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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Kaafi kuch badal gaya ya fir apan ko hi aisa feel hua... :?:

Well, update 36 tak read kar liya thoda thoda kar ke :smarty:

Ek taraf Jay aur Mina ka nishchhal Prem kaafi aage tak badh chuka hai. Videsh me hi sahi but dono ka byaah ho gaya. Kanooni roop se dono pati patni ban gaye. Isme koi shak nahi ki Mina jaisi ladki ke liye ye bahut bada badlav raha jiski shayad usne kabhi kalpana bhi nahi ki rahi hogi. Wahi Jay bhi is baat se foola nahi sama raha ki mina jaisi khubsurat aur itna Prem karne wali ladki uski life me aai aur aaj wo uski wife ban chuki hai....

Aditya and Clare jaise bhaiya bhabhi aaj ki duniya me shayad hi kahin dekhne ko milenge. Mujhe sabse zyada ye dono hi pasand aaye, khaas kar clare. Ek videshi ladki, jiski rag rag me videshi culture hi tha usne bhartieeya ladke se shadi karne ke baad kitni kushalta se hindustani culture ko apnaya aur sachche dil se apne pati ke chhote bhai ko apna samajh kar use apne sage bete ki tarah pyar aur sneh diya.....I'm totally impressed her :love:

To wahi dusri taraf harsh aur uske mata pita ki maut ke bare me jaan kar bada hi afsos aur dukh hua....khaas kar is baat se ki suhasini ke sath uska prem apoorn rah gaya. Suhasini garbh se hai ye aur bhi zyada dukhad hua aur current me jis tarah ki situation Raj gharane ki hai usme usko khule roop se accept nahi kiya ja raha. Halaaki jo tarika harish aur prayambada ne socha wo kuch had tak thik bhi hai lekin isse suhasini ka dukh to kam nahi ho sakta...well isse zyada kya hi ho sakta hai..afterall niyati par bhala kiska zor???

Ab tak ki kahani ke baad kuch sawaal athwa ye kahen ki kuch khayaal zahen me ubhar aaye hain....mumkin hai wo galat bhi ho lekin hain to hain...let's see...

Aditya aur Jay, Priyamvbada aur Harish ke bich kya khoon ka relation hai?? Mina kiski beti hai....kya suhasini ki??? Let's see...


Kahani ko bahut hi badhiya tarike se aage badha rahe hain bhaiya ji...romance ke to writer hi aap jo jay aur Mina ke bich bhar bhar ke dikhaya aapne....mind blowing :bow:
Aage ka intezar :waiting:

अंततः इस कहानी पर आने के लिए धन्यवाद भाई! आजकल व्यक्तिगत व्यस्तता के चलते, इस कहानी पर कोई ख़ास काम नहीं हो रहा है, इसलिए अपडेट भी आराम से ही आएँगे।

मैंने भी महसूस किया है कि लोगों को क्लेयर का किरदार बहुत पसंद आ रहा है। जब कोई विदेशी हमारे रंग में रंग जाता है, तो अच्छा ही लगता है। हा हा!

इस कहानी में फिलहाल बहुत से किरदार हैं; लेकिन मुख्य किरदार कौन है, वो कुछ और अपडेट में पता चलेगा - फिलहाल तो कोशिश यही है कि कोई भी पाठक इस कहानी में सटीक सटीक अटकलें न लगा सकें। फिर भी रिकी भाई, संजू भाई - लीक से हट कर सोच रहे हैं।

सुहासिनी का दुःख तो अब कुछ भी कम नहीं कर सकता, लेकिन फिर भी, उसकी पीड़ा को कम किया जा सकता है। देखते हैं, उसके भाग्य में क्या है!

आपकी अटकलों को कोई उत्तर नहीं दे सकता फ़िलहाल! सब जानने के लिए साथ में बने रहें! धन्यवाद! :)
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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आपकी अटकलों को कोई उत्तर नहीं दे सकता फ़िलहाल! सब जानने के लिए साथ में बने रहें! धन्यवाद! :)
बिल्कुल, और ये मुझसे बेहतर भला कौन समझ सकता है :D
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #38


अपनी माँ से मिल कर, और कुछ अन्य सामाजिक प्रयोजन निबटा कर, अपनी भारत यात्रा संपन्न कर के, कोई चार सप्ताह बाद आदित्य और क्लेयर दोनों वापस शिकागो लौट आये। माँ अब पहले से बहुत ठीक थीं, और अपने नियत समय पर संतोषजनक स्वास्थ्य लाभ पा रही थीं। उनकी हड्डियाँ जुड़ने, और उनमें समुचित बल आने में अपना प्राकृतिक तय समय लगना था, और जय और मीना की संतान होने में भी! इसलिए, फिलहाल इंतज़ार करने के अतिरिक्त और कुछ किया नहीं जा सकता था।

हाँलाकि आदित्य और क्लेयर दोनों ने ही माँ के पास ही रुक जाने की पेशकश करी थी, लेकिन उन्होंने ही इस विचार के क्रियान्वयन से साफ़ मना कर दिया था। उन्होंने आदित्य को समझाया कि अवश्य ही जय की शादी हो गई है और उसको अब संतान भी होने वाली है, लेकिन फिर भी वो अभी छोटा ही है, और उस पर यूँ अचानक से ही इतने बड़े बिज़नेस की, दोनों बच्चों को सम्हालने की, और मीना की गर्भावस्था की पूरी ज़िम्मेदारी यूँ ही डाल देना सही नहीं होगा। आदित्य ने माँ को समझाने की बड़ी कोशिश करी कि अवश्य ही जय अभी नौसिखिया है, लेकिन मीना स्वयं भी बिज़नेस चलाने में सक्षम है - सक्षम क्या, उस अकेली में ही उन दोनों ही भाईयों से भी अधिक क्षमता है!

आदित्य की बात सही हो सकती थी, लेकिन माँ मानी नहीं। उनका कहना था कि गर्भावस्था में मीना पर किसी भी तरह का तनाव नहीं होना चाहिए - बिज़नेस की अभी की स्थिति को देख कर, वो होता हुआ संभव नहीं दिख रहा था। बिज़नेस सुधार पर था, लेकिन अभी भी ऐसी कई सारी बातें थीं, जिनके कारण उसको सम्हालने वाले को यात्रा करना, और अनावश्यक तनाव लेना अवश्यम्भावी था! माँ को इस बात का भी मलाल था कि जय और मीना को हनीमून पर जाने तक का भी अवसर नहीं मिला था - ऐसे भाग भाग कर दोनों का विवाह हुआ था! और अब मीना गर्भवती भी हो गई थी! ऐसे में अगर घर पर ही दोनों को एक दूसरे के अंतर्ज्ञान का अवसर मिला था, तो उसका आनंद लेने में कोई बुराई नहीं थी। माँ की बातों में समुचित तर्क था, लिहाज़ा आदित्य और क्लेयर को वापस आना पड़ा।

*

उधर, मीना की गर्भावस्था बड़ी ही संतोषजनक और सामान्य तरीके से चल रही थी! अभी तक किसी भी तरह की कोई भी परेशानी सामने नहीं आई थी, और उसके डॉक्टर के अनुसार, भविष्य में किसी भी तरह की परेशानी होने का कोई अंदेशा भी नहीं था। मीना स्वस्थ थी और उसकी दिनचर्या अनुशासित थी। उसके खान-पान और व्यायाम की दैनिक क्रियाओं में कोई अंतर नहीं आया था, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं लग रही थी।

माँ ने जैसी अपेक्षा करी थी, उसी के अनुसार मीना के गर्भ में पलते, बढ़ते बच्चे के समान ही, जय और उसका प्रेम भी प्रति-क्षण बढ़ रहा था। अगाध प्रेम होना किसी भी सम्बन्ध को अवलंब देता है, लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए, उसके साथ साथ, एक दूसरे के बारे में अच्छी समझ होना भी आवश्यक है। शादी से पहले एक दूसरे को जानने समझने का बहुत अवसर नहीं मिला था दोनों को! लेकिन साथ रहते हुए अब तक दोनों ही एक दूसरे को अच्छी तरह से जान गए थे।

मीना इस बात को स्वीकार कर चुकी थी कि उसके जीवन में सच में कोई अद्भत सी बात हो गई थी... कोई ईश्वरीय कृपा हुई थी उस पर, कि उसको जय जैसा पति मिला था - जो सच्चे मायनों में उसका जीवन-साथी था! अवश्य ही वो उससे छोटा था, और सांसारिक सरोकारों में वो नादान था, लेकिन उसका प्रेम शुद्ध था! वो मीना को किसी राजकुमारी के समान रखता था! और उसका ससुराल! मीना इसी बात से लहालोट हुई रहती कि उसको इतना अच्छा और प्यार करने वाला परिवार मिला था। बस कुछ ही सप्ताह पहले तक वो इस संसार में अकेली थी, लेकिन अब! अब उसके पास एक भरा पूरा, प्रेम करने वाला परिवार था! घर के बड़ों को तो छोड़ो, वो दोनों बच्चे - अजय और अमर भी उसको बहुत प्रेम करते, और ‘चाची, चाची’ करके उसके आगे पीछे लगे रहते थे।

