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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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सुहासिनी और हर्ष के प्रेम की तुलना आपने अगर धनेश पक्षी के प्रेम से की है तो यह स्वीकार करने मे हमे जरा भी हिचक नही होना चाहिए कि दोनो का प्रेम सच्चा और एक दूसरे के प्रति समर्पित है ।
धनेश पक्षी एक विवाही पक्षी होते है । नर और मादा दोनो जीवन भर एक दूसरे का साथ नही छोड़ते । संयोग वश अगर नर पक्षी की मृत्यु हो जाती है तो मादा पक्षी भी जल्द अपना शरीर त्याग देती है ।
और लगभग वही कहानी सारस पक्षी का भी है । ये पक्षी प्रेम का जीता जागता अद्भुत मिशाल है । ये इंसान की तरह काफी संवेदनशील होते है ।
दुख इसी का है लोग इन्हे ठीक से समझ ही न पाए और इनकी संख्या धीरे धीरे कम होती जा रही है ।
मुझे याद है , बचपन मे मै अक्सर गौरैया पक्षी को अपने घर पर , घर के भीतर लगे पेड़ पर अक्सर चहचहाते हुए देखा करता था । इनकी चहचहाहट से मेरी नींद टूटती थी । लेकिन बहुत दुख होता है कि अब ये पक्षी दिखाई ही नही देते ।

आपने पिछले अपडेट मे भी धनेश पक्षी का जिक्र किया था लेकिन तब उसका अर्थ नही समझ सका था । लेकिन इस बार की जिक्र ने मुझे एहसास कराया कि इनकी मौजूदगी हर्ष और सुहासिनी की वजह से है । इनका प्रेम धनेश पक्षी के प्रेम की तरह पवित्र और अमूल्य है ।

दोनो प्रेमी का इंटिमेट होना , वस्त्र विहीन होना , एक दूसरे को चुम्बन करना कहीं से भी फूहड़ नही लगता ।
बहुत खुबसूरत अपडेट avsji भाई। आउटस्टैंडिंग अपडेट।
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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सुहासिनी और हर्ष के प्रेम की तुलना आपने अगर धनेश पक्षी के प्रेम से की है तो यह स्वीकार करने मे हमे जरा भी हिचक नही होना चाहिए कि दोनो का प्रेम सच्चा और एक दूसरे के प्रति समर्पित है ।
धनेश पक्षी एक विवाही पक्षी होते है । नर और मादा दोनो जीवन भर एक दूसरे का साथ नही छोड़ते । संयोग वश अगर नर पक्षी की मृत्यु हो जाती है तो मादा पक्षी भी जल्द अपना शरीर त्याग देती है ।
और लगभग वही कहानी सारस पक्षी का भी है । ये पक्षी प्रेम का जीता जागता अद्भुत मिशाल है । ये इंसान की तरह काफी संवेदनशील होते है ।

एकदम सही कहा है संजू भाई आपने। कुछ जीव जन्तुओं की संवेदनाएँ हम मानवों के लिए भी मिसाल हैं!
धनेश, सारस पक्षियों का रूपक मैंने प्रेम की सच्ची संवेदनाओं को दर्शाने के लिए ही प्रयोग किया है।
आपको समझ में आ गई, और आशा है कि अन्य पाठकों को भी आई है! :)

दुख इसी का है लोग इन्हे ठीक से समझ ही न पाए और इनकी संख्या धीरे धीरे कम होती जा रही है ।
मुझे याद है , बचपन मे मै अक्सर गौरैया पक्षी को अपने घर पर , घर के भीतर लगे पेड़ पर अक्सर चहचहाते हुए देखा करता था । इनकी चहचहाहट से मेरी नींद टूटती थी । लेकिन बहुत दुख होता है कि अब ये पक्षी दिखाई ही नही देते ।

हमारे पैतृक घर के प्राँगणों में कई सारे घने पेड़ लगे हुए हैं - और उनमें अनगिनत पक्षी आ कर बसेरा करते हैं।
अवश्य ही शहरीकरण से पक्षियों के जीवन पर बुरा असर हुआ है, लेकिन फिर भी बहुत कुछ कर सकते हैं इनके लिए।
जब हम मुंबई में थे, और अब जब हम बैंगलोर में हैं - हमने अपनी बालकनी में bird-feeder और गमले में पौधे लगाए हैं।
इनके कारण गौरैया तो लगातार आती हैं। हमारी देखा-देखी कालोनी के अन्य लोगों ने भी शुरू कर दिया है।
हाँ, एक गड़बड़ हुई है, और वो यह कि कबूतर भी आने लगे हैं। लेकिन उनका निदान भी है। वो फिर कभी :)

आपने पिछले अपडेट मे भी धनेश पक्षी का जिक्र किया था लेकिन तब उसका अर्थ नही समझ सका था । लेकिन इस बार की जिक्र ने मुझे एहसास कराया कि इनकी मौजूदगी हर्ष और सुहासिनी की वजह से है । इनका प्रेम धनेश पक्षी के प्रेम की तरह पवित्र और अमूल्य है ।

मेरे दादाजी कहते थे कि जिस घर में अशांति होती है, वहाँ गौरिया अपना बसेरा नहीं करती। पता नहीं कितनी सच्चाई है इस बात में।
लेकिन हाँ, सकारात्मक रहने, और प्रसन्न रहने से दुनिया हसीन तो हो ही जाती है!
एक बार गाँव में किसी लड़के ने धनेश पक्षी को पत्थर मार के मार डाला था - तब दादा जी ने उस लड़के से प्रायश्चित करवाया था - पचास वृक्षारोपण करवा के।
अलग समय था वो। अब तो स्वयं से परे कोई सोच भी नहीं पाता। ख़ैर!

दोनो प्रेमी का इंटिमेट होना , वस्त्र विहीन होना , एक दूसरे को चुम्बन करना कहीं से भी फूहड़ नही लगता ।

नग्नता कहाँ फूहड़ होती है!
फूहड़ होती है विकृत सोच।

बहुत खुबसूरत अपडेट avsji भाई। आउटस्टैंडिंग अपडेट।

बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी! :)
 

park

Well-Known Member
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Update #25


धनेश पक्षी को शायद अपना साथी मिल गया था - क्योंकि अब दो दो आवाज़ें आने लगीं थीं। अचानक से ही पक्षियों की आवाज़ें तीखी हो गईं - लेकिन अभी भी उनका शोर सुन कर खराब नहीं लग रहा था। हर्ष कौतूहलवश, उचक कर निकुञ्ज के चारों तरफ देखने लगा कि शायद धनेश पक्षी दिख जाए। लेकिन कुछ नहीं दिखा। देखने में वो वृक्ष और झाड़ियाँ विरल थीं, लेकिन फिर भी आवश्यकतानुसार घनी भी!

“क्या हुआ?” सुहासिनी ने पूछा।

“कुछ नहीं... इतना शोरगुल है, फिर भी कोई पक्षी नहीं दिख रहा है!”

“इसको शोर न कहिए राजकुमार जी...”

“हा हा... जैसी राजकुमारी जी की इच्छा!”

सुहासिनी कुछ देर न जाने क्या सोच कर चुप रही, फिर आगे बोली,

“आपको पता है न राजकुमार जी? ... धनेश पक्षी उम्र भर के लिए साथ निभाते हैं!”

“अच्छा? ऐसा है क्या?”

“जी... बहुत ही कम पक्षी हैं, जो अपना पूरा जीवन केवल एक साथी के संग बिताते हैं। ... आपके पसंदीदा सारस पक्षी भी इन्ही धनेश पक्षियों जैसे ही हैं!”

“आपको हमारी पसंद का पता है!” हर्ष ने आश्चर्य से कहा।

“आपकी साथी होने का दम्भ हममें यूँ ही थोड़े ही आया है!” सुहासिनी ने बड़े घमंड से कहा।

उसकी बात सुन कर हर्ष हो बड़ा भला महसूस हुआ। हाँ, जीवनसाथी हो तो ऐसी!

“हम भी तो आप ही के साथ अपना पूरा जीवन बिता देना चाहते हैं, राजकुमारी जी!”

हर्ष ने उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा। यह एक इतना कोमल संकेत था, कि सुहासिनी अंदर ही अंदर पूरी तरह पिघल गई। पहले अपने लिए ‘राजकुमारी’ वाला सम्बोधन सुहासिनी को थोड़ा अचकचा लगता था, लेकिन अब नहीं। राजकुमार हर्ष की पत्नी के रूप में वो राजकुमारी के रूप में ही जानी जायेगी, और इस बात का संज्ञान उसको बड़ा भला लग रहा था।

“हम आपको बहुत प्रेम करेंगे...” सुहासिनी ने वचन दिया।

“हमको पता है!” हर्ष ने कहा, और सुहासिनी का एक गाल चूम लिया।

उस दिन के बाद से आज पहली बार हर्ष ने सुहासिनी को चूमा था। इसलिए दोनों के बीच चुम्बन का आदान प्रदान अभी भी अप्रत्याशित था। उसके दिल में हलचल अवश्य मच गई, लेकिन इस बार सुहासिनी घबराई नहीं। लेकिन फिर भी, लज्जा की एक कोमल, रक्तिम लालिमा उसके पूरे शरीर पर फ़ैल गई।

“सुहास...” हर्ष बोला।

“जी?”

उत्तर में हर्ष ने कुछ कहा नहीं - लेकिन उसके सुहासिनी की तरफ़ कुछ ऐसे अंदाज़ में देखा कि उसको लगा कि हर्ष उससे किसी बात की अनुमति माँग रहा है। स्त्री-सुलभ संज्ञान था, या कुछ और - उसने शर्माते हुए बड़े हौले से ‘हाँ’ में सर हिलाया। बस - एक बार! इतना संकेत बहुत था हर्ष के लिए। उसने हाथ बढ़ा कर सुहासिनी की कुर्ती के बटनों को खोलना शुरू कर दिया।

सुहासिनी का दिल फिर से तेजी से धड़कने लगा। उस दिन तो राजकुमार ने जो कुछ किया था, अपनी स्वयं की मनमर्ज़ी से किया था। लेकिन आज वो दोष उस पर नहीं लगने वाला था। आज सुहासिनी ने उसको अनुमति दे दी थी। बहुत संभव है कि सुहासिनी के मन के किसी कोने में यह इच्छा... या यूँ कह लें, कि उम्मीद दबी हुई थी, कि उस दिन की ही तरह फिर से कुछ हो!

