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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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बहुत बहुत धन्यवाद भाई साहब! आप और रिकी भाई बहुत ही करीब आ गए थे इस कहानी के रहस्य के। :applause:
साथ बने रहें। एक दो दिनों में अगला अपडेट आ जायेगा :)
बुरा ना मानो होली है। ऐसा तो बिल्कुल नहीं बोलेंगे। लिखेंगे तो बिल्कुले नहीं।

आपके अपने... लल्लन टाॅप भंगेड़ी भाई कि तरफ से होरी कि सुभ कामना
 
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कुछ लिख लेता हूँ
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कुछ लिख लेता हूँ
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Update #48


स्नानादि कर के जब तक मीना और जय अपने कमरे से बाहर निकले, तब तक दस बज गए थे। कर्मचारियों से पूछने पर उनको पता चला कि राजमाता (माँ) इस समय बैठक में हैं। कुछ लोग उनसे और सभी लोगों से मिलने आए हुए थे, और वो फिलहाल उन्ही लोगों के साथ बैठक समाप्त कर के, फिलहाल अकेली ही बैठक में बैठी हुई थीं। राजकुमारी चित्रांगदा (जय और मीना की बेटी) भी अपनी दादी माँ के साथ ही थी, और मेहमानों से मिल रही थी।

प्रियम्बदा को सूचना हो गई थी कि राजकुमार और राजकुमारी जी अब तक जाग चुके हैं। उन्होंने किसी को भी उन्हें जगाने नहीं भेजा था। उनको अच्छी तरह से पता था कि लम्बी यात्रा की थकावट, और समय-मंडल के परिवर्तन के कारण नींद आने में ही समस्या थी। इसलिए नींद आ जाने के बाद उसको तोड़ने का मन नहीं हुआ उनका। वैसे भी, जब दिल्ली में सुबह के दस बज रहे होते हैं, तो शिकागो में रात के साढ़े ग्यारह बजते हैं। लेकिन सभी बातों से सबसे अच्छी बात जो उनको पता चली थी, वो यह थी कि कल रात दोनों के बीच में रति-क्रीड़ा खेली गई थी... इस बात के संज्ञान से वो बहुत संतुष्ट थीं।

कल के रहस्योद्घाटन के बाद से ही उनके मन में एक डर तो अवश्य ही बना हुआ था कि, न जाने मीना क्या कर डाले! जय के साथ वो न जाने कैसा व्यवहार करे! मीना में उनको इतनी सर्वगुण-संपन्न बहू मिल गई थी, जिसको वो यूँ ही अकारण ही नहीं चले जाने देना चाहती थीं। लेकिन यह तो अवश्य था कि अगर मीना ने कुछ अनावश्यक कह दिया, या कर दिया, तो यह विवाह संकट में पड़ जाता। अजीब सी स्थिति थी! उनको ग्लानि भी हो रही थी कि बेचारी को उन्होंने थप्पड़ भी लगा दिया - वो शायद कुछ न कहतीं, लेकिन मीना के जीने मरने वाली बात पर न जाने उनको क्यों इतना गुस्सा आ गया...! जीवन कोई सस्ती वस्तु होती है क्या, जिसको यूँ किसी भी बात पर समाप्त कर दिया जाए! ख़ैर... उस समय तो उनको समझ में आ रहा था कि मीना शायद संयत हो गई थी, लेकिन फिर भी उनको रात भर शंका होती रही।

लेकिन सुबह जब एक परिचारिका ने उनकी गोदी में चित्रा को देते हुए, उनको जय और मीना के शयनकक्ष का हाल सुनाया, तो उनकी सारी चिंता दूर हो गई। वो संतुष्ट हो गई थीं कि दोनों के सम्बन्ध के रहस्योद्घाटन के बाद भी मीना के मन में जय का रूप पति वाला ही है। और अगर वो उनके रहस्योद्घाटन के बाद भी उसके साथ सम्भोग का आनंद ले रही है, तो मतलब साफ़ है, कम से कम मीना की तरफ़ से दोनों के पति-पत्नी वाला सम्बन्ध टूटने वाला नहीं है!

‘अच्छी बात है!’ उन्होंने उस जानकारी के बाद सोचा, और संतोष भरी साँस ली।

साल भर पहले की बात याद आ गई उनको।

जब उन्होंने मीना की तस्वीर देखी थी, वो उसको उसी समय पहचान गई थीं। अपनी चहेती ‘सुहास’ को न पहचानने का कोई सवाल ही नहीं था! जिस लड़की को उन्होंने माँ की तरह लाड़ किया, अपनी बहू की तरह स्नेह दिया, जिसके पालन पोषण और शिक्षा इत्यादि में अपनी तरफ़ से कोई कसर न रख छोड़ी, उसको न पहचानने का कोई सवाल ही नहीं था। लेकिन, जहाँ मीना की तस्वीर को इतने वर्षों के बाद यूँ अचानक से अपने हाथों में देख कर उनको न केवल आनंद महसूस हुआ, बल्कि बेचैनी भी महसूस हुई। कारण? क्योंकि वो जानती थीं कि जय, मीना का ही बेटा है। इसलिए शुरू से ही उनको जय और उसके सम्बन्ध को ले कर बेचैनी हो रही थी। बेचैनी उनको आदित्य और क्लेयर के विवाह को ले कर भी हुई थी! उस बेचैनी के कारण थे क्लेयर का विदेशी होना, भारतीय परम्पराओं से अछूती रहना, और आदित्य से कुछ बड़ी उम्र की होना। इन सभी कारणों से उनके मन में उस सम्बन्ध को ले कर कई पूर्वाग्रह थे। फिर भी उनका सम्बन्ध स्वीकार्य था। लेकिन इस बार तो बात बहुत ही अलग थी!

