक यू फ़ील स्पेशल... तुम मेरे लिए सबसे स्पेशल हो! और, पहली बार घर भी आये हो, तो बिना तुम्हारी ठीक से ख़ातिरदारी किए तुमको नहीं जाने दूँगी!”

“हा हा! ... जो तुमको सबसे अच्छा आता है, वो पका दो! मेरे लिए वही स्पेशल है!”

“ठीक है! तुम आराम से बैठो... मन करे तो घर देखो... वैसे, देखने जैसा कुछ भी नहीं है! मैं बनाती हूँ कुछ ख़ास!”

मीना ने जय के गले में अपनी बाँहें डाल कर उसको दो बार चूमा, और फिर अलग हो कर डिनर की तैयारी में व्यस्त हो गई। कुछ देर तक दोनों बातें करते रहे, और मीना खाना पकाने में व्यस्त रही। खाना पकाने को ले कर उसका उत्साह देख कर जय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।

शाम में पहली बार उसने मीना की देहयष्टि को बड़ी ध्यान से देखा - उसने एक रंग-बिरंगा स्वेटर पहना हुआ था, और नीचे एक घुटनों तक लम्बा स्कर्ट। घर में हीटिंग चल रही थी, नहीं तो इन महीनों शिकागो की ठंडक बढ़ जाती थी। वैसे भी दिन भर तेज़ ठंडी हवाएँ चलती ही रहती थीं। स्वेटर ढीला ढाला था, लेकिन सुरुचिपूर्ण था - ऐसा, जिसमें लड़की अपने प्रियतम को पसंद आए।
मीना सचमुच उसको बहुत पसंद आ रही थी!

“वाइन पियोगे?” कुछ समय बाद मीना ने पूछा।

“हाँ...”

“शिराज़ या मेर्लो?”

“शिराज़...”

मीना ने मुस्कुरा कर किचन के बगल लगे सेलर से रेड वाइन की एक बोतल निकाली और दो वाइन गिलासों में बारी बारी डाला। ठंडी के मौसम के हिसाब से रेड वाइन मुफ़ीद थी।

“चियर्स,” जय ने कहा और अपने गिलास को मीना के गिलास से टुनकाया।

“चियर्स...”

“उम्म...” पहला सिप ले कर जय ने अनुमोदन में सर हिलाया, “लेकिन यार, चाय का स्वाद खराब हो गया!”

“ओह्हो!” मीना नहीं चाहती थी कि जय का कोई भी अनुभव खराब हो, “सॉरी हनी!”

“हनी?” जय ने फिर से शरारत से पूछा।

मीना के गाल शर्म से गुलाबी हो गए, “इंडियन वीमेन डू नॉट कॉल दीयर हस्बैंड्स बाई दीयर नेम्स...!”

“ओये होए... क्या बात है मेरी जान!” जय मीना के करीब आते हुए बोला, “ऐसे करोगी तो कण्ट्रोल नहीं होगा मुझे...”

“किस बात पर कण्ट्रोल नहीं होगा?” मीना ने भली भाँति जानते हुए भी पूछा।

“मेरे इरादों पर...”

मीना बनावटी चाल में इठलाती हुई जय के पास आई, और उसके गले में बाहें डालती हुई बोली, “अभी नहीं हनी! ... बट आई प्रॉमिस, कि तुमको मैं हर तरह का सुख दूँगी! यू विल नेवर बी अनसैटिस्फाइड!”

“ये सब मत बोलो... दिल में कुछ कुछ होने लगता है!”

“हा हा... आई लव यू!” कह कर मीना ने उसको चूम लिया।
“अब जल्दी से इस वाइन का भी टेस्ट बढ़िया कर दो!”
मीना ने जय के गिलास से वाइन सिप पर के उसको वापस दे दिया। जय ने सहर्ष उसकी जूठी की हुई वाइन की चुस्की ली, और बोला,

“हाँ! अब आया स्वाद!”

मीना उसकी बात पर दिल खोल कर, खिलखिला कर हँसने लगी।

जय के मन के ख़याल आया कि वो मीना को बहुत चाहता है, और उससे अधिक वो किसी और लड़की को कभी प्यार नहीं कर सकेगा।

'शी इस द वन!'


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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

park

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Update #23


जय मीना के पीछे पीछे ही उसकी किचन में आ गया। किचन आधुनिक था - हाँलाकि उसके घर की किचन से छोटा था, लेकिन मीना के घर के हिसाब से उचित! सारी सुविधाएँ थीं वहाँ और बड़ा ही सुव्यवस्थित सा घर था।

सब देख कर जय को बड़ा संतोष हुआ - 'कैरियर ओरिएण्टेड वुमन है मीना, लेकिन फिर भी पूरा घर सुव्यवस्थित!'

किचन काउंटर के बगल दो बार स्टूल्स रखे हुए थे, उनमें से एक पर वो बैठ गया, और मीना चाय बनाने में व्यस्त हो गई।

“मीना?”

“हाँ?” मीना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“कुछ अपने बारे में बताओ...”

“अरे! क्या हो गया ठाकुर साहब?” मीना ने हँसते हुए कहा, “आपको कहीं डर तो नहीं लग रहा है कि ये मेरे लिए सही लड़की है भी या नहीं!”

“हा हा! नो... नो वे! कैसी बातें करती हो! तुमसे सही लड़की कोई नहीं है मेरे लिए... कोई और हो ही नहीं सकती... लेकिन बस, क्यूरियस हूँ!”

“हा हा! ओके! ... क्या जानना चाहते हो? पूछो?”

“कुछ भी! जो भी तुम्हारा मन हो, बता दो... वैसे, तुम और तुम्हारा परिवार... कहाँ से हो इंडिया में?”

“बहादुरगढ़...”

जब जय को समझ नहीं आया कि ये कहाँ है, तो मीना ने बताना जारी रखा, “दिल्ली के पास है - एक छोटा सा शहर है! शायद ही नाम सुना हो!”

“ओह! ओके! नहीं सुना! ... मैं भी दिल्ली से हूँ... था... हूँ!”

“हा हा... थे, कि हो? एक पे रहना!”

“ओके, था! वैसे, वहाँ हमारा बंगला है... माँ वहीं रहती हैं न!”

माँ का नाम सुनते ही मीना हिचक गई।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं!”

“अरे बोलो न!” जय ने समझते हुए पूछा, “... माँ को ले कर कोई चिंता है?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे, उनकी चिंता मत करो! ... माँ बहुत स्वीट हैं। मैंने बताया तो है... और अब तो हमारी बात भाभी ने सम्हाल ली है... वो माँ को मना लेंगी! अगर माँ को हमको ले कर कोई चिंता है भी, तो भाभी सब ठीक कर देंगी!” जय बड़े आत्मविश्वास से बोला, “... और वैसे भी, वो तुमको एक बार देख लेंगी न, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि वो तुमको पसंद न करें!”