लेकिन जब वैसा कुछ होने लगता है, तो मन में होता है कि वो कहीं छुप जाए! बेचैनी और आस के बीच की रस्साकशी बड़ी अजीब होती है। लेकिन, वो यह होने से रोकने देना नहीं चाहती थी।

कुछ ही क्षणों में सुहासिनी कमर के ऊपर से पुनः नग्न थी। उसके छोटे छोटे नारंगी के फलों के आकर के गोल-मटोल नवकिशोर स्तन पुनः हर्ष के सामने थे।

“कितने सुन्दर हैं ये...” हर्ष उनको सहलाते हुए बोल रहा था, “... कैसे न पसंद आएँ ये हमको...”

हर्ष जैसे खुद से ही बातें कर रहा था।

ऐसी बातें किस लड़की के दिल में हलचल न पैदा कर दें? सुहासिनी भी अपवाद नहीं थी। उसको शर्म आ रही थी, लेकिन उसके मन में एक गज़ब का आंदोलन भी हो रहा था! उसको लग रहा था जैसे घण्टों बीते जा रहे हों - उसका राजकुमार उसके स्तनों को बड़ी लालसा, बड़ी रुचिकर दृष्टि से देख रहा था, सहला रहा था, महसूस कर रहा था। शायद ही उसके स्तनों का कोई भी विवरण हर्ष की नज़र से बच सका हो। इतनी क़रीबी जान पहचान हो गई!

अपने मन की व्यथा वो किस से कहे?

“राजकुमार...?” अंततः वो बोली।

“हम्म?”

“अ... आप को ऐसे शरारतें करना अच्छा लगता है?”

“बहुत!” कह कर हर्ष ने सुहासिनी को चूम लिया, “... आप इतनी सुन्दर भी तो हैं... हम करें भी तो क्या करें? ”

बात तो सही थी! कमसिन, क्षीण से शरीर वाली सुहासिनी एक ख़ालिस राजस्थानी सुंदरी थी! और अपने नग्न स्वरुप में और भी सुन्दर सी लग रही थी! अप्सरा जैसी! मनभावन! कामुक!

‘कामुक!’

यह शब्द हर्ष के मस्तिष्क में अचानक ही कौंध गया, और इस बात के बोध मात्र से उसके शरीर में कम्पन होने लगा। यौवन के सहज आकर्षण से वशीभूत हर्ष ने बढ़ कर सुहासिनी को अपने आलिंगन में भर लिया। और यह भावना हर्ष तक ही सीमित नहीं थी - सुहासिनी भी, हर्ष की ही भाँति काँप रही थी। अपरिचित एहसास! डरावना भी! लेकिन ऐसा नहीं कि जिसको रोकना दोनों के लिए संभव हो!

हर्ष सुहासिनी की तरफ़ थोड़ा झुका - सुहासिनी समझ तो रही थी कि वो उसको चूमना चाहता है, लेकिन किस तरह से चूमना चाहता है - उसको इस बात का अंदाजा नहीं था। हर्ष ने अपने भैया हरिश्चन्द्र और भाभी प्रियम्बदा को उनके अंतरंग क्षणों में एक दो बार चुम्बन करते हुए देखा अवश्य था, लिहाज़ा, वो अब वही क्रिया अपनी प्रेमिका पर आज़माना चाहता था। सुहासिनी को लगा कि वो उसके गालों या माथे पर चूमेगा - लेकिन हुआ कुछ और! हर्ष के होंठ ज्यों की उसके होंठों पर स्पर्श हुए, जैसे विद्युत् की कोई तीव्र तरंग उसके शरीर में दौड़ गई!

खजुराहो के मंदिरों में युवतियों की कई मूर्तियाँ हैं - कुछेक में ऐसा दर्शाया गया है कि बिच्छू उन युवतियों की जाँघों पर काट रहा है। यह बिच्छू दरअसल है ‘काम’! हर्ष के होंठों को अपने होंठों पर स्पर्श होते महसूस होते ही सुहासिनी के शरीर का ताप किसी तीव्र ज्वर के होने के समान ही बढ़ गया। काम का ज्वार, किसी ज्वर समान ही चढ़ता है। नवोदित यौवन की मालकिन सुहासिनी भी अब काम के ताप में तप रही थी। अपरिचित आंदोलनों से उसका शरीर काँप रहा था। ऐसा कैसे होने लगता है कि आपका शरीर स्वयं आपके नियंत्रण में न रहे? न जाने कौन सी प्रणाली है, लेकिन अब सुहासिनी का अपने खुद के ऊपर से नियंत्रण समाप्त हो गया था।

दोनों का चुम्बन कुछ देर तक चला - दोनों के लिए यह बहुत ही अपरिचित एहसास था, लेकिन किसी भी कोण से खराब नहीं था। मन में अजीब सा लगा लेकिन बुरा नहीं। चुम्बन समाप्त होते होते दोनों की साँसें धौंकनी के समान चल रही थीं - जैसे एक लम्बी दूरी की दौड़ पूरी कर के आए हों दोनों।

लेकिन हर्ष आज कुछ अलग ही करने की मनोदशा में था।

जब मन में चोर होता है, तब आप कोई भी काम चोरी छुपे, सबसे बचा कर करते हैं। लेकिन हर्ष के मन में चोर नहीं था - जब से उसने सुहासिनी को देखा था, वो तब से उसको अपनी ही मान रहा था। वो उसको चोरी से प्रेम नहीं करना चाहता था। इसलिए जब उसके हाथ स्वतः ही उसके घाघरे का नाड़ा खोलने में व्यस्त हो गए, तब उसने एक बार भी ऐसा नहीं सोचा कि वो आस पास का जायज़ा ले। उसको इस बात का ध्यान तो था कि उनके निकुंज में एकांत था, उसके कारण उनको यूँ अंतरंग होने में सहूलियत थी। लेकिन वो निकुंज एक तरह से दोनों का घर था - उनका शयन कक्ष था। जिसमें दोनों एक दूसरे के साथ अकेले में मिल सकते थे।

सुहासिनी जानती थी कि विवाह के बाद यह तो होना ही है, लेकिन अभी? थोड़ा अलग तो था, लेकिन उसको ऐसा नहीं लगा कि यह नहीं होना चाहिए। राजकुमार उसके प्रेमी नहीं रह गए थे - वो उनको अपना पति कब से स्वीकार कर चुकी थी। अपने इष्टदेवता से वो कब से प्रार्थना कर के अपने और अपने राजकुमार के साथ की कामना कर चुकी थी। कम से कम तीन बार दोनों ने एक साथ मंदिर में जा कर पूजन किया, और ईश्वर से एक दूसरे को अपने अपने लिए माँग लिया था। और तो और, अब तो उनके सम्बन्ध को उसके बाबा और युवरानी जी का आशीर्वाद भी प्राप्त था! इतना सब हो जाने के बाद अब तो बस, कुछ रस्में ही बची हुई थीं!

दो चार पल ही बीतें होंगे, लेकिन दोनों को लग रहा था जैसे युग बीत गए हों!

लेकिन अब सुहासिनी अपने पूर्ण नग्न स्वरुप में अपने राजकुमार के सम्मुख थी।


*
Nice and superb update....
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #26


“जानेमन, आपने हमको रोक तो लिया है... लेकिन हमारे सोने का इंतज़ाम कहाँ है, वो तो बताईए?” जय ने ठिठोली करते हुए मीना से कहा।

“अच्छा जी,” मीना ने उसके खेल में शामिल होते हुए कहा, “... हम आपके पहलू में बैठे हैं, और आपको सोने की पड़ी है! ... इतनी बोर कंपनी है हमारी?”

“मेरी जान, आप हमारे पहलू में बैठी होतीं, तो कौन गधा सोने का सोचता... आप हमारे पहलू में नहीं बैठी हैं, इसीलिए तो नींद आ रही है!”

“हुकुम... आप और आपकी बातें! ... आइए आइए,” मीना ने भी खेल में शामिल होते हुए कहा, “चलिए... हम आपको आपके सोने का इंतज़ाम दिखा दें!”

“जी, चलिए...” कह कर जय मीना के पीछे चल दिया।

जब मीना ड्राइंग रूम में आई, तो जय को अचरज हुआ। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि मीना पर डाली।

अपने अनकहे प्रश्न का उत्तर उसको तुरंत मिल गया।

“वो देखिए... वहाँ... वो काउच दिख रहा है न,” मीना ने इशारे से दिखाते हुए कहा, “... बस, वहीं है आपके सोने का इंतज़ाम! ... आज रात वहीं आराम फरमाईये आप...”

“अरे! काउच... आउच...” जय ने पीड़ित होने का नाटक किया।

उसके इस नाटक को देख कर मीना ज़ोर से हँसने लगी, “ओह जय, कैसे हो तुम!”

और कह कर उसने जय को ज़ोर से अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अरे बताया तो है... द बेस्ट!”

द बेस्ट नहीं,” मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... बेस्टेस्ट”, और इस बार उसको चूमने की पहल उसने खुद करी।

अगले ही पल दोनों के होंठ एक जोशीले चुम्बन में जुम्बिश (कम्पन) कर रहे थे - लेकिन यह एक सुकून भरा जोश था। शांत! दोनों के दूसरे के आलिंगन में बँध कर जैसे इस दीन दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो गए थे। चुम्बन के उन क्षणों में कोई अन्य प्राणी अस्तित्व में ही नहीं था! बस वो दोनों ही थे। कोई एक मिनट तक दोनों चुपचाप एक दूसरे को चूमते रहे! चुम्बन तब टूटा, जब मीना की साँस उखड़ने लगी।

“हुकुम...” उसने गहरी साँस भरते हुए, किन्तु शरारत भरे लहज़े में कहा, “किस करने की हो रही थी... मेरी साँस निकालने की नहीं!”

