Update #46
“माँ?” मीना को उत्तर की प्रतीक्षा थी।
“सुहास... मेरी बेटी, दरअसल, तू सही है। ... तेरा जय... मेरा और तेरे पिता जी का बेटा नहीं है...”
“फ़...फ़िर...?”
“वो हर्ष का बेटा है...” माँ ने कुछ देर चुप रह कर कहा।
“र...राजकुमार जी का?”
माँ ने ‘हाँ’ मेर सर हिलाया।
“प... पर...”
“व्वो... वो तो मेरे साथ...”
“सुहास... बेटा... मैं जो कहने जा रही हूँ, उसको ध्यान से, और धैर्य से सुनना...”
मीना दो पल को साँस थाम कर बैठ गई - उसका मन अजीब सा होने लगा था, फिर से।
माँ ने एक गहरी साँस भरी, “... जय जैसे हर्ष का बेटा है... वैसे ही वो... वो तेरा भी बेटा है...”
मानों एक साथ ही सैकड़ों बिजलियाँ गिर गईं हों मीना पर!
“क्या!” उसका चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया!
‘यह कैसा खुलासा है!’
“म्म्ममाँ... ये आप क्या कह रही हैं?” उसको यकीन ही नहीं हुआ कि माँ ने ये क्या अनहोनी कह दी।
“सच कह रही हूँ। ... तुझे अपने अतीत का पूरा पूरा अभी भी याद नहीं आया क्या बच्चे?”
बहुत संभव है यह! डॉक्टरों ने मीना का ‘इलाज़’ कर के उसके जीवन की ‘उस समय’ की घटनाओं की याददाश्त दबा या भुला दी थी। हर्ष की मृत्यु, उसके होने वाले सास ससुर की मृत्यु, और फिर उसकी खुद की गर्भावस्था और प्रसव! लेकिन जब दिमाग में एक गुत्थी सुलझती है, तो बाकी बातें स्वयं ही खुलती चली जाती हैं।
“मेरा बच्चा...” उसको अचानक ही याद हो आया।
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“जय... धनञ्जय... तेरा ही है...”
ऐसा बड़ा झटका मीना को अपने पूरे जीवन में नहीं लगा था। कुछ पलों के लिए वो संज्ञा शून्य हो गई - न दिमाग काम कर रहा था, और न ही शरीर!
“बहू... सम्हाल अपने आप को!” उसको होश तब वापस आया, जब माँ ने उसको झिंझोड़ा, “बच्ची गिरने वाली थी अभी!”
“अ...ह...हाँ?”
“बच्ची अभी तेरी गोदी से गिरने वाली थी, सुहास...”
“माँ... क्या आप सच कह रही है?”
उन्होंने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“कैसा बड़ा पाप हो गया माँ...”
“पाप?”
“और नहीं तो क्या! ... अपने ही बेटे से... अब मैं अपना ही सामना कैसे करूँगी माँ? ... अपने जय का सामना कैसे करूँगी...?”
“क्या पागलों जैसी बातें कर रही है?”
“माँ मैं मर जाऊँगी... इतनी शर्म के साथ मैं नहीं जी...”
मीना का वाक्य समाप्त होता, उसके पहले ही उसके गाल पर एक थप्पड़ आ कर लगा,
“ख़बरदार जो आइंदा मरने की बात अपनी ज़बान पर लाई भी,” माँ ने सख़्त स्वर में उसको हिदायद दी, “... तुझे क्या ज़िन्दगी इतनी सस्ती लगती है, जो मर जाएगी? ... ये बेहूदा बात बोलने से पहले एक बार सोचा भी कि तेरे बिना जय का क्या होगा? चित्रा का क्या होगा? ... हमारा क्या होगा? हम कोई नहीं हैं तेरे?”
मीना की आँखों से आँसू ढलक आए, लेकिन रुलाई की आवाज़ न आई। वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोना चाहती थी, लेकिन उस थप्पड़ की मार सीधा उसके दिल पर आ कर लगी। उसको उम्मीद नहीं थी कि इतना प्यार करने वाली माँ उसको मार भी सकती हैं।
फिर उसको अपनी कही हुई बात याद आई, तो उसको समझा कि सही ही किया माँ ने। मूर्खता का कोई इलाज़ तो होना चाहिए न!
“... ले... लेकिन माँ... पाप तो हो गया न...”
“अपने प्रेम को पाप का नाम देती है? ... ये इतनी सुन्दर सी, इतनी प्यारी सी गुड़िया पाप का परिणाम है?”
मीना से कुछ कहते न बना।
“जब तेरे दिल में जय के लिए प्यार उमड़ रहा था, तब क्या वो पाप लग रहा था तुझे? ... जब तुम दोनों साथ होते हो, तो क्या तुझे उसका साथ पाप लगता है? ... इस बच्ची को दूध पिलाते समय क्या तुझे पाप महसूस होता है? ऐसा लगता है कि पाप का परिणाम है?”