“हम्म...! आई होप सो!” मीना ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा।

आई नो सो! ... अच्छा, तुमको खाने में क्या पसंद है?” जय ने बात बदल दी।

“सब कुछ... लेकिन मॉडरेट अमाउंट में खाती हूँ... अधिक अधिक नहीं!”

“वो तो दिख ही रहा है!” जय ने मीना के शरीर का जायज़ा लेते हुए कहा।

मीना अदा से मुस्कुराई।

“अच्छा, तुमको हस्बैंड कैसा चाहिए?”

“अरे वाह ठाकुर साहब... कहाँ से हो... खाने में क्या पसंद है... से सीधे हस्बैंड कैसा चाहिए पर आ गए! ... गुड, क्विक जम्प!” कह कर मीना खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे यार बताओ न!”

जवाब में मीना जय की तरफ़ मुड़ी, और उसके दोनों गालों को अपनी हथेलियों में थाम कर उसके होंठों को चूम कर बोली, “तुम... तुम्हारे जैसा!”

“सच सच बताओ!” जय को सुन कर अच्छा लगा, फिर भी वो तसल्ली कर लेना चाहता था।

“ओह जय... सच कह रही हूँ! तुम्हारे जैसा ही साथी चाहिए था मुझे! ... तुम! तुम चाहिए थे मुझे... हाँ, तुम थोड़े ओल्डर होते, तो बेटर था, लेकिन अभी भी ठीक है!” उसने आखिरी वाक्य शरारत से कहा।

“हा हा... व्हाट इस इट विद यू एंड माय एज...” जय हँसते हुए बोला, “तुमसे छोटा हूँ, तो कोई प्रॉब्लम है?”

“नहीं! नो प्रॉब्लम... जो किस्मत में है, वो ही तो मिलेगा न!” मीना ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा, “सब कुछ चाहा हुआ तो नहीं हो सकता न!”

अच्छा!” जय ने भी नाराज़ होने का नाटक किया, “तो जाओ, किसी बुड्ढे से कर लो शादी!”

“अरे मेरा प्यारा वुड बी हस्बैंड... मेरी बात का बुरा मान गए?” मीना उसकी नाक को चूमती हुई बोली।

उसी समय चाय में उबाल आ गया। चाय में उबाल की आवाज़ सुन कर मीना चौंक कर तेजी से चूल्हे के पास जा कर उसका नॉब बंद कर देती है। बिल्कुल ठीक समय पर।

“देखा! चाय भी नाराज़ हो गई तुम्हारी बात पर!” जय हँसते हुए बोला।

“कोई नाराज़ वाराज़ नहीं है... वो कह रही है कि मैं तैयार हूँ, और, बहुत टेस्टी हूँ...” मीना मुस्कुराती हुई बोली।

“अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू! बिना पिये कैसे जान लें?”

“हे भगवान! तुमको बहुत हिंदी आती है! इसका मतलब?”
“वो बाद में! पहले चाय पिलाओ! इतनी देर से केवल बातों से ही मन बहला रही हो!”

“अभी लो...”

मीना ने दो प्यालों में चाय छान कर पहले जय को थमाई, फिर खुद ली। दोनों ने चाय की चुस्की ली।

“कैसी बनी है?”

जय ने नाक भौं सिकोड़ते हुए ‘न’ में तेजी तेजी सर हिलाया, “ये कैसी चाय है...”

“अरे, क्या हो गया,” मीना को यकीन ही नहीं हुआ कि जय की चाय का स्वाद ऐसा ख़राब हो सकता है, क्योंकि उसकी चाय तो हमेशा की ही तरह बढ़िया स्वाद वाली थी, “इधर लाओ तो...”

मीना ने जय के प्याले से चुस्की ले कर बड़ी मासूमियत से कहा, “अच्छी तो है!”

जय ने उसके हाथों से अपना प्याला ले कर फिर से चुस्की ली, “हाँ... अब आया इसमें टेस्ट!”

“अच्छा जी... बदमाशी!” जय की शरारत मीना को समझ में आ गई।

“तुमसे नहीं, तो आखिर और किससे करूँ शरारत?”

“किसी से नहीं!” मीना ने बड़े प्यार से जय को देखा।

उसकी आँखों में उसके लिए दुनिया जहान की मोहब्बत वो साफ़ देख सकता था। जय को उस समय इस बात का बोध भी हुआ कि कितनी सुन्दर आँखें हैं मीना की! वो इनको उम्र भर देख सकता है। मीना के मन की सच्चाई उसकी आँखों और उसके चेहरे से बयाँ हो रही थी। और वो सच्चाई थी मीना के मन में उसके लिए मोहब्बत की!

दोनों अचानक से ही ख़ामोश हो गए थे - और चुप हो कर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। जय मीना का हाथ अपने हाथ में ले कर कोमलता से सहला रहा था। अचानक ही कुछ कहने सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही। कुछ देर में चाय ख़तम हो गई।

मीना बोली, “क्या खिलाऊँ डिनर में?”

“क्या आता है तुमको?”

“इतने सालों से यहाँ हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि मुझे कुछ आता नहीं!” मीना अदा से मुस्कुराई, “तुम्हारी होने वाली बीवी लगभग सर्व-गुण संपन्न है!”

“हा हा! अरे वाह! तुमको ये फ़्रेज़ मालूम है?”

“बस कुछ ही... ये उनमें से एक है!” मीना ने ईमानदारी से कहा, “बोलो न! क्या खाओगे?”

“कुछ भी खिला दो मेरी जान! हम तो आसानी से खुश हो जाते हैं!”

“ऐसे मत बोलो जय... आई वांट टू मेक यू फ़ील स्पेशल... तुम मेरे लिए सबसे स्पेशल हो! और, पहली बार घर भी आये हो, तो बिना तुम्हारी ठीक से ख़ातिरदारी किए तुमको नहीं जाने दूँगी!”

“हा हा! ... जो तुमको सबसे अच्छा आता है, वो पका दो! मेरे लिए वही स्पेशल है!”

“ठीक है! तुम आराम से बैठो... मन करे तो घर देखो... वैसे, देखने जैसा कुछ भी नहीं है! मैं बनाती हूँ कुछ ख़ास!”

