Update #23
जय मीना के पीछे पीछे ही उसकी किचन में आ गया। किचन आधुनिक था - हाँलाकि उसके घर की किचन से छोटा था, लेकिन मीना के घर के हिसाब से उचित! सारी सुविधाएँ थीं वहाँ और बड़ा ही सुव्यवस्थित सा घर था।
सब देख कर जय को बड़ा संतोष हुआ - 'कैरियर ओरिएण्टेड वुमन है मीना, लेकिन फिर भी पूरा घर सुव्यवस्थित!'
किचन काउंटर के बगल दो बार स्टूल्स रखे हुए थे, उनमें से एक पर वो बैठ गया, और मीना चाय बनाने में व्यस्त हो गई।
“मीना?”
“हाँ?” मीना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
“कुछ अपने बारे में बताओ...”
“अरे! क्या हो गया ठाकुर साहब?” मीना ने हँसते हुए कहा, “आपको कहीं डर तो नहीं लग रहा है कि ये मेरे लिए सही लड़की है भी या नहीं!”
“हा हा! नो... नो वे! कैसी बातें करती हो! तुमसे सही लड़की कोई नहीं है मेरे लिए... कोई और हो ही नहीं सकती... लेकिन बस, क्यूरियस हूँ!”
“हा हा! ओके! ... क्या जानना चाहते हो? पूछो?”
“कुछ भी! जो भी तुम्हारा मन हो, बता दो... वैसे, तुम और तुम्हारा परिवार... कहाँ से हो इंडिया में?”
“बहादुरगढ़...”
जब जय को समझ नहीं आया कि ये कहाँ है, तो मीना ने बताना जारी रखा, “दिल्ली के पास है - एक छोटा सा शहर है! शायद ही नाम सुना हो!”
“ओह! ओके! नहीं सुना! ... मैं भी दिल्ली से हूँ... था... हूँ!”
“हा हा... थे, कि हो? एक पे रहना!”
“ओके, था! वैसे, वहाँ हमारा बंगला है... माँ वहीं रहती हैं न!”
माँ का नाम सुनते ही मीना हिचक गई।
“क्या हुआ?”
“कुछ नहीं!”
“अरे बोलो न!” जय ने समझते हुए पूछा, “... माँ को ले कर कोई चिंता है?”
मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“अरे, उनकी चिंता मत करो! ... माँ बहुत स्वीट हैं। मैंने बताया तो है... और अब तो हमारी बात भाभी ने सम्हाल ली है... वो माँ को मना लेंगी! अगर माँ को हमको ले कर कोई चिंता है भी, तो भाभी सब ठीक कर देंगी!” जय बड़े आत्मविश्वास से बोला, “... और वैसे भी, वो तुमको एक बार देख लेंगी न, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि वो तुमको पसंद न करें!”
“हम्म...! आई होप सो!” मीना ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा।
“आई नो सो! ... अच्छा, तुमको खाने में क्या पसंद है?” जय ने बात बदल दी।
“सब कुछ... लेकिन मॉडरेट अमाउंट में खाती हूँ... अधिक अधिक नहीं!”
“वो तो दिख ही रहा है!” जय ने मीना के शरीर का जायज़ा लेते हुए कहा।
मीना अदा से मुस्कुराई।
“अच्छा, तुमको हस्बैंड कैसा चाहिए?”
“अरे वाह ठाकुर साहब... कहाँ से हो... खाने में क्या पसंद है... से सीधे हस्बैंड कैसा चाहिए पर आ गए! ... गुड, क्विक जम्प!” कह कर मीना खिलखिला कर हँसने लगी।
“अरे यार बताओ न!”
जवाब में मीना जय की तरफ़ मुड़ी, और उसके दोनों गालों को अपनी हथेलियों में थाम कर उसके होंठों को चूम कर बोली, “तुम... तुम्हारे जैसा!”
“सच सच बताओ!” जय को सुन कर अच्छा लगा, फिर भी वो तसल्ली कर लेना चाहता था।
“ओह जय... सच कह रही हूँ! तुम्हारे जैसा ही साथी चाहिए था मुझे! ... तुम! तुम चाहिए थे मुझे... हाँ, तुम थोड़े ओल्डर होते, तो बेटर था, लेकिन अभी भी ठीक है!” उसने आखिरी वाक्य शरारत से कहा।
“हा हा... व्हाट इस इट विद यू एंड माय एज...” जय हँसते हुए बोला, “तुमसे छोटा हूँ, तो कोई प्रॉब्लम है?”
