Update #44
“कोई बात नहीं बच्चे,” माँ (प्रियम्बदा) ने अपने परिचित वात्सल्य भरे अंदाज़ में कहा, “अभी ये सूप पी ले... बहुत भूख लगी होगी तुझे! कुछ पेट में जाएगा, तो अच्छा लगेगा। ... फिर बताती हूँ! ... सब कुछ! कुछ भी नहीं छुपाऊँगी... और मुझे भी तुझसे कुछ कुछ पूछना है... ठीक है?”
मीना को अभी भी यकीन नहीं था कि यह सच्चाई चल रही है, या फिर उसका कोई सपना!
“जय?”
“कुछ समय पहले सभी यहीं बैठे थे... जय, आदि, क्लेयर... लेकिन रात बहुत हो गई है, इसलिए मैंने सभी को जबरदस्ती कर के सोने के लिए भेज दिया!” माँ ने उसके माथे को स्नेह से सहलाया, “डॉक्टर तुझे देख गए... कह रहे थे कि शायद गर्मी और यात्रा की थकावट से बेहोशी आ गई है... लेकिन चिंता की कोई बात नहीं...”
मीना बस माँ को देखती रह गई।
माँ मीना को सहारा दे कर, और उसको बिस्तर के सिरहाने से टेक दे कर बैठाती हुई आगे बोलीं, “बस कुछ और क्षण रुक जा... सब बता देती हूँ! ... लेकिन फिलहाल ये सूप पी ले...”
कह कर माँ ने सूप बाउल से एक चम्मच भर कर सूप उसकी तरफ़ बढ़ाया। मीना ने सहर्ष उसको ग्रहण कर लिया।
उसको भूख भी लगी हुई थी और प्यास भी। टमाटर के चटपटे और मक्खनी स्वाद और गरम तरल को महसूस कर के उसको बहुत अच्छा लगा - गले को तरावट महसूस हुई, और मन को भी। साथ ही साथ प्रियम्बदा - उसकी दीदी, और उसकी सासू माँ - की उपस्थिति पा कर उसको सुरक्षित भी महसूस हुआ। लेकिन राजमहल में आने से पहले उसका दिल जैसा बैठ रहा था, अब फिर से बैठने लगा था... न जाने क्या बताने वाली थीं माँ उसको! लेकिन उसने फिलहाल चुपचाप सूप पीना उचित समझा।
“और सूप चाहिए, बच्चे?” माँ ने स्नेहपूर्वक पूछा।
मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “मुझे आप चाहिए माँ! मुझे बहुत डर लग रहा है... क्या हो रहा है मेरे साथ, मुझको कुछ भी समझ नहीं आ रहा है!”
“मेरी पूता,” माँ ने बड़े लाड़ से मीना का गाल सहलाया और कहा, “मैं तो हमेशा ही तेरे पास हूँ... और जहाँ तक क्या हो रहा है वाला सवाल है, उसका उत्तर जितना संभव है मेरे लिए, मैं ज़रूर दूँगी!”
“लेकिन माँ... हुआ क्या था? ... आप मुझसे यूँ दूर कैसे हो गईं थीं? ... और फिर ये सब! कैसे हुआ सब?”
उसने एक ही साँस में सब कह डाला।
माँ कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं, “तुझे क्या कुछ भी याद नहीं है बेटे?”
“क्या याद नहीं है माँ? ... आपसे और भैया से वो आखिरी मुलाकात याद है... वो भी थोड़ी थोड़ी... उसके बाद का कुछ भी नहीं!” मीना ने अपनी याददाश्त पर बल देते हुए कहा।
माँ ने समझते हुए सर हिलाया, और गहरी सांस ले कर कहा,
“फिर तो शायद कहानी थोड़ी लम्बी होने वाली है...”
“माँ... जय को और... चित्रा को भी बुला दीजिए न... उनके रहने से हिम्मत रहती है!”
