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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,027
22,409
159
Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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22,409
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Update #46


“माँ?” मीना को उत्तर की प्रतीक्षा थी।

“सुहास... मेरी बेटी, दरअसल, तू सही है। ... तेरा जय... मेरा और तेरे पिता जी का बेटा नहीं है...”

“फ़...फ़िर...?”

“वो हर्ष का बेटा है...” माँ ने कुछ देर चुप रह कर कहा।

“र...राजकुमार जी का?”

माँ ने ‘हाँ’ मेर सर हिलाया।

“प... पर...”

“व्वो... वो तो मेरे साथ...”

“सुहास... बेटा... मैं जो कहने जा रही हूँ, उसको ध्यान से, और धैर्य से सुनना...”

मीना दो पल को साँस थाम कर बैठ गई - उसका मन अजीब सा होने लगा था, फिर से।

माँ ने एक गहरी साँस भरी, “... जय जैसे हर्ष का बेटा है... वैसे ही वो... वो तेरा भी बेटा है...”

मानों एक साथ ही सैकड़ों बिजलियाँ गिर गईं हों मीना पर!

“क्या!” उसका चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया!

‘यह कैसा खुलासा है!’

“म्म्ममाँ... ये आप क्या कह रही हैं?” उसको यकीन ही नहीं हुआ कि माँ ने ये क्या अनहोनी कह दी।

“सच कह रही हूँ। ... तुझे अपने अतीत का पूरा पूरा अभी भी याद नहीं आया क्या बच्चे?”

बहुत संभव है यह! डॉक्टरों ने मीना का ‘इलाज़’ कर के उसके जीवन की ‘उस समय’ की घटनाओं की याददाश्त दबा या भुला दी थी। हर्ष की मृत्यु, उसके होने वाले सास ससुर की मृत्यु, और फिर उसकी खुद की गर्भावस्था और प्रसव! लेकिन जब दिमाग में एक गुत्थी सुलझती है, तो बाकी बातें स्वयं ही खुलती चली जाती हैं।

“मेरा बच्चा...” उसको अचानक ही याद हो आया।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जय... धनञ्जय... तेरा ही है...”

ऐसा बड़ा झटका मीना को अपने पूरे जीवन में नहीं लगा था। कुछ पलों के लिए वो संज्ञा शून्य हो गई - न दिमाग काम कर रहा था, और न ही शरीर!

“बहू... सम्हाल अपने आप को!” उसको होश तब वापस आया, जब माँ ने उसको झिंझोड़ा, “बच्ची गिरने वाली थी अभी!”

“अ...ह...हाँ?”

“बच्ची अभी तेरी गोदी से गिरने वाली थी, सुहास...”

“माँ... क्या आप सच कह रही है?”

उन्होंने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कैसा बड़ा पाप हो गया माँ...”

“पाप?”

“और नहीं तो क्या! ... अपने ही बेटे से... अब मैं अपना ही सामना कैसे करूँगी माँ? ... अपने जय का सामना कैसे करूँगी...?”

“क्या पागलों जैसी बातें कर रही है?”

“माँ मैं मर जाऊँगी... इतनी शर्म के साथ मैं नहीं जी...”

मीना का वाक्य समाप्त होता, उसके पहले ही उसके गाल पर एक थप्पड़ आ कर लगा,

“ख़बरदार जो आइंदा मरने की बात अपनी ज़बान पर लाई भी,” माँ ने सख़्त स्वर में उसको हिदायद दी, “... तुझे क्या ज़िन्दगी इतनी सस्ती लगती है, जो मर जाएगी? ... ये बेहूदा बात बोलने से पहले एक बार सोचा भी कि तेरे बिना जय का क्या होगा? चित्रा का क्या होगा? ... हमारा क्या होगा? हम कोई नहीं हैं तेरे?”

मीना की आँखों से आँसू ढलक आए, लेकिन रुलाई की आवाज़ न आई। वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोना चाहती थी, लेकिन उस थप्पड़ की मार सीधा उसके दिल पर आ कर लगी। उसको उम्मीद नहीं थी कि इतना प्यार करने वाली माँ उसको मार भी सकती हैं।

फिर उसको अपनी कही हुई बात याद आई, तो उसको समझा कि सही ही किया माँ ने। मूर्खता का कोई इलाज़ तो होना चाहिए न!

“... ले... लेकिन माँ... पाप तो हो गया न...”

“अपने प्रेम को पाप का नाम देती है? ... ये इतनी सुन्दर सी, इतनी प्यारी सी गुड़िया पाप का परिणाम है?”

मीना से कुछ कहते न बना।

“जब तेरे दिल में जय के लिए प्यार उमड़ रहा था, तब क्या वो पाप लग रहा था तुझे? ... जब तुम दोनों साथ होते हो, तो क्या तुझे उसका साथ पाप लगता है? ... इस बच्ची को दूध पिलाते समय क्या तुझे पाप महसूस होता है? ऐसा लगता है कि पाप का परिणाम है?”

मीना को रुलाई आ गई। वो ‘न’ में सर हिलाते हुए रोने लगी।

माँ क्षत्राणी अवश्य थीं, लेकिन पत्थर-दिल नहीं। उन्होंने लपक कर मीना को अपने सीने में छुपा लिया,

“प्रेम करना कब से पाप हो गया, बच्चा?”

कुछ क्षण रोने के बाद मीना बोली, “प्रेम करना पाप नहीं है माँ... लेकिन अपने ही बेटे से...”

“एक बात बता बच्चे,” माँ ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से पूछा, “... जब तूने पहली बार जय को देखा था, तब तेरे मन में क्या उसके लिए माँ की ममता वाले भाव उमड़े थे, या प्रेमिका वाले?”

माँ की बात पर मीना को जय के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गई।

अद्भुत सा आकर्षण उसने महसूस किया था उस दिन - पहली नज़र में ही उसको ऐसा लगा था कि जय अपना है। हो सकता है कि चूँकि दोनों की डोर इस क़दर जुडी हुई थी, इसलिए वैसा महसूस हुआ हो मीना को, लेकिन हाँ, यह तो सच ही है कि जय को देख कर उसके अंदर माँ वाले भाव तो नहीं आये थे। भाव आये थे प्रेमिका वाले ही। और उसके बाद भी - बिस्तर में अंतरंग क्षणों में मीना को लज्जा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण महसूस होता है, जब जय उसके अंदर प्रविष्ट होता है। उससे एकाकार हो कर मीना पूर्ण हो जाती है, आनंदित हो जाती है। इन बातों को झुठलाया तो नहीं जा सकता।

लेकिन,

“... लेकिन माँ... अब ये सब जानने के बाद...”

“क्यों? क्या बदल गया ऐसा?”

“अब मैं जय का सामना कैसे करूँगी माँ?”

माँ शायद कुछ और कहना चाहती थीं, लेकिन अंत समय में उन्होंने कुछ सोच कर कुछ और ही कहा,

“देख बच्चे, तूने उसको जना ज़रूर है, लेकिन तू उसकी माँ नहीं है! ... उसकी माँ तो मैं ही हूँ, और मैं ही रहूँगी... तू उसकी पत्नी है! और उसके इस बच्चे और होने वाले बच्चों की माँ है! ... इसलिए मेरी सलाह तो यही रहेगी कि तू उसके साथ वैसी ही रह, जैसी कि अभी है...”

“... लेकिन... अपने बेटे के साथ...”

“मेरी लाडो... एक बात समझ ले... तू अब सुहास नहीं है... मीना है, मीनाक्षी... राजकुमारी मीनाक्षी... मेरे बेटे जय की पत्नी!” माँ ने रुक रुक कर कहा - जैसे वो सुनिश्चित करना चाहती हों कि मीना के मन में कोई संदेह न शेष रहे, “... उसको मैंने अच्छे संस्कार दिए हैं... मैंने उसके अंदर यह बात कूट कूट कर भरी है कि किसी लड़की को ग़लत नज़र से न देखे... जानती है? तुझसे मिलने से पहले तो उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी... तू ही पसंद आई उसको। तुझी से उसने प्रेम किया, और तुझी से शादी भी!”

मीना जानती थी यह बात। और वो स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मानती थी इसीलिए।

माँ कह रही थीं, “तुम दोनों का जोड़ा ईश्वर ने बनाया है... हम बस यह चाहते हैं कि तुम दोनों विधिपूर्वक पूरे उम्र के लिए साथ में बँध जाओ... तू उसकी कानूनन पत्नी है... अब धर्मपत्नी बन जा...”

“पर माँ... कैसे करूँगी ये सब...”

“जैसे अभी तक करती आई है! ... देख बच्चे, तुझ पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन जय और चित्रा तेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं, और तू हमारे जीवन का! ... मेरे लिए तू मेरे जय की पत्नी है... और यह बात बदलेगी नहीं।”

मीना कुछ न बोली।

“सोच ले! ... लेकिन एक बात समझ ले बच्चे, तू और जय आपस में बहुत प्रेम करते हैं... अब यही प्रेम बस और बढ़ते रहना चाहिए... कम नहीं होना चाहिए! ... ईश्वर ने कुछ सोच कर ही तुम दोनों को मिलाया होगा...”

उसी समय दरवाज़े पर बहुत हल्की सी दस्तख़त हुई।

“माँ?” जय की आवाज़ थी।

“आ जा बेटा... बहू उठ गई है...”


*


जय धीरे से दरवाज़ा खोल कर कमरे के भीतर आया और वापस बंद कर के अपनी माँ और पत्नी के पास आ गया।

उसको देख कर मीना की धड़कनें बढ़ गईं। क्या बोले वो जय से, क्या करे - उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

“आ जा बेटा...” माँ ने जय से कहा, और फिर सामान्य स्वर में मीना से बोलीं, “... जानती है बहू... ये तो तेरे पास से जा ही नहीं रहा था। ये तो मैंने ही जबरदस्ती कर के भेजा इसको कि सो जा कुछ देर... बहू को मैं सम्हाल लूँगी। तब गया...”

“माँ, नींद ही नहीं आई... चिंता लगी हुई थी न!”

“क्यों नहीं होगी चिंता... तू इसका पति है, और पति को अपनी पत्नी की चिंता, उसकी देखभाल तो करनी ही चाहिए...” माँ ने ार्थपूर्वक कहा - जैसे कि मीना को सुना रही हों, और फिर मीना के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, “अच्छा बहू, मैं चलती हूँ... कुछ देर आराम कर लूँ!”

कुछ ही देर में जय, चित्रा, और मीना कमरे में अकेले हो गए।


*


“मेरी जान,” जय बोला, और उसने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया, “... आई वास सो वरीड... क्या हो गया था तुमको?”

“पता नहीं...” हमेशा की तरह ‘जान’, ‘माय लव’, ‘हनी’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग नहीं किया मीना ने - उसको हिचक सी महसूस हो रही थी, “शायद ट्रैवेलिंग की वीकनेस हो... यहाँ की हीट... ऑर परहैप्स अ कॉम्बिनेशन ऑफ़ द टू...”

“हम्म... डॉक्टर ने भी यही सस्पेक्ट किया है... लेकिन तुम बहुत देर तक अनकॉन्शियस रही...”

“कितनी देर?”

अबाउट सिक्स सेवन आवर्स...”

“बाप रे...”

“लेकिन कोई चिंता वाली बात नहीं थी - तुम्हारे वाइटल्स बढ़िया थे, और तुमको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे तुम गहरी नींद में हो, और कोई सपना देख रही हो...” जय ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा।

मीना मुस्कुराई।

जय के साथ अभी भी वही कोमलता महसूस हो रही थी उसको, जो यहाँ आने से पहले थी। क्या हो रहा था ये सब, क्यों हो रहा था ये सब - सारी बातें गड्ड-मड्ड हो गई थीं मीना के मन में!

“सपना ही देख रही थी... लेकिन जो देखा, वो हक़ीक़त के जितना ही सुन्दर था...” वो बोली।

“अच्छा जी? ऐसा क्या देख लिया?”

मीना के होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गई, “अभी नहीं... फिर कभी बताऊँगी...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना बोली।

जय मुस्कुराया।

जय का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मीना मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थी। इस समय भी कोई अपवाद नहीं था। जय के लिए जैसा प्रेम उसने अपनी पहली मुलाकात में महसूस किया था, आज माँ के खुलासे के बाद भी, वो वैसा ही था। क्या पता, अब और भी प्रगाढ़ हो गया हो।

“कैसा लग रहा है मेरी राजकुमारी को?”

