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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं

फिर उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं
Kaahe bhai!?
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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nayi likhawat, khubsurat parivesh aur yahi karan hai ki one go se ab tak ki kahani pardne ke baad tareef karne ka man hua. Shandar hai. Update regular va jaldi dijiyega.
Thank you! Thank you! :)
 

avsji

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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:applause: :applause: great update sir ji, Is story ke standout characters sameer nhi uske maa-baap hai
Naye relations ko guidance ki jarurat hoti hai aur vo inn dono new couple ko sameer ke mom dad se milegi___ Sameer samjhdaar hai isiliye usne first night pe bhi koi force nhi kiya ur ek mature decision liya hai

Thoda comedy aur thoda emotional flavor ke sath ye story bhut ache se aage badh rahi hai....

Once again :superb: update and waiting for next
Dhanyavaad! Koshish kamyab hoti nazar aa rahi hai meri!
:) :) :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अक्सर लोगों को हैरानी होती है कि औरतें जब खुश होती हैं, तो भी कैसे रोने लगती हैं? लोगों से मेरा मतलब है आदमी लोग। सच में आदमियों को औरतों का ऐसा व्यवहार नहीं आया; लेकिन औरतों को समझ में आता है। जब औरतें अपने अंदर कुछ ऐसा महसूस करती हैं, जिसको अपने अंदर बाँध कर नहीं रख सकती हैं, तो ऐसा हो सकता है। उसी तर्ज पर, अगर ख़ुशी बहुत अधिक हो जाए, तो बहुत सी महिलाओं के लिए आँसू बहाना ज्यादा बलवती अभिव्यक्ति हो जाती है।


(अब आगे)



नींद नहीं आई उसको। बहुत देर तक। कान की टकटकी बाँधे हुए वो बहुत देर तक बगल वाले कमरे से कोई आवाज़, कोई आहट सुनने की कोशिश करती रही। लेकिन कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी। जब घड़ी देखी, तो रात के पौने दो बज रहे थे। अभी भी नींद नदारद। आख़िरकार उससे रहा नहीं गया, और वो उठ कर, अपने कमरे का दरवाज़ा खोल कर, बगल वाले कमरे में चली आई।

इस कमरे में एसी नहीं लगा हुआ था। एक पंखा था, जो फुल स्पीड पर चल रहा था। खिड़की भी खुली थी, और दरवाज़ा भी। लेकिन फिर भी मई की गर्मी पर कोई असर नहीं था। वो दबे पाँव चलते हुए समीर के बेड तक आई। आँखों पर अधिक ज़ोर नहीं डालना पड़ा - कमरे भी बाहर से हल्की रौशनी आ रही थी। समीर एक करवट में लेटा हुआ था। उसने एक निक्कर पहना हुआ था। उसकी पीठ पर पसीने की बूँदें साफ़ दिख रहीं थीं। गहरी नींद में सांस भरने की जैसी आवाज़ें आती हैं, वैसी ही आवाज़ें आ रही थीं। ख़र्राटे तो बिलकुल भी नहीं भर रहा था वो।

‘झूठी कहानी’ मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए सोचा, लेकिन अगले ही क्षण उसको ग्लानि भी महसूस होने लगी, ‘मुझको एसी में सुला कर, यहाँ गर्मी में सो रहे हैं।’

वो उधेड़बुन में पड़ गई, कि वो क्या करे! समीर को जगा ले, और अपने साथ सोने को कह दे? साथ सोने का मतलब सम्भोग करना तो नहीं होता। कम से कम वो आराम से सो तो सकेंगे! मन में बहुत हुआ कि वो उसको उठा ले, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई। न जाने क्या सोच रही थी। कई बार आपको मालूम होता है कि क्या करना चाहिए, लेकिन फिर भी आप वो काम करते नहीं। कई कारण होते हैं - झिझक, डर, शर्म इत्यादि! बस, वैसी ही हालत मीनाक्षी की भी थी। बहुत सोचने के बाद वो वापस अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर लेट गई। रोने का मन तो हुआ, लेकिन रो न सकी। और इसी उधेड़बुन में आँख कब लग गई, पता ही नहीं चला।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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सुबह हुई तो मीनाक्षी की आँख खुली - भूख लगी थी। उसने दैनिक नित्यकर्म किये और रसोई की तरफ चली की कुछ बना लिया जाए। लेकिन अंदर का नज़ारा देख कर वो आश्चर्यचकित हो गई - रसोई के अंदर समीर पहले से ही मौजूद था, और ब्रेकफास्ट के लिए सैंडविच और चाय उसने लगभग बना ही ली थी। मीनाक्षी के चेहरे पर न जाने कैसे एक्सप्रेशन्स थे कि समीर घबरा सा गया।