उसी बेचैनी के कारण वो अमेरिका जाने से स्वयं को बचा रही थीं। कहीं मीना उनको पहचान न जाए! उनके मन में शंका थी कि उनकी उपस्थिति के कारण, या तो जय और मीना का मेल संभव ही नहीं हो पाता... या फिर कोई न कोई रोड़ा अवश्य अटकता! वो उस स्थिति से बचना चाहती थीं। किसी दैवीय संयोग के कारण, अनायास ही जय और मीना साथ आ गए थे, और प्रेम में पड़ गए थे! अगर भाग्य को उनके लिए यही मंज़ूर था, तो वो उन दोनों के विवाह में किसी भी तरह का रोड़ा नहीं अटकाना चाहती थीं। अब उनका यह निर्णय नैतिक था, या सदाचारपूर्ण था - इस बात का निर्णय तो उनके ईश्वर ही लेते!

उन्होंने यह सोच कर अपने मन को बहला लिया था कि राजपरिवार की होने के नाते, उनके परिवार के सदस्यों को विवाह सम्बन्ध बनाने में थोड़ी स्वतंत्रता अवश्य मिली हुई थी... जैसे कि राज-परिवार के राजकुमारों के लिए अपनी चचेरी ममेरी बहनों के साथ विवाह करना संभव था, और कुछ वर्षों पहले तक कई बार ऐसे विवाह हुए भी थे। एक राजा, जिनको वो जानती थी, ने तो अपनी सौतेली बहन से ही शादी कर ली थी। वो भी मान्य हो गया था। राज-परिवारों के लिए कुछ छूट तो अवश्य होती है। लेकिन यहाँ अलग था! जय और मीना के बीच में जो सम्बन्ध था, उसके कारण यह बहुत ही कठिन था।

यह तो सत्य है कि अगर किसी को जय और मीना की सच्चाई पता चल जाता, तो एक बखेड़ा खड़ा हो सकता था। वैसे तो उस सच्चाई के बारे शायद ही किसी को पता चले। मीना और उसके परिवार को जानने वाले लोग फिलहाल नगण्य थे - खास कर गौरीशंकर जी की मृत्यु के बाद अब शायद ही कोई उनको याद करता हो। वो महाराजपुर से बहुत समय पहले ही जा चुके थे, और अब उनके परिवार का भी कोई यहाँ नहीं शेष था। अगर कोई उनको या सुहासिनी को याद भी कर रहा होता, तो भी बहुत समस्या नहीं थी। मीना में भी तब से अब तक अनेकों परिवर्तन आ चले थे... एक अल्हड़ लड़की से वो अब एक सुन्दर महिला बन चुकी थी। उसके हाव भाव, पहनावा, बोलने सुनने का तरीक़ा, सब कुछ बदल चुका था। अगर उसकी कोई परम मित्र होती, तो उसके लिए भी सुहासिनी को पहचान पाना बहुत ही कठिन था। फिर भी, कहीं कोई, भूले भटके... इस सच्चाई को खोद निकालता, तो कठिनाई हो सकती थी।

जय और मीना की सच्चाई के बारे में सबसे बड़ी बात यह थी कि सुहासिनी की गर्भावस्था की बात छुपा लेने में प्रियम्बदा पूरी तरह से सफ़ल रही थी। आरम्भ के कुछ सप्ताहों के बाद, उसकी गर्भावस्था और प्रसूति दोनों ही दिल्ली में ही हुई थी, और उसके बाद से उसका रहना, सहना, पढ़ाई, लिखाई इत्यादि भी दिल्ली में ही, या फिर विदेशों में ही हुआ था - अतः, उस रहस्य के बारे में शायद ही कोई जानता हो। इसलिए सामाजिक तौर पर कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। वैसे भी, कानूनन दोनों पति-पत्नी तो थे ही, और इस बात को कोई झुठला नहीं सकता था। बस... अब विधिवत दोनों का विवाह होना था।

इस बात पर प्रियम्बदा ने सोचा कि ये कैसा अनूठा आकर्षण हुआ है दोनों के बीच में! बहुत ही स्पष्ट सी बात थी कि दोनों को एक दूसरे के अतीत के बारे में कुछ भी नहीं पता था। ऐसे में, दोनों का प्रेम, न केवल प्रकृति प्रदत्त आश्चर्य था, बल्कि प्रकृति प्रदत्त आशीर्वाद भी! जब नियति ही यही चाहती थी कि दोनों संग रहें, तो उससे अनावश्यक क्यों बैर लेना! वैसे भी, प्रेम-जन्य संबंध पुख़्ता होते हैं। इस बात का उदाहरण आदित्य और क्लेयर थे - जो अपने विवाह के बाद सुखी और ख़ुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे। प्रेम अच्छी बात थी, लेकिन माँ बेटे का विवाह? सबसे बड़ी रूकावट उनकी संतानों को ले कर ही थी। प्रियम्बदा को पता था कि उन दोनों की संतानों में अनुवांशिकी दोष हो सकते हैं। लेकिन उसको यह भी पता था कि इस तरह के दोष अमूमन दो तीन वंशों के बाद प्रबलता से उभर कर आते हैं। ऐसे में यह बात भी कोई बहुत ठोस रूकावट नहीं थी। जब कोई ठोस वजह नहीं थी, तो फिर दोनों के रिश्ते में क्यों बाधा उत्पन्न करना?
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Update #49


जय एक कोमल हृदय वाला लड़का था। अगर वो दोनों को विवाह करने से मना कर देतीं, तो जय मीना से विवाह करने से रुक अवश्य जाता, लेकिन उसका दिल टूट जाता। ऐसे में न जाने वो क्या कर बैठता, या उसके मन मस्तिष्क और शरीर पर न जाने कैसा प्रभाव पड़ता। वो कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने बच्चों की ख़ुशी से कोई समझौता नहीं कर सकती थी।

लिहाज़ा, अगर दोनों में प्रेम हुआ है, तो उस प्रेम की परिणति होनी आवश्यक थी।

‘और क्या सुन्दर सा फल मिला था दोनों के विवाह का!’ चित्रांगदा को गोदी में ले कर खिलाते हुए प्रियम्बदा ने सोचा, ‘... न केवल उनके कुल पर से सती का श्राप समाप्त हो गया, बल्कि ये बालिका भी कितनी सुन्दर है... परफ़ेक्ट!’