“ओह सॉरी सॉरी!” जय को अपनी गलती समझ आई।

“कोई बात नहीं माय लव... आई लव किसिंग यू!” वो बोली - आखिरी के शब्द बोलते बोलते उसके गालों में लाल रंगत गहरा आई, “... आई लव यू!”

आई लव यू मोर...”

नॉट पॉसिबल...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!”

“तो फ़िर...” जय ने शरारत भरे अंदाज़ में फिर से कहा, “मेरे सोने का इंतज़ाम किधर है?”

“... मेरे पहलू में...” मीना ने जय के सीने पर अपना माथा टिकाते हुए कहा, “... और कहाँ?”

“पक्की बात?”

मीना ने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जानेमन...” जय ने अपने परिचित शरारती अंदाज़ में कहना शुरू किया, लेकिन अचानक ही गंभीर हो गया, “... आर यू श्योर माय लव?”

मीना ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“... आई ऍम श्योर अबाउट यू सिन्स द डे व्ही मेट!”

“ओह मीना... आई लव यू सो सो वैरी मच!”

“मुझसे ज़्यादा नहीं...”

“... बट आई कैन ट्राई...”

योर होल लाइफ?” मीना बोल रही थी, लेकिन उसकी आँखों के कोने में आँसू निकल आए थे।

माय दिस लाइफ एंड द नेक्स्ट...” जय ने उसकी आँखों को चूमते हुए कहा।

“ओह जय! ... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर...”

बट... लव इस मैजिक!”

एंड आई ऍम इनचैंटेड...” मीना ने बड़े प्यार से दो पल जय को देखा।

फिर उसकी बाँह थाम कर चलती हुई, बड़ी कोमलता से बोली, “कम...”

कुछ ही पलों में दोनों मीना के शयनकक्ष में थे।

जय ने देखा कि उसका कमरा भी घर के ही समान बहुत ही स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण तरीक़े से व्यवस्थित और सुसज्जित था। जिस व्यक्ति का रहन सहन स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है, वो व्यक्ति भी अक़्सर स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है। यह बात जय ने अपनी माँ से बहुत पहले से ही सीख ली थी, और अपनी भाभी के साथ रहते हुए उसको इस बात का यकीन भी हो गया था। तो मीना को भी वैसा ही अनुकूल आचरण करते देख कर वो बहुत खुश हुआ।

लवली...” उसके मुँह से मीना के रहन सहन के लिए बढ़ाई निकल ही गई।

“क्या?” मीना ने उत्सुकतावश पूछा।

“कितना साफ़ सुथरा घर है... सुन्दर भी! ... तुम्हारी तरह!”

मीना मुस्कुराई, “थैंक यू...”

“मेरा घर भी इसी तरह सुन्दर कर दो...”

आई वांट टू...” मीना ने संजीदगी से कहा, “लेकिन कभी कभी मेरा दिल बहुत घबराता है...”

बोलते बोलते उसकी आँखों के कोनों से आँसू की पतली सी लकीर बन आई।

“मीना... मेरी जान... तुम और मैं एक दूसरे के लिए बने हैं... मुझे इस बात पर हंड्रेड परसेंट से भी अधिक यकीन है! ... और... मैं यह बात बार बार कह सकता हूँ... बिना थके! ... इसलिए तुम किसी भी बात की चिंता न करो! ... आई लव यू!”

जय ने उसके आँसुओं को पोंछते हुए कहा।

“इसी बात का तो डर है जय... मैं भी तुमको बहुत चाहती हूँ! खूब... अपनी जान से भी ज़्यादा! ... इसीलिए डर लगता है कि कहीं तुमको खो न दूँ... या कुछ ऐसा न हो जाए, कि तुमको मेरे कारण कोई दुःख हो...”

“ओह मीना... मीना... कुछ नहीं होगा! जय ने कहना शुरू किया, ... क्या होगा बताऊँ?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कल मैं माँ से बात करूँगा... उनसे कहूँगा कि मुझे तुम बहुत पसंद हो, और मैं तुमसे शादी करूँगा! ... फिर माँ हम दोनों की शादी करा देंगी... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... दो तीन...”

मीना ने उसकी बात पर चौंकने की प्रतिक्रिया दे कर जय की पसली में मज़ाकिया घूँसा मारा। लेकिन वो घूँसा बस एक कोमल, प्रेम-मय स्पर्श मात्र था - जो प्रेम में, ठिठोली के जैसे किया जाता है।

“अरे! क्या हुआ?” जय ने हँसते हुए कहा, “... तो फिर तुम्ही बता दो न कि कितने बच्चे करने हैं...”

जय हमेशा ही मीना का मूड बढ़िया कर देता था, तो आज भी कुछ अलग नहीं था। जय की बातें सुन कर, मीना का मन फिर से हल्का हो गया। उसने अपने आँसुओं के बीच मुस्कुराते हुए कहा,

“जितने तुमको चाहिए...”

“आए हाय... फ़िट हो गई है कुड़ी!”

“हैं?” मीना को समझ नहीं आया कि जय का क्या मतलब था।

“कुड़ी मतलब लड़की...”

“ओह...”

“तो मैं कह रहा था कि हमको कम से कम तीन बच्चे चाहिए!”

“वो क्यों?”

“वो इसलिए मेरी जान, क्योंकि किसी ने दो से अधिक बच्चे नहीं किए अभी तक घर में... मिनिमम तीन बच्चे चाहिए... फोर विल बी आईडियल...”

“जो हुकुम... हुकुम!”

“हा हा...” जय ने हँसते हुए मीना को अपनी तरफ खींचा और अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अच्छा प्लान है न?” उसने कहा।

“बहुत अच्छा...”

मीना ने कहा और जय के आलिंगन में कुछ इस तरह से समां गई कि जैसे वो दुनिया जहान छोड़ कर बस अपने जय की ही पनाह में रह जाए। जय ही उसका घर है... जय ही उसकी दुनिया है!

कोई दो मिनट तक मीना जय की पनाह में ही दुबक कर बैठी रही - उसको जय के दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी। एक शक्तिशाली मर्दाना दिल! और उसकी संयत, नपी-तुली धड़कन! कोई घबराहट नहीं... कोई हिचकिचाहट नहीं... ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना को अपने सीने से लगा कर रखना उसके लिए रोज़मर्रा का काम हो।

‘ऐसे तो वो लोग होते हैं, जिनकी शादी हुए सालों साल बीत गए हों!’

ये ख़याल मन में आते ही मीना के होंठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गई।

उस मुस्कान को जय ने भी अपने सीने में महसूस किया।

“क्या हुआ, मेरी जान?”

मीना मुस्कुराती हुई जय के सीने से अलग हटती हुई गुनगुनाई,

हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए...”

उसके गुनगुनाने पर जय मुस्कुराया - उसको अच्छा लगा कि मीना गा भी लेती है। वैसे भी उसकी आवाज़ ऐसी थी कि वो गाना गा सकती है।

लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

“सच में?”

मीना ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय ने इस बात पर मीना की आँखों को चूम लिया।

मीना चुप हो गई।

“गाओ न, माय लव...”

“मैं दुनिया की सबसे लकी लड़की हूँ!” उसने गाने के बजाए बड़ी सहजता और ईमानदारी से कहा।

“और मैं सबसे लकी लड़का... गाओ न!”

“बस एक दो लाइनें ही आती हैं... पूरा गाना नहीं...” मीना बोली और फिर से गुनगुनाने लगी,

खुशबू चमन को छोड़ के साँसों में घुल गई...
लहरा के अपने आप जवान ज़ुल्फ़ खुल गई...”

इस लाइन पर जय ने बड़े प्यार से मीना की अलकों में अपनी उँगलियाँ उलझा दीं।

मीना मुस्कुराई,

हम अपनी दिलपसंद पनाहों में आ गए...
हम जब सिमट के आप की बाहों में आ गए...
लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

आई लव यू...” गाना ख़तम कर के मीना ने कहा।

जय मुस्कुराया, “बात हुई थी कि हम आपके पहलू में सोएँगे... लेकिन हमारी बेग़म तो बार बार हमारे पहलू में आने की बात कर रही हैं...”

“आ जाईये हमारी पहलू में... हुकुम...” मीना ने बड़ी सेक्सी अदा से अपनी बाहें फ़ैला दीं।

जय की तो मन माँगी मुराद पूरी हो गई - वो पूरे उत्साह से मीना के सीने में, उसके स्तनों के बीच अपना चेहरा घुसा कर उसके आलिंगन में समां गया। मीना के ठोस स्तनों की कोमलता को महसूस कर के उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसको स्तनों का कोई ख़ास अनुभव नहीं था - बचपन में स्तनपान करते समय जो हुआ हो, वही हुआ था। उसके बाद नहीं। कम से कम स्तनों की कोई याद ताज़ा नहीं थी। हाँ, भाभी के सीने पर सर रखने, उनके आलिंगन में उसको जो अनुभव था, बस वही था। क्लेयर के स्तन अधिक कोमल थे, लेकिन मीना के अधिक ठोस! उसको इस बोध से अच्छा लगा।

उसने स्वेटर के ऊपर से ही मीना के दोनों स्तनों को बारी बारी चूम लिया।

न कोई हिचक दिखाई, और न ही कोई शर्म!

लेकिन मीना का पूरा शरीर उन दोनों चुम्बनों के कारण सिहर गया।

“जय...” वो बस फुसफुसा सकी।

कोई विरोध नहीं था यह - बस, विस्मय भरा एक शब्द था... और वो भी उसके प्रियतम का नाम! जय ऐसी अपूर्व सुंदरी को अपनी पत्नी के रूप में पा कर गदगद था। चोरी छुपे खिलवाड़ बहुत हो चुका था - अब असली बात हो जानी चाहिए थी। उसको एक समय से मीना को नग्न देखने की चाह थी। आज की रात उस चाह को पूरा करने की रात थी।

*
 

park

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Update #26


“जानेमन, आपने हमको रोक तो लिया है... लेकिन हमारे सोने का इंतज़ाम कहाँ है, वो तो बताईए?” जय ने ठिठोली करते हुए मीना से कहा।

“अच्छा जी,” मीना ने उसके खेल में शामिल होते हुए कहा, “... हम आपके पहलू में बैठे हैं, और आपको सोने की पड़ी है! ... इतनी बोर कंपनी है हमारी?”

