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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट #40


प्रियम्बदा, राजमहल के एक अति-विशालकाय कक्ष में चंद्रपुर और महाराजपुर के राजपुरोहितों के साथ बैठी हुई, एक अत्यंत ही गहन विचार-विमर्श में व्यस्त थी। विचार विमर्श क्या, वो बस अपनी समस्या का हल चाहती थी! आज की सभा में दो अन्य सिद्ध-पुरुष भी मौज़ूद थे - उनमें से एक थे, केदार-धाम के रावल और दूसरे थे बद्री-धाम के रावल। पूरे एक वर्ष तक चले अनवरत प्रयासों के बाद वो दोनों आज प्रियम्बदा की सभा में शामिल हो सके थे।


ऐसे सिद्ध-पुरुषों के सम्मुख वो क्या बोलती? इसलिए, बस चुप-चाप बैठ कर उनसे अपनी समस्या का समाधान सुनना चाहती थी। कितने वर्ष बीत गए थे, और उसके कितने ही प्रयास विफल हो गए थे। अब तो बस, निराशा ही निराशा थी। उसने सोचा था, कि इन सिद्ध-पुरुषों के पास उसकी समस्या का कोई निदान तो होगा। लेकिन फिलहाल तो वो चारों ही चुप्पी साधे हुए थे। उसको यह बात बहुत अखर भी रही थी। लेकिन उसने क्या सोच कर खुद को ज़ब्त कर रखा था।

कक्ष में चुप्पी व्याप्त थी।

जब बहुत समय बीत गया, तो अंततः केदार धाम के रावल ही बोले, “महारानी... पुत्री... हम आपकी समस्या समझते हैं... भली भाँति समझते हैं। ... जब आपके राजपुरोहित जी महाराज ने हमसे संपर्क साधा था, तब ही हम समझ गए थे कि कोई अति-गंभीर विषय है... इसलिए ही इन्होने हमको याद किया।”

“तो क्या आपको हमारी समस्या का कोई समाधान सूझ गया महाराज?” प्रियम्बदा ने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।

“हाँ भी, और नहीं भी... देखिए पुत्री, कलियुग में ऐसा कुछ हो जाएगा, वो तो आशा से परे है। विश्वास ही नहीं होता... किन्तु हुआ तो है... सत्य को भला कैसा प्रमाण चाहिए? ... महाराजपुर के राज-कुल पर एक सती का श्राप लगा तो है!”

“जी...”

“हमको जहाँ तक ज्ञात है... ऐसे श्राप संभवतः अकाट्य होते हैं, देवी,” बद्री-धाम के रावल बोले।

“तो क्या कोई मार्ग नहीं है महाराज?” प्रियम्बदा की बोली में निराशा साफ़ सुनाई दे रही थी।

“पुत्री, हमने ऐसा नहीं कहा... प्रकृति में प्रत्येक व्याधि की चिकित्सा संभव है... हम मनुष्यों को उसका ज्ञान है अथवा नहीं, यह हमारी समस्या है। किन्तु प्रकृति के पास हर बात का हल है... अब आप हमारे ऋषि-मुनियों को ही ले लीजिए... जब वो किसी को श्राप देते थे, तो उसका हल भी तो देते थे!”

“सही कहा आपने महाराज,” केदार-धाम के रावल ने कहा, “किन्तु यहाँ एक सती का श्राप लगा है! ... संभव है, उन्होंने श्राप देते समय सोचा भी नहीं होगा कि उनके श्राप के ऐसे दूरगामी परिणाम हो सकते हैं! ... अतः अपने श्राप के काट के बारे में उनको सोचने का समय भी नहीं मिला होगा।”

प्रियम्बदा चुप्पी साधे सब सुन रही थी।

लेकिन अभी तक कोई हल सामने नहीं आया था। इसलिए उसका धैर्य जवाब दे रहा था अब।

“... अतः, प्रकृति में ही उसका कोई काट निहित होगा महाराज?” चंद्रपुर के राजपुरोहित जी ने आशा भरे स्वर में पूछा।

“जी महाराज... किन्तु एक बात बताएँ, क्या आपको सती के बारे में कोई जानकारी है?”

“कैसी जानकारी महाराज?”

“किसी भी प्रकार की! कोई भी बिंदु... छोटे से छोटा बिंदु भी काम का हो सकता है... कोई भी छोटी बात, जो संभवतः आपके संज्ञान से छूट गई हो?”

“कुछ ठीक से ज्ञात नहीं है महाराज... कभी कभी तो लगता है कि वो सब कोई किंवदंती हो! हाँ, इतना तो सभी जानते हैं, कि ब्राह्मण देव की उसी रात्रि हत्या कर दी गई थी! किन्तु उन ब्राह्मणी सती के बारे में कुछ भी ठीक से ज्ञात नहीं है... कुछ लोग कहते हैं कि उनकी भी हत्या कर दी गई थी, और कुछ कहते हैं कि उनको राज्य से बाहर ले जा कर वन-क्षेत्र में छोड़ दिया गया था, जिससे कि वन्य-पशु उनका भक्षण कर सकें...”

“हम्म...”

“और कुछ लोग,” राजपुरोहित जी ने हिचकते हुए कहा, “... कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उस दुराचार के परिणामस्वरूप उन ब्राह्मणी को गर्भ ठहर गया... और उन्होंने किसी संतान को जन्म दिया!”

“हम्म...”

“किन्तु सच कहें... तो ये सब बातें केवल अटकलें ही हैं!”

“किसी ने उनकी वंशावली का विवरण नहीं रखा?”

“वो बाहर से हमारे राज्य में आए हुए थे, प्रभु! ... किसी को क्या ज्ञात था कि ऐसा अनर्थ हो जाएगा!”

“हम्म...”

“शरणागत की हत्या... शरणागत के साथ दुराचार... यह सभी जघन्य अपराध हैं...” केदार-धाम के रावल ने सोचते हुए कहा।

“जी,” प्रियम्बदा से रहा नहीं गया, “और उसी अपराध का दण्ड हम आज तक भुगत रहे हैं महाराज! ... क्या कोई भी उपाय नहीं है?” उसने अधीरता से पूछा।

“पुत्री, जैसा कि महाराज ने कहा, प्रकृति में हर बात का उपाय है! ... आप ईश्वर-निष्ठ हैं... यह अच्छी बात है। यदि आप ईश्वर की शक्ति में विश्वास करती हैं... तो आपको अपना अभीष्ट अवश्य मिलेगा।”

“किन्तु महाराज, आपने कुछ सोच कर ही कहा होगा?”

“पुत्री... हमने सोचा तो अवश्य है। किन्तु ठीक ठीक कह नहीं सकते, कि यह उपाय सिद्ध होगा...!”

“फिर भी... कुछ तो बताएँ?”

“पुत्री,” केदार-धाम के रावल बोलने लगे, “यदि सती की हत्या न हुई हो, तो बहुत संभव है कि आपके कुल पर लगा यह श्राप मिट जाए!”

प्रियम्बदा की आँखों में आशा की चमक जाग उठी, “अच्छा! यह संभव है महाराज?”

“अवश्य पुत्री!” रावल ने कहा, और फिर राजपुरोहित की तरफ सम्मुख हो कर बोले, “महाराज, आपको उन ब्राह्मण दंपत्ति के परिवार के बारे में कुछ पता है?”

“महाराज, कुछ कहना तो कठिन है... कही सुनी बातें हैं... किन्तु ऐसा संकेत मिलता है कि शायद उनका परिवार था।”

“हम्म... यह आशाजनक बात है!” रावल ने सोचते हुए कहा, “श्राप का काट ममता होती है!”

“जी महाराज!” बद्री-धाम के रावल सहमत होते हुए बोले, “पुत्री... मुझे तो लगता है कि उन सती की ही ममता आपके कुल को इस श्राप से मुक्त कर सकती है...”

