Arre rukko aap bahut si aa jayegiएक दो बहनें आती हैं।
बाकियों का पता नहीं ?
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बाकियों का पता नहीं ?
uff ye sajna ?नई नवेली दुल्हन सज-धज के ही अच्छी लगती है, उसको ऐसा माँ ने समझा दिया था।
Nice update. Minakhsi has got a great life ahead.रास्ते में उन्होंने मीनाक्षी को अपनी शादी, समीर के जनम और बचपन की कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने मीनाक्षी को यह भी बताया कि रहते वो पास में ही हैं, लेकिन समीर अपने तरीके से रह पाए, इसलिए वो अलग रहते हैं। इसी चलते उसको ज़िम्मेदारी और स्वाभिमान का इतना भाव है। और सबसे अच्छी बात यह है कि अब मीनाक्षी भी उसके साथ रहेगी। उनका मानना था कि शादी होने के साथ, लड़का लड़की साथ में, अकेले रहने चाहिए। बिना किसी भी तरफ के परिवार के किसी भी तरह के प्रभाव के! तब एक दूसरे के लिए समझ, आदर और पारस्परिक अंतर्ज्ञान - यानि इंटिमेसी आती है, जो सफ़ल और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है। फिर उन्होंने उसको बताया कि समीर के डैडी एक सरकारी कंपनी में उच्च पद पर आसीन हैं, और उनको भी, समीर के ही जैसे कंपनी की ही तरफ से मकान मिला हुआ है। वो स्वयं भी एक बैंक में मैनेजर हैं।
दुकानों पर जा कर उन्होंने मीनाक्षी के लिए रोज़मर्रा के, और खास अवसरों के लिए शलवार कुर्ते खरीदे। फिर मॉल में जा कर ज़िद कर के उसके लिए जीन्स, टी-शर्ट्स, और शॉर्ट्स और ख़ास नाइटियाँ भी ख़रीदीं। फिर अधोवस्त्रों की एक स्पेशिलिटी स्टोर में जा कर ब्राइडल लॉन्जेरे के दो सेट भी ज़बरदस्ती खरीदवाए। मीनाक्षी शर्म के मारे खुद कुछ नहीं पसंद कर रही थी, इसलिए उन्होंने खुद ही उसके लिए सेलेक्ट कर लिया। उन्होंने कहा की नई नई शादी में सेक्सी दिखना बहुत ज़रूरी है।
यह खरीददारी करने के बाद उन्होंने मीनाक्षी को आज रात की डिनर पार्टी के लिए खरीदे गए ख़ास शलवार कुर्ते को पहनने को कहा। मीनाक्षी के न-नुकुर करने पर उन्होंने समझाया कि वो दोनों वापस घर नहीं जा रहे हैं। यहीं ख़रीद फ़रोख़्त करने के बाद वो बगल रैडिसन ब्लू में डिनर करने वाले हैं परिवार के साथ, और फिर वहाँ से वो और डैडी अपने घर चले जाएँगे। उनके आज ही चले जाने की बात सुन कर मीनाक्षी थोड़ा उदास हो गई, लेकिन उसने माँ से वायदा लिया कि हर रोज़, कम से कम डिनर के लिए वो इधर आते रहेंगे। सबसे अंत में एक पारंपरिक दुकान में जा कर उन्होंने समधियों के लिए कपड़े लत्ते खरीदे। माँ ने खुद के लिए कुछ भी नहीं लिया। कहने लगीं कि अगर वो यह बहाना न करतीं, तो मीनाक्षी न आती। जो शायद सही भी था।
इतनी ख़रीददारी करने में अच्छा खासा समय लग गया। रात के कोई साढ़े आठ बजे वो दोनों रैडिसन ब्लू पहुँचे। वहाँ जा कर देखा तो बाप बेटे काजू के साथ एक राऊण्ड पहले ही मार चुके थे, और दूसरा शुरू कर रहे थे।
“बेटी,” माँ ने सफाई दी, “अगर शराब पीने को बुराई मानती हो, तो बस यही बुराई है समीर में। और कोई नहीं।”
“नहीं माँ! बस पी कर लुढ़क न जाते हों,” मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए समीर को छेड़ा।
“हा हा हा हा!” डैडी ठहाके मार कर हँसने लगे, “जवाब दो बरखुरदार! कितनी बार लुढ़के?”
“अब नहीं लुढ़कूंगा! पक्का वायदा!” समीर ने कान पकड़ते हुए कहा।
डिनर शानदार था। समीर और उसके पिता जी ने शर्ट, जीन्स और ब्लेज़र पहना हुआ था। दोनों ही बहुत स्मार्ट और हैंडसम दिख रहे थे। मीनाक्षी ने अपनी सास को कनखियों से देखा तो उनको अपने पति को प्रेम से देखता हुआ पाया। शादी के इतने वर्षों बाद भी ऐसी प्रगाढ़ता, ऐसा प्रेम देख कर वो मुस्कुरा उठी। उसके मन में वैसे ही रहने की तमन्ना हो आई। वेटर को बुला कर चारों की एक साथ कई सारी तस्वीरें खिचाई गईं। डिनर समाप्त होने पर समीर के माँ बाप दोनों वापस अपने घर को चल दिए, जिससे नव-विवाहितों को थोड़ी प्राइवेसी मिल सके। जाते समय मीनाक्षी ने उन दोनों के पैर छुए।
“सीख कुछ,” उसके पिता जी ने कहा, “बहू से कुछ सीख!”
