• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance संयोग का सुहाग [Completed]

Status
Not open for further replies.

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
साफ़ सफ़ाई कर के जब मीनाक्षी बाथरूम से बाहर आई तो उसने देखा कि समीर उसी की दिशा में देख रहा था। तौलिए से अपना तन ढँकना वो भूल गई थी। समीर ने भी खुद को ढँकने की कोई कोशिश नहीं करी थी। वो वैसे ही नंगा बिस्तर पर लेटा हुआ था। जब वो बिस्तर के पास आई तो समीर ने प्यार से उसका हाथ पकड़ कर अपने बगल बैठा लिया और उसकी गोद में अपना सर रख कर लेट गया। उसके लेटने का तरीका ऐसा था कि उसका चेहरा मीनाक्षी की योनि की तरफ था।

“मिनी?”

“हम्म”

“तुम बहुत सुन्दर हो!”

मीनाक्षी ने देखा कि यह कहते हुए समीर उसकी योनि को देख रहा था।

‘एक नंबर का बदमाश है!’

“तुम बहुत सुन्दर हो! जैसा सोचा था, उससे भी कहीं अधिक!”

‘समझ आ रहा है कि साहब को क्या सुन्दर लग रहा है!’ उसने मन में सोचा।

“क्या सुन्दर लगा आपको?” और प्रत्यक्ष में कहा।

“तुम्हारा कुछ! कोई एक ही चीज़ हो तो बताऊँ! अब इसको ही ले लो.... तुम्हारी चूत.... इसकी बनावट - जैसे दो पल्लों का दरवाज़ा कस कर भेड़ लिया गया हो! और अभी, जब तुम ऐसे बैठी हो, तो इसको देखने पर ये गुलाब के फूल की पंखुड़ियों जैसी लग रही हैं। सच में, अंदर जा कर मज़ा आ गया!”

जिस तरह समीर ने यह सब कहा, मीनाक्षी हँसे बिना न रह सकी।

“आप इसको चूत क्यों कहते हैं? चूत तो गाली होती है न?”

“ओहहह! अच्छा वो? वो तो देहाती और आवारा लोगों के लिए गाली होती है। असल में चूत तो फल होता है। संस्कृत में ‘चूतफल’ मतलब आम! मैं तो इसको आम कह रहा हूँ! ऐसी प्यारी सी चीज़ को मैं गाली क्यों दूँगा भला?”

“बातें बनाना कोई आपसे सीखे!”

“अरे! अब किसकी कसम लूँ मैं! आम जैसी ही रसदार है ये!”

“हा हा बदमाश! लोग तो ब्रेस्ट्स को आम कहते हैं।”

“क्या बात है! इसका मतलब यह है कि मेरी बीवी आम की टोकरी है पूरी - एक जोड़ी राजापुरी आम ऊपर, और दशहरी आम के रस की प्याली नीचे!”

“धत्त गंदे!”

“मिनी, आज तुमने मुझे कम्पलीट कर दिया! थैंक यू!” कह कर समीर ने उसकी योनि को चूम लिया।

“आप ने भी तो मुझे कम्पलीट कर दिया!”

मीनाक्षी की बात पर समीर मुस्कुराया, और उसने मीनाक्षी के सर को थोड़ा सा नीचे करने की कोशिश की। मीनाक्षी ने भी अपना सर थोड़ा नीचे कर, उसको चूमने में सहयोग किया। जब चुम्बन टूटा, तो उसके स्तन समीर के चेहरे से जा लगे। उसने झट से मीनाक्षी का एक निप्पल अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा।

मीनाक्षी समीर को मना करने की स्थिति में नहीं थी। समीर के प्रेम करने के तरीके की वो अब मुरीद बन चुकी थी। समीर जहाँ चाहता, जैसे चाहता, और जो भी चाहता, मीनाक्षी उसको वो सब करने से मना नहीं कर सकती थी। अलका ने एक बार मीनाक्षी को कहा था कि उन पुरुषों को अपनी पत्नियों के स्तनपान में ख़ास रूचि होती है, जिन्होंने अपनी माँ का या तो बहुत ही कम, या बहुत ही अधिक स्तनपान किया हो।

‘समीर ने कितना किया है?’ मीनाक्षी के मन में यह सवाल उठा, ‘कम या ज्यादा? शरीर देख कर तो लगता है कि साहब ने अपनी माँ का दूध खूब पिया है! और अब अपनी बीवी का भी!’

“आपसे एक बात पूछूँ?”

“एक नहीं, सौ बात पूछो!”

“आपने मम्मी का दूध कब तक पिया है?”

“उम्म्म, यही कोई छः सात साल तक!”

“अरे वाह। मम्मी आपको बहुत प्यार करती हैं इसका मतलब।”

“हाँ! बहुत प्यार करती हैं! मैं भी उनको बहुत प्यार करता हूँ। वो अभी भी मेरा बचपन याद कर के बताती हैं कि मैं उनके दूध को कभी छोड़ना ही नहीं चाहता था। उनका दूध पीना मुझे सबसे ज्यादा सुख देता था। पर अफ़सोस, उम्र बढ़ी और मैं मम्मी के दूध से वंचित हो गया। हर औरत के स्तन माँ के प्रेम की याद दिलाते तो हैं, लेकिन हर औरत प्रेममयी हो, ये ज़रूरी नहीं।”

समीर ने देखा की मीनाक्षी बहुत इंटरेस्ट ले कर उसकी बात सुन रही थी। वो मुस्कुराया और फिर बोला,

“लेकिन इनमें (उसने बारी बारी से मीनाक्षी के दोनों चूचक चूमे) से मेरे लिए प्रेम की मीठी धारा बहती है।”
bahut pyari update hai mitr
dhudh ki aviral dhaara bah rahi hai
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
b
मीनाक्षी मुस्कुरा दी। उसका ध्यान समीर के लिंग पर गया - सम्भोग के बाद वो विकराल अंग अब मात्र दो-ढाई इंच जितना ही रह गया था। सिकुड़ा हुआ, कोमल, निर्जीव! जैसे सो गया हो! अलका कहती है कि इसे मुँह में लेकर चूसने में बहुत मज़ा आता है! और यह कि उसके पति को इस काम में बहुत मज़ा आता है। कभी कभी अलका तो चूस चूस कर उसका वीर्य भी पी लेती है!

“छीः! गन्दी” ख्यालों में डूबी मीनाक्षी के मुँह से निकल गया।

“हम्म?” उसके स्तनों को पीने में मगन समीर उसकी आवाज़ सुन कर चौंक गया।

“कुछ नहीं” तन्द्रा में डूबी मीनाक्षी धरातल पर वापस आई, “वो… वो मैं कह रही थी कि आप पी लीजिए!”

“पी ही तो रहा हूँ!”

“ओहो! आहहह! आप ऐसे चूस चूस कर इनका दम निकाल देंगे!”

“अरे दम कहाँ निकला - ये देखो? तुम्हारी चेरियाँ कैसी कड़क हो गई हैं!” समीर ने शरारती अंदाज़ में कहा।

“अब बस जानू! दर्द होने लगता है!”

“ओह! ठीक है!” कह कर समीर उसके स्तन से अलग हो गया।

मीनाक्षी को लगा कि समीर का मन बुझ गया। उसको मनाने के अंदाज़ में उसने कहा, “मेरी आदत नहीं है न! और आप पीते भी इतने जोश में हैं! अच्छा ठीक है, इनको मुँह में ले कर दुलारते रहिए… फिर कुछ देर बाद पी लीजिएगा! मैं कहीं भागी थोड़े न जा रही हूँ! है न?”

“हम्म्म” कह कर समीर फिर से उसको अपनी बाहों में भरने की कोशिश करने लगा।

“ओहो! समीर… छोड़िए ना… अभी मन नहीं भरा क्या?”

“तुम्हारे जैसी खूबसूरत बीवी हो तो किसी का मन भरेगा क्या? ये देखो!” कह कर समीर ने उसका हाथ अपने लिंग पर रख दिया। जो लिंग अभी बस कुछ क्षणों पहले मुरझाया हुआ था, न जाने कब वापस अपने विकराल रूप में आ गया था। मीनाक्षी को बहुत आश्चर्य हुआ।

“मिनी, तुम बहुत सुन्दर हो! प्लीज, मुझे अपने से दूर मत करो!” कह कर उसने एक साथ कई चुम्बन मीनाक्षी के चेहरे पर जड़ दिए।

मीनाक्षी भी कहाँ उसको मना करने वाली थी? लेकिन मिलन की रात में थोड़ा ठुनकना तो बनता है न? लड़की थोड़ी शोख़ी न दिखाए, चंचलता न दिखाए, मान मनुहार न करवाए, तो क्या मज़ा? उसके कुछ कहने से पहले ही समीर उससे गुत्थम-गुत्था हो गया। वो पेट के बल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी। और समीर उसके ऊपर आ कर चढ़ बैठा। पहली बार मीनाक्षी को अपने मुकाबले समीर के शरीर के आकार का अनुमान हुआ - समीर वाकई बड़े कद काठी का नौजवान था। पूरा मर्द!