और उधर जय को लग रहा था कि जिस तरह की पत्नी की उसको कामना थी, वैसी ही हू-ब-हू उसको मिल गई थी... वो अवश्य ही उससे बड़ी थी, कहीं अधिक पढ़ी-लिखी थी, लेकिन वो बहुत ही सुन्दर, गुणी, बुद्धिमति, और शुद्ध प्रेम का सागर थी! दिन भर के काम के बाद, शाम को मीना के आलिंगन में आ कर उसकी परेशानियाँ और थकावट ग़ायब हो जाती। वो सच में प्रेम और सुख का सागर थी - बिल्कुल उसकी माँ जैसी! अजय और अमर - दोनों बच्चों को वो बड़े प्रेम से देखती और उनकी शिक्षा पर भी ध्यान रखती। चाची की उपस्थिति में, दोनों को एक पल के लिए भी अपनी माँ की अनुपस्थिति महसूस न हुई! यह सब बड़े सौभाग्य से होता है, और ऐसी पत्नी बड़े ही सौभाग्य से मिलती है। मीना के लिए उसके मन में प्रतिदिन प्रेम और आदर बढ़ता ही जा रहा था।

लिहाज़ा, दोनों प्रगाढ़ता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी - न केवल भावनात्मक, मानसिक, और आत्मिक तौर पर, बल्कि शारीरिक तौर पर भी! जब पारस्परिक प्रेम शारीरिक सीमाओं को लाँघ लेता है, तब प्रेम करने वालों को केवल सुख ही सुख महसूस होता है। दोनों एक दूसरे को इतना चाहते थे, कि मीना की गर्भावस्था में भी सम्भोग करना चाहते थे। शुरू शुरू में जय के मन में इसको ले कर थोड़ा संशय था, लेकिन मीना की गायकोनोलॉजिस्ट ने उनको आश्वासन दिया कि गर्भावस्था के समय भी आनंदमय सेक्स किया जा सकता है... बस थोड़ी बहुत सावधानी बरतनी होगी!

डॉक्टर से हरी झंडी मिलने पर दोनों ही डिलीवरी होने तक के सुरक्षित समय तक, सम्भोग का आनंद लेते रहे। मीना को भी जय का संग अच्छा लगता! उसके साथ सम्भोग करना बड़ा आनंददायक और सुखकारी था। जय अभी भी कई मामलों में बच्चों जैसा था - उसके अंदर यौन क्रीड़ा को ले कर अपार उत्साह था, और वो बिस्तर में कई सारे प्रयोग करता! मीना को भी सब कुछ अच्छा लगता, और वो भी पूरे उत्साह से उसका साथ देती और सम्भोग का आनंद उठाती। उसको अच्छा लगता कि अवश्य ही उसका शरीर गर्भावस्था के कारण बेडौल हो गया था, लेकिन फिर भी उसका पति न केवल उसको अभी भी आकर्षक पाता था, बल्कि पूरे उत्साह से उसके साथ सम्भोग करता था। वो संतुष्ट थी और आनंदमय थी।

*

क्लेयर और आदित्य के वापस आने पर मीना और जय को और भी निकट आने का अवसर मिलने लगा। वो दोनों भी अपनी तरफ से पूरा प्रयास करते रहते कि जय और मीना अपनी शादी के पहले साल और मीना की प्रेग्नेंसी का पूरा आनंद उठा सकें! वो कभी उन दोनों को रोमांटिक डिनर के लिए भेजते, तो कभी क्लासिकल म्यूज़िक की किसी महफ़िल में, तो कभी किसी नृत्य की प्रदर्शनी में! आदित्य और क्लेयर उन दोनों के साथ, अपने बच्चों के जैसे ही व्यवहार करते, उन दोनों को खुश रखते।

*
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #39


ऐसे ही करते करते मीना की डिलीवरी का समय निकट आ गया।

जैसा कि सभी अपेक्षित भी था, घर के सभी सदस्य उद्विग्न भी थे, और उत्साहित भी! संतान का होना ऐसी ही मिली-जुली भावना ले कर आता है। अच्छी बात यह थी कि मीना को बेहद उत्कृष्ट चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी। डॉक्टरों ने भी सभी को पूरा आश्वासन दिया था कि सब कुछ बढ़िया रहेगा, और चिंता करने का कोई कारण नहीं है। अमेरिका में अधिकतर ‘प्राकृतिक प्रसूति’ को तरजीह दी जाती है। वो भारतीय डॉक्टरों के जैसे ‘सिज़ेरियन प्रसूति’ करने को उद्धत नहीं रहते। प्रसव एक प्राकृतिक व्यवस्था और प्रक्रिया होती है, और यदि माता स्वस्थ है, उसकी दिनचर्या स्वस्थ है, तो सीज़ेरियन करने का कोई औचित्य नहीं है।

जब डिलीवरी का समय आया, तब डॉक्टरों ने जय और मीना को एक बार फिर से सब कुछ समझा दिया, कि वो इस प्रसव से क्या अपेक्षा रखें। मीना को तकलीफ़ होगी, यह सभी को पता था, किन्तु यह अपेक्षित भी था। माँ, आदित्य और क्लेयर को खुद भी प्रसूति पीड़ा और उसके अनुभवों के बारे में सब कुछ पता था, लिहाज़ा, उन्होंने भी उन दोनों को आश्वस्त किया, और साथ ही साथ उनको माता पिता बनने की अग्रिम बधाईयाँ भी दीं। भारत से उनकी माँ भी लगातार फ़ोन पर उनके साथ बनी हुई थीं - उन्होंने मीना और जय से देर तक बातें करीं और कहा कि वो ठीक हो रही हैं और लगभग दो से तीन महीने में उनको लम्बी यात्रा करने की अनुमति मिल जाएगी। और फिर वो बड़े आराम से अपने दोनों नए बच्चों - मीना, और जय और मीना की संतान - से मिलेंगी! इस तरह की बातें कर और सुन कर मीना के मन में जो भी चिंताएँ शेष थीं, वो सब समाप्त हो गई। अब वो स्वयं भी अपने माँ बनने का इंतज़ार करने लगी।

हॉस्पिटल में दाखिले की आधी रात के बाद मीना को प्रसव की बलवती पीड़ा शुरू हुई, जो लगभग चार घण्टे तक चली। जय और क्लेयर इस दौरान प्रसूति गृह में ही मौजूद थे और उसको सम्बल प्रदान कर रहे थे। आदित्य थोड़ा कोमल हृदय का आदमी था, लिहाज़ा, वो अस्पताल के अन्य कार्यों में लगा हुआ था। उधर जय को ऐसा लग रहा था कि जैसे सदियाँ बीती जा रही हों! वो मीना को किसी भी तरह की तकलीफ़ में नहीं देख सकता था, और उसको यूँ रोते कराहते देखना उसके लिए असह्य हो रहा था। उसका मन हो रहा था कि जितनी जल्दी हो सके, वो अपनी संतान से मिल सके, और साथ ही साथ मीना का भी पीड़ा वाला अनुभव समाप्त हो! किन्तु हर काम अपने नियत समय पर ही होता है।

आखिरकार, ब्रह्म मुहूर्त में मीना ने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी क्या, कहिए दुनिया जहान की खुशियों को जन्म दे दिया मीना ने! माता पिता बनते ही आप जैसे प्रकृति की सभी सीमाओं को लाँघ जाते हैं। अनगिनत वर्षों से चले आ रहे जीवन-क्रम को आप आगे बढ़ा देते हैं। आपका अंश अब केवल आप ही में नहीं, बल्कि एक नन्ही सी जान में भी बसने लगता है। पिता बनने का एहसास जय को बहुत ही अद्भुत लग रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे वो... नाचे, या ख़ुशी के मारे चिल्लाये!

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स जय... मीना,” उसकी समय मीना की डॉक्टर ने कहा, “मैनी मैनी कॉन्ग्रैचुलेशन्स... यू आर नाऊ प्राउड पेरेंट्स ऑफ़ अ ब्यूटीफुल गर्ल!”

“ओह थैंक यू सो मच डॉक्टर...” जय का चेहरा हज़ार वाट के बल्ब जैसा चमक रहा था।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स मीना... कॉन्ग्रैचुलेशन्स जय,” क्लेयर भी बहुत प्रसन्न थी।

मीना थकी हुई थी, इसलिए वो केवल मुस्कुरा दी।

“थैंक यू भाभी... थैंक यू सो मच!” जय ने क्लेयर को आनंद से अपनी गोद में उठा लिया, “ओह... आई ऍम सो हैप्पी भाभी, सो हैप्पी!”

“हा हा... जय, प्लीज बी केयरफुल...” डॉक्टर ने जय को चेताया।

ऐसा न हो कि उत्तेजना में कोई छोटी-मोटी दुर्घटना घट जाए!

“ओह यस यस... सॉरी डॉक्टर!”