मीना ने जय के गले में अपनी बाँहें डाल कर उसको दो बार चूमा, और फिर अलग हो कर डिनर की तैयारी में व्यस्त हो गई। कुछ देर तक दोनों बातें करते रहे, और मीना खाना पकाने में व्यस्त रही। खाना पकाने को ले कर उसका उत्साह देख कर जय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।

शाम में पहली बार उसने मीना की देहयष्टि को बड़ी ध्यान से देखा - उसने एक रंग-बिरंगा स्वेटर पहना हुआ था, और नीचे एक घुटनों तक लम्बा स्कर्ट। घर में हीटिंग चल रही थी, नहीं तो इन महीनों शिकागो की ठंडक बढ़ जाती थी। वैसे भी दिन भर तेज़ ठंडी हवाएँ चलती ही रहती थीं। स्वेटर ढीला ढाला था, लेकिन सुरुचिपूर्ण था - ऐसा, जिसमें लड़की अपने प्रियतम को पसंद आए।
मीना सचमुच उसको बहुत पसंद आ रही थी!

“वाइन पियोगे?” कुछ समय बाद मीना ने पूछा।

“हाँ...”

“शिराज़ या मेर्लो?”

“शिराज़...”

मीना ने मुस्कुरा कर किचन के बगल लगे सेलर से रेड वाइन की एक बोतल निकाली और दो वाइन गिलासों में बारी बारी डाला। ठंडी के मौसम के हिसाब से रेड वाइन मुफ़ीद थी।

“चियर्स,” जय ने कहा और अपने गिलास को मीना के गिलास से टुनकाया।

“चियर्स...”

“उम्म...” पहला सिप ले कर जय ने अनुमोदन में सर हिलाया, “लेकिन यार, चाय का स्वाद खराब हो गया!”

“ओह्हो!” मीना नहीं चाहती थी कि जय का कोई भी अनुभव खराब हो, “सॉरी हनी!”

“हनी?” जय ने फिर से शरारत से पूछा।

मीना के गाल शर्म से गुलाबी हो गए, “इंडियन वीमेन डू नॉट कॉल दीयर हस्बैंड्स बाई दीयर नेम्स...!”

“ओये होए... क्या बात है मेरी जान!” जय मीना के करीब आते हुए बोला, “ऐसे करोगी तो कण्ट्रोल नहीं होगा मुझे...”

“किस बात पर कण्ट्रोल नहीं होगा?” मीना ने भली भाँति जानते हुए भी पूछा।

“मेरे इरादों पर...”

मीना बनावटी चाल में इठलाती हुई जय के पास आई, और उसके गले में बाहें डालती हुई बोली, “अभी नहीं हनी! ... बट आई प्रॉमिस, कि तुमको मैं हर तरह का सुख दूँगी! यू विल नेवर बी अनसैटिस्फाइड!”

“ये सब मत बोलो... दिल में कुछ कुछ होने लगता है!”

“हा हा... आई लव यू!” कह कर मीना ने उसको चूम लिया।
“अब जल्दी से इस वाइन का भी टेस्ट बढ़िया कर दो!”
मीना ने जय के गिलास से वाइन सिप पर के उसको वापस दे दिया। जय ने सहर्ष उसकी जूठी की हुई वाइन की चुस्की ली, और बोला,

“हाँ! अब आया स्वाद!”

मीना उसकी बात पर दिल खोल कर, खिलखिला कर हँसने लगी।

जय के मन के ख़याल आया कि वो मीना को बहुत चाहता है, और उससे अधिक वो किसी और लड़की को कभी प्यार नहीं कर सकेगा।

'शी इस द वन!'


*
Nice and superb update....
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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बड़े भाई आदित्य ने बिल्कुल हिन्दुस्तानी शिक्षा दी अपने भाई जय को । हमारे कल्चर और संस्कार विवाह से पूर्व जिस्मनी सम्बन्ध बनाने की इजाजत नही देते।

लेकिन जब एकांत स्थान हो , रूमानियत भरा माहौल हो , दोनो तरफ से आग लगी हुई हो तब सारे इमान धरे के धरे रह जाते है। ऐसी स्थिति मे लव वरडस् का बहकना महज वक्त की बात होती है। और वही परिस्थिति मीनाक्षी के आवास मे बनता दिख रहा है।

न न! आदित्य की सलाह यह है कि जब तक "सर्टेन" न हो, तब तक कुछ न करना।
इसमें शादी / ब्याह कहाँ से आ गया? अपने Adirshi भाई के नेहा और राघव तो शादी के महीनों बाद भी कुछ नहीं कर पाए हैं।
क्यों? क्योंकि सर्टेन नहीं हैं अपने रिश्ते को ले कर। सामाजिक मोहर लगाना / रिश्ते को कोई नाम देना, यह कोई बात नहीं हुई।

और आप फिर से "हमारे कल्चर" की बात कर रहे हैं, जबकि जगह अमेरिका है। 😂

वैसे मीना का चुम्बन एक नाॅनफैटनिंग , लो कैलोरी , विटामिन एनरिच्ड पप्पी था जय साहब के लिए :D

प्रियतमा का चुम्बन हवा में भी दिया हुआ हो, प्रेमी को सौ मन बराबर वज़नदार लगता है! 😂

लड़की खुबसूरत हो , हसीन हो , कयामत हो तो वो वाइन पिए या सिगरेट , क्या फर्क पड़ता है !
एक विलायती , धुम्रपान विरोधी कहावत है -
" धुम्रपान करने वाली खुबसूरत युवती का चुम्बन लेना और ऐश ट्रे चाटना एक ही बात है "
और अगर लड़की मीना जैसी हो तो किस कमबख्त को ऐश ट्रे चाटने से ऐतराज है !

भाई, मेरे हिसाब में बीवी तो ऐसी होनी चाहिए जो साथ बैठ कर दो दो जाम बराबर कर सके।
भगवान की दया से अपनी वाली तो वैसी ही है 😂
मेरा पति मेरा देवता वाली / या फिर / मैं मदिरा नहीं पीती जी वाली होती, तो दिमाग खराब हो जाता!

बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

धन्यवाद भाई साहब!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #24


“सुहासिनी,” हर्ष बहुत देर से बर्दाश्त कर रहा था, “बात क्या है? क्या छुपा रही हैं आप हमसे?”

यह प्रश्न हर्ष ने आज संभवतः दसवीं बार पूछा हो - लेकिन सुहासिनी थी कि हर बार केवल लाज से मुस्कुरा देती। कुछ कहती न।

उनके निकुञ्ज में हमेशा की ही तरह नीरवता फैली हुई थी। हाँ, रह रह कर, कभी कभी धनेश पक्षी की आवाज़ आ जाती - जो इस नीरवता को तोड़ती। इस गर्मी में सभी थक गए थे - क्या जीव जंतु, क्या मानुष! दूर दूर तक कोई नहीं था। लेकिन इस निकुञ्ज में कोई ख़ास बात थी। इन दोनों प्रेमियों को यहाँ गर्मी नहीं लगती थी - उल्टे, इन दोनों को यहाँ स्वर्ग जैसा आनंद मिलता था।

“अगर आप नहीं कहेंगी, तो हम जाएँ?”

