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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #47


अपनी प्रवृत्ति के विपरीत मीना सुबह बहुत देर से उठी। कई कारण थे - सबसे बड़ा कारण था कि अचानक से ही अमरीका से भारत आने के कारण शरीर की समय-सारिणी में अप्राकृतिक अंतर आ जाता है। कुछ लोगों को दो तीन दिन ही लगते हैं उसको ठीक करने में, और कुछ लोगों को कई कई दिन लग जाते हैं।

मीना ने महसूस किया कि उसके पूरे शरीर में बड़ी मीठी सी अलसाहट थी और मीठा मीठा सा दर्द हो रहा था! यह बड़ी ही परिचित सी अलसाहट और पीड़ा थी। यह परिणाम था कल रात उसके और जय के बीच चले रति-युद्ध का! आँखें उसकी अभी भी खुली नहीं थीं - लेकिन नींद अब जा चुकी थी। उठते ही सबसे पहली याद उनके कल रात के सम्भोग की ही आई! एक तरह से एक स्पेशल रात थी कल की! इतने सारे अविश्वसनीय खुलासे हुए। शुरू में तो उसको लगा था कि उसका जीवन पूरी तरह से बदल जायेगा। लेकिन इस समय, जय के बगल लेटी हुई, वो समझ रही थी कि उसके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया था, और न ही उस बारे में सोचने की कोई आवश्यकता है!

अंततः मीना ने अपनी आँखें खोलीं।

उसने देखा कि वो और जय एक दूसरे से गुत्थमगुत्थ हो कर लेटे हुए थे। पूर्ण नग्न! उसने देखा - जय अभी भी सो रहा था। जय स्वस्थ और मज़बूत कद-काठी का युवक अवश्य था, लेकिन वो भारी नहीं था। इस कारण से सम्भोग के दौरान उसकी चंचलता और भी बढ़ जाती थी, और असंभव तरीके और असंभाविक आसनों में वो मीना के साथ प्रेम-लीला रचता था। आनंद आता, लेकिन मीठी मीठी पीड़ा भी होती मीना को उस कारण। लेकिन उसी पीड़ा में ही तो रति का सुख है!

कल रात की बात फिर से याद आने पर वो मुस्कुराई। फिर उसने अपने बगल में देखा - नन्ही चित्रा अभी वहाँ नहीं थी। शायद कोई उसको रात में वहाँ से उठा ले गया था। अपनी प्राइवेसी में ऐसी दखल देख कर उसको एक पल को बुरा लगा, फिर अगले ही पल उसको महसूस हुआ कि किसी परिचारिका ने ही उठाया होगा चित्रा को - उसकी देखभाल करने के लिए! बहुत संभव है कि यह इसलिए किया गया था कि वो और जय ठीक से सो सकें। यह विचार आते ही वो संयत हो गई, और उसको अच्छा भी लगा।

बहुत ही ठीक से सोई वो! सर अभी भी थोड़ा भारी था, लेकिन वो किसी चिंता का विषय नहीं लग रहा था। उसका अंगड़ाई लेने का मन हो रहा था, लेकिन जय के जागने की चिंता के कारण वो बिस्तर पर यूँ ही पड़ी रही! लेकिन कोई कब तक यूँ ही, अकारण बिस्तर पर पड़ा रह सकता है? हार कर वो उठने को हुई। उसके उठने के कारण हुई हलचल से जय भी जागने लगा। आधी नींद और आधी जागने की अवस्था में जय ने, बिस्तर से उठती हुई मीना का हाथ पकड़ कर वापस बिस्तर पर लिटा लिया।

“कहाँ चलीं आप?” उसने उनींदी आवाज़ में, लेकिन मज़ाकिया और मीना को छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा।

“अरे उठना चाहिए... बहुत देर हो गई है!” मीना ने कहा।

“क्या टाइम हो रहा है?” जय अभी भी उनींदा था।

“आठ बजने वाले हैं...”

“बस?”

“हा हा... क्या बात है हुकुम?” मीना ने इस मीठी सी बातचीत का आनंद उठाते हुए कहा, “आज दिन भर आलसी बने रहने का इरादा है क्या?”

“आलसी नहीं... कुछ और...”

“क्या?” मीना समझ रही थी कि जय क्या चाहता है।

“आपका आशिक़...” कह कर जय ने उसको अपने ऊपर खींच लिया।

“आऊ... माँ आस पास ही होंगी, और आपको आशिक़ी सूझ रही है?” मीना जय के आलिंगन में फिर से समाती हुई खिलखिलाई।

“माँ का ही तो आदेश है...” जय उसके होंठों को चूमते हुए बोला।

“अच्छा जी?”

“हाँ,” जय मीना के स्तनों को दबाते सहलाते कहने लगा, “वो चाहती हैं कि हम दोनों जल्दी जल्दी तीन चार और बच्चे कर लें... ऐसा इम्पोर्टेन्ट काम बिना आशिक़ी किये तो नहीं होने वाला न?”

“हा हा हा...”

दबाने से मीना के चूचकों में से दूध की कुछ बूँदें निकल आईं। जय को अचानक से न जाने क्या सूझी, उसने मीना का एक चूचक अपने मुँह में भर लिया और उसको अधीरतापूर्वक पीने लगा। फोरप्ले और सम्भोग करने में जय थोड़ा शर्मीला ही था! बातें वो बड़ी बड़ी कर लेता था, लेकिन उन बातों के क्रियान्वयन में वो थोड़ा शरमा जाता था... उत्साह से करता था, लेकिन फिर भी उसको थोड़ी शर्म सी रहती। फोरप्ले के दौरान मीना का स्तनपान करना कुछ वैसा ही काम था। जय का मानना था कि माँ का दूध उसके बच्चों के लिए होता है, और बच्चों के बाप को उसमें सेंध-मारी नहीं करनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि उन दोनों के बीच में यह क्रिया होती ही नहीं थी! अवश्य होती थी - लेकिन बहुत कम!

इसलिए जब यूँ अचानक से जय उसका दूध पीने लगा, तो मीना के मन में संदेह हुआ कि कहीं जय को उनके रिश्ते के बारे में पता तो नहीं चल गया? लेकिन मीना ने महसूस किया कि जिस अंदाज़ में जय उसका स्तन पी रहा था, उसमें कोई परिवर्तन नहीं था।

कुछ देर बाद मीना बोली, “हुकुम, आज तो आप बड़े मूड में लग रहे हैं!”

“आप जब भी हमारे पास रहती हैं, तब मूड बन ही जाता है...”

“झूठे... आअह्ह्ह...”

“अरे इसमें झूठ क्या है! ... मूड तो बन ही जाता है जब मेरी जान मेरे पास रहती है... लेकिन हर समय बने हुए मूड पर एक्शन तो नहीं लिया जा सकता न...”

“बातें बनाने में आप एक्सपर्ट हैं...”

“और भी कामों में एक्सपर्ट हूँ मेरी जान...” उसने कहा, और एक बार फिर से उसका लिंग मीना की योनि में प्रविष्ट होने लगा।

“हा हा हा... आआह्ह्ह्हह... आपको बस मौका चाहिए मुझे सताने का!” मीना ने आनंद से कराहते हुए कहा।

बरसों का शोध कहता है कि सुबह सुबह का, मतलब, सो कर उठने के तुरंत बाद होने वाला सम्भोग, सबसे अधिक सुखकारी और आनंददायक होता है। आपका शरीर रात भर आराम कर चुका होता है, और उसमें नई ऊर्जा रहती है। साथ ही साथ जननांगों में अधिक रक्त भी बह रहा होता है। इसलिए खेल देर तक चलता है, और बहुत आनंददायक होता है।

“सताना नहीं जानेमन... आपको प्यार करने का,” जय ने नीचे से धक्के लगाते हुए कहा, “वैसा प्यार जिस पर आपका हक़ है...”

इसके बाद किसी को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी। दोनों अपने खेल में मगन हो गए।

मीना को कल रात भी, और इस समय भी, जय के साथ सम्भोग करते हुए हमेशा के जैसा ही आनंद आ रहा था। कोई परिवर्तन नहीं आया था। मीना को एक दो बार ख़याल अवश्य आया कि उसको कितनी सहजता थी जय के संग की! एक बार भी उसके मन में नहीं आता है कि जय उसका बेटा था। वो दृष्टिकोण पैदा ही नहीं हो सकता! कैसे हो सकता है? उसको प्रसव का कुछ याद नहीं, आधी गर्भावस्था का कुछ याद नहीं! ऐसे में जय के लिए पुत्र-मोह कैसे आ सकता है उसको? माँ बिल्कुल सही कहती हैं - जय उसके शरीर से अवश्य उत्पन्न हुआ था, लेकिन उसका बेटा नहीं है। बेटा वो माँ का ही है! किशोरवय नासमझी में वो गर्भवती अवश्य हो गई, लेकिन माँ बनने का शऊर तब थोड़े ही था उसमें। उस समय तो उसको लड़की बने रहने का भी शऊर नहीं था। बच्चों को, उनकी नासमझी में किए गए शैतान कार्यों का ता-उम्र दण्ड नहीं दिया जाता! किसी को भी नहीं! उनको सुधरने का, और फिर से नए सिरे से जीने का अवसर दिया जाता है। वही अवसर मीना को भी तो मिला हुआ था!

फिर अचानक से उसके मन में एक और ख़याल आया, ‘जय में राजकुमार का भी तो अंश है!’

‘राजकुमार का अंश!’

हो सकता है कि ईश्वर ने उसे राजकुमार हर्ष का प्यार देने के लिए ही यह सारी लीला रची हुई हो? नियति ने शायद यही सोचा हुआ हो, कि उसको राजकुमार अवश्य मिलेंगे - चाहे किसी भी रूप में! और देखो, मिल भी गए! इस ख़याल से उसके मन में जय के लिए और भी प्यार उमड़ आया।

‘जो भी हो,’ उसने सोचा, ‘उसके जीवन में जय का रूप नहीं बदलेगा! ... नहीं बदल सकता! ... कभी नहीं!’

सच में, जय उसके जीवन में उसके पति के अतिरिक्त और किसी अन्य रूप में नहीं रह सकता था। वो उसको बहुत प्रेम करती थी, और जय भी उसको बहुत प्रेम करता था। नन्ही चित्रांगदा उनके प्रेम का प्रसाद थी। और वो चाहती थी, कि चित्रा के ही जैसे अन्य कई वंश-पुष्प उसकी कोख से जन्म लें! उसके मन में यही सारे विचार आ रहे थे। अंत में उसने सोचा कि माँ द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन को भुला देना ही उचित है। उसी में सभी की भलाई थी।

उसने संतोष से गहरी साँस ली, जो कि एक आनंद वाली कराह के रूप में बाहर निकली। उसका शरीर वीणा की तरह बज रहा था - हर तार में अब झंकार निकलने लगी थी। उसके रोम रोम में आनंद की लहर दौड़ रही थी। उधर जय पूरे आनंद और उत्साह से मीना के नीचे से धक्के लगाता जा रहा था। वो भी समझ रहा था कि मीना को बहुत आनंद मिल रहा था।

कोई एक घटिका तक दोनों का खेल चला। तब जा कर जय मीना के अंदर ही स्खलित हो गया। उस समय तक मीना भी एक ज़ोरदार और दीर्घकालिक चरम आनंद की प्राप्ति कर चुकी थी।

संतुष्ट हो कर मीना जय के ऊपर ही ढेर हो गई। दोनों ने कुछ समय अपनी अपनी साँसें संयत करीं।

फिर जय ने ही चुप्पी तोड़ी, “मज़ा आया मेरी राजकुमारी जी?”

