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Romance श्रृष्टि की गजब रित

sunoanuj

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Dear Funlover Ji,

Aaj kaafi sare updates ek sath padhe............kahani kaafi aage badh chuki he..........

Sakshi ki kahani badi hi chunautiyo se bhari huyi he............usne itna survive kiya abdi hi himmat ki baat he...........

Aakhirkar shristi ke man ka vaham/duvisha dur ho hi gayi.............ab intezar he raghav aur shrishti ke purpose ka......

Keep rocking Dear
जी बिलकुल

बहोत लोग अपने छोटे वेकेशन पे होंगे आप भी शायद ............... उम्मीद है आपने अपना वेकेशन आपकी उम्मीदों के मुताबिक़ रहा होगा

जी मैंने पहले भी कहा था की ये साक्षी केरेक्टर मुझे परेशान करती ही रहती है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, कहा से काहा एयर कैसी निकली आगे क्या करेगी पता नहीं

ऐसे हिकी केरेक्टर हमारे जीवन के आसपास भी होते है सिर्फ हमें पहचानना आना चाहिए

साक्षी जैसी हर अनाथ बच्छी अगर एसी चुनैती ओ को पार कर के अपना वजूद बनाए रखे बस यही उम्मीद है .............. भगवान उनको बहोत शक्ति दे .......

खेर अब देखेंगे श्रुष्टि और राघव की ऑर भी ...........


बने रहने के लिए शुक्रिया
 
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Bahut hi behtarin updates… bhawanaon ka jabardast toofaan tha last update main …

Adhbhut likh rahe ho app …. 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
बस लिखने के लिए लिख लेती हु अपने आप को लेखिका नहीं समजती

पर आपने सराहा मतलब आपको कहानी पसंद आई है और मुझे बस वोही चाहिए था

उम्मीद रखती हु आगे भी बने ही रहेंगे

कोशिश है की हर कहानी के जरिये सब को मनोरंजन मिलता रहे
 

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लिखना चालु है बस थोड़ी ही देर में हम कहानी को आगे भी जानेंगे
 
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भाग - 31


साक्षी की प्रेम कहानी जानने के बाद श्रृष्टि बोलीं... यार मैं खुद उलझी हुई हूं इस मामले में मैं तेरी कोई मदद शायद ही कर पाऊं।

साक्षी...तू फिक्र न कर लडको को परखने की कला मुझे बखुबी आता है। शिवम को कैसे परखना है वो मैं देख लूंगी लेकिन उससे पहले तुझे और राघव सर को कैसे एक करना हैं उस पर सोचना हैं।

श्रृष्टि…तू कुछ ऐसा वैसा न सोच बैठना और जो बाते तुझे बताया है वो अपने तक ही रखना।

साक्षी...मुझ पर भरोसा रख मैं मतलबी हो सकती हूं पर जुबान का बिल्कुल पक्की हूं। चाहे कुछ भी हों जाएं तूने मुझे वास्ता दिया है तो उसे जरूर निभाऊंगी।

अच्छा अब मैं चलती हूं जरा मेरे मजनू का कुछ हाल चाल ले लू।

श्रृष्टि... ठीक है जा।

इसके बाद साक्षी चली गई और श्रृष्टि कुछ वक्त तक किसी विचार में खोए रहीं फ़िर रेस्ट करने चली गईं।

अगले दिन दफ्तर आते ही राघव उताबला हुआ जा रहा था कि कल साक्षी और श्रृष्टि के बीच क्या बाते हुइ। लेकिन उसे मौका ही नहीं मिल रहा था। वो एक के बाद एक मीटिंग करने में व्यस्त था। साथ ही कुछ ज़रूरी काम भी निपटा रहा था। जब उसे वक्त मिला तब उसने साक्षी को बुला लिया। साक्षी के आते ही राघव बोला... साक्षी जल्दी बोलों कल श्रृष्टि से तुम्हारी क्या बाते हुई।

साक्षी... सर बहुत बाते हुई और उसके बेरूखी की वजह भी पाता चल गया है। साथ ही एक खास बात ये पता चला कि वो भी आपसे बहुत प्यार करती है। जितनी भी बार वो आपसे बेरुखी से पेश आई उतनी ही बार उसे आप से ज्यादा तकलीफ हुइ हैं।

राघव...ये तो मैं भाप चुका था। अब तुम वो वजह बताओं जिसके कारण श्रृष्टि मेरे साथ बेरूखी से पेश आ रही हैं।

साक्षी... सॉरी सर वो वजह तो मैं नहीं बता सकती हूं क्योंकि उसने मुझे दोस्ती का वास्ता दिया हैं।

राघव...अब ये कौन सा पेंच फंसा आई सोचा था श्रृष्टि के बेरूखी का कारण पता चलने पर उसकी बेरुखी दूर करने का कोई रस्ता खोज निकलूंगा पर अब कैसे कोई रस्ता निकालूं।

साक्षी... रास्ता मैं बता दूंगी लेकिन उसकी बेरुखी की वजह नहीं बता सकती हूं। मैं मजबुर हूं।

राघव...तो बताओं न अब क्या मूहर्त निकलवा कर ही बताओगी।?