“मेरी जान, आप हमारे पहलू में बैठी होतीं, तो कौन गधा सोने का सोचता... आप हमारे पहलू में नहीं बैठी हैं, इसीलिए तो नींद आ रही है!”

“हुकुम... आप और आपकी बातें! ... आइए आइए,” मीना ने भी खेल में शामिल होते हुए कहा, “चलिए... हम आपको आपके सोने का इंतज़ाम दिखा दें!”

“जी, चलिए...” कह कर जय मीना के पीछे चल दिया।

जब मीना ड्राइंग रूम में आई, तो जय को अचरज हुआ। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि मीना पर डाली।

अपने अनकहे प्रश्न का उत्तर उसको तुरंत मिल गया।

“वो देखिए... वहाँ... वो काउच दिख रहा है न,” मीना ने इशारे से दिखाते हुए कहा, “... बस, वहीं है आपके सोने का इंतज़ाम! ... आज रात वहीं आराम फरमाईये आप...”

“अरे! काउच... आउच...” जय ने पीड़ित होने का नाटक किया।

उसके इस नाटक को देख कर मीना ज़ोर से हँसने लगी, “ओह जय, कैसे हो तुम!”

और कह कर उसने जय को ज़ोर से अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अरे बताया तो है... द बेस्ट!”

द बेस्ट नहीं,” मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... बेस्टेस्ट”, और इस बार उसको चूमने की पहल उसने खुद करी।

अगले ही पल दोनों के होंठ एक जोशीले चुम्बन में जुम्बिश (कम्पन) कर रहे थे - लेकिन यह एक सुकून भरा जोश था। शांत! दोनों के दूसरे के आलिंगन में बँध कर जैसे इस दीन दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो गए थे। चुम्बन के उन क्षणों में कोई अन्य प्राणी अस्तित्व में ही नहीं था! बस वो दोनों ही थे। कोई एक मिनट तक दोनों चुपचाप एक दूसरे को चूमते रहे! चुम्बन तब टूटा, जब मीना की साँस उखड़ने लगी।

“हुकुम...” उसने गहरी साँस भरते हुए, किन्तु शरारत भरे लहज़े में कहा, “किस करने की हो रही थी... मेरी साँस निकालने की नहीं!”

“ओह सॉरी सॉरी!” जय को अपनी गलती समझ आई।

“कोई बात नहीं माय लव... आई लव किसिंग यू!” वो बोली - आखिरी के शब्द बोलते बोलते उसके गालों में लाल रंगत गहरा आई, “... आई लव यू!”

आई लव यू मोर...”

नॉट पॉसिबल...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!”

“तो फ़िर...” जय ने शरारत भरे अंदाज़ में फिर से कहा, “मेरे सोने का इंतज़ाम किधर है?”

“... मेरे पहलू में...” मीना ने जय के सीने पर अपना माथा टिकाते हुए कहा, “... और कहाँ?”

“पक्की बात?”

मीना ने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जानेमन...” जय ने अपने परिचित शरारती अंदाज़ में कहना शुरू किया, लेकिन अचानक ही गंभीर हो गया, “... आर यू श्योर माय लव?”

मीना ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“... आई ऍम श्योर अबाउट यू सिन्स द डे व्ही मेट!”

“ओह मीना... आई लव यू सो सो वैरी मच!”

“मुझसे ज़्यादा नहीं...”

“... बट आई कैन ट्राई...”

योर होल लाइफ?” मीना बोल रही थी, लेकिन उसकी आँखों के कोने में आँसू निकल आए थे।

माय दिस लाइफ एंड द नेक्स्ट...” जय ने उसकी आँखों को चूमते हुए कहा।

“ओह जय! ... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर...”

बट... लव इस मैजिक!”

एंड आई ऍम इनचैंटेड...” मीना ने बड़े प्यार से दो पल जय को देखा।

फिर उसकी बाँह थाम कर चलती हुई, बड़ी कोमलता से बोली, “कम...”

कुछ ही पलों में दोनों मीना के शयनकक्ष में थे।

जय ने देखा कि उसका कमरा भी घर के ही समान बहुत ही स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण तरीक़े से व्यवस्थित और सुसज्जित था। जिस व्यक्ति का रहन सहन स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है, वो व्यक्ति भी अक़्सर स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है। यह बात जय ने अपनी माँ से बहुत पहले से ही सीख ली थी, और अपनी भाभी के साथ रहते हुए उसको इस बात का यकीन भी हो गया था। तो मीना को भी वैसा ही अनुकूल आचरण करते देख कर वो बहुत खुश हुआ।

लवली...” उसके मुँह से मीना के रहन सहन के लिए बढ़ाई निकल ही गई।

“क्या?” मीना ने उत्सुकतावश पूछा।

“कितना साफ़ सुथरा घर है... सुन्दर भी! ... तुम्हारी तरह!”

मीना मुस्कुराई, “थैंक यू...”

“मेरा घर भी इसी तरह सुन्दर कर दो...”

आई वांट टू...” मीना ने संजीदगी से कहा, “लेकिन कभी कभी मेरा दिल बहुत घबराता है...”

बोलते बोलते उसकी आँखों के कोनों से आँसू की पतली सी लकीर बन आई।

“मीना... मेरी जान... तुम और मैं एक दूसरे के लिए बने हैं... मुझे इस बात पर हंड्रेड परसेंट से भी अधिक यकीन है! ... और... मैं यह बात बार बार कह सकता हूँ... बिना थके! ... इसलिए तुम किसी भी बात की चिंता न करो! ... आई लव यू!”

जय ने उसके आँसुओं को पोंछते हुए कहा।

“इसी बात का तो डर है जय... मैं भी तुमको बहुत चाहती हूँ! खूब... अपनी जान से भी ज़्यादा! ... इसीलिए डर लगता है कि कहीं तुमको खो न दूँ... या कुछ ऐसा न हो जाए, कि तुमको मेरे कारण कोई दुःख हो...”

“ओह मीना... मीना... कुछ नहीं होगा! जय ने कहना शुरू किया, ... क्या होगा बताऊँ?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कल मैं माँ से बात करूँगा... उनसे कहूँगा कि मुझे तुम बहुत पसंद हो, और मैं तुमसे शादी करूँगा! ... फिर माँ हम दोनों की शादी करा देंगी... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... दो तीन...”

मीना ने उसकी बात पर चौंकने की प्रतिक्रिया दे कर जय की पसली में मज़ाकिया घूँसा मारा। लेकिन वो घूँसा बस एक कोमल, प्रेम-मय स्पर्श मात्र था - जो प्रेम में, ठिठोली के जैसे किया जाता है।

“अरे! क्या हुआ?” जय ने हँसते हुए कहा, “... तो फिर तुम्ही बता दो न कि कितने बच्चे करने हैं...”

जय हमेशा ही मीना का मूड बढ़िया कर देता था, तो आज भी कुछ अलग नहीं था। जय की बातें सुन कर, मीना का मन फिर से हल्का हो गया। उसने अपने आँसुओं के बीच मुस्कुराते हुए कहा,

“जितने तुमको चाहिए...”

“आए हाय... फ़िट हो गई है कुड़ी!”

“हैं?” मीना को समझ नहीं आया कि जय का क्या मतलब था।

“कुड़ी मतलब लड़की...”

“ओह...”

“तो मैं कह रहा था कि हमको कम से कम तीन बच्चे चाहिए!”

“वो क्यों?”

“वो इसलिए मेरी जान, क्योंकि किसी ने दो से अधिक बच्चे नहीं किए अभी तक घर में... मिनिमम तीन बच्चे चाहिए... फोर विल बी आईडियल...”

“जो हुकुम... हुकुम!”

“हा हा...” जय ने हँसते हुए मीना को अपनी तरफ खींचा और अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अच्छा प्लान है न?” उसने कहा।

“बहुत अच्छा...”

मीना ने कहा और जय के आलिंगन में कुछ इस तरह से समां गई कि जैसे वो दुनिया जहान छोड़ कर बस अपने जय की ही पनाह में रह जाए। जय ही उसका घर है... जय ही उसकी दुनिया है!

कोई दो मिनट तक मीना जय की पनाह में ही दुबक कर बैठी रही - उसको जय के दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी। एक शक्तिशाली मर्दाना दिल! और उसकी संयत, नपी-तुली धड़कन! कोई घबराहट नहीं... कोई हिचकिचाहट नहीं... ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना को अपने सीने से लगा कर रखना उसके लिए रोज़मर्रा का काम हो।

‘ऐसे तो वो लोग होते हैं, जिनकी शादी हुए सालों साल बीत गए हों!’

ये ख़याल मन में आते ही मीना के होंठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गई।

उस मुस्कान को जय ने भी अपने सीने में महसूस किया।

“क्या हुआ, मेरी जान?”

मीना मुस्कुराती हुई जय के सीने से अलग हटती हुई गुनगुनाई,

हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए...”

उसके गुनगुनाने पर जय मुस्कुराया - उसको अच्छा लगा कि मीना गा भी लेती है। वैसे भी उसकी आवाज़ ऐसी थी कि वो गाना गा सकती है।

लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

“सच में?”

मीना ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय ने इस बात पर मीना की आँखों को चूम लिया।

मीना चुप हो गई।

“गाओ न, माय लव...”

“मैं दुनिया की सबसे लकी लड़की हूँ!” उसने गाने के बजाए बड़ी सहजता और ईमानदारी से कहा।

“और मैं सबसे लकी लड़का... गाओ न!”

“बस एक दो लाइनें ही आती हैं... पूरा गाना नहीं...” मीना बोली और फिर से गुनगुनाने लगी,

खुशबू चमन को छोड़ के साँसों में घुल गई...
लहरा के अपने आप जवान ज़ुल्फ़ खुल गई...”