“उम्म्म म्मम...” मीना के गले से संतोष भरा कूजन निकला।

“चित्रा को कोई ले गया है क्या रात में?” कुछ देर बाद जय ने फिर पूछा।

“लगता तो ऐसा ही है, हुकुम!”

“हम्म...”

कुछ देर दोनों वैसे ही बिस्तर पर पड़े रहे। मीना जय के ऊपर, उसको प्रेम से अपने आलिंगन में लिए हुए।

“उठें अब?” अंत में मीना ने ही कहा।

“हाँ... अब तो उठना ही पड़ेगा!” जय ने हँसते हुए कहा, “सुबह का कोटा पूरा... दोपहर, और रात में फिर से करेंगे!”

“हा हा हा हा...” उसकी शरारत भरी बात पर मीना खिलखिला कर हँस दी।

*
 

Sanju@

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Update #42


“माँ,” मीना ने बड़े उत्साह से फ़ोन पर पूछा, “कैसी हैं आप अब?”

“अरे, कल जैसी थी, आज भी तो वैसी ही रहूँगी न बच्चे!” माँ ने हँसते हुए कहा, “रोज़ रोज़ मुझ बुढ़िया के शरीर में अंतर थोड़े ही आने लगेगा।”

“अरे... मेरी माँ को आप बुढ़िया कह कर क्यों बुला रही हैं? हम्म?” मीना ने चुहल करी।

“वो इसलिए क्योंकि तेरी माँ बुढ़िया ही है।” माँ ने हँसते हुए कहा।

“नहीं... मेरी माँ बूढ़ी नहीं हैं!”

“हा हा! हाँ हाँ, सोलह बरस की जवान है तेरी माँ!” माँ की हँसी रुक ही नहीं रही थी - वो मीना के साथ बिना मुस्कुराए, बिना हँसे रह ही नहीं पाती थीं... इतनी अच्छी लगती थी उनको मीना, “अच्छा सुन, हँसी मज़ाक बाद में करेंगे... देख, मैं तो कब से तुझसे और अपनी नन्ही गुड़िया से मिलने को तरस रही हूँ...”

“आई नो, माँ!” मीना ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “... हमको भी तो आप से मिलने का कितना मन है... लेकिन आप ही ने मना कर दिया था... ये कह कर कि आप आ जाएँगी...”

“हाँ बेटे... बूढ़ी होने के साथ साथ मूरख भी है तेरी माँ! अच्छा... एक बात तो बता बच्चे... क्या तुम लोग यहाँ नहीं आ सकते?” माँ ने बड़े ही लाड़ और बड़े ही आशावान अंदाज़ में पूछा, “मेरा आना तो कठिन ही है फिलहाल... लेकिन इतने दिन हो गए हैं न तुम सबको देखे बिना... इसलिए अब रहा नहीं जाता। ... तरस रही हूँ यहाँ...”

“हाँ माँ! सच में बहुत हो गया।” मीना ने भी गंभीर होते हुए कहा, “... मैं आज ही इनसे बात करती हूँ, और इण्डिया आने का प्लान बना कर सबसे पहले आपको बताऊँगी!”

“हाँ... बहुत अच्छा रहेगा ये! ... तुम दोनों पालम आ जाओ... वहाँ से सारा बंदोबस्त हमारे...”

“जी माँ! हम बस आने ही वाले हैं।”

“हाँ बच्चे... तू यहाँ आ जा, फिर तेरी और जय की शादी बड़ी धूम से और पूरे विधिपूर्वक करूँगी!”

“हा हा! क्या माँ! दोबारा शादी?”

“अरे! वो कोई शादी थोड़े ही है! ... वो तो कानून की शादी है। और दोबारा हो जाए तो क्या हुआ? होगी तो एक ही से न!” माँ ने हँसते हुए कहा, “... कम से कम मुझको भी तसल्ली हो जाएगी कि अपने बच्चों की शादी कराई है मैंने! ... और वैसे भी, तू दुल्हन के लाल जोड़े में बहुत सुन्दर लगेगी! खूब मज़ा आएगा!”

“हा हा... माँ... आप भी न! ... आप बहुत स्वीट हैं...”

“तो तुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है?”

“किस बात की प्रॉब्लम माँ? ... अपनी माँ को अगर मैं किसी भी तरह से थोड़ी सी भी ख़ुशी दे सकूँ, तो मुझको सब मंज़ूर है!” बोलते बोलते मीना भावुक हो गई।

“जीती रह बच्चे... जीती रह!” माँ बहुत भावुक होते हुए कहा।

आज बहुत समय के बाद मीना को अपार संतोष महसूस हुआ था।

पूरा परिवार था उसके साथ यहाँ अमेरिका में - अत्यधिक प्रेम करने वाला पति, और उन दोनों के प्रेम की निशानी, उनकी बेटी; स्नेहिल बहन और सहेली जैसी जेठानी; बड़े भाई जैसा स्नेह करने वाला जेठ; और अपनी चित्रा के जैसे ही भतीजे! फिर भी उसको कमी महसूस होती रहती... और वो कमी थी माँ के प्रेम और ममता की। अपनी सासू माँ से मिलने की तमन्ना में इतना समय बीत गया! मानव मन भी तो ऐसा ही होता है न... जितना प्रेम मिलता है, उससे भी अधिक प्रेम पाने की चाहत होती रहती है उसको। माँ से फ़ोन पर ही इतना प्यार मिल रहा था, तो सामने कितना मिलेगा? इस बात का लालच तो था ही मीना को! भाग्य भी कैसा विघ्न डालता है न! न तो उनसे विवाह से पहले मिलना हो सका, और न ही विवाह के बाद! और न ही पुत्री के होने के बाद ही! इतने सब महत्वपूर्ण अवसर जीवन में दोबारा थोड़े ही आते हैं!

लेकिन माँ ने सारी समस्या ही दूर कर दी जैसे! उसको भी यूँ कोर्ट में शादी कर के अच्छा नहीं लगा था। और तो और, उस दिन घर से निकलते समय उसको पक्का पता ही नहीं था कि उन दोनों की शादी हो जाएगी! यूँ भागते भागते शादी करना किसको अच्छा लगता है? इसलिए माँ की बात उसको बहुत भली लगी, और आने वाले दिनों के बारे में सोच कर वो मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई।

*

अगले कुछ दिन भारत जाने की तैयारी में बीत गए।

जाहिर सी बात थी कि अगर जय और मीना की शादी होनी थी, तो आदित्य और क्लेयर की उपस्थिति भी वाँछित थी। इसलिए सभी का अचानक ही भारत चले जाना संभव नहीं था, क्योंकि दोनों बच्चों के स्कूल भी चल रहे थे। लेकिन उनकी छुट्टियाँ बस तीन सप्ताह बाद ही शुरू होने वाली थीं। इसलिए भारत जाने के लिए सभी को बहुत इंतज़ार नहीं करना पड़ा।

माँ से मिलने का सोच कर जहाँ मीना अति-उत्साहित थी! इतने समय के बाद उसको माँ से मिलने का मौका मिलेगा - यह सोच सोच कर वो खुश हो रही थी। वहीं क्लेयर और आदित्य इस बात से खुश थे कि बड़े दिनों बाद भारत के घर में ख़ुशियों का माहौल सजेगा। उनके बिजनेस में अभी भी अपनी चुनौतियाँ चल रही थीं, लेकिन हालत पहले से सुधर रहे थे। यह अच्छी बात थी। जय पूरी लगन से काम कर रहा था, और यह देख कर आदित्य बहुत खुश होता। उसको मालूम था कि जय बहुत ही अच्छा लड़का है! लेकिन वो यह भी जानता था कि उसके पीछे मीना जैसी लड़की की प्रेरणा भी है। जय के अंदर एक ठहराव आया था और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीरता भी। वो सब मीना के कारण ही संभव था। उनकी कंपनी की हालत में जो भी सुधार थे, वो सब मीना के ही सुझावों पर काम करने के कारण दिखाई दे रहे थे। इसलिए आदित्य के मन में मीना की भूमिका को ले कर कुछ महत्वपूर्ण बातें थीं, लेकिन वो सभी के साथ, सभी की उपस्थिति में वो बातें करना चाह रहा था।

क्लेयर इस बात से खुश थी कि मीना को ले कर उसके मन में जो विचार पहली बार बने थे, वो सभी सही साबित हुए थे। कहना गलत न होगा कि उन दोनों की शादी कराने में क्लेयर ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करी थी। मीना जय से बड़ी थी, अधिक पढ़ी लिखी थी, आर्गनाइज्ड सेक्टर में काम कर रही थी, वर्किंग महिला थी - इन कारणों से पूरे परिवार के मन में न जाने कैसे कैसे पूर्वाग्रह थे। क्या उन दोनों के बीच बात जमेगी, इत्यादि! लेकिन क्लेयर ने सभी बातों का खंडन किया, और उन दोनों की रिश्ते की भरपूर पैरवी करी थी। अच्छी बात यह थी कि माँ ने भी क्लेयर पर पूरी तरह से भरोसा किया हुआ था, और उसको छूट दे दी थी कि वो जो चाहे, करे। और शादी के बाद से तो मानो उसको मीना में अपनी बहन ही मिल गई हो। दोनों साथ में खूब मज़ा करतीं, आपस में छेड़खानी करतीं, और सहेलियों जैसी अंतरंग बातें साझा करतीं। मीना के ही कारण क्लेयर फिर से बिजनेस के मामलों में सक्रीय भूमिका अदा करने लगी थी, जिसके कारण आदित्य भी बहुत खुश था।

और जय का तो कहें ही क्या! जब से मीना उसके जीवन में आई थी, तब से वो मानों किसी सपनीली दुनिया में जीने लगा था। उसको अपने जीवन की हर बात में आनंद आता! उसको विवाह की कोई समझ नहीं थी - उसने केवल अपने भैया और भाभी के वैवाहिक जीवन को इतना करीब से देखा था, और उनको इतना खुश देख कर उसको भी अपने लिए वही उम्मीद होती। लेकिन मीना ने उसको अपनी आशा से कहीं अधिक खुशियाँ दी थीं। मीना जय को इतना सहेज कर रखती कि माँ की कमी न खलती; वो उसको इतना शारीरिक सुख देती कि उसको किसी अन्य स्त्री को देखने तक की भी आवश्यकता भी न महसूस होती; बौद्धिक स्तर पर इतना ज्ञान देती, कि उसको किसी गुरु की ज़रुरत न महसूस होती; उसके साथ इतने आनंद से रहती, कि किसी अन्य मित्र की आवश्यकता न महसूस होती! उसके जीवन के प्रत्येक पहलू को मीना ने ऐसे भरा था कि उसको किसी अन्य की आवश्यकता न महसूस होती। शादी के नौ महीनों बाद ही उन दोनों की बेटी आई, और तब से तो वो जैसे स्वर्ग के अपार आनंद में सराबोर हो गया था। उसको समझ नहीं आता था कि उसने ऐसा क्या किया था कि उसको इतनी ख़ुशियाँ मिलतीं।

और अब उसी मीना के साथ उसका विधिपूर्वक विवाह होने वाला था। जो आस तब पूरी न हो सकी, अब जल्दी ही पूरी होने वाली थी। बिना माँ के चरण-स्पर्श किए, बिना उनका हाथ अपने सर पर महसूस किए, वो अपनी और मीना की शादी पूरी नहीं मान रहा था। लेकिन अब वो कमी जल्दी ही पूरी होने वाली थी। और भारत वापस जाने का रोमाँच भी! मीना ने न जाने कब से भारत देश में कदम नहीं रखा था। लिहाज़ा, वो उसको जितना संभव था, उसको देश का अनुभव देना चाहता था। यह सोच कर वो मन ही मन आनंदित हो रहा था।

*
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
 

Sanju@

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Update #43


तीन सप्ताह बाद, पूरा परिवार पालम हवाई अड्डे पर उतरा।

वहाँ पर उनके स्वागत के लिए कुछ लोग पहले से ही उपस्थित थे। मीना को थोड़ा आश्चर्य हुआ - उसको यह तो पता था कि उसका परिवार धनाढ्य है, लेकिन सबकी वेशभूषा देख कर राजसी पुट साफ़ लग रहा था। मतलब जिस बात को जय मज़ाक के तौर पर कहता रहता था, वो दरअसल सच था। मीना एक राजपरिवार में ब्याही गई थी! अद्भुत!

