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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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sushilk

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Update #21


संध्या का समय था।

महाराज घनश्याम सिंह, राजमहल की एक छोटी बैठक में बैठे हुए रामचरितमानस का पाठ कर रहे थे। इस अवसर पर अक्सर ही उनके साथ युवरानी प्रियम्बदा भी आ कर बैठ जाती थीं। फिर दोनों ही बारी बारी से किसी न किसी ग्रन्थ का पाठ करते, और किसी सम्बंधित विषय पर चर्चा करते। लेकिन आज प्रियम्बदा के मन में एक अलग बात थी, और वो महाराज से उस सम्बन्ध में बात करना चाहती थीं।

“प्रणाम पिता जी महाराज!”

“अरे प्रिया... आओ बेटा, आओ!” महाराज घनश्याम सिंह ने बड़े प्रेम से अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया, “सौभाग्यवती भव, यशस्वी भव... और तू मुझे महाराज वहाराज मत बोला कर...! तू तो मेरी प्यारी बेटी है!”

प्रियम्बदा मुस्कुराती हुई अपने ससुर के बगल आ कर बैठ गई।

“जी पिता जी...”

“हाँ,” उन्होंने संतुष्ट होते हुए कहा, “अब ठीक है! ... हमेशा याद रखना, तुम बेटी हो... बहू नहीं! तुम हमारी प्यारी हो...”

“आपको अपने पिता जी से कम भी तो नहीं माना हमने कभी,” प्रियम्बदा ने कहा, “इतना प्रेम मिला है हमको कि हम तो मायका भी भूल गए!”

“हा हा... यह बात राजा साहब को न बोल देना कभी!” घनश्याम जी ने ठठाकर हँसते हुए कहा, “बुरा मान जाएँगे!”

प्रियम्बदा भी अपने ससुर के साथ ही हँसी में शामिल हो गई।

दोनों ने थोड़ी देर तक ग्रन्थ का पाठ किया। प्रियम्बदा को अवधी का बहुत कम ज्ञान था, लिहाज़ा अधिकतर समय उसके ससुर ही पढ़ रहे थे, और अपनी समझ से बता भी रहे थे।

“पिता जी,” प्रियम्बदा से कुछ देर बाद रहा नहीं गया।

“हाँ बेटा... बोलो! कोई बात है?”

“जी...”

“अरे तो बोल न!”

“समझ नहीं आता कि हम कैसे कहें...”

“अरे बच्ची...” जब घनश्याम जी को अपनी बहू पर बहुत लाड आता था, तो वो उसको ‘बच्ची’ कह कर पुकारते थे, “इतना क्या हिचकना? वो भी हमसे! ... घर में सब जानते हैं कि तेरे सौ ख़ून माफ़ हैं! बोल न?”

“जी, वो हम सोच रहे थे कि... कि आपकी छोटी बेटी भी घर ले आते...”

“छोटी बेटी? मतलब...?” घनश्याम जी थोड़ी देर के लिए भ्रमित हो गए, फिर अचानक ही समझते हुए बोले, “ओह... ओह! अच्छा, हर्ष के लिए पत्नी?”

“जी पिता जी!”

“हा हा! अरे भाई, ये तो बड़ी जल्दी हो जाएगा!”

“कहाँ! हर्ष भी तो युवा हो गया है...” प्रियम्बदा ने कहा, “ठीक है... संभव है कि विवाह के लिए वो अभी भी कुछ समय लें, किन्तु, और कुछ नहीं तो उनकी मंगनी तो की ही जा सकती है!”

“हा हा! माफ़ करना बेटा... उसको हम बड़ा जैसा देख ही नहीं पाते!” घनश्याम जी आज बढ़िया मनोदशा में थे, “वो अभी भी हमको छोटा बालक ही लगता है! किन्तु तुम... कोई है तुम्हारी दृष्टि में?”

“जी है तो सही!”

“अच्छा? कौन है?”

“अपने राजकुमार को भी पसंद है!”

“अरे! वो इतना बड़ा हो गया कि प्रेम करने लगा है!”

“हा हा! पिता जी! ... प्रेम जैसी बातें, उसकी भावनाएँ उम्र की मोहताज नहीं होतीं!”

