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Romance श्रृष्टि की गजब रित

Funlover

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चले अब इस कहानी को आगे ले जाया जाये .................अगले भाग की ओर कुचकरते है ..........
 
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भाग - 10


सहसा श्रृष्टि के आवाज देने से राघव के मस्तिस्क का सर्किट उलझ गया। क्या करे क्या न करे असमंजस की स्थिति में फस गया। मन किया वापस लौट जाएं मगर वो भी नहीं कर सकता था। क्योंकि श्रृष्टि द्वार की ओर आ रहीं थीं। कुछ ही कदम आगे बढ़ पाता कि श्रृष्टि बहार निकलकर उसे देख लेती फ़िर न जानें श्रृष्टि क्या क्या सोच लेती। सहसा राघव ने द्वार को धक्का दिया फ़िर बोला…श्रृष्टि जी मैं राघव।

"अरे सर आप..।" बस इतना ही बोला था कि श्रृष्टि के मन में एक शंका उत्पन्न हुआ और मन ही मन बोलीं...

“कही सर छुपकर तो नहीं देख रहे थे”? पर उन्हे छुपकर देखने की जरूरत क्यों पड़ गईं? वो जब चाहें भीतर आ सकते हैं फिर छुप कर देखने की वजह क्या हों सकता हैं?

“कहीं सर मुझे...” नहीं नहीं मुझे क्यों देखने लगे,

“उस दिन भी तो कैसे टकटकी लगाएं देख रहे थे। जब हम सभी उनके कमरे में गए थे। तो आज छुप कर क्यों नहीं देख सकते हैं?”

नहीं नहीं सर ऐसा नहीं कर सकते।

“मैं भी कितनी पागल हूं क्या से क्या सोचने लग गई लगाता है ज्यादा काम की वजह से मेरा दिमाग फिर गया हैं।“

राघव जिस शंका के चलते वापस नहीं गया। आखिरकार श्रृष्टि के मस्तिष्क ने उस ओर इशारा कर ही दिया। मगर इस वाबली ने अलग ही तर्क देकर अपने मस्तिष्क को चुप करा दिया।

यहां श्रृष्टि ख़ुद से बाते करने में मग्न थी ठीक उसी वक्त राघव भी खुद से बाते करने में मग्न था

"कहीं श्रृष्टि जी को शक तो नहीं हों गया? कि मैं उन्हें छुपकर देख रहा था। नहीं नहीं उनके शक को पुख्ता होने नहीं दिया जा सकता। मुझे कुछ करना होगा जिससे उनका ध्यान उस और न जाएं।"

अजीब कशमकश में दोनो उलझे हुए हैं। एक को शक हों गया मगर अपने मस्तिष्क को तर्क देकर उस ओर सोचने से रोक दिया। दुसरा अगर शक हुआ भी है तो शक को पुख्ता करने के लिए शक पर ध्यान केंद्रित न कर पाएं। उससे रोकना चहता हैं। क्या लिखा है दोनों की किस्मत में ये तो वक्त ही बता सकता हैं हमे सिर्फ उस वक्त का इंतजार करना हैं।

खैर राघव अपने मन की बातों को विराम देते हुए बोला...श्रृष्टि जी काम कहा तक पूरा हुआ?

श्रृष्टि तो उस वक्त मन ही मन खुद से बातें करने में मग्न थी। राघव की बातों को कितना सूना कीतना नहीं ये तो सृष्टि ही जाने। जब मन की बाते खत्म हुआ तब श्रृष्टि बोली…सर आप मेरे लिए जी न लगाया करो।

श्रृष्टि की बाते सुनकर किसी को फर्क पड़ा हों चाहें न पड़ा हों मगर साक्षी को बहुत ज्यादा फर्क पड़ा तभी तो धीरे से बोली... ओ तो किस्सा यहां तक पहुंच गया। मोहतरमा को जी सुनना पसन्द नहीं हैं। तो क्या जी बोलना पसन्द हैं?

