Update #24
“सुहासिनी,” हर्ष बहुत देर से बर्दाश्त कर रहा था, “बात क्या है? क्या छुपा रही हैं आप हमसे?”
यह प्रश्न हर्ष ने आज संभवतः दसवीं बार पूछा हो - लेकिन सुहासिनी थी कि हर बार केवल लाज से मुस्कुरा देती। कुछ कहती न।
उनके निकुञ्ज में हमेशा की ही तरह नीरवता फैली हुई थी। हाँ, रह रह कर, कभी कभी धनेश पक्षी की आवाज़ आ जाती - जो इस नीरवता को तोड़ती। इस गर्मी में सभी थक गए थे - क्या जीव जंतु, क्या मानुष! दूर दूर तक कोई नहीं था। लेकिन इस निकुञ्ज में कोई ख़ास बात थी। इन दोनों प्रेमियों को यहाँ गर्मी नहीं लगती थी - उल्टे, इन दोनों को यहाँ स्वर्ग जैसा आनंद मिलता था।
“अगर आप नहीं कहेंगी, तो हम जाएँ?”
“नहीं राजकुमार...” इस धमकी का प्रभाव सही स्थान पर हुआ, “ऐसे न कहिए! किन्तु... किन्तु... बात ही कुछ ऐसी है कि कहते हुए हमको लज्जा आ रही है!”
“ठीक है,” हर्ष सुहासिनी के खेल में शामिल होते हुए बोला, “तो हम आँखें बंद कर लेते हैं! ... तब तो नहीं आएगी लज्जा?”
“आएगी... किन्तु तब हम आपको बता अवश्य पाएँगे!”
“ठीक है... तो लीजिए...” कह कर हर्ष ने अपनी हथेलियों से अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं, “अब बताईये...”
“जी बात दरअसल ये है कि हमारे पिता जी... उन्होंने... उन्होंने...”
“हाँ हाँ... आगे भी तो कहिए...”
“उन्होंने... आपके और... और हमारे सम्बन्ध के लिए युवरानी जी से बात करी...”
“क्या!” हर्ष ने चौंकते हुए कहा - उसको विश्वास ही नहीं हुआ, “आप सच कह रही हैं?”
“झूठ क्यों कहूँगी?” सुहासिनी ने ठुनकते हुए कहा, “आपको नहीं बताया किसी ने?”
“नहीं! किसी ने कुछ नहीं कहा!”
“ओह...” सुहासिनी की थोड़ी सी निराशा महसूस हुई, “संभव है कि युवरानी जी को किसी से इस विषय में बात करने का अवसर न मिला हो!”
“संभव है! ... अभी तक तो किसी ने भी इस बारे में मुझसे पूछा तक नहीं!” हर्ष अंदर ही अंदर खुश भी था, और डरा हुआ भी, “आपके बाबा ने कोई संकेत दिया आपको? हमारा मतलब...”
“हम आपका मतलब समझ रहे हैं...” सुहासिनी ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए कहा, “वो संतुष्ट लग रहे थे... बहुत संतुष्ट! जैसे... जैसे कि उनके ऊपर से कोई बोझ हट गया हो!”
“सच में?” हर्ष यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, “आह! हमको भी... हमारे भी ऊपर से एक बोझ हट गया! ... भाभी माँ को आपके पिता जी से पता चल गया है तो वो पिताजी महाराज से अवश्य ही बात करेंगी! ... क्योंकि अब उनको भी समझ आ गया होगा कि हमारा प्रेम गंभीर है!”
सुहासिनी के गाल इस बात से लाल हुए बिना न रह सके।
दोनों कुछ देर तक कुछ कह न सके। वैसे भी पिछले कुछ समय में दोनों की निकटता आशातीत रूप से बढ़ गई थी। सुहासिनी का रूप अब हर्ष के दिलोदिमाग पर पूरी तरह से हावी था। वो इस बात के संज्ञान से बड़ा खुश हो गया था कि इस सुन्दर सी लड़की से उसका ब्याह संभव है। एक समय था जब ऐसा सोच पाना भी संभव नहीं था - शादी ब्याह तो बराबर वालों में होती है! एक साधारण कलाकार की लड़की, और राजकुमारी! असंभव!
धनेश की आवाज़, एक बार फिर से उस निस्तब्धता को तोड़ती हुई महसूस हुई। ह
र्ष और सुहासिनी - दोनों का ही ध्यान उस ओर आकर्षित हो गया। इस बार उसकी पुकार एक दो कूजन पर ही नहीं रुका, बल्कि कुछ देर तक चलता रहा। तीख़ी आवाज़ थी, लेकिन कानों को कचोट नहीं रही थी - क्योंकि पक्षी कुछ दूर रहा होगा। दूर के ढोल सुहाने होते हैं - क्योंकि उनकी कर्कशता कानों को सुनाई नहीं देती। लिहाज़ा, अगर इस गहन गर्मी में आँखें बंद कर के लेट जाएँ, तो धनेश की पुकार सुन कर, सुख भरी नींद आ जाए।
हर्ष कुछ सोच कर धीरे से मुस्कुराया।
“ये धनेश अपने लिए साथी ढूंढ रहा है!”
“अपने लिए या अपना...” सुहासिनी ने चुहल करी।
“हाँ, वो भी हो सकता है!” हर्ष हँसते हुए बोला, “लेकिन मुझे तो अपना साथी मिल गया!”
