समीर की छेड़खानी बढ़ती जा रही थी - उसके होंठ मीनाक्षी को चूमने में, एक हाथ उसके स्तन को दबाने कुचलने में, और दूसरा हाथ उसकी योनि को छेड़ रहा था। बीच बीच में कभी वो एक निप्पल मुँह में भर लेता, तो कभी दूसरा मुँह में लेकर चूसने लग जाता। उसके हाथों की छेड़खानी से ना सोचते हुए भी मीनाक्षी की जांघें खुद ब खुद खुलने लगी। जब समीर का हाथ उसकी योनि के चीरे पर पड़ा, तब जा कर मीनाक्षी को समझा कि वो अब समीर के सामने पूरी तरह से नंगी पड़ी है।
उसने थोड़ा चैतन्य हो कर अपने चारों तरफ का जायज़ा लिया - वो बिस्तर पर पीठ के बल लेटी थी; पूर्णतया नग्न थी; उसके सारे कपड़े कमरे में इधर उधर इस प्रकार फैले हुए थे जैसे वो कोई फ़ालतू चीज़ हों।
‘आज सचमुच में मेरा ‘मिस’ वाला स्टेटस गया’ यह सोच कर मीनाक्षी ने खुद को थोड़ा संयत करते हुए, खुद को अपने निकट भविष्य के लिए तैयार कर लिया। समीर उसके होंठो पर लम्बा लम्बा चुबन देते हुए चूसने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे वो मीनाक्षी के होंठों को ही नहीं, बल्कि उनकी लालिमा को भी चूस लेना चाहता हो।
इस फोरप्ले के दौरान न जाने क्यों, मीनाक्षी को अपने और समीर के बीच के उम्र के फासले का ध्यान हो आया। समीर उससे कोई नौ साल छोटा था; और आदेश आठ साल! मीनाक्षी को याद हो आया कि वो आदेश के बचपन में उसकी देखभाल ऐसे करती थी जैसे कि वो खुद उसकी माँ हो। और आदेश भी उसको अक्सर माँ जैसा ही मान और प्यार देता था। उसके छुटपन में मीनाक्षी ने न जाने कितनी ही बार उसकी तेल-मालिश करी, और उसको नहलाया, धुलाया। उस समय की बात याद आ गई - कैसे वो आदेश के नन्हे से छुन्नू से खेलती थी, उसको चुम्मियाँ देती थी। समीर का छुन्नू कैसा होगा? समीर तो आदेश से भी एक साल छोटा है। लेकिन देखो, कैसे उस पर अपना अधिकार जता रहा है! न उसकी उम्र का लिहाज़, और न ही कोई वर्जना। और समीर यह सब सोचे भी क्यों? आख़िर उसका पति जो ठहरा!
उसके होंठों पर अपने होंठ रखे हुए समीर ने अपने दोनों हाथ उसके स्तनों पर जमा लिए। मीनाक्षी को पुरुषों में मन में स्तनों के लिए होने वाली आसक्ति का ज्ञान था। घर के बाहर वो जब भी निकलती थी, वो देखती थी कि कैसे पुरुषों की आँखें उसकी छातियों पर चिपकी हुई रहती थीं। कैसे राह चलने वाले जवान, अधेड़ और बूढ़े लोग या तो चोरी छुपे, या पूरी निर्लज्जता से उसके और अन्य लड़कियों और महिलाओं के शरीरों की वक्रताओं की नाप-जोख करते रहते थे। उनकी नज़रें अपने शरीर पर चिपकी महसूस करके मीनाक्षी को बहुत घिनौना लगता था - लेकिन समीर इस समय जो कुछ भी कर रहा था, उसको बहुत अच्छा लग रहा था। अच्छा ही नहीं, वह चाहती थी कि समीर उसको ऐसे देखे, और यही सब करे। प्रेम और गन्दी वासना में शायद यही अंतर है।
मीनाक्षी ने शर्म से अपनी आँखें बंद कर लीं, और खुद को चादर से ढक लिया। समीर ने उस चादर को हटा दिया। लेकिन लज्जा के मारे मीनाक्षी ने अपनी छाती पर अपने हाथ आड़े तिरछे रख लिए। समीर उसके दोनों हाथों को हटा कर मन्त्र-मुग्ध होकर उसके शरीर को देखने लगा।
जब समीर अपनी सुहागरात की कल्पना करता, तो उसमे उसकी पत्नी पूर्ण नग्न अवस्था में होती - न तो वस्त्र का एक भी धागा होता, और न ही कोई आभूषण। और तो और वो तो अपनी पत्नी की योनि भी पूरी तरह से क्लीन-शेव्ड हुई सोचता था। लेकिन मीनाक्षी की वैसी अवस्था नहीं थी। उसके शरीर पर कपड़े तो खैर नहीं थे, लेकिन आभूषण थे - उसने मंगलसूत्र पहना हुआ था, छोटी सी बिंदी लगाई हुई थी (जो अपनी जगह से खिसक गई थी), उसने नाक की कील और कानों में बालियाँ पहनी हुई थीं। सुहाग की लाल चूड़ियाँ उसकी कलाइयों की शोभा बढ़ा रही थीं, उँगलियों में अँगूठी, और पैरों में पायल, और उनकी उँगलियों में बिछिया। अभी अभी समीर ने जो करधन पहनाई वो भी थी। और उसकी योनि पर बाल भी थे। कल्पना से इतनी भिन्न अवस्था के बाद भी मीनाक्षी इस समय जैसे साक्षात् रति का ही अवतार लग रही थी।
कुछ देर ऐसे ही मीनाक्षी को देखने के बाद वो कांपते हुए स्वर में बोला,
“तुम कितनी खूबसूरत हो, मीनाक्षी!”
