अपडेट #40
प्रियम्बदा, राजमहल के एक अति-विशालकाय कक्ष में चंद्रपुर और महाराजपुर के राजपुरोहितों के साथ बैठी हुई, एक अत्यंत ही गहन विचार-विमर्श में व्यस्त थी। विचार विमर्श क्या, वो बस अपनी समस्या का हल चाहती थी! आज की सभा में दो अन्य सिद्ध-पुरुष भी मौज़ूद थे - उनमें से एक थे, केदार-धाम के रावल और दूसरे थे बद्री-धाम के रावल। पूरे एक वर्ष तक चले अनवरत प्रयासों के बाद वो दोनों आज प्रियम्बदा की सभा में शामिल हो सके थे।
ऐसे सिद्ध-पुरुषों के सम्मुख वो क्या बोलती? इसलिए, बस चुप-चाप बैठ कर उनसे अपनी समस्या का समाधान सुनना चाहती थी। कितने वर्ष बीत गए थे, और उसके कितने ही प्रयास विफल हो गए थे। अब तो बस, निराशा ही निराशा थी। उसने सोचा था, कि इन सिद्ध-पुरुषों के पास उसकी समस्या का कोई निदान तो होगा। लेकिन फिलहाल तो वो चारों ही चुप्पी साधे हुए थे। उसको यह बात बहुत अखर भी रही थी। लेकिन उसने क्या सोच कर खुद को ज़ब्त कर रखा था।
कक्ष में चुप्पी व्याप्त थी।
जब बहुत समय बीत गया, तो अंततः केदार धाम के रावल ही बोले, “महारानी... पुत्री... हम आपकी समस्या समझते हैं... भली भाँति समझते हैं। ... जब आपके राजपुरोहित जी महाराज ने हमसे संपर्क साधा था, तब ही हम समझ गए थे कि कोई अति-गंभीर विषय है... इसलिए ही इन्होने हमको याद किया।”
“तो क्या आपको हमारी समस्या का कोई समाधान सूझ गया महाराज?” प्रियम्बदा ने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।
“हाँ भी, और नहीं भी... देखिए पुत्री, कलियुग में ऐसा कुछ हो जाएगा, वो तो आशा से परे है। विश्वास ही नहीं होता... किन्तु हुआ तो है... सत्य को भला कैसा प्रमाण चाहिए? ... महाराजपुर के राज-कुल पर एक सती का श्राप लगा तो है!”
“जी...”
“हमको जहाँ तक ज्ञात है... ऐसे श्राप संभवतः अकाट्य होते हैं, देवी,” बद्री-धाम के रावल बोले।
“तो क्या कोई मार्ग नहीं है महाराज?” प्रियम्बदा की बोली में निराशा साफ़ सुनाई दे रही थी।
“पुत्री, हमने ऐसा नहीं कहा... प्रकृति में प्रत्येक व्याधि की चिकित्सा संभव है... हम मनुष्यों को उसका ज्ञान है अथवा नहीं, यह हमारी समस्या है। किन्तु प्रकृति के पास हर बात का हल है... अब आप हमारे ऋषि-मुनियों को ही ले लीजिए... जब वो किसी को श्राप देते थे, तो उसका हल भी तो देते थे!”
“सही कहा आपने महाराज,” केदार-धाम के रावल ने कहा, “किन्तु यहाँ एक सती का श्राप लगा है! ... संभव है, उन्होंने श्राप देते समय सोचा भी नहीं होगा कि उनके श्राप के ऐसे दूरगामी परिणाम हो सकते हैं! ... अतः अपने श्राप के काट के बारे में उनको सोचने का समय भी नहीं मिला होगा।”
प्रियम्बदा चुप्पी साधे सब सुन रही थी।
लेकिन अभी तक कोई हल सामने नहीं आया था। इसलिए उसका धैर्य जवाब दे रहा था अब।
“... अतः, प्रकृति में ही उसका कोई काट निहित होगा महाराज?” चंद्रपुर के राजपुरोहित जी ने आशा भरे स्वर में पूछा।
“जी महाराज... किन्तु एक बात बताएँ, क्या आपको सती के बारे में कोई जानकारी है?”
“कैसी जानकारी महाराज?”
“किसी भी प्रकार की! कोई भी बिंदु... छोटे से छोटा बिंदु भी काम का हो सकता है... कोई भी छोटी बात, जो संभवतः आपके संज्ञान से छूट गई हो?”
“कुछ ठीक से ज्ञात नहीं है महाराज... कभी कभी तो लगता है कि वो सब कोई किंवदंती हो! हाँ, इतना तो सभी जानते हैं, कि ब्राह्मण देव की उसी रात्रि हत्या कर दी गई थी! किन्तु उन ब्राह्मणी सती के बारे में कुछ भी ठीक से ज्ञात नहीं है... कुछ लोग कहते हैं कि उनकी भी हत्या कर दी गई थी, और कुछ कहते हैं कि उनको राज्य से बाहर ले जा कर वन-क्षेत्र में छोड़ दिया गया था, जिससे कि वन्य-पशु उनका भक्षण कर सकें...”