सुहासिनी फिर से लजा गई।
*
मीना के हाथ का खाना बड़ा ही स्वादिष्ट था।
लोग कहते हैं कि पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर जाता है - हाँ, पेट के नीचे से भी जाता है, लेकिन दैनिक आवश्यकता होती है पोषण की, प्रेम की, साथी की! सम्भोग दैनिक आवश्यकता नहीं है। सुस्वादु भोजन कई बातों की तरफ़ संकेत करता है - यह कि आपका साथी पाक-कला में निपुण है; यह कि उसके मन में आपके लिए अपनत्व है; और यह कि वो सुसंस्कृत है!
“ओह गॉड,” जय ने भोजन की बढ़ाई करते हुए कहा, “दिस इस बेटर दैन भाभीस फ़ूड... ऑर इवन माँ...”
“हा हा...”
“नो... सीरियसली! एंड दैट इस सेइंग समथिंग...” जय सच में बहुत खुश था, “वाओ!”
“हाँ, ठीक है, ठीक है! बहुत अधिक चढ़ाने की ज़रुरत नहीं!” मीना अंदर ही अंदर खुश तो थी, लेकिन बाहर वो ख़ुशी दिखा नहीं रही थी।
“अरे यार! सच बात को ऐसे मत बोलो!”
“ठीक है... एन्जॉय देन!”
“ये कढ़ी तो बहुत स्वादिष्ट है!”
“हनी, आई ऍम हैप्पी कि तुमको पसंद आई... टाइम कम था, नहीं तो बहुत कुछ खिलाती!”
“रुक जाता हूँ फिर?” जय ने खिलवाड़ करते हुए कहा, “कल दिन भर रह जाता हूँ तुम्हारे साथ ही?”
“सच में?” मीना ने सुखद आश्चर्य वाले भाव में कहा - जैसे उसकी भी मन ही मन यही इच्छा रही हो।
“हाँ! ... मुझे लगा कि तुम ही नहीं चाहती कि मैं यहाँ रहूँ!”
“ऐसा क्यों सोचा तुमने?” मीना ने बड़ी कोमलता और बड़ी सच्चाई से कहा, “... मैं तुम्हारी हूँ, तो मेरा और मुझसे जुड़ा हुआ सब कुछ तुम्हारा है... ये घर भी तुम्हारा है!”
“ओके! देन आई विल स्टे! ... लेकिन मेरे पास चेंग क्लॉथ्स नहीं हैं!”
“व्ही विल डू समथिंग!”
“ओके!” जय ने मुस्कुराते हुए कहा।
“कल क्लेयर, आदित्य और बच्चों को बुला लेंगे?” मीना बड़े उत्साह से बोली, “... लॉन्ग वीकेंड यहीं मनाएँगे? क्या कहते हो?”
“पक्की बात?”
“पक्की बात!” मीना की मुस्कराहट बहुत चौड़ी हो गई।
‘पक्की बात’ कहना, उन दोनों का तकिया-कलाम बनता जा रहा था। जब दो लोग प्यार में पड़ते हैं, तो एक दूसरे की ऐसी छोटी छोटी, लेकिन प्यारी बातें आत्मसात कर लेते हैं, और उनको पता भी नहीं चलता। ऐसा ही जय और मीना के साथ भी हो रहा था। दोनों एक दूसरे के रंग में रंगे जा रहे थे, और दोनों को पता भी नहीं चल रहा था।
“ठीक है... तुम भैया भाभी को कॉल कर लेना!”
“अरे! मैं क्यों?”
“तुम्हारा घर है... तुम इनवाइट करो न?”
“लेकिन तुम्हारा घर भी तो है!”
“हाँ - लेकिन इनवाइट तुमको करना होगा! कॉल कर के मैं ये तो बता दूंगा कि आज रात मैं यहीं रुक रहा हूँ, लेकिन कल का प्रोग्राम तुम ही बताना!”
“ठीक है हुकुम! जो आप कहें!”
“हा हा! ... ये वर्ड बहुत समय बात सुना!”
“अच्छा जी! आप ये वर्ड सुनते आ रहे हैं?”
“हाँ... जब भी इंडिया जाता हूँ, तब यही सुनता हूँ!”
“वाह जी! आप राजवाड़े हैं?”
“हो सकते हैं!”
“हा हा हा!”
बाकी का भोजन ऐसी ही हँसी ख़ुशी में बीत गया। भोजन के बाद जय ने अपने घर फ़ोन लगाया, और बताया कि वो आज रात यहीं रुकेगा। फिर उसने बताया कि मीना भी बात करेगी। जब मीना ने फ़ोन लिया, तब क्लेयर लाइन पर थी,
“क्लेयर, हाय!”
“हाय मीना... क्या बात है? ... मेरे देवर को मुझसे अलग कर रही हो?”
“हा हा! नहीं यार! ऐसा कुछ नहीं है... कल आप सभी को यहाँ बुलाने का मन था... तो जय ने कहा कि क्यों न वो रुक जाए!” मीना ने जय की तरफ़ से एक प्यारा सा झूठ कहा।
“अरे रहने दो! ... मुझे पता है कि साहब खुद ही तुमसे दूर नहीं रह सकते! ... इट्स ओके!”
“क्लेयर, एक और बात करनी थी...”
“हाँ बोलो?”
“आप सभी कल मेरे यहाँ आईये न! ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब कुछ यहीं करेंगे! ... मेरा घर आपके जैसा महल नहीं है, लेकिन स्पेस तो है!”
“ओह मीना! आर यू श्योर?”
“हाँ! ... पक्की बात!”
“हा हा हा... तुम तो जय के जैसे बातें करने लगी!”
यह बात सुन कर मीना शरमाए बिना न रह सकी।
*