sunoanuj
Well-Known Member
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जी बिलकुलDear Funlover Ji,
Aaj kaafi sare updates ek sath padhe............kahani kaafi aage badh chuki he..........
Sakshi ki kahani badi hi chunautiyo se bhari huyi he............usne itna survive kiya abdi hi himmat ki baat he...........
Aakhirkar shristi ke man ka vaham/duvisha dur ho hi gayi.............ab intezar he raghav aur shrishti ke purpose ka......
Keep rocking Dear
बस लिखने के लिए लिख लेती हु अपने आप को लेखिका नहीं समजतीBahut hi behtarin updates… bhawanaon ka jabardast toofaan tha last update main …
Adhbhut likh rahe ho app ….
लिखना चालु है बस थोड़ी ही देर में हम कहानी को आगे भी जानेंगेWaiting for next update….
अपडेट कब आएगाभाग - 33
राघव के खुलासा करते ही कि कोई क्लाइंट मिलने नहीं आने वाला हैं वो झूठ बोलकर श्रृष्टि को रेस्टोरेंट में लेकर आया हैं। श्रृष्टि को समझते देर नहीं लगा कि राघव कौन सी बात कहने यहां आया हैं। जिसके लिए न जाने कब से श्रृष्टि टाला मटोली कर रहीं थीं। सिर्फ इतना ही नहीं राघव को नजर अंदाज भी कर रहीं थी। मगर इतना कुछ करने के बाद भी वो वक्त आ ही गया। जब राघव प्यार का इजहार करने वाला हैं।
श्रृष्टि का मन इसे भापकर खुशी में झूमना चाहता था लेकिन कुछ बाते हैं जो श्रृष्टि के मन मस्तिष्क को अपने जड में ले रखा था। इस वक्त श्रृष्टि की मस्तिष्क में उसके मां के साथ घटी घटना के बारे में वो जितना जानती थी। एक एक बाते घूम रहीं थीं।
भविष्य की वो बाते जिसका अगम अनुमान श्रृष्टि लगा रखी थी कि राघव के परिवार वाले उसके नाना नानी की तरह रूढ़ीवादी सोच के हुए तो क्या होगा अगर नहीं हुए तो कहीं उसकी मां के बारे में कोई गलत बाते कहकर उसे ठुकरा न दे।
इन्ही सभी बातों ने उसके भीतर एक जंग सा छेड़ रखा था। तर्क वितर्क खुद से ही कर रहीं थीं। उसका दिल गवाही दे रहा था कि राघव उसके बाप जैसा नहीं हों सकता हैं। लेकिन जब राघव के परिवार की बात और मां पर लांछन लगने की बात आई तो श्रृष्टि न चाहते हुए भी राघव के प्यार को ठुकराने का निश्चय कर लिया। फिर श्रृष्टि बोलीं...सर दफ्तर में इतने सारे काम पड़े है उसे छोड़कर आपको यही सब सूझ रहा हैं। अपने ही दफ्तर में काम करने वाली एक कर्मचारी को झूठ बोल कर रेस्टोरेंट लेकर आ गए आपको ऐसा करते हुए शर्म आना चहिए था।
राघव...कर्मचारी यहां पर कौन कर्मचारी और कौन मालिक हैं? चलो तुम्हारी बात मान लेता हूं तुम मुलाजिम हों पर क्या यहीं सच हैं। तुम जानती हों कि तुम मेरे लिए एक मुलाजिम से बढ़कर हों।
"एक मुलाजिम से बढ़कर हों" ये सुनते ही श्रृष्टि का मन उछालने को कह रहा था लेकिन श्रृष्टि चाहकर भी ऐसा नहीं कर पा रहीं थीं। अजीब सी कश्मकश से वो लड़ रहीं थीं। जब वो इस लड़ाई में जीत नहीं पाई तो मुंह फेरकर आंखे मिच लिया।