“किन्तु महाराज,” प्रियम्बदा ने चौंकते हुए कहा, “इस श्राप को लगे हुए कोई सौ सवा सौ वर्ष बीत गए हैं! ... उनकी तो अब तक मृत्यु भी...”

“पुत्री! हम समझ रहे हैं आपकी बात! किन्तु जैसा कि महाराज ने बताया, प्रकृति में हर व्याधि का काट उपलब्ध है... उसी तरह श्राप का काट भी ममता ही है। ... अवश्य ही उनके साथ दुराचार हुआ, लेकिन अगर वो जीवित रहीं, तो उनकी ममता आपके कुल की रक्षा अवश्य करेगी!” उन्होंने कहा, और फिर ठहर कर सोचते हुए बोले, "... अब आप हमारी बात ध्यान से सुनें...”

फिर अगले कोई आधे घण्टे तक वो प्रियम्बदा को कुछ उपाय समझाने लगे। वो बड़े ध्यान से सुन तो रही थी, लेकिन उसके मन में वो सब बातें कोरी बकवास ही लग रही थीं।

“किन्तु...” जब रावल ने कहना बंद किया तो प्रियम्बदा बोली।

“पुत्री, इससे अधिक हम कुछ कहने में असमर्थ हैं! ... इस समय और कोई मार्ग सूझ भी नहीं रहा है हमको!”

प्रियम्बदा फिर से निराश हो गई। उसके हाव भाव किसी से भी छुपे नहीं रह सके।

“हमको क्षमा करें पुत्री,” बद्री-धाम के रावल बोले, “हमको ज्ञात है कि आप बड़ी उम्मीद ले कर हमसे मिलना चाहती थीं... किन्तु क्या करें! ईश्वरीय इच्छाओं पर हम मनुष्यों का कोई वश नहीं होता।”

“कोई बात नहीं महाराज!” प्रियम्बदा ने हाथ जोड़ कर कहा, “हमारे भाग्य में जो है, उसको भोगना ही पड़ेगा! ... आज आप जैसे ज्ञानी पुरुषों से भेंट हो गई, वही बहुत है!”

और यह कह कर उसने भारी मन से सभी को अलविदा कहा।

*
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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प्रियम्बदा, राजमहल के एक अति-विशालकाय कक्ष में चंद्रपुर और महाराजपुर के राजपुरोहितों के साथ बैठी हुई, एक अत्यंत ही गहन विचार-विमर्श में व्यस्त थी। विचार विमर्श क्या, वो बस अपनी समस्या का हल चाहती थी! आज की सभा में दो अन्य सिद्ध-पुरुष भी मौज़ूद थे - उनमें से एक थे, केदार-धाम के रावल और दूसरे थे बद्री-धाम के रावल। पूरे एक वर्ष तक चले अनवरत प्रयासों के बाद वो दोनों आज प्रियम्बदा की सभा में शामिल हो सके थे।

ऐसे सिद्ध-पुरुषों के सम्मुख वो क्या बोलती? इसलिए, बस चुप-चाप बैठ कर उनसे अपनी समस्या का समाधान सुनना चाहती थी। कितने वर्ष बीत गए थे, और उसके कितने ही प्रयास विफल हो गए थे। अब तो बस, निराशा ही निराशा थी। उसने सोचा था, कि इन सिद्ध-पुरुषों के पास उसकी समस्या का कोई निदान तो होगा। लेकिन फिलहाल तो वो चारों ही चुप्पी साधे हुए थे। उसको यह बात बहुत अखर भी रही थी। लेकिन उसने क्या सोच कर खुद को ज़ब्त कर रखा था।

कक्ष में चुप्पी व्याप्त थी।

जब बहुत समय बीत गया, तो अंततः केदार धाम के रावल ही बोले, “महारानी... पुत्री... हम आपकी समस्या समझते हैं... भली भाँति समझते हैं। ... जब आपके राजपुरोहित जी महाराज ने हमसे संपर्क साधा था, तब ही हम समझ गए थे कि कोई अति-गंभीर विषय है... इसलिए ही इन्होने हमको याद किया।”

“तो क्या आपको हमारी समस्या का कोई समाधान सूझ गया महाराज?” प्रियम्बदा ने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।

“हाँ भी, और नहीं भी... देखिए पुत्री, कलियुग में ऐसा कुछ हो जाएगा, वो तो आशा से परे है। विश्वास ही नहीं होता... किन्तु हुआ तो है... सत्य को भला कैसा प्रमाण चाहिए? ... महाराजपुर के राज-कुल पर एक सती का श्राप लगा तो है!”

“जी...”

“हमको जहाँ तक ज्ञात है... ऐसे श्राप संभवतः अकाट्य होते हैं, देवी,” बद्री-धाम के रावल बोले।

“तो क्या कोई मार्ग नहीं है महाराज?” प्रियम्बदा की बोली में निराशा साफ़ सुनाई दे रही थी।

“पुत्री, हमने ऐसा नहीं कहा... प्रकृति में प्रत्येक व्याधि की चिकित्सा संभव है... हम मनुष्यों को उसका ज्ञान है अथवा नहीं, यह हमारी समस्या है। किन्तु प्रकृति के पास हर बात का हल है... अब आप हमारे ऋषि-मुनियों को ही ले लीजिए... जब वो किसी को श्राप देते थे, तो उसका हल भी तो देते थे!”

“सही कहा आपने महाराज,” केदार-धाम के रावल ने कहा, “किन्तु यहाँ एक सती का श्राप लगा है! ... संभव है, उन्होंने श्राप देते समय सोचा भी नहीं होगा कि उनके श्राप के ऐसे दूरगामी परिणाम हो सकते हैं! ... अतः अपने श्राप के काट के बारे में उनको सोचने का समय भी नहीं मिला होगा।”

प्रियम्बदा चुप्पी साधे सब सुन रही थी।

लेकिन अभी तक कोई हल सामने नहीं आया था। इसलिए उसका धैर्य जवाब दे रहा था अब।

“... अतः, प्रकृति में ही उसका कोई काट निहित होगा महाराज?” चंद्रपुर के राजपुरोहित जी ने आशा भरे स्वर में पूछा।

“जी महाराज... किन्तु एक बात बताएँ, क्या आपको सती के बारे में कोई जानकारी है?”

“कैसी जानकारी महाराज?”

“किसी भी प्रकार की! कोई भी बिंदु... छोटे से छोटा बिंदु भी काम का हो सकता है... कोई भी छोटी बात, जो संभवतः आपके संज्ञान से छूट गई हो?”

“कुछ ठीक से ज्ञात नहीं है महाराज... कभी कभी तो लगता है कि वो सब कोई किंवदंती हो! हाँ, इतना तो सभी जानते हैं, कि ब्राह्मण देव की उसी रात्रि हत्या कर दी गई थी! किन्तु उन ब्राह्मणी सती के बारे में कुछ भी ठीक से ज्ञात नहीं है... कुछ लोग कहते हैं कि उनकी भी हत्या कर दी गई थी, और कुछ कहते हैं कि उनको राज्य से बाहर ले जा कर वन-क्षेत्र में छोड़ दिया गया था, जिससे कि वन्य-पशु उनका भक्षण कर सकें...”

“हम्म...”

“और कुछ लोग,” राजपुरोहित जी ने हिचकते हुए कहा, “... कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उस दुराचार के परिणामस्वरूप उन ब्राह्मणी को गर्भ ठहर गया... और उन्होंने किसी संतान को जन्म दिया!”

“हम्म...”

“किन्तु सच कहें... तो ये सब बातें केवल अटकलें ही हैं!”

“किसी ने उनकी वंशावली का विवरण नहीं रखा?”

“वो बाहर से हमारे राज्य में आए हुए थे, प्रभु! ... किसी को क्या ज्ञात था कि ऐसा अनर्थ हो जाएगा!”