“नहीं राजकुमार...” इस धमकी का प्रभाव सही स्थान पर हुआ, “ऐसे न कहिए! किन्तु... किन्तु... बात ही कुछ ऐसी है कि कहते हुए हमको लज्जा आ रही है!”

“ठीक है,” हर्ष सुहासिनी के खेल में शामिल होते हुए बोला, “तो हम आँखें बंद कर लेते हैं! ... तब तो नहीं आएगी लज्जा?”

“आएगी... किन्तु तब हम आपको बता अवश्य पाएँगे!”

“ठीक है... तो लीजिए...” कह कर हर्ष ने अपनी हथेलियों से अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं, “अब बताईये...”

“जी बात दरअसल ये है कि हमारे पिता जी... उन्होंने... उन्होंने...”

“हाँ हाँ... आगे भी तो कहिए...”

“उन्होंने... आपके और... और हमारे सम्बन्ध के लिए युवरानी जी से बात करी...”

“क्या!” हर्ष ने चौंकते हुए कहा - उसको विश्वास ही नहीं हुआ, “आप सच कह रही हैं?”

“झूठ क्यों कहूँगी?” सुहासिनी ने ठुनकते हुए कहा, “आपको नहीं बताया किसी ने?”

“नहीं! किसी ने कुछ नहीं कहा!”

“ओह...” सुहासिनी की थोड़ी सी निराशा महसूस हुई, “संभव है कि युवरानी जी को किसी से इस विषय में बात करने का अवसर न मिला हो!”

“संभव है! ... अभी तक तो किसी ने भी इस बारे में मुझसे पूछा तक नहीं!” हर्ष अंदर ही अंदर खुश भी था, और डरा हुआ भी, “आपके बाबा ने कोई संकेत दिया आपको? हमारा मतलब...”

“हम आपका मतलब समझ रहे हैं...” सुहासिनी ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए कहा, “वो संतुष्ट लग रहे थे... बहुत संतुष्ट! जैसे... जैसे कि उनके ऊपर से कोई बोझ हट गया हो!”

“सच में?” हर्ष यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, “आह! हमको भी... हमारे भी ऊपर से एक बोझ हट गया! ... भाभी माँ को आपके पिता जी से पता चल गया है तो वो पिताजी महाराज से अवश्य ही बात करेंगी! ... क्योंकि अब उनको भी समझ आ गया होगा कि हमारा प्रेम गंभीर है!”

सुहासिनी के गाल इस बात से लाल हुए बिना न रह सके।

दोनों कुछ देर तक कुछ कह न सके। वैसे भी पिछले कुछ समय में दोनों की निकटता आशातीत रूप से बढ़ गई थी। सुहासिनी का रूप अब हर्ष के दिलोदिमाग पर पूरी तरह से हावी था। वो इस बात के संज्ञान से बड़ा खुश हो गया था कि इस सुन्दर सी लड़की से उसका ब्याह संभव है। एक समय था जब ऐसा सोच पाना भी संभव नहीं था - शादी ब्याह तो बराबर वालों में होती है! एक साधारण कलाकार की लड़की, और राजकुमारी! असंभव!

धनेश की आवाज़, एक बार फिर से उस निस्तब्धता को तोड़ती हुई महसूस हुई। ह

र्ष और सुहासिनी - दोनों का ही ध्यान उस ओर आकर्षित हो गया। इस बार उसकी पुकार एक दो कूजन पर ही नहीं रुका, बल्कि कुछ देर तक चलता रहा। तीख़ी आवाज़ थी, लेकिन कानों को कचोट नहीं रही थी - क्योंकि पक्षी कुछ दूर रहा होगा। दूर के ढोल सुहाने होते हैं - क्योंकि उनकी कर्कशता कानों को सुनाई नहीं देती। लिहाज़ा, अगर इस गहन गर्मी में आँखें बंद कर के लेट जाएँ, तो धनेश की पुकार सुन कर, सुख भरी नींद आ जाए।

हर्ष कुछ सोच कर धीरे से मुस्कुराया।

“ये धनेश अपने लिए साथी ढूंढ रहा है!”

“अपने लिए या अपना...” सुहासिनी ने चुहल करी।

“हाँ, वो भी हो सकता है!” हर्ष हँसते हुए बोला, “लेकिन मुझे तो अपना साथी मिल गया!”

सुहासिनी फिर से लजा गई।



*


मीना के हाथ का खाना बड़ा ही स्वादिष्ट था।

लोग कहते हैं कि पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर जाता है - हाँ, पेट के नीचे से भी जाता है, लेकिन दैनिक आवश्यकता होती है पोषण की, प्रेम की, साथी की! सम्भोग दैनिक आवश्यकता नहीं है। सुस्वादु भोजन कई बातों की तरफ़ संकेत करता है - यह कि आपका साथी पाक-कला में निपुण है; यह कि उसके मन में आपके लिए अपनत्व है; और यह कि वो सुसंस्कृत है!

“ओह गॉड,” जय ने भोजन की बढ़ाई करते हुए कहा, “दिस इस बेटर दैन भाभीस फ़ूड... ऑर इवन माँ...”

“हा हा...”

नो... सीरियसली! एंड दैट इस सेइंग समथिंग...” जय सच में बहुत खुश था, “वाओ!”

“हाँ, ठीक है, ठीक है! बहुत अधिक चढ़ाने की ज़रुरत नहीं!” मीना अंदर ही अंदर खुश तो थी, लेकिन बाहर वो ख़ुशी दिखा नहीं रही थी।

“अरे यार! सच बात को ऐसे मत बोलो!”

“ठीक है... एन्जॉय देन!”

“ये कढ़ी तो बहुत स्वादिष्ट है!”

हनी, आई ऍम हैप्पी कि तुमको पसंद आई... टाइम कम था, नहीं तो बहुत कुछ खिलाती!”

“रुक जाता हूँ फिर?” जय ने खिलवाड़ करते हुए कहा, “कल दिन भर रह जाता हूँ तुम्हारे साथ ही?”

“सच में?” मीना ने सुखद आश्चर्य वाले भाव में कहा - जैसे उसकी भी मन ही मन यही इच्छा रही हो।

“हाँ! ... मुझे लगा कि तुम ही नहीं चाहती कि मैं यहाँ रहूँ!”

“ऐसा क्यों सोचा तुमने?” मीना ने बड़ी कोमलता और बड़ी सच्चाई से कहा, “... मैं तुम्हारी हूँ, तो मेरा और मुझसे जुड़ा हुआ सब कुछ तुम्हारा है... ये घर भी तुम्हारा है!”

“ओके! देन आई विल स्टे! ... लेकिन मेरे पास चेंग क्लॉथ्स नहीं हैं!”