अचानक से ही उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। रोमाँच से मीना का शरीर काँपने लगा।

वो एक बड़े परिवार की बहू है, इतना तो उसको पता था! लेकिन वो एक राजसी परिवार की बहू है, उसको बस थोड़ी देर पहले ही पता चला था। अचानक से ही उसका मनोबल क्षीण हो गया। एक तो एक बेहद लम्बे समय बाद वो भारत आई थी, पहली बार अपनी ससुराल और सासू माँ से मिलने आ रही थी, और अचानक से यह नई घटना! इसके लिए वो कत्तई तैयार नहीं थी।

“अभिनन्दन युवराज सा,” सभी लोगों ने आदित्य को देखते ही राजस्थानी अभिवादन में हाथ जोड़ दिए।

आदित्य ने मुस्कुराते हुए सभी को हाथ जोड़ कर बारी बारी से प्रणाम किया।

“अभिनन्दन युवरानी सा,” फिर क्रमशः सभी लोगों ने क्लेयर के सामने अभिवादन में हाथ जोड़ दिए।

क्लेयर ने भी बड़ी शालीनता से सभी को प्रणाम किया। एक वृद्ध पुरुष के पैर भी छुए उसने।

“अभिनन्दन राजकुमार सा,” जब सभी ने जय का भी अभिवादन किया तो मीना आश्चर्य में पड़ गई।

जय शायद सभी से छोटा था, इसलिए उसने सभी के पैर छुए।

अभी तक मीना जय के लिए ‘हुकुम’ शब्द मज़ाक के तौर पर इस्तेमाल करती थी। परिवार में किसी के भी बर्ताव से ऐसा लगता ही नहीं था कि वो राजसी खानदान के हैं। लेकिन अब - यह सब देख कर - किसी संदेह की कोई गुंजाईश नहीं थी।

“अभिनन्दन राजकुमारी सा,” उस वृद्ध ने मीना के सामने अभिवादन में हाथ जोड़ कर कहा, “भारत देश में आप का स्वागत है!”

अपने लिए अभिवादन सुन कर मीना अचकचा गई।

“मीना,” जय ने कहा, “ये हमारे काका हैं...”

इतना कहने मात्र से मीना समझ गई कि वो बहुत आदरणीय हैं। उसने उनके पैर छुए।

“धनी खम्मा, राजकुमारी सा...” काका की बोली में क्षमा का भाव स्पष्ट था, “आप हमारे पैर नहीं...”

“क्यों?” मीना को समझ नहीं आया।

“छोटा मुँह, राजकुमारी सा... लेकिन आपको सब बातें महारानी सा ही बताएँगी...” काका ने हाथ जोड़ दिए।

बाहर लाइन से बेहद महँगी विदेशी गाड़ियाँ खड़ी थीं, जिनके द्वार खोल कर ड्राइवर खड़े हुए थे। आदित्य और क्लेयर एक कार में, एक सहायिका के साथ अजय और अमर दूसरी में, और जय मीना और चित्रा तीसरी में बैठे। एक सहायिका ने उनके साथ बैठने की पेशकश करी, लेकिन जय ने ससम्मान उसको मना कर दिया। बाकी स्टाफ़ बची हुई गाड़ियों में बैठा और काफ़िला चल दिया।

“ज... जय?” मीना ने काँपते होंठों से पूछा।

“हाँ?”

“हम कहाँ जा रहे हैं?”

“घर...” जय ने ऐसे कहा जैसे कि बहुत सामान्य सी बात हो।

“घर कहाँ है?”

“महाराजपुर... राजस्थान में एक छोटी सी रियासत है!”

“म...हा...रा...ज...पु...र...” हर एक शब्द बड़ी मुश्किल से निकले।

मीना का दिल तेजी से धड़कने लगा।

उसके मस्तिष्क में साँय साँय कर के हवाएँ चलने लगीं।


*


पालम से महाराजपुर का सफ़र लम्बा तो था, लेकिन आरामदायक था। समय लग रहा था, लेकिन सभी के जलपान की अच्छी व्यवस्था थी और कारें बड़ी आरामदायक। मार्ग में पड़ने वाली दो रियासतों के राजवाड़े उनसे मिले भी। अपने नियत समय पर जब वो महाराजपुर पहुँचे, तो उन सभी के स्वागत के लिए भव्य बंदोबस्त हुआ था! ऐसा कुछ मीना ने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था। उसकी आँखें चुँधिया गईं - ऐसा स्वागत हुआ!

अभी भी दिन ही था - लिहाज़ा, महाराजपुर की साफ़ सफ़ाई और साज सज्जा स्पष्ट थी। रंगीन तिकोने झंडियों से मुख्य मार्ग सजा हुआ था। सड़क के दोनों तरफ़ चूने से सीधी लकीर खींची गई थी। और महाराजपुर के निवासी कौतूहल से अपने राजकुमारों और राजकुमारियों से देखने की कोशिश कर रहे थे। ऐसे स्वागत के बारे में मीना ने केवल पढ़ा ही था, कभी देखा नहीं था। नर्वस हो कर उसका दिल मानों बैठ गया था। हाथ पाँव ठन्डे पड़ने लगे थे।

धीरे धीरे करते हुए काफ़िला उसके नए ‘घर’ महाराजपुर के राजमहल के सामने पहुँचा। राजमहल की प्राचीर से मुख्य द्वार तक लाल रंग की कालीन बिछी हुई थी, जिस पर फूलों की वर्षा से एक कालीन सी बिछ गई थी।

सभी जने क्रमशः अपनी अपनी कारों से उतरे। गाजे-बाजे, ढोल, नगाड़े, तुरही, और ऐसे ही अनेकों प्रकार के ऊँचे स्वर वाले वाद्य-यंत्र पूरे उत्साह से बज रहे थे! राजमहल के द्वार पर अपनी संतानों के स्वागत के लिए महारानी स्वयं मौजूद थीं, और फूलों की वर्षा के बीच, अपने बेटे और बहू की आरती उतार रही थीं।

बाहर उपस्थित लोग उन पर पुष्प वर्षा कर रहे थे, लेकिन मीना के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी। गला उसका सूख रहा था और हृदय धमक रहा था! जब जय और मीना की बारी आई, तो मीना को लगा कि उसके पैर रबड़ के हो गए हों। उनमें स्थिरता नहीं रह गई थी। जैसे तैसे उसने दो पग भरे लेकिन तीसरा पग उठाते उठाते उसको चक्कर आ गया, और वो वहीं कालीन पर गिर गई। गनीमत यह थी कि नन्ही चित्रांगदा को एक परिचारिका ने अपनी गोद में ले रखा था, नहीं तो वो चोटिल हो जाती।

अचेत होने से पहले मीना ने कई लोगों को अपनी तरफ़ भाग कर आते हुए देखा, और उसके बाद उसके मष्तिष्क में अँधेरा छा गया।


*


मीना को कई बार लगा जैसे कितना एक जैसा सपना देख रही हो वो! ‘महाराजपुर’ - यह नाम जो कुछ देर पहले जाना-अनजाना सा लग रहा था, अब उसको पूरी तरह से परिचित लग रहा था। नाम ही क्या, वो पूरी जगह ही जानी पहचानी सी लग रही थी। लोग भी! माँ भी! उसको यह भी लग रहा था कि सपने में कभी क्लेयर उसके माथे को सहला कर उससे बात करने की कोशिश कर रही होती, तो कभी जय, तो कभी आदित्य!

‘उसका जय’ ... ‘कहाँ है जय?’ ... ‘और मेरी बच्ची...?’

सपने में उसको ये विचार जब भी आते, उसको अजब सी बेबसी महसूस होती। लेकिन शरीर जैसे लाचार था। वो कुछ कर ही नहीं पा रही थी। मानों हर अंग में लकवा मार गया था! सपने में हर बार कोई उसका प्रिय, कोई स्वजन, उसको देख जाता, लेकिन हर बार उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा जाता। और वो चाह कर भी कुछ न कर पाती।

और भी कुछ हो रहा था उसके साथ। कुछ ऐसी बातें उसके मष्तिष्क में कौंध रही थीं, जिनके बारे में उसको कुछ पता ही नहीं था। अजीब अजीब से सपने। अनजाने से! अनजानी जगहों में पहचाने हुए लोग, और पहचानी जगहों में अनजाने से लोग! सब कुछ गड्ड मड्ड! अपने सपनों से ही बेचैनी होने लगी उसको। जैसे वो उनके जाल से मुक्त होना चाहती हो।

अपने सपने से मुक्त होने के लिए उसका मन और शरीर दोनों बेचैनी से तड़पने लगे। उसी बेचैनी उसका शरीर झटके से खाने लगा, और एकदम से उसकी आँखें खुलीं।

आँखें खुलते ही उसने जिस शख़्श को सामने बैठा देखा, उसको देखते ही उसके मुँह से अनायास ही निकल गया,

“दी...दी...? आप? यहाँ?”

जो दृश्य उसके सामने था, उसको देख कर उसको अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ।

‘ये कैसे हो रहा है? क्या ये भी सपना ही है?’

यकीन हो भी तो कैसे? उसके सामने युवरानी प्रियम्बदा उसका हाथ थामे बैठी हुई थी!

मीना के मुँह से दो बोल सुनते ही वो मुस्कुराती हुई बोली, “हाँ मेरी बच्ची... मैं! ... मैं यहाँ नहीं, तो और कहाँ रहूँगी? यही तो मेरा घर है... और तुम सब मेरे ही बच्चे हो!”

“ले ले... किन...”

फिर उसका माथा चूम कर प्रियम्बदा आगे बोली, “कुछ मत सोच बिटिया रानी! बस अभी सुन ले! तू... तू मेरी बहू है... मेरे जय की पत्नी! ... इतने महीनों से मुझसे बातें कर रही है, लेकिन मुझे पहचान न सकी?”

“आप... माँ? आप माँ हैं?”

उसकी बात पर प्रियम्बदा ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और कहा, “अभी भी शक़ है?”

मीना का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया।

प्रियम्बदा कहती रही, “... हाँ... लेकिन... एक बात समझ नहीं आ रही है! मैं तुझे मीना कह कर पुकारूँ या सुहास कह कर?”

“सुहास?” मीना के माथे पर बल पड़ गए...

‘पहचाना हुआ सा नाम है ये तो...’

“भूल गई सुहास को? अच्छा, चल आसान कर देती हूँ... सुहासिनी याद है?”

उसने दिमाग पर ज़ोर डाला, “सुहास... सुहासिनी? ... मैं... सुहासिनी?”

प्रियम्बदा ने पूरी सहानुभूति के साथ ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“दीदी...” उसने कहना शुरू किया, लेकिन फिर अचकचा कर बोली, “माँ... ये सब... मुझे कुछ... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है!”
Update #44


“कोई बात नहीं बच्चे,” माँ (प्रियम्बदा) ने अपने परिचित वात्सल्य भरे अंदाज़ में कहा, “अभी ये सूप पी ले... बहुत भूख लगी होगी तुझे! कुछ पेट में जाएगा, तो अच्छा लगेगा। ... फिर बताती हूँ! ... सब कुछ! कुछ भी नहीं छुपाऊँगी... और मुझे भी तुझसे कुछ कुछ पूछना है... ठीक है?”