“हम्म...”

“शरणागत की हत्या... शरणागत के साथ दुराचार... यह सभी जघन्य अपराध हैं...” केदार-धाम के रावल ने सोचते हुए कहा।

“जी,” प्रियम्बदा से रहा नहीं गया, “और उसी अपराध का दण्ड हम आज तक भुगत रहे हैं महाराज! ... क्या कोई भी उपाय नहीं है?” उसने अधीरता से पूछा।

“पुत्री, जैसा कि महाराज ने कहा, प्रकृति में हर बात का उपाय है! ... आप ईश्वर-निष्ठ हैं... यह अच्छी बात है। यदि आप ईश्वर की शक्ति में विश्वास करती हैं... तो आपको अपना अभीष्ट अवश्य मिलेगा।”

“किन्तु महाराज, आपने कुछ सोच कर ही कहा होगा?”

“पुत्री... हमने सोचा तो अवश्य है। किन्तु ठीक ठीक कह नहीं सकते, कि यह उपाय सिद्ध होगा...!”

“फिर भी... कुछ तो बताएँ?”

“पुत्री,” केदार-धाम के रावल बोलने लगे, “यदि सती की हत्या न हुई हो, तो बहुत संभव है कि आपके कुल पर लगा यह श्राप मिट जाए!”

प्रियम्बदा की आँखों में आशा की चमक जाग उठी, “अच्छा! यह संभव है महाराज?”

“अवश्य पुत्री!” रावल ने कहा, और फिर राजपुरोहित की तरफ सम्मुख हो कर बोले, “महाराज, आपको उन ब्राह्मण दंपत्ति के परिवार के बारे में कुछ पता है?”

“महाराज, कुछ कहना तो कठिन है... कही सुनी बातें हैं... किन्तु ऐसा संकेत मिलता है कि शायद उनका परिवार था।”

“हम्म... यह आशाजनक बात है!” रावल ने सोचते हुए कहा, “श्राप का काट ममता होती है!”

“जी महाराज!” बद्री-धाम के रावल सहमत होते हुए बोले, “पुत्री... मुझे तो लगता है कि उन सती की ही ममता आपके कुल को इस श्राप से मुक्त कर सकती है...”

“किन्तु महाराज,” प्रियम्बदा ने चौंकते हुए कहा, “इस श्राप को लगे हुए कोई सौ सवा सौ वर्ष बीत गए हैं! ... उनकी तो अब तक मृत्यु भी...”

“पुत्री! हम समझ रहे हैं आपकी बात! किन्तु जैसा कि महाराज ने बताया, प्रकृति में हर व्याधि का काट उपलब्ध है... उसी तरह श्राप का काट भी ममता ही है। ... अवश्य ही उनके साथ दुराचार हुआ, लेकिन अगर वो जीवित रहीं, तो उनकी ममता आपके कुल की रक्षा अवश्य करेगी!” उन्होंने कहा, और फिर ठहर कर सोचते हुए बोले, "... अब आप हमारी बात ध्यान से सुनें...”

फिर अगले कोई आधे घण्टे तक वो प्रियम्बदा को कुछ उपाय समझाने लगे। वो बड़े ध्यान से सुन तो रही थी, लेकिन उसके मन में वो सब बातें कोरी बकवास ही लग रही थीं।

“किन्तु...” जब रावल ने कहना बंद किया तो प्रियम्बदा बोली।

“पुत्री, इससे अधिक हम कुछ कहने में असमर्थ हैं! ... इस समय और कोई मार्ग सूझ भी नहीं रहा है हमको!”

प्रियम्बदा फिर से निराश हो गई। उसके हाव भाव किसी से भी छुपे नहीं रह सके।

“हमको क्षमा करें पुत्री,” बद्री-धाम के रावल बोले, “हमको ज्ञात है कि आप बड़ी उम्मीद ले कर हमसे मिलना चाहती थीं... किन्तु क्या करें! ईश्वरीय इच्छाओं पर हम मनुष्यों का कोई वश नहीं होता।”

“कोई बात नहीं महाराज!” प्रियम्बदा ने हाथ जोड़ कर कहा, “हमारे भाग्य में जो है, उसको भोगना ही पड़ेगा! ... आज आप जैसे ज्ञानी पुरुषों से भेंट हो गई, वही बहुत है!”

और यह कह कर उसने भारी मन से सभी को अलविदा कहा।

*
जो रावल ने बोला वो प्राकृतिक रूप से संभव हुआ और वो भी विदेशी धरा पर।



गजब :applause:
 
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258
इस विषय पर हमारा सही मार्गदर्शन कोई धर्माचार्य या कोई सिद्ध योगी या फिर कोई ज्योतिषाचार्य ही कर सकते है ।
वैसे कुछेक श्रापों के बारे मे मैने भी धार्मिक बुक्स मे पढ़ा है और उस के अनुसार कई तरह के श्राप होते है । जैसे सर्प श्राप , अपने स्वजन का श्राप ( मातृ , पितृ , भातृ , मामा , पत्नी) , ब्रह्म श्राप , प्रेत दोष इत्यादि ।
प्रेत श्राप वह होता है जो पितरों का श्राद्ध नही करता जिसकी वजह से वह इंसान अगले जन्म मे निसंतान हो जाता है ।
उसी तरह यदि किसी ब्राह्मण को घोर कष्ट दिया गया हो तो वह स्वतः ब्रह्म श्राप बन जाता है । इसकी शांति हेतू पितृ शांति का उपाय करना चाहिए और फिर प्रायश्चित स्वरूप ब्राह्मण की सेवा सत्कार , भोजन और दान स्वरूप दक्षिणा प्रदान करना चाहिए ।

केदार....धाम और बद्री...धाम के धर्माचार्य ने बिल्कुल सही कहा , हर प्रॉब्लम का उपाय प्रकृति के गोद मे ही छिपा हुआ है । लेकिन यहां प्रॉब्लम यह है कि ब्राह्मण की हत्या हुए सौ से भी अधिक वर्ष हो गए और ब्राह्मणी का कोई खबर नही है । इसके अलावा इन ब्राह्मण दम्पति के रिश्तेदारों का भी कोई जानकारी नही है ।
इसलिए मुझे लगता है प्रियम्बदा और उनके हसबैंड को कोई भी ब्राह्मण समाज , संत या मुनीजन को लेकर एक धार्मिक अनुष्ठान करना चाहिए । अपने पितर के आत्मा की शांति का जप करना चाहिए और दान दक्षिणा देकर अपने पितर के गुनाहों की क्षमा याचना करनी चाहिए।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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इस विषय पर हमारा सही मार्गदर्शन कोई धर्माचार्य या कोई सिद्ध योगी या फिर कोई ज्योतिषाचार्य ही कर सकते है ।
वैसे कुछेक श्रापों के बारे मे मैने भी धार्मिक बुक्स मे पढ़ा है और उस के अनुसार कई तरह के श्राप होते है । जैसे सर्प श्राप , अपने स्वजन का श्राप ( मातृ , पितृ , भातृ , मामा , पत्नी) , ब्रह्म श्राप , प्रेत दोष इत्यादि ।
प्रेत श्राप वह होता है जो पितरों का श्राद्ध नही करता जिसकी वजह से वह इंसान अगले जन्म मे निसंतान हो जाता है ।

संजू भाई, मैं इन सब बातों में ढेले भर का भी भरोसा नहीं करता - एक से एक पापियों को बस मौज ही मौज करते देखी है मैंने!

हमारी धार्मिक पुस्तकों में एक मुनि का बहुत ही ज़िक्र होता है - उनकी एक्सपर्टीज श्राप देना ही थी मानो। कैसा मुनि, जो बात बात पर क्रोधित हो? स्वयं पर रत्ती भर का नियंत्रण नहीं! आज के समय में होता, तो उसका पेंदा न जाने कितनी बार तोड़ा जा चुका होता।
सोचता हूँ, तो लगता है कि कैसा गज़ब का कंटाला आदमी था वो। कभी खुश नहीं, कभी संतुष्ट नहीं... पूरी तरह से फ़्रस्ट्रेटेड!