उसने पीछे से ही मीनाक्षी के स्तनों को पकड़ लिया, और उसकी पीठ, गर्दन, कानों पर चुम्बन देने लगा। उसके नितम्बो के बीच में समीर का कड़क लिंग चुभने लगा। थोड़ी ही देर पहले जो कुछ हुआ था, उसके फिर से होने की सोच कर मीनाक्षी की देह काँप गई। बीच बीच में समीर कभी उसके कान, तो कभी गाल, तो कभी गर्दन तो कभी पीठ को चूमता। बीच बीच में वो उसके स्तनों को अपने हाथों में पकड़ कर दबाता और मसलता, तो उसकी साँसे फूल जातीं।

कुछ देर के बाद समीर ने कहा, “तुमको मालूम है?”

“क्या?” मीनाक्षी ने हाँफते हुए पूछा।

“तुम्हारी दाहिने चूतड़ पर एक प्यारा सा तिल है! यहाँ।” कह कर उसने जहाँ तिल था, वहाँ अपनी तर्जनी से छुआ।

“धत्त बत्तमीज़!”

“अरे क्यूँ?”

“कैसे कैसे गन्दा गन्दा बोलते हो आप!”

“अरे! गन्दा क्या है? चूतड़ ही तो हैं - सुन्दर, गोल गोल!” उसके मीनाक्षी ने नितम्बों को सहलाते हुए कहा, “और उनके बीच में ये तुम्हारी प्यारी सी चूत!” उसने उसकी योनि पर हाथ फिराया, “और ये, वाह वाह… क्या बढ़िया सी गाँड़!” उसने मीनाक्षी के नितम्बों को फ़ैलाते हुए उसकी गुदा को अनावृत कर दिया।

मीनाक्षी चिहुँक गई। उसने अपनी पुट्ठे की पेशियाँ सिकोड़ लीं, और पलट गई।

“धत्त! थप्पड़ पड़ेगा!” एक स्वतः प्रेरणा से मीनाक्षी ने समीर की हरकतों का विरोध किया। लेकिन ऐसा करते ही उसको अपनी गलती का एहसास हो गया। आज की रात तो वर्जनाएँ तोड़ने की है, परदे गिराने की है! आज से तो समीर का उस पर पूरा अधिकार है!

“सॉरी जानू! मेरा वो मतलब नहीं था!” उसने कहा। लेकिन समीर ने बुरा माना ही नहीं।

“थप्पड़ मार लेना, लेकिन एक बार चूमने दो न”

“जानू, गन्दा है वो” मीनाक्षी ने मिन्नत करी।

“होगा गन्दा। लेकिन मैं तुम्हारे हर अंग को चूमना चाहता हूँ। हर अंग पर अपने प्यार की मुहर लगाना चाहता हूँ।”

मीनाक्षी ने अविश्वास से समीर को देखा और फिर वापस सीने के बल लेट गई।

‘मेरे कहने से ये थोड़े न मानेंगे’

“जो करना है कीजिए। लेकिन उसके बाद मुँह धो लीजिएगा! नहीं तो लिप्स पे नो किस्सी!”

समीर ने वापस उसके दोनों नितम्बों को फैला कर उसकी गुदा फिर से अनावृत करी और उसकी बनावट का जायज़ा लेने लगा। वह ऐसा कोई आकर्षक अंग तो खैर नहीं था, लेकिन मीनाक्षी का था, इसलिए उसको आकर्षक लगा।

“ज़रा अपने चूतड़ तो उठाओ मेरी जान! तभी तो चूमूँगा!”

न चाहते हुए भी मीनाक्षी ने अपने नितम्ब बिस्तर से ऊपर उठा दिए। और अगले ही पल उसने समीर की साँस और उसका चुम्बन अपने ‘वहाँ’ महसूस किया। उस एहसास से उसकी आँखें बंद हो गईं।

“मुँह धो कर आता हूँ! ऐसे ही रहना!” कह कर समीर बिस्तर से उठा। उसने जाते हुए देखा कि समीर का लिंग ज़मीन के समतल से कोई साठ अंश का कोण बनाए तना हुआ था, और चलने के कारण झूल रहा था।

‘बाप रे’
bemishaal update mitr
ab jo hai so hai
milan aadha adhura toh achchha nahi na
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
समीर कुछ देर बाद वापस आया। उसके लिंग में उत्तेजना थोड़ी कम हो गई थी। बिस्तर पर बैठ कर उसने कहा,

“अब मन करे, तो थप्पड़ मार लो।”

“मैं आपको थप्पड़ मारूँगी क्या भला!”

“नहीं… बोला था, तो करना पड़ेगा। चलो, लगाओ थप्पड़ मुझे! चलो...”

समीर की ज़िद पर मीनाक्षी ने बारी बारी से उसके दोनों गालों को प्यार से सहला दिया। समीर को हँसी आ गई,

“ये तुम्हारा थप्पड़ है?! इसकी धौंस मिल रही थी मुझे?” कहते हुए वो मीनाक्षी के सामने अपने घुटनों के बल खड़ा हुआ।

“मिनी, मुँह खोलो!” उसने कहा।

मीनाक्षी समझ गई कि समीर क्या चाहता है। जब समीर ने उसकी योनि को प्यार किया था, तो उसको बहुत आनंद आया था। उसने मुँह खोला। समीर ने लिंग का शिश्नाग्रच्छद पीछे किया और चमकता हुआ शिश्नमुंड मीनाक्षी के मुँह में डाल दिया। समीर ने मीनाक्षी की जीभ अपने शिश्नमुण्ड पर फिरती महसूस करी। उसको यह अनुभव बहुत अच्छा लगा। जीभ फिराने के साथ साथ, वो लिंग को चूस भी लेती। उत्तेजना-वश समीर के शरीर में कंपकंपी दौड़ गई। कुछ देर के चूषण के बाद उसने महसूस किया कि उसका वीर्य निकलने को हो गया।

“बस बस! अब छोड़ दो।”

मीनाक्षी ने सवालिया दृष्टि से समीर को देखा।

उसने कहा, “मेरी जान, अब छोड़ दो। नहीं तो मेरा वीर्य निकल जाएगा तुम्हारे मुँह में ही।”

तब जा कर मीनाक्षी को समझ आया और उसके चूसना बंद किया और अलग हो कर गहरी साँस भरने लगी। ऐसे बड़े, फूलते हुए अंग को मुँह में रखना आसान बात नहीं है।

समीर ने उसको वापस पेट के बल लिटाया और उसकी पीठ पर चुम्बन जड़ने लगा। कुछ देर में मीनाक्षी वापस उत्तेजना के सागर में हिचकोले खाने लगी। वो आनंद से जैसे मरी जा रही थी, जब समीर के हाथ उसके नंगे पुट्ठों को छू रहे थे। उसको आनंद में आते देख समीर ने अपना हाथ उसके चूतड़ों की दरार के और अंदर डाला। मीनाक्षी से रहा नहीं गया और उसने भी अपने हाथ पीछे किए और समीर को नितम्ब से पकड़ कर अपनी तरफ दबाने लगी। समीर इस समय मीनाक्षी के एकदम नज़दीक था और उसने अपना हाथ उसके कूल्हों से हटाया, और अपना लिंग वहाँ स्थापित कर दिया। मीनाक्षी के दबाव से उसका लिंग मीनाक्षी के नितम्ब में दब गया था। और जब मीनाक्षी को इस बात का एहसास हुआ तो वो धीरे धीरे अपने नितम्ब चलाने लगी।

समीर ने अपने लिंग को पकड़ कर उसकी दरार की पूरी लम्बाई में चलाया। अलका ने एक बार उसको कहा था कि मीनाक्षी का पिछवाड़ा बढ़िया गोल मटोल है, और समीर उसको नंगा देख कर मतवाला हो जाएगा।

‘बच के रहना, प्यारी बहना! नहीं तो वो तुम्हारी गाँड भी मार लेगा! हा हा।’ उसने मीनाक्षी को छेड़ा था।

वो ख़याल आते ही मीनाक्षी सकते में आ गई - बाप रे, ये मूसल तो उसकी योनि में ठीक से तो जाता नहीं, और कहीं इन्होने उसको ‘उधर’ घुसाने की कोशिश करी तो वो मर ही जाएगी। यह सोच कर मीनाक्षी काँप उठी।

“आहहहह, आप क्या कर रहे हैं?” मीनाक्षी आह भरती हुई बोली। ठीक उसी समय समीर की उंगलियों ने उसके फिर से गीली हो चली योनिद्वार को छुआ।

“देखो… तुम्हारी आमरस की प्याली से फिर से रस निकल रहा है।” समीर ने अपनी उंगलियों को ऊपर की तरफ ले जाते हुये कहा।

‘नहीं नहीं… ऐसा कैसे? इतनी जल्दी?’

“जानेमन! मैंने कहा था न कि हम दोनों की सेक्सुअल कम्पैटिबिलिटी अमेजिंग है?” कहते हुए उसने लिंग को फिर से मीनाक्षी की योनि में घुसा दिया।

“इईईईईईईईईई”

“क्या हुआ?”

“ओहहहह”

“कैसा लग रहा है?”