साक्षी... बता तो दूंगी लेकिन आप मुझे एक वादा दो की जब भी आपकी मदद की मुझे जरूरत पड़ेगी अब मेरी मदद करेंगे।

राघव... एक रस्ता बताने के लिए तुम मूझसे मदद करने की वादा ले रहें हों। मतलब कि किसी बड़े काम में तुम मदद मांगने वाली हों।

साक्षी... सर आगे चलके एक मामले में मुझे आपकी मदद की जरूरत पड़ सकती हैं। कहीं आप मुकर न जाओ इसलिए आपसे वादा ले रहीं हूं।

राघव...मैं मुकर जाऊंगा इसका मतलब तुम मूझसे कुछ ऐसा करवाने वाले हों जो शायद मुझे पसंद न हों या फ़िर श्रृष्टि...।

"सर आप डरिए नही मैं जो भी मदद आपसे लूंगी उसकी जानकारी श्रृष्टि को होगी जब वो हां कहेगी तब ही मैं आप से मदद लूंगी मगर उससे पहले कोशिश करूंगी की आपकी मदद लेने की जरूरत ना पड़े।" राघव के शक को दूर करते हुए साक्षी बोलीं।

राघव... ऐसा है तो चलो दिया वादा अब तुम मुझे जल्दी से वो रास्ता बताओ।

साक्षी... सर आप ना किसी क्लाइंट से मिलने जानें की बात कहकर श्रृष्टि को साथ लेकर जाओ और अपनी बाते कह दो चाहो तो अभी हम जिस प्रॉजेक्ट पर काम कर रहें है उसी के क्लाइंट से मिलने जानें की बात कहकर ले जाओ लेकिन उसे पहले से मत बता देना जब जाना हो उसी वक्त बताना। इससे वो मना नहीं कर पाएगी।

राघव...बिल्कुल सही कहा ऐसा ही करना ठीक होगा मैं उसे कल ही बहाने से लेकर जाता हूं क्योंकि कल शाम को किसी काम से मुझे 10-15 दिन के लिए बहार जाना हैं।

साक्षी... मेरी माने तो वहा से आने के वाद ही प्रपोज करे तो अच्छा होगा। 10-15 आपको नहीं देखेगी तो श्रृष्टि तड़प जायेगी और जब आप प्रपोज करेंगे तो वो मना नहीं कर पाएगी।

राघव... बिल्कुल नहीं उससे ज्यादा मैं तड़पुंगा अगर प्रपोज कर दिया तो भले ही वो मेरे सामने न रहें लेकिन फोन पर तो देख पाऊंगा और नहीं किया तो न देखना नसीब होगा न ही वो बात करेंगी।

साक्षी...ओ हो चलो ठीक हैं जैसा आप ठीक समझो। अच्छा अब मैं चलती हूं।



 

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दृश्य में बदलाव


शाम के चाय का वक्त हों रहा था। चंद्रेश तिवारी डायनिंग हॉल में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहें थे। तभी द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का संकेत दिया।

तिवारी... रमेश देख तो कौन आया हैं।

रमेश जाकर द्वार खोला सामने खड़े शख्स को देखकर बोला... छोटे मालिक आप

तिवारी... रमेश कौन आया हैं।

रमेश... साहब छोटे मालिक आएं हैं।

इतना बोलकर रमेश किनारे हट गया या कहूं अरमान ने धक्का देकर उसे किनारे किया और दनदनाते हुए भीतर घुस आया फ़िर "मां मां कहा हों"।

तिवारी... तेरी मां उसके कमरे मैं हैं। यहां खड़े खड़े चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला मिलना है तो तुझे खुद चलकर उसके कमरे तक जाना होगा।

अरमान बिना कुछ कहें बरखा के कमरे में चला गया। कुछ देर बाते करने के बाद बरखा को कमरे से बाहर चलने को कहा लेकिन बरखा ने मना कर दिया। तब अरमान बोला…क्यों नहीं जाना

"वो नहीं आएगी क्योंकि उसे चेतावनी मिला हुआ हैं जब तक मैं या राघव घर में रहेंगे वो अपने कमरे में कैद रहेगी।" ये आवाज तिवारी का था जो कमरे के द्वार से कुछ ही दूरी पर बैठे चाय की चुस्कियां ले रहा था।

अरमान... कहें की चेतावनी। मां तुम बाहर चलो मैं देखता हूं कौन क्या करता हैं ये बूढ़ा तो बुढ़ापे में सटिया गया हैं।

"सही कहा बूढ़ा बुढ़ापे में सटिया गया हैं और वो कर रहा हैं जो वर्षो पहले करना चहिए था। तू भी कान खोलकर सुन ले इस घर का मालिकाना हक मेरे पास हैं इसलिए जो मैं कहुंगा इस घर में वोही होगा। अगर तुझे इस घर में खुला घूमना है तो तुझे भी वहीं करना होगा जो मैं कहुंगा। मेरा कहा नहीं मानना हैं तो कहीं ओर अपना ठिकाना ढूंढ लेना।" लगभग चीखते हुए तिवारी ने अपनी बाते कह दिया।

तिवारी के बातों का जवाब देने के लिए अरमान का जीभ कुलबूला रहा था। मगर वो कुछ कह नहीं पाया क्योंकि बरखा ने उसे होठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा कर दिया था। यह देख तिवारी बोला... बरखा आज तुमने पहली बार अपने बेटे को बोलने से रोककर एक अच्छा काम किया हैं। आगे भी ऐसे ही अच्छा काम करती रहना इससे इस घर में शान्ति बनी रहेगी और तुम दोनों मां बेटे का ठाट बांट भरा जीवन सुचारू रूप से चलता रहेगा। जिस दिन तुमने यह काम नहीं किया उस दिन मैं तुम दोनों मां बेटे को धक्के मार कर इस घर से बहार फेंक दूंगा और संपति से भी बेदखल कर दूंगा।

तिवारी की कड़क मिजाज से भरी बातें सुनकर दोनों मां बेटे को सांप सूंघ गया। दोनों बिना कुछ कहें कमरे का द्वार बन्द कर लिया फिर अरमान के पूछने पर बरखा ने बता दिया की तिवारी ने अपना तेवर क्यों बदल लिया। जिसे जानकर अरमान और बरखा में योजना बनाने लगा की इस परिस्थिती से कैसे बाहर निकला जाए।

रात्रि भोजन का समय हों चुका था। तिवारी और राघव के लिए भोजन लगाया जा रहा था उसी वक्त अरमान अपने कमरे से बाहर निकला फ़िर बोला…रमेश मेरा और मां का खाना मां के कमरे में लगवा देना।

तिवारी... रमेश अभी खाली नहीं है हम दोनों बाप बेटे के लिए भोजन लगा रहा है। तुझे जल्दी है तो खुद से लेकर जा।

राघव... कैसा है भाई और कब आया।?