लेकिन जय अपनी ख़ुशी को दबा के नहीं रख सकता था। आज के जैसा सुन्दर दिन उसके जीवन में कभी नहीं आया था। उसको कैसी प्रतिक्रिया करनी थी, उसको समझ नहीं आ रहा था। पिता बनना एक अद्भुत उपलब्धि होती है।

“व्हाट शुड व्ही नोट द बेबीस नेम ऐस...?” एक नर्स ने पूछा।

नवजात बच्चों का नामकरण करने के लिए अमेरिका में, भारत के जैसे नामकरण संस्कार करने तक का महीनों लम्बा समय नहीं लिया जाता। जन्म के समय ही कानूनी आवश्यकताओं के मद्देनज़र बच्चों का नाम लिखा जाता है। इसलिए, अक्सर ही लोग जन्म के पहले से ही अपने बच्चों के नाम सोच कर रखते हैं।

जय ने भी सोचा हुआ था।

“चित्रांगदा... हर नेम इस चित्रांगदा! एंड हर पेट नेम इस, चित्रा...” उसने डॉक्टर और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को बड़े गर्व से अपनी नवजात बेटी का नाम बताया, और मीना की तरफ देखा।

मीना थक गई थी लेकिन जय के मुँह से अपनी पुत्री का नाम सुन कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई।

“चित्रांगदा...” उसने कमज़ोर लेकिन प्रसन्न आवाज़ में अपनी बेटी का नाम दोहराया।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स, माय लव...” जय ने बड़े प्यार से मीना से कहा।

वो मुस्कुराई, “ब्यूटीफुल नेम... आई लव यू...”

एक नर्स ने मीना की पीठ के पीछे तकिए लगा दिए, जिससे उसको थोड़ा आराम मिल सके। उसकी डॉक्टर ने उसको चेक किया और बताया कि मीना पूरी तरह स्वस्थ है, और यह थकावट एक दो दिन में पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। हाँ, लेकिन शरीर को पूरी तरह से रिकवर करने के लिए कुछ सप्ताह लग जाएँगे। अच्छी बात थी।

इतनी देर में एक अन्य नर्स ने नन्ही चित्रांगदा - “चित्रा” - को साफ़ कर के, और मुलायम से कपड़े में लपेट कर मीना के सुपुर्द कर दिया। मीना ने नन्ही चित्रा को अपने सीने से से लगा लिया था और वो पूरी शांति के साथ अपनी माँ के सीने पर गाल टिकाए लेटी हुई थी... शायद अपनी माँ के दिल की धड़कनों को सुन रही थी! उसकी आँखें खुली हुई थीं... काली काली चमकती आँखें... उनमें नए नए जीवन की चमक थी! बच्ची एकदम शांत थी - उसको देख कर कोई भी आह्लादित हुए बिना न रह सके!

“कैसी हो मीना?”

“आई ऍम सो टायर्ड, क्लेयर...” मीना मुस्कुराते हुए बोली, “बट वैरी हैप्पी! ... सुपर हैप्पी!”

जय चित्रा को अपनी गोदी में लेना चाहता था। लेकिन क्लेयर ने उसको मना किया,

“जय... पहले उसको दूध तो पिला लेने दो, फिर जितना मन करे, चित्रा को खिला लेना...”

“यस भाभी...” कह कर जय ने बच्ची को मीना की बाहों में दे दिया।

मीना ने हॉस्पिटल वाला गाउन पहना हुआ था; उसका एक सिरा अपने स्तन से हटा कर, उसने चित्रा को अपने स्तन से लगा लिया। बच्चों में यह नैसर्गिक ज्ञान होता है - माँ के स्तनों को वो पहचानने से पहले ही जानते हैं। अपनी माँ के स्तन का चूचक अपने होंठों पर महसूस करते ही चित्रा का मुँह स्वतः खुल गया और जैसी किसी स्वचालित प्रक्रिया स्वरुप उसका स्तनपान शुरू हो गया। चित्रा बिलकुल अधीर हो कर दूध पी रही ही।

उसको स्तनपान करता देख कर वहाँ उपस्थित सभी लोगों के होंठों पर या तो हँसी आ गई या फिर मुस्कान! एक नर्स ने तो कहा भी कि बच्ची इतने जोश से दूध पी रही है कि जैसे न जाने कब से भूखी हो!

अद्भुत सा दृश्य था! जय की आँखें उसी स्थान पर जमी हुई थीं जहाँ बच्ची का मुँह और मीना का चूचक मिल रहे थे। क्लेयर ने देखा कि जय क्या देख रहा था, और यह भी कि वो यह दृश्य देख कर भावुक हुआ जा रहा था।

“क्या हुआ जय?” उसने पूछा।

“दिस इस सो ब्यूटीफुल, भाभी!”

“आई नो! ... हर माँ अपने बच्चे को दूध पिलाना चाहती है... देयर कांट बी अ मोर डिवाइन सीन ऑन दिस अर्थ!”

“आप सही कह रही हैं भाभी...”

क्लेयर मुस्कुराई, “... अच्छा, तुम यहाँ मीना के साथ बैठो। मैं जा कर आदित्य को यह खुश-ख़बरी दे कर आती हूँ।”

“जी भाभी...”

जब क्लेयर बाहर चली गई, और तीनों उस कमरे में अकेले रह गए, तब जय ने बड़े प्यार से मीना का हाथ थाम लिया।

“थैंक यू सो मच, मेरी जान!” उसने कहा और मीना के हाथ को चूमा।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “क्या हो गया हुकुम? ... इतने इमोशनल क्यों हो गए?”

“तुमको नहीं पता... लेकिन हमारी बेटी चमत्कार है! ... शी इस सो परफेक्ट! ओह गॉड!”

“हर बाप को अपनी संतान ऐसी ही लगती है!”

“लगती होगी... लेकिन मेरी तो है!” जय ने बाल-पन वाले भाव से कहा।

उस थकावट में भी मीना को हँसी आ गई। लेकिन हँसने से उसको पेट में दर्द सा हो आया।

“आऊ...”

“क्या हुआ मेरी जान? कोई प्रॉब्लम?”

“नहीं प्रॉब्लम नहीं, बट आल माय मसल्स आर सोर... इसलिए हँसने पर दर्द हुआ!”

“ओह, तो अभी कुछ दिन कम जोक्स सुनाऊँगा...”

“ओह जय... मेरे जय... आई लव यू!”

“आई नो!”

दोनों ऐसी बातें कर ही रहे थे, कि क्लेयर आदित्य के साथ ही कमरे में आई।

आदित्य ने भी मीना और जय को माता पिता बनने की बहुत बहुत बधाईयाँ दीं और कुछ समय वहीं रहने के बाद क्लेयर को ले कर घर चला गया, कि उन दोनों के लिए कुछ ‘बढ़िया’ बना कर लाया जाएगा रात के लिए। अजय और अमर भी अपनी गुड़िया जैसी बहन से मिलने को उत्सुक थे, अतः शाम को पूरा परिवार, यहीं अस्पताल में ही इकठ्ठा होने वाला था!

*
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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तो आखिर राज परिवार का श्राप समाप्त हुआ।

बढ़िया अपडेट भाई जी। :applause:


अमेरिका और यहां के चिकित्सीय सेवा में सबसे बड़ा अन्तर यही है कि वहां ये सेवा है और यहां पेशा।

अब बस मां जी के आने की प्रतीक्षा है ताकि कुछ रहस्य सुलझे।

वैसे मुझे लगा था कि सुहासिनी नाम रखा जायेगा बिटिया का।
 

parkas

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Update #38


अपनी माँ से मिल कर, और कुछ अन्य सामाजिक प्रयोजन निबटा कर, अपनी भारत यात्रा संपन्न कर के, कोई चार सप्ताह बाद आदित्य और क्लेयर दोनों वापस शिकागो लौट आये। माँ अब पहले से बहुत ठीक थीं, और अपने नियत समय पर संतोषजनक स्वास्थ्य लाभ पा रही थीं। उनकी हड्डियाँ जुड़ने, और उनमें समुचित बल आने में अपना प्राकृतिक तय समय लगना था, और जय और मीना की संतान होने में भी! इसलिए, फिलहाल इंतज़ार करने के अतिरिक्त और कुछ किया नहीं जा सकता था।

हाँलाकि आदित्य और क्लेयर दोनों ने ही माँ के पास ही रुक जाने की पेशकश करी थी, लेकिन उन्होंने ही इस विचार के क्रियान्वयन से साफ़ मना कर दिया था। उन्होंने आदित्य को समझाया कि अवश्य ही जय की शादी हो गई है और उसको अब संतान भी होने वाली है, लेकिन फिर भी वो अभी छोटा ही है, और उस पर यूँ अचानक से ही इतने बड़े बिज़नेस की, दोनों बच्चों को सम्हालने की, और मीना की गर्भावस्था की पूरी ज़िम्मेदारी यूँ ही डाल देना सही नहीं होगा। आदित्य ने माँ को समझाने की बड़ी कोशिश करी कि अवश्य ही जय अभी नौसिखिया है, लेकिन मीना स्वयं भी बिज़नेस चलाने में सक्षम है - सक्षम क्या, उस अकेली में ही उन दोनों ही भाईयों से भी अधिक क्षमता है!