“ओह… आ… आप..... ओह… थकते …. ओह…. न…. ओह…. नहीं?”

मीनाक्षी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी। समीर ने पूरी गति से धक्के लगाने शुरू किए थे; उसके हर प्रहार पर मीनाक्षी की योनि कामरस छोड़ रही थी। उसका शरीर थरथरा रहा था।

“आज तो मैं तुमको पूरी रात भर चोदूँगा मेरी जान!”

जैसा दर्द उसको पहली बार हुआ था, वैसा इस बार नहीं हुआ। इस बार के सम्भोग में वाकई आनंद आ रहा था। वो खुद भी जैसा उससे हो पा रहा था, अपने नितम्ब हिलाते हुए समीर का साथ दे रही थी, और सम्भोग का पूरा-पूरा आनंद उठा रही थी। उसकी सिसकियाँ फूट पड़ीं,

“ओह्ह्ह... आहिस्ता ... आह.. अम्मा.. मर गई मैं.... धीरे जानू...!”

समीर उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए ज़ोरदार धक्के मारता जा रहा था। कोई दस मिनट तक चले इस खेल के अंत में मीनाक्षी को फिर से रति-निष्पत्ति हो गई, और उसके थोड़ी ही देर बाद समीर ने भी फिर से मीनाक्षी की कोख में अपना वीर्य छोड़ दिया।

कुछ देर तक दोनों ही खामोश पड़े रहे। मीनाक्षी नीचे, समीर उसके ऊपर। फिर वो वो मीनाक्षी को आलिंगनबद्ध कर के उसकी बगल में लेट गया। उसके हाथ फिर से मीनाक्षी के नितम्बों से खेल रहे थे। उधर मीनाक्षी बिलकुल बेजान हुई अपने नग्न शरीर पर अपने पति के स्पर्श का आनंद ले रही थी। समीर की उँगलियाँ उसकी योनि को छेड़ती रहीं। मीनाक्षी अब चाहती ही थी कि जब भी वो और समीर साथ में हों, तो उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं हो। और यह कि उसका पति मन भरने तक उसके निर्वस्त्र शरीर से खेलता रहे।

“मेरी जान,” समीर ने कहा, “बिस्तर गीला हो रहा है!”

वो मुस्कुराई, “होने दीजिए! मेरे अंदर अब ताक़त नहीं है बाथरूम तक जाने की।”

“इतनी बड़ी लड़की हो कर बिस्तर गीला करती हो!”

“इतनी बड़ी लड़की को कोई ऐसे सताता है?”

“तो कैसे सताता है?”

“कैसे भी नहीं!” कह कर वो समीर का सीना सहलाने लगी। काफी देर दोनों चुप रहे, फिर मीनाक्षी ने ही बोला, “आई लव यू।”

“आई लव यू, टू!”

इन तीन छोटे से शब्दों का अर्थ बहुत गहरा होता है। इनको सतही तौर पर भी बोला जा सकता है और बहुत गहरे भी जा कर बोला सकता है। दोनों ही स्थितियों में इन शब्दों का अर्थ अलग अलग निकलता है। मीनाक्षी सिर्फ भावनाओं से वशीभूत हो कर समीर को आई लव यू नहीं बोल रही थी। यह पिछले कई दिनों से जो वो समीर के लिए महसूस कर रही थी, ये उसकी भावनाओं की परिणति (culmination) थी। वो समीर को बताना चाहती थी कि वो अब सिर्फ उसकी थी - उसकी सहचरी, उसके सुख-दुःख की बराबर की हिस्सेदार, उसकी प्रेमिका, उसकी सखी, उसकी अर्धांगिनी! वो बताना चाहती थी कि वो समीर को वैसा प्रेम करती है, जैसा प्रेम उसने समीर के पहले न किसी पुरुष से किया, और न ही उसके अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष से करेगी। वो उसको प्रेम करने के लिए कोई भी रूप ले सकती है। वो बताना चाहती थी कि अब वो दोनों एक हैं। उनके शरीर अलग हो सकते हैं, लेकिन उनकी आत्माएँ अब एक हैं। और समीर तो खैर उसको बहुत पहले से ही चाहता था। मीनाक्षी उसकी पत्नी तो तत्क्षण बन गई थी, लेकिन उसको अपनी प्रेमिका बनाने में उसने जो जतन किए हैं, वो निष्छल प्रेम के बिना नहीं हो सकता।

समीर की तरफ करवट लिए मीनाक्षी ने उसको आलिंगनबद्ध कर रखा था। कुछ देर दोनों को कुछ नहीं बोले, फिर समीर के सर को स्नेह से सहलाते हुए मीनाक्षी ने गुनगुनाना शुरू किया,

‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं… जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं’

समीर सुखद आश्चर्य वाले भाव लिए मीनाक्षी को देख रहा था। उसको मालूम नहीं था कि वो गाती भी है।

‘मेरे तेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना, जैसे बहार आने पर, तय है फूल का खिलना
ओ मेरे जीवन साथी....’

समीर को मालूम नहीं था कि वो गाती भी है, और इतना अच्छा गाती है। मीठी, सुरीली और जादुई आवाज़! उसके थके हुए शरीर पर मानों शीतल जल की बूँदें गिर रही थीं। मीनाक्षी ने ममता और स्नेह के साथ समीर को सहलाना और थपकियाँ देना शुरू कर दिया।

‘तेरे दुख अब मेरे, मेरे सुख अब तेरे, तेरे ये दो नैना, चाँद और सूरज मेरे’
ओ मेरे जीवन साथी....’

मीनाक्षी गाना नहीं गा रही थी, बल्कि समीर से अपनी भावनाओं का हाल बयान कर रही थी।

‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं.... जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं’

“आप कितना अच्छा गाती हैं!” समीर में मंत्रमुग्ध हो कर कहा।

“पत्नी की खूबियाँ, उसके गुण, पति को धीरे धीरे मालूम पड़ने चाहिए! इससे पति की नज़र में उसके लिए प्रेम और रेस्पेक्ट बनी रहती है!”

समीर ने कुछ कहा नहीं, बस उसके होंठों को चूम लिया।

“टेक सम रेस्ट, जानू!” मीनाक्षी की आवाज़, उसके स्पर्श, और उसकी आँखों में समीर के लिए इस समय इतना प्रेम उमड़ रहा था कि उसके सागर उत्प्लवन करते करते समीर की आँख लग गई। अंततः उसको शांत पा कर मीनाक्षी मुस्कुराई, और उसकी जान में जान भी आई। समीर को सहलाते, चूमते हुए वो बहुत देर तक आज तक के अपने विवाहित जीवन का जायज़ा लेने लगी।


[नोट : यह गाना 'गाइड' (1965) फिल्म से है। गीतकार हैं, शैलेन्द्र; संगीतकार हैं, सचिन देव बर्मन; और गायक हैं, मोहम्मद रफ़ी]
sach me sahib bhahut hi dil chhu lene waale andaaz me parakat kiya aapne yeh update ek khubsurat nagme ke sath behtreen dost
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
“टेक सम रेस्ट, जानू!” मीनाक्षी की आवाज़, उसके स्पर्श, और उसकी आँखों में समीर के लिए इस समय इतना प्रेम उमड़ रहा था कि उसके सागर उत्प्लवन करते करते समीर की आँख लग गई। अंततः उसको शांत पा कर मीनाक्षी मुस्कुराई, और उसकी जान में जान भी आई। समीर को सहलाते, चूमते हुए वो बहुत देर तक आज तक के अपने विवाहित जीवन का जायज़ा लेने लगी।


(अब आगे)



क्या क्या सोचा था उसने अपनी शादी की रात को! क्या कुछ घट गया था उस दिन। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रभु अभी भी समीर जैसे लोग बनाते हैं! दी नाईट इन शाइनिंग आर्मर - हाँ, मीनाक्षी के लिए समीर बिकुल वैसा ही था। उससे उम्र के कितना छोटा है, लेकिन जिस प्रकार की गंभीरता, सामाजिकता, आदर, आत्मविश्वास उसके अंदर है, वैसा मीनाक्षी ने किसी अन्य पुरुष में नहीं देखा। जब कभी आदेश समीर को ‘जीजा जी’ कह कर बुलाता है, तो मीनाक्षी को कितना अच्छा लगता है, वो बता नहीं सकती। जब उसकी सहेलियाँ समीर को ‘जीजा जी’ कह कर बुलाती हैं, तो वो घमण्ड से फूली नहीं समाती। उसको समीर की पत्नी होने पर कितना घमण्ड होता है, वो बता नहीं सकती। समीर की तरह ही उसने भी आज की रात के लिए न जाने कैसे कैसे सपने सँजोये थे - लेकिन जो कुछ समीर ने उसके साथ किया, वो वैसा सोच भी नहीं सकती थी। कितना बल है उसमें, और कितना स्टैमिना! बाप रे! जोड़ जोड़ हिला दिया!