अरमान...देख ले कैसा हूं। शाम को आया हूं तब से पराए जैसा सलूक हों रहा हैं।

तिवारी... तुम्हारा किया हुआ तुम पर ही लौट रहा हैं बेटे। ऐसा ही सलूक तुम दोनों मां बेटे राघव के साथ करते आए हों। इतने से वक्त में जब तुझे इतना बूरा लग रहा हैं तो सोच जरा राघव को कितना बूरा लगता था?। जब तुम दोनों उसके साथ पराए जैसा सलूक करते हों और तुम दोनों तो वर्षों से करते आ रहे हों।

तिवारी का तेवर और सच्चाई बताने पर अरमान बिना कुछ कहें वहा से चला गया। उसके जाते ही तिवारी ने रमेश को बरखा और अरमान का खाना उनके कमरे में लगवा देने को कह दिया।

जारी रहेगा….




 
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भाग - 32


दोनों बाप बेटे भोजन करते हुए। दफ्तर की बाते कर रहें थे। तब राघव बोला... पापा कल शाम को मुझे कुछ काम से 10-15 दिन के लिए बहार जाना हैं। आप इतने दिनों के लिए जब भी आपको मौका मिले दफ्तर हों आना।

तिवारी ने हां बोल दिया फिर भोजन से निपट कर राघव अपने कमरे में चला गया और तिवारी वही बैठे रहें। कुछ देर में अरमान भोजन करने के बाद अपने कमरे में जा रहा था कि तिवारी ने उसे बुला लिया। अरमान के आते ही तिवारी बोला...अरमान तुझे जयपुर वापस कब जाना हैं।

अरमान... आज ही तो आया हूं। कुछ दिन बाद चला जाऊंगा।

तिवारी... ठीक है कल शाम को राघव किसी काम से बाहर जा रहा हैं उसके आने तक तू रोजाना दफ्तर जायेगा।

अरमान... जयपुर का काम देखू फ़िर दफ्तर भी जाऊं इतना काम मेरे से नहीं हो पायेगा।

तिवारी... क्यों नहीं हो पायेगा? राघव को देखा हैं उसे अपने बारे में सोचने का फुरसत नहीं मिलता हैं दिन रात सिर्फ काम और काम में लगा रहता हैं।

अरमान... काम और काम के अलावा उसे और कुछ सूझता ही नही मैं उसके जीतना काम मैं नहीं कर सकता हूं।

तिवारी...अच्छा राघव दिन रात मेहनत करके संपत्ति बढ़ाएगा और तू बैठें बैठें बराबरी का हिस्सा लेगा।? तूझे संपति में बराबरी का हिस्सा चहिए तो राघव के बराबर काम करना होगा। अगर नहीं कर सकता तो संपत्ति में बराबरी का हिस्सा तो छोड़ जीतना मिल रहा हैं शायद वो भी न मिले।

अरमान... मतलब आप...।

"हां मैं संपत्ति का बराबर हिस्सा कर दूंगा लेकिन तब जब तू राघव जितना काम उतनी ही ज़िम्मेदारी से करेगा जितनी ज़िम्मेदारी से राघव करता हैं।" अरमान की बात पूरा करते हुए तिवारी बोला

"ठीक हैं" बुझे मन से बोलकर अरमान चला गया उसके बाद तिवारी भी अपने कमरे में चला गया।


 
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दृश्य में बदलाव



सुबह दफ्तर आने के बाद कुछ जरूरी काम निपटाकर राघव ने श्रृष्टि को बुलवाया। श्रृष्टि बेमन से राघव के पास जानें के लिए निकला ही था की किसी को देखकर चौक गया और खुद से बोला... ये कमीना यहां पर क्यों? क्या करने आया? पहले तो कभी नहीं देखा।

उस शख्स ने भी श्रृष्टि को देख लिया। देखकर पहले तो चौक गया फ़िर कमीनगी मुस्कान से मुस्कुरा कर बोला... ओहो मैडम आप यहां काम करती हों चलो अच्छा हुआ आप को ढूंढने के लिए मेहनत नहीं करना पड़ेगा।

इतना बोलकर वह शख्स अपने गाल पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए चला गया और श्रृष्टि के माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं। उन्हीं लकीरों के साथ श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गई। श्रृष्टि से नज़रे मिलते ही उसके माथे पर चिंता की लकीरें देखकर राघव बोला... श्रृष्टि क्या हुआ तुम इतनी चिंतित क्यों दिखाई दे रही हों।

"कुछ नहीं सर बस इसलिए चिंतित हूं की आप ने यू अचानक क्यों बुलाया।" मूल वजह न बताकर दुसरा वजह बता दिया जो उसके लिए चिंता का विषय था ही नहीं।

राघव... अच्छा चलो बुलाने का कारण भी बता देता हूं। अभी तुम जिस प्रॉजेक्ट पर काम कर रहीं हों। उसके क्लाइंट ने अभी के अभी मिलने बुलाया हैं और तुम्हारा जाना जरूरी हैं।

"क्या" चौक कर श्रृष्टि बोलीं।

राघव... हां चलो हमे अभी चलना हैं।

इतना बोलकर राघव बहार को चल दिया और बुझे मन से धीरे धीरे श्रृष्टि ऐसे चल रहीं थीं जैसे उसके शरीर का बोझ उसके पैर उठा नहीं पा रहा हों।

कुछ ही देर में दोनों राघव के कार में थे हालाकी राघव के साथ उसी के कार से श्रृष्टि जाना नहीं चहती थी और इसके लिए उसके पास देने को कोई तर्क ही नहीं था इसलिए बेमन से कार में बैठ गई।