आई ऍम गुड... माय लव,” मीना ने आख़िरी दो शब्द थोड़ा रुक कर जोड़े, “आई थिंक आई विल बी ऑलराइट...”

“हाँ... चिंता न करो! ... तुमको कल रेस्ट करना है, फिर इस्टेट दिखाएँगे तुम्हे!” जय ने उत्साह से बताया, “बहुत से लोग तुमसे मिला चाहते हैं... नई राजकुमारी से मिलने को बहुत से लोग बेक़रार हैं...”

जय की इसी अदा पर तो वो फ़िदा थी। चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कैसा भी विचार हो उसके मन में, जय उसके होंठों पर, और उसके मन में मुस्कान ला ही देता था।

“... और माँ ने बताया है कि एक सप्ताह बाद की तारीख़ निकली है हमारी शादी की...”

यह सुन कर मीना की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“फिर हम लीगली मैरीड कपल से, रिचुअली मैरीड कपल बन जायेंगे...”

आई वुड लव दैट...” मीना ने कोमलता से कहा।

“सच में?”

“हनी?” मीना बोली।

“हाँ?”

प्लीज़ मेक लव टू मी?”

“अभी?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय के आलिंगन में आ कर मीना पिघल गई। इससे सुख वाली जगह कोई नहीं है संसार में - उसको तुरंत ही समझ में आ गया। कोई पंद्रह मिनट के लम्बे फ़ोरप्ले के बाद जब जय मीना के अंदर प्रविष्ट हुआ, तो मीना को कोई पहले के और अभी के अनुभव में कोई अंतर नहीं महसूस हुआ। ये उसका जय ही था... उसका प्यार... उसका हस्बैंड! उसको वो बहुत प्यार करती है... और करती रहेगी। कोई भी बात इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

'हाँ, वो जय की धर्मपत्नी बनेगी!'

*
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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तो शायद आपने अंत कर दिया इसका।

कुछ बातें अभी भी क्लियर नही हुई।

मीना जय से बड़ी थी, 18 साल? इसका मतलब वो आदित्य और क्लेयर से भी बहुत बड़ी हुई?

शायद आपने हमारे खुलासे के चक्कर में कुछ गडबड कर दी है, इसीलिए आपसे गुजारिश है कि जैसा लिखा था वैसा ही चलने देते तो कहानी ज्यादा अच्छी रहेगी।

बाकी जैसी लेखक की इक्षा 🙏🏽
 

park

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Update #46


“माँ?” मीना को उत्तर की प्रतीक्षा थी।

“सुहास... मेरी बेटी, दरअसल, तू सही है। ... तेरा जय... मेरा और तेरे पिता जी का बेटा नहीं है...”

“फ़...फ़िर...?”

“वो हर्ष का बेटा है...” माँ ने कुछ देर चुप रह कर कहा।

“र...राजकुमार जी का?”

माँ ने ‘हाँ’ मेर सर हिलाया।

“प... पर...”

“व्वो... वो तो मेरे साथ...”

“सुहास... बेटा... मैं जो कहने जा रही हूँ, उसको ध्यान से, और धैर्य से सुनना...”

मीना दो पल को साँस थाम कर बैठ गई - उसका मन अजीब सा होने लगा था, फिर से।

माँ ने एक गहरी साँस भरी, “... जय जैसे हर्ष का बेटा है... वैसे ही वो... वो तेरा भी बेटा है...”

मानों एक साथ ही सैकड़ों बिजलियाँ गिर गईं हों मीना पर!

“क्या!” उसका चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया!

‘यह कैसा खुलासा है!’

“म्म्ममाँ... ये आप क्या कह रही हैं?” उसको यकीन ही नहीं हुआ कि माँ ने ये क्या अनहोनी कह दी।

“सच कह रही हूँ। ... तुझे अपने अतीत का पूरा पूरा अभी भी याद नहीं आया क्या बच्चे?”

बहुत संभव है यह! डॉक्टरों ने मीना का ‘इलाज़’ कर के उसके जीवन की ‘उस समय’ की घटनाओं की याददाश्त दबा या भुला दी थी। हर्ष की मृत्यु, उसके होने वाले सास ससुर की मृत्यु, और फिर उसकी खुद की गर्भावस्था और प्रसव! लेकिन जब दिमाग में एक गुत्थी सुलझती है, तो बाकी बातें स्वयं ही खुलती चली जाती हैं।

“मेरा बच्चा...” उसको अचानक ही याद हो आया।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जय... धनञ्जय... तेरा ही है...”

ऐसा बड़ा झटका मीना को अपने पूरे जीवन में नहीं लगा था। कुछ पलों के लिए वो संज्ञा शून्य हो गई - न दिमाग काम कर रहा था, और न ही शरीर!

“बहू... सम्हाल अपने आप को!” उसको होश तब वापस आया, जब माँ ने उसको झिंझोड़ा, “बच्ची गिरने वाली थी अभी!”

“अ...ह...हाँ?”

“बच्ची अभी तेरी गोदी से गिरने वाली थी, सुहास...”

“माँ... क्या आप सच कह रही है?”

उन्होंने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कैसा बड़ा पाप हो गया माँ...”

“पाप?”

“और नहीं तो क्या! ... अपने ही बेटे से... अब मैं अपना ही सामना कैसे करूँगी माँ? ... अपने जय का सामना कैसे करूँगी...?”

“क्या पागलों जैसी बातें कर रही है?”

“माँ मैं मर जाऊँगी... इतनी शर्म के साथ मैं नहीं जी...”

मीना का वाक्य समाप्त होता, उसके पहले ही उसके गाल पर एक थप्पड़ आ कर लगा,

“ख़बरदार जो आइंदा मरने की बात अपनी ज़बान पर लाई भी,” माँ ने सख़्त स्वर में उसको हिदायद दी, “... तुझे क्या ज़िन्दगी इतनी सस्ती लगती है, जो मर जाएगी? ... ये बेहूदा बात बोलने से पहले एक बार सोचा भी कि तेरे बिना जय का क्या होगा? चित्रा का क्या होगा? ... हमारा क्या होगा? हम कोई नहीं हैं तेरे?”

मीना की आँखों से आँसू ढलक आए, लेकिन रुलाई की आवाज़ न आई। वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोना चाहती थी, लेकिन उस थप्पड़ की मार सीधा उसके दिल पर आ कर लगी। उसको उम्मीद नहीं थी कि इतना प्यार करने वाली माँ उसको मार भी सकती हैं।

फिर उसको अपनी कही हुई बात याद आई, तो उसको समझा कि सही ही किया माँ ने। मूर्खता का कोई इलाज़ तो होना चाहिए न!

“... ले... लेकिन माँ... पाप तो हो गया न...”

“अपने प्रेम को पाप का नाम देती है? ... ये इतनी सुन्दर सी, इतनी प्यारी सी गुड़िया पाप का परिणाम है?”

मीना से कुछ कहते न बना।

“जब तेरे दिल में जय के लिए प्यार उमड़ रहा था, तब क्या वो पाप लग रहा था तुझे? ... जब तुम दोनों साथ होते हो, तो क्या तुझे उसका साथ पाप लगता है? ... इस बच्ची को दूध पिलाते समय क्या तुझे पाप महसूस होता है? ऐसा लगता है कि पाप का परिणाम है?”

मीना को रुलाई आ गई। वो ‘न’ में सर हिलाते हुए रोने लगी।

माँ क्षत्राणी अवश्य थीं, लेकिन पत्थर-दिल नहीं। उन्होंने लपक कर मीना को अपने सीने में छुपा लिया,

“प्रेम करना कब से पाप हो गया, बच्चा?”

कुछ क्षण रोने के बाद मीना बोली, “प्रेम करना पाप नहीं है माँ... लेकिन अपने ही बेटे से...”

“एक बात बता बच्चे,” माँ ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से पूछा, “... जब तूने पहली बार जय को देखा था, तब तेरे मन में क्या उसके लिए माँ की ममता वाले भाव उमड़े थे, या प्रेमिका वाले?”

माँ की बात पर मीना को जय के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गई।

अद्भुत सा आकर्षण उसने महसूस किया था उस दिन - पहली नज़र में ही उसको ऐसा लगा था कि जय अपना है। हो सकता है कि चूँकि दोनों की डोर इस क़दर जुडी हुई थी, इसलिए वैसा महसूस हुआ हो मीना को, लेकिन हाँ, यह तो सच ही है कि जय को देख कर उसके अंदर माँ वाले भाव तो नहीं आये थे। भाव आये थे प्रेमिका वाले ही। और उसके बाद भी - बिस्तर में अंतरंग क्षणों में मीना को लज्जा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण महसूस होता है, जब जय उसके अंदर प्रविष्ट होता है। उससे एकाकार हो कर मीना पूर्ण हो जाती है, आनंदित हो जाती है। इन बातों को झुठलाया तो नहीं जा सकता।

लेकिन,

“... लेकिन माँ... अब ये सब जानने के बाद...”

“क्यों? क्या बदल गया ऐसा?”

“अब मैं जय का सामना कैसे करूँगी माँ?”

माँ शायद कुछ और कहना चाहती थीं, लेकिन अंत समय में उन्होंने कुछ सोच कर कुछ और ही कहा,

“देख बच्चे, तूने उसको जना ज़रूर है, लेकिन तू उसकी माँ नहीं है! ... उसकी माँ तो मैं ही हूँ, और मैं ही रहूँगी... तू उसकी पत्नी है! और उसके इस बच्चे और होने वाले बच्चों की माँ है! ... इसलिए मेरी सलाह तो यही रहेगी कि तू उसके साथ वैसी ही रह, जैसी कि अभी है...”

“... लेकिन... अपने बेटे के साथ...”

“मेरी लाडो... एक बात समझ ले... तू अब सुहास नहीं है... मीना है, मीनाक्षी... राजकुमारी मीनाक्षी... मेरे बेटे जय की पत्नी!” माँ ने रुक रुक कर कहा - जैसे वो सुनिश्चित करना चाहती हों कि मीना के मन में कोई संदेह न शेष रहे, “... उसको मैंने अच्छे संस्कार दिए हैं... मैंने उसके अंदर यह बात कूट कूट कर भरी है कि किसी लड़की को ग़लत नज़र से न देखे... जानती है? तुझसे मिलने से पहले तो उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी... तू ही पसंद आई उसको। तुझी से उसने प्रेम किया, और तुझी से शादी भी!”

मीना जानती थी यह बात। और वो स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मानती थी इसीलिए।

माँ कह रही थीं, “तुम दोनों का जोड़ा ईश्वर ने बनाया है... हम बस यह चाहते हैं कि तुम दोनों विधिपूर्वक पूरे उम्र के लिए साथ में बँध जाओ... तू उसकी कानूनन पत्नी है... अब धर्मपत्नी बन जा...”

“पर माँ... कैसे करूँगी ये सब...”

“जैसे अभी तक करती आई है! ... देख बच्चे, तुझ पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन जय और चित्रा तेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं, और तू हमारे जीवन का! ... मेरे लिए तू मेरे जय की पत्नी है... और यह बात बदलेगी नहीं।”

मीना कुछ न बोली।

“सोच ले! ... लेकिन एक बात समझ ले बच्चे, तू और जय आपस में बहुत प्रेम करते हैं... अब यही प्रेम बस और बढ़ते रहना चाहिए... कम नहीं होना चाहिए! ... ईश्वर ने कुछ सोच कर ही तुम दोनों को मिलाया होगा...”

उसी समय दरवाज़े पर बहुत हल्की सी दस्तख़त हुई।

“माँ?” जय की आवाज़ थी।

“आ जा बेटा... बहू उठ गई है...”


*


जय धीरे से दरवाज़ा खोल कर कमरे के भीतर आया और वापस बंद कर के अपनी माँ और पत्नी के पास आ गया।

उसको देख कर मीना की धड़कनें बढ़ गईं। क्या बोले वो जय से, क्या करे - उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

“आ जा बेटा...” माँ ने जय से कहा, और फिर सामान्य स्वर में मीना से बोलीं, “... जानती है बहू... ये तो तेरे पास से जा ही नहीं रहा था। ये तो मैंने ही जबरदस्ती कर के भेजा इसको कि सो जा कुछ देर... बहू को मैं सम्हाल लूँगी। तब गया...”