कोई घंटे भर आराम करने के बाद अलसाते हुए वो उठी और लंगड़ाते हुए बाथरूम की तरफ़ चली। इस समय उसको अपने हर अंग में मीठी मीठी चुभन महसूस हो रही थी, और उसका हर अंग किसी अनोखे उन्माद में डूबा था। बाथरूम के दर्पण में उसने अपने आप को देखा - उसके शरीर के हर हिस्से पर लाल और नीले निशान पड़ गए थे। उसके शरीर के हर हिस्से पर समीर के प्रेम की मोहर लगी हुई थी। उसकी आँखें नशीली सी लग रही थी। सच में, आज से मीनाक्षी समीर की दासी बन गई थी। आज उसका सब कुछ समीर का हो गया था, और इस बात पर उसको गर्व था।

बाथरूम में बाथटब था। उसने सोचा कि अगर गरम गरम पानी में वो लेट जाए, तो यह थकावट और सुरूर थोड़ा कम हो जाएगा। तो उसने वही किया। बाथटब में उसने थोड़ा अधिक गरम पानी भरा, और फिर उसमें बबल-बाथ डाल कर वो पानी की नरम नरम गर्माहट में लेट गई। पानी में लेटे हुए भी वो भूतकाल की बातों का विश्लेषण, और भविष्य की कोमल कल्पनाओं के बारे में सोचने लगी।

कितने ही लोगों को कहते सूना है कि शादी के बाद स्त्री, और पुरुष दोनों को समझौता करना पड़ता है। लेकिन उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। और अगर उसको समझौता करना भी हुआ, तो वो ख़ुशी ख़ुशी कर लेगी। समीर भगवान का दिया अनमोल उपहार है। उसके लिए वो कुछ भी सह लेगी।

उसकी ज्यादातर सहेलियाँ शादी के बाद हुए बदलावों का हवाला देती हैं अपनी इच्छाएँ न पूरी कर पाने के लिए -

‘अरे, घर-गृहस्थी के चक्कर में ये सब कहाँ हो पाएगा?’
‘मेरे हस्बैंड को ये सब पसंद नहीं है, इसलिए नहीं करती’
‘माँ जी कहती हैं की डांस करना फालतू काम है’
‘उनको मेरा नौकरी करना पसंद नहीं’

और उसके समीर ने उसको उड़ने के लिए पंख दे रखे हैं। वो हमेशा उसको अपने मन का करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है। लेखिका बनने की उसकी इच्छा समीर के कारण ही मूर्त रूप ले रही है। समीर ने उसको स्वतन्त्र छोड़ रखा है। और इस स्वतंत्रता में समीर उसको स्थायित्व देता है। वो उसका घर है। लौट कर उसको हमेशा समीर के पास ही आना है।

शादी से पहले जब वो माँ पापा को उसकी शादी के लिए चिंतित देखती थी, तो वो उनको उनसे कहती थी कि क्यों वो अकेली खुश नहीं रह सकती। नौकरी तो वो करती ही है। अच्छा कमा भी लेती है। उसका गुजारा हो जाएगा उतने से। वो किसी पुरुष के साथ की मोहताज नहीं। लेकिन अब समीर का साथ पा कर उसको लगता है कि अकेले जीने से कहीं बेहतर उसके साथ जीना है। वो उसको खुश रखता है। बहुत खुश! ‘और मम्मी डैडी की तो बिटिया हूँ मैं!’

उसने मन ही मन भगवान् को धन्यवाद किया, ‘हे प्रभु, आपके आशीर्वाद से ही सब कुछ हुआ है। अपनी अनुकंपा हम पर बनाए रखिए - बस यही विनती है। मेरे ह्रदय में प्रेम का, स्नेह का जो पौधा आपने लगाया है, उसको फल-दार वृक्ष बना कर अपनी कृपा का प्रसाद मुझे दीजिए!’

फ़ल से उसको अगला विचार आया, ‘अब जब हम दोनों का मिलन हो गया है, तो जल्दी ही हम दोनों भी मम्मी-पापा बन जाएँगे! समीर से इस बारे में बात करनी होगी कि वो बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं। अगर वो अभी रेडी नहीं हैं, तो कॉन्ट्रासेप्टिव्स के बारे में डॉक्टर्स से मिलना पड़ेगा।’

‘वैसे बच्चों की जिम्मेदारी उठाने के लिए वो अभी छोटे ही हैं! लेकिन.... जैसी उनकी मच्योरिटी है, क्या पता, हो सकता है कि वो पापा बनना चाहें जल्दी ही! हाँ, अगर वो नहीं चाहते, तो मैं भी वेट कर लूंगी।’

‘लेकिन फिर भी! मैं भी बहुत वेट तो नहीं कर सकती। तीस की तो हो ही गई हूँ। बहुत हुआ तो दो या तीन साल! इससे अधिक तो वेट नहीं कर सकती हूँ। पता नहीं, आगे कोई कम्प्लीकेशन हो जाए, और बच्चे ही न हों!’

‘वो मेरा दूध पीना चाहते हैं! बच्चे होंगे तभी तो दूध आएगा! सच में, मैं भी चाहती हूँ कि इन ब्रेस्ट्स में से उनके लिए प्रेम की मीठी धारा बहती रहे। मम्मी से इनके बचपन के बारे में पूछूँगी सब बातें।’

‘इनसे पूछूँगी, कि इनको मेरे ‘वहाँ’ पर बाल अगर नापसंद हों, तो हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट करवा लूंगी। अलका ने भी तो करवाया है। कह रही थी कि ‘ओरल’ करते समय उसके पति को वहाँ पर बाल बिलकुल अच्छे नहीं लगते।’
behtreen khayalato se sazi hui ek aur sukhkaari update mitr
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
ऐसी ही कई छोटी, बड़ी, ख़ास, फ़ालतू अनगिनत बातें सोचते हुए कोई एक घंटा हो गया। टब का पानी भी लगभग ठंडा हो गया। पानी में पड़े पड़े उसके शरीर की थकावट काफ़ी कम हो गई थी, और वो पहले से अधिक तरोताज़ा महसूस कर रही थी। गुनगुना शावर ले कर उसने साबुन धोया, फिर बाथरूम से बाहर निकल आई। उसने एक तौलिया अपनी छाती पर बाँध रखा था, जिससे उसके जाँघ के ऊपरी हिस्से तक शरीर ढँका हुआ था।

जब वो कमरे में वापस आई तो उसने देखा कि समीर उनींदी आँखों से मुस्कुराते हुए उसी की तरफ देख रहा था। उसका लिंग वापस तना हुआ ऐसा दिख रहा था, जैसे कि वो फिर से काम-युद्ध के लिए तैयार हो।

‘फिर से रेडी! ये थकते नहीं हैं क्या! हे प्रभु, देर से ही सही, लेकिन तुमने मुझे ऐसा पति दिया जिसे पा कर मैं धन्य हो गई!’ मीनाक्षी ने मन ही मन सोचा।

“कहाँ से सीखी इतनी बदमाशी आपने?” मीनाक्षी ने बिस्तर पर बैठते हुए और मुस्कुराते हुए समीर से पूछा।

“कैसी बदमाशी?”

“ये.... आपका नुन्नू!” मीनाक्षी ने शिकायती लहज़े में कहा, “ये कभी आराम भी करता है, या बस हमेशा मुझे सताने के लिए तैयार रहता है?”

“नुन्नू!!? अरे जानेमन, तुमको इतने मज़े देता है ये बेचारा…. कम से कम जॉय स्टिक ही बोल दो इसको!”

“जी नहीं! मैं इसको नुन्नू ही बोलूँगी! मेरा प्यारा सा नुन्नू!”

“चलो जी! ये भी ठीक है! कम से कम आपको ये प्यारा तो लगता है। अब ये सोचिए कि पैदा होने के इक्कीस साल बाद जा कर इस बेचारे को अपनी सहेली मिली है। अब जब ये उससे हाय-हेलो बोलना चाहता है, तो आप क्यों नाराज़ होती हैं?”

“बहुत हाय-हेलो हो गई इसकी और इसकी सहेली की। इनके हाय-हेलो के चक्कर में इस बड़ी लड़की को सताना बंद करिए।” मीनाक्षी मुस्कुराते हुए बोली।

“आज की रात कुछ बंद करने की रात थोड़े न है!”

“अच्छा जी? फिर?”

“आज की रात तो खोलने की है....”

“अच्छा जी! फिर से बदमाशी....” मीनाक्षी शरमाती हुई इठलाई।

“इधर आओ,” कहते हुए समीर ने मीनाक्षी का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर खींच लिया। वो पीठ के बल, चित्त हो कर बिस्तर पर गिर गई।

“मिनी?”

“जी?”

“आप हनीमून के लिए कहाँ जाना चाहोगी?”