“सुहास... मेरी बिटिया रानी... अभी जय को रहने दे...” माँ ने उसके बगल आ कर बैठते हुए कहा, “सभी बड़ी चिंता में थे... और वो तो बहुत ही परेशान था... फिलहाल वो सो रहा होगा या सोने की कोशिश में होगा!”
“ठीक है माँ... उनको रहने दीजिए...”
“... लेकिन मेरी नन्ही गुड़िया यहीं बगल वाले कमरे में है... उसको बुला देती हूँ।”
कह कर उन्होंने बिस्तर के सिरहाने के बगल लगे एक बटन को दबाया। बगल के कमरे से एक बेहद धीमी और मधुर सी आवाज़ आई। कुछ ही पलों में एक परिचारिका नन्ही चित्रा को ले कर हाज़िर थी।
“भूखी तो नहीं है?” मीना ने पूछा।
“जी नहीं, राजकुमारी सा,” उसने चित्रा को मीना की गोदी में देते हुए कहा, “... हम धाय माँ हैं...”
मीना ने उसकी बात को न समझते हुए उस पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।
माँ ने कहा, “बिटिया, ये कह रही हैं कि ये वेट नर्स हैं... और चित्रा को इन्होने दूध पिला रखा है,” फिर परिचारिका की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “कब पिलाया था आखिरी बार?”
“महारानी सा, कोई डेढ़ घण्टे पहले!”
“अच्छी बात है... तुम जाओ और आराम कर लो!”
“जी महारानी सा...” उसने कहा, और प्रियम्बदा को प्रणाम कर के कमरे से बाहर निकल गई।
“तू अपना दूध पिलाती है बच्ची को?”
“जी माँ!”
“वैरी गुड,” माँ ने खुश होते हुए कहा, “... तो फिर पिला दे उसको... समय तो हो गया है अब...”
मीना ने जब चित्रा को स्तनपान कराने के लिए अपनी गोद में व्यवस्थित किया, तब उसको समझा कि चादर के नीचे वो निर्वस्त्र ही थी। शायद उसकी बेहोशी के कारण उसके चुस्त कपड़ों को उतार दिया गया हो। माँ ने भी कोई सफ़ाई नहीं पेश करी, तो वो भी संयत हो गई। नन्ही चित्रा भी शायद दूध के लिए ही मचल रही थी। अपनी माँ के स्तन का स्पर्श मिलते ही उसको समझ आ गया कि उनका अमृत मिलने वाला है। दूध की कुछ बूँदें अंदर जाते ही वो शांत होने लगी।
“जैसी तू सुन्दर सी है, वैसी ही मेरी ये नन्ही चिरैया भी सुन्दर सी है!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा - उनकी बात पर मीना भी मुस्कुरा उठी, “... तुम दोनों की बेस्ट क्वलिटीज़ आई हैं इसमें... आई ऍम सो प्राउड!”
“थैंक यू माँ!”
“अच्छा... तो अब तू अपनी माँ को थैंक यू कहेगी?” माँ ने जिस अंदाज़ से कहा, उस पर मीना को हँसी आ गई।
“आई लव यू माँ...” वो बोली, “सच में... आपको दीदी कह कर वैसा अपनापन नहीं महसूस होता है, जैसा कि माँ कह कर!”
“अरे! माँ को माँ ही तो कहेगी! दीदी क्यों कहेगी?” उन्होंने अपना विनोदपूर्ण व्यवहार जारी रखा, “... अब जल्दी से दो तीन बच्चे और कर ले...”
“माँ!”
“क्या माँ? इतना सब कुछ है ईश्वर का दिया हुआ! ... कोई होना चाहिए न उसका आनंद उठाने के लिए! है कि नहीं?”
मीना फिर से हँसने लगी।
माँ की बातें सुन कर, और नन्ही चित्रा को स्तनपान कराते हुए मीना की उद्विग्नता कुछ कम हुई, और मन थोड़ा हल्का और स्थिर हुआ।
अब उसको समझ में आया कि जिन बातों को वो सपना समझ रही थी, दरअसल उसके जीवन की ही यादें थीं। भूली हुई यादें... पुरानी यादें! उसके राजकुमार की यादें... उसके हर्ष की यादें!