“माँ, नींद ही नहीं आई... चिंता लगी हुई थी न!”

“क्यों नहीं होगी चिंता... तू इसका पति है, और पति को अपनी पत्नी की चिंता, उसकी देखभाल तो करनी ही चाहिए...” माँ ने ार्थपूर्वक कहा - जैसे कि मीना को सुना रही हों, और फिर मीना के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, “अच्छा बहू, मैं चलती हूँ... कुछ देर आराम कर लूँ!”

कुछ ही देर में जय, चित्रा, और मीना कमरे में अकेले हो गए।


*


“मेरी जान,” जय बोला, और उसने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया, “... आई वास सो वरीड... क्या हो गया था तुमको?”

“पता नहीं...” हमेशा की तरह ‘जान’, ‘माय लव’, ‘हनी’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग नहीं किया मीना ने - उसको हिचक सी महसूस हो रही थी, “शायद ट्रैवेलिंग की वीकनेस हो... यहाँ की हीट... ऑर परहैप्स अ कॉम्बिनेशन ऑफ़ द टू...”

“हम्म... डॉक्टर ने भी यही सस्पेक्ट किया है... लेकिन तुम बहुत देर तक अनकॉन्शियस रही...”

“कितनी देर?”

अबाउट सिक्स सेवन आवर्स...”

“बाप रे...”

“लेकिन कोई चिंता वाली बात नहीं थी - तुम्हारे वाइटल्स बढ़िया थे, और तुमको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे तुम गहरी नींद में हो, और कोई सपना देख रही हो...” जय ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा।

मीना मुस्कुराई।

जय के साथ अभी भी वही कोमलता महसूस हो रही थी उसको, जो यहाँ आने से पहले थी। क्या हो रहा था ये सब, क्यों हो रहा था ये सब - सारी बातें गड्ड-मड्ड हो गई थीं मीना के मन में!

“सपना ही देख रही थी... लेकिन जो देखा, वो हक़ीक़त के जितना ही सुन्दर था...” वो बोली।

“अच्छा जी? ऐसा क्या देख लिया?”

मीना के होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गई, “अभी नहीं... फिर कभी बताऊँगी...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना बोली।

जय मुस्कुराया।

जय का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मीना मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थी। इस समय भी कोई अपवाद नहीं था। जय के लिए जैसा प्रेम उसने अपनी पहली मुलाकात में महसूस किया था, आज माँ के खुलासे के बाद भी, वो वैसा ही था। क्या पता, अब और भी प्रगाढ़ हो गया हो।

“कैसा लग रहा है मेरी राजकुमारी को?”

आई ऍम गुड... माय लव,” मीना ने आख़िरी दो शब्द थोड़ा रुक कर जोड़े, “आई थिंक आई विल बी ऑलराइट...”

“हाँ... चिंता न करो! ... तुमको कल रेस्ट करना है, फिर इस्टेट दिखाएँगे तुम्हे!” जय ने उत्साह से बताया, “बहुत से लोग तुमसे मिला चाहते हैं... नई राजकुमारी से मिलने को बहुत से लोग बेक़रार हैं...”

जय की इसी अदा पर तो वो फ़िदा थी। चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कैसा भी विचार हो उसके मन में, जय उसके होंठों पर, और उसके मन में मुस्कान ला ही देता था।

“... और माँ ने बताया है कि एक सप्ताह बाद की तारीख़ निकली है हमारी शादी की...”

यह सुन कर मीना की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“फिर हम लीगली मैरीड कपल से, रिचुअली मैरीड कपल बन जायेंगे...”

आई वुड लव दैट...” मीना ने कोमलता से कहा।

“सच में?”

“हनी?” मीना बोली।

“हाँ?”

प्लीज़ मेक लव टू मी?”

“अभी?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय के आलिंगन में आ कर मीना पिघल गई। इससे सुख वाली जगह कोई नहीं है संसार में - उसको तुरंत ही समझ में आ गया। कोई पंद्रह मिनट के लम्बे फ़ोरप्ले के बाद जब जय मीना के अंदर प्रविष्ट हुआ, तो मीना को कोई पहले के और अभी के अनुभव में कोई अंतर नहीं महसूस हुआ। ये उसका जय ही था... उसका प्यार... उसका हस्बैंड! उसको वो बहुत प्यार करती है... और करती रहेगी। कोई भी बात इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

'हाँ, वो जय की धर्मपत्नी बनेगी!'

*
Nice and superb update....
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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तो शायद आपने अंत कर दिया इसका।

कुछ बातें अभी भी क्लियर नही हुई।

मीना जय से बड़ी थी, 18 साल? इसका मतलब वो आदित्य और क्लेयर से भी बहुत बड़ी हुई?

शायद आपने हमारे खुलासे के चक्कर में कुछ गडबड कर दी है, इसीलिए आपसे गुजारिश है कि जैसा लिखा था वैसा ही चलने देते तो कहानी ज्यादा अच्छी रहेगी।

बाकी जैसी लेखक की इक्षा 🙏🏽

भाई, बरात दूल्हा संग चलनी चाहिए! आप बार बार कहानी से आगे आगे भागने लगते हैं। यह शिकायत रह जाएगी आपसे, इस कहानी पर! 😂
यद्यपि कहानी वर्तमान में चल रही है, तथापि कहानी का वर्तमान, आज का वर्तमान नहीं है!
ध्यान दें - एक समय भारत चीन युद्ध की बात की गई है यहाँ! लिहाज़ा, कहानी का वर्तमान भी कम से कम चार दशक पूर्व का है!
मैंने हिसाब लगाया है, और टाइम-लाइन भी बनाई है।
सुहासिनी अल्पवय थी - जैसा कि मोहब्बत का सफ़र में सुमन थी, लगभग वैसी - इसलिए यहाँ पर लिखी नहीं जा सकती! मीना आदित्य और क्लेयर से बड़ी है, लेकिन उतनी नहीं, जितना आप सोच रहे हैं।
हाँ, आप एक मामले में सही थे - कहानी कुछ समय से दो काल-खण्डों में चल रही थी। एक सुहासिनी के काल-खण्ड में, और एक मीनाक्षी के। अब सब एक है।
श्राप का रहस्य खुलना बाकी है। कहानी ख़तम नहीं हुई है - मैंने अभी भी “समाप्त” नहीं लिखा कहानी के अंत में।
साथ बने रहें। बहुत सोच कर ही कहानी लिख रहा हूँ। आप लोगों की टिप्पणियों का इस पर कोई प्रभाव नहीं है।
 
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parkas

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Update #44


“कोई बात नहीं बच्चे,” माँ (प्रियम्बदा) ने अपने परिचित वात्सल्य भरे अंदाज़ में कहा, “अभी ये सूप पी ले... बहुत भूख लगी होगी तुझे! कुछ पेट में जाएगा, तो अच्छा लगेगा। ... फिर बताती हूँ! ... सब कुछ! कुछ भी नहीं छुपाऊँगी... और मुझे भी तुझसे कुछ कुछ पूछना है... ठीक है?”

मीना को अभी भी यकीन नहीं था कि यह सच्चाई चल रही है, या फिर उसका कोई सपना!

“जय?”

“कुछ समय पहले सभी यहीं बैठे थे... जय, आदि, क्लेयर... लेकिन रात बहुत हो गई है, इसलिए मैंने सभी को जबरदस्ती कर के सोने के लिए भेज दिया!” माँ ने उसके माथे को स्नेह से सहलाया, “डॉक्टर तुझे देख गए... कह रहे थे कि शायद गर्मी और यात्रा की थकावट से बेहोशी आ गई है... लेकिन चिंता की कोई बात नहीं...”

मीना बस माँ को देखती रह गई।

माँ मीना को सहारा दे कर, और उसको बिस्तर के सिरहाने से टेक दे कर बैठाती हुई आगे बोलीं, “बस कुछ और क्षण रुक जा... सब बता देती हूँ! ... लेकिन फिलहाल ये सूप पी ले...”

कह कर माँ ने सूप बाउल से एक चम्मच भर कर सूप उसकी तरफ़ बढ़ाया। मीना ने सहर्ष उसको ग्रहण कर लिया।

उसको भूख भी लगी हुई थी और प्यास भी। टमाटर के चटपटे और मक्खनी स्वाद और गरम तरल को महसूस कर के उसको बहुत अच्छा लगा - गले को तरावट महसूस हुई, और मन को भी। साथ ही साथ प्रियम्बदा - उसकी दीदी, और उसकी सासू माँ - की उपस्थिति पा कर उसको सुरक्षित भी महसूस हुआ। लेकिन राजमहल में आने से पहले उसका दिल जैसा बैठ रहा था, अब फिर से बैठने लगा था... न जाने क्या बताने वाली थीं माँ उसको! लेकिन उसने फिलहाल चुपचाप सूप पीना उचित समझा।

“और सूप चाहिए, बच्चे?” माँ ने स्नेहपूर्वक पूछा।

मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “मुझे आप चाहिए माँ! मुझे बहुत डर लग रहा है... क्या हो रहा है मेरे साथ, मुझको कुछ भी समझ नहीं आ रहा है!”

“मेरी पूता,” माँ ने बड़े लाड़ से मीना का गाल सहलाया और कहा, “मैं तो हमेशा ही तेरे पास हूँ... और जहाँ तक क्या हो रहा है वाला सवाल है, उसका उत्तर जितना संभव है मेरे लिए, मैं ज़रूर दूँगी!”

“लेकिन माँ... हुआ क्या था? ... आप मुझसे यूँ दूर कैसे हो गईं थीं? ... और फिर ये सब! कैसे हुआ सब?”

उसने एक ही साँस में सब कह डाला।

माँ कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं, “तुझे क्या कुछ भी याद नहीं है बेटे?”

“क्या याद नहीं है माँ? ... आपसे और भैया से वो आखिरी मुलाकात याद है... वो भी थोड़ी थोड़ी... उसके बाद का कुछ भी नहीं!” मीना ने अपनी याददाश्त पर बल देते हुए कहा।

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, और गहरी सांस ले कर कहा,

“फिर तो शायद कहानी थोड़ी लम्बी होने वाली है...”

“माँ... जय को और... चित्रा को भी बुला दीजिए न... उनके रहने से हिम्मत रहती है!”

“सुहास... मेरी बिटिया रानी... अभी जय को रहने दे...” माँ ने उसके बगल आ कर बैठते हुए कहा, “सभी बड़ी चिंता में थे... और वो तो बहुत ही परेशान था... फिलहाल वो सो रहा होगा या सोने की कोशिश में होगा!”

“ठीक है माँ... उनको रहने दीजिए...”

“... लेकिन मेरी नन्ही गुड़िया यहीं बगल वाले कमरे में है... उसको बुला देती हूँ।”

कह कर उन्होंने बिस्तर के सिरहाने के बगल लगे एक बटन को दबाया। बगल के कमरे से एक बेहद धीमी और मधुर सी आवाज़ आई। कुछ ही पलों में एक परिचारिका नन्ही चित्रा को ले कर हाज़िर थी।

“भूखी तो नहीं है?” मीना ने पूछा।

“जी नहीं, राजकुमारी सा,” उसने चित्रा को मीना की गोदी में देते हुए कहा, “... हम धाय माँ हैं...”

मीना ने उसकी बात को न समझते हुए उस पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।

माँ ने कहा, “बिटिया, ये कह रही हैं कि ये वेट नर्स हैं... और चित्रा को इन्होने दूध पिला रखा है,” फिर परिचारिका की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “कब पिलाया था आखिरी बार?”

“महारानी सा, कोई डेढ़ घण्टे पहले!”

“अच्छी बात है... तुम जाओ और आराम कर लो!”

“जी महारानी सा...” उसने कहा, और प्रियम्बदा को प्रणाम कर के कमरे से बाहर निकल गई।

“तू अपना दूध पिलाती है बच्ची को?”

“जी माँ!”