“हनीमून? उम्म्म्म....!” मीनाक्षी ने कुछ देर सोचने का अभिनय किया और फिर थोड़ा गंभीरता से कहा,

“जानू, शादी के दिन से अभी तक मेरा हनीमून ही तो चल रहा है! और मुझे मालूम है कि आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा! आप सभी मुझको इतना प्यार करते हैं! और मैं भी आपको खूब प्यार करती हूँ! हमारा घर, प्यार का घर है। मुझे आपका प्यार पाने के लिए कहीं और जाने की कोई ज़रुरत नहीं है।”

समीर के चेहरे को प्यार से अपने दोनों हाथों में ले कर उसने आगे कहा, “वैसे आपको कहीं घूमने फिरने चलने का मन है तो ठीक है… वो जगह आप चूज़ करिए लेकिन। और.... प्लीज् यह मत सोचिए कि हनीमून कोई रस्म है, जिसको आपको निभाना है.... मुझको जो सुख इतने दिनों से मिल रहा है, वो किसी हनीमून का मोहताज नहीं..”
gazab hai sahib
bhavnaao ko ek sutr me peerona sach me naayaab hai dost
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
समीर उसकी बात सुन कर मुस्कुराया। कुछ पल वो उसके भोले सौंदर्य को देखता रहा, और फिर वो मीनाक्षी का मुख चूमने के लिए उस पर झुक गया। मीनाक्षी भी सहर्ष समीर के होंठों को अपने होंठों में लेकर उसको चुम्बन में सहयोग देने लगी। यह कोई कामुक चुम्बन नहीं था, बल्कि एक स्नेहमय चुम्बन था। एक बहुत ही लम्बा स्नेहमय चुम्बन! दोनों को समय का कोई ध्यान नहीं रहा कि वो कब तक एक दूसरे को चूमते रहे। अंततः जब उनका चुम्बन टूटा, तो समीर ने कहा,

“ये तौलिया क्यों लगाया हुआ है?”

“आपके नुन्नू से उसकी सहेली को बचाने के लिए।” मीनाक्षी अपने कहे पर खुद ही शरमा गई।

“मिनी, एक बात बोलूँ?” समीर ने तौलिया उसके शरीर से हटाते हुए कहा।

“जी?”

“जब तुम मेरे सामने रहा करो, तो ऐसा नहीं हो सकता कि बिलकुल नंगी रहो?” उसने बिस्तर से उठते, और मीनाक्षी की जाँघें खोलते हुए कहा।

‘बाप रे! कुछ देर पहले ही तो मैं यही सोच रही थी। इनको कैसे सब मालूम पड़ जाता है? कोई टेलीपैथिक कनेक्शन है क्या!’

“हटो जी! ऐसे कैसे होगा?” मीनाक्षी ने नखरा दिखाया।

“कोशिश करो! कोशिश करने से तो सब कुछ हो जाता है।” वो उसकी योनि सहला रहा था। मीनाक्षी के शरीर में झुरझुरी होने लगी - एक तो समीर के इस तरह अंतरंग तरीके से छूने के कारण, और दूसरा इसलिए क्योंकि वो अभी अभी गरम पानी से नहा कर निकली थी, और कमरे में एसी के कारण ठंडक थी। समीर ने उसको पीठ के बल लिटा दिया, और अगले दौर के लिए खुद उसकी जाँघों के बीच में आ गया।

“ओह्ह्ह! जानू! मैं आपकी हर बात मानूँगी। लेकिन उन चार पाँच दिनों में यह करना मुश्किल है।”

समीर अपने लिंग का शिश्नाग्रच्छद पीछे खिसका चुका था।

“किन दिनों में?”

“पीरियड्स ..... आआह्ह्ह!”

समीर उसकी योनि को अपनी तर्जनी और अंगूठे से खोल कर अपने लिंग को फिर से भीतर इतनी ज़ोर से ठेला कि मीनाक्षी को एकदम से पीड़ा सी हुई और उसकी चीख निकल गई। इस हमले से आहत मीनाक्षी उसे गुस्से से देखने लगी। समीर भी शायद मीनाक्षी के दर्द से थोड़ा सहम गया, और सोचने लगा कि अब वो क्या करेगी। समीर को ऐसे भोलेपन से देखता देख कर मीनाक्षी को गुस्सा भी आ रहा था और हँसी भी।

मीनाक्षी को हँसते हुए देख कर समीर की जान में जान आई - उसने मीनाक्षी को अपने ऊपर बैठा लिया कुछ इस तरह कि जब वो अपनी पीठ के बल लेटा तो मीनाक्षी उसकी जाँघों पर उसके ऊपर अपने दोनों घुटने मोड़ कर इधर-उधर करके बैठी थी। इस नए आसन के कारण समीर का लिंग जबरदस्त रूप से कठोरता धारण किए हुए था।

“ये तुम्हारे अंदर रहता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है!”

मीनाक्षी ने शरारत से कहा, “ये तो अपनी सहेली के अंदर है.... आपको क्यूँ अच्छा लगता है?”

“क्योंकि मेरा काम कम हो जाता है।”

“काम? कौन सा काम?”

“जब ये ऐसे रहता है न, तो इसको हाथ से समझाना बुझाना पड़ता है।”

मीनाक्षी कुछ समझी नहीं। शायद उसको हस्तमैथुन के बारे में नहीं मालूम था। और समीर ने भी इस बात को आगे नहीं खींचा। उसने आगे कहना जारी रखा, “और मुझे ये मीठे मीठे राजपुरी आम चूसने को मिल जाता है!”

“हा हा हा! आप और आपका आम प्रेम!”

“ए मिनी, तुमको कैसा लगता है?”

“क्या?” वो सब समझती है कि समीर उससे क्या पूछ रहा था। लेकिन जान बूझ कर अनजान बनी हुई थी।

“जब ये तुम्हारे अंदर रहता है!”

उसकी बात सुन कर मीनाक्षी फिर से शरमा गई। वो समीर के लिंग की कठोरता को अपने भीतर महसूस कर रही थी। समीर धक्के नहीं लगा रहा था, लेकिन अपनी योनि के भीतर मीनाक्षी को समीर के उत्तेजित लिंग के झटके पर झटके महसूस हो रहे थे। समीर को कुछ भी न करते देख कर अंततः मीनाक्षी ने ही पहल करी - उसने बैठे बैठे ही अपने नितंबो को पीछे की ओर थोड़ा सा उठाया और फिर हल्का सा धक्का दिया। उसकी योनि भीतर से पहले से ही गीली थी। समीर का लिंग उसकी योनि के भीतर ऐसी मजबूती से गड़ा हुआ था जैसे कि लकड़ी में लोहे की कील ठुकी हुई हो! मीनाक्षी ने अपने नितम्बों को गति देनी शुरू की जैसे कि समीर ने किया था - आगे-पीछे!
raat ka nasha abhi aankh se gaya nahi
laajwaab update bandhu
raajpuri aam bahut achchhe hai
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
मीनाक्षी अपनी आँखें बंद किए हुए समीर के सख्त लिंग के घर्षण का आनंद उठा ही रही थी, कि वैसे ही लेटे लेटे ही समीर ने एक ज़ोर का धक्का मारा। इस प्रहार से उसका लिंग मीनाक्षी की योनि में भीतर तक ठुक गया। मीनाक्षी को फिर से तीव्र पीड़ा का आघात लगा। मीनाक्षी उसको घूरने लगी, लेकिन समीर को जैसे कोई परवाह नहीं थी - उसने फिर से एक धक्का और मारा, और पुनः पूरा का पूरा मीनाक्षी की योनि में घुस गया। इस दूसरे आघात से मीनाक्षी लगभग गिरते गिरते बची। वो कुछ कर पाती, उसके पहले ही समीर ने उसको एक खिलौने की भाँति उठाया और अपनी गोदी में बैठा लिया और खुद भी बैठ गया। उस अवस्था में मीनाक्षी का पूरा भार उसकी योनि में घुसे हुए समीर के लिंग पर आ गया, और वो पूरा अंदर तक घुस गया - जैसे अगर कोई गुंजाईश रह गई हो, तो वो भी ख़तम हो गई।

मीनाक्षी को बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि समीर उस पोजीशन में भी ऐसे बल पूर्वक धक्के मार सकता है। एक पल को उसके मन में विचार आया कि ‘हे भगवान्! समीर का लिंग इतना बड़ा क्यों है!’ खैर! अब जो भी होना था वो हो चुका था। मीनाक्षी समीर की गोद में उसी के लिंग को अपनी योनि में धारण करके बैठी हुई थी और भोगी जा रही थी। यह सब पहले से अलग तरह का था। उसकी आँखों से आँसू निकल आए। पीड़ा बर्दाश्त करते हुए वो सोच रही थी कि ये तो बढ़िया है.... चित भी मर्द की, और पट भी मर्द की।

“क्या हुआ मेरी जान! सब ठीक तो है?” उसके चेहरे के भाव देख कर समीर ने पूछा।

मीनाक्षी ने तल्खी से कहा, “इतनी ज़ोर से क्यों करते हो जानू! इतनी बेसब्री क्यों है आपको? मैं कहाँ भागी जा रही हूँ?”

उसकी आँखों के कोनों से आँसुंओं को पोंछते हुए वो बोला, “गलती हो गई! माफ़ कर दो, मेरी प्यारी मिनी!”

मीनाक्षी अभी भी अपनी योनि में ठुके हुए उस विशाल और कठोर लिंग के साथ सहज होने की कोशिश कर रही थी और सम्भोग क्रिया की ताल में अपना ताल बैठाने की कोशिश कर रही थी। इसलिए समीर की बात पर ध्यान नहीं दे रही थी। समीर फिर से बोला,

“ज़रा मुस्करा दो, मेरी मिनी! ये बदमाश नुन्नू अपनी सहेली को देख कर कंट्रोल नहीं कर पाया, और उसकी ज़ोर से चुम्मी ले बैठा!”