इस लाइन पर जय ने बड़े प्यार से मीना की अलकों में अपनी उँगलियाँ उलझा दीं।

मीना मुस्कुराई,

हम अपनी दिलपसंद पनाहों में आ गए...
हम जब सिमट के आप की बाहों में आ गए...
लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

आई लव यू...” गाना ख़तम कर के मीना ने कहा।

जय मुस्कुराया, “बात हुई थी कि हम आपके पहलू में सोएँगे... लेकिन हमारी बेग़म तो बार बार हमारे पहलू में आने की बात कर रही हैं...”

“आ जाईये हमारी पहलू में... हुकुम...” मीना ने बड़ी सेक्सी अदा से अपनी बाहें फ़ैला दीं।

जय की तो मन माँगी मुराद पूरी हो गई - वो पूरे उत्साह से मीना के सीने में, उसके स्तनों के बीच अपना चेहरा घुसा कर उसके आलिंगन में समां गया। मीना के ठोस स्तनों की कोमलता को महसूस कर के उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसको स्तनों का कोई ख़ास अनुभव नहीं था - बचपन में स्तनपान करते समय जो हुआ हो, वही हुआ था। उसके बाद नहीं। कम से कम स्तनों की कोई याद ताज़ा नहीं थी। हाँ, भाभी के सीने पर सर रखने, उनके आलिंगन में उसको जो अनुभव था, बस वही था। क्लेयर के स्तन अधिक कोमल थे, लेकिन मीना के अधिक ठोस! उसको इस बोध से अच्छा लगा।

उसने स्वेटर के ऊपर से ही मीना के दोनों स्तनों को बारी बारी चूम लिया।

न कोई हिचक दिखाई, और न ही कोई शर्म!

लेकिन मीना का पूरा शरीर उन दोनों चुम्बनों के कारण सिहर गया।

“जय...” वो बस फुसफुसा सकी।

कोई विरोध नहीं था यह - बस, विस्मय भरा एक शब्द था... और वो भी उसके प्रियतम का नाम! जय ऐसी अपूर्व सुंदरी को अपनी पत्नी के रूप में पा कर गदगद था। चोरी छुपे खिलवाड़ बहुत हो चुका था - अब असली बात हो जानी चाहिए थी। उसको एक समय से मीना को नग्न देखने की चाह थी। आज की रात उस चाह को पूरा करने की रात थी।

*
Nice and superb update....
 

parkas

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Update #26


“जानेमन, आपने हमको रोक तो लिया है... लेकिन हमारे सोने का इंतज़ाम कहाँ है, वो तो बताईए?” जय ने ठिठोली करते हुए मीना से कहा।

“अच्छा जी,” मीना ने उसके खेल में शामिल होते हुए कहा, “... हम आपके पहलू में बैठे हैं, और आपको सोने की पड़ी है! ... इतनी बोर कंपनी है हमारी?”

“मेरी जान, आप हमारे पहलू में बैठी होतीं, तो कौन गधा सोने का सोचता... आप हमारे पहलू में नहीं बैठी हैं, इसीलिए तो नींद आ रही है!”

“हुकुम... आप और आपकी बातें! ... आइए आइए,” मीना ने भी खेल में शामिल होते हुए कहा, “चलिए... हम आपको आपके सोने का इंतज़ाम दिखा दें!”

“जी, चलिए...” कह कर जय मीना के पीछे चल दिया।

जब मीना ड्राइंग रूम में आई, तो जय को अचरज हुआ। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि मीना पर डाली।

अपने अनकहे प्रश्न का उत्तर उसको तुरंत मिल गया।

“वो देखिए... वहाँ... वो काउच दिख रहा है न,” मीना ने इशारे से दिखाते हुए कहा, “... बस, वहीं है आपके सोने का इंतज़ाम! ... आज रात वहीं आराम फरमाईये आप...”

“अरे! काउच... आउच...” जय ने पीड़ित होने का नाटक किया।

उसके इस नाटक को देख कर मीना ज़ोर से हँसने लगी, “ओह जय, कैसे हो तुम!”

और कह कर उसने जय को ज़ोर से अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अरे बताया तो है... द बेस्ट!”

द बेस्ट नहीं,” मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... बेस्टेस्ट”, और इस बार उसको चूमने की पहल उसने खुद करी।

अगले ही पल दोनों के होंठ एक जोशीले चुम्बन में जुम्बिश (कम्पन) कर रहे थे - लेकिन यह एक सुकून भरा जोश था। शांत! दोनों के दूसरे के आलिंगन में बँध कर जैसे इस दीन दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो गए थे। चुम्बन के उन क्षणों में कोई अन्य प्राणी अस्तित्व में ही नहीं था! बस वो दोनों ही थे। कोई एक मिनट तक दोनों चुपचाप एक दूसरे को चूमते रहे! चुम्बन तब टूटा, जब मीना की साँस उखड़ने लगी।

“हुकुम...” उसने गहरी साँस भरते हुए, किन्तु शरारत भरे लहज़े में कहा, “किस करने की हो रही थी... मेरी साँस निकालने की नहीं!”

“ओह सॉरी सॉरी!” जय को अपनी गलती समझ आई।

“कोई बात नहीं माय लव... आई लव किसिंग यू!” वो बोली - आखिरी के शब्द बोलते बोलते उसके गालों में लाल रंगत गहरा आई, “... आई लव यू!”

आई लव यू मोर...”

नॉट पॉसिबल...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!”

“तो फ़िर...” जय ने शरारत भरे अंदाज़ में फिर से कहा, “मेरे सोने का इंतज़ाम किधर है?”

“... मेरे पहलू में...” मीना ने जय के सीने पर अपना माथा टिकाते हुए कहा, “... और कहाँ?”

“पक्की बात?”

मीना ने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जानेमन...” जय ने अपने परिचित शरारती अंदाज़ में कहना शुरू किया, लेकिन अचानक ही गंभीर हो गया, “... आर यू श्योर माय लव?”

मीना ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“... आई ऍम श्योर अबाउट यू सिन्स द डे व्ही मेट!”

“ओह मीना... आई लव यू सो सो वैरी मच!”

“मुझसे ज़्यादा नहीं...”

“... बट आई कैन ट्राई...”

योर होल लाइफ?” मीना बोल रही थी, लेकिन उसकी आँखों के कोने में आँसू निकल आए थे।

माय दिस लाइफ एंड द नेक्स्ट...” जय ने उसकी आँखों को चूमते हुए कहा।

“ओह जय! ... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर...”

बट... लव इस मैजिक!”

एंड आई ऍम इनचैंटेड...” मीना ने बड़े प्यार से दो पल जय को देखा।

फिर उसकी बाँह थाम कर चलती हुई, बड़ी कोमलता से बोली, “कम...”

कुछ ही पलों में दोनों मीना के शयनकक्ष में थे।

जय ने देखा कि उसका कमरा भी घर के ही समान बहुत ही स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण तरीक़े से व्यवस्थित और सुसज्जित था। जिस व्यक्ति का रहन सहन स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है, वो व्यक्ति भी अक़्सर स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है। यह बात जय ने अपनी माँ से बहुत पहले से ही सीख ली थी, और अपनी भाभी के साथ रहते हुए उसको इस बात का यकीन भी हो गया था। तो मीना को भी वैसा ही अनुकूल आचरण करते देख कर वो बहुत खुश हुआ।

लवली...” उसके मुँह से मीना के रहन सहन के लिए बढ़ाई निकल ही गई।

“क्या?” मीना ने उत्सुकतावश पूछा।

“कितना साफ़ सुथरा घर है... सुन्दर भी! ... तुम्हारी तरह!”

मीना मुस्कुराई, “थैंक यू...”

“मेरा घर भी इसी तरह सुन्दर कर दो...”

आई वांट टू...” मीना ने संजीदगी से कहा, “लेकिन कभी कभी मेरा दिल बहुत घबराता है...”

बोलते बोलते उसकी आँखों के कोनों से आँसू की पतली सी लकीर बन आई।

“मीना... मेरी जान... तुम और मैं एक दूसरे के लिए बने हैं... मुझे इस बात पर हंड्रेड परसेंट से भी अधिक यकीन है! ... और... मैं यह बात बार बार कह सकता हूँ... बिना थके! ... इसलिए तुम किसी भी बात की चिंता न करो! ... आई लव यू!”

जय ने उसके आँसुओं को पोंछते हुए कहा।

“इसी बात का तो डर है जय... मैं भी तुमको बहुत चाहती हूँ! खूब... अपनी जान से भी ज़्यादा! ... इसीलिए डर लगता है कि कहीं तुमको खो न दूँ... या कुछ ऐसा न हो जाए, कि तुमको मेरे कारण कोई दुःख हो...”

“ओह मीना... मीना... कुछ नहीं होगा! जय ने कहना शुरू किया, ... क्या होगा बताऊँ?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कल मैं माँ से बात करूँगा... उनसे कहूँगा कि मुझे तुम बहुत पसंद हो, और मैं तुमसे शादी करूँगा! ... फिर माँ हम दोनों की शादी करा देंगी... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... दो तीन...”

मीना ने उसकी बात पर चौंकने की प्रतिक्रिया दे कर जय की पसली में मज़ाकिया घूँसा मारा। लेकिन वो घूँसा बस एक कोमल, प्रेम-मय स्पर्श मात्र था - जो प्रेम में, ठिठोली के जैसे किया जाता है।

“अरे! क्या हुआ?” जय ने हँसते हुए कहा, “... तो फिर तुम्ही बता दो न कि कितने बच्चे करने हैं...”

जय हमेशा ही मीना का मूड बढ़िया कर देता था, तो आज भी कुछ अलग नहीं था। जय की बातें सुन कर, मीना का मन फिर से हल्का हो गया। उसने अपने आँसुओं के बीच मुस्कुराते हुए कहा,

“जितने तुमको चाहिए...”

“आए हाय... फ़िट हो गई है कुड़ी!”

“हैं?” मीना को समझ नहीं आया कि जय का क्या मतलब था।

“कुड़ी मतलब लड़की...”