आदित्य की बात सही हो सकती थी, लेकिन माँ मानी नहीं। उनका कहना था कि गर्भावस्था में मीना पर किसी भी तरह का तनाव नहीं होना चाहिए - बिज़नेस की अभी की स्थिति को देख कर, वो होता हुआ संभव नहीं दिख रहा था। बिज़नेस सुधार पर था, लेकिन अभी भी ऐसी कई सारी बातें थीं, जिनके कारण उसको सम्हालने वाले को यात्रा करना, और अनावश्यक तनाव लेना अवश्यम्भावी था! माँ को इस बात का भी मलाल था कि जय और मीना को हनीमून पर जाने तक का भी अवसर नहीं मिला था - ऐसे भाग भाग कर दोनों का विवाह हुआ था! और अब मीना गर्भवती भी हो गई थी! ऐसे में अगर घर पर ही दोनों को एक दूसरे के अंतर्ज्ञान का अवसर मिला था, तो उसका आनंद लेने में कोई बुराई नहीं थी। माँ की बातों में समुचित तर्क था, लिहाज़ा आदित्य और क्लेयर को वापस आना पड़ा।

*

उधर, मीना की गर्भावस्था बड़ी ही संतोषजनक और सामान्य तरीके से चल रही थी! अभी तक किसी भी तरह की कोई भी परेशानी सामने नहीं आई थी, और उसके डॉक्टर के अनुसार, भविष्य में किसी भी तरह की परेशानी होने का कोई अंदेशा भी नहीं था। मीना स्वस्थ थी और उसकी दिनचर्या अनुशासित थी। उसके खान-पान और व्यायाम की दैनिक क्रियाओं में कोई अंतर नहीं आया था, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं लग रही थी।

माँ ने जैसी अपेक्षा करी थी, उसी के अनुसार मीना के गर्भ में पलते, बढ़ते बच्चे के समान ही, जय और उसका प्रेम भी प्रति-क्षण बढ़ रहा था। अगाध प्रेम होना किसी भी सम्बन्ध को अवलंब देता है, लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए, उसके साथ साथ, एक दूसरे के बारे में अच्छी समझ होना भी आवश्यक है। शादी से पहले एक दूसरे को जानने समझने का बहुत अवसर नहीं मिला था दोनों को! लेकिन साथ रहते हुए अब तक दोनों ही एक दूसरे को अच्छी तरह से जान गए थे।

मीना इस बात को स्वीकार कर चुकी थी कि उसके जीवन में सच में कोई अद्भत सी बात हो गई थी... कोई ईश्वरीय कृपा हुई थी उस पर, कि उसको जय जैसा पति मिला था - जो सच्चे मायनों में उसका जीवन-साथी था! अवश्य ही वो उससे छोटा था, और सांसारिक सरोकारों में वो नादान था, लेकिन उसका प्रेम शुद्ध था! वो मीना को किसी राजकुमारी के समान रखता था! और उसका ससुराल! मीना इसी बात से लहालोट हुई रहती कि उसको इतना अच्छा और प्यार करने वाला परिवार मिला था। बस कुछ ही सप्ताह पहले तक वो इस संसार में अकेली थी, लेकिन अब! अब उसके पास एक भरा पूरा, प्रेम करने वाला परिवार था! घर के बड़ों को तो छोड़ो, वो दोनों बच्चे - अजय और अमर भी उसको बहुत प्रेम करते, और ‘चाची, चाची’ करके उसके आगे पीछे लगे रहते थे।

और उधर जय को लग रहा था कि जिस तरह की पत्नी की उसको कामना थी, वैसी ही हू-ब-हू उसको मिल गई थी... वो अवश्य ही उससे बड़ी थी, कहीं अधिक पढ़ी-लिखी थी, लेकिन वो बहुत ही सुन्दर, गुणी, बुद्धिमति, और शुद्ध प्रेम का सागर थी! दिन भर के काम के बाद, शाम को मीना के आलिंगन में आ कर उसकी परेशानियाँ और थकावट ग़ायब हो जाती। वो सच में प्रेम और सुख का सागर थी - बिल्कुल उसकी माँ जैसी! अजय और अमर - दोनों बच्चों को वो बड़े प्रेम से देखती और उनकी शिक्षा पर भी ध्यान रखती। चाची की उपस्थिति में, दोनों को एक पल के लिए भी अपनी माँ की अनुपस्थिति महसूस न हुई! यह सब बड़े सौभाग्य से होता है, और ऐसी पत्नी बड़े ही सौभाग्य से मिलती है। मीना के लिए उसके मन में प्रतिदिन प्रेम और आदर बढ़ता ही जा रहा था।

लिहाज़ा, दोनों प्रगाढ़ता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी - न केवल भावनात्मक, मानसिक, और आत्मिक तौर पर, बल्कि शारीरिक तौर पर भी! जब पारस्परिक प्रेम शारीरिक सीमाओं को लाँघ लेता है, तब प्रेम करने वालों को केवल सुख ही सुख महसूस होता है। दोनों एक दूसरे को इतना चाहते थे, कि मीना की गर्भावस्था में भी सम्भोग करना चाहते थे। शुरू शुरू में जय के मन में इसको ले कर थोड़ा संशय था, लेकिन मीना की गायकोनोलॉजिस्ट ने उनको आश्वासन दिया कि गर्भावस्था के समय भी आनंदमय सेक्स किया जा सकता है... बस थोड़ी बहुत सावधानी बरतनी होगी!

डॉक्टर से हरी झंडी मिलने पर दोनों ही डिलीवरी होने तक के सुरक्षित समय तक, सम्भोग का आनंद लेते रहे। मीना को भी जय का संग अच्छा लगता! उसके साथ सम्भोग करना बड़ा आनंददायक और सुखकारी था। जय अभी भी कई मामलों में बच्चों जैसा था - उसके अंदर यौन क्रीड़ा को ले कर अपार उत्साह था, और वो बिस्तर में कई सारे प्रयोग करता! मीना को भी सब कुछ अच्छा लगता, और वो भी पूरे उत्साह से उसका साथ देती और सम्भोग का आनंद उठाती। उसको अच्छा लगता कि अवश्य ही उसका शरीर गर्भावस्था के कारण बेडौल हो गया था, लेकिन फिर भी उसका पति न केवल उसको अभी भी आकर्षक पाता था, बल्कि पूरे उत्साह से उसके साथ सम्भोग करता था। वो संतुष्ट थी और आनंदमय थी।

*

क्लेयर और आदित्य के वापस आने पर मीना और जय को और भी निकट आने का अवसर मिलने लगा। वो दोनों भी अपनी तरफ से पूरा प्रयास करते रहते कि जय और मीना अपनी शादी के पहले साल और मीना की प्रेग्नेंसी का पूरा आनंद उठा सकें! वो कभी उन दोनों को रोमांटिक डिनर के लिए भेजते, तो कभी क्लासिकल म्यूज़िक की किसी महफ़िल में, तो कभी किसी नृत्य की प्रदर्शनी में! आदित्य और क्लेयर उन दोनों के साथ, अपने बच्चों के जैसे ही व्यवहार करते, उन दोनों को खुश रखते।

*
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

kas1709

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Update #39


ऐसे ही करते करते मीना की डिलीवरी का समय निकट आ गया।

जैसा कि सभी अपेक्षित भी था, घर के सभी सदस्य उद्विग्न भी थे, और उत्साहित भी! संतान का होना ऐसी ही मिली-जुली भावना ले कर आता है। अच्छी बात यह थी कि मीना को बेहद उत्कृष्ट चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी। डॉक्टरों ने भी सभी को पूरा आश्वासन दिया था कि सब कुछ बढ़िया रहेगा, और चिंता करने का कोई कारण नहीं है। अमेरिका में अधिकतर ‘प्राकृतिक प्रसूति’ को तरजीह दी जाती है। वो भारतीय डॉक्टरों के जैसे ‘सिज़ेरियन प्रसूति’ करने को उद्धत नहीं रहते। प्रसव एक प्राकृतिक व्यवस्था और प्रक्रिया होती है, और यदि माता स्वस्थ है, उसकी दिनचर्या स्वस्थ है, तो सीज़ेरियन करने का कोई औचित्य नहीं है।

जब डिलीवरी का समय आया, तब डॉक्टरों ने जय और मीना को एक बार फिर से सब कुछ समझा दिया, कि वो इस प्रसव से क्या अपेक्षा रखें। मीना को तकलीफ़ होगी, यह सभी को पता था, किन्तु यह अपेक्षित भी था। माँ, आदित्य और क्लेयर को खुद भी प्रसूति पीड़ा और उसके अनुभवों के बारे में सब कुछ पता था, लिहाज़ा, उन्होंने भी उन दोनों को आश्वस्त किया, और साथ ही साथ उनको माता पिता बनने की अग्रिम बधाईयाँ भी दीं। भारत से उनकी माँ भी लगातार फ़ोन पर उनके साथ बनी हुई थीं - उन्होंने मीना और जय से देर तक बातें करीं और कहा कि वो ठीक हो रही हैं और लगभग दो से तीन महीने में उनको लम्बी यात्रा करने की अनुमति मिल जाएगी। और फिर वो बड़े आराम से अपने दोनों नए बच्चों - मीना, और जय और मीना की संतान - से मिलेंगी! इस तरह की बातें कर और सुन कर मीना के मन में जो भी चिंताएँ शेष थीं, वो सब समाप्त हो गई। अब वो स्वयं भी अपने माँ बनने का इंतज़ार करने लगी।