व्ही विल डू समथिंग!”

“ओके!” जय ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कल क्लेयर, आदित्य और बच्चों को बुला लेंगे?” मीना बड़े उत्साह से बोली, “... लॉन्ग वीकेंड यहीं मनाएँगे? क्या कहते हो?”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना की मुस्कराहट बहुत चौड़ी हो गई।

‘पक्की बात’ कहना, उन दोनों का तकिया-कलाम बनता जा रहा था। जब दो लोग प्यार में पड़ते हैं, तो एक दूसरे की ऐसी छोटी छोटी, लेकिन प्यारी बातें आत्मसात कर लेते हैं, और उनको पता भी नहीं चलता। ऐसा ही जय और मीना के साथ भी हो रहा था। दोनों एक दूसरे के रंग में रंगे जा रहे थे, और दोनों को पता भी नहीं चल रहा था।

“ठीक है... तुम भैया भाभी को कॉल कर लेना!”

“अरे! मैं क्यों?”

“तुम्हारा घर है... तुम इनवाइट करो न?”

“लेकिन तुम्हारा घर भी तो है!”

“हाँ - लेकिन इनवाइट तुमको करना होगा! कॉल कर के मैं ये तो बता दूंगा कि आज रात मैं यहीं रुक रहा हूँ, लेकिन कल का प्रोग्राम तुम ही बताना!”

“ठीक है हुकुम! जो आप कहें!”

“हा हा! ... ये वर्ड बहुत समय बात सुना!”

“अच्छा जी! आप ये वर्ड सुनते आ रहे हैं?”

“हाँ... जब भी इंडिया जाता हूँ, तब यही सुनता हूँ!”

“वाह जी! आप राजवाड़े हैं?”

“हो सकते हैं!”

“हा हा हा!”

बाकी का भोजन ऐसी ही हँसी ख़ुशी में बीत गया। भोजन के बाद जय ने अपने घर फ़ोन लगाया, और बताया कि वो आज रात यहीं रुकेगा। फिर उसने बताया कि मीना भी बात करेगी। जब मीना ने फ़ोन लिया, तब क्लेयर लाइन पर थी,

“क्लेयर, हाय!”

“हाय मीना... क्या बात है? ... मेरे देवर को मुझसे अलग कर रही हो?”

“हा हा! नहीं यार! ऐसा कुछ नहीं है... कल आप सभी को यहाँ बुलाने का मन था... तो जय ने कहा कि क्यों न वो रुक जाए!” मीना ने जय की तरफ़ से एक प्यारा सा झूठ कहा।

“अरे रहने दो! ... मुझे पता है कि साहब खुद ही तुमसे दूर नहीं रह सकते! ... इट्स ओके!”

“क्लेयर, एक और बात करनी थी...”

“हाँ बोलो?”

“आप सभी कल मेरे यहाँ आईये न! ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब कुछ यहीं करेंगे! ... मेरा घर आपके जैसा महल नहीं है, लेकिन स्पेस तो है!”

“ओह मीना! आर यू श्योर?”

“हाँ! ... पक्की बात!”

“हा हा हा... तुम तो जय के जैसे बातें करने लगी!”

यह बात सुन कर मीना शरमाए बिना न रह सकी।

*
 

kas1709

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Update #24


“सुहासिनी,” हर्ष बहुत देर से बर्दाश्त कर रहा था, “बात क्या है? क्या छुपा रही हैं आप हमसे?”

यह प्रश्न हर्ष ने आज संभवतः दसवीं बार पूछा हो - लेकिन सुहासिनी थी कि हर बार केवल लाज से मुस्कुरा देती। कुछ कहती न।

उनके निकुञ्ज में हमेशा की ही तरह नीरवता फैली हुई थी। हाँ, रह रह कर, कभी कभी धनेश पक्षी की आवाज़ आ जाती - जो इस नीरवता को तोड़ती। इस गर्मी में सभी थक गए थे - क्या जीव जंतु, क्या मानुष! दूर दूर तक कोई नहीं था। लेकिन इस निकुञ्ज में कोई ख़ास बात थी। इन दोनों प्रेमियों को यहाँ गर्मी नहीं लगती थी - उल्टे, इन दोनों को यहाँ स्वर्ग जैसा आनंद मिलता था।

“अगर आप नहीं कहेंगी, तो हम जाएँ?”

“नहीं राजकुमार...” इस धमकी का प्रभाव सही स्थान पर हुआ, “ऐसे न कहिए! किन्तु... किन्तु... बात ही कुछ ऐसी है कि कहते हुए हमको लज्जा आ रही है!”

“ठीक है,” हर्ष सुहासिनी के खेल में शामिल होते हुए बोला, “तो हम आँखें बंद कर लेते हैं! ... तब तो नहीं आएगी लज्जा?”

“आएगी... किन्तु तब हम आपको बता अवश्य पाएँगे!”

“ठीक है... तो लीजिए...” कह कर हर्ष ने अपनी हथेलियों से अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं, “अब बताईये...”

“जी बात दरअसल ये है कि हमारे पिता जी... उन्होंने... उन्होंने...”

“हाँ हाँ... आगे भी तो कहिए...”

“उन्होंने... आपके और... और हमारे सम्बन्ध के लिए युवरानी जी से बात करी...”

“क्या!” हर्ष ने चौंकते हुए कहा - उसको विश्वास ही नहीं हुआ, “आप सच कह रही हैं?”

“झूठ क्यों कहूँगी?” सुहासिनी ने ठुनकते हुए कहा, “आपको नहीं बताया किसी ने?”

“नहीं! किसी ने कुछ नहीं कहा!”

“ओह...” सुहासिनी की थोड़ी सी निराशा महसूस हुई, “संभव है कि युवरानी जी को किसी से इस विषय में बात करने का अवसर न मिला हो!”

“संभव है! ... अभी तक तो किसी ने भी इस बारे में मुझसे पूछा तक नहीं!” हर्ष अंदर ही अंदर खुश भी था, और डरा हुआ भी, “आपके बाबा ने कोई संकेत दिया आपको? हमारा मतलब...”

“हम आपका मतलब समझ रहे हैं...” सुहासिनी ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए कहा, “वो संतुष्ट लग रहे थे... बहुत संतुष्ट! जैसे... जैसे कि उनके ऊपर से कोई बोझ हट गया हो!”

“सच में?” हर्ष यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, “आह! हमको भी... हमारे भी ऊपर से एक बोझ हट गया! ... भाभी माँ को आपके पिता जी से पता चल गया है तो वो पिताजी महाराज से अवश्य ही बात करेंगी! ... क्योंकि अब उनको भी समझ आ गया होगा कि हमारा प्रेम गंभीर है!”