फ़िर कबीर दास जी ने कहा, "दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय" ... स्साला, जो दुर्बल है, उसके पास हाय (श्राप) देने के अतिरिक्त और चारा ही क्या है?

हिटलर को सभी गरियाते हैं, क्योंकि इतिहास विजेता लिखते हैं... हारे हुए लोग नहीं। ऐसा नहीं कह रहा हूँ, कि वो कोई साधू संत था। लेकिन चर्चिल भी, उसी के बराबर का, एक नंबर का हरामी आदमी था - उसके कारण हमारे देश में लाखों लाख लोग मर गए भुखमरी से, लेकिन वो इंग्लैंड का हीरो है!

इसलिए यह श्राप व्राप, सब मन को बहलाने का साधन भर है। कहानी को मनोरंजन के लिए ही पढ़ें! मैं अंधविश्वासों में भरोसा नहीं करता, और सभी को इन सब बातों में भरोसा न करने की सलाह भी देता हूँ।

हाँ, कहानी इस टॉपिक पर लिखी है, तो कुछ न कुछ तो करूँगा ही! 🤭

उसी तरह यदि किसी ब्राह्मण को घोर कष्ट दिया गया हो तो वह स्वतः ब्रह्म श्राप बन जाता है । इसकी शांति हेतू पितृ शांति का उपाय करना चाहिए और फिर प्रायश्चित स्वरूप ब्राह्मण की सेवा सत्कार , भोजन और दान स्वरूप दक्षिणा प्रदान करना चाहिए ।

कुछ भी कह लें - हमारे ब्राह्मणों ने अपना पेट भरने की व्यवस्था अच्छी तरह से कर रखी हुई है। चाहे आदमी जिए या मरे... स्साला, इनका पेट कभी खाली नहीं रह सकता।
किसी न किसी तरह से यजमानी फिट कर के रखते ही हैं! पब्लिक का चूतिया काटो, तो ऐसे। 😂😂

केदार....धाम और बद्री...धाम के धर्माचार्य ने बिल्कुल सही कहा , हर प्रॉब्लम का उपाय प्रकृति के गोद मे ही छिपा हुआ है । लेकिन यहां प्रॉब्लम यह है कि ब्राह्मण की हत्या हुए सौ से भी अधिक वर्ष हो गए और ब्राह्मणी का कोई खबर नही है । इसके अलावा इन ब्राह्मण दम्पति के रिश्तेदारों का भी कोई जानकारी नही है ।
इसलिए मुझे लगता है प्रियम्बदा और उनके हसबैंड को कोई भी ब्राह्मण समाज , संत या मुनीजन को लेकर एक धार्मिक अनुष्ठान करना चाहिए । अपने पितर के आत्मा की शांति का जप करना चाहिए और दान दक्षिणा देकर अपने पितर के गुनाहों की क्षमा याचना करनी चाहिए।

हाँ... कहानी के हिसाब से ये सही उपाय प्रतीत होता है।
देखते हैं कि धर्माचार्यों ने प्रियम्बदा को क्या समझाया/बताया है।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी!
अगर मेरी बातों का बुरा लगा हो - तो क्या ही करूँ? 🤭🤭🤭
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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जो रावल ने बोला वो प्राकृतिक रूप से संभव हुआ और वो भी विदेशी धरा पर।



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रिकी भाई, आप तो मान ही लिए कि प्रियम्बदा की बातें भूत-काल में हो रही हैं, और जय-मीना-आदित्य-क्लेयर की बातें वर्तमान में!
अच्छी बात नहीं है! पेपर को यूँ आउट नहीं करना चाहिए 😂
 

kas1709

Well-Known Member
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प्रियम्बदा, राजमहल के एक अति-विशालकाय कक्ष में चंद्रपुर और महाराजपुर के राजपुरोहितों के साथ बैठी हुई, एक अत्यंत ही गहन विचार-विमर्श में व्यस्त थी। विचार विमर्श क्या, वो बस अपनी समस्या का हल चाहती थी! आज की सभा में दो अन्य सिद्ध-पुरुष भी मौज़ूद थे - उनमें से एक थे, केदार-धाम के रावल और दूसरे थे बद्री-धाम के रावल। पूरे एक वर्ष तक चले अनवरत प्रयासों के बाद वो दोनों आज प्रियम्बदा की सभा में शामिल हो सके थे।

ऐसे सिद्ध-पुरुषों के सम्मुख वो क्या बोलती? इसलिए, बस चुप-चाप बैठ कर उनसे अपनी समस्या का समाधान सुनना चाहती थी। कितने वर्ष बीत गए थे, और उसके कितने ही प्रयास विफल हो गए थे। अब तो बस, निराशा ही निराशा थी। उसने सोचा था, कि इन सिद्ध-पुरुषों के पास उसकी समस्या का कोई निदान तो होगा। लेकिन फिलहाल तो वो चारों ही चुप्पी साधे हुए थे। उसको यह बात बहुत अखर भी रही थी। लेकिन उसने क्या सोच कर खुद को ज़ब्त कर रखा था।

कक्ष में चुप्पी व्याप्त थी।

जब बहुत समय बीत गया, तो अंततः केदार धाम के रावल ही बोले, “महारानी... पुत्री... हम आपकी समस्या समझते हैं... भली भाँति समझते हैं। ... जब आपके राजपुरोहित जी महाराज ने हमसे संपर्क साधा था, तब ही हम समझ गए थे कि कोई अति-गंभीर विषय है... इसलिए ही इन्होने हमको याद किया।”

“तो क्या आपको हमारी समस्या का कोई समाधान सूझ गया महाराज?” प्रियम्बदा ने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।

“हाँ भी, और नहीं भी... देखिए पुत्री, कलियुग में ऐसा कुछ हो जाएगा, वो तो आशा से परे है। विश्वास ही नहीं होता... किन्तु हुआ तो है... सत्य को भला कैसा प्रमाण चाहिए? ... महाराजपुर के राज-कुल पर एक सती का श्राप लगा तो है!”

“जी...”

“हमको जहाँ तक ज्ञात है... ऐसे श्राप संभवतः अकाट्य होते हैं, देवी,” बद्री-धाम के रावल बोले।

“तो क्या कोई मार्ग नहीं है महाराज?” प्रियम्बदा की बोली में निराशा साफ़ सुनाई दे रही थी।

“पुत्री, हमने ऐसा नहीं कहा... प्रकृति में प्रत्येक व्याधि की चिकित्सा संभव है... हम मनुष्यों को उसका ज्ञान है अथवा नहीं, यह हमारी समस्या है। किन्तु प्रकृति के पास हर बात का हल है... अब आप हमारे ऋषि-मुनियों को ही ले लीजिए... जब वो किसी को श्राप देते थे, तो उसका हल भी तो देते थे!”

“सही कहा आपने महाराज,” केदार-धाम के रावल ने कहा, “किन्तु यहाँ एक सती का श्राप लगा है! ... संभव है, उन्होंने श्राप देते समय सोचा भी नहीं होगा कि उनके श्राप के ऐसे दूरगामी परिणाम हो सकते हैं! ... अतः अपने श्राप के काट के बारे में उनको सोचने का समय भी नहीं मिला होगा।”

प्रियम्बदा चुप्पी साधे सब सुन रही थी।

लेकिन अभी तक कोई हल सामने नहीं आया था। इसलिए उसका धैर्य जवाब दे रहा था अब।

“... अतः, प्रकृति में ही उसका कोई काट निहित होगा महाराज?” चंद्रपुर के राजपुरोहित जी ने आशा भरे स्वर में पूछा।

“जी महाराज... किन्तु एक बात बताएँ, क्या आपको सती के बारे में कोई जानकारी है?”