“वैरी गुड,” माँ ने खुश होते हुए कहा, “... तो फिर पिला दे उसको... समय तो हो गया है अब...”

मीना ने जब चित्रा को स्तनपान कराने के लिए अपनी गोद में व्यवस्थित किया, तब उसको समझा कि चादर के नीचे वो निर्वस्त्र ही थी। शायद उसकी बेहोशी के कारण उसके चुस्त कपड़ों को उतार दिया गया हो। माँ ने भी कोई सफ़ाई नहीं पेश करी, तो वो भी संयत हो गई। नन्ही चित्रा भी शायद दूध के लिए ही मचल रही थी। अपनी माँ के स्तन का स्पर्श मिलते ही उसको समझ आ गया कि उनका अमृत मिलने वाला है। दूध की कुछ बूँदें अंदर जाते ही वो शांत होने लगी।

“जैसी तू सुन्दर सी है, वैसी ही मेरी ये नन्ही चिरैया भी सुन्दर सी है!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा - उनकी बात पर मीना भी मुस्कुरा उठी, “... तुम दोनों की बेस्ट क्वलिटीज़ आई हैं इसमें... आई ऍम सो प्राउड!”

“थैंक यू माँ!”

“अच्छा... तो अब तू अपनी माँ को थैंक यू कहेगी?” माँ ने जिस अंदाज़ से कहा, उस पर मीना को हँसी आ गई।

“आई लव यू माँ...” वो बोली, “सच में... आपको दीदी कह कर वैसा अपनापन नहीं महसूस होता है, जैसा कि माँ कह कर!”

“अरे! माँ को माँ ही तो कहेगी! दीदी क्यों कहेगी?” उन्होंने अपना विनोदपूर्ण व्यवहार जारी रखा, “... अब जल्दी से दो तीन बच्चे और कर ले...”

“माँ!”

“क्या माँ? इतना सब कुछ है ईश्वर का दिया हुआ! ... कोई होना चाहिए न उसका आनंद उठाने के लिए! है कि नहीं?”

मीना फिर से हँसने लगी।

माँ की बातें सुन कर, और नन्ही चित्रा को स्तनपान कराते हुए मीना की उद्विग्नता कुछ कम हुई, और मन थोड़ा हल्का और स्थिर हुआ।

अब उसको समझ में आया कि जिन बातों को वो सपना समझ रही थी, दरअसल उसके जीवन की ही यादें थीं। भूली हुई यादें... पुरानी यादें! उसके राजकुमार की यादें... उसके हर्ष की यादें!

दिल में उसके एक टीस सी उठी। उसने बड़े दयनीय तरीके से माँ की तरफ़ देखा।

अब वो अपने जीवन का कोई रहस्य छुपा हुआ नहीं रहने देना चाहती थी।

शायद माँ इस बात को समझ गईं।

“बिटिया मेरी,” उन्होंने कहना शुरू किया, “कहाँ से शुरू करूँ बताना... यह मैं ख़ुद ही सोच रही हूँ! ... खैर, मैं कुछ कहूँ, उसके पहले मैं ये जानना चाहती हूँ, कि तुझे याद क्या क्या है?”

“जी?” वो थोड़ा सकुचाई, “... मुझे राजकुमार याद हैं...”

“और?”

“... और... उनकी... उनकी... और महाराज महारानी की...” कहते कहते वो चुप हो गई।

कड़वी यादें पुरानी अवश्य हो गई थीं, लेकिन मीना के लिए आज भी उतनी ही कड़वी थीं। शायद अन्य लोगों के लिए उनकी कड़वाहट कम हो गई हो, लेकिन सुहासिनी / मीनाक्षी के लिए तो वो याद पूरी तरह ताज़ा थी।

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, और बोलीं,

“पिताजी महाराज ने तुम दोनों के विवाह के लिए हामी भर दी थी... वो चाहते थे... हम सभी चाहते थे कि तू इस परिवार में बहू बन कर आए... संभव है कि हमारे आराध्यों को भी यही मंज़ूर था... इसीलिए तो तू आई है हमारी बन कर...” कहते कहते उनका मन और उनकी बोली ममता से भर गई, जिसको मीना ने भी महसूस किया।

“माँ, आपकी ममता की छाया में आना तो मेरे लिए सबसे बड़े भाग्य की बात है!”

“न बेटा, भाग्य हमारा है... तेरे कारण इस वंश पर लगा श्राप समाप्त हो गया है!”

“श्राप?” एक पल को वो समझ न पाई।

“हाँ मेरी बच्ची... श्राप!” उन्होंने गहरी साँस भरी, और आगे बोलीं, “लेकिन उसके बारे में बाद में बताऊँगी... पहले शुरू से शुरू करते हैं!”

मीना सतर्क हो कर बैठ गई - न जाने क्या क्या जानने को मिले!

“पिताजी ने तुम दोनों के विवाह के लिए मंज़ूरी तो दे दी थी, लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था!... हम सबको एक असहनीय झटका लगा। बता नहीं सकती कि उससे उबरने में कितना समय लग गया हमको!” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, “... उस समय हालात भी तो सही नहीं थे! रातोंरात जैसे सब बदल गया... जिनको अपना मित्र समझा, अपना माना, वो सभी अजनबी बन गए। ... तेरी हालत भी ठीक नहीं थी। ... तुझे बहुत ही बड़ा सदमा लगा था। ... तू मेरे पास मेरे बच्चे हर्ष की अमानत थी, तो ऐसे कैसे रहने देती तुझे?”

मीना को याद आ रहा था... लेकिन जो याद आ रहा था, उससे वो और भी सकते में आती जा रही थी।

माँ कह रही थीं, “हमको डर सता रहा था कि कहीं कुछ हो न जाए तुझे! हमेशा चहकने वाली लड़की... तू एकदम से गुमसुम सी हो गई थी... न खाने की कोई सुध रहती न पीने की! किसी से कोई बातचीत ही नहीं करती! कई डॉक्टरों को दिखाया... फिर तुझको दिल्ली ले गए। वहाँ के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने हमको सुझाया कि तेरा सेलेक्टिव मेमोरी सप्प्रेशन किया जा सकता है... सदमे वाले समय की बातें, उनकी यादें दबाई जा सकती हैं...”

मीना की साँसें फिर से तेज होने लगीं।

‘क्या क्या हुआ है मेरे साथ!’

“सेलेक्टिव मेमोरी सप्प्रेशन?”
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai...
Nice and beautiful update...
 

kas1709

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Update #46


“माँ?” मीना को उत्तर की प्रतीक्षा थी।

“सुहास... मेरी बेटी, दरअसल, तू सही है। ... तेरा जय... मेरा और तेरे पिता जी का बेटा नहीं है...”

“फ़...फ़िर...?”

“वो हर्ष का बेटा है...” माँ ने कुछ देर चुप रह कर कहा।

“र...राजकुमार जी का?”

माँ ने ‘हाँ’ मेर सर हिलाया।

“प... पर...”

“व्वो... वो तो मेरे साथ...”

“सुहास... बेटा... मैं जो कहने जा रही हूँ, उसको ध्यान से, और धैर्य से सुनना...”

मीना दो पल को साँस थाम कर बैठ गई - उसका मन अजीब सा होने लगा था, फिर से।

माँ ने एक गहरी साँस भरी, “... जय जैसे हर्ष का बेटा है... वैसे ही वो... वो तेरा भी बेटा है...”

मानों एक साथ ही सैकड़ों बिजलियाँ गिर गईं हों मीना पर!

“क्या!” उसका चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया!

‘यह कैसा खुलासा है!’

“म्म्ममाँ... ये आप क्या कह रही हैं?” उसको यकीन ही नहीं हुआ कि माँ ने ये क्या अनहोनी कह दी।

“सच कह रही हूँ। ... तुझे अपने अतीत का पूरा पूरा अभी भी याद नहीं आया क्या बच्चे?”

बहुत संभव है यह! डॉक्टरों ने मीना का ‘इलाज़’ कर के उसके जीवन की ‘उस समय’ की घटनाओं की याददाश्त दबा या भुला दी थी। हर्ष की मृत्यु, उसके होने वाले सास ससुर की मृत्यु, और फिर उसकी खुद की गर्भावस्था और प्रसव! लेकिन जब दिमाग में एक गुत्थी सुलझती है, तो बाकी बातें स्वयं ही खुलती चली जाती हैं।

“मेरा बच्चा...” उसको अचानक ही याद हो आया।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जय... धनञ्जय... तेरा ही है...”

ऐसा बड़ा झटका मीना को अपने पूरे जीवन में नहीं लगा था। कुछ पलों के लिए वो संज्ञा शून्य हो गई - न दिमाग काम कर रहा था, और न ही शरीर!

“बहू... सम्हाल अपने आप को!” उसको होश तब वापस आया, जब माँ ने उसको झिंझोड़ा, “बच्ची गिरने वाली थी अभी!”

“अ...ह...हाँ?”

“बच्ची अभी तेरी गोदी से गिरने वाली थी, सुहास...”

“माँ... क्या आप सच कह रही है?”

उन्होंने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कैसा बड़ा पाप हो गया माँ...”

“पाप?”

“और नहीं तो क्या! ... अपने ही बेटे से... अब मैं अपना ही सामना कैसे करूँगी माँ? ... अपने जय का सामना कैसे करूँगी...?”

“क्या पागलों जैसी बातें कर रही है?”

“माँ मैं मर जाऊँगी... इतनी शर्म के साथ मैं नहीं जी...”

मीना का वाक्य समाप्त होता, उसके पहले ही उसके गाल पर एक थप्पड़ आ कर लगा,

“ख़बरदार जो आइंदा मरने की बात अपनी ज़बान पर लाई भी,” माँ ने सख़्त स्वर में उसको हिदायद दी, “... तुझे क्या ज़िन्दगी इतनी सस्ती लगती है, जो मर जाएगी? ... ये बेहूदा बात बोलने से पहले एक बार सोचा भी कि तेरे बिना जय का क्या होगा? चित्रा का क्या होगा? ... हमारा क्या होगा? हम कोई नहीं हैं तेरे?”

मीना की आँखों से आँसू ढलक आए, लेकिन रुलाई की आवाज़ न आई। वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोना चाहती थी, लेकिन उस थप्पड़ की मार सीधा उसके दिल पर आ कर लगी। उसको उम्मीद नहीं थी कि इतना प्यार करने वाली माँ उसको मार भी सकती हैं।

फिर उसको अपनी कही हुई बात याद आई, तो उसको समझा कि सही ही किया माँ ने। मूर्खता का कोई इलाज़ तो होना चाहिए न!

“... ले... लेकिन माँ... पाप तो हो गया न...”

“अपने प्रेम को पाप का नाम देती है? ... ये इतनी सुन्दर सी, इतनी प्यारी सी गुड़िया पाप का परिणाम है?”

मीना से कुछ कहते न बना।

“जब तेरे दिल में जय के लिए प्यार उमड़ रहा था, तब क्या वो पाप लग रहा था तुझे? ... जब तुम दोनों साथ होते हो, तो क्या तुझे उसका साथ पाप लगता है? ... इस बच्ची को दूध पिलाते समय क्या तुझे पाप महसूस होता है? ऐसा लगता है कि पाप का परिणाम है?”

मीना को रुलाई आ गई। वो ‘न’ में सर हिलाते हुए रोने लगी।

माँ क्षत्राणी अवश्य थीं, लेकिन पत्थर-दिल नहीं। उन्होंने लपक कर मीना को अपने सीने में छुपा लिया,

“प्रेम करना कब से पाप हो गया, बच्चा?”

कुछ क्षण रोने के बाद मीना बोली, “प्रेम करना पाप नहीं है माँ... लेकिन अपने ही बेटे से...”

“एक बात बता बच्चे,” माँ ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से पूछा, “... जब तूने पहली बार जय को देखा था, तब तेरे मन में क्या उसके लिए माँ की ममता वाले भाव उमड़े थे, या प्रेमिका वाले?”