रास्ता भर सामने के सीट पर खुद को समेटे श्रृष्टि बैठी रहीं और खिड़की से बाहर को देखती रहीं। राघव कभी कभी नज़र फेरकर श्रृष्टि को देख लेता फिर मुस्कुराकर अपना ध्यान कार चलाने में लगा देता।

शहर के मशहूर रेस्टोरेंट के सामने कार रोका तो श्रृष्टि चौककर राघव को ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हों यहां क्यों लाए, हमे तो क्लाइंट से मिलने जाना था।

श्रृष्टि को चौकते देखकर राघव खुद ही बोल दिया…श्रृष्टि तुम ऐसे क्यों चौक रहीं हों क्लाइंट ने हमे यही पर मिलने बुलाया था।

दोनों साथ में रेस्टोरेंट के अंदर गए फिर एक ओर इशारा करके श्रृष्टि को साथ लिए एक पर्सनल केबिन में जाकर बैठ गया फ़िर श्रृष्टि को मेनू कार्ड देते हुए राघव बोला... श्रृष्टि जो पसंद हो अपने लिए और मेरे लिए भी ऑर्डर कर देना।

मेनू कार्ड को कुछ देर देखने के बाद ऑर्डर दे दिया फिर श्रृष्टि बोलीं…सर आप मुझे यहां किस काम से लाए है।? क्या मैं जान सकती हूं?

राघव...क्यों तुम नहीं जानती? हम यहां क्लाइंट से मिलने आए हैं।

श्रृष्टि...क्लाइंट तो अभी तक आए नहीं है। तो क्या आप उनसे पूछ सकते है? वो कितने देर में आ रहे हैं।?

राघव…पूछ लूंगा उसे पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दे सकती हों कि तुम्हें मेरे साथ कुछ वक्त बैठने में क्या दिक्कत हैं?

श्रृष्टि के पास इस सवाल का जवाब था ही नहीं तो क्या जवाब देती। बस दो पल राघव को देखा फ़िर नज़रे झुका लिया और राघव बोला…तुम्हारे नज़रे झुका लेने से मैं इतना तो समझ ही गया हूं कि तुम्हारे पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं हैं। अगर हैं भी तो तुम देना नहीं चहती हो शायद मैं तुम्हारे नजरों में बहुत या कहूं हद से ज्यादा गयागुजरा हूं इसलिए तुम बीते काफी समय से मुझे नज़रअंदाज कर रहीं हों। जब भी मैं तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताने आता हूं तुम बहाने से कहीं और चली जाती हों। मैं सही कह रहा हूं न।

इतना सुनते ही श्रृष्टि ने कुछ वक्त राघव की ओर देखा फ़िर अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया फ़िर आंखें मिच लिया। दूसरी ओर देखकर ही श्रृष्टि बोलीं... सही कहा अपने आप मेरे नजरों में हद से ज्यादा गए गुजरे हों इसलिए मैं आपके साथ से बच रहीं थीं और आज भी आना नहीं चहती थी मगर मजबूरी है शायद आप के साथ नहीं आती तो आप मुझे नौकरी से निकाल देते और कहते मैं अपने काम में ज़िम्मेदार नहीं हूं।

श्रृष्टि इतनी बातें कह तो दिया मगर बातों के दौरान उसका गाला भर आया हुआ था और आंखो ने उसे धोका दे दिया था।

अपनी बाते कहने के दौरान श्रृष्टि किस हाल से गुजरी राघव समझ गया था। इसलिए मुस्करा दिया फिर श्रृष्टि के रूकते ही राघव बोला...अरे तुम तो सच बोल रहीं हों। जब तुम मेरे मुंह पर सच बोल ही रहीं हों तो नजरे क्यों फेरना, यहीं बाते तुम मेरी आंखों में देखकर भी बोल सकती हों।

इस वक्त श्रृष्टि का हाल ऐसा था कि वो फूट फूट कर रो दे मगर राघव के सामने खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चहती थी इसलिए किसी तरह खुद को रोके हुए थी। ये बात राघव भी शायद समझ गया होगा इसलिए आगे कुछ न बोलकर चुप रहा।

कुछ देर में उनका ऑर्डर आ गया फ़िर भी श्रृष्टि राघव की ओर नहीं देखा तब राघव बोला... श्रृष्टि कुछ खा लो शायद तब तक क्लाइंट आ जाए।

श्रृष्टि अभी राघव की ओर मुंह फेरती तो राघव देखकर ही समझ जाता कि जितनी बाते उसने कहीं है कहीं न कहीं वो बाते श्रृष्टि को भी चोट पहुंचा रही हैं। इसलिए बिना राघव की और देखे उठ खड़ी हुई और केबिन में लगा वाशबेसिन में हाथ के साथ अपना चेहरा धोने लगीं ये देखकर राघव बोला... अरे श्रृष्टि ये क्या कर रहीं हों चेहरा क्यों धो लिया। इससे तो तुम्हरा सारा मेकअप धुल गया।

श्रृष्टि तूरंत पलटी और राघव को ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हों कि देख कर बताओं तो मैंने कितना मेकअप किया हैं। राघव मुस्कुराते हुए बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि मैं भूल गया था तुम तो नैचुरल ब्यूटी हों तुम्हें तो मेकअप करने की जरूरत ही नहीं हैं।

ये सुनते ही स्वतः ही श्रृष्टि के होठो पर मुस्कान तैर गई फ़िर श्रृष्टि चेहरा और हाथ धोने के बाद आकर जो मंगवाया था वो खाने लग गई। बिना पूछे यूं मतलबी की तरह खाते हुए देखकर राघव बोला…श्रृष्टि बड़े मतलबी हों एक बार भी पूछना ज़रूरी नहीं समझा।

सॉरी सर बस इतना बोलकर नज़रे झुका लिया और राघव बोला... तुम्हें शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं हैं मै तो बस ऐसे ही कहा था।

राघव के इस बात का श्रृष्टि ने कोई जबाव नहीं दिया बस चुप चाप खाने में बिजी रहीं। देखा देखी राघव भी खाने में बिजी हो गया। कुछ देर में उनका खाना पीना हो गया फ़िर श्रृष्टि बोलीं...सर हमे आए हुए काफी समय हो गया फ़िर भी आपके क्लाइंट नहीं आया। एक बार पूछ कर तो देखो कहा रह गए।

राघव... देखो श्रृष्टि यहां कोई क्लाइंट नहीं आ रहा हैं। मुझे तुमसे कुछ बात करनी थीं इसलिए तुम्हें झूठ बोलकर यहां लाया हूं। तुमसे झूठ बोला उसके लिए सॉरी सॉरी सॉरी।

जारी रहेगा...
 