क्या क्या डर थे उनके मन में - कि कहीं जय और मीना की संतान में कोई कमी न हो! लेकिन नन्ही चित्रा को देख कर वो सभी डर समाप्त हो गए। अति-सुन्दर और स्वस्थ बच्ची! उसकी मुस्कान इतनी सुन्दर कि सभी का मन मोह ले! अगर अभी से उसमें इस तरह का आकर्षण था, तो फिर जब वो युवा होगी, तब क्या हाल होगा! हाँ - परफेक्ट शब्द ही सही बैठता है उस पर! चित्रा का परफेक्शन देख कर अब वो चाहती थीं कि दोनों यथासंभव जितनी हो सकें, उतनी संतानें कर लें! यह घर अब आनंद से और वंश के दीपकों से भर जाना आवश्यक है! लेकिन वो सब हो, उसके पहले वो चाहती थीं कि दोनों का विवाह विधिवत हो जाय। वो जानना चाहती थीं कि दोनों का सम्बन्ध ज्योतिषी के अनुकूल था भी, या नहीं!

उन्होंने मीना की जन्म-पत्री केदार धाम और बद्री धाम के रावलों को विचारने के लिए भेजा, और जानना चाहा कि मीना का जय के साथ मेल बैठता भी है या नहीं! दोनों धामों के रावलों ने एकमत विचार दिया - जय और मीना का सम्बन्ध बड़ा ही शुभ था। ऐसा क्यों था, उनको यह बात अवश्य ही समझ में नहीं आईं, लेकिन विवाह के शुभ होने को ले कर दोनों ही एकमत थे। प्रियम्बदा ने एक और बात पूछी उनसे, कि क्या मीनाक्षी राजपरिवार पर लगा हुआ श्राप समाप्त कर सकेगी? इस प्रश्न पर दोनों ही मौन रहे। दोनों ही रावलों ने कहा कि होने वाली दंपत्ति की कुण्डलियों में संतान सुख तो साफ़ दिख रहा है, लेकिन यह प्रश्न कि संतानों का लिंग कन्या का होगा, यह कह पाना कठिन है। ख़ैर, इस बात का उत्तर प्रियम्बदा को पहले से ही मिला हुआ था, इसलिए उसने इस बात पर कोई तूल नहीं दिया। दोनों की कुण्डलियों के हिसाब से दोनों के विवाह की एक तिथि भी निकाल दी गई थी, जो बस एक सप्ताह में ही आने वाली थी।

जब मीना गर्भवती थी, तो माँ को श्राप का भी डर सता रहा था। वंश पर लगे श्राप ने आदित्य और क्लेयर का पीछा भी नहीं छोड़ा था। एक पल माँ को लगा था कि चूँकि क्लेयर विदेशी मूल की है, इसलिए शायद अब श्राप का असर समाप्त हो जाए! लेकिन अजय और अमर के रूप में दोनों राजकुमार ही आए! लिहाज़ा, माँ के मन में अवश्य ही था कि जय और मीना के पीछे भी यह श्राप पड़ जाएगा!

किन्तु घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कन्या के जन्म की खबर सुनी! उसको अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। तीन बार पूछा था उन्होंने! पक्का करने के लिए कि क्या वाकई लड़की पैदा हुई है! इतनी ख़ुशी मिली थी उस दिन! राजमहल उस दिन दुल्हन की तरह सजाया गया था और पूरे एक महीने तक पूरे महाराजपुर में जश्न मनाया गया था। दान, भोज, पूजा-पाठ - इन सब कार्यों में हाथ नहीं रोका एक पल को भी! इतनी ख़ुशी हुई थी माँ को! खर्च की परवाह नहीं करी! आखिर, जिस ईश्वर ने यह श्राप समाप्त कर दिया, वो ईश्वर रिक्त कोष भी भर देंगे!

लेकिन उस दिन से उनको इस श्राप के अचानक ही समाप्त हो जाने से बड़ा कौतूहल भी हो रहा था। मीना और जय की कुण्डलियों का मिलान करने के साथ साथ, उन्होंने दोनों धामों के रावलों से पुनः मंत्रणा करी। शायद कोई स्पष्टीकरण हो!


*


“अरे, आ गई बहू!” प्रियम्बदा ने मीना को देखते ही कहा।

कल किए गए अपने व्यवहार से वो भी बहुत दुःखी थी, लेकिन क्या करती? जय के सामने वो उससे माफ़ी भी तो नहीं मांग सकती थी न! नहीं तो उसके अपने ही अलग प्रश्न उठने लगते! अब यह सब वो उसको कैसे बताती?

“गुड मॉर्निंग माँ,” मीना ने चहकते हुए कहा और आ कर माँ के पैर छुए।

“मेरी बच्ची...” प्रियम्बदा ने बड़े लाड़ से कहा, “आयुष्मती भव... सुखी भव... यशस्वी भव...” प्रियम्बदा ने आशीर्वाद दिए और मीना के माथे को स्नेह से चूम लिया।

“गुड मॉर्निंग, माँ...” जय ने भी माँ के पैर छुए।

“आयुष्मान भव मेरे लाल...” माँ ने जय के भी माथे को चूमते हुए आशीर्वाद दिया और आगे कहा, “इसके अलावा और क्या आशीर्वाद दूँ? इतनी प्यारी सी बहू है मेरी... उसकी संगत में तो तुम्हारा सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता रहेगा!”

माँ की इस बात पर मीना के गाल सेब जैसे लाल हो गए।

“ठीक से सोए बच्चों?” माँ ने पूछा तो दोनों से, लेकिन पूछते समय देखा केवल मीना को।

“हाँ माँ...” जय बोल पड़ा, “कल इन्होने तो मुझको डरा ही दिया था... लेकिन फिर नार्मल बिहैव करने लगीं! ... अच्छी नींद आई, और देर तक भी!”

