समीर कुछ देर बाद वापस आया। उसके लिंग में उत्तेजना थोड़ी कम हो गई थी। बिस्तर पर बैठ कर उसने कहा,
“अब मन करे, तो थप्पड़ मार लो।”
“मैं आपको थप्पड़ मारूँगी क्या भला!”
“नहीं… बोला था, तो करना पड़ेगा। चलो, लगाओ थप्पड़ मुझे! चलो...”
समीर की ज़िद पर मीनाक्षी ने बारी बारी से उसके दोनों गालों को प्यार से सहला दिया। समीर को हँसी आ गई,
“ये तुम्हारा थप्पड़ है?! इसकी धौंस मिल रही थी मुझे?” कहते हुए वो मीनाक्षी के सामने अपने घुटनों के बल खड़ा हुआ।
“मिनी, मुँह खोलो!” उसने कहा।
मीनाक्षी समझ गई कि समीर क्या चाहता है। जब समीर ने उसकी योनि को प्यार किया था, तो उसको बहुत आनंद आया था। उसने मुँह खोला। समीर ने लिंग का शिश्नाग्रच्छद पीछे किया और चमकता हुआ शिश्नमुंड मीनाक्षी के मुँह में डाल दिया। समीर ने मीनाक्षी की जीभ अपने शिश्नमुण्ड पर फिरती महसूस करी। उसको यह अनुभव बहुत अच्छा लगा। जीभ फिराने के साथ साथ, वो लिंग को चूस भी लेती। उत्तेजना-वश समीर के शरीर में कंपकंपी दौड़ गई। कुछ देर के चूषण के बाद उसने महसूस किया कि उसका वीर्य निकलने को हो गया।
“बस बस! अब छोड़ दो।”
मीनाक्षी ने सवालिया दृष्टि से समीर को देखा।
उसने कहा, “मेरी जान, अब छोड़ दो। नहीं तो मेरा वीर्य निकल जाएगा तुम्हारे मुँह में ही।”
तब जा कर मीनाक्षी को समझ आया और उसके चूसना बंद किया और अलग हो कर गहरी साँस भरने लगी। ऐसे बड़े, फूलते हुए अंग को मुँह में रखना आसान बात नहीं है।
समीर ने उसको वापस पेट के बल लिटाया और उसकी पीठ पर चुम्बन जड़ने लगा। कुछ देर में मीनाक्षी वापस उत्तेजना के सागर में हिचकोले खाने लगी। वो आनंद से जैसे मरी जा रही थी, जब समीर के हाथ उसके नंगे पुट्ठों को छू रहे थे। उसको आनंद में आते देख समीर ने अपना हाथ उसके चूतड़ों की दरार के और अंदर डाला। मीनाक्षी से रहा नहीं गया और उसने भी अपने हाथ पीछे किए और समीर को नितम्ब से पकड़ कर अपनी तरफ दबाने लगी। समीर इस समय मीनाक्षी के एकदम नज़दीक था और उसने अपना हाथ उसके कूल्हों से हटाया, और अपना लिंग वहाँ स्थापित कर दिया। मीनाक्षी के दबाव से उसका लिंग मीनाक्षी के नितम्ब में दब गया था। और जब मीनाक्षी को इस बात का एहसास हुआ तो वो धीरे धीरे अपने नितम्ब चलाने लगी।
समीर ने अपने लिंग को पकड़ कर उसकी दरार की पूरी लम्बाई में चलाया। अलका ने एक बार उसको कहा था कि मीनाक्षी का पिछवाड़ा बढ़िया गोल मटोल है, और समीर उसको नंगा देख कर मतवाला हो जाएगा।
‘बच के रहना, प्यारी बहना! नहीं तो वो तुम्हारी गाँड भी मार लेगा! हा हा।’ उसने मीनाक्षी को छेड़ा था।
वो ख़याल आते ही मीनाक्षी सकते में आ गई - बाप रे, ये मूसल तो उसकी योनि में ठीक से तो जाता नहीं, और कहीं इन्होने उसको ‘उधर’ घुसाने की कोशिश करी तो वो मर ही जाएगी। यह सोच कर मीनाक्षी काँप उठी।
“आहहहह, आप क्या कर रहे हैं?” मीनाक्षी आह भरती हुई बोली। ठीक उसी समय समीर की उंगलियों ने उसके फिर से गीली हो चली योनिद्वार को छुआ।
“देखो… तुम्हारी आमरस की प्याली से फिर से रस निकल रहा है।” समीर ने अपनी उंगलियों को ऊपर की तरफ ले जाते हुये कहा।
‘नहीं नहीं… ऐसा कैसे? इतनी जल्दी?’