“अच्छी बात कही तूने बच्ची! अच्छा बता, कौन है वो सौभाग्यवती, जो हमारे कुमार को पसंद आई है?”

“सुहासिनी...”

“बड़ा प्यारा नाम है!”

“जी...”

“कौन है ये बच्ची? किसी पुत्री है?”

“बस यही एक समस्या है पिता जी...”

“क्या हो गया?”

“वो एक छोटे कुल से है...”

प्रियम्बदा ने हिचकते हुए कहा। उसकी बात सुन कर घनश्याम जी चुप हो गए और बहुत देर तक सोचते रहे। उनको ऐसे चुप देख कर प्रियम्बदा की धड़कनें बढ़ गईं - कहीं उसने कुछ अनर्थ तो नहीं कह दिया।

“पिता जी...” उसने बड़ी हिम्मत कर के कहा, “जानती हूँ कि हमने अपने स्थान से कहीं आगे बढ़ कर ये बात आपसे कह दी है... किन्तु... कुमार भी उसको पसंद करते हैं... इसलिए हमने सोचा कि...”

घनश्याम जी ने उसको कुछ देर यूँ ही देखा - देख तो वो उसकी तरफ़ रहे थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि वो शून्य को निहार रहे हों।

“जानती हो बच्ची,” उन्होंने कहना शुरू किया।

अपने लिए यह शब्द सुन कर प्रियम्बदा की जान में जान आई।

“... हम एक श्रापित कुल हैं... इतना नीच अतीत है हमारा कि हमारी कई कई पीढ़ियाँ उस पाप को धोते धोते निकल गईं! ... हमारे वंश में बच्चियाँ जन्म लेना ही बंद हो गई हैं! इसलिए बाहर से लाई जाती हैं... हमको अन्य लोग अभी भी अपनी कन्याएँ दान देते हैं, वो हमारा सौभाग्य है! इसलिए जब तूने कहा कि छोटे कुल से है वो बच्ची, तो समझ नहीं आया कि आख़िर छोटा कौन है!”

प्रियम्बदा अवाक् हो कर अपने ससुर की बातें सुन रही थी।

“हमारी धन सम्पदा के लोभ में आ कर संभव है कि कोई पिता अपनी पुत्री को हमारे किसी पुत्र से ब्याह दे... अभी तक ऐसा हुआ नहीं - किन्तु संभव है। किन्तु सत्य तो यह है कि उस श्राप के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी कन्या को हमारे किसी पुत्र के साथ प्रेम हुआ है... कम से कम हमारे संज्ञान में तो यह पहली बार हुआ है!”

कह कर घनश्याम जी चुप हो गए।

प्रियम्बदा भी साँसें रोके जैसे किसी फ़ैसले की उम्मीद में बैठी रही - कि पिता जी अब कुछ कहेंगे, तब कुछ कहेंगे!

आख़िरकार घनश्याम जी ने चुप्पी तोड़ी, “... तो हमको न जाने क्यों लग रहा है कि यह बच्ची हमारे वंश पर लगे हुए श्राप को मिटा सकती है!”

“पिता जी?”

“हाँ बच्ची... हमको तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा! ... हमको अच्छा लगा कि राजपरिवार में कोई है जो हमको पिता जैसा मानता है... राजा जैसा नहीं! तूने अपने मन की बात कह कर बड़ा अच्छा किया!”

“ओह पिता जी!” कह कर प्रियम्बदा अपने ससुर के चरणों से जा लगी।

“न बेटा... तू देवी माँ का आशीर्वाद है! ... जब हमने तुझे पहली बार देखा था, तब ही लग गया था कि तू इस परिवार के लिए सबसे उचित है! ... तेरे कारण आज इस परिवार को इतने आदर से देखा जाता है। तेरे आने से पहले कोई अन्य राजपरिवार हमको अपनी कन्या ही नहीं देना चाहता था! किन्तु अब... अब पुनः सभी चाहते हैं कि कुमार का सम्बन्ध उनके परिवार से हो! ... यह परिवर्तन तेरे कारण ही आया है! तू गौरव है हमारा!”

“पिता जी, आपने यह सब कह कर हमको बड़ा मान दिया है! ... किन्तु हमको अपनी बेटी ही रहने दीजिए! ... आपकी छत्रछाया में हम बच्चे फलें फूलें... बस यही चाहिए हमको!”