इतना बोलकर साक्षी अपने नजरों को इधर उधर घुमाया, कही किसी ने सुना तो नहीं, जब देखा उसके नजदीक कोई खड़ा नहीं हैं तब अपना ध्यान सामने की ओर कर लिया। जहां राघव मुस्कुराते हुए बोला...क्यों?

श्रृष्टि... सर मुझे अच्छा नहीं लगता हैं। आप सिर्फ मेरा नाम लिया कीजिए जैसे साक्षी मैम का और बाकियों का लेते हों।

राघव... अच्छा ठीक हैं श्रृष्टि जी ओ नही नही श्रृष्टि! अब आप ये बताइए काम कहा तक पंहुचा।

श्रृष्टि...सॉरी सर मैंने आपको जो समय बताया था उतने समय में काम पुरा नहीं कर पाई बल्की उससे तीन दिन ज्यादा हों गया फिर भी थोडा काम बाकी रह गया।

राघव... लगता है ज्यादा तारीफ़ करने से आप हवा में उड़ने लग गईं थीं जो चार दिन के जगह सात दिन में भी काम पूरा नहीं हों पाया। लगता है आप भी कुछ लोगों की तरह आलसी हों गई हों ( इतनी बाते साक्षी की ओर देखकर बोला फिर श्रृष्टि की ओर देखकर आगे बोला) श्रृष्टि जिम्मेदारी से काम नहीं कर सकतीं हों तो जिम्मेदारी लेना भी नहीं चाहिए और वादा तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। जीतना काम रह गया उसे जल्दी से पूरा कर लिजिए।

इतना बोलकर राघव चला गया और श्रृष्टि एक बार फिर राघव की बातों से आहत हो गई। करें कोई भरे कोई वाला किस्सा एक बार फिर श्रृष्टि के साथ हों गया। काम समय से पूरा न हों पाए इसके लिए अडंगा साक्षी ने लगाया और सुनना श्रृष्टि को पड़ा। उसने साक्षी की ऑर देखा और मन ही मन में गन्दी गाली दे दी !!!

जहां श्रृष्टि आहत थी। वहीं साक्षी मन ही मन खुश हों रहीं थीं। उसकी मनसा जो पूरा हो गया था। वो यहीं तो चाहती थी कि देर होने के कारण राघव श्रृष्टि को कड़वी बातें सुनाए जो राघव सुनाकर चला गया।

अगले दिन ऑफिस आते ही श्रृष्टि की पहली प्राथमिकता अधूरा छूटा काम पूरा करने की थी। जिसे सहयोगियों के साथ पुरा करने में जुट गई। साक्षी का मंतव्य पूरा हो चुका था। इसलिए आज उसने काम में किसी भी तरह का कोई विघ्न उत्पन्न नहीं किया। लगभग दोपहर के खाने के वक्त तक काम पूरा हों गया। एक लंबी गहरी चैन की स्वास भरते हुए श्रृष्टि बोलीं... आखिरकार पूरा हों ही गया। साक्षी मैम आप जाकर सर जी को ये प्रोजैक्ट सौफ आइए।

"ओ तो ये बात हैं कल ही आशंका जताया था और आज वो सच हों गया। मोहतरमा तो सच में जी बोलने लग गईं। ये श्रृष्टि तो रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रहीं हैं। जाओ जाओ जितनी रफ़्तार से जाना हैं जाओ। तेरी रफ्तार पर गतिरोध लगाने के लिए मैं हूं।" जी शब्द सुनते ही साक्षी मन ही मन बोलीं जबकि श्रृष्टि ने साधारण लहजे में बोला था। श्रृष्टि के बोलते ही सहयोगियों में से एक बोला... हां साक्षी मैम आप जल्दी से जाकर यह प्रॉजेक्ट राघव सर को सौप आइए वरना देर हुआ तो श्रृष्टि मैम को फिर से सुनना पड़ेगा।

साक्षी...बडी जोरों की भूख लगा है और लंच टाईम भी हों गया है। पहले लंच करूंगी फ़िर जाऊंगी। श्रृष्टि तुम्हें कोई आपत्ती तो नहीं हैं। अगर हो तो बोल दो मैं अभी दे आती हूं।