मीना को रुलाई आ गई। वो ‘न’ में सर हिलाते हुए रोने लगी।
माँ क्षत्राणी अवश्य थीं, लेकिन पत्थर-दिल नहीं। उन्होंने लपक कर मीना को अपने सीने में छुपा लिया,
“प्रेम करना कब से पाप हो गया, बच्चा?”
कुछ क्षण रोने के बाद मीना बोली, “प्रेम करना पाप नहीं है माँ... लेकिन अपने ही बेटे से...”
“एक बात बता बच्चे,” माँ ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से पूछा, “... जब तूने पहली बार जय को देखा था, तब तेरे मन में क्या उसके लिए माँ की ममता वाले भाव उमड़े थे, या प्रेमिका वाले?”
माँ की बात पर मीना को जय के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गई।
अद्भुत सा आकर्षण उसने महसूस किया था उस दिन - पहली नज़र में ही उसको ऐसा लगा था कि जय अपना है। हो सकता है कि चूँकि दोनों की डोर इस क़दर जुडी हुई थी, इसलिए वैसा महसूस हुआ हो मीना को, लेकिन हाँ, यह तो सच ही है कि जय को देख कर उसके अंदर माँ वाले भाव तो नहीं आये थे। भाव आये थे प्रेमिका वाले ही। और उसके बाद भी - बिस्तर में अंतरंग क्षणों में मीना को लज्जा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण महसूस होता है, जब जय उसके अंदर प्रविष्ट होता है। उससे एकाकार हो कर मीना पूर्ण हो जाती है, आनंदित हो जाती है। इन बातों को झुठलाया तो नहीं जा सकता।
लेकिन,
“... लेकिन माँ... अब ये सब जानने के बाद...”
“क्यों? क्या बदल गया ऐसा?”
“अब मैं जय का सामना कैसे करूँगी माँ?”
माँ शायद कुछ और कहना चाहती थीं, लेकिन अंत समय में उन्होंने कुछ सोच कर कुछ और ही कहा,
“देख बच्चे, तूने उसको जना ज़रूर है, लेकिन तू उसकी माँ नहीं है! ... उसकी माँ तो मैं ही हूँ, और मैं ही रहूँगी... तू उसकी पत्नी है! और उसके इस बच्चे और होने वाले बच्चों की माँ है! ... इसलिए मेरी सलाह तो यही रहेगी कि तू उसके साथ वैसी ही रह, जैसी कि अभी है...”
“... लेकिन... अपने बेटे के साथ...”
“मेरी लाडो... एक बात समझ ले... तू अब सुहास नहीं है... मीना है, मीनाक्षी... राजकुमारी मीनाक्षी... मेरे बेटे जय की पत्नी!” माँ ने रुक रुक कर कहा - जैसे वो सुनिश्चित करना चाहती हों कि मीना के मन में कोई संदेह न शेष रहे, “... उसको मैंने अच्छे संस्कार दिए हैं... मैंने उसके अंदर यह बात कूट कूट कर भरी है कि किसी लड़की को ग़लत नज़र से न देखे... जानती है? तुझसे मिलने से पहले तो उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी... तू ही पसंद आई उसको। तुझी से उसने प्रेम किया, और तुझी से शादी भी!”
मीना जानती थी यह बात। और वो स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मानती थी इसीलिए।
माँ कह रही थीं, “तुम दोनों का जोड़ा ईश्वर ने बनाया है... हम बस यह चाहते हैं कि तुम दोनों विधिपूर्वक पूरे उम्र के लिए साथ में बँध जाओ... तू उसकी कानूनन पत्नी है... अब धर्मपत्नी बन जा...”
“पर माँ... कैसे करूँगी ये सब...”
“जैसे अभी तक करती आई है! ... देख बच्चे, तुझ पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन जय और चित्रा तेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं, और तू हमारे जीवन का! ... मेरे लिए तू मेरे जय की पत्नी है... और यह बात बदलेगी नहीं।”
मीना कुछ न बोली।
“सोच ले! ... लेकिन एक बात समझ ले बच्चे, तू और जय आपस में बहुत प्रेम करते हैं... अब यही प्रेम बस और बढ़ते रहना चाहिए... कम नहीं होना चाहिए! ... ईश्वर ने कुछ सोच कर ही तुम दोनों को मिलाया होगा...”
उसी समय दरवाज़े पर बहुत हल्की सी दस्तख़त हुई।
“माँ?” जय की आवाज़ थी।
“आ जा बेटा... बहू उठ गई है...”