हॉस्पिटल में दाखिले की आधी रात के बाद मीना को प्रसव की बलवती पीड़ा शुरू हुई, जो लगभग चार घण्टे तक चली। जय और क्लेयर इस दौरान प्रसूति गृह में ही मौजूद थे और उसको सम्बल प्रदान कर रहे थे। आदित्य थोड़ा कोमल हृदय का आदमी था, लिहाज़ा, वो अस्पताल के अन्य कार्यों में लगा हुआ था। उधर जय को ऐसा लग रहा था कि जैसे सदियाँ बीती जा रही हों! वो मीना को किसी भी तरह की तकलीफ़ में नहीं देख सकता था, और उसको यूँ रोते कराहते देखना उसके लिए असह्य हो रहा था। उसका मन हो रहा था कि जितनी जल्दी हो सके, वो अपनी संतान से मिल सके, और साथ ही साथ मीना का भी पीड़ा वाला अनुभव समाप्त हो! किन्तु हर काम अपने नियत समय पर ही होता है।

आखिरकार, ब्रह्म मुहूर्त में मीना ने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी क्या, कहिए दुनिया जहान की खुशियों को जन्म दे दिया मीना ने! माता पिता बनते ही आप जैसे प्रकृति की सभी सीमाओं को लाँघ जाते हैं। अनगिनत वर्षों से चले आ रहे जीवन-क्रम को आप आगे बढ़ा देते हैं। आपका अंश अब केवल आप ही में नहीं, बल्कि एक नन्ही सी जान में भी बसने लगता है। पिता बनने का एहसास जय को बहुत ही अद्भुत लग रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे वो... नाचे, या ख़ुशी के मारे चिल्लाये!

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स जय... मीना,” उसकी समय मीना की डॉक्टर ने कहा, “मैनी मैनी कॉन्ग्रैचुलेशन्स... यू आर नाऊ प्राउड पेरेंट्स ऑफ़ अ ब्यूटीफुल गर्ल!”

“ओह थैंक यू सो मच डॉक्टर...” जय का चेहरा हज़ार वाट के बल्ब जैसा चमक रहा था।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स मीना... कॉन्ग्रैचुलेशन्स जय,” क्लेयर भी बहुत प्रसन्न थी।

मीना थकी हुई थी, इसलिए वो केवल मुस्कुरा दी।

“थैंक यू भाभी... थैंक यू सो मच!” जय ने क्लेयर को आनंद से अपनी गोद में उठा लिया, “ओह... आई ऍम सो हैप्पी भाभी, सो हैप्पी!”

“हा हा... जय, प्लीज बी केयरफुल...” डॉक्टर ने जय को चेताया।

ऐसा न हो कि उत्तेजना में कोई छोटी-मोटी दुर्घटना घट जाए!

“ओह यस यस... सॉरी डॉक्टर!”

लेकिन जय अपनी ख़ुशी को दबा के नहीं रख सकता था। आज के जैसा सुन्दर दिन उसके जीवन में कभी नहीं आया था। उसको कैसी प्रतिक्रिया करनी थी, उसको समझ नहीं आ रहा था। पिता बनना एक अद्भुत उपलब्धि होती है।

“व्हाट शुड व्ही नोट द बेबीस नेम ऐस...?” एक नर्स ने पूछा।

नवजात बच्चों का नामकरण करने के लिए अमेरिका में, भारत के जैसे नामकरण संस्कार करने तक का महीनों लम्बा समय नहीं लिया जाता। जन्म के समय ही कानूनी आवश्यकताओं के मद्देनज़र बच्चों का नाम लिखा जाता है। इसलिए, अक्सर ही लोग जन्म के पहले से ही अपने बच्चों के नाम सोच कर रखते हैं।

जय ने भी सोचा हुआ था।

“चित्रांगदा... हर नेम इस चित्रांगदा! एंड हर पेट नेम इस, चित्रा...” उसने डॉक्टर और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को बड़े गर्व से अपनी नवजात बेटी का नाम बताया, और मीना की तरफ देखा।

मीना थक गई थी लेकिन जय के मुँह से अपनी पुत्री का नाम सुन कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई।

“चित्रांगदा...” उसने कमज़ोर लेकिन प्रसन्न आवाज़ में अपनी बेटी का नाम दोहराया।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स, माय लव...” जय ने बड़े प्यार से मीना से कहा।

वो मुस्कुराई, “ब्यूटीफुल नेम... आई लव यू...”

एक नर्स ने मीना की पीठ के पीछे तकिए लगा दिए, जिससे उसको थोड़ा आराम मिल सके। उसकी डॉक्टर ने उसको चेक किया और बताया कि मीना पूरी तरह स्वस्थ है, और यह थकावट एक दो दिन में पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। हाँ, लेकिन शरीर को पूरी तरह से रिकवर करने के लिए कुछ सप्ताह लग जाएँगे। अच्छी बात थी।

इतनी देर में एक अन्य नर्स ने नन्ही चित्रांगदा - “चित्रा” - को साफ़ कर के, और मुलायम से कपड़े में लपेट कर मीना के सुपुर्द कर दिया। मीना ने नन्ही चित्रा को अपने सीने से से लगा लिया था और वो पूरी शांति के साथ अपनी माँ के सीने पर गाल टिकाए लेटी हुई थी... शायद अपनी माँ के दिल की धड़कनों को सुन रही थी! उसकी आँखें खुली हुई थीं... काली काली चमकती आँखें... उनमें नए नए जीवन की चमक थी! बच्ची एकदम शांत थी - उसको देख कर कोई भी आह्लादित हुए बिना न रह सके!

“कैसी हो मीना?”

“आई ऍम सो टायर्ड, क्लेयर...” मीना मुस्कुराते हुए बोली, “बट वैरी हैप्पी! ... सुपर हैप्पी!”

जय चित्रा को अपनी गोदी में लेना चाहता था। लेकिन क्लेयर ने उसको मना किया,

“जय... पहले उसको दूध तो पिला लेने दो, फिर जितना मन करे, चित्रा को खिला लेना...”

“यस भाभी...” कह कर जय ने बच्ची को मीना की बाहों में दे दिया।

मीना ने हॉस्पिटल वाला गाउन पहना हुआ था; उसका एक सिरा अपने स्तन से हटा कर, उसने चित्रा को अपने स्तन से लगा लिया। बच्चों में यह नैसर्गिक ज्ञान होता है - माँ के स्तनों को वो पहचानने से पहले ही जानते हैं। अपनी माँ के स्तन का चूचक अपने होंठों पर महसूस करते ही चित्रा का मुँह स्वतः खुल गया और जैसी किसी स्वचालित प्रक्रिया स्वरुप उसका स्तनपान शुरू हो गया। चित्रा बिलकुल अधीर हो कर दूध पी रही ही।

उसको स्तनपान करता देख कर वहाँ उपस्थित सभी लोगों के होंठों पर या तो हँसी आ गई या फिर मुस्कान! एक नर्स ने तो कहा भी कि बच्ची इतने जोश से दूध पी रही है कि जैसे न जाने कब से भूखी हो!

अद्भुत सा दृश्य था! जय की आँखें उसी स्थान पर जमी हुई थीं जहाँ बच्ची का मुँह और मीना का चूचक मिल रहे थे। क्लेयर ने देखा कि जय क्या देख रहा था, और यह भी कि वो यह दृश्य देख कर भावुक हुआ जा रहा था।

“क्या हुआ जय?” उसने पूछा।

“दिस इस सो ब्यूटीफुल, भाभी!”

“आई नो! ... हर माँ अपने बच्चे को दूध पिलाना चाहती है... देयर कांट बी अ मोर डिवाइन सीन ऑन दिस अर्थ!”

“आप सही कह रही हैं भाभी...”

क्लेयर मुस्कुराई, “... अच्छा, तुम यहाँ मीना के साथ बैठो। मैं जा कर आदित्य को यह खुश-ख़बरी दे कर आती हूँ।”

“जी भाभी...”

जब क्लेयर बाहर चली गई, और तीनों उस कमरे में अकेले रह गए, तब जय ने बड़े प्यार से मीना का हाथ थाम लिया।

“थैंक यू सो मच, मेरी जान!” उसने कहा और मीना के हाथ को चूमा।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “क्या हो गया हुकुम? ... इतने इमोशनल क्यों हो गए?”

“तुमको नहीं पता... लेकिन हमारी बेटी चमत्कार है! ... शी इस सो परफेक्ट! ओह गॉड!”

“हर बाप को अपनी संतान ऐसी ही लगती है!”