सुहासिनी के गाल इस बात से लाल हुए बिना न रह सके।

दोनों कुछ देर तक कुछ कह न सके। वैसे भी पिछले कुछ समय में दोनों की निकटता आशातीत रूप से बढ़ गई थी। सुहासिनी का रूप अब हर्ष के दिलोदिमाग पर पूरी तरह से हावी था। वो इस बात के संज्ञान से बड़ा खुश हो गया था कि इस सुन्दर सी लड़की से उसका ब्याह संभव है। एक समय था जब ऐसा सोच पाना भी संभव नहीं था - शादी ब्याह तो बराबर वालों में होती है! एक साधारण कलाकार की लड़की, और राजकुमारी! असंभव!

धनेश की आवाज़, एक बार फिर से उस निस्तब्धता को तोड़ती हुई महसूस हुई। ह

र्ष और सुहासिनी - दोनों का ही ध्यान उस ओर आकर्षित हो गया। इस बार उसकी पुकार एक दो कूजन पर ही नहीं रुका, बल्कि कुछ देर तक चलता रहा। तीख़ी आवाज़ थी, लेकिन कानों को कचोट नहीं रही थी - क्योंकि पक्षी कुछ दूर रहा होगा। दूर के ढोल सुहाने होते हैं - क्योंकि उनकी कर्कशता कानों को सुनाई नहीं देती। लिहाज़ा, अगर इस गहन गर्मी में आँखें बंद कर के लेट जाएँ, तो धनेश की पुकार सुन कर, सुख भरी नींद आ जाए।

हर्ष कुछ सोच कर धीरे से मुस्कुराया।

“ये धनेश अपने लिए साथी ढूंढ रहा है!”

“अपने लिए या अपना...” सुहासिनी ने चुहल करी।

“हाँ, वो भी हो सकता है!” हर्ष हँसते हुए बोला, “लेकिन मुझे तो अपना साथी मिल गया!”

सुहासिनी फिर से लजा गई।



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मीना के हाथ का खाना बड़ा ही स्वादिष्ट था।

लोग कहते हैं कि पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर जाता है - हाँ, पेट के नीचे से भी जाता है, लेकिन दैनिक आवश्यकता होती है पोषण की, प्रेम की, साथी की! सम्भोग दैनिक आवश्यकता नहीं है। सुस्वादु भोजन कई बातों की तरफ़ संकेत करता है - यह कि आपका साथी पाक-कला में निपुण है; यह कि उसके मन में आपके लिए अपनत्व है; और यह कि वो सुसंस्कृत है!

“ओह गॉड,” जय ने भोजन की बढ़ाई करते हुए कहा, “दिस इस बेटर दैन भाभीस फ़ूड... ऑर इवन माँ...”

“हा हा...”

नो... सीरियसली! एंड दैट इस सेइंग समथिंग...” जय सच में बहुत खुश था, “वाओ!”

“हाँ, ठीक है, ठीक है! बहुत अधिक चढ़ाने की ज़रुरत नहीं!” मीना अंदर ही अंदर खुश तो थी, लेकिन बाहर वो ख़ुशी दिखा नहीं रही थी।

“अरे यार! सच बात को ऐसे मत बोलो!”

“ठीक है... एन्जॉय देन!”

“ये कढ़ी तो बहुत स्वादिष्ट है!”

हनी, आई ऍम हैप्पी कि तुमको पसंद आई... टाइम कम था, नहीं तो बहुत कुछ खिलाती!”

“रुक जाता हूँ फिर?” जय ने खिलवाड़ करते हुए कहा, “कल दिन भर रह जाता हूँ तुम्हारे साथ ही?”

“सच में?” मीना ने सुखद आश्चर्य वाले भाव में कहा - जैसे उसकी भी मन ही मन यही इच्छा रही हो।

“हाँ! ... मुझे लगा कि तुम ही नहीं चाहती कि मैं यहाँ रहूँ!”

“ऐसा क्यों सोचा तुमने?” मीना ने बड़ी कोमलता और बड़ी सच्चाई से कहा, “... मैं तुम्हारी हूँ, तो मेरा और मुझसे जुड़ा हुआ सब कुछ तुम्हारा है... ये घर भी तुम्हारा है!”

“ओके! देन आई विल स्टे! ... लेकिन मेरे पास चेंग क्लॉथ्स नहीं हैं!”

व्ही विल डू समथिंग!”

“ओके!” जय ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कल क्लेयर, आदित्य और बच्चों को बुला लेंगे?” मीना बड़े उत्साह से बोली, “... लॉन्ग वीकेंड यहीं मनाएँगे? क्या कहते हो?”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना की मुस्कराहट बहुत चौड़ी हो गई।

‘पक्की बात’ कहना, उन दोनों का तकिया-कलाम बनता जा रहा था। जब दो लोग प्यार में पड़ते हैं, तो एक दूसरे की ऐसी छोटी छोटी, लेकिन प्यारी बातें आत्मसात कर लेते हैं, और उनको पता भी नहीं चलता। ऐसा ही जय और मीना के साथ भी हो रहा था। दोनों एक दूसरे के रंग में रंगे जा रहे थे, और दोनों को पता भी नहीं चल रहा था।

“ठीक है... तुम भैया भाभी को कॉल कर लेना!”

“अरे! मैं क्यों?”

“तुम्हारा घर है... तुम इनवाइट करो न?”

“लेकिन तुम्हारा घर भी तो है!”

“हाँ - लेकिन इनवाइट तुमको करना होगा! कॉल कर के मैं ये तो बता दूंगा कि आज रात मैं यहीं रुक रहा हूँ, लेकिन कल का प्रोग्राम तुम ही बताना!”

“ठीक है हुकुम! जो आप कहें!”

“हा हा! ... ये वर्ड बहुत समय बात सुना!”

“अच्छा जी! आप ये वर्ड सुनते आ रहे हैं?”

“हाँ... जब भी इंडिया जाता हूँ, तब यही सुनता हूँ!”

“वाह जी! आप राजवाड़े हैं?”

“हो सकते हैं!”

“हा हा हा!”

बाकी का भोजन ऐसी ही हँसी ख़ुशी में बीत गया। भोजन के बाद जय ने अपने घर फ़ोन लगाया, और बताया कि वो आज रात यहीं रुकेगा। फिर उसने बताया कि मीना भी बात करेगी। जब मीना ने फ़ोन लिया, तब क्लेयर लाइन पर थी,

“क्लेयर, हाय!”

“हाय मीना... क्या बात है? ... मेरे देवर को मुझसे अलग कर रही हो?”

“हा हा! नहीं यार! ऐसा कुछ नहीं है... कल आप सभी को यहाँ बुलाने का मन था... तो जय ने कहा कि क्यों न वो रुक जाए!” मीना ने जय की तरफ़ से एक प्यारा सा झूठ कहा।

“अरे रहने दो! ... मुझे पता है कि साहब खुद ही तुमसे दूर नहीं रह सकते! ... इट्स ओके!”

