Update #47
अपनी प्रवृत्ति के विपरीत मीना सुबह बहुत देर से उठी। कई कारण थे - सबसे बड़ा कारण था कि अचानक से ही अमरीका से भारत आने के कारण शरीर की समय-सारिणी में अप्राकृतिक अंतर आ जाता है। कुछ लोगों को दो तीन दिन ही लगते हैं उसको ठीक करने में, और कुछ लोगों को कई कई दिन लग जाते हैं।
मीना ने महसूस किया कि उसके पूरे शरीर में बड़ी मीठी सी अलसाहट थी और मीठा मीठा सा दर्द हो रहा था! यह बड़ी ही परिचित सी अलसाहट और पीड़ा थी। यह परिणाम था कल रात उसके और जय के बीच चले रति-युद्ध का! आँखें उसकी अभी भी खुली नहीं थीं - लेकिन नींद अब जा चुकी थी। उठते ही सबसे पहली याद उनके कल रात के सम्भोग की ही आई! एक तरह से एक स्पेशल रात थी कल की! इतने सारे अविश्वसनीय खुलासे हुए। शुरू में तो उसको लगा था कि उसका जीवन पूरी तरह से बदल जायेगा। लेकिन इस समय, जय के बगल लेटी हुई, वो समझ रही थी कि उसके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया था, और न ही उस बारे में सोचने की कोई आवश्यकता है!
अंततः मीना ने अपनी आँखें खोलीं।
उसने देखा कि वो और जय एक दूसरे से गुत्थमगुत्थ हो कर लेटे हुए थे। पूर्ण नग्न! उसने देखा - जय अभी भी सो रहा था। जय स्वस्थ और मज़बूत कद-काठी का युवक अवश्य था, लेकिन वो भारी नहीं था। इस कारण से सम्भोग के दौरान उसकी चंचलता और भी बढ़ जाती थी, और असंभव तरीके और असंभाविक आसनों में वो मीना के साथ प्रेम-लीला रचता था। आनंद आता, लेकिन मीठी मीठी पीड़ा भी होती मीना को उस कारण। लेकिन उसी पीड़ा में ही तो रति का सुख है!
कल रात की बात फिर से याद आने पर वो मुस्कुराई। फिर उसने अपने बगल में देखा - नन्ही चित्रा अभी वहाँ नहीं थी। शायद कोई उसको रात में वहाँ से उठा ले गया था। अपनी प्राइवेसी में ऐसी दखल देख कर उसको एक पल को बुरा लगा, फिर अगले ही पल उसको महसूस हुआ कि किसी परिचारिका ने ही उठाया होगा चित्रा को - उसकी देखभाल करने के लिए! बहुत संभव है कि यह इसलिए किया गया था कि वो और जय ठीक से सो सकें। यह विचार आते ही वो संयत हो गई, और उसको अच्छा भी लगा।
बहुत ही ठीक से सोई वो! सर अभी भी थोड़ा भारी था, लेकिन वो किसी चिंता का विषय नहीं लग रहा था। उसका अंगड़ाई लेने का मन हो रहा था, लेकिन जय के जागने की चिंता के कारण वो बिस्तर पर यूँ ही पड़ी रही! लेकिन कोई कब तक यूँ ही, अकारण बिस्तर पर पड़ा रह सकता है? हार कर वो उठने को हुई। उसके उठने के कारण हुई हलचल से जय भी जागने लगा। आधी नींद और आधी जागने की अवस्था में जय ने, बिस्तर से उठती हुई मीना का हाथ पकड़ कर वापस बिस्तर पर लिटा लिया।
“कहाँ चलीं आप?” उसने उनींदी आवाज़ में, लेकिन मज़ाकिया और मीना को छेड़ने वाले अंदाज़ में कहा।
“अरे उठना चाहिए... बहुत देर हो गई है!” मीना ने कहा।
“क्या टाइम हो रहा है?” जय अभी भी उनींदा था।
“आठ बजने वाले हैं...”
“बस?”
“हा हा... क्या बात है हुकुम?” मीना ने इस मीठी सी बातचीत का आनंद उठाते हुए कहा, “आज दिन भर आलसी बने रहने का इरादा है क्या?”
“आलसी नहीं... कुछ और...”