माँ अभी भी मीना को ही देख रही थीं।

वो एक पल को संकोच से चुप रही, लेकिन फिर बोली, “... जी माँ! यहाँ तो बहुत सुकून है... बहुत सुख है... बहुत ही अच्छी नींद आई...”

मीना समझ ही रही थी कि कल रात अगर कोई उनके कमरे में आया था, तो बहुत अधिक संभव है कि कमरे के अंदर का हाल माँ को पता चल गया हो। इसलिए उनसे छुपाने से कोई लाभ नहीं है।

“... इसीलिए देर तक सो गए...” उसने आगे जोड़ा।

“गुड! नींद अच्छी होनी बहुत ज़रूरी है!” माँ को वैसे भी सब पता ही था, “तुम लोगों का टाइम ज़ोन भी तो अलग है यहाँ से...”

वो कह ही रही थीं, कि चित्रा उनकी गोदी में ठुनकने लगी! उन्होंने बड़े लाड़ से चित्रा को अपनी गोदी में खिलाते हुए कहा, “... पता है, मैं और हमारी ये नन्ही सी राजकुमारी सवेरे से खेल रहे हैं! ... और सबसे अच्छी बात यह है कि ये एक बार भी नहीं रोई!”

“क्यों रोयेगी, माँ?” मीना बोली, “... अपनी दादी माँ को पहचानती है न!”

“हाँ... वो तो है!” कहते हुए माँ ने कई कई बार चित्रा को चूमा।

अपनी माँ को ऐसे करते हुए देख कर जय एक बनावटी शिकायती लहज़े में बोला, “माँ... ये क्या बात हुई! ... अपनी पोती को देख कर आप अपने बेटे को ही भूल गईं!”

“भूली नहीं हूँ... अपने राजा बेटा को! ... बस, फिलहाल तो अपनी बिटिया के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हूँ... आ जा... तू भी आ जा...” कह कर उन्होंने जय की तरफ़ अपनी बाँह बढ़ाई, कि जैसे वो उसको भी अपनी गोदी में ले लेंगी।

जय भी बिना किसी हील हुज्जत के अपनी माँ की कुर्सी के बगल, ज़मीन पर ऐसे बैठ गया कि उसका सर उनकी गोदी में ही रह जाए। उसको ऐसा करते देख कर मीना मुस्कुराई।

‘सच ही कहा था माँ ने... जय की माँ वो ही तो हैं...’

“जानती है बहू? ... ये तेरा हस्बैंड... चाहे कहीं भी हो... चाहे कोई इसको कितना भी दुलार कर ले... इसको मेरे सीने से ही लग कर सुकून आता था...”

“माँ...” कह कर जय प्रियम्बदा से लिपट गया।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “... मुझे भी अपने सीने से लगा लीजिए माँ! ... यही तो मिस करती रही हूँ पूरी उम्र भर... अपनी माँ का प्यार और दुलार...”

“आ जा... तू भी आ जा मेरी लाडो!”

मीना भी माँ की गोदी में सर रख ली।

“ये तो गोदी है न बच्चे...” माँ ने अपनी छाती की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “मेरा सीना इधर है...”

उनकी बात पर मीना उनके सीने पर सर रख कर दुबक जाती है।

कुछ देर चारों उसी तरह से यूँ ही आलिंगन में बंधे रहे। फिर माँ ही कहती हैं,

“बहू, अभी नाश्ता लगवा देती हूँ... फ़िर हम सब बाहर चलते हैं! ... तुमको इस्टेट भी तो दिखाना है... उसके बाद शॉपिंग करनी है...”

“शॉपिंग माँ?”

“हाँ! अरे, एक हफ़्ते में तुम दोनों की शादी है न... अभी नहीं करेंगे तो फ़िर कब?”

“... लेकिन... माँ...” मीना ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा, “... अगर कहीं कोई...”

“चिंता न करो बच्चे... सब ठीक रहेगा...”

चित्रा एक बार फिर से ठुनकने लगी।

“बहू, शायद इसको भूख लगी है...” माँ ने चित्रा को मीना की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, “नहीं तो ये ऐसे न परेशान होती। ... दूध पिला दो इसको... मैं नाश्ता लगवाती हूँ... खूब भूख लगी होगी न!”

“हाँ माँ,” इस बार जय बोला, “भूख तो लगी है खूब... कल मैडम के चक्कर में मैंने भी नहीं खाया था!”

“अले मेला नन्हा राजकुमार,” माँ ने उसको लाड़ से तोतली भाषा में दुलराया, “बस अभ्भी लगवा देती हूँ खाना...”

कह कर वो अपनी कुर्सी से उठने लगीं।

“माँ, भैया भाभी?”

“वो तो कब का खा कर बाहर चले गए... आदित्य से मिलने के लिए कई लोग उत्सुक थे न!”

“अच्छा अच्छा...” जय ने कहा।

“तू मन मसोस के न रह! तुझसे और बहू से भी कई लोग मिलना चाहते थे... लेकिन मैंने ही मना कर दिया है... विवाह से पहले किसी से नहीं मिलना है!”

“जो आज्ञा माते!”

माँ के जाने के बाद मीना ने जय से कहा,

“तुम भी न!”

“क्यों? अब क्या किया मैंने?”

“माँ को भेज दिया हमारे लिए खाना लाने को! ... अच्छे खासे जवान मर्द हो... खुद जाते!”

“अरे, तुमको क्या लगता है? माँ मेरे कहने से रुक जातीं? ... हरगिज़ नहीं!” जय ने हँसते हुए कहा, “... अभी तुमको पता नहीं है मेरी जान! ... माँ हमको देखते ही उत्साह से भर जाती हैं!”

“आई नो! ... लेकिन हमारा भी तो कुछ बनता है न, उनके लिए कुछ करने का!”

“यस! ... तुम माँ से पूछ लेना कि क्या करना है!” फिर चित्रा की तरफ़ इशारा करते हुए, “... लेकिन अभी हमारी गोलू मोलू को अपना मीठा मीठा दुद्धू तो पिला दो!”