मीना को अभी भी यकीन नहीं था कि यह सच्चाई चल रही है, या फिर उसका कोई सपना!

“जय?”

“कुछ समय पहले सभी यहीं बैठे थे... जय, आदि, क्लेयर... लेकिन रात बहुत हो गई है, इसलिए मैंने सभी को जबरदस्ती कर के सोने के लिए भेज दिया!” माँ ने उसके माथे को स्नेह से सहलाया, “डॉक्टर तुझे देख गए... कह रहे थे कि शायद गर्मी और यात्रा की थकावट से बेहोशी आ गई है... लेकिन चिंता की कोई बात नहीं...”

मीना बस माँ को देखती रह गई।

माँ मीना को सहारा दे कर, और उसको बिस्तर के सिरहाने से टेक दे कर बैठाती हुई आगे बोलीं, “बस कुछ और क्षण रुक जा... सब बता देती हूँ! ... लेकिन फिलहाल ये सूप पी ले...”

कह कर माँ ने सूप बाउल से एक चम्मच भर कर सूप उसकी तरफ़ बढ़ाया। मीना ने सहर्ष उसको ग्रहण कर लिया।

उसको भूख भी लगी हुई थी और प्यास भी। टमाटर के चटपटे और मक्खनी स्वाद और गरम तरल को महसूस कर के उसको बहुत अच्छा लगा - गले को तरावट महसूस हुई, और मन को भी। साथ ही साथ प्रियम्बदा - उसकी दीदी, और उसकी सासू माँ - की उपस्थिति पा कर उसको सुरक्षित भी महसूस हुआ। लेकिन राजमहल में आने से पहले उसका दिल जैसा बैठ रहा था, अब फिर से बैठने लगा था... न जाने क्या बताने वाली थीं माँ उसको! लेकिन उसने फिलहाल चुपचाप सूप पीना उचित समझा।

“और सूप चाहिए, बच्चे?” माँ ने स्नेहपूर्वक पूछा।

मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “मुझे आप चाहिए माँ! मुझे बहुत डर लग रहा है... क्या हो रहा है मेरे साथ, मुझको कुछ भी समझ नहीं आ रहा है!”

“मेरी पूता,” माँ ने बड़े लाड़ से मीना का गाल सहलाया और कहा, “मैं तो हमेशा ही तेरे पास हूँ... और जहाँ तक क्या हो रहा है वाला सवाल है, उसका उत्तर जितना संभव है मेरे लिए, मैं ज़रूर दूँगी!”

“लेकिन माँ... हुआ क्या था? ... आप मुझसे यूँ दूर कैसे हो गईं थीं? ... और फिर ये सब! कैसे हुआ सब?”

उसने एक ही साँस में सब कह डाला।

माँ कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं, “तुझे क्या कुछ भी याद नहीं है बेटे?”

“क्या याद नहीं है माँ? ... आपसे और भैया से वो आखिरी मुलाकात याद है... वो भी थोड़ी थोड़ी... उसके बाद का कुछ भी नहीं!” मीना ने अपनी याददाश्त पर बल देते हुए कहा।

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, और गहरी सांस ले कर कहा,

“फिर तो शायद कहानी थोड़ी लम्बी होने वाली है...”

“माँ... जय को और... चित्रा को भी बुला दीजिए न... उनके रहने से हिम्मत रहती है!”

“सुहास... मेरी बिटिया रानी... अभी जय को रहने दे...” माँ ने उसके बगल आ कर बैठते हुए कहा, “सभी बड़ी चिंता में थे... और वो तो बहुत ही परेशान था... फिलहाल वो सो रहा होगा या सोने की कोशिश में होगा!”

“ठीक है माँ... उनको रहने दीजिए...”

“... लेकिन मेरी नन्ही गुड़िया यहीं बगल वाले कमरे में है... उसको बुला देती हूँ।”

कह कर उन्होंने बिस्तर के सिरहाने के बगल लगे एक बटन को दबाया। बगल के कमरे से एक बेहद धीमी और मधुर सी आवाज़ आई। कुछ ही पलों में एक परिचारिका नन्ही चित्रा को ले कर हाज़िर थी।

“भूखी तो नहीं है?” मीना ने पूछा।

“जी नहीं, राजकुमारी सा,” उसने चित्रा को मीना की गोदी में देते हुए कहा, “... हम धाय माँ हैं...”

मीना ने उसकी बात को न समझते हुए उस पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।

माँ ने कहा, “बिटिया, ये कह रही हैं कि ये वेट नर्स हैं... और चित्रा को इन्होने दूध पिला रखा है,” फिर परिचारिका की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “कब पिलाया था आखिरी बार?”

“महारानी सा, कोई डेढ़ घण्टे पहले!”

“अच्छी बात है... तुम जाओ और आराम कर लो!”

“जी महारानी सा...” उसने कहा, और प्रियम्बदा को प्रणाम कर के कमरे से बाहर निकल गई।

“तू अपना दूध पिलाती है बच्ची को?”

“जी माँ!”

“वैरी गुड,” माँ ने खुश होते हुए कहा, “... तो फिर पिला दे उसको... समय तो हो गया है अब...”

मीना ने जब चित्रा को स्तनपान कराने के लिए अपनी गोद में व्यवस्थित किया, तब उसको समझा कि चादर के नीचे वो निर्वस्त्र ही थी। शायद उसकी बेहोशी के कारण उसके चुस्त कपड़ों को उतार दिया गया हो। माँ ने भी कोई सफ़ाई नहीं पेश करी, तो वो भी संयत हो गई। नन्ही चित्रा भी शायद दूध के लिए ही मचल रही थी। अपनी माँ के स्तन का स्पर्श मिलते ही उसको समझ आ गया कि उनका अमृत मिलने वाला है। दूध की कुछ बूँदें अंदर जाते ही वो शांत होने लगी।

“जैसी तू सुन्दर सी है, वैसी ही मेरी ये नन्ही चिरैया भी सुन्दर सी है!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा - उनकी बात पर मीना भी मुस्कुरा उठी, “... तुम दोनों की बेस्ट क्वलिटीज़ आई हैं इसमें... आई ऍम सो प्राउड!”

“थैंक यू माँ!”

“अच्छा... तो अब तू अपनी माँ को थैंक यू कहेगी?” माँ ने जिस अंदाज़ से कहा, उस पर मीना को हँसी आ गई।

“आई लव यू माँ...” वो बोली, “सच में... आपको दीदी कह कर वैसा अपनापन नहीं महसूस होता है, जैसा कि माँ कह कर!”

“अरे! माँ को माँ ही तो कहेगी! दीदी क्यों कहेगी?” उन्होंने अपना विनोदपूर्ण व्यवहार जारी रखा, “... अब जल्दी से दो तीन बच्चे और कर ले...”

“माँ!”

“क्या माँ? इतना सब कुछ है ईश्वर का दिया हुआ! ... कोई होना चाहिए न उसका आनंद उठाने के लिए! है कि नहीं?”

मीना फिर से हँसने लगी।

माँ की बातें सुन कर, और नन्ही चित्रा को स्तनपान कराते हुए मीना की उद्विग्नता कुछ कम हुई, और मन थोड़ा हल्का और स्थिर हुआ।

अब उसको समझ में आया कि जिन बातों को वो सपना समझ रही थी, दरअसल उसके जीवन की ही यादें थीं। भूली हुई यादें... पुरानी यादें! उसके राजकुमार की यादें... उसके हर्ष की यादें!

दिल में उसके एक टीस सी उठी। उसने बड़े दयनीय तरीके से माँ की तरफ़ देखा।

अब वो अपने जीवन का कोई रहस्य छुपा हुआ नहीं रहने देना चाहती थी।

शायद माँ इस बात को समझ गईं।

“बिटिया मेरी,” उन्होंने कहना शुरू किया, “कहाँ से शुरू करूँ बताना... यह मैं ख़ुद ही सोच रही हूँ! ... खैर, मैं कुछ कहूँ, उसके पहले मैं ये जानना चाहती हूँ, कि तुझे याद क्या क्या है?”

“जी?” वो थोड़ा सकुचाई, “... मुझे राजकुमार याद हैं...”

“और?”

“... और... उनकी... उनकी... और महाराज महारानी की...” कहते कहते वो चुप हो गई।

कड़वी यादें पुरानी अवश्य हो गई थीं, लेकिन मीना के लिए आज भी उतनी ही कड़वी थीं। शायद अन्य लोगों के लिए उनकी कड़वाहट कम हो गई हो, लेकिन सुहासिनी / मीनाक्षी के लिए तो वो याद पूरी तरह ताज़ा थी।

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, और बोलीं,

“पिताजी महाराज ने तुम दोनों के विवाह के लिए हामी भर दी थी... वो चाहते थे... हम सभी चाहते थे कि तू इस परिवार में बहू बन कर आए... संभव है कि हमारे आराध्यों को भी यही मंज़ूर था... इसीलिए तो तू आई है हमारी बन कर...” कहते कहते उनका मन और उनकी बोली ममता से भर गई, जिसको मीना ने भी महसूस किया।

“माँ, आपकी ममता की छाया में आना तो मेरे लिए सबसे बड़े भाग्य की बात है!”

“न बेटा, भाग्य हमारा है... तेरे कारण इस वंश पर लगा श्राप समाप्त हो गया है!”

“श्राप?” एक पल को वो समझ न पाई।

“हाँ मेरी बच्ची... श्राप!” उन्होंने गहरी साँस भरी, और आगे बोलीं, “लेकिन उसके बारे में बाद में बताऊँगी... पहले शुरू से शुरू करते हैं!”

मीना सतर्क हो कर बैठ गई - न जाने क्या क्या जानने को मिले!

“पिताजी ने तुम दोनों के विवाह के लिए मंज़ूरी तो दे दी थी, लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था!... हम सबको एक असहनीय झटका लगा। बता नहीं सकती कि उससे उबरने में कितना समय लग गया हमको!” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, “... उस समय हालात भी तो सही नहीं थे! रातोंरात जैसे सब बदल गया... जिनको अपना मित्र समझा, अपना माना, वो सभी अजनबी बन गए। ... तेरी हालत भी ठीक नहीं थी। ... तुझे बहुत ही बड़ा सदमा लगा था। ... तू मेरे पास मेरे बच्चे हर्ष की अमानत थी, तो ऐसे कैसे रहने देती तुझे?”

मीना को याद आ रहा था... लेकिन जो याद आ रहा था, उससे वो और भी सकते में आती जा रही थी।

माँ कह रही थीं, “हमको डर सता रहा था कि कहीं कुछ हो न जाए तुझे! हमेशा चहकने वाली लड़की... तू एकदम से गुमसुम सी हो गई थी... न खाने की कोई सुध रहती न पीने की! किसी से कोई बातचीत ही नहीं करती! कई डॉक्टरों को दिखाया... फिर तुझको दिल्ली ले गए। वहाँ के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने हमको सुझाया कि तेरा सेलेक्टिव मेमोरी सप्प्रेशन किया जा सकता है... सदमे वाले समय की बातें, उनकी यादें दबाई जा सकती हैं...”

मीना की साँसें फिर से तेज होने लगीं।

‘क्या क्या हुआ है मेरे साथ!’