माँ की बात पर मीना को जय के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गई।

अद्भुत सा आकर्षण उसने महसूस किया था उस दिन - पहली नज़र में ही उसको ऐसा लगा था कि जय अपना है। हो सकता है कि चूँकि दोनों की डोर इस क़दर जुडी हुई थी, इसलिए वैसा महसूस हुआ हो मीना को, लेकिन हाँ, यह तो सच ही है कि जय को देख कर उसके अंदर माँ वाले भाव तो नहीं आये थे। भाव आये थे प्रेमिका वाले ही। और उसके बाद भी - बिस्तर में अंतरंग क्षणों में मीना को लज्जा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण महसूस होता है, जब जय उसके अंदर प्रविष्ट होता है। उससे एकाकार हो कर मीना पूर्ण हो जाती है, आनंदित हो जाती है। इन बातों को झुठलाया तो नहीं जा सकता।

लेकिन,

“... लेकिन माँ... अब ये सब जानने के बाद...”

“क्यों? क्या बदल गया ऐसा?”

“अब मैं जय का सामना कैसे करूँगी माँ?”

माँ शायद कुछ और कहना चाहती थीं, लेकिन अंत समय में उन्होंने कुछ सोच कर कुछ और ही कहा,

“देख बच्चे, तूने उसको जना ज़रूर है, लेकिन तू उसकी माँ नहीं है! ... उसकी माँ तो मैं ही हूँ, और मैं ही रहूँगी... तू उसकी पत्नी है! और उसके इस बच्चे और होने वाले बच्चों की माँ है! ... इसलिए मेरी सलाह तो यही रहेगी कि तू उसके साथ वैसी ही रह, जैसी कि अभी है...”

“... लेकिन... अपने बेटे के साथ...”

“मेरी लाडो... एक बात समझ ले... तू अब सुहास नहीं है... मीना है, मीनाक्षी... राजकुमारी मीनाक्षी... मेरे बेटे जय की पत्नी!” माँ ने रुक रुक कर कहा - जैसे वो सुनिश्चित करना चाहती हों कि मीना के मन में कोई संदेह न शेष रहे, “... उसको मैंने अच्छे संस्कार दिए हैं... मैंने उसके अंदर यह बात कूट कूट कर भरी है कि किसी लड़की को ग़लत नज़र से न देखे... जानती है? तुझसे मिलने से पहले तो उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी... तू ही पसंद आई उसको। तुझी से उसने प्रेम किया, और तुझी से शादी भी!”

मीना जानती थी यह बात। और वो स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मानती थी इसीलिए।

माँ कह रही थीं, “तुम दोनों का जोड़ा ईश्वर ने बनाया है... हम बस यह चाहते हैं कि तुम दोनों विधिपूर्वक पूरे उम्र के लिए साथ में बँध जाओ... तू उसकी कानूनन पत्नी है... अब धर्मपत्नी बन जा...”

“पर माँ... कैसे करूँगी ये सब...”

“जैसे अभी तक करती आई है! ... देख बच्चे, तुझ पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन जय और चित्रा तेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं, और तू हमारे जीवन का! ... मेरे लिए तू मेरे जय की पत्नी है... और यह बात बदलेगी नहीं।”

मीना कुछ न बोली।

“सोच ले! ... लेकिन एक बात समझ ले बच्चे, तू और जय आपस में बहुत प्रेम करते हैं... अब यही प्रेम बस और बढ़ते रहना चाहिए... कम नहीं होना चाहिए! ... ईश्वर ने कुछ सोच कर ही तुम दोनों को मिलाया होगा...”

उसी समय दरवाज़े पर बहुत हल्की सी दस्तख़त हुई।

“माँ?” जय की आवाज़ थी।

“आ जा बेटा... बहू उठ गई है...”


*


जय धीरे से दरवाज़ा खोल कर कमरे के भीतर आया और वापस बंद कर के अपनी माँ और पत्नी के पास आ गया।

उसको देख कर मीना की धड़कनें बढ़ गईं। क्या बोले वो जय से, क्या करे - उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

“आ जा बेटा...” माँ ने जय से कहा, और फिर सामान्य स्वर में मीना से बोलीं, “... जानती है बहू... ये तो तेरे पास से जा ही नहीं रहा था। ये तो मैंने ही जबरदस्ती कर के भेजा इसको कि सो जा कुछ देर... बहू को मैं सम्हाल लूँगी। तब गया...”

“माँ, नींद ही नहीं आई... चिंता लगी हुई थी न!”

“क्यों नहीं होगी चिंता... तू इसका पति है, और पति को अपनी पत्नी की चिंता, उसकी देखभाल तो करनी ही चाहिए...” माँ ने ार्थपूर्वक कहा - जैसे कि मीना को सुना रही हों, और फिर मीना के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, “अच्छा बहू, मैं चलती हूँ... कुछ देर आराम कर लूँ!”

कुछ ही देर में जय, चित्रा, और मीना कमरे में अकेले हो गए।


*


“मेरी जान,” जय बोला, और उसने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया, “... आई वास सो वरीड... क्या हो गया था तुमको?”

“पता नहीं...” हमेशा की तरह ‘जान’, ‘माय लव’, ‘हनी’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग नहीं किया मीना ने - उसको हिचक सी महसूस हो रही थी, “शायद ट्रैवेलिंग की वीकनेस हो... यहाँ की हीट... ऑर परहैप्स अ कॉम्बिनेशन ऑफ़ द टू...”

“हम्म... डॉक्टर ने भी यही सस्पेक्ट किया है... लेकिन तुम बहुत देर तक अनकॉन्शियस रही...”

“कितनी देर?”

अबाउट सिक्स सेवन आवर्स...”

“बाप रे...”

“लेकिन कोई चिंता वाली बात नहीं थी - तुम्हारे वाइटल्स बढ़िया थे, और तुमको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे तुम गहरी नींद में हो, और कोई सपना देख रही हो...” जय ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा।

मीना मुस्कुराई।

जय के साथ अभी भी वही कोमलता महसूस हो रही थी उसको, जो यहाँ आने से पहले थी। क्या हो रहा था ये सब, क्यों हो रहा था ये सब - सारी बातें गड्ड-मड्ड हो गई थीं मीना के मन में!

“सपना ही देख रही थी... लेकिन जो देखा, वो हक़ीक़त के जितना ही सुन्दर था...” वो बोली।

“अच्छा जी? ऐसा क्या देख लिया?”

मीना के होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गई, “अभी नहीं... फिर कभी बताऊँगी...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना बोली।

जय मुस्कुराया।

जय का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मीना मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थी। इस समय भी कोई अपवाद नहीं था। जय के लिए जैसा प्रेम उसने अपनी पहली मुलाकात में महसूस किया था, आज माँ के खुलासे के बाद भी, वो वैसा ही था। क्या पता, अब और भी प्रगाढ़ हो गया हो।

“कैसा लग रहा है मेरी राजकुमारी को?”

आई ऍम गुड... माय लव,” मीना ने आख़िरी दो शब्द थोड़ा रुक कर जोड़े, “आई थिंक आई विल बी ऑलराइट...”

“हाँ... चिंता न करो! ... तुमको कल रेस्ट करना है, फिर इस्टेट दिखाएँगे तुम्हे!” जय ने उत्साह से बताया, “बहुत से लोग तुमसे मिला चाहते हैं... नई राजकुमारी से मिलने को बहुत से लोग बेक़रार हैं...”

जय की इसी अदा पर तो वो फ़िदा थी। चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कैसा भी विचार हो उसके मन में, जय उसके होंठों पर, और उसके मन में मुस्कान ला ही देता था।

“... और माँ ने बताया है कि एक सप्ताह बाद की तारीख़ निकली है हमारी शादी की...”

यह सुन कर मीना की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“फिर हम लीगली मैरीड कपल से, रिचुअली मैरीड कपल बन जायेंगे...”

आई वुड लव दैट...” मीना ने कोमलता से कहा।

“सच में?”

“हनी?” मीना बोली।

“हाँ?”

प्लीज़ मेक लव टू मी?”

“अभी?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय के आलिंगन में आ कर मीना पिघल गई। इससे सुख वाली जगह कोई नहीं है संसार में - उसको तुरंत ही समझ में आ गया। कोई पंद्रह मिनट के लम्बे फ़ोरप्ले के बाद जब जय मीना के अंदर प्रविष्ट हुआ, तो मीना को कोई पहले के और अभी के अनुभव में कोई अंतर नहीं महसूस हुआ। ये उसका जय ही था... उसका प्यार... उसका हस्बैंड! उसको वो बहुत प्यार करती है... और करती रहेगी। कोई भी बात इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

'हाँ, वो जय की धर्मपत्नी बनेगी!'

*
Nice update.....
 

parkas

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Update #45


माँ ने मीना की हालत देख कर उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया, और ‘हाँ’ में सर हिला कर बोलीं,

“हम मान गए बेटी... क्या करते? हाँलाकि उस समय भी, और अभी भी ये केवल एक एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट ही है। लेकिन हम मरते क्या न करते? तेरी हालत देखी न जाती हमसे! ... तेरे फ्यूचर के लिए हमने इस ट्रीटमेंट के लिए हाँ कर दी... हमने, मतलब तेरे बाबा ने, तेरे भैया ने और मैंने भी!”

उनकी आँखें डबडबा आईं तो उन्होंने अपनी हथेली के पिछले हिस्से से अपनी आँखें पोंछ लीं।

“तूने उस इलाज को बढ़िया रेस्पोंड किया। ... ऐसा लग रहा था जैसे सब अच्छा हो जायेगा। तुझको उस समय की बातें भूल गई थीं। ... शुरू में तो सब ठीक था, लेकिन बाद में ऐसा होने लगा कि अगर तेरे पुराने जीवन का कोई भी तेरे सामने आता, तो तू पुरानी बातें फिर से याद करने लगती, और बेचैन होने लगती थी। ... अगर मैं या तेरे भैया (युवराज हरिश्चंद्र) भी तेरे सामने आ जाते, तो तुझे पुरानी बातें याद आने लगतीं।”

मीना हैरानी से सब सुन रही थी।

“इसलिए डॉक्टरों ने हमको सजेस्ट किया कि हम तेरे सामने आए ही न! दिल टूट गया ये सुन कर... लेकिन क्या करते हम, बच्चे? हमने खुद को तेरा माँ बाप माना - तो अपने बच्ची की भलाई के लिए जो करना पड़ा, सब किया! हमने डिसाइड किया कि अपने हर्ष की अमानत को, अपनी बच्ची को अपने से दूर कर देंगे हम!”

“तो इसीलिए...” मीना बुदबुदाते हुए बोली।

“हाँ बेटे, इसीलिए तुझे लग रहा है कि हमने तुझे छोड़ दिया! लेकिन ऐसा किया नहीं हमने! दिल पर पत्थर रख कर हम अलग हो गए बस! लेकिन हमने खुद से वायदा किया कि भले ही हम तेरे सामने न आयें, लेकिन कभी भी तुझे कोई कमी नहीं होने देंगे... अगर तेरी भलाई इसी में है कि तू हमको भूल जाए, तो हमको सब मंज़ूर है! ... जैसा तूने हमसे प्रॉमिस किया था, उस साल तू पूरे स्टेट में टॉप पर आई थी।” माँ ने बड़े गर्व से बताया, “कितनी ख़ुशी मनाई थी हमने यहाँ... तेरे भैया ने तेरा दाखिला कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज में करवा दिया। और तो और, तेरी मेरिट के कारण तुझको तीनों साल फुल स्कॉलरशिप मिल रही थी वहाँ!”

माँ के चेहरे पर अपार ख़ुशी थी,

“हमने तेरे लिए एक ट्रस्ट फण्ड खोल दिया था...”

यह एक नई बात थी - बाबा ने तो बताया था कि एक चैरिटेबल ट्रस्ट उसको स्कॉलरशिप दे रहा था पढ़ने के लिए। लेकिन ये तो माँ और भैया... मतलब, पिता जी ही थे, जो उसको हर पल सम्हाल रहे थे!

“... और तुझसे दूर रहते रहते भी तेरी हर अचीवमेंट, तेरी हर बात, तेरी हर आवश्यकता के बारे में पता रख रहे थे। ... जानती है बच्चे, मेरे कमरे में तेरी ग्रेजुएशन की तस्वीर भी है...” वो मुस्कुराते हुए आनंद से बोलीं, “... फिर अचानक से न जाने क्या हुआ... तू और तेरे बाबा अचानक से इंग्लैंड से गायब ही हो गए। पता चला कि उन्होंने ट्रस्ट फण्ड भी तुड़वा लिया है, और कहीं बाहर चले गए। कहाँ गए, कुछ पता ही नहीं चला... हमने तो यही सोचा कि शायद काका वापस इण्डिया आ गए हैं... लेकिन बहुत पता करने पर भी कुछ खबर नहीं मिली। ... वैसे भी, इतने बड़े देश में क्या ही पता चलेगा!”