“आप ठीक हैं?” उसकी बात में मीनाक्षी के लिए चिंता साफ़ सुनाई दे रही थी।

‘अरे बिलकुल ठीक हूँ.. लेकिन खाना पकाने का काम तो मेरा है’ मीनाक्षी ने मन में सोचा।

“आप क्यों नाश्ता बना रहे हैं?” प्रत्यक्ष में उसने कहा।

“मतलब?” समीर को जैसे कुछ समझ नहीं आया।

“मतलब मुझे उठा लेते। आप क्यों करने लगे? यह तो मेरा काम है!”

“ओह! अच्छा अच्छा! अरे, आप सो रही थीं, इसलिए डिस्टर्ब नहीं किया। मैं वैसे भी काफ़ी जल्दी उठ जाता हूँ। और, मुझे कुकिंग करना बहुत पसंद है! इसलिए आप ऐसे मत सोचिये कि यह काम आपका है, और वो काम मेरा। डिवीज़न ऑफ़ लेबर जैसा कुछ नहीं है यहाँ! हा हा हा। जब भी आपका मन हो, आप बना लीजिए। जब भी मन हो, मैं बना लूँगा। अच्छा लगे, तो साथ में!” कह थोड़ा सा मुस्कुराया और फिर आगे बोला, “वैसे डिनर तो आज मैं ही बनाऊँगा - शाही पनीर और आलू पराठा! आदेश ने बताया है… आपका फेवरेट! साथ में मेरी माँ के हाथ का बना सिरके वाला आम का आचार। खूब मज़ा आएगा।”

मीनाक्षी फिर भी अनिश्चित सी खड़ी रही - वो कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पा रही थी।

समीर ने आधिकार भरी आवाज़ में कहा, “आप मेरी गुलाम नहीं, बल्कि मेरी पत्नी हैं!” उसने प्यार से एक दो क्षण मीनाक्षी की तरफ देखा और कहा, “चलिए, नाश्ता कर लेते हैं! केचप मुझे पसंद नहीं। आम, धनिया और पुदीने की खट्टी-मीठी चटनी बनाई है। अगर टेस्टी न लगे, तो आगे से केचप रखा करूँगा।”

हतप्रभ सी मीनाक्षी रसोई से बाहर निकल आई। बहुत मुश्किल से उसने आँसुओं को बाहर आने से रोका।

‘क्या क्या सोच रही थी मैं!’


*******************************************************************************


नाश्ते करते समय मीनाक्षी बहुत चुप सी थी।

उसको अपनी ही सोच पर ग्लानि हो रही थी - ‘कैसी छोटी छोटी बातों को लेकर मैं चिंतित थी! कैसा छोटा मन है मेरा! मम्मी डैडी तो इतना चाहते है मुझे कि मेरे खुद के माँ बाप भी शायद हार मान लें! इतना प्रेम! सच में, इस घर में मैं बहू नहीं, बेटी के जैसे हूँ। प्रभु ने कुछ सोच कर ही मुझे इस घर में भेजा होगा। वो कहते हैं न, ‘जोड़ियाँ तो भगवान् ही बनाते हैं’... और जब भगवान् ने मेरे लिए समीर को चुना है, तो फिर मुझे शंका क्यों होनी चाहिए? ऐसा भाग्य!