“सेलेक्टिव मेमोरी सप्प्रेशन?”
Update #45


माँ ने मीना की हालत देख कर उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया, और ‘हाँ’ में सर हिला कर बोलीं,

“हम मान गए बेटी... क्या करते? हाँलाकि उस समय भी, और अभी भी ये केवल एक एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट ही है। लेकिन हम मरते क्या न करते? तेरी हालत देखी न जाती हमसे! ... तेरे फ्यूचर के लिए हमने इस ट्रीटमेंट के लिए हाँ कर दी... हमने, मतलब तेरे बाबा ने, तेरे भैया ने और मैंने भी!”

उनकी आँखें डबडबा आईं तो उन्होंने अपनी हथेली के पिछले हिस्से से अपनी आँखें पोंछ लीं।

“तूने उस इलाज को बढ़िया रेस्पोंड किया। ... ऐसा लग रहा था जैसे सब अच्छा हो जायेगा। तुझको उस समय की बातें भूल गई थीं। ... शुरू में तो सब ठीक था, लेकिन बाद में ऐसा होने लगा कि अगर तेरे पुराने जीवन का कोई भी तेरे सामने आता, तो तू पुरानी बातें फिर से याद करने लगती, और बेचैन होने लगती थी। ... अगर मैं या तेरे भैया (युवराज हरिश्चंद्र) भी तेरे सामने आ जाते, तो तुझे पुरानी बातें याद आने लगतीं।”

मीना हैरानी से सब सुन रही थी।

“इसलिए डॉक्टरों ने हमको सजेस्ट किया कि हम तेरे सामने आए ही न! दिल टूट गया ये सुन कर... लेकिन क्या करते हम, बच्चे? हमने खुद को तेरा माँ बाप माना - तो अपने बच्ची की भलाई के लिए जो करना पड़ा, सब किया! हमने डिसाइड किया कि अपने हर्ष की अमानत को, अपनी बच्ची को अपने से दूर कर देंगे हम!”

“तो इसीलिए...” मीना बुदबुदाते हुए बोली।

“हाँ बेटे, इसीलिए तुझे लग रहा है कि हमने तुझे छोड़ दिया! लेकिन ऐसा किया नहीं हमने! दिल पर पत्थर रख कर हम अलग हो गए बस! लेकिन हमने खुद से वायदा किया कि भले ही हम तेरे सामने न आयें, लेकिन कभी भी तुझे कोई कमी नहीं होने देंगे... अगर तेरी भलाई इसी में है कि तू हमको भूल जाए, तो हमको सब मंज़ूर है! ... जैसा तूने हमसे प्रॉमिस किया था, उस साल तू पूरे स्टेट में टॉप पर आई थी।” माँ ने बड़े गर्व से बताया, “कितनी ख़ुशी मनाई थी हमने यहाँ... तेरे भैया ने तेरा दाखिला कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज में करवा दिया। और तो और, तेरी मेरिट के कारण तुझको तीनों साल फुल स्कॉलरशिप मिल रही थी वहाँ!”

माँ के चेहरे पर अपार ख़ुशी थी,

“हमने तेरे लिए एक ट्रस्ट फण्ड खोल दिया था...”

यह एक नई बात थी - बाबा ने तो बताया था कि एक चैरिटेबल ट्रस्ट उसको स्कॉलरशिप दे रहा था पढ़ने के लिए। लेकिन ये तो माँ और भैया... मतलब, पिता जी ही थे, जो उसको हर पल सम्हाल रहे थे!

“... और तुझसे दूर रहते रहते भी तेरी हर अचीवमेंट, तेरी हर बात, तेरी हर आवश्यकता के बारे में पता रख रहे थे। ... जानती है बच्चे, मेरे कमरे में तेरी ग्रेजुएशन की तस्वीर भी है...” वो मुस्कुराते हुए आनंद से बोलीं, “... फिर अचानक से न जाने क्या हुआ... तू और तेरे बाबा अचानक से इंग्लैंड से गायब ही हो गए। पता चला कि उन्होंने ट्रस्ट फण्ड भी तुड़वा लिया है, और कहीं बाहर चले गए। कहाँ गए, कुछ पता ही नहीं चला... हमने तो यही सोचा कि शायद काका वापस इण्डिया आ गए हैं... लेकिन बहुत पता करने पर भी कुछ खबर नहीं मिली। ... वैसे भी, इतने बड़े देश में क्या ही पता चलेगा!”

माँ की बात सुन कर मीना के मन में अपराधबोध हो आया।

‘उसके बाबा इनके पैसे ले कर भाग गए!’

“माँ... बाबा ने कहा था कि उनको किसी ने स्पांसर किया है अमेरिका जाने के लिए... मेरा नाम भी ऑफिशियली बदलवा दिया... समझ में ही नहीं आया कि क्यों!” उसने दुःखी स्वर में कहा, “... मुझे नहीं पता था कि वो आपका पैसा ले कर भागे थे!”

“नहीं बेटे, ऐसा मत बोल! ... उन्होंने कुछ सोच कर ही वो कदम उठाया होगा। वैसे भी, वो सब तेरे ही पैसे थे... ट्रस्ट फण्ड में तेरे लिए पैसे थे, और हमारी जागीर में भी! तेरे भैया ने वसीयत में बहुत कुछ तेरे नाम लिखा हुआ है... और न भी लिखा होता, तो भी ये सब कुछ तेरा ही होता...”

“ओह माँ! आई ऍम सो सॉरी! सो सॉरी!” मीना की आँखों से आँसू उतर आये।

“अरे न न! ऐसे नहीं करते मेरी बच्चा... तुमको किसी भी बात के लिए सॉरी कहने की ज़रुरत नहीं! ... जैसा कि मैंने पहले ही बताया, तुम इस परिवार का हिस्सा हो, और इसकी जागीर का भी!”

माँ ने उसको चूम कर कहा, “अच्छा है चलो... आज पता चल गया कि पिछले सत्तरह अट्ठारह सालों से तू अमेरिका में ही है! हमारे दिमाग में कभी यह ख़याल ही नहीं आया कि तू वहाँ हो सकती है! ... वैसे आ भी जाता, तो भी कैसे ढूंढते तुझको वहाँ!”

“... हाँ माँ! इंग्लैंड से आ कर एक साल मैंने बस एक छोटा मोटा सा काम किया यहाँ।” उसने आँसू पोंछते हुए कहा, “... फिर, ऍमबीए की पढ़ाई करने दो साल न्यू यॉर्क में रही।”

“हाँ... आदि ने बताया था कि मेरी होने वाली बहू बहुत पढ़ी लिखी है! ... मुझे बहुत गर्व है तेरे अचीवमेंट्स पर!”

मीना एक क्षण मुस्कुराई, फिर उदास स्वर में बोली, “लेकिन बाबा जल्दी ही वापस इंडिया चले गए थे। अब समझ में आ रहा है मुझको... शायद उनको गिल्ट फ़ील हो रहा होगा, कि आपके साथ उन्होंने ऐसी अहसान फरामोशी करी!”

“नहीं बच्चे... मैंने कहा न? ... ऐसे मत बोल! ... लेकिन वो कहाँ रह रहे थे? ... उनसे फिर कभी मुलाक़ात ही नहीं हुई!”

“बहुत समय तक रायपुर में थे! ... वहाँ किसी कल्चरल ग्रुप में थे वो, शायद। ... शायद इसलिए लगाया मैंने कि मुझे नहीं पता कि उन्होंने मुझसे क्या क्या झूठ कहा है! ... फिर वहाँ से वो बहादुरगढ़ आ गए! वहाँ एक छोटा सा घर ले लिया था उन्होंने...”

जब माँ को समझ नहीं आया कि बहादुरगढ़ कहाँ है, तो मीना ने बताया, “दिल्ली के पास एक छोटा सा शहर है, माँ!”

“ओह... काश वो एक बार मिल लेते हमसे!” माँ ने निराश हो कर कहा, “हमने तो उनको अपना पिता ही माना!”

“वही तो माँ! शायद इसी बात का गिल्ट रहा हो उनको!” मीना भी अपने पिता के बर्ताव से निराश थी, “मेरे साथ भी कहाँ रहे वो! ... मैंने बहुत बार कहा कि आ कर मेरे साथ रहें, लेकिन उन्होंने तो जैसे देश छोड़ कर न जाने की कसम खा रखी थी। ... फिर, कोई पाँच साल पहले उनको कैंसर हो गया... तब भी वो नहीं आए! इलाज के लिए भी नहीं! ... और तो और, मुझको भी इंडिया आने से मना किया हुआ था उन्होंने! क़सम दे दी थी! ... लेकिन फिर मन नहीं माना! उनकी डिमाइस के दो महीने पहले आई थी... और तब से बस अभी ही वापस आई हूँ!”

“ओह! आई ऍम सॉरी बेटा... बाबू जी की मृत्यु के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था हमको।”

“कैसे पता चलता आपको माँ? उन्होंने तो सभी से सब कुछ छुपा रखा था न!”

माँ ने केवल हाँ में सर हिलाया।

थोड़ी देर चुप्पी रही। मीना कुछ पूछना चाहती थी, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि वो पूछे कैसे।

“क्या बात है बेटा? ... कोई परेशानी है? कोई बात है जो तू पूछना चाहती है?”

“हाँ माँ!”

“पूछ न मेरी बच्ची? ... मुझसे ऐसे हिचकिचाएगी?”

“आप... आपने मेरी फ़ोटो देख कर मुझे पहचान लिया था न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... तुरंत!” माँ मुस्कुरा उठीं - जैसे वो उस बात को याद कर के आनंदित हो उठीं हों, “... अपनी लाडली बिटिया रानी को कैसे न पहचानती? ... मेरी प्यारी बिटिया रानी... सच है कि तू पहले के मुकाबले और भी अधिक ख़ूबसूरत हो गई है, लेकिन है तो मेरी ही बच्ची न? अपने हृदय के अंश को कैसे न पहचानती?”

“फिर भी आपने कुछ कहा नहीं!”

“किस बारे में?”

“मेरी और जय की शादी के बारे में... मेरा मतलब है कि पहले आप राजकुमार जी और मेरी शादी कराना चाहती थीं...”

“ओह! अच्छा अच्छा... देख बच्चे, तू हमको इस वंश की बहू के रूप में चहिए थी! या तो मेरे देवर की पत्नी बन कर आती, या फिर मेरे बेटे की! दोनों ही रूप में, तू रहती तो मेरी बहू ही न...”

मीना पहली बार लज्जा से मुस्कुराई।

माँ की बातों, और उनके स्नेह से उसके दिल को बहुत आराम मिल रहा था। लेकिन एक दो और बातें थीं, जो वो पूछना चाहती थी।

“माँ... भैया... आई मीन, पिता जी...?”

“वो नहीं रहे बेटा... कोई सात साल पहले उनका देहांत हो गया।”

“आई ऍम सॉरी माँ!”

“कोई बात नहीं बच्चे! होनी को कौन टाल सकता है?”

“माँ?”

“हाँ बच्चे?”

“एक और सवाल है!”

“पूछ न!”

“तो... अह... आदित्य आपके बेटे हैं?”

“हाँ... उसका नाम ज्योतिर्यादित्य है, लेकिन अमेरिका में तो सब छोटे नाम रखते हैं न!” माँ ने विनोदपूर्वक कहा, “ज्योतिर्यादित्य से आदित्य या आदि बन गया वो... और, तेरा जय भी मेरा बेटा है... उसका नाम धनञ्जय है! धनञ्जय से जय बन गया वो!”

यह बात उसको पता थीं। लेकिन सवाल कुछ और था,

“लेकिन... लेकिन... माँ आप प्लीज़ बुरा मत मानिएगा...”

“पूछ न बेटे!”

“वो... वो... वो तो पिता जी को ‘चाचा जी’ कह कर बुलाते हैं... फिर वो आपके... बेटे... कैसे...?”