माँ की बात सुन कर मीना के मन में अपराधबोध हो आया।

‘उसके बाबा इनके पैसे ले कर भाग गए!’

“माँ... बाबा ने कहा था कि उनको किसी ने स्पांसर किया है अमेरिका जाने के लिए... मेरा नाम भी ऑफिशियली बदलवा दिया... समझ में ही नहीं आया कि क्यों!” उसने दुःखी स्वर में कहा, “... मुझे नहीं पता था कि वो आपका पैसा ले कर भागे थे!”

“नहीं बेटे, ऐसा मत बोल! ... उन्होंने कुछ सोच कर ही वो कदम उठाया होगा। वैसे भी, वो सब तेरे ही पैसे थे... ट्रस्ट फण्ड में तेरे लिए पैसे थे, और हमारी जागीर में भी! तेरे भैया ने वसीयत में बहुत कुछ तेरे नाम लिखा हुआ है... और न भी लिखा होता, तो भी ये सब कुछ तेरा ही होता...”

“ओह माँ! आई ऍम सो सॉरी! सो सॉरी!” मीना की आँखों से आँसू उतर आये।

“अरे न न! ऐसे नहीं करते मेरी बच्चा... तुमको किसी भी बात के लिए सॉरी कहने की ज़रुरत नहीं! ... जैसा कि मैंने पहले ही बताया, तुम इस परिवार का हिस्सा हो, और इसकी जागीर का भी!”

माँ ने उसको चूम कर कहा, “अच्छा है चलो... आज पता चल गया कि पिछले सत्तरह अट्ठारह सालों से तू अमेरिका में ही है! हमारे दिमाग में कभी यह ख़याल ही नहीं आया कि तू वहाँ हो सकती है! ... वैसे आ भी जाता, तो भी कैसे ढूंढते तुझको वहाँ!”

“... हाँ माँ! इंग्लैंड से आ कर एक साल मैंने बस एक छोटा मोटा सा काम किया यहाँ।” उसने आँसू पोंछते हुए कहा, “... फिर, ऍमबीए की पढ़ाई करने दो साल न्यू यॉर्क में रही।”

“हाँ... आदि ने बताया था कि मेरी होने वाली बहू बहुत पढ़ी लिखी है! ... मुझे बहुत गर्व है तेरे अचीवमेंट्स पर!”

मीना एक क्षण मुस्कुराई, फिर उदास स्वर में बोली, “लेकिन बाबा जल्दी ही वापस इंडिया चले गए थे। अब समझ में आ रहा है मुझको... शायद उनको गिल्ट फ़ील हो रहा होगा, कि आपके साथ उन्होंने ऐसी अहसान फरामोशी करी!”

“नहीं बच्चे... मैंने कहा न? ... ऐसे मत बोल! ... लेकिन वो कहाँ रह रहे थे? ... उनसे फिर कभी मुलाक़ात ही नहीं हुई!”

“बहुत समय तक रायपुर में थे! ... वहाँ किसी कल्चरल ग्रुप में थे वो, शायद। ... शायद इसलिए लगाया मैंने कि मुझे नहीं पता कि उन्होंने मुझसे क्या क्या झूठ कहा है! ... फिर वहाँ से वो बहादुरगढ़ आ गए! वहाँ एक छोटा सा घर ले लिया था उन्होंने...”

जब माँ को समझ नहीं आया कि बहादुरगढ़ कहाँ है, तो मीना ने बताया, “दिल्ली के पास एक छोटा सा शहर है, माँ!”

“ओह... काश वो एक बार मिल लेते हमसे!” माँ ने निराश हो कर कहा, “हमने तो उनको अपना पिता ही माना!”

“वही तो माँ! शायद इसी बात का गिल्ट रहा हो उनको!” मीना भी अपने पिता के बर्ताव से निराश थी, “मेरे साथ भी कहाँ रहे वो! ... मैंने बहुत बार कहा कि आ कर मेरे साथ रहें, लेकिन उन्होंने तो जैसे देश छोड़ कर न जाने की कसम खा रखी थी। ... फिर, कोई पाँच साल पहले उनको कैंसर हो गया... तब भी वो नहीं आए! इलाज के लिए भी नहीं! ... और तो और, मुझको भी इंडिया आने से मना किया हुआ था उन्होंने! क़सम दे दी थी! ... लेकिन फिर मन नहीं माना! उनकी डिमाइस के दो महीने पहले आई थी... और तब से बस अभी ही वापस आई हूँ!”

“ओह! आई ऍम सॉरी बेटा... बाबू जी की मृत्यु के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था हमको।”

“कैसे पता चलता आपको माँ? उन्होंने तो सभी से सब कुछ छुपा रखा था न!”

माँ ने केवल हाँ में सर हिलाया।

थोड़ी देर चुप्पी रही। मीना कुछ पूछना चाहती थी, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि वो पूछे कैसे।

“क्या बात है बेटा? ... कोई परेशानी है? कोई बात है जो तू पूछना चाहती है?”

“हाँ माँ!”

“पूछ न मेरी बच्ची? ... मुझसे ऐसे हिचकिचाएगी?”

“आप... आपने मेरी फ़ोटो देख कर मुझे पहचान लिया था न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... तुरंत!” माँ मुस्कुरा उठीं - जैसे वो उस बात को याद कर के आनंदित हो उठीं हों, “... अपनी लाडली बिटिया रानी को कैसे न पहचानती? ... मेरी प्यारी बिटिया रानी... सच है कि तू पहले के मुकाबले और भी अधिक ख़ूबसूरत हो गई है, लेकिन है तो मेरी ही बच्ची न? अपने हृदय के अंश को कैसे न पहचानती?”

“फिर भी आपने कुछ कहा नहीं!”

“किस बारे में?”

“मेरी और जय की शादी के बारे में... मेरा मतलब है कि पहले आप राजकुमार जी और मेरी शादी कराना चाहती थीं...”

“ओह! अच्छा अच्छा... देख बच्चे, तू हमको इस वंश की बहू के रूप में चहिए थी! या तो मेरे देवर की पत्नी बन कर आती, या फिर मेरे बेटे की! दोनों ही रूप में, तू रहती तो मेरी बहू ही न...”

मीना पहली बार लज्जा से मुस्कुराई।

माँ की बातों, और उनके स्नेह से उसके दिल को बहुत आराम मिल रहा था। लेकिन एक दो और बातें थीं, जो वो पूछना चाहती थी।

“माँ... भैया... आई मीन, पिता जी...?”

“वो नहीं रहे बेटा... कोई सात साल पहले उनका देहांत हो गया।”

“आई ऍम सॉरी माँ!”

“कोई बात नहीं बच्चे! होनी को कौन टाल सकता है?”

“माँ?”

“हाँ बच्चे?”

“एक और सवाल है!”

“पूछ न!”

“तो... अह... आदित्य आपके बेटे हैं?”

“हाँ... उसका नाम ज्योतिर्यादित्य है, लेकिन अमेरिका में तो सब छोटे नाम रखते हैं न!” माँ ने विनोदपूर्वक कहा, “ज्योतिर्यादित्य से आदित्य या आदि बन गया वो... और, तेरा जय भी मेरा बेटा है... उसका नाम धनञ्जय है! धनञ्जय से जय बन गया वो!”

यह बात उसको पता थीं। लेकिन सवाल कुछ और था,

“लेकिन... लेकिन... माँ आप प्लीज़ बुरा मत मानिएगा...”

“पूछ न बेटे!”

“वो... वो... वो तो पिता जी को ‘चाचा जी’ कह कर बुलाते हैं... फिर वो आपके... बेटे... कैसे...?”

ठिठकने की बारी अब माँ की थी। वो कुछ देर के लिए चुप हो गईं।
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai...
Nice and lovely update...
 

parkas

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Update #46


“माँ?” मीना को उत्तर की प्रतीक्षा थी।

“सुहास... मेरी बेटी, दरअसल, तू सही है। ... तेरा जय... मेरा और तेरे पिता जी का बेटा नहीं है...”

“फ़...फ़िर...?”

“वो हर्ष का बेटा है...” माँ ने कुछ देर चुप रह कर कहा।

“र...राजकुमार जी का?”

माँ ने ‘हाँ’ मेर सर हिलाया।

“प... पर...”

“व्वो... वो तो मेरे साथ...”

“सुहास... बेटा... मैं जो कहने जा रही हूँ, उसको ध्यान से, और धैर्य से सुनना...”

मीना दो पल को साँस थाम कर बैठ गई - उसका मन अजीब सा होने लगा था, फिर से।

माँ ने एक गहरी साँस भरी, “... जय जैसे हर्ष का बेटा है... वैसे ही वो... वो तेरा भी बेटा है...”

मानों एक साथ ही सैकड़ों बिजलियाँ गिर गईं हों मीना पर!

“क्या!” उसका चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया!

‘यह कैसा खुलासा है!’

“म्म्ममाँ... ये आप क्या कह रही हैं?” उसको यकीन ही नहीं हुआ कि माँ ने ये क्या अनहोनी कह दी।

“सच कह रही हूँ। ... तुझे अपने अतीत का पूरा पूरा अभी भी याद नहीं आया क्या बच्चे?”

बहुत संभव है यह! डॉक्टरों ने मीना का ‘इलाज़’ कर के उसके जीवन की ‘उस समय’ की घटनाओं की याददाश्त दबा या भुला दी थी। हर्ष की मृत्यु, उसके होने वाले सास ससुर की मृत्यु, और फिर उसकी खुद की गर्भावस्था और प्रसव! लेकिन जब दिमाग में एक गुत्थी सुलझती है, तो बाकी बातें स्वयं ही खुलती चली जाती हैं।

“मेरा बच्चा...” उसको अचानक ही याद हो आया।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जय... धनञ्जय... तेरा ही है...”

ऐसा बड़ा झटका मीना को अपने पूरे जीवन में नहीं लगा था। कुछ पलों के लिए वो संज्ञा शून्य हो गई - न दिमाग काम कर रहा था, और न ही शरीर!

“बहू... सम्हाल अपने आप को!” उसको होश तब वापस आया, जब माँ ने उसको झिंझोड़ा, “बच्ची गिरने वाली थी अभी!”

“अ...ह...हाँ?”

“बच्ची अभी तेरी गोदी से गिरने वाली थी, सुहास...”

“माँ... क्या आप सच कह रही है?”

उन्होंने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कैसा बड़ा पाप हो गया माँ...”

“पाप?”

“और नहीं तो क्या! ... अपने ही बेटे से... अब मैं अपना ही सामना कैसे करूँगी माँ? ... अपने जय का सामना कैसे करूँगी...?”

“क्या पागलों जैसी बातें कर रही है?”

“माँ मैं मर जाऊँगी... इतनी शर्म के साथ मैं नहीं जी...”

मीना का वाक्य समाप्त होता, उसके पहले ही उसके गाल पर एक थप्पड़ आ कर लगा,

“ख़बरदार जो आइंदा मरने की बात अपनी ज़बान पर लाई भी,” माँ ने सख़्त स्वर में उसको हिदायद दी, “... तुझे क्या ज़िन्दगी इतनी सस्ती लगती है, जो मर जाएगी? ... ये बेहूदा बात बोलने से पहले एक बार सोचा भी कि तेरे बिना जय का क्या होगा? चित्रा का क्या होगा? ... हमारा क्या होगा? हम कोई नहीं हैं तेरे?”

मीना की आँखों से आँसू ढलक आए, लेकिन रुलाई की आवाज़ न आई। वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोना चाहती थी, लेकिन उस थप्पड़ की मार सीधा उसके दिल पर आ कर लगी। उसको उम्मीद नहीं थी कि इतना प्यार करने वाली माँ उसको मार भी सकती हैं।

फिर उसको अपनी कही हुई बात याद आई, तो उसको समझा कि सही ही किया माँ ने। मूर्खता का कोई इलाज़ तो होना चाहिए न!