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भाग - 33


राघव के खुलासा करते ही कि कोई क्लाइंट मिलने नहीं आने वाला हैं वो झूठ बोलकर श्रृष्टि को रेस्टोरेंट में लेकर आया हैं। श्रृष्टि को समझते देर नहीं लगा कि राघव कौन सी बात कहने यहां आया हैं। जिसके लिए न जाने कब से श्रृष्टि टाला मटोली कर रहीं थीं। सिर्फ इतना ही नहीं राघव को नजर अंदाज भी कर रहीं थी। मगर इतना कुछ करने के बाद भी वो वक्त आ ही गया। जब राघव प्यार का इजहार करने वाला हैं।

श्रृष्टि का मन इसे भापकर खुशी में झूमना चाहता था लेकिन कुछ बाते हैं जो श्रृष्टि के मन मस्तिष्क को अपने जड में ले रखा था। इस वक्त श्रृष्टि की मस्तिष्क में उसके मां के साथ घटी घटना के बारे में वो जितना जानती थी। एक एक बाते घूम रहीं थीं।

भविष्य की वो बाते जिसका अगम अनुमान श्रृष्टि लगा रखी थी कि राघव के परिवार वाले उसके नाना नानी की तरह रूढ़ीवादी सोच के हुए तो क्या होगा अगर नहीं हुए तो कहीं उसकी मां के बारे में कोई गलत बाते कहकर उसे ठुकरा न दे।

इन्ही सभी बातों ने उसके भीतर एक जंग सा छेड़ रखा था। तर्क वितर्क खुद से ही कर रहीं थीं। उसका दिल गवाही दे रहा था कि राघव उसके बाप जैसा नहीं हों सकता हैं। लेकिन जब राघव के परिवार की बात और मां पर लांछन लगने की बात आई तो श्रृष्टि न चाहते हुए भी राघव के प्यार को ठुकराने का निश्चय कर लिया। फिर श्रृष्टि बोलीं...सर दफ्तर में इतने सारे काम पड़े है उसे छोड़कर आपको यही सब सूझ रहा हैं। अपने ही दफ्तर में काम करने वाली एक कर्मचारी को झूठ बोल कर रेस्टोरेंट लेकर आ गए आपको ऐसा करते हुए शर्म आना चहिए था।

राघव...कर्मचारी यहां पर कौन कर्मचारी और कौन मालिक हैं? चलो तुम्हारी बात मान लेता हूं तुम मुलाजिम हों पर क्या यहीं सच हैं। तुम जानती हों कि तुम मेरे लिए एक मुलाजिम से बढ़कर हों।

"एक मुलाजिम से बढ़कर हों" ये सुनते ही श्रृष्टि का मन उछालने को कह रहा था लेकिन श्रृष्टि चाहकर भी ऐसा नहीं कर पा रहीं थीं। अजीब सी कश्मकश से वो लड़ रहीं थीं। जब वो इस लड़ाई में जीत नहीं पाई तो मुंह फेरकर आंखे मिच लिया।

राघव भली भांति समझ रहा था कि श्रृष्टि खुद से जंग लड़ रहीं हैं मगर क्यों ये वो समझ नहीं पाया। आज वो मन बनाकर आया था कुछ भी हों जाएं वो इस मौके को हाथ से जानें नहीं देगा और अपनी बाते श्रृष्टि तक पहुंचा कर ही रहेगा। इसलिए राघव बोला...श्रृष्टि मैं नहीं जानता कि वो कौन सी वजह हैं। जिसके लिए तुम मेरे साथ इतनी बेरुखी से पेश आ रहीं थीं। लेकिन मैं इतना तो जानता हूं मेरे साथ बेरूखी करके मूझसे ज्यादा तुम तकलीफ में थी। जो साबित करता है कि तुम भी मूझसे उतना ही प्यार करती हो जीतना मैं तुम से करता हु।

इतना बोलकर राघव चुप हों गया और श्रृष्टि की विडंबना ये थी कि राघव को तकलीफ पहुंचने के लिए वो खुद कितनी तकलीफ से गुजरी हैं इस बात का पता राघव को हैं ये जानकर भी वो खुशी नहीं मना पा रही हैं। चहकते हुए राघव से लिपट नहीं पा रही हैं। बस मुंह फेरे शक्ति से आंखे मिचे बगावत पर उतर आई आंसुओ को रोक रहीं हैं।

राघव भली भांति श्रृष्टि की शारीरिक भाषा देख और पढ़ पा रहा था। वो समझ गया कि श्रृष्टि अपनी जज्बातों को दबा रहीं हैं इसलिए राघव बोला...श्रृष्टि जब कोई जान लेता हैं कि वो जिसे तकलीफ पहुंचा रहा हैं। उससे वो खुद सामने वाले से ज्यादा तकलीफ में रहती हैं और यह बात सामने वाले को पता हैं ये जानते ही वो खुद पर काबू नहीं रख पाती हैं। या तो वो खुशी से उछल पड़ती है या फ़िर वो उससे लिपट कर अपनी जज्बातों को जाहिर कर देता हैं। मगर तुम्हें देखकर लग रहा हैं तुम अपनी जज्बातों को दबा रहीं हों। शायद तुम्हें मेरी बातों से उतनी खुशी न मिली हों लेकिन अब जो बोलने वाला हूं उसे सुनकर तुम अपनी जज्बातों को काबू नहीं रख पाओगी।