ठिठकने की बारी अब माँ की थी। वो कुछ देर के लिए चुप हो गईं।
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
मीना और सुहासिनी एक ही है सुहासिनी की यादास्त मिटा दी गई थी इसलिए उसे कुछ भी याद नहीं था जो उसके लिए सही था आज वो अपनी एक नई जिंदगी जी रही है रानी प्रियम्बदा को पहले ही पता लग गया था की मीना कोन है
 

Sanju@

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Update #46


“माँ?” मीना को उत्तर की प्रतीक्षा थी।

“सुहास... मेरी बेटी, दरअसल, तू सही है। ... तेरा जय... मेरा और तेरे पिता जी का बेटा नहीं है...”

“फ़...फ़िर...?”

“वो हर्ष का बेटा है...” माँ ने कुछ देर चुप रह कर कहा।

“र...राजकुमार जी का?”

माँ ने ‘हाँ’ मेर सर हिलाया।

“प... पर...”

“व्वो... वो तो मेरे साथ...”

“सुहास... बेटा... मैं जो कहने जा रही हूँ, उसको ध्यान से, और धैर्य से सुनना...”

मीना दो पल को साँस थाम कर बैठ गई - उसका मन अजीब सा होने लगा था, फिर से।

माँ ने एक गहरी साँस भरी, “... जय जैसे हर्ष का बेटा है... वैसे ही वो... वो तेरा भी बेटा है...”

मानों एक साथ ही सैकड़ों बिजलियाँ गिर गईं हों मीना पर!

“क्या!” उसका चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया!

‘यह कैसा खुलासा है!’

“म्म्ममाँ... ये आप क्या कह रही हैं?” उसको यकीन ही नहीं हुआ कि माँ ने ये क्या अनहोनी कह दी।

“सच कह रही हूँ। ... तुझे अपने अतीत का पूरा पूरा अभी भी याद नहीं आया क्या बच्चे?”

बहुत संभव है यह! डॉक्टरों ने मीना का ‘इलाज़’ कर के उसके जीवन की ‘उस समय’ की घटनाओं की याददाश्त दबा या भुला दी थी। हर्ष की मृत्यु, उसके होने वाले सास ससुर की मृत्यु, और फिर उसकी खुद की गर्भावस्था और प्रसव! लेकिन जब दिमाग में एक गुत्थी सुलझती है, तो बाकी बातें स्वयं ही खुलती चली जाती हैं।

“मेरा बच्चा...” उसको अचानक ही याद हो आया।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जय... धनञ्जय... तेरा ही है...”

ऐसा बड़ा झटका मीना को अपने पूरे जीवन में नहीं लगा था। कुछ पलों के लिए वो संज्ञा शून्य हो गई - न दिमाग काम कर रहा था, और न ही शरीर!

“बहू... सम्हाल अपने आप को!” उसको होश तब वापस आया, जब माँ ने उसको झिंझोड़ा, “बच्ची गिरने वाली थी अभी!”

“अ...ह...हाँ?”

“बच्ची अभी तेरी गोदी से गिरने वाली थी, सुहास...”

“माँ... क्या आप सच कह रही है?”

उन्होंने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कैसा बड़ा पाप हो गया माँ...”

“पाप?”

“और नहीं तो क्या! ... अपने ही बेटे से... अब मैं अपना ही सामना कैसे करूँगी माँ? ... अपने जय का सामना कैसे करूँगी...?”

“क्या पागलों जैसी बातें कर रही है?”

“माँ मैं मर जाऊँगी... इतनी शर्म के साथ मैं नहीं जी...”

मीना का वाक्य समाप्त होता, उसके पहले ही उसके गाल पर एक थप्पड़ आ कर लगा,

“ख़बरदार जो आइंदा मरने की बात अपनी ज़बान पर लाई भी,” माँ ने सख़्त स्वर में उसको हिदायद दी, “... तुझे क्या ज़िन्दगी इतनी सस्ती लगती है, जो मर जाएगी? ... ये बेहूदा बात बोलने से पहले एक बार सोचा भी कि तेरे बिना जय का क्या होगा? चित्रा का क्या होगा? ... हमारा क्या होगा? हम कोई नहीं हैं तेरे?”

मीना की आँखों से आँसू ढलक आए, लेकिन रुलाई की आवाज़ न आई। वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोना चाहती थी, लेकिन उस थप्पड़ की मार सीधा उसके दिल पर आ कर लगी। उसको उम्मीद नहीं थी कि इतना प्यार करने वाली माँ उसको मार भी सकती हैं।

फिर उसको अपनी कही हुई बात याद आई, तो उसको समझा कि सही ही किया माँ ने। मूर्खता का कोई इलाज़ तो होना चाहिए न!

“... ले... लेकिन माँ... पाप तो हो गया न...”

“अपने प्रेम को पाप का नाम देती है? ... ये इतनी सुन्दर सी, इतनी प्यारी सी गुड़िया पाप का परिणाम है?”

मीना से कुछ कहते न बना।

“जब तेरे दिल में जय के लिए प्यार उमड़ रहा था, तब क्या वो पाप लग रहा था तुझे? ... जब तुम दोनों साथ होते हो, तो क्या तुझे उसका साथ पाप लगता है? ... इस बच्ची को दूध पिलाते समय क्या तुझे पाप महसूस होता है? ऐसा लगता है कि पाप का परिणाम है?”

मीना को रुलाई आ गई। वो ‘न’ में सर हिलाते हुए रोने लगी।

माँ क्षत्राणी अवश्य थीं, लेकिन पत्थर-दिल नहीं। उन्होंने लपक कर मीना को अपने सीने में छुपा लिया,

“प्रेम करना कब से पाप हो गया, बच्चा?”

कुछ क्षण रोने के बाद मीना बोली, “प्रेम करना पाप नहीं है माँ... लेकिन अपने ही बेटे से...”

“एक बात बता बच्चे,” माँ ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से पूछा, “... जब तूने पहली बार जय को देखा था, तब तेरे मन में क्या उसके लिए माँ की ममता वाले भाव उमड़े थे, या प्रेमिका वाले?”

माँ की बात पर मीना को जय के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गई।

अद्भुत सा आकर्षण उसने महसूस किया था उस दिन - पहली नज़र में ही उसको ऐसा लगा था कि जय अपना है। हो सकता है कि चूँकि दोनों की डोर इस क़दर जुडी हुई थी, इसलिए वैसा महसूस हुआ हो मीना को, लेकिन हाँ, यह तो सच ही है कि जय को देख कर उसके अंदर माँ वाले भाव तो नहीं आये थे। भाव आये थे प्रेमिका वाले ही। और उसके बाद भी - बिस्तर में अंतरंग क्षणों में मीना को लज्जा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण महसूस होता है, जब जय उसके अंदर प्रविष्ट होता है। उससे एकाकार हो कर मीना पूर्ण हो जाती है, आनंदित हो जाती है। इन बातों को झुठलाया तो नहीं जा सकता।

लेकिन,

“... लेकिन माँ... अब ये सब जानने के बाद...”

“क्यों? क्या बदल गया ऐसा?”

“अब मैं जय का सामना कैसे करूँगी माँ?”

माँ शायद कुछ और कहना चाहती थीं, लेकिन अंत समय में उन्होंने कुछ सोच कर कुछ और ही कहा,

“देख बच्चे, तूने उसको जना ज़रूर है, लेकिन तू उसकी माँ नहीं है! ... उसकी माँ तो मैं ही हूँ, और मैं ही रहूँगी... तू उसकी पत्नी है! और उसके इस बच्चे और होने वाले बच्चों की माँ है! ... इसलिए मेरी सलाह तो यही रहेगी कि तू उसके साथ वैसी ही रह, जैसी कि अभी है...”

“... लेकिन... अपने बेटे के साथ...”

“मेरी लाडो... एक बात समझ ले... तू अब सुहास नहीं है... मीना है, मीनाक्षी... राजकुमारी मीनाक्षी... मेरे बेटे जय की पत्नी!” माँ ने रुक रुक कर कहा - जैसे वो सुनिश्चित करना चाहती हों कि मीना के मन में कोई संदेह न शेष रहे, “... उसको मैंने अच्छे संस्कार दिए हैं... मैंने उसके अंदर यह बात कूट कूट कर भरी है कि किसी लड़की को ग़लत नज़र से न देखे... जानती है? तुझसे मिलने से पहले तो उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी... तू ही पसंद आई उसको। तुझी से उसने प्रेम किया, और तुझी से शादी भी!”

मीना जानती थी यह बात। और वो स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मानती थी इसीलिए।

माँ कह रही थीं, “तुम दोनों का जोड़ा ईश्वर ने बनाया है... हम बस यह चाहते हैं कि तुम दोनों विधिपूर्वक पूरे उम्र के लिए साथ में बँध जाओ... तू उसकी कानूनन पत्नी है... अब धर्मपत्नी बन जा...”

“पर माँ... कैसे करूँगी ये सब...”

“जैसे अभी तक करती आई है! ... देख बच्चे, तुझ पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन जय और चित्रा तेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं, और तू हमारे जीवन का! ... मेरे लिए तू मेरे जय की पत्नी है... और यह बात बदलेगी नहीं।”

मीना कुछ न बोली।

“सोच ले! ... लेकिन एक बात समझ ले बच्चे, तू और जय आपस में बहुत प्रेम करते हैं... अब यही प्रेम बस और बढ़ते रहना चाहिए... कम नहीं होना चाहिए! ... ईश्वर ने कुछ सोच कर ही तुम दोनों को मिलाया होगा...”

उसी समय दरवाज़े पर बहुत हल्की सी दस्तख़त हुई।

“माँ?” जय की आवाज़ थी।

“आ जा बेटा... बहू उठ गई है...”


*


जय धीरे से दरवाज़ा खोल कर कमरे के भीतर आया और वापस बंद कर के अपनी माँ और पत्नी के पास आ गया।

उसको देख कर मीना की धड़कनें बढ़ गईं। क्या बोले वो जय से, क्या करे - उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

“आ जा बेटा...” माँ ने जय से कहा, और फिर सामान्य स्वर में मीना से बोलीं, “... जानती है बहू... ये तो तेरे पास से जा ही नहीं रहा था। ये तो मैंने ही जबरदस्ती कर के भेजा इसको कि सो जा कुछ देर... बहू को मैं सम्हाल लूँगी। तब गया...”

“माँ, नींद ही नहीं आई... चिंता लगी हुई थी न!”

“क्यों नहीं होगी चिंता... तू इसका पति है, और पति को अपनी पत्नी की चिंता, उसकी देखभाल तो करनी ही चाहिए...” माँ ने ार्थपूर्वक कहा - जैसे कि मीना को सुना रही हों, और फिर मीना के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, “अच्छा बहू, मैं चलती हूँ... कुछ देर आराम कर लूँ!”

कुछ ही देर में जय, चित्रा, और मीना कमरे में अकेले हो गए।


*


“मेरी जान,” जय बोला, और उसने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया, “... आई वास सो वरीड... क्या हो गया था तुमको?”

“पता नहीं...” हमेशा की तरह ‘जान’, ‘माय लव’, ‘हनी’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग नहीं किया मीना ने - उसको हिचक सी महसूस हो रही थी, “शायद ट्रैवेलिंग की वीकनेस हो... यहाँ की हीट... ऑर परहैप्स अ कॉम्बिनेशन ऑफ़ द टू...”

“हम्म... डॉक्टर ने भी यही सस्पेक्ट किया है... लेकिन तुम बहुत देर तक अनकॉन्शियस रही...”

“कितनी देर?”

अबाउट सिक्स सेवन आवर्स...”