“... ले... लेकिन माँ... पाप तो हो गया न...”

“अपने प्रेम को पाप का नाम देती है? ... ये इतनी सुन्दर सी, इतनी प्यारी सी गुड़िया पाप का परिणाम है?”

मीना से कुछ कहते न बना।

“जब तेरे दिल में जय के लिए प्यार उमड़ रहा था, तब क्या वो पाप लग रहा था तुझे? ... जब तुम दोनों साथ होते हो, तो क्या तुझे उसका साथ पाप लगता है? ... इस बच्ची को दूध पिलाते समय क्या तुझे पाप महसूस होता है? ऐसा लगता है कि पाप का परिणाम है?”

मीना को रुलाई आ गई। वो ‘न’ में सर हिलाते हुए रोने लगी।

माँ क्षत्राणी अवश्य थीं, लेकिन पत्थर-दिल नहीं। उन्होंने लपक कर मीना को अपने सीने में छुपा लिया,

“प्रेम करना कब से पाप हो गया, बच्चा?”

कुछ क्षण रोने के बाद मीना बोली, “प्रेम करना पाप नहीं है माँ... लेकिन अपने ही बेटे से...”

“एक बात बता बच्चे,” माँ ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से पूछा, “... जब तूने पहली बार जय को देखा था, तब तेरे मन में क्या उसके लिए माँ की ममता वाले भाव उमड़े थे, या प्रेमिका वाले?”

माँ की बात पर मीना को जय के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गई।

अद्भुत सा आकर्षण उसने महसूस किया था उस दिन - पहली नज़र में ही उसको ऐसा लगा था कि जय अपना है। हो सकता है कि चूँकि दोनों की डोर इस क़दर जुडी हुई थी, इसलिए वैसा महसूस हुआ हो मीना को, लेकिन हाँ, यह तो सच ही है कि जय को देख कर उसके अंदर माँ वाले भाव तो नहीं आये थे। भाव आये थे प्रेमिका वाले ही। और उसके बाद भी - बिस्तर में अंतरंग क्षणों में मीना को लज्जा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण महसूस होता है, जब जय उसके अंदर प्रविष्ट होता है। उससे एकाकार हो कर मीना पूर्ण हो जाती है, आनंदित हो जाती है। इन बातों को झुठलाया तो नहीं जा सकता।

लेकिन,

“... लेकिन माँ... अब ये सब जानने के बाद...”

“क्यों? क्या बदल गया ऐसा?”

“अब मैं जय का सामना कैसे करूँगी माँ?”

माँ शायद कुछ और कहना चाहती थीं, लेकिन अंत समय में उन्होंने कुछ सोच कर कुछ और ही कहा,

“देख बच्चे, तूने उसको जना ज़रूर है, लेकिन तू उसकी माँ नहीं है! ... उसकी माँ तो मैं ही हूँ, और मैं ही रहूँगी... तू उसकी पत्नी है! और उसके इस बच्चे और होने वाले बच्चों की माँ है! ... इसलिए मेरी सलाह तो यही रहेगी कि तू उसके साथ वैसी ही रह, जैसी कि अभी है...”

“... लेकिन... अपने बेटे के साथ...”

“मेरी लाडो... एक बात समझ ले... तू अब सुहास नहीं है... मीना है, मीनाक्षी... राजकुमारी मीनाक्षी... मेरे बेटे जय की पत्नी!” माँ ने रुक रुक कर कहा - जैसे वो सुनिश्चित करना चाहती हों कि मीना के मन में कोई संदेह न शेष रहे, “... उसको मैंने अच्छे संस्कार दिए हैं... मैंने उसके अंदर यह बात कूट कूट कर भरी है कि किसी लड़की को ग़लत नज़र से न देखे... जानती है? तुझसे मिलने से पहले तो उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी... तू ही पसंद आई उसको। तुझी से उसने प्रेम किया, और तुझी से शादी भी!”

मीना जानती थी यह बात। और वो स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मानती थी इसीलिए।

माँ कह रही थीं, “तुम दोनों का जोड़ा ईश्वर ने बनाया है... हम बस यह चाहते हैं कि तुम दोनों विधिपूर्वक पूरे उम्र के लिए साथ में बँध जाओ... तू उसकी कानूनन पत्नी है... अब धर्मपत्नी बन जा...”

“पर माँ... कैसे करूँगी ये सब...”

“जैसे अभी तक करती आई है! ... देख बच्चे, तुझ पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन जय और चित्रा तेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं, और तू हमारे जीवन का! ... मेरे लिए तू मेरे जय की पत्नी है... और यह बात बदलेगी नहीं।”

मीना कुछ न बोली।

“सोच ले! ... लेकिन एक बात समझ ले बच्चे, तू और जय आपस में बहुत प्रेम करते हैं... अब यही प्रेम बस और बढ़ते रहना चाहिए... कम नहीं होना चाहिए! ... ईश्वर ने कुछ सोच कर ही तुम दोनों को मिलाया होगा...”

उसी समय दरवाज़े पर बहुत हल्की सी दस्तख़त हुई।

“माँ?” जय की आवाज़ थी।

“आ जा बेटा... बहू उठ गई है...”


*


जय धीरे से दरवाज़ा खोल कर कमरे के भीतर आया और वापस बंद कर के अपनी माँ और पत्नी के पास आ गया।

उसको देख कर मीना की धड़कनें बढ़ गईं। क्या बोले वो जय से, क्या करे - उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

“आ जा बेटा...” माँ ने जय से कहा, और फिर सामान्य स्वर में मीना से बोलीं, “... जानती है बहू... ये तो तेरे पास से जा ही नहीं रहा था। ये तो मैंने ही जबरदस्ती कर के भेजा इसको कि सो जा कुछ देर... बहू को मैं सम्हाल लूँगी। तब गया...”

“माँ, नींद ही नहीं आई... चिंता लगी हुई थी न!”

“क्यों नहीं होगी चिंता... तू इसका पति है, और पति को अपनी पत्नी की चिंता, उसकी देखभाल तो करनी ही चाहिए...” माँ ने ार्थपूर्वक कहा - जैसे कि मीना को सुना रही हों, और फिर मीना के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, “अच्छा बहू, मैं चलती हूँ... कुछ देर आराम कर लूँ!”

कुछ ही देर में जय, चित्रा, और मीना कमरे में अकेले हो गए।


*


“मेरी जान,” जय बोला, और उसने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया, “... आई वास सो वरीड... क्या हो गया था तुमको?”

“पता नहीं...” हमेशा की तरह ‘जान’, ‘माय लव’, ‘हनी’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग नहीं किया मीना ने - उसको हिचक सी महसूस हो रही थी, “शायद ट्रैवेलिंग की वीकनेस हो... यहाँ की हीट... ऑर परहैप्स अ कॉम्बिनेशन ऑफ़ द टू...”

“हम्म... डॉक्टर ने भी यही सस्पेक्ट किया है... लेकिन तुम बहुत देर तक अनकॉन्शियस रही...”

“कितनी देर?”

अबाउट सिक्स सेवन आवर्स...”

“बाप रे...”

“लेकिन कोई चिंता वाली बात नहीं थी - तुम्हारे वाइटल्स बढ़िया थे, और तुमको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे तुम गहरी नींद में हो, और कोई सपना देख रही हो...” जय ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा।

मीना मुस्कुराई।

जय के साथ अभी भी वही कोमलता महसूस हो रही थी उसको, जो यहाँ आने से पहले थी। क्या हो रहा था ये सब, क्यों हो रहा था ये सब - सारी बातें गड्ड-मड्ड हो गई थीं मीना के मन में!

“सपना ही देख रही थी... लेकिन जो देखा, वो हक़ीक़त के जितना ही सुन्दर था...” वो बोली।

“अच्छा जी? ऐसा क्या देख लिया?”

मीना के होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गई, “अभी नहीं... फिर कभी बताऊँगी...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना बोली।

जय मुस्कुराया।

जय का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मीना मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थी। इस समय भी कोई अपवाद नहीं था। जय के लिए जैसा प्रेम उसने अपनी पहली मुलाकात में महसूस किया था, आज माँ के खुलासे के बाद भी, वो वैसा ही था। क्या पता, अब और भी प्रगाढ़ हो गया हो।

“कैसा लग रहा है मेरी राजकुमारी को?”

आई ऍम गुड... माय लव,” मीना ने आख़िरी दो शब्द थोड़ा रुक कर जोड़े, “आई थिंक आई विल बी ऑलराइट...”

“हाँ... चिंता न करो! ... तुमको कल रेस्ट करना है, फिर इस्टेट दिखाएँगे तुम्हे!” जय ने उत्साह से बताया, “बहुत से लोग तुमसे मिला चाहते हैं... नई राजकुमारी से मिलने को बहुत से लोग बेक़रार हैं...”

जय की इसी अदा पर तो वो फ़िदा थी। चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कैसा भी विचार हो उसके मन में, जय उसके होंठों पर, और उसके मन में मुस्कान ला ही देता था।

“... और माँ ने बताया है कि एक सप्ताह बाद की तारीख़ निकली है हमारी शादी की...”

यह सुन कर मीना की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“फिर हम लीगली मैरीड कपल से, रिचुअली मैरीड कपल बन जायेंगे...”

आई वुड लव दैट...” मीना ने कोमलता से कहा।

“सच में?”

“हनी?” मीना बोली।

“हाँ?”

प्लीज़ मेक लव टू मी?”

“अभी?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय के आलिंगन में आ कर मीना पिघल गई। इससे सुख वाली जगह कोई नहीं है संसार में - उसको तुरंत ही समझ में आ गया। कोई पंद्रह मिनट के लम्बे फ़ोरप्ले के बाद जब जय मीना के अंदर प्रविष्ट हुआ, तो मीना को कोई पहले के और अभी के अनुभव में कोई अंतर नहीं महसूस हुआ। ये उसका जय ही था... उसका प्यार... उसका हस्बैंड! उसको वो बहुत प्यार करती है... और करती रहेगी। कोई भी बात इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

'हाँ, वो जय की धर्मपत्नी बनेगी!'

*
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai...
Nice and awesome update...
 

dhparikh

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Update #46


“माँ?” मीना को उत्तर की प्रतीक्षा थी।

“सुहास... मेरी बेटी, दरअसल, तू सही है। ... तेरा जय... मेरा और तेरे पिता जी का बेटा नहीं है...”

“फ़...फ़िर...?”

“वो हर्ष का बेटा है...” माँ ने कुछ देर चुप रह कर कहा।

“र...राजकुमार जी का?”

माँ ने ‘हाँ’ मेर सर हिलाया।

“प... पर...”

“व्वो... वो तो मेरे साथ...”

“सुहास... बेटा... मैं जो कहने जा रही हूँ, उसको ध्यान से, और धैर्य से सुनना...”

मीना दो पल को साँस थाम कर बैठ गई - उसका मन अजीब सा होने लगा था, फिर से।

माँ ने एक गहरी साँस भरी, “... जय जैसे हर्ष का बेटा है... वैसे ही वो... वो तेरा भी बेटा है...”

मानों एक साथ ही सैकड़ों बिजलियाँ गिर गईं हों मीना पर!

“क्या!” उसका चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया!

‘यह कैसा खुलासा है!’

“म्म्ममाँ... ये आप क्या कह रही हैं?” उसको यकीन ही नहीं हुआ कि माँ ने ये क्या अनहोनी कह दी।

“सच कह रही हूँ। ... तुझे अपने अतीत का पूरा पूरा अभी भी याद नहीं आया क्या बच्चे?”

बहुत संभव है यह! डॉक्टरों ने मीना का ‘इलाज़’ कर के उसके जीवन की ‘उस समय’ की घटनाओं की याददाश्त दबा या भुला दी थी। हर्ष की मृत्यु, उसके होने वाले सास ससुर की मृत्यु, और फिर उसकी खुद की गर्भावस्था और प्रसव! लेकिन जब दिमाग में एक गुत्थी सुलझती है, तो बाकी बातें स्वयं ही खुलती चली जाती हैं।

“मेरा बच्चा...” उसको अचानक ही याद हो आया।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जय... धनञ्जय... तेरा ही है...”