उसके मुँह से ये शब्द सुनकर मीनाक्षी की हँसी छूट गई और दर्द का अहसास कम हो गया।

“आप और आपका नुन्नू, दोनों एक समान ही बदमाश हैं!”

समीर ने उसको अपनी बाहों में भर लिया और पहले से धीरे धक्के लगाने लगा। उसके कठोर लिंग की गर्मी वो अपनी योनि के भीतर तक महसूस कर रही थी। सम्भोग की गति से होने वाली हलचल से उसके स्तन और चूचक समीर के सीने के बालों से रगड़ कर उसमें एक विद्युतीय आवेश पैदा कर रहे थे। उधर, उसके होंठ मीनाक्षी के होंठो को चूमने और चूसने में व्यस्त हो गए। अब सब सामान्य हो गया था और मीनाक्षी भी अपने पूरे शरीर में सम्भोग का आनंद महसूस कर रही थी। कभी कभी वो अपने नितम्बों को समीर के धक्के लगाने के जैसे ही आगे पीछे कर देती, और उसकी इस हरकत से उसका लिंग और अंदर तक चला जाता। कुछ क्षणों पहले जो अंग उसको इतनी पीड़ा दे रहा था, अब उसको आनंद दे रहा था।

“अभी ठीक लग रहा है?” समीर ने पूछा।

मीनाक्षी ने शरमाते हुए अपनी ‘हाँ’ में सर हिलाया। समीर ने उसको अपनी बाहों में भर लिया और वो निश्चिंत होकर, और अपना सर समीर के कंधे पर रख कर, उसकी गोद में बैठ कर इस अनूठे रमण का आनंद लेती रही। समीर की ही ताल में वो भी अपने नितम्ब चला रही थी। समीर अपनी हथेली से प्यार से उसका सर सहला रहा था होंठों को चूम रहा था।

“मिनी, तुम मेरी पत्नी भी हो, और मेरी प्रेमिका भी! आई लव यू!” समीर प्रेम से मुस्कुराया।

“और आप मेरा पहला प्यार हैं! मुझे नहीं पता था कि कोई मुझे इतना प्यार कर सकता है! आपने मुझसे सिर्फ प्यार किया है। मैं धन्य हो गई हूँ!”

इस बात पर समीर ने जब उसके होंठो पर चुम्बन किया तो मीनाक्षी के पूरे शरीर में रोमांच की लहर दौड़ गई। उसकी योनि के भीतर तक उतरा हुआ समीर का तपता हुआ उत्तेजित लिंग, मीनाक्षी के शरीर की गर्मी भी बढ़ा रहा था। दोनों की ही साँसे गहरी और गरम हो चलीं थीं। इस समय उन दोनों का पूरा शरीर ही घर्षण कर रहा था।

“तो फिर तुम हमेशा मेरी प्रेमिका ही बनी रहना।”

“आप मुझे जिस भी रूप में चाहेंगे, मैं वही रूप ले कर आपको सुख दूँगी! यह मेरा सौभाग्य होगा!”

यह कह कर मीनाक्षी ने अपने होंठ समीर के होंठो पर रख दिए और प्रसन्नतापूर्वक दोनों ने एक दूसरे के होंठो का रस पान करना शुरू कर दिया। उधर नीचे मीनाक्षी की योनि से इतना रस निकल रहा था कि समीर की जांघें और साथ ही बिस्तर भी गीला होने लगा। आज की रात पाँचवी बार मीनाक्षी ने यौन-क्रीड़ा में चरमोत्कर्ष प्राप्त कर लिया था और अभी तक उसको इस बात की महत्ता का पता ही चला।
samudr bhi kam pad gaya ish milan me
rashpadr update dost
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
दुनिया भर में कितनी ही स्त्रियाँ होंगी, जो इस सुख से वंचित होंगी। उनके पति बस अपना काम निकाल लेते हैं। उनकी पत्नियों की क्या इच्छा है, इससे उनको शायद ही कोई सरोकार हो। इस कारण वो स्त्रियाँ सम्भोग की उन संभावनाओं को कभी प्राप्त ही नहीं कर पातीं। और उनका सम्पूर्ण जीवन बस गृहस्थी और बच्चों के फेर में स्वाहा हो जाता है। और यहाँ मीनाक्षी पाँचवी बार इस महत्वपूर्ण सुख का आनंद ले रही थी - पहली ही रात में। और बेचारी को मालूम भी नहीं है कि यह सुख कहलाता क्या है।

उधर समीर उसकी योनि के अंदर की मांस पेशियो में जकड़े हुए अपने लिंग के घर्षण और दोहन से लगातार आनंदित हो रहा था और उसको खुद के चर्मोत्कर्ष की तरफ ले जा रहा था। समीर को स्थिति में थोड़ी असहजता महसूस होने लगी थी, इसलिए वो अब यह पोजीशन बदलना चाहता था। समीर ने मीनाक्षी को थोड़ा सा ऊपर उठाया, और उसको अपने घुटनों पर सम्हालते हुए पीठ के बल बिस्तर पर लिटा दिया, और खुद उसके ऊपर आ गया। यह करते समय समीर ने उसको इस प्रकार पकड़ रखा था कि उसका लिंग योनि से बाहर नहीं निकल पाया। अब दोनों के ही पाँव स्वतंत्र थे। मीनाक्षी का चेहरा अपनी हथेलियों में थाम कर, समीर किसी भूखे बच्चे की भांति उसके होंठो को बेतहाशा चूमने लगा। उसके स्तन समीर की छाती में गड़ रहे थे। समीर अब उन्मुक्त हो कर धक्के लगा रहा था। और अब मीनाक्षी को और भी आनंद आ रहा था।

मीनाक्षी ने महसूस किया कि इस बार दोनों बहुत देर से यह क्रीड़ा खेल रहे थे। समीर का तरीका भी थोड़ा बदल गया था - कभी वो अचानक ही धक्कों की गति तेज कर देता, तो कभी धीमी।

‘उफ़्फ़ ऐसी शरारत! यह सब कहाँ से सीखा है इन्होने!’

समीर के सम्भोग के कौशल को देख कर मीनाक्षी निहाल हुई जा रही थी। कुछ समय पहले आनंद की जो अनुभूति उसको हुई थी, अब पुनः उसकी शुरुआत होती महसूस हो रही थी। इस बीच उसके होंठो ने मीनाक्षी के होंठों को चूसना और चूमना बंद नहीं किया था। उसको भोगते समय समीर एक पल को रुका और साथ ही मीनाक्षी के होंठो को भी पल भर को छोड़ा। तब जा कर मीनाक्षी ने हाँफते हुए साँस ली और बोली,

“बस जानू, बस! अब बस! बाद में कर लेना।” मीनाक्षी के होंठ इतना चूसे जाने से सूज गए थे।

समीर उसकी तरफ देख कर मुस्कराते हुए, और उसके गाल सहलाते हुए बोला, “बस थोड़ा और! थोड़ी देर और बर्दाश्त कर लो, मेरी प्यारी। ज्यादा नहीं सताऊंगा!”

“नहीं जानू! सताने जैसा कुछ नहीं है। आप कर लीजिए अच्छे से।” वो हाँफते हुए बोली। मीनाक्षी की हालत चरमरा गई थी, लेकिन किसी भी हालत में वो अपने प्रेमी को निराश नहीं करना चाहती थी।

समीर ने जल्दी जल्दी बीस पच्चीस धक्के और लगाए और ताज़ा ताज़ा बना हुआ वीर्य मीनाक्षी की कोख में भर दिया। कार्य संपन्न होने के बाद समीर ने बेहद संतुष्टि भरी आवाज़ निकाली। चूँकि यह आवाज़ पहले के दोनों संसर्गों निकली उसकी आवाज़ से अलग थी, इसलिए मीनाक्षी को चिंता हुई,

“क्या हुआ?” उसने पूछा।

“अरे कुछ नहीं! तृप्त हो गया!” समीर हँसते हुए बोला।

“ओह”

“मिनी?”

“हम्म”

“तुमने बताया नहीं कि तुमको कैसा लगता है जब ये तुम्हारे अंदर रहता है?”

“आप भी न!” मीनाक्षी हँसती हुई बोली, “अगर अच्छा न लगता तो ऐसे मैं आपके नुन्नू को उसकी सहेली की चुम्मी लेने देती?”

“हा हा हा! तुम ऐसे बोलते हुए बड़ी सेक्सी लगती हो!”

“हा हा! आपको भी न जाने क्या क्या सेक्सी लगता है!” फिर थोड़ा ठहर कर, “जानू, आपसे एक बात कहूँ?”

“हम्म?”

“आपका ‘ये’ बहुत बड़ा है। थोड़ा आहिस्ता, थोड़ा आराम से किया करिए! नहीं तो दर्द होने लगता है।”

“सॉरी मेरी जान! आगे से ख़याल रखूँगा.... अरे! देख तो... तुम्हारे तो ऊपर के होंठ, और नीचे के होंठ - दोनों ही सूज गए हैं!”