“बाप रे...”

“लेकिन कोई चिंता वाली बात नहीं थी - तुम्हारे वाइटल्स बढ़िया थे, और तुमको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे तुम गहरी नींद में हो, और कोई सपना देख रही हो...” जय ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा।

मीना मुस्कुराई।

जय के साथ अभी भी वही कोमलता महसूस हो रही थी उसको, जो यहाँ आने से पहले थी। क्या हो रहा था ये सब, क्यों हो रहा था ये सब - सारी बातें गड्ड-मड्ड हो गई थीं मीना के मन में!

“सपना ही देख रही थी... लेकिन जो देखा, वो हक़ीक़त के जितना ही सुन्दर था...” वो बोली।

“अच्छा जी? ऐसा क्या देख लिया?”

मीना के होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गई, “अभी नहीं... फिर कभी बताऊँगी...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना बोली।

जय मुस्कुराया।

जय का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मीना मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थी। इस समय भी कोई अपवाद नहीं था। जय के लिए जैसा प्रेम उसने अपनी पहली मुलाकात में महसूस किया था, आज माँ के खुलासे के बाद भी, वो वैसा ही था। क्या पता, अब और भी प्रगाढ़ हो गया हो।

“कैसा लग रहा है मेरी राजकुमारी को?”

आई ऍम गुड... माय लव,” मीना ने आख़िरी दो शब्द थोड़ा रुक कर जोड़े, “आई थिंक आई विल बी ऑलराइट...”

“हाँ... चिंता न करो! ... तुमको कल रेस्ट करना है, फिर इस्टेट दिखाएँगे तुम्हे!” जय ने उत्साह से बताया, “बहुत से लोग तुमसे मिला चाहते हैं... नई राजकुमारी से मिलने को बहुत से लोग बेक़रार हैं...”

जय की इसी अदा पर तो वो फ़िदा थी। चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कैसा भी विचार हो उसके मन में, जय उसके होंठों पर, और उसके मन में मुस्कान ला ही देता था।

“... और माँ ने बताया है कि एक सप्ताह बाद की तारीख़ निकली है हमारी शादी की...”

यह सुन कर मीना की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“फिर हम लीगली मैरीड कपल से, रिचुअली मैरीड कपल बन जायेंगे...”

आई वुड लव दैट...” मीना ने कोमलता से कहा।

“सच में?”

“हनी?” मीना बोली।

“हाँ?”

प्लीज़ मेक लव टू मी?”

“अभी?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय के आलिंगन में आ कर मीना पिघल गई। इससे सुख वाली जगह कोई नहीं है संसार में - उसको तुरंत ही समझ में आ गया। कोई पंद्रह मिनट के लम्बे फ़ोरप्ले के बाद जब जय मीना के अंदर प्रविष्ट हुआ, तो मीना को कोई पहले के और अभी के अनुभव में कोई अंतर नहीं महसूस हुआ। ये उसका जय ही था... उसका प्यार... उसका हस्बैंड! उसको वो बहुत प्यार करती है... और करती रहेगी। कोई भी बात इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

'हाँ, वो जय की धर्मपत्नी बनेगी!'

*
जय मीना यानी सुहासिनी और हर्ष का बेटा है तो इस श्राप का अंत एक मां बेटे के पति पत्नी बनने से हुआ है
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
मीना और सुहासिनी एक ही है सुहासिनी की यादास्त मिटा दी गई थी इसलिए उसे कुछ भी याद नहीं था जो उसके लिए सही था आज वो अपनी एक नई जिंदगी जी रही है रानी प्रियम्बदा को पहले ही पता लग गया था की मीना कोन है

जी भाई

जय मीना यानी सुहासिनी और हर्ष का बेटा है तो इस श्राप का अंत एक मां बेटे के पति पत्नी बनने से हुआ है

बिलकुल भी नहीं।
और, कहानी का अंत नहीं हुआ! आप लोगों को ऐसा क्यों लग रहा है?
अपडेट 47 आ चुका है, फिर भी! 😥
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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Update #47


अपनी प्रवृत्ति के विपरीत मीना सुबह बहुत देर से उठी। कई कारण थे - सबसे बड़ा कारण था कि अचानक से ही अमरीका से भारत आने के कारण शरीर की समय-सारिणी में अप्राकृतिक अंतर आ जाता है। कुछ लोगों को दो तीन दिन ही लगते हैं उसको ठीक करने में, और कुछ लोगों को कई कई दिन लग जाते हैं।

मीना ने महसूस किया कि उसके पूरे शरीर में बड़ी मीठी सी अलसाहट थी और मीठा मीठा सा दर्द हो रहा था! यह बड़ी ही परिचित सी अलसाहट और पीड़ा थी। यह परिणाम था कल रात उसके और जय के बीच चले रति-युद्ध का! आँखें उसकी अभी भी खुली नहीं थीं - लेकिन नींद अब जा चुकी थी। उठते ही सबसे पहली याद उनके कल रात के सम्भोग की ही आई! एक तरह से एक स्पेशल रात थी कल की! इतने सारे अविश्वसनीय खुलासे हुए। शुरू में तो उसको लगा था कि उसका जीवन पूरी तरह से बदल जायेगा। लेकिन इस समय, जय के बगल लेटी हुई, वो समझ रही थी कि उसके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया था, और न ही उस बारे में सोचने की कोई आवश्यकता है!

अंततः मीना ने अपनी आँखें खोलीं।

उसने देखा कि वो और जय एक दूसरे से गुत्थमगुत्थ हो कर लेटे हुए थे। पूर्ण नग्न! उसने देखा - जय अभी भी सो रहा था। जय स्वस्थ और मज़बूत कद-काठी का युवक अवश्य था, लेकिन वो भारी नहीं था। इस कारण से सम्भोग के दौरान उसकी चंचलता और भी बढ़ जाती थी, और असंभव तरीके और असंभाविक आसनों में वो मीना के साथ प्रेम-लीला रचता था। आनंद आता, लेकिन मीठी मीठी पीड़ा भी होती मीना को उस कारण। लेकिन उसी पीड़ा में ही तो रति का सुख है!

कल रात की बात फिर से याद आने पर वो मुस्कुराई। फिर उसने अपने बगल में देखा - नन्ही चित्रा अभी वहाँ नहीं थी। शायद कोई उसको रात में वहाँ से उठा ले गया था। अपनी प्राइवेसी में ऐसी दखल देख कर उसको एक पल को बुरा लगा, फिर अगले ही पल उसको महसूस हुआ कि किसी परिचारिका ने ही उठाया होगा चित्रा को - उसकी देखभाल करने के लिए! बहुत संभव है कि यह इसलिए किया गया था कि वो और जय ठीक से सो सकें। यह विचार आते ही वो संयत हो गई, और उसको अच्छा भी लगा।

बहुत ही ठीक से सोई वो! सर अभी भी थोड़ा भारी था, लेकिन वो किसी चिंता का विषय नहीं लग रहा था। उसका अंगड़ाई लेने का मन हो रहा था, लेकिन जय के जागने की चिंता के कारण वो बिस्तर पर यूँ ही पड़ी रही! लेकिन कोई कब तक यूँ ही, अकारण बिस्तर पर पड़ा रह सकता है? हार कर वो उठने को हुई। उसके उठने के कारण हुई हलचल से जय भी जागने लगा। आधी नींद और आधी जागने की अवस्था में जय ने, बिस्तर से उठती हुई मीना का हाथ पकड़ कर वापस बिस्तर पर लिटा लिया।

“कहाँ चलीं आप?” उसने उनींदी आवाज़ में, लेकिन मज़ाकिया और मीना को छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा।

“अरे उठना चाहिए... बहुत देर हो गई है!” मीना ने कहा।

“क्या टाइम हो रहा है?” जय अभी भी उनींदा था।

“आठ बजने वाले हैं...”

“बस?”

“हा हा... क्या बात है हुकुम?” मीना ने इस मीठी सी बातचीत का आनंद उठाते हुए कहा, “आज दिन भर आलसी बने रहने का इरादा है क्या?”

“आलसी नहीं... कुछ और...”

“क्या?” मीना समझ रही थी कि जय क्या चाहता है।

“आपका आशिक़...” कह कर जय ने उसको अपने ऊपर खींच लिया।

“आऊ... माँ आस पास ही होंगी, और आपको आशिक़ी सूझ रही है?” मीना जय के आलिंगन में फिर से समाती हुई खिलखिलाई।

“माँ का ही तो आदेश है...” जय उसके होंठों को चूमते हुए बोला।

“अच्छा जी?”

“हाँ,” जय मीना के स्तनों को दबाते सहलाते कहने लगा, “वो चाहती हैं कि हम दोनों जल्दी जल्दी तीन चार और बच्चे कर लें... ऐसा इम्पोर्टेन्ट काम बिना आशिक़ी किये तो नहीं होने वाला न?”

“हा हा हा...”

दबाने से मीना के चूचकों में से दूध की कुछ बूँदें निकल आईं। जय को अचानक से न जाने क्या सूझी, उसने मीना का एक चूचक अपने मुँह में भर लिया और उसको अधीरतापूर्वक पीने लगा। फोरप्ले और सम्भोग करने में जय थोड़ा शर्मीला ही था! बातें वो बड़ी बड़ी कर लेता था, लेकिन उन बातों के क्रियान्वयन में वो थोड़ा शरमा जाता था... उत्साह से करता था, लेकिन फिर भी उसको थोड़ी शर्म सी रहती। फोरप्ले के दौरान मीना का स्तनपान करना कुछ वैसा ही काम था। जय का मानना था कि माँ का दूध उसके बच्चों के लिए होता है, और बच्चों के बाप को उसमें सेंध-मारी नहीं करनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि उन दोनों के बीच में यह क्रिया होती ही नहीं थी! अवश्य होती थी - लेकिन बहुत कम!

इसलिए जब यूँ अचानक से जय उसका दूध पीने लगा, तो मीना के मन में संदेह हुआ कि कहीं जय को उनके रिश्ते के बारे में पता तो नहीं चल गया? लेकिन मीना ने महसूस किया कि जिस अंदाज़ में जय उसका स्तन पी रहा था, उसमें कोई परिवर्तन नहीं था।

कुछ देर बाद मीना बोली, “हुकुम, आज तो आप बड़े मूड में लग रहे हैं!”

“आप जब भी हमारे पास रहती हैं, तब मूड बन ही जाता है...”

“झूठे... आअह्ह्ह...”

“अरे इसमें झूठ क्या है! ... मूड तो बन ही जाता है जब मेरी जान मेरे पास रहती है... लेकिन हर समय बने हुए मूड पर एक्शन तो नहीं लिया जा सकता न...”

“बातें बनाने में आप एक्सपर्ट हैं...”

“और भी कामों में एक्सपर्ट हूँ मेरी जान...” उसने कहा, और एक बार फिर से उसका लिंग मीना की योनि में प्रविष्ट होने लगा।

“हा हा हा... आआह्ह्ह्हह... आपको बस मौका चाहिए मुझे सताने का!” मीना ने आनंद से कराहते हुए कहा।

बरसों का शोध कहता है कि सुबह सुबह का, मतलब, सो कर उठने के तुरंत बाद होने वाला सम्भोग, सबसे अधिक सुखकारी और आनंददायक होता है। आपका शरीर रात भर आराम कर चुका होता है, और उसमें नई ऊर्जा रहती है। साथ ही साथ जननांगों में अधिक रक्त भी बह रहा होता है। इसलिए खेल देर तक चलता है, और बहुत आनंददायक होता है।

“सताना नहीं जानेमन... आपको प्यार करने का,” जय ने नीचे से धक्के लगाते हुए कहा, “वैसा प्यार जिस पर आपका हक़ है...”