"नहीं मैम मुझे कोई आपत्ती नहीं हैं।" मुस्कुराते हुए श्रृष्टि बोला।

लंच के बाद साक्षी प्रॉजेक्ट लेकर राघव के पास पहुंच गई। प्रॉजेक्ट देखने के बाद राघव बोला...इतने विघ्न के बाद आखिरकार ये प्रोजैक्ट पूरा हों ही गया। साक्षी मुझे लगता हैं अगर श्रृष्टि तुम्हारे टीम में नहीं होती तो ये प्रोजैक्ट और लंबा खीच जाता। क्यों मैं सही कह रहा हूं न?

"सर आप मुझ पर उंगली उठा रहें हों। इशारों इशारों में मुझे आलसी कह रहें हों।" खीजते हुए साक्षी बोलीं

राघव...मैंने ऐसा तो नहीं कहा खैर छोड़ो अब तुम जाओ और आज रेस्ट कर लो कल से नया काम दूंगा और हा कल तुम सभी को उपहार भी तो देना हैं। यहां उपहार श्रृष्टि के लिए जीतना खास होगा उतना ही खास तुम्हारे लिऐ भी होगा। अब जब खाली समय हैं? तो बैठकर सोच लेना वो खास उपहार क्या हों सकता हैं?

ख़ास उपहार मिलने की बात से साक्षी मुस्कान बिखेरते हुए चली गई (उसके लिए खास का मतलब कुछ और ही था ) उसके जाते ही राघव पूर्वात बैठ कर रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया।

यहां साक्षी साथियों के पास वापस आकर रेस्ट करने की बात कहीं तो सब के चेहरे पर मुस्कान आ गया।

रेस्ट करने का ऑर्डर मिल चुका था तो सभी लग गए बतियाने, विविध प्रकार की बाते होने लग गइ। बातों के दौरान एक दूसरे की टांगे खींचा जा रहा था।

नाराज होने के जगह सभी लुफ्त ले रहें थे। धीरे धीरे बातों का सिलसिला आगे बड़ा बढ़ते बढ़ते सहसा एक सहयोगी अपने प्रेम जीवन का बखान सुनाने लग गया। जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...श्रृष्टि जरा अपने लव लाईफ के बारे मे भी कुछ बताओं, हम भी तो जानें इतनी खूबसूरत भोली सी सूरत वाली लड़की का कोई तो परवाना होगा जो अपने शब्दों में तुम्हारी तारीफ़ करता हों तुम्हारे नाज नखरे सहता हों।

"ऐसा कोई नहीं है अगर होता तो मैं बता देती।" शरमाई सी श्रृष्टि बोलीं।

"चल झूठी" एक धाप श्रृष्टि के पीठ पर जमाते हुए साक्षी बोलीं।

"मैं झूठ नहीं बोल रहीं हूं चलो माना कि मैं झूठ बोल रहीं हूं। सच आप ही बता दो। आपके लाईफ में कोई तो ऐसा होगा जिसे आप पसन्द करती हों जिसे देखकर आपके दिल का सितार राग छेड़ देता हों।" पलटवार करते हुए श्रृष्टि बोलीं।

"हां है एक, जिसे कई बार इशारा दे चुकी हूं पर निर्मोही ध्यान ही नहीं देता हर बार मेरे चाहत की नाव को बीच धार में डूबा देता हैं।" अफसोस जताते हुए साक्षी ने दिल की बात कह दिया।

"कौन है, कौन है वो निर्मोही" श्रृष्टि सहित सभी उतावला होकर एक स्वर में बोला।

सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुददे को टालकर बातों की दिशा बादल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को ओर प्रस्थान कर गए।

जारी रहेगा….