“क्या?” मीना समझ रही थी कि जय क्या चाहता है।
“आपका आशिक़...” कह कर जय ने उसको अपने ऊपर खींच लिया।
“आऊ... माँ आस पास ही होंगी, और आपको आशिक़ी सूझ रही है?” मीना जय के आलिंगन में फिर से समाती हुई खिलखिलाई।
“माँ का ही तो आदेश है...” जय उसके होंठों को चूमते हुए बोला।
“अच्छा जी?”
“हाँ,” जय मीना के स्तनों को दबाते सहलाते कहने लगा, “वो चाहती हैं कि हम दोनों जल्दी जल्दी तीन चार और बच्चे कर लें... ऐसा इम्पोर्टेन्ट काम बिना आशिक़ी किये तो नहीं होने वाला न?”
“हा हा हा...”
दबाने से मीना के चूचकों में से दूध की कुछ बूँदें निकल आईं। जय को अचानक से न जाने क्या सूझी, उसने मीना का एक चूचक अपने मुँह में भर लिया और उसको अधीरतापूर्वक पीने लगा। फोरप्ले और सम्भोग करने में जय थोड़ा शर्मीला ही था! बातें वो बड़ी बड़ी कर लेता था, लेकिन उन बातों के क्रियान्वयन में वो थोड़ा शरमा जाता था... उत्साह से करता था, लेकिन फिर भी उसको थोड़ी शर्म सी रहती। फोरप्ले के दौरान मीना का स्तनपान करना कुछ वैसा ही काम था। जय का मानना था कि माँ का दूध उसके बच्चों के लिए होता है, और बच्चों के बाप को उसमें सेंध-मारी नहीं करनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि उन दोनों के बीच में यह क्रिया होती ही नहीं थी! अवश्य होती थी - लेकिन बहुत कम!
इसलिए जब यूँ अचानक से जय उसका दूध पीने लगा, तो मीना के मन में संदेह हुआ कि कहीं जय को उनके रिश्ते के बारे में पता तो नहीं चल गया? लेकिन मीना ने महसूस किया कि जिस अंदाज़ में जय उसका स्तन पी रहा था, उसमें कोई परिवर्तन नहीं था।
कुछ देर बाद मीना बोली, “हुकुम, आज तो आप बड़े मूड में लग रहे हैं!”
“आप जब भी हमारे पास रहती हैं, तब मूड बन ही जाता है...”
“झूठे... आअह्ह्ह...”
“अरे इसमें झूठ क्या है! ... मूड तो बन ही जाता है जब मेरी जान मेरे पास रहती है... लेकिन हर समय बने हुए मूड पर एक्शन तो नहीं लिया जा सकता न...”
“बातें बनाने में आप एक्सपर्ट हैं...”
“और भी कामों में एक्सपर्ट हूँ मेरी जान...” उसने कहा, और एक बार फिर से उसका लिंग मीना की योनि में प्रविष्ट होने लगा।
“हा हा हा... आआह्ह्ह्हह... आपको बस मौका चाहिए मुझे सताने का!” मीना ने आनंद से कराहते हुए कहा।
बरसों का शोध कहता है कि सुबह सुबह का, मतलब, सो कर उठने के तुरंत बाद होने वाला सम्भोग, सबसे अधिक सुखकारी और आनंददायक होता है। आपका शरीर रात भर आराम कर चुका होता है, और उसमें नई ऊर्जा रहती है। साथ ही साथ जननांगों में अधिक रक्त भी बह रहा होता है। इसलिए खेल देर तक चलता है, और बहुत आनंददायक होता है।
“सताना नहीं जानेमन... आपको प्यार करने का,” जय ने नीचे से धक्के लगाते हुए कहा, “वैसा प्यार जिस पर आपका हक़ है...”