“नहीं! नो प्रॉब्लम... जो किस्मत में है, वो ही तो मिलेगा न!” मीना ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा, “सब कुछ चाहा हुआ तो नहीं हो सकता न!”
“अच्छा!” जय ने भी नाराज़ होने का नाटक किया, “तो जाओ, किसी बुड्ढे से कर लो शादी!”
“अरे मेरा प्यारा वुड बी हस्बैंड... मेरी बात का बुरा मान गए?” मीना उसकी नाक को चूमती हुई बोली।
उसी समय चाय में उबाल आ गया। चाय में उबाल की आवाज़ सुन कर मीना चौंक कर तेजी से चूल्हे के पास जा कर उसका नॉब बंद कर देती है। बिल्कुल ठीक समय पर।
“देखा! चाय भी नाराज़ हो गई तुम्हारी बात पर!” जय हँसते हुए बोला।
“कोई नाराज़ वाराज़ नहीं है... वो कह रही है कि मैं तैयार हूँ, और, बहुत टेस्टी हूँ...” मीना मुस्कुराती हुई बोली।
“अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू! बिना पिये कैसे जान लें?”
“हे भगवान! तुमको बहुत हिंदी आती है! इसका मतलब?”
“वो बाद में! पहले चाय पिलाओ! इतनी देर से केवल बातों से ही मन बहला रही हो!”
“अभी लो...”
मीना ने दो प्यालों में चाय छान कर पहले जय को थमाई, फिर खुद ली। दोनों ने चाय की चुस्की ली।
“कैसी बनी है?”
जय ने नाक भौं सिकोड़ते हुए ‘न’ में तेजी तेजी सर हिलाया, “ये कैसी चाय है...”
“अरे, क्या हो गया,” मीना को यकीन ही नहीं हुआ कि जय की चाय का स्वाद ऐसा ख़राब हो सकता है, क्योंकि उसकी चाय तो हमेशा की ही तरह बढ़िया स्वाद वाली थी, “इधर लाओ तो...”
मीना ने जय के प्याले से चुस्की ले कर बड़ी मासूमियत से कहा, “अच्छी तो है!”
जय ने उसके हाथों से अपना प्याला ले कर फिर से चुस्की ली, “हाँ... अब आया इसमें टेस्ट!”
“अच्छा जी... बदमाशी!” जय की शरारत मीना को समझ में आ गई।
“तुमसे नहीं, तो आखिर और किससे करूँ शरारत?”
“किसी से नहीं!” मीना ने बड़े प्यार से जय को देखा।
उसकी आँखों में उसके लिए दुनिया जहान की मोहब्बत वो साफ़ देख सकता था। जय को उस समय इस बात का बोध भी हुआ कि कितनी सुन्दर आँखें हैं मीना की! वो इनको उम्र भर देख सकता है। मीना के मन की सच्चाई उसकी आँखों और उसके चेहरे से बयाँ हो रही थी। और वो सच्चाई थी मीना के मन में उसके लिए मोहब्बत की!
दोनों अचानक से ही ख़ामोश हो गए थे - और चुप हो कर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। जय मीना का हाथ अपने हाथ में ले कर कोमलता से सहला रहा था। अचानक ही कुछ कहने सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही। कुछ देर में चाय ख़तम हो गई।
मीना बोली, “क्या खिलाऊँ डिनर में?”
“क्या आता है तुमको?”
“इतने सालों से यहाँ हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि मुझे कुछ आता नहीं!” मीना अदा से मुस्कुराई, “तुम्हारी होने वाली बीवी लगभग सर्व-गुण संपन्न है!”
“हा हा! अरे वाह! तुमको ये फ़्रेज़ मालूम है?”
“बस कुछ ही... ये उनमें से एक है!” मीना ने ईमानदारी से कहा, “बोलो न! क्या खाओगे?”
“कुछ भी खिला दो मेरी जान! हम तो आसानी से खुश हो जाते हैं!”