राघव भली भांति समझ रहा था कि श्रृष्टि खुद से जंग लड़ रहीं हैं मगर क्यों ये वो समझ नहीं पाया। आज वो मन बनाकर आया था कुछ भी हों जाएं वो इस मौके को हाथ से जानें नहीं देगा और अपनी बाते श्रृष्टि तक पहुंचा कर ही रहेगा। इसलिए राघव बोला...श्रृष्टि मैं नहीं जानता कि वो कौन सी वजह हैं। जिसके लिए तुम मेरे साथ इतनी बेरुखी से पेश आ रहीं थीं। लेकिन मैं इतना तो जानता हूं मेरे साथ बेरूखी करके मूझसे ज्यादा तुम तकलीफ में थी। जो साबित करता है कि तुम भी मूझसे उतना ही प्यार करती हो जीतना मैं तुम से करता हु।
इतना बोलकर राघव चुप हों गया और श्रृष्टि की विडंबना ये थी कि राघव को तकलीफ पहुंचने के लिए वो खुद कितनी तकलीफ से गुजरी हैं इस बात का पता राघव को हैं ये जानकर भी वो खुशी नहीं मना पा रही हैं। चहकते हुए राघव से लिपट नहीं पा रही हैं। बस मुंह फेरे शक्ति से आंखे मिचे बगावत पर उतर आई आंसुओ को रोक रहीं हैं।
राघव भली भांति श्रृष्टि की शारीरिक भाषा देख और पढ़ पा रहा था। वो समझ गया कि श्रृष्टि अपनी जज्बातों को दबा रहीं हैं इसलिए राघव बोला...श्रृष्टि जब कोई जान लेता हैं कि वो जिसे तकलीफ पहुंचा रहा हैं। उससे वो खुद सामने वाले से ज्यादा तकलीफ में रहती हैं और यह बात सामने वाले को पता हैं ये जानते ही वो खुद पर काबू नहीं रख पाती हैं। या तो वो खुशी से उछल पड़ती है या फ़िर वो उससे लिपट कर अपनी जज्बातों को जाहिर कर देता हैं। मगर तुम्हें देखकर लग रहा हैं तुम अपनी जज्बातों को दबा रहीं हों। शायद तुम्हें मेरी बातों से उतनी खुशी न मिली हों लेकिन अब जो बोलने वाला हूं उसे सुनकर तुम अपनी जज्बातों को काबू नहीं रख पाओगी।
इतना बोलकर राघव चुप हुआ और मंद मंद मुस्कुराते हुए श्रृष्टि को देखने लगा। वहां ना चाहते हुए भी श्रृष्टि की दिल की धड़कने धक धक, धक धक तीव्र गति से चल पडा। कुछ पल की चुप्पी छाया रहा बस दो दिलों की धडकने ही सुनाई दे रहा था। चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं ये आंकड़ों में बता पाना संभव नहीं हैं फ़िर भी तीन शब्द जो सभी प्रेमी एक दूसरे से सुनना चाहते हैं। मैं भी वहीं तीन शब्द तुमसे बोलता हूं। श्रृष्टि आई लव यूं, आई लव यूं...।
"आई लव यूं" कहीं बार दौहराने के बाद तब कहीं जाकर राघव चुप हुआ एक बार फ़िर गुप सन्नाटा छा गया सिर्फ सांसों के चलने और सांसों के साथ दिल के धडकने की आवाजों के अलावा शायद ही कुछ ओर सुनाई दे रहा था। श्रृष्टि तो कुछ बोलीं नहीं लेकिन राघव चुप्पी तोड़ते हुए बोला...श्रृष्टि क्या हुआ कोई जवाब तो दो मैं जानता हूं तुम्हारा जवाब क्या होगा फिर भी मैं तुमसे सुनना चाहता हूं।
कुछ देर की फ़िर से चुप्पी छा गया फ़िर चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं... मैं आपसे प्यार नहीं करती हूं।