पहले ही वो शर्मसार हो रखी थी, लेकिन अपने सौंदर्य की बढ़ाई सुन कर उसके पूरे शरीर में लज्जा की एक और लालिमा चढ़ गई। मीनाक्षी ने करवट बदलकर खुद को छुपाते हुए कहा, “क्या सुन्दर है मुझमें?”
“तुम्हारा रंग…” समीर की आवाज़ में अब उत्तेजना सुनाई देने लगी थी।
“ऐसा कोई गोरा रंग तो नहीं है…” वो बोली।
“इसीलिए तो सुन्दर है..” फिर कुछ रुक कर वो आगे बोला, “तुम्हारा पूरा शरीर ही गज़ब का है! कैसी सुन्दर, कैसी चिकनी स्किन... कैसे मुलायम और चमकीले बाल.. कैसे काले काले हैं! … और कितने सुन्दर स्तन हैं तुम्हारे (वो बूब्स कहना चाहता था)! बहुत सुन्दर! गोल गोल और… सॉफ्ट! और ये निप्पल तो देखो! आह! इतने सुन्दर मैंने पहले कभी नहीं देखे! तुम मुझे पागल कर दोगी!”
कहते हुए उसने मीनाक्षी के स्तनों को बारी बारी चूम लिया। फिर उसने वाइन ग्लास से बूँद बूँद कर मीनाक्षी के स्तनों पर वाइन डाल दी, और जीभ से चाटने लगा। उसके इस खेल पर मीनाक्षी को हंसी आ गई,
“इससे वाइन का स्वाद बढ़ गया क्या?”
“हाँ..”
“ह्म्म्म..”
उसके बाद समीर वाइन को मीनाक्षी के पूरे शरीर - स्तनों, पेट, पेडू, पर डाल कर चाटने लगा। सच में, मीनाक्षी के सौंदर्य में घुल कर वाइन और भी शराबी हो गई और समीर पर उन्मादक मदहोशी सी छाने लगी। उधर मीनाक्षी समीर के बालों में उंगलियाँ डाले आनंद लेने लगी। समीर ने अपनी उंगली से उसके चूचकों को कोमलता से स्पर्श किया, फिर उनको अपनी नाक की नोक से किसी पक्षी की चोंच के समान सहलाया और सूंघा। फिर उसके दोनों चूचकों को अपने मुँह में लेकर जी भर चूसा। मीनाक्षी के दोनों निप्पल इस समय सतर्क द्वारपालों जैसे सावधान मुद्रा में खड़े हुए थे।
“तुमको मालूम है कि वाइन पीने के बाद ‘चेरी’ खानी चाहिए?”
“अच्छा? मुझे नहीं मालूम... लेकिन यहाँ ‘चेरी’ तो नहीं है…” मीनाक्षी समझ रही थी कि वो शरारत कर रहा था।
“अरे है तो! ये (उसने मीनाक्षी के निप्पलों की तरफ इशारा करते हुए कहा) तो हैं!”
“हा हा! आप तो इनको बहुत देर से खा रहे हैं!”
“हाँ! इतने स्वादिष्ट जो हैं! अब से ये मेरे! वादा करो - जब इनसे दूध निकलेगा न, तब तुम मुझे जी भर के पीने दोगी?”
“धत!” मीनाक्षी इस बात पर बुरी तरह शरमा गई।
“अरे! धत क्यों?”
“दूध तो बच्चे पीते हैं”
“दूध बच्चे पीते हैं, तभी तो वो तगड़े आदमी बनते हैं! और आदमी इसलिए पीते हैं, कि वो तगड़े बने रहें!”
“हा हा! ठीक है बाबा - मेरे तगड़े आदमी - आपका जब मन करे, जितना मन करे, पी लीजिएगा।”