“ऐसे मत बोलो जय... आई वांट टू मेक यू फ़ील स्पेशल... तुम मेरे लिए सबसे स्पेशल हो! और, पहली बार घर भी आये हो, तो बिना तुम्हारी ठीक से ख़ातिरदारी किए तुमको नहीं जाने दूँगी!”
“हा हा! ... जो तुमको सबसे अच्छा आता है, वो पका दो! मेरे लिए वही स्पेशल है!”
“ठीक है! तुम आराम से बैठो... मन करे तो घर देखो... वैसे, देखने जैसा कुछ भी नहीं है! मैं बनाती हूँ कुछ ख़ास!”
मीना ने जय के गले में अपनी बाँहें डाल कर उसको दो बार चूमा, और फिर अलग हो कर डिनर की तैयारी में व्यस्त हो गई। कुछ देर तक दोनों बातें करते रहे, और मीना खाना पकाने में व्यस्त रही। खाना पकाने को ले कर उसका उत्साह देख कर जय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।
शाम में पहली बार उसने मीना की देहयष्टि को बड़ी ध्यान से देखा - उसने एक रंग-बिरंगा स्वेटर पहना हुआ था, और नीचे एक घुटनों तक लम्बा स्कर्ट। घर में हीटिंग चल रही थी, नहीं तो इन महीनों शिकागो की ठंडक बढ़ जाती थी। वैसे भी दिन भर तेज़ ठंडी हवाएँ चलती ही रहती थीं। स्वेटर ढीला ढाला था, लेकिन सुरुचिपूर्ण था - ऐसा, जिसमें लड़की अपने प्रियतम को पसंद आए।
मीना सचमुच उसको बहुत पसंद आ रही थी!
“वाइन पियोगे?” कुछ समय बाद मीना ने पूछा।
“हाँ...”
“शिराज़ या मेर्लो?”
“शिराज़...”
मीना ने मुस्कुरा कर किचन के बगल लगे सेलर से रेड वाइन की एक बोतल निकाली और दो वाइन गिलासों में बारी बारी डाला। ठंडी के मौसम के हिसाब से रेड वाइन मुफ़ीद थी।
“चियर्स,” जय ने कहा और अपने गिलास को मीना के गिलास से टुनकाया।
“चियर्स...”
“उम्म...” पहला सिप ले कर जय ने अनुमोदन में सर हिलाया, “लेकिन यार, चाय का स्वाद खराब हो गया!”
“ओह्हो!” मीना नहीं चाहती थी कि जय का कोई भी अनुभव खराब हो, “सॉरी हनी!”
“हनी?” जय ने फिर से शरारत से पूछा।
मीना के गाल शर्म से गुलाबी हो गए, “इंडियन वीमेन डू नॉट कॉल दीयर हस्बैंड्स बाई दीयर नेम्स...!”
“ओये होए... क्या बात है मेरी जान!” जय मीना के करीब आते हुए बोला, “ऐसे करोगी तो कण्ट्रोल नहीं होगा मुझे...”
“किस बात पर कण्ट्रोल नहीं होगा?” मीना ने भली भाँति जानते हुए भी पूछा।
“मेरे इरादों पर...”
मीना बनावटी चाल में इठलाती हुई जय के पास आई, और उसके गले में बाहें डालती हुई बोली, “अभी नहीं हनी! ... बट आई प्रॉमिस, कि तुमको मैं हर तरह का सुख दूँगी! यू विल नेवर बी अनसैटिस्फाइड!”
“ये सब मत बोलो... दिल में कुछ कुछ होने लगता है!”
“हा हा... आई लव यू!” कह कर मीना ने उसको चूम लिया।
“अब जल्दी से इस वाइन का भी टेस्ट बढ़िया कर दो!”
मीना ने जय के गिलास से वाइन सिप पर के उसको वापस दे दिया। जय ने सहर्ष उसकी जूठी की हुई वाइन की चुस्की ली, और बोला,
“हाँ! अब आया स्वाद!”
मीना उसकी बात पर दिल खोल कर, खिलखिला कर हँसने लगी।
जय के मन के ख़याल आया कि वो मीना को बहुत चाहता है, और उससे अधिक वो किसी और लड़की को कभी प्यार नहीं कर सकेगा।
'शी इस द वन!'
*