“क्लेयर, एक और बात करनी थी...”

“हाँ बोलो?”

“आप सभी कल मेरे यहाँ आईये न! ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब कुछ यहीं करेंगे! ... मेरा घर आपके जैसा महल नहीं है, लेकिन स्पेस तो है!”

“ओह मीना! आर यू श्योर?”

“हाँ! ... पक्की बात!”

“हा हा हा... तुम तो जय के जैसे बातें करने लगी!”

यह बात सुन कर मीना शरमाए बिना न रह सकी।

*
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“सुहासिनी,” हर्ष बहुत देर से बर्दाश्त कर रहा था, “बात क्या है? क्या छुपा रही हैं आप हमसे?”

यह प्रश्न हर्ष ने आज संभवतः दसवीं बार पूछा हो - लेकिन सुहासिनी थी कि हर बार केवल लाज से मुस्कुरा देती। कुछ कहती न।

उनके निकुञ्ज में हमेशा की ही तरह नीरवता फैली हुई थी। हाँ, रह रह कर, कभी कभी धनेश पक्षी की आवाज़ आ जाती - जो इस नीरवता को तोड़ती। इस गर्मी में सभी थक गए थे - क्या जीव जंतु, क्या मानुष! दूर दूर तक कोई नहीं था। लेकिन इस निकुञ्ज में कोई ख़ास बात थी। इन दोनों प्रेमियों को यहाँ गर्मी नहीं लगती थी - उल्टे, इन दोनों को यहाँ स्वर्ग जैसा आनंद मिलता था।

“अगर आप नहीं कहेंगी, तो हम जाएँ?”

“नहीं राजकुमार...” इस धमकी का प्रभाव सही स्थान पर हुआ, “ऐसे न कहिए! किन्तु... किन्तु... बात ही कुछ ऐसी है कि कहते हुए हमको लज्जा आ रही है!”

“ठीक है,” हर्ष सुहासिनी के खेल में शामिल होते हुए बोला, “तो हम आँखें बंद कर लेते हैं! ... तब तो नहीं आएगी लज्जा?”

“आएगी... किन्तु तब हम आपको बता अवश्य पाएँगे!”

“ठीक है... तो लीजिए...” कह कर हर्ष ने अपनी हथेलियों से अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं, “अब बताईये...”

“जी बात दरअसल ये है कि हमारे पिता जी... उन्होंने... उन्होंने...”

“हाँ हाँ... आगे भी तो कहिए...”

“उन्होंने... आपके और... और हमारे सम्बन्ध के लिए युवरानी जी से बात करी...”

“क्या!” हर्ष ने चौंकते हुए कहा - उसको विश्वास ही नहीं हुआ, “आप सच कह रही हैं?”

“झूठ क्यों कहूँगी?” सुहासिनी ने ठुनकते हुए कहा, “आपको नहीं बताया किसी ने?”

“नहीं! किसी ने कुछ नहीं कहा!”

“ओह...” सुहासिनी की थोड़ी सी निराशा महसूस हुई, “संभव है कि युवरानी जी को किसी से इस विषय में बात करने का अवसर न मिला हो!”

“संभव है! ... अभी तक तो किसी ने भी इस बारे में मुझसे पूछा तक नहीं!” हर्ष अंदर ही अंदर खुश भी था, और डरा हुआ भी, “आपके बाबा ने कोई संकेत दिया आपको? हमारा मतलब...”

“हम आपका मतलब समझ रहे हैं...” सुहासिनी ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए कहा, “वो संतुष्ट लग रहे थे... बहुत संतुष्ट! जैसे... जैसे कि उनके ऊपर से कोई बोझ हट गया हो!”

“सच में?” हर्ष यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, “आह! हमको भी... हमारे भी ऊपर से एक बोझ हट गया! ... भाभी माँ को आपके पिता जी से पता चल गया है तो वो पिताजी महाराज से अवश्य ही बात करेंगी! ... क्योंकि अब उनको भी समझ आ गया होगा कि हमारा प्रेम गंभीर है!”

सुहासिनी के गाल इस बात से लाल हुए बिना न रह सके।

दोनों कुछ देर तक कुछ कह न सके। वैसे भी पिछले कुछ समय में दोनों की निकटता आशातीत रूप से बढ़ गई थी। सुहासिनी का रूप अब हर्ष के दिलोदिमाग पर पूरी तरह से हावी था। वो इस बात के संज्ञान से बड़ा खुश हो गया था कि इस सुन्दर सी लड़की से उसका ब्याह संभव है। एक समय था जब ऐसा सोच पाना भी संभव नहीं था - शादी ब्याह तो बराबर वालों में होती है! एक साधारण कलाकार की लड़की, और राजकुमारी! असंभव!

धनेश की आवाज़, एक बार फिर से उस निस्तब्धता को तोड़ती हुई महसूस हुई। ह

र्ष और सुहासिनी - दोनों का ही ध्यान उस ओर आकर्षित हो गया। इस बार उसकी पुकार एक दो कूजन पर ही नहीं रुका, बल्कि कुछ देर तक चलता रहा। तीख़ी आवाज़ थी, लेकिन कानों को कचोट नहीं रही थी - क्योंकि पक्षी कुछ दूर रहा होगा। दूर के ढोल सुहाने होते हैं - क्योंकि उनकी कर्कशता कानों को सुनाई नहीं देती। लिहाज़ा, अगर इस गहन गर्मी में आँखें बंद कर के लेट जाएँ, तो धनेश की पुकार सुन कर, सुख भरी नींद आ जाए।

हर्ष कुछ सोच कर धीरे से मुस्कुराया।

“ये धनेश अपने लिए साथी ढूंढ रहा है!”

“अपने लिए या अपना...” सुहासिनी ने चुहल करी।

“हाँ, वो भी हो सकता है!” हर्ष हँसते हुए बोला, “लेकिन मुझे तो अपना साथी मिल गया!”

सुहासिनी फिर से लजा गई।



*


मीना के हाथ का खाना बड़ा ही स्वादिष्ट था।

लोग कहते हैं कि पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर जाता है - हाँ, पेट के नीचे से भी जाता है, लेकिन दैनिक आवश्यकता होती है पोषण की, प्रेम की, साथी की! सम्भोग दैनिक आवश्यकता नहीं है। सुस्वादु भोजन कई बातों की तरफ़ संकेत करता है - यह कि आपका साथी पाक-कला में निपुण है; यह कि उसके मन में आपके लिए अपनत्व है; और यह कि वो सुसंस्कृत है!