“बेटी ही तो है तू हमारी!” घनश्याम जी की आँखों में आँसू आ गए थे, जो उन्होंने जल्दी से पोंछे और बोले, “... अच्छा, तो अब हमारी दूसरी बेटी के बारे में कुछ बता! सुहासिनी... कितना सुन्दर नाम है! वो कन्या क्या अपने नाम के जैसी ही है?”

“पिता जी, उसको देखा तो हमने भी नहीं... लेकिन हाँ, कुमार उसके बारे में अधिक अच्छे से बता पाएँगे!” प्रियम्बदा ने ठिठोली करते हुए कहा।

“... अच्छा! तो क्या तुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता?”

“जी वो अपने गौरीशंकर जी की पुत्री है...”

“क्या! ओह... अच्छा! ... अरे बेटा, वो कोई छोटे कुल के नहीं हैं। ... वो हमारे जैसे संपन्न नहीं हैं, लेकिन उनका कुल ऊँचा है हमसे!”

“ओह, क्षमा करें पिता जी! हमको पता नहीं था!”

“कोई बात नहीं! ... उनका परिवार सदा से माँ सरस्वती का पुजारी रहा है! माँ की कृपा है उनके वंश पर! जैसे हम निर्गुण हैं, किन्तु माँ लक्ष्मी की कृपा हम पर है, वैसे ही... कहते हैं न, ये दोनों माताएँ साथ नहीं रह पातीं! संभवतः इसी कारण वो संपन्न नहीं हैं!”

प्रियम्बदा मुस्कुराई।

“ऐसे परिवार की कन्या अगर हमारे परिवार में आएगी, तो हमारे तो भाग्य खुल जाएँगे!”

उनकी बात पर प्रियम्बदा प्रसन्न हो कर मुस्कुरा दी।

“तो फिर पिता जी... हम कुमार को ये बात बता दें?”

“नहीं... नहीं! ... अभी यह बात स्वयं तक सीमित रख... हम महारानी से बात करते हैं! ... वैसे भी हमारे राजपरिवार में इस माह में शुभ कार्य नहीं किए जाते!”

“जी... यह बात हमको भी मालूम है! किन्तु क्यों? ... कारण किसी ने नहीं बताया आज तक...

“वो इसलिए, क्योंकि हमारे उस नीच पूर्वज ने इसी माह में वो कुकर्म किया था, जिसका प्रायश्चित हम सब आज तक करते आ रहे हैं!” घनश्याम जी के चेहरे पर तनाव स्पष्ट था, “इसलिए उसके एक पक्ष पहले और एक पक्ष बाद इस कुल का मुखिया ईश्वर से क्षमा याचना करता है! यह अशुभ समय है पूरे परिवार के लिए... इसलिए इस समय में परिवार में कोई भी... कैसा भी शुभ काम नहीं करता!”

“जी...”

“... अतः प्रयास कर के अपनी प्रसन्नता पर नियंत्रण रखना... हम महारानी से इस बारे में बात करेंगे!” घनश्याम जी ने प्रसन्न हो कर कहा।

फिर कुछ याद करते हुए, “तनिक एक बात बता बच्ची... हमको याद तो आ रहा है... इस बिटिया को हमने देखा है न... पहले भी?”

“जी... अवश्य देखा है! किन्तु ध्यान में नहीं होगा! ... वो गौरीशंकर जी के साथ आई थी... कुमार के जन्मदिवस पर आयोजित उत्सव में!”

“हाँ... सत्य है! चेहरा उसका स्मरण तो हमको भी नहीं है। ... किन्तु हमको स्मरण है कि हम उससे मिले अवश्य हैं!”

“जी पिता जी!”

“अच्छी बात है! ... तू निश्चिन्त रह! यदि कुमार को सुहासिनी बिटिया पसंद है, तो हम उन दोनों के विवाह को प्रशस्त करेंगे। ... हम अन्य पिता जैसे नहीं हैं, जो निरर्थक बातों पर अपने बच्चों की प्रसन्नता न्योछावर कर दें! ... किन्तु कुछ समय रुक जा! ... थोड़ी व्यस्तता भी है। चीन के साथ तनाव चल रहा है, उसके लिए पण्डित नेहरू से भी मिलने जाना है दिल्ली। ... तब तक ये श्रापित माह भी समाप्त हो जाएगा! ... फिर करेंगे हम धूमधाम से अपने बच्चों का विवाह!”