“लगती होगी... लेकिन मेरी तो है!” जय ने बाल-पन वाले भाव से कहा।

उस थकावट में भी मीना को हँसी आ गई। लेकिन हँसने से उसको पेट में दर्द सा हो आया।

“आऊ...”

“क्या हुआ मेरी जान? कोई प्रॉब्लम?”

“नहीं प्रॉब्लम नहीं, बट आल माय मसल्स आर सोर... इसलिए हँसने पर दर्द हुआ!”

“ओह, तो अभी कुछ दिन कम जोक्स सुनाऊँगा...”

“ओह जय... मेरे जय... आई लव यू!”

“आई नो!”

दोनों ऐसी बातें कर ही रहे थे, कि क्लेयर आदित्य के साथ ही कमरे में आई।

आदित्य ने भी मीना और जय को माता पिता बनने की बहुत बहुत बधाईयाँ दीं और कुछ समय वहीं रहने के बाद क्लेयर को ले कर घर चला गया, कि उन दोनों के लिए कुछ ‘बढ़िया’ बना कर लाया जाएगा रात के लिए। अजय और अमर भी अपनी गुड़िया जैसी बहन से मिलने को उत्सुक थे, अतः शाम को पूरा परिवार, यहीं अस्पताल में ही इकठ्ठा होने वाला था!

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parkas

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जैसा कि सभी अपेक्षित भी था, घर के सभी सदस्य उद्विग्न भी थे, और उत्साहित भी! संतान का होना ऐसी ही मिली-जुली भावना ले कर आता है। अच्छी बात यह थी कि मीना को बेहद उत्कृष्ट चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी। डॉक्टरों ने भी सभी को पूरा आश्वासन दिया था कि सब कुछ बढ़िया रहेगा, और चिंता करने का कोई कारण नहीं है। अमेरिका में अधिकतर ‘प्राकृतिक प्रसूति’ को तरजीह दी जाती है। वो भारतीय डॉक्टरों के जैसे ‘सिज़ेरियन प्रसूति’ करने को उद्धत नहीं रहते। प्रसव एक प्राकृतिक व्यवस्था और प्रक्रिया होती है, और यदि माता स्वस्थ है, उसकी दिनचर्या स्वस्थ है, तो सीज़ेरियन करने का कोई औचित्य नहीं है।

जब डिलीवरी का समय आया, तब डॉक्टरों ने जय और मीना को एक बार फिर से सब कुछ समझा दिया, कि वो इस प्रसव से क्या अपेक्षा रखें। मीना को तकलीफ़ होगी, यह सभी को पता था, किन्तु यह अपेक्षित भी था। माँ, आदित्य और क्लेयर को खुद भी प्रसूति पीड़ा और उसके अनुभवों के बारे में सब कुछ पता था, लिहाज़ा, उन्होंने भी उन दोनों को आश्वस्त किया, और साथ ही साथ उनको माता पिता बनने की अग्रिम बधाईयाँ भी दीं। भारत से उनकी माँ भी लगातार फ़ोन पर उनके साथ बनी हुई थीं - उन्होंने मीना और जय से देर तक बातें करीं और कहा कि वो ठीक हो रही हैं और लगभग दो से तीन महीने में उनको लम्बी यात्रा करने की अनुमति मिल जाएगी। और फिर वो बड़े आराम से अपने दोनों नए बच्चों - मीना, और जय और मीना की संतान - से मिलेंगी! इस तरह की बातें कर और सुन कर मीना के मन में जो भी चिंताएँ शेष थीं, वो सब समाप्त हो गई। अब वो स्वयं भी अपने माँ बनने का इंतज़ार करने लगी।

हॉस्पिटल में दाखिले की आधी रात के बाद मीना को प्रसव की बलवती पीड़ा शुरू हुई, जो लगभग चार घण्टे तक चली। जय और क्लेयर इस दौरान प्रसूति गृह में ही मौजूद थे और उसको सम्बल प्रदान कर रहे थे। आदित्य थोड़ा कोमल हृदय का आदमी था, लिहाज़ा, वो अस्पताल के अन्य कार्यों में लगा हुआ था। उधर जय को ऐसा लग रहा था कि जैसे सदियाँ बीती जा रही हों! वो मीना को किसी भी तरह की तकलीफ़ में नहीं देख सकता था, और उसको यूँ रोते कराहते देखना उसके लिए असह्य हो रहा था। उसका मन हो रहा था कि जितनी जल्दी हो सके, वो अपनी संतान से मिल सके, और साथ ही साथ मीना का भी पीड़ा वाला अनुभव समाप्त हो! किन्तु हर काम अपने नियत समय पर ही होता है।

आखिरकार, ब्रह्म मुहूर्त में मीना ने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी क्या, कहिए दुनिया जहान की खुशियों को जन्म दे दिया मीना ने! माता पिता बनते ही आप जैसे प्रकृति की सभी सीमाओं को लाँघ जाते हैं। अनगिनत वर्षों से चले आ रहे जीवन-क्रम को आप आगे बढ़ा देते हैं। आपका अंश अब केवल आप ही में नहीं, बल्कि एक नन्ही सी जान में भी बसने लगता है। पिता बनने का एहसास जय को बहुत ही अद्भुत लग रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे वो... नाचे, या ख़ुशी के मारे चिल्लाये!

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स जय... मीना,” उसकी समय मीना की डॉक्टर ने कहा, “मैनी मैनी कॉन्ग्रैचुलेशन्स... यू आर नाऊ प्राउड पेरेंट्स ऑफ़ अ ब्यूटीफुल गर्ल!”

“ओह थैंक यू सो मच डॉक्टर...” जय का चेहरा हज़ार वाट के बल्ब जैसा चमक रहा था।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स मीना... कॉन्ग्रैचुलेशन्स जय,” क्लेयर भी बहुत प्रसन्न थी।

मीना थकी हुई थी, इसलिए वो केवल मुस्कुरा दी।

“थैंक यू भाभी... थैंक यू सो मच!” जय ने क्लेयर को आनंद से अपनी गोद में उठा लिया, “ओह... आई ऍम सो हैप्पी भाभी, सो हैप्पी!”

“हा हा... जय, प्लीज बी केयरफुल...” डॉक्टर ने जय को चेताया।

ऐसा न हो कि उत्तेजना में कोई छोटी-मोटी दुर्घटना घट जाए!

“ओह यस यस... सॉरी डॉक्टर!”

लेकिन जय अपनी ख़ुशी को दबा के नहीं रख सकता था। आज के जैसा सुन्दर दिन उसके जीवन में कभी नहीं आया था। उसको कैसी प्रतिक्रिया करनी थी, उसको समझ नहीं आ रहा था। पिता बनना एक अद्भुत उपलब्धि होती है।

“व्हाट शुड व्ही नोट द बेबीस नेम ऐस...?” एक नर्स ने पूछा।

नवजात बच्चों का नामकरण करने के लिए अमेरिका में, भारत के जैसे नामकरण संस्कार करने तक का महीनों लम्बा समय नहीं लिया जाता। जन्म के समय ही कानूनी आवश्यकताओं के मद्देनज़र बच्चों का नाम लिखा जाता है। इसलिए, अक्सर ही लोग जन्म के पहले से ही अपने बच्चों के नाम सोच कर रखते हैं।

जय ने भी सोचा हुआ था।

“चित्रांगदा... हर नेम इस चित्रांगदा! एंड हर पेट नेम इस, चित्रा...” उसने डॉक्टर और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को बड़े गर्व से अपनी नवजात बेटी का नाम बताया, और मीना की तरफ देखा।

मीना थक गई थी लेकिन जय के मुँह से अपनी पुत्री का नाम सुन कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई।

“चित्रांगदा...” उसने कमज़ोर लेकिन प्रसन्न आवाज़ में अपनी बेटी का नाम दोहराया।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स, माय लव...” जय ने बड़े प्यार से मीना से कहा।

वो मुस्कुराई, “ब्यूटीफुल नेम... आई लव यू...”

एक नर्स ने मीना की पीठ के पीछे तकिए लगा दिए, जिससे उसको थोड़ा आराम मिल सके। उसकी डॉक्टर ने उसको चेक किया और बताया कि मीना पूरी तरह स्वस्थ है, और यह थकावट एक दो दिन में पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। हाँ, लेकिन शरीर को पूरी तरह से रिकवर करने के लिए कुछ सप्ताह लग जाएँगे। अच्छी बात थी।

इतनी देर में एक अन्य नर्स ने नन्ही चित्रांगदा - “चित्रा” - को साफ़ कर के, और मुलायम से कपड़े में लपेट कर मीना के सुपुर्द कर दिया। मीना ने नन्ही चित्रा को अपने सीने से से लगा लिया था और वो पूरी शांति के साथ अपनी माँ के सीने पर गाल टिकाए लेटी हुई थी... शायद अपनी माँ के दिल की धड़कनों को सुन रही थी! उसकी आँखें खुली हुई थीं... काली काली चमकती आँखें... उनमें नए नए जीवन की चमक थी! बच्ची एकदम शांत थी - उसको देख कर कोई भी आह्लादित हुए बिना न रह सके!