दिल में उसके एक टीस सी उठी। उसने बड़े दयनीय तरीके से माँ की तरफ़ देखा।
अब वो अपने जीवन का कोई रहस्य छुपा हुआ नहीं रहने देना चाहती थी।
शायद माँ इस बात को समझ गईं।
“बिटिया मेरी,” उन्होंने कहना शुरू किया, “कहाँ से शुरू करूँ बताना... यह मैं ख़ुद ही सोच रही हूँ! ... खैर, मैं कुछ कहूँ, उसके पहले मैं ये जानना चाहती हूँ, कि तुझे याद क्या क्या है?”
“जी?” वो थोड़ा सकुचाई, “... मुझे राजकुमार याद हैं...”
“और?”
“... और... उनकी... उनकी... और महाराज महारानी की...” कहते कहते वो चुप हो गई।
कड़वी यादें पुरानी अवश्य हो गई थीं, लेकिन मीना के लिए आज भी उतनी ही कड़वी थीं। शायद अन्य लोगों के लिए उनकी कड़वाहट कम हो गई हो, लेकिन सुहासिनी / मीनाक्षी के लिए तो वो याद पूरी तरह ताज़ा थी।
माँ ने समझते हुए सर हिलाया, और बोलीं,
“पिताजी महाराज ने तुम दोनों के विवाह के लिए हामी भर दी थी... वो चाहते थे... हम सभी चाहते थे कि तू इस परिवार में बहू बन कर आए... संभव है कि हमारे आराध्यों को भी यही मंज़ूर था... इसीलिए तो तू आई है हमारी बन कर...” कहते कहते उनका मन और उनकी बोली ममता से भर गई, जिसको मीना ने भी महसूस किया।
“माँ, आपकी ममता की छाया में आना तो मेरे लिए सबसे बड़े भाग्य की बात है!”
“न बेटा, भाग्य हमारा है... तेरे कारण इस वंश पर लगा श्राप समाप्त हो गया है!”
“श्राप?” एक पल को वो समझ न पाई।
“हाँ मेरी बच्ची... श्राप!” उन्होंने गहरी साँस भरी, और आगे बोलीं, “लेकिन उसके बारे में बाद में बताऊँगी... पहले शुरू से शुरू करते हैं!”
मीना सतर्क हो कर बैठ गई - न जाने क्या क्या जानने को मिले!
“पिताजी ने तुम दोनों के विवाह के लिए मंज़ूरी तो दे दी थी, लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था!... हम सबको एक असहनीय झटका लगा। बता नहीं सकती कि उससे उबरने में कितना समय लग गया हमको!” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, “... उस समय हालात भी तो सही नहीं थे! रातोंरात जैसे सब बदल गया... जिनको अपना मित्र समझा, अपना माना, वो सभी अजनबी बन गए। ... तेरी हालत भी ठीक नहीं थी। ... तुझे बहुत ही बड़ा सदमा लगा था। ... तू मेरे पास मेरे बच्चे हर्ष की अमानत थी, तो ऐसे कैसे रहने देती तुझे?”
मीना को याद आ रहा था... लेकिन जो याद आ रहा था, उससे वो और भी सकते में आती जा रही थी।
माँ कह रही थीं, “हमको डर सता रहा था कि कहीं कुछ हो न जाए तुझे! हमेशा चहकने वाली लड़की... तू एकदम से गुमसुम सी हो गई थी... न खाने की कोई सुध रहती न पीने की! किसी से कोई बातचीत ही नहीं करती! कई डॉक्टरों को दिखाया... फिर तुझको दिल्ली ले गए। वहाँ के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने हमको सुझाया कि तेरा सेलेक्टिव मेमोरी सप्प्रेशन किया जा सकता है... सदमे वाले समय की बातें, उनकी यादें दबाई जा सकती हैं...”
मीना की साँसें फिर से तेज होने लगीं।
‘क्या क्या हुआ है मेरे साथ!’
“सेलेक्टिव मेमोरी सप्प्रेशन?”