“जानेमन! मैंने कहा था न कि हम दोनों की सेक्सुअल कम्पैटिबिलिटी अमेजिंग है?” कहते हुए उसने लिंग को फिर से मीनाक्षी की योनि में घुसा दिया।
“इईईईईईईईईई”
“क्या हुआ?”
“ओहहहह”
“कैसा लग रहा है?”
“ओह… आ… आप..... ओह… थकते …. ओह…. न…. ओह…. नहीं?”
मीनाक्षी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी। समीर ने पूरी गति से धक्के लगाने शुरू किए थे; उसके हर प्रहार पर मीनाक्षी की योनि कामरस छोड़ रही थी। उसका शरीर थरथरा रहा था।
“आज तो मैं तुमको पूरी रात भर चोदूँगा मेरी जान!”
जैसा दर्द उसको पहली बार हुआ था, वैसा इस बार नहीं हुआ। इस बार के सम्भोग में वाकई आनंद आ रहा था। वो खुद भी जैसा उससे हो पा रहा था, अपने नितम्ब हिलाते हुए समीर का साथ दे रही थी, और सम्भोग का पूरा-पूरा आनंद उठा रही थी। उसकी सिसकियाँ फूट पड़ीं,
“ओह्ह्ह... आहिस्ता ... आह.. अम्मा.. मर गई मैं.... धीरे जानू...!”
समीर उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए ज़ोरदार धक्के मारता जा रहा था। कोई दस मिनट तक चले इस खेल के अंत में मीनाक्षी को फिर से रति-निष्पत्ति हो गई, और उसके थोड़ी ही देर बाद समीर ने भी फिर से मीनाक्षी की कोख में अपना वीर्य छोड़ दिया।
कुछ देर तक दोनों ही खामोश पड़े रहे। मीनाक्षी नीचे, समीर उसके ऊपर। फिर वो वो मीनाक्षी को आलिंगनबद्ध कर के उसकी बगल में लेट गया। उसके हाथ फिर से मीनाक्षी के नितम्बों से खेल रहे थे। उधर मीनाक्षी बिलकुल बेजान हुई अपने नग्न शरीर पर अपने पति के स्पर्श का आनंद ले रही थी। समीर की उँगलियाँ उसकी योनि को छेड़ती रहीं। मीनाक्षी अब चाहती ही थी कि जब भी वो और समीर साथ में हों, तो उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं हो। और यह कि उसका पति मन भरने तक उसके निर्वस्त्र शरीर से खेलता रहे।
“मेरी जान,” समीर ने कहा, “बिस्तर गीला हो रहा है!”
वो मुस्कुराई, “होने दीजिए! मेरे अंदर अब ताक़त नहीं है बाथरूम तक जाने की।”
“इतनी बड़ी लड़की हो कर बिस्तर गीला करती हो!”
“इतनी बड़ी लड़की को कोई ऐसे सताता है?”
“तो कैसे सताता है?”
“कैसे भी नहीं!” कह कर वो समीर का सीना सहलाने लगी। काफी देर दोनों चुप रहे, फिर मीनाक्षी ने ही बोला, “आई लव यू।”
“आई लव यू, टू!”