“कैसी जानकारी महाराज?”

“किसी भी प्रकार की! कोई भी बिंदु... छोटे से छोटा बिंदु भी काम का हो सकता है... कोई भी छोटी बात, जो संभवतः आपके संज्ञान से छूट गई हो?”

“कुछ ठीक से ज्ञात नहीं है महाराज... कभी कभी तो लगता है कि वो सब कोई किंवदंती हो! हाँ, इतना तो सभी जानते हैं, कि ब्राह्मण देव की उसी रात्रि हत्या कर दी गई थी! किन्तु उन ब्राह्मणी सती के बारे में कुछ भी ठीक से ज्ञात नहीं है... कुछ लोग कहते हैं कि उनकी भी हत्या कर दी गई थी, और कुछ कहते हैं कि उनको राज्य से बाहर ले जा कर वन-क्षेत्र में छोड़ दिया गया था, जिससे कि वन्य-पशु उनका भक्षण कर सकें...”

“हम्म...”

“और कुछ लोग,” राजपुरोहित जी ने हिचकते हुए कहा, “... कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उस दुराचार के परिणामस्वरूप उन ब्राह्मणी को गर्भ ठहर गया... और उन्होंने किसी संतान को जन्म दिया!”

“हम्म...”

“किन्तु सच कहें... तो ये सब बातें केवल अटकलें ही हैं!”

“किसी ने उनकी वंशावली का विवरण नहीं रखा?”

“वो बाहर से हमारे राज्य में आए हुए थे, प्रभु! ... किसी को क्या ज्ञात था कि ऐसा अनर्थ हो जाएगा!”

“हम्म...”

“शरणागत की हत्या... शरणागत के साथ दुराचार... यह सभी जघन्य अपराध हैं...” केदार-धाम के रावल ने सोचते हुए कहा।

“जी,” प्रियम्बदा से रहा नहीं गया, “और उसी अपराध का दण्ड हम आज तक भुगत रहे हैं महाराज! ... क्या कोई भी उपाय नहीं है?” उसने अधीरता से पूछा।

“पुत्री, जैसा कि महाराज ने कहा, प्रकृति में हर बात का उपाय है! ... आप ईश्वर-निष्ठ हैं... यह अच्छी बात है। यदि आप ईश्वर की शक्ति में विश्वास करती हैं... तो आपको अपना अभीष्ट अवश्य मिलेगा।”

“किन्तु महाराज, आपने कुछ सोच कर ही कहा होगा?”

“पुत्री... हमने सोचा तो अवश्य है। किन्तु ठीक ठीक कह नहीं सकते, कि यह उपाय सिद्ध होगा...!”

“फिर भी... कुछ तो बताएँ?”

“पुत्री,” केदार-धाम के रावल बोलने लगे, “यदि सती की हत्या न हुई हो, तो बहुत संभव है कि आपके कुल पर लगा यह श्राप मिट जाए!”

प्रियम्बदा की आँखों में आशा की चमक जाग उठी, “अच्छा! यह संभव है महाराज?”

“अवश्य पुत्री!” रावल ने कहा, और फिर राजपुरोहित की तरफ सम्मुख हो कर बोले, “महाराज, आपको उन ब्राह्मण दंपत्ति के परिवार के बारे में कुछ पता है?”

“महाराज, कुछ कहना तो कठिन है... कही सुनी बातें हैं... किन्तु ऐसा संकेत मिलता है कि शायद उनका परिवार था।”

“हम्म... यह आशाजनक बात है!” रावल ने सोचते हुए कहा, “श्राप का काट ममता होती है!”

“जी महाराज!” बद्री-धाम के रावल सहमत होते हुए बोले, “पुत्री... मुझे तो लगता है कि उन सती की ही ममता आपके कुल को इस श्राप से मुक्त कर सकती है...”

“किन्तु महाराज,” प्रियम्बदा ने चौंकते हुए कहा, “इस श्राप को लगे हुए कोई सौ सवा सौ वर्ष बीत गए हैं! ... उनकी तो अब तक मृत्यु भी...”

“पुत्री! हम समझ रहे हैं आपकी बात! किन्तु जैसा कि महाराज ने बताया, प्रकृति में हर व्याधि का काट उपलब्ध है... उसी तरह श्राप का काट भी ममता ही है। ... अवश्य ही उनके साथ दुराचार हुआ, लेकिन अगर वो जीवित रहीं, तो उनकी ममता आपके कुल की रक्षा अवश्य करेगी!” उन्होंने कहा, और फिर ठहर कर सोचते हुए बोले, "... अब आप हमारी बात ध्यान से सुनें...”

फिर अगले कोई आधे घण्टे तक वो प्रियम्बदा को कुछ उपाय समझाने लगे। वो बड़े ध्यान से सुन तो रही थी, लेकिन उसके मन में वो सब बातें कोरी बकवास ही लग रही थीं।

“किन्तु...” जब रावल ने कहना बंद किया तो प्रियम्बदा बोली।

“पुत्री, इससे अधिक हम कुछ कहने में असमर्थ हैं! ... इस समय और कोई मार्ग सूझ भी नहीं रहा है हमको!”

प्रियम्बदा फिर से निराश हो गई। उसके हाव भाव किसी से भी छुपे नहीं रह सके।

“हमको क्षमा करें पुत्री,” बद्री-धाम के रावल बोले, “हमको ज्ञात है कि आप बड़ी उम्मीद ले कर हमसे मिलना चाहती थीं... किन्तु क्या करें! ईश्वरीय इच्छाओं पर हम मनुष्यों का कोई वश नहीं होता।”

“कोई बात नहीं महाराज!” प्रियम्बदा ने हाथ जोड़ कर कहा, “हमारे भाग्य में जो है, उसको भोगना ही पड़ेगा! ... आज आप जैसे ज्ञानी पुरुषों से भेंट हो गई, वही बहुत है!”

और यह कह कर उसने भारी मन से सभी को अलविदा कहा।

*
Nice update....
 
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अपडेट #40


प्रियम्बदा, राजमहल के एक अति-विशालकाय कक्ष में चंद्रपुर और महाराजपुर के राजपुरोहितों के साथ बैठी हुई, एक अत्यंत ही गहन विचार-विमर्श में व्यस्त थी। विचार विमर्श क्या, वो बस अपनी समस्या का हल चाहती थी! आज की सभा में दो अन्य सिद्ध-पुरुष भी मौज़ूद थे - उनमें से एक थे, केदार-धाम के रावल और दूसरे थे बद्री-धाम के रावल। पूरे एक वर्ष तक चले अनवरत प्रयासों के बाद वो दोनों आज प्रियम्बदा की सभा में शामिल हो सके थे।

ऐसे सिद्ध-पुरुषों के सम्मुख वो क्या बोलती? इसलिए, बस चुप-चाप बैठ कर उनसे अपनी समस्या का समाधान सुनना चाहती थी। कितने वर्ष बीत गए थे, और उसके कितने ही प्रयास विफल हो गए थे। अब तो बस, निराशा ही निराशा थी। उसने सोचा था, कि इन सिद्ध-पुरुषों के पास उसकी समस्या का कोई निदान तो होगा। लेकिन फिलहाल तो वो चारों ही चुप्पी साधे हुए थे। उसको यह बात बहुत अखर भी रही थी। लेकिन उसने क्या सोच कर खुद को ज़ब्त कर रखा था।

कक्ष में चुप्पी व्याप्त थी।

जब बहुत समय बीत गया, तो अंततः केदार धाम के रावल ही बोले, “महारानी... पुत्री... हम आपकी समस्या समझते हैं... भली भाँति समझते हैं। ... जब आपके राजपुरोहित जी महाराज ने हमसे संपर्क साधा था, तब ही हम समझ गए थे कि कोई अति-गंभीर विषय है... इसलिए ही इन्होने हमको याद किया।”

“तो क्या आपको हमारी समस्या का कोई समाधान सूझ गया महाराज?” प्रियम्बदा ने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।

“हाँ भी, और नहीं भी... देखिए पुत्री, कलियुग में ऐसा कुछ हो जाएगा, वो तो आशा से परे है। विश्वास ही नहीं होता... किन्तु हुआ तो है... सत्य को भला कैसा प्रमाण चाहिए? ... महाराजपुर के राज-कुल पर एक सती का श्राप लगा तो है!”