*
जय धीरे से दरवाज़ा खोल कर कमरे के भीतर आया और वापस बंद कर के अपनी माँ और पत्नी के पास आ गया।
उसको देख कर मीना की धड़कनें बढ़ गईं। क्या बोले वो जय से, क्या करे - उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।
“आ जा बेटा...” माँ ने जय से कहा, और फिर सामान्य स्वर में मीना से बोलीं, “... जानती है बहू... ये तो तेरे पास से जा ही नहीं रहा था। ये तो मैंने ही जबरदस्ती कर के भेजा इसको कि सो जा कुछ देर... बहू को मैं सम्हाल लूँगी। तब गया...”
“माँ, नींद ही नहीं आई... चिंता लगी हुई थी न!”
“क्यों नहीं होगी चिंता... तू इसका पति है, और पति को अपनी पत्नी की चिंता, उसकी देखभाल तो करनी ही चाहिए...” माँ ने ार्थपूर्वक कहा - जैसे कि मीना को सुना रही हों, और फिर मीना के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, “अच्छा बहू, मैं चलती हूँ... कुछ देर आराम कर लूँ!”
कुछ ही देर में जय, चित्रा, और मीना कमरे में अकेले हो गए।
*
“मेरी जान,” जय बोला, और उसने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया, “... आई वास सो वरीड... क्या हो गया था तुमको?”
“पता नहीं...” हमेशा की तरह ‘जान’, ‘माय लव’, ‘हनी’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग नहीं किया मीना ने - उसको हिचक सी महसूस हो रही थी, “शायद ट्रैवेलिंग की वीकनेस हो... यहाँ की हीट... ऑर परहैप्स अ कॉम्बिनेशन ऑफ़ द टू...”
“हम्म... डॉक्टर ने भी यही सस्पेक्ट किया है... लेकिन तुम बहुत देर तक अनकॉन्शियस रही...”
“कितनी देर?”
“अबाउट सिक्स सेवन आवर्स...”
“बाप रे...”
“लेकिन कोई चिंता वाली बात नहीं थी - तुम्हारे वाइटल्स बढ़िया थे, और तुमको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे तुम गहरी नींद में हो, और कोई सपना देख रही हो...” जय ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा।
मीना मुस्कुराई।
जय के साथ अभी भी वही कोमलता महसूस हो रही थी उसको, जो यहाँ आने से पहले थी। क्या हो रहा था ये सब, क्यों हो रहा था ये सब - सारी बातें गड्ड-मड्ड हो गई थीं मीना के मन में!
“सपना ही देख रही थी... लेकिन जो देखा, वो हक़ीक़त के जितना ही सुन्दर था...” वो बोली।
“अच्छा जी? ऐसा क्या देख लिया?”
मीना के होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गई, “अभी नहीं... फिर कभी बताऊँगी...”
“पक्की बात?”
“पक्की बात!” मीना बोली।
जय मुस्कुराया।
जय का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मीना मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थी। इस समय भी कोई अपवाद नहीं था। जय के लिए जैसा प्रेम उसने अपनी पहली मुलाकात में महसूस किया था, आज माँ के खुलासे के बाद भी, वो वैसा ही था। क्या पता, अब और भी प्रगाढ़ हो गया हो।
“कैसा लग रहा है मेरी राजकुमारी को?”
“आई ऍम गुड... माय लव,” मीना ने आख़िरी दो शब्द थोड़ा रुक कर जोड़े, “आई थिंक आई विल बी ऑलराइट...”
“हाँ... चिंता न करो! ... तुमको कल रेस्ट करना है, फिर इस्टेट दिखाएँगे तुम्हे!” जय ने उत्साह से बताया, “बहुत से लोग तुमसे मिला चाहते हैं... नई राजकुमारी से मिलने को बहुत से लोग बेक़रार हैं...”
जय की इसी अदा पर तो वो फ़िदा थी। चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कैसा भी विचार हो उसके मन में, जय उसके होंठों पर, और उसके मन में मुस्कान ला ही देता था।
“... और माँ ने बताया है कि एक सप्ताह बाद की तारीख़ निकली है हमारी शादी की...”
यह सुन कर मीना की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।
“फिर हम लीगली मैरीड कपल से, रिचुअली मैरीड कपल बन जायेंगे...”
“आई वुड लव दैट...” मीना ने कोमलता से कहा।
“सच में?”
“हनी?” मीना बोली।
“हाँ?”
“प्लीज़ मेक लव टू मी?”
“अभी?”
मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
जय के आलिंगन में आ कर मीना पिघल गई। इससे सुख वाली जगह कोई नहीं है संसार में - उसको तुरंत ही समझ में आ गया। कोई पंद्रह मिनट के लम्बे फ़ोरप्ले के बाद जब जय मीना के अंदर प्रविष्ट हुआ, तो मीना को कोई पहले के और अभी के अनुभव में कोई अंतर नहीं महसूस हुआ। ये उसका जय ही था... उसका प्यार... उसका हस्बैंड! उसको वो बहुत प्यार करती है... और करती रहेगी। कोई भी बात इस सत्य को झुठला नहीं सकती।
'हाँ, वो जय की धर्मपत्नी बनेगी!'
*