इसके बाद किसी को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी। दोनों अपने खेल में मगन हो गए।
मीना को कल रात भी, और इस समय भी, जय के साथ सम्भोग करते हुए हमेशा के जैसा ही आनंद आ रहा था। कोई परिवर्तन नहीं आया था। मीना को एक दो बार ख़याल अवश्य आया कि उसको कितनी सहजता थी जय के संग की! एक बार भी उसके मन में नहीं आता है कि जय उसका बेटा था। वो दृष्टिकोण पैदा ही नहीं हो सकता! कैसे हो सकता है? उसको प्रसव का कुछ याद नहीं, आधी गर्भावस्था का कुछ याद नहीं! ऐसे में जय के लिए पुत्र-मोह कैसे आ सकता है उसको? माँ बिल्कुल सही कहती हैं - जय उसके शरीर से अवश्य उत्पन्न हुआ था, लेकिन उसका बेटा नहीं है। बेटा वो माँ का ही है! किशोरवय नासमझी में वो गर्भवती अवश्य हो गई, लेकिन माँ बनने का शऊर तब थोड़े ही था उसमें। उस समय तो उसको लड़की बने रहने का भी शऊर नहीं था। बच्चों को, उनकी नासमझी में किए गए शैतान कार्यों का ता-उम्र दण्ड नहीं दिया जाता! किसी को भी नहीं! उनको सुधरने का, और फिर से नए सिरे से जीने का अवसर दिया जाता है। वही अवसर मीना को भी तो मिला हुआ था!
फिर अचानक से उसके मन में एक और ख़याल आया, ‘जय में राजकुमार का भी तो अंश है!’
‘राजकुमार का अंश!’
हो सकता है कि ईश्वर ने उसे राजकुमार हर्ष का प्यार देने के लिए ही यह सारी लीला रची हुई हो? नियति ने शायद यही सोचा हुआ हो, कि उसको राजकुमार अवश्य मिलेंगे - चाहे किसी भी रूप में! और देखो, मिल भी गए! इस ख़याल से उसके मन में जय के लिए और भी प्यार उमड़ आया।
‘जो भी हो,’ उसने सोचा, ‘उसके जीवन में जय का रूप नहीं बदलेगा! ... नहीं बदल सकता! ... कभी नहीं!’
सच में, जय उसके जीवन में उसके पति के अतिरिक्त और किसी अन्य रूप में नहीं रह सकता था। वो उसको बहुत प्रेम करती थी, और जय भी उसको बहुत प्रेम करता था। नन्ही चित्रांगदा उनके प्रेम का प्रसाद थी। और वो चाहती थी, कि चित्रा के ही जैसे अन्य कई वंश-पुष्प उसकी कोख से जन्म लें! उसके मन में यही सारे विचार आ रहे थे। अंत में उसने सोचा कि माँ द्वारा किए गए रहस्योद्घाटन को भुला देना ही उचित है। उसी में सभी की भलाई थी।
उसने संतोष से गहरी साँस ली, जो कि एक आनंद वाली कराह के रूप में बाहर निकली। उसका शरीर वीणा की तरह बज रहा था - हर तार में अब झंकार निकलने लगी थी। उसके रोम रोम में आनंद की लहर दौड़ रही थी। उधर जय पूरे आनंद और उत्साह से मीना के नीचे से धक्के लगाता जा रहा था। वो भी समझ रहा था कि मीना को बहुत आनंद मिल रहा था।
कोई एक घटिका तक दोनों का खेल चला। तब जा कर जय मीना के अंदर ही स्खलित हो गया। उस समय तक मीना भी एक ज़ोरदार और दीर्घकालिक चरम आनंद की प्राप्ति कर चुकी थी।
संतुष्ट हो कर मीना जय के ऊपर ही ढेर हो गई। दोनों ने कुछ समय अपनी अपनी साँसें संयत करीं।
फिर जय ने ही चुप्पी तोड़ी, “मज़ा आया मेरी राजकुमारी जी?”
“उम्म्म म्मम...” मीना के गले से संतोष भरा कूजन निकला।
“चित्रा को कोई ले गया है क्या रात में?” कुछ देर बाद जय ने फिर पूछा।
“लगता तो ऐसा ही है, हुकुम!”
“हम्म...”
कुछ देर दोनों वैसे ही बिस्तर पर पड़े रहे। मीना जय के ऊपर, उसको प्रेम से अपने आलिंगन में लिए हुए।
“उठें अब?” अंत में मीना ने ही कहा।
“हाँ... अब तो उठना ही पड़ेगा!” जय ने हँसते हुए कहा, “सुबह का कोटा पूरा... दोपहर, और रात में फिर से करेंगे!”
“हा हा हा हा...” उसकी शरारत भरी बात पर मीना खिलखिला कर हँस दी।
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