Update #38
अपनी माँ से मिल कर, और कुछ अन्य सामाजिक प्रयोजन निबटा कर, अपनी भारत यात्रा संपन्न कर के, कोई चार सप्ताह बाद आदित्य और क्लेयर दोनों वापस शिकागो लौट आये। माँ अब पहले से बहुत ठीक थीं, और अपने नियत समय पर संतोषजनक स्वास्थ्य लाभ पा रही थीं। उनकी हड्डियाँ जुड़ने, और उनमें समुचित बल आने में अपना प्राकृतिक तय समय लगना था, और जय और मीना की संतान होने में भी! इसलिए, फिलहाल इंतज़ार करने के अतिरिक्त और कुछ किया नहीं जा सकता था।
हाँलाकि आदित्य और क्लेयर दोनों ने ही माँ के पास ही रुक जाने की पेशकश करी थी, लेकिन उन्होंने ही इस विचार के क्रियान्वयन से साफ़ मना कर दिया था। उन्होंने आदित्य को समझाया कि अवश्य ही जय की शादी हो गई है और उसको अब संतान भी होने वाली है, लेकिन फिर भी वो अभी छोटा ही है, और उस पर यूँ अचानक से ही इतने बड़े बिज़नेस की, दोनों बच्चों को सम्हालने की, और मीना की गर्भावस्था की पूरी ज़िम्मेदारी यूँ ही डाल देना सही नहीं होगा। आदित्य ने माँ को समझाने की बड़ी कोशिश करी कि अवश्य ही जय अभी नौसिखिया है, लेकिन मीना स्वयं भी बिज़नेस चलाने में सक्षम है - सक्षम क्या, उस अकेली में ही उन दोनों ही भाईयों से भी अधिक क्षमता है!
आदित्य की बात सही हो सकती थी, लेकिन माँ मानी नहीं। उनका कहना था कि गर्भावस्था में मीना पर किसी भी तरह का तनाव नहीं होना चाहिए - बिज़नेस की अभी की स्थिति को देख कर, वो होता हुआ संभव नहीं दिख रहा था। बिज़नेस सुधार पर था, लेकिन अभी भी ऐसी कई सारी बातें थीं, जिनके कारण उसको सम्हालने वाले को यात्रा करना, और अनावश्यक तनाव लेना अवश्यम्भावी था! माँ को इस बात का भी मलाल था कि जय और मीना को हनीमून पर जाने तक का भी अवसर नहीं मिला था - ऐसे भाग भाग कर दोनों का विवाह हुआ था! और अब मीना गर्भवती भी हो गई थी! ऐसे में अगर घर पर ही दोनों को एक दूसरे के अंतर्ज्ञान का अवसर मिला था, तो उसका आनंद लेने में कोई बुराई नहीं थी। माँ की बातों में समुचित तर्क था, लिहाज़ा आदित्य और क्लेयर को वापस आना पड़ा।
*
उधर, मीना की गर्भावस्था बड़ी ही संतोषजनक और सामान्य तरीके से चल रही थी! अभी तक किसी भी तरह की कोई भी परेशानी सामने नहीं आई थी, और उसके डॉक्टर के अनुसार, भविष्य में किसी भी तरह की परेशानी होने का कोई अंदेशा भी नहीं था। मीना स्वस्थ थी और उसकी दिनचर्या अनुशासित थी। उसके खान-पान और व्यायाम की दैनिक क्रियाओं में कोई अंतर नहीं आया था, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं लग रही थी।
माँ ने जैसी अपेक्षा करी थी, उसी के अनुसार मीना के गर्भ में पलते, बढ़ते बच्चे के समान ही, जय और उसका प्रेम भी प्रति-क्षण बढ़ रहा था। अगाध प्रेम होना किसी भी सम्बन्ध को अवलंब देता है, लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए, उसके साथ साथ, एक दूसरे के बारे में अच्छी समझ होना भी आवश्यक है। शादी से पहले एक दूसरे को जानने समझने का बहुत अवसर नहीं मिला था दोनों को! लेकिन साथ रहते हुए अब तक दोनों ही एक दूसरे को अच्छी तरह से जान गए थे।