क्या एक प्रेम कहानी जन्म ले रही है या फिर दो कलि और एक माली ?????
अब ये ख़ास उपहार क्या है ????? सब को असमंजस में डाला हुआ है ??
क्या राघव अपनी जेब से कोई नया पत्ता निकालेगा ????
चलिए जानते है अगले एपिसोड में ..............बने रहिये
 

Funlover

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दोस्तों क्षमा याचना

मुझे अपने बिजनेस की वजह से विदेश जाना पड रहा है तो सोमवार को शायद उपडेट नहीं दे पाऊँगी क्यों की मै ट्रांजिट में होगी

लेकिन मैंने एक व्यवश्था की हुई है की आप को अपडेट मिलते रहे लेकिन पोस्टिंग का समय उस व्यक्ति पर निर्भर रहेगा |और लिखने का समय पे आधारित भी है......

और वैसे भी सिर्फ 4 ही दिनों की बात है फिर वापिस

असुविधा के लिए खेद है ..........बने रहिये

कोशिश करती हु शाम तक दूसरा एपिसोड भी दे दू ताकि कल रविवार को समय मिले ना मिले ......
 

Ajju Landwalia

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अब आगे......

अगले दिन से श्रृष्टि की कर्म यात्रा एक बार फिर सुचारू हो गई। श्रृष्टि का एक मात्र लक्ष्य था कैसे भी करके अपूर्ण रह गए काम को चार दिन से पहले खत्म कर लिया जाएं। जिसमें उसके सहयोगी भरपूर साथ दे रहें थे मगर साक्षी के मन में द्वेष का पर्दा पड़ चुका था।

साक्षी किसी भी कीमत पर अपूर्ण रह गए काम को पूर्ण होने से रोकना चाहती थीं। और वो भी कम से कम 5 दिन जो श्रुष्टि ने राघव सर को कामिट किया था! इसलिए कभी वो कमरे की लाइट बंद कर देती थी जो की एक बचकाना हरकत थी फ़िर भी कुछ वक्त का नुकसान हों ही जाता था।

कभी वो चाय नाश्ते के बहाने सहयोगियों को बातो में माजा लेती तो कभी जरुरी फाइल कही छुपा देती। जिस वजह से सिर्फ समय की बर्बादी हों रहा था।

जीतना समय श्रृष्टि के हाथ में बच रहा था उतने समय का सदुपयोग करते हुए ओर ज्यादा लगन और रफ़्तार से ख़ुद भी काम कर रहीं थी और सहयोगियों से काम करवा रहीं थीं।

इतनी लगन और रफ़्तार से काम करने का कोई फायदा नहीं हुआ। अंतः साक्षी अपने मकसद में कामियाब हों ही गई। श्रृष्टि को दिए समय से तीन दिन ऊपर हों चुका था। देर होने का जीतना पछतावा श्रृष्टि को हों रहा था उतना ही साक्षी मन ही मन खुश हों रहीं थीं।

बीते एक हफ्ते से राघव रोजाना शाम के चाय के वक्त वहा आता रहा मगर भीतर न जाकर बहार से ही छुप छुप कर श्रृष्टि को देखकर चला जाया करता था। आज फिर शाम के वक्त आया और श्रृष्टि को छुप कर देख रहा था कि सहसा श्रृष्टि को आभास हुआ। द्वार पर कोई हैं।

"
द्वार पर कौन हैं।" बोलकर चाय का कप रखा और द्वार की और चल दिया।


अब यहाँ तो सवाल यही उठता है की क्या श्रुष्टि अपने कमिटमेंट को पूरा कर पाएगी ???
अगर हां तो अच्छी बात है श्रुष्टि के लिए
पर अगर ना तो साक्षी पूरी शक्ति से अपने हाथ खोल सकेगी ????????
ऑफिस में सभी काम करते है पर गेम हर कोई खेलता है, सब को अपने अपने तरीके से आगे की ओर बढ़ना है और सभी यही कोशिश करते है श्रुष्टि भी वही करने की कोशिश में है देखते है आगे श्रुष्टि के नसीब में आगे क्या है ????????
जानिये मेरे साथ अगले भाग में
जारी रहेगा
…..