“जी...”

“हमको जहाँ तक ज्ञात है... ऐसे श्राप संभवतः अकाट्य होते हैं, देवी,” बद्री-धाम के रावल बोले।

“तो क्या कोई मार्ग नहीं है महाराज?” प्रियम्बदा की बोली में निराशा साफ़ सुनाई दे रही थी।

“पुत्री, हमने ऐसा नहीं कहा... प्रकृति में प्रत्येक व्याधि की चिकित्सा संभव है... हम मनुष्यों को उसका ज्ञान है अथवा नहीं, यह हमारी समस्या है। किन्तु प्रकृति के पास हर बात का हल है... अब आप हमारे ऋषि-मुनियों को ही ले लीजिए... जब वो किसी को श्राप देते थे, तो उसका हल भी तो देते थे!”

“सही कहा आपने महाराज,” केदार-धाम के रावल ने कहा, “किन्तु यहाँ एक सती का श्राप लगा है! ... संभव है, उन्होंने श्राप देते समय सोचा भी नहीं होगा कि उनके श्राप के ऐसे दूरगामी परिणाम हो सकते हैं! ... अतः अपने श्राप के काट के बारे में उनको सोचने का समय भी नहीं मिला होगा।”

प्रियम्बदा चुप्पी साधे सब सुन रही थी।

लेकिन अभी तक कोई हल सामने नहीं आया था। इसलिए उसका धैर्य जवाब दे रहा था अब।

“... अतः, प्रकृति में ही उसका कोई काट निहित होगा महाराज?” चंद्रपुर के राजपुरोहित जी ने आशा भरे स्वर में पूछा।

“जी महाराज... किन्तु एक बात बताएँ, क्या आपको सती के बारे में कोई जानकारी है?”

“कैसी जानकारी महाराज?”

“किसी भी प्रकार की! कोई भी बिंदु... छोटे से छोटा बिंदु भी काम का हो सकता है... कोई भी छोटी बात, जो संभवतः आपके संज्ञान से छूट गई हो?”

“कुछ ठीक से ज्ञात नहीं है महाराज... कभी कभी तो लगता है कि वो सब कोई किंवदंती हो! हाँ, इतना तो सभी जानते हैं, कि ब्राह्मण देव की उसी रात्रि हत्या कर दी गई थी! किन्तु उन ब्राह्मणी सती के बारे में कुछ भी ठीक से ज्ञात नहीं है... कुछ लोग कहते हैं कि उनकी भी हत्या कर दी गई थी, और कुछ कहते हैं कि उनको राज्य से बाहर ले जा कर वन-क्षेत्र में छोड़ दिया गया था, जिससे कि वन्य-पशु उनका भक्षण कर सकें...”

“हम्म...”

“और कुछ लोग,” राजपुरोहित जी ने हिचकते हुए कहा, “... कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उस दुराचार के परिणामस्वरूप उन ब्राह्मणी को गर्भ ठहर गया... और उन्होंने किसी संतान को जन्म दिया!”

“हम्म...”

“किन्तु सच कहें... तो ये सब बातें केवल अटकलें ही हैं!”

“किसी ने उनकी वंशावली का विवरण नहीं रखा?”

“वो बाहर से हमारे राज्य में आए हुए थे, प्रभु! ... किसी को क्या ज्ञात था कि ऐसा अनर्थ हो जाएगा!”

“हम्म...”

“शरणागत की हत्या... शरणागत के साथ दुराचार... यह सभी जघन्य अपराध हैं...” केदार-धाम के रावल ने सोचते हुए कहा।

“जी,” प्रियम्बदा से रहा नहीं गया, “और उसी अपराध का दण्ड हम आज तक भुगत रहे हैं महाराज! ... क्या कोई भी उपाय नहीं है?” उसने अधीरता से पूछा।

“पुत्री, जैसा कि महाराज ने कहा, प्रकृति में हर बात का उपाय है! ... आप ईश्वर-निष्ठ हैं... यह अच्छी बात है। यदि आप ईश्वर की शक्ति में विश्वास करती हैं... तो आपको अपना अभीष्ट अवश्य मिलेगा।”

“किन्तु महाराज, आपने कुछ सोच कर ही कहा होगा?”

“पुत्री... हमने सोचा तो अवश्य है। किन्तु ठीक ठीक कह नहीं सकते, कि यह उपाय सिद्ध होगा...!”

“फिर भी... कुछ तो बताएँ?”

“पुत्री,” केदार-धाम के रावल बोलने लगे, “यदि सती की हत्या न हुई हो, तो बहुत संभव है कि आपके कुल पर लगा यह श्राप मिट जाए!”

प्रियम्बदा की आँखों में आशा की चमक जाग उठी, “अच्छा! यह संभव है महाराज?”

“अवश्य पुत्री!” रावल ने कहा, और फिर राजपुरोहित की तरफ सम्मुख हो कर बोले, “महाराज, आपको उन ब्राह्मण दंपत्ति के परिवार के बारे में कुछ पता है?”

“महाराज, कुछ कहना तो कठिन है... कही सुनी बातें हैं... किन्तु ऐसा संकेत मिलता है कि शायद उनका परिवार था।”

“हम्म... यह आशाजनक बात है!” रावल ने सोचते हुए कहा, “श्राप का काट ममता होती है!”

“जी महाराज!” बद्री-धाम के रावल सहमत होते हुए बोले, “पुत्री... मुझे तो लगता है कि उन सती की ही ममता आपके कुल को इस श्राप से मुक्त कर सकती है...”

“किन्तु महाराज,” प्रियम्बदा ने चौंकते हुए कहा, “इस श्राप को लगे हुए कोई सौ सवा सौ वर्ष बीत गए हैं! ... उनकी तो अब तक मृत्यु भी...”

“पुत्री! हम समझ रहे हैं आपकी बात! किन्तु जैसा कि महाराज ने बताया, प्रकृति में हर व्याधि का काट उपलब्ध है... उसी तरह श्राप का काट भी ममता ही है। ... अवश्य ही उनके साथ दुराचार हुआ, लेकिन अगर वो जीवित रहीं, तो उनकी ममता आपके कुल की रक्षा अवश्य करेगी!” उन्होंने कहा, और फिर ठहर कर सोचते हुए बोले, "... अब आप हमारी बात ध्यान से सुनें...”

फिर अगले कोई आधे घण्टे तक वो प्रियम्बदा को कुछ उपाय समझाने लगे। वो बड़े ध्यान से सुन तो रही थी, लेकिन उसके मन में वो सब बातें कोरी बकवास ही लग रही थीं।

“किन्तु...” जब रावल ने कहना बंद किया तो प्रियम्बदा बोली।

“पुत्री, इससे अधिक हम कुछ कहने में असमर्थ हैं! ... इस समय और कोई मार्ग सूझ भी नहीं रहा है हमको!”