इतना बोलकर राघव चुप हुआ और मंद मंद मुस्कुराते हुए श्रृष्टि को देखने लगा। वहां ना चाहते हुए भी श्रृष्टि की दिल की धड़कने धक धक, धक धक तीव्र गति से चल पडा। कुछ पल की चुप्पी छाया रहा बस दो दिलों की धडकने ही सुनाई दे रहा था। चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं ये आंकड़ों में बता पाना संभव नहीं हैं फ़िर भी तीन शब्द जो सभी प्रेमी एक दूसरे से सुनना चाहते हैं। मैं भी वहीं तीन शब्द तुमसे बोलता हूं। श्रृष्टि आई लव यूं, आई लव यूं...।

"आई लव यूं" कहीं बार दौहराने के बाद तब कहीं जाकर राघव चुप हुआ एक बार फ़िर गुप सन्नाटा छा गया सिर्फ सांसों के चलने और सांसों के साथ दिल के धडकने की आवाजों के अलावा शायद ही कुछ ओर सुनाई दे रहा था। श्रृष्टि तो कुछ बोलीं नहीं लेकिन राघव चुप्पी तोड़ते हुए बोला...श्रृष्टि क्या हुआ कोई जवाब तो दो मैं जानता हूं तुम्हारा जवाब क्या होगा फिर भी मैं तुमसे सुनना चाहता हूं।

कुछ देर की फ़िर से चुप्पी छा गया फ़िर चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं... मैं आपसे प्यार नहीं करती हूं।

कुछ चुनिंदा शब्द बोलने में श्रृष्टि की जुबान लड़खड़ा रहा था। जैसे उसकी जुबान कुछ और बोलना चाहता था लेकिन श्रृष्टि जबरदस्ती कुछ ओर बुलवा रहीं थीं। जिसे समझकर राघव बोला... श्रृष्टि तुम जो बोल रहीं हों उसमे तुम्हारा जुबान साथ नहीं दे रहा हैं। तुम्हारा मन कुछ ओर बोलने को कह रहा हैं मगर तुम बोल कुछ ओर रहीं हों। मतलब कोई तो वजह हैं जिस कारण तुम अपनी जज्बातों को दबा रहीं हों (फ़िर अपना रुमाल श्रृष्टि की और बढ़ते हुए राघव आगे बोला) लो श्रृष्टि अपने आंसु पोंछ लो जिसे तुम बहुत देर से बहाए जा रहे हों। तुम्हारे बहते आंसू ने ही मेरा जवाब दे दिया हैं फ़िर भी मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं। जिसके लिए मुझे चाहें कितना भी वेइट करना पड़े कर लूंगा बस तुम इतना जान लो तुम्हारे अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरी लङकी के लिए कोई जगह नहीं हैं।

मुंह फेरे रहने के बाद भी राघव जान गया की श्रृष्टि आंसू बहा रहा हैं साथ ही उसके जवाब का वेइट करने की बात सुनकर श्रृष्टि एक झटके में उठी फिर वॉशबेसिन में अपना चेहरा धोकर अपने रुमाल से पोछने के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आपको मेरे जवाब का वेइट करने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि इस जन्म में तो मैं आपके प्रपोजल को एक्सेप्ट नहीं करने वाली इसलिए बेहतर यहीं होगा की आप किसी ओर को ढूंढ लो रहीं बात आपको मना करने की वजह, तो वो वजह हैं आपकी अपार धन संपत्ति जो आगे चलकर हों सकता है आपके और मेरे बीच दीवार बन जाए इसलिए पहले ही संभाल जाना ठीक होता हैं।

इतनी बाते बोलते वक्त श्रृष्टि पूर्ण आत्मविश्वास और राघव के नजरों से नज़रे मिलाकर बोला जिसने राघव को सोचने पर मजबूर कर दिया कि श्रृष्टि जो अभी तक आंसु बहा रहीं थीं सहसा पानी से मुंह धोते ही उसमे इतना बदलाब कैसे आ गया।!!! राघव को सोच में पड़ा देख श्रृष्टि बोलीं... ज्यादा सोचा विचारों न करो क्योंकि आप अपनी धन संपत्ति छोड़ नहीं सकते और मैं इतनी धन संपत्ति वाले को अपना नहीं सकती इसलिए विचार करना छोड़े और दफ्तर की ओर चलते हैं।

इतना बोलकर श्रृष्टि बाहर की और चल दिया पर कुछ कदम चलते ही अपने रूमाल का एक ओर बार इस्तेमाल अपना चेहरा पोछने में किया फ़िर बाहर चली गई। पीछे पीछे राघव भी चला आया फ़िर दोनों बिना कोई शब्द बोले दफ्तर पहुंच गए कार से उतरते ही श्रृष्टि बोलीं... सर क्या मुझे आज के बचे हुए समय की छुट्टी मिल सकता हैं? क्या हैं कि आपकी बातों से मेरा सिर भारी कर दिया हैं और मेरे सिर में इतना दर्द कर रहा हैं कि मैं काम नहीं कर पाऊंगी।

राघव ने हां बोल दिया फ़िर श्रृष्टि वहीं से ही अपनी स्कूटी से घर चली गई और राघव कार में बैठें बैठें रेस्टोरेंट में हुई एक एक बात को रिवाईन कर रहा था और सोच रहा था की अचानक श्रृष्टि में इतना बदलाव कैसे आया जो पूरे आत्म विश्वास के साथ उसकी आंखों से आंखें मिलाए अपनी बाते कह दिया। विचार करते करते सहसा राघव मुस्करा दिया और बोला... श्रृष्टि तुमने उस वक्त क्यों इतनी आत्म विश्वास से वो बाते कहीं मैं समझ गया हूं। बस कुछ दिन की वेइट करो मैं तुम्हारे मन की सभी शंका को दूर कर दूंगा।