और इनको देखो - मेरी हर बात की फ़िक्र है इनको। मुझे आराम मिले, इसलिए मुझे एसी वाले कमरे में सुलाते हैं, और खुद गर्मी में सो जाते हैं! ज़रा सोच! कल वो चाहते, तो कुछ भी करते। मैं क्या कर पाती? उनको मना तो न कर पाती। अब तो मेरे पूरे अस्तित्व पर उनका ही अधिकार है। लेकिन देखो! कैसी मर्यादा! कैसा आत्म-नियंत्रण! और मुझे देखो! जूते मोज़े जैसी निरर्थक बातों को सोच कर परेशान हो रही थी। ऐसा पति तो प्रभु मेरे दुश्मनों को भी देना। उनकी संगत में आ कर दुश्मनों की दुष्टता भी ख़तम हो जाएगी।’

“क्या हो गया आपको? इतनी चुप-चाप? क्या गड़बड़ बना है? सैंडविच या चाय?”

“कुछ भी गड़बड़ नहीं है! दोनों बहुत स्वादिष्ट बने हैं!” मीनाक्षी विचारों के भँवर से निकल कर समीर की तरफ़ मुखातिब होती है।

“घर की याद आ रही है?”

मीनाक्षी ने ‘न’ में सर हिलाया। फिर से उसकी आँखों में आँसू भरने लगे।

समीर को एक पल समझ नहीं आया कि वो क्या करे, या क्या कहे।

“एक काम करते हैं, आपके लिए एक फ़ोन और नया नंबर ले लेते हैं। आज ही। कम से कम घर बात करने में सहूलियत रहेगी। ठीक है?”

जिस समय की यह बात है, उस समय मोबाइल फोन का चलन बहुत कम था। अभी अभी सर्विस प्रोवाइडर्स ने इनकमिंग कॉल्स पर से चार्ज लेना बंद किया था। मीनाक्षी ने कुछ कहा नहीं। वो उसको कैसे समझाए कि इन में से किसी भी बात को लेकर वो दुःखी नहीं है। वो अपनी सोच, और अपने व्यवहार से दुःखी है।

“शाम को मम्मी डैडी भी आ जाएँगे।”

उनका जिक्र आते ही मीनाक्षी मुस्कुरा उठी, “वो जाते ही क्यों हैं? यही क्यों नहीं रुक जाते!”

“अरे, उनका घर है अपना। दोनों बहुत इंडिपेंडेंट हैं। और मुझे भी कहते हैं कि इंडिपेंडेंट रहो। ऐसा नहीं है कि वो मुझे सपोर्ट नहीं करते, लेकिन फाइनल डिसीजन मेरा ही रहता है। और वो मेरी हर डिसीजन को सपोर्ट करते हैं।”

“आप लकी हैं बहुत! ऐसे माता पिता बहुत भाग्य वालों को मिलते हैं।”

“आपके माँ बाप भी तो अच्छे हैं!”

“हाँ! अच्छे हैं। लेकिन लड़की के माँ बाप होने का बोझ रहा है उन पर। हमेशा से। और हम लोग ट्रेडिशनल भी बहुत हैं। इस कारण से आदेश और मुझमे बहुत अंतर है।”

“हाँ! वो तो है! आप आदेश से बहुत अधिक अच्छी हैं!”

“मुझे पता नहीं आप मुझे कितना अच्छा समझते हैं। लेकिन मैं कोशिश करूँगी कि मैं जितना पॉसिबल है उतनी अच्छी बन सकूँ!”

समीर ने ‘न’ में कई बार सर हिलाया, “आप जैसी हैं, वैसी रहना! कुछ मत बदलना।” और कह कर मुस्कुरा दिया। थोड़ी देर सोचने के बाद वो बोला,

“सोच रहा हूँ, एक बार ऑफिस हो आता हूँ। वहाँ किसी को ख़बर नहीं है कि मैं दो दिन से क्यों नहीं आ रहा हूँ।”

“जी, ठीक है।”

“सोच रहा था कि आप भी चलिए! सबसे आपका परिचय भी करवा दूँगा और रिसेप्शन के लिए इनवाइट भी कर लूँगा।”

“जी” वो कम से कम समीर की इच्छाओं का पालन तो कर ही सकती थी।

“बहुत बढ़िया! मैं जल्दी से तैयार हो जाता हूँ! कार से चलेंगे! हा हा हा हा!” समीर ने ऐसे कहा जैसे वो अपने दोस्तों को दहेज़ की कार दिखाना चाहता हो। लेकिन मीनाक्षी जानती थी कि दरअसल वो उसके खुद के आराम के लिए उसको कार में ले जाना चाहता था।
 

avsji

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“क्या भाई समीर, सब ठीक तो है?”