“जी हुकुम...” मीना ने कहा और हँसते हुए चित्रा को अपनी गोदी में स्तनपान कराने के लिए व्यवस्थित करने लगी।

*
 

parkas

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Update #48


स्नानादि कर के जब तक मीना और जय अपने कमरे से बाहर निकले, तब तक दस बज गए थे। कर्मचारियों से पूछने पर उनको पता चला कि राजमाता (माँ) इस समय बैठक में हैं। कुछ लोग उनसे और सभी लोगों से मिलने आए हुए थे, और वो फिलहाल उन्ही लोगों के साथ बैठक समाप्त कर के, फिलहाल अकेली ही बैठक में बैठी हुई थीं। राजकुमारी चित्रांगदा (जय और मीना की बेटी) भी अपनी दादी माँ के साथ ही थी, और मेहमानों से मिल रही थी।

प्रियम्बदा को सूचना हो गई थी कि राजकुमार और राजकुमारी जी अब तक जाग चुके हैं। उन्होंने किसी को भी उन्हें जगाने नहीं भेजा था। उनको अच्छी तरह से पता था कि लम्बी यात्रा की थकावट, और समय-मंडल के परिवर्तन के कारण नींद आने में ही समस्या थी। इसलिए नींद आ जाने के बाद उसको तोड़ने का मन नहीं हुआ उनका। वैसे भी, जब दिल्ली में सुबह के दस बज रहे होते हैं, तो शिकागो में रात के साढ़े ग्यारह बजते हैं। लेकिन सभी बातों से सबसे अच्छी बात जो उनको पता चली थी, वो यह थी कि कल रात दोनों के बीच में रति-क्रीड़ा खेली गई थी... इस बात के संज्ञान से वो बहुत संतुष्ट थीं।

कल के रहस्योद्घाटन के बाद से ही उनके मन में एक डर तो अवश्य ही बना हुआ था कि, न जाने मीना क्या कर डाले! जय के साथ वो न जाने कैसा व्यवहार करे! मीना में उनको इतनी सर्वगुण-संपन्न बहू मिल गई थी, जिसको वो यूँ ही अकारण ही नहीं चले जाने देना चाहती थीं। लेकिन यह तो अवश्य था कि अगर मीना ने कुछ अनावश्यक कह दिया, या कर दिया, तो यह विवाह संकट में पड़ जाता। अजीब सी स्थिति थी! उनको ग्लानि भी हो रही थी कि बेचारी को उन्होंने थप्पड़ भी लगा दिया - वो शायद कुछ न कहतीं, लेकिन मीना के जीने मरने वाली बात पर न जाने उनको क्यों इतना गुस्सा आ गया...! जीवन कोई सस्ती वस्तु होती है क्या, जिसको यूँ किसी भी बात पर समाप्त कर दिया जाए! ख़ैर... उस समय तो उनको समझ में आ रहा था कि मीना शायद संयत हो गई थी, लेकिन फिर भी उनको रात भर शंका होती रही।

लेकिन सुबह जब एक परिचारिका ने उनकी गोदी में चित्रा को देते हुए, उनको जय और मीना के शयनकक्ष का हाल सुनाया, तो उनकी सारी चिंता दूर हो गई। वो संतुष्ट हो गई थीं कि दोनों के सम्बन्ध के रहस्योद्घाटन के बाद भी मीना के मन में जय का रूप पति वाला ही है। और अगर वो उनके रहस्योद्घाटन के बाद भी उसके साथ सम्भोग का आनंद ले रही है, तो मतलब साफ़ है, कम से कम मीना की तरफ़ से दोनों के पति-पत्नी वाला सम्बन्ध टूटने वाला नहीं है!

‘अच्छी बात है!’ उन्होंने उस जानकारी के बाद सोचा, और संतोष भरी साँस ली।

साल भर पहले की बात याद आ गई उनको।

जब उन्होंने मीना की तस्वीर देखी थी, वो उसको उसी समय पहचान गई थीं। अपनी चहेती ‘सुहास’ को न पहचानने का कोई सवाल ही नहीं था! जिस लड़की को उन्होंने माँ की तरह लाड़ किया, अपनी बहू की तरह स्नेह दिया, जिसके पालन पोषण और शिक्षा इत्यादि में अपनी तरफ़ से कोई कसर न रख छोड़ी, उसको न पहचानने का कोई सवाल ही नहीं था। लेकिन, जहाँ मीना की तस्वीर को इतने वर्षों के बाद यूँ अचानक से अपने हाथों में देख कर उनको न केवल आनंद महसूस हुआ, बल्कि बेचैनी भी महसूस हुई। कारण? क्योंकि वो जानती थीं कि जय, मीना का ही बेटा है। इसलिए शुरू से ही उनको जय और उसके सम्बन्ध को ले कर बेचैनी हो रही थी। बेचैनी उनको आदित्य और क्लेयर के विवाह को ले कर भी हुई थी! उस बेचैनी के कारण थे क्लेयर का विदेशी होना, भारतीय परम्पराओं से अछूती रहना, और आदित्य से कुछ बड़ी उम्र की होना। इन सभी कारणों से उनके मन में उस सम्बन्ध को ले कर कई पूर्वाग्रह थे। फिर भी उनका सम्बन्ध स्वीकार्य था। लेकिन इस बार तो बात बहुत ही अलग थी!

उसी बेचैनी के कारण वो अमेरिका जाने से स्वयं को बचा रही थीं। कहीं मीना उनको पहचान न जाए! उनके मन में शंका थी कि उनकी उपस्थिति के कारण, या तो जय और मीना का मेल संभव ही नहीं हो पाता... या फिर कोई न कोई रोड़ा अवश्य अटकता! वो उस स्थिति से बचना चाहती थीं। किसी दैवीय संयोग के कारण, अनायास ही जय और मीना साथ आ गए थे, और प्रेम में पड़ गए थे! अगर भाग्य को उनके लिए यही मंज़ूर था, तो वो उन दोनों के विवाह में किसी भी तरह का रोड़ा नहीं अटकाना चाहती थीं। अब उनका यह निर्णय नैतिक था, या सदाचारपूर्ण था - इस बात का निर्णय तो उनके ईश्वर ही लेते!