मीना इस बात को स्वीकार कर चुकी थी कि उसके जीवन में सच में कोई अद्भत सी बात हो गई थी... कोई ईश्वरीय कृपा हुई थी उस पर, कि उसको जय जैसा पति मिला था - जो सच्चे मायनों में उसका जीवन-साथी था! अवश्य ही वो उससे छोटा था, और सांसारिक सरोकारों में वो नादान था, लेकिन उसका प्रेम शुद्ध था! वो मीना को किसी राजकुमारी के समान रखता था! और उसका ससुराल! मीना इसी बात से लहालोट हुई रहती कि उसको इतना अच्छा और प्यार करने वाला परिवार मिला था। बस कुछ ही सप्ताह पहले तक वो इस संसार में अकेली थी, लेकिन अब! अब उसके पास एक भरा पूरा, प्रेम करने वाला परिवार था! घर के बड़ों को तो छोड़ो, वो दोनों बच्चे - अजय और अमर भी उसको बहुत प्रेम करते, और ‘चाची, चाची’ करके उसके आगे पीछे लगे रहते थे।
और उधर जय को लग रहा था कि जिस तरह की पत्नी की उसको कामना थी, वैसी ही हू-ब-हू उसको मिल गई थी... वो अवश्य ही उससे बड़ी थी, कहीं अधिक पढ़ी-लिखी थी, लेकिन वो बहुत ही सुन्दर, गुणी, बुद्धिमति, और शुद्ध प्रेम का सागर थी! दिन भर के काम के बाद, शाम को मीना के आलिंगन में आ कर उसकी परेशानियाँ और थकावट ग़ायब हो जाती। वो सच में प्रेम और सुख का सागर थी - बिल्कुल उसकी माँ जैसी! अजय और अमर - दोनों बच्चों को वो बड़े प्रेम से देखती और उनकी शिक्षा पर भी ध्यान रखती। चाची की उपस्थिति में, दोनों को एक पल के लिए भी अपनी माँ की अनुपस्थिति महसूस न हुई! यह सब बड़े सौभाग्य से होता है, और ऐसी पत्नी बड़े ही सौभाग्य से मिलती है। मीना के लिए उसके मन में प्रतिदिन प्रेम और आदर बढ़ता ही जा रहा था।
लिहाज़ा, दोनों प्रगाढ़ता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी - न केवल भावनात्मक, मानसिक, और आत्मिक तौर पर, बल्कि शारीरिक तौर पर भी! जब पारस्परिक प्रेम शारीरिक सीमाओं को लाँघ लेता है, तब प्रेम करने वालों को केवल सुख ही सुख महसूस होता है। दोनों एक दूसरे को इतना चाहते थे, कि मीना की गर्भावस्था में भी सम्भोग करना चाहते थे। शुरू शुरू में जय के मन में इसको ले कर थोड़ा संशय था, लेकिन मीना की गायकोनोलॉजिस्ट ने उनको आश्वासन दिया कि गर्भावस्था के समय भी आनंदमय सेक्स किया जा सकता है... बस थोड़ी बहुत सावधानी बरतनी होगी!
डॉक्टर से हरी झंडी मिलने पर दोनों ही डिलीवरी होने तक के सुरक्षित समय तक, सम्भोग का आनंद लेते रहे। मीना को भी जय का संग अच्छा लगता! उसके साथ सम्भोग करना बड़ा आनंददायक और सुखकारी था। जय अभी भी कई मामलों में बच्चों जैसा था - उसके अंदर यौन क्रीड़ा को ले कर अपार उत्साह था, और वो बिस्तर में कई सारे प्रयोग करता! मीना को भी सब कुछ अच्छा लगता, और वो भी पूरे उत्साह से उसका साथ देती और सम्भोग का आनंद उठाती। उसको अच्छा लगता कि अवश्य ही उसका शरीर गर्भावस्था के कारण बेडौल हो गया था, लेकिन फिर भी उसका पति न केवल उसको अभी भी आकर्षक पाता था, बल्कि पूरे उत्साह से उसके साथ सम्भोग करता था। वो संतुष्ट थी और आनंदमय थी।
*
क्लेयर और आदित्य के वापस आने पर मीना और जय को और भी निकट आने का अवसर मिलने लगा। वो दोनों भी अपनी तरफ से पूरा प्रयास करते रहते कि जय और मीना अपनी शादी के पहले साल और मीना की प्रेग्नेंसी का पूरा आनंद उठा सकें! वो कभी उन दोनों को रोमांटिक डिनर के लिए भेजते, तो कभी क्लासिकल म्यूज़िक की किसी महफ़िल में, तो कभी किसी नृत्य की प्रदर्शनी में! आदित्य और क्लेयर उन दोनों के साथ, अपने बच्चों के जैसे ही व्यवहार करते, उन दोनों को खुश रखते।
*