“किन्तु दोनों की उम्र पिता जी?”

“जब बिटिया हमारी है, तो रहेगी भी हमारे ही पास... हमको नहीं लगता कि गौरी शंकर जी इस बात के लिए हमको मना कर सकेंगे!”

“जो आज्ञा पिता जी!” कह कर प्रियम्बदा ने घनश्याम जी को प्रणाम किया, और उनके सामने नत हो गई।

लेकिन यह काम उसने होंठों पर आ गई प्रसन्न मुस्कान को छुपाने के लिए किया था।

*


Riky007 Sanju@ SANJU ( V. R. ) parkas TheBlackBlood kamdev99008 Ajju Landwalia Umakant007 Thakur kas1709 park dhparikh
सुंदर सुंदर अतिसुंदर।
 
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Update #23


जय मीना के पीछे पीछे ही उसकी किचन में आ गया। किचन आधुनिक था - हाँलाकि उसके घर की किचन से छोटा था, लेकिन मीना के घर के हिसाब से उचित! सारी सुविधाएँ थीं वहाँ और बड़ा ही सुव्यवस्थित सा घर था।

सब देख कर जय को बड़ा संतोष हुआ - 'कैरियर ओरिएण्टेड वुमन है मीना, लेकिन फिर भी पूरा घर सुव्यवस्थित!'

किचन काउंटर के बगल दो बार स्टूल्स रखे हुए थे, उनमें से एक पर वो बैठ गया, और मीना चाय बनाने में व्यस्त हो गई।

“मीना?”

“हाँ?” मीना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“कुछ अपने बारे में बताओ...”

“अरे! क्या हो गया ठाकुर साहब?” मीना ने हँसते हुए कहा, “आपको कहीं डर तो नहीं लग रहा है कि ये मेरे लिए सही लड़की है भी या नहीं!”

“हा हा! नो... नो वे! कैसी बातें करती हो! तुमसे सही लड़की कोई नहीं है मेरे लिए... कोई और हो ही नहीं सकती... लेकिन बस, क्यूरियस हूँ!”

“हा हा! ओके! ... क्या जानना चाहते हो? पूछो?”

“कुछ भी! जो भी तुम्हारा मन हो, बता दो... वैसे, तुम और तुम्हारा परिवार... कहाँ से हो इंडिया में?”

“बहादुरगढ़...”

जब जय को समझ नहीं आया कि ये कहाँ है, तो मीना ने बताना जारी रखा, “दिल्ली के पास है - एक छोटा सा शहर है! शायद ही नाम सुना हो!”

“ओह! ओके! नहीं सुना! ... मैं भी दिल्ली से हूँ... था... हूँ!”

“हा हा... थे, कि हो? एक पे रहना!”

“ओके, था! वैसे, वहाँ हमारा बंगला है... माँ वहीं रहती हैं न!”

माँ का नाम सुनते ही मीना हिचक गई।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं!”

“अरे बोलो न!” जय ने समझते हुए पूछा, “... माँ को ले कर कोई चिंता है?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे, उनकी चिंता मत करो! ... माँ बहुत स्वीट हैं। मैंने बताया तो है... और अब तो हमारी बात भाभी ने सम्हाल ली है... वो माँ को मना लेंगी! अगर माँ को हमको ले कर कोई चिंता है भी, तो भाभी सब ठीक कर देंगी!” जय बड़े आत्मविश्वास से बोला, “... और वैसे भी, वो तुमको एक बार देख लेंगी न, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि वो तुमको पसंद न करें!”

“हम्म...! आई होप सो!” मीना ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा।

आई नो सो! ... अच्छा, तुमको खाने में क्या पसंद है?” जय ने बात बदल दी।

“सब कुछ... लेकिन मॉडरेट अमाउंट में खाती हूँ... अधिक अधिक नहीं!”

“वो तो दिख ही रहा है!” जय ने मीना के शरीर का जायज़ा लेते हुए कहा।

मीना अदा से मुस्कुराई।

“अच्छा, तुमको हस्बैंड कैसा चाहिए?”