कुछ देर ओर बैठने के बाद राघव दफ्तर के भीतर गया फ़िर थोडा बहुत काम करके घर को चला गया जहां से वो तैयार होकर एयरपोर्ट के लिए चल दिया।

जारी रहेगा….
 

vickyrock

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भाग - 33


राघव के खुलासा करते ही कि कोई क्लाइंट मिलने नहीं आने वाला हैं वो झूठ बोलकर श्रृष्टि को रेस्टोरेंट में लेकर आया हैं। श्रृष्टि को समझते देर नहीं लगा कि राघव कौन सी बात कहने यहां आया हैं। जिसके लिए न जाने कब से श्रृष्टि टाला मटोली कर रहीं थीं। सिर्फ इतना ही नहीं राघव को नजर अंदाज भी कर रहीं थी। मगर इतना कुछ करने के बाद भी वो वक्त आ ही गया। जब राघव प्यार का इजहार करने वाला हैं।

श्रृष्टि का मन इसे भापकर खुशी में झूमना चाहता था लेकिन कुछ बाते हैं जो श्रृष्टि के मन मस्तिष्क को अपने जड में ले रखा था। इस वक्त श्रृष्टि की मस्तिष्क में उसके मां के साथ घटी घटना के बारे में वो जितना जानती थी। एक एक बाते घूम रहीं थीं।

भविष्य की वो बाते जिसका अगम अनुमान श्रृष्टि लगा रखी थी कि राघव के परिवार वाले उसके नाना नानी की तरह रूढ़ीवादी सोच के हुए तो क्या होगा अगर नहीं हुए तो कहीं उसकी मां के बारे में कोई गलत बाते कहकर उसे ठुकरा न दे।

इन्ही सभी बातों ने उसके भीतर एक जंग सा छेड़ रखा था। तर्क वितर्क खुद से ही कर रहीं थीं। उसका दिल गवाही दे रहा था कि राघव उसके बाप जैसा नहीं हों सकता हैं। लेकिन जब राघव के परिवार की बात और मां पर लांछन लगने की बात आई तो श्रृष्टि न चाहते हुए भी राघव के प्यार को ठुकराने का निश्चय कर लिया। फिर श्रृष्टि बोलीं...सर दफ्तर में इतने सारे काम पड़े है उसे छोड़कर आपको यही सब सूझ रहा हैं। अपने ही दफ्तर में काम करने वाली एक कर्मचारी को झूठ बोल कर रेस्टोरेंट लेकर आ गए आपको ऐसा करते हुए शर्म आना चहिए था।

राघव...कर्मचारी यहां पर कौन कर्मचारी और कौन मालिक हैं? चलो तुम्हारी बात मान लेता हूं तुम मुलाजिम हों पर क्या यहीं सच हैं। तुम जानती हों कि तुम मेरे लिए एक मुलाजिम से बढ़कर हों।

"एक मुलाजिम से बढ़कर हों" ये सुनते ही श्रृष्टि का मन उछालने को कह रहा था लेकिन श्रृष्टि चाहकर भी ऐसा नहीं कर पा रहीं थीं। अजीब सी कश्मकश से वो लड़ रहीं थीं। जब वो इस लड़ाई में जीत नहीं पाई तो मुंह फेरकर आंखे मिच लिया।

राघव भली भांति समझ रहा था कि श्रृष्टि खुद से जंग लड़ रहीं हैं मगर क्यों ये वो समझ नहीं पाया। आज वो मन बनाकर आया था कुछ भी हों जाएं वो इस मौके को हाथ से जानें नहीं देगा और अपनी बाते श्रृष्टि तक पहुंचा कर ही रहेगा। इसलिए राघव बोला...श्रृष्टि मैं नहीं जानता कि वो कौन सी वजह हैं। जिसके लिए तुम मेरे साथ इतनी बेरुखी से पेश आ रहीं थीं। लेकिन मैं इतना तो जानता हूं मेरे साथ बेरूखी करके मूझसे ज्यादा तुम तकलीफ में थी। जो साबित करता है कि तुम भी मूझसे उतना ही प्यार करती हो जीतना मैं तुम से करता हु।

इतना बोलकर राघव चुप हों गया और श्रृष्टि की विडंबना ये थी कि राघव को तकलीफ पहुंचने के लिए वो खुद कितनी तकलीफ से गुजरी हैं इस बात का पता राघव को हैं ये जानकर भी वो खुशी नहीं मना पा रही हैं। चहकते हुए राघव से लिपट नहीं पा रही हैं। बस मुंह फेरे शक्ति से आंखे मिचे बगावत पर उतर आई आंसुओ को रोक रहीं हैं।

राघव भली भांति श्रृष्टि की शारीरिक भाषा देख और पढ़ पा रहा था। वो समझ गया कि श्रृष्टि अपनी जज्बातों को दबा रहीं हैं इसलिए राघव बोला...श्रृष्टि जब कोई जान लेता हैं कि वो जिसे तकलीफ पहुंचा रहा हैं। उससे वो खुद सामने वाले से ज्यादा तकलीफ में रहती हैं और यह बात सामने वाले को पता हैं ये जानते ही वो खुद पर काबू नहीं रख पाती हैं। या तो वो खुशी से उछल पड़ती है या फ़िर वो उससे लिपट कर अपनी जज्बातों को जाहिर कर देता हैं। मगर तुम्हें देखकर लग रहा हैं तुम अपनी जज्बातों को दबा रहीं हों। शायद तुम्हें मेरी बातों से उतनी खुशी न मिली हों लेकिन अब जो बोलने वाला हूं उसे सुनकर तुम अपनी जज्बातों को काबू नहीं रख पाओगी।