“कैसी हो मीना?”

“आई ऍम सो टायर्ड, क्लेयर...” मीना मुस्कुराते हुए बोली, “बट वैरी हैप्पी! ... सुपर हैप्पी!”

जय चित्रा को अपनी गोदी में लेना चाहता था। लेकिन क्लेयर ने उसको मना किया,

“जय... पहले उसको दूध तो पिला लेने दो, फिर जितना मन करे, चित्रा को खिला लेना...”

“यस भाभी...” कह कर जय ने बच्ची को मीना की बाहों में दे दिया।

मीना ने हॉस्पिटल वाला गाउन पहना हुआ था; उसका एक सिरा अपने स्तन से हटा कर, उसने चित्रा को अपने स्तन से लगा लिया। बच्चों में यह नैसर्गिक ज्ञान होता है - माँ के स्तनों को वो पहचानने से पहले ही जानते हैं। अपनी माँ के स्तन का चूचक अपने होंठों पर महसूस करते ही चित्रा का मुँह स्वतः खुल गया और जैसी किसी स्वचालित प्रक्रिया स्वरुप उसका स्तनपान शुरू हो गया। चित्रा बिलकुल अधीर हो कर दूध पी रही ही।

उसको स्तनपान करता देख कर वहाँ उपस्थित सभी लोगों के होंठों पर या तो हँसी आ गई या फिर मुस्कान! एक नर्स ने तो कहा भी कि बच्ची इतने जोश से दूध पी रही है कि जैसे न जाने कब से भूखी हो!

अद्भुत सा दृश्य था! जय की आँखें उसी स्थान पर जमी हुई थीं जहाँ बच्ची का मुँह और मीना का चूचक मिल रहे थे। क्लेयर ने देखा कि जय क्या देख रहा था, और यह भी कि वो यह दृश्य देख कर भावुक हुआ जा रहा था।

“क्या हुआ जय?” उसने पूछा।

“दिस इस सो ब्यूटीफुल, भाभी!”

“आई नो! ... हर माँ अपने बच्चे को दूध पिलाना चाहती है... देयर कांट बी अ मोर डिवाइन सीन ऑन दिस अर्थ!”

“आप सही कह रही हैं भाभी...”

क्लेयर मुस्कुराई, “... अच्छा, तुम यहाँ मीना के साथ बैठो। मैं जा कर आदित्य को यह खुश-ख़बरी दे कर आती हूँ।”

“जी भाभी...”

जब क्लेयर बाहर चली गई, और तीनों उस कमरे में अकेले रह गए, तब जय ने बड़े प्यार से मीना का हाथ थाम लिया।

“थैंक यू सो मच, मेरी जान!” उसने कहा और मीना के हाथ को चूमा।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “क्या हो गया हुकुम? ... इतने इमोशनल क्यों हो गए?”

“तुमको नहीं पता... लेकिन हमारी बेटी चमत्कार है! ... शी इस सो परफेक्ट! ओह गॉड!”

“हर बाप को अपनी संतान ऐसी ही लगती है!”

“लगती होगी... लेकिन मेरी तो है!” जय ने बाल-पन वाले भाव से कहा।

उस थकावट में भी मीना को हँसी आ गई। लेकिन हँसने से उसको पेट में दर्द सा हो आया।

“आऊ...”

“क्या हुआ मेरी जान? कोई प्रॉब्लम?”

“नहीं प्रॉब्लम नहीं, बट आल माय मसल्स आर सोर... इसलिए हँसने पर दर्द हुआ!”

“ओह, तो अभी कुछ दिन कम जोक्स सुनाऊँगा...”

“ओह जय... मेरे जय... आई लव यू!”

“आई नो!”

दोनों ऐसी बातें कर ही रहे थे, कि क्लेयर आदित्य के साथ ही कमरे में आई।

आदित्य ने भी मीना और जय को माता पिता बनने की बहुत बहुत बधाईयाँ दीं और कुछ समय वहीं रहने के बाद क्लेयर को ले कर घर चला गया, कि उन दोनों के लिए कुछ ‘बढ़िया’ बना कर लाया जाएगा रात के लिए। अजय और अमर भी अपनी गुड़िया जैसी बहन से मिलने को उत्सुक थे, अतः शाम को पूरा परिवार, यहीं अस्पताल में ही इकठ्ठा होने वाला था!

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dhparikh

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जैसा कि सभी अपेक्षित भी था, घर के सभी सदस्य उद्विग्न भी थे, और उत्साहित भी! संतान का होना ऐसी ही मिली-जुली भावना ले कर आता है। अच्छी बात यह थी कि मीना को बेहद उत्कृष्ट चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी। डॉक्टरों ने भी सभी को पूरा आश्वासन दिया था कि सब कुछ बढ़िया रहेगा, और चिंता करने का कोई कारण नहीं है। अमेरिका में अधिकतर ‘प्राकृतिक प्रसूति’ को तरजीह दी जाती है। वो भारतीय डॉक्टरों के जैसे ‘सिज़ेरियन प्रसूति’ करने को उद्धत नहीं रहते। प्रसव एक प्राकृतिक व्यवस्था और प्रक्रिया होती है, और यदि माता स्वस्थ है, उसकी दिनचर्या स्वस्थ है, तो सीज़ेरियन करने का कोई औचित्य नहीं है।

जब डिलीवरी का समय आया, तब डॉक्टरों ने जय और मीना को एक बार फिर से सब कुछ समझा दिया, कि वो इस प्रसव से क्या अपेक्षा रखें। मीना को तकलीफ़ होगी, यह सभी को पता था, किन्तु यह अपेक्षित भी था। माँ, आदित्य और क्लेयर को खुद भी प्रसूति पीड़ा और उसके अनुभवों के बारे में सब कुछ पता था, लिहाज़ा, उन्होंने भी उन दोनों को आश्वस्त किया, और साथ ही साथ उनको माता पिता बनने की अग्रिम बधाईयाँ भी दीं। भारत से उनकी माँ भी लगातार फ़ोन पर उनके साथ बनी हुई थीं - उन्होंने मीना और जय से देर तक बातें करीं और कहा कि वो ठीक हो रही हैं और लगभग दो से तीन महीने में उनको लम्बी यात्रा करने की अनुमति मिल जाएगी। और फिर वो बड़े आराम से अपने दोनों नए बच्चों - मीना, और जय और मीना की संतान - से मिलेंगी! इस तरह की बातें कर और सुन कर मीना के मन में जो भी चिंताएँ शेष थीं, वो सब समाप्त हो गई। अब वो स्वयं भी अपने माँ बनने का इंतज़ार करने लगी।

हॉस्पिटल में दाखिले की आधी रात के बाद मीना को प्रसव की बलवती पीड़ा शुरू हुई, जो लगभग चार घण्टे तक चली। जय और क्लेयर इस दौरान प्रसूति गृह में ही मौजूद थे और उसको सम्बल प्रदान कर रहे थे। आदित्य थोड़ा कोमल हृदय का आदमी था, लिहाज़ा, वो अस्पताल के अन्य कार्यों में लगा हुआ था। उधर जय को ऐसा लग रहा था कि जैसे सदियाँ बीती जा रही हों! वो मीना को किसी भी तरह की तकलीफ़ में नहीं देख सकता था, और उसको यूँ रोते कराहते देखना उसके लिए असह्य हो रहा था। उसका मन हो रहा था कि जितनी जल्दी हो सके, वो अपनी संतान से मिल सके, और साथ ही साथ मीना का भी पीड़ा वाला अनुभव समाप्त हो! किन्तु हर काम अपने नियत समय पर ही होता है।

आखिरकार, ब्रह्म मुहूर्त में मीना ने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी क्या, कहिए दुनिया जहान की खुशियों को जन्म दे दिया मीना ने! माता पिता बनते ही आप जैसे प्रकृति की सभी सीमाओं को लाँघ जाते हैं। अनगिनत वर्षों से चले आ रहे जीवन-क्रम को आप आगे बढ़ा देते हैं। आपका अंश अब केवल आप ही में नहीं, बल्कि एक नन्ही सी जान में भी बसने लगता है। पिता बनने का एहसास जय को बहुत ही अद्भुत लग रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे वो... नाचे, या ख़ुशी के मारे चिल्लाये!

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स जय... मीना,” उसकी समय मीना की डॉक्टर ने कहा, “मैनी मैनी कॉन्ग्रैचुलेशन्स... यू आर नाऊ प्राउड पेरेंट्स ऑफ़ अ ब्यूटीफुल गर्ल!”

“ओह थैंक यू सो मच डॉक्टर...” जय का चेहरा हज़ार वाट के बल्ब जैसा चमक रहा था।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स मीना... कॉन्ग्रैचुलेशन्स जय,” क्लेयर भी बहुत प्रसन्न थी।

मीना थकी हुई थी, इसलिए वो केवल मुस्कुरा दी।

“थैंक यू भाभी... थैंक यू सो मच!” जय ने क्लेयर को आनंद से अपनी गोद में उठा लिया, “ओह... आई ऍम सो हैप्पी भाभी, सो हैप्पी!”