“अरे वाह ठाकुर साहब... कहाँ से हो... खाने में क्या पसंद है... से सीधे हस्बैंड कैसा चाहिए पर आ गए! ... गुड, क्विक जम्प!” कह कर मीना खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे यार बताओ न!”

जवाब में मीना जय की तरफ़ मुड़ी, और उसके दोनों गालों को अपनी हथेलियों में थाम कर उसके होंठों को चूम कर बोली, “तुम... तुम्हारे जैसा!”

“सच सच बताओ!” जय को सुन कर अच्छा लगा, फिर भी वो तसल्ली कर लेना चाहता था।

“ओह जय... सच कह रही हूँ! तुम्हारे जैसा ही साथी चाहिए था मुझे! ... तुम! तुम चाहिए थे मुझे... हाँ, तुम थोड़े ओल्डर होते, तो बेटर था, लेकिन अभी भी ठीक है!” उसने आखिरी वाक्य शरारत से कहा।

“हा हा... व्हाट इस इट विद यू एंड माय एज...” जय हँसते हुए बोला, “तुमसे छोटा हूँ, तो कोई प्रॉब्लम है?”

“नहीं! नो प्रॉब्लम... जो किस्मत में है, वो ही तो मिलेगा न!” मीना ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा, “सब कुछ चाहा हुआ तो नहीं हो सकता न!”

अच्छा!” जय ने भी नाराज़ होने का नाटक किया, “तो जाओ, किसी बुड्ढे से कर लो शादी!”

“अरे मेरा प्यारा वुड बी हस्बैंड... मेरी बात का बुरा मान गए?” मीना उसकी नाक को चूमती हुई बोली।

उसी समय चाय में उबाल आ गया। चाय में उबाल की आवाज़ सुन कर मीना चौंक कर तेजी से चूल्हे के पास जा कर उसका नॉब बंद कर देती है। बिल्कुल ठीक समय पर।

“देखा! चाय भी नाराज़ हो गई तुम्हारी बात पर!” जय हँसते हुए बोला।

“कोई नाराज़ वाराज़ नहीं है... वो कह रही है कि मैं तैयार हूँ, और, बहुत टेस्टी हूँ...” मीना मुस्कुराती हुई बोली।

“अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू! बिना पिये कैसे जान लें?”

“हे भगवान! तुमको बहुत हिंदी आती है! इसका मतलब?”
“वो बाद में! पहले चाय पिलाओ! इतनी देर से केवल बातों से ही मन बहला रही हो!”

“अभी लो...”

मीना ने दो प्यालों में चाय छान कर पहले जय को थमाई, फिर खुद ली। दोनों ने चाय की चुस्की ली।

“कैसी बनी है?”

जय ने नाक भौं सिकोड़ते हुए ‘न’ में तेजी तेजी सर हिलाया, “ये कैसी चाय है...”

“अरे, क्या हो गया,” मीना को यकीन ही नहीं हुआ कि जय की चाय का स्वाद ऐसा ख़राब हो सकता है, क्योंकि उसकी चाय तो हमेशा की ही तरह बढ़िया स्वाद वाली थी, “इधर लाओ तो...”

मीना ने जय के प्याले से चुस्की ले कर बड़ी मासूमियत से कहा, “अच्छी तो है!”

जय ने उसके हाथों से अपना प्याला ले कर फिर से चुस्की ली, “हाँ... अब आया इसमें टेस्ट!”

“अच्छा जी... बदमाशी!” जय की शरारत मीना को समझ में आ गई।

“तुमसे नहीं, तो आखिर और किससे करूँ शरारत?”

“किसी से नहीं!” मीना ने बड़े प्यार से जय को देखा।

उसकी आँखों में उसके लिए दुनिया जहान की मोहब्बत वो साफ़ देख सकता था। जय को उस समय इस बात का बोध भी हुआ कि कितनी सुन्दर आँखें हैं मीना की! वो इनको उम्र भर देख सकता है। मीना के मन की सच्चाई उसकी आँखों और उसके चेहरे से बयाँ हो रही थी। और वो सच्चाई थी मीना के मन में उसके लिए मोहब्बत की!

दोनों अचानक से ही ख़ामोश हो गए थे - और चुप हो कर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। जय मीना का हाथ अपने हाथ में ले कर कोमलता से सहला रहा था। अचानक ही कुछ कहने सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही। कुछ देर में चाय ख़तम हो गई।

मीना बोली, “क्या खिलाऊँ डिनर में?”