उन्होंने यह सोच कर अपने मन को बहला लिया था कि राजपरिवार की होने के नाते, उनके परिवार के सदस्यों को विवाह सम्बन्ध बनाने में थोड़ी स्वतंत्रता अवश्य मिली हुई थी... जैसे कि राज-परिवार के राजकुमारों के लिए अपनी चचेरी ममेरी बहनों के साथ विवाह करना संभव था, और कुछ वर्षों पहले तक कई बार ऐसे विवाह हुए भी थे। एक राजा, जिनको वो जानती थी, ने तो अपनी सौतेली बहन से ही शादी कर ली थी। वो भी मान्य हो गया था। राज-परिवारों के लिए कुछ छूट तो अवश्य होती है। लेकिन यहाँ अलग था! जय और मीना के बीच में जो सम्बन्ध था, उसके कारण यह बहुत ही कठिन था।

यह तो सत्य है कि अगर किसी को जय और मीना की सच्चाई पता चल जाता, तो एक बखेड़ा खड़ा हो सकता था। वैसे तो उस सच्चाई के बारे शायद ही किसी को पता चले। मीना और उसके परिवार को जानने वाले लोग फिलहाल नगण्य थे - खास कर गौरीशंकर जी की मृत्यु के बाद अब शायद ही कोई उनको याद करता हो। वो महाराजपुर से बहुत समय पहले ही जा चुके थे, और अब उनके परिवार का भी कोई यहाँ नहीं शेष था। अगर कोई उनको या सुहासिनी को याद भी कर रहा होता, तो भी बहुत समस्या नहीं थी। मीना में भी तब से अब तक अनेकों परिवर्तन आ चले थे... एक अल्हड़ लड़की से वो अब एक सुन्दर महिला बन चुकी थी। उसके हाव भाव, पहनावा, बोलने सुनने का तरीक़ा, सब कुछ बदल चुका था। अगर उसकी कोई परम मित्र होती, तो उसके लिए भी सुहासिनी को पहचान पाना बहुत ही कठिन था। फिर भी, कहीं कोई, भूले भटके... इस सच्चाई को खोद निकालता, तो कठिनाई हो सकती थी।

जय और मीना की सच्चाई के बारे में सबसे बड़ी बात यह थी कि सुहासिनी की गर्भावस्था की बात छुपा लेने में प्रियम्बदा पूरी तरह से सफ़ल रही थी। आरम्भ के कुछ सप्ताहों के बाद, उसकी गर्भावस्था और प्रसूति दोनों ही दिल्ली में ही हुई थी, और उसके बाद से उसका रहना, सहना, पढ़ाई, लिखाई इत्यादि भी दिल्ली में ही, या फिर विदेशों में ही हुआ था - अतः, उस रहस्य के बारे में शायद ही कोई जानता हो। इसलिए सामाजिक तौर पर कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। वैसे भी, कानूनन दोनों पति-पत्नी तो थे ही, और इस बात को कोई झुठला नहीं सकता था। बस... अब विधिवत दोनों का विवाह होना था।

इस बात पर प्रियम्बदा ने सोचा कि ये कैसा अनूठा आकर्षण हुआ है दोनों के बीच में! बहुत ही स्पष्ट सी बात थी कि दोनों को एक दूसरे के अतीत के बारे में कुछ भी नहीं पता था। ऐसे में, दोनों का प्रेम, न केवल प्रकृति प्रदत्त आश्चर्य था, बल्कि प्रकृति प्रदत्त आशीर्वाद भी! जब नियति ही यही चाहती थी कि दोनों संग रहें, तो उससे अनावश्यक क्यों बैर लेना! वैसे भी, प्रेम-जन्य संबंध पुख़्ता होते हैं। इस बात का उदाहरण आदित्य और क्लेयर थे - जो अपने विवाह के बाद सुखी और ख़ुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे। प्रेम अच्छी बात थी, लेकिन माँ बेटे का विवाह? सबसे बड़ी रूकावट उनकी संतानों को ले कर ही थी। प्रियम्बदा को पता था कि उन दोनों की संतानों में अनुवांशिकी दोष हो सकते हैं। लेकिन उसको यह भी पता था कि इस तरह के दोष अमूमन दो तीन वंशों के बाद प्रबलता से उभर कर आते हैं। ऐसे में यह बात भी कोई बहुत ठोस रूकावट नहीं थी। जब कोई ठोस वजह नहीं थी, तो फिर दोनों के रिश्ते में क्यों बाधा उत्पन्न करना?
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and awesome update....
 
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parkas

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Update #49


जय एक कोमल हृदय वाला लड़का था। अगर वो दोनों को विवाह करने से मना कर देतीं, तो जय मीना से विवाह करने से रुक अवश्य जाता, लेकिन उसका दिल टूट जाता। ऐसे में न जाने वो क्या कर बैठता, या उसके मन मस्तिष्क और शरीर पर न जाने कैसा प्रभाव पड़ता। वो कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने बच्चों की ख़ुशी से कोई समझौता नहीं कर सकती थी।

लिहाज़ा, अगर दोनों में प्रेम हुआ है, तो उस प्रेम की परिणति होनी आवश्यक थी।

‘और क्या सुन्दर सा फल मिला था दोनों के विवाह का!’ चित्रांगदा को गोदी में ले कर खिलाते हुए प्रियम्बदा ने सोचा, ‘... न केवल उनके कुल पर से सती का श्राप समाप्त हो गया, बल्कि ये बालिका भी कितनी सुन्दर है... परफ़ेक्ट!’