“यस सर! सब ठीक है।”

“दो दिनों से कोई खबर नहीं मिली तुम्हारी तो चिंता हुई। आज तक कोई छुट्टी ली नहीं न तुमने। इसलिए।”

“सर, एक बात कहनी थी आपसे।”

“हाँ, बोलो। क्या हो गया?”

“सर, मैंने शादी कर ली है।”

“क्या? बहन**! और बताया भी नहीं! ऐसे चुपके चुपके कोई शादी करता है क्या!” समीर के बॉस ने नाराज़गी दिखाते हुए कहा।

“अरे सर, गया तो था एक फ्रेंड की सिस्टर की शादी में, लेकिन मैं खुद ही उसको ब्याह कर ले आया!” समीर ने हँसते हुए बताया।

“क्या! क्या कह रहे हो! बेन**! साला, ये तो बहुत इंटरेस्टिंग स्टोरी बनती जा रही है। रुक, कांफ्रेंस रूम में बैठ कर आराम से बात करते हैं।”

“अरे रामसिंह,” बॉस ने ऑफिस के अर्दली को आवाज़ लगाई, “दो बढ़िया चाय मँगाओ। ज़रूरी मीटिंग है।”

अगले डेढ़ घण्टे तक समीर अपने बॉस को अपनी शादी का अनूठा किस्सा सुनाता चला गया। बॉस भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो, सब सुनता चला गया। उसको यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई ऐसा कुछ कर सकता है। बीच बीच में वो समीर से ढेर सारे सवाल भी पूछता जा रहा था। जब उसकी यह जिरह पूरी हुई तो उसने समीर से कहा,

“यार, तू गज़ब है! सच में! मेरी नज़र में तुम्हारे लिए आज रेस्पेक्ट बढ़ गई है! बहुत अच्छा काम किया! उम्मीद है कि तुम दोनों सुखी रहो!”

“थैंक यू सर! मीनाक्षी को लाया हूँ साथ में!”

“अरे! तू उसको अकेले छोड़ कर यहाँ मेरे साथ गप्पें लड़ा रहा है? वो बेचारी ऐसे ही नीचे बैठी हुई है! अजीब चू** हो! अरे, बुलाओ उसको।”

अगला एक और घण्टा ऑफिस में लोगों से मिलने, बधाइयाँ लेने, उनको रिसेप्शन के लिए आमंत्रित करने और चाय पीने में बीत गया। कितने ही लोगों ने मीनाक्षी को ‘कितनी प्यारी है’ कर के सराहा। जाते जाते बॉस ने उसको बोला कि वो अटेंडेंस की चिंता न करे। रिसेप्शन के दिन तक फुल अटेंडेंस लगा दी जाएगी। और समीर का जब मन करे वापस आए। ऑफिस से जैसा हो सकेगा, उसको सपोर्ट किया जाएगा। समीर ने उसको कहा कि फिलहाल तो उसको छुट्टी की ज़रुरत नहीं, लेकिन जब एकमुश्त छुट्टी की ज़रुरत होगी, तो वो पहले ही बता देगा।
 

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Supreme
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शादी का रिसेप्शन दिखावे में भले ही कम रहा हो, लेकिन मौज मस्ती में अव्वल नंबर था।