“क्या आता है तुमको?”

“इतने सालों से यहाँ हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि मुझे कुछ आता नहीं!” मीना अदा से मुस्कुराई, “तुम्हारी होने वाली बीवी लगभग सर्व-गुण संपन्न है!”

“हा हा! अरे वाह! तुमको ये फ़्रेज़ मालूम है?”

“बस कुछ ही... ये उनमें से एक है!” मीना ने ईमानदारी से कहा, “बोलो न! क्या खाओगे?”

“कुछ भी खिला दो मेरी जान! हम तो आसानी से खुश हो जाते हैं!”

“ऐसे मत बोलो जय... आई वांट टू मेक यू फ़ील स्पेशल... तुम मेरे लिए सबसे स्पेशल हो! और, पहली बार घर भी आये हो, तो बिना तुम्हारी ठीक से ख़ातिरदारी किए तुमको नहीं जाने दूँगी!”

“हा हा! ... जो तुमको सबसे अच्छा आता है, वो पका दो! मेरे लिए वही स्पेशल है!”

“ठीक है! तुम आराम से बैठो... मन करे तो घर देखो... वैसे, देखने जैसा कुछ भी नहीं है! मैं बनाती हूँ कुछ ख़ास!”

मीना ने जय के गले में अपनी बाँहें डाल कर उसको दो बार चूमा, और फिर अलग हो कर डिनर की तैयारी में व्यस्त हो गई। कुछ देर तक दोनों बातें करते रहे, और मीना खाना पकाने में व्यस्त रही। खाना पकाने को ले कर उसका उत्साह देख कर जय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।

शाम में पहली बार उसने मीना की देहयष्टि को बड़ी ध्यान से देखा - उसने एक रंग-बिरंगा स्वेटर पहना हुआ था, और नीचे एक घुटनों तक लम्बा स्कर्ट। घर में हीटिंग चल रही थी, नहीं तो इन महीनों शिकागो की ठंडक बढ़ जाती थी। वैसे भी दिन भर तेज़ ठंडी हवाएँ चलती ही रहती थीं। स्वेटर ढीला ढाला था, लेकिन सुरुचिपूर्ण था - ऐसा, जिसमें लड़की अपने प्रियतम को पसंद आए।
मीना सचमुच उसको बहुत पसंद आ रही थी!

“वाइन पियोगे?” कुछ समय बाद मीना ने पूछा।

“हाँ...”

“शिराज़ या मेर्लो?”

“शिराज़...”

मीना ने मुस्कुरा कर किचन के बगल लगे सेलर से रेड वाइन की एक बोतल निकाली और दो वाइन गिलासों में बारी बारी डाला। ठंडी के मौसम के हिसाब से रेड वाइन मुफ़ीद थी।

“चियर्स,” जय ने कहा और अपने गिलास को मीना के गिलास से टुनकाया।

“चियर्स...”

“उम्म...” पहला सिप ले कर जय ने अनुमोदन में सर हिलाया, “लेकिन यार, चाय का स्वाद खराब हो गया!”

“ओह्हो!” मीना नहीं चाहती थी कि जय का कोई भी अनुभव खराब हो, “सॉरी हनी!”

“हनी?” जय ने फिर से शरारत से पूछा।

मीना के गाल शर्म से गुलाबी हो गए, “इंडियन वीमेन डू नॉट कॉल दीयर हस्बैंड्स बाई दीयर नेम्स...!”

“ओये होए... क्या बात है मेरी जान!” जय मीना के करीब आते हुए बोला, “ऐसे करोगी तो कण्ट्रोल नहीं होगा मुझे...”

“किस बात पर कण्ट्रोल नहीं होगा?” मीना ने भली भाँति जानते हुए भी पूछा।

“मेरे इरादों पर...”

मीना बनावटी चाल में इठलाती हुई जय के पास आई, और उसके गले में बाहें डालती हुई बोली, “अभी नहीं हनी! ... बट आई प्रॉमिस, कि तुमको मैं हर तरह का सुख दूँगी! यू विल नेवर बी अनसैटिस्फाइड!”