कुछ चुनिंदा शब्द बोलने में श्रृष्टि की जुबान लड़खड़ा रहा था। जैसे उसकी जुबान कुछ और बोलना चाहता था लेकिन श्रृष्टि जबरदस्ती कुछ ओर बुलवा रहीं थीं। जिसे समझकर राघव बोला... श्रृष्टि तुम जो बोल रहीं हों उसमे तुम्हारा जुबान साथ नहीं दे रहा हैं। तुम्हारा मन कुछ ओर बोलने को कह रहा हैं मगर तुम बोल कुछ ओर रहीं हों। मतलब कोई तो वजह हैं जिस कारण तुम अपनी जज्बातों को दबा रहीं हों (फ़िर अपना रुमाल श्रृष्टि की और बढ़ते हुए राघव आगे बोला) लो श्रृष्टि अपने आंसु पोंछ लो जिसे तुम बहुत देर से बहाए जा रहे हों। तुम्हारे बहते आंसू ने ही मेरा जवाब दे दिया हैं फ़िर भी मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं। जिसके लिए मुझे चाहें कितना भी वेइट करना पड़े कर लूंगा बस तुम इतना जान लो तुम्हारे अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरी लङकी के लिए कोई जगह नहीं हैं।
मुंह फेरे रहने के बाद भी राघव जान गया की श्रृष्टि आंसू बहा रहा हैं साथ ही उसके जवाब का वेइट करने की बात सुनकर श्रृष्टि एक झटके में उठी फिर वॉशबेसिन में अपना चेहरा धोकर अपने रुमाल से पोछने के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आपको मेरे जवाब का वेइट करने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि इस जन्म में तो मैं आपके प्रपोजल को एक्सेप्ट नहीं करने वाली इसलिए बेहतर यहीं होगा की आप किसी ओर को ढूंढ लो रहीं बात आपको मना करने की वजह, तो वो वजह हैं आपकी अपार धन संपत्ति जो आगे चलकर हों सकता है आपके और मेरे बीच दीवार बन जाए इसलिए पहले ही संभाल जाना ठीक होता हैं।
इतनी बाते बोलते वक्त श्रृष्टि पूर्ण आत्मविश्वास और राघव के नजरों से नज़रे मिलाकर बोला जिसने राघव को सोचने पर मजबूर कर दिया कि श्रृष्टि जो अभी तक आंसु बहा रहीं थीं सहसा पानी से मुंह धोते ही उसमे इतना बदलाब कैसे आ गया।!!! राघव को सोच में पड़ा देख श्रृष्टि बोलीं... ज्यादा सोचा विचारों न करो क्योंकि आप अपनी धन संपत्ति छोड़ नहीं सकते और मैं इतनी धन संपत्ति वाले को अपना नहीं सकती इसलिए विचार करना छोड़े और दफ्तर की ओर चलते हैं।
इतना बोलकर श्रृष्टि बाहर की और चल दिया पर कुछ कदम चलते ही अपने रूमाल का एक ओर बार इस्तेमाल अपना चेहरा पोछने में किया फ़िर बाहर चली गई। पीछे पीछे राघव भी चला आया फ़िर दोनों बिना कोई शब्द बोले दफ्तर पहुंच गए कार से उतरते ही श्रृष्टि बोलीं... सर क्या मुझे आज के बचे हुए समय की छुट्टी मिल सकता हैं? क्या हैं कि आपकी बातों से मेरा सिर भारी कर दिया हैं और मेरे सिर में इतना दर्द कर रहा हैं कि मैं काम नहीं कर पाऊंगी।
राघव ने हां बोल दिया फ़िर श्रृष्टि वहीं से ही अपनी स्कूटी से घर चली गई और राघव कार में बैठें बैठें रेस्टोरेंट में हुई एक एक बात को रिवाईन कर रहा था और सोच रहा था की अचानक श्रृष्टि में इतना बदलाव कैसे आया जो पूरे आत्म विश्वास के साथ उसकी आंखों से आंखें मिलाए अपनी बाते कह दिया। विचार करते करते सहसा राघव मुस्करा दिया और बोला... श्रृष्टि तुमने उस वक्त क्यों इतनी आत्म विश्वास से वो बाते कहीं मैं समझ गया हूं। बस कुछ दिन की वेइट करो मैं तुम्हारे मन की सभी शंका को दूर कर दूंगा।
कुछ देर ओर बैठने के बाद राघव दफ्तर के भीतर गया फ़िर थोडा बहुत काम करके घर को चला गया जहां से वो तैयार होकर एयरपोर्ट के लिए चल दिया।
जारी रहेगा….