प्रियम्बदा फिर से निराश हो गई। उसके हाव भाव किसी से भी छुपे नहीं रह सके।

“हमको क्षमा करें पुत्री,” बद्री-धाम के रावल बोले, “हमको ज्ञात है कि आप बड़ी उम्मीद ले कर हमसे मिलना चाहती थीं... किन्तु क्या करें! ईश्वरीय इच्छाओं पर हम मनुष्यों का कोई वश नहीं होता।”

“कोई बात नहीं महाराज!” प्रियम्बदा ने हाथ जोड़ कर कहा, “हमारे भाग्य में जो है, उसको भोगना ही पड़ेगा! ... आज आप जैसे ज्ञानी पुरुषों से भेंट हो गई, वही बहुत है!”

और यह कह कर उसने भारी मन से सभी को अलविदा कहा।

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प्रियम्बदा, राजमहल के एक अति-विशालकाय कक्ष में चंद्रपुर और महाराजपुर के राजपुरोहितों के साथ बैठी हुई, एक अत्यंत ही गहन विचार-विमर्श में व्यस्त थी। विचार विमर्श क्या, वो बस अपनी समस्या का हल चाहती थी! आज की सभा में दो अन्य सिद्ध-पुरुष भी मौज़ूद थे - उनमें से एक थे, केदार-धाम के रावल और दूसरे थे बद्री-धाम के रावल। पूरे एक वर्ष तक चले अनवरत प्रयासों के बाद वो दोनों आज प्रियम्बदा की सभा में शामिल हो सके थे।

ऐसे सिद्ध-पुरुषों के सम्मुख वो क्या बोलती? इसलिए, बस चुप-चाप बैठ कर उनसे अपनी समस्या का समाधान सुनना चाहती थी। कितने वर्ष बीत गए थे, और उसके कितने ही प्रयास विफल हो गए थे। अब तो बस, निराशा ही निराशा थी। उसने सोचा था, कि इन सिद्ध-पुरुषों के पास उसकी समस्या का कोई निदान तो होगा। लेकिन फिलहाल तो वो चारों ही चुप्पी साधे हुए थे। उसको यह बात बहुत अखर भी रही थी। लेकिन उसने क्या सोच कर खुद को ज़ब्त कर रखा था।

कक्ष में चुप्पी व्याप्त थी।

जब बहुत समय बीत गया, तो अंततः केदार धाम के रावल ही बोले, “महारानी... पुत्री... हम आपकी समस्या समझते हैं... भली भाँति समझते हैं। ... जब आपके राजपुरोहित जी महाराज ने हमसे संपर्क साधा था, तब ही हम समझ गए थे कि कोई अति-गंभीर विषय है... इसलिए ही इन्होने हमको याद किया।”

“तो क्या आपको हमारी समस्या का कोई समाधान सूझ गया महाराज?” प्रियम्बदा ने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।

“हाँ भी, और नहीं भी... देखिए पुत्री, कलियुग में ऐसा कुछ हो जाएगा, वो तो आशा से परे है। विश्वास ही नहीं होता... किन्तु हुआ तो है... सत्य को भला कैसा प्रमाण चाहिए? ... महाराजपुर के राज-कुल पर एक सती का श्राप लगा तो है!”

“जी...”

“हमको जहाँ तक ज्ञात है... ऐसे श्राप संभवतः अकाट्य होते हैं, देवी,” बद्री-धाम के रावल बोले।

“तो क्या कोई मार्ग नहीं है महाराज?” प्रियम्बदा की बोली में निराशा साफ़ सुनाई दे रही थी।

“पुत्री, हमने ऐसा नहीं कहा... प्रकृति में प्रत्येक व्याधि की चिकित्सा संभव है... हम मनुष्यों को उसका ज्ञान है अथवा नहीं, यह हमारी समस्या है। किन्तु प्रकृति के पास हर बात का हल है... अब आप हमारे ऋषि-मुनियों को ही ले लीजिए... जब वो किसी को श्राप देते थे, तो उसका हल भी तो देते थे!”

“सही कहा आपने महाराज,” केदार-धाम के रावल ने कहा, “किन्तु यहाँ एक सती का श्राप लगा है! ... संभव है, उन्होंने श्राप देते समय सोचा भी नहीं होगा कि उनके श्राप के ऐसे दूरगामी परिणाम हो सकते हैं! ... अतः अपने श्राप के काट के बारे में उनको सोचने का समय भी नहीं मिला होगा।”

प्रियम्बदा चुप्पी साधे सब सुन रही थी।

लेकिन अभी तक कोई हल सामने नहीं आया था। इसलिए उसका धैर्य जवाब दे रहा था अब।

“... अतः, प्रकृति में ही उसका कोई काट निहित होगा महाराज?” चंद्रपुर के राजपुरोहित जी ने आशा भरे स्वर में पूछा।

“जी महाराज... किन्तु एक बात बताएँ, क्या आपको सती के बारे में कोई जानकारी है?”

“कैसी जानकारी महाराज?”

“किसी भी प्रकार की! कोई भी बिंदु... छोटे से छोटा बिंदु भी काम का हो सकता है... कोई भी छोटी बात, जो संभवतः आपके संज्ञान से छूट गई हो?”

“कुछ ठीक से ज्ञात नहीं है महाराज... कभी कभी तो लगता है कि वो सब कोई किंवदंती हो! हाँ, इतना तो सभी जानते हैं, कि ब्राह्मण देव की उसी रात्रि हत्या कर दी गई थी! किन्तु उन ब्राह्मणी सती के बारे में कुछ भी ठीक से ज्ञात नहीं है... कुछ लोग कहते हैं कि उनकी भी हत्या कर दी गई थी, और कुछ कहते हैं कि उनको राज्य से बाहर ले जा कर वन-क्षेत्र में छोड़ दिया गया था, जिससे कि वन्य-पशु उनका भक्षण कर सकें...”

“हम्म...”

“और कुछ लोग,” राजपुरोहित जी ने हिचकते हुए कहा, “... कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उस दुराचार के परिणामस्वरूप उन ब्राह्मणी को गर्भ ठहर गया... और उन्होंने किसी संतान को जन्म दिया!”

“हम्म...”

“किन्तु सच कहें... तो ये सब बातें केवल अटकलें ही हैं!”

“किसी ने उनकी वंशावली का विवरण नहीं रखा?”

“वो बाहर से हमारे राज्य में आए हुए थे, प्रभु! ... किसी को क्या ज्ञात था कि ऐसा अनर्थ हो जाएगा!”

“हम्म...”

“शरणागत की हत्या... शरणागत के साथ दुराचार... यह सभी जघन्य अपराध हैं...” केदार-धाम के रावल ने सोचते हुए कहा।

“जी,” प्रियम्बदा से रहा नहीं गया, “और उसी अपराध का दण्ड हम आज तक भुगत रहे हैं महाराज! ... क्या कोई भी उपाय नहीं है?” उसने अधीरता से पूछा।

“पुत्री, जैसा कि महाराज ने कहा, प्रकृति में हर बात का उपाय है! ... आप ईश्वर-निष्ठ हैं... यह अच्छी बात है। यदि आप ईश्वर की शक्ति में विश्वास करती हैं... तो आपको अपना अभीष्ट अवश्य मिलेगा।”

“किन्तु महाराज, आपने कुछ सोच कर ही कहा होगा?”

“पुत्री... हमने सोचा तो अवश्य है। किन्तु ठीक ठीक कह नहीं सकते, कि यह उपाय सिद्ध होगा...!”

“फिर भी... कुछ तो बताएँ?”

“पुत्री,” केदार-धाम के रावल बोलने लगे, “यदि सती की हत्या न हुई हो, तो बहुत संभव है कि आपके कुल पर लगा यह श्राप मिट जाए!”

प्रियम्बदा की आँखों में आशा की चमक जाग उठी, “अच्छा! यह संभव है महाराज?”

“अवश्य पुत्री!” रावल ने कहा, और फिर राजपुरोहित की तरफ सम्मुख हो कर बोले, “महाराज, आपको उन ब्राह्मण दंपत्ति के परिवार के बारे में कुछ पता है?”