मीनाक्षी ने एक रानी कलर का नया, हल्का लहँगा पहना हुआ था, और समीर ने सूट। दोनों को देख कर वहां उपस्थित कई लोगों को ईर्ष्या हो उठी। लड़के और अन्य आदमी इस बात से जल भुने कि ऐसी ख़ूबसूरत लड़की मिल गई इस मुए को, और अविवाहित लड़कियाँ इस बात से जल फुंकी कि जो शायद उनके हिस्से में आता, वो ये लड़की ले उड़ी। मैंने यह देखा है कि गैर-शादीशुदा लड़के को भले ही लड़कियाँ घास न डालती हों, जैसे ही वो शादी-शुदा हो जाते हैं, अचानक ही उनकी सेक्स अपील बढ़ जाती है। मेरा यह ऑब्जरवेशन गलत भी हो सकता है, क्योंकि उतनी दुनिया नहीं देखी है मैंने। लेकिन जितना देखा है, उससे तो यही समझा है। खैर, इस बात का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है।

आज मीनाक्षी को बहुत अच्छा लग रहा था। पिछले दिनों के मानसिक और भावनात्मक तनाव कहीं दूर जा छुपे थे और वो खुल कर अपने नए परिवेश, अपने नए स्टेटस का आनंद ले रही थी। डीजे एक से एक नाचने वाले संगीत बजा रहा था। और मेहमानों के उकसाने पर समीर और मीनाक्षी डांस-फ्लोर पर आए और थिरकने लगे। डांस करना तो उसके लिए वैसे भी सबसे पसंदीदा काम था। जब डांस-फ्लोर पर आए तो फालतू भीड़ वहां से हट गई। कहने को उनका डांस सबके सामने हो रहा था, लेकिन उन दोनों के लिए यह एक निहायत ही अंतरंग क्षण थे। शादी के बाद पहली बार दोनों एक दूसरे को इस तरह से स्पर्श कर रहे थे। इस समय दोनों को किसी की परवाह नहीं थी।

एक दूसरे के चेहरे पर उठने वाले ख़ुशी के भाव पढ़ कर, उन दोनों की ख़ुशी और बढ़ रही थी। और इसका प्रभाव कुछ ऐसा हुआ कि दोनों की नज़र एक दूसरे के चेहरे से हट ही नहीं रही थी। सच में, इस समय दोनों को किसी की परवाह नहीं थी। डीजे वाला यह सब देख रहा था, और समझ रहा था। उसने अपनी चालाकी दिखाते हुए संगीत को जारी रखा। उधर दोनों का डांस अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया था। शुरुआती झिझक जाती रही थी। दोनों सिद्धहस्त कलाकारों के जैसे नाच रहे थे, और उनको देख कर सभी दर्शक-गण दाँतों तले उँगलियाँ दबा रहे थे।

मीनाक्षी की कमर को समीर ने दोनों हाथों से थाम रखा था, और मीनाक्षी के हाथ समीर के गले में माला बने झूल रहे थे। संगीत की लय और धुन अब गहरी होती जा रही थी। झंकार लगभग समाप्त थी, और सिर्फ ड्रम जैसे वाद्य की ही आवाज़ आ रही थी। मदहोश करने वाला संगीत!

समीर ने मीनाक्षी को देखा। वो मुस्कुरा रही थी। कैसी उन्मुक्त मुस्कान! साफ़! जब आप वर्तमान का आनंद उठाते हैं - अपना मनपसंद काम करते हैं - न भूतकाल में जीते हैं, और न ही भविष्य में, तब ऐसी उन्मुक्तता आती है।

‘ओह! कितनी सुन्दर! अप्सराएँ भी पानी भरें मेरी मीनाक्षी के सामने! कैसे भरे भरे होंठ! कैसी स्निग्ध मुस्कान! कैसी सरल चितवन!’