“आप इतना सताएँगे तो ये सब नहीं होगा? जाओ मुझे बात नहीं करनी आप से।” मीनाक्षी झूठ-मूठ ठुनकते हुए बोली।

“बात न करो... पर कम से कम मेरे पास आ जाओ... मेरी बाहों में आ जाओ!”

“रहने दीजिए - नहीं तो आपका नुन्नू फिर से अपनी सहेली की चुम्मी लेने को आतुर हो जाएगा, और मेरी हालत खराब हो जाएगी उस चक्कर में।”

“नहीं नहीं... अभी हम सिर्फ बात करेंगे”

“पक्का?”

“पक्का।”

दोनों कुछ देर आलिंगनबद्ध हो कर लेटे रहे। उसने घड़ी में देखा - रात के ढाई बज रहे थे। इसका मतलब पिछले पाँच घण्टे से उनका यह प्रेम मिलन चल रहा था।

वो समीर के सीने पर हाथ रखे हुई थी। उसके मन में समीर को छेड़ने की इच्छा हुई,

“आदेश के दोस्त?” मीनाक्षी उसको छेड़ती हुई बोली।

“आएं! ये क्या हुआ तुमको?” समीर हैरानी से बोला।

“ये सब बदमाशियाँ आपको इंजीनियरिंग में सिखाते थे?”

“कैसी बदमाशियाँ?”

“वही सब, जो कर कर के आप मुझको सताते हैं?”

“ओह! वो! हम्म्म... उसके पीछे एक कहानी है!”

“अच्छा जी? उसके पीछे भी एक कहानी है?”

“हाँ! वो ऐसा हुआ कि एक दिन मुझे एक अप्सरा मिली। प्यारी सी। सुन्दर सी। भोली सी। वो इतनी सुन्दर सी थी कि मुझसे रहा नहीं गया, और एक दिन मैंने उसको चूम लिया। उस दिन से वो मेरे साथ है।”

“अच्छा जी? अभी भी साथ है?”

“हाँ! एक दिन हम दोनों साथ में थे। और कोई नहीं था। वो बिस्तर पर अपने पेट के बल लेटी हुई थी। मैंने देखा कि उसके दाहिने चूतड़ पर एक सुन्दर सा, उसके ही जैसा प्यारा सा तिल है। उसी तिल ने तिलिस्म डाल दिया मुझ पर। और सारी बदमाशियाँ सिखा दीं।”

मीनाक्षी ज़ोर से मुस्कुराने लगी थी, “अच्छा जी! तो आपकी बदमाशियों का ज़िम्मा भी उस बेचारी अप्सरा पर है!”

“और नहीं तो क्या! वरना मैं तो एक सीधा, सादा, निहायत ही शरीफ़ लड़का था।”

“जो अब आप नहीं रहे?”

समीर ने ‘न’ में सर हिलाया।

“बातें बनाना कोई आप से सीखे।” वो हँसे बिना नहीं रह सकी।
bahad khusurat update dost
apsara ko bhi til hota hai dost adbhut kalpnashakti mitr
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
“मिनी?”

“जी?”

“एक और गाना सुनाइए न! आपकी आवाज़ में एक गाना सुन लूँगा.... तो आत्मा की तृप्ति में जो ज़रा सी कसर बची है, वो पूरी हो जाएगी!” समीर ने अनुरोध किया।

“गाना सुनाऊँ? अच्छा ठीक है। कौन सा गाना सुनाऊँ?”

“आपको जो भी पसंद हो।”

“जो भी मुझे पसंद हो? उम्म्म्म। ..... कुछ देर सोचने के बाद वो मुस्कुराई - उसकी आँखों में चंचलता और स्नेह दोनों के भाव दिख रहे थे।

“आप पहले ठीक से बैठिए।” कह कर उसने समीर को पहले बिस्तर के सिरहाने (head-rest) पर कई सारे तकिए लगा कर अधलेटा बिठाया, और फिर गाना शुरू किया।

जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे

जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे
हो मेरे रँग गए सांझ सकारे


मीनाक्षी सिर्फ गा ही नहीं रही थी... वो अपने हाथों और चेहरे से नृत्य की भावभंगिमा भी बना रही थी। मीनाक्षी की गाने वाली आवाज़, उसकी बोलने वाली आवाज़ से भी कहीं अधिक मीठी थी! समीर सोच रहा था कि क्यों उसको मिनी के इस टैलेंट के बारे में कुछ पता ही नहीं था!

तू तो अँखियों से जाने जी की बतियाँ

तोसे मिलना ही जुल्म भया रे

पाँचों उँगलियाँ एक साथ मिला कर उसने अपने माथे के कोने से न जाने क्या उठाया, और फिर समीर की दिशा में कलाई मोड़ कर उस इमेजिनरी काल्पनिक वस्तु को फेंक दिया। समीर उसकी इस अदा पर ज़ोर से मुस्कुराया।

हे जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे

मीनाक्षी गाने के ताल पर अपने सर को हल्के हल्के झुमा कर गा रही थी। मीठा गीत! पहले शब्दों से ही प्रेम रुपी शहद टपकने लगा। कौन न झूमने लगे? समीर का खुद का सर मीनाक्षी की ताल पर हिलने लगा।

देखी साँवली सूरत ये नैना जुड़ाए

देखी साँवली सूरत

गाते हुए मीनाक्षी ने समीर के दोनों गालों को अपने दोनों हाथों से प्यार से छुआ।

तेरी छब देखी जबसे रे

तेरी छब देखी जबसे रे नैना जुड़ाए
भए बिन कजरा ये कजरारे


मीनाक्षी ने हाथों से समीर की बलैयाँ उतारीं, और अपनी कनपटियों पर ला कर उँगलियों को फोड़ लिया.... मतलब उसने समीर के सर की बलाएँ अपने सर उतार लीं।

हे जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे

हो मेरे रँग गए सांझ सकारे

समीर ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास आने का इशारा किया। मीनाक्षी गाते हुए समीर के सीने पर टेक लगा कर बैठ जाती है।

जाके पनघट पे बैठूँ मैं, राधा दीवानी

जाके पनघट पे बैठूँ

समीर ने उसकी बाँह को चूम लिया।

बिन जल लिए चली आऊँ

उसने एक हाथ से अपने सर के निकट एक कलश का आकार बनाया। समीर उसके गाने, उसकी अदा, और उसके चेहरे की भाव-भंगिमा पर मुस्कुरा दिया।

बिन जल लिए चली आऊँ राधा दीवानी

मोहे अजब ये रोग लगा रे

कह कर मीनाक्षी ने समीर का हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ कर अपने चेहरे के एक तरफ लगाया, और आँखें बंद कर झूमने लगी।

हे जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे

हो मेरे रँग गए सांझ सकारे

समीर ने उसको पीछे से आलिंगनबद्ध कर लिया और उसके कंधे के नीचे चूम लिया।

मीठी मीठी अगन ये, सह न सकूँगी

मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए धीरे से अपना सर ‘न’ में हिलाया।

मीठी मीठी अगन

मैं तो छुई-मुई अबला रे

कह कर उसने दोनों हाथ अपने सीने से लगा कर खुद को हलके से सिमटा लिया।

मैं तो छुई-मुई अबला रे सह न सकूँगी

“अए हय”, समीर उसके ‘छुई मुई’ बोलने की अदा पर बोल पड़ा।

मेरे और निकट मत आ रे

“अरे!” कह कर समीर ने मीनाक्षी को और कस के अपने बाहुपाश में बाँध लिया।

ओ जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे

हो मेरे रँग गए सांझ सकारे
तू तो अँखियों में जाने जी की बतियाँ
तोसे मिलना ही जुल्म भया रे


गाते हुए मीनाक्षी ने आँखें और नाक प्यार से मिचका दिए.... मीनाक्षी की उस अदा पर समीर के दिल पर जैसे सैकड़ों खंजर चल गए हों।

ओ जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे



[गाना बंदिनी (1963) फिल्म से है; गीतकार हैं शैलेन्द्र; संगीतकार हैं सचिन देव बर्मन; गायिका हैं लता मंगेशकर! बहुत मीठा गीत है। कुछ नहीं तो ऐसे ही सुन लीजिए]
bahad umda update mitr
bezod sama bandh diya aapne toh ish sunder geet ke sang
 
  • Like
Reactions: avsji

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
“वा वाह! अमेजिंग! अमेजिंग! सुभानअल्लाह! जज़ाकल्लाह! सच में मिनी, आत्मा तृप्त हो गई।”

मीनाक्षी प्रेम से मुस्कुराई। यह गीत उसने इसीलिए गाया जिससे वो समीर को बता सके कि वो उसके कारण क्या महसूस करती है! अगर गाना सुन कर समीर की आत्मा तृप्त हो गई, तो उसकी भी आत्मा तृप्त हो गई।

“इसका मतलब क्या है?” समीर के बगल लेटते हुए उसने पूछा।

“किसका?”

“सुभानअल्लाह के बाद जो बोला!”

“ओह, जज़ाकल्लाह… इसका मतलब है, ‘भगवान तुम्हारा कल्याण करें, भगवान तुमको खुश रखें’!”