“ओह गॉड,” जय ने भोजन की बढ़ाई करते हुए कहा, “दिस इस बेटर दैन भाभीस फ़ूड... ऑर इवन माँ...”

“हा हा...”

नो... सीरियसली! एंड दैट इस सेइंग समथिंग...” जय सच में बहुत खुश था, “वाओ!”

“हाँ, ठीक है, ठीक है! बहुत अधिक चढ़ाने की ज़रुरत नहीं!” मीना अंदर ही अंदर खुश तो थी, लेकिन बाहर वो ख़ुशी दिखा नहीं रही थी।

“अरे यार! सच बात को ऐसे मत बोलो!”

“ठीक है... एन्जॉय देन!”

“ये कढ़ी तो बहुत स्वादिष्ट है!”

हनी, आई ऍम हैप्पी कि तुमको पसंद आई... टाइम कम था, नहीं तो बहुत कुछ खिलाती!”

“रुक जाता हूँ फिर?” जय ने खिलवाड़ करते हुए कहा, “कल दिन भर रह जाता हूँ तुम्हारे साथ ही?”

“सच में?” मीना ने सुखद आश्चर्य वाले भाव में कहा - जैसे उसकी भी मन ही मन यही इच्छा रही हो।

“हाँ! ... मुझे लगा कि तुम ही नहीं चाहती कि मैं यहाँ रहूँ!”

“ऐसा क्यों सोचा तुमने?” मीना ने बड़ी कोमलता और बड़ी सच्चाई से कहा, “... मैं तुम्हारी हूँ, तो मेरा और मुझसे जुड़ा हुआ सब कुछ तुम्हारा है... ये घर भी तुम्हारा है!”

“ओके! देन आई विल स्टे! ... लेकिन मेरे पास चेंग क्लॉथ्स नहीं हैं!”

व्ही विल डू समथिंग!”

“ओके!” जय ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कल क्लेयर, आदित्य और बच्चों को बुला लेंगे?” मीना बड़े उत्साह से बोली, “... लॉन्ग वीकेंड यहीं मनाएँगे? क्या कहते हो?”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना की मुस्कराहट बहुत चौड़ी हो गई।

‘पक्की बात’ कहना, उन दोनों का तकिया-कलाम बनता जा रहा था। जब दो लोग प्यार में पड़ते हैं, तो एक दूसरे की ऐसी छोटी छोटी, लेकिन प्यारी बातें आत्मसात कर लेते हैं, और उनको पता भी नहीं चलता। ऐसा ही जय और मीना के साथ भी हो रहा था। दोनों एक दूसरे के रंग में रंगे जा रहे थे, और दोनों को पता भी नहीं चल रहा था।

“ठीक है... तुम भैया भाभी को कॉल कर लेना!”

“अरे! मैं क्यों?”

“तुम्हारा घर है... तुम इनवाइट करो न?”

“लेकिन तुम्हारा घर भी तो है!”

“हाँ - लेकिन इनवाइट तुमको करना होगा! कॉल कर के मैं ये तो बता दूंगा कि आज रात मैं यहीं रुक रहा हूँ, लेकिन कल का प्रोग्राम तुम ही बताना!”

“ठीक है हुकुम! जो आप कहें!”

“हा हा! ... ये वर्ड बहुत समय बात सुना!”

“अच्छा जी! आप ये वर्ड सुनते आ रहे हैं?”

“हाँ... जब भी इंडिया जाता हूँ, तब यही सुनता हूँ!”

“वाह जी! आप राजवाड़े हैं?”

“हो सकते हैं!”

“हा हा हा!”

बाकी का भोजन ऐसी ही हँसी ख़ुशी में बीत गया। भोजन के बाद जय ने अपने घर फ़ोन लगाया, और बताया कि वो आज रात यहीं रुकेगा। फिर उसने बताया कि मीना भी बात करेगी। जब मीना ने फ़ोन लिया, तब क्लेयर लाइन पर थी,

“क्लेयर, हाय!”

“हाय मीना... क्या बात है? ... मेरे देवर को मुझसे अलग कर रही हो?”

“हा हा! नहीं यार! ऐसा कुछ नहीं है... कल आप सभी को यहाँ बुलाने का मन था... तो जय ने कहा कि क्यों न वो रुक जाए!” मीना ने जय की तरफ़ से एक प्यारा सा झूठ कहा।

“अरे रहने दो! ... मुझे पता है कि साहब खुद ही तुमसे दूर नहीं रह सकते! ... इट्स ओके!”

“क्लेयर, एक और बात करनी थी...”

“हाँ बोलो?”

“आप सभी कल मेरे यहाँ आईये न! ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब कुछ यहीं करेंगे! ... मेरा घर आपके जैसा महल नहीं है, लेकिन स्पेस तो है!”

“ओह मीना! आर यू श्योर?”

“हाँ! ... पक्की बात!”

“हा हा हा... तुम तो जय के जैसे बातें करने लगी!”

यह बात सुन कर मीना शरमाए बिना न रह सकी।

*
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 
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भाई अगर मीना वास्तव मे कढ़ी बहुत ही बढ़िया बनाती है तब तो मै इनका शैदाई हो गया , इनका बड़ा वाला प्रशंसक हो गया । क्योंकि कढ़ी मेरा सबसे फेवरेट व्यंजन है । अगर थाली मे कढ़ी हो तो तीन - चार रोटी एक्स्ट्रा खा सकता हूं । मेरे एक मारवाड़ी दोस्त की मां बहुत ही बेहतरीन कढ़ी बनाती थी । अब वो इस दुनिया मे नही है लेकिन इस कढ़ी की वजह से उनकी यादें मन मस्तिष्क से जुड़ी हुई है। उनसे बेहतर कोई यह भोजन बना ही नही सकता ।

वैसे भोजन से सम्बंधित कुछ बातें इस फोरम पर लिखा था मैने । पर याद नही है किस स्टोरी पर लिखा था ।
एक बार फिर से दोहरा रहा हूं --
दिल तक पहुंचने के सिर्फ तीन रास्ते हैं --
पहला मुझे खाने पर ले जाओ , दूसरा मेरे लिए बढ़िया खाना बनाओ , और तीसरा मेरा खाना बन जाओ । :D

शायद बहुत जल्द एक खुबसूरत पारिवारिक महफिल सजने वाली है मीना आवास मे ।

उधर सुहासिनी और जय का प्रेम धीरे धीरे परवान चढ़ते जा रहा है । और अगर इस प्रेम पर अभिभावक की सहमति प्राप्त हो जाए तो फिर कहना ही क्या !
लेकिन अचानक से आई इतनी खुशी दिल मे एक अंजाना भय भी पैदा करती है । वह भय परिवार की तरफ से आया हो सकता है या कोई कुदरती करिश्मे से ।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई। आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग।
 
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