Dono hi updates ek se badhkar ke he Funlover Ji,

Maa beti ka rishta dheere dheere do pakki saheliyo ka ban jata he.............jo ek dusre ke sare sukh dukh bina kahe jaan leti he.................

Sakshi jaise logo ke baare me kya hi kahun...............bina mehnat ke galat raste apnakar bahut hi jaldi saflata pane ki chaah hoti he in logo ki.......

Agar safalta mil bhi jaye to apne aap se bada kisi ko nahi samjhte.............par aage chalkar yahi log arsh se farsh ka safar sabse pehle tay karte he.........

Keep rocking Dear
 

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Dono hi updates ek se badhkar ke he Funlover Ji,

Maa beti ka rishta dheere dheere do pakki saheliyo ka ban jata he.............jo ek dusre ke sare sukh dukh bina kahe jaan leti he.................

Sakshi jaise logo ke baare me kya hi kahun...............bina mehnat ke galat raste apnakar bahut hi jaldi saflata pane ki chaah hoti he in logo ki.......

Agar safalta mil bhi jaye to apne aap se bada kisi ko nahi samjhte.............par aage chalkar yahi log arsh se farsh ka safar sabse pehle tay karte he.........

Keep rocking Dear
जी अज्जू जी आप के विचारो से बिलकुल सहमत हु उस पर और कोई ज्यादा टिपण्णी कर ही नहीं सकता


मुझे ख़ुशी है की आप कहानी को अच्छी तरह से समज रहे है खास कर उसके पीछे रखे गए हर मार्मिक तथ्यों और विषय को बहोत ही बरिकाई से समज रहे है

आप में ये गुण है की आप आधी बात को या फिर (और) उसके पीछे रहे विषयवस्तु को बहोत जल्द ही समज जाते है आप की सराहना करते हुए .................ख़ुशी है की शब्दों की पहचान अच्छी है ........और मुझे ओर भी ज्यादा ध्यान रखना पड़ेगा शब्द चयन में..........अच्छी चेलेंज मिली .........
अपने विचारो को प्रगट करते रहे .....
कही शब्द चयन में कही कोई मिस्टेक दिखे कृपया हायलाईट कीजिये ...........
 
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चलिए जैसा की मैंने कहा था की शाम तक और एक एपिसोड दे दूंगी कोशिश काम्याब हुई .... एक और एपिसोड तैयार ही चुका है

क्या पता कल सब का रविवार है पढेंगे भी या नहीं ...............

सोमवार को मै नहीं हु तो एपिसोड नहीं दे पाउंगी
 
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भाग - 11



सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुद्दे को टालकर बातों की दिशा बदल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को ओर प्रस्थान कर गए।

अगले दिन सभी समय से दफ्तर आ गए मगर राघव कुछ देर से आया। जब वो आया उस वक्त उसका चेहरा उतरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बात से उसको गहरा धक्का लगा हों।

किसी तरह चेहरे के भाव को छुपाए, और बिना किसी से बात किए दफ्तर के निजी कमरे में चला गया। राघव के इस रवैया से जो जो उसे अपने दफ्तर के निजी कमरे तक आने के रास्ते में मिले सभी के सभी हैरत में पड़ गए क्योंकि राघव दफ्तर आते ही दफ्तर के निजी कमरे में जाते वक्त रास्ते में जो जो मिलता था सभी का हांल चाल पूछते हुए जाता था। मगर आज ऐसा नहीं किया जिस कारण सभी हैरत में रह गए।

दफ्तर के निजी कमरे में राघव गुमसुम सा बैठा कुछ सोच रहा था और पेपर वेट को गुमा रहा था। उसी वक्त एक शख्स कमरे में प्रवेश किया ओर बोला... राघव बेटा।