“हा हा... जय, प्लीज बी केयरफुल...” डॉक्टर ने जय को चेताया।

ऐसा न हो कि उत्तेजना में कोई छोटी-मोटी दुर्घटना घट जाए!

“ओह यस यस... सॉरी डॉक्टर!”

लेकिन जय अपनी ख़ुशी को दबा के नहीं रख सकता था। आज के जैसा सुन्दर दिन उसके जीवन में कभी नहीं आया था। उसको कैसी प्रतिक्रिया करनी थी, उसको समझ नहीं आ रहा था। पिता बनना एक अद्भुत उपलब्धि होती है।

“व्हाट शुड व्ही नोट द बेबीस नेम ऐस...?” एक नर्स ने पूछा।

नवजात बच्चों का नामकरण करने के लिए अमेरिका में, भारत के जैसे नामकरण संस्कार करने तक का महीनों लम्बा समय नहीं लिया जाता। जन्म के समय ही कानूनी आवश्यकताओं के मद्देनज़र बच्चों का नाम लिखा जाता है। इसलिए, अक्सर ही लोग जन्म के पहले से ही अपने बच्चों के नाम सोच कर रखते हैं।

जय ने भी सोचा हुआ था।

“चित्रांगदा... हर नेम इस चित्रांगदा! एंड हर पेट नेम इस, चित्रा...” उसने डॉक्टर और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को बड़े गर्व से अपनी नवजात बेटी का नाम बताया, और मीना की तरफ देखा।

मीना थक गई थी लेकिन जय के मुँह से अपनी पुत्री का नाम सुन कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई।

“चित्रांगदा...” उसने कमज़ोर लेकिन प्रसन्न आवाज़ में अपनी बेटी का नाम दोहराया।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स, माय लव...” जय ने बड़े प्यार से मीना से कहा।

वो मुस्कुराई, “ब्यूटीफुल नेम... आई लव यू...”

एक नर्स ने मीना की पीठ के पीछे तकिए लगा दिए, जिससे उसको थोड़ा आराम मिल सके। उसकी डॉक्टर ने उसको चेक किया और बताया कि मीना पूरी तरह स्वस्थ है, और यह थकावट एक दो दिन में पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। हाँ, लेकिन शरीर को पूरी तरह से रिकवर करने के लिए कुछ सप्ताह लग जाएँगे। अच्छी बात थी।

इतनी देर में एक अन्य नर्स ने नन्ही चित्रांगदा - “चित्रा” - को साफ़ कर के, और मुलायम से कपड़े में लपेट कर मीना के सुपुर्द कर दिया। मीना ने नन्ही चित्रा को अपने सीने से से लगा लिया था और वो पूरी शांति के साथ अपनी माँ के सीने पर गाल टिकाए लेटी हुई थी... शायद अपनी माँ के दिल की धड़कनों को सुन रही थी! उसकी आँखें खुली हुई थीं... काली काली चमकती आँखें... उनमें नए नए जीवन की चमक थी! बच्ची एकदम शांत थी - उसको देख कर कोई भी आह्लादित हुए बिना न रह सके!

“कैसी हो मीना?”

“आई ऍम सो टायर्ड, क्लेयर...” मीना मुस्कुराते हुए बोली, “बट वैरी हैप्पी! ... सुपर हैप्पी!”

जय चित्रा को अपनी गोदी में लेना चाहता था। लेकिन क्लेयर ने उसको मना किया,

“जय... पहले उसको दूध तो पिला लेने दो, फिर जितना मन करे, चित्रा को खिला लेना...”

“यस भाभी...” कह कर जय ने बच्ची को मीना की बाहों में दे दिया।

मीना ने हॉस्पिटल वाला गाउन पहना हुआ था; उसका एक सिरा अपने स्तन से हटा कर, उसने चित्रा को अपने स्तन से लगा लिया। बच्चों में यह नैसर्गिक ज्ञान होता है - माँ के स्तनों को वो पहचानने से पहले ही जानते हैं। अपनी माँ के स्तन का चूचक अपने होंठों पर महसूस करते ही चित्रा का मुँह स्वतः खुल गया और जैसी किसी स्वचालित प्रक्रिया स्वरुप उसका स्तनपान शुरू हो गया। चित्रा बिलकुल अधीर हो कर दूध पी रही ही।

उसको स्तनपान करता देख कर वहाँ उपस्थित सभी लोगों के होंठों पर या तो हँसी आ गई या फिर मुस्कान! एक नर्स ने तो कहा भी कि बच्ची इतने जोश से दूध पी रही है कि जैसे न जाने कब से भूखी हो!

अद्भुत सा दृश्य था! जय की आँखें उसी स्थान पर जमी हुई थीं जहाँ बच्ची का मुँह और मीना का चूचक मिल रहे थे। क्लेयर ने देखा कि जय क्या देख रहा था, और यह भी कि वो यह दृश्य देख कर भावुक हुआ जा रहा था।

“क्या हुआ जय?” उसने पूछा।

“दिस इस सो ब्यूटीफुल, भाभी!”

“आई नो! ... हर माँ अपने बच्चे को दूध पिलाना चाहती है... देयर कांट बी अ मोर डिवाइन सीन ऑन दिस अर्थ!”

“आप सही कह रही हैं भाभी...”

क्लेयर मुस्कुराई, “... अच्छा, तुम यहाँ मीना के साथ बैठो। मैं जा कर आदित्य को यह खुश-ख़बरी दे कर आती हूँ।”

“जी भाभी...”

जब क्लेयर बाहर चली गई, और तीनों उस कमरे में अकेले रह गए, तब जय ने बड़े प्यार से मीना का हाथ थाम लिया।

“थैंक यू सो मच, मेरी जान!” उसने कहा और मीना के हाथ को चूमा।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “क्या हो गया हुकुम? ... इतने इमोशनल क्यों हो गए?”

“तुमको नहीं पता... लेकिन हमारी बेटी चमत्कार है! ... शी इस सो परफेक्ट! ओह गॉड!”

“हर बाप को अपनी संतान ऐसी ही लगती है!”

“लगती होगी... लेकिन मेरी तो है!” जय ने बाल-पन वाले भाव से कहा।

उस थकावट में भी मीना को हँसी आ गई। लेकिन हँसने से उसको पेट में दर्द सा हो आया।

“आऊ...”

“क्या हुआ मेरी जान? कोई प्रॉब्लम?”

“नहीं प्रॉब्लम नहीं, बट आल माय मसल्स आर सोर... इसलिए हँसने पर दर्द हुआ!”

“ओह, तो अभी कुछ दिन कम जोक्स सुनाऊँगा...”

“ओह जय... मेरे जय... आई लव यू!”

“आई नो!”

दोनों ऐसी बातें कर ही रहे थे, कि क्लेयर आदित्य के साथ ही कमरे में आई।

आदित्य ने भी मीना और जय को माता पिता बनने की बहुत बहुत बधाईयाँ दीं और कुछ समय वहीं रहने के बाद क्लेयर को ले कर घर चला गया, कि उन दोनों के लिए कुछ ‘बढ़िया’ बना कर लाया जाएगा रात के लिए। अजय और अमर भी अपनी गुड़िया जैसी बहन से मिलने को उत्सुक थे, अतः शाम को पूरा परिवार, यहीं अस्पताल में ही इकठ्ठा होने वाला था!

*
Nice update....
 
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मीनाक्षी और जय के लिए यह बहुत ही खुशी का लम्हा है कि वो अब मां-बाप के श्रेणी मे आ गए । उन्होने एक लक्ष्मी को जन्म दिया ।
एक वैवाहिक युगल के लिए इससे बड़ा उत्सव , इससे बड़ा खुशी कुछ भी नही होता ।
ऐसे बहुत लोग हैं जो मां-बाप बन ही नही पाते और आजीवन संतान सुख की कामना लिए मृत्यु के आगोश मे समा जाते है ।
यह लड़की निस्संदेह उनके लिए एक भावी विरासत है । लेकिन जिज्ञासा यही है कि क्या ये उसी खानदान से विलोंग्स करती है जहां यह श्राप था कि कोई लड़की पैदा ही नही होगी ।
पर इस लड़की का नामकरण जिस तरह से किया गया और जो नाम ' चित्रागंदा ' रखा गया , वो उसी परिवार की ओर आकर्षित करता है ।

इस अपडेट का एक बहुत ही खूबसूरत लम्हा था मीना का अपने नवजात बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग करना , और उस दौरान कुछ लोग का उस वक्त मौजूद रहना और उसी दौरान उन लोगों का रिएक्शन ।
यह कभी भी अभद्र या कामुक हो ही नही सकता । कैसे कोई ऐसे सीन्स पर उत्तेजित हो सकता है ! और यदि कुछ लोग होते है तो वो अवश्य मानसिक रूप से विक्षिप्त है ।

इस विषय पर भी बहुत कुछ कहने का मन करता है लेकिन यहां यह सब संभव नही है ।

अपडेट हमेशा की तरह बेहद ही खूबसूरत और वाह वाह था ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट avsji भाई।
 
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