“ये सब मत बोलो... दिल में कुछ कुछ होने लगता है!”

“हा हा... आई लव यू!” कह कर मीना ने उसको चूम लिया।
“अब जल्दी से इस वाइन का भी टेस्ट बढ़िया कर दो!”
मीना ने जय के गिलास से वाइन सिप पर के उसको वापस दे दिया। जय ने सहर्ष उसकी जूठी की हुई वाइन की चुस्की ली, और बोला,

“हाँ! अब आया स्वाद!”

मीना उसकी बात पर दिल खोल कर, खिलखिला कर हँसने लगी।

जय के मन के ख़याल आया कि वो मीना को बहुत चाहता है, और उससे अधिक वो किसी और लड़की को कभी प्यार नहीं कर सकेगा।

'शी इस द वन!'


*
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“सुहास...” हर्ष बोला।

“जी?”

उत्तर में हर्ष ने कुछ कहा नहीं - लेकिन उसके सुहासिनी की तरफ़ कुछ ऐसे अंदाज़ में देखा कि उसको लगा कि हर्ष उससे किसी बात की अनुमति माँग रहा है। स्त्री-सुलभ संज्ञान था, या कुछ और - उसने शर्माते हुए बड़े हौले से ‘हाँ’ में सर हिलाया। बस - एक बार! इतना संकेत बहुत था हर्ष के लिए। उसने हाथ बढ़ा कर सुहासिनी की कुर्ती के बटनों को खोलना शुरू कर दिया।
शून्य से सौ, पलक झपकते ही!
 
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deeppreeti

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avsji

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hny24
नए साल की हार्दिक शुभकामनाये !
नया साल आपके जीवन में सभी अच्छी चीजें लेकर आये.!


मित्रों - आपको भी नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ!
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Kaafi kuch badal gaya ya fir apan ko hi aisa feel hua... :?:

Well, update 36 tak read kar liya thoda thoda kar ke :smarty:

Ek taraf Jay aur Mina ka nishchhal Prem kaafi aage tak badh chuka hai. Videsh me hi sahi but dono ka byaah ho gaya. Kanooni roop se dono pati patni ban gaye. Isme koi shak nahi ki Mina jaisi ladki ke liye ye bahut bada badlav raha jiski shayad usne kabhi kalpana bhi nahi ki rahi hogi. Wahi Jay bhi is baat se foola nahi sama raha ki mina jaisi khubsurat aur itna Prem karne wali ladki uski life me aai aur aaj wo uski wife ban chuki hai....

Aditya and Clare jaise bhaiya bhabhi aaj ki duniya me shayad hi kahin dekhne ko milenge. Mujhe sabse zyada ye dono hi pasand aaye, khaas kar clare. Ek videshi ladki, jiski rag rag me videshi culture hi tha usne bhartieeya ladke se shadi karne ke baad kitni kushalta se hindustani culture ko apnaya aur sachche dil se apne pati ke chhote bhai ko apna samajh kar use apne sage bete ki tarah pyar aur sneh diya.....I'm totally impressed her :love:

To wahi dusri taraf harsh aur uske mata pita ki maut ke bare me jaan kar bada hi afsos aur dukh hua....khaas kar is baat se ki suhasini ke sath uska prem apoorn rah gaya. Suhasini garbh se hai ye aur bhi zyada dukhad hua aur current me jis tarah ki situation Raj gharane ki hai usme usko khule roop se accept nahi kiya ja raha. Halaaki jo tarika harish aur prayambada ne socha wo kuch had tak thik bhi hai lekin isse suhasini ka dukh to kam nahi ho sakta...well isse zyada kya hi ho sakta hai..afterall niyati par bhala kiska zor???

Ab tak ki kahani ke baad kuch sawaal athwa ye kahen ki kuch khayaal zahen me ubhar aaye hain....mumkin hai wo galat bhi ho lekin hain to hain...let's see...

Aditya aur Jay, Priyamvbada aur Harish ke bich kya khoon ka relation hai?? Mina kiski beti hai....kya suhasini ki??? Let's see...


Kahani ko bahut hi badhiya tarike se aage badha rahe hain bhaiya ji...romance ke to writer hi aap jo jay aur Mina ke bich bhar bhar ke dikhaya aapne....mind blowing :bow:
Aage ka intezar :waiting:
 
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