“ओह...”

“तो मैं कह रहा था कि हमको कम से कम तीन बच्चे चाहिए!”

“वो क्यों?”

“वो इसलिए मेरी जान, क्योंकि किसी ने दो से अधिक बच्चे नहीं किए अभी तक घर में... मिनिमम तीन बच्चे चाहिए... फोर विल बी आईडियल...”

“जो हुकुम... हुकुम!”

“हा हा...” जय ने हँसते हुए मीना को अपनी तरफ खींचा और अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अच्छा प्लान है न?” उसने कहा।

“बहुत अच्छा...”

मीना ने कहा और जय के आलिंगन में कुछ इस तरह से समां गई कि जैसे वो दुनिया जहान छोड़ कर बस अपने जय की ही पनाह में रह जाए। जय ही उसका घर है... जय ही उसकी दुनिया है!

कोई दो मिनट तक मीना जय की पनाह में ही दुबक कर बैठी रही - उसको जय के दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी। एक शक्तिशाली मर्दाना दिल! और उसकी संयत, नपी-तुली धड़कन! कोई घबराहट नहीं... कोई हिचकिचाहट नहीं... ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना को अपने सीने से लगा कर रखना उसके लिए रोज़मर्रा का काम हो।

‘ऐसे तो वो लोग होते हैं, जिनकी शादी हुए सालों साल बीत गए हों!’

ये ख़याल मन में आते ही मीना के होंठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गई।

उस मुस्कान को जय ने भी अपने सीने में महसूस किया।

“क्या हुआ, मेरी जान?”

मीना मुस्कुराती हुई जय के सीने से अलग हटती हुई गुनगुनाई,

हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए...”

उसके गुनगुनाने पर जय मुस्कुराया - उसको अच्छा लगा कि मीना गा भी लेती है। वैसे भी उसकी आवाज़ ऐसी थी कि वो गाना गा सकती है।

लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

“सच में?”

मीना ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय ने इस बात पर मीना की आँखों को चूम लिया।

मीना चुप हो गई।

“गाओ न, माय लव...”

“मैं दुनिया की सबसे लकी लड़की हूँ!” उसने गाने के बजाए बड़ी सहजता और ईमानदारी से कहा।

“और मैं सबसे लकी लड़का... गाओ न!”

“बस एक दो लाइनें ही आती हैं... पूरा गाना नहीं...” मीना बोली और फिर से गुनगुनाने लगी,

खुशबू चमन को छोड़ के साँसों में घुल गई...
लहरा के अपने आप जवान ज़ुल्फ़ खुल गई...”

इस लाइन पर जय ने बड़े प्यार से मीना की अलकों में अपनी उँगलियाँ उलझा दीं।

मीना मुस्कुराई,

हम अपनी दिलपसंद पनाहों में आ गए...
हम जब सिमट के आप की बाहों में आ गए...
लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

आई लव यू...” गाना ख़तम कर के मीना ने कहा।

जय मुस्कुराया, “बात हुई थी कि हम आपके पहलू में सोएँगे... लेकिन हमारी बेग़म तो बार बार हमारे पहलू में आने की बात कर रही हैं...”

“आ जाईये हमारी पहलू में... हुकुम...” मीना ने बड़ी सेक्सी अदा से अपनी बाहें फ़ैला दीं।

जय की तो मन माँगी मुराद पूरी हो गई - वो पूरे उत्साह से मीना के सीने में, उसके स्तनों के बीच अपना चेहरा घुसा कर उसके आलिंगन में समां गया। मीना के ठोस स्तनों की कोमलता को महसूस कर के उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसको स्तनों का कोई ख़ास अनुभव नहीं था - बचपन में स्तनपान करते समय जो हुआ हो, वही हुआ था। उसके बाद नहीं। कम से कम स्तनों की कोई याद ताज़ा नहीं थी। हाँ, भाभी के सीने पर सर रखने, उनके आलिंगन में उसको जो अनुभव था, बस वही था। क्लेयर के स्तन अधिक कोमल थे, लेकिन मीना के अधिक ठोस! उसको इस बोध से अच्छा लगा।

उसने स्वेटर के ऊपर से ही मीना के दोनों स्तनों को बारी बारी चूम लिया।

न कोई हिचक दिखाई, और न ही कोई शर्म!

लेकिन मीना का पूरा शरीर उन दोनों चुम्बनों के कारण सिहर गया।

“जय...” वो बस फुसफुसा सकी।

कोई विरोध नहीं था यह - बस, विस्मय भरा एक शब्द था... और वो भी उसके प्रियतम का नाम! जय ऐसी अपूर्व सुंदरी को अपनी पत्नी के रूप में पा कर गदगद था। चोरी छुपे खिलवाड़ बहुत हो चुका था - अब असली बात हो जानी चाहिए थी। उसको एक समय से मीना को नग्न देखने की चाह थी। आज की रात उस चाह को पूरा करने की रात थी।

*
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and excellent update....
 

Ajju Landwalia

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159
Update #26


“जानेमन, आपने हमको रोक तो लिया है... लेकिन हमारे सोने का इंतज़ाम कहाँ है, वो तो बताईए?” जय ने ठिठोली करते हुए मीना से कहा।

“अच्छा जी,” मीना ने उसके खेल में शामिल होते हुए कहा, “... हम आपके पहलू में बैठे हैं, और आपको सोने की पड़ी है! ... इतनी बोर कंपनी है हमारी?”

“मेरी जान, आप हमारे पहलू में बैठी होतीं, तो कौन गधा सोने का सोचता... आप हमारे पहलू में नहीं बैठी हैं, इसीलिए तो नींद आ रही है!”

“हुकुम... आप और आपकी बातें! ... आइए आइए,” मीना ने भी खेल में शामिल होते हुए कहा, “चलिए... हम आपको आपके सोने का इंतज़ाम दिखा दें!”

“जी, चलिए...” कह कर जय मीना के पीछे चल दिया।

जब मीना ड्राइंग रूम में आई, तो जय को अचरज हुआ। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि मीना पर डाली।

अपने अनकहे प्रश्न का उत्तर उसको तुरंत मिल गया।

“वो देखिए... वहाँ... वो काउच दिख रहा है न,” मीना ने इशारे से दिखाते हुए कहा, “... बस, वहीं है आपके सोने का इंतज़ाम! ... आज रात वहीं आराम फरमाईये आप...”

“अरे! काउच... आउच...” जय ने पीड़ित होने का नाटक किया।

उसके इस नाटक को देख कर मीना ज़ोर से हँसने लगी, “ओह जय, कैसे हो तुम!”

और कह कर उसने जय को ज़ोर से अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अरे बताया तो है... द बेस्ट!”

द बेस्ट नहीं,” मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... बेस्टेस्ट”, और इस बार उसको चूमने की पहल उसने खुद करी।

अगले ही पल दोनों के होंठ एक जोशीले चुम्बन में जुम्बिश (कम्पन) कर रहे थे - लेकिन यह एक सुकून भरा जोश था। शांत! दोनों के दूसरे के आलिंगन में बँध कर जैसे इस दीन दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो गए थे। चुम्बन के उन क्षणों में कोई अन्य प्राणी अस्तित्व में ही नहीं था! बस वो दोनों ही थे। कोई एक मिनट तक दोनों चुपचाप एक दूसरे को चूमते रहे! चुम्बन तब टूटा, जब मीना की साँस उखड़ने लगी।

“हुकुम...” उसने गहरी साँस भरते हुए, किन्तु शरारत भरे लहज़े में कहा, “किस करने की हो रही थी... मेरी साँस निकालने की नहीं!”

“ओह सॉरी सॉरी!” जय को अपनी गलती समझ आई।

“कोई बात नहीं माय लव... आई लव किसिंग यू!” वो बोली - आखिरी के शब्द बोलते बोलते उसके गालों में लाल रंगत गहरा आई, “... आई लव यू!”

आई लव यू मोर...”

नॉट पॉसिबल...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!”

“तो फ़िर...” जय ने शरारत भरे अंदाज़ में फिर से कहा, “मेरे सोने का इंतज़ाम किधर है?”

“... मेरे पहलू में...” मीना ने जय के सीने पर अपना माथा टिकाते हुए कहा, “... और कहाँ?”

“पक्की बात?”

मीना ने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जानेमन...” जय ने अपने परिचित शरारती अंदाज़ में कहना शुरू किया, लेकिन अचानक ही गंभीर हो गया, “... आर यू श्योर माय लव?”

मीना ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“... आई ऍम श्योर अबाउट यू सिन्स द डे व्ही मेट!”

“ओह मीना... आई लव यू सो सो वैरी मच!”

“मुझसे ज़्यादा नहीं...”

“... बट आई कैन ट्राई...”

योर होल लाइफ?” मीना बोल रही थी, लेकिन उसकी आँखों के कोने में आँसू निकल आए थे।

माय दिस लाइफ एंड द नेक्स्ट...” जय ने उसकी आँखों को चूमते हुए कहा।

“ओह जय! ... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर...”

बट... लव इस मैजिक!”

एंड आई ऍम इनचैंटेड...” मीना ने बड़े प्यार से दो पल जय को देखा।

फिर उसकी बाँह थाम कर चलती हुई, बड़ी कोमलता से बोली, “कम...”

कुछ ही पलों में दोनों मीना के शयनकक्ष में थे।

जय ने देखा कि उसका कमरा भी घर के ही समान बहुत ही स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण तरीक़े से व्यवस्थित और सुसज्जित था। जिस व्यक्ति का रहन सहन स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है, वो व्यक्ति भी अक़्सर स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है। यह बात जय ने अपनी माँ से बहुत पहले से ही सीख ली थी, और अपनी भाभी के साथ रहते हुए उसको इस बात का यकीन भी हो गया था। तो मीना को भी वैसा ही अनुकूल आचरण करते देख कर वो बहुत खुश हुआ।

लवली...” उसके मुँह से मीना के रहन सहन के लिए बढ़ाई निकल ही गई।

“क्या?” मीना ने उत्सुकतावश पूछा।

“कितना साफ़ सुथरा घर है... सुन्दर भी! ... तुम्हारी तरह!”