मीनाक्षी उसकी बात सुन कर उसको ज़ोर से खुद में भींच लेती है।

“वैसे, मुझे भी गाने में कुछ कुछ समझ में नहीं आया।”

“क्या क्या? पूछिए? बताती हूँ।”

पति पत्नी एक दूसरे के आलिंगन में बंधे रह कर, ऐसी निरर्थक बातों में भी कितना रस निकाल लेते हैं!

“‘नैना जुड़ाए’ मतलब? आँखों से आँखें मिल गईं?”

“हा हा! इसका मतलब है, कि तुम्हारी मोहनी सूरत देख कर मेरी आँखों में ठंडक आ गई! मतलब, मेरी आत्मा भी तृप्त हो गई। समझे जानू हमरे?”

“हम्म्म.... और, सकारे मतलब?”

“सकारे मतलब सुबह!” मीनाक्षी अपने पति के अंगों को प्रेम से सहलाती हुई समझा रही थी, “जैसे जब शाम ढलती है तो कितने सारे रंग आकाश में घुल जाते हैं, वैसे ही सवेरा होने पर भी आकाश उतना ही सुन्दर, और रंग-बिरंगा हो जाता है। तुम्हारे आने से ऐसे सुन्दर दृश्य भी और सुन्दर हो गए हैं।”

समीर ने सुना - मीनाक्षी ने उसको दो बार ‘तुम’ कह कर सम्बोधित किया था। दोनों ही बार उसकी बोली प्रेम से सराबोर थी। समीर को सुन कर बहुत अच्छा लगा। मीनाक्षी उसको ‘आप’ क्यों कहती है, उसको नहीं मालूम था।

“मिनी?”

“जी?” वो इस समय उसके लिंग को सहला रही थी।

“मुझे ऐसे ही ‘तुम’ कह कर बुलाया करो न?”

“मेरे साजन,” मीनाक्षी इठलाती हुई बोली, “कहूँगी तो मैं हमेशा ‘आप’ ही आपको। ये ‘तुम’ का प्रयोग कभी कभी होगा - स्पेशल मौकों पर!”

“जैसे अभी?”

“जैसे अभी,” मीनाक्षी का हाथ समीर को सहलाते सहलाते उसके वृषण पर चला गया। उसको भी सहलाते हुए बोली, “इसको क्या कहते हैं?”

“टेस्टिकल्स! इसी में स्पर्म्स बनते हैं। ज़ोर से मत दबाना।”

“दर्द होगा?”

“हाँ! दर्द भी होगा, और हमारे आने वाले बच्चे भी, ....वेल, वो नहीं आएँगे! हा हा!”

“बाप रे!” कह कर उसने वहाँ से हाथ हटा लिया।

“अरे! मज़ाक किया! दर्द होगा बस। जो कर रही हो, वो करती रहो।”

“हम्म! ..... जानू?”

“हाँ?”

“आपको ‘वहाँ’ पर बाल अच्छे नहीं लगते न?”

“कहाँ पर?” समीर जानता था कि मीनाक्षी क्या बोल रही है।

“वहाँ पर।” फिर थोड़ा शरमाते, थोड़ा सकुचाते, थोड़ा फुसफुसाते, “चूत पर!”

समीर मुस्कुराया, “आप पर मुझे कुछ भी खराब नहीं लगता।”

“लेकिन वो अगर चिकनी रहे तो आपको ज्यादा अच्छी लगेगी?”

समीर ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ठीक है।”

“क्या करने वाली हो?” समीर ने उत्सुकतावश पूछा।

“बताऊँगी.... नहीं, बताऊँगी नहीं, दिखाऊँगी! ही ही”, फिर थोड़ा सोचती हुई, “जानू, अगर हम ऐसे ही... अह... ‘ये’ करते रहे, तो मैं जल्दी ही माँ बन जाऊँगी!” मीनाक्षी ने समीर के सीने कर उँगली से गोदते हुए कहा।

“हाँ! वो तो है। आप चाहती हैं माँ बनना?”

“आप क्या चाहते हैं?”

“मिनी, मेरे चाहने की इसमें थोड़ी कम वैल्यू है। ऑफ़ कोर्स, हर आदमी चाहता है अपनी संतान! लेकिन मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ, नौ महीने तक बच्चे को अपने अंदर रखना तो आपको ही पड़ेगा। उससे मैं आपको बचा नहीं पाऊँगा!”

मीनाक्षी मन ही मन सोचने लगी कि समीर को उसका कितना ख़याल है!

“बॉडी चेंज हो जाती है। आपके मूड्स चेंज हो जाएँगे, और आपको समझ ही नहीं आएगा कि क्यों हो रहा है। ये एक बड़ा डीसीजन है, और बहुत बड़ा कमिटमेंट भी! आप को ये डीसीजन लेना चाहिए। और आपका कोई भी डीसीजन होगा, मैं हूँ न! साथ में हमेशा!”

“जानू, मैं कोई काँच की गुड़िया थोड़े ही हूँ जो आपका संतान अपनी कोख में रखने से टूट जाऊँगी! बच्चा तो औरतें ही पैदा कर सकती हैं! मैं कोई अलग थोड़े ही हूँ!”

“आई नो! मैंने वैसे नहीं कहा।”

“हम्म... आपको बच्चे चाहिए?”

“हाँ! ये भी कोई पूछने की बात है?”

“कितने?”

“दो!” कुछ सोच कर, “एक भी ठीक है। पहली अगर लड़की हुई तो मेरे लिए एक भी ठीक है।”

“आपको लड़कियाँ ज़्यादा पसंद हैं?”

“आपको देखने के बाद से, हाँ! मुझे आपके जैसी एक बेटी चाहिए!”

“और मुझे आपके जैसा एक बेटा!”

“मतलब दो बच्चे?”

“मतलब दो बच्चे।”

“हम्म्म! इंटेरेस्टिंग!”

“लेकिन मैं सोच रही थी कि अभी आप अभी भी उम्र में बहुत छोटे हैं।”

“हम्म म्मम?”

“तो मैं सोच रही थी कि हम दो साल रुक जाते हैं.... फिर उसके बाद करते हैं?”

“जानू, मैंने तुमको पहले ही कहा है, कि ये तुम्हारा डीसीजन होना चाहिए! मैं पूरा सपोर्ट करूँगा!”

“ओके! तो अगर मेरा यह डीसीजन हो तो?”

“दो साल रुकने का?”

“हाँ!”

“मतलब, एक साल बाद दूसरे साल में बेबी, या दो साल के बाद तीसरे साल में बेबी?”

“एक साल बाद दूसरे साल में बेबी।” मीनाक्षी अब खिलखिला कर हँसने लगी।

“और उसके पहले हो गया अगर?”

“तो मेरे प्यारे साजन, मैं आपको वो सब सुख कैसे दे पाऊँगी, जो देना चाहती हूँ।”

“क्यों, बच्चा होने पर ऐसा क्या हो जाएगा?”

“क्योंकि बच्चा होने के बाद, मेरे भोले साजन, बच्चों के डायपर बदलने का काम तो आपका हो जाएगा! अब आप ही बताइए, जब एक तरफ मेरा बच्चा रोएगा और दूसरी तरफ मेरा जानू - तो मैं किसको सम्हालूँगी?

“मुझको!”

“हा हा हा!”

“हा हा! मज़ाक कर रहा हूँ! चलो, डायपर बदलने का काम मेरा! लेकिन मुझे उस काम का मेहनताना क्या मिलेगा?”

“मेहनताना? हम्म्म... मैं आपको वो अमृत दूँगी, जिसकी खोज आप पिछले तेरह चौदह साल से कर रहे हैं! सीधा... डेरी से!” मीनाक्षी खिलखिलाती, शरमाती हुई बोली!

“पक्का?” समीर खींसे निपोरते हुए बोला।

“पक्का मेरी जान!”

“वायदा किया है तुमने! पीछे तो नहीं हट जाओगी?”

“बिलकुल भी नहीं मेरे जानू!”

“अरे तो भाड़ में गया दो साल का वेट!” कह कर समीर बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगा।

“जानू... जानू...” मीनाक्षी उसको वापस बिस्तर पर लिटाती बोली।

“क्या?”

“क्या कर रहे हैं आप?”

“ट्राइंग टू पुट ए बेबी इन यू! और क्या?”

“जानू, आपको इतनी जल्दी पापा बनने में कोई ऐतराज़ तो नहीं?”

“मेरी ऐज के कारण आप वेट करना चाहती थीं?”

“हाँ?”

“लेकिन वैसे आप माँ बनना चाहती हैं?”

मीनाक्षी ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और शरम से अपना चेहरा अपनी हथेलियों से ढँक लिया।

“तो मेरी जान, अपनी आमरस की प्याली खोलो, जिससे मेरा नुन्नू अपनी सहेली को चुम्मी दे सके!”


[समाप्त]
manmohak update ke sath ek shaandaar kahani ka sukhad ant bahut sunder hai
aur ek divye sandesh janmaanash me pahuncha
hum do humaare do
 
  • Like
Reactions: avsji
Status
Not open for further replies.
Top