“हम्म...”
“और कुछ लोग,” राजपुरोहित जी ने हिचकते हुए कहा, “... कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उस दुराचार के परिणामस्वरूप उन ब्राह्मणी को गर्भ ठहर गया... और उन्होंने किसी संतान को जन्म दिया!”
“हम्म...”
“किन्तु सच कहें... तो ये सब बातें केवल अटकलें ही हैं!”
“किसी ने उनकी वंशावली का विवरण नहीं रखा?”
“वो बाहर से हमारे राज्य में आए हुए थे, प्रभु! ... किसी को क्या ज्ञात था कि ऐसा अनर्थ हो जाएगा!”
“हम्म...”
“शरणागत की हत्या... शरणागत के साथ दुराचार... यह सभी जघन्य अपराध हैं...” केदार-धाम के रावल ने सोचते हुए कहा।
“जी,” प्रियम्बदा से रहा नहीं गया, “और उसी अपराध का दण्ड हम आज तक भुगत रहे हैं महाराज! ... क्या कोई भी उपाय नहीं है?” उसने अधीरता से पूछा।
“पुत्री, जैसा कि महाराज ने कहा, प्रकृति में हर बात का उपाय है! ... आप ईश्वर-निष्ठ हैं... यह अच्छी बात है। यदि आप ईश्वर की शक्ति में विश्वास करती हैं... तो आपको अपना अभीष्ट अवश्य मिलेगा।”
“किन्तु महाराज, आपने कुछ सोच कर ही कहा होगा?”
“पुत्री... हमने सोचा तो अवश्य है। किन्तु ठीक ठीक कह नहीं सकते, कि यह उपाय सिद्ध होगा...!”
“फिर भी... कुछ तो बताएँ?”
“पुत्री,” केदार-धाम के रावल बोलने लगे, “यदि सती की हत्या न हुई हो, तो बहुत संभव है कि आपके कुल पर लगा यह श्राप मिट जाए!”
प्रियम्बदा की आँखों में आशा की चमक जाग उठी, “अच्छा! यह संभव है महाराज?”
“अवश्य पुत्री!” रावल ने कहा, और फिर राजपुरोहित की तरफ सम्मुख हो कर बोले, “महाराज, आपको उन ब्राह्मण दंपत्ति के परिवार के बारे में कुछ पता है?”
“महाराज, कुछ कहना तो कठिन है... कही सुनी बातें हैं... किन्तु ऐसा संकेत मिलता है कि शायद उनका परिवार था।”
“हम्म... यह आशाजनक बात है!” रावल ने सोचते हुए कहा, “श्राप का काट ममता होती है!”
“जी महाराज!” बद्री-धाम के रावल सहमत होते हुए बोले, “पुत्री... मुझे तो लगता है कि उन सती की ही ममता आपके कुल को इस श्राप से मुक्त कर सकती है...”
“किन्तु महाराज,” प्रियम्बदा ने चौंकते हुए कहा, “इस श्राप को लगे हुए कोई सौ सवा सौ वर्ष बीत गए हैं! ... उनकी तो अब तक मृत्यु भी...”
“पुत्री! हम समझ रहे हैं आपकी बात! किन्तु जैसा कि महाराज ने बताया, प्रकृति में हर व्याधि का काट उपलब्ध है... उसी तरह श्राप का काट भी ममता ही है। ... अवश्य ही उनके साथ दुराचार हुआ, लेकिन अगर वो जीवित रहीं, तो उनकी ममता आपके कुल की रक्षा अवश्य करेगी!” उन्होंने कहा, और फिर ठहर कर सोचते हुए बोले, "... अब आप हमारी बात ध्यान से सुनें...”
फिर अगले कोई आधे घण्टे तक वो प्रियम्बदा को कुछ उपाय समझाने लगे। वो बड़े ध्यान से सुन तो रही थी, लेकिन उसके मन में वो सब बातें कोरी बकवास ही लग रही थीं।
“किन्तु...” जब रावल ने कहना बंद किया तो प्रियम्बदा बोली।
“पुत्री, इससे अधिक हम कुछ कहने में असमर्थ हैं! ... इस समय और कोई मार्ग सूझ भी नहीं रहा है हमको!”
प्रियम्बदा फिर से निराश हो गई। उसके हाव भाव किसी से भी छुपे नहीं रह सके।
“हमको क्षमा करें पुत्री,” बद्री-धाम के रावल बोले, “हमको ज्ञात है कि आप बड़ी उम्मीद ले कर हमसे मिलना चाहती थीं... किन्तु क्या करें! ईश्वरीय इच्छाओं पर हम मनुष्यों का कोई वश नहीं होता।”
“कोई बात नहीं महाराज!” प्रियम्बदा ने हाथ जोड़ कर कहा, “हमारे भाग्य में जो है, उसको भोगना ही पड़ेगा! ... आज आप जैसे ज्ञानी पुरुषों से भेंट हो गई, वही बहुत है!”
और यह कह कर उसने भारी मन से सभी को अलविदा कहा।
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