यह लड़की नहीं थी। न कोई अप्सरा थी। ये साक्षात् कामदेव की पत्नी रति थी, जो धरती पर उतर आई थी! इधर रति उसके बाहों में थी, और उधर कहीं से छोड़ा गया कामदेव का पुष्पवाण सीधा समीर के ह्रदय में उतर गया। ऐसी इच्छा उसको पहले कभी न हुई। संगीत और गहरा और निशब्द होता जा रहा था। अब सिर्फ ड्रम जैसे वाद्य की ही आवाज़ आ रही थी। इसका प्रभाव सभा में उपस्थित अन्य लोगों पर भी पड़ रहा था। वो पूरे कौतूहल से अपने सामने होते घटनाक्रम का साक्षात्कार कर रहे थे।

डांस-फ्लोर पर चक्कर-घिन्नी कर के नाचने वाली विभिन्न बत्तियाँ अब धीमी हो चली थीं। अब उनमे से मीनाक्षी के लहँगे के रंग वाली लाइट निकल रही थी, और बस उन दोनों पर ही केंद्रित थी। बाकी के फ्लोर पर अब अँधेरा छा गया था। समीर के हाथ अनायास ही ऊपर उठते हुए मीनाक्षी के कोमल कपोलों पर आ गए। उसी की तर्ज़ पर मीनाक्षी के हाथ भी समीर के गालों पर आ गए।

‘आह! कितना कोमल स्पर्श!’ समीर के शरीर में एक रोमांचक तरंग दौड़ गई।

वो मीनाक्षी को चूमने के लिए उसकी ओर झुका और तत्क्षण ही उसके और मीनाक्षी के होंठ मिल गए। दरअसल, मीनाक्षी पर भी समीर की ही भाँति डांस, और संगीत का सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। जब समीर उसकी तरफ झुका, तब वो भी अपना चेहरा उठा कर उसको चूमने को हुई। कोई दो सेकण्ड चले चुम्बन को वहाँ उपस्थित फोटोग्राफर्स ने बख़ूबी उतारा। एक तरफ़ जहाँ ईर्ष्यालु लड़के, लड़कियों की छाती पर साँप लोट गए, वहीं दूसरी तरह उनके मुँह से आहें और सीटियाँ निकल गईं। दोनों की तन्द्रा तब टूटी, जब सभा में उपस्थित मेहमानों की तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूँज उठा। तब उनको समझा कि दोनों का प्रथम चुम्बन अभी अभी हुआ है! शर्म से दोनों के ही गाल सुर्ख हो गए। उन दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ कर दर्शकों और शुभचिंतकों का अभिवादन किया। डीजे वाला वापस अपने पहले जैसे संगीत पर लौट आया। और ये दोनों वापस स्टेज पर अपने सोफे पर लौट आए।

समीर की माँ भागी भागी स्टेज पर आईं, और अपनी आँख के कोने से काजल निकाल कर मीनाक्षी के माथे के कोने में एक छोटा सा डिठौना (काला टीका) लगा दीं।

“हाय! मेरी प्यारी बिटिया को कहीं किसी की नज़र न लग जाए।” कह कर उन्होंने मीनाक्षी का माथा चूम लिया।

उसने सामने की तरफ देखा - उसकी माँ और पिता जी दोनों अपनी नम हो गई आँखों को रूमाल से पोंछ रहे थे। उसके ससुर एक चौड़ी मुस्कान लिए अपने बेटे को ‘थम्ब्स अप’ दिखा रहे थे। और आदेश भी उन्ही की ही तरह मुस्कुराते हुए अपनी हाथ की मुट्ठी बाँध कर वैसे दिखा रहा था जैसे जब कोई बल्लेबाज़ शतक बनता है, या कोई गेंदबाज़ विकेट चटकाता है।

आज की रात खुशियों वाली रात थी। रिसेप्शन के अंत में पूरे परिवार ने साथ में बैठ कर खाना खाया। और बड़ी फ़ुरसत में एक दूसरे से बात करी। फिर समीर के मम्मी डैडी के निमंत्रण पर मीनाक्षी में माँ बाप और आदेश उनके घर को चल दिए, और सारे उपहारों के साथ समीर और मीनाक्षी अपने घर को!
 

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आज बस छोटा सा अपडेट है। कल एक बढ़िया सा अपडेट ले कर फिर आऊँगा!
शुक्रवार को बाप लोगों के (मेरा मतलब, बॉस लोगों के) फ़ोत्ते सहलाने में निकल जाता है।
मतलब, रिव्यु है पिछले महीने का। पूरा दिन इसी में स्वाहा हो जाएगा।
 
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