शख्स की आवाज सुनते ही राघव की निगाह उस शख्स की ओर गया। "पापा" बस ये लव्ज निकला फिर आंखो से सैलाव की तरह झर झर आसूं बह निकला। राघव को यूं आसूं बहाता देख वो शख्स तुंरत राघव के पास पहुंचे और गले से लगा लिया फ़िर बोला... राघव तू चंद्रेश तिवारी का बेटा है तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप का मालिक हैं फ़िर भी चंद बातों से इतना आहत हों गया कि आंसुओ का सैलाब ला दिया। देख अपने बाप को जिसे बडी बडी आंधी भी डिगा नहीं पाया तू उस अडिग चंद्रेश तिवारी का बेटा होकर रो रहा हैं।

"पापा मैं आपकी तरह मजबूत नहीं हूं और ना ही मैं कोई पत्थर हूं। एक साधारण सा मानव हूं जिसे कांटा चुभने पर दर्द होता हैं। जब वो कांटा अपनो के दिए तंज का हों तब और ज्यादा चुभता हैं।" सुबकते हुए राघव ने अपनी व्यथा सुना दिया।

"नहीं रोते तू तो बचपन में चोट लगने पर भी नहीं रोता था फिर अब क्यों?"

" क्यों? सौतेले का तंज खुले चोट से ज्यादा दर्द देता हैं जो मूझसे सहन नहीं होता हैं। मैं तो उन्हें सौतेला नहीं मानता फिर क्यों मां और अरमान मुझे सौतेला बेटा, सौतेला भाई कहकर ताने देते रहते हैं। आज भी मां ने सिर्फ इसलिए ताने दिया क्योंकि मैने अरमान को जयपुर भेज दिया। आप ही बताइए मैं अकेला क्या क्या करूं उसकी भी तो कुछ ज़िम्मेदारी बनती हैं।"

तिवारी... सब मेरी ही करनी का फल हैं जो तुझे भोगना पड़ रहा हैं। मैं उस वक्त तेरे भले का न सोचा होता तो आज तुझे यूं तंज न सुनना पड़ता मगर तू फिक्र न कर जल्दी ही मैं इसका कुछ समाधान निकल लूंगा।

राघव... पापा आप मां का कहना मान लिजिए जायदाद का 60 प्रतिशत हिस्सा उनके और अरमान के नाम कर दीजिए बाकी का बचा हुआ मेरे और आपके नाम कर लिजिए शायद इसी बहाने मुझे मां की ममता ओर प्यार का छाव मिल जाएं जिसके लिए अपने उनसे शादी किया था।

तिवारी... क्या किया जा सकता है मैं इस पर विचार करके देखता हूं। अब तू चल कैंटीन से कुछ खा ले।

राघव जानें को तैयार नहीं हो रहा था तब तिवारी जी राघव को सुरसुरी करते हुए बोला... जब तक तू नाश्ता करने जाने को तैयार नहीं होता तब तक मैं तुझे सुरसुरी करता रहूंगा। अब तू सोच कब तक यूं सुरसुरी करना सह सकता हैं।

"पापा छोड़िए न ये घर नही दफ्तर हैं।" खिलखिलाते हुए राघव बोला।

तिवारी... दफ्तर है तो क्या हुआ जब तक तू नाश्ता करने को तैयार नहीं होता तब तक मैं नहीं रूकने वाला।

ज्यादा देर राघव सुरसुरी सह नहीं पाया अंतः हार मानकर नाश्ता करने चल दिया।



जारी रहेगा भाग
 

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अब आगे

अब कुछ बाते जान लेते हैं जिससे पाठक बंधु भ्रमित न हों। चंद्रेश तिवारी अपना सफर एक छोटा सा भवन निर्माता से शुरू किया था जो समय के साथ एक नामी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में बदल गया। चंद्रेश तिवारी का छोटा सा हसता खेलता सुखी परिवार हुआ करता था। सहसा एक दुर्घटना में उनकी पत्नी चल बसी राघव उस वक्त सिर्फ पांच साल का था।

तिवारी के सामने अब दुविधा ये थीं कि काम देखे की अपने पांच साल के बेटे को, काम से मुंह मोड़ नहीं सकता था और बेटे से भी मुंह नहीं मोड़ सकता था। दोस्तों और रिश्तेदारों ने दुसरी शादी करने की सलाह दिया पहले तो नकार दिया फ़िर बहुत समजाने के बाद मान लिया ये सोचकर राघव को एक मां का प्यार और देखभाल करने वाला मिल जायेगा।