इन तीन छोटे से शब्दों का अर्थ बहुत गहरा होता है। इनको सतही तौर पर भी बोला जा सकता है और बहुत गहरे भी जा कर बोला सकता है। दोनों ही स्थितियों में इन शब्दों का अर्थ अलग अलग निकलता है। मीनाक्षी सिर्फ भावनाओं से वशीभूत हो कर समीर को आई लव यू नहीं बोल रही थी। यह पिछले कई दिनों से जो वो समीर के लिए महसूस कर रही थी, ये उसकी भावनाओं की परिणति (culmination) थी। वो समीर को बताना चाहती थी कि वो अब सिर्फ उसकी थी - उसकी सहचरी, उसके सुख-दुःख की बराबर की हिस्सेदार, उसकी प्रेमिका, उसकी सखी, उसकी अर्धांगिनी! वो बताना चाहती थी कि वो समीर को वैसा प्रेम करती है, जैसा प्रेम उसने समीर के पहले न किसी पुरुष से किया, और न ही उसके अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष से करेगी। वो उसको प्रेम करने के लिए कोई भी रूप ले सकती है। वो बताना चाहती थी कि अब वो दोनों एक हैं। उनके शरीर अलग हो सकते हैं, लेकिन उनकी आत्माएँ अब एक हैं। और समीर तो खैर उसको बहुत पहले से ही चाहता था। मीनाक्षी उसकी पत्नी तो तत्क्षण बन गई थी, लेकिन उसको अपनी प्रेमिका बनाने में उसने जो जतन किए हैं, वो निष्छल प्रेम के बिना नहीं हो सकता।
समीर की तरफ करवट लिए मीनाक्षी ने उसको आलिंगनबद्ध कर रखा था। कुछ देर दोनों को कुछ नहीं बोले, फिर समीर के सर को स्नेह से सहलाते हुए मीनाक्षी ने गुनगुनाना शुरू किया,
‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं… जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं’
समीर सुखद आश्चर्य वाले भाव लिए मीनाक्षी को देख रहा था। उसको मालूम नहीं था कि वो गाती भी है।
‘मेरे तेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना, जैसे बहार आने पर, तय है फूल का खिलना
ओ मेरे जीवन साथी....’
समीर को मालूम नहीं था कि वो गाती भी है, और इतना अच्छा गाती है। मीठी, सुरीली और जादुई आवाज़! उसके थके हुए शरीर पर मानों शीतल जल की बूँदें गिर रही थीं। मीनाक्षी ने ममता और स्नेह के साथ समीर को सहलाना और थपकियाँ देना शुरू कर दिया।
‘तेरे दुख अब मेरे, मेरे सुख अब तेरे, तेरे ये दो नैना, चाँद और सूरज मेरे’
ओ मेरे जीवन साथी....’
मीनाक्षी गाना नहीं गा रही थी, बल्कि समीर से अपनी भावनाओं का हाल बयान कर रही थी।
‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं.... जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं’
“आप कितना अच्छा गाती हैं!” समीर में मंत्रमुग्ध हो कर कहा।
“पत्नी की खूबियाँ, उसके गुण, पति को धीरे धीरे मालूम पड़ने चाहिए! इससे पति की नज़र में उसके लिए प्रेम और रेस्पेक्ट बनी रहती है!”
समीर ने कुछ कहा नहीं, बस उसके होंठों को चूम लिया।
“टेक सम रेस्ट, जानू!” मीनाक्षी की आवाज़, उसके स्पर्श, और उसकी आँखों में समीर के लिए इस समय इतना प्रेम उमड़ रहा था कि उसके सागर उत्प्लवन करते करते समीर की आँख लग गई। अंततः उसको शांत पा कर मीनाक्षी मुस्कुराई, और उसकी जान में जान भी आई। समीर को सहलाते, चूमते हुए वो बहुत देर तक आज तक के अपने विवाहित जीवन का जायज़ा लेने लगी।
[नोट : यह गाना 'गाइड' (1965) फिल्म से है। गीतकार हैं, शैलेन्द्र; संगीतकार हैं, सचिन देव बर्मन; और गायक हैं, मोहम्मद रफ़ी]