मीना मुस्कुराई, “थैंक यू...”

“मेरा घर भी इसी तरह सुन्दर कर दो...”

आई वांट टू...” मीना ने संजीदगी से कहा, “लेकिन कभी कभी मेरा दिल बहुत घबराता है...”

बोलते बोलते उसकी आँखों के कोनों से आँसू की पतली सी लकीर बन आई।

“मीना... मेरी जान... तुम और मैं एक दूसरे के लिए बने हैं... मुझे इस बात पर हंड्रेड परसेंट से भी अधिक यकीन है! ... और... मैं यह बात बार बार कह सकता हूँ... बिना थके! ... इसलिए तुम किसी भी बात की चिंता न करो! ... आई लव यू!”

जय ने उसके आँसुओं को पोंछते हुए कहा।

“इसी बात का तो डर है जय... मैं भी तुमको बहुत चाहती हूँ! खूब... अपनी जान से भी ज़्यादा! ... इसीलिए डर लगता है कि कहीं तुमको खो न दूँ... या कुछ ऐसा न हो जाए, कि तुमको मेरे कारण कोई दुःख हो...”

“ओह मीना... मीना... कुछ नहीं होगा! जय ने कहना शुरू किया, ... क्या होगा बताऊँ?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कल मैं माँ से बात करूँगा... उनसे कहूँगा कि मुझे तुम बहुत पसंद हो, और मैं तुमसे शादी करूँगा! ... फिर माँ हम दोनों की शादी करा देंगी... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... दो तीन...”

मीना ने उसकी बात पर चौंकने की प्रतिक्रिया दे कर जय की पसली में मज़ाकिया घूँसा मारा। लेकिन वो घूँसा बस एक कोमल, प्रेम-मय स्पर्श मात्र था - जो प्रेम में, ठिठोली के जैसे किया जाता है।

“अरे! क्या हुआ?” जय ने हँसते हुए कहा, “... तो फिर तुम्ही बता दो न कि कितने बच्चे करने हैं...”

जय हमेशा ही मीना का मूड बढ़िया कर देता था, तो आज भी कुछ अलग नहीं था। जय की बातें सुन कर, मीना का मन फिर से हल्का हो गया। उसने अपने आँसुओं के बीच मुस्कुराते हुए कहा,

“जितने तुमको चाहिए...”

“आए हाय... फ़िट हो गई है कुड़ी!”

“हैं?” मीना को समझ नहीं आया कि जय का क्या मतलब था।

“कुड़ी मतलब लड़की...”

“ओह...”

“तो मैं कह रहा था कि हमको कम से कम तीन बच्चे चाहिए!”

“वो क्यों?”

“वो इसलिए मेरी जान, क्योंकि किसी ने दो से अधिक बच्चे नहीं किए अभी तक घर में... मिनिमम तीन बच्चे चाहिए... फोर विल बी आईडियल...”

“जो हुकुम... हुकुम!”

“हा हा...” जय ने हँसते हुए मीना को अपनी तरफ खींचा और अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अच्छा प्लान है न?” उसने कहा।

“बहुत अच्छा...”

मीना ने कहा और जय के आलिंगन में कुछ इस तरह से समां गई कि जैसे वो दुनिया जहान छोड़ कर बस अपने जय की ही पनाह में रह जाए। जय ही उसका घर है... जय ही उसकी दुनिया है!

कोई दो मिनट तक मीना जय की पनाह में ही दुबक कर बैठी रही - उसको जय के दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी। एक शक्तिशाली मर्दाना दिल! और उसकी संयत, नपी-तुली धड़कन! कोई घबराहट नहीं... कोई हिचकिचाहट नहीं... ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना को अपने सीने से लगा कर रखना उसके लिए रोज़मर्रा का काम हो।

‘ऐसे तो वो लोग होते हैं, जिनकी शादी हुए सालों साल बीत गए हों!’

ये ख़याल मन में आते ही मीना के होंठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गई।

उस मुस्कान को जय ने भी अपने सीने में महसूस किया।

“क्या हुआ, मेरी जान?”

मीना मुस्कुराती हुई जय के सीने से अलग हटती हुई गुनगुनाई,

हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए...”

उसके गुनगुनाने पर जय मुस्कुराया - उसको अच्छा लगा कि मीना गा भी लेती है। वैसे भी उसकी आवाज़ ऐसी थी कि वो गाना गा सकती है।

लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

“सच में?”

मीना ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय ने इस बात पर मीना की आँखों को चूम लिया।

मीना चुप हो गई।

“गाओ न, माय लव...”

“मैं दुनिया की सबसे लकी लड़की हूँ!” उसने गाने के बजाए बड़ी सहजता और ईमानदारी से कहा।

“और मैं सबसे लकी लड़का... गाओ न!”

“बस एक दो लाइनें ही आती हैं... पूरा गाना नहीं...” मीना बोली और फिर से गुनगुनाने लगी,

खुशबू चमन को छोड़ के साँसों में घुल गई...
लहरा के अपने आप जवान ज़ुल्फ़ खुल गई...”

इस लाइन पर जय ने बड़े प्यार से मीना की अलकों में अपनी उँगलियाँ उलझा दीं।

मीना मुस्कुराई,

हम अपनी दिलपसंद पनाहों में आ गए...
हम जब सिमट के आप की बाहों में आ गए...
लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

आई लव यू...” गाना ख़तम कर के मीना ने कहा।

जय मुस्कुराया, “बात हुई थी कि हम आपके पहलू में सोएँगे... लेकिन हमारी बेग़म तो बार बार हमारे पहलू में आने की बात कर रही हैं...”

“आ जाईये हमारी पहलू में... हुकुम...” मीना ने बड़ी सेक्सी अदा से अपनी बाहें फ़ैला दीं।

जय की तो मन माँगी मुराद पूरी हो गई - वो पूरे उत्साह से मीना के सीने में, उसके स्तनों के बीच अपना चेहरा घुसा कर उसके आलिंगन में समां गया। मीना के ठोस स्तनों की कोमलता को महसूस कर के उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसको स्तनों का कोई ख़ास अनुभव नहीं था - बचपन में स्तनपान करते समय जो हुआ हो, वही हुआ था। उसके बाद नहीं। कम से कम स्तनों की कोई याद ताज़ा नहीं थी। हाँ, भाभी के सीने पर सर रखने, उनके आलिंगन में उसको जो अनुभव था, बस वही था। क्लेयर के स्तन अधिक कोमल थे, लेकिन मीना के अधिक ठोस! उसको इस बोध से अच्छा लगा।

उसने स्वेटर के ऊपर से ही मीना के दोनों स्तनों को बारी बारी चूम लिया।

न कोई हिचक दिखाई, और न ही कोई शर्म!

लेकिन मीना का पूरा शरीर उन दोनों चुम्बनों के कारण सिहर गया।

“जय...” वो बस फुसफुसा सकी।

कोई विरोध नहीं था यह - बस, विस्मय भरा एक शब्द था... और वो भी उसके प्रियतम का नाम! जय ऐसी अपूर्व सुंदरी को अपनी पत्नी के रूप में पा कर गदगद था। चोरी छुपे खिलवाड़ बहुत हो चुका था - अब असली बात हो जानी चाहिए थी। उसको एक समय से मीना को नग्न देखने की चाह थी। आज की रात उस चाह को पूरा करने की रात थी।

*


Gazab ki romantic update he avsji Bhai,

Shabdo ka adhbhud citran kiya he aapne...............simply awesome

Keep posting Bhai
 

kas1709

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Update #26


“जानेमन, आपने हमको रोक तो लिया है... लेकिन हमारे सोने का इंतज़ाम कहाँ है, वो तो बताईए?” जय ने ठिठोली करते हुए मीना से कहा।

“अच्छा जी,” मीना ने उसके खेल में शामिल होते हुए कहा, “... हम आपके पहलू में बैठे हैं, और आपको सोने की पड़ी है! ... इतनी बोर कंपनी है हमारी?”

“मेरी जान, आप हमारे पहलू में बैठी होतीं, तो कौन गधा सोने का सोचता... आप हमारे पहलू में नहीं बैठी हैं, इसीलिए तो नींद आ रही है!”

“हुकुम... आप और आपकी बातें! ... आइए आइए,” मीना ने भी खेल में शामिल होते हुए कहा, “चलिए... हम आपको आपके सोने का इंतज़ाम दिखा दें!”

“जी, चलिए...” कह कर जय मीना के पीछे चल दिया।

जब मीना ड्राइंग रूम में आई, तो जय को अचरज हुआ। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि मीना पर डाली।

अपने अनकहे प्रश्न का उत्तर उसको तुरंत मिल गया।

“वो देखिए... वहाँ... वो काउच दिख रहा है न,” मीना ने इशारे से दिखाते हुए कहा, “... बस, वहीं है आपके सोने का इंतज़ाम! ... आज रात वहीं आराम फरमाईये आप...”

“अरे! काउच... आउच...” जय ने पीड़ित होने का नाटक किया।

उसके इस नाटक को देख कर मीना ज़ोर से हँसने लगी, “ओह जय, कैसे हो तुम!”

और कह कर उसने जय को ज़ोर से अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अरे बताया तो है... द बेस्ट!”

द बेस्ट नहीं,” मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... बेस्टेस्ट”, और इस बार उसको चूमने की पहल उसने खुद करी।

अगले ही पल दोनों के होंठ एक जोशीले चुम्बन में जुम्बिश (कम्पन) कर रहे थे - लेकिन यह एक सुकून भरा जोश था। शांत! दोनों के दूसरे के आलिंगन में बँध कर जैसे इस दीन दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो गए थे। चुम्बन के उन क्षणों में कोई अन्य प्राणी अस्तित्व में ही नहीं था! बस वो दोनों ही थे। कोई एक मिनट तक दोनों चुपचाप एक दूसरे को चूमते रहे! चुम्बन तब टूटा, जब मीना की साँस उखड़ने लगी।

“हुकुम...” उसने गहरी साँस भरते हुए, किन्तु शरारत भरे लहज़े में कहा, “किस करने की हो रही थी... मेरी साँस निकालने की नहीं!”