तब एक रिश्तेदार के जरिए बरखा से मिला जो तलाक सुदा थी साथ ही एक बेटा भी था। तिवारी ठहरे भले मानुष उन्हें उन पर दया आ गई तब उन्होंने सोचा राघव को मां और अरमान को बाप का छाव मिल जायेगा। यहीं तिवारी से गलती हों गया। शादी के बाद अरमान को बाप का प्यार मिलता रहा लेकिन राघव मां की ममता के लिए तरसता रहा।

तिवारी के सामने बरखा मेरा बेटा मेरा बेटा करती रहती। तिवारी के बहार जाते ही राघव के साथ बुरा सलूक करना शुरू कर देती साथ ही डराकर रखती थीं कि अगर पापा को बताया तो उसे इस घर से बहार कर देगी विचारा घर से दूर जानें की बात से ही सहम जाता था और तिवारी से कुछ नहीं कहता था।

धीरे धीरे समय बीता गया और राघव साल दर साल बड़ा होता गया मगर उसकी यातनाओं में रत्ती भर भी कमी नहीं आया इससे परेशान होकर उच्च शिक्षा के लिए बहार चला गया और जब तब भवन इंजीनियर नहीं बन गया तब तक घर नहीं लौटा।

राघव छुट्टियों में भी घर नहीं आता था। सहसा तिवारी के मन में शंका घर कर गया कि जो घर से दूर जाना नहीं चाहता था वो घर से जाते ही घर आने को राजी क्यों नहीं हो रहा हैं। बरखा से कारण जानना चाहा मगर उसने भी गोल मोल जवाब दे दिया।

बरखा की जवाब से तिवारी को संतुष्टि नहीं मिला तो राघव के पास पहुंच गया। बहुत कहने के बाद आखिरकर राघव ने सच्चाई बता ही दिया। सच्चाई जानकार तिवारी को बहुत गुस्सा आया उसका मन किया बरखा को तलाक दे दे पर मां की गलती की सजा बेटे को नहीं देना चहता था। इसलिए तलाक देने का विचार त्याग दिया।

इन्हीं दिनों तिवारी का लगाव बरखा से खत्म हों गया था लेकिन अरमान से पूर्ववत बना रहा। वहां राघव पढाई पर ध्यान दे रहा था और यहां अरमान बाप के पैसे को मौज मस्ती में लूटा रहा था। कई बार तिवारी ने टोका मगर इसका नतीजा बरखा के साथ तू तू मैं मैं हों जाता था।

राघव अपनी पढ़ाई खत्म करके घर लौट आया और बाप को रिटायरमेंट देकर सभी ज़िम्मेदारी अपने कंधे ले लिया फिर अपने कार्य कुशलता से बाप का काम और नाम को ऊंचाई पर ले जानें लग गया।

अरमान कभी मन होता तो राघव का हाथ बटा देता वरना मौज मस्ती में लगा रहता। अरमान की कारस्तानी से परेशान होकर कभी कभी राघव टोक देता और तिवारी तो पल पल टोकते ही रहते थे इसका नतीजा ये आया की गृह कलेश बढ गया।

रोज रोज के कलेश से परेशान होकर तिवारी ने दोनों मां बेटे को सबक सिखाने के लिए चल अचल संपूर्ण संपत्ति का 30 30 प्रतिशत हिस्सा राघव और खुद के नाम कर लिया और बाकी बचे हिस्से का 20 20 प्रतिशत हिस्सा बरखा और अरमान के नाम कर दिया।