ऐसा बड़ा झटका मीना को अपने पूरे जीवन में नहीं लगा था। कुछ पलों के लिए वो संज्ञा शून्य हो गई - न दिमाग काम कर रहा था, और न ही शरीर!

“बहू... सम्हाल अपने आप को!” उसको होश तब वापस आया, जब माँ ने उसको झिंझोड़ा, “बच्ची गिरने वाली थी अभी!”

“अ...ह...हाँ?”

“बच्ची अभी तेरी गोदी से गिरने वाली थी, सुहास...”

“माँ... क्या आप सच कह रही है?”

उन्होंने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कैसा बड़ा पाप हो गया माँ...”

“पाप?”

“और नहीं तो क्या! ... अपने ही बेटे से... अब मैं अपना ही सामना कैसे करूँगी माँ? ... अपने जय का सामना कैसे करूँगी...?”

“क्या पागलों जैसी बातें कर रही है?”

“माँ मैं मर जाऊँगी... इतनी शर्म के साथ मैं नहीं जी...”

मीना का वाक्य समाप्त होता, उसके पहले ही उसके गाल पर एक थप्पड़ आ कर लगा,

“ख़बरदार जो आइंदा मरने की बात अपनी ज़बान पर लाई भी,” माँ ने सख़्त स्वर में उसको हिदायद दी, “... तुझे क्या ज़िन्दगी इतनी सस्ती लगती है, जो मर जाएगी? ... ये बेहूदा बात बोलने से पहले एक बार सोचा भी कि तेरे बिना जय का क्या होगा? चित्रा का क्या होगा? ... हमारा क्या होगा? हम कोई नहीं हैं तेरे?”

मीना की आँखों से आँसू ढलक आए, लेकिन रुलाई की आवाज़ न आई। वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोना चाहती थी, लेकिन उस थप्पड़ की मार सीधा उसके दिल पर आ कर लगी। उसको उम्मीद नहीं थी कि इतना प्यार करने वाली माँ उसको मार भी सकती हैं।

फिर उसको अपनी कही हुई बात याद आई, तो उसको समझा कि सही ही किया माँ ने। मूर्खता का कोई इलाज़ तो होना चाहिए न!

“... ले... लेकिन माँ... पाप तो हो गया न...”

“अपने प्रेम को पाप का नाम देती है? ... ये इतनी सुन्दर सी, इतनी प्यारी सी गुड़िया पाप का परिणाम है?”

मीना से कुछ कहते न बना।

“जब तेरे दिल में जय के लिए प्यार उमड़ रहा था, तब क्या वो पाप लग रहा था तुझे? ... जब तुम दोनों साथ होते हो, तो क्या तुझे उसका साथ पाप लगता है? ... इस बच्ची को दूध पिलाते समय क्या तुझे पाप महसूस होता है? ऐसा लगता है कि पाप का परिणाम है?”

मीना को रुलाई आ गई। वो ‘न’ में सर हिलाते हुए रोने लगी।

माँ क्षत्राणी अवश्य थीं, लेकिन पत्थर-दिल नहीं। उन्होंने लपक कर मीना को अपने सीने में छुपा लिया,

“प्रेम करना कब से पाप हो गया, बच्चा?”

कुछ क्षण रोने के बाद मीना बोली, “प्रेम करना पाप नहीं है माँ... लेकिन अपने ही बेटे से...”

“एक बात बता बच्चे,” माँ ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से पूछा, “... जब तूने पहली बार जय को देखा था, तब तेरे मन में क्या उसके लिए माँ की ममता वाले भाव उमड़े थे, या प्रेमिका वाले?”

माँ की बात पर मीना को जय के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गई।

अद्भुत सा आकर्षण उसने महसूस किया था उस दिन - पहली नज़र में ही उसको ऐसा लगा था कि जय अपना है। हो सकता है कि चूँकि दोनों की डोर इस क़दर जुडी हुई थी, इसलिए वैसा महसूस हुआ हो मीना को, लेकिन हाँ, यह तो सच ही है कि जय को देख कर उसके अंदर माँ वाले भाव तो नहीं आये थे। भाव आये थे प्रेमिका वाले ही। और उसके बाद भी - बिस्तर में अंतरंग क्षणों में मीना को लज्जा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण महसूस होता है, जब जय उसके अंदर प्रविष्ट होता है। उससे एकाकार हो कर मीना पूर्ण हो जाती है, आनंदित हो जाती है। इन बातों को झुठलाया तो नहीं जा सकता।

लेकिन,

“... लेकिन माँ... अब ये सब जानने के बाद...”

“क्यों? क्या बदल गया ऐसा?”

“अब मैं जय का सामना कैसे करूँगी माँ?”

माँ शायद कुछ और कहना चाहती थीं, लेकिन अंत समय में उन्होंने कुछ सोच कर कुछ और ही कहा,

“देख बच्चे, तूने उसको जना ज़रूर है, लेकिन तू उसकी माँ नहीं है! ... उसकी माँ तो मैं ही हूँ, और मैं ही रहूँगी... तू उसकी पत्नी है! और उसके इस बच्चे और होने वाले बच्चों की माँ है! ... इसलिए मेरी सलाह तो यही रहेगी कि तू उसके साथ वैसी ही रह, जैसी कि अभी है...”

“... लेकिन... अपने बेटे के साथ...”

“मेरी लाडो... एक बात समझ ले... तू अब सुहास नहीं है... मीना है, मीनाक्षी... राजकुमारी मीनाक्षी... मेरे बेटे जय की पत्नी!” माँ ने रुक रुक कर कहा - जैसे वो सुनिश्चित करना चाहती हों कि मीना के मन में कोई संदेह न शेष रहे, “... उसको मैंने अच्छे संस्कार दिए हैं... मैंने उसके अंदर यह बात कूट कूट कर भरी है कि किसी लड़की को ग़लत नज़र से न देखे... जानती है? तुझसे मिलने से पहले तो उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी... तू ही पसंद आई उसको। तुझी से उसने प्रेम किया, और तुझी से शादी भी!”

मीना जानती थी यह बात। और वो स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मानती थी इसीलिए।

माँ कह रही थीं, “तुम दोनों का जोड़ा ईश्वर ने बनाया है... हम बस यह चाहते हैं कि तुम दोनों विधिपूर्वक पूरे उम्र के लिए साथ में बँध जाओ... तू उसकी कानूनन पत्नी है... अब धर्मपत्नी बन जा...”

“पर माँ... कैसे करूँगी ये सब...”

“जैसे अभी तक करती आई है! ... देख बच्चे, तुझ पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन जय और चित्रा तेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं, और तू हमारे जीवन का! ... मेरे लिए तू मेरे जय की पत्नी है... और यह बात बदलेगी नहीं।”

मीना कुछ न बोली।

“सोच ले! ... लेकिन एक बात समझ ले बच्चे, तू और जय आपस में बहुत प्रेम करते हैं... अब यही प्रेम बस और बढ़ते रहना चाहिए... कम नहीं होना चाहिए! ... ईश्वर ने कुछ सोच कर ही तुम दोनों को मिलाया होगा...”

उसी समय दरवाज़े पर बहुत हल्की सी दस्तख़त हुई।

“माँ?” जय की आवाज़ थी।

“आ जा बेटा... बहू उठ गई है...”


*


जय धीरे से दरवाज़ा खोल कर कमरे के भीतर आया और वापस बंद कर के अपनी माँ और पत्नी के पास आ गया।

उसको देख कर मीना की धड़कनें बढ़ गईं। क्या बोले वो जय से, क्या करे - उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

“आ जा बेटा...” माँ ने जय से कहा, और फिर सामान्य स्वर में मीना से बोलीं, “... जानती है बहू... ये तो तेरे पास से जा ही नहीं रहा था। ये तो मैंने ही जबरदस्ती कर के भेजा इसको कि सो जा कुछ देर... बहू को मैं सम्हाल लूँगी। तब गया...”

“माँ, नींद ही नहीं आई... चिंता लगी हुई थी न!”

“क्यों नहीं होगी चिंता... तू इसका पति है, और पति को अपनी पत्नी की चिंता, उसकी देखभाल तो करनी ही चाहिए...” माँ ने ार्थपूर्वक कहा - जैसे कि मीना को सुना रही हों, और फिर मीना के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, “अच्छा बहू, मैं चलती हूँ... कुछ देर आराम कर लूँ!”

कुछ ही देर में जय, चित्रा, और मीना कमरे में अकेले हो गए।


*


“मेरी जान,” जय बोला, और उसने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया, “... आई वास सो वरीड... क्या हो गया था तुमको?”

“पता नहीं...” हमेशा की तरह ‘जान’, ‘माय लव’, ‘हनी’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग नहीं किया मीना ने - उसको हिचक सी महसूस हो रही थी, “शायद ट्रैवेलिंग की वीकनेस हो... यहाँ की हीट... ऑर परहैप्स अ कॉम्बिनेशन ऑफ़ द टू...”

“हम्म... डॉक्टर ने भी यही सस्पेक्ट किया है... लेकिन तुम बहुत देर तक अनकॉन्शियस रही...”

“कितनी देर?”

अबाउट सिक्स सेवन आवर्स...”

“बाप रे...”

“लेकिन कोई चिंता वाली बात नहीं थी - तुम्हारे वाइटल्स बढ़िया थे, और तुमको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे तुम गहरी नींद में हो, और कोई सपना देख रही हो...” जय ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा।

मीना मुस्कुराई।

जय के साथ अभी भी वही कोमलता महसूस हो रही थी उसको, जो यहाँ आने से पहले थी। क्या हो रहा था ये सब, क्यों हो रहा था ये सब - सारी बातें गड्ड-मड्ड हो गई थीं मीना के मन में!

“सपना ही देख रही थी... लेकिन जो देखा, वो हक़ीक़त के जितना ही सुन्दर था...” वो बोली।

“अच्छा जी? ऐसा क्या देख लिया?”

मीना के होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गई, “अभी नहीं... फिर कभी बताऊँगी...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना बोली।

जय मुस्कुराया।

जय का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मीना मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थी। इस समय भी कोई अपवाद नहीं था। जय के लिए जैसा प्रेम उसने अपनी पहली मुलाकात में महसूस किया था, आज माँ के खुलासे के बाद भी, वो वैसा ही था। क्या पता, अब और भी प्रगाढ़ हो गया हो।

“कैसा लग रहा है मेरी राजकुमारी को?”

आई ऍम गुड... माय लव,” मीना ने आख़िरी दो शब्द थोड़ा रुक कर जोड़े, “आई थिंक आई विल बी ऑलराइट...”

“हाँ... चिंता न करो! ... तुमको कल रेस्ट करना है, फिर इस्टेट दिखाएँगे तुम्हे!” जय ने उत्साह से बताया, “बहुत से लोग तुमसे मिला चाहते हैं... नई राजकुमारी से मिलने को बहुत से लोग बेक़रार हैं...”

जय की इसी अदा पर तो वो फ़िदा थी। चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कैसा भी विचार हो उसके मन में, जय उसके होंठों पर, और उसके मन में मुस्कान ला ही देता था।

“... और माँ ने बताया है कि एक सप्ताह बाद की तारीख़ निकली है हमारी शादी की...”

यह सुन कर मीना की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“फिर हम लीगली मैरीड कपल से, रिचुअली मैरीड कपल बन जायेंगे...”

आई वुड लव दैट...” मीना ने कोमलता से कहा।

“सच में?”

“हनी?” मीना बोली।

“हाँ?”

प्लीज़ मेक लव टू मी?”

“अभी?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय के आलिंगन में आ कर मीना पिघल गई। इससे सुख वाली जगह कोई नहीं है संसार में - उसको तुरंत ही समझ में आ गया। कोई पंद्रह मिनट के लम्बे फ़ोरप्ले के बाद जब जय मीना के अंदर प्रविष्ट हुआ, तो मीना को कोई पहले के और अभी के अनुभव में कोई अंतर नहीं महसूस हुआ। ये उसका जय ही था... उसका प्यार... उसका हस्बैंड! उसको वो बहुत प्यार करती है... और करती रहेगी। कोई भी बात इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

'हाँ, वो जय की धर्मपत्नी बनेगी!'

*
Nice update....
 

avsji

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