“डैडी! आप भी न, मेरी फजीहत करते रहते हैं!” समीर ने उनके और माँ के पैर छूते हुए कहा, “वो तो बीवी के सामने इम्प्रैशन झाड़ने के लिए कर रहा हूँ, लेकिन रोज़ रोज़ नहीं करूँगा!”
“पता है! बेटी, तुमको भी इतनी फॉर्मेलिटी करने की ज़रुरत नहीं। हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। हमेशा। अच्छा, शुभ रात्रि!”
जब तक मीनाक्षी और समीर घर वापस आए, रात के साढ़े दस बज गए थे।
trueजैसा मैंने पहले भी कहा है कि औरतों, और आंसुओं का एक एक अटूट रिश्ता है। चाहे ख़ुशी हो चाहे दुःख, जब भी इनको निकासी का कोई रास्ता मिलता है, ये बाहर आने शुरू हो जाते हैं
Samir jate jate Minakshi ke face mein smile le aya. Nice writing styleघर आकर मीनाक्षी ने देखा कि पूरा घर अच्छी तरह से व्यवस्थित हो गया था। दहेज़ का बेड अब उनके बेडरूम में था, और वहां का बेड दूसरे, छोटे बेडरूम में। अलमारी भी वहीँ व्यवस्थित कर दी गई थी, और उसके सूटकेस को एक ओर जमा दिया गया था। समीर ने आज खरीदा हुआ सामान नई अलमारी में ला कर रख दिया, और फ्रेश होने बाथरूम चला गया। वो क्या करे, उसे कुछ समझ नहीं आया। इसलिए वो नए बिस्तर पर आ कर बैठ गई।
मीनाक्षी बिस्तर पर बैठी हुई अपने आसन्न भविष्य के बारे में सोच रही थी। वो थोड़ा भयभीत भी थी - समीर को लेकर उसके मन में उठने वाले विचार वैसे तो सकारात्मक थे, लेकिन उसके व्यवहार को लेकर वो पूरी तरह से अनिश्चित थी। न जाने क्या करेगा वो! एक पूर्ण अपरिचित आदमी से शादी! यह सोच कर उसको वापस सिहरन होने लगी।
‘क्या करूँ मैं!’ यह एक ऐसा प्रश्न था, जिसका उत्तर उसके पास नहीं था। शायद किसी के पास भी नहीं था। कुछ समय आप ऐसी परिस्थितियों में पड़ जाते हैं, जिनका कोई हल आपके पास नहीं होता। मीनाक्षी के लिए यह वैसी ही परिस्थिति थी। उसके दिमाग में एक बात बार बार कौंध रही थी,
‘इतना तो तय था कि समीर इस विवाह को पूर्ण करना चाहेगा। सुहागरात और किसलिए कहते हैं इस रात को? सुहाग की रात! हुंह! जैसे बीवी की कोई रात ही नहीं! खैर, सामाजिक बातों के बारे में क्या टिप्पणी करी जाए। अभी तो मेरी हालत ओखली में पड़े अनाज जैसी है, जिस पर मूसल पड़ने ही वाला है। क्या मैं उसको आज कुछ भी करने से मना कर दूँ? बोल दूँ कि सर में दर्द है? लेकिन, अगर वो नाराज़ हो गया तो? सुना है कि लड़के अपनी शादी की पहली रात में खुद को रोक नहीं पाते। ओह्ह भगवान मैं क्या करूँ? शादी की शुरुआत खट्टे मन से तो नहीं कर सकते न!’
मीनाक्षी इन्ही सब उधेड़बुन में हुई थी, कि कमरे का दरवाज़ा खुला। इसके साथ ही मीनाक्षी का कलेजा मुँह में आ गया। उसकी साँसें तेज हो गयीं। समीर के क़दमों की आहट से मीनाक्षी के रोंगटे खड़े हो गए। मीनाक्षी ने अपनी नज़रें नीचे झुका लीं और शांत और संयत होने का दिखावा करने लगी। मीनाक्षी कनखियों से देख रही थी - समीर दरवाज़े के समीप आ कर रुक गया था। फिर भी उसकी हिम्मत नहीं पड़ी कि समीर की तरफ देखे।
“मीनाक्षी? सुनिए?” समीर की आवाज़ बहुत ही संयत थी। मीनाक्षी ने अभी भी उसकी तरफ नहीं देखा। वो जैसे बिस्तर में ही गड़ी जा रही थी।
“मैं बगल वाले कमरे में सोने जा रहा हूँ।”
समीर कुछ देर तक मीनाक्षी की किसी भी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता रहा।
‘अगर तुम्हारा पति तुम्हारे साथ न सोना चाहे, तो तुम पत्नी के कर्तव्य निभाने में फेल हो गई समझो।’ माँ की कही यह बात मीनाक्षी के जेहन में गूँज उठी। फिर भी उसने ऊपर नहीं देखा; बस चुपचाप बिस्तर में गड़ी बैठी रही।
“आप पूछेंगी नहीं कि क्यों?” समीर ने कहा।
इस बार उसकी आवाज़ में थोड़ा सा चुलबुलापन था। थोड़ी सी अधीरता थी। शायद वो मीनाक्षी को प्रसन्न चित्त करना चाहता था। इसका मीनाक्षी पर सकारात्मक प्रभाव हुआ। उसने समीर को देखा - तीन चार सेकंड। बस। उसके बाद फिर से गर्दन नीचे!