ये बात अरमान और बरखा को पसंद नहीं आया इसलिए दोनों मां बेटे खुलकर सामने आ गए और राघव को तिवारी के सामने ताने देने लग गए तिवारी कुछ कहता तो उससे भी लड़ पड़ते थे। इन्हीं वजह से परेशान होकर बरखा को तलाक देकर और कुछ हर्जाना भरकर इस मामले को रफा दफा कर देने की बात सोचा मगर ये भी नहीं कर पाया ये सोचकर कि कहीं समाज के ठेकेदार ये न कहें कि जब जरूरत थी तब बरखा से शादी कर लिया अब जरूरत खत्म हो गया तो बरखा और उसके बेटे को बेसहारा छोड़ दिया। अंतः मजबूर होकर तिवारी ख़ुद के किए एक फैसले पर पछताते हुए इस रिश्ते के बोझ को सहे जा रहा हैं और राघव खाने से ज्यादा ताने सुनकर दिन काट रहा हैं।

नाश्ता करते वक्त तिवारी ने बेटे को एक बार फिर से समझाया फ़िर थोडा हसाया जिससे राघव का मुड़ सही हों गया। नाश्ते के बाद बेटे को दफ्तर के निजी कमरे में छोड़कर चला गया। बाप के जाते ही राघव ने एक फोन करके किसी को बुलाया।



क्या यही जिंदगी है कोई क्षण ख़ुशी तो कभी गम !!!!!????


इस कहानी में मुझे लगता है हर पात्र दो तरफा जिंदगी जी रहा है आशा और निराशा, गम और ख़ुशी, शायद हम भी अपनी जिंदगी में ऐसे ही है क्या पता ???? आप खुद ही सोच लीजिये अपनी जिंदगी के बारे में .........

फिर भी सभी आशावादी है, हर सुबह एक नयी अच्छी आशा के साथ अपनी जिंदगी को आगे बढाने के लिए ...........

जारी रहेगा
….अगले एपिसोड में मिलते है ............
 

Bittoo

Member
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63
जी Bittoo जी आपने बिलकुल सही कहा, और शायद इसीलिए मेरे पास पाठक की संख्या बहोत ही कम है और मै ये जानती भी थी जब कहानी शुरू की थी.... या ये कहानी का प्लोट बन रहा था

बस लिखना चाहती थी तो लिख रही हु ............

अब सेक्स कहानी की बात करे तो मै आगे सेक्स कहानी भी लिखूंगी पर शायद मै उसमे उतनी बीभत्सता को उतना उपयोग नहीं करुँगी (या नहीं कर पाउंगी) जैसा आप तौर पे होता है मै एक नारी हु तो जाहिर है की नारी सन्मान के साथ लिखूंगी, और शायद मै ये
ग़लतफहमी में भी हु की सेक्स (चुदाई) एक कुदरती प्रक्रिया है और जरुरी भी है लेकिन उस प्रक्रिया में दोनों को आनंद मिलना चाहिए (खास कर नारी को)
और मै ये भी
ग़लतफ़हमी में हु की यहाँ मेल डोमिनेशन नहीं पर दोनों बराबर के हक़दार है......... मेरी कहानीमे नारी को अपमानित होते शब्द (या शब्दों) का प्रयोग नहीं होगा (जहा तक हो सके)
तो मुझे लगता है की ऐसी मेरी कहानी में भी मुझे उतने पाठक नहीं मिलेंगे (
शायद नारी होना गुनाह है)....... वैसे मै इस कहानीको भी सेक्स का स्वरुप दे सकती थी (जैसे दो सहेली की ओपन बातचीत या कलिग से सम्बन्ध या फिर साक्षी और राघव का सेक्स . पर पता नहीं मेरा मन नहीं मान रहा ( हां शायद कुछ शब्द आपको मिल सकते है जो आम तौर पर बोले जाते है)

लेकिन आपका बहोत बहोत धन्यवाद के आप ये कहानी पढ़ रहे है जहा लोगो की उम्मीदों से विपरीत है


उम्मीद रखती हु की अंत तक बने रहेंगे ................

शुक्रिया बने रहने के लिए ............
हम तो ऐसी कहानियों के मुरीद है
आप लिखती रहिए
यह मत सोचिए की यौन केवल वीभत्स ही होता है
उसने प्यार ना हो तो वीभतसता आती है
 
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