इतना बोलकर राघव चुप हुआ और मंद मंद मुस्कुराते हुए श्रृष्टि को देखने लगा। वहां ना चाहते हुए भी श्रृष्टि की दिल की धड़कने धक धक, धक धक तीव्र गति से चल पडा। कुछ पल की चुप्पी छाया रहा बस दो दिलों की धडकने ही सुनाई दे रहा था। चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं ये आंकड़ों में बता पाना संभव नहीं हैं फ़िर भी तीन शब्द जो सभी प्रेमी एक दूसरे से सुनना चाहते हैं। मैं भी वहीं तीन शब्द तुमसे बोलता हूं। श्रृष्टि आई लव यूं, आई लव यूं...।

"आई लव यूं" कहीं बार दौहराने के बाद तब कहीं जाकर राघव चुप हुआ एक बार फ़िर गुप सन्नाटा छा गया सिर्फ सांसों के चलने और सांसों के साथ दिल के धडकने की आवाजों के अलावा शायद ही कुछ ओर सुनाई दे रहा था। श्रृष्टि तो कुछ बोलीं नहीं लेकिन राघव चुप्पी तोड़ते हुए बोला...श्रृष्टि क्या हुआ कोई जवाब तो दो मैं जानता हूं तुम्हारा जवाब क्या होगा फिर भी मैं तुमसे सुनना चाहता हूं।

कुछ देर की फ़िर से चुप्पी छा गया फ़िर चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं... मैं आपसे प्यार नहीं करती हूं।

कुछ चुनिंदा शब्द बोलने में श्रृष्टि की जुबान लड़खड़ा रहा था। जैसे उसकी जुबान कुछ और बोलना चाहता था लेकिन श्रृष्टि जबरदस्ती कुछ ओर बुलवा रहीं थीं। जिसे समझकर राघव बोला... श्रृष्टि तुम जो बोल रहीं हों उसमे तुम्हारा जुबान साथ नहीं दे रहा हैं। तुम्हारा मन कुछ ओर बोलने को कह रहा हैं मगर तुम बोल कुछ ओर रहीं हों। मतलब कोई तो वजह हैं जिस कारण तुम अपनी जज्बातों को दबा रहीं हों (फ़िर अपना रुमाल श्रृष्टि की और बढ़ते हुए राघव आगे बोला) लो श्रृष्टि अपने आंसु पोंछ लो जिसे तुम बहुत देर से बहाए जा रहे हों। तुम्हारे बहते आंसू ने ही मेरा जवाब दे दिया हैं फ़िर भी मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं। जिसके लिए मुझे चाहें कितना भी वेइट करना पड़े कर लूंगा बस तुम इतना जान लो तुम्हारे अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरी लङकी के लिए कोई जगह नहीं हैं।

मुंह फेरे रहने के बाद भी राघव जान गया की श्रृष्टि आंसू बहा रहा हैं साथ ही उसके जवाब का वेइट करने की बात सुनकर श्रृष्टि एक झटके में उठी फिर वॉशबेसिन में अपना चेहरा धोकर अपने रुमाल से पोछने के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आपको मेरे जवाब का वेइट करने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि इस जन्म में तो मैं आपके प्रपोजल को एक्सेप्ट नहीं करने वाली इसलिए बेहतर यहीं होगा की आप किसी ओर को ढूंढ लो रहीं बात आपको मना करने की वजह, तो वो वजह हैं आपकी अपार धन संपत्ति जो आगे चलकर हों सकता है आपके और मेरे बीच दीवार बन जाए इसलिए पहले ही संभाल जाना ठीक होता हैं।

इतनी बाते बोलते वक्त श्रृष्टि पूर्ण आत्मविश्वास और राघव के नजरों से नज़रे मिलाकर बोला जिसने राघव को सोचने पर मजबूर कर दिया कि श्रृष्टि जो अभी तक आंसु बहा रहीं थीं सहसा पानी से मुंह धोते ही उसमे इतना बदलाब कैसे आ गया।!!! राघव को सोच में पड़ा देख श्रृष्टि बोलीं... ज्यादा सोचा विचारों न करो क्योंकि आप अपनी धन संपत्ति छोड़ नहीं सकते और मैं इतनी धन संपत्ति वाले को अपना नहीं सकती इसलिए विचार करना छोड़े और दफ्तर की ओर चलते हैं।

इतना बोलकर श्रृष्टि बाहर की और चल दिया पर कुछ कदम चलते ही अपने रूमाल का एक ओर बार इस्तेमाल अपना चेहरा पोछने में किया फ़िर बाहर चली गई। पीछे पीछे राघव भी चला आया फ़िर दोनों बिना कोई शब्द बोले दफ्तर पहुंच गए कार से उतरते ही श्रृष्टि बोलीं... सर क्या मुझे आज के बचे हुए समय की छुट्टी मिल सकता हैं? क्या हैं कि आपकी बातों से मेरा सिर भारी कर दिया हैं और मेरे सिर में इतना दर्द कर रहा हैं कि मैं काम नहीं कर पाऊंगी।

राघव ने हां बोल दिया फ़िर श्रृष्टि वहीं से ही अपनी स्कूटी से घर चली गई और राघव कार में बैठें बैठें रेस्टोरेंट में हुई एक एक बात को रिवाईन कर रहा था और सोच रहा था की अचानक श्रृष्टि में इतना बदलाव कैसे आया जो पूरे आत्म विश्वास के साथ उसकी आंखों से आंखें मिलाए अपनी बाते कह दिया। विचार करते करते सहसा राघव मुस्करा दिया और बोला... श्रृष्टि तुमने उस वक्त क्यों इतनी आत्म विश्वास से वो बाते कहीं मैं समझ गया हूं। बस कुछ दिन की वेइट करो मैं तुम्हारे मन की सभी शंका को दूर कर दूंगा।


कुछ देर ओर बैठने के बाद राघव दफ्तर के भीतर गया फ़िर थोडा बहुत काम करके घर को चला गया जहां से वो तैयार होकर एयरपोर्ट के लिए चल दिया।

जारी रहेगा….
अपडेट कब आएगा
 
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