इसके बाद किसी को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी। दोनों अपने खेल में मगन हो गए।

मीना को कल रात भी, और इस समय भी, जय के साथ सम्भोग करते हुए हमेशा के जैसा ही आनंद आ रहा था। कोई परिवर्तन नहीं आया था। मीना को एक दो बार ख़याल अवश्य आया कि उसको कितनी सहजता थी जय के संग की! एक बार भी उसके मन में नहीं आता है कि जय उसका बेटा था। वो दृष्टिकोण पैदा ही नहीं हो सकता! कैसे हो सकता है? उसको प्रसव का कुछ याद नहीं, आधी गर्भावस्था का कुछ याद नहीं! ऐसे में जय के लिए पुत्र-मोह कैसे आ सकता है उसको? माँ बिल्कुल सही कहती हैं - जय उसके शरीर से अवश्य उत्पन्न हुआ था, लेकिन उसका बेटा नहीं है। बेटा वो माँ का ही है! किशोरवय नासमझी में वो गर्भवती अवश्य हो गई, लेकिन माँ बनने का शऊर तब थोड़े ही था उसमें। उस समय तो उसको लड़की बने रहने का भी शऊर नहीं था। बच्चों को, उनकी नासमझी में किए गए शैतान कार्यों का ता-उम्र दण्ड नहीं दिया जाता! किसी को भी नहीं! उनको सुधरने का, और फिर से नए सिरे से जीने का अवसर दिया जाता है। वही अवसर मीना को भी तो मिला हुआ था!

फिर अचानक से उसके मन में एक और ख़याल आया, ‘जय में राजकुमार का भी तो अंश है!’

‘राजकुमार का अंश!’

हो सकता है कि ईश्वर ने उसे राजकुमार हर्ष का प्यार देने के लिए ही यह सारी लीला रची हुई हो? नियति ने शायद यही सोचा हुआ हो, कि उसको राजकुमार अवश्य मिलेंगे - चाहे किसी भी रूप में! और देखो, मिल भी गए! इस ख़याल से उसके मन में जय के लिए और भी प्यार उमड़ आया।

‘जो भी हो,’ उसने सोचा, ‘उसके जीवन में जय का रूप नहीं बदलेगा! ... नहीं बदल सकता! ... कभी नहीं!’

सच में, जय उसके जीवन में उसके पति के अतिरिक्त और किसी अन्य रूप में नहीं रह सकता था। वो उसको बहुत प्रेम करती थी, और जय भी उसको बहुत प्रेम करता था। नन्ही चित्रांगदा उनके प्रेम का प्रसाद थी। और वो चाहती थी, कि चित्रा के ही जैसे अन्य कई वंश-पुष्प उसकी कोख से जन्म लें! उसके मन में यही सारे विचार आ रहे थे। अंत में उसने सोचा कि माँ द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन को भुला देना ही उचित है। उसी में सभी की भलाई थी।

उसने संतोष से गहरी साँस ली, जो कि एक आनंद वाली कराह के रूप में बाहर निकली। उसका शरीर वीणा की तरह बज रहा था - हर तार में अब झंकार निकलने लगी थी। उसके रोम रोम में आनंद की लहर दौड़ रही थी। उधर जय पूरे आनंद और उत्साह से मीना के नीचे से धक्के लगाता जा रहा था। वो भी समझ रहा था कि मीना को बहुत आनंद मिल रहा था।

कोई एक घटिका तक दोनों का खेल चला। तब जा कर जय मीना के अंदर ही स्खलित हो गया। उस समय तक मीना भी एक ज़ोरदार और दीर्घकालिक चरम आनंद की प्राप्ति कर चुकी थी।

संतुष्ट हो कर मीना जय के ऊपर ही ढेर हो गई। दोनों ने कुछ समय अपनी अपनी साँसें संयत करीं।

फिर जय ने ही चुप्पी तोड़ी, “मज़ा आया मेरी राजकुमारी जी?”

“उम्म्म म्मम...” मीना के गले से संतोष भरा कूजन निकला।

“चित्रा को कोई ले गया है क्या रात में?” कुछ देर बाद जय ने फिर पूछा।

“लगता तो ऐसा ही है, हुकुम!”

“हम्म...”

कुछ देर दोनों वैसे ही बिस्तर पर पड़े रहे। मीना जय के ऊपर, उसको प्रेम से अपने आलिंगन में लिए हुए।

“उठें अब?” अंत में मीना ने ही कहा।

“हाँ... अब तो उठना ही पड़ेगा!” जय ने हँसते हुए कहा, “सुबह का कोटा पूरा... दोपहर, और रात में फिर से करेंगे!”

“हा हा हा हा...” उसकी शरारत भरी बात पर मीना खिलखिला कर हँस दी।

*
avsji भाई, बहुत सुंदर चित्रण (लेखन)... आंखों के आगे चलचित्र सा चलता रहा... अद्भुत। सदैव से ही आपकि लेखन कला का रसिक रहा हूं। चाहे ग़ौरी, मिनाक्षी, सुमन, काजल जैसे पात्र हों या उनके मन-मस्तिष्क और मनोबल को बढ़ावा देने वाले कथानक।

आपकि लेखन कला की एवं कथानकों कि विशेष बातें:
* नायक से बड़ी उम्र कि नायिकाएं।
* नायिकाओं का बड़ी उम्र में गर्भधारण।
* नायकों द्वारा नायिकाओं के स्तनपान।

* कुछ कथानकों में पारिवारिक संभोग दृश्यों में भी आपका कुशलतापूर्वक लेखन।

तथापि आप माता-पुत्र अथवा भाई-बहन के संभोग दृश्यों कि कथानक में चित्रण लेखन से बचे रहे थे।
{आप और komaalrani दोनों ही इस वर्जित रेखा को आंशिक रूप से छु कर वापस आ जाते थे।}

परन्तु नवीन अद्यतन में आपने यह वर्जना भी तोड़ दी। बहुमान।

इस प्रकार के लेखन से हम पाठक ने सिर्फ परिचित हैं वरन् कुछ तो आते ही है ऐसे कथानक पठन के लिए। मैं स्वयं भी अपवाद नहीं हुं।

परन्तु जब भी ऐसा होता है तो कहीं दबा हुआ टिप्पणिकार पाठक मुर्छा से जाग जाता है। आशा है अधिक नहीं लिख गया।

जय जय
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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avsji भाई, बहुत सुंदर चित्रण (लेखन)... आंखों के आगे चलचित्र सा चलता रहा... अद्भुत। सदैव से ही आपकि लेखन कला का रसिक रहा हूं। चाहे ग़ौरी, मिनाक्षी, सुमन, सन्ध्या, एवं नीलम जैसे पात्र हों या उनके मन-मस्तिष्क और मनोबल को बढ़ावा देने वाले कथानक।

बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय भाई! :)

आपकि लेखन कला की एवं कथानकों कि विशेष बातें:
* नायक से बड़ी उम्र कि नायिकाएं।

सत्य है! न जाने क्यों, ऐसा हो ही जाता है।
वैसे, अमर और लतिका (मोहब्बत का सफर); अखिलेश और गायत्री (आज रहब यही आँगन); अमर और संध्या / नीलम (कायाकल्प); मनीष और चित्रा (पूर्ण अपूर्ण), के सम्बन्ध में यह बात पूरी तरह से उलट जाती है :)

* नायिकाओं का बड़ी उम्र में गर्भधारण।

अमूमन महिलाएँ 40 - 42 तक तो आराम से गर्भ-धारण कर ही सकती हैं, और करती भी हैं।
आज कल तो यह चलन बढ़ गया है, क्योंकि अधिकतर लड़कियाँ career women हो गई हैं।

* नायकों द्वारा नायिकाओं के स्तनपान।

हाँ जी! इस बात का कोई उत्तर नहीं।

* कुछ कथानकों में पारिवारिक संभोग दृश्यों में भी आपका कुशलतापूर्वक लेखन।

धन्यवाद!

तथापि आप माता-पुत्र अथवा भाई-बहन के संभोग दृश्यों कि कथानक में चित्रण लेखन से बचे रहे थे।
{आप और komaalrani दोनों ही इस वर्जित रेखा को आंशिक रूप से छु कर वापस आ जाते थे।}

परन्तु नवीन अद्यतन में आपने यह वर्जना भी तोड़ दी।

कहानी की आवश्यकता है मित्र! आपको आगे पता चलेगा।
इस राजकुल पर लगे श्राप का अंत आसान नहीं है।

बहुमान।

धन्यवाद!

इस प्रकार के लेखन से हम पाठक ने सिर्फ परिचित हैं वरन् कुछ तो आते ही है ऐसे कथानक पठन के लिए। मैं स्वयं भी अपवाद नहीं हुं।

परन्तु जब भी ऐसा होता है तो कहीं दबा हुआ टिप्पणिकार पाठक मुर्छा से जाग जाता है। आशा है अधिक नहीं लिख गया।

जय जय

बहुत बहुत धन्यवाद!
आप अधिक नहीं लिखते! लेकिन आपके लेखन से एक पुराने पाठक की याद अवश्य आती है। ;)
साथ बने रहें! कहानी अभी चल रही है।
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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snidgha12 को आप भुला नहीं पा रहे। हा हा हा । अद्भुत है अपने पाठकों के प्रति आपका लगाव।

मैं उन महान निबंध लेखक का अंश मात्र भी नहीं। सर्वथा भिन्न। मात्र देवनागरी प्रेम ही हमें एक करता है।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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snidgha12 को आप भुला नहीं पा रहे। हा हा हा । अद्भुत है अपने पाठकों के प्रति आपका लगाव।

मैं उन महान निबंध लेखक का अंश मात्र भी नहीं। सर्वथा भिन्न। मात्र देवनागरी प्रेम ही हमें एक करता है।

कैसे भूल जाऊँ? गिन चुन कर कोई दर्जन भर नियमित पाठक हैं मेरे!
ऐसे ख़ास लोगों को कैसे भूल जाऊँ!
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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भाई, बरात दूल्हा संग चलनी चाहिए! आप बार बार कहानी से आगे आगे भागने लगते हैं। यह शिकायत रह जाएगी आपसे, इस कहानी पर! 😂
यद्यपि कहानी वर्तमान में चल रही है, तथापि कहानी का वर्तमान, आज का वर्तमान नहीं है!
ध्यान दें - एक समय भारत चीन युद्ध की बात की गई है यहाँ! लिहाज़ा, कहानी का वर्तमान भी कम से कम चार दशक पूर्व का है!
मैंने हिसाब लगाया है, और टाइम-लाइन भी बनाई है।
सुहासिनी अल्पवय थी - जैसा कि मोहब्बत का सफ़र में सुमन थी, लगभग वैसी - इसलिए यहाँ पर लिखी नहीं जा सकती! मीना आदित्य और क्लेयर से बड़ी है, लेकिन उतनी नहीं, जितना आप सोच रहे हैं।
हाँ, आप एक मामले में सही थे - कहानी कुछ समय से दो काल-खण्डों में चल रही थी। एक सुहासिनी के काल-खण्ड में, और एक मीनाक्षी के। अब सब एक है।
श्राप का रहस्य खुलना बाकी है। कहानी ख़तम नहीं हुई है - मैंने अभी भी “समाप्त” नहीं लिखा कहानी के अंत में।
साथ बने रहें। बहुत सोच कर ही कहानी लिख रहा हूँ। आप लोगों की टिप्पणियों का इस पर कोई प्रभाव नहीं है।
बढ़िया है, अब आगे के अपडेट के बाद ही कुछ टिपण्णी करूंगा 🙏🏽
 
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