“महाराज, कुछ कहना तो कठिन है... कही सुनी बातें हैं... किन्तु ऐसा संकेत मिलता है कि शायद उनका परिवार था।”

“हम्म... यह आशाजनक बात है!” रावल ने सोचते हुए कहा, “श्राप का काट ममता होती है!”

“जी महाराज!” बद्री-धाम के रावल सहमत होते हुए बोले, “पुत्री... मुझे तो लगता है कि उन सती की ही ममता आपके कुल को इस श्राप से मुक्त कर सकती है...”

“किन्तु महाराज,” प्रियम्बदा ने चौंकते हुए कहा, “इस श्राप को लगे हुए कोई सौ सवा सौ वर्ष बीत गए हैं! ... उनकी तो अब तक मृत्यु भी...”

“पुत्री! हम समझ रहे हैं आपकी बात! किन्तु जैसा कि महाराज ने बताया, प्रकृति में हर व्याधि का काट उपलब्ध है... उसी तरह श्राप का काट भी ममता ही है। ... अवश्य ही उनके साथ दुराचार हुआ, लेकिन अगर वो जीवित रहीं, तो उनकी ममता आपके कुल की रक्षा अवश्य करेगी!” उन्होंने कहा, और फिर ठहर कर सोचते हुए बोले, "... अब आप हमारी बात ध्यान से सुनें...”

फिर अगले कोई आधे घण्टे तक वो प्रियम्बदा को कुछ उपाय समझाने लगे। वो बड़े ध्यान से सुन तो रही थी, लेकिन उसके मन में वो सब बातें कोरी बकवास ही लग रही थीं।

“किन्तु...” जब रावल ने कहना बंद किया तो प्रियम्बदा बोली।

“पुत्री, इससे अधिक हम कुछ कहने में असमर्थ हैं! ... इस समय और कोई मार्ग सूझ भी नहीं रहा है हमको!”

प्रियम्बदा फिर से निराश हो गई। उसके हाव भाव किसी से भी छुपे नहीं रह सके।

“हमको क्षमा करें पुत्री,” बद्री-धाम के रावल बोले, “हमको ज्ञात है कि आप बड़ी उम्मीद ले कर हमसे मिलना चाहती थीं... किन्तु क्या करें! ईश्वरीय इच्छाओं पर हम मनुष्यों का कोई वश नहीं होता।”

“कोई बात नहीं महाराज!” प्रियम्बदा ने हाथ जोड़ कर कहा, “हमारे भाग्य में जो है, उसको भोगना ही पड़ेगा! ... आज आप जैसे ज्ञानी पुरुषों से भेंट हो गई, वही बहुत है!”

और यह कह कर उसने भारी मन से सभी को अलविदा कहा।

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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and excellent update....
 
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संजू भाई, मैं इन सब बातों में ढेले भर का भी भरोसा नहीं करता - एक से एक पापियों को बस मौज ही मौज करते देखी है मैंने!

हमारी धार्मिक पुस्तकों में एक मुनि का बहुत ही ज़िक्र होता है - उनकी एक्सपर्टीज श्राप देना ही थी मानो। कैसा मुनि, जो बात बात पर क्रोधित हो? स्वयं पर रत्ती भर का नियंत्रण नहीं! आज के समय में होता, तो उसका पेंदा न जाने कितनी बार तोड़ा जा चुका होता।
सोचता हूँ, तो लगता है कि कैसा गज़ब का कंटाला आदमी था वो। कभी खुश नहीं, कभी संतुष्ट नहीं... पूरी तरह से फ़्रस्ट्रेटेड!

फ़िर कबीर दास जी ने कहा, "दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय" ... स्साला, जो दुर्बल है, उसके पास हाय (श्राप) देने के अतिरिक्त और चारा ही क्या है?

हिटलर को सभी गरियाते हैं, क्योंकि इतिहास विजेता लिखते हैं... हारे हुए लोग नहीं। ऐसा नहीं कह रहा हूँ, कि वो कोई साधू संत था। लेकिन चर्चिल भी, उसी के बराबर का, एक नंबर का हरामी आदमी था - उसके कारण हमारे देश में लाखों लाख लोग मर गए भुखमरी से, लेकिन वो इंग्लैंड का हीरो है!

इसलिए यह श्राप व्राप, सब मन को बहलाने का साधन भर है। कहानी को मनोरंजन के लिए ही पढ़ें! मैं अंधविश्वासों में भरोसा नहीं करता, और सभी को इन सब बातों में भरोसा न करने की सलाह भी देता हूँ।

हाँ, कहानी इस टॉपिक पर लिखी है, तो कुछ न कुछ तो करूँगा ही! 🤭



कुछ भी कह लें - हमारे ब्राह्मणों ने अपना पेट भरने की व्यवस्था अच्छी तरह से कर रखी हुई है। चाहे आदमी जिए या मरे... स्साला, इनका पेट कभी खाली नहीं रह सकता।
किसी न किसी तरह से यजमानी फिट कर के रखते ही हैं! पब्लिक का चूतिया काटो, तो ऐसे। 😂😂



हाँ... कहानी के हिसाब से ये सही उपाय प्रतीत होता है।
देखते हैं कि धर्माचार्यों ने प्रियम्बदा को क्या समझाया/बताया है।



बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी!
अगर मेरी बातों का बुरा लगा हो - तो क्या ही करूँ? 🤭🤭🤭
ऐसा ख्याल एक दौर मे मुझे भी था कि यह चीज और कुछ नही सिर्फ ढकोसला ही है लेकिन जो चीज मैने कहा , एक समय बाद आप भी विश्वास करने लगेंगे ।
लेकिन आपके ब्राह्मण पर किए हुए कमेन्ट से वास्तव मे मुझे दुख हुआ । यह ऐसा था जैसे एक द्रविड ने आर्य के लिए कहा हो ।
आपने जिस ॠषि के बारे मे कहा है वह भी मै अच्छी तरह समझ रहा हूं लेकिन उन्होने जो कुछ किया उसका भी कुछ कारण था ।
कबीर दास के दोहे मे सबकुछ सत्य था , यदि आप प्रकृति के नियम , या पुनर्जन्म मे यकीन करते है । क्योंकि प्रकृति का नियम है - आप जो कुछ देंगे , प्रकृति कभी न कभी वह चीज आपको वापस करेगी ही।

और जहां तक हिटलर और चर्चिल की बात है - हमारे देश मे भी क्रूर , मतलब- परस्त , हैवान शख्सियत हुए है । कुछ हमारे स्वतंत्रता के बाद भी और वह बहुत ज्यादा त्रासदी रहा । जब अपने खुद का दामन साफ नही हो तो दूसरे पर आरोप नही लगाना चाहिए । वैसे क्या आप को लगता है कि युद्ध की विभीषिक आज के दौर मे बदल गई है ?
यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि हमे वही इतिहास पढ़ाया गया है जो इतिहासकार , राजनीतिक लीडर के हित और स्वार्थ मे था । लेकिन विगत कुछ वर्षों से यह भी राहत है कि अब उन षड्यंत्र का पर्दाफाश हो रहा है ।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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संजू भाई, मैं इन सब बातों में ढेले भर का भी भरोसा नहीं करता - एक से एक पापियों को बस मौज ही मौज करते देखी है मैंने!
भैया, इस बात पर बस इतना ही कहूंगा कि या तो आपने बहुत दुनिया नही देखी, या आपने दुनिया सही से नही देखी।

मौज करने और सकून से रहने में बहुत अंतर है। कोई जरूरी नहीं की हर मौज करने वाला सकून में ही हो।

प्रकृति बस एक ही नियम से चलती है, कर्म का फल। अब वो किस रूप में मिलेगा वो शायद सबको नही दिखे।

और बाकी बातों पर भी बहुत कुछ कह सकता हूं, लेकिन उतना संजू भैया ने बता ही दिया है।
 
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