“ओह सॉरी सॉरी!” जय को अपनी गलती समझ आई।

“कोई बात नहीं माय लव... आई लव किसिंग यू!” वो बोली - आखिरी के शब्द बोलते बोलते उसके गालों में लाल रंगत गहरा आई, “... आई लव यू!”

आई लव यू मोर...”

नॉट पॉसिबल...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!”

“तो फ़िर...” जय ने शरारत भरे अंदाज़ में फिर से कहा, “मेरे सोने का इंतज़ाम किधर है?”

“... मेरे पहलू में...” मीना ने जय के सीने पर अपना माथा टिकाते हुए कहा, “... और कहाँ?”

“पक्की बात?”

मीना ने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जानेमन...” जय ने अपने परिचित शरारती अंदाज़ में कहना शुरू किया, लेकिन अचानक ही गंभीर हो गया, “... आर यू श्योर माय लव?”

मीना ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“... आई ऍम श्योर अबाउट यू सिन्स द डे व्ही मेट!”

“ओह मीना... आई लव यू सो सो वैरी मच!”

“मुझसे ज़्यादा नहीं...”

“... बट आई कैन ट्राई...”

योर होल लाइफ?” मीना बोल रही थी, लेकिन उसकी आँखों के कोने में आँसू निकल आए थे।

माय दिस लाइफ एंड द नेक्स्ट...” जय ने उसकी आँखों को चूमते हुए कहा।

“ओह जय! ... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर...”

बट... लव इस मैजिक!”

एंड आई ऍम इनचैंटेड...” मीना ने बड़े प्यार से दो पल जय को देखा।

फिर उसकी बाँह थाम कर चलती हुई, बड़ी कोमलता से बोली, “कम...”

कुछ ही पलों में दोनों मीना के शयनकक्ष में थे।

जय ने देखा कि उसका कमरा भी घर के ही समान बहुत ही स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण तरीक़े से व्यवस्थित और सुसज्जित था। जिस व्यक्ति का रहन सहन स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है, वो व्यक्ति भी अक़्सर स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है। यह बात जय ने अपनी माँ से बहुत पहले से ही सीख ली थी, और अपनी भाभी के साथ रहते हुए उसको इस बात का यकीन भी हो गया था। तो मीना को भी वैसा ही अनुकूल आचरण करते देख कर वो बहुत खुश हुआ।

लवली...” उसके मुँह से मीना के रहन सहन के लिए बढ़ाई निकल ही गई।

“क्या?” मीना ने उत्सुकतावश पूछा।

“कितना साफ़ सुथरा घर है... सुन्दर भी! ... तुम्हारी तरह!”

मीना मुस्कुराई, “थैंक यू...”

“मेरा घर भी इसी तरह सुन्दर कर दो...”

आई वांट टू...” मीना ने संजीदगी से कहा, “लेकिन कभी कभी मेरा दिल बहुत घबराता है...”

बोलते बोलते उसकी आँखों के कोनों से आँसू की पतली सी लकीर बन आई।

“मीना... मेरी जान... तुम और मैं एक दूसरे के लिए बने हैं... मुझे इस बात पर हंड्रेड परसेंट से भी अधिक यकीन है! ... और... मैं यह बात बार बार कह सकता हूँ... बिना थके! ... इसलिए तुम किसी भी बात की चिंता न करो! ... आई लव यू!”

जय ने उसके आँसुओं को पोंछते हुए कहा।

“इसी बात का तो डर है जय... मैं भी तुमको बहुत चाहती हूँ! खूब... अपनी जान से भी ज़्यादा! ... इसीलिए डर लगता है कि कहीं तुमको खो न दूँ... या कुछ ऐसा न हो जाए, कि तुमको मेरे कारण कोई दुःख हो...”

“ओह मीना... मीना... कुछ नहीं होगा! जय ने कहना शुरू किया, ... क्या होगा बताऊँ?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कल मैं माँ से बात करूँगा... उनसे कहूँगा कि मुझे तुम बहुत पसंद हो, और मैं तुमसे शादी करूँगा! ... फिर माँ हम दोनों की शादी करा देंगी... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... दो तीन...”

मीना ने उसकी बात पर चौंकने की प्रतिक्रिया दे कर जय की पसली में मज़ाकिया घूँसा मारा। लेकिन वो घूँसा बस एक कोमल, प्रेम-मय स्पर्श मात्र था - जो प्रेम में, ठिठोली के जैसे किया जाता है।

“अरे! क्या हुआ?” जय ने हँसते हुए कहा, “... तो फिर तुम्ही बता दो न कि कितने बच्चे करने हैं...”

जय हमेशा ही मीना का मूड बढ़िया कर देता था, तो आज भी कुछ अलग नहीं था। जय की बातें सुन कर, मीना का मन फिर से हल्का हो गया। उसने अपने आँसुओं के बीच मुस्कुराते हुए कहा,

“जितने तुमको चाहिए...”

“आए हाय... फ़िट हो गई है कुड़ी!”

“हैं?” मीना को समझ नहीं आया कि जय का क्या मतलब था।

“कुड़ी मतलब लड़की...”

“ओह...”

“तो मैं कह रहा था कि हमको कम से कम तीन बच्चे चाहिए!”

“वो क्यों?”

“वो इसलिए मेरी जान, क्योंकि किसी ने दो से अधिक बच्चे नहीं किए अभी तक घर में... मिनिमम तीन बच्चे चाहिए... फोर विल बी आईडियल...”

“जो हुकुम... हुकुम!”

“हा हा...” जय ने हँसते हुए मीना को अपनी तरफ खींचा और अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अच्छा प्लान है न?” उसने कहा।

“बहुत अच्छा...”

मीना ने कहा और जय के आलिंगन में कुछ इस तरह से समां गई कि जैसे वो दुनिया जहान छोड़ कर बस अपने जय की ही पनाह में रह जाए। जय ही उसका घर है... जय ही उसकी दुनिया है!

कोई दो मिनट तक मीना जय की पनाह में ही दुबक कर बैठी रही - उसको जय के दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी। एक शक्तिशाली मर्दाना दिल! और उसकी संयत, नपी-तुली धड़कन! कोई घबराहट नहीं... कोई हिचकिचाहट नहीं... ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना को अपने सीने से लगा कर रखना उसके लिए रोज़मर्रा का काम हो।

‘ऐसे तो वो लोग होते हैं, जिनकी शादी हुए सालों साल बीत गए हों!’

ये ख़याल मन में आते ही मीना के होंठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गई।

उस मुस्कान को जय ने भी अपने सीने में महसूस किया।

“क्या हुआ, मेरी जान?”

मीना मुस्कुराती हुई जय के सीने से अलग हटती हुई गुनगुनाई,

हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए...”

उसके गुनगुनाने पर जय मुस्कुराया - उसको अच्छा लगा कि मीना गा भी लेती है। वैसे भी उसकी आवाज़ ऐसी थी कि वो गाना गा सकती है।

लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

“सच में?”

मीना ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय ने इस बात पर मीना की आँखों को चूम लिया।

मीना चुप हो गई।

“गाओ न, माय लव...”

“मैं दुनिया की सबसे लकी लड़की हूँ!” उसने गाने के बजाए बड़ी सहजता और ईमानदारी से कहा।

“और मैं सबसे लकी लड़का... गाओ न!”

“बस एक दो लाइनें ही आती हैं... पूरा गाना नहीं...” मीना बोली और फिर से गुनगुनाने लगी,

खुशबू चमन को छोड़ के साँसों में घुल गई...
लहरा के अपने आप जवान ज़ुल्फ़ खुल गई...”

इस लाइन पर जय ने बड़े प्यार से मीना की अलकों में अपनी उँगलियाँ उलझा दीं।

मीना मुस्कुराई,

हम अपनी दिलपसंद पनाहों में आ गए...
हम जब सिमट के आप की बाहों में आ गए...
लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

आई लव यू...” गाना ख़तम कर के मीना ने कहा।

जय मुस्कुराया, “बात हुई थी कि हम आपके पहलू में सोएँगे... लेकिन हमारी बेग़म तो बार बार हमारे पहलू में आने की बात कर रही हैं...”

“आ जाईये हमारी पहलू में... हुकुम...” मीना ने बड़ी सेक्सी अदा से अपनी बाहें फ़ैला दीं।

जय की तो मन माँगी मुराद पूरी हो गई - वो पूरे उत्साह से मीना के सीने में, उसके स्तनों के बीच अपना चेहरा घुसा कर उसके आलिंगन में समां गया। मीना के ठोस स्तनों की कोमलता को महसूस कर के उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसको स्तनों का कोई ख़ास अनुभव नहीं था - बचपन में स्तनपान करते समय जो हुआ हो, वही हुआ था। उसके बाद नहीं। कम से कम स्तनों की कोई याद ताज़ा नहीं थी। हाँ, भाभी के सीने पर सर रखने, उनके आलिंगन में उसको जो अनुभव था, बस वही था। क्लेयर के स्तन अधिक कोमल थे, लेकिन मीना के अधिक ठोस! उसको इस बोध से अच्छा लगा।

उसने स्वेटर के ऊपर से ही मीना के दोनों स्तनों को बारी बारी चूम लिया।

न कोई हिचक दिखाई, और न ही कोई शर्म!

लेकिन मीना का पूरा शरीर उन दोनों चुम्बनों के कारण सिहर गया।

“जय...” वो बस फुसफुसा सकी।

कोई विरोध नहीं था यह - बस, विस्मय भरा एक शब्द था... और वो भी उसके प्रियतम का नाम! जय ऐसी अपूर्व सुंदरी को अपनी पत्नी के रूप में पा कर गदगद था। चोरी छुपे खिलवाड़ बहुत हो चुका था - अब असली बात हो जानी चाहिए थी। उसको एक समय से मीना को नग्न देखने की चाह थी। आज की रात उस चाह को पूरा करने की रात थी।

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Nice update.....
 
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