क्या क्या डर थे उनके मन में - कि कहीं जय और मीना की संतान में कोई कमी न हो! लेकिन नन्ही चित्रा को देख कर वो सभी डर समाप्त हो गए। अति-सुन्दर और स्वस्थ बच्ची! उसकी मुस्कान इतनी सुन्दर कि सभी का मन मोह ले! अगर अभी से उसमें इस तरह का आकर्षण था, तो फिर जब वो युवा होगी, तब क्या हाल होगा! हाँ - परफेक्ट शब्द ही सही बैठता है उस पर! चित्रा का परफेक्शन देख कर अब वो चाहती थीं कि दोनों यथासंभव जितनी हो सकें, उतनी संतानें कर लें! यह घर अब आनंद से और वंश के दीपकों से भर जाना आवश्यक है! लेकिन वो सब हो, उसके पहले वो चाहती थीं कि दोनों का विवाह विधिवत हो जाय। वो जानना चाहती थीं कि दोनों का सम्बन्ध ज्योतिषी के अनुकूल था भी, या नहीं!

उन्होंने मीना की जन्म-पत्री केदार धाम और बद्री धाम के रावलों को विचारने के लिए भेजा, और जानना चाहा कि मीना का जय के साथ मेल बैठता भी है या नहीं! दोनों धामों के रावलों ने एकमत विचार दिया - जय और मीना का सम्बन्ध बड़ा ही शुभ था। ऐसा क्यों था, उनको यह बात अवश्य ही समझ में नहीं आईं, लेकिन विवाह के शुभ होने को ले कर दोनों ही एकमत थे। प्रियम्बदा ने एक और बात पूछी उनसे, कि क्या मीनाक्षी राजपरिवार पर लगा हुआ श्राप समाप्त कर सकेगी? इस प्रश्न पर दोनों ही मौन रहे। दोनों ही रावलों ने कहा कि होने वाली दंपत्ति की कुण्डलियों में संतान सुख तो साफ़ दिख रहा है, लेकिन यह प्रश्न कि संतानों का लिंग कन्या का होगा, यह कह पाना कठिन है। ख़ैर, इस बात का उत्तर प्रियम्बदा को पहले से ही मिला हुआ था, इसलिए उसने इस बात पर कोई तूल नहीं दिया। दोनों की कुण्डलियों के हिसाब से दोनों के विवाह की एक तिथि भी निकाल दी गई थी, जो बस एक सप्ताह में ही आने वाली थी।

जब मीना गर्भवती थी, तो माँ को श्राप का भी डर सता रहा था। वंश पर लगे श्राप ने आदित्य और क्लेयर का पीछा भी नहीं छोड़ा था। एक पल माँ को लगा था कि चूँकि क्लेयर विदेशी मूल की है, इसलिए शायद अब श्राप का असर समाप्त हो जाए! लेकिन अजय और अमर के रूप में दोनों राजकुमार ही आए! लिहाज़ा, माँ के मन में अवश्य ही था कि जय और मीना के पीछे भी यह श्राप पड़ जाएगा!

किन्तु घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कन्या के जन्म की खबर सुनी! उसको अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। तीन बार पूछा था उन्होंने! पक्का करने के लिए कि क्या वाकई लड़की पैदा हुई है! इतनी ख़ुशी मिली थी उस दिन! राजमहल उस दिन दुल्हन की तरह सजाया गया था और पूरे एक महीने तक पूरे महाराजपुर में जश्न मनाया गया था। दान, भोज, पूजा-पाठ - इन सब कार्यों में हाथ नहीं रोका एक पल को भी! इतनी ख़ुशी हुई थी माँ को! खर्च की परवाह नहीं करी! आखिर, जिस ईश्वर ने यह श्राप समाप्त कर दिया, वो ईश्वर रिक्त कोष भी भर देंगे!

लेकिन उस दिन से उनको इस श्राप के अचानक ही समाप्त हो जाने से बड़ा कौतूहल भी हो रहा था। मीना और जय की कुण्डलियों का मिलान करने के साथ साथ, उन्होंने दोनों धामों के रावलों से पुनः मंत्रणा करी। शायद कोई स्पष्टीकरण हो!


*


“अरे, आ गई बहू!” प्रियम्बदा ने मीना को देखते ही कहा।

कल किए गए अपने व्यवहार से वो भी बहुत दुःखी थी, लेकिन क्या करती? जय के सामने वो उससे माफ़ी भी तो नहीं मांग सकती थी न! नहीं तो उसके अपने ही अलग प्रश्न उठने लगते! अब यह सब वो उसको कैसे बताती?

“गुड मॉर्निंग माँ,” मीना ने चहकते हुए कहा और आ कर माँ के पैर छुए।

“मेरी बच्ची...” प्रियम्बदा ने बड़े लाड़ से कहा, “आयुष्मती भव... सुखी भव... यशस्वी भव...” प्रियम्बदा ने आशीर्वाद दिए और मीना के माथे को स्नेह से चूम लिया।

“गुड मॉर्निंग, माँ...” जय ने भी माँ के पैर छुए।

“आयुष्मान भव मेरे लाल...” माँ ने जय के भी माथे को चूमते हुए आशीर्वाद दिया और आगे कहा, “इसके अलावा और क्या आशीर्वाद दूँ? इतनी प्यारी सी बहू है मेरी... उसकी संगत में तो तुम्हारा सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता रहेगा!”

माँ की इस बात पर मीना के गाल सेब जैसे लाल हो गए।

“ठीक से सोए बच्चों?” माँ ने पूछा तो दोनों से, लेकिन पूछते समय देखा केवल मीना को।

“हाँ माँ...” जय बोल पड़ा, “कल इन्होने तो मुझको डरा ही दिया था... लेकिन फिर नार्मल बिहैव करने लगीं! ... अच्छी नींद आई, और देर तक भी!”

माँ अभी भी मीना को ही देख रही थीं।

वो एक पल को संकोच से चुप रही, लेकिन फिर बोली, “... जी माँ! यहाँ तो बहुत सुकून है... बहुत सुख है... बहुत ही अच्छी नींद आई...”