“आप मेरी पत्नी हैं। माई बेटर हाफ!” उसने कहा, “कोई प्रॉस्टिट्यूट नहीं।”
मीनाक्षी को समझ नहीं आया कि समीर क्या कह रहा है। उसका दिमाग पहले ही इतनी सारी अप्रत्याशित घटनाओं के जल्दी जल्दी घट जाने से भ्रमित था। ऊपर से सुहागरात का डर! उसको समीर की बात समझ नहीं आई, और इसलिए उसने खामोश रहना ही मुनासिब समझा। मीनाक्षी की मुश्किल समीर ने ही सुलझा दी।
“मीनाक्षी, हम एक दूसरे को जानते तक नहीं हैं। अब ऐसे में अगर हम बाकी शादी-शुदा लोगों के जैसे बिहेव करेंगे तो हमारा क्या नाता रहेगा? उसके (क्लाइंट और प्रॉस्टिट्यूट के नाते के) अलावा? लेकिन यह सब हमेशा ऐसे नहीं रहेगा - एक दिन हम भी साथ में होंगे, और वो सब कुछ करेंगे जो शादी-शुदा जोड़े करते हैं। लेकिन उस दिन मैं अपनी पत्नी से प्यार करूँगा - सेक्स नहीं - प्यार! और उस दिन आप अपने पति से प्यार करेंगी!” अपनी बात का प्रभाव देखने के लिए समीर थोड़ा रुका, फिर आगे बोला, “एक अजनबी से सेक्स… न बाबा, मुझसे नहीं हो पाएगा!”
इतना कह कर समीर वापस जाने के लिए मुड़ गया। फिर एक क्षण के लिए ठिठका। अपने मज़ाकिया लहज़े में वो फिर बोला, “बाई दी वे, मैं कोई गे नहीं हूँ! सोचा कि क्लैरिफाई कर दूँ!”
और जाते जाते बोला, “और मुझे ख़र्राटे भी आते हैं!”
इतने तनाव और भय से त्रस्त होने के बाद भी मीनाक्षी को इस बात पर हंसी आ गई। समीर के चेहरे पर एक संतुष्ट मुस्कराहट थी; उसने एक दो क्षण मीनाक्षी की तरफ देखा, और फिर दूसरे कमरे में चला गया। मीनाक्षी बिस्तर पर लेट गई - उसने न तो अपने कपड़े बदले, न ज़ेवर उतारे और न ही अपना मेक-अप ही साफ़ किया। जब उसने अपना सर तकिए पर रखा तो उसकी आँखों से आँसू आ गए।
अक्सर लोगों को हैरानी होती है कि औरतें जब खुश होती हैं, तो भी कैसे रोने लगती हैं? लोगों से मेरा मतलब है आदमी लोग। सच में आदमियों को औरतों का ऐसा व्यवहार नहीं समझ आया; लेकिन औरतों को समझ में आता है। जब औरतें अपने अंदर कुछ ऐसा महसूस करती हैं, जिसको अपने अंदर बाँध कर नहीं रख सकती हैं, तो ऐसा हो सकता है। उसी तर्ज पर, अगर ख़ुशी बहुत अधिक हो जाए, तो बहुत सी महिलाओं के लिए आँसू बहाना ज्यादा बलवती अभिव्यक्ति हो जाती है।
nayi dulhan k har bhav par sabki najar hoti hain, "dekho to kaise kha rahi hain, itna kum kyu khati hai? itna jyda kyu kgati hai?“बिटिया, इस घर में सब दबा के खाते हैं! खाने में संकोच मत करना!”
yeahhबेटा, तुमने इतना भारी भरकम कपड़े क्यों पहने हुए हैं? मुझको गलत मत समझ - प्यारी तो तू खूब है ही, और प्यारी तो खूब लग भी रही है। लेकिन अब ये तेरा घर है। यहाँ तुझे पूरी स्वतंत्रता है। तुझे जो पहनना है पहन, जैसे रहना है रह। हमारी परवाह न करना। हमको तो गुड़िया चाहिए थी, वो मिल गई।”