मीना समझ ही रही थी कि कल रात अगर कोई उनके कमरे में आया था, तो बहुत अधिक संभव है कि कमरे के अंदर का हाल माँ को पता चल गया हो। इसलिए उनसे छुपाने से कोई लाभ नहीं है।

“... इसीलिए देर तक सो गए...” उसने आगे जोड़ा।

“गुड! नींद अच्छी होनी बहुत ज़रूरी है!” माँ को वैसे भी सब पता ही था, “तुम लोगों का टाइम ज़ोन भी तो अलग है यहाँ से...”

वो कह ही रही थीं, कि चित्रा उनकी गोदी में ठुनकने लगी! उन्होंने बड़े लाड़ से चित्रा को अपनी गोदी में खिलाते हुए कहा, “... पता है, मैं और हमारी ये नन्ही सी राजकुमारी सवेरे से खेल रहे हैं! ... और सबसे अच्छी बात यह है कि ये एक बार भी नहीं रोई!”

“क्यों रोयेगी, माँ?” मीना बोली, “... अपनी दादी माँ को पहचानती है न!”

“हाँ... वो तो है!” कहते हुए माँ ने कई कई बार चित्रा को चूमा।

अपनी माँ को ऐसे करते हुए देख कर जय एक बनावटी शिकायती लहज़े में बोला, “माँ... ये क्या बात हुई! ... अपनी पोती को देख कर आप अपने बेटे को ही भूल गईं!”

“भूली नहीं हूँ... अपने राजा बेटा को! ... बस, फिलहाल तो अपनी बिटिया के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हूँ... आ जा... तू भी आ जा...” कह कर उन्होंने जय की तरफ़ अपनी बाँह बढ़ाई, कि जैसे वो उसको भी अपनी गोदी में ले लेंगी।

जय भी बिना किसी हील हुज्जत के अपनी माँ की कुर्सी के बगल, ज़मीन पर ऐसे बैठ गया कि उसका सर उनकी गोदी में ही रह जाए। उसको ऐसा करते देख कर मीना मुस्कुराई।

‘सच ही कहा था माँ ने... जय की माँ वो ही तो हैं...’

“जानती है बहू? ... ये तेरा हस्बैंड... चाहे कहीं भी हो... चाहे कोई इसको कितना भी दुलार कर ले... इसको मेरे सीने से ही लग कर सुकून आता था...”

“माँ...” कह कर जय प्रियम्बदा से लिपट गया।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “... मुझे भी अपने सीने से लगा लीजिए माँ! ... यही तो मिस करती रही हूँ पूरी उम्र भर... अपनी माँ का प्यार और दुलार...”

“आ जा... तू भी आ जा मेरी लाडो!”

मीना भी माँ की गोदी में सर रख ली।

“ये तो गोदी है न बच्चे...” माँ ने अपनी छाती की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “मेरा सीना इधर है...”

उनकी बात पर मीना उनके सीने पर सर रख कर दुबक जाती है।

कुछ देर चारों उसी तरह से यूँ ही आलिंगन में बंधे रहे। फिर माँ ही कहती हैं,

“बहू, अभी नाश्ता लगवा देती हूँ... फ़िर हम सब बाहर चलते हैं! ... तुमको इस्टेट भी तो दिखाना है... उसके बाद शॉपिंग करनी है...”

“शॉपिंग माँ?”

“हाँ! अरे, एक हफ़्ते में तुम दोनों की शादी है न... अभी नहीं करेंगे तो फ़िर कब?”

“... लेकिन... माँ...” मीना ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा, “... अगर कहीं कोई...”

“चिंता न करो बच्चे... सब ठीक रहेगा...”

चित्रा एक बार फिर से ठुनकने लगी।

“बहू, शायद इसको भूख लगी है...” माँ ने चित्रा को मीना की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, “नहीं तो ये ऐसे न परेशान होती। ... दूध पिला दो इसको... मैं नाश्ता लगवाती हूँ... खूब भूख लगी होगी न!”

“हाँ माँ,” इस बार जय बोला, “भूख तो लगी है खूब... कल मैडम के चक्कर में मैंने भी नहीं खाया था!”

“अले मेला नन्हा राजकुमार,” माँ ने उसको लाड़ से तोतली भाषा में दुलराया, “बस अभ्भी लगवा देती हूँ खाना...”

कह कर वो अपनी कुर्सी से उठने लगीं।

“माँ, भैया भाभी?”

“वो तो कब का खा कर बाहर चले गए... आदित्य से मिलने के लिए कई लोग उत्सुक थे न!”

“अच्छा अच्छा...” जय ने कहा।

“तू मन मसोस के न रह! तुझसे और बहू से भी कई लोग मिलना चाहते थे... लेकिन मैंने ही मना कर दिया है... विवाह से पहले किसी से नहीं मिलना है!”

“जो आज्ञा माते!”

माँ के जाने के बाद मीना ने जय से कहा,

“तुम भी न!”

“क्यों? अब क्या किया मैंने?”

“माँ को भेज दिया हमारे लिए खाना लाने को! ... अच्छे खासे जवान मर्द हो... खुद जाते!”

“अरे, तुमको क्या लगता है? माँ मेरे कहने से रुक जातीं? ... हरगिज़ नहीं!” जय ने हँसते हुए कहा, “... अभी तुमको पता नहीं है मेरी जान! ... माँ हमको देखते ही उत्साह से भर जाती हैं!”

“आई नो! ... लेकिन हमारा भी तो कुछ बनता है न, उनके लिए कुछ करने का!”

“यस! ... तुम माँ से पूछ लेना कि क्या करना है!” फिर चित्रा की तरफ़ इशारा करते हुए, “... लेकिन अभी हमारी गोलू मोलू को अपना मीठा मीठा दुद्धू तो पिला दो!”

“जी हुकुम...” मीना ने कहा और हँसते हुए चित्रा को अपनी गोदी में स्तनपान कराने के लिए व्यवस्थित करने लगी।

*
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 
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